Text of PM’s address at the 87th ICAR Foundation Day Celebrations at Patna

Published By : Admin | July 25, 2015 | 17:25 IST
QuotePM Modi speaks at 87th ICAR Foundation Day Celebrations in Patna
QuoteThe country now needs a second Green Revolution which must come from eastern India: PM
QuoteScientific innovations in agriculture sector should move from lab to land for benefit of farmers: PM
QuoteIndia must aim to become totally self-sufficient in the agriculture sector, says PM Modi

उपस्थित सभी महानुभाव

सभी महानुभाव, आज जिनका मुझे सम्‍मान करने का अवसर मिला है। जिन्‍होंने अपने-अपने क्षेत्रों के द्वारा देश के कृषि जगत को कुछ न कुछ मात्रा में सकारात्‍मक योगदान किया है। ऐसे पुरस्‍कार प्राप्‍त करने वाले सभी महानुभावों को हृदय से बहुत-बहुत अभिनंदन करता हूं। बहुत-बहुत बधाई देता हूं।



ये समारोह हर वर्ष होता है और बड़े लंबे अरसे से होता है लेकिन दिल्‍ली में ही होता है। तो पिछली बार जब मैं गया था पहली बार तो मैंने कहा था भई हम जरा दिल्‍ली से बाहर निकलें और उसका आरंभ आज बिहार में पटना की धरती से हो रहा है। मैं राज्‍य सरकार का भी आभार व्‍यक्‍त करता हूं कि उन्‍होंने इस समारोह को सफल बनाने में योगदान दिया और मैं विभाग के मित्रों का भी आभारी हूं कि उन्‍होंने एक पहल की है। तो उसके कारण उस राज्‍य के अंदर भी कुछ दिन चर्चा चलती है, अनेक लोगों के सामने नई-नई बातें आती है। देशभर से ये कृषि वैज्ञानिक यहां आते है उनको भी स्‍थानीय लोगों से बातचीत करने के कारण अपने विषय में क्‍या-क्‍या नया चल रहा है, उसकी जानकारियां मिलती है। तो एक प्रकार से ये अलग-अलग स्‍थान पर जाने से हमें स्‍वाभाविक रूप से हमें अतिरिक्‍त लाभ होता है और उसका प्रारंभ आज यहां से हुआ है और मुझे ये भी खुशी है कि ये बिहार से प्रारंभ हो रहा है। क्‍योंकि पूसा का जन्‍म इसी धरती पर हुआ और एक विदेशी व्‍यक्ति ने गुलामी के कालखंड में भारत के कृषि सामर्थ्‍य को भांपा होगा, उसको अंदाज आया होगा और Phillip USA के द्वारा बनी हुई ये कामगिरी पूसा के नाम से प्रचलित हो गई। लेकिन उन्होंने बिहार क्‍यों चुना होगा, कोई अचानक तो हुआ नहीं होगा। जब वो सोचा गया होगा तब उनको ध्‍यान आया होगा ये सबसे ऊर्वरा जगह होगी, यहां के लोग प्रयोगशील होगें, प्रगतिशील होगें, कृषि क्षेत्र में नया करने की सोच रखते होगें। हिन्‍दुस्‍तान के अन्‍य भू-भागों से यहां की कृषि की कोई न कोई extra शक्ति होगी तभी जा करके उन्‍होंने उस काम को यहां प्रारंभ करना सोचा होगा, ऐसा मैं अनुमान करता हूं। अब करीब-करीब 100 साल होने जा रहे है। इसलिए मैं पूरे record न देखूं तब तक तो मैं कह नहीं सकता कि वो क्‍या है लेकिन मैं अनुमान करता हूं। इसका मतलब ये हुआ कि ये भू-भाग और यहां के नागरिक दोनों में कृषि क्षेत्र में नई सिद्धियां प्राप्‍त कराने का सामर्थ्‍य पड़ा हुआ है।

हम कभी-कभी अपनी चीजों को भूल जाते है। चीजें कोई अचानक शुरू नहीं होती होगी किसी-न-किसी कारण विशेष कारण से शुरू हुई होगी। उसके मूल में अगर जाते है तो ध्‍यान आता है और मैं राधामोहन सिंह जी को इस बात के लिए बधाई देता हूं कि आपदा ग्रस्‍त कारणों के साथ कारण पूछा यहां से दिल्‍ली चला गया। अब दिल्ली में तो खेती होती नहीं है लेकिन पूसा वहां है और जहां खेती होती थी जो देश का पेट भरता था वहां से पूसा चला गया। तो हमने वापिस लाने की कोशिश की है और मुझे विश्‍वास है कि भले 90 साल पहले किसी को विचार आया होगा उसमें जरूर कोई न कोई दम होगा, कोई ताकत होगी। मुझे फिर से एक बार उसको तलाशना है, देखना है और देश के वैज्ञानिक मेरी इस बात से सहमत होगें कि हम इन नए क्षेत्रों में पदार्पण कैसे करें। कुछ बातें आप लोगों ने आज अच्‍छी शुरूआत कर रहे है। मैं नहीं जानता हूं कि हमारे वैज्ञानिक मित्रों को कितना पसंद आया होगा या कितनी सुविधा होगी। क्‍योंकि वैज्ञानिक अपने काम में इतना खोया हुआ होता है। करीब जिदंगी का महत्‍वपूर्ण समय उसका lab में ही चला जाता है। न वो अपने परिवार को काम आता है, न वो खुद को काम आता है। वो उसमें डूब जाता है, पागल की तरह लगा रहता है और तभी जा करके आने वाली पीढि़यों का भला होता है। एक जब अपने सपनों को खपा देता है तब औरों के सपने बन पाते हैं और इसलिए वैज्ञानिकों का जितना मान-सम्‍मान होना चाहिए, वैज्ञानिकों के योगदान की जितनी सराहना होनी चाहिए, उसको जितना बल मिलेगा, उतनी भावी पीढि़यों का कल्‍याण होगा।

दुर्भाग्‍य से हमारे देश में, हमारी अपनी कठिनाइयां हैं देश की, गरीबी के खिलाफ लड़ाई लड़ना है और इसलिए इन क्षेत्रों में जितना बजट देना चाहिए उतना दे नहीं पाते हैं। उसके बावजूद भी छोटी-छोटी lab में बैठ करके भी हमारे scientist लगातार काम करते रहते हैं और कोई न कोई नई चीजें देते रहते हैं।

