QuoteWeak Congress government used to plead around the world: PM Modi in Shimla, HP
QuoteCongress left the border areas of India to their fate: PM Modi in Shimla, HP

भारत माता की जय...

भारत माता की जय...

भारत माता की जय...

सौभी के राम राम!..सौभी के राम राम!..सौभी के राम राम! मां बालासुन्दरी, रेणुका माँ और परशुराम के धरते...महर्षि जमदग्नि के तपस्थले...चुड़ेश्वर महादेव, शिरगुल देवता, महासू देवता की पुण्य धरा...गुरु गोबिंद सिंह रे धरते पांदी आये के मुखे बहुत-बहुत खुशी असो !

मेरे साथ बोलिए…भारत माता की जय...भारत माता की जय... भारत माता की जय। ऐसा लग रहा है कि अपने घर आया हूं। मेरे लिए न तो नाहन नया है, न ही सिरमौर नया है। लेकिन मुझे कहना पड़ेगा आज का माहौल नया है। मैं यहां संगठन का काम करता था। आप लोगों के बीच में रहता था। चुनाव भी लड़वाता था। लेकिन यहां सिरमौर में इतनी बड़ी रैली मैं खुद कभी नहीं कर पाया। पार्टी की मीटिंग लेता था, सबको समझाता था। मुझे लगता है, यहां के इतिहास की ये सबसे बड़ी रैली होगी और मैं हेलीपैड से यहां आ रहा था। पूरे रास्ते भर शायद इससे दो गुना लोग रोड पर खड़े हैं। आपका ये प्यार और आशीर्वाद मुझे हमेशा-हमेशा हिमाचली बना कर रखता है। और जब सिरमौर आए तो हमारे स्वर्गीय श्यामा शर्मा जी उनके घर में हमारी बैठकें हुआ करती थीं। हमारे चंद्र मोहन ठाकुर जी...बलदेव भंडारी जी...जगत सिंह नेगी जी...इतने सारे कार्यकर्ताओं की याद , अच्छे अनुभव मेरे लिए एक प्रकार से यादों की अमानत है। सभी के घरों से असकली...पटान्दे और सिडकू आया करते थे। और यहां एक होटल ब्लैक मैंगो हुआ करता था, हमारी अल्पसंख्यक मोर्चा की बैठकें वहीं हुआ करती थीं। जब देश मोदी को जानता तक नहीं था, तब भी आपने आशीर्वाद और प्यार देने में कोई कमी नहीं रखी है। समय बदला है, लेकिन मोदी नहीं बदला है...मोदी का हिमाचल से रिश्ता वही पुरानी रिश्ता है।

मैं जैसे गर्व से कहता हूं कि हिमाचल मेरा घर है, वैसे ही आपको पता नहीं होगा कि अफगानिस्तान के एक राष्ट्रपति थे श्रीमान करजई, वो भी कहते थे कि हिमाचल मेरा घर है। क्योंकि वो शिमला में पढ़े थे। और अभी आपने मुझे जो लोइया पहनाया है ना, वो यहीं से जाकर अफगानिस्तान में, थोड़ा फैशन डिजाइन करके उसको उन्होंने अपना पहनावा बना दिया है जी। यही हिमाचल की ताकत है जो इतना लगाव रखती है।

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साथियों,

आज मैं आपसे तीसरी बार भाजपा सरकार के लिए आशीर्वाद मांगने आया हूं...मुझे आशीर्वाद मेरे लिए नहीं चाहिए, मुझे आशीर्वाद मेरे परिवारवालों के लिए नहीं चाहिए, मुझे आशीर्वाद मेरी जात-बिरादरी वालों के लिए नहीं चाहिए...मुझे आशीर्वाद ताकतवर भारत बनाने के लिए चाहिए...मुझे आशीर्वाद चाहिए...विकसित भारत बनाने के लिए...मुझे आशीर्वाद चाहिए...विकसित हिमाचल के लिए...देश में पांच चरणों के चुनाव हो चुके हैं। BJP-NDA की सरकार बननी पक्की हो चुकी है। अब हिमाचल 4-0 से हैट्रिक लगाएगा...हम तो देवभूमि के लोग हैं, हमारी एक भी चीज बेकार नहीं जाने देते, तो क्या कोई हिमाचली अपना वोट बेकार जाने देगा क्या। अपना वोट बेकार जाने देगा क्या। वो उसी को वोट देगा जिसकी सरकार बनेगी और वो जिसको वोट देगा उसी की सरकार बनेगी, ये हिमाचल में पक्का है। मेरे साथ बोलिए...फिर एक बार...मोदी सरकार ! फिर एक बार...मोदी सरकार !

साथियों,

हिमाचल प्रदेश सीमा से सटा हुआ राज्य है। हिमाचल के लोग एक मजबूत और ताकतवर सरकार का मतलब जानते हैं। मोदी आपके लिए जान की बाजी लगा देगा...लेकिन आप पर संकट नहीं आने देगा। आपने कांग्रेस का वो दौर देखा है, जब एक कमजोर सरकार देश में हुआ करती थी। उस समय पाकिस्तान हमारे सिर पर चढ़कर नाचता था। कांग्रेस की कमजोर सरकार, दुनिया में गुहार लगाती फिरती थी। मोदी ने कहा- भारत अब दुनिया के पास भीख नहीं मांगेगा, अब भारत अपनी लड़ाई खुद लड़ेगा...और फिर भारत ने घर में घुसकर मारा...आज देखिए...पाकिस्तान की क्या हालत हो गई है।

साथियों,

हिमाचल के ऊंचे पहाड़ों ने मुझे अपना हौसला बुलंद रखना सिखाया है और हिमाचल की बर्फिली पहाड़ियों ने मुझे ठंढ़े दिमाग से काम करना भी सिखाया है। हिमाचल के ऊंचे पहाड़ों ने मुझे अपना सिर गर्व से ऊंचा रखना सिखाया है। मैं मां भारती का अपमान नहीं सह सकता। लेकिन कांग्रेस, मां भारती के अपमान से भी बाज नहीं आती। कांग्रेस को भारत माता की जय कहने से दिक्कत है...कांग्रेस को वंदे मातरम कहने से दिक्कत है...ऐसी कांग्रेस कभी हिमाचल का भला नहीं कर सकती।

साथियों,

यही कांग्रेस है जिसने भारत के सीमावर्ती इलाकों को अपने हाल पर छोड़ दिया था। जब बॉर्डर स्टेट में सड़क बनाने की बात आती थी...तो कांग्रेस के हाथ-पांव फूल जाते थे। कांग्रेस डर जाती थी कि अगर सड़क बनाई तो उसी सड़क से दुश्मन भीतर आ जाएगा। ऐसी डरपोक सोच मोदी के मिजाज के साथ मेल नहीं खाती। मोदी ने कांग्रेस के मुकाबले कई गुना ज्यादा पैसे दिए हैं...मोदी ने कहा है बॉर्डर पर सड़कें बनाओ...इंफ्रास्ट्रक्चर बनाओ...आज बॉर्डर किनारे सैकड़ों किलोमीटर नई सड़कें बनी हैं...आज बॉर्डर किनारे रहने वाले फौजियों का, हमारे लोगों का जीवन आसान हुआ है।

साथियों,

कांग्रेस ने 4 दशक तक फौजी परिवारों को वन रैंक वन पेंशन के लिए तरसाया। कांग्रेस ने कैसा मजाक उड़ाया, हमारे पूर्व सैनिकों की आंख में धूल झोंकी और ऐसा पाप करने में उन्हें शर्म भी नहीं आई। जब 2013 में भारतीय जनता पार्टी ने मुझे प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार तय किया और मेरी पहली रैली पूर्व सैनिकों की हुई थी रेवाड़ी में और रेवाड़ी में मैंने पूर्व सैनिकों से वादा किया था, मैंने गारंटी दी थी कि मैं वन रैंक-वन पेंशन लागू करूंगा। कांग्रेस वाले डर गए मोदी ने नया खेल खेला है तो क्या करें। तो उन्होंने रातों-रात अफरा-तफरी में बजट में कहा कि हम भी वन रैंक-वन पेंशन लागू करेंगे। किया क्या 500 करोड़ रुपये का टोकन डालकर कह दिया कि वन रैंक-वन पेंशन लागू करेंगे। ये हमारी फौज के साथ मजाक है। ऐसे किसी बच्चे को कहते हैं ना कि कोई बात नहीं तुझे शाम को मुंबई ले जाऊंगा और बच्चा सो जाए, ऐसा पाप किया किया था उन्होंने। लेकिन मोदी है जिसने आकर के वन रैंक वन पेंशन लागू किया। उन्होंने 500 करोड़ में खेल खेला था 2014 का चुनाव जीतने के लिए, जिसका कोई मतलब नहीं था, मोदी ने OROP लाया, तो हम सवा लाख करोड़ रुपये फौजियों को दे चुके हैं। आप मुझे बताइए भाई, कहां 500 करोड़ और कहां सवा लाख करोड़। ये 500 करोड़ मजाक था कि नहीं था। फौजियों की बेईज्जती करने का इरादा था कि नहीं था। फौजियों का अपमान था कि नहीं था। इसलिए ही लोग कहते हैं..मोदी जो गारंटी देता है..वो गारंटी पूरा होने की गारंटी होती है।

