देश ने हाल ही में मदन दास देवी जी जैसी महान विभूति को खोया है। उनके जाने से मेरे साथ ही लाखों कार्यकर्ताओं को जो गहरा दुख हुआ, उसे शब्दों में व्यक्त करना कठिन है। आज मन को समझाना मुश्किल है कि मदन दास जी हमारे बीच में नहीं हैं। लेकिन मदन दास जी जैसे प्रभावशाली व्यक्तित्व के विचार और मूल्य सदैव हमारा मार्गदर्शन करते रहेंगे।

मैं खुद को सौभाग्यशाली मानता हूं कि मुझे मदन दास जी के साथ वर्षों तक करीब से काम करने का अवसर मिला। मैंने उनकी सादगी और मृदुभाषी स्वभाव को भी बहुत नजदीक से जाना। उनका जीवन बहुत सहज था। वह पूरी तरह से संगठन को समर्पित व्यक्ति थे और मेरे पास भी लंबे समय तक संगठन के कार्यों का दायित्व रहा है। इसलिए अधिकतर समय हमारे बीच की बातचीत संगठन का विस्तार, व्यक्ति निर्माण जैसे पहलुओं पर केंद्रित रहती थी। एक बार मैंने उनसे पूछा कि वह मूल रूप से कहां के रहने वाले हैं। उन्होंने मुझे बताया कि वह तो महाराष्ट्र के सोलापुर के पास के एक गांव से आते हैं, लेकिन उनके पूर्वज गुजरात के थे। वैसे यह उन्हें पता नहीं था कि गुजरात में कहां से थे। मैंने उन्हें बताया कि देवी उपनाम से मेरे एक शिक्षक थे, जो विसनगर के रहने वाले थे। बाद में मदन दास जी विसनगर गए और मेरे गांव वडनगर भी गए। वह मुझसे अधिकतर समय गुजराती में ही बातचीत करते थे।

मदन दास जी धैर्यपूर्वक कार्यकर्ताओं की बातों को सुना करते थे और घंटों तक चली चर्चा को वह बहुत कम वाक्यों में संक्षेप में समेट लेते थे। उनकी एक विशेषता थी कि वह शब्दों से परे जाकर कार्यकर्ता की भावनाओं को बहुत जल्दी समझ लेते थे।

मदन दास जी की जीवन यात्रा दर्शाती है कि कैसे स्वयं को पीछे रखकर और सामान्य कार्यकर्ताओं को जोड़कर बड़ी-बड़ी उपलब्धियां हासिल की जा सकती हैं। उनके पास चार्टर्ड अकाउंटेंट की ट्रेनिंग थी, इसलिए वह चाहते तो आरामदायक जीवन जी सकते थे, लेकिन उनके जीवन का उद्देश्य कुछ और ही था। उन्होंने राष्ट्रनिर्माण को ही अपने जीवन का लक्ष्य बनाया। भारत के युवाओं पर मदन दास जी को अटूट भरोसा था। वह देश भर के युवाओं को आपस में जोड़ने की क्षमता रखते थे। उन्होंने अपने जीवन का लंबा कार्यकाल अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) को मजबूत करने के लिए समर्पित कर दिया।

मदन दास जी अपनी इस यात्रा में यशवंत राव केलकर जी से प्रभावित रहे, जिनके बारे में वह अक्सर बातें किया करते थे। मदन दास जी का हमेशा जोर रहता था कि एबीवीपी के कामों में अधिक से अधिक छात्राओं की भागीदारी हो, और न सिर्फ ये भागीदारी तक सीमित रहे, बल्कि छात्राएं गतिविधियों का नेतृत्व करें। वह अक्सर कहते थे कि जब छात्राएं किसी सामूहिक गतिविधि में शामिल होती हैं तो वह प्रयास और ज्यादा संवेदनशील बन जाता है।

विद्यार्थियों से मदन दास जी का गहरा लगाव था और वह अक्सर छात्रावासों में विद्यार्थियों के बीच घुल-मिल जाते थे। आयु में फर्क होने के बावजूद वह नई पीढ़ी के साथ बहुत सहजता से तालमेल बिठा लेते थे। वह विद्यार्थियों के बीच हमेशा ऐसे काम करते रहे, जैसे जल में कमल। विद्यार्थियों के बीच रहकर भी वह कभी छात्र राजनीति का हिस्सा नहीं बने।
सामाजिक और राजनीतिक जीवन में कई ऐसे लोग हैं, जिनके जीवन को गढ़ने में मदन दास जी की बहुत बड़ी भूमिका रही है। लेकिन मदन दास जी ने कभी यह प्रकट नहीं किया, क्योंकि यह उनके स्वभाव में ही नहीं था।

