Development works in Arunachal Pradesh will shine across the nation: PM Modi

Published By : Admin | February 15, 2018 | 12:38 IST
QuotePM Modi inaugurates the Arunachal Civil Secretariat in Itanagar, Arunachal Pradesh
QuoteI can tell you with great pride that ministers & officials from the Centre are visiting the Northeast very regularly: PM Modi
QuoteI am delighted to visit Arunachal Pradesh and be among the wonderful people of this state: PM Modi in Itanagar
QuoteFor farmers, we are ensuring they get better access to markets, says PM Modi
Quote#AyushmanBharat scheme will take the lead in providing quality and affordable healthcare: PM in Itanagar
QuotePM Modi says that development will originate in Arunachal Pradesh in the coming days & this development will illuminate India

विशाल संख्‍या में पधारे मेरे प्‍यारे भाइयो और बहनों।

जब हिन्‍दुस्‍तान को उगते सूरज की ओर देखना होता है, सूर्योदय को देखना होता है; तो पूरे हिन्‍दुस्‍तान को सबसे पहले अरुणाचल की तरफ अपना मुंह करना पड़ता है। हमारा पूरा देश, सवा सौ करोड़ देशवासी- सूर्योदय देखना है तो अरुणाचल की तरफ निगाह किए बिना सूर्योदय देख नहीं पाते। और जिस अरुणाचल से अंधेरा छंटता है, प्रकाश फैलता है; आने वाले दिनों में भी यहां विकास का ऐसा प्रकाश फैलेगा जो भारत को रोशन करने में काम आएगा।

अरुणाचल मुझे कई बार आने का सौभाग्‍य मिला है। जब संगठन का काम करता था तब भी आया, गुजरात में मुख्‍यमंत्री रहा तब भी आया और प्रधानमंत्री बनने के बाद आज दूसरी बार आप सबके बीच, आपके दर्शन करने का मुझे अवसर मिला है।

अरुणाचल एक ऐसा प्रदेश है कि अगर आप पूरे हिन्‍दुस्‍तान का भ्रमण करके आएं, हफ्ते भर भ्रमण करके आएं और अरुणाचल में एक दिन भ्रमण करें- पूरे हफ्ते भर में पूरे हिन्‍दुस्‍तान में जितनी बार आप जय हिंद सुनोगे, उससे ज्‍यादा बार जय हिंद अरुणाचल में एक दिन में सुनने को मिलेगा। यानी शायद हिन्‍दुस्‍तान में ऐसी परम्‍परा अरुणाचल प्रदेश में मिलेगी कि जहां पर एक-दूसरे को greet करने के लिए समाज जीवन का स्‍वभाव जय हिंद से शुरू हो गया है और जय हिंद से जुड़ गया है। रग-रग में भरी हुई देशभक्ति, देश के प्रति प्‍यार; ये अपने-आप में अरुणाचल वासियों ने; ये तपस्‍या करके इसको अपने रग-रग का हिस्‍सा बनाया है, कण-कण का हिस्‍सा बनाया है।

जिस प्रकार से north-east में सबसे ज्‍यादा हिन्‍दी बोलना-समझने का अगर कोई प्रदेश है तो मेरा अरुणाचल प्रदेश है। और मैं तो मुझे हैरानी हो रही है, इन दिनों में north-east में मेरा दौरा होता रहता है, पहले तो आपको जहां मालूम है प्रधानमंत्रियों को इतना काम हुआ करता था वो यहां तक आ नहीं पाते थे। और मैं एक ऐसा प्रधानमंत्री हूं कि आपके बीच आए बिना रह नहीं पाता हूं। लेकिन north-east में इन दिनों मैं जाता हूं तो मैं देख रहा हूं कि सब नौजवान बैनर लेकर खड़े हुए नजर आते हैं और मांग करते हैं हमें हिन्‍दी सीखना है, हमें हिन्‍दी सिखाओ। ये, ये एक   बड़ा  revolution है जी। मेरे देश के लोगों से उनकी भाषा में बातचीत कर पाऊं, ये जो ललक है और युवा पीढ़ी में है; ये अपने आप में बहुत बड़ी ताकत ले करके आई है।

आज मुझे यहां तीन कार्यक्रमों का अवसर मिला है। भारत सरकार के बजट से, भारत सरकार की योजना से, डोनर मंत्रालय के माध्‍यम से ये brand सौगात अरुणाचल की जनता को मिली है। Secretariat का काम तो प्रारंभ हो चुका। कभी-कभी हम अखबारों में देखते हैं ब्रिज बन जाता है लेकिन नेता को समय नहीं, इसलिए ब्रिज का उद्घाटन होता नहीं और महीनों तक पड़ा रहता है। रोड़ बन जाता है, नेता को समय नहीं; रोड़ वैसा का वैसा ही बना पड़ा रहता है।

हमने आ करके एक नया कल्‍चर शुरू किया। हमने नया कल्‍चर ये शुरू किया कि आप नेता का इंतजार मत करो, प्रधानमंत्री का इंतजार मत करो। अगर योजना पूरी हो चुकी है, उपयोग करना शुरू कर दो; जब आने का अवसर मिलेगा उस दिन लोकार्पण कर देंगे, काम रुकना नहीं चाहिए। और मुझे प्रेमा जी के प्रति अभिनंदन करता हूं कि उन्‍होंने काम शुरू कर दिया और लोकार्पण का काम आज हो रहा है।  पैसे कैसे बच सकते हैं? पैसों का कैसे सदुपयोग हो सकता है? इस बात को हम भली-भांति से छोटे से निर्णय से भी समझ सकते हैं, देख सकते हैं।

|

अब सरकार ज‍ब बिखरी-बिखरी होती है, कोई department यहां, कोई वहां, कोई इधर बैठा है कोई उधर बैठा। मकान भी पुराना, जो अफसर बैठता है वो भी सोचता है जल्‍दी घर कैसे जाऊं। अगर environment ठीक होता है, दफ्तर का environment ठीक होता है तो उसका work culture पर भी एक साकारात्‍मक प्रभाव होता है। जितनी सफाई होती है, फाइलें ढंग से रखी हुई हैं; वरना कभी तो क्‍या होता है अफसर जब दफ्तर जाता है तो पहले कुर्सी को पट-पट करता है ताकि मिट्टी उड़ जाए, और फिर बैठता है। लेकिन उसको मालूम नहीं वे ऐसे उड़ाता है, बाद में वो वहीं पड़ती है। लेकिन एक अच्‍छा दफ्तर रहने के कारण और एक ही कैम्‍पस में सारे यूनिट आने के कारण अब गांव से कोई व्‍यक्ति आता है, secretariat में उसको काम है तो उसको बेचारे को, वो कहीं नहीं कहता कि इधर नहीं, दूर जाओ तो उसको वहां से दो किलोमीटर दूर जाना पड़ेगा। फिर वहां जाएगा, कोई कहेगा यहां नहीं, फिर दो किलोमीटर दूर तीसरे दफ्तर में जाना पड़ेगा। अब वो यहां आया किसी गलत department में पहुंच गया तो वो कहेगा कि बाबूजी  आप आए हैं अच्‍छी बात है, लेकिन ये बगल वाले कमरे में चले जाइए। सामान्‍य मानवी को भी इस व्‍यवस्‍था के कारण बहुत सुविधा होगी।

दूसरा, सरकार सायलों में नहीं चल सकती। सब मिल-जुलकर एक दिशा में चलते हैं तभी सरकार परिणामकारी बनती है। लेकिन अगर technical रूप में coordination होता रहता है तो उसकी ताकत थोड़ी कम होती है, लेकिन अगर सहज रूप से coordination होता है तो उसकी ताकत बहुत ज्‍यादा होती है। एक कैम्‍पस में सब दफ्तर होते हैं तो सहज रूप से मिलना-जुलना होता है, कैन्‍टीन में भी अफसर एक साथ चले जाते हैं, एक-दूसरे की समस्‍या की चर्चा कर-करके समाधान कर लेते हैं। यानी काम की निर्णय प्रक्रिया में coordination बढ़ता है, delivery system तेज हो जाता है, निर्णय प्रक्रिया बहुत ही सरल हो जाती है। और इसलिए ये नए secretariat के कारण अरुणाचल के लोगों के सामान्‍य मानवी के जीवन की आशा-आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए...। उसी प्रकार से आज एक महत्‍वपूर्ण काम, और वो मैं अपने-आप में गर्व समझता हूं। श्रीमान Dorjee Khandu State Convention Centre Itanagar का आज लोकार्पण करते हुए। ये सिर्फ एक इमारत का लोकार्पण नहीं है। ये एक प्रकार से अरुणाचल के सपनों का एक जीता-जागता ऊर्जा केंद्र बन सकता है। एक ऐसी जगह जहां conferences के लिए सुविधा होगी, cultural activity के लिए सुविधा होगी और अगर हम अरुणाचल में tourism बढ़ाना चाहते हैं तो मैं भी भारत सरकार की भिन्‍न-भिन्‍न कम्‍पनियों को कहूंगा कि अब वहां convention centre बना है, आपकी general board की मीटिंग जाओ अरुणाचल में करो। मैं प्राइवेट इन लोगों को बताऊंगा कि भई ठीक है ये दिल्‍ली-मुम्‍बई में बहुत कर लिया, जरा जाइए तो कितना प्‍यारा मेरा प्रदेश है अरुणाचल, जरा उगते सूरज को वहां जा करके देखिए। मैं लोगों को धक्‍का लगाऊंगा। और इतनी बड़ी मात्रा में लोगों का आना-जाना शुरू होगा। तो आजकल tourism का एक क्षेत्र होता है conference tourism. और ऐसी व्‍यवस्‍था अगर बनती है तब सब लोगों का आना बड़ा स्‍वाभाविक होता है।