भाइयों और बहनों,

एक तरफ मोदी की गारंटी है...तो दूसरी तरफ कांग्रेस का बर्बादी का मॉडल। सत्ता पाने के लिए कांग्रेस ने हिमाचल के लोगों से खूब झूठ बोला...कहा पहली कैबिनेट में ही ये होगा...वो होगा...पता नहीं क्या-क्या बता दिया और मेरे हिमाचल के लोग बड़े भले और बड़े प्यारे लोग हैं। उनको लगा कि हो सकता है कि ये ईमानदारी से बोलते होंगे। पहली कैबिनेट में तो कुछ हुआ नहीं। बल्कि कैबिनेट ही टूट-फूट गई।

साथियों,

यहां इतनी बड़ी संख्या में माताएं-बहनें आई हैं..आप मुझे बताइए...कांग्रेस ने कहा था आपको 1500 रुपए देगी...क्या 1500 रुपए मिला क्या, किसी के घर में आया क्या। कांग्रेस ने गोबर का पैसा देने का वादा किया था। किसी को मिला क्या। जरा जोर से बताओ-डरो मत, मिला क्या। ये अब ज्यादा दिन रहने वाले नहीं है। जरा हिम्मत से बोलो। मैं नौजवानों से पूछता हूं...पहली कैबिनेट में 1 लाख नौकरियां मिलनी थीं...ये वादा किया था, मिल गईं क्या। इनके दिल्ली के आकाओं को पता चले की कैसा झूठ का खेल, इस पवित्र भूमि के पवित्र लोगों के साथ किया है। ये तालाबाज कांग्रेस है..तालाबाज। अरे नौकरी तो छोड़ो...इस तालाबाज कांग्रेस सरकार ने...नौकरी की परीक्षा कराने वाले आयोग को ही ताला लगा दिया। अब ये तालाबाज सरकार आपके भविष्य का ताला खोल सकती है क्या। दिल्ली के जिस शाही परिवार ने हिमाचल को ये धोखा दिया...उसने मुड़कर फिर यहां अपनी शक्ल तक नहीं दिखाई है।

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भाइयों और बहनों,

मैं पिछले 30 साल से आपके साथ रहा हूं और शायद ही कोई ऐसा वर्ष होगा। जब मैंने हिमाचल आकर इस मिट्टी को अपने माथे ना चढ़ाया हो। गुजरात में मुख्यमंत्री रहा, आपसे कुछ मांगा नहीं था। लेकिन आपके प्यार और आशीर्वाद को कभी भूल नहीं सकता हूं। मेरे पर आपका कर्ज है। और मैं हर मौके की तलाश में होता हूं कि मैं हिमाचल का कर्ज कैसे उतारूं।

भाइयों और बहनों,

कांग्रेस और इंडी-गठबंधन...स्वार्थी है...अवसरवादी है। तीन चीजें इनमें कॉमन मिलेंगी, ये पत्रकार मित्र इसपर गौर कर सकते हैं, रिसर्च कर सकते हैं। आपको बड़ा खजाना दे रहा हूं, काम आज जाएगा। कांग्रेस और उसके साथियों में ये तीन चीजें कॉमन मिलेंगी। ये घोर सांप्रदायिक हैं। ये घोर जातिवादी हैं। ये घोर परिवारवादी हैं। आपको ये तीन चीजें हरेक में कॉमन मिलेंगी। ये मीडियावाले दिमाग खपाएंगे तो बहुत खजाना खोलकर ले आएंगे। 60 सालों तक कांग्रेस ने सोचा ही नहीं कि सामान्य वर्ग में भी गरीब होते हैं। क्या ब्राह्मण के परिवार में कोई गरीब होता नहीं है, क्या बनिए के परिवार में कोई गरीब होता नहीं है। उच्च वर्ग के समाज में गरीब होते हैं कि नहीं होते हैं। उनकी परवाह नहीं थी। चिंता ही नहीं थी। कांग्रेस ने इस समाज के बारे में कभी सोचा नहीं। मोदी ने कर के दिखाया। जिस समय ये समाज आरक्षण से बाहर था, उनको सुखी संपन्न माना जाता था, मोदी ने उनके गरीब बच्चों के लिए 10 परसेंट आरक्षण किया और इस देश में कोई झगड़ा नहीं हुआ। और किसी का लूट कर नहीं किया और इसके कारण हमारे समाज के लोगों को अलग-अलग स्थान पर अवसर मिला है। कांग्रेस ने हमारे गिरिपार के हाटी समुदाय को भी आरक्षण नहीं दिया। ये होता है प्यार, जब नेकदिली से काम होता है, न्यायिक काम होता है। तो मन उत्साह से भर जाता है, ये दिखता है जी। और ये सारे काम मोदी ने आपका कर्ज उतारने के लिए किए हैं।

साथियों,

मैं आज हिमाचल के लोगों को कांग्रेस और इंडी गठबंधन की एक और साजिश से भी सावधान करने आया हूं। ये चुनाव है इसलिए मैं नहीं बोल रहा हूं दोस्तों। मेरे दिल में एक आग है। ये भारत को तबाह करने के लिए कैसे -कैसे खेल खेल रहे हैं और आप चौंक जाएंगे दोस्तों, हमारी संविधान सभा ने, बाबासाहेब अम्बेडकर ने जो हमारे SC-ST-OBC समुदाय है, जिनको आरक्षण दिया, ये कांग्रेस वाले और उनके वो सारे आरक्षण खत्म करके अपनी वोट बैंक जो वोट जिहाद की बातें करते हैं, उन मुसलमानों को दे देना चाहते है। और ये सिर्फ बातें नहीं करते हैं, कर्नाटका में कांग्रेस सरकार बनते ही उन्होंने कर दिया, ओबीसी के जो आरक्षण के अधिकार थे, वो उनसे छीनकर मुसलमान को दे दिए, यानि देंगे ऐसा नहीं, दे दिए और वे इस मॉडल पर काम करना चाहते हैं। आप मुझे बताइए, इस तरह का काम क्या मेरे हिमाचल के लोगों को मंजूर है क्या...जरा पूरी ताकत से बताइए ना...क्या ऐसे लोगों को आप स्वीकार करेंगे। क्या ऐसे विचार को आप स्वीकार करेंगे। ऐसे लोगों का हर पोलिंग बूथ में सफाया होना चाहिए की नहीं होना चाहिए। ये चुनाव उनको कहने का मौका है रूक जाओ... ये चुनाव उनको कहने का मौका है रूक जाओ। बहुत हो चुका अब हम देश को तोड़ने नहीं देंगे।

साथियों,

इंडी-गठबंधन की साजिश का ताज़ा उदाहरण पश्चिम बंगाल में सामने आया है। दो दिन पहले ही कलकत्ता हाईकोर्ट ने वहां 77 मुस्लिम जातियों के आरक्षण को खारिज किया है। आप कल्पना कर सकते हैं...मुसलमानों की 77 जातियों को इंडी गठबंधन वालों ने रातों-रात OBC घोषित कर दिया था। औऱ OBC बनाने के बाद उनका हक उनको दे दिया था। इन 77 मुस्लिम जातियों को नौकरियों में, पढ़ाई में, हर जगह मलाई मिल रही थी। ऐसा करके इंडी गठबंधन ने OBC के हक पर डाका डाल दिया था। ऐसा करके इन लोगों ने संविधान की धज्जियां उड़ा दी थीं। संविधान के पीठ में छुरा घोंपा है। अब कलकत्ता हाईकोर्ट के फैसले के बाद ये इंडी गठबंधन वाले बौखलाए हुए हैं। बंगाल की मुख्यमंत्री तो सीधे-सीधे कोर्ट का आदेश मानने से इनकार कर रही हैं। इनके लिए संविधान कोई मायने नहीं रखता..इनके लिए अदालतें कोई मायने नहीं रखतीं..इनका सबसे सगा अगर कोई है...तो वो इनका वोट बैंक है।

