PM Modi speaks at the 46th Indian Labour Conference
The country cannot be happy, if the worker is unhappy. As a society, we need to respect the Dignity of Labour: PM
If we want to move ahead, we need to give opportunities to our youth. Giving opportunities to apprentices is the need for the hour: PM Modi

केंद्र और राज्‍य के भिन्‍न-भिन्‍न सरकारों के प्रतिनिधि बंधु गण,

ये भारत की श्रम-संसद है और एक लंबे अरसे से हमारे देश में त्रिपक्षीय वार्ता का सिलसिला चला है। एक प्रकार से ये त्रिपक्षीय वार्ता के 75 वर्ष पूरे हो रहे हैं। ये अपने आप में एक उज्‍ज्‍वल इतिहास है कि 75 साल का हमारे पास एक गहरा अनुभव है। उद्योग जगत सरकार एवं श्रम संगठन गत 75 वर्ष से लगातार बैठ करके विचार-विमर्श करके मत भिन्‍नताओं के बीच भी मंथन करके अमृत निकालने का प्रयास करते रहे हैं। और उसी संजीवनी से देश को आगे बढ़ाने की कोशिश करते रहे हैं और उसी कड़ी में आज यह श्रम संसद हो रहा है। हम सबके लिए प्रेरणा की बात है कि यह वो समारोह है जहां कभी बाबा साहेब अंबेडकर का मार्ग दर्शन मिला था। यह वो समारोह है जिसे कभी भारत के भूत-पूर्व राष्‍ट्रपति श्रीमान वीवी गिरि जी का मार्ग दर्शन मिला था। अनेक महानुभावों के पद चिन्‍हों पर चलते-चलते आज हम यहां पहुंचे हैं। समय का अपना एक प्रभाव होता है। आज से 70-75 साल पहले जिन बिंदुओं पर विचार करने की जरूरत होती थी वो आज जरूरत नहीं होगी और आज जिन बिंदुओं पर विचार करने की आवश्‍यकता है हो सकता है 25 साल बाद वह भी काल बाह्य हो जाए, क्‍योंकि एक जीवंत व्‍यवस्‍था का यह लक्षण होता है, नित्‍य नूतन, नित्‍य परिवर्तनशील और अच्‍छे लक्षण की पूर्ति के लिए एकत्र होकर आगे बढ़ना है। इस बात में कोई दुविधा नहीं है। इस बात में कोई मत-मतांतर नहीं है कि राष्‍ट्र के निर्माण में श्रमिक का कितना बड़ा योगदान होता है, चाहे वो किसान हो मजदूर हो, वो unorganized लेबर का हिस्‍सा हो, और हमारे यहां तो सदियों से इन सबको एक शब्‍द से जाना जाता है- विश्‍वकर्मा। विश्‍वकर्मा के रूप में जिसको जाना जाता है, माना जाता है और इसलिए अगर श्रमिक रहेगा दुखी , तो देश कैसे होगा सुखी? और मैं नहीं मानता हूं कि इन मूलभूत बातों में हममें से किसी में कोई मतभेद है। मैं श्रम को एक महायज्ञ मानता हूं जिसमें कोटि अवधि लोग अपनी आहूति देते हैं। सिर्फ श्रम की नहीं, कभी-कभार तो सपनों की भी आहूति देते हैं और तब जा करके किसी ओर के सपने संजोए जा सकते हैं। अगर एक श्रमिक अपने सपनों को आहूत न करता तो किसी दूसरे के सपने कभी संजोए नहीं जा सकते। इतना बड़ा योगदान समाज के इस तबके का है और इस सच्‍चाई को स्‍वीकार करते हुए हमने आगे किस दिशा में जाना है उस पर हमें आगे सोचना होगा। जब तक श्रमिक, मालिक- उनके बीच परिवार भाव पैदा नहीं होता है, अपनेपन का भाव पैदा नहीं होता है। मालिक अगर यह सोचता है कि वो किसी का पेट भरता है और श्रमिक यह सोचता है कि मेरे पसीने से ही तुम्‍हारी दुनिया चलती है तो मैं नहीं समझता कि कारोबार ठीक से चलेगा। लेकिन अगर परिवार भाव हो, एक श्रमिक का दुख मालिक को रात को बैचेन बना देता हो, और फैक्‍टरी का हुआ कोई नुकसान श्रमिक को रात को सोने न देता हो, यह परिवार भाव जब पैदा होता है तब विकास की यात्रा को कोई रोक नहीं सकता | और यह जिम्‍मेवारी जब हम निभाएंगे तब जाकर के, मैं तो चाहूंगा कभी यह भी सोचा जा सकता है क्‍या। इन सारी चर्चाओं का कभी वैज्ञानिक तरीके से अध्‍ययन होने की आवश्‍यकता है। ऐसे बड़े उद्योग और ऐसे छोटे उद्योग या मध्‍यम दर्जे के उद्योग 50 साल पुराने है, लेकिन कभी हड़ताल नहीं हुई है क्‍या कारण होगा। उसको चलाने वाले लोगों की सोच क्‍या रही होगी। उन्‍होंने उनके साथ किस प्रकार से नाता जोड़ा है, क्‍या हम आज नए उद्योगकारों को, establish उद्योगकारों को , उनको यह नमूना दिखा सकते हैं कि हमारे सामने, हमारे ही देश में, इसी धरती में ये 50 उद्योग ऐसे हैं जो 50 साल से चल रहे हैं। हजारों की तादाद में श्रमिक है। लेकिन न कभी संघर्ष हुआ है, न कभी हड़ताल हुई है, न उनकी कोई शिकायत, न इनकी कोई शिकायत। एक मंगलम माहौल जिन-जिन इकाईयों में है, कभी उनको छांटकर निकालना चाहिए और उस मंगलम का कारण क्‍या है, इस मंगल अवस्‍था को प्राप्‍त करने के उनके तौर तरीके क्‍या है। अगर इन चीजों को हम श्रमिकों के सामने ले जाएंगे, इन चीजों को हम उद्योगकारों के सामने ले जाएंगे तो उनको भली-भांति समझा सकते हैं और मंगलम का माहौल जहां होगा, वहां यह भी नजर आया होगा कि सिर्फ श्रमिक का असंतोष है, ऐसा नहीं है। वहां यह भी ध्‍यान में आया होगा कि उस उद्योग का विकास भी उतना ही हुआ होगा और उन श्रमिकों का विकास भी उतना ही हुआ होगा। जब तक हम इस भावनात्‍मक अवस्‍था को आगे बढ़ाने की दिशा में प्रयास नहीं करते और जो सफल गाथाएं हैं और उन सफल गाथाओं को हम उजागर नहीं करते, मैं नहीं मानता हूं कि हम सिर्फ कानूनों के द्वारा बंधनों को लगाते-लगाते समस्‍याओं का समाधान कर पाएंगे। हां, कानून उनके लिए जरूरी है कि जो किसी चीज को मानने को तैयार नहीं होते, श्रमिक को इंसान भी मानने को तैयार नहीं होते। उनकी सुख-सुविधा की बात तो छोड़ दीजिए उसकी minimum आवश्‍यकताओं की ओर भी देखने को तैयार नहीं होते। ऐसे लोगों को कानूनों की उतनी ही जरूरत होती है और इसलिए हम इस व्‍यवस्‍था को उस रूप में समझकर चलाएं। एक सामाजिक दृष्‍टि से भी हमारे यहां सोचने की बहुत आवश्‍यकता है। किसी न किसी कारण से हमारे भीतर एक बहुत बड़ी बुराई पनप गई है। हमारी सोच का हिस्‍सा बन गई है। हर चीज को देखने के हमारे तरीके की आदत सा बन गयी है और वो है हम कभी भी श्रम करने वाले के प्रति आदर के भाव से देखते ही नहीं। कोई बढ़िया कपड़े पहन करके हमारे दरवाजे की घंटी बजाए, दोपहर दो बजे हम आराम से सोए हों, कोट-पैंट सूट पहनकर आए और घंटी बजाए तो नींद खराब होगी ही होगी, दरवाजा खोलेंगे और जैसे ही उसको देखेंगे तो कहेंगे आइए आइए कहां से आए हैं, क्‍या काम था, बैठिए-बैठिए। और कोई ऑटो रिक्‍शा वाले ने घंटी बजाई, पता नहीं चलता है दोपहर दो बजे हम सोते हैं, इस समय घंटी बजा दी। क्‍यों भई यह फर्क क्‍यों?



