“Our tribal brothers and sisters took charge of the change and the government extended all possible help”
“Govind Guru University in Godhra and Birsa Munda University in Narmada make for the finest institutions of higher education”
“For the first time, the tribal society has a feeling of increased participation in development and policy-making”
“The development of places of pride for tribals and places of faith will give a lot of impetus to tourism”

भारत माता की जय

भारत माता की जय

भारत माता की जय

आज गुजरात और देश के आदिवासी समाज के लिए, अपने जनजातीय समूह के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण दिन है। अभी थोड़ी देर पहले मैं मानगढ़ धाम में था, और मानगढ़ धाम में गोविंद गुरु सहित हजारों शहीद आदिवासी भाई-बहनों को श्रद्धा-सुमन अर्पण कर, उन्हें नम़न कर आज़ादी के अमृत महोत्सव में आदिवासियों की महान बलिदान गाथा को प्रणाम करने का मुझे अवसर मिला। और अब आपके बीच जांबूघोड़ा में आ गया, और अपना यह जांबूघोड़ा हमारे आदिवासी समाज के महान बलिदानों का साक्षी रहा है। शहीद जोरिया परमेश्वर, रुपसिंह नायक, गलालिया नायक, रजविदा नायक और बाबरिया गल्मा नायक जैसे अमर शहीदों को आज नमन करने का अवसर है। शीश झुकाने का अवसर है। आज जनजातीय समाज, आदिवासी समाज के गौरव से जुड़ी हुई और इस पूरे विस्तार के लिए आरोग्य, शिक्षा, कौशल, विकास ऐसी अनेक महत्वपूर्ण मूलभूत चीजें, उनकी योजना का शिलान्यास और लोकार्पण हो रहा है। गोविंद गुरु यूनिवर्सिटी उनके प्रशासन का जो कैम्पस है, और बहुत ही सुंदर बना है, और इस क्षेत्र में केन्द्रीय विद्यालय बनने के कारण, सेन्ट्रल स्कूल बनने के कारण मेरे आने वाली पीढ़ी इस देश में झंडा लहराये ऐसा काम हम यहां कर रहे है। इन सभी योजनाओं के लिए इतनी विशाल संख्या में आए हुए आप सभी भाइयों-बहनों को बहुत-बहुत बधाई, बहुत बहुत अभिनंदन।

भाइयों-बहनों,

जांबूघोड़ा मेरे लिए कोई नया नहीं है। कई बार आया हूं, और जब भी मैं इस धरती पर आता हूं, तब ऐसा लगता है कि जैसे कोई पुण्य स्थल पर आया हूं। जांबूघोड़ा और पूरे क्षेत्र में जो ‘नाइकड़ा आंदोलन’ ने 1857 की क्रांति में नई ऊर्जा भरने का काम किया था, नई चेतना प्रगट की थी। परमेश्वर जोरिया जी ने इस आंदोलन का विस्तार किया था, और उनके साथ रुपसिंह नायक भी जुड़ गये। और बहुत से लोगों को शायद पता ही ना हो कि 1857 में जिस क्रांति की हम चर्चा करते हैं, उस क्रांति में तात्या टोपे का नाम सबसे ऊपर आता है। तात्या टोपे के साथीदार के रुप में लड़ाई लड़ने वाले इस धरती के वीरबंका के थे।

सीमित संसाधनों होने के बावजूद अद्भुत साहस, मातृभूमि के लिए प्रेम, उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत को हिला दिया था। और बलिदान देने में कभी पीछे भी नहीं रहे। और जिस पेड़ के नीचे वीरों को फांसी दी गई थी, मेरा यह सौभाग्य है कि वहां जाकर मुझे उस पवित्र स्थल के सामने शीश झुकाने का अवसर मिला। 2012 में मैंने वहां एक पुस्तक का विमोचन भी किया था।

साथियों,

गुजरात में बहुत पहले से ही हमने एक महत्वपूर्ण काम शुरु किया। शहीदों के नाम के साथ स्कूलों के नामकरण की परंपरा शुरु की गई। जिससे कि उस स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को, आनेवाली पीढ़ीयों को पता चले कि उनके पूर्वजों ने कैसे पराक्रम किए थे। और इसी सोच के कारण वडेक और दांडियापूरा के स्कूलों के नाम संत जोरिया परमेश्वर और रुपसिंह नायक के नाम के साथ जोड़कर, उन्हें हम अमरत्व दे रहे हैं। आज ये स्कूल नये रंग-रुप, साज-सज्जा के साथ और आधुनिक व्यवस्थाओं के साथ तैयार हो गऐ हैं। और इन स्कूलों में इन दोनों आदिवासी नायकों की भव्य प्रतिमा का आज लोकार्पण का मुझे सौभाग्य मिला। ये स्कूल अब शिक्षा और आज़ादी की लड़ाई में जनजातीय समाज के योगदान, उसके शिक्षण का सहज भाग बन जायेगी।