साथियों,

अपने वोट बैंक को खुश करने के लिए ही कांग्रेस राम मंदिर का भी विरोध कर रही है। कांग्रेस भाजपा वालों का मजाक उड़ाती थी...कहती थी- मंदिर वहीं बनाएंगे, तारीख नहीं बताएंगे। हमें रोज चुभने वाली बातें करते थे। हमने तारीख भी बताई...समय भी बताया...लेकिन इन लोगों ने प्राण प्रतिष्ठा का बहिष्कार कर दिया। आप हिमाचल के लोग मुझे बताइए...जब राम लला भव्य मंदिर में विराजित हुए, प्राण प्रतिष्ठा हुई, आपको आनंद हुआ कि नहीं हुआ, आपने अपने गांव में दिवाली मनाई की नहीं मनाई। घर में दिवाली मनाई की नहीं मनाई। हर हिंदुस्तानी खुश हुआ की नहीं हुआ, 500 साल की लड़ाई हमारे सभी पूर्वजों को भी खुशी हुई होगी कि नहीं हुई होगी। लेकिन कांग्रेस पार्टी इसको भी बर्दाश्त नहीं कर पा रही है। कांग्रेस के साथी ने एक रहस्य खोला है। फर्स्ट फैमिली के राजदार हैं वो, उन्होंने कहा कि कांग्रेस के अंदर साजिश चल रही है कि अगर सत्ता में आए तो राम मंदिर को ताला लगा देंगे। और राम लला के टेंट में रहने को मजबूर कर देंगे। ये इनकी सोच है। क्या आप ऐसा होने देंगे क्या। ऐसा अवसर उनको लेने देंगे क्या। इसलिए हर पोलिंग बूथ पर इनकी सफाई करना जरूरी है। मेरा जो स्वच्छता अभियान है ना, ये चुनाव के दिन 1 तारीख को आपको मजबूती से करना है..करेंगे।

भाइयों और बहनों,

भाजपा सरकार, हिमाचल प्रदेश के विकास के लिए पूरी कोशिश कर रही है। कोई सोचता नहीं था कि हिमाचल में भी IIIIT, IIM और AIIMS जैसे संस्थान हो सकते हैं। लेकिन मोदी है तो...मुमकिन है। मोदी है तो...मुमकिन है। मोदी है तो...मुमकिन है। हिमाचल को बल्क ड्रग्स पार्क और मेडिकल डिवाइस पार्क मिला है। हिमाचल देश के उन पहले राज्यों में हैं, जहां वंदे भारत ट्रेन शुरु हुई।

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साथियों,

मोदी के लिए किसान, गरीब, महिला और युवा का सशक्तिकरण, बड़ी प्राथमिकता है। 5 किलो मुफ्त अनाज और 5 लाख रुपए का मुफ्त इलाज...मोदी की गारंटी है। हमारे किसानों-बागवानों के खाते में भी पीएम किसान सम्मान निधि के 6 हज़ार रुपए आते रहेंगे।

साथियों,

मोदी ने स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी 3 करोड़ बहनों को..ये आंकड़ा छोटा नहीं है...3 करोड़ बहनों को लखपति दीदी बनाने की गारंटी दी है...उनमें से हजारों बहनें हिमाचल की होंगी। मोदी आपका बिजली बिल जीरो करने के लिए भी एक बड़ी योजना लेकर आपकी सेवा में हाजिर है। और योजना शुरू होगी नहीं...योजना शुरू कर दी और योजना का नाम है पीएम सूर्यघर मुफ्त बिजली योजना। इससे आपका बिल जीरो हो जाएगा। और इतना ही नहीं जो बिजली आप पैदा करेंगे, वो बिजली बेचकर कमाई भी करेंगे। ये कैसे होगा आपके घर पर सोलर पैनल लगाने के लिए सरकार आपको 75 हजार रुपए देगी। 75 Thousand Rupees. आप खुद अपने घर में बिजली पैदा कीजिए, आपकी जरूरत की बिजली मुफ्त में उपयोग कीजिए, अतिरिक्त बिजली आप सरकार को बेच दीजिए और कमाई कीजिए। ये मुफ्त बिजली योजना मोदी लेकर आया है और मेरे सिरमौर वाले साथी आलरेडी ऑनलाइन बुकिंग चालू है और आप अपना नाम रजिस्टर करवा दीजिए। मोदी ने पहले जैसे गारंटियां पूरी की...मोदी ये गारंटी भी जरूर पूरी करेगा। उसी प्रकार से साथियों जो मुफ्त अनाज योजना है, मोदी का संकल्प है गरीब के घर का चूल्हा जलते रहना चाहिए, गरीब के घर का बच्चा भूखा सोना नहीं चाहिए, इसलिए मुफ्त अनाज योजना, अगले पांच साल तक चालू रहेगी।

साथियों,

आपको शिमला लोकसभा सीट से हमारे बहुत निकट साथी भाई सुरेश कश्यप जी को भारी वोटों से विजयी बनाना है। और भाई सुरेश जी को आप वोट देंगे ना तो वो सीधा-सीधा कमल के खाते में जाएगा। मोदी के खाते में जाएगा। हर गांव जाएंगे, ज्यादा से ज्यादा मतदान कराएंगे, हर पोलिंग बूथ को जिताएंगे। अच्छा मेरा एक काम करेंगे... मेरा एक काम करेंगे...कमाल हो यार सुरेश के लिए तो बड़े जोर से बोल रहे हो, मेरी लिए बोला तो ठंढ़े हो गए। ये पॉलीटिकल काम नहीं है करोगे। चुनाव वाला काम नहीं है करोगे, मेरा पर्सनल है करोगे। पक्का करोगे एक काम कीजिए। देखिए जब मैं हिमाचल में था, गांव-गांव भटकता था, लोगों के घर जाता था मिलता था। अब आप लोगों ने मुझे ऐसा काम में लगा दिया कि मैं सबके पास जा नहीं पाता हूं, मिल नहीं पाता हूं। तो मेरा एक काम कीजिए, ज्यादा से ज्यादा परिवारों में जाइए। ज्यादा से ज्यादा लोगों को मिलिए और जाकर के कहना मोदी जी सिरमौर आए थे। मोदी जी ने आपको प्रणाम कहा है। मेरा प्रणाम पहुंचा देंगे। हर घर में मेरा प्रणाम पहुंचा देंगे। पहुंचा देंगे, पक्का पहुंचा देंगे। दूसरा काम, हम तो देवभूमि के लोग हैं, हमारे अपने हर गांव के देवी-देवता होते हैं। अपने देवता होते हैं। देवता का आगमन होता है। हर गांव के अंदर एक पूजा स्थल होता है। आप सब मिलकर के एक गांव में जाकर मेरी तरफ से मत्था टेकना आशीर्वाद मांगना, ताकि विकसित भारत का सपना जितना जल्द हो सके हम पूरा कर सकें।

मेरे साथ बोलिए...भारत माता की जय...

भारत माता की जय...

