प्रश्न:1 : सर, जब आप प्रधानमंत्री बने तो गांधी नगर से दिल्ली आने पर आपको कैसा महसूस हुआ?
प्रधानमंत्री जी: फर्क तो बहुत लग रहा है, मुझे समय नहीं लगा अभी दिल्ली देखने का। ऑफिस से घर, घर से ऑफिस यही मेरा काम चल रहा है। लेकिन मैं समझता हूं आप पूछना क्या चाहते हैं। वैसे कोई बड़ा फर्क मैं महसूस नहीं करता हूं। मुख्यमंत्री के कार्य में और प्रधानमंत्री के कार्य में विषय वस्तु बदलते होंगे दायरा बदलता होगा जिम्मेदारियां जरा ज्यादा बढ़ती होंगी। लेकिन व्यक्ति के जीवन में कोई ज्यादा फर्क नहीं आता हैं, उतनी ही मेहनत करनी पड़ती शायद थोड़ी ज्यादा करनी पड़ती है, उतना ही जल्दी उठना पड़ता है, देर रात तक काम करना पड़ता है। राज्य में थे तो एक आध शब्द इधर-उधर हो जाये तो ज्यादा टेंशन नहीं रहता था। यहां रहता है कि कही देश का नुकसान ना हो जाये, कोई ऐसी बात ना हो जाये कि देश का नुकसान ना हो जाए। तो थोड़ा ज्यादा ही कॉन्शीयस रहना पड़ता है। लेकिन मैं इतना ही कह सकता हूं कि मुख्यमंत्री कार्य का अनुभव होने के कारण इस दायित्व को संभालने में, समझने में और अफसरों के साथ काम लेने में मुझे कोई ज्यादा दिक्कत नहीं आई, बहुत सरलता से मैं इसे कर पाया पर आगे देखेंगे कोई ऐसा बदलाव आया तो।
प्रश्न:2 : सर, मैं आपसे यह प्रश्न करना चाहती हूं कि आपके जीवन में किसका सबसे अधिक योगदान रहा है? आपके अनुभवों का या आपके शिक्षकों का?
प्रधानमंत्री जी : ये बड़ा ट्रिकी सवाल है। क्योंकि हमें पढ़ाया जाता है कि अनुभव ही सबसे बड़ा शिक्षक है। लेकिन मैं उसको जरा अलग तरीके से समझाता हूं कि अगर आपको सही शिक्षा नहीं मिली है तो अनुभव भी आपको बर्बाद करने का कारण भी बन सकता है या आगे बढ़ने का अवसर भी बन सकता है अभी इसलिए अनुभव उत्तम शिक्षक है। यह स्वीकारने के बाद भी मैं यह मानता हूं आपकी शिक्षाओं, संस्कार उस पर डिपेंड करेगा कि आपका अनुभव कैसे काम आता है। जैसे, मान लीजिए कोई पिक पोकेटर, आप बस में जा रहे हो और जेब काट लिया और पैसे ले गया, ये आपका अनुभव होगा। अगर आपकी शिक्षा सही नहीं है संस्कार सही नहीं है आपको विचार ये आयेगा कि अच्छा बिना मेहनत वह तो रुपया कमा लिया चलिए मैं भी उस रास्ते पर चल पडूं, अगर आपकी शिक्षा अच्छी है, संस्कार अच्छी है, सोच अच्छी है तो विचार आयेगा कि मैं अलर्ट नहीं रहा, मैंने सही ठिकाने पर पैसे रखे नहीं थे, मुझे जितना जागृत रहना चाहिए था नहीं रख रहा था और उसके कारण मेरे पैसे चले गये तो वो एक ही चीज़ से दो अनुभव लिये जा सकते हैं लेकिन, अनुभव लेने का आधार वो बनता है कि आपकी शिक्षा कैसी हुई है और इसीलिए मेरे जीवन में शिक्षा का भी, शिक्षकों का भी संस्कार का उतना ही महत्व रहा है जितना मैं अनुभव में से अच्छी-अच्छी चीजें पकड़ने लग गया। तो मेरे लिए दोनों का उपयोग है।
प्रश्न:3 : सर, क्या आपने एक बालक के तौर पर सोचा है कि आप भारत में एक दिन प्रधानमंत्री बनेंगे? क्या आपने कभी सोचा है कि आप विश्व भर में प्रसिद्ध होंगे?
प्रधानमंत्री जी : मैंने कभी नहीं सोचा। क्योंकि मेरा जो बैकग्राउंड है, मैं बहुत सामान्य परिवार से हूं। और मैं तो कभी स्कूल में मॉनिटर का चुनाव भी नहीं लड़ा था। तो ऐसा तो सोचने का सवाल ही नहीं उठता था और ना ही और दूसरा धीरे-धीरे जो मैंने पढ़ा है और अपने बड़ों से सुना है उससे मुझे लगता है कि कभी-कभी इस प्रकार की महत्वकांक्षाएं बहुत बड़ा बोझ बन जाती हैं, संकट बन जाती है और इसीलिए मैंने देखा कि ज्यादातर लोग दुखी रहते हैं, इस बात के लिए कि उन्होंने कुछ बनने के सपने देखें होते हैं। सपने देखने चाहिए लेकिन कुछ बनने के बजाए कुछ करने के सपने देखने चाहिए। कभी क्या होता है कि हम छोटे होते हैं तो हमारे मम्मी–पापा क्या करते हैं, सबको परिचय करवाते हैं, ये बेटा हैं ना, उसको डाक्टर बनाना है, ये बेटी है, इसको इंजीनियर बनाना है, तो दिमाग में बचपन से ही घुस जाता है कि मुझे डाक्टर बनना है और मुझे इंजीनियर बनना है और दसवीं-बाहरवीं में आते-आते गाड़ी लुढ़क जाती है। फिर कहीं एडमिशन मिलता नहीं। तो फिर कहीं नौकरी कर लेता है, कहीं टीचर बन जाता है, कहीं कुछ बन जाता तो जीवनभर गाली देता है, अपने आपको देखिए डाक्टर बनना था, टीचर बन गया, डाक्टर बनना था, क्लर्क बन गया, डाक्टर बनना था, ड्राइवर बन वो जिन्दगी भर रोता रहता है, जो बना है उसका आनन्द भी नहीं लेता है। इसलिए कुछ करने के सपने देखें और थोड़ा बहुत भी कर ले तो जीवन को इतना संतोष मिलता है, इतनी प्रेरणा मिलती है, इतना आनन्द मिलता है और अधिक कुछ करने की ताकत भी मिलती है और मेरा आग्रह रहेगा सभी बाल मित्रों से कि करने के सपने जरूर देखिए कि मैं इतना कर लूंगा, ये कर लूंगा, करते-करते कुछ बन गये तो बन गये नहीं बने तो नहीं बने। करने का आनन्द बहुत रहेगा और इसीलिए मेरे जीवन में ये बात बहुत काम आयी है।
प्रश्न:4 : छात्रों से बातचीत से क्या लाभ मिलता है?
प्रधानमंत्री जी : लाभ मिलता होता, तो मैं नहीं आता। क्योंकि वो लोग ज्यादा मुसीबत में होते हैं, जो लाभ के लिए काम करते हैं। बहुत सारे काम होते हैं, जो लाभ के लिए नहीं करना चाहिए। जो लाभ के लिए नहीं करते हैं तो उसका आनंद अलग होता है। मैं आज, मैं देश के टीवी वालों का आभारी हूं। बहुत अच्छा काम किया उन्होंने। मुझे समय नहीं मिला, लेकिन थोड़ा-बहुत मैंने देखा। उन्होंने अलग-अलग जगह पर बालकों से पूछा - बताओ भाई प्रधानमंत्री से क्या पूछना चाहते हो, क्या बात करना चाहते हो। शायद, बालकों को अपनी बात बताने का ऐसा अवसर इससे पहले कभी नहीं मिला होगा। इसलिए मैं इस टीवी मीडिया वालों का बहुत आभार व्यक्त करता हूं, उन्होंने बहुत उत्तम काम किया। सब, बहुत सारे बालक, बहुत सारी बातें आज टीवी पर बता रहे हैं। पहली बार आज देख रहा हूं, पूरा दिन आज टीवी हमारे देश के इन बाल मित्रों ने occupy कर लिया है। यह अच्छा है और मैं मानता हूं, यही मुझे सबसे बड़ा लाभ हुआ है। वरना देश हमारे चेहरे देखे-देख के थक गया है जी। आप लोगों के चेहरे देखता है तो पूरा देश खिल उठता है। आपकी बातें सुनता है तो, मुझे भी बालकों की बातें सुनने में इतना आनंद आ रहा था, वाह हमारे देश के बच्चे कितना बढि़या सोचते है। आप लोगों से मिल करके मुझे अनुभूति होती है। मुझे मिलता है। वो बैटरी चार्ज होता है ना वैसे मेरी भी बैटरी चार्ज हो जाती है।
प्रश्न:5 : People say than you are like a Headmaster. But you appeared to us friendly, sweetly and a kind person sir my question is that what kind of person, are you in real life?
प्रधानमंत्री जी : मैं छोटी घटना बताता हूं। मैं छोटा था तो जैसे आप लोगों को, जैसे आज बालकों ने सर्वपल्ली राधाकृष्णन पर भाषण किया ना, तो मुझे भी बोलने का शौक था और बहुत छोटी आयु में लोग मुझे बोलने के लिए बुलाते थे। एक बार एक गांव में रोटरी क्लब का एक फंक्शन था। तो रोटरी वालों ने मुझे बुलाया। अब उनका प्रोटोकाल होगा। छोटा नगर था, करीब 30,000 की बस्ती का नगर होगा। फिर उन्होंने मुझे लिखा कि आप अपना बायोडाटा भेजिए। तो हमारे पास तो कुछ था ही नहीं बायोडाटा। हम क्या भेजें? उस कार्यक्रम में एक और सज्जन थे जो उस कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे थे और शायद वह डोनेशन भी देते होंगे, तो शायद उनको बुलाया होगा उन्होंने। उनको भी कहा होगा कि आपका बायोडाटा भेजिए। हम जब कार्यक्रम में गए तो उनका बायोडाटा कोई 10 पेज का था। वो पूरा वहां पढ़ा गया। बड़ा विस्तार से जनवरी में क्या किया था, फरवरी में क्या किया था और मार्च में क्या किया था। लेकिन जब उनका भाषण हुआ तो 3 मिनट का हुआ। वो भी शायद वो 2 पैराग्राफ लिख के लाए थे और पढ़ा उन्होंने। मुझे जब पूछा गया था कि आपका बायोडाटा भेजिए तो मैंने जवाब लिखा था। मैंने लिखा था कि हर कोई इंसान, हमारे शास्त्र कहते हैं कि मैं कौन हूं। इसका जवाब खोज रहा है, किसी को पता नहीं वह कौन है, और को पता होता है, वह कौन है ? जिस पल इंसान जान लेता है कि मैं कौन हूं, फिर उसके जीवन के हर काम समाप्त हो जाते हैं। संतोष मिल जाता है और मैंने लिखा है कि मैं खुद को पहचान नहीं पाया, जान नहीं पाया कि मैं कौन हूं। ऐसा मैंने जवाब लिखा था। तो मैंने कहा मैं, मेरे विषय में आपको क्या लिखूं। ऐसा मैंने लिखा था। खैर उन्होंने मेरा वही बायोडाटा पढ़ लिया था। तो बेटे तुमने जो पूछ लिया है, आप क्या हो? अब मैं खुद तय नहीं कर सकता हूं कि मैं क्या हूं। लेकिन जो आपने कहा कि मैं हेडमास्टर की तरह काम करता हूं, मैं मालूम नहीं, तुम्हारे हेडमास्टर यहां आए हैं। क्या स्कूल के (यस सर) तो तुम्हारा क्या होगा बताओ? वो कल तुम्हें पूछेंगे। तुम्हारे हेडमास्टर कैसे है? मुझे बताइए?