यह जो हमारी सामाजिक जीवन की सबसे बड़ी कमी आई है सदियों के कारण आई हुई है। लेकिन कभी न कभी dignity of labour , श्रम की प्रतिष्‍ठा, श्रमिक का सम्‍मान ये समाज के नाते अगर हम स्‍वभाव नहीं बनाएंगे तो हम हमारे श्रमिकों के प्रति जो कि उसके बिना हमारी जिन्‍दगी नहीं है, अगर कोई धोबी बढ़िया सा iron नहीं करता तो मैं कुर्ता पहनकर कहां से आता यहां और इसलिए जिनके भरोसे हमारी जिन्‍दगी है उनके प्रति सम्‍मान का भाव यह सामाजिक चरित्र कैसे पैदा हो, उसके लिए हम किस प्रकार से व्‍यवस्‍थाओं को विकसित करे। हमारे बच्‍चों की पाठ्य पुस्‍तकों में उस प्रकार के syllabus कैसे आए ताकि सहज रूप से आनी वाली पीढ़ियां हमारे श्रमिक के प्रति सम्‍मान के भाव से देखने लगे। आप देखिए माहौल अपने आप बदलना शुरू हो जाएगा। हमारी सरकार को सेवा करने का अवसर मिला है, श्रम संगठनों के साथ लगातार बातचीत चल रही है और त्रिपक्षीय बातचीत के आधार पर ही आगे बढ़ रहे हैं। कई पुरानी-पुरानी गुत्‍थियां हैं, सुलझानी है और मुझे विश्‍वास है कि देश के श्रमिकों के आशीर्वाद से इन गुत्‍थियों को सुलझाने में हम सफल होंगे और समस्‍याओं का समाधान करने में हम कोई न कोई रास्‍ते खोजते चलेंगे। और सहमति से कानूनों का भी परिवर्तन करना होगा। कानूनों में कोई कुछ जोड़ना होगा, कुछ निकालना होगा वो भी सहमति से करने का प्रयास, प्रयास करते ही रहना चाहिए और निरंतर प्रक्रिया चलती रही है, आगे भी चलती रहने वाली है। कोई भी सरकार आए, ये कोई आखिरी कार्यक्रम कभी होता नहीं है और इसलिए मैं समझता हूं कि इस प्रक्रिया का अपना महत्‍व है। मेरा विश्‍वास रहा है- ‘minimum government , maximum governance’ और इसलिए ये जो कानूनों के ढेर हैं कानूनों का ऐसा कहीं खो जाए इन्‍सान। पता नहीं इतने कानून बनाये कर रखे हुए और हरेक को अपने फायदे वाला कानून ढूंढ सकते हैं ऐसी स्थिति है। हर कोई उद्योगकार एक ही कानून में से उद्योगकार को अपने मतलब का कानून निकलाना है तो वो भी निकाल सकता है सामाजिक संगठन को निकालना है तो वो भी निकाल सकता है, सरकार को निकालना है तो वो भी निकाल सकती है। क्‍योंकि टुकड़ों में सब चीजें चलती रही हैं | जब तक हम एक एकत्रित भाव से, composite भाव से, हमें जाना कहां है उसको ले करके , और इसीलिए मैंने एक कमेटी भी बनाई है के इन सबमें जो पुराने कानूनों को जरा देखरेख में सही कैसे किया जाए। और सच्‍चे अर्थ में जिनके लिए बनाए गए हैं कानून उनको लाभ हो रहा है या नहीं हो रहा। वरना कोई और जगह पर ऐसा कानून बनके बैठा हुआ है जो इसको आगे ही नहीं जाने देता। अब श्रमिक कहां लड़ेगा, कहां जाएगा। वो क्‍या कोर्ट कचहरी में इतने महंगे वकील रखेगा क्‍या। और इसलिए मेरा यहा आग्रह है और मैं ये कोशिश कर रहा हूं कि ये कानूनों का एक बहुत बड़ा जाल हो गया है उसका सरलीकरण हो, गरीब से गरीब व्‍यक्ति भी अपने हकों को भली भांति समझ पाएं, हकों को प्राप्‍त कर पाएं। ऐसी व्‍यवस्‍थाओं को हमने विकसित करने की दिशा में हमारा प्रयास है और मेरा विश्‍वास है कि हम उसको कर पाएंगे। मैं कभी-कभी उद्योग जगत के मित्रों से भी कहना चाहता हूं और मैं चाहूंगा कभी हमारे इस Forum में एक और पहलू पर भी हम सोच सकते हैं क्‍या, क्‍योंकि हमने अपने एजेंडे को बड़ा सीमित कर दिया है। और जब तक उसका दायरा नहीं बढ़ाऐंगे पूरे माहौल में बदलाव नहीं आएगा। कितने उद्योगार हैं जिन्‍होंने अपने उद्योग चलाते-चलाते ऐसा माहौल बनाया, ऐसी व्‍यवस्‍था बनाई कि खुद का ही काम करने वाला एक मजदूर आगे चल करके Entrepreneur बना। कभी ये ऐसे ही तो खोज के निकालना चाहिए क्‍या उद्योगकार का यही काम है क्‍या। क्‍या 18-20 साल की उम्र में उसके यहां आया वो 60 साल का होने के बाद किसी काम का न रहे तब तक उसी के यहां फंसा पड़ा रहे। क्‍या ऐसा माहौल कभी उसने बताया कि हां मेरे यहां मजदूर के यहां पे आया था लेकिन मैंने देखा भई उसमें बहुत बड़ी क्षमता है, टेलैंट है, थोड़ा मैं उसको सहारा दे दूं वो अपने-आप में एक Entrepreneur बन सकता है और मैं ही एक-आध पुर्जा बनाएगा तो मैं खुद खरीद लूंगा जो मेरी फैक्‍टरी के लिए जरूरी है तो एक अच्‍छा Entrepreneur तैयार हो जाएगा।