आजकल लोगों, प्रतिभाओं और कौशल के प्रबंधन के विचार काफी लोकप्रिय हो रहे हैं। मदन दास जी यह बखूबी समझ लेते थे कि किस व्यक्ति में किस तरह का कौशल है और उसकी प्रितभा संगठन के हित में कैसे काम आ सकती है। उनमें यह खासियत थी कि वे लोगों को उनकी क्षमताओं और प्रतिभा के अनुरूप ही दायित्व सौंपते थे। जब भी किसी कार्यकर्ता के पास कोई नया विचार होता था, तो उसकी हमेशा यह इच्छा रहती थी कि वह मदन दास जी के साथ साझा करे। इसकी एक वजह यह थी कि मदन दास जी नए विचारों को सुनने के लिए हमेशा तत्पर रहते थे। उनके साथ काम करने वाले लोग खुद ही प्रेरित होते थे, इस कारण से उनके नेतृत्व में न सिर्फ संगठनों का बहुत तेजी से विकास और विस्तार हुआ, बल्कि संगठन कहीं अधिक प्रभावी और सशक्त बने।

मदन दास जी संपर्क को लेकर बहुत सेलेक्टिव थे। किससे मिलना, कब मिलना और जब मिलूंगा तो उससे क्या बात करना और इसमें कितना समय जाएगा, इन सबकी वह योजना बनाते थे। मदन दास जी के जो प्रवास और कार्यक्रम होते थे, उनमें वह कभी भी कार्यकर्ताओं पर बोझ नहीं बनते थे।

मैं अंतिम समय तक सतत उनके संपर्क में रहा। मैं हाल में जब भी उनको फोन करता था तो वह चार बार पूछने के बाद ही अपनी बीमारी के बारे में बात करते थे। अन्यथा वह हंसकर टाल जाते थे। बीमारी में भी उनके मन में हमेशा यह भाव रहता था कि मैं समाज के लिए, देश के लिए क्या करूं।

मदन दास जी का अकादमिक रिकाॅर्ड काफी शानदार था। जब भी वह कुछ अच्छा पढ़ते थे, तो उसे उस विषय से संबंधित लोगों को भेज देते थे। मुझे अक्सर ऐसी चीजें उनसे प्राप्त होती थीं। अर्थशास्त्र और नीतिगत मामलों की वह बहुत गहरी समझ रखते थे। मदन दास जी ने एक ऐसे भारत की कल्पना की थी, जिसके प्रत्येक नागरिक के लिए आत्मनिर्भरता जीवन की वास्तविकता हो। एक ऐसे समाज का निर्माण हो, जहां सम्मान, सशक्तीकरण और सामूहिक समृद्धि की भावना हो। आज भारत एक के बाद एक क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनता जा रहा है, इसे देखकर उनसे ज्यादा खुश कोई नहीं होता।

आज जब हमारा लोकतंत्र जीवंत है, युवा आत्मविश्वास से भरे हैं और देश उम्मीदों, आशाओं और आकांक्षाओं से भरा है, तब मदन दास देवी जी जैसी विभूतियों को याद करना बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है। उनका पूरा जीवन समाज की सेवा और राष्ट्र के उत्थान के लिए समर्पित रहा।

  • Dheeraj Thakur January 16, 2025

    जय श्री राम.
  • Dheeraj Thakur January 16, 2025

    जय श्री राम
  • Jayanta Kumar Bhadra January 09, 2025

    Jai 🕉
  • ALPESH GAMIT BJP December 24, 2024

    ram ram
  • Chhedilal Mishra December 07, 2024

    Jai shrikrishna
  • कृष्ण सिंह राजपुरोहित भाजपा विधान सभा गुड़ामा लानी November 21, 2024

    जय श्री राम 🚩 वन्दे मातरम् जय भाजपा विजय भाजपा
  • कृष्ण सिंह राजपुरोहित भाजपा विधान सभा गुड़ामा लानी November 19, 2024

    जय मां भारती
  • Jitender Kumar Haryana BJP State President October 14, 2024

    I feel he will be last leader in my life to be followed 🙏
  • Jitender Kumar Haryana BJP State President October 14, 2024

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ایکتاکا مہاکمبھ – ایک نئے دور کا آغاز
February 27, 2025

