I would like to begin by acknowledging the traditional owners of this land on which we stand today and pay my respect to their elders in past and present.

यहां उपस्थित, यहां के सामाजिक, राजनीतिक जीवन के सभी महानुभाव और मेरे प्यायरे देशवासियों,

यह स्वागत, यह सम्मान, यह उत्साह, यह उमंग, इसका हकदार मोदी नहीं हैं। सवा सौ करोड़ देशवासी यह उनके हकदार हैं। यह स्वागत, यह सम्मान, यह प्यार भारत माता के उन सवा सौ करोड़ संतानों के चरणों में समर्पित करता हूं। मैं देख रहा हूं कि बहुत लोग अभी बाहर हैं अंदर आ ही नहीं पाए। यह जो, ये जो नजारा सिडनी में दिखाई दे रहा है। यह नजारा पूरे हिंदुस्तान को आंदोलित कर रहा है।

कभी स्वामी विवेकानंद जी के शब्दों को याद करते हैं, तो हम कल्पना नहीं कर सकते कि हमारे यह महापुरूष कितने दीर्घदृष्टा थे। आजादी के पहले ठीक 50 साल पहले स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था कि 50 साल के लिए भारत के लोग अपने देवी-देवताओं को भूल जाएं। कोई कल्पना कर सकता है कि एक संन्यासी और जो खुद आध्यात्मिक जीवन को लेकर के चल पड़ा था। जिसने गुरूदेव रामकृष्ण परमहंस को अपना जीवन आहूत कर दिया था, जिसके लिए ईश्वर साक्षात्कार जीवन का मकसद रहा था, वो संन्यासी देश आजादी के 50 साल पहले कह रहा है, 50 साल के लिए आप अपने देवी देवताओं को भूल जाओ और सिर्फ, सिर्फ भारत माता की पूजा करो। दुनिया में फिर एक बार भारत माता की जय करो। उस महापुरूष के शब्दों के ताकत देखिए। ठीक उस 50 साल के बाद भारत आजाद हो गया।

मेरी तरह यहां बहुत लोग ऐसे है जिनका जन्म आजाद हिंदुस्तान में हुआ है और यह मेरा सौभाग्य है कि मैं पहला ऐसा प्रधानमंत्री हूं जो आजाद हिंदुस्तान में पैदा हुआ है और तब जाकर के मुझे ज्यादा ही जिम्मेदारी का एहसास होता है, क्योंकि मेरे जैसे आप में से बहुत लोग हैं जो आजाद हिंदुस्तान में पैदा हुए हैं। हमें देश की आजादी के लिए लड़ने का सौभाग्य नहीं मिला है। हमें भारत माता को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने के लिए फांसी के तख्तं पर चढ़ने का नसीब नहीं हुआ है। हमें भारत के सम्मान और गौरव के लिए जेल की सलाखों के पीछे अपनी जवानी खपाने का सौभाग्य नहीं मिला है और हमारे भीतर एक दर्द होना चाहिए, एक कसक होनी चाहिए कि हम आजादी की जंग में नहीं थे। हम देश के लिए मर तो नहीं सके, लेकिन आजादी के बाद पैदा हुए हैं, तो देश के लिए जी तो सकते हैं। हर किसी के नसीब में देश के लिए मरना नहीं होता है। देश के लिए जीना हर किसी के नसीब में होता है और इसलिए हमारा संकल्प रहना चाहिए। हम जीएंगे तो भी देश के लिए, जूझेंगे, तो भी देश के लिए और यही भाव आज सवा सौ करोड़ देशवासियों के दिल में जगा है।

आजकल तो हिंदुस्तान से रात को निकले सुबह ऑस्ट्रेलिया पहुंच जाते हैं लेकिन भारत के प्रधानमंत्री को यहां आने में 28 साल लगे हैं। मैं आपको विश्वास दिलाने आया हूं। ऑस्ट्रेलिया में रहने वाले मेरे देशवासियों अब आप को कभी 28 साल इंतजार नहीं करना पड़ेगा। जितना हक हिंदुस्तान में रहने वाले हिंदुस्तानियों का है, उतना ही हक यहां पर रहने वाले मेरे देशवासियों का है। सिडनी खूबसूरत शहर है, ऑस्ट्रेलिया एक खूबसूरत देश है और न ऑस्ट्रेलिया और न ही इंडिया क्रिकेट के बिना जी सकते हैं; क्रिकेट ने हमें जोड़ा है। लेकिन इससे पहले हमारी ऐसी सांस्कृतिक विरासत रही है, इतिहास की ऐसी घटनाएं रही है जिसने हमें अटूट रूप से जोड़ा हुआ है और ऑस्ट्रेलिया-भारत common value को share करते हैं। लोकतंत्र हम दोनों देशों की धरोहर है और विश्व लोकतांत्रिक शक्तियों को आज गौरव के भाव से देखता है। भारत के दीर्घदृष्टा महापुरूषों का यह बहुत बड़ा योगदान रहा कि आजाद हिंदुस्तान में लोकतंत्र की मजबूत नींव हमारे पूर्व के सभी महापुरूषों ने डाली और उसी का परिणाम है और लोकतंत्र की ताकत देखिए; अगर लोकतंत्र की ऊंचाई न होती, तो क्या मैं यहां होता। भारत के लोकतंत्र की उस ताकत को हम पहचानें तो जहां सामान्यय से सामान्यर इंसान भी अगर सच्ची निष्ठा और श्रद्धा के साथ देश के लोगों के लिए जीना तय करता है तो देश उसके लिए मरना तय करता है। कभी-कभार हम शास्त्रों में पढ़ते थे कि फलाने भगवान सहस्त्रबाहू थे; एक हजार भुजाएं थी; ऐसा तो नहीं यहां लटकाई होगी। इसका मतलब यह था, उनके पास ऐसे 500 लोग थे जो 1000 भुजाओं के कारण ईश्वर भी अपनी सारी इच्छाओं को पूर्ण कर पाते थे, योजनाओं को पूर्ण कर पाते थे। परमात्मा के पास तो सहस्त्रबाहू थे, लेकिन भारत माता के पास ढ़ाई सौ करोड़ भुजाएं हैं, ढ़ाई सौ करोड़। जिस देवी के पास, जिस भारत माता के पास ढ़ाई सौ करोड़ भुजाएं हो और उसमें भी, दो सौ करोड़ भुजाएं तो 35 साल से कम आयु की है। हिंदुस्तांन नौजवान है। युवा शक्ति से भरा हुआ है। युवा के मन में, आंखों में सपने होते हैं, नेक इरादे होते हैं, मजबूत संकल्प शक्ति होती है और वे पत्थर पर लकीर करने का भी सामर्थ्य रखते हैं। और उसी के भरोसे मैं विश्वास दिलाता हूं जो स्वामी विवेकानंद ने दूसरा सपना देखा था, उस महापुरूष ने कहा था कि मैं मेरे आंखों के सामने देख रहा हूं.... जिस महापुरूष ने जीवन के अंतकाल में 50 साल के बाद जो सपना देखा वो चरितार्थ हुआ। उस महापुरूष ने दूसरा सपना देखा था और स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था कि मेरे आंख के सामने भारत मां का वो रूप देख हूं, उस जगत जननी का रूप देख रहा हूं, फिर एक बार मेरी भारत माता विश्व गुरू के स्थान पर विराजमान हो, वो विश्व का नेतृत्व करती होगी। वो विश्व की आशाओं-आकांक्षाओं की पूर्ति का सामर्थ्य रखती होगी। मेरी स्वामी विवेकानंद जी की इस दीर्घदृष्टा पर आपार श्रद्धा है और इसलिए मैं भी विश्वास से कहता हूं कि विवेकानंद जी कभी गलत नहीं हो सकते। ऐसी ऊर्जा से भरा हुआ हमारा देश है और मैं छह महीने के मेरे बहुत अल्पकाल के समय का मेरा अनुभव है। इतने बड़े हिंदुस्तान में छह महीने कुछ नहीं होते हैं। लेकिन छह महीने के अनुभव से मैं कह सकता हूं कि देश के सामान्यन मानव ने जो सपने देखे हैं, उन सपनों को पूरा करने के लिए आशीर्वाद भारत मां दे रही है और वो सपने पूरा होने का सामर्थ्य है। मैं आपसे पूछना चाहता हूं, जो भरोसा मेरा है, आपका है क्या? आपको विश्वास है यह देश फिर से उठ खड़ा होगा? यह देश ताकतवर बनेगा? हम सामर्थ्य के साथ मानवजाति की सेवा कर पाएंगे। विश्व को संकटों से मुक्ति दिलाने का देश में सामर्थ्य होगा। अगर आपकी वाणी में जो ताकत है, वो सामान्य मानव की ताकत, वो वाणी, कभी ईश्वर की वाणी बन जाती है। वो ईश्वर के आर्शीवाद बन जाते हैं। मुझे कोई कारण नहीं लगता भाई और बहनों, कोई कारण मुझे नहीं लगता है कि हमारा देश अब पीछे रह जाए। मुझे कोई कारण नहीं लगता। नियति ने उसका आगे जाना तय कर लिया है। अब हम ढाई सौ करोड़ भुजाओं ने संकल्प करना है। कि हमारी भुजाओं से हर काम वही होगा, जो भारत मां के कल्यापण के लिए होगा। सवा सौ देशवासियों के कल्याण के लिए होगा। विश्व के दुखियारों के लिए होगा। एक बार उन संकल्पों को लेकर चलते हैं, तो उन संकल्पों की पूर्ति भी अपने आप होती है।