लेकिन तुम मुझे हेडमास्टर के रूप में पूछ रही हो या कुछ और ? देखिए मैं task master तो हूं। मैं काम भी बहुत करता हूं और खूब काम लेता भी हूं। और समय पर काम हो, इसका आग्रही भी हूं। और शायद मैं इतना डिसीप्लीन्ड नहीं होता, और मैंने शायद खुद से ही इतना ही काम लिया है। ऐसा नहीं कि मैं अपने लिए तो सब रिलेक्सेशन रखता हूं और औरों के लिए सारे बंधन डालता हूं, ऐसा नहीं है और इसलिए मैं 15 अगस्त को सार्वजनिक रूप से सरकारी अफसरों को कहा था कि अगर आप 11 घंटे काम करेंगे तो मैं 12 घंटे काम करने को तैयार हूं। तो उस रूप में मैं काम करता हूं। बाकी मैं नहीं जानता, तुम्हारे स्कूल के जो हेडमास्टर हैं, वह अच्छे हैं और मुझे उस रूप में देखती हो तो I thank you for this.
प्रश्न:6 : How can I become the Prime Minister of India?
प्रधानमंत्री जी : 2024 का चुनाव लड़ने की तैयारी करो और इसका मतलब यह हुआ कि तब तक मुझे कोई खतरा नहीं है। देखिए भारत एक लोकतांत्रिक देश है और हमारे संविधान निर्माताओं ने हमें इतनी बड़ी सौगात दी है कि हिन्दुस्तान की जनता का आप विश्वास जीत लेते हैं देश की जनता का प्रेम संपादन कर सकते है, तो हिन्दुस्तान का कोई भी बालक इस जगह पर पहुंच सकता है। मेरी आपको बहुत शुभकामनाएं हैं और अब आपकी प्रधानमंत्री पद की शपथ हो तो मुझे शपथ समारोह में जरूर बुलाना।
प्रश्न:7 : अभी-अभी आप जापान गये और आपने वहां एक विद्यालय को भी देखा सर आपके हमारे यहां और जापान की शिक्षा में क्या अंतर नज़र आया ?
प्रधानमंत्री जी : मैं इस बार जापान गया तो मैंने सामने से यह कहा था कि वहां कि शिक्षा प्रणाली को जरा समझना चाहता हूं, मैं देखना चाहता हूं। वहां मैं एक प्राइमरी स्कूल में भी गया था और वहां मैं एक वीमेन्स यूनिवर्सिटी में भी गया था। प्राइमरी स्कूल में जाकर मेरी कोशिश यह थी कि उसकी शिक्षा प्रणाली को समझना उनके यहां टीचिंग ना के बराबर है। आपको लगता होगा कि ऐसी कैसी स्कूल जहां टीचिंग ही नहीं है लेकिन वहां हन्ड्रेड पर्सेन्ट लर्निंग है। वहां की सारी कार्य शैली ऐसे है कि बालक को सीखने का अवसर मिलता है और खुद उसमें कुछ ना कुछ करता है। वो पार्ट ऑफ द प्रोसेस होता है और ये उनका बड़ा आग्रह है और दूसरा मैंने देखा कि हर बालक गजब की डिसिप्लिन्ड है। मां-बाप स्कूल छोड़ने नहीं आते थे। नियम है कि मां-बाप स्कूल छोड़ने नहीं आयेंगे। पद्धति ये है कि हर 25 कदम पर पेरेन्ट्स खड़े रहते हैं और उस यूनिफार्म वाले बालक वहां से निकलते हैं तो एक पेरेन्ट उस बालक को 25 कदम दूसरे पेरेन्ट की निगरानी में हेन्डओवर करते हैं। इसके कारण क्या हुआ है कि सभी पेरेन्ट्स सब बच्चों के साथ समान ट्रीटमेन्ट देते हैं। अपने ही बच्चों को सम्भाल कर लाना, बढि़या गाड़ी में लाकर छोड़ देना, ऐसा नहीं है, हरेक बच्चों को अपने स्कूल पैदल जाते समय पेरेन्ट्स उनको देखते हैं। ये तो मां-बाप का सभी बच्चों के प्रति एक समान भाव का संस्कार की बड़ी गजब व्यवस्था, मेरे मन को छू गई है। तो ऐसी-ऐसी बहुत चीजें मैंने आब्जर्व की हैं। मुझे काफी अच्छी लगी है, टेक्नोलॉजी का भरपूर उपयोग हो रहा है, छोटे-छोटे बालक भी टेक्नोलॉजी क माध्यम से चीजों को जानने समझने की कोशिश करते हैं। दो चीजों पर ज्यादा मैंने देखा है कि साइन्टिफिक टेम्परामेंट, इस पर उनका काफी यानि व्यवस्था ही ऐसी है कि इस प्रकार से सोचता है डिसिप्लिन बहुत सहज है, स्वच्छता भाव बहुत सहज है और आदर करना, वो थोड़े झुकते हैं आदर करने के लिए जैसे हम नमस्ते करते है। बड़ा फर्क, ऐसे हरेक के व्यवहार में नज़र आता है, तो यह संस्कारों के कारण होता है। तो हमारे में और उनमें तो काफी बड़ा फर्क नज़र आया मुझे।
प्रश्न:8 : If you are a teacher, whom you would concentrate on, an intelligent student, who is lazy or an average student, who is very hard working?
प्रधानमंत्री जी : बड़ा टेढ़ा सवाल है। उसने पूछा, अगर आप शिक्षक होते तो कैसे विद्यार्थी आपको पसंद आते। बहुत बुद्धिमान, आलसी, कैसे?
सचमुच में अगर टीचर के रूप में मैं देखूं, तो कोई डिस्क्रिमनेशन नहीं होना चाहिए। सभी बालक, अगर 30 बालकों का क्लास है, तीसों को अपना मानना चाहिए। और टीचर का काम ये है कि उसके अंदर, हरेक व्यक्ति में, हरेक व्यक्ति में कोई न कोई तो गुण होता ही होता है। ऐसा नहीं होता है कि एक में सब गुणों का भंडार होता है, एक के अंदर सब अवगुणों का भंडार होता है। जो गुणवान दिखता है, उसमें भी कुछ अवगुण होते हैं और जो अवगुण वाला व्यक्ति दिखता है, उसके अंदर भी कुछ गुण दिखते हैं। टीचर्स का काम होता है, उसकी अच्छाईयों को समझना। उसको तराशना। उसके जीवन को, जो भी हैं उसको आगे ले जाने का अवसर देना। अगर टीचर ये कहे कि ये चार यार बड़े ब्रिलियेंट है, उस पर ध्यान दूं, वे आगे निकल जाएंगे। मेरा नाम हो जाएगा। ये छोड़ो यार, ये तो बेकार है। उसके मां बाप देख लेंगे। टीचर ऐसा नहीं कर सकता है जैसे मां अपने घर में 3 बच्चे हों, कम-अधिक ताकत वाले बच्चे हों, लेकिन मां के लिए तीनों बच्चे बराबर होते हैं, टीचर के लिए भी कोई आगे, कोई पीछे, कोई ऊपर, कोई नीचे नहीं होता। सबके सब अपने होते हैं। हरेक के गुणों को जानना चाहिए और जब 30 स्टूडेंट के क्लास को टीचर पढ़ाता है तब 30 के bulk को नहीं पढ़ाता है। उसको address उन तीसों को individually करना होता है। बताते समय भी उसको ध्यान में रखता है। कि एक वाक्य उस बालक के लिए बोलेगा, जिसको समझने में देर लगती है। एक वाक्य उसके लिए भी बोलेगा, जो तेज-तर्रार समझ लेता है। अल्टीमेटली, सबको समान रूप से परोसने की कोशिश करेगा और इसलिए तिरूवनंतपुरम से जो सवाल पूछा गया, अगर मैं टीचर होता तो कोई डिस्क्रिमिशेन के पक्ष का नहीं होता। कोई प्यारा, कोई कम प्यारा, ऐसा नहीं हो सकता। सब के सब अपने होने चाहिए।
प्रश्न:9 : आपके विद्यार्थी काल में आप और आपके दोस्तों ने स्कूल में जो शरारतें की थी, क्या सर आपको वो याद है? और उन शरारत भरी यादों में से आप हमारे साथ कुछ बांटना चाहेंगे?