लेकिन एक और कदम की ओर जाने का मैंने पिछली बार बात कही थी आपने उसको योजना के रूप में रखा, Lab To Land. laboratory में कितना ही yield आए, laboratory में चीकू नारियल जैसा बन जाए, लेकिन अगर धरती पर नहीं होता है तो वो काम नहीं आता है। इसलिए हमारी सच्‍ची कसौटी ये है कि ये जो हम सफलता पाई है lab में, उसको हमें धरती पर भी कसना चाहिए और किसानों के द्वारा कसना चाहिए। एक प्रकार से एक scientist का fellow traveler हमारा किसान बनना चाहिए। extension of the mind of the scientist should be a farmer. ये हमें व्‍यवस्‍था खड़ी करनी चाहिए और इसलिए इस योजना के तहत देश के जितने agriculture scientist है, उनकी टोली बनाकर के उनको एक-एक block गोद लेने की योजना है। उसकी lab कहीं पर भी होगी, लेकिन उसको लगेगा भई मैं जो research कर रहा हूं, उस इलाके के किसानों में उस प्रकार की रुचि है तो वो वहां उनके साथ जुड़ेगा, progressive farmer के साथ जुड़ेगा, किसानों के साथ जुड़ेगा और उसमें जो ज्ञान की संपदा है वो जमीन पर किसानों के माध्‍यम से।

और किसान का एक स्‍वभाव है, उसको भाषण-भाषण काम नहीं आते। वो तो जब तक अपनी आंख से देखता नहीं है, वो किसी चीज को मानता नहीं है। और एक बार उसने अपनी आंख से देखा तो वो फिर अपना risk लेने के लिए तैयार हो जाता है, वो संकट उठाने के लिए तैयार हो जाता है। और इसलिए आवश्‍यकता होती है कि हमने हमारी हर lab को, हर farm को lab में कैसे convert करना है, हर किसान को scientist के रूप में कैसे convert करना है। और उस यात्रा को मैं जानता हूं, आप जिस साधना को कर रहे हैं, जिस तपस्‍या को कर रहे हैं वहां से बाहर जाना थोड़ा कठिन है, लेकिन जिस दिन आप जाओगे। कोई scientist अच्‍छे से अच्‍छी दवाई की 100-100 खोज करे और परिवार को भी पता नहीं होता है कि इसने कहां काम किया है। उनको लगता है हां यार, रात देर से आते हैं अब खाना खाएंगे, सो जाएंगे। लेकिन जब पता चलता है कि फलां व्‍यक्‍ति जिंदगी से जूझ रहा था और उसकी दवाई काम आ गई, उसकी जिन्‍दगी बच गई और जब पता चलता है इस दवाई से आने वाले दिनों में ऐसे लाखों लोगों की भी जिन्‍दगी बचने वाली है तो वो परिवार भी सीना तान करके, हां हमारे उन लोगों ने किया है, मेरे पति ने किया है, मेरे भाई ने किया है। कब होता है, जब बाहर कोई उसका achievement दिखता है। आपको भी अपने lab में किया हुआ संतोष जब तक खेत में नहीं दिखता और किसान के हाथ में नहीं दिखता है, आपको संतोष नहीं हो सकता है। और वो व्‍यवस्‍था करने की दिशा में हम काम कर रहे हैं।

भारत ने first green revolution किया, उसका फायदा हमें मिला है। लेकिन अब देश second green revolution के लिए ज्‍यादा इंतजार नहीं कर सकता है। वैसे भी late हो चुके हैं। second green revolution के लिए हमें अपने आपको सज्‍ज करना होगा। किस क्षेत्र में जाना है, कैसे जाना है। first green revolution की पहली आवश्‍यकता थी कि देश को अन्‍न बाहर से लाना न पड़े, देश का पेट भरे। second green revolution का इतना मतलब नहीं हो सकता, उसका मकसद कुछ और भी हो सकता है। क्‍यों न हमारे देश के agro-economists, हमारे देश के agro-technicians, हमारे देश के agro-scientist, food security से जुड़े हुए scientist, ये सब मिलकर के workshop करें, हर level पर workshop करें। और design workout करें कि भई हां, second green revolution का model क्‍या है, priorities क्‍या हो, हमें किन चीजों के उत्‍पादन पर जाना चाहिए। उत्‍पादकता बढ़ानी है तो किस चीजों की बढ़नी चाहिए। सारे global परिवेश में, आज विश्‍व में क्‍या-क्‍या चीजों की आवश्‍यकता है और दुनिया के बहुत देश है, जिनको आर्थिक रूप से वो कुछ चीजें करना मुश्‍किल है तो वो कहते हैं कि बाहर से ले आओ भई, यहां नहीं करो। तो ऐसे कितने देश हैं जिनको ढूंढेंगे और हम बाहर से भेजेंगे।हमें एक विस्‍तृत सोच के साथ हमारे second green revolution को इस रूप में तैयार करना चाहिए।

हमारे architecture college बहुत कुछ पढ़ाती है। building के लिए तो काफी कुछ होता है, road कैसे बने उस पर भी होता है। मैं मानता हूं कि कभी इस agro scientists ने, progressive farmers ने, government ने, architecture colleges के साथ बैठकर के उनका भी syllabus बनाने की आवश्‍यकता है कि हमारे agriculture, infrastructure का architecture क्‍या हो? हमारी canal बनती हो तो कैसी आधुनिक canal बने, किस material से बने। road बनाने के लिए तो काफी research होते हैं लेकिन canal बनाने के लिए research बहुत कम होते हैं। ये मुझे पूरा paradigm shift करना है। एक मूलभूत चीजों में बदलाव लाना है और इसलिए हमारे जो architecture colleges है, उनका भी जिम्‍मा बनता है कि agro related हमारे infrastructure कैसे हो।