ऑस्ट्रे्लिया के जीवन में कोई भी भारतवासी गर्व करता है। यहां दो सौ साल पहले भारत से कुछ परिवार आए थे, दो सौ साल पहले। और भारतीयों का यहां का जीवन हर हिंदुस्तानी को गर्व करा रहा है, गर्व दे रहा है। अब ऑस्ट्रेंलिया को अपना बना लिया है। आपके वाणी से, वर्तनी से, विचार से, व्यवहार से जिन मूल्यों को लेकर के आप जी रहे हैं उसके कारण ऑस्ट्रेलिया का भी हर नागरिक हमसे अपनापन महसूस करता है और मैं मानता हूं एक भारतीय के नाते यही हमारा सबसे बड़ा दायित्व होता है कि जो हमारी कर्मभूमि हो, उस कर्मभूमि के साथ हमारा लगाव भी इतना होना चाहिए, हमारा समर्पण भी इतना होना चाहिए और जो आज हमारे भारतीय भाई-बहन ऑस्ट्रेलिया की धरती पर कर रहे हैं।

मैं यहां आने से पहले कुछ चीजें देख रहा था मुझे देखकर के इतना आनंद हुआ और मैं आज सबका उल्लेच तो नहीं कर पाऊंगा। जिनका उल्लेख रह जाए, वो मुझे क्षमा करें। वो अगर कमी है, तो मेरी कमी है। उनके पराक्रम की कमी नहीं है। आप देखिए 1964 में जो टोक्यो में ओलंपिक गेम हुआ। उसमें मूल भारतीय Bakhtawar Singh Samrai उन्होंने प्रतिनिधित्व किया था ऑस्ट्रेलिया की तरफ से। Bakhtawar ji का यह उस समय ओलंपिक टाइम में ऑस्ट्रेलिया की तरफ से एक भारतीय का प्रतिनिधित्व करना, मैं इसे छोटी बात नहीं मानता हूं। इतना ही नहीं यहां पर बहुत बड़ी तादाद में एंग्लो इंडियन रहते हैं। भारत से आए, यहां पर बसे। Julian Pearce जिनका जन्म जबलपुर में हुआ था और ओलंपिक में हॉकी को represent किया था उन्हों ने, ऑस्ट्रेलिया की तरफ से। Rex Sellers, Stuart Clark, ये दोनों एंग्लो इंडियन थे। भारत से आए थे। लेकिन ऑस्ट्रेलिया को क्रिकेट की दुनिया में उन्हों ने अपनी जगह बना दी थी, यह उनका योगदान था। Lisa Sthalekar पुणे में जन्मी और महिलाओं की क्रिकेट की दुनिया में 2013 तक 1000 रन बनाना और 100 विकेट लेने का उसका रिकॉर्ड है। एक भारतीय मूल की बेटी ऑस्ट्रेलिया की तरफ से खेल रही है। अक्षय वैंकटेश भारतीय मूल के ऑस्ट्रेलियन 12 साल की उम्र में international physics Olympiad and international maths Olympiad, उसमें विश्व में अपना डंका बजा दिया था। ऑस्ट्रेहलिया का नाम रोशन किया। यहीं के हमारे, यह सामर्थ्य वान लोग.. Mathai Varghese भारतीय मूल के थे, via अफ्रीका यहां ऑस्ट्रेलिया पहुंचे। mathematician के नाते उन्होंने अपना नाम बनाया था। Tharini Mudaliar साउथ अफ्रीका में जन्मी मूल भारतीय और actor or singer के रूप में पूरे ऑस्ट्रेलिया में जानी जाने लगी। Indira Naidoo मूल भारतीय की ऑस्ट्रेलियन एक लेखिका के रूप में, एक journalist के रूप में और यूएन में सेवाएं देने के रूप में आज भी हर भारतीय के नामों पर गर्व कर सकता है। इसके सिवा भी बहुत सारे नाम होंगे जो भारतीय मूल के लोग हैं। जिन्होंने ऑस्ट्रेलिया में अपने आप को खपा दिया, ऐसा समर्पित कर दिया। ऑस्ट्रेलिया के जीवन का भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में ऑस्ट्रेलिया का नाम रोशन हो, उसमें उनका योगदान रहा है और यही हमारी ताकत है। एक भारतीयता के गौरव के लिए भारतीय होने के नाते विश्व में हम जहां हो, वहां के लोगों का हम प्रेम सम्पादन करें। मिलजुल कर अपने जीवन को बनाने में, हम उनका योगदान करें। हमारे पास जो श्रेष्ठ है, वो जगत को काम आए और उसी के लिए माध्यम बने और भूमिका से जो आप भूमिका अदा कर रहे हैं। इसलिए मैं आप सबको हृदय से बहुत-बहुत बधाई देता हूं। मैं आप सबका बहुत-बहुत अभिनंदन करता हूं।

मुझे मालूम है, चुनाव तो हिंदुस्तान में चल रहे थे। आप की उंगली पर तो टीका लगने वाला नहीं था। आपका तो मतदान होना नहीं था। लेकिन मुझे मालूम है वो चुनाव का कोई पल ऐसा नहीं था,जिससे आप जुड़े नहीं थे। कोई परिवार ऐसा नहीं था, जब चुनाव के नतीजे आने वाले थे, उस रात तय करके बैठा था, अब तो सोना नहीं है। यह जो भारत में राजनीतिक परिवर्तन के लिए विश्व भर में फैले हुए भारतीय समुदाय का जो उमंग था। वो उमंग कौन जीते, कौन हारे इसके लिए नहीं था। किसकी सत्ता बने, किसकी न बने, इसके लिए नहीं था। उसके दिल में एक दर्द था, एक आग थी, पीढ़ा थी कि मैं दुनिया में जहां बैठा हूं, मेरा देश कब ऐसा बनेगा। उसके लिए चुनाव उज्जवल भारत के भविष्य के सपनों से जुड़ा हुआ था। उसके लिए चुनाव राजनीतिक उठा-पटक का खेल नहीं था। जय और पराजय का खेल नहीं था। उसके दिल में तो एक ही आवाज थी भारत माता की जय। उसके मन में एक ही भाव था भारत माता की जय और भारत माता की जय का मतलब होता है- भारत के जो कोटि-कोटि लोग जो आज भी गरीबी में जिंदगी गुजार रहे हैं, कितने परिवार है, जिनको आज बिजली तक मुहैया नहीं है। आजादी के इतने सालों के बाद पीने का शुद्ध पानी न मिले, बिजली मुहैया न हो, इतना ही नहीं शौचालय तक नहीं है। कई लोगों के मन में बहुत बड़े-बड़े काम करने के सपने होते हैं। वो सपने उनको मुबारक। मुझे तो छोटे-छोटे काम करने हैं, छोटे-छोटे लोगों के लिए करने है और छोटे लोगों को बड़ा बनाने के लिए करने हैं।

आप कल्पना कर सकते हैं, आज के युग में बैंकिंग सिस्टम से अलग रह करके अर्थ कि, आर्थिक व्य़वस्था की मुख्यधारा के बाहर रहकर के कोई आर्थिक विकास में भागीदार बन सकता है क्या? हर किसी के लिए bank account इतनी सामान्य बात है। हमारे देश में बैंकों राष्ट्रीयकरण हुआ था और यह सपना देखा गया था गरीब से गरीब व्यक्ति बैंक में जा पाएगा। आपने भी किसी गरीब को बैंक में नहीं देखा होगा। जब हिंदुस्तान में थे कभी देखा था।

अब मैंने सपना देखा है कि मैं चाहता हूं, गरीब का बैंक में खाता हो। मैंने प्रधानमंत्री जनधन योजना बनाई, क्योंकि मैं चाहता हूं कि देश भी आर्थिक विकास यात्रा में गरीब से गरीब का हिस्सा जुड़ना चाहिए, वो इस व्यवस्था के साथ परिचित होना चाहिए, उसे कदम से कदम मिलाकर चलना चाहिए। करीब 75 मिलियन लोग जिनका बैंक अकाउंट है उन परिवारों की मैं बात कर रहा हूं। व्यक्ति नहीं परिवार। एक परिवार में पांच लोग गिने तो आप अंदाज कर सकते हैं कि कितनी बड़ी संख्या होगी।