भाइयों-बहनों,

आप भी जानते होंगे 20-22 साल पहले आपने मुझे जब गुजरात की सेवा करने का मौका दिय़ा, उस जमाने में अपने आदिवासी विस्तारों की क्या दशा थी, जरा याद कीजिए। आज 20-22 साल के युवक-युवतियों को तो पता भी नहीं होगा, कि आप कैसी मुसीबत में जीते थे। और पहले जो लोग दश़क तक सत्ता में बैठे रहे, उन्होंने आदिवासी और बिन आदिवासी विस्तारों के बीच में विकास की बड़ी खाई पैदा कर दी। भेदभाव भर-भरकर भरा था। आदिवासी क्षेत्रों में मूलभूत सुविधाओं का अभाव और हालत तो ऐसे थे कि हमारे आदिवासी विस्तारों में बच्चों को स्कूल जाना हो तो भी परेशानी थी। हमारे ठक्करबापा के आश्रम की थोड़ी-बहुत स्कूलों से गाड़ी चलती थी। खाने-पीने की समस्या थी, कुपोषण की समस्या, हमारी लड़कियां उनका जो 13-14 वर्ष की आयु में शारीरिक विकास होना चाहिए, वे भी बेचारी उससे वंचित रहती थी। इस स्थिति से मुक्ति के लिए सबका प्रयास के भावना से हमने काम को आगे बढ़ाया। और परिवर्तन लाने के लिए उसकी कमान मेरे आदिवासी भाई-बहनों ने संभाली और मेरे कंधे से कंधा मिलाकर वह करके बताया। और आज देखो, आज हज़ारों आदिवासी भाई-बहन, लाखों लोग कितने सारे परिवर्तन का लाभ ले रहे हैं। परंतु एक बात नहीं भूलनी चाहिए कि ये सब कोई एक रात, एक दिन में नहीं आया। उसके लिए बहुत मेहनत करनी पड़ी है। योज़नाएं बनानी पड़ी है, आदिवासी परिवारों ने भी घंटो की जहमत करके, मेरा साथ देकर इस परिवर्तन को धरती पर उतारा है। और तेजी से बदलाव लाने के लिए आदिवासी पट्टे कि बात हो तो प्राइमरी से लेकर सैकेंडरी स्कूल तक लगभग दस हज़ार नए स्कूल बनाए, दस हजार। आप विचार करिए, दर्जनों एकलव्य मॉडल स्कूल, लड़कियों के लिए खास रेसिडेन्सियल स्कूल, आश्रम स्कूलों को आधुनिक बनाया, और हमारी लड़कियां स्कूल में जाए उसके लिए फ्री बस की सुविधा भी दी जिससे हमारी लड़कियां पढ़ें। स्कूलों में पौष्टिक आहार उपलब्ध कराया।

भाइयों-बहनों,

आपको याद होगा कि जून महीने में तेज धूप में मैं और मेरे साथी कन्या केलवणी रथ को लेकर गांव-गांव भटकते थे। गांव-गांव जाते थे, और लड़कियों को पढ़ाने के लिए भिक्षा मांगते थे। हमारे आदिवासी भाइयों-बहनों, उनके क्षेत्र में शिक्षण के लिए अनेक प्रकार की चुनौतीयां थी। आप विचार करो, उमरगांव से अंबाजी इतना बड़ा हमारा आदिवासी पट्टा, यहां भी हमारे आदिवासी युवक-युवतियों को डॉक्टर बनने का मन हो, इंजीनियर बनने का मन हो परंतु साइंस की स्कूल ही ना हो तो कहां नसीब खुलें। हमने उस समस्या का भी समाधान किया और बारहवीं कक्षा तक साइंस की स्कूल शुरु किए। और आज देखो इन दो दशकों में 11 साइंस कॉलेज, 11 कॉमर्स कॉलेज, 23 आर्ट्स कॉलेज और सैकड़ों हॉस्टल खोलें। यहां मेरे आदिवासी युवक-युवतियों की जिदंगी सबसे आगे बढ़े, उसके लिए काम किया, 20-25 साल पहले गुजरात के आदिवासी क्षेत्रों में स्कूलों की भारी कम़ीं थी। और आज दो-दो जनजातीय विश्वविद्यालय हैं। गोधरा में गोविंद गुरु यूनिवर्सिटी और नर्मदा में बिरसा मुंडा विश्वविद्यालय, उच्च शिक्षा के बेहतरीन संस्थान हैं। य़हां उत्तम से उत्तम उच्च शिक्षा के लिए व्यवस्थाऐं, और इन सबका बड़े से बड़े फायदा मेरे आदिवासी समाज की आनेवाली पीढ़ी के लिए हो रहा है। नये कैम्पस बनने के कारण गोविंद गुरु यूनिवर्सिटी में पढ़ने की सुविधा का और भी विस्तार बढ़ेगा, एक प्रकार से अहमदाबाद की स्कील यूनिवर्सिटी, उसका एक कैम्पस, पंचमहल सहित जनजातीय क्षेत्र के युवकों को उसका भी लाभ मिलने वाला है। यह देश का पहला विश्वविद्यालय है, जहां ड्रोन पायलट लाइसेंस देने का शिक्षण शुरु हुआ है। जिससे हमारे आदिवासी युवक-युवतियां ड्रोन चला सके, और आधुनिक दुनिया में प्रवेश कर सके। ‘वनबंधु कल्याण योजना’ ने उसे बीते दशकों में जनजातीय जिलों का सर्वांगीण विकास किया है, और ‘वनबंधु कल्याण योजना’ कि विशेषता यह है कि, क्या चाहिए, कितना चाहिए और कहां चाहिए। वह गांधीनगर से नहीं परंतु गांव में बैठा हुआ मेरे आदिवासी भाई-बहन करते हैं भाइयों।