पुराने जमाने में, घर में हमारे गांव के अंदर, किसान परिवारों में मिट्टी की बड़ी-बड़ी कोठियां तैयार होती थीं और उसमें क्‍या material डालना है उसकी बड़ी विशेषता रहती थी। specific प्रकार का material डाल करके वो कोठी बनाई जाती थी और उस कोठी में अन्‍न भरा जाता था। वो सालों तक खराब नहीं होता था और निकालने की technique भी ऐसी होती थी, वो ऊपर से नहीं निकालते थे, नीचे से निकालते थे ताकि पुराना माल पहले निकलता था, नया माल ऊपर आता जाता था। देखिए सामान्‍य लोगों की बुद्धि कितनी कमाल की रहती थी। ये जो कोठार बनते थे या कोठी बनती थी जिसमें सामान भरा जाता था वो कौन सी चीजों का, उनको ज्ञान था कि जिसके कारण हमारे agro-product को इतने लंबे समय तक संभाल पाते थे। preservation के संबंध में हमारे यहां technically कितना काम हुआ है। हमारे यहां अचार, अचार की जो परंपरा है। उस समय ये technology कहां थी जी। गांव की गरीब महिला भी अचार इस प्रकार से preserve करती थी कि साल भर अचार खराब नहीं होता था। मतलब कि विज्ञान उस घर की गली तक पहुंचा हुआ था। हम बदले हुए युग में, इन चीजों को और अधिक अच्‍छे तरीके से कैसे करें, ताकि हमारे agriculture sector में।



क्योंकि आज wastage एक बहुत बड़ी चिन्‍ता का विषय है। value addition पर हमें जाना पड़ेगा। किसान इतनी मेहनत करे और उसकी पकाई हुई चीजें अगर बर्बाद होती है तो कितना बड़ा नुकसान होता है। मैं agro scientists से आग्रह करता हूं कि आप एक काम करके research कीजिए और मुझे छ महीने में एक report दे सकते हैं क्‍या ? मैं एक दिशा में आगे बढ़ना चाहता हूं।

हमारे किसान फल पैदा करते हैं लेकिन फल की उम्र बहुत कम होती है। बहुत ही कम समय में खराब हो जाते हैं। उसका packaging भी बड़ा महंगा होता है क्‍योंकि एक-एक चीज को संभालना पड़ता है। अगर दब गए तो और खराब हो जाते हैं। वो फल जिसमें से juice निकलता है। ये जितने aerated water बाजार में बिकते हैं। भांति-भांति का taste होता है। मुझे तो नाम भी पूरे याद नहीं है लेकिन कई प्रकार की bottles में लोग पीते रहते हैं। coca-cola और fanta और क्‍या-क्‍या नहीं, thums-up. क्‍या हम natural fruit, उसका 1 percent, 2 percent, 5 percent natural juice उसमें mix कर सकते हैं क्‍या। अगर ने natural fruit का juice उसमें mix होता है इस aerated water में। उसका market बहुत बड़ा है। मैं विश्‍वास से कहता हूं हिन्‍दुस्‍तान में जो किसान फल पैदा करता है उसको कभी wastage की नौबत नहीं आएगी, उसका माल खेत से ही बिक जाएगा और 5 percent अगर उसमें mix हो गया। उसका माल खेत से ही बिक जाएगा और 5% उसमें अगर mix हो मेरे फल पैदा करने वाला किसान कभी दु:खी नहीं होगा। लेकिन ये साइंटिस्‍ट जब तक खोज करके नहीं बताएंगे वो कंपनियों को मनवाना जरा कठिन हो जाता है। क्‍या हम इस प्रकार की research कर सकते है, हम समझा सकते है कि these are the results । आप अगर 5% उसके अंदर natural fruit juice डालते है तो आपके market को कोई तकलीफ नहीं होगी, आपकी चीज के test में कोई तकलीफ नहीं होगी आपकी product और अच्‍छी बनेगी और उसमें आपका nutrition value भी जाएगा, जो ultimately आपके business को benefit करेगा। हम किस प्रकार से नई चीजों को करें उस पर हमें सोचने की आवश्‍यकता है।

हमने जो initiatives लिए है कुछ चीजों पर हम ये मान के चले के दुनिया में, बहुत बड़ी मात्रा में उत्‍पादकता पर बल दिया जाता है। हमें भी जमीन कम होती जा रही है, परिवार विस्‍तृत होते जा रहे हैं, एक-एक परिवार में जमीन के टुकड़े बंटते चले जा रहे हैं। हमें पर एकड़ उत्‍पादकता कैसे बड़े, उस पर बल दिए बिना हमारा किसान सुखी नहीं हो सकता है। हमें वो देना पड़ेगा।

पिछली बार मैंने मेरे मन की बात में कहा था किसानों से कि देश को pulses और oil seeds की बड़ी आवश्‍यकता है। तिलहन और दलहन... देखिए मैं इस देश के किसानों को जितना नमन करूं उतना कम है। उस बात को उन्‍होंने माना और इस बार अभी तक जो खबर आई हैं कि record-break showing दलहन और तिलहन का हमारे किसानों ने दिया है। वरना वो crop change करने को तैयार नहीं था लेकिन उसने माना कि भई देश को जरूरत है चलिए हम बाकि छोड़ देते है इस बार दलहन और तिलहन में चले जाते है और बहुत बड़ी मात्रा में शायद मुझे लगता है डेढ़ गुना हो जाएगा, दो गुना अब ये-ये मैं समझता हूं कि अपने-आप में और भारत को import करना पड़ता है।

हमारे agriculture साइंटिस्‍टों ने और progressive farmers ने और government ने बैठ करके तय करना चाहिए। भारत चूंकि कृषि प्रधान देश है। हम तय करें कि agriculture sector की कितनी चीजें अभी भी हम import करते है और हम तय करें कि फलाने-फलाने वर्ष के बाद हमें agriculture sector में कम से कम कुछ भी import नहीं करना पड़ेगा। हम स्‍वयं आत्‍मनिर्भर बनेंगे, हमारे किसान को इस काम के लिए प्रेरित करना पडेगा। हमें targeted काम करना पड़ेगा जी तब जा करके हमारे किसान को आर्थिक रूप से लाभ होगा। अगर वो नहीं करेगे तो लाभ नहीं होगा। आज भी अगर कृषि प्रधान देश को five star होटलों में कुछ सब्जियां विदेश से मंगवानी पड़ती है। हमारा किसान भी तो तैयार कर सकता है, उसको जरा ज्ञान मिल जाए, पद्धति मिल जाए वो कर सकता है। देश की आवश्‍यकताओं की पूर्ति करने की क्षमता किसान में है, आवश्‍यकता है कि ज्ञान का भंडार और किसान का सामर्थ्‍य इसको जोड़ना और उसको जोड़ने की दिशा में हमने प्रयास किया है। कुछ चीजें बड़ी सरल है जिसको हम कर सकते है और करना चाहिए।