प्रधानमंत्री जी : मैं अभी लेह आया था, मालूम है? आप लोग थे? मैंने लेह में क्या बताया था, याद है? मैं पहले बहुत आता था, लेह और जब लेह आता था, तो ये दिल्ली के हमारे जो साथी थे, कहते थे, मोदी जी लेह जा रहे हो। तो आते समय वहां से गोभी, आलू जरूर ले आना। मालूम है ना, लेह में आर्गेनिक फार्मिंग के कारण बहुत अच्छी गोभी और आलू मिल जाते हैं। मैं काफी ढेर सारा, वापस आते समय ले आता था, वहां जब काम करता था।
बड़ा Interesting सवाल पूछा है। उन्होंने पूछा है कि मैं जब आपकी तरह बालक था तो मैं भी शरारत करता था क्या? कोई बालक हो सकता है क्या ऐसा जो शरारत न करता हो, हो सकता है क्या? हो ही नहीं सकता। अगर बालक मन और कभी-कभी तो मुझे ही चिंता होती है, कि बचपन बहुत तेजी से मर रहा है। यह बहुत चिंता का विषय है। समय से पहले वह कुछ अलग ही सोचने लग जाता है, उसका बालक अवस्था जो है, वह दीर्घकालीन रहनी चाहिए, वह शरारतें होनी चाहिए, वह मस्ती होनी चाहिए। यह जीवन विकास के लिए बहुत जरूरी होती है।
मैं भी शरारत करता था। मैं एक बता दूं कैसे? आप जानते होंगे, वो बजाते हैं शहनाई। शादी जहां होती है ना, तो बाहर शहनाई बजाने वाले बैठते हैं, शादी जब होती है तो किसी के यहां जब शादी होती है और शहनाई वाले बजाते हैं, तो हम 2-3 दोस्त थोड़े शरारती थे। तो हम क्या करते थे, वो शहनाई बजाता हैं तो हम इमली ले के वहां जाते थे और जब बजाते थे तो इमली दिखाते थे। पता है इमली दिखाने से क्या होता है, मुंह में पानी आता है ना। तो बजा नहीं पाता था। तो हमें वो मारने के लिए दौड़ता था। लेकिन आप यह नहीं करोगे ना। डू यू फॉलो, व्हॉट आई सेड, एवाइड शहनाई प्ले। डू यू फॉलो, व्हॉट आई एम टॉकिंग टू?
एक जरा, और थोड़ी, थोड़ी जरा अच्छी नई लगने वाली बात बता दूं। बताऊं? लेकिन आप प्रोमिस कीजिए, आप नहीं करेंगे। पक्का? पक्का? हम किसी की शादी होती थी तो चले जाते थे। और लोग शादी में खड़े होते हैं। खड़े होते हैं तो, कोई भी दो लोग खड़े हैं, कोई लेडीज, कोई जेंट्स, तो उनके पीछे कपड़े पकड़ के स्टेपलर लगा देते थे। फिर भाग जाते थे। आप कल्पना कर सकते हो, फिर क्या होता होगा वहां। लेकिन आपने मुझे प्रोमिस किया है। आप लोग कोई करेंगे नहीं ऐसा। प्रोमिस? लेह, लेह वाले बताइए, प्रामिस?
प्रश्न:10 : सर, मैं यह जानना चाहती हूं कि हमारे बस्तर इलाके में बस्तर जैसे जनजातीय इलाकों में खासकर लड़कियों के उच्च शिक्षा संसथानों की बहुत कमी है। तो इसके लिए आप क्या उपाय करना चाहेंगे?
प्रधानमंत्री जी : मैं बस्तर के इलाके में बहुत दौरा मैंने किया हुआ है। दन्तेवाड़ा पर भी मैं आया हूं। मैं छत्तीसगढ़ के आपके मुख्यमंत्री को इस बात के लिए बधाई देता हूं कि उन्होंने बस्तर में शिक्षा के लिए बहुत नए इनिसिएटिव लिए हैं। इन दिनों तो कुछ मौलिक चीजें जो दन्तेवाड़ा में ही हुई हैं। मैं मानता हूं देश के शिक्षाविदों का ध्यान डॉ. रमन सिंह ने जो काम किया है उसे याद किया ।
ये बात सही है कि बालिकाओं की शिक्षा को बहुत प्राथमिकता देनी चाहिए अगर देश को आगे बढ़ाना है। महात्मा गांधी कहते थे कि बालक अगर पढ़ता है तो एक व्यक्ति पढ़ता है लेकिन एक बालिका अगर पढ़ती है तो दो परिवार पढ़ते हैं। मायके वाले और ससुराल वाले। दो परिवार पढ़ते हैं और इसीलिए इन दिनों हम देखते है हिन्दुस्तान में कहीं पर भी आप देखिए अभी गेम्स हो गई उस गेम्स में आपने देखा होगा करीब-करीब 50 प्रतिशत मेडल जीतने वाली बालिकाएं थी। एजुकेशन में देखिए फर्स्ट 10 टॉपर देखिए हर स्टेट में 6-7 तो लड़कियां ही होती हैं। लड़के बहुत पीछे रह गये हैं। देश के विकास में इतनी बड़ी ताकत, 50 प्रतिशत, इसकी अगर शिक्षा-दीक्षा होती तो बहुत लाभ होने वाला है।
इसीलिए मेरा भी बड़ा आग्रह रहता है कि गर्ल चाइल्ड एजुकेशन पर बल दिया जाए। और आज जो हम ये जो गर्ल चाइल्ड के लिए टॉयलेट बनाने के पीछे मैं लगा हूं क्यों? मेरे ध्यान में ऐसा आया था कि बालिका स्कूल जाती है। तीसरी-चौथी कक्षा में आते ही सकूल छोड़ देती है तो ध्यान में आता था कि बेटियों के लिए अलग टॉयलेट ना होने के कारण उसको वहां कन्फर्ट नहीं रहता था, उसके कारण पढ़ना छोड़ देती थी। इतनी छोटी सी चीज़ हैं। अगर किसी ने पहले ध्यान दिया होता तो स्थिति और होती। इन्हीं कारणों से मैं इन दिनों आग्रह पूर्वक लगा हूं मैं हिन्दुस्तान में हमारी सभी स्कूलों में बालकों के लिए बालिकाओं के लिए टॉयलेट बनें। बच्चियां स्कूल तो दाखिल हो रही हैं, हर मां-बाप को लगता हैं कि बेटी को स्कूल दाखिल करें। लेकिन कभी तीसरी कक्षा तक कभी पांचवी कक्षा तक, ज्यादा से ज्यादा सातवीं कक्षा तक, ज्यादातर बच्चियां स्कूल छोड़ देती है, बच्चियां स्कूल छोड़े नहीं उनको आगे की शिक्षा कैसे मिले, इस पर मेरा ध्यान है और मैंने इस दिशा पर काफी कुछ सोचा है। अभी मैं कर भी रहा हूं। और उसके नतीजे नज़र आयेंगे। लेकिन मुझे खुशी हुई कि बस्तर जिले में आप लोगों को इतना चिंता इतना लगाव है और एक बालिका के मन में ऐसा सवाल आता है तो बहुत आनंद होता है। तो बालिकाओं की शिक्षा एक की चिंता एक बालिका कर रही है। वो भी दूर सुदूर बस्तर के जंगलों में से जहां माओवाद के कारण लहू लुहान धरती हो चुकी है। मैं मानता हूं कि देश को जगाने की ताकत है इस सवाल में।
प्रश्न:11 : हम बच्चे देश की विकास एवं उन्नति है, आपकी क्या मदद कर सकते हैं?
प्रधानमंत्री जी : देखिए, एक तो खुद अच्छे विद्यार्थी बनें। यह भी देश की बहुत बड़ी सेवा है। हम एक अच्छे विद्यार्थी बनें। हम सफाई के संबंध में कोई कॉम्प्रमाइज न करें। आपमें से कई एक बच्चों से मैं अगर पूछूं, स्कूल से जाते ही अपना जो स्कूल बैग है, ऐसे ही जाकर फेंक देते हैं, ऐसे कितने बच्चे हैं, सच बताइए ? ये आप देखिए, कोई फोटो नहीं निकालेगा, बता दीजिए। फिर मम्मी क्या करती है, उठाएगी, बैग रखेगी और कुछ बालक होंगे, घर में कितने भी मेहमान बैठे होंगे, बहुत कुछ चलता होगा, लेकिन किसी पर ध्यान नहीं। सीधे अपने, जहां स्कूल बैग रखते हैं, वहां जाएंगे। स्कूल बैग ठीक से रखेंगे। जूते ठीक से निकालेंगे। फिर आके सबको नमस्ते करेंगे। दो प्रकार के बालक होते हैं, अब आप को तय करना है कि अगर आप ढंग से जीते हैं तो आप देश सेवा करते हैं कि नहीं करते हैं।
कुछ लोगों को लगता है, देश के लिए मरना। या देश सेवा मतलब सिर्फ राजनेता बनना। ऐसा नहीं है। हम, मानो बिजली बचाओ, बिजली बचाने का विषय, आप अगर घर में तय करो, और मैं ये सब बच्चों से कहता हूं कि आप इस बार तय कर लें, आप घर जाकर पूछिये, आपने मम्मी-पापा को, कि अपने घर में बिजली बिल कितना आता है। अभी तक आपने नहीं पूछा होगा। बालक क्या करता है, मुझे ये चाहिए। कॅंपास चाहिए। टीचर ने ये मांगा है। उतना ही उसका घर के साथ संबंध, पैसों के संबंध में आता है। मुझे आज दोस्तों के साथ यहां जाना है। इतना पैसा दे दो।
कभी घर के कारोबार में आपने इंटरेस्ट लिया क्या? एक काम कीजिए आप, घर में मम्मी-पापा सब जब खाना खाने बैठे तो पूछिए आप, अपने घर का बिजली का बिल कितना आता है? पूछिए उनको। फिर उनको कहिये। अगर 100 रुपये बिल आता है, अगर 90 रुपये आए, हम ऐसा कर सकते हैं क्या? 50 रुपये का बिल आता है, 45 रुपये हो जाए बिल ऐसा कर सकते हैं क्या? कैसे कर सकते हैं, चर्चा करो घर में। बिजली कम उपयोग में हो, बिजली बर्बाद न हो, ये कर सकते हैं। आप अगर अपने घर में बिजली बचाते हो तो आपके घर में तो लाभ होगा ही होगा, लेकिन किसी गरीब के घर में बिजली का दीया जलेगा। यह बहुत बड़ी देश सेवा है, और एक पौधा लगाकर के जो हम पर्यावरण की रक्षा करते हैं, वैसे ही अपना परिवार बिजली बचाकर के, पर्यावरण की रक्षा कर सकता है और इसलिए देश सेवा करने के लिए समाज सेवा करने के लिए कोई बहुत बड़ी-बड़ी चीजें करनी नहीं होती है। छोटी-छोटी चीजों में देशभक्ति का प्रगटिकरण होता है और उन छोटी-छोटी चीजों पर हम ध्यान केन्द्रित करें, तो उससे बड़ी देश सेवा क्या होती है? वही बहुत बड़ी देश सेवा है।
प्रश्न:12 : Sir, my Question to you is that being in Assam we are very Concern about climate Change and its consequences. Sir how can you help and guide us to protect our pristine environment.