भारत माता की जय

बहुत-बहुत धन्यवाद

  • Dheeraj Thakur February 01, 2025

    जय श्री राम।
  • Dheeraj Thakur February 01, 2025

    जय श्री राम
  • कृष्ण सिंह राजपुरोहित भाजपा विधान सभा गुड़ामा लानी November 21, 2024

    जय श्री राम 🚩 वन्दे मातरम् जय भाजपा विजय भाजपा
  • Devendra Kunwar October 08, 2024

    BJP
  • Amrita Singh September 26, 2024

    हर हर महादेव
  • दिग्विजय सिंह राना September 18, 2024

    हर हर महादेव
  • बबिता श्रीवास्तव August 27, 2024

    जय भाजपा विजय भाजपा
  • बबिता श्रीवास्तव August 27, 2024

    मोदी जी बेस्ट पीएम
  • Vivek Kumar Gupta August 16, 2024

    नमो ...........🙏🙏🙏🙏🙏
  • Vivek Kumar Gupta August 16, 2024

    नमो .........................🙏🙏🙏🙏🙏
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March 16, 2025
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QuoteAI can create many things based on human imagination, but no technology can ever replace the boundless creativity and imagination of the human mind: PM
QuoteI will never fall behind in hard work for my country, never act with bad intentions and never do anything for personal gain: PM

प्रधानमंत्री - मेरी जो ताकत है, वो मोदी नहीं है, 140 करोड़ देशवासी, हज़ारों साल की महान संस्कृति, परंपरा, वो ही मेरा सामर्थ्य है। इसलिए मैं जहाँ भी जाता हूँ, तो मोदी नहीं जाता है, हज़ारों साल की वेद से विवेकानंद की महान परंपरा को 140 करोड़ लोगों, उनके सपनों को लेकर, उनकी आकांक्षाओं को लेकर मैं निकलता हूँ और इसलिए मैं दुनिया के किसी नेता से हाथ मिलाता हूँ ना, तो मोदी हाथ नहीं मिलाता है, 140 करोड़ लोगों का हाथ होता है वो। तो सामर्थ्य मोदी का नहीं है, सामर्थ्य भारत का है। जब भी हम शांति के लिए बात करते हैं, तो विश्व हमें सुनता है। क्योंकि यह बुद्ध की भूमि है, यह महात्मा गांधी की भूमि है, तो विश्व हमें सुनता है और हम संघर्ष के पक्ष के हैं ही नहीं। हम समन्वय के पक्ष के हैं। न हम प्रकृति से संघर्ष चाहते हैं, न हम राष्ट्रों के बीच में संघर्ष चाहते हैं, हम समन्वय चाहने वाले लोग हैं। और उसमें अगर कोई भूमिका हम अदा कर सकते हैं, तो हमने निरंतर अदा करने का प्रयत्न किया है। मेरा जीवन बहुत ही अत्यंत गरीबी से निकला था। लेकिन हमने कभी गरीबी का कभी बोझ नहीं फील किया, क्योंकि जो व्यक्ति बढ़िया जूते पहनता है और अगर उसके जूते नहीं हैं, तो उसको लगता है यार ये है।

अब हमने तो जिंदगी में कभी जूते पहने ही नहीं थे, तो हमें क्या मालूम था, कि भाई जूते पहनना भी एक बहुत बड़ी चीज होती है। तो हम वो compare करने की उस अवस्था में ही नहीं थे, हम जीवन ऐसे ही जिए हैं। मेरे प्रधानमंत्री बनने के बाद, मैंने मेरे शपथ समारोह में पाकिस्तान को स्पेशली invite किया था, ताकि एक शुभ शुरुआत हो। लेकिन हर बार हर अच्छे प्रयासों का परिणाम नकारात्मक निकला। हम आशा करते हैं कि उनको सद्बुद्धि मिलेगी और सुख शांति के रास्ते पर जाएंगे और वहाँ की अवाम भी दुखी होगी, ऐसा मैं मानता हूँ। देखिए, आपने जो कहा, आलोचना और कैसे डील करते हैं। तो अगर मुझे एक वाक्य में कहना हो, तो मैं उसका स्वागत करता हूँ। क्योंकि मेरा एक conviction है, criticism ये democracy की आत्मा है। मैं सभी नौजवानों से कहना चाहूँगा, जीवन में रात कितनी ही अंधेरी क्यों न हो, लेकिन वो रात ही है, सुबह होना तय होता है।

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लेक्स फ्रिडमैन- अब आप नरेंद्र मोदी के साथ मेरी बातचीत सुनने वाले हैं, वो भारत के प्रधानमंत्री हैं। यह मेरे जीवन की ऐसी बातचीत है, जो शब्दों से परे है और इसने मुझ पर गहरा असर डाला है। मैं इस बारे में आपसे कुछ बात करना चाहूँगा। आप चाहें तो वीडियो को आगे बढ़ाकर, सीधे हमारी बातचीत को सुन सकते हैं। नरेंद्र मोदी की ज़िंदगी की कहानी बहुत शानदार रही है। उन्होंने गरीबी से लड़ते हुए, 140 करोड़ लोगों के सबसे बड़े लोकतंत्र के नेता बनने तक का सफर तय किया है। जहाँ वे एक बार नहीं, बल्कि तीन बार बहुत बड़ी जीत के साथ देश के प्रधानमंत्री बने। एक नेता के तौर पर, उन्होंने भारत को बांधे रखने के लिए कई संघर्ष किए हैं। एक ऐसा देश जहाँ कई संस्कृतियाँ हैं, और बहुत सारे समुदाय भी हैं। ऐसा देश जिसके इतिहास में धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक तनाव की कई घटनाएँ रही हैं। वे सख्त और कभी-कभी थोड़े विवादित फैसले लेने के लिए भी जाने जाते हैं। और इसी वजह से करोड़ों लोग उन्हें पसंद भी करते हैं और कई उनकी आलोचना भी करते हैं। हमने इन सब विषयों पर एक लंबी बातचीत की है। दुनिया में सभी बड़े नेता उनका सम्मान करते हैं और उन्हें शांति के सिपाही और एक दोस्त की तरह देखते हैं। ऐसे देशों के नेता भी उनका सम्मान करते हैं, जहाँ युद्ध चल रहे हैं। चाहे बात अमेरिका-चीन की हो, यूक्रेन-रूस की हो, या बात इज़राइल-फिलिस्तीन या मिडिल ईस्ट की हो। उनका हर जगह सम्मान है। आज के इस समय में कम से कम मुझे इस बात का आभास हो गया है कि इंसानियत और इंसानों का भविष्य इस समय एक नाज़ुक मोड़ पर खड़ा है, कई जगह युद्ध हो सकते हैं। ये युद्ध देशों से लेकर दुनिया तक फैल सकते हैं। न्यूक्लियर पावर देशों में तनाव बढ़ना, AI से लेकर न्यूक्लियर फ्यूज़न तक के तकनीकी विकास, ऐसे बदलाव लाने का लक्ष्य रखते हैं, जो समाज और भू-राजनीति को पूरी तरह से बदल सकते हैं। और इससे राजनीतिक और सांस्कृतिक उथल-पुथल भी बढ़ सकती है। इस समय हमें अच्छे नेताओं की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है। वे नेता जो शांति ला सकें, और दुनिया को जोड़ें, तोड़ें नहीं। जो अपने देश की रक्षा करने के साथ-साथ पूरी इंसानियत का भला सोचने की कोशिश करें और दुनिया का भी। इन्हीं कुछ बातों की वजह से मैं कह सकता हूँ, कि प्रधानमंत्री मोदी के साथ हुई मेरी यह बात आज तक की कुछ सबसे खास बातचीत में से एक है। हमारी बातचीत में कुछ ऐसी बातें हैं, जिन्हें सुनकर आपको लगेगा कि मैं सत्ता से प्रभावित होता हूँ। ऐसा नहीं है, ना ऐसा हुआ है, ना कभी होगा। मैं कभी किसी की भक्ति नहीं करता, खासकर सत्ता वाले लोगों की। मुझे ताकत, पैसे और शोहरत पर भरोसा नहीं है, क्योंकि ये चीज़ें किसी के भी दिल, दिमाग और आत्मा को भ्रष्ट कर सकती हैं। चाहे बातचीत, कैमरे के सामने हो या कैमरे के बिना, मेरी हमेशा कोशिश रहती है कि मैं इंसानी दिमाग को पूरी तरह समझ पाऊँ। अच्छा हो या बुरा, मुझे सब कुछ जानना और समझना है। अगर हम गहराई में जाएँ, तो मुझे लगता है कि हम एक ही हैं। हम सब में, कुछ अच्छाई है और कुछ बुराई भी है। हम सबकी अपने-अपने संघर्ष और उम्मीदों की कहानियाँ हैं। चाहे आप दुनिया के बड़े नेता हों, या भारत के कोई मज़दूर, या चाहे आप अमेरिका में काम करने वाले मज़दूर या किसान हों। वैसे इससे मुझे याद आया कि मैं ऐसे कई अमेरिकन मज़दूरों और किसानों से कैमरे के बिना बात करूँगा, कैमरे के सामने भी कर सकता हूँ, क्योंकि अभी मैं दुनिया और अमेरिका में घूम रहा हूँ। यहाँ मैंने नरेंद्र मोदी के बारे में जो बातें कही या कहने वाला हूँ, वे बस उनके नेता होने से जुड़ी नहीं हैं, बल्कि उनके व्यक्तित्व से भी जुड़ी हैं। मैंने उनके साथ जो लंबा समय कैमरे के सामने और कैमरे के पीछे बिताया, हमारी बातचीत में काफी गहराई थी। इसमें गर्मजोशी, हमदर्दी, हंसी-मज़ाक दिखेगा। अंदर और बाहर वाली शांति की बात भी दिखेगी। हमने इस बातचीत पर अपना काफी ध्यान लगाया है। ऐसी बातचीत जो समय के बंधन से परे है। मैंने सुना है, कि वे सभी लोगों से इसी हमदर्दी और करूणा से मिलते हैं। वे सभी तबकों के लोगों से इसी तरह से मिलते और बात करते हैं। और इन्हीं सब बातों की वजह से यह एक बेहतरीन अनुभव रहा, जिसे मैं शायद ही कभी भुला पाऊँगा।