कभी-कभार हमारे किसान को जीवन में ज्‍यादातर हमारे यहां कोई उतना irrigation network तो है नहीं ज्‍यादातर हमारा किसान परमात्‍मा की कृपा पर निर्भर है, बारिश हुई तो अच्‍छी बात ,है नहीं हुई तो मुसीबत है। उसकी extra income के जो रास्‍ते है। उसमें पशुपालन हो, poultry farm हो, मतस्‍य उद्योग हो ये थोड़ा बहुत प्रचलित है। लेकिन हमारा एक बात पर ध्‍यान नहीं गया है और वो है शहद पर.. honey bee.. globally बहुत बड़ा market है और कम-से-कम मेहनत वाला काम है और उसमें बिगड़ने का कोई chance नहीं है और उत्‍पादन भी बिकेगा अगर शहद bottle में भर दिया तो 2-5-10 साल तक तो उसको कुछ नहीं होता है। आज देश में, मुझे बताया गया शायद 5 लाख किसान शहद की activity से जुड़े हैं। ये हम target करके 5 करोड़ पर पहुंचा सकते हैं। एक साल, दो साल, तीन साल में। उसकी income कितनी बढ़ेंगी आप कल्‍पना नहीं कर सकते और दुनिया में market है। ऐसा नहीं कि market नहीं है। हमारे किसान को हम इस प्रकार से नई-नई चीजों के साथ कैसे.. और उसके खेत में वैसे ही होने वाला है।

मैं नहीं जानता हूं कि हमारे scientist मित्र मेरी इन बातों को स्‍वीकार करेंगे कि नहीं करेंगे क्‍योंकि मैं न तो ऐसे ही किसानों के साथ बैठते-उठते सुनी हुए बातें मैंने जो भी ज्ञान अर्जित किया है, उसी की बात मैं कर रहा हूं।

हमारे जिस इलाके में elephants, हाथियों के कारण खेती को बड़ा नुकसान होता है जिन-जिन इलाकों में हाथी है। मैंने सुना भी है, पढ़ा भी है और मेरा मानना है कि उसमें सच्‍चाई भी है। ऐसे खेतों में अगर honey bee हो तो honey bee की आवाज़ से हाथी भाग जाता है। वो आता नहीं है। अब मुझे बताइए farmer का protection होगा कि नहीं होगा। अब ये इसको कौन समझाएगा, उससे बात कौन करेगा और कम से कम investment से इतनी बड़ी चीज को बचाता है और international science magazine इस बात को स्‍वीकार कर चुके है कि हाथी उस आवाज़ को सहन नहीं कर सकता है तो वहीं से आते ही चला जाता है पीछे। हमारे कई इलाके ऐसे हैं जहां हाथियों के कारण किसानों को परेशानी हो रही है। हम ऐसे व्‍यवहार्य चीजें और उसके साथ-साथ उसको शहद का व्‍यापार भी मिल जाएगा, उसकी आर्थिक संपदा को भी फायदा होगा।

दूसरा काम है, जो मेरे स्‍वच्‍छ भारत मिशन से भी जुड़ा हुआ है और organic farming से भी जुड़ा हुआ है। अब ये मान के चलिए कि दुनिया में organic चीजों का एक बहुत बड़ा बाजार खुल गया है। holistic health care ये by and large समाज का स्‍वभाव बना है।

अभी हमने देखा योगा दिवस पर दुनिया ने क्‍या इसको महत्‍व दिया है। वो इसी बात का परिचायक है कि holistic health care की तरफ पूरी दुनिया जागरूक हुई, उसमें युवा पीढ़ी ज्‍यादा जागृत है। कुछ लोग तो यहां तक exchange ला रहे हैं कि वो chemical से color किए हुए कपड़े पहनने के बजाए colored cotton से बना हुआ कपड़ा ही पसंद करते हैं और अब तो cotton भी कई colors में आना शुरू हुआ है। natural grow हो रहा है, genetic engineering के कारण। लेकिन organic requirement दुनिया में बहुत बढ़ रही है। हमारा किसान जिस पैदावार से एक रुपया कमाता है अगर वो organic है तो उसका एक डॉलर मिल जाता है। economically बहुत viable हो रहा है। लेकिन, उसके कुछ नियम है, कुछ आवश्‍यकताएं हैं। लेकिन एक काम हम कर सकते हैं क्‍या? आज मान लीजिए देश में vermin-composting . मान लीजिए आज 50 मिलियन टन होता है।

मैं आपको अनुमान कहता हूं। क्‍या vermin-composting हम 500 मिलियन टन कर सकते हैं क्‍या? आज अगर केंचुएं, earth warms . ये मान लीजिए देश में 10 मिलियन टन है। ये 100 मिलियन टन हो सकते हैं क्‍या। आपको कुछ नहीं करना है। सिर्फ लोगों को ज्ञान देना है, बाकी काम तो वो केंचुएं खुद कर लेंगे। और कोई भी छोटे नगर के बगल में ये काम चलता है, तो उस शहर आधा कूड़ा-कचरा वो ही साफ कर देंगे। स्वच्‍छता का काम भी चल जाएगा, composed fertilizer भी तैयार हो जाएगा और जो केंचुए का काम करते हैं उनके केंचुएं भी बिकते हैं। बहुत बड़ी मात्रा में केंचुएं बिकते हैं। एक ऐसा क्षेत्र है कि जो organic farming को बढ़ावा दे सकता है, हमारा कूड़ा-कचरा साफ हो सकता है, हमारे chemical fertilizer की requirement कम होती है, किसान की खेती सस्‍ती हो सकती है। इन चीजों को साथ लेकर के हम सब वैज्ञानिक जगत के लोग। क्‍योंकि ये बात आपके level पर आएगी तो गले उतरेगी और उसको स्‍वीकार करेगा। आप प्रयोग करके कहीं लगाओगे वो करेगा। कुछ लोग कर रहे हैं। स्‍वच्‍छता अभियान का सबसे बड़ा दूत केंचुआ बन सकता है और हमारा बहुत बड़ा काम वो कर सकता है और उससे organic farming को एक बहुत बड़ा बढ़ावा मिल सकता है। हमारी जमीन बर्बाद हो रही है। chemical के कारण उसकी उर्वरा ताकत कम होती रही है, उसकी हमें चिन्‍ता करने की आवश्‍यकता है। ये काम हो सकता है सहज रूप से। ये चीजें प्राकृतिक व्‍यवस्‍थाओं का उपयोग करते हुए की जा सकती हैं। मैं आग्रह करता हूं कि हम हमारे कृषि जीवन में जो second green revolution की ओर जा रहे है। उसको एक नए दायरे पर ले जा सकते है।