कभी न कभी हमें सोचना चाहिए हमारे देश में छोटे और मध्‍यम एवं बड़े उद्योगकार कितने हैं कि जो हर वर्ष अपने ही यहां काम करने वाले कितने मजदूरों को उद्योगकार बनाया हो, Entrepreneur बनाया हो, Supplier बनाया हो, कितनों को बनाया कभी ये भी तो हिसाब लगाया जाए। उसी प्रकार से हमने देखा है कि आईटी फर्म, उसके विकास का मूल कारण क्‍या है, IT Firm के विकास का मूल कारण यह है कि उन्‍होंने अपन employee को कहा कि कुछ समय तुम्‍हारा अपना समय है। तुम खुद सॉफ्टवेयर‍ विकसित करो, तुम अपने ‍दिमाग का उपयोग करो और ये motivation के कारण सॉफटेवयर की दुनिया में नई-नई चीजें वो लेकर के आए फिर वो कम्‍पनी की बनी और बाद में जा करके वो बिकी। अवसर दिया गया, हमारे इतने सारे उद्योग चल रहे हैं, मैन्‍युफैक्‍चरिंग का काम करते हैं, कैमिकल एक्टिविटी का काम करते हैं, क्‍या हमने हमारे यहां इस टैलेंट को innovation के लिए अवसर दिया है क्‍या? क्‍या उद्योगकारों को पता है कि जिसको आप अनपढ़ मानते हो, जिसको आप unskilled labour मानते हो, उसके अंदर भी वो ईश्‍वर ने ताकत दी है, वो आपकी फैक्‍टरी में एकाध चीज ऐसी बदल देता है, कि आपके प्रोडक्‍ट की क्‍वालिटी इतनी बढ़ जाती है, बाजार में बहुत बड़ा मार्केट खड़ा हो जाता है, आप फायदा तो ले लेते हो लेकिन उसके innovation skill को recommend नहीं करते हो। मैं मानता हूं हमारे उद्योगकारों ने अपने जीवन में, सरकारों ने भी और श्रम संगठनों ने भी पूछना चाहिए कि कितने उद्योगकार हैं, कितने उद्योग हैं कि जहां पर इनोवेशन को बल दिया गया है। हर वर्ष कम से कम एक नया इनोवेटेड काम निकलता है क्‍या? हमारे यहां सेना के विशेष दिवस मनाए जाते हैं,आर्मी का, एयरफोर्स का, नेवी का। राष्‍ट्रपति जी, प्रधानमंत्री सब जाते हैं, एट-होम करते हैं वो, तो मैं पिछली बार जब हमारे सेना के लोगों के पास गया तो मैंने उनको कहा भई ठीक है ये आपका चल रहा है कि ये ही चलाते रहोगे क्‍या? हम आते हैं, 30-40 मिनट वहां रुकते हैं, चायपान होता है, फिर चले जाते हैं। मैंने कहा मेरा एक सुझाव है अगर आप कर सकते हो तो, तो बोले क्‍या है सर? मैंने कहा क्‍या फौज में ऐसे छोटे-छोटे लोग हैं क्‍या, सिपाही होंगे, छोटे-छोटे लोग हैं, लेकिन उन्‍होंने काम करते-करते कोई न कोई इनोवेशन किया है जो देश की सुरक्षा के लिए बहुत काम आता है। उसमें नया आइडिया, क्‍योंकि वो फील्‍ड में है, उसे पता रहता है कि इसके बजाय ऐसा करो तो अच्‍छा रहेगा। मैंने ये कहा तो फिर हमारे आर्मी के लोगों ने ढूंढना शुरू किया।

बहुत ही कम समय मिला था लेकिन कोई 12-15 लोगों को ले आए वो और जब उनकी innovations मैंने देखा, मैं हैरान था सेना के काम आनेवाली टेक्‍नोलॉजी के संदर्भ में, कपड़ों के संदर्भ में, इतने बारीक छोटी-छोटी चीजों में उन्‍होंने बदलाव लाकर के बताया था अगर इसको हम मल्‍टीप्‍लाई करें तो सेना के कितना बड़ा काम आएगा और भारत की रक्षा के लिए कितना बड़ा काम आएगा। लेकिन उस आखिरी इन्‍सान की तरफ देखता कौन है जी? उसकी क्षमता को कौन स्‍वीकार करता है? मुझे ये माहौल बदलना है कि मेरे उद्योगकार मित्र बहुत बड़ी डिग्री लेकर आया हुआ व्‍यक्ति ही दुनिया को कुछ देता है ऐसा नहीं है। छोटे से छोटा व्‍यक्ति भी दुनिया को बहुत कुछ दे करके जाता है, सिर्फ हमारी नजरों की तरफ नहीं होता है और इसलिए हम एक कल्‍चर विकसित कर सकते हैं, व्‍यवस्‍था विकसित कर सकते हैं कि जिसमें उन, और मैं तो चाहता हूं श्रमिक संगठन भी ऐसे लोगों को सम्‍मानित करें, उद्योग भी सम्‍मानित करें और सरकार भी श्रम संसद के समय सामान्‍य मजदूर ने की हुई इनोवेशन जिसने देश का भला किया हो, उसमा सम्‍मान करने का कार्यक्रम करके हम श्रम की प्रतिष्‍ठा कैसे बढ़ाएं उस दिशा में हमें आगे बढ़ना चाहिए। हमें एक नए तरीके से चीजों को कैसे सोचना चाहिए, नई चीजों में कैसे बदलाव लाना चाहिए, उस पर सोचने की आवश्‍यकता है। हमारी कोशिश होनी चाहिए कि मजदूर हमेशा मजदूर क्‍यों रहे? उसी प्रकार से कुछ लोग ऐसे होते हैं कि पिताजी एक कारखाने में काम करते हैं, बेटा भी साथ जाना शुरू कर दिया, और वहीं काम करते, करते, करते एकाध चीज सीख लेता है और अपनी गाड़ी चला लेता है। उसके पास ऑफिशियल कोई डिग्री नहीं होती है, कोई सर्टिफिकेट नहीं होता है और उसके लिए वो हमेशा उस उद्योगकार की कृपा पर जीने के लिए मजबूर हो जाता है। इससे बड़ा शोषणा क्‍या हो सकता है कि उसको जो जिसके यहां उसके पिताजी काम करते थे, अब उसको वहीं पर काम करना पड़ रहा है, क्‍यों, क्‍योंकि उसके पास स्किल है लेकिन स्किल को दुनिया के अंदर ले जाने के लिए एक जो सर्टिफिकेट चाहिए वो नहीं है तो कोई घुसने नहीं देता है और वो भी कहीं जाने की हिम्‍मत नहीं करता है, उसको लगता है चलिए ये ही मेरे मां-बाप हैं उन्‍होंने ही मेरे बाप को संभाला था, मुझे भी संभाल लिया, चलिए भई जो दें मैं काम कर लूंगा। इससे बड़ी कोई अपमानजनक स्थिति नहीं हो सकती हमारी। और इसको बदलने का मेरे भीतर एक दर्द बढ़ा था और उसी में से हमने एक योजना बनाई है और मैं मानता हूं ये योजना श्रमिक के जीवन को और मैं नहीं मानता किसी श्रमिक संगठनों ने इस पर ध्‍यान गया होगा। कभी उसने सोचा नहीं होगा कि कोई सरकार श्रमिकों के लिए सोचती है तो कैसे सोचती है? हमने कहा कि जो परम्‍परागत इस प्रकार के शिक्षा पाए बिना ही चीजों को करता है भले ही उसकी उम्र 30 हो, 40 हो गई, 50 हो गई होगी, सरकार ने उसको सर्टिफाई करना चाहिए,official recognition देना चाहिए, official government का सर्टिफिकेट देना चाहिए ताकि उनका confidence लेवल बढ़ेगा, उसका मार्केट वैल्‍यू बढ़ेगा और वो एक उद्योगकार के यहां कभी अपाहिज बन करके जिन्‍दगी नहीं गुजारेगा। हमने officially ये decision लिया है।