हम लोगों ने सरकार में भी एक नया प्रयोग शुरू किया है। हम सरकार दिल्‍ली से 70 साल तक चली है और लोग दिल्‍ली की तरफ देखते थे। हमने आकर सरकार को हिन्‍दुस्‍तान के हर कोने में ले जाने का बीड़ा उठाया है। अब सरकार दिल्‍ली से नहीं, हिन्‍दुस्‍तान के हर कोने को लगना चाहिए सरकार वो चला रहे हैं।

हमने हमारा एक agriculture summit किया तो सिक्कम में किया, पूरे देश के मंत्रियों को बुलाया। हमने कहा जरा देखो, सिक्किम देखो, कैसे organic farming का काम हुआ है। आने वाले दिनों में North-East के अलग-अलग राज्‍यों में भारत सरकार के अलग-अलग विभागों के मंत्रालयों की बड़ी-बड़ी मीटिंग बारी-बारी से अलग-अलग जगह पर हों। North-East Council की मीटिंग में शायद मोरारजी भाई देसाई, आखिरी प्रधानमंत्री आए थे। उसके बाद किसी को फुरसत ही नहीं मिली, बहुत busy होते हैं ना PM. लेकिन मैं आपके लिए ही तो आया हूं, आपके कारण आया हूं और आपकी खातिर आया हूं।

और इसलिए North-East Council की मीटिंग में मैं रहा, विस्‍तार से चर्चाएं कीं। इतना ही नहीं, हमने पूरी दिल्‍ली सरकार में से मंत्रियों को मैंने आदेश किया कि बारी-बारी से हर मंत्री अपने स्‍टाफ को ले करके North-East के अलग-अलग राज्‍यों में जाएंगे। महीने में कोई सप्‍ताह ऐसा नहीं होना चाहिए कि भारत सरकार को कोई न कोई मंत्री, North-East के किसी न किसी राज्‍य के किसी न किसी कोने में गया नहीं है और ये पिछले तीन साल से लगातार चल रहा था।

इतना ही नहीं, डोनर मंत्रालय दिल्‍ली में बैठ करके North-East का भला करने में लगा हुआ था। हमने कहा, किया-अच्‍छा किया; अब एक और काम करो। पूरा डोनर मंत्रालय हर महीना, उसका पूरा secretariat, North-East में आता है। अलग-अलग राज्‍यों में जाता है, वहां रुकता है, और North-East के विकास के लिए सरकार- भारत सरकार ने क्‍या करना चाहिए, मिल बैठ करके चर्चा हो करके ये योजना होती है, review होता है, मॉनिटरिंग होता है, accountability होती है, और उसके कारण transparency भी आती है, काम नीचे दिखाई देने लगता है। तो इस प्रकार से ये व्‍यवस्‍था जो खड़ी होती है, ये जो convention centre बना है, वो भारत सरकार की भी अनेक मीटिंगों के लिए एक नया अवसर ले करके आता है, और उसका भी लाभ होगा।

|

आज यहां पर एक मेडिकल कॉलेज, मेडिकल हॉस्पिटल; उसके शिलान्‍यास का मुझे अवसर मिला है। हमारे देश में आरोग्‍य के क्षेत्र में बहुत कुछ करने की हम आवश्‍यकता महसूस करते हैं। एक होता है human resource development, दूसरा होता है Infrastructure, तीसरा होता है most modern technology equipments; हम इन तीनों दिशाओं में health sector को ताकत देने की दिशा में काम कर रहे हैं।

हमारा एक सपना है कि हो सके उतना जल्‍दी हिन्‍दुस्‍तान में तीन parliament constituency के बीच में कम से कम एक बड़ा अस्‍पताल और एक अच्‍छी मेडिकल कॉलेज बन जाए। भारत में इतनी बड़ी मात्रा में मेडिकल कॉलेज बनेगी और वहीं का स्‍थानीय बच्‍चा, स्‍टूडेंट, अगर वहां मेडिकल कॉलेज में पढ़ता है तो वहां की बीमारियां, स्‍वाभाविक होने वाली बीमारियां, उसका उसको अता-पता होता है।

वो दिल्‍ली में पढ़ करके आएगा तो दूसरा सब्‍जेक्‍ट पढ़ेगा, और अरुणाचल की बीमारी कुछ और होगी। लेकिन अरुणाचल में पढ़ेगा तो उसको पता होगा कि यहां के लोगों को सामान्‍य रूप से ये चार-पांच प्रकार की तकलीफें होती हैं। इसके कारण treatment में एक qualitative सुधार आता है, क्‍योंकि human resource development में local touch होता है। और इसलिए हम medical education को दूर-दराज interior में ले जाना चाहते हैं। और दूसरा, जब वहीं पर वो मेडिकल कॉलेज में पढ़कर निकलता है तो बाद में भी वो वहीं रहना पसंद करता है, उन लोगों की चिंता करना पसंद करता है और उसके कारण उसकी भी रोजी-रोटी चलती है और लोगों को भी स्‍वास्‍थ्‍य की सुविधाएं मिलती हैं। तो मुझे खुशी है कि आज अरुणाचल प्रदेश में वैसे ही एक निर्माण कार्य का शिलान्‍यास करने का मुझे अवसर मिला है जिसका इसके लिए आने वाले दिनों में लाभ होगा।

भारत सरकार ने हर गांव में आरोग्‍य की सुविधा अच्‍छी मिले, उसको दूर-दराज तक, क्‍योंकि हर किसी को major बीमारी नहीं होती है। सामान्‍य बीमारियों की तरफ उपेक्षा का भाव, असुविधा के कारण चलो थोड़े दिन में ठीक हो जाएंगे, फिर इधर-उधर की कोई भी चीज ले करके चला लेना, और गाड़ी फिर निकल जाए फिर बीमार हो जाए, और गंभीर बीमारी होने तक उसको पता ही न चले। इस स्थिति को बदलने के लिए इस बजट में भारत सरकार ने हिन्‍दुस्‍तान की 22 हजार पंचायतों में, मैं आंकड़ा शायद कुछ मेरा गलती हो गया है; डेढ़ लाख या दो लाख; जहां पर हम wellness centre करने वाले हैं, wellness centre; ताकि अगल-बगल के दो-तीन गांव के लोग उस wellness centre का लाभ उठा सकें। और उस wellness centre से वहां पर minimum parameter की चीजें, व्‍यवस्‍थाएं, स्‍टाफ उपलब्‍ध होना चाहिए। ये बहुत बड़ा काम, ग्रामीण हेल्‍थ सेक्‍टर को इस बार बजट में हमने घोषित किया है। Wellness centre का, करीब-करीब हिन्‍दुस्‍तान की सभी पंचायत तक पहुंचने का ये हमारा प्रयास है।

और जो मैं 22 हजार कह रहा था, वो किसानों के लिए। हम आधुनिक मार्केट के लिए काम करने वाले हैं देश में ताकि अगल-बगल के 12, 15, 20 गांव के लोग, उस मंडी में किसान आ करके अपना माल बेच सकें। तो हर पंचायत में wellness centre और एक ब्‍लॉक में दो या तीन, करीब-करीब 22 हजार, किसानों के लिए खरीद-बिक्री के बड़े सेंटर्स; तो ये दोनों तरफ हम काम ग्रामीण सुविधा के लिए कर रहे हैं।

लेकिन इससे आगे एक बड़ा काम- हमारे देश में बीमार व्‍यक्ति की चिंता करने के लिए हमने कई कदम उठाए हैं, holistic कदम उठाए हैं, टुकड़ों में नहीं। जैसे- एक तरफ human resource development, दूसरी तरफ अस्‍पताल बनाना, मेडिकल कॉलेज बनाना, infrastructure खड़ा करना, तीसरी तरफ-आज गरीब को अगर बीमारी घर में आ गई, मध्‍यम वर्ग का परिवार हो, बेटी की शादी कराना तय किया हो, कार खरीदना तय किया हो; बस अगली दिवाली में कार लाएंगे-तय किया हो और अचानक पता चले कि परिवार में किसी को बीमारी आई है तो बेटी की शादी भी रुक जाती है, मध्‍यम वर्ग का परिवार कार लाने का सपना बेचारा छोड़ करके साइकिल पर आ जाता है और सबसे पहले परिवार के व्‍यक्ति की बीमारी की चिंता करता है। अब ये स्थिति इतनी महंगी दवाइयां, इतने महंगे ऑपरेशंस, मध्‍यम वर्ग का मानवी भी टिक नहीं सकता है।

इस सरकार ने विशेष करके, क्‍योंकि गरीबों के लिए कई योजनाएं हैं लाभप्रद, लेकिन मध्‍यम वर्ग के लिए असुविधा हो जाती है। हमने पहले अगर हार्ट की बीमारी होती है, स्‍टेंट लगाना होता था तो उसकी कीमत लाख, सवा लाख, डेढ़ लाख होती थी। और वो बेचारा जाता था, डॉक्‍टर को पूछता था कि साहब स्‍टेंट का, तो डॉक्‍टर कहता था ये लगाओगे तो डेढ़ लाख, ये लगाओ तो एक लाख। फिर वो पूछता था साहब ये दोनों में फर्क क्‍या है? तो वो समझाता था कि एक लाख वाला है तो पांच साल- साल तो निकाल देगा, लेकिन डेढ़ लाख वाले में कोई चिंता नहीं- जिंदगी भर रहेगा। तो अब कौन कहेगा कि पांच साल के लिए जीऊं कि जिंदगी पूरी करुं? वो डेढ़ लाख वाला ही करेगा।