مقدس شہر پریاگ راج میں منعقدہ مہاکمبھ کامیابی کے ساتھ اختتام پذیر ہو چکا ہے۔ اتحاد کا ایک عظیم الشان مہایگیہ مکمل ہوا۔ جب کسی قوم کا شعور بیدار ہوتا ہے، جب وہ صدیوں کی محکومی کے زنجیروں کو توڑ کر آزادی کی تازہ ہوا میں سانس لیتی ہے، تو وہ ایک نئی توانائی کے ساتھ آگے بڑھتی ہے۔ یہی منظر 13 جنوری سے پریاگ راج میں منعقدہ ایکتا کا مہاکمبھ میں دیکھنے کو ملا۔

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22 جنوری 2024 کو جب ایودھیا میں رام مندر کی پران پرتشتہ (پتھ پوجا) ہوئی، میں نے دیو بھکتی اور دیش بھکتی یعنی دیوتاؤں اور وطن سے عقیدت کی بات کی۔ مہاکمبھ کے دوران دیوی دیوتاؤں، سنتوں، خواتین، بچوں، نوجوانوں، بزرگوں اور تمام طبقوں کے لوگوں کا ایک ساتھ اجتماع ہوا۔ جس دوران ہم نے بھارت کے بیدار شعور کا مشاہدہ کیا۔ یہ ایکتا کا مہاکمبھ تھا، جہاں 140 کروڑ بھارتیوں کے جذبات ایک مقام پر، ایک وقت میں یکجا ہوئے۔

پریاگ راج کی اسی مقدس سرزمین پر شرنگویپور واقع ہے، جو اتحاد، محبت اور ہم آہنگی کی علامت ہے۔ یہ وہی جگہ ہے جہاں بھگوان شری رام اور نشاد راج کی ملاقات ہوئی، جو عقیدت اور خیرسگالی کے سنگم کی علامت بنی۔ آج بھی پریاگ راج ہمیں اسی جذبے سے متاثر کرتا ہے۔

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45 دنوں تک میں نے ملک کے ہر گوشے سے کروڑوں عقیدت مندوں کو سنگم کی جانب بڑھتے دیکھا۔ جذبات کا ایک مسلسل بہاؤ نظر آیا۔ ہر یاتری کا واحد مقصد سنگم میں مقدس ڈبکی لگانا تھا۔ گنگا، جمنا اور سرسوتی کے مقدس میل سے ہر یاتری کے دل میں نیا جوش، توانائی اور اعتماد پیدا ہوا۔

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پریاگ راج میں یہ مہاکمبھ نہ صرف عقیدت کا مرکز تھا بلکہ جدید نظم و نسق، منصوبہ بندی اور پالیسی ماہرین کے لیے بھی ایک تحقیق کا موضوع ہے۔ دنیا میں اس پیمانے پر ایسا کوئی اور اجتماع نہیں ہوتا۔ پوری دنیا نے حیرت سے دیکھا کہ کروڑوں افراد بغیر کسی رسمی دعوت نامے کے، بغیر کسی پیشگی اطلاع کے، خود بخود پریاگ راج پہنچے اور مقدس جل میں ڈبکی لگانے کی روحانی خوشی محسوس کی۔

میں ان چہروں کو نہیں بھول سکتا جنہوں نے مقدس اشنان کے بعد بے پناہ خوشی اور سکون کی روشنی بکھیر دی۔ خواتین، بزرگ، ہمارے معذور بھائی بہن – سبھی کسی نہ کسی طرح سنگم تک پہنچنے میں کامیاب ہوئے۔

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مہاکمبھ میں بھارت کے نوجوانوں کی بڑی تعداد میں شرکت، میرے لیے سب سے خوشی کی بات تھی۔ ان کی موجودگی ایک زبردست پیغام ہے کہ بھارت کا نوجوان اپنے شاندار ثقافتی ورثے کو سنبھالنے اور آگے بڑھانے کی مکمل ذمہ داری محسوس کر رہا ہے۔

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اس مہاکمبھ کے لیے پریاگ راج پہنچنے والوں کی تعداد نے بلاشبہ نئے ریکارڈ بنائے ہیں۔ یہ ایکتا کا مہاکمبھ محض جسمانی موجودگی کا واقعہ نہیں تھا، بلکہ اس میں کروڑوں ہندوستانیوں کے دل و دماغ جذباتی طور پر جڑے ہوئے تھے۔ مقدس جل، جو عقیدت مند اپنے ساتھ لے کر گئے، ملک کے لاکھوں گھروں میں روحانی مسرت کا ذریعہ بنا۔ بہت سے دیہاتوں میں یاتریوں کا استقبال احترام کے ساتھ کیا گیا اور انہیں سماج میں عزت بخشی گئی۔

جو کچھ پچھلے چند ہفتوں میں ہوا، وہ بے مثال ہے اور آئندہ صدیوں کے لیے ایک نئی بنیاد رکھ چکا ہے۔ مہاکمبھ میں جتنے یاتری آئے، وہ توقعات سے کہیں زیادہ تھے۔

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امریکہ کی کل آبادی سے بھی دوگنا افراد اس ایکتا کا مہاکمبھ میں شامل ہوئے!

