Nation building is a priority for us: PM Narendra Modi

Published By : Admin | August 18, 2016 | 23:59 IST
Our determination is to work for everyone. Nation building is priority for us: PM
BJP can showcase to the world what a truly democratic party driven by Karyakartas is: PM
Whether the party is in power or opposition, it will never compromise on its ideals: PM
Sacrifice of generations of party Karyakartas inspire us to work more: PM Modi
Bharatiya Janata Party is not made by a leader, a PM or a CM. This is a party made by its Karyakartas: PM Modi

भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष आदरणीय अमित भाई शाह, हम सबके मार्गदर्शक श्रद्धेय आडवाणी जी, जोशी जी, पार्टी के सभी पूर्व अध्यक्ष, सभी वरिष्ठ महानुभाव और कार्यकर्ता भाइयों और बहनों।

आप सबको साक्षी भाव से रक्षा बंधन की बहुत-बहुत शुभकामनाएं। आज रक्षा बंधन के पावन पर्व पर भारत की बेटी साक्षी ने हिंदुस्तान के तिरंगे झंडे को नई ताकत दी है, नया सम्मान दिया है। देश की इस बेटी को बहुत-बहुत बधाई, बहुत-बहुत शुभकामनाएं। रक्षा-बंधन का पावन पर्व भारत के अलग-अलग प्रदेशों में अलग-अलग रूप मे मनाया जाता है, लेकिन इसमें केंद्रवर्ती विचार, परिवार, समाज सशक्त कैसे बनें ये उसके मूलभूत तत्व में होता है। और देश की राजनीति ने जिस रूप को, जिस स्थिति को पहुंची है, देश की ताकत बढ़ते–बढ़ते विघ्नसंतोषी लोगों की भी हरकतें भी ज़रा बढ़ती हैं। ऐसे समय समाज और अधिक सशक्त बने, समाज और समरस बने, हर कोई हर किसी की रक्षा के लिए अपनी जिम्मेवारियों का निर्वाह करे, व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन में अनुशासन का पालन करें, अपनेपन का दायरा नित्य-निरंतर विस्तृत करते चलें। सबको साथ लेकर के चलना, हर किसी के लिए कुछ न कुछ करना, सबका साथ-सबका विकास इस मंत्र को जीकर के दिखाना, इस संकल्प से हम सब प्रतिबद्ध लोग हैं। और रक्षा-बंधन के पावन पर्व पर उस पवित्र भाव को हम अपने में संजोकर के, राष्ट्र निर्माण ये हमारी प्राथमिकता है, और राष्ट्र निर्माण के अंदर व्यवस्थाओं की भी आवश्यकता होती है। ये कार्यालय भी, राष्ट्र-निर्माण का हमारा जो सपना है, उसके लिए आवश्यक जो व्यवस्थाएं विकसित करनी है, उन व्यवस्था का एक छोटा सा हिस्सा है, और जिसे हमने आधुनिकता के रंग से रंगा है। मैं पार्टी की टीम को बहुत-बहुत बधाई देता हूं, क्यूं ये काम कोई अचानक नहीं हुआ होगा। लंबे समय से चर्चाएं चली होंगी, आवश्यकताओं का विचार हुआ होगा। भविष्य में क्या ज़रूरत पड़ेगी, इसका अंदाज किया गया होगा, रिसोर्स की क्या स्थिति है उस पर सोचा गया होगा। और आनेवाले कई वर्षों तक यह व्यवस्था सुचारू रूप से चले.... सारी बातें सोचकर के इसकी रचना की गई है, मैं इस कार्य के लिए टीम का बहुत–बहुत अभिनंदन करता हूं।