हमने का भाई इतना खर्चा कैसे होता है? हमारी सरकार ने मीटिंगें की, बातचीत की, उनको समझाने का प्रयास किया। और मेरे प्‍यारे देशवासियो, मेरे प्‍यारे अरुणाचल के भाइयो-बहनों, हमनें स्टेंट की कीमत 70-80 percent कम कर दी है। जो लाख-डेढ़ लाख में थी वो आज आज 15 हजार, 20 हजार, 25 हजार में आज उसी बीमारी में उसको आवश्‍यक उपचार हो जाता है।

दवाइयां, हमने करीब-करीब 800 दवाइयां, जो रोजमर्रा की जरूरत होती है। तीन हजार के करीब अस्‍पतालों में सरकार की तरफ से जन-औषधालय परियोजना शुरू की है। प्रधानमंत्री भारतीय जन-औषधि परियोजना- PMBJP.  अब इसमें 800 के करीब दवाइयां- पहले जो दवाई 150 रुपये में मिलती थी, वो ही दवाई, वो ही क्‍वालिटी सिर्फ 15 रुपये में मिल जाए, ऐसा प्रबंध करने का काम किया है।

अब एक काम किया है कि गरीब व्‍यक्ति इसके बावजूद भी, दस करोड़ परिवार ऐसे हैं कि बीमार होने के बाद न वो दवाई लेते हैं, न उनके पास पैसे होते हैं। और इस देश का गरीब अगर बीमार रहेगा तो वो रोजी-रोटी भी नहीं कमा सकता है। पूरा परिवार बीमार हो जाता है और पूरे समाज को एक प्रकार से बीमारी लग जाती है। राष्‍ट्र जीवन को बीमारी लग जाती है। अर्थव्‍यवस्‍था को रोकने वाली परिस्थिति पैदा हो जाती है।

और इसलिए सरकार ने एक बहुत बड़ा काम उठाया है। हमने एक आयुष्‍मान भारत- इस योजना और इसके तहत गरीबी की रेखा के नीचे जीने वाले जो परिवार हैं- उसके परिवार में कोई भी बीमारी आएगी तो सरकार उसका Insurance निकालेगी और पांच लाख रुपये तक- एक वर्ष में पांच लाख रुपये तक अगर दवाई का खर्चा हुआ तो वो पेमेंट उसको Insurance से उसको मिल जाएगा, उसको खुद को अस्‍पताल में एक रुपया नहीं देना पड़ेगा।

और इसके कारण प्राइवेट लोग अब अस्‍पताल बनाने के लिए भी आगे आएंगे। और मैं तो सभी राज्‍य सरकारों का आग्रह करता हूं कि आप अपने यहां health sector की नई policy बनाइए, प्राइवेट लोग अस्‍पताल बनाने के लिए आगे आएं तो उनको जमीन कैसे देंगे, किस प्रकार से करेंगे, कैसी पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप करें, उनको encourage करिए। और हर राज्‍य में 50-50, 100-100 नए अस्‍पताल आ जाएं, उस दिशा में बड़े-बड़े राज्‍य काम कर सकते हैं।

और देश के मेडिकल सेक्‍टर तो एक बहुत बड़ा revolution लाने की संभावना इस आयुष्‍मान भारत योजना के अंदर है और उसके कारण सरकारी अस्‍पताल भी तेज चलेंगे, प्राइवेट अस्‍पताल भी आएंगे और गरीब से गरीब आदमी को पांच लाख रुपया तक बीमारी की स्थिति में हर वर्ष, परिवार को कोई भी सदस्‍य बीमार हो जाए, ऑपरेशन करने की जरूरत पड़े, उसकी चिंता होगी। तो ये आज भारत सरकार ने बड़े mission mod में उठाया है। और आने वाले दिनों में इसका लाभ मिलेगा।  

भाइयो, बहनों- आज मैं आपके बीच में आया हूं, तीन कार्यक्रम की तो आपको सूचना थी लेकिन एक चौथी सौगात भी ले करके आया हूं- बताऊं? और ये चौथी सौगात है नई दिल्‍ली से नहारलागोन एक्‍सप्रेस अब सप्‍ताह में दो दिन चलेगी और उसका नाम अरुणाचल एक्‍सप्रेस होगा।

आप अभी- हमारे मुख्‍यमंत्री जी बता रहे थे कि connectivity चाहे digital connectivity हो, चाहे air connectivity हो, चाहे रेल connectivity हो, चाहे रोड connectivity हो, हमारे नॉर्थ-ईस्‍ट के लोग इतने ताकतवर हैं, इतने सामर्थ्‍यवान हैं, इतने ऊर्जावान हैं, इतने तेजस्‍वी हैं, अगर ये connectivity मिल जाए ना तो पूरा हिन्‍दुस्‍तान उनके यहां आ करके खड़ा हो जाएगा, इतनी संभावना है।

और इसलिए, जैसे अभी हमारे मंत्रीजी, हमारे नितिन गडकरी जी की भरपूर तारीफ कर रहे थे। 18 हजार करोड़ रुपये के अलग-अलग प्रोजेक्‍ट इन दिनों अकेले अरुणाचल में चल रहे हैं, 18 हजार करोड़ रुपये के भारत सरकार के प्रोजेक्‍ट चल रहे हैं। चाहे रोड को चौड़ा करना हो, Four line करना हो; चाहे ग्रामीण सड़क बनाना हो, चाहे national highway बनाना हो, एक बड़ा mission mode में आज हमने काम उठाया है, Digital connectivity के लिए।

और मैं मुख्‍यमंत्रीजी को बधाई देना चाहता हूं। कुछ चीजें उन्‍होंने ऐसी की हैं जो शायद ये अरुणाचल प्रदेश दिल्‍ली के बगल में होता ना तो रोज प्रेमा खंडू टीवी पर दिखाई देते, सब अखबारों में प्रेमा खंडू का फोटो दिखाई देता। लेकिन इतने दूर हैं कि लोगों का ध्‍यान नहीं जाता। उन्‍होंने 2027- twenty-twenty seven, दस साल के भीतर-भीतर अरुणाचल कहां पहुंचना चाहिए, कैसे पहुंचना चाहिए- इसके लिए सिर्फ सरकार की सीमा में नहीं, उन्‍होंने अनुभवी लोगों को बुलाया, देशभर से लोगों को बुलाया, पुराने जानकार लोगों को बुलाया और उनके साथ बैठ करके विचार-विमर्श किया और एक blueprint बनाया कि अब इसी रास्‍ते पर जाना है और twenty-twenty seven तक हम अरुणाचल को यहां ले करके जाएंगे। Good Governance के लिए ये बहुत बड़ा काम मुख्‍यमंत्रीजी ने किया है और मैं उनको साधुवाद देता हूं, बधाई देता हूं, उनका अभिनंदन करता हूं।

दूसरा, भारत सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ रही है और मुझे खुशी है कि प्रेमा खंडुजी की तरफ से मुझे उस काम में भरपूर सहयोग मिल रहा है। Transparency, accountability, इस देश में संसाधनों की कमी नहीं है, इस देश में पैसों की कमी नहीं है। लेकिन जिस बाल्‍टी में पानी डालो, लेकिन बाल्‍टी के नीचे छेद हो तो बाल्‍टी भरेगी क्‍या? हमारे देश में पहले ऐसा ही चला है, पहले ऐसा ही चला है।

हमने आधार कार्ड का उपयोग करना शुरू किया, direct benefit transfer का काम किया। आप हैरान होंगे, हमारे देश में विधवाओं की जो सूची थी ना, widows की; जिनको भारत सरकार की तरफ से हर महीने कोई न कोई पैसा मिलता था, पेंशन जाता था। ऐसे-ऐसे लोगों के उसमें नाम थे कि जो बच्‍ची कभी इस धरती पर पैदा ही नहीं हुई, लेकिन सरकारी दफ्तर में वो widow हो गई थी और उसके नाम से पैसे जाते थे। अब बताइए वो पैसे कहां जाते होंगे? कोई तो होगा ना?

