महाराष्ट्र के राज्यपाल श्रीमान के. शंकर नारायणन जी, मुख्यमंत्री श्रीमान पृथ्वीराज जी, मंत्रिपरिषद के मेरे साथी श्री नितिन गडकरी जी, श्री अनंत गीते जी, यहां के सांसद श्री सारंग जी, विधान परिषद के नेता प्रतिपक्ष श्रीमान विनोद तांबड़े जी, विधान सभा के प्रतिपक्ष के नेता श्री एकनाथ खरसे जी, शिपिंग के सचिव श्री विश्वपति त्रिवेदी जी, जेएनपीटी के चेयरमैन श्री एम.एन. कुमार और विशाल संख्या में पधारे हुए भाइयों और बहनों,
प्रधानमंत्री बनने के बाद महाराष्ट्र की धरती पर ये मेरा पहला सार्वजनिक कार्यक्रम है। और मेरे लिए ये बड़े सौभाग्य की बात है कि मेरा पहला कार्यक्रम छत्रपति शिवाजी महाराज की राजधानी रायगड की धरती से हो रहा है। और जब रायगड जिले में पहला कार्यक्रम कर रहा हूं तो सहज रूप से हृदय के भीतर से एक ही स्वर निकलता है- ‘छत्रपति शिवरायांचा त्रिवार जयजयकार’।
आज यहां स्पेशल इकोनोमिक जोन, और जिसका मुख्य लक्ष्य यहां के भूमि पुत्रों को रोजगार मिले, लाखों नौजवानों को रोजी-रोटी कमाने के लिए यहां से दूर न जाना पड़े। उनको यहीं पर रोजगार मिल जाए। और इस हेतु से मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर को बढ़ावा देना, औद्योगिक विकास करना, सेवा क्षेत्र का विकास करना, जिससे रोजगार की संभावनाएं बढ़ती हैं। अगर हमें देश के सामान्य मानवीय जीवन में बदलाव लाना है, क्वालिटी ऑफ लाइफ में परिवर्तन लाना है तो आर्थिक विकास, रोजगार के अवसर, आवश्यक इंफ्रास्टक्चर, शिक्षा, आरोग्य जैसी सुविधाएं, इसे प्राथमिकता देनी होती है। एक समय था, बंदरगाहों का विकास, उसमें छोटे-मोटे प्रयास होते थे, लेकिन आज विश्व व्यापार का युग है। और जब विश्व व्यापार का युग है तब सामुद्रिक व्यापार, यह अनिवार्य हो गया है। हमरा हिन्द महासागर, दुनिया के आयल सेक्टर का दो तिहाई व्यापार हिंद महासागर के जरिये होता है। कंटेनर का व्यापार क्षेत्र, करीब 50 प्रतिशत हिंद महासागर से होता है और आने वाले दिनों में यह बढ़ने वाला है। इसलिए पोर्ट सेक्टर का डेवलपमेंट और विशेष कर के हमारे देश के जो तटीय राज्य को ध्यान देना होगा। इस बार हमने बजट में घोषणा की है, सागरमाला की रचना करने की। हिंदुस्तान के समुद्र तट पर पूरब हो या पश्चिम या दक्षिण, समुद्र तट पर जो राज्य हैं, उसे सागरमाला प्रोजेक्ट का लाभ मिले और जब हम नक्शा देखें, भारत माता का मानचित्र देखें तो इन सागरमाला की ऐसी शृंखला तैयार हो जहां सर्वाधिक आर्थिक गतिविधियों का केंद्र बना हो। दुनिया में जिन-जिन राष्ट्रों का विकास हुआ है उसमें एक बात प्रखर रूप से उभरती है कि समुद्र तट पर जो शहर विकसित हुए हैं, उसी की आर्थिक गतिविधियों ने उस देश को संवृद्धि दी है और इसलिए भारत ने भी बंदरगाहों का विकास और सागरमाला योजना, इसकी अनिवार्यता समझी है।