प्रधानमंत्री जी : देखिए आज छोटे-छोटे बालक भी क्लाइमेट चेंज और एन्वायरमेन्ट चेंज की चर्चा कर रहे हैं। अब मेरे मन में एक सवाल है कि सचमुच में क्या चेंज हुआ है। हम अपने आप से पूछे आपने देखा होगा कि हमारे गांव में जो बड़ी आयु के लोग होते हैं ना 70-80-85-90 के लोग सार्दियों में आप देखेंगे तो वह कहतें हैं कि पिछली बार से इस बार सर्दी ज्यादा हैं। एक्च्यूली सर्दी ज्यादा नहीं है उनकी उम्र बढ़ने के कारण उनकी सहने की शक्ति कम हो गई है। इसीलिए उनको सर्दी ज्यादा महसूस होती है, तो परिवार के जो बुजुर्ग लोग होते हैं वे कहते है कि पिछली इतनी सर्दी नहीं थी इस बार सर्दी ज्यादा हो गई है। वैसे ही ये क्लाइमेट चेंज नहीं हुआ है, हम चेंज हो गये हैं, हम बदल गये हैं, हमारी आदतें बदल गई हैं, हमारी आदतें बिगड़ गई हैं और उसके कारण पूरे पर्यावरण का हमने नुकसान किया है।
अगर हम बदल जाएं तो वह तो बदलने के लिए तैयार ही है। ईश्वर में ऐसी व्यवस्था रखी है कि संतुलन तुरन्त हो जाता है लेकिन उसकी पहली शर्त है कि मनुष्य प्रकृति से संघर्ष नहीं करें मनुष्य प्रकृति से प्रेम करें, पानी हो, वायु हो, पौधे हों। हरेक के साथ इसीलिए हमारे शस्त्रों में तो पौधे को परमात्मा कहा गया, नदी को माता कहा गया, लेकिन जब से हम यह भूल गये, गंगा भी मैली हो गई। प्रकृति के प्रति और हमारा देश कैसा है। देखिए, हम पूरे ब्रह्माण्ड को अपना परिवार मानते हैं और ये हमें बचपन से सिखाया जाता हैं। बहुत से परिवार ऐसे होंगे जहां बच्चों को सिखाया जाता है कि जब बिस्तर से नीचे उतरोगे तो पृथ्वी माता से माफी मांगों कि हे पृथ्वी मां ! मैं पैर रखता हूं कि आपको दर्द होता होगा। वहीं से संस्कार शुरू होते हैं कि नहीं।
हम बालक होते हैं तो हमारी मम्मी हमें क्या कहती है कि ये चंदा है ना ये तेरा मामा है ये सूरज तेरा दादा है। ये चीजें हमें सहज रूप से ये पर्यावरण की शिक्षा देने के लिये, हमारे सहज जीवन में थी। लेकिन पता नहीं इतना बदलाव आया कि सब बुरा है, बुरा है, इतना मार-ठोक कर हमारे दिमाग में भर दिया गया है। और उसके कारण हमारी यह हालत हो गई है।
मुझे अभी नागपुर के मेयर मिले थे मैं पिछले दिनों नागपुर गया था। तो नागपुर के मेयर ने मुझे बहुत बढि़या बात बताई। उन्होंने कहा कि वो पूर्णिया की रात को स्ट्रीट लाइट बंद कर देते हैं। स्ट्रीट लाइट करते हैं और शुरू में हमने प्रोवोक किया 2-3 घंटे लाइट बंद करने का। तो पहली बार घोषणा की, चांदनी रात है सब लोग बाहर आइये। तो 2-3 घंटे तक मेले जैसा माहौल रहा लोगों ने अपने घरों में भी बिजली बंद रखी, चांदनी का आनंद लेने के लिए।
आपमें से बहुत बच्चे ऐसे होंगे जिन्होंने मैं अगर पूंछू कि आपमें से कितने हैं जिन्होंने सुर्योदय देखा है ? सचमुच में सुर्योदय देखा है, ऐसा नहीं कि उजाला था बस उजाला देखा। कितने हैं जिन्होंने सुर्यास्त देखा है ? कितने हैं जिन्होंने चांदनी रात को भरपूर चांद देखा है ? देखिए, आदतें हमारी चली गई हैं। हम प्रकृति के जीना भूल चुके हैं और इसीलिए प्रकृति के साथ जीना सीखना पड़ेगा और वो मुझे बता रहे थे मेयर कि नागपुर में हमारा बिजली का खर्च कम हुआ है। दो या तीन शायद हो चुका था तब तक। और लोगों को मजा आने लगा है और दो-तीन घंटे लोग बाहर निकलते हैं। तो मैंने एक सुझाव दिया कि ऐसा एक काम करो कि चांदनी रात में एक स्पर्धा करो कि चांदनी रात में सूई में धागा पिरोना, चांदनी रात सबको मजा आयेगा। अबाल गुरूत्त सब खेलेंगे, जिसका धागा जाएगा पता लगेगा उसकी आई साइट कैसी है। चांदनी रात का मजा लेंगे। आप लोग करेंगे। पक्का करेंगे करने के बाद मुझे चिट्ठी लिखेंगे। मैं विश्वास करूं सारे देश के बच्चों से विश्वास करूं। आप मुझे बताइये कि चांदनी रात को भी अगर दो-तीन घंटे बिजली रोकी, स्ट्रीट लाइट रोकी, तो पर्यावरण की सेवा होगी कि नहीं ? होगी चांदनी का मजा आयेगा कि नहीं आयेगा ? पर्यावरण से प्यार बढ़ेगा कि नहीं बढ़ेगा? प्रकृति से प्रेम होगा कि नहीं होगा तो वही तो करना चाहिए, सहज रूप से किया जा सकता है तो बहुत बड़ी- बड़ी चीज़ें ना करते हुए भी हम इन चीजों को कर सकते हैं।
प्रश्न:13 : Sir, is Politics a difficult profession in your opinion and how do you handle stress and work pressure so well ?
प्रधानमंत्री जी :पहले तो पोलिटिक्स को प्रोफेशन नहीं मानना चाहिए इसे एक सेवा के रूप में स्वीकार करना चाहिए और सेवा का भाव तब जगता है जब अपनापन होता है। अपनापन नहीं होता है, तो सेवा का भाव नहीं होता है।
एक पुरानी घटना है एक 5 साल की बालिका अपने 3 साल के भाई को उठा के, बड़ी मुश्किल से उठा पा रही थी लेकिन उठाकर के एक छोटी सी पहाड़ी चढ़ रही थी तो एक महात्मा ने पूछा बेटी तुझे थकान नहीं लग रही ? उसने क्या जवाब दिया, नहीं मेरा भाई है। महात्मा ने फिर पूछा, मैंने यह नहीं पूछा कौन है, मैं कह रहा हूं कि तुम्हें थकान नहीं लग रही।उसने कहा अरे मेरा भाई है। महात्मा ने कहा फिर कहा कि मैं तुमसे यह नहीं पूछ रहा हूं कौन है ? मैं तुमसे पूछ रहा हूं कि तुम्हें थकान नहीं लगती है? तीसरी उसने कहा, अरे मेरा भाई है। महात्मा ने कहा अरे मैं सवाल पूछता हूं तुम्हें थकान नहीं लगती ? उसने कहा कि मैं आपका सवाल समझती हूं मेरा भाई है इसीलिए मुझे थकान नहीं लगती हैं। पांच साल की बच्ची। जब मुझे लगता है कि सवा सौ करोड़ देशवासी मेरा परिवार है तो फिर थकान नहीं लगती है। फिर काम करने की इच्छा मन में जगती है कि और कुछ करूं, और नया करूं, यही भाव मन में जगता है। इसीलिए पालिटिक्स को प्रोफेशन के रूप में नहीं, पालिटिक्स को एक सेवा धर्म के रूप में और वो सेवा धर्म अपनेपन के कारण पद के कारण नहीं पद तो आते हैं जाते हैं लोकतंत्र में एक व्यवस्था है। अपनापन, ये चिरंजीव होता है इसीलिए फिर न कोई श्लेष होता है ना थकान होती है। दूसरा शरीर की जो बायोलॉजी काम करती है वो तो आप जैसे बच्चों से गप्प मारते हैं तो ठीक हो जाता है।
प्रश्न:14 : जब आप गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो गुजरात पढ़ो, यानी कि ‘वांचे गुजरात’ नाम से एक अभियान शुरू किया गया था। मैं आपसे यह जानना चाहूंगा कि क्या राष्ट्रीय स्तर पर कोई ऐसा अभियान शुरू करने के बारे में आपने विचार किया है?