अब हमने direct benefit transfer करके सब बंद कर दिया और देश का करीब-करीब ऐसी योजनाओं में करीब-करीब 57 हजार करोड़ रुपया बचा है, बताइए, 57 हजार करोड़ रुपया। अब ये पहले किसी की जेब में जाता था अब देश के विकास में काम आ रहा है। अरुणाचल के विकास के काम आ रहा है- ऐसे कई कदम उठाए हैं, कई कदम उठाए हैं।

और इसलिए भाइयो-बहनों, आज मेरा जो स्‍वागत-सम्‍मान किया, मुझे भी आपने अरुणाचली बना दिया। मेरा सौभाग्‍य है कि भारत को प्रकाश जहां से मिलने की शुरूआत होती है, वहां विकास का सूर्योदय हो रहा है; जो विकास का सूर्योदय पूरे राष्‍ट्र को विकास के प्रकाश से प्रकाशित करेगा। इसी एक विश्‍वास के साथ मैं आप सबको बहुत बधाई देता हूं। आप सबका बहुत-बहुत धन्‍यवाद करता हूं।

मेरे साथ बोलिए- जय हिंद।

अरुणाचल का जय हिंद तो पूरे हिन्‍दुस्‍तान को सुनाई देता है।

जय हिंद – जय हिंद

जय हिंद – जय हिंद

जय हिंद – जय हिंद

बहुत-बहुत धन्‍यवाद।

  • krishangopal sharma Bjp January 12, 2025

    नमो नमो 🙏 जय भाजपा 🙏🌷🌷🌷🌷🌷🌹🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌹🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌹🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌹🌷🌷🌷🌷🌷🌹🌷🌷🌷🌷🌹🌷🌷🌷🌹🌷🌷🌹🌷🌷🌹🌷🌹🌷🌷🌹🌷🌹🌹🌷🌹🌷🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹
  • krishangopal sharma Bjp January 12, 2025

    नमो नमो 🙏 जय भाजपा 🙏🌷🌷🌷🌷🌷🌹🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌹🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌹🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌹🌷🌷🌷🌷🌷🌹🌷🌷🌷🌷🌹🌷🌷🌷🌹🌷🌷🌹🌷🌷🌹🌷🌹🌷🌷🌹🌷🌹🌹🌷🌹🌷🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷
  • krishangopal sharma Bjp January 12, 2025

    नमो नमो 🙏 जय भाजपा 🙏🌷🌷🌷🌷🌷🌹🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌹🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌹🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌹🌷🌷🌷🌷🌷🌹🌷🌷🌷🌷🌹🌷🌷🌷🌹🌷🌷🌹🌷🌷🌹🌷🌹🌷🌷🌹🌷🌹🌹🌷🌹🌷🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹🌷🌹
  • Reena chaurasia August 28, 2024

    जय हो
  • kumarsanu Hajong August 14, 2024

    viksit bharat
  • Babla sengupta December 23, 2023

    Babla sengupta
  • Jayakumar G November 06, 2022

    jai Bharat🇮🇳🙏❤ Shreshtha Bharat🇮🇳🙏❤
  • Laxman singh Rana August 09, 2022

    नमो नमो 🇮🇳🌹🌹
  • Laxman singh Rana August 09, 2022

    नमो नमो 🇮🇳🌹
  • Laxman singh Rana August 09, 2022

    नमो नमो 🇮🇳
Explore More
ہر ہندوستانی کا خون ابل رہا ہے: من کی بات میں پی ایم مودی

Popular Speeches

ہر ہندوستانی کا خون ابل رہا ہے: من کی بات میں پی ایم مودی
Japan enters top five export markets for India-made cars

Media Coverage

Japan enters top five export markets for India-made cars
NM on the go

Nm on the go

Always be the first to hear from the PM. Get the App Now!
...
Urban areas are our growth centres, we will have to make urban bodies growth centres of economy: PM Modi in Gandhinagar
May 27, 2025
QuoteTerrorist activities are no longer proxy war but well thought out strategy, so the response will also be in a similar way: PM
QuoteWe believe in ‘Vasudhaiva Kutumbakam’, we don’t want enemity with anyone, we want to progress so that we can also contribute to global well being: PM
QuoteIndia must be developed nation by 2047,no compromise, we will celebrate 100 years of independence in such a way that whole world will acclaim ‘Viksit Bharat’: PM
QuoteUrban areas are our growth centres, we will have to make urban bodies growth centres of economy: PM
QuoteToday we have around two lakh Start-Ups ,most of them are in Tier2-Tier 3 cities and being led by our daughters: PM
QuoteOur country has immense potential to bring about a big change, Operation sindoor is now responsibility of 140 crore citizens: PM
QuoteWe should be proud of our brand “Made in India”: PM

भारत माता की जय! भारत माता की जय!

क्यों ये सब तिरंगे नीचे हो गए हैं?

भारत माता की जय! भारत माता की जय! भारत माता की जय!

मंच पर विराजमान गुजरात के गवर्नर आचार्य देवव्रत जी, यहां के लोकप्रिय मुख्यमंत्री श्रीमान भूपेंद्र भाई पटेल, केंद्र में मंत्रिमंडल के मेरे सहयोगी मनोहर लाल जी, सी आर पाटिल जी, गुजरात सरकार के अन्य मंत्री गण, सांसदगण, विधायक गण और गुजरात के कोने-कोने से यहां उपस्थित मेरे प्यारे भाइयों और बहनों,

मैं दो दिन से गुजरात में हूं। कल मुझे वडोदरा, दाहोद, भुज, अहमदाबाद और आज सुबह-सुबह गांधी नगर, मैं जहां-जहां गया, ऐसा लग रहा है, देशभक्ति का जवाब गर्जना करता सिंदुरिया सागर, सिंदुरिया सागर की गर्जना और लहराता तिरंगा, जन-मन के हृदय में मातृभूमि के प्रति अपार प्रेम, एक ऐसा नजारा था, एक ऐसा दृश्य था और ये सिर्फ गुजरात में नहीं, हिन्‍दुस्‍तान के कोने-कोने में है। हर हिन्दुस्तानी के दिल में है। शरीर कितना ही स्वस्थ क्यों न हो, लेकिन अगर एक कांटा चुभता है, तो पूरा शरीर परेशान रहता है। अब हमने तय कर लिया है, उस कांटे को निकाल के रहेंगे।

|

साथियों,

1947 में जब मां भारती के टुकड़े हुए, कटनी चाहिए तो ये तो जंजीरे लेकिन कांट दी गई भुजाएं। देश के तीन टुकड़े कर दिए गए। और उसी रात पहला आतंकवादी हमला कश्मीर की धरती पर हुआ। मां भारती का एक हिस्सा आतंकवादियों के बलबूते पर, मुजाहिदों के नाम पर पाकिस्तान ने हड़प लिया। अगर उसी दिन इन मुजाहिदों को मौत के घाट उतार दिया गया होता और सरदार पटेल की इच्छा थी कि पीओके वापस नहीं आता है, तब तक सेना रूकनी नहीं चाहिए। लेकिन सरदार साहब की बात मानी नहीं गई और ये मुजाहिदीन जो लहू चख गए थे, वो सिलसिला 75 साल से चला है। पहलगाम में भी उसी का विकृत रूप था। 75 साल तक हम झेलते रहे हैं और पाकिस्तान के साथ जब युद्ध की नौबत आई, तीनों बार भारत की सैन्य शक्ति ने पाकिस्तान को धूल चटा दी। और पाकिस्तान समझ गया कि लड़ाई में वो भारत से जीत नहीं सकते हैं और इसलिए उसने प्रॉक्सी वार चालू किया। सैन्‍य प्रशिक्षण होता है, सैन्‍य प्रशिक्षित आतंकवादी भारत भेजे जाते हैं और निर्दोष-निहत्थे लोग कोई यात्रा करने गया है, कोई बस में जा रहा है, कोई होटल में बैठा है, कोई टूरिस्‍ट बन कर जा रहा है। जहां मौका मिला, वह मारते रहे, मारते रहे, मारते रहे और हम सहते रहे। आप मुझे बताइए, क्या यह अब सहना चाहिए? क्या गोली का जवाब गोले से देना चाहिए? ईट का जवाब पत्थर से देना चाहिए? इस कांटे को जड़ से उखाड़ देना चाहिए?

साथियों,

यह देश उस महान संस्कृति-परंपरा को लेकर चला है, वसुधैव कुटुंबकम, ये हमारे संस्कार हैं, ये हमारा चरित्र है, सदियों से हमने इसे जिया है। हम पूरे विश्व को एक परिवार मानते हैं। हम अपने पड़ोसियों का भी सुख चाहते हैं। वह भी सुख-चैन से जिये, हमें भी सुख-चैन से जीने दें। ये हमारा हजारों साल से चिंतन रहा है। लेकिन जब बार-बार हमारे सामर्थ्य को ललकारा जाए, तो यह देश वीरों की भी भूमि है। आज तक जिसे हम प्रॉक्सी वॉर कहते थे, 6 मई के बाद जो दृश्य देखे गए, उसके बाद हम इसे प्रॉक्सी वॉर कहने की गलती नहीं कर सकते हैं। और इसका कारण है, जब आतंकवाद के 9 ठिकाने तय करके 22 मिनट में साथियों, 22 मिनट में, उनको ध्वस्त कर दिया। और इस बार तो सब कैमरा के सामने किया, सारी व्यवस्था रखी थी। ताकि हमारे घर में कोई सबूत ना मांगे। अब हमें सबूत नहीं देना पड़ रहा है, वो उस तरफ वाला दे रहा है। और मैं इसलिए कहता हूं, अब यह प्रॉक्सी वॉर नहीं कह सकते इसको क्योंकि जो आतंकवादियों के जनाजे निकले, 6 मई के बाद जिन का कत्ल हुआ, उस जनाजे को स्टेट ऑनर दिया गया पाकिस्तान में, उनके कॉफिन पर पाकिस्तान के झंडे लगाए गए, उनकी सेना ने उनको सैल्यूट दी, यह सिद्ध करता है कि आतंकवादी गतिविधियां, ये प्रॉक्सी वॉर नहीं है। यह आप की सोची समझी युद्ध की रणनीति है। आप वॉर ही कर रहे हैं, तो उसका जवाब भी वैसे ही मिलेगा। हम अपने काम में लगे थे, प्रगति की राह पर चले थे। हम सबका भला चाहते हैं और मुसीबत में मदद भी करते हैं। लेकिन बदले में खून की नदियां बहती हैं। मैं नई पीढ़ी को कहना चाहता हूं, देश को कैसे बर्बाद किया गया है? 1960 में जो इंडस वॉटर ट्रीटी हुई है। अगर उसकी बारीकी में जाएंगे, तो आप चौक जाएंगे। यहाँ तक तय हुआ है उसमें, कि जो जम्मू कश्मीर की अन्‍य नदियों पर डैम बने हैं, उन डैम का सफाई का काम नहीं किया जाएगा। डिसिल्टिंग नहीं किया जाएगा। सफाई के लिए जो नीचे की तरफ गेट हैं, वह नहीं खोले जाएंगे। 60 साल तक यह गेट नहीं खोले गए और जिसमें शत प्रतिशत पानी भरना चाहिए था, धीरे-धीरे इसकी कैपेसिटी काम हो गई, 2 परसेंट 3 परसेंट रह गया। क्या मेरे देशवासियों को पानी पर अधिकार नहीं है क्या? उनको उनके हक का पानी मिलना चाहिए कि नहीं मिलना चाहिए क्या? और अभी तो मैंने कुछ ज्यादा किया नहीं है। अभी तो हमने कहा है कि हमने इसको abeyance में रखा है। वहां पसीना छूट रहा है और हमने डैम थोड़े खोल करके सफाई शुरू की, जो कूड़ा कचरा था, वह निकाल रहे हैं। इतने से वहां flood आ जाता है।