भारतीय जनता पार्टी शायद हिंदुस्तान में अकेली पार्टी ऐसी होगी जो पंडित लोग हैं, मैं चाहूंगा कि वो रिसर्च करें, कि जिसमें किसी दल को जन्म से लेकर जीवन भर विपरीत प्रवाहों का ही सामना करना पड़ा हो, हर मोड़ पर मुसीबतें झेलनी पड़ी हों, हर प्रयास को बुरी नजर से देखा गया होगा, परखा गया होगा... और इसलिए शायद अंग्रेजों के जमाने में भी कांग्रेस पार्टी को इतने विपरीत प्रवाह से गुजरना नहीं पड़ा होगा, जितना हमें पिछले पचास-साठ साल तक लक्षावधि कार्यकर्ताओं को गुजरना पड़ा है। हमारे पूर्व के साथी इस प्रकार से अपमानित हुए हैं, जिसकी हम कल्पना नहीं कर सकते हैं, कई स्थानों पर एक दफ्तर चाहिए... दफ्तर.... ऑफिस खोलने के लिए किराए पर। और किसी को पता चले कि दफ्तर मिलनेवाला है, तो उसकी बेचारे की मुसीबत आ जाती थी। अभी बंगाल में चुनाव हुआ, कलकत्ते में भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार को अगर कोई ऑफिस खोलने के लिए देता था, तो उसका बेचारे का जीना मुश्किल कर दिया जाता था। शायद हिंदुस्तान में आजादी के बाद किसी एक दल ने जितने बलिदान दिए हैं, शायद ही किसी राजनीतिक दल ने इतने बलिदान नहीं दिए। हमारे सैंकड़ों कार्यकर्ताओं को इसलिए मौत के घाट उतार दिया गया क्योंकि वे उस राजनीतिक चिंतन से जुड़े हुए नहीं थे, जो भारत में व्यापक रूप से प्रचारित था। ये बलिदान कम नहीं है और इसलिए हम सरकार में हों या संगठन में हों, हर कदम पर इन पचास-साठ साल की त्याग-तपस्या, बलिदान, लक्षावधि कार्यकर्ताओं का पुरुषार्थ, चार-चार पीढ़ी का समर्पण, हमें कार्य करने की प्रेरणा देता है। जीवन में मूल्यों को बनाए रखने के लिए वो हमारा सबसे बड़ा प्रेरणास्रोत होता है। उसी से प्रेरणा लेकर के हम काम कर रहे हैं। और इसलिए ये कार्यालय का निर्माण सिर्फ इमारत नहीं है, उन लक्षावधि कार्यकर्ताओं के पसीने की उसमें महक है। ये ईंट-पत्थर से बनने वाला कार्यालय नहीं है ये लक्षावधि कार्यकर्ताओं के तपस्या का एक तपोभूमि के रूप में उभर करके आ रहा है। और इसलिए इसकी पवित्रता इस भवन का समर्पण-भाव सिर्फ राजनीतिक हितों के लिए नहीं, सिर्फ और सिर्फ राष्ट्र के हितों के लिए समर्पित रहेगा। और इसलिए इस रक्षा-बंधन के पावन पर्व पर जिस दल के पास 11 करोड़ सदस्य संख्या हो...तब वैचारिक प्रशिक्षण, कार्य का प्रशिक्षण, कार्य संस्कृति का प्रशिक्षण, ये बहुत बड़ी चुनौती बन जाता है। क्योंकि हम... भीड़ नहीं, संगठन के लिए काम करने वाले लोग हैं। भीड़ तो कोई भी ऐसा लोकलुभावनी बात कर दो, भीड़ तो मिल जाती है। लेकिन हर कठिनाईयों में टिकने की ताकत वैचारिक अधिष्ठान से मिलती है। कंधे से कंधा मिलाकर के काम करने की कार्य संस्कृति से मिलती है। एक वक्त था जब जन-आंदोलन बहुत हुआ करते थे। पार्टी के कार्यकर्ताओं को महीनों तक जेलों में रहना पड़ता था। साथ-साथ जीने का, साथ-साथ काम करने का, साथ-साथ दौरे करने का एक सहज अवसर होता था। और उसके कारण हमारी कार्य संस्कृति का संक्रमण सहज होता था। एक पीढ़ी, दूसरी पीढ़ी को अपनी कार्य संस्कृति को सुपूर्द करके जाती थी। अगर कुशाभाऊ के साथ मुझे कार्य करने का सौभाग्य मिला तो कुशाभाऊ की कार्यशैली को सीखने-समझने के लिए मेरे लिए बड़ी सहजता थी। अगर भंडारी जी के साथ मुझे कार्य करने का सौभाग्य मिला तो भंडारी जी की कार्यशैली क्या थी, किन बातों की प्रॉयरिटी थी, उनको समझने का मुझे सहज अवसर मिला था। आज हमें उस अवसर को खोना नहीं है। उसको और अधिक गहरा करने की आवश्यकता है और अधिक जीवंत करने की आवश्यकता है और साथ-साथ भारतीय जनता पार्टी अब सिर्फ हिन्दुस्तान में राजनीतिक दलों की स्पर्धा का विषयमात्र नहीं है वो चुनाव में करना है- करेंगे...। लेकिन विश्व के सामने, लोकतांत्रिक देशों के सामने, लोकतांत्रिक राजनीतिक संगठन क्या होता है, परिवारवाद से मुक्त संगठन क्या होता है, आदर्शों से समर्पित संगठन क्या होता है, स्व से लेकर के समस्ती तक की यात्रा करने के लिए कार्यकर्ताओं की श्रंखला कैसे काम करती है इसका एक उत्तम उदाहरण दुनिया के सामने हमने प्रस्तुत करना चाहिए, लोकतांत्रिक देशों के सामने प्रस्तुत करना चाहिए।