प्रधानमंत्री जी :ऐसा तो विचार नहीं किया है, लेकिन एक और बात मेरे मन में चल रही है, वो है डिजीटल इंडिया। जब मैं डिजीटल इंडिया की बात कर रहा हूं तो मेरा आग्रह है कि आधुनिक टेक्नोलोजी मेरे छात्रों तक पहुंचे और सभी भाषाओं में पहुंचे और इस टेक्नोलोजी के माध्यम से, इंफोर्मेंशन कम्युनिकेशन टेक्नोलोजी का लाभ लेते हुए, इंटरनेट का लाभ लेते हुए, ब्राडबैंड कनेक्टिविटी का लाभ लेते हुए, उनको आदत लगे, नई-नई चीजें खोजने की, देखने की, पढ़ने की, समझने की। अगर ये उसका आदत बन जाती है तो मैं समझता हूं कि शायद ये मेरा जो डिजीटल इंडिया का जो मेरा सपना है पूरा हो जायेगा।
काम सारे मैं हाथ में ऐसे ले रहा हूं, जो कठिन हैं। लेकिन कठिन काम हाथ में नहीं लूंगा तो कौन लेगा, यदि मैं नहीं लूंगा तो कौन लेगा? मैं ले रहा हूं।
दूसरा, ये जो मेरा आज का कार्यक्रम है, उससे मैं एक प्रकार से मैपिंग कर रहा हूं, इंडक्टीवली कि सचमुच में हमारे देश में इतने सालों से चर्चा चल रही है, 21वीं सदी की सुन रहे हैं, कंप्यूटर सुन रहे हैं, क्या कुछ नहीं सुन रहे हैं। मैं देखना चाहता हूं सचमुच में हिंदुस्तान की कितनी स्कूलें हैं, जहां सचमुच में मेरा ईमेल पहुंचता। कितनी स्कूलें हैं, जहां पर इंटरनेट टेक्नोलोजी से मैं बालकों तक पहुंच पाता हूं, तो मेरा ये एक प्रकार का टेस्टिंग कार्यक्रम है। ये कार्यक्रम तो आपका है ही है, मेरी सरकार के लिए भी भीतर से एक कार्यक्रम चल रहा है। और इसलिए जो आपने कहा “पढ़े भारत, पढ़े भारत । लेकिन मैं ये चाहूंगा, कार्यक्रम मेरा हो न हो, सभी विद्यार्थी मित्रों को मेरा, शुरू में भी मैंने कहा था। कुछ भी पढ़ो, लेकिन पढ़ने की आदत होनी चाहिए। कुछ भी पढ़ो।
मैंने ऐसे लोग देखें हैं कि कहीं बाजार में पकौड़े खरीदा हो, और पकौड़े के लिए पैसे खर्च किये हों, लेकिन जिस कागज के टुकड़े में पकौड़ा बांधकर दिया है ना, उसको पढ़ने लग जाते हैं। क्योंकि उनके संस्कार हैं, पढ़ना ही उनकी आदत है। पकौड़े के टेस्ट के बजाय वह हाथ में अख़बार का टुकड़ा आया है, उसको भी, पढ़ने का उसका मन कर जाता है। ऐसे लोग देखे होंगे आपने।
जरूरी नहीं, एक ही प्रकार का पढ़ो। आपको जो भी, आपको जो भी ठीक लगे। कॉमिक बुक्स हैं, कॉमिक बुक्स पढि़ये, आप। कोई बंदिश नहीं है, ये पढ़ो, वह पढ़ो। पढ़ने की आदत लग जाएगी। लेकिन अगर पढ़ने की सही दिशा की चीजें पढ़ने की आदत लग जाएगी। लेकिन अगर पढ़ने की आदत नहीं होगी, फिर आपके सामने कितनी भी बढि़या से बढि़या किताबें रही होंगी, फिर कभी हाथ लगाने का मन नहीं करेगा। और मैं सच बताता हूं। एक विशाल सागर है, ज्ञान का इतना विशाल सागर है और किताब जब पढ़ते हैं तो इतनी नई चीजें हाथ लगती है।
किसी ने अभी जो पूछा था ना कि सीएम और पीएम बनने में क्या फर्क है, आप में कोई नजर आता है? ये तो मुझे नजर नहीं आता, लेकिन एक मुझे जरूर नजर आता है। मैं जब सीएम नहीं था तब मुझे पढ़ने का मौका मिलता और मैं काफी पढ़ता था। मुझे मजा आता था। लेकिन बाद में वो छूट गया। और मुझे, मैं उसको, एक प्रकार का मेरा अपना व्यक्तिगत नुकसान भी देखता हूं। अब फाईलें पढ़ता हूं। लेकिन अब मैं आग्रह करूंगा कि पढ़ने का प्रयास कीजिए। लेकिन आप में से किसी को इंटरेस्ट हो ।
तो गुजरात में जब मैं था, “बांचे गुजरात” जो अभियान किया था, यह सचमुच मैं उसको समझने जैसा है और उस समय स्थिति ये बनी थी कि लाइब्रेरियों में एक भी किताब मौजूद नहीं थी, पूरे राज्य में। वरना, कई लाइब्रेरियां ऐसी होंगी, जहां पर कपबोर्ड की दस-दस साल तक सफाई नहीं हुई होगी। लेकिन उस अभियान के कारण, और मैं देख रहा था कि लोग इंफ्लुएंस के लिए चिट्ठी लेने जाते थे कि फलानी उस लाइब्रेरी में बोलो ना मुझे किताब दें, मुझे वो किताब चाहिए।
क्योंकि निश्चित समय कालखंड में कितनी ज्यादा किताबें पढ़ते है। कितनी स्पीड से पढ़ते हैं, इसकी भी एक स्पर्धा थी और बाद में उसका वाइवा लिया जाता था, उन बालकों से क्वेशन-आंसर किया जाता था, क्या किताब पढ़ी, कैसे पढ़ी? यह अभियान इतना ताकतवर था, पूरा समाज इससे जुड़ा रहा। कोई सरकार का यह कार्यक्रम नहीं रहा था, सरकार ने तो इनिशिएट किया था। पूरा समाज जुड़ा था। मैं खुद भी, “बांचे गुजरात” कार्यक्रम में, लाइब्रेरी चला गया था। वहां जाकर के पढ़ने के लिए बैठा था और हरेक के लिए कार्यक्रम बनाया था। एक माहौल बन गया था पढ़ने का।
मैं चाहता हूं कि पढ़ने का एक सामूहिक माहौल बनना चाहिए। स्कूल में भी कभी बनाना चाहिए। अपने स्कूल में भी ये सप्ताह, चलो भाई, लाइब्रेरी की किताब ले जाओ, पूरा सप्ताह यही चलता है। नई-नई किताबें पढ़ो। ज्यादा पढ़ो, सात दिन के बाद जब पूरा हो जाएगा तो पूछेंगे कि इस किताब किसने पढ़ी? उसका वाइवा क्या था? तो ये अपने आप हर स्कूल अपना कार्यक्रम बना सकती है। लेकिन ये मैं, आपमें से किसी को इंटरेस्ट हो तो, गुजरात से शायद आपको जानकारी मिल सकती है कि वह कार्यक्रम कैसा हुआ था, लाखों की तादाद में लोग इसमें लगे थे और करोड़ों-करोड़ों आवर्स पढ़ाई हुई थी। अपने आप में वो एक बहुत बड़ा अभियान था। लेकिन मैंने भारत-देशव्यापी कार्यकम के लिए तो सोचा नहीं है, लेकिन इस डिजिटल इंडिया के माध्यम से और शिक्षा क्षेत्र में टेक्नोलोजी अधिक आए, हमारे बालक नई-नई चीजें खोजने लगे, दुनिया को समझने लगे, ये मैं जरूर चाहता हूं। थैंक यू।
प्रश्न:15 : In your speeches you appeal to people to save electricity .In this regard what are your expectations from us .How can we help in this ?
प्रधानमंत्री जी : मैंने बताया, और भी बहुत कुछ कर सकते हैं आप। लेकिन अनुभव यह है कि मान लीजिए हम पंखा चालू किये और आपके कोई दोस्त आ गए, हम बाहर खड़े हो गए। भूल गए पंखा बंद करना। अब यह हम ठीक कर सकते हैं या नहीं कर सकते हैं। हम स्कूल से निकल रहे हैं। कोई स्टूडेंट तय करे कि आखिर में मैं निकलूंगा और मैं देखूंगा कि मेरे क्लास रूम में कोई पंखा, कोई लाईट, कुछ भी चालू है तो मैं बंद करूंगा। कभी कभार हम सुखी परिवार में खिड़की खोलकर सोने की आदत ही चली गई, क्योंकि एसी की आदत हो गई। क्या कभी कोशिश की है क्या? छोटी-छोटी बाते हैं, लेकिन अगर हम थोड़ा प्रयास करें, तो ये भी क्योंकि देखिये, आज इनर्जी का संकट पूरा विश्व का है, कोयला गैस, पेट्रोलियम, इन सबकी सीमा है। तो बिजली उत्पादन कहां से होगी। तो कभी न कभी तो बिजली बचाने की दिशा में हमें जाना ही पड़ेगा। बिजली बचेगी तो जिन तक बिजली पहुंची नहीं है, उसे पहुंचाने में कम से कम खर्चें से करने वाला काम है।
बिजली का उत्पादन बहुत महंगा है, लेकिन बिजली बचाना बहुत सस्ता है। उसी प्रकार से इन दिनों सारे बल्ब, टेक्नोलोजी इनर्जी सेविंग वाली आ रही है। पहले आपके घर के ट्यूबलाइट में जितनी इनर्जी का कंजप्शन होता था, अब नए प्रकार की ट्यूब्स आई है। आपका इनर्जी सेविंग हो रहा है। पैसे भी बच जाते हैं। और इसलिए ऐसे अपने परिवार में भी बात करनी चाहिए। और सिर्फ बिजली क्यों, पानी भी। हम ब्रश करते हैं, और नल के से पानी चला जा रहा है। नल बंद करके भी तो ब्रश किया जा सकता है। फिर जरूरत पड़े, लेकिन हम पानी, हमें ध्यान ही नहीं होता है कि इन चीजों को कर रहा हूं, इससे नुकसान हो रहा है। क्योंकि हम उन चीजों को भूल गए हैं। फिर एक बार सारे शिक्षक अगर स्कूल में याद करायेंगे। सब परिवार में माहौल बनेगा। और हम सब एक दायित्व लेकर के काम करेंगे तो यह काम होगा। ये ऐसा नहीं है कि कोई प्रधानमंत्री है कर लेंगे तो जाएगा। प्रधानमंत्री अपने घर में कितनी बिजली बचाएगा? लेकिन देश, सब मिलकर के करते हैं तो बूंद-बूंद से सागर बन जाता है। वैसे ही बन जाएगा।
प्रश्न:16 : Sir, we are very happy with the support for Girl education. Sir, can you tell us what for the steps you will in this matter?
प्रधानमंत्री जी : एक तो सबसे बड़ी जो चिंता का विषय है, 5वीं कक्षा के बाद बालिका को अपने गांव से दूसरे गांव जो पढ़ने के लिए जाना है, तो मां-बाप भेजते नहीं हैं। मां-बाप को लगता है कि नहीं-नहीं बच्ची है, नहीं जाएगी। अब वहीं से उसकी बेचारी की जिन्दगी को रूकावट हो जाती है और इसीलिए बालिका को अपने घर से निकट से निकट अधिकतम शिक्षा कैसे मिले। उसको शिक्षा छोड़नी ना पड़े। सिक्स, सेवन, सातवीं-आठवीं के बाद तो फिर संकट नहीं रहता है मां-बाप को भी विश्वास हो जाता है कि अब बेटी को भेज सकते है। तो इस दिशा में भी हम काम कर रहे हैं कि बालिका के लिए निकटतम स्कूल मिले। ये अगर हों गया तो उसको शिक्षा में सुविधा रहेगी।
दूसरा है क्वालिटी ऑफ एजुकेशन में हम टेक्नोलॉजी का भरपूर उपयोग करना चाहते हैं। आज दूर सुदूर गांव में अच्छा टीचर जाने को तैयार नहीं, शहर में रहना चाहता है, तो उपाय क्या ? तो लांग डिस्टेन्स टेक्नोलॉजीस से पढ़ाया जा सकता है। जैसे मैं अभी बच्चों से बातें कर रहा हूं, हिंदुस्तान के हर कोने से , कहीं तिरूपति से, कहीं पोर्टब्लेयर से, सब बच्चों से मैं बात कर रहा हूं। इसी तरह भविष्य में अच्छे टीचर द्वारा पढ़ाया भी जा सकता। एक टीचर सेंटर स्टेज पर से एक साथ लाखों क्लासरूम को अच्छी चीज़ पढ़ा सकता है और बच्चों में ग्रास्पिंग बहुत होता है और वो तुरंत इसको पकड़ लेते हैं। ये अगर हम कर पाये तो बच्चियों को अच्छी शिक्षा देने में भी हमें सफलता मिलेगी।
प्रश्न:17 : सर, हमारे देश में रोजगार की समस्या बनी हुई है। क्या आप स्कूल में रोजगारपरक शिक्षा यानि स्किल डेवलेपमेंट को बढ़ावा देने का सोच रहे हैं?