मैंने रिजर्व बैंक से कहा कि यह काम करना है। कर सकते है क्या? रिजर्व बैंक ने कहा कि मोदी जी हो तो सकता है, लेकिन.... अब प्रधानमंत्री को मना तो कोई करता नहीं। लेकिन उनको तरीके मालूम होते हैं। उन्होंने कहा तीन साल लगेंगे। मैंने कहा भाई तीन साल के बाद क्या सूरज कम उगेगा। मैंने हमारे वित्त मंत्रालय को पूछा, मैंने कहा कि भाई यह काम करना है बताओ क्या करोगे, रिजर्व बैंक तो तीन साल कह रही है। बोले नहीं-नहीं दो साल में कर देंगे। उनको लगा अब मोदी जी खुश हो जाएंगे। वो तीन कह रहे थे तो हमने दो कह दिया तो गाड़ी चल पड़ेगी। मैंने मेरे आफिस के लोगों को बुलाया, पीएमओ को। मैंने कहा भाई यह रिजर्व बैंक कह रही है तीन साल, डिपार्टमेंट कह रहा है दो साल.. आप क्या कह रहे हैं। मैंने कहा बोले एक साल तो लगेगा। अब हमने सबको सुन लिया और हमने कहा, 15 अगस्त को लालकिले पर से बोल दिया, मैंने कहा मुझे यह काम डेढ़ सौ दिन में पूरा करना है।

पिछले 68 years में एक साल में औसत एक करोड़ बैंक अकाउंट खुलते थे, 10 मिलियन। हमने ठान ली कि काम करना है। Last Ten week में Ten week में 71 मिलियन account खुल चुके। सरकार वो ही, मुलाजिम वही, दफ्तर वही, फाइल वही, आदत वही, लोग भी वही। काम हुआ कि नहीं हुआ। हो सकता है कि नहीं हो सकता। इतना ही नहीं देश के गरीब लोगों की ईमानदारी देखिए। देश के गरीबों की ईमानदारी देखिए और मैं आज उनका इस धरती से प्रणाम करता हूं। हमने कहा था मुझे गरीबों का Bank account खोलकर के मुख्य धारा में लाना है। अब उसके पास तो बेचारे को बैंक खाता खोलने के लिए पांच रुपये दस रुपया भी नहीं है। तो हम ने नियम बनाया जीरो balance से Bank account खुलेगा। लेकिन आप सब गर्व कर सकते हो। account खोलना था ऐसे गरीब परिवार के लोगों ने, मन में सोचा- नहीं, नहीं मुफ्त में क्यों कर रहे हैं। बोले मोदी जी ने तो कह दिया, ऐसा नहीं करेंगे। हमारा भी कोई जिम्मा होता है और मेरे दोस्तों आपको जानकर के खुशी होगी कि 70 मिलियन जो Bank Account खुले हैं Ten week में खुले हैं। पांच हजार करोड़ रुपये इन्होंने जमा कराए। five thousand crore rupees... किसी ने सौ रूपया, किसी ने दो सौ रूपया, उसको लगता है कि मैं मुख्य धारा से जुड़ रहा हूं।

मेरा कहने का तात्पर्य यह है दोस्तों कि एक बार.. हम हमारे देश के लोगों की ताकत को कम न आंके, हमारे देश की व्यवस्थाओं की ताकत को कम न आंके, हम व्यवस्थाओं पर भरोसा करें, देशवासियों पर भरोसा करें और उनको सही दिशा में ले जाने के लिए अगर उंगली पकड़कर के चलने की कोशिश करें, वो हमसे भी आगे दौड़ने के लिए तैयार होते हैं। मैंने उनको कहा है 26 जनवरी फाइनल डेट। पूरा करना है काम। लगे है। सारे बैंक employee लगे हुए हैं। काम कर रहे हैं।

02 अक्तूरबर से मैंने काम उठाया है – “स्वच्छ भारत” का। आप मुझे बताइये, दुनिया के किसी भी देश में जाते हैं और वहां की स्वच्छता देखते हैं तो सबसे पहले हमारे देश के गली-मोहल्ले याद आते हैं कि नहीं आते। हम यहां आकर के कभी गंदगी करते हैं क्या? लेकिन भारत में जाते ही.. ये सिर्फ व्यावस्थाओं के कारण ही समस्याएं नहीं हैं। मैं जानता हूं कठिन काम है। महात्मा गांधी भी इस काम के लिए बहुत आग्रह करते थे लेकिन क्या बहुत कठिन काम है? क्या बिल्कुल हाथ ही नहीं लगाना चाहिए? दूर भागना चाहिए क्या? आलोचना सहने की तैयारी चाहिए कि नहीं चाहिए? भाईयों-बहनों मैंने एक बहुत बड़ा संकट मोल लिया है, जानबूझ करके मोल लिया।

जो लोग 1857 के स्व़तंत्रता संग्राम में लड़ पड़े थे, शहीद हो गए थे, उनको अपने देश की आजादी जीते जी देखने को नहीं मिली थी, लेकिन वो अगर यह सोचते कि मेरे जीते जी आजादी मिले तभी तो मैं मरने को तैयार होऊं! तो कभी आजादी नहीं मिल सकती। अगर सवा सौ करोड़ देशवासी तय करें तो दुनिया के सामने हमारी जो यह छवि बिगड़ी हुई है उसको भी बराबर साफ-सुथरा बना सकते हैं और इसलिए मैंने इस काम को उठा लिया। शौचालय बनाने में लगा हूं। बताइये! देश का प्रधानमंत्री यह काम कर रहा है – शौचालय बनाओ ! खास करके हमारी माताओं-बहनों की dignity.. गांव के अंदर आज भी खुले में शौचालय जाना पड़ रहा है, मन में दर्द होता है, शर्मिंदगी महसूस होती है। मैं आपसे भी अनुरोध करता हूं, ईश्वर ने आपको बहुत कुछ दिया होगा। आप पूंजीपति नहीं होंगे, लेकिन दो टाइम अच्छे ढंग से खाना तो जरूर खा सकते होंगे। आप भी अपने गांव में, जहां के आप मूल रहने वाले हैं, इस काम में कुछ योगदान दे सकते हैं तो जरूर दीजिए। मैं आपको निमंत्रण देता हूं। स्वच्छता जो है, वो ऐसा क्षेत्र है..क्योंकि गंदगी है, जो बीमारियों को लाती है और जब बीमारी आती है तो औसत, एवरेज एक गरीब परिवार को करीब-करीब छह से सात हजार रुपये का बोझ आ जाता है, बीमारी के टाइम। अगर हम स्वच्छता अभियान लेते हैं तो गरीबों की इससे बड़ी कोई सेवा नहीं होती है और इसलिए आपके दिल में भारत के लिए सेवा करने का कोई भी भाव आए, उस भाव का प्रकटीकरण इस स्वच्छता अभियान के माध्यम से हो सकता है।

मैं बहुत पहले जब ऑस्ट्रेलिया आया था, तब काफी मेरा मिलना-जुलना हुआ, कई बार आना हुआ है, यहां के लोगों से मिलता था, बात करता था। मुझे कई लोग पूछते थे कि ऑस्ट्रेलिया से आप क्या सीखेंगे? अब क्या कहे कि हमं ऑस्ट्रेलिया से क्या सीखना चाहिए? एक बात मेरे मन को हमेशा छूती थी, और वो थी –dignity of labour; यहां के चरित्र में है, जिस आदर के साथ वो डॉक्टर से बात करता है, उतने ही आदर से वो ड्राइवर के साथ बात करता है। कोई scientist के तौर पर काम करता है तो weekend पर ड्राइविंग करने चला जाता है और टैक्सी चलाता है। यह dignity of labour! यह ऑस्ट्रेलिया से सीखने वाला विषय है। स्वरच्छता के माध्यम से मैं इस बात को गर्व देना चाहता हूं, गौरव देना चाहता हूं, कि सफाई करना, यह कूड़ा-कचरा उठाना, यह below dignity नहीं है, बहुत इज्जत वाला काम है। भारत में हम लोगों का स्वाभाव क्या हो गया है? अगर कोई अपने घर कूड़ा-कचरा उठाने के लिए आ जाए, तो हम क्या कहते हैं, कचरा वाला आया है। हकीकत में वो कचरे वाला नहीं है, वो सफाई वाला है। लेकिन हम.. हमारे सोचने के तरीके में ऐसी गड़बड़ हो गई है, हमारी Terminology इतनी बदल गई है कि जो सचमुच में सफाई का काम करता है, उसको भी हम कचरे वाला कहते हैं। यह स्थिति बदलनी है और इसलिए .. और मैंने देखा है, आज हिंदुस्तान में उद्योग जगत के लोग हों, सिने जगत के लोग हों, शिक्षा जगत के लोग हों, राजनीति जगत के लोग हों, सबने गौरव के साथ इस काम में शरीक होने का बीड़ा उठाया है और मैं सबका अभिनंदन करता हूं। काम कठिन है। दिवाली में भी अगर अपने दो कमरे का घर भी साफ करना है तो हफ्ता निकल जाता है, तो इतना बड़ा हिंदुस्तान साफ करना है तो समय लगता है और इसलिए हमने कहा है 2019.. महात्मा गांधी की 150वीं जयंती आ रही है। महात्मा गांधी ने हमें आजादी दी है, हम गांधी को क्या दें? कम से कम साफ-सुथरा हिंदुस्तान तो उनके चरणों में धरे हम। इतना तो करें। 2019 तक इस बात को मैं आगे बढ़ाना चाहता हूं और यही चीजें हैं!