साथियों,

हम किसी से दुश्मनी नहीं चाहते हैं। हम सुख-चैन की जिंदगी जीना चाहते हैं। हम प्रगति भी इसलिए करना चाहते हैं कि विश्व की भलाई में हम भी कुछ योगदान कर सकें। और इसलिए हम एकनिष्ठ भाव से कोटि-कोटि भारतीयों के कल्याण के लिए प्रतिबद्धता के साथ काम कर रहे हैं। कल 26 मई था, 2014 में 26 मई, मुझे पहली बार देश के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेने का अवसर मिला। और तब भारत की इकोनॉमी, दुनिया में 11 नंबर पर थी। हमने कोरोना से लड़ाई लड़ी, हमने पड़ोसियों से भी मुसीबतें झेली, हमने प्राकृतिक आपदा भी झेली। इन सब के बावजूद भी इतने कम समय में हम 11 नंबर की इकोनॉमी से चार 4 नंबर की इकोनॉमी पर पहुंच गए क्योंकि हमारा ये लक्ष्य है, हम विकास चाहते हैं, हम प्रगति चाहते हैं।

|

और साथियों,

मैं गुजरात का ऋणी हूं। इस मिट्टी ने मुझे बड़ा किया है। यहां से मुझे जो शिक्षा मिली, दीक्षा मिली, यहां से जो मैं आप सबके बीच रहकर के सीख पाया, जो मंत्र आपने मुझे दिए, जो सपने आपने मेरे में संजोए, मैं उसे देशवासियों के काम आए, इसके लिए कोशिश कर रहा हूं। मुझे खुशी है कि आज गुजरात सरकार ने शहरी विकास वर्ष, 2005 में इस कार्यक्रम को किया था। 20 वर्ष मनाने का और मुझे खुशी इस बात की हुई कि यह 20 साल के शहरी विकास की यात्रा का जय गान करने का कार्यक्रम नहीं बनाया। गुजरात सरकार ने उन 20 वर्ष में से जो हमने पाया है, जो सीखा है, उसके आधार पर आने वाले शहरी विकास को next generation के लिए उन्होंने उसका रोडमैप बनाया और आज वो रोड मैप गुजरात के लोगों के सामने रखा है। मैं इसके लिए गुजरात सरकार को, मुख्यमंत्री जी को, उनकी टीम को हृदय से बहुत-बहुत बधाई देता हूं।

साथियों,

हम आज दुनिया की चौथी इकोनॉमी बने हैं। किसी को भी संतोष होगा कि अब जापान को भी पीछे छोड़ कर के हम आगे निकल गए हैं और मुझे याद है, हम जब 6 से 5 बने थे, तो देश में एक और ही उमंग था, बड़ा उत्साह था, खासकर के नौजवानों में और उसका कारण यह था कि ढाई सौ सालों तक जिन्होंने हम पर राज किया था ना, उस यूके को पीछे छोड़ करके हम 5 बने थे। लेकिन अब चार बनने का आनंद जितना होना चाहिए उससे ज्यादा तीन कब बनोगे, उसका दबाव बढ़ रहा है। अब देश इंतजार करने को तैयार नहीं है और अगर किसी ने इंतजार करने के लिए कहा, तो पीछे से नारा आता है, मोदी है तो मुमकिन है।

और इसलिए साथियों,

एक तो हमारा लक्ष्य है 2047, हिंदुस्तान विकसित होना ही चाहिए, no compromise… आजादी के 100 साल हम ऐसे ही नहीं बिताएंगे, आजादी के 100 साल ऐसे मनाएंगे, ऐसे मनाएंगे कि दुनिया में विकसित भारत का झंडा फहरता होगा। आप कल्पना कीजिए, 1920, 1925, 1930, 1940, 1942, उस कालखंड में चाहे भगत सिंह हो, सुखदेव हो, राजगुरु हो, नेताजी सुभाष बाबू हो, वीर सावरकर हो, श्यामजी कृष्ण वर्मा हो, महात्मा गांधी हो, सरदार पटेल हो, इन सबने जो भाव पैदा किया था और देश की जन-मन में आजादी की ललक ना होती, आजादी के लिए जीने-मरने की प्रतिबद्धता ना होती, आजादी के लिए सहन करने की इच्छा शक्ति ना होती, तो शायद 1947 में आजादी नहीं मिलती। यह इसलिए मिली कि उस समय जो 25-30 करोड़ आबादी थी, वह बलिदान के लिए तैयार हो चुकी थी। अगर 25-30 करोड़ लोग संकल्पबद्ध हो करके 20 साल, 25 साल के भीतर-भीतर अंग्रेजों को यहां से निकाल सकते हैं, तो आने वाले 25 साल में 140 करोड़ लोग विकसित भारत बना भी सकते हैं दोस्तों। और इसलिए 2030 में जब गुजरात के 75 वर्ष होंगे, मैं समझता हूं कि हमने अभी से 30 में होंगे, 35… 35 में जब गुजरात के 75 वर्ष होंगे, हमने अभी से नेक्स्ट 10 ईयर का पहले एक प्लान बनाना चाहिए कि जब गुजरात के 75 होंगे, तब गुजरात यहां पहुंचेगा। उद्योग में यहां होगा, खेती में यहां होगा, शिक्षा में यहां होगा, खेलकूद में यहां होगा, हमें एक संकल्प ले लेना चाहिए और जब गुजरात 75 का हो, उसके 1 साल के बाद जो ओलंपिक होने वाला है, देश चाहता है कि वो ओलंपिक हिंदुस्तान में हो।

|

और इसलिए साथियों,

जिस प्रकार से हमारा यह एक लक्ष्य है कि हम जब गुजरात के 75 साल हो जाए। और आप देखिए कि जब गुजरात बना, उस समय के अखबार निकाल दीजिए, उस समय की चर्चाएं निकाल लीजिए। क्या चर्चाएं होती थी कि गुजरात महाराष्ट्र से अलग होकर क्या करेगा? गुजरात के पास क्या है? समंदर है, खारा पाठ है, इधर रेगिस्तान है, उधर पाकिस्तान है, क्या करेगा? गुजरात के पास कोई मिनरल्स नहीं, गुजरात कैसे प्रगति करेगा? यह ट्रेडर हैं सारे… इधर से माल लेते हैं, उधर बेचते हैं। बीच में दलाली से रोजी-रोटी कमा करके गुजारा करते हैं। क्‍या करेंगे ऐसी चर्चा थी। वही गुजरात जिसके पास एक जमाने में नमक से ऊपर कुछ नहीं था, आज दुनिया को हीरे के लिए गुजरात जाना जाता है। कहां नमक, कहां हीरे! यह यात्रा हमने काटी है। और इसके पीछे सुविचारित रूप से प्रयास हुआ है। योजनाबद्ध तरीके से कदम उठाएं हैं। हमारे यहां आमतौर पर गवर्नमेंट के मॉडल की चर्चा होती है कि सरकार में साइलोज, यह सबसे बड़ा संकट है। एक डिपार्टमेंट दूसरे से बात नहीं करता है। एक टेबल वाला दूसरे टेबल वाले से बात नहीं करता है, ऐसी चर्चा होती है। कुछ बातों में सही भी होगा, लेकिन उसका कोई सॉल्यूशन है क्या? मैं आज आपको बैकग्राउंड बताता हूं, यह शहरी विकास वर्ष अकेला नहीं, हमने उस समय हर वर्ष को किसी न किसी एक विशेष काम के लिए डेडिकेट करते थे, जैसे 2005 में शहरी विकास वर्ष माना गया। एक साल ऐसा था, जब हमने कन्या शिक्षा के लिए डेडिकेट किया था, एक वर्ष ऐसा था, जब हमने पूरा टूरिज्म के लिए डेडिकेट किया था। इसका मतलब ये नहीं कि बाकी सब काम बंद करते थे, लेकिन सरकार के सभी विभागों को उस वर्ष अगर forest department है, तो उसको भी अर्बन डेवलपमेंट में वो contribute क्या कर सकता है? हेल्थ विभाग है, तो अर्बन डेवलपमेंट ईयर में वो contribute क्या कर सकता है? जल संरक्षण मंत्रालय है, तो वह अर्बन डेवलपमेंट में क्या contribute कर सकता है? टूरिज्म डिपार्टमेंट है, तो वह अर्बन डेवलपमेंट में क्या contribute कर सकता है? यानी एक प्रकार से whole of the government approach, इस भूमिका से ये वर्ष मनाया और आपको याद होगा, जब हमने टूरिज्म ईयर मनाया, तो पूरे राज्य में उसके पहले गुजरात में टूरिज्म की कल्पना ही कोई नहीं कर सकता था। विशेष प्रयास किया गया, उसी समय ऐड कैंपेन चलाया, कुछ दिन तो गुजारो गुजरात में, एक-एक चीज उसमें से निकली। उसी में से रण उत्‍सव निकला, उसी में से स्टैच्यू ऑफ यूनिटी बना। उसी में से आज सोमनाथ का विकास हो रहा है, गिर का विकास हो रहा है, अंबाजी जी का विकास हो रहा है। एडवेंचर स्पोर्ट्स आ रही हैं। यानी एक के बाद एक चीजें डेवलप होने लगीं। वैसे ही जब अर्बन डेवलपमेंट ईयर मनाया।