प्रधानमंत्री जी : सारी दुनिया में, दुनिया में सब समृद्ध से समृद्ध देश भी एक बात पर बल दे रहे है स्किल डेवलपमेंट एक घटना सुनाता हुं मैं। उससे आपको ध्यान में आयेगा कि स्किल डेवलपमेंट का कितना महत्व है। आप लोगों ने आचार्य विनोबा भावे का नाम सुना होगा, महात्मा गांधी के चिन्तन पर उन्होंने देश की बहुत सेवा की। उनके एक साथी थे दादा धर्माधिकारी और वो भी बड़े चिन्तक थे और दादा धर्माधिकारी की छोटी-छोटी घटनाओं की किताबें हैं पढ़ने जैसी किताबे।
दादा धर्माधिकारी ने एक प्रसंग लिखा है बड़ा इंट्रेस्टिंग प्रसंग है। कोई एक नौजवान उनको मिलने गया कि दादा मेरी लिए नौकरी का कुछ कीजीये, किसी को बता दीजिए तो। उन्होंने पूछा कि तुम्हें क्या आता है। तो उसने कहा कि मैं एम. ए. हूं। उन्होंने कहा कि भाई वो तो बराबर है, तुम एम. ए. हो वो तो तुम्हारी डिग्री है तुम्हें आता क्या है? उन्होंने फिर कहा, तुम्हें क्या है? उसने कहा नहीं-नहीं वो तो ठीक है तुम्हें आता क्या? उसने कहा नहीं-नहीं मैं एम. ए. पास हूं ना? लेकिन तुम ये तो बताओं तुम्हें आता क्या है। फिर उन्होंने उसको आगे बढ़ाया अच्छा ये तो बताओं, उस समय टाइप राइटर था, कि तुम्हें टाइप करना आता है, बोला नहीं आता है, ड्राइविंग करना आता है, बोले नहीं आता है, खाना पकाना आता है, तो बोले वो भी नहीं आता, तो बोले कमरा बगैरह साफ करना आता है तो बोले वो भी नहीं है। तो बोले तुम एम. ए. हो तो करोगे क्या? ये दादा धर्माधिकारी ने अपना एक संवाद लिखा है।
कहने का मतलब ये है कि हमारे पास डिग्री हो उसके साथ हाथ में हुनर होना बहुत जरूरी है। और हर बालक, के व्यक्तित्व के साथ उसको स्किल डेवलपमेंट का अवसर मिलना चाहिए। हमारे देश में सब बच्चे कोई हायर एजुकेशन में नहीं जाते सातवीं में बहुत सारे बच्चे सकूल छोड़ देते हैं दसवीं आते-आते ओर छोड़ देते है। कॉलेज और यूनिवर्सिटी में जाने वाले तो बहुत बच्चे होते है एक गांव में से मुश्किल से एक या दो बच्चे जाते हैं। उनके लिए आवश्यक है स्किल डेवलपमेंट। अच्छा दूसरी तरफ क्या है एक तरफ नौजवान है और बेचारा रोजगार नहीं और दूसरी तरफ आपके घर में नलके में गड़बड़ है और आपको प्लम्बर चाहिए प्लम्बर मिलता नहीं, ड्राइवर मिलता नहीं क्यों? लोग हैं। लेकिन जैसे तैयार करना चाहिए ऐसे तैयार किए नहीं। अगर हम अच्छे ड्राइवर तैयार करें हमें अच्छे ड्राइवर मिलेंगे, अच्छे कुक तैयार करें लोगों को अच्छे कुक मिलेंगे। हम अच्छा गुलदस्ता बनाने वाले तैयार करेंगे तो गुलदस्ता बनाने वालों की संख्या बढ़ेगी। स्किल डेवलपमेंट विकास के लिए किसी भी नौजवान को रोजगार के लिए किसी भी देश के लिए बहुत आवश्यक है।
दूसरा स्किल डेवलेपमेंट नॉट नेसेस्री की इसी लेवल का हो। रिकवायरमेंट के अनुसार हो सकता है। जिस क्षेत्र में औद्योगिक विकास होता है तो जिस प्रकार के लोगों की जरूरत पड़ती है। अब जैसे मैं गुजरात में था तो नैनो कार वहां बनाना शुरू हुई तो मैंने उनसे कहा किये अगल-बगल के जो आइटीआई हैं उसमें आप अपना ऑटोमोबाइल का सिलेबस शुरू करें, नैनो वाले ही करें और वहां के बच्चों को आप ऑटोमोबाइल की आईटीआई ट्रेनिंग दीजिए। साल भर में आप की कंपनी खड़ी हो जाएगी साल भर बच्चों की ट्रेनिंग हो जायेगी। तो उन्होंने 15-20 किलो मीटर की रेंज में जितने आईटीआई ये उन्हें ले लिया। उधर कंपनी तैयार हो गई उधर बच्चे तैयार हो गये उनको या नौकरी मिल गई। तो जहां जिस प्रकार का काम उसको मेपिंग करना चाहिए। मेपिंग करके उस प्रकार, कहीं केमिकल इन्डस्ट्रीज़ है तो उसके अगल बगल के गांवों के बच्चों को वो ट्रेनिंग देनी चाहिए कहीं सेरिमिक का इन्डस्ट्री है तो वहां के अगल बगल के बच्चों को नजदीक में ही काम मिल जाएगा। अगर ये हम करते हैं तो आर्थिक विकास में एकदम जम्प लगेगा। हमारे देश में रोजगारी सबसे प्राथमिक बात है और रोजगारी के लिए डिग्री के साथ स्किल का भी उतना ही महत्व है। और ये अगर हम करने में सफल हुए तो और अगर आने वाले दिनों में हमने जो कार्यक्रम उठाएं हैं उसी बात के लिए ये सरकार ने स्किल डेवलपमेंट का अलग मिन्स्ट्री बनायी है, अलग मंत्री बनाया है उसको लेकर हम फोकस एक्टीविटी कर रहे और जिसका परिणाम निकट भविष्य में देखने को मिलेगा।
जो लोग महाराष्ट्र से परिचित होंगे, उन्हें पता होगा, तो वहां पर जब जय भवानी कहते हैं तो जय शिवाजी का बुलंद नारा लगता है।
जय भवानी...जय भवानी...जय भवानी...जय भवानी...
आज हम यहां पर एक और ऐतिहासिक महाविजय का उत्सव मनाने के लिए इकट्ठा हुए हैं। आज महाराष्ट्र में विकासवाद की जीत हुई है। महाराष्ट्र में सुशासन की जीत हुई है। महाराष्ट्र में सच्चे सामाजिक न्याय की विजय हुई है। और साथियों, आज महाराष्ट्र में झूठ, छल, फरेब बुरी तरह हारा है, विभाजनकारी ताकतें हारी हैं। आज नेगेटिव पॉलिटिक्स की हार हुई है। आज परिवारवाद की हार हुई है। आज महाराष्ट्र ने विकसित भारत के संकल्प को और मज़बूत किया है। मैं देशभर के भाजपा के, NDA के सभी कार्यकर्ताओं को बहुत-बहुत बधाई देता हूं, उन सबका अभिनंदन करता हूं। मैं श्री एकनाथ शिंदे जी, मेरे परम मित्र देवेंद्र फडणवीस जी, भाई अजित पवार जी, उन सबकी की भी भूरि-भूरि प्रशंसा करता हूं।
साथियों,
आज देश के अनेक राज्यों में उपचुनाव के भी नतीजे आए हैं। नड्डा जी ने विस्तार से बताया है, इसलिए मैं विस्तार में नहीं जा रहा हूं। लोकसभा की भी हमारी एक सीट और बढ़ गई है। यूपी, उत्तराखंड और राजस्थान ने भाजपा को जमकर समर्थन दिया है। असम के लोगों ने भाजपा पर फिर एक बार भरोसा जताया है। मध्य प्रदेश में भी हमें सफलता मिली है। बिहार में भी एनडीए का समर्थन बढ़ा है। ये दिखाता है कि देश अब सिर्फ और सिर्फ विकास चाहता है। मैं महाराष्ट्र के मतदाताओं का, हमारे युवाओं का, विशेषकर माताओं-बहनों का, किसान भाई-बहनों का, देश की जनता का आदरपूर्वक नमन करता हूं।
साथियों,
मैं झारखंड की जनता को भी नमन करता हूं। झारखंड के तेज विकास के लिए हम अब और ज्यादा मेहनत से काम करेंगे। और इसमें भाजपा का एक-एक कार्यकर्ता अपना हर प्रयास करेगा।
साथियों,
छत्रपति शिवाजी महाराजांच्या // महाराष्ट्राने // आज दाखवून दिले// तुष्टीकरणाचा सामना // कसा करायच। छत्रपति शिवाजी महाराज, शाहुजी महाराज, महात्मा फुले-सावित्रीबाई फुले, बाबासाहेब आंबेडकर, वीर सावरकर, बाला साहेब ठाकरे, ऐसे महान व्यक्तित्वों की धरती ने इस बार पुराने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। और साथियों, बीते 50 साल में किसी भी पार्टी या किसी प्री-पोल अलायंस के लिए ये सबसे बड़ी जीत है। और एक महत्वपूर्ण बात मैं बताता हूं। ये लगातार तीसरी बार है, जब भाजपा के नेतृत्व में किसी गठबंधन को लगातार महाराष्ट्र ने आशीर्वाद दिए हैं, विजयी बनाया है। और ये लगातार तीसरी बार है, जब भाजपा महाराष्ट्र में सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है।
साथियों,
ये निश्चित रूप से ऐतिहासिक है। ये भाजपा के गवर्नंस मॉडल पर मुहर है। अकेले भाजपा को ही, कांग्रेस और उसके सभी सहयोगियों से कहीं अधिक सीटें महाराष्ट्र के लोगों ने दी हैं। ये दिखाता है कि जब सुशासन की बात आती है, तो देश सिर्फ और सिर्फ भाजपा पर और NDA पर ही भरोसा करता है। साथियों, एक और बात है जो आपको और खुश कर देगी। महाराष्ट्र देश का छठा राज्य है, जिसने भाजपा को लगातार 3 बार जनादेश दिया है। इससे पहले गोवा, गुजरात, छत्तीसगढ़, हरियाणा, और मध्य प्रदेश में हम लगातार तीन बार जीत चुके हैं। बिहार में भी NDA को 3 बार से ज्यादा बार लगातार जनादेश मिला है। और 60 साल के बाद आपने मुझे तीसरी बार मौका दिया, ये तो है ही। ये जनता का हमारे सुशासन के मॉडल पर विश्वास है औऱ इस विश्वास को बनाए रखने में हम कोई कोर कसर बाकी नहीं रखेंगे।