कहने का तात्‍पर्य ये है कि हमें इन दिशाओं में सोचने की आवश्‍यकता है। हमें बदलाव करने की दिशा में प्रयास करने चाहिएं। इसी प्रकार से एक बात की ओर ध्‍यान देने की मैं आवश्‍यकता समझता हूं, इसको कोई गलत अर्थ न निकाले, कोई बुरा न माने। कभी-कभार, जब चर्चा होती है कि उद्योग की भलाई, ये बात ठीक है कि देश की भलाई के लिए उद्योगों का विकास आवश्‍यक है, उद्योग की भलाई और उद्योगपति की भलाई, इसमें बहुत ही बारीक रेखा होती है। देश की भलाई और सरकार की भलाई इसमें बहुत बारीक रेखा होती है। श्रम संगठन की भलाई और श्रमिक की भलाई, बहुत बारीक रेखा होती है। और इसलिए इस बारीक रेखा की नजाकत को कभी-कभार उद्योग बचाना चाहते हैं लेकिन उनमें कभी-कभार हम उद्योगपति को बचा लेते हैं। कभी-कभार हम बात तो कर लेते हैं देश को बचाने की लेकिन कोशिश सरकार को बचाने की करते हैं। और उसी प्रकार से कभी-कभार हम बात श्रमिक की करते हैं लेकिन हम कोशिश हमारे श्रम संगठन की सुरक्षा की करते हैं। हम तीनों पार्टनर यहां बैठे हैं, हम तीनों पार्टनर यहां बैठे हैं और तीनों ने इस बारीक रेखा की मर्यादाओं को स्‍वीकार करना होगा, letter and spirit को स्‍वीकार करना होगा तब मैं मानता हूं श्रमिक का भी भला होगा, देश के उद्योग के विकास की यात्रा भी चलेगी और देश का भी भला होगा, सरकारों की भलाई के लिए नहीं चलता होगी। और इसलिए इन मूलभूत बातों की ओर हम कैसे मिल-बैठ करके एक सकारात्‍मक माहौल बनाने के भी दस कदम हो सकते हैं, श्रमिक की भलाई के दस कदम हो सकते हैं आवश्‍यक है तो राष्‍ट्र को आगे बढ़ाने की भी दस कदम हो सकते हैं वो भी इसके साथ-साथ आना चाहिए। जब तक हम इन बातों को संतुलित रूप से आगे नहीं ले जाएंगे, तब तक हम माहौल बदलने में सफल नहीं होंगे। और मुझे विश्‍वास है कि आज की श्रम संसद में बैठ करके हम लोग उस माहौल को निर्माण करने की दिशा में आगे बढ़गे। भारत में 65 प्रतिशत जनसंख्‍या 35 साल से कम आयु की है। हमारा देश एक प्रकार से विश्‍व का सबसे नौजवान देश है। आज दुनिया को skilled workforce की आवश्‍यकता है। Skill Development और Skill India ये मिशन हमारे नौजवानों को रोजगार कैसे मिले, अगर हम जो आज रोजगारी में है जो हमारे संगठन के सदस्‍य हैं, उनकी चिन्‍ता कर-करके बैठेंगे तो हो सकता है कि उनके हितों का भी भला हो जाएगा, उनकी रक्षा भी हो जाएगी, दो-चार चीजें हम उनको दिलवा भी देंगे लेकिन यहां बैठा हुआ कोई व्‍यक्ति ऐसी सीमित सोच वाला नहीं है ये मेरा विश्‍वास है। यहां बैठा हुआ हर व्‍यक्ति जो आज श्रमिक है उनकी तो चिन्‍ता करता ही करता है, लेकिन जो नौजवान बेरोजगार हैं जिनको कहीं न कहीं काम मिल जाए, इसकी उसको तलाश है, हमें उनके दरवाजे बंद करने का कोई हम नहीं है। जब तक हम हमारे देश के और नौजवानों कोरोजगार देने के लिए अवसर उपलब्‍ध नहीं कराएंगे तो हम जाने-अनजाने में गरीब का कहीं नुकसान तो नहीं कर देंगे। हो सकता है वो आज गरीब है श्रमिक नहीं बन पाया है, वो दरवाजे पर दस्‍तक दे रहा है और इसीलिए सरकार ने एक initiative लिया है apprenticeship को प्रोत्‍साहन देना। हमें जान करके हैरानी होगी, हम सबको लगता है हमारा देश आगे बढ़ना चाहिए और कभी पीछे रहता है तो हमीं लोग कहते हैं देखो बातें बड़ी करते थे,वो तो वहां पहुंच गया ये यहां रह गया, ये हम करते ही हैं। लेकिन जो पहुंचे हैं, आज चीन के अंदर जो भी साम्‍यवादी विचार से चलने वाले मूलभूत तो लोग हैं। चीन के अंदर दो करोड़ apprenticeship पर लोग काम कर रहे हैं,चीन के अंदर। जापान में एक करोड़ apprenticeship में काम कर रहे हैं। जर्मनी बहुत छोटा देश है, हमारे देश के किसी राज्‍य से भी छोटा देश है वहां पर तीस लाख लोग apprenticeship के रूप में काम कर रहे हैं, लेकिन मुझे आज दुख के साथ कहना चाहिए, सवा सौ करोड़ का हिन्‍दुस्‍तान,सिर्फ तीन लाख लोग apprenticeship पर काम कर रहे हैं। मेरे नौजवानों का क्‍या होगा मैं पूछना चाहता हूं।मैं सभी श्रमिक संगठनों से पूछना चाहता हूं कि इन नौजवानों को रोजगार मिलना चाहिए कि नहीं मिलना चाहिए। इन नौजवानों के लिए अवसर खुलने चाहिए कि नहीं खुलने चाहिए। और भारत को आगे बढ़ाना है तो हमारे skill को काम में लाने के लिए ये हमें अवसर देना पड़ेगा। सरकारों ने, उद्योगकारों ने भी सोचना होगा इसलिए कि कानून के दायरे में फंस जाएंगे इसलिए कोई apprenticeship किसी को देनी नहीं, किसी नौजवान को अवसर नहीं देना, ये उद्योगकार जो दरवाजे बंद करके बैठे हैं, मैं नहीं मानता हूं ये लम्‍बे अरसे तक दरवाजे बंद करके बैठ पाएंगे। देश का नौजवान लम्‍बे अरसे तक इन्‍तजार नहीं करेगा। और इसलिए मैं उद्योगकारों को विशेष रूप से आग्रह करता हूं कि आपका दायित्‍व बनता है, मुनाफा कम होगा, होगा लेकिन अगर इतनी मात्रा में आपके यहां श्रमिक हैं तो इतनी मात्रा में apprenticeship, ये आपकी social responsibility का हिस्‍सा बनना चाहिए। और इस प्रकार से क्‍या हम सपना नहीं दे सकते। दो करोड़ कर न पायें ठीक है, जब कर पाएंगे, कर पाएंगे अभी कम से कम तीन लाख में से 20 लाख apprenticeship पर जा सकते हैं हम क्‍या। कम से कम इतना तो करें। करोड़ों नौजवानों को रोजगार चाहिए, कहीं से तो शुरू करें। और इसलिए मैं चाहूंगा कि जो श्रमिक आज हैं उनकी चिन्‍ता करने वाले लोगों का ये भी दायित्‍व है कि जिनकी श्रमिक बनने की संभावना है उनकी जिन्‍दगी की भीचिन्‍ता उस नौजवान की भी करने की आवश्‍यकता है जो गरीब है। पिछले 16 अक्‍टूबर को हमने श्रमेव जयते के अभियान की शुरुआत की थी। ये सर्वांगीण प्रयास है हमारा। जिन सुविधाओं की शुरुआत हमने की उनकी प्रगति आप सबकी नजर में है। यूनिवर्सल एकाउंट नम्‍बर (यूएएन) इसके माध्‍यम से प्रोविडेंट फंड के एकाउंट पोर्टेबल हो गए हैं बल्कि लगभग 4 करोड़ 67 लाख मजदूरों को digital network platform का already लाभ मिलना शुरू हो गया है। पीएफपी ऑनलाईन लाभ ले रहा है ये चीजें नहीं थीं, इन चीजों का वो लाभ ले रहा है ये ही तो श्रमिक को empower करने के लिए टेक्‍नोलॉजी का सदुपयोग करने का प्रयास किया है। जब हम सरकार में आए हमारे देश में कई लोग ऐसे थे कि जिनको पचास रुपये पेंशन मिलता था, अस्‍सी रुपये पेंशन मिलता था, सौ रुपये पेंशन मिलता था,कुछ लोग तो पेंशन लेने के लिए जाते नहीं थे क्‍योंकि पेंशन से ऑटोरिक्‍शा का खर्चा ज्‍यादा होता था। इस देश में करीब-करीब बीस लाख से अधिक ऐसे श्रमिक थे जिनको पचास रुपया, सौ रुपया, दौ सौ रुपया पेंशन मिलता था। हमने आ करके, बहुत बड़ा आर्थिक बोझ लगा है, सबके लिए minimum पेंशन एक हजार रुपया कर दिया है। मैं आशा करता हूं कि हमारे श्रमिक संगठन, ये हमारा जो pro-active initiative है उसके प्रति भी उस भाव से देखें ताकि हम सबको मिल करके दौड़ने का आनंद आ जाए,चार नई चीजें करने का उमंग आ जाए क्‍योंकि हमें चलना नहीं है और मुझे मैं मानता हूं, अगर इस देश में इतने सारे प्रधानमंत्री हो गए होंगे लेकिन श्रमिकों पर किसी एक प्रधानमंत्री पर सबसे ज्‍यादा हक है तो मुझ पर। क्‍योंकि मैं उसी बिरादरी से निकल कर आया हूं, मैंने गरीबी देखी है और इसलिए गरीब के हाल को समझने के लिए मुझे कैमरामैन को लेकर जाने की जरूरत नहीं पड़ती है।मैं उसको भली-भांति समझता हूँ और इसलिए जो बातें मैं बता रहा हूं। भीतर एक आग है, कुछ करना है। गांव, गरीब, किसान, मजदूर, वंचित, दलित, पीड़ित शोषित उनके लिए कुछ करना है। लेकिन हरेक के करने की सोच अलग होगी, रास्‍ते अलग होंगे। हमारी एक अलग सोच है, अलग रास्‍ते है लेकिन लक्ष्‍य यही है कि मेरे देश के मजदूर का भला हो, मेरे देश के गरीब का भला हो, मेरे देश के किसानों का भला हो, ये सपने लेकर के हम चल पड़े हैं। और इसलिए जैसा मैंने कहा हमने apprentice sector में सुधार किया। हमने on the job training के मौके बढ़ गए हैं, उस दिशा में हमने काम किया है। आज हमने हेल्‍थ को सेक्‍टर को ESIC 2.0 स्‍कीम को लांच किया है। हम कभी-कभार ये तो देखते हैं कि भई काम मिलना चाहिए, लेकिन कैसे मिले, मिल रहा है कि नहीं मिल रहा है। उसके लिए न सरकारों को फुरसत है, न श्रमिक संगठनों को फुरसत है। उनको तो लगता है देखो यार, कागज पर दिखा दे, ये तुमको दिलवा दिया या नहीं दिलवा दिया। वो श्रमिक भी बड़ा खुश है, यार मैं इसका मेम्‍बर बन गया हूं मेरा काम हो गया। मैं इस स्‍थिति को बदलना चाहता हूं। मैं श्रमिक संगठन और सरकार की पाटर्नरशिप से आगे बढ़ना चाहता हूं। कंधे से कंधा मिलाकर के आगे चलना चाहता हूं और अगर हमने ये अस्‍पतालों की व्‍यवस्‍था को बदलने की दिशा में काम किया, अब छोटा निर्णय है कि भई हर दिन चद्दर बदलो। अब मुझे बताइए health की दृष्‍टि से, hygiene की दृष्‍टि से, ये सब जानते हैं कि बदलनी चाहिए और लोग मानते होंगे कि बदलें, लेकिन हमको मालूम है कि लोग नहीं बदलते। ठीक है, आया है patient पड़ा है। आखिरकार मुझे रास्‍ता खोजना पड़ा, मैंने कहा हर दिन की चद्दर का कलर ही अलग होगा, patient को पता चलेगा कि चद्दर बदली कि नहीं बदली। हमारे देश के बड़े-बड़े जो विद्वान लोग है वो मुझे सवाल करते रहते हैं कि मोदी कुछ बड़ा ले आओ, कुछ बड़ा। बहुत सरकारें बड़ा-बड़ा ले आईं। मुझे तो मेरे गरीब के लिए जीना है, मेरे गरीब के लिए कुछ काम करना है इसलिए मेरा दिमाग इसी में चलता रहता है। यही, यही मैं सोच, और मैं दिल से बातें कर रहा हूं कि ये अन्‍य जो कई चीजें लाए हैं। हम चाहते हैं कि श्रमिक की हेल्‍थ को लेकर के चिन्‍ता होनी चाहिए, होनी चाहिए। और हमने उस दिशा में हमने एक तो उसके सारे हेल्‍थ रिकॉर्ड ऑनलाइन कर दिए ताकि अब उसको अपना ब्‍लड टेस्‍ट का क्‍या हुआ, यूरिन टेस्‍ट का क्‍या हुआ, दुनिया भर में चक्‍कर नहीं काटना पड़ेगा। अपने मोबाइल फोन पर सारी चीजें उपलब्‍ध हो जाएं ये व्‍यवस्‍था की है ताकि श्रमिक को सुविधा कैसे हो, हम उस दिशा में काम कर रहे हैं। और मैं मानता हूं कि उस काम के कारण उसको लाभ होगा।