वैसे आपको एक और बात बतानी है, आप इस बातचीत के कैप्शन इंग्लिश, हिंदी और बाकी भाषाओं में पढ़ सकते हैं, और इस वीडियो को इन्हीं भाषाओं में सुन भी सकते हैं। आप इसे दोनों भाषाओं में भी सुन सकते हैं, जहाँ मैं इंग्लिश बोलते हुए सुनाई दूँगा, और पीएम मोदी हिंदी बोलते हुए सुनाई देंगे। अगर आप चाहें तो आप अपनी पसंदीदा भाषा में इस वीडियो के सबटाइटल देख सकते हैं। यूट्यूब में आप "सेटिंग्स" आइकन पर क्लिक करके आवाज़ की भाषा बदल सकते हैं। फिर "ऑडियो ट्रैक" पर क्लिक करें, और हमारी बातचीत को अपनी पसंदीदा भाषा में सुनने के लिए उस भाषा को चुनें। पूरी बातचीत को इंग्लिश में सुनने के लिए इंग्लिश भाषा को चुनें और हिंदी में सुनने के लिए हिंदी को चुनें। यह बातचीत जैसे हुई, वैसे सुनने के लिए मतलब मोदी जी को हिंदी और मुझे इंग्लिश में सुनने के लिए प्लीज़ "हिंदी (लैटिन)" वाला ऑडियो ट्रैक विकल्प चुनें। आप इस पूरी बातचीत को या तो एक ही भाषा में सुन सकते हैं, या हिंदी और इंग्लिश दोनों भाषाओं में। अपनी पसंदीदा भाषा के सबटाइटल के साथ भी। वीडियो की डिफ़ॉल्ट भाषा इंग्लिश है। मैं इसके लिए 'इलेविन लैब्स' और बेहतरीन ट्रांसलेटर्स को धन्यवाद कहना चाहता हूँ।

हमने पूरी कोशिश की है, कि प्रधानमंत्री मोदी की आवाज़ एआई क्लोनिंग के ज़रिए इंग्लिश में एकदम असली जैसी लगे। मेरा वादा है, कि मैं भाषाओं की वजह से कभी हमारे बीच दूरियाँ नहीं आने दूँगा। और मेरी कोशिश रहेगी, कि दुनिया में हर जगह, हर भाषा में इन बातचीतों को सुना जाए। मैं फिर से आप सबको दिल की गहराइयों से धन्यवाद देना चाहता हूँ। मेरे लिए यह बेहतरीन सफर रहा है और आपका हर समय मेरे साथ होना, मेरे लिए एक बड़े सम्मान की बात है। आप सबसे दिल से प्यार है। आप "लैक्स फ़्रिडमन पॉडकास्ट" देख रहे हैं। तो दोस्तों वो घड़ी आ गई है, जब आप मेरी बातचीत सुनेंगे, भारत के पीएम, नरेंद्र मोदी के साथ।

लेक्स फ्रिडमैन - मैं आपको बताना चाहूँगा कि मैंने उपवास रखा है। अब वैसे पैंतालीस घंटे यानी लगभग दो दिन हो गए हैं। मैं बस पानी पी रहा हूँ, खाना बंद है। मैंने यह इस बातचीत के सम्मान और तैयारी के लिए किया है। ताकि हम आध्यात्म वाले तरीके से बात करें। मैंने सुना है कि आप भी काफी उपवास रखते हैं। क्या आप उपवास रखने का कारण बताना चाहेंगे? और इस समय आपके दिमाग की क्या स्थिति होती है।

प्रधानमंत्री - पहले तो मेरे लिए बड़े आश्चर्य है, कि आपने उपवास रखा और वो भी उस भूमिका से रखा है कि जैसे मेरे सम्मान में हो रहा हो, मैं इसके लिए आपका बहुत आभार व्यक्त करता हूँ। भारत में जो धार्मिक परंपराएँ हैं, वो दरअसल जीवनशैली है और हमारे सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू धर्म की बहुत बढ़िया व्याख्या की है। हमारी सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हिंदू धर्म में कोई पूजा-पाठ पूजा पद्धति का नाम नहीं है। लेकिन यह way of life है, जीवन जीने की पद्धति है और उसमें हमारे शास्त्रों में शरीर, मन, बुद्धि, आत्मा, मनुष्यता को किस प्रकार से ऊँचाई पर ले जाना, इन सारे विषयों पर एक प्रकार से चर्चा भी है और उसके लिए कुछ रास्ते भी हैं, कुछ परंपराएँ हैं, व्यवस्थाएँ हैं। उसमें एक उपवास भी है, उपवास ही सब कुछ नहीं है। और भारत में culturally कहो, philosophically कहो, कभी-कभी मैं देखता हूँ कि एक तो discipline के लिए मैं अगर सामान्य भाषा में बात करूँ, या जो हिन्दुस्तान को जानते नहीं हैं, ऐसे दर्शकों के लिए कहूँ तो जीवन को अंतर बाह्य दोनों प्रकार की discipline के लिए ये बहुत ही उपकारक है। यह जीवन को गढ़ने में भी काम आता है। जब आप उपवास करते हैं, तो आपने देखा होगा जैसा आपने कहा आप दो दिन सिर्फ पानी पर रहे हैं। आपकी जितनी इंद्रियाँ हैं, खासकर के सुगंध की हो, स्पर्श की हो, स्वाद की हो। ये इतनी जागरुक हो गई होंगी, कि आपको पानी की भी smell आती होगी। पहले कभी पानी पीते होंगे तो smell अनुभव नहीं किया होगा। कोई चाय भी लेकर के आपके बगल से गुजरता होगा तो उस चाय की smell आएगी, कॉफी की smell आएगी। आप एक छोटा सा फूल पहले भी देखते होंगे, आज भी देखते होंगे, आप उसमे बहुत ही उसको recognize कर सकते हैं।