और मुझे याद है, मैं राजनीति में नया-नया आया था। और कुछ समय के बाद हम अहमदाबाद municipal कॉरपोरेशन सबसे पहले जीते, तब तक हमारे पास एक राजकोट municipality हुआ करती थी, तब वो कारपोरेशन नहीं थी। और हमारे एक प्रहलादभाई पटेल थे, पार्टी के बड़े वरिष्ठ नेता थे। बहुत ही इनोवेटिव थे, नई-नई चीजें सोचना उनका स्वभाव था। मैं नया राजनीति में आया था, तो प्रहलाद भाई एक दिन आए मिलने के लिए, उन्होंने कहा ये हमें जरा, उस समय चिमनभाई पटेल की सरकार थी, तो हमने चिमनभाई और भाजपा के लोग छोटे पार्टनर थे। तो हमें चिमनभाई को मिलकर के समझना चाहिए कि यह जो लाल बस अहमदाबाद की है, उसको जरा अहमदाबाद के बाहर जाने दिया जाए। तो उन्होंने मुझे समझाया कि मैं और प्रहलाद भाई चिमनभाई को मिलने गए। हमने बहुत माथापच्ची की, हमने कहा यह सोचने जैसा है कि लाल बस अहमदाबाद के बाहर गोरा, गुम्‍मा, लांबा, उधर नरोरा की तरफ आगे दहेगाम की तरफ, उधर कलोल की तरफ आगे उसको जाने देना चाहिए। ट्रांसपोर्टेशन का विस्तार करना चाहिए, तो सरकार के जैसे सचिवों का स्वभाव रहता है, यहां बैठे हैं सारे, उस समय वाले तो रिटायर हो गए। एक बार एक कांग्रेसी नेता को पूछा गया था कि देश की समस्याओं का समाधान करना है तो दो वाक्य में बताइए। कांग्रेस के एक नेता ने जवाब दिया था, वो मुझे आज भी अच्छा लगता है। यह कोई 40 साल पहले की बात है। उन्होंने कहा, देश में दो चीजें होनी चाहिए। एक पॉलीटिशियंस ना कहना सीखें और ब्यूरोक्रेट हां कहना सीखे! तो उससे सारी समस्या का समाधान हो जाएगा। पॉलीटिशियंस किसी को ना नहीं कहता और ब्यूरोक्रेट किसी को हां नहीं कहता। तो उस समय चिमनभाई के पास गए, तो उन्‍होंने पूछा सबसे, हम दोबारा गए, तीसरी बार गए, नहीं-नहीं एसटी को नुकसान हो जाएगा, एसटी को कमाई बंद हो जाएगी, एसटी बंद पड़ जाएगी, एसटी घाटे में चल रही है। लाल बस वहां नहीं भेज सकते हैं, यह बहुत दिन चला। तीन-चार महीने तक हमारी माथापच्ची चली। खैर, हमारा दबाव इतना था कि आखिर लाल बस को लांबा, गोरा, गुम्‍मा, ऐसा एक्सटेंशन मिला, उसका परिणाम है कि अहमदाबाद का विस्तार तेजी से उधर सारण की तरफ हुआ, इधर दहेगाम की तरफ हुआ, उधर कलोल की तरह हुआ, उधर अहमदाबाद की तरह हुआ, तो अहमदाबाद की तरफ जो प्रेशर, एकदम तेजी से बढ़ने वाला था, उसमें तेजी आई, बच गए छोटी सी बात थी, तब जाकर के, मैं तो उस समय राजनीति में नया था। मुझे कोई ज्यादा इन चीजों को मैं जानता भी नहीं था। लेकिन तब समझ में आता था कि हम तत्कालीन लाभ से ऊपर उठ करके सचमुच में राज्य की और राज्य के लोगों की भलाई के लिए हिम्मत के साथ लंबी सोच के साथ चलेंगे, तो बहुत लाभ होगा। और मुझे याद है जब अर्बन डेवलपमेंट ईयर मनाया, तो पहला काम आया, यह एंक्रोचमेंट हटाने का, अब जब एंक्रोचमेंट हटाने की बात आती हे, तो सबसे पहले रुकावट बनता है पॉलिटिकल आदमी, किसी भी दल का हो, वो आकर खड़ा हो जाता है क्योंकि उसको लगता है, मेरे वोटर है, तुम तोड़ रहे हो। और अफसर लोग भी बड़े चतुर होते हैं। जब उनको कहते हैं कि भई यह सब तोड़ना है, तो पहले जाकर वो हनुमान जी का मंदिर तोड़ते हैं। तो ऐसा तूफान खड़ा हो जाता है कि कोई भी पॉलिटिशयन डर जाता है, उसको लगता है कि हनुमान जी का मंदिर तोड़ दिया तो हो… हमने बड़ी हिम्मत दिखाई। उस समय हमारे …..(नाम स्पष्ट नहीं) अर्बन मिनिस्टर थे। और उसका परिणाम यह आया कि रास्ते चौड़े होने लगे, तो जिसका 2 फुट 4 फुट कटता था, वह चिल्लाता था, लेकिन पूरा शहर खुश हो जाता था। इसमें एक स्थिति ऐसी बनी, बड़ी interesting है। अब मैंने तो 2005 अर्बन डेवलपमेंट ईयर घोषित कर दिया। उसके लिए कोई 80-90 पॉइंट निकाले थे, बडे interesting पॉइंट थे। तो पार्टी से ऐसी मेरी बात हुई थी कि भाई ऐसा एक अर्बन डेवलपमेंट ईयर होगा, जरा सफाई वगैरह के कामों में सब को जोड़ना पड़ेगा ऐसा, लेकिन जब ये तोड़ना शुरू हुआ, तो मेरी पार्टी के लोग आए, ये बड़ा सीक्रेट बता रहा हूं मैं, उन्होंने कहा साहब ये 2005 में तो अर्बन बॉडी के चुनाव है, हमारी हालत खराब हो जाएगी। यह सब तो चारों तरफ तोड़-फोड़ चल रही है। मैंने कहा यार भई यह तो मेरे ध्यान में नहीं रहा और सच में मेरे ध्यान में वो चुनाव था ही नहीं। अब मैंने कार्यक्रम बना दिया, अब साहब मेरा भी एक स्वभाव है। हम तो बचपन से पढ़ते आए हैं- कदम उठाया है तो पीछे नहीं हटना है। तो मैंने मैंने कहा देखो भाई आपकी चिंता सही है, लेकिन अब पीछे नहीं हट सकते। अब तो ये अर्बन डेवलपमेंट ईयर होगा। हार जाएंगे, चुनाव क्या है? जो भी होगा हम किसी का बुरा करना नहीं चाहते, लेकिन गुजरात में शहरों का रूप रंग बदलना बहुत जरूरी है।

|

साथियों,

हम लोग लगे रहे। काफी विरोध भी हुआ, काफी आंदोलन हुए बहुत परेशानी हुई। यहां मीडिया वालों को भी बड़ा मजा आ गया कि मोदी अब शिकार आ गया हाथ में, तो वह भी बड़ी पूरी ताकत से लग गए थे। और उसके बाद जब चुनाव हुआ, देखिए मैं राजनेताओं को कहता हूं, मैं देश भर के राजनेता मुझे सुनते हैं, तो देखना कहता हूं, अगर आपने सत्यनिष्ठा से, ईमानदारी से लोगों की भलाई के लिए निर्णय करते हैं, तत्कालीन भले ही बुरा लगे, लोग साथ चलते हैं। और उस समय जो चुनाव हुआ 90 परसेंट विक्ट्री बीजेपी की हुई थी, 90 परसेंट यानी लोग जो मानते हैं कि जनता ये नहीं और मुझे याद है। अब यह जो यहां अटल ब्रिज बना है ना तो मुझे, यह साबरमती रिवर फ्रंट पर, तो पता नहीं क्यों मुझे उद्घाटन के लिए बुलाया था। कई कार्यक्रम थे, तो मैंने कहा चलो भई हम भी देखने जाते हैं, तो मैं जरा वो अटल ब्रिज पर टहलने गया, तो वहां मैंने देखा कुछ लोगों ने पान की पिचकारियां लगाई हुई थी। अभी तो उद्घाटन होना था, लेकिन कार्यक्रम हो गया था। तो मेरा दिमाग, मैंने कहा इस पर टिकट लगाओ। तो ये सारे लोग आ गए साहब चुनाव है, उसी के बाद चुनाव था, बोले टिकट नहीं लगा सकते मैंने कहा टिकट लगाओ वरना यह तुम्हारा अटल ब्रिज बेकार हो जाएगा। फिर मैं दिल्ली गया, मैंने दूसरे दिन फोन करके पूछा, मैंने कहा क्या हुआ टिकट लगाने का एक दिन भी बिना टिकट नहीं चलना चाहिए।