बीते 14-15 वर्षों में अपने आदिवासी क्षेत्र में इस योजना के अंतर्गत एक लाख करोड़ रूपए से ज्यादा खर्च हुआ है। इस देश के ऐसे कई राज्य हैं, जिनका इतना बजट नहीं होता, उतना बजट आदिवासी विस्तार में खर्च किया जाएगा। यह हमारा प्रेम, भावना, भक्ति आदिवासी समाज के लिए है, यह उसका यह प्रतिबिंब है। गुजरात सरकार ने पक्का किया है कि आनेवाले वर्ष में एक लाख करोड़ रूपए नये इस विस्तार में खर्च करेंगे। आज आदिवासी क्षेत्रों में घर-घर पाइप से पानी पहुंचे, समग्र आदिवासी पट्टे को सूक्ष्म सिंचाई की व्यवस्था हो। नहीं तो पहले तो मुझे पता है कि मैं नया-नया मुख्यमंत्री बना था, तब सी.के विधायक थे उस समय। वह आए तो फरियाद क्या करें, कि हमारे यहां हैंडपंप लगाकर दीजिए। और हैंडपंप मंजूर हो तब साहब ढ़ोल-नगाड़े बजते थे, गांव में ऐसे दिन थे। ये मोदी साहब और यह भूपेन्द्र भाई पाइप से पानी लाने लगे, पाइप से पानी। इतना ही नहीं आदिवासी क्षेत्र में डेरी का विकास, इस पंचमहल की डेरी को पूछता भी नहीं था, यह मेरे जेठाभाई यहां बैठे हैं, अब हमारे डेरी का विकास भी अमूल के साथ स्पर्धा करे, ऐसा विकास हो रहा है। हमारी जनजातीय बहनों का सशक्तिकरण, आवक बढ़े, उसके लिए सखीमंडलों की रचना और इन सखीमंडलों को ज्यादा से ज्यादा बैंको से पैसा मिले, उनका जो उत्पादन हो उसकी खरीदी हो उसके लिए भी संपूर्ण व्यवस्था की। और जिस तरह गुजरात में तेज गति से औद्योगीकरण चल रहा है, उसका लाभ भी मेरे आदिवासी युवा भाई-बहनों को मिले। आज आप हालोल-कालोल जाओ, कोई कारखाना नहीं होगा कि जिसमें आधे से ज्यादा काम करने वाले मेरे पंचमहल के आदिवासी युवक-युवतीं ना हो। यह काम हमने करके दिखाया है। नहीं तो हमारा दाहोद, हमारे आदिवासी भाई-बहन कहां काम करते हो, तो कहते थे कच्छ-काठीयावाड़ के अंदर रोड का डामर का काम करते हैं। और आज कारखानें में काम कर गुजरात की प्रगति में भागीदार बन रहे हैं। हम आधुनिक ट्रेनिंग सेंटर खोल रहे हैं, वोकेशनल सेेंटर, आईटीआई, किसान विकास केन्द्र उसके माध्यम से 18 लाख आदिवासी युवाओं को ट्रेनिंग और प्लेसमेंट दिया जा रहा है। मेरे आदिवासी भाई-बहनों 20-25 साल पहले इन सब चीजों की चिंता पहले की सरकारों को नहीं थी। और आप को पता है ना भाई उमरगांव से अंबाजी और उसमें भी डांग के आसपास के पट्टे में ज्यादा सिकलसेल की बीमारी पीढ़ी दर पीढ़ी आये, पांच-पांच पीढ़ी से घर में सिकलसेल की बीमारी हो इसे कौन दूर करे भाई। हमने बीड़ा उठाया है। पूरे देश में से इस सिकलसेल को कैसे खत्म किया जाए, उसके लिए रिसर्च हो, वैज्ञानिकों से मिले, पैसा खर्च किया, ऐसा पीछे लग गया हूं कि आप सबके आशीर्वाद से जरुर कोई रास्ता निकलेगा। अपने जनजातीय विस्तार में छ़ोटे-बड़े दवाखानें, अब तो वेलनेस सेंटर, हमारे मेडिकल कॉलेज, अब हमारी लड़कियां नर्सिंग में जाती हैं। बीच में दाहोद में आदिवासी युवतियों से मिला था, मैंने कहा आगे जो बहनें पढ़कर गई हैं तो उन्होंने कहा कि उन्हें तो विदेशों में काम मिल गया है। अब नर्सिंग के काम में भी विदेश में जाती हैं।

मेरे आदिवासी युवक-युवतियां दुनिया में जगह बना रहे हैं। भाइयों-बहनों ये जो नरेन्द्र-भूपेन्द्र की डबल इंजन की सरकार है ना उसने 1400 से ज्यादा हेल्थ-वेलनेस सेंटर मेरे आदिवासी विस्तार में खड़े किए है। अरे पहले तो, छोटी-छोटी बीमारियों के लिए भी शहरों तक के चक्कर काटने पड़ते थे। फूटपाथ पर रात गुजारनी पड़ती थी, और दवा मिले तो मिले नहीं तो खाली हाथ घर वापस आना पड़ता था। हम यह स्थिति बदल रहे हैं भाइयों। अब तो पंचमहल–गोधरा उनकी खुद की मेडिकल कॉलेज, यहीं हमारे लड़के डॉक्टर बनेंगे भाई, और दूसरा मैं तो मातृभाषा में पढ़ाने वाला हूं। अब गरीब मां-बाप का पुत्र भी खुद की भाषा में पढ़कर डॉक्टर, इंजीनियर बन सकेगा, अंग्रेजी ना आती हो तो भी उसका भविष्य खराब नहीं होगा। गोधरा मेडिकल कॉलेज के नये बिल्डिंग का काम भी तेज गति से चल रहा है। इससे दाहोद, पूरा साबरकांठा का पट्टा, बनासकांठा का पट्टा, वलसाड का पट्टा मेडिकल कॉलेज के लिए एक पूरा पट्टा उमरगांव से अंबाजी तक बन जायेगा।

भाइयों-बहनों,

हम सभी के प्रयासों से आज आदिवासी जिलों में गांवों तक और अपनी झोपड़ी हो, जंगल के कायदे का पालन करके सड़क कैसे बने, हमारे आदिवासी विस्तार के अंतिम छ़ोर के घर तक 24 घंटे बिजली कैसे मिले, उसके लिए जह़मत उठाई है और उसका फल आज हम सभी को देखने को मिल रहा है।

भाइयों-बहनों,

कितने सालों पहले आपको पता होगा, जब मैंने 24 घंटे बिजली की शुरुआत की तब वोट लेना होता तो मैं क्या करता, अहमदाबाद, सूरत, राजकोट, वड़ोदरा वहां यह सब किया होता, परंतु भाइयो-बहनों मेरी तो भावना मेरे आदिवासी भाइयों के लिए है और 24 घंटे बिजली देने का पहला काम अपने गुजरात में डांग जिले में हुआ था। मेरे आदिवासी भाइयों-बहनों के आशीर्वाद के साथ हमने काम को आगे किया और पूरे गुजरात में देखते ही देखते यह काम पूरा हो गया। और उसके कारण आदिवासी विस्तारों में उद्योग आने लगें, बच्चों को आधुनिक शिक्षा मिली और जो पहले गोल्डन कॉरिडोर की चर्चा होती थी, उसके साथ-साथ ट्वीन सिटी का विकास किया जा रहा है। अब तो पंचमहल, दाहोद को दूर नहीं रहने दिया। वडोदरा, हालोल-कालोल एक हो गए। ऐसा लगता है कि पंचमहल के दरवाजें पर शहर आ गया है।