एक समय था, हम पोर्ट डेवलपमेंट पर केंद्रित थे। लेकिन, अब पोर्ट डेवलपमेंट से बात नहीं बनेगी। अगर हमें विकास करना है तो पोर्ट लेड डेवलपमेंट पर बल देना पड़ेगा। यदि मैं पोर्ट लेड डेवलपमेंट कहता हूं , तब जिसमें हमारी सागरमाला योजना के तहत संकल्पना है कि पोर्ट हो, पोर्ट के साथ एस ई जेड हो, पोर्ट के साथ रेल की कनेक्टिविटी, रोड कनेक्टिविटी, रोड कनेक्टिविटी, वाटर वे कनेक्टिविटी, एक प्रकार से हिंदुस्तान के अन्य भूभागों से उसको ऐसी कनेक्टिविटी मिले ताकि हमारे जो उद्योगकार, लैंड लॉक्ड स्टेट के भी, जो उत्पादन करें, उसको तत्काल समुद्री तट पर पहुंचा करके दुनिया के बाजारों में पहुंचा सकें। अगर हमें एक्सपोर्ट को बल देना है तो हमें इन व्यवस्थाओं को भी बल देना होगा। इसलिए सागरमाला योजना के तहत पोर्ट लेड डेवपलमेंट- जहां कनेटिक्वटी भी हो, कोल्ड स्टोरेज का नेटवर्क हो, वेयर हाउसिंग का नेटवर्क हो, एक फुल फ्लेज्ड व्यवस्था को हम विकसित करना चाहते हैं। और उसी के तहत इस नई सरकार ने, तत्काल यहां के नौजवानों को रोजगार मिले, पूंजी निवेश हो, उत्पादन बढ़े, इसके लिए आज यहां पर ये एसईजेड आरंभ करना तय किया है।
पृथ्वीराज जी ने, जो एस ई जेड बंद पड़े हैं, उसकी चिंता जताई। यह चिंता तो उनको पहले से ही रही होगी, लेकिन पहले शायद कह नहीं पाए होंगे। क्योंकि ये, बीमारी नई नहीं है, पुरानी है। और कभी-कभी पुरानी बीमारियों को दूर करने के लिए अच्छे डॉक्टर की जरूरत पड़ती है। तो माननीय मुख्यमंत्री जी ने जो चिंता जताई है, मैं भी उसमें अपना स्वर जोड़ता हूं। उनकी चिंता वाजिब है और इस समस्या का समाधान करने की दिशा में नई सरकार बहुत ही तेज गति से काम कर रही है। मैंने, मेरे ही कार्यालय में एक विशेष टीम बनाई है, जिसको मैंने कहा कि भाई, जब एस ई जेड की घोषणा हुई तो बड़ा उमंग-उत्साह था, चारो तरफ क्या हो गया? यह टेक ऑफ ही नहीं कर पाया। रनवे पर ही रुका पड़ा है। कुछ तो टेक ऑफ कर गए तो ग्राउंडेड हो गए। क्या कारण थे? नियमों की क्या कठिनाई थी, क्या सपोर्ट मिला, क्या नहीं मिला। इन सारे विषयों का अध्ययन करके निदान निकालना है। यह समस्या सिर्फ महाराष्ट्र की नहीं है। पूरे हिंदुस्तान को इस संकट को झेलना पड़ रहा है। लेकिन उस संकट से देश को बाहर निकालने के लिए हम पूरा प्रयास करेंगे। मैं मुख्यमंत्री जी को और देश के अन्य भागों को भी विश्वास दिलाता हूं।
दो और बातें भी आज मैं कहना चाहता हूं। एक्सपोर्ट के क्षेत्र में भारत सरकार का एक डिपार्टमेंट रहता है, वह अपनी योजनाएं बनाता है। और एक्सपोर्ट के बिजनेस से जुड़े हुए लोग भारत सरकार के साथ अपना संबंध बनाते हैं। जब तक हम राज्यों को इसके अंदर नहीं जोड़ेंगे, राज्य अपने राज्य के उत्पादकों को, मैन्यूफैक्चरर्स को, एक्सपोर्ट के लिए प्रोत्साहित नहीं करेंगे, केंद्र और राज्य मिलकर के एक्सपोर्ट प्रमोशन के लिए कंधे से कंधा मिलाकर के काम नहीं करेंगे, तो हम जो चाहते हैं, एक्सपोर्ट का वह परिणाम नहीं मिल सकता है। और इसलिए नई सरकार राज्यों को भी एक स्वतंत्र एक्सपोर्ट कमीशन बनाने को प्रेरित कर रही है, भारत सरकार के साथ मिल करके। राज्य भी अपने राज्य के ऐसे उत्पादकों को प्रोत्साहन दें। एक्सपोर्ट करने वाले जो यूनिट हैं, उसकी चिंता करने की राज्यों में व्यवस्था खड़ी हो। राज्य और केंद्र मिलकर के इस काम को भलीभांति कर सकते हैं। इनोवेशंस में कोई जो मदद करनी है, टेक्नॉलाजी ट्रांसफर करने की व्यवस्था करने में कोई मदद करनी है, डिजाइनिंग की