साथियों,

खैर मेरा मान-सम्मान रखते हैं सब लोग, आखिर के हमारे लोगों ने ब्रिज पर टिकट लगा दिया। आज टिकट भी हुआ, चुनाव भी जीते दोस्तों और वो अटल ब्रिज चल रहा है। मैंने कांकरिया का पुनर्निर्माण का कार्यक्रम लिया, उस पर टिकट लगाया तो कांग्रेस ने बड़ा आंदोलन किया। कोर्ट में चले गए, लेकिन वह छोटा सा प्रयास पूरे कांकरिया को बचा कर रखा हुआ है और आज समाज का हर वर्ग बड़ी सुख-चैन से वहां जाता है। कभी-कभी राजनेताओं को बहुत छोटी चीजें डर जाते हैं। समाज विरोधी नहीं होता है, उसको समझाना होता है। वह सहयोग करता है और अच्छे परिणाम भी मिलते हैं। देखिए शहरी शहरी विकास की एक-एक चीज इतनी बारीकी से बनाई गई और उसी का परिणाम था और मैं आपको बताता हूं। यह जो अब मुझ पर दबाव बढ़ने वाला है, वो already शुरू हो गया कि मोदी ठीक है, 4 नंबर तो पहुंच गए, बताओ 3 कब पहुंचोगे? इसकी एक जड़ी-बूटी आपके पास है। अब जो हमारे ग्रोथ सेंटर हैं, वो अर्बन एरिया हैं। हमें अर्बन बॉडीज को इकोनॉमिक के ग्रोथ सेंटर बनाने का प्लान करना होगा। अपने आप जनसंख्या के कारण वृद्धि होती चले, ऐसे शहर नहीं हो सकते हैं। शहर आर्थिक गतिविधि के तेजतर्रार केंद्र होने चाहिए और अब तो हमने टीयर 2, टीयर 3 सीटीज पर भी बल देना चाहिए और वह इकोनॉमिक एक्टिविटी के सेंटर बनने चाहिए और मैं तो पूरे देश की नगरपालिका, महानगरपालिका के लोगों को कहना चाहूंगा। अर्बन बॉडी से जुड़े हुए सब लोगों से कहना चाहूंगा कि वे टारगेट करें कि 1 साल में उस नगर की इकोनॉमी कहां से कहां पहुंचाएंगे? वहां की अर्थव्यवस्था का कद कैसे बढ़ाएंगे? वहां जो चीजें मैन्युफैक्चर हो रही हैं, उसमें क्वालिटी इंप्रूव कैसे करेंगे? वहां नए-नए इकोनॉमिक एक्टिविटी के रास्ते कौन से खोलेंगे। ज्यादातर मैंने देखा नगर पालिका की जो नई-नई बनती हैं, तो क्या करते हैं, एक बड़ा शॉपिंग सेंटर बना देते हैं। पॉलिटिशनों को भी जरा सूट करता है वह, 30-40 दुकानें बना देंगे और 10 साल तक लेने वाला नहीं आता है। इतने से काम नहीं चलेगा। स्टडी करके और खास करके जो एग्रो प्रोडक्ट हैं। मैं तो टीयर 2, टीयर 3 सीटी के लिए कहूंगा, जो किसान पैदावार करता है, उसका वैल्यू एडिशन, यह नगर पालिकाओं में शुरू हो, आस-पास से खेती की चीजें आएं, उसमें से कुछ वैल्यू एडिशन हो, गांव का भी भला होगा, शहर का भी भला होगा।

उसी प्रकार से आपने देखा होगा इन दिनों स्टार्टअप, स्टार्टअप में भी आपके ध्यान में आया होगा कि पहले स्‍टार्टअप बड़े शहर के बड़े उद्योग घरानों के आसपास चलते थे, आज देश में करीब दो लाख स्टार्टअप हैं। और ज्यादातर टीयर 2, टीयर 3 सीटीज में है और इसमें भी गर्व की बात है कि उसमें काफी नेतृत्व हमारी बेटियों के पास है। स्‍टार्टअप की लीडरशिप बेटियों के पास है। ये बहुत बड़ी क्रांति की संभावनाओं को जन्म देता है और इसलिए मैं चाहूंगा कि अर्बन डेवलपमेंट ईयर के जब 20 साल मना रहे हैं और एक सफल प्रयोग को हम याद करके आगे की दिशा तय करते हैं तब हम टीयर 2, टीयर 3 सीटीज को बल दें। शिक्षा में भी टीयर 2, टीयर 3 सीटीज काफी आगे रहा, इस साल देख लीजिए। पहले एक जमाना था कि 10 और 12 के रिजल्ट आते थे, तो जो नामी स्कूल रहते थे बड़े, उसी के बच्चे फर्स्ट 10 में रहते थे। इन दिनों शहरों की बड़ी-बड़ी स्कूलों का नामोनिशान नहीं होता है, टीयर 2, टीयर 3 सीटीज के स्कूल के बच्चे पहले 10 में आते हैं। देखा होगा आपने गुजरात में भी यही हो रहा है। इसका मतलब यह हुआ कि हमारे छोटे शहरों के पोटेंशियल, उसकी ताकत बढ़ रही है। खेल का देखिए, पहले क्रिकेट देखिए आप, क्रिकेट तो हिंदुस्तान में हम गली-मोहल्ले में खेला जाता है। लेकिन बड़े शहर के बड़े रहीसी परिवारों से ही खेलकूद क्रिकेट अटका हुआ था। आज सारे खिलाड़ी में से आधे से ज्यादा खिलाड़ी टीयर 2, टीयर 3 सीटीज गांव के बच्चे हैं जो खेल में इंटरनेशनल खेल खेल कर कमाल करते हैं। यानी हम समझें कि हमारे शहरों में बहुत पोटेंशियल है। और जैसा मनोहर जी ने भी कहां और यहां वीडियो में भी दिखाया गया, यह हमारे लिए बहुत बड़ी opportunity है जी, 4 में से 3 नंबर की इकोनॉमी पहुंचने के लिए हम हिंदुस्तान के शहरों की अर्थव्यवस्था पर अगर फोकस करेंगे, तो हम बहुत तेजी से वहां भी पहुंच पाएंगे।

|

साथियों,

ये गवर्नेंस का एक मॉडल है। दुर्भाग्य से हमारे देश में एक ऐसे ही इकोसिस्टम ने जमीनों में अपनी जड़े ऐसी जमा हुई हैं कि भारत के सामर्थ्य को हमेशा नीचा दिखाने में लगी हैं। वैचारिक विरोध के कारण व्यवस्थाओं के विकास का अस्वीकार करने का उनका स्वभाव बन गया है। व्यक्ति के प्रति पसंद-नापसंद के कारण उसके द्वारा किये गए हर काम को बुरा बता देना एक फैशन का तरीका चल पड़ा है और उसके कारण देश की अच्‍छी चीजों का नुकसान हुआ है। ये गवर्नेंस का एक मॉडल है। अब आप देखिए, हमने शहरी विकास पर तो बल दिया, लेकिन वैसा ही जब आपने दिल्‍ली भेजा, तो हमने एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट, एस्पिरेशनल ब्लॉक पर विचार किया कि हर राज्य में एकाध जिला, एकाध तहसील ऐसी होती है, जो इतना पीछे होता है, कि वो स्‍टेट की सारी एवरेज को पीछे खींच ले जाता है। आप जंप लगा ही नहीं सकते, वो बेड़ियों की तरह होता है। मैंने कहा, पहले इन बेड़ियों को तोड़ना है और देश में 100 के करीब एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट उनको identify किया गया। 40 पैरामीटर से देखा गया कि यहां क्या जरूरत है। अब 500 ब्‍लॉक्‍स identify किए हैं, whole of the government approach के साथ फोकस किया गया। यंग अफसरों को लगाया गया, फुल टैन्‍यूर के साथ काम करें, ऐसा लगाया। आज दुनिया के लिए एक मॉडल बन चुका है और जो डेवलपिंग कंट्रीज हैं उनको भी लग रहा है कि हमारे यहां विकास के इस मॉडल की ओर हमें चलना चाहिए। हमारा academic world भारत के इन प्रयासों और सफल प्रयासों के विषय में सोचे और जब academic world इस पर सोचता है तो दुनिया के लिए भी वो एक अनुकरणीय उदाहरण के रूप में काम आता है।