कई वर्षों से pulses में yield में भी बढ़ावा नहीं हो पा रहा है और pulses में सबसे बड़ी challenge है कि उसके protein content कैसे बढ़े? क्‍योंकि भारत जैसा देश जहां दलहन से ही protein प्राप्‍त होता है गरीब को, protein content ज्‍यादा हो इस प्रकार का दलहन का निर्माण कैसे हो? ये हमारे scientist lab के अंदर mission के रूप में काम करें। हम उसमें achieve कर सकते है परिणाम मिल सकता है।

हमारे देश का तिरंगा झंडा और उसमें blue colour का चक्र। मैं मानता हूं देश में चर्तुर क्रांति की आवश्‍यकता है। तिरंगें झंडे के तीन रंग जो है और blue colour का चक्र है उन चार रंगों की चर्तुर क्रांति की आवश्‍यकता है।



एक तो saffron revolution, अब saffron revolution का अर्थ पता है भांति-भांति के लोग अलग-अलग करेंगे। ऊर्जा का रंग है saffron और कहने का मेरा तात्‍पर्य है ऊर्जा क्रांति। ऊर्जा क्रांति बहुत आवश्‍यक है। अब आप देखिए बिहार इतना बड़ा प्रदेश। सिर्फ 250-300 मेगावाट बिजली का उत्‍पादन का होता है। अभी मैं भूटान गया, भूटान के अंदर hydropower project का मैंने काम शुरू किया है, उसकी maximum बिजली बिहार को मिलने वाली है...Maximum बिजली।

बिहार को आगे ले जाने के लिए आज मैंने अभी एक पंडित दीनदयाल उपाध्‍याय ग्राम ज्‍योति योजना का आरंभ किया गांव में 24 घंटे बिजली। हमारे किसानों को भी अगर value addition के लिए जाना है तो उसको इस प्रकार की बिजली की सुविधा सबसे पहले चाहिए तब जा करके वो technology introduce करेगा और इसलिए हम भूटान से नेपाल से ऊर्जा के द्वारा कैसे बिजली बिहार को पहुंचे, बहुत बड़ी मात्रा में बिजली कैसे मिलें उस दिशा में काम में लगे है आज बिहार की अपनी बिजली है उसे तीन गुना का काम मैंने भूटान में जा करके कर दिया है। लेकिन उससे काम होने वाला नहीं है उसकी और जरूरत है।

दूसरा है green revolution जिसकी मैंने चर्चा की, हरा रंग है, तीसरा है white colour, white revolution और white revolution में हम जानते है। हमारा दूध उत्‍पादन, हमारे पशुओं की तुलना में दूध की quantity बहुत कम है। ये हमारी quantity कैसे बढ़े, पशुओं की संख्‍या बढ़ने से काम होना नहीं है। पशु के द्वारा ज्‍यादा दूध उत्‍पादन..... और हमारे पशुपालन को भी आधुनिक बनाना पड़ेगा। हमारे यहां जो sheeps है...भेड़े। मैंने एक छोटा प्रयोग किया था जब गुजरात में था। हमारा जो भेड़ पालने वाला होता है वो जब उसका ऊन निकालता है, उसके बाल निकालता है तो उसके पास एक कैंची होती है । उसके टुकड़े हो जाते है। टुकड़े होने के कारण जो income होती है वो इतनी income होती नहीं है। दाम कम हो जाता है। मैंने क्या किया ऐसे जितने भेड़ वाले थे उनको जो five star hotel में और नीतिश कुमार जी जिस मशीन का उपयोग करते है trimming का। मैंने सभी जो भेड़ पालक है उनको मशीन दिया और battery वाला दिया। तो आज वो क्‍या करता है साल में दो बार उस मशीन से उसके बाल निकालता है। उसकी लंबाई ज्‍यादा होने के कारण उसकी income बढ़ गई। छोटी-छोटी चीजे होती हैं जी, लेकिन सामन्‍य प्रयोगों से भी हम कितना बड़ा बदलाव ला सकते है।

हम हैरान है जी, हमारा देश इतनी सारी हम आज भी मैं नहीं मानता हूं कि हमारे यहां पशुओं के hospital में dentist की व्‍यवस्‍था नहीं होगी पशुओं के लिए। अगर हमारे दांत खराब होते हैं तो पशुओं के होते नहीं है। पशु खाता नहीं है या loose motion कर देता है। कोई पूछने को तैयार नहीं, देखने को तैयार नहीं कि उसका dental problem है। मैं जब गुजरात में था मैंने एक बड़ा अभियान चलाया था पशुओं की dental treatment का। हमारा मोतीबिंदु होता है पशु का मोतिबिंदु होता था मैं पशुओं का मोतिबिंदु का ऑपरेशन करता था बहुत बड़ी मात्रा में। मैंने अमेरिका हमारे कुछ डॉक्‍टरों को भेजा था lager technology सीखने के लिए और पशुओं का bloodless surgery कैसे हो और मैं पशुओं के bloodless surgery में सफलतापूर्वक हमारे यहां लोगों को काम पर लगाया था। हमारे पशुपालन को वैज्ञानिक तरीकों में हमें लाना पड़ेगा। उसकी भी पीड़ा को हमें समझना होगा और मैं मानता हूं, तब जा करके हम white revolution की ओर आगे बढ़ सकते हैं।

और मैंने चौथा कहा वो, blue revolution. आज भी बिहार में इतना पानी है, लेकिन बिहार, आंध्र से 400 करोड़ रुपए की मछली लाकर के खाता है। अगर हम blue revolution करें। गरीब से गरीब किसान, जहां छोटे-मोटे तालाब हैं। अगर हम उसको मत्‍स्‍य उद्योग और उसमें भी कई अब तो विशेषताएं हैं। even ornamental fish का revolution इतना बढ़ आया है। बहुत बड़ा market है, global market है, ornamental fish का। हम अगर इस blue revolution की ओर भी उतना ही ध्‍यान दें और ये सारी चीजें हैं जो ultimately गांव-गरीब किसान का भला करती है और इसलिए हम इन बातों को लेकर के हमारे वैज्ञानिक तौर-तरीकों के साथ ये जो हमारा तिरंगे झंडे का तीनों रंग है और चौथा हमारा blue अशोक चक्र है, उन चतुर्थ क्रान्‍ति की दिशा में कैसे आगे बढ़े और हमारे किसान भाइयों के भलाई के लिए और एक सुरक्षित आर्थिक व्‍यवस्‍था किसानों को मिले, उस दिशा में कैसे काम करे।