اگر روحانی علوم کے ماہرین اس اجتماع کے جوش و جذبے کا مطالعہ کریں، تو انہیں نظر آئے گا کہ اپنی وراثت پر فخر کرنے والا بھارت، نئی توانائی کے ساتھ آگے بڑھ رہا ہے۔ مجھے یقین ہے کہ یہ ایک نئے دور کا آغاز ہے، جو ایک نئے بھارت کا مستقبل تحریر کرے گا۔

ہزاروں سالوں سے مہاکمبھ نے بھارت کے قومی شعور کو بیدار رکھا ہے۔ ہر پورن کمبھ پر سنت، عالم، اور دانشور اکٹھا ہو کر معاشرتی حالات پر غور و فکر کرتے اور قوم و سماج کو نئی سمت عطا کرتے ہیں۔ ہر چھ سال بعد اردھ کمبھ میں ان نظریات کا جائزہ لیا جاتا اور 144 سال بعد جب بارہ پورن کمبھ مکمل ہوتے، تو پرانی روایات کا تجزیہ کر کے نئی سمت متعین کی جاتی۔

144 سال بعد، اس مہاکمبھ میں ہمارے سنتوں نے بھارت کے ترقی کے اور سفر کے حوالے سے ایک بار پھر ہمیں ایک نیا پیغام دیا ہے۔ وہ ترقی یافتہ بھارت- وِکست بھارت کا پیغام ہے۔

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اس ایکتا کا مہاکمبھ میں ہر یاتری، چاہے وہ امیر ہو یا غریب، نوجوان ہو یا بزرگ، گاؤں کا ہو یا شہر کا، بھارت میں رہتا ہو یا بیرون ملک، مشرق کا ہو یا مغرب کا، شمال کا ہو یا جنوب کا، کسی بھی ذات، مذہب یا نظریے سے تعلق رکھتا ہو، سب ایک جگہ اکٹھے ہوئے۔ یہ ایک بھارت، شریشٹھ بھارت کے خواب کی حقیقی تصویر تھی، جس نے کروڑوں افراد میں اعتماد کی لہر دوڑا دی۔

مجھے بھگوان شری کرشن کے بچپن کا وہ لمحہ یاد آتا ہے جب انہوں نے اپنی ماں یشودا کو اپنے منہ میں پورا سنسار دکھا دیا تھا۔ اسی طرح، اس مہاکمبھ میں پوری دنیا نے بھارت کی اجتماعی طاقت کی ایک جھلک دیکھی۔ہمیں اب اس خود اعتمادی کے ساتھ آگے بڑھنا چاہیے اور ایک ترقی یافتہ بھارت کی تعمیر کے لئے خود کو وقف کرنا چاہیے۔

اس سے قبل، بھکتی تحریک کے سنتوں نے پورے بھارت میں ہمارے اجتماعی عزم کی طاقت کو پہچانا اور اسے پروان چڑھایا۔ سوامی وویکانند سے لیکر شری اروِندو تک، ہر عظیم مفکر نے ہمیں اجتماعی ارادے کی طاقت کی یاد دلائی۔ یہاں تک کہ مہاتما گاندھی نے بھی آزادی کی تحریک میں اسے محسوس کیا۔اگر آزادی کے بعد اس اجتماعی قوت کو ملکی فلاح و بہبود کے لیے صحیح طریقے سے استعمال کیا جاتا، تو یہ ایک عظیم طاقت بن سکتی تھی۔ بدقسمتی سے ایسا نہیں ہوا۔ لیکن اب، میں یہ دیکھ کر بہت خوش ہوں کہ یہ اجتماعی طاقت ایک ترقی یافتہ بھارت کے لیے متحد ہو رہی ہے۔

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ویدوں سے وویکانند تک، قدیم صحیفوں سے جدید سیٹلائٹ تک، بھارت کی عظیم روایات نے اس ملک کی تشکیل کی ہے۔ایک شہری کی حیثیت سے، میری دعا ہے کہ ہم اپنے بزرگوں اور سنتوں کی یادوں سے نئی تحریک حاصل کریں۔ یہ ایکتا کا مہاکمبھ ہمیں نئے عزائم کے ساتھ آگے بڑھنے کی ترغیب دے۔ ہمیں اتحاد کو اپنا اصول بنانا ہوگا اور یہ سمجھنا ہوگا کہ ملک کی خدمت ہی حقیقی بھکتی ہے۔