हमारे विषय में लोगों को परिचय बहुत कम है, दुनिया हमारे विषय में जो जानती है जो औरों ने हमारे लिए कहा है, उसके रूप में जानती है। जिस समय 1967 में संयुक्त विधायक दल की सरकारें बनीं, (एसवीडी) की- पहली बार, कांग्रेस के बाहर निकल करके सरकार बनना शुरु हुआ। मध्यप्रदेश में एसवीडी की सरकार बनी, जनसंघ का नेतृत्व रहा तो दुनिया के कई देशों को अचरज हुआ था कि ये लोग सत्ता तक कैसे पहुंच गए, ये कौन लोग हैं, क्या तौर-तरीका है और मुझे उन समय बराबर याद है एक विद्यार्थी के रूप में मेरा जीवन था, मैंने कहीं पढ़ा था कि अमेरिका की अच्छी-अच्छी रिसर्च इंस्टीट्यूशन इस बात पर स्टडी करने पर लग गई थी कि आखिर ये जनसंघ है क्या... इसकी निर्णय प्रक्रिया क्या है, इसकी लीडरशिप क्या है, उसकी डिसीज़न मेकिंग प्रोसेस क्या है, उनके डेवलपमेंट के प्लान क्या हैं, और बड़ी गहराई से उस समय मध्यप्रदेश का अध्य्यन विश्व के कई लोग कर रहे थे। जब वाजपेयी जी की सरकार बनी, तब भी फिर एक बार दुनिया को अजूबा हुआ, यहां तक पहुंच गए...क्योंकि कभी भी, जिन लोगों के माध्यम से वो हमें जानने का प्रयास करते थे उसके कारण वो कभी भी हमें सही रूप में समझ ही नहीं पाए। आज फिर से एक बार विश्व की जिज्ञासा जगी है। दुनिया के पॉलिटिकल पंडितों की जिज्ञासा जगी है कि लोकतांत्रिक मूल्यों को समर्पित संगठन व्यवस्था के द्वारा विचार से प्रतिबद्ध, राजनीतिक जीवन क्या होता है, राजनीतिक कार्यकलाप क्या होते हैं। ये एक अध्य्यन का विषय बना है। और जब वैश्विक फलक पर इन चीज़ों का अध्य्यन हो रहा है तब... हमारे लिए भी बहुत आवश्यक है वरना हम क्या हैं.... हम बिल्कुल परफेक्ट... हमारी संस्कृति को जीने वाले लोग हैं और उसके कारण रिकॉर्ड नहीं रखना... हो गया-हो गया... अरे देश की सेवा थी... कर लिया।

अगर आज हम कहें कि भई जब कच्छ का सत्याग्रह हुआ था तो अटल जी एक फोटो खोज करके लाओ.. नाकों दम निकल जाता है लेकिन अटल जी की फोटो हाथ नहीं लगती है... पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी रेल में सफर करते थे...इतना कष्ट उठाते थे, अरे भई कोई तो उस समय की फोटो निकालो....उपलब्ध नहीं है। क्योंकि समर्पण भाव की तीव्रता इतनी रही थी कि हमनें अपने इतिहास के प्रति भी सजगता नहीं बरती। वो गुनाह नहीं था, त्याग, तपस्या की परम्परा थी। लेकिन आज समय की मांग है कि हम हमारी हर चीज़ों को रिकॉर्ड करें। हम इतिहास के हिस्से हैं। छोटे से छोटे गांव में एक कार्यकर्ता भी जो काम करता है उसका एक महत्व है। और भारतीय जनसंघ के जीवन में तो कैसी-कैसी घटनाएं ताकत देती थीं... कालीकट में भारतीय जनता पार्टी का अधिवेशन था, पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी को अध्यक्ष के रूप में चुना गया था, राष्ट्रीय अध्यक्ष बने थे। दीनदयाल जी हम सबके लिए जीवन में यानि...एक प्रकार का नाम ही इतनी प्रेरणा देता है, जिन लोगों ने उनके साथ में काम किया उनके जीवन में तो कितनी बड़ी ताकत के रूप में होंगे। दीनदयाल जी ने अध्यक्ष बनने के बाद क्या काम किया....मेरे लिए भी अचरज था, जब मैंने ये जाना... गुजरात के अंदर भावनगर जिले में बोटात नाम का एक छोटा सा नगर और उस नगर में जनसंघ म्यूनिसिपालिटी में बहुमत से जीत गया। पूरे हिन्दुस्तान के लिए भावनगर जिले की बोटात नगर की एक छोटन नगरपालिका का विजय.. पूरे हिन्दुस्तान की बीजेपी की आन-बान-शान बन गया। इतना ही नहीं, स्वयं राष्ट्रीय अध्यक्ष पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी बोटात आए, जनता का अभिनन्दन किया, कार्यकर्ताओं का धन्यवाद किया। वो दिन देखे हैं हम लोगों ने...। एक म्युनिसिपालिटी में। शायद हिन्दुस्तान में जितनी जमानतें हमने जब्त करवाईं है कोई दल नहीं होगा, ये रिकॉर्ड करने वाला भी। ये जमानतें जब्त होती ऐसे नहीं है, दल के लिए समर्पण का भाव होता है तब जमानतें जब्त होते हुए भी, मैं विचार के लिए जिऊंगा, विचार के लिए जूझता रहूंगा ये माजा... ये माजा इस कार्यकर्ताओं ने पैदा किया हुआ है, तब जाकर के पार्टी बनी है। आप कल्पना कीजिए हिन्दुस्तान के राजनीतिक जीवन में क्या लेना, पाना, बनने की इच्छाएं नहीं रही होंगी.... क्या और दलों से भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं की कोई लोकलुभावनी बातें नहीं पहुंची होंगी? क्या इस देश में कोई नहीं हुआ होगा जिसको कभी ये मन कर गया होगा... यार आज अटल जी हमारे यहां आ जाएं तो बहुत अच्छा होगा। आडवाणी जी हमारे यहां आ जाएं तो बहुत अच्छा होगा। डॉ. जोशी जी हमारे दल में आ जाएं तो बहुत अच्छा होगा। उत्तरप्रदेश में हमें अगर इनकी मदद मिल जाए तो ये फायदा हो जाए.. क्या नहीं हुआ होगा...? सबकुछ हुआ होगा... हर किसी ने कोशिश की होगी लेकिन ये भारतीय जनता पार्टी का नेतृत्व है, विपक्ष में पड़े रहेंगे तो पड़े रहेंगे लेकिन विचार के लिए जियेंगे... ये कर के दिखाया है।