आज हमारे देश में असंगठित मजदूर कुल मजदूरों का 93 पर्सेंट है। इस सरकार ने असंगठित मजदूरों के संबंध में बहुत ही constructive way में और well planned way में योजनाएं बनाई हैं और हम आगे बढ़ रहे हैं। सबसे बड़ी बात है असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को सामाजिक सुरक्षा कैसे मिले। न उसे स्‍वास्‍थ्‍य सुरक्षा है, न जीवन बीमा है और न हीं पेंशन है और बड़ी संख्‍या में असंगठित ग्रामीण मजदूर अनपढ़ हैं, जिन्‍हें अपनी बात कहां कहना है, कैसे पहुंचे, इसकी कोई जानकारी तक नहीं है। ऐसे मजदूर के लिए सामाजिक सुरक्षा उपलब्‍ध कराने में सरकार का उत्‍तरदायित्‍व मानता हूं। देश के गरीब, असंगठित वर्गों को ध्‍यान में रख करके हमने तीन महत्‍वपूर्ण योजनाएं शुरू कीं । और ये योजनाएं गरीब के लिए हैं। अमीर का उससे कोई लेना-देना नहीं है। और मैं मानता हूं, सभी श्रमिक संगठनों से मैं आग्रह करूंगा कि आप भी इस बात में मदद कीजिए। अगर किसी के घर में, हम कई यहां संगठन है जो असंगठित मजदूरों का काम करते हैं। कुछ लोग हैं जो घरों में बर्तन साफ करने वाले लोग होते हैं, उनका संगठन चलाते हैं। क्‍या हम कोशिश नहीं करे तो उसके मालिकों को मिल करके कहे कि भई आपके यहां ये लड़का कपड़े धोता है, बर्तन साफ करता है या खाना पकाता है या गाड़ी चलाता है। या आपका धोबी है। इसके लिए ये-ये सरकार की स्‍कीम है। आप एक मालिक हो, इसके लिए इतना पैसा बैंक में डालो, उसका जीवन भरा हो जाएगा। मैं मानता हूं हर कोई इसको करेगा। हम मध्‍यम वर्ग के लोगों को भी अगर समझाएंगे कि भई तुम्‍हारे साथ काम करने वाले जो गरीब लोग है उनको इन स्‍कीम का फायदा तुम दो। तुमको कोई महंगा नहीं पड़ने वाला है, तुम्हारे लिए तो एक फाइव स्‍टार होटल का एक खाने से ज्‍यादा का खर्च नहीं है। लेकिन उस गरीब की तो जिन्‍दगी बदल जाएगी और इसलिए हमने अटल पेंशन योजना, प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना, प्रधानमंत्री जीवन जयोति बीमा योजना और मैं बताऊं यानी एक महीने का एक रुपया,12 महीने का 12 रुपया। एक स्‍कीम ऐसी है एक दिन का सिर्फ 80-90 पैसा। साल भर का 330 रुपया। लेकिन उसको जीवन भर उसकी व्‍यवस्‍था मिल सकती है। ये काम उसके मालिक, जिसके वहां वह काम करता है, वो कर सकते हैं और श्रमिक संगठन एक सामाजिक काम के तौर पर इस बात को आगे बढ़ा सकते हैं। सरकार से कंधे से कंधा मिलाकर काम करेंगे। मुझे लगता है कि इसका उसको फायदा होगा और हमने यह फायदा दिलवाना चाहिए। व्‍यवस्‍थाएं हैं, योजनाएं हैं। अटल पेंशन योजना। अगर आज से उसको जोड़ दिया जाए, समझा दिया जाए उसका तो जीवन धन्‍य हो जाएगा कि भई चलो 60 साल के बाद मुझे ये लाभ मिलेगा। मैं समझता हूं कि हम एक सामाजिक चेतना जगाने का भी काम करें, सामाजिक बदलाव का भी काम करें और उस काम को आगे बढ़ाएंगे तो मैं समझता हूं बहुत सारी बातें हम कर पाएंगे। कई विषय है जिसको मैं आपके सामने रखता ही चला जाता हूं। लेकिन मुझे विश्‍वास है कि इस श्रम संसद के अंदर जो कुछ भी महत्‍वपूर्ण चर्चाएं हो रही है। हमारे वित्‍त मंत्री और उनकी एक कमेटी बनी है जो उनको सुन रही है। और बातचीत से ही अच्‍छे नतीजे निकलते हैं, सुखद परिणाम निकलेंगे। कल भी मेरी श्रम संगठन के प्रमुख लोगों के साथ मुझे मिलने का अवसर मिला था, उनको सुनने का अवसर मिला था और मैं भली-भांति उनकी बात को, उनकी भावनाओं को समझता हूं। मिल-बांट करके हमें आगे बढ़ना है और हम देश को आगे बढ़ाने में कैसे काम आएं, देश को आर्थिक नई ऊंचाइयों पर कैसे ले जाएं, देश में नौजवानों को अधिकतम रोजगार के अवसर कैसे उपलब्‍ध कराएं।