साथियों,

आने वाले दिनों में टूरिज्म पर हमें बल देना चाहिए। गुजरात ने कमाल कर दिया है जी, कोई सोच सकता है। कच्छ के रेगिस्तान में जहां कोई जाने का नाम नहीं लेता था, वहां आज जाने के लिए बुकिंग नहीं मिलती है। चीजों को बदला जा सकता है, दुनिया का सबसे बड़ा ऊंचा स्टैच्यू, ये अपने आप में अद्भुत है। मुझे बताया गया कि वडनगर में जो म्यूजियम बना है। कल मुझे एक यूके के एक सज्‍जन मिले थे। उन्होंने कहा, मैं वडनगर का म्यूजियम देखने जा रहा हूं। यह इंटरनेशनल लेवल में इतने global standard का कोई म्यूजियम बना है और भारत में काशी जैसे बहुत कम जगह है कि जो अविनाशी हैं। जो कभी भी मृतप्राय नहीं हुए, जहां हर पल जीवन रहा है, उसमें एक वडनगर हैं, जिसमें 2800 साल तक के सबूत मिले हैं। अभी हमारा काम है कि वह इंटरनेशनल टूरिस्ट मैप पर कैसे आए? हमारा लोथल जहां हम एक म्यूजियम बना रहे हैं, मैरीटाइम म्यूजियम, 5 हजार साल पहले मैरीटाइम में दुनिया में हमारा डंका बजता था। धीरे-धीरे हम भूल गए, लोथल उसका जीता-जागता उदाहरण है। लोथल में दुनिया का सबसे बड़ा मैरीटाइम म्यूजियम बन रहा है। आप कल्पना कर सकते हैं कि इन चीजों का कितना लाभ होने वाला है और इसलिए मैं कहता हूं दोस्तों, 2005 का वो समय था, जब पहली बार गिफ्ट सिटी के आईडिया को कंसीव किया गया और मुझे याद है, शायद हमने इसका launching Tagore Hall में किया था। तो उसके बड़े-बड़े जो हमारे मन में डिजाइन थे, उसके चित्र लगाए थे, तो मेरे अपने ही लोग पूछ रहे थे। यह होगा, इतने बड़े बिल्डिंग टावर बनेंगे? मुझे बराबर याद है, यानी जब मैं उसका मैप वगैरह और उसका प्रेजेंटेशन दिखाता था केंद्र के कुछ नेताओं को, तो वह भी मुझे कह रहे थे अरे भारत जैसे देश में ये क्या कर रहे हो तुम? मैं सुनता था आज वो गिफ्ट सिटी हिंदुस्तान का हर राज्य कह रहा है कि हमारे यहां भी एक गिफ्ट सिटी होना चाहिए।

साथियों,

एक बार कल्पना करते हुए उसको जमीन पर, धरातल पर उतारने का अगर हम प्रयास करें, तो कितने बड़े अच्छे परिणाम मिल सकते हैं, ये हम भली भांति देख रहे हैं। वही काल खंड था, रिवरफ्रंट को कंसीव किया, वहीं कालखंड था जब दुनिया का सबसे बड़ा स्टेडियम बनाने का सपना देखा, पूरा किया। वही कालखंड था, दुनिया का सबसे ऊंचा स्टैच्यू बनाने के लिए सोचा, पूरा किया।

भाइयों और बहनों,

एक बार हम मान के चले, हमारे देश में potential बहुत हैं, बहुत सामर्थ्‍य है।

|

साथियों,

मुझे पता नहीं क्यों, निराशा जैसी चीज मेरे मन में आती ही नहीं है। मैं इतना आशावादी हूं और मैं उस सामर्थ्य को देख पाता हूं, मैं दीवारों के उस पार देख सकता हूं। मेरे देश के सामर्थ्य को देख सकता हूं। मेरे देशवासियों के सामर्थ्य को देख सकता हूं और इसी के भरोसे हम बहुत बड़ा बदलाव ला सकते हैं और इसलिए आज मैं गुजरात सरकार का बहुत आभारी हूं कि आपने मुझे यहां आने का मौका दिया है। कुछ ऐसी पुरानी-पुरानी बातें ज्यादातर ताजा करने का मौका मिल गया। लेकिन आप विश्वास करिए दोस्तों, गुजरात की बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। हम देने वाले लोग हैं, हमें देश को हमेशा देना चाहिए। और हम इतनी ऊंचाई पर गुजरात को ले जाए, इतनी ऊंचाई पर ले जाएं कि देशवासियों के लिए गुजरात काम आना चाहिए दोस्तों, इस महान परंपरा को हमें आगे बढ़ाना चाहिए। मुझे विश्वास है, गुजरात एक नए सामर्थ्य के साथ अनेक विद नई कल्पनाओं के साथ, अनेक विद नए इनीशिएटिव्स के साथ आगे बढ़ेगा मुझे मालूम है। मेरा भाषण शायद कितना लंबा हो गया होगा, पता नहीं क्या हुआ? लेकिन कल मीडिया में दो-तीन चीजें आएंगी। वो भी मैं बता देता हूं, मोदी ने अफसरों को डांटा, मोदी ने अफसरों की धुलाई की, वगैरह-वगैरह-वगैरह, खैर वो तो कभी-कभी चटनी होती है ना इतना ही समझ लेना चाहिए, लेकिन जो बाकी बातें मैंने याद की है, उसको याद कर करके जाइए और ये सिंदुरिया मिजाज! ये सिंदुरिया स्पिरिट, दोस्‍तों 6 मई को, 6 मई की रात। ऑपरेशन सिंदूर सैन्य बल से प्रारंभ हुआ था। लेकिन अब ये ऑपरेशन सिंदूर जन-बल से आगे बढ़ेगा और जब मैं सैन्य बल और जन-बल की बात करता हूं तब, ऑपरेशन सिंदूर जन बल का मतलब मेरा होता है जन-जन देश के विकास के लिए भागीदार बने, दायित्‍व संभाले।

हम इतना तय कर लें कि 2047, जब भारत के आजादी के 100 साल होंगे। विकसित भारत बनाने के लिए तत्काल भारत की इकोनॉमी को 4 नंबर से 3 नंबर पर ले जाने के लिए अब हम कोई विदेशी चीज का उपयोग नहीं करेंगे। हम गांव-गांव व्यापारियों को शपथ दिलवाएं, व्यापारियों को कितना ही मुनाफा क्यों ना हो, आप विदेशी माल नहीं बेचोगे। लेकिन दुर्भाग्य देखिए, गणेश जी भी विदेशी आ जाते हैं। छोटी आंख वाले गणेश जी आएंगे। गणेश जी की आंख भी नहीं खुल रही है। होली, होली रंग छिड़कना है, बोले विदेशी, हमें पता था आप भी अपने घर जाकर के सूची बनाना। सचमुच में ऑपरेशन सिंदूर के लिए एक नागरिक के नाते मुझे एक काम करना है। आप घर में जाकर सूची बनाइए कि आपके घर में 24 घंटे में सुबह से दूसरे दिन सुबह तक कितनी विदेशी चीजों का उपयोग होता है। आपको पता ही नहीं होता है, आप hairpin भी विदेशी उपयोग कर लेते हैं, कंघा भी विदेशी होता है, दांत में लगाने वाली जो पिन होती है, वो भी विदेशी घुस गई है, हमें मालूम तक नहीं है। पता ही नहीं है दोस्‍तों। देश को अगर बचाना है, देश को बनाना है, देश को बढ़ाना है, तो ऑपरेशन सिंदूर यह सिर्फ सैनिकों के जिम्‍मे नहीं है। ऑपरेशन सिंदूर 140 करोड़ नागरिकों की जिम्‍मे है। देश सशक्त होना चाहिए, देश सामर्थ्‍य होना चाहिए, देश का नागरिक सामर्थ्यवान होना चाहिए और इसके लिए हमने वोकल फॉर लोकल, वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट, मैं मेरे यहां, जो आपके पास है फेंक देने के लिए मैं नहीं कह रहा हूं। लेकिन अब नया नहीं लेंगे और शायद एकाध दो परसेंट चीजें ऐसी हैं, जो शायद आपको बाहर की लेनी पड़े, जो हमारे यहां उपलब्ध ना हो, बाकि आज हिंदुस्तान में ऐसा कुछ नहीं। आपने देखा होगा, आज से पहले 25 साल 30 साल पहले विदेश से कोई आता था, तो लोग लिस्ट भेजते थे कि ये ले आना, ये ले आना। आज विदेश से आते हैं, वो पूछते हैं कि कुछ लाना है, तो यहां वाले कहते हैं कि नहीं-नहीं यहां सब है, मत लाओ। सब कुछ है, हमें अपनी ब्रांड पर गर्व होना चाहिए। मेड इन इंडिया पर गर्व होना चाहिए। ऑपरेशन सिंदूर सैन्‍य बल से नहीं, जन बल से जीतना है दोस्तों और जन बल आता है मातृभूमि की मिट्टी में पैदा हुई हर पैदावार से आता है। इस मिट्टी की जिसमें सुगंध हो, इस देश के नागरिक के पसीने की जिसमें सुगंध हो, उन चीजों का मैं इस्तेमाल करूंगा, अगर मैं ऑपरेशन सिंदूर को जन-जन तक, घर-घर तक लेकर जाता हूं। आप देखिए हिंदुस्तान को 2047 के पहले विकसित राष्ट्र बनाकर रहेंगे और अपनी आंखों के सामने देखकर जाएंगे दोस्तों, इसी इसी अपेक्षा के साथ मेरे साथ पूरी ताकत से बोलिए,

भारत माता की जय! भारत माता की जय!

भारत माता की जय! जरा तिरंगे ऊपर लहराने चाहिए।

भारत माता की जय! भारत माता की जय! भारत माता की जय!

वंदे मातरम! वंदे मातरम! वंदे मातरम!

वंदे मातरम! वंदे मातरम! वंदे मातरम!

वंदे मातरम! वंदे मातरम! वंदे मातरम!

वंदे मातरम! वंदे मातरम! वंदे मातरम!

धन्यवाद!