अगर बीमारी जाती है तो गरीब को फायदा होता है लेकिन स्वच्छता आती है तो Tourism इतनी तेजी से बढ़ेगा, जिसकी हम कल्पना नहीं कर सकते। हिंदुस्तान के पास क्या नहीं है, दुनिया को देने के लिए, दिखाने के लिए। पूरे विश्व के पास जितना है, उतना अकेले एक हिंदुस्तान के पास है। हिम्मत के साथ अगर हम जुट जाएं तो लोग आ जाएंगे, लेकिन वो मिजाज भी तो चाहिए, वो दम भी तो चाहिए। अपने आप पर भरोसा भी तो होना चाहिए। इतनी पुरातन चीजें हमारे पास हैं, विश्व को हम आकर्षित कर सकते हैं। लेकिन शुरूआत ही ऐसी होती है – यार! पता नहीं! .. और बात वहीं अटक जाती हैं।

दुनिया से हम इंवेस्टमेंट चाहते हैं। मेक इंडिया का अभियान लेकर के बैठे हैं। मैं चाहता हूं, विश्व भारत की धरती पर आए, मैन्यूफैक्चैरिंग सेक्टर में आए, क्योंकि हमारा मकसद एक है – हमारे देश के नौजवान को रोजगार मिले। हमारी सारी नीतियों के केंद्र बिंदु में नौजवानों के लिए रोजगार है। job creation कैसे हो? और इसके लिए हम दुनिया को कह रहे हैं – आइये, भारत में पूंजी लगाइये। जिस देश के पास इतने नौजवान हो, वो देश के नौजवान अपने कौशल के द्वारा, अपने सामर्थ्य के द्वारा दुनिया को क्या कुछ नहीं दे सकते हैं। इसलिए मेक इन इंडिया अभियान हमने चलाया है और उसके लिए नियमों में, कानूनों में, व्यवस्थाओं में बदलाव ला रहे हैं। Good Governance सबसे बड़ी आवश्यकता है, लेकिन पूंजी निवेश के लिए भी कोई आएगा तो सबसे पहले उसके साथ जो लोग आते हैं, CEO आएगा, Top Managers लाएगा और Managerial skills वाले पूछते हैं quality of life का क्या है।

मैं जब गुजरात में मुख्यमंत्री था, तो हम चाहते थे कि जापान हम से जुड़े, जापान के लोग हमारे यहां आएं। हमारे ध्यान में आया कि बाकी सब होगा, लेकिन golf नहीं होगा तो जापान नहीं आएगा। अब गुजरात वालों को गिल्ली-डंडा मालूम है, golf मालूम नहीं। आखिरकार हमने प्राइवेट पार्टी को कहा कि भई golf के लिए कोई व्यवस्था करो अब, मुझे investment चाहिए। कहने का तात्पर्य यह है कि कोई भी पूंजी निवेश के लिए आता है, तो वो उसके अपने लोगों के लिए, managerial लोगों के लिए quality of life चाहता है। यह भारत की जिम्मेदारी बनती है कि वो उस quality of life के लिए लोगों को ऑफर करे, ताकि पूंजी निवेश के साथ उसके जो लोग आएं, उनके जीवन को भी एक स्तर से रहने का अवसर मिले, अच्छी शिक्षा मिले, अच्छी Health care मिले, अच्छा जीवन जीने का अवसर मिले, यह सारी चीजें जुड़ी हुई है। हम सिर्फ सरकार की नीतियां बनाए और लोगों को कहें कि यह टैक्स, फ्री करेंगे, वो फ्री करेंगे, यह मुफ्त में देंगे, आप आ जाइये, दुनिया आती नहीं है, उसके लिए व्यवस्थाएं विकसित करनी पड़ती है, environment बनाना होता है। मेक इन इंडिया हमने उस दिशा में प्रयास शुरू किया है।

भारत की रेल पर हम सब गर्व कर सकते हैं। लेकिन वहीं अटकी पड़ी है। न नया एक किलोमीटर रेल की पटरी डाली जाती है, न उसकी स्पीड बढ़ती है, न पैसेंजरों के लिए जगह बढ़ती है। पैसेंजर बढ़ रहे हैं, तो अंदर नहीं, तो ऊपर बैठते हैं। क्या इन स्थितियों के उपाय नहीं है क्या? उपाय हैं। बड़ी हिम्मत के साथ हमने निर्णय किया है, रेलवे में 100% Foreign Direct Dnvestment लाएंगे। दुनिया में जो लोग इसके जानकार हैं, मैं निमंत्रित करता हूँ; आएंगे। भारत में रेलवे के विस्तार के लिए इतनी संभावना है, रेलवे के विकास के लिए इतनी संभावना है, रेलवे में Technology upgradation की इतनी संभावना है और सवा सौ करोड़ देशवासियों का मार्केट! छोटी बात नहीं है। दुनिया में कई देश ऐसे हैं, जहां रेलवे होगी, passenger नहीं मिलते होंगे जी।

मेरा कहने का तात्पर्य यह है मित्रों कि हम नीतिगत बदलाव ला रहे हैं, जिन बदलावों के कारण भारत के सामान्य मानव, के जीवन में बदलाव के लिए, विकास की नई ऊंचाईयों को पार करने के लिए हम आगे बढ़ेंगे। अब इतना बड़ा रेलवे का नेटवर्क है, लेकिन रेलवे में आज तक क्या होता था? जिसको भी नौकरी चाहिए, अखबार में advertisement आता है, वह apply करता था। apply करने के बाद रेलवे वाले उसको छह महीना, एक साल ट्रेनिंग देते थे। आप जानते हैं कि सरकारी स्तर पर training होती है तो फिर क्या। होता है, फिर वो रेलवे में नौकरी पर लग जाता था तो फिर वो रेलवे का क्या हाल होता होगा। हमने कहा कि रेलवे अपनी खुद चार युनिवर्सिटी बनाए, जिसको रेलवे में नौकरी करनी है वो युनिवर्सिटी में पढ़ाई करे और पढ़ाई के दरम्यान ही उसके अंदर वो ताकत आ जाए कि वो उत्तंम से उत्तम रेलवे की सेवा करे, Technology up gradation हो, रेलवे का expansion हो ।

At the same time, Human Resource Development भी होना चाहिए। इस के लिए जो एक और काम हमने उठाया है। दुनिया को बहुत बड़े work force की जरूरत होने वाली है। आज जो दुनिया तेज गति से दौड़ रही है ना, वो बुढ़ापे में आ गई है। आज दुनिया के कई देश है, जिसके पास आर्थिक सामर्थ्य है लेकिन work force नहीं हैं और सिर्फ Technology के माध्यम से जीवन संभव नहीं है। कितनी ही Technology लाएं लेकिन proper work force की जरूरत हरेक को रहने वाली है और हम भाग्यवान हैं। सारी दुनिया को जितनी work force की जरूरत है वो पहुंचाने के लिए हमारे लोगों ने भरपूर काम किया है। लेकिन वो अधूरा है। skill development आवश्यक है, skill development नहीं होगा.. विश्व को जिस प्रकार के work force की जरूरत है उस work force के लिए हम अभी से plan नहीं करते। हम दुनिया का मैपिंग करना चाहते हैं कि 2020 में किस देश में किस प्रकार के लोगों की जरूरत पड़ेगी। नर्सिंग, आज भी दुनिया को जरूरत है, maths and science के Teacher, आज भी दुनिया को जरूरत है। क्या भारत वहां से डायमंड भी export करें क्या? James and jewelry भी export करें क्या? आलू टमाटर भी export करें क्या? अगर हम दुनिया में best quality के टीचर export करते हैं, पूरी दुनिया को हम अपनी बना सकते हैं। सारे विश्व को इसकी जरूरत है। सारे विश्व को best quality teachers की जरूरत है, लेकिन उसके लिए Human Resource Development पर ध्यान भारत में देना पड़ता है। पांच साल लगें, दस साल लगें, 15 साल लगें लेकिन ऐसी मानव ताकत को तैयार करें जो विश्व की जरूरतों की पूर्ति के लिए हो। हमारे नौजवान को रोजगार मिलेगा। विश्वर का कल्याण होगा और भारत की जय-जयकार होगी।