आज भारत के सामने मौका है विश्‍व के परिदृश्‍य में भारत के सामने मौका है। यह मौका अगर हमने खो दिया तो फिर पता नहीं हमारे हाथ में कब मौका आएगा और उस काम को लेकर आगे बढ़ें इसी एक अपेक्षा के साथ मेरी इस श्रम सांसद को हृदयपूर्वक बहुत-बहुत शुभकामनाएं हैं, उत्‍तर परिणाम निकलेंगे इस भरोसे के साथ और साथ मिल करके आगे चलेंगे इस विश्‍वास के साथ बहुत-बहुत धन्‍यवाद।

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Text of PM’s address at the Odisha Parba
November 24, 2024
Delighted to take part in the Odisha Parba in Delhi, the state plays a pivotal role in India's growth and is blessed with cultural heritage admired across the country and the world: PM
The culture of Odisha has greatly strengthened the spirit of 'Ek Bharat Shreshtha Bharat', in which the sons and daughters of the state have made huge contributions: PM
We can see many examples of the contribution of Oriya literature to the cultural prosperity of India: PM
Odisha's cultural richness, architecture and science have always been special, We have to constantly take innovative steps to take every identity of this place to the world: PM
We are working fast in every sector for the development of Odisha,it has immense possibilities of port based industrial development: PM
Odisha is India's mining and metal powerhouse making it’s position very strong in the steel, aluminium and energy sectors: PM
Our government is committed to promote ease of doing business in Odisha: PM
Today Odisha has its own vision and roadmap, now investment will be encouraged and new employment opportunities will be created: PM

जय जगन्नाथ!

जय जगन्नाथ!

केंद्रीय मंत्रिमंडल के मेरे सहयोगी श्रीमान धर्मेन्द्र प्रधान जी, अश्विनी वैष्णव जी, उड़िया समाज संस्था के अध्यक्ष श्री सिद्धार्थ प्रधान जी, उड़िया समाज के अन्य अधिकारी, ओडिशा के सभी कलाकार, अन्य महानुभाव, देवियों और सज्जनों।

ओडिशा र सबू भाईओ भउणी मानंकु मोर नमस्कार, एबंग जुहार। ओड़िया संस्कृति के महाकुंभ ‘ओड़िशा पर्व 2024’ कू आसी मँ गर्बित। आपण मानंकु भेटी मूं बहुत आनंदित।

मैं आप सबको और ओडिशा के सभी लोगों को ओडिशा पर्व की बहुत-बहुत बधाई देता हूँ। इस साल स्वभाव कवि गंगाधर मेहेर की पुण्यतिथि का शताब्दी वर्ष भी है। मैं इस अवसर पर उनका पुण्य स्मरण करता हूं, उन्हें श्रद्धांजलि देता हूँ। मैं भक्त दासिआ बाउरी जी, भक्त सालबेग जी, उड़िया भागवत की रचना करने वाले श्री जगन्नाथ दास जी को भी आदरपूर्वक नमन करता हूं।

ओडिशा निजर सांस्कृतिक विविधता द्वारा भारतकु जीबन्त रखिबारे बहुत बड़ भूमिका प्रतिपादन करिछि।

साथियों,

ओडिशा हमेशा से संतों और विद्वानों की धरती रही है। सरल महाभारत, उड़िया भागवत...हमारे धर्मग्रन्थों को जिस तरह यहाँ के विद्वानों ने लोकभाषा में घर-घर पहुंचाया, जिस तरह ऋषियों के विचारों से जन-जन को जोड़ा....उसने भारत की सांस्कृतिक समृद्धि में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। उड़िया भाषा में महाप्रभु जगन्नाथ जी से जुड़ा कितना बड़ा साहित्य है। मुझे भी उनकी एक गाथा हमेशा याद रहती है। महाप्रभु अपने श्री मंदिर से बाहर आए थे और उन्होंने स्वयं युद्ध का नेतृत्व किया था। तब युद्धभूमि की ओर जाते समय महाप्रभु श्री जगन्नाथ ने अपनी भक्त ‘माणिका गौउडुणी’ के हाथों से दही खाई थी। ये गाथा हमें बहुत कुछ सिखाती है। ये हमें सिखाती है कि हम नेक नीयत से काम करें, तो उस काम का नेतृत्व खुद ईश्वर करते हैं। हमेशा, हर समय, हर हालात में ये सोचने की जरूरत नहीं है कि हम अकेले हैं, हम हमेशा ‘प्लस वन’ होते हैं, प्रभु हमारे साथ होते हैं, ईश्वर हमेशा हमारे साथ होते हैं।