मैं फिर एक बार राधामोहन सिंह जी का अभिनन्‍दन करता हूं कि आज पटना में। क्‍योंकि मुझे लगता है जी हिन्‍दुस्‍तान का green revolution, second green revolution को पूर्वी उत्‍तर प्रदेश, बिहार, पश्‍चिम बंगाल, असम से ही आने वाला है। ये मैं साफ देख पा रहा हूं। और यही बिहार की धरती हिन्‍दुस्‍तान में कृषि क्रान्‍ति लाकर रहेगी और जिसका प्रारंभ आज इस कार्यक्रम से हो रहा है।

मेरी बहुत-बहुत शुभकामनाएं, बहुत-बहुत धन्‍यवाद।

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گزشتہ ایک ہفتے میں ایسا محسوس ہوا کہ بھاؤنگر کی سرزمین بھگوان شری کرشن کے ورندا ون میں تبدیل ہو گئی ہو اور اس پر سونے پر سہاگہ یہ ہوا کہ ہمارے بھائی جی کی بھاگوت کتھا ہوئی۔ جس طرح کا عقیدت پرجوش ماحول بنا، لوگ جیسے کرشن میں رنگ گئے ہوں، ایسا منظر دیکھنے کو ملا۔

میرے پیارے سووجن باولِیالی  استھان صرف ایک مذہبی مقام نہیں ہے ،بلکہ بھرواڑ سماج سمیت بے شمار لوگوں کے لیے عقیدت، ثقافت، اور اتحاد کی علامتی سرزمین بھی ہے۔

ناگا لاکھا ٹھاکر کی مہربانی سے اس مقدس مقام کو،یہاں سے بھرواڑ سماج کو ہمیشہ سچی رہنمائی، بہترین ترغیب اور ایک بے مثال وراثت حاصل ہوئی  ہے۔ آج اس دھام میں شری ناگا لاکھا ٹھاکر مندر کی دوبارہ پران پرتِشتھا ہمارے لیے ایک سنہرا موقع ہے۔ گزشتہ ایک ہفتے سے جیسے دھوم دھام مچ گئی ہے۔ سماج کا جوش و خروش اور ولولہ دیکھ کر ہر طرف خوشی کی گونج سنائی دے رہی ہے۔ دل چاہتا ہے کہ میں بھی آپ سب کے درمیان پہنچوں، مگر پارلیمنٹ اور دیگر ذمہ داریوں کی وجہ سے نکل پانا مشکل ہے، لیکن جب میں ہماری ہزاروں بہنوں کے راس (رقص) کے بارے میں سنتا ہوں،تب دل خوشی سے جھوم اٹھتا ہے، واہ! انہوں نے وہیں پرورندا ون  کو زندہ کر دیا۔

عقیدت، ثقافت اور روایت کا یہ حسین امتزاج دل و دماغ کو خوشی اور سکون بخشنے والا ہے۔ان تمام پروگراموں کے دوران ان فنکار بھائیوں اور بہنوں،جنہوں نے اپنی شرکت سے ان لمحات کو زندہ جاوید بنا یا اور وقت کے تقاضے کے مطابق سماج کو اہم پیغام دینے کا کام کیا۔ مجھے یقین ہے کہ بھائی جی بھی اپنی کتھا کے ذریعے ہمیں وقتاً فوقتاً ر پیغام تو دیں گے ہی، اس کے لیے جتنی بھی تعریف کی جائے، کم ہے۔

 

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میں مہنت شری رام باپو جی اور باولِیا دھام کے مقدس موقع پر مجھے شریک کرنے کے لیے ان کا تہہ دل سے شکریہ ادا کرتا ہوں۔ درحقیقت، مجھے معذرت چاہنی چاہیے، کیونکہ اس مبارک موقع پر میں آپ سب کے درمیان حاضر نہ ہو سکا۔ آپ سب کا مجھ پرپوراحق ہے اور مستقبل میں جب کبھی اس طرف آؤں گا،تب ماتھا ٹیکنے ضرور حاضر ہوں گا۔

میرے پیارے  اہل خانہ

بھرواڑ سماج اور باولِیا دھام سے میرا تعلق آج یا کل کا نہیں، بلکہ بہت پرانا ہے۔ بھرواڑ سماج کی خدمت، ان کا فطرت سے لگاؤ اور گو سیوا(گائے کی خدمت) کا جذبہ الفاظ میں بیان کرنا مشکل ہے۔ ہم سب کی زبان سے ایک بات ہمیشہ بے ساختہ نکلتی ہے...

نگلا لاکھا نر بھالا

پچھم دھرا کے پیر

کھارے پانی میٹھے بنائے،

سوکھی سوکھی ندیوں میں بہائے نیر

یہ صرف الفاظ نہیں ہیں، بلکہ ایک عہد کی کہانی ہے، جہاں خدمت کا جذبہ اور مشکل ترین کام (جیسے ‘نیوا کے پانی موبھے لگا لیے" – گجراتی کہاوت) قدرتی طور پر ظاہر ہوتے تھے۔ ہر قدم پر خدمت کی خوشبو پھیلائی اور آج صدیوں  بعد بھی  لوگ انہیں یاد کر رہے ہیں، یہ اپنے آپ میں ایک بہت بڑی بات ہے۔میں خود قابل احترام اسو باپو جی کی خدمات کا براہِ راست گواہ ہوں، میں نے ان کی خدمات کو دیکھا ہے۔ ہمارے گجرات میں خشک سالی کوئی نئی بات نہیں ہے۔ ایک وقت تھا ،جب ہر دس میں سے سات سال قحط پڑتا تھا۔ گجرات میں کہا جاتا تھا کہ بیٹی کی شادی دھندھوکا (خشک سالی سے متاثرہ علاقہ) میں مت کرانا۔(گجراتی کہاوت –‘‘بندُوکے دیجو، پن دھندھوکے نہ دیتاکا معنیٰ ہےکہ بیٹی کی شادی 9 دھندھوکا(خشک سالی سے متاثرہ) علاقہ میں مت کروانا... (اس کی وجہ تھی کہ اس وقت دھندھوکا میں قحط پڑتا تھا)دھندھوکا اور رانپور  بھی پانی کے لیے تڑپنے والے مقامات تھے اور اس وقت قابل احترام اسو باپو جی نے جو خدمت انجام دی، جو پریشان حال لوگوں کی مدد کی، وہ براہِ راست نظر آتی ہے۔ نہ صرف میں بلکہ پورا گجرات ان کے کاموں کو دیوی خدمت (خدائی مشن) کی شکل مانتا ہے۔ان کی تعریف کرتے لوگ رکتے نہیں۔ نقل مکانی کرنے والی برادری کے بھائی بہنوں کی مدد، ان کے بچوں کی تعلیم کا کام ہو، ماحولیاتی تحفظ کے لیےخود کو وقف کرنا، گِیر گایوں کی خدمت—چاہے کسی بھی کام کولے لیجئے، ہر کام میں ہمیں ان کے خدمت  کا جذبہ نظر آتا ہے۔