साथियों,

अपने देश में एक बहुत बड़ा आदिवासी समाज, सदियों से था, यह आदिवासी समाज भूपेन्द्र भाई की सरकार बनी, उसके बाद आया, नरेन्द्र भाई की सरकार बनी, उसके बाद आया, भगवान राम थे, तब आदिवासी थे कि नहीं थे भाई, शबरी माता को याद करते हैं की नहीं करते। यह आदिवासी समाज आदिकाल से अपने यहां है। परंतु आपको आश्चर्य होगा कि आज़ादी के इतने सालों के बाद भी जब तक भाजपा की सरकार दिल्ली में नहीं बनीं, अटल जी प्रधानमंत्री नहीं बने, तब तक आदिवासियों के लिए कोई मंत्रालय ही नहीं था, कोई मंत्री भी नहीं था, कोई बजट भी नहीं था। यह भाजपा के आदिवासियों के लिए प्रेम के कारण देश में अलग आदिवासी मंत्रालय बना, मिनिस्ट्री बनी, मंत्री बने। और आदिवासियों के कल्याण के लिए पैसे खर्च करना शुरु हुआ। भाजपा की सरकार ने ‘वनधन’ जैसी योजनाएं बनाई। जंगलों में जो पैदा होता है, वह भी भारत की महामूली है, हमारे आदिवासियों की संपत्ति है, उसके लिए हमने काम किया। विचार करो अंग्रेजों के जमाने में ऐसा एक काला कानून था, जिससे आदिवासियों का दम घुटता था। ऐसा काला कानून था कि आप बांस नहीं काट सकते थे। बांस पेड़ है, और पेड़ काटो तो जेल होगी, साहब मैंने कानून ही बदल दिया। मैंने कहा बांस वह पेड़ नहीं है, वह तो घास का एक प्रकार है। और मेरा आदिवासी भाई बांस उगा भी सकता है और उसे काट भी सकता है और बेच भी सकता है। और मेरे आदिवासी भाई-बहन तो बास से ऐसी अच्छी-अच्छी चीजें बनाते हैं जिसके कारण वह कमाते हैं। 80 से ज्यादा वन उपज आदिवासियों से खरीदकर एमएसपी देने का काम हमने किया है। भाजपा की सरकार ने आदिवासी का गौरव बढ़े, उसे महत्व देकर उसका जीवन आसान बने, वह सम्मानपूर्वक जिए, उसके लिए अनेक प्रकल्प लिए हैं।

भाइयों-बहनों,

पहली बार जनजातीय समाज उनके विकास के लिए उन्हें नीति-निर्धारण में भागीदार बनाने का काम किया है। और उसके कारण आदिवासी समाज आज पैर पर खड़े रहकर पूरे ताकत के साथ पूरे गुजरात को दौड़ाने का काम कर रहा है। हमारी सरकार ने निर्णय लिया है कि हर साल हमारे आदिवासियों के महापुरुष हमारे भगवान, भगवान बिरसा मुंडा के जन्मदिन और इस 15 नवम्बर को उनका जन्मदिन आयेगा, पूरे देश में पहली बार हमने यह तय किया कि 15 नवंबर को बिरसा मुंडा के जन्मदिन पर जनजातीय गौरव दिन मनाया जायेगा। और पूरे देश को पता चले कि हमारा जनजातीय समाज वह कितना आत्मसम्मान वाला है, कितना साहसिक है, वीर है, बलिदानी है, प्रकृति की रक्षा करनेवाला है। हिन्दुस्तान के लोगों को पता चलें उसके लिए हमने निर्णय लिया है। यह डबल इंजन की सरकार का निरंतर प्रयास है कि मेरा गरीब, दलित, वंचित, पिछड़े वर्ग, आदिवासी भाई-बहन हो उसकी कमाई भी बढ़े, और इसलिए हमारी कोशिश है युवाओं को पढ़ाई, कमाई, किसानों को सिंचाई और बुजुर्गों को दवाई इसमें कही भी कोई कमी नहीं रहनी चाहिए। और इसलिए पढ़ाई, कमाई, सिंचाई, दवाई उसके ऊपर हमने ध्यान दिया है। 100 साल में सबसे बड़ा संकट कोरोना का आया, कितनी बड़ी महामारी आई और उसमें जो उस समय जो अंधश्रद्धा में फंस जाये तो जी ही न सके। मेरे आदिवासी भाइयों की हमने मदद की, उन तक मुफ्त में वैक्सीन पहुंचाई और घर-घर टीकाकरण हुआ। हमने मेरे आदिवासी भाई-बहनों की जिंदगी बचाईं, और मेरे आदिवासी के घर में चूल्हा जलता रहे, शाम को संतान भूखे न सो जाए, उसके लिए 80 करोड़ भाइयों-बहनों को बीते ढ़ाई साल से अनाज मुफ्त में दे रहे हैं। हमारा गरीब परिवार अच्छे से अच्छा इलाज करवा सके, बीमारी आए तो घर उसके चक्कर में ना फंस जाये, उसके लिए पांच लाख रूपए तक का मुफ्त इलाज, पांच लाख रूपए हर साल एक कुटुंब को, कोई बीमारी आए, यानि कि आप 40 साल जीते हैं तो 40 गुणा। लेकिन मैं चाहता हूं कि आपको बीमारी न हो, परंतु अगर होती है, तो हम बैठे हैं भाइयों। गर्भावस्था में मेरी माताओं-बहनों को बैंक द्वारा सीधा पैसा मिले, जिससे मेरी माताओं-बहनों को गर्भावस्था में अच्छा खाना मिले, तो उसके पेट में जो संतान हो उसका भी शारीरिक विकास हो, और अपंग बच्चा पैदा ना हो, कुटुंब के लिए, समाज के लिए चिंता का विषय ना बने।