साथियों,

ओडिशा के संत कवि भीम भोई ने कहा था- मो जीवन पछे नर्के पडिथाउ जगत उद्धार हेउ। भाव ये कि मुझे चाहे जितने ही दुख क्यों ना उठाने पड़ें...लेकिन जगत का उद्धार हो। यही ओडिशा की संस्कृति भी है। ओडिशा सबु जुगरे समग्र राष्ट्र एबं पूरा मानब समाज र सेबा करिछी। यहाँ पुरी धाम ने ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ की भावना को मजबूत बनाया। ओडिशा की वीर संतानों ने आज़ादी की लड़ाई में भी बढ़-चढ़कर देश को दिशा दिखाई थी। पाइका क्रांति के शहीदों का ऋण, हम कभी नहीं चुका सकते। ये मेरी सरकार का सौभाग्य है कि उसे पाइका क्रांति पर स्मारक डाक टिकट और सिक्का जारी करने का अवसर मिला था।

साथियों,

उत्कल केशरी हरे कृष्ण मेहताब जी के योगदान को भी इस समय पूरा देश याद कर रहा है। हम व्यापक स्तर पर उनकी 125वीं जयंती मना रहे हैं। अतीत से लेकर आज तक, ओडिशा ने देश को कितना सक्षम नेतृत्व दिया है, ये भी हमारे सामने है। आज ओडिशा की बेटी...आदिवासी समुदाय की द्रौपदी मुर्मू जी भारत की राष्ट्रपति हैं। ये हम सभी के लिए बहुत ही गर्व की बात है। उनकी प्रेरणा से आज भारत में आदिवासी कल्याण की हजारों करोड़ रुपए की योजनाएं शुरू हुई हैं, और ये योजनाएं सिर्फ ओडिशा के ही नहीं बल्कि पूरे भारत के आदिवासी समाज का हित कर रही हैं।

साथियों,

ओडिशा, माता सुभद्रा के रूप में नारीशक्ति और उसके सामर्थ्य की धरती है। ओडिशा तभी आगे बढ़ेगा, जब ओडिशा की महिलाएं आगे बढ़ेंगी। इसीलिए, कुछ ही दिन पहले मैंने ओडिशा की अपनी माताओं-बहनों के लिए सुभद्रा योजना का शुभारंभ किया था। इसका बहुत बड़ा लाभ ओडिशा की महिलाओं को मिलेगा। उत्कलर एही महान सुपुत्र मानंकर बिसयरे देश जाणू, एबं सेमानंक जीबन रु प्रेरणा नेउ, एथी निमन्ते एपरी आयौजनर बहुत अधिक गुरुत्व रहिछि ।

साथियों,

इसी उत्कल ने भारत के समुद्री सामर्थ्य को नया विस्तार दिया था। कल ही ओडिशा में बाली जात्रा का समापन हुआ है। इस बार भी 15 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा के दिन से कटक में महानदी के तट पर इसका भव्य आयोजन हो रहा था। बाली जात्रा प्रतीक है कि भारत का, ओडिशा का सामुद्रिक सामर्थ्य क्या था। सैकड़ों वर्ष पहले जब आज जैसी टेक्नोलॉजी नहीं थी, तब भी यहां के नाविकों ने समुद्र को पार करने का साहस दिखाया। हमारे यहां के व्यापारी जहाजों से इंडोनेशिया के बाली, सुमात्रा, जावा जैसे स्थानो की यात्राएं करते थे। इन यात्राओं के माध्यम से व्यापार भी हुआ और संस्कृति भी एक जगह से दूसरी जगह पहुंची। आजी विकसित भारतर संकल्पर सिद्धि निमन्ते ओडिशार सामुद्रिक शक्तिर महत्वपूर्ण भूमिका अछि।

साथियों,

ओडिशा को नई ऊंचाई तक ले जाने के लिए 10 साल से चल रहे अनवरत प्रयास....आज ओडिशा के लिए नए भविष्य की उम्मीद बन रहे हैं। 2024 में ओडिशावासियों के अभूतपूर्व आशीर्वाद ने इस उम्मीद को नया हौसला दिया है। हमने बड़े सपने देखे हैं, बड़े लक्ष्य तय किए हैं। 2036 में ओडिशा, राज्य-स्थापना का शताब्दी वर्ष मनाएगा। हमारा प्रयास है कि ओडिशा की गिनती देश के सशक्त, समृद्ध और तेजी से आगे बढ़ने वाले राज्यों में हो।

साथियों,

एक समय था, जब भारत के पूर्वी हिस्से को...ओडिशा जैसे राज्यों को पिछड़ा कहा जाता था। लेकिन मैं भारत के पूर्वी हिस्से को देश के विकास का ग्रोथ इंजन मानता हूं। इसलिए हमने पूर्वी भारत के विकास को अपनी प्राथमिकता बनाया है। आज पूरे पूर्वी भारत में कनेक्टिविटी के काम हों, स्वास्थ्य के काम हों, शिक्षा के काम हों, सभी में तेजी लाई गई है। 10 साल पहले ओडिशा को केंद्र सरकार जितना बजट देती थी, आज ओडिशा को तीन गुना ज्यादा बजट मिल रहा है। इस साल ओडिशा के विकास के लिए पिछले साल की तुलना में 30 प्रतिशत ज्यादा बजट दिया गया है। हम ओडिशा के विकास के लिए हर सेक्टर में तेजी से काम कर रहे हैं।

साथियों,

ओडिशा में पोर्ट आधारित औद्योगिक विकास की अपार संभावनाएं हैं। इसलिए धामरा, गोपालपुर, अस्तारंगा, पलुर, और सुवर्णरेखा पोर्ट्स का विकास करके यहां व्यापार को बढ़ावा दिया जाएगा। ओडिशा भारत का mining और metal powerhouse भी है। इससे स्टील, एल्युमिनियम और एनर्जी सेक्टर में ओडिशा की स्थिति काफी मजबूत हो जाती है। इन सेक्टरों पर फोकस करके ओडिशा में समृद्धि के नए दरवाजे खोले जा सकते हैं।

साथियों,

ओडिशा की धरती पर काजू, जूट, कपास, हल्दी और तिलहन की पैदावार बहुतायत में होती है। हमारा प्रयास है कि इन उत्पादों की पहुंच बड़े बाजारों तक हो और उसका फायदा हमारे किसान भाई-बहनों को मिले। ओडिशा की सी-फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री में भी विस्तार की काफी संभावनाएं हैं। हमारा प्रयास है कि ओडिशा सी-फूड एक ऐसा ब्रांड बने, जिसकी मांग ग्लोबल मार्केट में हो।

साथियों,

हमारा प्रयास है कि ओडिशा निवेश करने वालों की पसंदीदा जगहों में से एक हो। हमारी सरकार ओडिशा में इज ऑफ डूइंग बिजनेस को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है। उत्कर्ष उत्कल के माध्यम से निवेश को बढ़ाया जा रहा है। ओडिशा में नई सरकार बनते ही, पहले 100 दिनों के भीतर-भीतर, 45 हजार करोड़ रुपए के निवेश को मंजूरी मिली है। आज ओडिशा के पास अपना विज़न भी है, और रोडमैप भी है। अब यहाँ निवेश को भी बढ़ावा मिलेगा, और रोजगार के नए अवसर भी पैदा होंगे। मैं इन प्रयासों के लिए मुख्यमंत्री श्रीमान मोहन चरण मांझी जी और उनकी टीम को बहुत-बहुत बधाई देता हूं।