गुजरात में तीन एमएलए थे जनसंघ के। उसमें एक हरिसी भाई बोहे करके थे, राज परिवारों से उनका बड़ा निकट नाता रहा था भारत के एकीकरण के समय वो बड़े सक्रिय रहे थे, आयु भी बड़ी थी। हम लोग उनके बड़े निकट थे। बहुत ही मृदिव... बहुत ही प्रेरक जीवन था। गुजरात में राज्यसभा का एक चुनाव आया, उस राज्यसभा के चुनाव में कुछ वोटों की ज़रूरत थी, किसी दल को तो उनको सारे लोग जीत जाएं, ऐसी संभावना थी। एक नेता हरिसी भाई को मिलने गया, ये कहने के लिए कि साहब अगर आपके तीन वोट हमें मिल जाएं तो आपको ये चाहिए तो ये मिल जाएगा, वो चाहिए तो मिल जाएगा, ये चाहिए तो मिल जाएगा... किया। वो पन्द्रह मिनट तक उनको समझाते रहे और हरिसी दादा ने उनको कहा कि मेरा जीवन, मेरी तपस्या आज मिट्टी में मिल गई तो वो चौंक गया, उससे कहा... मैं हरिसी, जनसंघ का नुमाइंदा और तेरी ये हिम्मत मुझसे ये ऑफर लेकर आने की... दोष तेरा नहीं है... शायद... शायद ये मेरी ही तपस्या में कोई कमी रह गई। आप कल्पना कर सकते हैं इतनी सारी चीज़ें सामने पड़ी हों, और एक कोने में तीन एमएलए को लेकर के बैठा एक कार्यकर्ता...उन आदर्शों के लिए राजनीतिक परिस्थिति पर दोष नहीं देता है वो कहता है शायद.. शायद मेरी तपस्या में कोई कमी हुई, कि तुमने मेरे दरवाजे तक आने की हिम्मत की है। खैर उन्होंने माफी मांग करके, जो आए थे, वो सज्जन चले गए। मेरा कहने का तात्पर्य ये है कि देश के हर कोने में ऐसे लक्षावधि कार्यकर्ताओं के त्याग, तपस्या और समर्पण की कथाएं, हम सबके लिए प्रेरणा देती हैं। और ये पार्टी किसी नेता के कारण नहीं बनी है, ये पार्टी किसी प्रधानमंत्री के कारण नहीं चली है, ये पार्टी किसी मुख्यमंत्री के कारण नहीं चली है, ये पार्टी लक्षावधि कार्यकर्ताओं के कारण चली है, उनके त्याग तपश्र्या के कारण चली है और तब जाकर करके हम आज इस ऊंचाई पर पहुंचे हैं। उन्हीं कार्यकर्ताओं का सामर्थ्य बना रहे, कार्यकर्ता हमारा... इस बदलाव का सच्चे में एक एंजेट है। अपने जीवन के द्वारा बदलाव लाने में वो अपनी भूमिका अदा कर रहा है। आज रक्षा-बंधन के पावन पर्व पर ये भवन का निर्माण उसमें और नए रंग-रूप भरेगा, और नई ताकत भरेगा, आधुनित्य का ओज मिलेगा.. मैं फिर एक बार अमित भाई को, उनकी पूरी टीम को और जिन-जिन महापुरूषों ने इस पार्टी को चलाया है.. जीवित हो, जीवित नहीं हैं... उनको सबको आदरपूर्वक नमन करते हुए आप सबको बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं।