यानी आपकी सारी इंद्रिंयाँ जो हैं, एकदम से बहुत ही हसक्रिय हो जाती हैं और उनकी जो capability है, चीज़ों को absorb करने की और respond करने की, अनेक गुणा बढ़ जाती है, और मैं तो इसका अनुभवी हूं। दूसरा मेरा अनुभव है कि आपके विचार प्रभाव को ये बहुत ही sharpness देते हैं, नयापन देते हैं, आप एक दम से out of box, मैं नहीं जानता हूं औरों का यही उपवास का यही अनुभव होगा, मेरा है। दूसरा ज़्यादातर लोगों को लगता है, कि उपवास मतलब खाना छोड़ देना। खाना न खाना। यह तो हो गया Physical Activity, कोई व्यक्ति किसी कठिनाई के कारण उसको कुछ खाना नहीं मिला, पेट में कुछ नहीं गया, अब उसको कैसे उपवास मानेंगे? यह एक scientific प्रक्रिया है। अब जैसे मैं लंबे समय से उपवास करता रहा हूँ। तो उपवास के पहले भी मैं पांच-सात दिन पूरे बॉडी को internally cleanup करने के लिए जितनी भी आयुर्वेद की practices है, योगा की practices है, या हमारी traditional practices हैं, उनको करता हूं। फिर मैं कोशिश करता हूं उपवास actually शुरू करने से पहले बहुत पानी पीना, यानी जितना हो सके उतना ज्यादा पानी पीना। तो detoxification जिसको कहें, इसके लिए मेरा बॉडी एक प्रकार से रेडी हो जाता है। और फिर जब मैं उपवास करता हूं, तो मेरे लिए उपवास एक devotion होता है, मेरे लिए उपवास एक discipline होती है और मैं उपवास के समय कितनी ही बाहर की गतिविधि करता हूँ, लेकिन मैं अंतरमन में खोया हुआ रहता हूँ। मेरे भीतर रहता हूँ। और वो मेरा experience एक अद्भुत अनुभूति होती है। और यह उपवास में कोई किताबों को पढ़कर के या किसी के उपदेश के कारण या मेरे परिवार में अगर कोई कारण से उपवास चल रहा है, तो उन चीज़ों से नहीं हुआ है। मेरा खुद का एक experience था। स्कूल एज में हमारे यहाँ महात्मा गांधी की जो इच्छा थी, गौ-रक्षा की। उसको लेकर के एक आंदोलन चलता था, सरकार कोई कानून नहीं बना रही थी। उस समय पूरे देश में एक दिन का उपवास करने का सार्वजनिक जगह पर बैठकर करने का कार्यक्रम था। हम तो बच्चे थे, अभी-अभी प्राइमरी स्कूल से शायद निकले होंगे। मेरा मन कर गया कि मुझे उसमे बैठना चाहिए। और मेरे जीवन का वो पहला अनुभव था। उतनी छोटी आयु में, मैं कुछ न मुझे भूख लग रही है, न कुछ खाने की इच्छा हो रही थी। मैं जैसे कुछ नई एक चेतना प्राप्त कर रहा था, नई एनर्जी प्राप्त कर रहा था। तो मैं conviction मेरा बना कि यह कोई विज्ञान है। जिसको यह सिर्फ खाना न खाने का झगड़ा नहीं है। ये उससे कहीं बाहर की चीजें हैं। फिर मैंने धीर-धीरे खुद को कई प्रयोगों से अपने शरीर को और मन को गढ़ने का प्रयास किया। क्योंकिे ऐसी एक इस लंबी प्रक्रिया से मैं उपवास से निकला हूँ। और दूसरी बात है कि मेरी एक्टिविटी कभी बंद नहीं होती। मैं उतना ही काम करता हूँ, कभी-कभी तो लगता है ज़्यादा करता हूँ। और दूसरा मैंने देखा है कि, उपवास के दरमियान मुझे अगर कहीं अपने विचारों को व्यक्त करना है, तो मैं आश्चर्य हो जाता हूँ, कि ये विचार कहाँ से आते हैं, कैसे निकलते हैं। हां मैं बड़ा अद्भुत अनुभूति करता हूं।

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लेक्स फ्रिडमैन- तो आप उपवास में भी दुनिया के बड़े लोगों से मिलते हैं। आप अपना प्रधानमंत्री वाला काम भी करते हैं। आप उपवास में और कभी-कभी नौ दिनों के उपवास में भी दुनिया के एक बड़े नेता के तौर पर अपनी ज़िम्मेदारी निभाते हैं।

प्रधानमंत्री - ऐसा है कि इसका एक लंबा इतिहास है। शायद सुनने वाले भी थक जाएँगे। एक हमारे यहाँ चातुर्मास की परंपरा है। जब वर्षा ऋतु होती है। तो हम जानते हैं digestion power काफी कम हो जाता है। और वर्षा ऋतु में एक time ही भोजन करना है। यानी 24 hours में एक time। वो मेरा करीब जून mid से बाद शुरू होता है, तो दिवाली के बाद, करीब-करीब नवंबर आ जाता है। करीब चार महीना, साढ़े चार महीना, वो मेरी एक परंपरा चलती है। जिसमें मैं चौबिस घंटे में एक बार खाता हूँ। फिर मेरा एक नवरात्रि आती है, जो आमतौर पर भारत में सितंबर, अक्टूबर में होता है। और पूरे देश में उस समय दुर्गा पूजा का उत्सव होता है, शक्ति उपासना का उत्सव होता है, वो एक नौ दिन का होता है। तो उसमें मैं पूरी तरह सिर्फ गर्म पानी पीता हूँ। वैसे मैं गर्म पानी तो मेरा रूटीन है, मैं हमेशा ही गर्म पानी पीता हूँ। मेरा पुराना लाईफ ऐसा था, कि जिसके कारण एक आदत मेरी बनी हुई है। दूसरा एक मार्च-अप्रैल महीने में नवरात्रि आता है, जिसे हमारे यहाँ "चैत्र नवरात्रि" कहते हैं। जो अभी शायद इस वर्ष 31 मार्च से शुरू हो रहा है। तो वो नौ दिन मैं उपवास करता हूँ, उसमें मैं कोई एक फल एक बार दिन में, यानी नौ दिन के लिए जैसे मान लीजिए मैंने papaya तय किया, क्योंकि नौ दिन तक papaya के सिवा किसी चीज को हाथ नहीं लगाऊंगा और सिर्फ एक बार लूंगा। तो वैसा मेरा नौ दिन का वो रहता है। तो साल भर में इस प्रकार से मेरा जो सालों से यह परंपरा मेरे जीवन में बन चुकी है। शायद ये मैं कह सकता हूँ, 50-55 साल से मैं यह चीजें कर रहा हूँ।

लेक्स फ्रिडमैन - क्या कभी ऐसा हुआ है, कि आप किसी दुनिया के बड़े नेताओं से मिले हों और पूरी तरह उपवास पर रहे हों? उनकी क्या प्रतिक्रिया थी? आप भूखे रह सकते हैं, यह देखकर उन्हें कैसा लगता है? और मैं आपको बताना चाहूँगा कि आप बिल्कुल सही हैं। मेरे दो दिन के उपवास के कारण, मेरी सजग रहने की क्षमता, मेरी चीज़ों की महसूस करने की क्षमता, मेरे अनुभव में बहुत बढ़ गई है। मैं पूछ रहा था कि आपको किसी नेता की कहानी याद है, जब आपने उनके सामने उपवास रखा?

प्रधानमंत्री - ऐसा है कि, ज़्यादातर लोगों को पता नहीं होने देता मैं। यह मेरा निजी मामला है, तो मैं इसकी कोइ पब्लिसिटी वगैरह ये लोगों को थोड़ा-बहुत पता चलने लगा, ये मैं मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री बना उसके बाद ही पता चलने लगा। otherwise ये मेरा purely personal मामला रहता है। लेकिन अब जब पता चल गया है, तो मैं उसको अच्छे ढंग से लोगों को कोई पूछता है तो बताता हूँ, ताकि किसी को उपयोग हो सके, क्योंकि मेरी personal property तो है नहीं। मेरा experience है, किसी को भी काम आ सकता है। मेरा तो जीवन ही लोगों के लिए है, जैसे मेरा प्रधानमंत्री बनने के बाद, अब उस समय राष्ट्रपति ओबामा के साथ मेरा व्हाइट हाउस में bilateral मीटिंग था ओर उन्होंने डिनर भी रखा था, तो तब जाकर दोनों सरकारों के बीच चर्चा चली, और जब ये कहा की भई डिनर तो जरूर कीजिए, लेकिन प्रधानमंत्री कुछ खाते नहीं हैं। तो वो बहुत चिंता में थे, कि अब ये कैसे इनको मैं इतने बड़े देश के एक प्रधानमंत्री आ रहे हैं, व्हाइट हाउस आ रहे है, और उनको कैसे खातिरदारी उनकी चिंता थी। जब हम बैठे तो मेरे लिए गर्म पानी आया। तो मैंने ओबामा जी से बड़े मज़ाक में कहा, कि देखो भाई मेरा डिनर बिल्कुल आ गया है। ऐसा करके मैंने गिलास उनके सामने रखा। फिर बाद में दोबारा जब मैं गया, तो उन्हें याद था। उन्होंने कहा देखिए पिछली बार तो आप उपवास में थे, इस बार आप, उस समय दूसरी बार मुझे कहा था लंच था। कहा इस बार उपवास नहीं है तो आपको डबल खाना पड़ेगा।

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लेक्स फ्रिडमैन - आपके बचपन की बात करते हैं। आप एक कम संपन्न परिवार से आते हैं, फिर सबसे बड़े लोकतंत्र के प्रधानमंत्री बन जाते हैं। यह कई लोगों के लिए एक प्रेरणा वाली कहानी हो सकती है। आपका परिवार भी अधिक संपन्न नहीं था और आप बचपन में एक कमरे के घर में रहते थे। आपका मिट्टी का घर था और वहाँ पूरा परिवार रहता था। अपने बचपन के बारे में कुछ बताइए। कम सुविधाओं ने कैसे आपके व्यक्तित्व को बेहतर बनाया।