दृष्टि से व्यवस्था करनी है, पैकेजिंग की व्यवस्था करनी है। ये सारे एक्सपर्टाइज पहलू हैं। अगर उस पर बल देते हैं, राज्य और केंद्र मिलकर के काम करते हैं, तो आज जो देश की हालत है- कि हमारा इंपोर्ट बढ़ता चला जा रहा है, एक्सपोर्ट कम होता जा रहा है, वह बदल सकती है। आने वाले देखते ही देखते समय के अंदर हमारे नौजवानों पर मुझे भरोसा है कि वो उस चीजों को उत्पादित कर सकते हैं कि एक्सपोर्ट की दुनिया में हिंदुस्तान का डंका बजने लग जाएगा। पिछले दिनों हमने राज्यों और केंद्र के प्रतिनिधियों की पहली बार एक्सपोर्ट प्रमोशन के लिए एक मीटिंग बुलाई। राज्यों को कहा कि आपके यहां एक्सपोर्ट करने वाली कौन सी यूनिट हैं, उसे जरा देखो तो। उसकी मुसीबत क्या है, उनकी सुविधाएं कैसे बढ़े। हमारी कानूनी झाल इतनी भयंकर बनाकर रखी गई है, यहां बैठे हुए व्यापार जगत के मित्र जानते हैं। कि उनके व्यवसाय में एक डिपार्टमेंट तो पूरा सरकारी फार्म भरने में लगाकर रखना पड़ता है। मेरी कोशिश है उसको सिम्पलीफाई करने की। अभी-अभी हमारे नितिन जी ने अपने विभाग में दो महत्वपूर्ण निर्णय लिए हैं। और भी बहुत किए हैं पर मैं दो का उल्लेख यहां करना चाहता हूं। अब ऐसी चीजें अखबारों में नहीं आती हैं, क्योंकि हमारे देश में सकारात्मक समाचारों के लिए अभी जरा तकलीफ रहती है। ये शिपिंग में जो लोग लगे हैं, उन्हें हर वर्ष लाइसेंस लेना पड़ता था। अब मुझे बताओ भाई, ये हर वर्ष लाइसेंस के चक्कर में पड़ना, मतलब क्या है? अफसर के पास जाओ, फिर कुछ इधर से, और तब जाकर लाइसेंस रिव्यू होता है और तब फिर रिन्यू होता है। हमारे नितिन जी ने एक धमाके से निर्णय कर दिया, अब लाइसेंस लाइफ टाइम मिलेगा। विदेशों से जो व्यापार करने आते हैं, शिप आते हैं, उनका भी यही हाल है। उनके लिए भी नियम बदल दिए गए हैं।
हमारी कोशिश है, सरलीकरण की नीति, और ईज़ आफ द बर्डेन। यह जितना हम तेज माहौल बनाएंगे उतना बढि़या। भारत के नौजवानों में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है। भारत के उद्योगकारों में साहस करने की क्षमता अप्रतिम है। उन्हें उचित माहौल मिलना चाहिए। उचित प्रोत्साहन मिलना चाहिए, उचित वातावरण मिलना चाहिए। और उसके लिए यह सरकार प्रतिबद्ध है।
दूसरा एक क्षेत्र जिस पर मैं आकर्षित करना चाहता हूं, यहां उद्योग के लोग भी बैठे हैं और मुंबई हमारी उद्योग नगरी भी रही है, आर्थिक नगरी रही है। और इसलिए आज विश्व का सामुद्रिक व्यापार जितना तेजी से बढ़ रहा है, उतनी ही शिपिंग इंडस्ट्री की बहुत बड़ी मांग बढ़ रही है। आज शिप बिल्डिंग एक बहुत बड़ी ऑपरच्यूनिटी है। पूरे विश्व में शिप बिल्डिंग के क्षेत्र में हमारा कंट्रीव्यूशन बहुत कम है। साउथ कोरिया जैसा देश, बहुत छोटा देश, महाराष्ट्र से भी छोटा। वहां आज दुनिया का 40 प्रतिशत शिप बिल्डिंग का काम वह अकेला देश करता है। और भारत के पास जितना बड़ा समुद्र समुद्र तट हो, इतने बड़े नौजवानों की फौज हो और शिप बिल्डिंग का काम कोई बहुत बड़ी टेक्नोलॉजी का काम नहीं है। टर्नर, फिटर, वेल्डर भी शिप बिल्डिंग के काम में लग जाते हैं। गरीब से गरीब व्यक्ति को रोजगार मिलता है। हम शिप बिल्डिंग को बढ़ावा देना चाहते हैं।