बहुत-बहुत धन्यवाद

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Text of PM’s address at the Odisha Parba
November 24, 2024
Delighted to take part in the Odisha Parba in Delhi, the state plays a pivotal role in India's growth and is blessed with cultural heritage admired across the country and the world: PM
The culture of Odisha has greatly strengthened the spirit of 'Ek Bharat Shreshtha Bharat', in which the sons and daughters of the state have made huge contributions: PM
We can see many examples of the contribution of Oriya literature to the cultural prosperity of India: PM
Odisha's cultural richness, architecture and science have always been special, We have to constantly take innovative steps to take every identity of this place to the world: PM
We are working fast in every sector for the development of Odisha,it has immense possibilities of port based industrial development: PM
Odisha is India's mining and metal powerhouse making it’s position very strong in the steel, aluminium and energy sectors: PM
Our government is committed to promote ease of doing business in Odisha: PM
Today Odisha has its own vision and roadmap, now investment will be encouraged and new employment opportunities will be created: PM

जय जगन्नाथ!

जय जगन्नाथ!

केंद्रीय मंत्रिमंडल के मेरे सहयोगी श्रीमान धर्मेन्द्र प्रधान जी, अश्विनी वैष्णव जी, उड़िया समाज संस्था के अध्यक्ष श्री सिद्धार्थ प्रधान जी, उड़िया समाज के अन्य अधिकारी, ओडिशा के सभी कलाकार, अन्य महानुभाव, देवियों और सज्जनों।

ओडिशा र सबू भाईओ भउणी मानंकु मोर नमस्कार, एबंग जुहार। ओड़िया संस्कृति के महाकुंभ ‘ओड़िशा पर्व 2024’ कू आसी मँ गर्बित। आपण मानंकु भेटी मूं बहुत आनंदित।

मैं आप सबको और ओडिशा के सभी लोगों को ओडिशा पर्व की बहुत-बहुत बधाई देता हूँ। इस साल स्वभाव कवि गंगाधर मेहेर की पुण्यतिथि का शताब्दी वर्ष भी है। मैं इस अवसर पर उनका पुण्य स्मरण करता हूं, उन्हें श्रद्धांजलि देता हूँ। मैं भक्त दासिआ बाउरी जी, भक्त सालबेग जी, उड़िया भागवत की रचना करने वाले श्री जगन्नाथ दास जी को भी आदरपूर्वक नमन करता हूं।

ओडिशा निजर सांस्कृतिक विविधता द्वारा भारतकु जीबन्त रखिबारे बहुत बड़ भूमिका प्रतिपादन करिछि।

साथियों,

ओडिशा हमेशा से संतों और विद्वानों की धरती रही है। सरल महाभारत, उड़िया भागवत...हमारे धर्मग्रन्थों को जिस तरह यहाँ के विद्वानों ने लोकभाषा में घर-घर पहुंचाया, जिस तरह ऋषियों के विचारों से जन-जन को जोड़ा....उसने भारत की सांस्कृतिक समृद्धि में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। उड़िया भाषा में महाप्रभु जगन्नाथ जी से जुड़ा कितना बड़ा साहित्य है। मुझे भी उनकी एक गाथा हमेशा याद रहती है। महाप्रभु अपने श्री मंदिर से बाहर आए थे और उन्होंने स्वयं युद्ध का नेतृत्व किया था। तब युद्धभूमि की ओर जाते समय महाप्रभु श्री जगन्नाथ ने अपनी भक्त ‘माणिका गौउडुणी’ के हाथों से दही खाई थी। ये गाथा हमें बहुत कुछ सिखाती है। ये हमें सिखाती है कि हम नेक नीयत से काम करें, तो उस काम का नेतृत्व खुद ईश्वर करते हैं। हमेशा, हर समय, हर हालात में ये सोचने की जरूरत नहीं है कि हम अकेले हैं, हम हमेशा ‘प्लस वन’ होते हैं, प्रभु हमारे साथ होते हैं, ईश्वर हमेशा हमारे साथ होते हैं।

साथियों,

ओडिशा के संत कवि भीम भोई ने कहा था- मो जीवन पछे नर्के पडिथाउ जगत उद्धार हेउ। भाव ये कि मुझे चाहे जितने ही दुख क्यों ना उठाने पड़ें...लेकिन जगत का उद्धार हो। यही ओडिशा की संस्कृति भी है। ओडिशा सबु जुगरे समग्र राष्ट्र एबं पूरा मानब समाज र सेबा करिछी। यहाँ पुरी धाम ने ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ की भावना को मजबूत बनाया। ओडिशा की वीर संतानों ने आज़ादी की लड़ाई में भी बढ़-चढ़कर देश को दिशा दिखाई थी। पाइका क्रांति के शहीदों का ऋण, हम कभी नहीं चुका सकते। ये मेरी सरकार का सौभाग्य है कि उसे पाइका क्रांति पर स्मारक डाक टिकट और सिक्का जारी करने का अवसर मिला था।