साथियों,

ओडिशा के सामर्थ्य का सही दिशा में उपयोग करके उसे विकास की नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया जा सकता है। मैं मानता हूं, ओडिशा को उसकी strategic location का बहुत बड़ा फायदा मिल सकता है। यहां से घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाजार तक पहुंचना आसान है। पूर्व और दक्षिण-पूर्व एशिया के लिए ओडिशा व्यापार का एक महत्वपूर्ण हब है। Global value chains में ओडिशा की अहमियत आने वाले समय में और बढ़ेगी। हमारी सरकार राज्य से export बढ़ाने के लक्ष्य पर भी काम कर रही है।

साथियों,

ओडिशा में urbanization को बढ़ावा देने की अपार संभावनाएं हैं। हमारी सरकार इस दिशा में ठोस कदम उठा रही है। हम ज्यादा संख्या में dynamic और well-connected cities के निर्माण के लिए प्रतिबद्ध हैं। हम ओडिशा के टियर टू शहरों में भी नई संभावनाएं बनाने का भरपूर हम प्रयास कर रहे हैं। खासतौर पर पश्चिम ओडिशा के इलाकों में जो जिले हैं, वहाँ नए इंफ्रास्ट्रक्चर से नए अवसर पैदा होंगे।

साथियों,

हायर एजुकेशन के क्षेत्र में ओडिशा देशभर के छात्रों के लिए एक नई उम्मीद की तरह है। यहां कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय इंस्टीट्यूट हैं, जो राज्य को एजुकेशन सेक्टर में लीड लेने के लिए प्रेरित करते हैं। इन कोशिशों से राज्य में स्टार्टअप्स इकोसिस्टम को भी बढ़ावा मिल रहा है।

साथियों,

ओडिशा अपनी सांस्कृतिक समृद्धि के कारण हमेशा से ख़ास रहा है। ओडिशा की विधाएँ हर किसी को सम्मोहित करती है, हर किसी को प्रेरित करती हैं। यहाँ का ओड़िशी नृत्य हो...ओडिशा की पेंटिंग्स हों...यहाँ जितनी जीवंतता पट्टचित्रों में देखने को मिलती है...उतनी ही बेमिसाल हमारे आदिवासी कला की प्रतीक सौरा चित्रकारी भी होती है। संबलपुरी, बोमकाई और कोटपाद बुनकरों की कारीगरी भी हमें ओडिशा में देखने को मिलती है। हम इस कला और कारीगरी का जितना प्रसार करेंगे, उतना ही इस कला को संरक्षित करने वाले उड़िया लोगों को सम्मान मिलेगा।

साथियों,

हमारे ओडिशा के पास वास्तु और विज्ञान की भी इतनी बड़ी धरोहर है। कोणार्क का सूर्य मंदिर… इसकी विशालता, इसका विज्ञान...लिंगराज और मुक्तेश्वर जैसे पुरातन मंदिरों का वास्तु.....ये हर किसी को आश्चर्यचकित करता है। आज लोग जब इन्हें देखते हैं...तो सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि सैकड़ों साल पहले भी ओडिशा के लोग विज्ञान में इतने आगे थे।

साथियों,

ओडिशा, पर्यटन की दृष्टि से अपार संभावनाओं की धरती है। हमें इन संभावनाओं को धरातल पर उतारने के लिए कई आयामों में काम करना है। आप देख रहे हैं, आज ओडिशा के साथ-साथ देश में भी ऐसी सरकार है जो ओडिशा की धरोहरों का, उसकी पहचान का सम्मान करती है। आपने देखा होगा, पिछले साल हमारे यहाँ G-20 का सम्मेलन हुआ था। हमने G-20 के दौरान इतने सारे देशों के राष्ट्राध्यक्षों और राजनयिकों के सामने...सूर्यमंदिर की ही भव्य तस्वीर को प्रस्तुत किया था। मुझे खुशी है कि महाप्रभु जगन्नाथ मंदिर परिसर के सभी चार द्वार खुल चुके हैं। मंदिर का रत्न भंडार भी खोल दिया गया है।

साथियों,

हमें ओडिशा की हर पहचान को दुनिया को बताने के लिए भी और भी इनोवेटिव कदम उठाने हैं। जैसे....हम बाली जात्रा को और पॉपुलर बनाने के लिए बाली जात्रा दिवस घोषित कर सकते हैं, उसका अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रचार कर सकते हैं। हम ओडिशी नृत्य जैसी कलाओं के लिए ओडिशी दिवस मनाने की शुरुआत कर सकते हैं। विभिन्न आदिवासी धरोहरों को सेलिब्रेट करने के लिए भी नई परम्पराएँ शुरू की जा सकती हैं। इसके लिए स्कूल और कॉलेजों में विशेष आयोजन किए जा सकते हैं। इससे लोगों में जागरूकता आएगी, यहाँ पर्यटन और लघु उद्योगों से जुड़े अवसर बढ़ेंगे। कुछ ही दिनों बाद प्रवासी भारतीय सम्मेलन भी, विश्व भर के लोग इस बार ओडिशा में, भुवनेश्वर में आने वाले हैं। प्रवासी भारतीय दिवस पहली बार ओडिशा में हो रहा है। ये सम्मेलन भी ओडिशा के लिए बहुत बड़ा अवसर बनने वाला है।

साथियों,

कई जगह देखा गया है बदलते समय के साथ, लोग अपनी मातृभाषा और संस्कृति को भी भूल जाते हैं। लेकिन मैंने देखा है...उड़िया समाज, चाहे जहां भी रहे, अपनी संस्कृति, अपनी भाषा...अपने पर्व-त्योहारों को लेकर हमेशा से बहुत उत्साहित रहा है। मातृभाषा और संस्कृति की शक्ति कैसे हमें अपनी जमीन से जोड़े रखती है...ये मैंने कुछ दिन पहले ही दक्षिण अमेरिका के देश गयाना में भी देखा। करीब दो सौ साल पहले भारत से सैकड़ों मजदूर गए...लेकिन वो अपने साथ रामचरित मानस ले गए...राम का नाम ले गए...इससे आज भी उनका नाता भारत भूमि से जुड़ा हुआ है। अपनी विरासत को इसी तरह सहेज कर रखते हुए जब विकास होता है...तो उसका लाभ हर किसी तक पहुंचता है। इसी तरह हम ओडिशा को भी नई ऊचाई पर पहुंचा सकते हैं।

साथियों,

आज के आधुनिक युग में हमें आधुनिक बदलावों को आत्मसात भी करना है, और अपनी जड़ों को भी मजबूत बनाना है। ओडिशा पर्व जैसे आयोजन इसका एक माध्यम बन सकते हैं। मैं चाहूँगा, आने वाले वर्षों में इस आयोजन का और ज्यादा विस्तार हो, ये पर्व केवल दिल्ली तक सीमित न रहे। ज्यादा से ज्यादा लोग इससे जुड़ें, स्कूल कॉलेजों का participation भी बढ़े, हमें इसके लिए प्रयास करने चाहिए। दिल्ली में बाकी राज्यों के लोग भी यहाँ आयें, ओडिशा को और करीबी से जानें, ये भी जरूरी है। मुझे भरोसा है, आने वाले समय में इस पर्व के रंग ओडिशा और देश के कोने-कोने तक पहुंचेंगे, ये जनभागीदारी का एक बहुत बड़ा प्रभावी मंच बनेगा। इसी भावना के साथ, मैं एक बार फिर आप सभी को बधाई देता हूं।

आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद।

जय जगन्नाथ!