साथियों,
मैं आज महाराष्ट्र की जनता-जनार्दन का विशेष अभिनंदन करना चाहता हूं। लगातार तीसरी बार स्थिरता को चुनना ये महाराष्ट्र के लोगों की सूझबूझ को दिखाता है। हां, बीच में जैसा अभी नड्डा जी ने विस्तार से कहा था, कुछ लोगों ने धोखा करके अस्थिरता पैदा करने की कोशिश की, लेकिन महाराष्ट्र ने उनको नकार दिया है। और उस पाप की सजा मौका मिलते ही दे दी है। महाराष्ट्र इस देश के लिए एक तरह से बहुत महत्वपूर्ण ग्रोथ इंजन है, इसलिए महाराष्ट्र के लोगों ने जो जनादेश दिया है, वो विकसित भारत के लिए बहुत बड़ा आधार बनेगा, वो विकसित भारत के संकल्प की सिद्धि का आधार बनेगा।
साथियों,
हरियाणा के बाद महाराष्ट्र के चुनाव का भी सबसे बड़ा संदेश है- एकजुटता। एक हैं, तो सेफ हैं- ये आज देश का महामंत्र बन चुका है। कांग्रेस और उसके ecosystem ने सोचा था कि संविधान के नाम पर झूठ बोलकर, आरक्षण के नाम पर झूठ बोलकर, SC/ST/OBC को छोटे-छोटे समूहों में बांट देंगे। वो सोच रहे थे बिखर जाएंगे। कांग्रेस और उसके साथियों की इस साजिश को महाराष्ट्र ने सिरे से खारिज कर दिया है। महाराष्ट्र ने डंके की चोट पर कहा है- एक हैं, तो सेफ हैं। एक हैं तो सेफ हैं के भाव ने जाति, धर्म, भाषा और क्षेत्र के नाम पर लड़ाने वालों को सबक सिखाया है, सजा की है। आदिवासी भाई-बहनों ने भी भाजपा-NDA को वोट दिया, ओबीसी भाई-बहनों ने भी भाजपा-NDA को वोट दिया, मेरे दलित भाई-बहनों ने भी भाजपा-NDA को वोट दिया, समाज के हर वर्ग ने भाजपा-NDA को वोट दिया। ये कांग्रेस और इंडी-गठबंधन के उस पूरे इकोसिस्टम की सोच पर करारा प्रहार है, जो समाज को बांटने का एजेंडा चला रहे थे।
साथियों,
महाराष्ट्र ने NDA को इसलिए भी प्रचंड जनादेश दिया है, क्योंकि हम विकास और विरासत, दोनों को साथ लेकर चलते हैं। महाराष्ट्र की धरती पर इतनी विभूतियां जन्मी हैं। बीजेपी और मेरे लिए छत्रपति शिवाजी महाराज आराध्य पुरुष हैं। धर्मवीर छत्रपति संभाजी महाराज हमारी प्रेरणा हैं। हमने हमेशा बाबा साहब आंबेडकर, महात्मा फुले-सावित्री बाई फुले, इनके सामाजिक न्याय के विचार को माना है। यही हमारे आचार में है, यही हमारे व्यवहार में है।
साथियों,
लोगों ने मराठी भाषा के प्रति भी हमारा प्रेम देखा है। कांग्रेस को वर्षों तक मराठी भाषा की सेवा का मौका मिला, लेकिन इन लोगों ने इसके लिए कुछ नहीं किया। हमारी सरकार ने मराठी को Classical Language का दर्जा दिया। मातृ भाषा का सम्मान, संस्कृतियों का सम्मान और इतिहास का सम्मान हमारे संस्कार में है, हमारे स्वभाव में है। और मैं तो हमेशा कहता हूं, मातृभाषा का सम्मान मतलब अपनी मां का सम्मान। और इसीलिए मैंने विकसित भारत के निर्माण के लिए लालकिले की प्राचीर से पंच प्राणों की बात की। हमने इसमें विरासत पर गर्व को भी शामिल किया। जब भारत विकास भी और विरासत भी का संकल्प लेता है, तो पूरी दुनिया इसे देखती है। आज विश्व हमारी संस्कृति का सम्मान करता है, क्योंकि हम इसका सम्मान करते हैं। अब अगले पांच साल में महाराष्ट्र विकास भी विरासत भी के इसी मंत्र के साथ तेज गति से आगे बढ़ेगा।
साथियों,
इंडी वाले देश के बदले मिजाज को नहीं समझ पा रहे हैं। ये लोग सच्चाई को स्वीकार करना ही नहीं चाहते। ये लोग आज भी भारत के सामान्य वोटर के विवेक को कम करके आंकते हैं। देश का वोटर, देश का मतदाता अस्थिरता नहीं चाहता। देश का वोटर, नेशन फर्स्ट की भावना के साथ है। जो कुर्सी फर्स्ट का सपना देखते हैं, उन्हें देश का वोटर पसंद नहीं करता।
साथियों,
देश के हर राज्य का वोटर, दूसरे राज्यों की सरकारों का भी आकलन करता है। वो देखता है कि जो एक राज्य में बड़े-बड़े Promise करते हैं, उनकी Performance दूसरे राज्य में कैसी है। महाराष्ट्र की जनता ने भी देखा कि कर्नाटक, तेलंगाना और हिमाचल में कांग्रेस सरकारें कैसे जनता से विश्वासघात कर रही हैं। ये आपको पंजाब में भी देखने को मिलेगा। जो वादे महाराष्ट्र में किए गए, उनका हाल दूसरे राज्यों में क्या है? इसलिए कांग्रेस के पाखंड को जनता ने खारिज कर दिया है। कांग्रेस ने जनता को गुमराह करने के लिए दूसरे राज्यों के अपने मुख्यमंत्री तक मैदान में उतारे। तब भी इनकी चाल सफल नहीं हो पाई। इनके ना तो झूठे वादे चले और ना ही खतरनाक एजेंडा चला।
साथियों,
आज महाराष्ट्र के जनादेश का एक और संदेश है, पूरे देश में सिर्फ और सिर्फ एक ही संविधान चलेगा। वो संविधान है, बाबासाहेब आंबेडकर का संविधान, भारत का संविधान। जो भी सामने या पर्दे के पीछे, देश में दो संविधान की बात करेगा, उसको देश पूरी तरह से नकार देगा। कांग्रेस और उसके साथियों ने जम्मू-कश्मीर में फिर से आर्टिकल-370 की दीवार बनाने का प्रयास किया। वो संविधान का भी अपमान है। महाराष्ट्र ने उनको साफ-साफ बता दिया कि ये नहीं चलेगा। अब दुनिया की कोई भी ताकत, और मैं कांग्रेस वालों को कहता हूं, कान खोलकर सुन लो, उनके साथियों को भी कहता हूं, अब दुनिया की कोई भी ताकत 370 को वापस नहीं ला सकती।
साथियों,
महाराष्ट्र के इस चुनाव ने इंडी वालों का, ये अघाड़ी वालों का दोमुंहा चेहरा भी देश के सामने खोलकर रख दिया है। हम सब जानते हैं, बाला साहेब ठाकरे का इस देश के लिए, समाज के लिए बहुत बड़ा योगदान रहा है। कांग्रेस ने सत्ता के लालच में उनकी पार्टी के एक धड़े को साथ में तो ले लिया, तस्वीरें भी निकाल दी, लेकिन कांग्रेस, कांग्रेस का कोई नेता बाला साहेब ठाकरे की नीतियों की कभी प्रशंसा नहीं कर सकती। इसलिए मैंने अघाड़ी में कांग्रेस के साथी दलों को चुनौती दी थी, कि वो कांग्रेस से बाला साहेब की नीतियों की तारीफ में कुछ शब्द बुलवाकर दिखाएं। आज तक वो ये नहीं कर पाए हैं। मैंने दूसरी चुनौती वीर सावरकर जी को लेकर दी थी। कांग्रेस के नेतृत्व ने लगातार पूरे देश में वीर सावरकर का अपमान किया है, उन्हें गालियां दीं हैं। महाराष्ट्र में वोट पाने के लिए इन लोगों ने टेंपरेरी वीर सावरकर जी को जरा टेंपरेरी गाली देना उन्होंने बंद किया है। लेकिन वीर सावरकर के तप-त्याग के लिए इनके मुंह से एक बार भी सत्य नहीं निकला। यही इनका दोमुंहापन है। ये दिखाता है कि उनकी बातों में कोई दम नहीं है, उनका मकसद सिर्फ और सिर्फ वीर सावरकर को बदनाम करना है।
साथियों,
भारत की राजनीति में अब कांग्रेस पार्टी, परजीवी बनकर रह गई है। कांग्रेस पार्टी के लिए अब अपने दम पर सरकार बनाना लगातार मुश्किल हो रहा है। हाल ही के चुनावों में जैसे आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, हरियाणा और आज महाराष्ट्र में उनका सूपड़ा साफ हो गया। कांग्रेस की घिसी-पिटी, विभाजनकारी राजनीति फेल हो रही है, लेकिन फिर भी कांग्रेस का अहंकार देखिए, उसका अहंकार सातवें आसमान पर है। सच्चाई ये है कि कांग्रेस अब एक परजीवी पार्टी बन चुकी है। कांग्रेस सिर्फ अपनी ही नहीं, बल्कि अपने साथियों की नाव को भी डुबो देती है। आज महाराष्ट्र में भी हमने यही देखा है। महाराष्ट्र में कांग्रेस और उसके गठबंधन ने महाराष्ट्र की हर 5 में से 4 सीट हार गई। अघाड़ी के हर घटक का स्ट्राइक रेट 20 परसेंट से नीचे है। ये दिखाता है कि कांग्रेस खुद भी डूबती है और दूसरों को भी डुबोती है। महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा सीटों पर कांग्रेस चुनाव लड़ी, उतनी ही बड़ी हार इनके सहयोगियों को भी मिली। वो तो अच्छा है, यूपी जैसे राज्यों में कांग्रेस के सहयोगियों ने उससे जान छुड़ा ली, वर्ना वहां भी कांग्रेस के सहयोगियों को लेने के देने पड़ जाते।
साथियों,