छोटे़ किसानो को खाद, बिजली और उसके बिल में भी छूट, उसके लिए भी हमने चिंता की भाइयों। ‘किसान सम्मान निधि’ हर साल तीन बार दो-दो हजार रूपए, यह मेरे आदिवासी के खाते हमने पहुंचाएं हैं। और उसके कारण क्योंकि जमीनें पथरीली होने कारण बेचारा मकई या बाजरें की खेती करता है, वह आज अच्छी खेती कर सके, उसकी चिंता हमने की है। पूरी दुनिया में खाद महंगी हो गई है, एक थैली खाद दो हज़ार रूपए में दुनिया में बिक रही है, अपने भारत में किसानों को, सरकार पूरा बोझ वहन करती है, मात्र 260 रुपये में हम खाद की थैली देते हैं। लाते हैं, दो हजार में देते हैं 260 में। क्योंकि, खेत में मेरे आदिवासी, गरीब़ किसानों को तकलीफ ना हो। आज मेरे गरीब़ का पक्का मकान बने, टॉयलेट बने, गैस कनेक्शन मिले, पानी का कनेक्शन मिले, ऐसी सुविधा के साथ समाज में जिसकी उपेक्षा होती थी, उसके जीवन को बनाने का काम हम कर रहे हैं। जिससे समाज आगे बढ़े। हमारे चांपानेर का विकास हो, पावागढ़ का विकास हो, सोमनाथ का विकास हो, वहां हल्दीघाटी का विकास हो। अरे कितने ही उदाहरण है, जिसमें हमारे आदिवासी समाज की आस्था थी, उसके विकास के लिए वीर-वीरांगना को महत्व देने के लिए हम काम कर रहे हैं। हमारी पावागढवाली काली मां। हमारे भाइयों कितने सारे पावागढ़ जाते हैं, शिश झुकाने जाते हैं, परंतु सिर पर एक कलंक लेकर आते कि ऊपर ध्वजा नहीं, शिखर नहीं। 500 वर्ष तक किसी ने मेरी काली मां की चिंता नहीं की, ये आपने हमें आशीर्वाद दिया। आज फर-फर महाकाली मां का झंडा लहरा रहा है। आप शामलाजी जाओ तो मेरे कालिया भगवान, मेरे आदिवासियों के देवता कालिया को कोई पूछने वाला नहीं था। आज उसका पूरा पुनर्निर्माण हो गया है। आप उन्नई माता जाओ, उसका विकास हो गया है, मां अंबा के धाम जाओ। यह सब मेरे आदिवासी के विस्तार, उसमें यह मेरी काली माता। मैंने देखा कि मेरे इस विकास करने से एक-एक लाख लोग जाते हैं, ऊपर चढ़ते है, उधर सापुतारा का विकास, इस तरफ स्टैचू ऑफ यूनिटी का विकास, यह समग्र विस्तार आदिवासियों को बड़ी ताकत देने वाला है। पूरी दुनिया उनके ऊपर निर्भर रहे, ऐसी स्थिति मैं पैदा करने वाला हूं।

भाइयों-बहनों,

रोजगार देकर सशक्त करने का काम कर रहा हूं। पंचमहल वैसे भी पर्यटन की भूमि है। चांपानेर, पावागढ़ अपनी पुरातन वास्तुकला आर्किटेक्चर उसके लिए मश़हूर है। और सरकार का प्रयास है कि आज यह विश्व धरोहर और हमारा इस जांबूघोड़ा में वन्यजीवन देखने के लिए लोग आए, हमारी हथिनी माता वॉटरफॉल पर्यटन का आकर्षण बनें, हमारी धनपूरी में इको टूरिज्म और पास में हमारा कड़ा डैम। मेरी धनेश्वरी माता, जंड हनुमान जी। अब मुझे कहो क्या नहीं है भाई। और आप के रग-रग को जानता आपके बीच में रहा, इसलिए मुझे पता है इन सब का विकास कैसे किया जाए।

भाइयों-बहनों,

टूरिज्म का विकास करना है, रोज़गार की संभावनाएं बढ़ानी है, हमारे जनजातीय गौरव के स्थानों का विकास करना है, ज्यादा से ज्यादा आय के साधन बढ़े, उसकी चिंता करनी है। और यह डबल इंजन की सरकार नरेन्द्र-भूपेन्द्र की सरकार, कंधे से कंधा मिलाकर आने वाले उज्ज्वल भविष्य के लिए काम कर रही है। उसका कारण यह है कि हमारी नियत साफ है, नीति साफ है। ईमानदारी से प्रयास करने वाले लोग हैं हम और इसलिए भाइयों-बहनों जिस गति से काम बढ़ा है, उसे रुकने नहीं देना, पूरे सुरक्षा कवच के साथ आगे बढ़ाना है। और इतनी बड़ी संख्या में माता-बहनें आशीर्वाद देने आई हो, तब रक्षा कवच की चिंता है ही नहीं। जिसे इतनी सारी माता-बहनों का आशीर्वाद मिलें। हम साथ मिलकर उमरगांव से अंबाजी, मेरा आदिवासी पट्टा हो, कि वलसाड से लेकर मुंद्रा तक मेरा मछुवारों का क्षेत्र हो या फिर मेरा शहरी विस्तार हो। हमें समग्र गुजरात का विकास करना है, भारत के विकास के लिए गुजरात का विकास करना है। और ऐसे वीर शहीदों को नम़न कर उनसे प्रेरणा लेकर आप सभी आगे बढ़े, यहीं शुभकामनाएं।

भारत माता की जय।

भारत माता की जय।

भारत माता की जय।

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Text of PM Modi's address at the Parliament of Guyana
November 21, 2024