کاشی میں اپنی انتخابی مہم کے دوران، میں نے کہا تھا کہ ''ماں گنگا نے مجھے بلایا ہے''۔ یہ محض ایک جذباتی بات نہیں تھی، بلکہ مقدس دریاؤں کی صفائی کی ذمہ داری کا ایک عہد تھا۔پریاگ راج میں گنگا، جمنا اور سرسوتی کے سنگم پر کھڑے ہو کر میرا عزم اور مضبوط ہوا۔ یہ مہاکمبھ ہمیں نہ صرف دریاؤں کی صفائی بلکہ قومی یکجہتی اور ترقی کی راہ پر مسلسل کام کرنے کی تحریک دیتا ہے۔

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پریاگ راج میں گنگا، جمنا اور سرسوتی کے سنگم پر کھڑے ہو کر میرا عزم اور بھی مضبوط ہو گیا۔ ہمارے دریاؤں کی صفائی کا ہماری اپنی زندگیوں سے گہرا تعلق ہے۔ یہ ہماری ذمہ داری ہے کہ ہم اپنی ندیوں کو چاہے چھوٹے یا بڑے، زندگی دینے والی ماؤں کے طور پر تعظیم کریں۔ اس مہاکمبھ نے ہمیں اپنی ندیوں کی صفائی کے لیے کام کرتے رہنے کی ترغیب دی ہے۔

میں جانتا ہوں کہ اتنی بڑی تقریب کا انعقاد کوئی آسان کام نہیں تھا۔ میں ماں گنگا، ماں جمنا اور ماں سرسوتی سے دعا کرتا ہوں کہ اگر ہماری عقیدت میں کوئی کوتاہی ہوئی ہو تو وہ ہمیں معاف کر دیں۔ میں جنتا جناردن، لوگوں کو الوہیت کے مجسم کے طور پر دیکھتا ہوں۔ اگر ان کی خدمت میں ہماری کوششوں میں کوئی کوتاہی رہ گئی ہو تو میں بھی لوگوں سے معافی کا خواستگار ہوں۔

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مہاکمبھ میں کروڑوں لوگ عقیدت کے ساتھ شریک ہوئے۔ ان کی خدمت کرنا بھی ایک ذمہ داری تھی جو اسی جذبے کے ساتھ ادا کی گئی۔ اتر پردیش سے ممبر پارلیمنٹ کے طور پر میں فخر سے کہہ سکتا ہوں کہ یوگی جی کی قیادت میں انتظامیہ اور عوام نے مل کر اس ایکتا کا مہاکمبھ کو کامیاب بنانے کے لیے کام کیا۔ ریاست ہو یا مرکز، کوئی حکمران یا منتظم نہیں تھا، اس کے بجائے، ہر کوئی ایک عقیدت مند سیوک تھا۔ صفائی کے کارکن، پولیس، کشتی والے، ڈرائیور، کھانا پیش کرنے والے لوگ - سب نے انتھک محنت کی۔ بہت سی تکالیف کا سامنا کرنے کے باوجود پریاگ راج کے لوگوں نے جس طرح کھلے دل کے ساتھ یاتریوں کا استقبال کیا وہ خاص طور پر متاثر کن تھا۔ میں ان کا اور اتر پردیش کے لوگوں کا تہہ دل سے شکریہ ادا کرتا ہوں۔

مجھے اپنی قوم کے روشن مستقبل پر ہمیشہ سے غیر متزلزل اعتماد رہا ہے۔ اس مہاکمب کو دیکھنے سے میرا یقین کئی گنا مضبوط ہوا ہے۔

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جس طرح سے 140 کروڑ بھارتیوں نے اس ایکتا کا مہاکمبھ کو عالمی تقریب میں بدل دیا وہ واقعی حیرت انگیز ہے۔ اپنے لوگوں کی لگن، محنت اور کوششوں سے متاثر ہوکر، میں جلد ہی شری سومناتھ کا دورہ کروں گا، جو 12جیوترلنگوں میں سے پہلا ہے، تاکہ انہیں ان اجتماعی قومی کوششوں کا ثمرہ پیش کر سکوں اور ہر بھارتی کیلئے دعا کر سکوں۔


یہ مہاکمبھ مہا شیوراتری پر کامیابی کے ساتھ اختتام پذیر ہوا، لیکن جیسے گنگا کا بہاؤ کبھی نہیں رک سکتا، اسی طرح یہ روحانی طاقت، قومی شعور اور اتحاد آنے والی نسلوں کو ہمیشہ متاثر کرتا رہے گا۔