सत्ता-भूख में कांग्रेस के परिवार ने, संविधान की पंथ-निरपेक्षता की भावना को चूर-चूर कर दिया है। हमारे संविधान निर्माताओं ने उस समय 47 में, विभाजन के बीच भी, हिंदू संस्कार और परंपरा को जीते हुए पंथनिरपेक्षता की राह को चुना था। तब देश के महापुरुषों ने संविधान सभा में जो डिबेट्स की थी, उसमें भी इसके बारे में बहुत विस्तार से चर्चा हुई थी। लेकिन कांग्रेस के इस परिवार ने झूठे सेक्यूलरिज्म के नाम पर उस महान परंपरा को तबाह करके रख दिया। कांग्रेस ने तुष्टिकरण का जो बीज बोया, वो संविधान निर्माताओं के साथ बहुत बड़ा विश्वासघात है। और ये विश्वासघात मैं बहुत जिम्मेवारी के साथ बोल रहा हूं। संविधान के साथ इस परिवार का विश्वासघात है। दशकों तक कांग्रेस ने देश में यही खेल खेला। कांग्रेस ने तुष्टिकरण के लिए कानून बनाए, सुप्रीम कोर्ट के आदेश तक की परवाह नहीं की। इसका एक उदाहरण वक्फ बोर्ड है। दिल्ली के लोग तो चौंक जाएंगे, हालात ये थी कि 2014 में इन लोगों ने सरकार से जाते-जाते, दिल्ली के आसपास की अनेक संपत्तियां वक्फ बोर्ड को सौंप दी थीं। बाबा साहेब आंबेडकर जी ने जो संविधान हमें दिया है न, जिस संविधान की रक्षा के लिए हम प्रतिबद्ध हैं। संविधान में वक्फ कानून का कोई स्थान ही नहीं है। लेकिन फिर भी कांग्रेस ने तुष्टिकरण के लिए वक्फ बोर्ड जैसी व्यवस्था पैदा कर दी। ये इसलिए किया गया ताकि कांग्रेस के परिवार का वोटबैंक बढ़ सके। सच्ची पंथ-निरपेक्षता को कांग्रेस ने एक तरह से मृत्युदंड देने की कोशिश की है।
साथियों,
कांग्रेस के शाही परिवार की सत्ता-भूख इतनी विकृति हो गई है, कि उन्होंने सामाजिक न्याय की भावना को भी चूर-चूर कर दिया है। एक समय था जब के कांग्रेस नेता, इंदिरा जी समेत, खुद जात-पात के खिलाफ बोलते थे। पब्लिकली लोगों को समझाते थे। एडवरटाइजमेंट छापते थे। लेकिन आज यही कांग्रेस और कांग्रेस का ये परिवार खुद की सत्ता-भूख को शांत करने के लिए जातिवाद का जहर फैला रहा है। इन लोगों ने सामाजिक न्याय का गला काट दिया है।
साथियों,
एक परिवार की सत्ता-भूख इतने चरम पर है, कि उन्होंने खुद की पार्टी को ही खा लिया है। देश के अलग-अलग भागों में कई पुराने जमाने के कांग्रेस कार्यकर्ता है, पुरानी पीढ़ी के लोग हैं, जो अपने ज़माने की कांग्रेस को ढूंढ रहे हैं। लेकिन आज की कांग्रेस के विचार से, व्यवहार से, आदत से उनको ये साफ पता चल रहा है, कि ये वो कांग्रेस नहीं है। इसलिए कांग्रेस में, आंतरिक रूप से असंतोष बहुत ज्यादा बढ़ रहा है। उनकी आरती उतारने वाले भले आज इन खबरों को दबाकर रखे, लेकिन भीतर आग बहुत बड़ी है, असंतोष की ज्वाला भड़क चुकी है। सिर्फ एक परिवार के ही लोगों को कांग्रेस चलाने का हक है। सिर्फ वही परिवार काबिल है दूसरे नाकाबिल हैं। परिवार की इस सोच ने, इस जिद ने कांग्रेस में एक ऐसा माहौल बना दिया कि किसी भी समर्पित कांग्रेस कार्यकर्ता के लिए वहां काम करना मुश्किल हो गया है। आप सोचिए, कांग्रेस पार्टी की प्राथमिकता आज सिर्फ और सिर्फ परिवार है। देश की जनता उनकी प्राथमिकता नहीं है। और जिस पार्टी की प्राथमिकता जनता ना हो, वो लोकतंत्र के लिए बहुत ही नुकसानदायी होती है।
साथियों,
कांग्रेस का परिवार, सत्ता के बिना जी ही नहीं सकता। चुनाव जीतने के लिए ये लोग कुछ भी कर सकते हैं। दक्षिण में जाकर उत्तर को गाली देना, उत्तर में जाकर दक्षिण को गाली देना, विदेश में जाकर देश को गाली देना। और अहंकार इतना कि ना किसी का मान, ना किसी की मर्यादा और खुलेआम झूठ बोलते रहना, हर दिन एक नया झूठ बोलते रहना, यही कांग्रेस और उसके परिवार की सच्चाई बन गई है। आज कांग्रेस का अर्बन नक्सलवाद, भारत के सामने एक नई चुनौती बनकर खड़ा हो गया है। इन अर्बन नक्सलियों का रिमोट कंट्रोल, देश के बाहर है। और इसलिए सभी को इस अर्बन नक्सलवाद से बहुत सावधान रहना है। आज देश के युवाओं को, हर प्रोफेशनल को कांग्रेस की हकीकत को समझना बहुत ज़रूरी है।
साथियों,
जब मैं पिछली बार भाजपा मुख्यालय आया था, तो मैंने हरियाणा से मिले आशीर्वाद पर आपसे बात की थी। तब हमें गुरूग्राम जैसे शहरी क्षेत्र के लोगों ने भी अपना आशीर्वाद दिया था। अब आज मुंबई ने, पुणे ने, नागपुर ने, महाराष्ट्र के ऐसे बड़े शहरों ने अपनी स्पष्ट राय रखी है। शहरी क्षेत्रों के गरीब हों, शहरी क्षेत्रों के मिडिल क्लास हो, हर किसी ने भाजपा का समर्थन किया है और एक स्पष्ट संदेश दिया है। यह संदेश है आधुनिक भारत का, विश्वस्तरीय शहरों का, हमारे महानगरों ने विकास को चुना है, आधुनिक Infrastructure को चुना है। और सबसे बड़ी बात, उन्होंने विकास में रोडे अटकाने वाली राजनीति को नकार दिया है। आज बीजेपी हमारे शहरों में ग्लोबल स्टैंडर्ड के इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने के लिए लगातार काम कर रही है। चाहे मेट्रो नेटवर्क का विस्तार हो, आधुनिक इलेक्ट्रिक बसे हों, कोस्टल रोड और समृद्धि महामार्ग जैसे शानदार प्रोजेक्ट्स हों, एयरपोर्ट्स का आधुनिकीकरण हो, शहरों को स्वच्छ बनाने की मुहिम हो, इन सभी पर बीजेपी का बहुत ज्यादा जोर है। आज का शहरी भारत ईज़ ऑफ़ लिविंग चाहता है। और इन सब के लिये उसका भरोसा बीजेपी पर है, एनडीए पर है।
साथियों,
आज बीजेपी देश के युवाओं को नए-नए सेक्टर्स में अवसर देने का प्रयास कर रही है। हमारी नई पीढ़ी इनोवेशन और स्टार्टअप के लिए माहौल चाहती है। बीजेपी इसे ध्यान में रखकर नीतियां बना रही है, निर्णय ले रही है। हमारा मानना है कि भारत के शहर विकास के इंजन हैं। शहरी विकास से गांवों को भी ताकत मिलती है। आधुनिक शहर नए अवसर पैदा करते हैं। हमारा लक्ष्य है कि हमारे शहर दुनिया के सर्वश्रेष्ठ शहरों की श्रेणी में आएं और बीजेपी, एनडीए सरकारें, इसी लक्ष्य के साथ काम कर रही हैं।
साथियों,
मैंने लाल किले से कहा था कि मैं एक लाख ऐसे युवाओं को राजनीति में लाना चाहता हूं, जिनके परिवार का राजनीति से कोई संबंध नहीं। आज NDA के अनेक ऐसे उम्मीदवारों को मतदाताओं ने समर्थन दिया है। मैं इसे बहुत शुभ संकेत मानता हूं। चुनाव आएंगे- जाएंगे, लोकतंत्र में जय-पराजय भी चलती रहेगी। लेकिन भाजपा का, NDA का ध्येय सिर्फ चुनाव जीतने तक सीमित नहीं है, हमारा ध्येय सिर्फ सरकारें बनाने तक सीमित नहीं है। हम देश बनाने के लिए निकले हैं। हम भारत को विकसित बनाने के लिए निकले हैं। भारत का हर नागरिक, NDA का हर कार्यकर्ता, भाजपा का हर कार्यकर्ता दिन-रात इसमें जुटा है। हमारी जीत का उत्साह, हमारे इस संकल्प को और मजबूत करता है। हमारे जो प्रतिनिधि चुनकर आए हैं, वो इसी संकल्प के लिए प्रतिबद्ध हैं। हमें देश के हर परिवार का जीवन आसान बनाना है। हमें सेवक बनकर, और ये मेरे जीवन का मंत्र है। देश के हर नागरिक की सेवा करनी है। हमें उन सपनों को पूरा करना है, जो देश की आजादी के मतवालों ने, भारत के लिए देखे थे। हमें मिलकर विकसित भारत का सपना साकार करना है। सिर्फ 10 साल में हमने भारत को दुनिया की दसवीं सबसे बड़ी इकॉनॉमी से दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी इकॉनॉमी बना दिया है। किसी को भी लगता, अरे मोदी जी 10 से पांच पर पहुंच गया, अब तो बैठो आराम से। आराम से बैठने के लिए मैं पैदा नहीं हुआ। वो दिन दूर नहीं जब भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनकर रहेगा। हम मिलकर आगे बढ़ेंगे, एकजुट होकर आगे बढ़ेंगे तो हर लक्ष्य पाकर रहेंगे। इसी भाव के साथ, एक हैं तो...एक हैं तो...एक हैं तो...। मैं एक बार फिर आप सभी को बहुत-बहुत बधाई देता हूं, देशवासियों को बधाई देता हूं, महाराष्ट्र के लोगों को विशेष बधाई देता हूं।
मेरे साथ बोलिए,
भारत माता की जय,
भारत माता की जय,
भारत माता की जय,
भारत माता की जय,
भारत माता की जय!
वंदे मातरम, वंदे मातरम, वंदे मातरम, वंदे मातरम, वंदे मातरम ।
बहुत-बहुत धन्यवाद।