Hon’ble Speaker, मंज़ूर नादिर जी,
Hon’ble Prime Minister,मार्क एंथनी फिलिप्स जी,
Hon’ble, वाइस प्रेसिडेंट भरत जगदेव जी,
Hon’ble Leader of the Opposition,
Hon’ble Ministers,
Members of the Parliament,
Hon’ble The चांसलर ऑफ द ज्यूडिशियरी,
अन्य महानुभाव,
देवियों और सज्जनों,

गयाना की इस ऐतिहासिक पार्लियामेंट में, आप सभी ने मुझे अपने बीच आने के लिए निमंत्रित किया, मैं आपका बहुत-बहुत आभारी हूं। कल ही गयाना ने मुझे अपना सर्वोच्च सम्मान दिया है। मैं इस सम्मान के लिए भी आप सभी का, गयाना के हर नागरिक का हृदय से आभार व्यक्त करता हूं। गयाना का हर नागरिक मेरे लिए ‘स्टार बाई’ है। यहां के सभी नागरिकों को धन्यवाद! ये सम्मान मैं भारत के प्रत्येक नागरिक को समर्पित करता हूं।

साथियों,

भारत और गयाना का नाता बहुत गहरा है। ये रिश्ता, मिट्टी का है, पसीने का है,परिश्रम का है करीब 180 साल पहले, किसी भारतीय का पहली बार गयाना की धरती पर कदम पड़ा था। उसके बाद दुख में,सुख में,कोई भी परिस्थिति हो, भारत और गयाना का रिश्ता, आत्मीयता से भरा रहा है। India Arrival Monument इसी आत्मीय जुड़ाव का प्रतीक है। अब से कुछ देर बाद, मैं वहां जाने वाला हूं,

साथियों,

आज मैं भारत के प्रधानमंत्री के रूप में आपके बीच हूं, लेकिन 24 साल पहले एक जिज्ञासु के रूप में मुझे इस खूबसूरत देश में आने का अवसर मिला था। आमतौर पर लोग ऐसे देशों में जाना पसंद करते हैं, जहां तामझाम हो, चकाचौंध हो। लेकिन मुझे गयाना की विरासत को, यहां के इतिहास को जानना था,समझना था, आज भी गयाना में कई लोग मिल जाएंगे, जिन्हें मुझसे हुई मुलाकातें याद होंगीं, मेरी तब की यात्रा से बहुत सी यादें जुड़ी हुई हैं, यहां क्रिकेट का पैशन, यहां का गीत-संगीत, और जो बात मैं कभी नहीं भूल सकता, वो है चटनी, चटनी भारत की हो या फिर गयाना की, वाकई कमाल की होती है,

साथियों,

बहुत कम ऐसा होता है, जब आप किसी दूसरे देश में जाएं,और वहां का इतिहास आपको अपने देश के इतिहास जैसा लगे,पिछले दो-ढाई सौ साल में भारत और गयाना ने एक जैसी गुलामी देखी, एक जैसा संघर्ष देखा, दोनों ही देशों में गुलामी से मुक्ति की एक जैसी ही छटपटाहट भी थी, आजादी की लड़ाई में यहां भी,औऱ वहां भी, कितने ही लोगों ने अपना जीवन समर्पित कर दिया, यहां गांधी जी के करीबी सी एफ एंड्रूज हों, ईस्ट इंडियन एसोसिएशन के अध्यक्ष जंग बहादुर सिंह हों, सभी ने गुलामी से मुक्ति की ये लड़ाई मिलकर लड़ी,आजादी पाई। औऱ आज हम दोनों ही देश,दुनिया में डेमोक्रेसी को मज़बूत कर रहे हैं। इसलिए आज गयाना की संसद में, मैं आप सभी का,140 करोड़ भारतवासियों की तरफ से अभिनंदन करता हूं, मैं गयाना संसद के हर प्रतिनिधि को बधाई देता हूं। गयाना में डेमोक्रेसी को मजबूत करने के लिए आपका हर प्रयास, दुनिया के विकास को मजबूत कर रहा है।

साथियों,

डेमोक्रेसी को मजबूत बनाने के प्रयासों के बीच, हमें आज वैश्विक परिस्थितियों पर भी लगातार नजर ऱखनी है। जब भारत और गयाना आजाद हुए थे, तो दुनिया के सामने अलग तरह की चुनौतियां थीं। आज 21वीं सदी की दुनिया के सामने, अलग तरह की चुनौतियां हैं।
दूसरे विश्व युद्ध के बाद बनी व्यवस्थाएं और संस्थाएं,ध्वस्त हो रही हैं, कोरोना के बाद जहां एक नए वर्ल्ड ऑर्डर की तरफ बढ़ना था, दुनिया दूसरी ही चीजों में उलझ गई, इन परिस्थितियों में,आज विश्व के सामने, आगे बढ़ने का सबसे मजबूत मंत्र है-"Democracy First- Humanity First” "Democracy First की भावना हमें सिखाती है कि सबको साथ लेकर चलो,सबको साथ लेकर सबके विकास में सहभागी बनो। Humanity First” की भावना हमारे निर्णयों की दिशा तय करती है, जब हम Humanity First को अपने निर्णयों का आधार बनाते हैं, तो नतीजे भी मानवता का हित करने वाले होते हैं।

साथियों,

हमारी डेमोक्रेटिक वैल्यूज इतनी मजबूत हैं कि विकास के रास्ते पर चलते हुए हर उतार-चढ़ाव में हमारा संबल बनती हैं। एक इंक्लूसिव सोसायटी के निर्माण में डेमोक्रेसी से बड़ा कोई माध्यम नहीं। नागरिकों का कोई भी मत-पंथ हो, उसका कोई भी बैकग्राउंड हो, डेमोक्रेसी हर नागरिक को उसके अधिकारों की रक्षा की,उसके उज्जवल भविष्य की गारंटी देती है। और हम दोनों देशों ने मिलकर दिखाया है कि डेमोक्रेसी सिर्फ एक कानून नहीं है,सिर्फ एक व्यवस्था नहीं है, हमने दिखाया है कि डेमोक्रेसी हमारे DNA में है, हमारे विजन में है, हमारे आचार-व्यवहार में है।