विकास की नई ऊंचाईयों को अगर पार करना है, मेरे नौजवान साथियों भारत में अपना पूरा ध्यान भारत की युवा शक्ति पर केंद्रित करने की जरूरत है। युवा शक्ति के भरोसे, उनके सामर्थ्य के भरोसे, उनके talent के भरोसे दुनिया के अंदर भारत का लोहा मनवाने के लिए सामर्थ्यवान बन सकते हैं।

अब दुनिया जमीनी लड़ाई से चलने वाली नहीं है। हार जीत जमीनी लड़ाईयों से नहीं होने वाली। वो समय बीत चुका है। अब बाहुबल से नहीं, दुनिया बुद्धिबल से चलने वाली है। धनबल से भी ज्याहदा बुद्धिबल काम करने वाला है और उसके लिए सामर्थ्यवान नागरिकों को तैयार करना, सामर्थ्यवान नागरिकों के भरोसे विश्व की आवश्यकताओं को ध्याक में रखते हुए, भारत को अपने आप को सजग करना होगा। मैं आपको विश्वास दिलाता हूं मेरे भाइयों-बहनों मैं जानता हूं, यह प्यार, यह आशीर्वाद, यह जय जयकार, इसके भीतर अपेक्षाएं पड़ी हैं, आकांक्षाएं पड़ी हैं लेकिन आपका सपना मेरा सपना है। आपकी इच्छाएं-आकांक्षाएं मेरी इच्छाएं-आकांक्षाएं हैं। आप जिस रूप में भारत को देखना चाहते हैं, मैं भी उसी रूप में भारत को बनाना चाहता हूं। फर्क इतना है कि पहले लगता था कि सरकारें देश बनाएंगी, मैं मानता हूं कि सरकारें देश नहीं बना सकती और नहीं बनाना चाहिए। देश बनता है देशवासियों के कारण, देश बनता है देशवासियों की शक्ति के कारण और अगर हम देशवासियों को अपनी शक्ति का भरपूर उपयोग करने का मौका दें, रूकावटें न डाले, सरकार इतना ही करें न.. हट जाए। आपको हैरानी होगी, पहले की सरकारें इस बात का गर्व करती थीं कि हमने यह कानून बनाया, हमने ढिकना कानून बनाया, हमने फलाना कानून बनाया, आपने सुना होगा सब चुनावों में। मेरी गाड़ी उलटी है। उनको कानून बनाने में मजा आता था, मुझे कानून खत्म करने में आनंद आता है। ऐसा बोझ बना दिया, ऐसा बोझ बना दिया है.. अरे जरा खिड़की खोलो भाई! लोगों को जीने दो! खुली हवा मिलने दो, खिलने लगेगा देश। इसलिए मैं कहता हूं कि देश के नागरिकों पर मुझे भरोसा है, नागरिकों के सामर्थ्य पर भरोसा है और उन्हीं के भरोसे देश आगे बढ़ने वाला है, सरकारों के भरोसे देश नहीं चल सकता है और न चलना चाहिए, इस विचार का, मैं इंसान हूं।

आप लोग जब यहां आएं होंगे, आप जब पढ़ते होंगे तो आपको अपनी Mark- sheet को certify कराने के लिए किसी politician के पास मोहर लगवाने जाना पड़ा होगा, किसी गजेटेड ऑफिसर के यहां जाना पड़ा होगा। सुबह कतार लगी होगी उसके घर के सामने और कोई पहचान के बिना काम होता नहीं है। यह सब आपने अनुभव किया होगा। मेरी समझ में नहीं आता है कि जीरोक्स। का जमाना है, क्या वो गजेटेड ऑफिसर या वो कॉरपोरेटर या वो MLA.. क्या वो certify करे तभी हम सच्चे हैं? लेकिन अंग्रेजों के जमाने से यह चल रहा था, मैंने आ करके निकाल दिया। मैंने कहा भई, तुम खुद ही लिख दो कि यह मेरा है, मैं मान लूंगा। अरे! सवा सौ करोड़ देशवासियों पर भरोसा तो करो, भई! अपनों पर हम भरोसा नहीं करेंगे, तो अपने हम पर भरोसा क्यों करेंगे। मैंने उन सारे नियमों को निकाल दिया। हां! जब नौकरी लगेगी तो तुम original certificate ला करके दिखा देना, बात पूरी हो गई।

कहने का तात्पर्य यह है कि हम हमारे देशवासियों पर विश्वास करें। आशंकाएं न करें। अपने आप ही माहौल बदलना शुरू हो जाता है। अगर मैंने गरीबों पर भरोसा न किया होता, तो मेरे गरीब हिंदुस्तान के बैंकों में पांच हजार करोड़ रुपया नहीं लगाते दोस्तो!

इसलिए हम भरोसा कर करके, समाज की शक्ति को जोड़ करके, देशवासियों की ताकत को जोड़ करके, हम देश को आगे बढ़ाना चाहते हैं। हमारा किसान सुखी हो, हमारी माताओं-बहनों को सम्मान मिले, गौरव से जीएं, हर क्षेत्र में dignity.. अभी मैंने एक प्रोग्राम लॉन्च किया है – श्रमेव जयते! हम सत्यमेव जयते से तो परिचित थे, मैंने कहा – श्रमेव जयते... dignity of labour , इसको बहुत आगे बढ़ा रहा हूं।

लेकिन मुझे विश्वास है भाइयों कि आपने जो मुझे प्यार दिया है उस प्यार के माध्यम से कुछ जानकारी आपको दे दूं, ताकि.. कुछ बात, आपके लिए भी बात होनी चाहिए न। आपकी भी शिकायत होगी साहब, embassy में कोई पूछता नहीं है, कोई फोन नहीं उठाता, ईमेल करते हैं तो कोई जवाब नहीं देता हैं और फिर.. छोड़ो यार! मोदी जी आए, लेकिन कुछ हुआ नहीं। यही होता है न। निराशा इतनी है, इतने बुरे दिन देखे हैं कि मन में यह होता है कि यार.. लेकिन व्यवस्थाएं बदली जा सकती है। एक निर्णय - मैं जब अमेरिका गया था, तो मैंने कुछ बातें कही थीं, लेकिन उस समय Medison Square में जो बातें कही थीं, वहां जो लोग इक्ट्ठे हुए थे, उनको भरोसा नहीं था, क्यों कि मेरे पहले भी बहुत लोग बोल करके गए होंगे। दूध का जला छांछ फूंक कर पीता है लेकिन भाइयों बहनों मैंने अमेरिका में जो कहा था, मैंने आ करके उसको एक के बाद एक लागू करना शुरू कर दिया। जिनके पास पीआईओ कार्ड है, उन सबको आजीवन वीजा मिल जाएगा। अब, embassy वाले ने फोन उठाया, नहीं उठाया, ईमेल का जवाब दिया, नहीं दिया, हम गए तब मिला, नहीं मिला- सब दूर। एक और काम है, क्योंकि यह झगड़ा चल रहा है कि पीआईओ को वो ले करके चले या ओसीआई उसको ले करके चले.. तो ओसीआई वाला और पीआईओ वाला, दोनों के यहां अलग-अलग treatment होती है। मैंने वहां घोषणा की थी कि हम दोनों को एक कर देंगे।

इस बार प्रवासी भारतीय दिवस अहमदाबाद में होने वाला है। इस बार के प्रवासी भारतीय दिवस का विशेष महत्व होने वाला है। 1915, जनवरी महीने में महात्मा गांधी साउथ अफ्रीका से भारत वापस आए थे। एक प्रवासी भारतीय के रूप में साउथ अफ्रीका से 1915, जनवरी में महात्मा गांधी वापस आए थे। महात्मा गांधी का हिंदुस्तान वापस आने को 2015, जनवरी में 100 साल पूरे हो रहे है। इसलिए प्रवासी भारतीय दिवस में महात्मा गांधी की शताब्दी मनाए जाने का अवसर है और विश्व में रहने वाले हर भारतीय को.. जैसे महात्मा गांधी के दिल में देश के लिए कुछ करने की ललक थी, यह ललक हर हिंदुस्तानी के दिल में, वो दुनिया के किसी भी कोने में क्यों न हो, वो जलती रहे, जगती रहे। इस तरह इस योजना को आगे बढ़ाते हुए.. इसलिए यह पीआईओ और ओसीआई को एक करने का तय किया है कि 8-9 जनवरी, 2015 जब प्रवासी भारतीय दिवस होगा, उसके पहले मेरी सरकार इस काम को पूरा कर देगी। तारीख के साथ बता रहा हूं मैं।

पहले हमारे यहां से जो लोग आते थे, आप लोगों को पता होगा, पुलिस थाने जाना पड़ता था कि मैं ‘वही’ हूं और यह पुलिस वाला तय करता था कि अच्छा़, अच्छा ‘वही’ हैं आप। क्या‘–क्या.. मैं हैरान हूं जी! हमने तय कर दिया है किसी को जाना नहीं पड़ेगा। छुट्टी! और इसको लागू कर दिया है। कहने का तात्पर्य यह है कि ऐसी चीजें बना करके रखी है.. और इस तरह से मैंने मुक्ति का अभियान चलाया है भाईयों। सिडनी में, हमारी embassy का एक हिस्सा यहां भी है, वहां का cultural center, आज ही मैंने सूचना दी है, फरवरी तक मैं उसको functional करना चाहता हूं और यह होगा!