 

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میرے پیارے  سووجن(اہل خانہ)

بھرواڑ سماج کے لوگ کبھی بھی محنت اور قربانی سے پیچھے نہیں ہٹے، بلکہ ہمیشہ آگے رہے ہیں۔ آپ سب جانتے ہیں کہ جب بھی میں آپ کے درمیان آیا ہوں، میں نے کڑوی باتیں کہی ہیں۔ میں نے بھرواڑ سماج سے کہا کہ اب لٹھ(ڈنڈے) کا زمانہ نہیں رہا، لٹھ لے کرکافی دنوں تک گھوم لیے آپ لوگ ، اب قلم کا زمانہ ہے اور مجھے فخر کے ساتھ کہنا ہوگا کہ جتنا بھی وقت مجھے گجرات میں خدمت کا موقع ملا، بھرواڑ سماج کی نئی نسل نے میری بات کو قبول کیا ہے۔ بچے پڑھ لکھ کر آگے بڑھنے لگے ہیں۔ پہلے میں کہتا تھا ‘‘لٹھ چھوڑکر، قلم پکڑو"، اور اب میں کہتا ہوں کہ میری بچیوں کے ہاتھ میں کمپیوٹر ہونا چاہیے۔ بدلتے وقت کے ساتھ ہم بہت کچھ کر سکتے ہیں اور یہی ہماری سب سے بڑی ترغیب ہے۔ ہمارا سماج قدرت اور ثقافت کا محافظ ہے۔

آپ نے تو حقیقت میں ‘‘اتھیتھی دیوو بھووا’’(مہمان بھگوان کا روپ ہوتا) کے اصول کو حقیقت میں زندہ کر دیا ہے۔ ہمارے یہاں چرواہے اور بالوا سماج کی روایت کے بارے میں لوگوں کو کم معلومات ہے، لیکن بھرواڑ سماج کے بزرگ اولڈ ایج ہوم میں نہیں ملیں گے۔ یہاں جوائنٹ فیملی کا کلچر ہے، بزرگوں کی خدمت کو بھگوان کی خدمت سمجھا جاتا ہے۔ وہ اپنے بزرگوں کو کبھی بھی اولڈ ایج ہوم نہیں بھیجتے، بلکہ ان کی خود ان کی خدمت کرتے ہیں۔ یہ جوتہذیب نئی نسل کو دیےگئے ہیں، وہ بیش قیمت ہیں۔

بھرواڑ سماج کے اخلاقی اور خاندانی اقدار کو مضبوط بنانے کے لیے نسل در نسل محنت کی گئی ہے۔ مجھے خوشی ہے کہ ہمارا سماج اپنی روایات کی حفاظت بھی کر رہا ہے اور جدیدیت کی طرف تیزی سے بڑھ بھی رہا ہے۔ نقل مکانی کرنے والے خاندانوں کے  پڑھے، ان کے لیے ہوسٹل کی سہولتیں فراہم ہوں، یہ بھی ایک طرح بڑی خدمت ہے۔سماج کو جدیدیت کے ساتھ جوڑنے کا کام، ملک کو دنیا کے ساتھ جوڑنے والے نئے مواقع فراہم کرنا ، یہ بھی ایک بڑی خدمت ہے۔ اب میری خواہش ہے کہ ہماری بیٹیاں کھیل کود میں بھی آگے آئیں، اس کے لیے ہمیں کام کرنا ہوگا۔ جب میں گجرات میں تھا تب کھیل مہاکمبھ میں دیکھا کرتا تھا کہ چھوٹی بچیاں اسکول جاتی اور کھیلوں میں بھی نمبر لاتی تھیں۔اب ان میں طاقت ہے،  قدرت نے انہیں خصوصی صلاحیت سے نوازا ہے اور اب ہمیں ان کی ترقی پر بھی توجہ دینی ہوگی۔جیسے ہم اپنے مویشیوں کی دیکھ بھال کرتے ہیں، ان کی صحت کی فکر کرتے ہیں، ویسے ہی ہمیں اپنے بچوں کی تعلیم اور ترقی کے لیے بھی اتنی ہی سنجیدگی سے محنت کرنی چاہیے۔باولیا دھام تو ہمیشہ سے مویشی پروری میں نمایاں رہا ہے، خاص طور پر یہاں گیر گائیوں کی نسل کی نگرانی کی گی ہے، اس پر پورے ملک کو فخر ہے۔ آج پوری دنیا میں گیر گائے کی شہرت ہے اور یہ ہمارے لیے ایک اعزاز کی بات ہے۔