और कल जैसे मैंने 15 अगस्त को सार्वजनिक रूप से कहा था कम मेक इन इंडिया। कुछ लोग इसको समझ नहीं पाए। तो कुछ लोग कल चला रहे थे, मेक इंडिया। मैंने कहा था 'मेक इन इंडिया'। हम चाहते हैं, विदेशी पूंजी निवेशक आएं। शिप बिल्डिंग एक बहुत बड़ा क्षेत्र है। और हमारे पास नौजवानों, स्किल, मैन पावर, यह हमारे लिए उपलब्ध कराना बेहद आसान है। हम इसे बल देना चाहते हैं। इतना ही नहीं, पोर्ट का डेवलपमेंट, यह सिर्फ वहां पर रहने वाले लोगों के आर्थिक प्रगति का केंद्र नहीं होता है। हमारे बंदरगाह एक प्रकार से भारत की समृद्धि का प्रवेश द्वार बन सकते हैं। अगर हम, हमारे बंदरगाहों को भारत की समृद्धि के प्रवेश द्वार के रूप में विकसित करना चाहते हैं तो हमने सागरमाला योजना के तहत उसको और बढ़ावा देने का प्रयास आरंभ किया है। मैं देश के नौजवानों को विश्वास देता हूं। रोजगार की संभावनाएं जितनी ज्यादा बढ़े, ऐसे उद्योगों को हम बल देना चाहते हैं। किसानों का, उनकी मेहनत का उचित दाम मिले, किसान जो उत्पादन करता है, उसका वैल्यू एडिशन हो, मूल्य वृद्धि हो। दुनिया के बाजार में हमारे किसानों द्वारा उत्पादित की हुई चीजें पहुंचें, उस प्रकार का औद्योगिक विकास हो जो कृषि आधारित हो। गांव के नौजवानों को रोजगार मिले। हम जितना इसका प्रकार का विस्तार करेंगे, भारत के पास जो सबसे बड़ी ताकत है वह 65 प्रतिशत नौजवान 35 वर्ष से कम आयु के हैं। अगर इनकी शक्ति देश के अंदर लग जाए तो दुनिया के अंदर देश का डंका बज जाए। इस विश्वास के साथ हम आगे बढ़ सकते हैं।
लाखों-करोड़ों रुपये के पूंजी निवेश से यहां पर रोजगार की संभानाएं बढ़ने वाली हैं और हर राज्य, कौन राज्य ज्यादा एक्सपोर्ट करता है, उसकी आने वाले दिनों में स्पर्धा करने की आवश्यकता है। राज्यों-राज्यों के बीच स्पर्धा हो, विकास की स्पर्धा हो। कौन राज्य सबसे ज्यादा अपने एक्सपोर्ट कर सकता है। कौन सा ऐसा उत्पादन उसके राज्य में होता है जहां से दुनिया में एक्सपोर्ट हो रहा है, उसकी तरफ हम ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं। हम दुनिया के बाजार में हिंदुस्तान की जगह बनाना चाहते हैं। तब मैंने कल कहा था मेड इन इंडिया, गर्व के साथ। एक जमाना था, मेड इन जापान कहते ही सामान हम जेब में ले लेते थे, चाहे कितना भी पैसा देना पड़े। क्या दुनिया मेड इन इंडिया का भरोसा नहीं कर सकती है? क्या हमारे पास वह कौशल नहीं है कि हम दुनिया के बाजार में अपनी जगह बना सकते? इन एसईजेड के माध्यम से ऐसे उत्पादन को हम प्राथमिकता दें ताकि दुनिया के बाजार के अंदर हम अपनी जगह बना सकें। मुझे विश्वास है कि भारत सरकार का यह इनिशिएटिव, राज्य सरकार की भी योजनाओं में सहभागिता, इस क्षेत्र के विकास के लिए, इस क्षेत्र के नौजवानों के जीवन में बदलाव लाने के लिए, रोजगार की संभावना उपलब्ध कराने के लिए बहुत बड़ा अवसर बनेगा। मैं आप सबको बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं और रायगड की धरती पर से हम एक बार ललकारें
छत्रपति शिवाजी महाराज की जय, छत्रपति शिवाजी महाराज की जय, छत्रपति शिवाजी महाराज की जय, भारत माता की जय।