साथियों,

हमारी ह्यूमन सेंट्रिक अप्रोच,हमें सिखाती है कि हर देश,हर देश के नागरिक उतने ही अहम हैं, इसलिए, जब विश्व को एकजुट करने की बात आई, तब भारत ने अपनी G-20 प्रेसीडेंसी के दौरान One Earth, One Family, One Future का मंत्र दिया। जब कोरोना का संकट आया, पूरी मानवता के सामने चुनौती आई, तब भारत ने One Earth, One Health का संदेश दिया। जब क्लाइमेट से जुड़े challenges में हर देश के प्रयासों को जोड़ना था, तब भारत ने वन वर्ल्ड, वन सन, वन ग्रिड का विजन रखा, जब दुनिया को प्राकृतिक आपदाओं से बचाने के लिए सामूहिक प्रयास जरूरी हुए, तब भारत ने CDRI यानि कोएलिशन फॉर डिज़ास्टर रज़ीलिएंट इंफ्रास्ट्रक्चर का initiative लिया। जब दुनिया में pro-planet people का एक बड़ा नेटवर्क तैयार करना था, तब भारत ने मिशन LiFE जैसा एक global movement शुरु किया,

साथियों,

"Democracy First- Humanity First” की इसी भावना पर चलते हुए, आज भारत विश्वबंधु के रूप में विश्व के प्रति अपना कर्तव्य निभा रहा है। दुनिया के किसी भी देश में कोई भी संकट हो, हमारा ईमानदार प्रयास होता है कि हम फर्स्ट रिस्पॉन्डर बनकर वहां पहुंचे। आपने कोरोना का वो दौर देखा है, जब हर देश अपने-अपने बचाव में ही जुटा था। तब भारत ने दुनिया के डेढ़ सौ से अधिक देशों के साथ दवाएं और वैक्सीन्स शेयर कीं। मुझे संतोष है कि भारत, उस मुश्किल दौर में गयाना की जनता को भी मदद पहुंचा सका। दुनिया में जहां-जहां युद्ध की स्थिति आई,भारत राहत और बचाव के लिए आगे आया। श्रीलंका हो, मालदीव हो, जिन भी देशों में संकट आया, भारत ने आगे बढ़कर बिना स्वार्थ के मदद की, नेपाल से लेकर तुर्की और सीरिया तक, जहां-जहां भूकंप आए, भारत सबसे पहले पहुंचा है। यही तो हमारे संस्कार हैं, हम कभी भी स्वार्थ के साथ आगे नहीं बढ़े, हम कभी भी विस्तारवाद की भावना से आगे नहीं बढ़े। हम Resources पर कब्जे की, Resources को हड़पने की भावना से हमेशा दूर रहे हैं। मैं मानता हूं,स्पेस हो,Sea हो, ये यूनीवर्सल कन्फ्लिक्ट के नहीं बल्कि यूनिवर्सल को-ऑपरेशन के विषय होने चाहिए। दुनिया के लिए भी ये समय,Conflict का नहीं है, ये समय, Conflict पैदा करने वाली Conditions को पहचानने और उनको दूर करने का है। आज टेरेरिज्म, ड्रग्स, सायबर क्राइम, ऐसी कितनी ही चुनौतियां हैं, जिनसे मुकाबला करके ही हम अपनी आने वाली पीढ़ियों का भविष्य संवार पाएंगे। और ये तभी संभव है, जब हम Democracy First- Humanity First को सेंटर स्टेज देंगे।

साथियों,

भारत ने हमेशा principles के आधार पर, trust और transparency के आधार पर ही अपनी बात की है। एक भी देश, एक भी रीजन पीछे रह गया, तो हमारे global goals कभी हासिल नहीं हो पाएंगे। तभी भारत कहता है – Every Nation Matters ! इसलिए भारत, आयलैंड नेशन्स को Small Island Nations नहीं बल्कि Large ओशिन कंट्रीज़ मानता है। इसी भाव के तहत हमने इंडियन ओशन से जुड़े आयलैंड देशों के लिए सागर Platform बनाया। हमने पैसिफिक ओशन के देशों को जोड़ने के लिए भी विशेष फोरम बनाया है। इसी नेक नीयत से भारत ने जी-20 की प्रेसिडेंसी के दौरान अफ्रीकन यूनियन को जी-20 में शामिल कराकर अपना कर्तव्य निभाया।

साथियों,

आज भारत, हर तरह से वैश्विक विकास के पक्ष में खड़ा है,शांति के पक्ष में खड़ा है, इसी भावना के साथ आज भारत, ग्लोबल साउथ की भी आवाज बना है। भारत का मत है कि ग्लोबल साउथ ने अतीत में बहुत कुछ भुगता है। हमने अतीत में अपने स्वभाव औऱ संस्कारों के मुताबिक प्रकृति को सुरक्षित रखते हुए प्रगति की। लेकिन कई देशों ने Environment को नुकसान पहुंचाते हुए अपना विकास किया। आज क्लाइमेट चेंज की सबसे बड़ी कीमत, ग्लोबल साउथ के देशों को चुकानी पड़ रही है। इस असंतुलन से दुनिया को निकालना बहुत आवश्यक है।

साथियों,

भारत हो, गयाना हो, हमारी भी विकास की आकांक्षाएं हैं, हमारे सामने अपने लोगों के लिए बेहतर जीवन देने के सपने हैं। इसके लिए ग्लोबल साउथ की एकजुट आवाज़ बहुत ज़रूरी है। ये समय ग्लोबल साउथ के देशों की Awakening का समय है। ये समय हमें एक Opportunity दे रहा है कि हम एक साथ मिलकर एक नया ग्लोबल ऑर्डर बनाएं। और मैं इसमें गयाना की,आप सभी जनप्रतिनिधियों की भी बड़ी भूमिका देख रहा हूं।