साथियों,

उत्कल केशरी हरे कृष्ण मेहताब जी के योगदान को भी इस समय पूरा देश याद कर रहा है। हम व्यापक स्तर पर उनकी 125वीं जयंती मना रहे हैं। अतीत से लेकर आज तक, ओडिशा ने देश को कितना सक्षम नेतृत्व दिया है, ये भी हमारे सामने है। आज ओडिशा की बेटी...आदिवासी समुदाय की द्रौपदी मुर्मू जी भारत की राष्ट्रपति हैं। ये हम सभी के लिए बहुत ही गर्व की बात है। उनकी प्रेरणा से आज भारत में आदिवासी कल्याण की हजारों करोड़ रुपए की योजनाएं शुरू हुई हैं, और ये योजनाएं सिर्फ ओडिशा के ही नहीं बल्कि पूरे भारत के आदिवासी समाज का हित कर रही हैं।

साथियों,

ओडिशा, माता सुभद्रा के रूप में नारीशक्ति और उसके सामर्थ्य की धरती है। ओडिशा तभी आगे बढ़ेगा, जब ओडिशा की महिलाएं आगे बढ़ेंगी। इसीलिए, कुछ ही दिन पहले मैंने ओडिशा की अपनी माताओं-बहनों के लिए सुभद्रा योजना का शुभारंभ किया था। इसका बहुत बड़ा लाभ ओडिशा की महिलाओं को मिलेगा। उत्कलर एही महान सुपुत्र मानंकर बिसयरे देश जाणू, एबं सेमानंक जीबन रु प्रेरणा नेउ, एथी निमन्ते एपरी आयौजनर बहुत अधिक गुरुत्व रहिछि ।

साथियों,

इसी उत्कल ने भारत के समुद्री सामर्थ्य को नया विस्तार दिया था। कल ही ओडिशा में बाली जात्रा का समापन हुआ है। इस बार भी 15 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा के दिन से कटक में महानदी के तट पर इसका भव्य आयोजन हो रहा था। बाली जात्रा प्रतीक है कि भारत का, ओडिशा का सामुद्रिक सामर्थ्य क्या था। सैकड़ों वर्ष पहले जब आज जैसी टेक्नोलॉजी नहीं थी, तब भी यहां के नाविकों ने समुद्र को पार करने का साहस दिखाया। हमारे यहां के व्यापारी जहाजों से इंडोनेशिया के बाली, सुमात्रा, जावा जैसे स्थानो की यात्राएं करते थे। इन यात्राओं के माध्यम से व्यापार भी हुआ और संस्कृति भी एक जगह से दूसरी जगह पहुंची। आजी विकसित भारतर संकल्पर सिद्धि निमन्ते ओडिशार सामुद्रिक शक्तिर महत्वपूर्ण भूमिका अछि।

साथियों,

ओडिशा को नई ऊंचाई तक ले जाने के लिए 10 साल से चल रहे अनवरत प्रयास....आज ओडिशा के लिए नए भविष्य की उम्मीद बन रहे हैं। 2024 में ओडिशावासियों के अभूतपूर्व आशीर्वाद ने इस उम्मीद को नया हौसला दिया है। हमने बड़े सपने देखे हैं, बड़े लक्ष्य तय किए हैं। 2036 में ओडिशा, राज्य-स्थापना का शताब्दी वर्ष मनाएगा। हमारा प्रयास है कि ओडिशा की गिनती देश के सशक्त, समृद्ध और तेजी से आगे बढ़ने वाले राज्यों में हो।

साथियों,

एक समय था, जब भारत के पूर्वी हिस्से को...ओडिशा जैसे राज्यों को पिछड़ा कहा जाता था। लेकिन मैं भारत के पूर्वी हिस्से को देश के विकास का ग्रोथ इंजन मानता हूं। इसलिए हमने पूर्वी भारत के विकास को अपनी प्राथमिकता बनाया है। आज पूरे पूर्वी भारत में कनेक्टिविटी के काम हों, स्वास्थ्य के काम हों, शिक्षा के काम हों, सभी में तेजी लाई गई है। 10 साल पहले ओडिशा को केंद्र सरकार जितना बजट देती थी, आज ओडिशा को तीन गुना ज्यादा बजट मिल रहा है। इस साल ओडिशा के विकास के लिए पिछले साल की तुलना में 30 प्रतिशत ज्यादा बजट दिया गया है। हम ओडिशा के विकास के लिए हर सेक्टर में तेजी से काम कर रहे हैं।