एक मेरी वेबसाइट है, आप में से किसी को interest हो तो mygov.in अगर शिकायत हो तो लिखिए उस पर। सुझाव है तो भी लिखिए और आप देश के लिए कुछ करना चाहते हैं तो भी लिखिए। फरवरी में यह cultural center शुरू हो जाए, इसके लिए मैं आगे बढ़ने वाला हूं।

एक और महत्वपूर्ण निर्णय करना है, जो शायद आपको.. भारत में जो Tourism बढ़ाने के लिए हम चाहते हैं, हम भी ऑस्ट्रेलिया के नागरिकों को कह सकते हैं –Visa on Arrival. यह सुविधा बहुत जल्द आपको प्राप्त हो जाए, उस दिशा में हम काम कर रहे हैं।

मैंने काफी समय ले लिया, मैं समझता हूं। आप लोग special train ले करके आए हैं। कोई कल्पना कर सकता है! आज working day! और यह जमावड़ा! ऊपर तो मेरी नजर भी नहीं पहुंच पा रही है। मैं आपके प्यार के लिए बहुत-बहुत आभारी हूं और यह आशीर्वाद बने रहें, प्यार बना रहे।

मैं आपको विश्वास दिलाता हूं, मैं परिश्रम करने में कोई कमी नहीं रखूंगा। ईश्वर ने जितनी बुद्धि, समय, शक्ति दी है वो आपको समर्पित है, देशवासियों को समर्पित है। लेकिन यह निश्चित है कि हम सबको मिलकर देश को बनाना है। देश ने हमें बहुत कुछ दिया है। हमें भी देश को कुछ देना है। आज हम जो कुछ भी है, किसी न किसी गरीब की कृपा है, तब हम यहां है, हमने उसे लौटाना है। ईश्वर भी प्रसन्न होता है, जब हम किसी के काम आते हैं।

मैं फिर एक बार, इतनी बड़ी संख्या में आप आए, सम्मान दिया, प्यार दिया, मैं आपका बहुत बहुत आभारी हूं। मेरे साथ आज पूरी ताकत से बोलिए और मेरा भी मन करता है कि बोल लूं– भारत माता की जय! भारत माता की जय!

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The mantra of the Bharatiya Nyaya Sanhita is - Citizen First: PM Modi
December 03, 2024
These Laws signify the end of colonial-era laws: PM Modi
The new criminal laws strengthen the spirit of - "of the people, by the people, for the people," which forms the foundation of democracy: PM Modi
Nyaya Sanhita is woven with the ideals of equality, harmony and social justice: PM Modi
The mantra of the Bharatiya Nyaya Sanhita is - Citizen First: PM Modi

केंद्रीय मंत्रिमंडल में मेरे साथी श्रीमान अमित शाह, चंडीगढ़ के प्रशासक श्री गुलाबचंद कटारिया जी, राज्यसभा के मेरे साथी सासंद सतनाम सिंह संधू जी, उपस्थित अन्य जनप्रतिनिधिगण, देवियों और सज्जनों।

चंडीगढ़ आने से लगता है कि अपनों के बीच आ गया हूं। चंडीगढ़ की पहचान शक्ति-स्वरूपा माँ चंडीका नाम से जुड़ी है। माँ चंडी, यानी शक्ति का वह स्वरूप जिससे सत्य और न्याय की स्थापना होती है। यही भावना भारतीय न्याय संहिता, नागरिक सुरक्षा संहिता के पूरे प्रारूप का आधार भी है। एक ऐसे समय में जब देश विकसित भारत का संकल्प लेकर आगे बढ़ रहा है, जब संविधान के 75 वर्ष हुए हैं.. तब, संविधान की भावना से प्रेरित भारतीय न्याय संहिता का प्रभाव प्रारंभ होना, उसका प्रभाव में आना, ये एक बहुत बड़ी शुरुआत है। देश के नागरिकों के लिए हमारे संविधान ने जिन आदर्शों की कल्पना की थी, उन्हें पूरा करने की दिशा में ये ठोस प्रयास है। ये कानून कैसे अमल में लाये जाएंगे, अभी मैं इसका Live Demo देख रहा था। और मैं भी यहां सबसे आग्रह करता हूं कि समय निकालकर के इस Live Demo का जरूर देखें। Law के Students देखें, Bar के साथी देखें, Judiciary के भी साथियों को अगर सुविधा हो, वे भी देखें। मैं इस अवसर पर, सभी देशवासियों को भारतीय न्याय संहिता, नागरिक संहिता के लागू होने की अनेक-अनेक शुभकामनाएं देता हूं। और चंडीगढ़ प्रशासन से जुड़े सबको बधाई देता हूं।

साथियों,

देश की नई न्याय संहिता अपने आपमें जितना समग्र दस्तावेज़ है, इसको बनाने की प्रक्रिया भी उतनी ही व्यापक रही है। इसमें देश के कितने ही महान संविधानविदों और कानूनविदों की मेहनत जुड़ी है। गृह मंत्रालय ने इसे लेकर जनवरी 2020 में सुझाव मांगे थे। इसमें देश के मुख्य न्यायधीशों का सुझाव और मार्गदर्शन रहा। इनमें हाइ-कोर्ट्स के चीफ़ जस्टिसेस उन्होंने भरपूर सहयोग दिया। देश का सुप्रीम कोर्ट, 16 हाइकोर्ट, judicial academies, अनेकों law institutions, सिविल सोसाइटी के लोग, अन्य बुद्धिजीवी....इन सबने वर्षों तक मंथन किया, संवाद किया, अपने अनुभवों को पिरोया, आधुनिक परिप्रेक्ष्य में देश की जरूरतों पर चर्चा की गई। आज़ादी के 7 दशकों में न्याय व्यवस्था के सामने जो challenges आए, उन पर गहन मंथन किया गया। हर कानून का व्यावहारिक पक्ष देखा गया, futuristic parameter पर उसे कसा गया...तब भारतीय न्याय संहिता अपने इस स्वरूप में हमारे सामने आई है। मैं इसके लिए देश के सुप्रीम कोर्ट का, honorable judges का, देश की सभी हाइ-कोर्ट्स का, विशेषकर हरियाणा, पंजाब हाईकोर्ट का मैं विशेष आभार प्रकट करता हूँ। मैं Bar का भी धन्यवाद करता हूँ कि जिन्होंने आगे आकर इस न्याय संहिता की ownership ली है, Bar के सभी साथी बहुत-बहुत अभिनंदन के अधिकारी हैं। मुझे भरोसा है, सबके सहयोग से बनी भारत की ये न्याय संहिता भारत की न्याय यात्रा में मील का पत्थर साबित होगी।

साथियों,

हमारे देश ने 1947 में आज़ादी हासिल की थी। आप कल्पना करिए, सदियों की गुलामी के बाद जब हमारा देश आज़ाद हुआ, पीढ़ियों के इंतज़ार के बाद, लक्ष्यावदी लोगों के बलिदानों के बाद, जब आज़ादी की सुबह आई...तब कैसे-कैसे सपने थे, देश में कितना उत्साह था, देशवासियों ने भी सोचा था...अंग्रेज गए हैं, तो अंग्रेजी क़ानूनों से भी मुक्ति मिलेगी। अंग्रेजों के अत्याचार का, उनके शोषण का ज़रिया ये कानून ही तो थे। ये कानून बनाए भी तब गए थे, जब अंग्रेजी सत्ता भारत पर अपना शिकंजा बनाए रखने के लिए कुछ भी करने को तैयार थी। 1857 में और मेरे नौजवान साथियों को मैं कहूंगा- याद रखिए, 1857 में देश का पहला बड़ा स्वाधीनता संग्राम लड़ा गया। उस 1857 के स्वाधीनता संग्राम ने अंग्रेजी हुकुमत की जड़े हिला दी थीं, देश के हर कौने में बहुत बड़ी चुनौती पैदा कर दी थी। तब जाकर के, उसके जवाब में, अंग्रेज़ 1860 में, 3 साल के बाद इंडियन पीनल कोड, यानी IPC लेकर आए। फिर कुछ साल बाद इंडियन एविडेंस एक्ट लाया गया। और फिर CRPC का पहला ढांचा अस्तित्व में आया। इन क़ानूनों की सोच और मकसद यही था कि भारतीयों को दंड दिया जाए, गुलाम रखा जाए, और दुर्भाग्य देखिए, आजादी के बाद...दशकों तक हमारे कानून उसी दंड संहिता और penal mindset के इर्द-गिर्द ही घूमते रहे, मंडराते रहे। और जिनका इस्तेमाल नागरिकों को गुलाम मानकर होता था। समय-समय पर इन क़ानूनों में छोटे-मोटे सुधार करने के प्रयास हुए, लेकिन इनका चरित्र वही बना रहा। आजाद देश में गुलामों के लिए बने कानूनों को क्यों ढोया जाए? ये सवाल ना हमने खुद से पूछा, ना शासन कर रहे लोगों ने इस पर विचार करने की ज़रूरत समझी। गुलामी की इस मानसिकता ने भारत की प्रगति को, भारत की विकास यात्रा को बहुत ज्यादा प्रभावित किया।