प्रधानमंत्री - ऐसा है मेरा जन्म गुजरात में हुआ और गुजरात में नॉर्थ गुजरात में महेसाणा डिस्ट्रिक्ट में वडनगर करके एक छोटा सा कस्बा है। वैसे वह स्थान बहुत ऐतिहासिक है, और वहीं मेरा जन्म हुआ, वहीं मेरी पढ़ाई हुई। अब यह आज की दुनिया को देखते हैं जब तक मैं गाँव में रहता था, जिस परिवेश में रहता था। अब मेरे गाँव की कुछ विशेषताएं रही हैं, जो शायद दुनिया में बहुत ही रेअर होती हैं। जब मैं स्कूल में पढ़ता था, तो मेरे गाँव के एक सज्जन थे। वो हमें लगातार स्कूल में बच्चों को कहते थे कि देखो भाई आप लोग कहीं जाएं और कहीं पर भी आपको कोई भी नक्काशी वाला पत्थर मिलता है या उस पर कुछ लिखा हुआ पत्थर मिलता है, कार्विंग की हुई कोई चीज मिलती है, तो यह स्कूल के इस कोने में इकट्ठा करो। तो मेरा उसमें जरा curiosity बढ़ने लगी, समझने लगा तो पता चला कि हमारा गांव तो बहुत ही पुराना है, ऐतिहासिक है। फिर कभी स्कूल में चर्चा होती थी, तो उसमें से जानकारी मिलने लगी। बाद में शायद चीन ने एक फिल्म बनाई थी। और मैं उस फिल्म के विषय में कहीं अख़बार में पढ़ा था, कि चाइनीज philosopher ह्वेनसांग, वो मेरे गाँव में काफी समय रहे थे। कई centuries पहले आए थे। तो बौद्ध शिक्षा का वो एक बड़ा केंद्र था। तो मैंने उसके विषय में जाना। और शायद 1400 में एक बौद्ध शिक्षा का केंद्र था। बारहवीं सदी का एक victory monument, सत्रहवीं सदी का एक मंदिर, सोलहवीं सदी में दो बहनें जो संगीत में बहुत बड़ी पारंगत थीं ताना-रीरी। यानी इतनी चीजें सामने आने लगी, तो मैं देख रहा था कि, फिर जब मैं मुख्यमंत्री बना तो मैंने बड़ा excavation (खुदाई) का काम शुरू करवाया। excavation का काम शुरू किया तो ध्यान में आया कि, उस समय हजारों बौद्ध भिक्षुओं की शिक्षा का यह सेंटर था। और बुद्ध, जैन, हिंदु तीनों परंपराओं का वहाँ प्रभाव रहा था। और हमारे लिए इतिहास केवल किताबों तक सीमित नहीं था। हर पत्थर बोलता था, हर दीवार कह रही थी कि मैं क्या हूँ। और जब हमने यह excavation का काम शुरू किया, तो जो चीजें मिलीं, इतिहास के लिए महत्वपूर्ण हैं। अब तक उनको 2,800 साल के evidence मिले हैं, जो बिल्कुल ही अखंड रूप से यह शहर अविनाशी रूप से 2,800 वर्षों से आबाद रहा है, मनुष्य जीवन वहां रहा है, और 2,800 year कैसे उसका development उसका पूरे सबूत प्राप्त हुए हैं। अभी वहाँ अंतरराष्ट्रीय स्तर का एक वहां museum भी बना है, लोगों के लिए। खासकर के archeology के जो स्टूडेंट्स हैं, उनके लिए बड़ा अध्ययन का क्षेत्र बना है। तो मेरा एक तो, मेरा जहाँ जन्म हुआ, उसकी अपनी एक विशेषता रही है। और मेरा सद्भाग्य देखिए, शायद कुछ चीजें कैसे होता है, पता नहीं। काशी मेरी कर्मभूमि बनी। अब काशी भी अविनाशी है। काशी, बनारस, वाराणसी जिसको कहते हैं, वह भी सैकड़ों वर्षों से निरंतर एक जीवंत शहर है।

तो शायद कुछ ईश्वरदत्त की व्यवस्था होगी कि मुझे वडनगर में पैदा हुआ व्यक्ति काशी में जाकर के, आज अपनी कर्मभूमि बनाकर के माँ गंगा के चरणों में जी रहा है। जब मैं अपने परिवार में था, पिताजी थे, माताजी थीं, हम भाई-बहन, मेरे चाचा, चाची, मेरे दादा, दादी, सब लोग बचपन में सब, तो हम छोटे से शायद यह जगह तो बहुत बड़ी है, जहाँ हम बैठे हैं। जिसमें कोई खिड़की भी नहीं थी, एक छोटा सा दरवाजा था। वहीं हमारा जन्म हुआ, वहीं पले-बढ़े। अब विषय आता है गरीबी, वह आज स्वाभाविक है कि जिस प्रकार से सार्वजनिक जीवन में लोग आते हैं, उस हिसाब से तो मेरा जीवन बहुत ही अत्यंत गरीबी में निकला था। लेकिन हमने कभी गरीबी का कभी बोझ नहीं फील किया, क्योंकि जो व्यक्ति बढ़िया जूते पहनता है, और अगर उसके पास जूते नहीं हैं, तो उसे लगता है कि यार ये है। अब हमने तो जिंदगी में कभी जूते पहने ही नहीं थे, तो हमें क्या मालूम था, कि भाई जूते पहनना भी एक बहुत बड़ी चीज होती है। तो हम वो compare करने की उस अवस्था में ही नहीं थे, हम जीवन ऐसे ही जिए हैं। और हमारी माँ बहुत ही परिश्रम करती थीं। मेरे पिताजी बहुत परिश्रम करते थे। मेरे पिताजी की विशेषता यह थी और इतने discipline थे, कि बहुत सुबह, 4:00- 4:30 बजे वो घर से निकल जाते थे। काफी वो पैदल जाकर, कई मंदिरों में जाकर के फिर दुकान पर पहुँचते थे। तो जो जूते पहनते थे वो चमड़े के, गाँव का जो बनाता है, बहुत ही वो हार्ड होते एक दम से, तो आवाज बहुत आती है, टक, टक, टक करके। तो वह चलते थे जब दुकान जाते थे, तो लोग कहते थे, कि हम घड़ी मिला लेते थे कि हाँ, दामोदर भाई जा रहे हैं। यानी इतना उनका discipline life था, बहुत मेहनत करते थे, वो रात देर तक काम करते थे। वैसे हमारी माताजी भी घर की परिस्थितियों को कोई कठिनाई महसूस न हो, उसके लिए करती रहती थीं। लेकिन इन सबके बावजूद भी हमें कभी अभाव में जीने की इन परिस्थितियों ने मन पर प्रभाव पैदा नहीं किया।