साथियों,

ओडिशा में पोर्ट आधारित औद्योगिक विकास की अपार संभावनाएं हैं। इसलिए धामरा, गोपालपुर, अस्तारंगा, पलुर, और सुवर्णरेखा पोर्ट्स का विकास करके यहां व्यापार को बढ़ावा दिया जाएगा। ओडिशा भारत का mining और metal powerhouse भी है। इससे स्टील, एल्युमिनियम और एनर्जी सेक्टर में ओडिशा की स्थिति काफी मजबूत हो जाती है। इन सेक्टरों पर फोकस करके ओडिशा में समृद्धि के नए दरवाजे खोले जा सकते हैं।

साथियों,

ओडिशा की धरती पर काजू, जूट, कपास, हल्दी और तिलहन की पैदावार बहुतायत में होती है। हमारा प्रयास है कि इन उत्पादों की पहुंच बड़े बाजारों तक हो और उसका फायदा हमारे किसान भाई-बहनों को मिले। ओडिशा की सी-फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री में भी विस्तार की काफी संभावनाएं हैं। हमारा प्रयास है कि ओडिशा सी-फूड एक ऐसा ब्रांड बने, जिसकी मांग ग्लोबल मार्केट में हो।

साथियों,

हमारा प्रयास है कि ओडिशा निवेश करने वालों की पसंदीदा जगहों में से एक हो। हमारी सरकार ओडिशा में इज ऑफ डूइंग बिजनेस को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है। उत्कर्ष उत्कल के माध्यम से निवेश को बढ़ाया जा रहा है। ओडिशा में नई सरकार बनते ही, पहले 100 दिनों के भीतर-भीतर, 45 हजार करोड़ रुपए के निवेश को मंजूरी मिली है। आज ओडिशा के पास अपना विज़न भी है, और रोडमैप भी है। अब यहाँ निवेश को भी बढ़ावा मिलेगा, और रोजगार के नए अवसर भी पैदा होंगे। मैं इन प्रयासों के लिए मुख्यमंत्री श्रीमान मोहन चरण मांझी जी और उनकी टीम को बहुत-बहुत बधाई देता हूं।

साथियों,

ओडिशा के सामर्थ्य का सही दिशा में उपयोग करके उसे विकास की नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया जा सकता है। मैं मानता हूं, ओडिशा को उसकी strategic location का बहुत बड़ा फायदा मिल सकता है। यहां से घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाजार तक पहुंचना आसान है। पूर्व और दक्षिण-पूर्व एशिया के लिए ओडिशा व्यापार का एक महत्वपूर्ण हब है। Global value chains में ओडिशा की अहमियत आने वाले समय में और बढ़ेगी। हमारी सरकार राज्य से export बढ़ाने के लक्ष्य पर भी काम कर रही है।

साथियों,

ओडिशा में urbanization को बढ़ावा देने की अपार संभावनाएं हैं। हमारी सरकार इस दिशा में ठोस कदम उठा रही है। हम ज्यादा संख्या में dynamic और well-connected cities के निर्माण के लिए प्रतिबद्ध हैं। हम ओडिशा के टियर टू शहरों में भी नई संभावनाएं बनाने का भरपूर हम प्रयास कर रहे हैं। खासतौर पर पश्चिम ओडिशा के इलाकों में जो जिले हैं, वहाँ नए इंफ्रास्ट्रक्चर से नए अवसर पैदा होंगे।

साथियों,

हायर एजुकेशन के क्षेत्र में ओडिशा देशभर के छात्रों के लिए एक नई उम्मीद की तरह है। यहां कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय इंस्टीट्यूट हैं, जो राज्य को एजुकेशन सेक्टर में लीड लेने के लिए प्रेरित करते हैं। इन कोशिशों से राज्य में स्टार्टअप्स इकोसिस्टम को भी बढ़ावा मिल रहा है।

साथियों,

ओडिशा अपनी सांस्कृतिक समृद्धि के कारण हमेशा से ख़ास रहा है। ओडिशा की विधाएँ हर किसी को सम्मोहित करती है, हर किसी को प्रेरित करती हैं। यहाँ का ओड़िशी नृत्य हो...ओडिशा की पेंटिंग्स हों...यहाँ जितनी जीवंतता पट्टचित्रों में देखने को मिलती है...उतनी ही बेमिसाल हमारे आदिवासी कला की प्रतीक सौरा चित्रकारी भी होती है। संबलपुरी, बोमकाई और कोटपाद बुनकरों की कारीगरी भी हमें ओडिशा में देखने को मिलती है। हम इस कला और कारीगरी का जितना प्रसार करेंगे, उतना ही इस कला को संरक्षित करने वाले उड़िया लोगों को सम्मान मिलेगा।