साथियों,

देश अब उस colonial माइंडसेट से बाहर निकले, राष्ट्र के सामर्थ्य का प्रयोग राष्ट्र निर्माण में हो....इसके लिए राष्ट्रीय चिंतन आवश्यक था। और इसीलिए, मैंने 15 अगस्त को लालकिले से गुलामी की मानसिकता से मुक्ति का संकल्प देश के सामने रखा था। अब भारतीय न्याय संहिता, नागरिक संहिता इसके जरिए देश ने उस दिशा में एक और मजबूत कदम उठाया है। हमारी न्याय संहिता ‘of the people, by the people, for the people' की उस भावना को सशक्त कर रही है, जो लोकतंत्र का आधार होती है।

साथियों,

न्याय संहिता समानता, समरसता और सामाजिक न्याय के विचारों से बुनी गई है। हम हमेशा से सुनते आए हैं कि, कानून की नज़र में सब बराबर होते हैं। लेकिन, व्यवहारिक सच्चाई कुछ और ही दिखाई देती है। गरीब, कमजोर व्यक्ति कानून के नाम से डरता था। जहां तक संभव होता था, वो कोर्ट-कचहरी और थाने में कदम रखने से डरता था। अब भारतीय न्याय संहिता समाज के इस मनोविज्ञान को बदलने का काम करेगी। उसे भरोसा होगा कि देश का कानून समानता की, equality की गारंटी है। यही...यही सच्चा सामाजिक न्याय है, जिसका भरोसा हमारे संविधान में दिलाया गया है।

साथियों,

भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता...हर पीड़ित के प्रति संवेदनशीलता से परिपूर्ण है। देश के नागरिकों को इसकी बारीकियों का पता चलना ये भी उतना ही आवश्यक है। इसलिए मैं चाहूंगा, आज यहां चंडीगढ़ में दिखाए Live Demo को हर राज्य की पुलिस को अपने यहां प्रचारित, प्रसारित करना चाहिए। जैसे शिकायत के 90 दिनों के भीतर पीड़ित को केस की प्रगति से संबंधित जानकारी देनी होगी। ये जानकारी SMS जैसी डिजिटल सेवाओं के जरिए सीधे उस तक पहुंचेगी। पुलिस के काम में बाधा डालने वाले व्यक्ति के खिलाफ एक्शन लेने की व्यवस्था बनाई गई है। महिलाओं की सुरक्षा के लिए न्याय संहिता में एक अलग चैप्टर रखा गया है। वर्क प्लेस पर महिलाओं के अधिकार और सुरक्षा, घर और समाज में उनके और बच्चों के अधिकार, भारतीय न्याय संहिता ये सुनिश्चित करती है कि कानून पीड़िता के साथ खड़ा हो। इसमें एक और अहम प्रावधान किया गया है। अब महिलाओं के खिलाफ बलात्कार जैसे घृणित अपराधों में पहली हियरिंग से 60 दिन के भीतर चार्ज फ्रेम करने ही होंगे। सुनवाई पूरी होने के 45 दिनों के भीतर-भीतर फैसला भी सुनाया जाना अनिवार्य कर दिया गया है। ये भी तय किया गया है कि किसी केस में 2 बार से अधिक स्थगन, एडजर्नमेंट नहीं लिया जा सकेगा।

साथियों,

भारतीय न्याय संहिता का मूल मंत्र है- सिटिज़न फ़र्स्ट! ये कानून नागरिक अधिकारों के protector बन रहे हैं, ‘ease of justice’ का आधार बन रहे हैं। पहले FIR करवाना भी कितना मुश्किल होता था। लेकिन अब ज़ीरो FIR को भी कानूनी रूप दे दिया गया है, अब उसे कहीं से भी केस दर्ज कराने की सहूलियत मिली है। FIR की कॉपी पीड़ित को दी जाए, उसे ये अधिकार दिया गया है। अब आरोपी के ऊपर कोई केस अगर हटाना भी है, तो तभी हटेगा जब पीड़ित की सहमति होगी। अब पुलिस किसी भी व्यक्ति को अपनी मर्जी से हिरासत में नहीं ले सकेगी। उसके परिजनों को सूचित करना, ये भी न्याय संहिता में अनिवार्य कर दिया गया है। भारतीय न्याय संहिता का एक और पक्ष है...उसकी मानवीयता, उसकी संवेदनशीलता अब आरोपी को बिना सजा बहुत लंबे समय तक जेल में नहीं रखा जा सकता। अब 3 वर्ष से कम सजा वाले अपराध के मामले में गिरफ़्तारी भी हायर अथॉरिटी की सहमति से ही हो सकती है। छोटे अपराधों के लिए अनिवार्य जमानत का प्रावधान भी किया गया है। साधारण अपराधों में सजा की जगह Community Service का विकल्प भी रखा गया है। ये आरोपी को समाज हित में, सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ने के नए अवसर देगा। First Time Offenders के लिए भी न्याय संहिता बहुत संवेदनशील है। देश के लोगों को ये जानकर भी खुशी होगी कि भारतीय न्याय संहिता के लागू होने के बाद जेलों से ऐसे हजारों कैदियों को छोड़ा गया है...जो पुराने क़ानूनों की वजह से जेलों में बंद थे। आप कल्पना कर सकते हैं, एक नई व्यवस्था, नया कानून नागरिक अधिकारों के सशक्तिकरण को कितनी ऊंचाई दे सकता है।

साथियों,

न्याय की पहली कसौटी है- समय से न्याय मिलना। हम सब बोलते और सुनते भी आए हैं- justice delayed, justice denied! इसीलिए, भारतीय न्याय संहिता, नागरिक सुरक्षा संहिता के जरिए देश ने त्वरित न्याय की तरफ बड़ा कदम उठाया है। इसमें जल्दी चार्जशीट फाइल करने और जल्दी फैसला सुनाने को प्राथमिकता दी गई है। किसी भी केस में हर चरण को पूरा करने के लिए समय-सीमा तय की गई है। ये व्यवस्था देश में लागू हुए अभी कुछ ही महीने हुए हैं। इसे परिपक्व होने के लिए अभी समय चाहिए। लेकिन, इतने कम अंतराल में ही जो बदलाव हमें दिख रहे हैं, देश के अलग-अलग हिस्सों से जो जानकारियां मिल रही हैं...वे वाकई बहुत संतोष देने वाली हैं, उत्साहजनक है। आप लोग तो यहां भली-भांति जानते हैं, हमारे इस चंडीगढ़ में ही वाहन चोरी, व्हीकल की चोरी करने के एक केस में FIR होने के बाद आरोपी को सिर्फ 2 महीने 11 दिन में अदालत से सजा सुना दी, उसको सजा मिल गई। क्षेत्र में अशांति फैलाने के एक और आरोपी को अदालत ने सिर्फ 20 दिन में पूरी सुनवाई के बाद सजा भी सुना दी। दिल्ली में भी एक केस में FIR से लेकर फैसला आने तक सिर्फ 60 दिन का समय लगा...आरोपी को 20 साल की सजा सुनाई गई। बिहार के छपरा में भी एक मर्डर केस में FIR से लेकर फैसला आने तक सिर्फ 14 दिन लगे और आरोपियों को उम्र कैद की सजा हो गई। ये फैसले दिखाते हैं कि भारतीय न्याय संहिता की ताकत क्या है, उसका प्रभाव क्या है। ये बदलाव दिखाता है कि जब सामान्य नागरिकों के हितों के लिए समर्पित सरकार होती है, जब सरकार ईमानदारी से जनता की तकलीफ़ों को दूर करना चाहती है, तो बदलाव भी होता है, और परिणाम भी आते हैं। मैं चाहूंगा कि देश में इन फैसलों की ज्यादा से ज्यादा चर्चा हो ताकि हर भारतीय को पता चले कि न्याय के लिए उसकी शक्ति कितनी बढ़ गई है। इससे अपराधियों को भी पता चलेगा कि अब तारीख पर तारीख के दिन लद गए हैं।