میرے پیارے اہل خانہ ،
بھائیو اور بہنو ، ہم مختلف نہیں ، ہم سب ساتھی ہیں ،میں نے ہمیشہ محسوس کیا ہے کہ ہم خاندان کے افراد ہیں ۔ میں ہمیشہ آپ کے درمیان خاندان کے رکن کی طرح رہا ہوں ۔ آج جو بھی خاندان باولیا دھام آئے ہیں ، لاکھوں لوگ یہاں بیٹھے ہیں ، مجھےحق ہے کہ میں آپ سے کچھ طلب کروں۔ میں آپ سے  مانگنا چاہتا ہوں  اور میں درخواست کرنے والا ہوں، مجھے یقین ہے کہ آپ مجھے کبھی مایوس نہیں کریں گے ۔ ہمیں اب ایسے نہیں رہنا ہے، ہمیں ایک چھلانگ لگانی ہے اور  25 برسوں میں ہندوستان کو ترقی یافتہ ملک بنانا ہی ہے ۔ آپ کے تعاون کے بغیر میرا کام نامکمل رہے گا۔ اس مقصد کے لیے پورے معاشرے کو متحد ہونا  ہے۔ آپ کو یاد ہوگا کہ میں نے لال قلعہ سے کہا تھا ، سب کا پریاس(سب کی کوشش)... سب کی کوشش ہمارا سب سے بڑا سرمایہ ہے ۔ ہندوستان کو ایک ترقی یافتہ ہندوستان بنانے کا پہلا قدم اپنے دیہاتوں کی ترقی کرنا ہے ۔ آج ، قدرت اور مویشیوں کی خدمت ہمارا فطری دھرم ہے ۔ تب ایک اورکام ہم کیا نہیں کر سکیں گے.... حکومت ہند کی ایک اسکیم چلتی ہے ، اور یہ مکمل طور پر مفت ہے-پاؤں اور منہ کی بیماری ، جسے ہمارے یہاں خرپکا ، منہ پکا کی بیماری کے شکل  کے نام سے جانا جاتا ہے ۔ اس میں لگاتار ویکسین لینی پڑتی ہے ، تب ہی ہمارے جانور اس بیماری سے نکل سکتے ہیں ۔ یہ ہمدردی کا عمل ہے ۔

اب حکومت مفت ویکسین دے رہی ہے ۔ ہمیں اس بات کو یقینی بنانا ہوگا کہ ہمارے معاشرے کے مویشیوں کو یہ ویکسین باقاعدگی سے ملنی چاہیے ۔ تب ہی ہمیں بھگوان شری کرشن  کامسلسل آشرواد ملے گا ، ہمارے حامی ہماری مدد کے لیے آئیں گے ۔ اب ہماری حکومت نے ایک اور اہم کام کیا ہے ۔ پہلے کسانوں کے پاس کسان کریڈٹ کارڈ ہوتے تھے ، اب ہم نے مویشی پالنے والوں کو بھی کریڈٹ کارڈ دینے کا فیصلہ کیا ہے ۔ اس کارڈ سے یہ مویشی پالنے والے کم شرح سود پر بینک سے رقم لے سکتے ہیں اور اپنا کاروبار بڑھا سکتے ہیں ۔ گایوں کی دیسی نسلوں  افزائش کے لیے، ان کے فروغ کے لیے ، تحفظ کے لیےراشٹریہ گوکل مشن بھی چل رہا ہے۔میری آپ سے درخواست ہے کہ میں دہلی میں بیٹھ کر یہ سب کرتا ہوں اور آپ سب اس کا فائدہ بھی نہ اٹھائیں یہ کیسے چلے گا۔آپ لوگوں کو اس کا فائدہ اٹھانا پڑے گا۔ مجھے آپ لوگوں کے ساتھ لاکھوں جانوروں کی دعائیں ملیں گی ۔ جانداروں کی دعائیں  ملیں گی ۔ اس لیے آپ سے درخواست ہے کہ اس اسکیم سے فائدہ اٹھائیں ۔ دوسری اہم بات جو میں پہلے کہہ چکا ہوں اور آج پھر دوہراتا ہوں ، درخت لگانے کی اہمیت ہم سب جانتے ہیں ، اس سال میں نے ایک مہم شروع کی ،جسے دنیا کے لوگ سراہا رہے ہیں ۔‘ایک پیر ماں کے نام‘، اگر ہماری ماں زندہ ہیں تو اس کی موجودگی میں اور اگر ماں زندہ نہیں ہیں تو ان کی تصویر سامنے رکھ کر درخت لگائیں۔ ہم توچرواہے برادری کے ایسے لوگ ہیں ، جن کی تیسری-چوتھی نسل کے بزرگ نوے- سو سال تک زندہ رہتے ہیں اور ہم ان کی خدمت کرتے ہیں ۔ ہمیں ماں کے نام پر درخت لگانا ہے  اور اس حقیقت پر فخر کرنا ہے کہ یہ میری ماں کے نام پر ہے ، میری ماں کی یاد میں ہے ۔

آپ جانتے ہیں ، ہم نے دھرتی ماں کو بھی تکلیف پہنچائی ہے ، پانی نکالتے رہے ، کیمیکل ڈالتے رہے ، اسے پیاسی بنا دیا ۔ اس پر زہر ڈال دیا ۔دھرتی ماں کو صحت مند رکھنا ہماری ذمہ داری ہے ۔ ہمارے مویشی پالنے والوں کا گوبر بھی ہماری دھرتی ماں کے لیے دولت کی طرح ہے اوردھرتی ماں کو نئی طاقت دے گا ۔ اس کے لیےقدرتی کاشتکاری اہم ہے ۔ جن کے پاس زمین ہے ، موقع ہے ، وہ قدرتی کاشتکاری کرتے ہیں ۔ گجرات کے گورنر صاحب آچاریہ جی قدرتی کاشت کاری کے لیے بہت کچھ کر رہے ہیں ۔ میری آپ سب سے درخواست ہے کہ ہمارے پاس جو بھی چھوٹی اور بڑی زمین ہیں ، ہم سب کو قدرتی کاشتکاری کی طرف رخ کریں  اور دھرتی ماں کی خدمت کریں۔

پیارے بھائیو اور بہنو ،
میں ایک بار پھر بھرواڑ سماج کو نیک خواہشات پیش کرتا ہوں اور ایک بار پھر دعا کرتا ہوں کہ نگالاکھا ٹھاکر کا آشریواد ہم سب پربرقرار رہے اور باولیادھام سے وابستہ تمام لوگوں کا فلاح ہو،  خوشحالی آئے۔ ہماری بیٹیاں اور بچے پڑھ لکھ کر آگے آئیں ، سماج طاقتور بنے ، اس سے زیادہ اور کیا چاہیے ۔ اس سنہری موقع پر بھائی جی کے الفاظ کو سلام پیش کرتے ہوئے اور انہیں آگے لے جاتے ہوئے، اس بات کو یقینی بنائیں کہ سماج کو جدیدیت کی طرف طاقتور بنا کر آگے بڑھاناہے ۔ میں نے بہت لطف اٹھایا ۔ خود آیا ہوتا تو زیادہ خوشی ہوتی۔

جے ٹھاکر ۔