साथियों,

हमारे ओडिशा के पास वास्तु और विज्ञान की भी इतनी बड़ी धरोहर है। कोणार्क का सूर्य मंदिर… इसकी विशालता, इसका विज्ञान...लिंगराज और मुक्तेश्वर जैसे पुरातन मंदिरों का वास्तु.....ये हर किसी को आश्चर्यचकित करता है। आज लोग जब इन्हें देखते हैं...तो सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि सैकड़ों साल पहले भी ओडिशा के लोग विज्ञान में इतने आगे थे।

साथियों,

ओडिशा, पर्यटन की दृष्टि से अपार संभावनाओं की धरती है। हमें इन संभावनाओं को धरातल पर उतारने के लिए कई आयामों में काम करना है। आप देख रहे हैं, आज ओडिशा के साथ-साथ देश में भी ऐसी सरकार है जो ओडिशा की धरोहरों का, उसकी पहचान का सम्मान करती है। आपने देखा होगा, पिछले साल हमारे यहाँ G-20 का सम्मेलन हुआ था। हमने G-20 के दौरान इतने सारे देशों के राष्ट्राध्यक्षों और राजनयिकों के सामने...सूर्यमंदिर की ही भव्य तस्वीर को प्रस्तुत किया था। मुझे खुशी है कि महाप्रभु जगन्नाथ मंदिर परिसर के सभी चार द्वार खुल चुके हैं। मंदिर का रत्न भंडार भी खोल दिया गया है।

साथियों,

हमें ओडिशा की हर पहचान को दुनिया को बताने के लिए भी और भी इनोवेटिव कदम उठाने हैं। जैसे....हम बाली जात्रा को और पॉपुलर बनाने के लिए बाली जात्रा दिवस घोषित कर सकते हैं, उसका अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रचार कर सकते हैं। हम ओडिशी नृत्य जैसी कलाओं के लिए ओडिशी दिवस मनाने की शुरुआत कर सकते हैं। विभिन्न आदिवासी धरोहरों को सेलिब्रेट करने के लिए भी नई परम्पराएँ शुरू की जा सकती हैं। इसके लिए स्कूल और कॉलेजों में विशेष आयोजन किए जा सकते हैं। इससे लोगों में जागरूकता आएगी, यहाँ पर्यटन और लघु उद्योगों से जुड़े अवसर बढ़ेंगे। कुछ ही दिनों बाद प्रवासी भारतीय सम्मेलन भी, विश्व भर के लोग इस बार ओडिशा में, भुवनेश्वर में आने वाले हैं। प्रवासी भारतीय दिवस पहली बार ओडिशा में हो रहा है। ये सम्मेलन भी ओडिशा के लिए बहुत बड़ा अवसर बनने वाला है।

साथियों,

कई जगह देखा गया है बदलते समय के साथ, लोग अपनी मातृभाषा और संस्कृति को भी भूल जाते हैं। लेकिन मैंने देखा है...उड़िया समाज, चाहे जहां भी रहे, अपनी संस्कृति, अपनी भाषा...अपने पर्व-त्योहारों को लेकर हमेशा से बहुत उत्साहित रहा है। मातृभाषा और संस्कृति की शक्ति कैसे हमें अपनी जमीन से जोड़े रखती है...ये मैंने कुछ दिन पहले ही दक्षिण अमेरिका के देश गयाना में भी देखा। करीब दो सौ साल पहले भारत से सैकड़ों मजदूर गए...लेकिन वो अपने साथ रामचरित मानस ले गए...राम का नाम ले गए...इससे आज भी उनका नाता भारत भूमि से जुड़ा हुआ है। अपनी विरासत को इसी तरह सहेज कर रखते हुए जब विकास होता है...तो उसका लाभ हर किसी तक पहुंचता है। इसी तरह हम ओडिशा को भी नई ऊचाई पर पहुंचा सकते हैं।

साथियों,

आज के आधुनिक युग में हमें आधुनिक बदलावों को आत्मसात भी करना है, और अपनी जड़ों को भी मजबूत बनाना है। ओडिशा पर्व जैसे आयोजन इसका एक माध्यम बन सकते हैं। मैं चाहूँगा, आने वाले वर्षों में इस आयोजन का और ज्यादा विस्तार हो, ये पर्व केवल दिल्ली तक सीमित न रहे। ज्यादा से ज्यादा लोग इससे जुड़ें, स्कूल कॉलेजों का participation भी बढ़े, हमें इसके लिए प्रयास करने चाहिए। दिल्ली में बाकी राज्यों के लोग भी यहाँ आयें, ओडिशा को और करीबी से जानें, ये भी जरूरी है। मुझे भरोसा है, आने वाले समय में इस पर्व के रंग ओडिशा और देश के कोने-कोने तक पहुंचेंगे, ये जनभागीदारी का एक बहुत बड़ा प्रभावी मंच बनेगा। इसी भावना के साथ, मैं एक बार फिर आप सभी को बधाई देता हूं।

आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद।

जय जगन्नाथ!