साथियों,

नियम या कानून तभी प्रभावी रहते हैं, जब समय के मुताबिक प्रासंगिक हों। आज दुनिया इतनी तेजी से बदल रही है। अपराध और अपराधियों के तोर-तरीके बदल गए हैं। ऐसे में 19वीं शताब्दी में जड़ें जमाए कोई व्यवस्था कैसे व्यावहारिक हो सकती थी? इसीलिए, हमने इन क़ानूनों को भारतीय बनाने के साथ-साथ आधुनिक भी बनाया है। यहां अभी हमने देखा भी कि अब Digital Evidence को भी कैसे एक महत्वपूर्ण साक्ष्य के रूप में रखा गया है। जांच के दौरान सबूतों से छेड़छाड़ ना हो, इसके लिए पूरे प्रोसेस की वीडियोग्राफी को अनिवार्य किया गया है। नए कानूनों को लागू करने के लिए ई-साक्ष्य, न्याय श्रुति, न्याय सेतु, e-Summon Portal जैसे उपयोगी साधन तैयार किए गए हैं। अब कोर्ट और पुलिस की तरफ से सीधे फोन पर, electronic mediums से सम्मन सर्व किए जा सकते हैं। विटनेस के स्टेटमेंट की audio-video recording भी की जा सकती है। डिजिटल एविडेंस भी अब कोर्ट में मान्य होंगे, वो न्याय का आधार बनेंगे। उदाहरण के तौर पर, चोरी के मामले में फिंगर प्रिंट का मिलान, बलात्कार के मामलों में DNA sample का मिलान, हत्या के केस में पीड़ित को लगी गोली और आरोपी के पास से जब्त की गई बंदूक के साइज़ का मैच....विडियो एविडेंस के साथ ये सब कानूनी आधार बनेंगे।

साथियों,

इससे अपराधी के पकड़े जाने तक अनावश्यक समय बर्बाद नहीं होगा। ये बदलाव देश की सुरक्षा के लिए भी उतने ही जरूरी थे। डिजिटल साक्ष्यों और टेक्नोलॉजी के इंटिग्रेशन से हमें आतंकवाद के खिलाफ लड़ने में भी ज्यादा मदद मिलेगी। अब नए क़ानूनों में आतंकवादी या आतंकी संगठन कानून की जटिलताओं का फायदा नहीं उठा सकेंगे।

साथियों,

नई न्याय संहिता, नागरिक सुरक्षा संहिता से हर विभाग की productivity बढ़ेगी और देश की प्रगति को गति मिलेगी। कानूनी अड़चनों के कारण जो भ्रष्टाचार को बल मिलता था, उस पर लगाम लगाने में मदद मिलेगी। ज़्यादातर विदेशी निवेशक पहले भारत में इसलिए निवेश नहीं करना चाहते थे, क्योंकि कोई मुकदमा हुआ तो उसी में वर्षों निकल जाएंगे। जब ये डर खत्म होगा, तो निवेश बढ़ेगा, देश की अर्थव्यवस्था मजबूत होगी।

साथियों,

देश का कानून नागरिकों के लिए होता है। इसलिए, कानूनी प्रक्रियाएँ भी पब्लिक की सुविधा के लिए होनी चाहिए। लेकिन, पुरानी व्यवस्था में process ही punishment बन गया था। एक स्वस्थ समाज में कानून का संबल होना चाहिए। लेकिन, IPC में केवल कानून का डर ही एकमात्र तरीका था। वो भी, अपराधी से ज्यादा ईमानदार लोगों को, जो बेचारे विक्टिम हैं, उनको डर रहता था। यहाँ तक की, सड़क पर किसी का एक्सिडेंट हो जाए तो लोग मदद करने से घबराते थे। उन्हें लगता था कि उल्टा वो खुद पुलिस के पचड़े में फंस जाएंगे। लेकिन अब मदद करने वालों को इन परेशानियों से मुक्त कर दिया गया है। इसी तरह, हमने अंग्रेजी शासन के 1500 से ज्यादा कानून, पुराने कानूनों को भी खत्म किया। जब ये कानून खत्म हुये, तब लोगों को हैरानी हुई थी कि क्या देश में ऐसे-ऐसे कानून हम ढ़ो रहे थे, ऐसे-ऐसे कानून बने थे।

साथियों,

हमारे देश में कानून नागरिक सशक्तिकरण का माध्यम बनें, इसके लिए हम सबको अपना नज़रिया व्यापक बनाना चाहिए। ये बात मैं इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि हमारे यहाँ कुछ क़ानूनों की तो खूब चर्चा हो जाती है। चर्चा होनी भी चाहिए लेकिन, कई अहम कानून हमारे विमर्श से वंचित रह जाते हैं। जैसे, आर्टिकल-370 हटा, इस पर खूब बात हुई। तीन तलाक पर कानून आया, उसकी खूब चर्चा हुई। इन दिनों वक़्फ़ बोर्ड से जुड़े कानून पर बहस चल रही है। हमें चाहिए, हम इतना ही महत्व उन क़ानूनों को भी दें जो नागरिकों की गरिमा और स्वाभिमान बढ़ाने के लिए बने हैं। अब जैसे आज अंतर्राष्ट्रीय दिव्यांग दिवस है। देश के दिव्यांग हमारे ही परिवारों के सदस्य हैं। लेकिन, पुराने क़ानूनों में दिव्यांगों को किस कैटेगरी में रखा गया था? दिव्यांगों के लिए ऐसे-ऐसे अपमानजनक शब्दों का प्रयोग किया गया था, जिन्हें कोई भी सभ्य समाज स्वीकार नहीं कर सकता। हमने ही सबसे पहले इस वर्ग को दिव्यांग कहना शुरू किया। उन्हें कमजोर फील कराने वाले शब्दों से छुटकारा दिया। 2016 में हमने Rights of Persons with Disabilities Act लागू करवाया। ये केवल दिव्यांगों से जुड़ा कानून नहीं था। ये समाज को और ज्यादा संवेदनशील बनाने का अभियान भी था। नारी शक्ति वंदन अधिनियम अभी इतने बड़े बदलाव की नींव रखने जा रहा है। इसी तरह, ट्रांसजेंडर्स से जुड़े कानून, Mediation act, GST Act, ऐसे कितने ही कानून बने हैं, जिन पर सकारात्मक चर्चा आवश्यक है।

साथियों,

किसी भी देश की ताकत उसके नागरिक होते हैं। और, देश का कानून नागरिकों की ताकत होता है। इसीलिए, जब भी कोई बात होती है, तो लोग गर्व से कहते हैं कि- I am a law abiding citizen. कानून के प्रति नागरिकों की ये निष्ठा राष्ट्र की बहुत बड़ी पूंजी होती है। ये पूंजी कम न हो, देशवासियों का विश्वास बिखरे ना...ये हम सबकी सामूहिक ज़िम्मेदारी है। इसलिए, मैं चाहता हूं कि हर विभाग, हर एजेंसी, हर अधिकारी और हर पुलिसकर्मी नए प्रावधानों को जाने, उनकी भावना को समझे। विशेष रूप से मैं देश की सभी राज्य सरकारों से अनुरोध करना चाहता हूँ, भारतीय न्याय संहिता, नागरिक सुरक्षा संहिता...प्रभावी ढंग से लागू हो, उनका जमीन पर असर दिखे, इसके लिए सभी राज्य सरकारों को सक्रिय होकर काम करना होगा। और मेरा फिर कहना है...नागरिकों को अपने इन अधिकारों की ज्यादा से ज्यादा जानकारी होनी चाहिए। हमें मिलकर इसके लिए प्रयास करना है। क्योंकि, ये जितना प्रभावी तरीके से लागू होंगे, हम देश को उतना ही बेहतर भविष्य दे पाएंगे। ये भविष्य आपके भी और आपके बच्चों का जीवन तय करने वाला है, आपके सर्विस satisfaction को तय करने वाला है। मुझे विश्वास है, हम सब मिलकर इस दिशा में काम करेंगे, राष्ट्र निर्माण में अपनी भूमिका बढ़ाएंगे। इसी के साथ, आप सभी को, सभी देशवासियों को एक बार फिर भारतीय न्याय संहिता, नागरिक सुरक्षा संहिता की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ देता हूं, और चंडीगढ़ का ये शानदार माहौल, आपका प्यार, आपका उत्साह उसको सलाम करते हुए मेरी वाणी को विराम देता हूं।

बहुत-बहुत धन्यवाद!