साथियों,

यहां अनेक women members मौजूद हैं। दुनिया के फ्यूचर को, फ्यूचर ग्रोथ को, प्रभावित करने वाला एक बहुत बड़ा फैक्टर दुनिया की आधी आबादी है। बीती सदियों में महिलाओं को Global growth में कंट्रीब्यूट करने का पूरा मौका नहीं मिल पाया। इसके कई कारण रहे हैं। ये किसी एक देश की नहीं,सिर्फ ग्लोबल साउथ की नहीं,बल्कि ये पूरी दुनिया की कहानी है।
लेकिन 21st सेंचुरी में, global prosperity सुनिश्चित करने में महिलाओं की बहुत बड़ी भूमिका होने वाली है। इसलिए, अपनी G-20 प्रेसीडेंसी के दौरान, भारत ने Women Led Development को एक बड़ा एजेंडा बनाया था।

साथियों,

भारत में हमने हर सेक्टर में, हर स्तर पर, लीडरशिप की भूमिका देने का एक बड़ा अभियान चलाया है। भारत में हर सेक्टर में आज महिलाएं आगे आ रही हैं। पूरी दुनिया में जितने पायलट्स हैं, उनमें से सिर्फ 5 परसेंट महिलाएं हैं। जबकि भारत में जितने पायलट्स हैं, उनमें से 15 परसेंट महिलाएं हैं। भारत में बड़ी संख्या में फाइटर पायलट्स महिलाएं हैं। दुनिया के विकसित देशों में भी साइंस, टेक्नॉलॉजी, इंजीनियरिंग, मैथ्स यानि STEM graduates में 30-35 परसेंट ही women हैं। भारत में ये संख्या फोर्टी परसेंट से भी ऊपर पहुंच चुकी है। आज भारत के बड़े-बड़े स्पेस मिशन की कमान महिला वैज्ञानिक संभाल रही हैं। आपको ये जानकर भी खुशी होगी कि भारत ने अपनी पार्लियामेंट में महिलाओं को रिजर्वेशन देने का भी कानून पास किया है। आज भारत में डेमोक्रेटिक गवर्नेंस के अलग-अलग लेवल्स पर महिलाओं का प्रतिनिधित्व है। हमारे यहां लोकल लेवल पर पंचायती राज है, लोकल बॉड़ीज़ हैं। हमारे पंचायती राज सिस्टम में 14 लाख से ज्यादा यानि One point four five मिलियन Elected Representatives, महिलाएं हैं। आप कल्पना कर सकते हैं, गयाना की कुल आबादी से भी करीब-करीब दोगुनी आबादी में हमारे यहां महिलाएं लोकल गवर्नेंट को री-प्रजेंट कर रही हैं।

साथियों,

गयाना Latin America के विशाल महाद्वीप का Gateway है। आप भारत और इस विशाल महाद्वीप के बीच अवसरों और संभावनाओं का एक ब्रिज बन सकते हैं। हम एक साथ मिलकर, भारत और Caricom की Partnership को और बेहतर बना सकते हैं। कल ही गयाना में India-Caricom Summit का आयोजन हुआ है। हमने अपनी साझेदारी के हर पहलू को और मजबूत करने का फैसला लिया है।

साथियों,

गयाना के विकास के लिए भी भारत हर संभव सहयोग दे रहा है। यहां के इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश हो, यहां की कैपेसिटी बिल्डिंग में निवेश हो भारत और गयाना मिलकर काम कर रहे हैं। भारत द्वारा दी गई ferry हो, एयरक्राफ्ट हों, ये आज गयाना के बहुत काम आ रहे हैं। रीन्युएबल एनर्जी के सेक्टर में, सोलर पावर के क्षेत्र में भी भारत बड़ी मदद कर रहा है। आपने t-20 क्रिकेट वर्ल्ड कप का शानदार आयोजन किया है। भारत को खुशी है कि स्टेडियम के निर्माण में हम भी सहयोग दे पाए।

साथियों,

डवलपमेंट से जुड़ी हमारी ये पार्टनरशिप अब नए दौर में प्रवेश कर रही है। भारत की Energy डिमांड तेज़ी से बढ़ रही हैं, और भारत अपने Sources को Diversify भी कर रहा है। इसमें गयाना को हम एक महत्वपूर्ण Energy Source के रूप में देख रहे हैं। हमारे Businesses, गयाना में और अधिक Invest करें, इसके लिए भी हम निरंतर प्रयास कर रहे हैं।

साथियों,

आप सभी ये भी जानते हैं, भारत के पास एक बहुत बड़ी Youth Capital है। भारत में Quality Education और Skill Development Ecosystem है। भारत को, गयाना के ज्यादा से ज्यादा Students को Host करने में खुशी होगी। मैं आज गयाना की संसद के माध्यम से,गयाना के युवाओं को, भारतीय इनोवेटर्स और वैज्ञानिकों के साथ मिलकर काम करने के लिए भी आमंत्रित करता हूँ। Collaborate Globally And Act Locally, हम अपने युवाओं को इसके लिए Inspire कर सकते हैं। हम Creative Collaboration के जरिए Global Challenges के Solutions ढूंढ सकते हैं।

साथियों,

गयाना के महान सपूत श्री छेदी जगन ने कहा था, हमें अतीत से सबक लेते हुए अपना वर्तमान सुधारना होगा और भविष्य की मजबूत नींव तैयार करनी होगी। हम दोनों देशों का साझा अतीत, हमारे सबक,हमारा वर्तमान, हमें जरूर उज्जवल भविष्य की तरफ ले जाएंगे। इन्हीं शब्दों के साथ मैं अपनी बात समाप्त करता हूं, मैं आप सभी को भारत आने के लिए भी निमंत्रित करूंगा, मुझे गयाना के ज्यादा से ज्यादा जनप्रतिनिधियों का भारत में स्वागत करते हुए खुशी होगी। मैं एक बार फिर गयाना की संसद का, आप सभी जनप्रतिनिधियों का, बहुत-बहुत आभार, बहुत बहुत धन्यवाद।