मुझे याद है, मैंने तो कभी स्कूल में जूते वूते पहनने का सवाल ही नहीं था। एक दिन मैं स्कूल जा रहा था। मेरे मामा मुझे रास्ते में मिल गए। उन्होंने देखा, "अरे! तू ऐसे स्कूल जाता है, जूते वूते नहीं हैं।" तो उस समय उन्होंने कैनवास के जूते खरीदकर मुझे पहना दिए। अब उस समय तो शायद वो 10-12 रुपए में आते होंगे, वे जूते। अब वो कैनवास के थे, उस पर दाग लग जाते थे, तो सफेद कैनवास के जूते थे। तो मैं क्या करता था, स्कूल में जब शाम को स्कूल की छुट्टी हो जाती थी, तो मैं थोड़ी देर स्कूल में रुकता था और जो टीचर ने चॉकस्टिक का उपयोग किया है और उसके टुकड़े जो फेंके होते थे, वो तीन-चार कमरों में जाकर इकट्ठा करता था। और वह चॉकस्टिक के टुकड़े घर ले आता था, और उसको मैं भिगोकर के, पॉलिश बनाकर, मेरे कैनवास के जूते पर लगाकर, चमकदार व्हाइट बनाकर के जाता था। तो मेरे लिए वो संपत्ति थी, बहुत महान वैभव अनुभव करता था। अब मुझे पता नहीं क्यों बचपन से हमारी माँ स्वच्छता वगैरह के विषय में बहुत ही बहुत जागरूक थीं। तो हमें भी शायद वह संस्कार हो गए थे, मुझे जरा कपड़े ढंग से पहनने की आदत कैसे है पता नहीं, लेकिन बचपन से थी। जो भी हो उसको ठीक से पहनूँ। तो मैं आयरन कराने के लिए या प्रेस कराने के लिए तो हमारे पास कोई व्यवस्था थी नहीं। तो मैं यह तांबे के लोटे में पानी भरकर गर्म करके उसको चिमटे से पकड़कर के, मैं खुद अपना प्रेस करता था और स्कूल चला जाता था। तो यह जीवन, यह जीवन का एक आनंद लेता था। हम लोग कभी, यह गरीब है, क्या है, कैसे है, यह लोग कैसे जीते हैं, इनका जीवन कैसा है, ऐसा तो कभी संस्कार नहीं हुआ। जो है उसी में मस्तमौजी से जीना, काम करते रहना। कभी रोना नहीं इन चीजों को लेकर के। और मेरे जीवन की इन सारी बातों को भी, सौभाग्य कहो या दुर्भाग्य कहो, यह राजनीति में ऐसी मेरी परिस्थिति बन गई कि यह चीजें निकलकर के आने लगीं। क्योंकि लोग जब सीएम का मेरा शपथ हो रहा था, तो टीवी वाले मेरे गाँव पहुँच गए, मेरे दोस्तों को पूछने लग गए, मेरे घर का वो वीडियो निकालने के लिए चले गए। तब पता चला कि यह कोई, यह कहाँ से आ रहा है। उसके पहले कोई ज्यादा मेरे विषय में जानकारी नहीं थी लोगों को। तो जीवन मेरा ऐसा ही रहा है। और हमारी माता जी का एक स्वभाव रहा था, कि सेवा भाव उनकी प्रवृत्ति में था और, उनको कुछ परंपरागत चीजें आती थीं, दवाई की, तो बच्चों को वो ट्रीटमेंट देती थीं। तो सुबह पाँच बजे बच्चे सूर्योदय के पहले उनके ट्रीटमेंट होते थे। तो वह सब लोग, हमारे घर पर सब लोग आ जाते थे, छोटे बच्चे रोते भी रहते थे,

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तो हम लोगों को भी जल्दी उठना होता था उसके कारण। और माँ फिर उनको ट्रीटमेंट करती रहती थीं। तो यह सेवा भाव जो है, वह एक प्रकार से इन्हीं चीजों से पनपा हुआ था। एक समाज के प्रति संवेदना, किसी के लिए कुछ अच्छा करना, तो ऐसे एक परिवार से मैं समझता हूँ, कि माता के, पिता के, मेरे शिक्षकों के, जो भी परिवेश मुझे मिला, उसी से जीवन मेरा चला।

लेक्स फ्रिडमैन - बहुत सारे युवा लोग हैं, जो इसे सुन रहे हैं, जो वास्तव में आपकी कहानी से प्रेरित हैं। उन बहुत ही साधारण शुरुआतों से लेकर के, दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के नेता बनने तक। तो आप उन युवा लोगों को क्या कहना चाहेंगे, जो संघर्ष कर रहे हैं, दुनिया में खोए हुए हैं, और अपना रास्ता खोजने की कोशिश कर रहे हैं, आप उन्हें क्या सलाह दे सकते हैं?

प्रधानमंत्री - मैं सभी इन नौजवानों से कहना चाहूँगा, जीवन में रात कितनी ही अंधेरी क्यों न हो, लेकिन वो रात ही है, सुबह होना तय होता है। और इसलिए हमारे में वो पेशंस चाहिए, आत्मविश्वास चाहिए। है ये हालत है और मैं हालात के कारण नहीं हूँ। ईश्वर ने मुझे किसी काम के लिए भेजा है, यह भाव होना चाहिए। और मैं अकेला नहीं हूँ, जिसने मुझे भेजा है, वह मेरे साथ है। यह एक अटूट विश्वास होना चाहिए। कठिनाइयाँ भी कसौटी के लिए हैं, कठिनाइयाँ मुझे विफल करने के लिए नहीं हैं। मुसीबतें मुझे मजबूत बनाने के लिए हैं, मुसीबतें मुझे हताश-निराश करने के लिए नहीं हैं। और मैं तो हर ऐसे संकट को हर मुसीबत को हमेशा अवसर मानता हूँ। तो मैं नौजवानों से कहूँगा। दूसरा पेशंस चाहिए, शॉर्टकट नहीं चलता है। हमारे यहाँ रेलवे स्टेशन पर लिखा रहता है, कुछ लोगों को आदत होती है पुल पर से रेलवे पटरी पार करने के बजाय नीचे से भागने की, तो वहाँ लिखा होता है, Shortcut will cut you short।' तो मैं नौजवानों को भी कहूंगा, Shortcut will cut you short, कोई शॉर्टकट नहीं होता, एक पेशंस होना चाहिए, धीरज होनी चाहिए। और हमने जो भी दायित्व मिलता है न उसमें जान भर देनी चाहिए। उसको मस्ती से जीना चाहिए, उसका आनंद लेना चाहिए। और मैं मानता हूँ, कि अगर यह मनुष्य के जीवन में आता है, उसी प्रकार से बहुत कुछ है। वैभव ही वैभव है, कोई चिंता का विषय नहीं है। वह भी अगर कंबल ओढ़कर सोता रहेगा तो वह भी बर्बाद हो जाएगा। उसने तय किया है न, यह भले ही मेरे आसपास होगा, लेकिन मुझे मेरे अपने सामर्थ्य से इसमें वृद्धि करनी चाहिए। मुझे मेरे सामर्थ्य से समाज को ज्यादा देना चाहिए। यानी मैं अच्छी स्थिति में हूँ, तो भी मेरे लिए करने के लिए बहुत कुछ है। अच्छी स्थिति में नहीं हूँ, तो भी करने के लिए बहुत काम है, यह मैं चाहूँगा।

दूसरा, मैंने देखा है कि कुछ लोग, चलो यार हो गया इतना सीख लिया, बहुत हो गया। जीवन में भीतर के विद्यार्थी को कभी मरने नहीं देना चाहिए, लगातार सीखते रहना चाहिए। हर चीज सीखने का जिनका, अब मुझे शायद मुझे किसी काम के लिए ही तो जीना होगा, तो, अब मैं तो गुजराती भाषा मेरी मातृभाषा है और हम हिंदी भाषा जानते नहीं। वाकचातुर्य क्या होता है? बात कैसे करनी चाहिए? तो पिताजी के साथ चाय की दुकान पर हम बैठते थे। तो उतनी छोटी आयु में इतने लोगों से मिलने का मौका मिलता था और मुझे हर बार उसमें से कुछ न कुछ सीखने को मिलता था। कुछ तरीके, उनकी बात करने का तरीका, तो इन चीजों से मैं सीखता था कि हाँ, यह चीजें हम भी, भले ही आज हमारी स्थिति नहीं है, लेकिन कभी हो तो हम ऐसा क्यों न करें? हम इस प्रकार से क्यों न रहें? तो सीखने की वृत्ति मैं समझता हूँ कि हमेशा रहनी चाहिए। और दूसरा मैंने देखा है कि ज़्यादातर लोगों को पाने, बनने के, मन में एक सपने होते हैं, टारेगेट होते हैं, और वो जब नहीं होता है तो निराश हो जाता है। और इसलिए मैंने हमेशा मेरे मित्रों से जब भी मुझे बात करने का मौका मिलता है, मैं कहता हूँ, "भाई देखिए, पाने और बनने के सपनों के बजाय, कुछ करने का सपना देखो।"

जब करने का सपना देखते हो, और मान लीजिए आपने दस तक पहुँचना तय किया, आठ पहुँचे, तो आप निराश नहीं होंगे। आप दस के लिए मेहनत करोगे। लेकिन आपने कुछ बनने का सपना तय कर लिया और नहीं हुआ, तो जो हुआ है वो भी आपको बोझ लगने लगेगा। और इसलिए जीवन में इसकी कोशिश करनी चाहिए। दूसरी, क्या मिला, क्या नहीं मिला, मन में भाव यह होना चाहिए, "मैं क्या दूँगा?" देखिए, संतोष जो है न, वो आपने क्या दिया, उसकी कोख से पैदा होता है।

लेक्स फ्रिडमैन - और मैं आपको बताना चाहूँगा, कि मेरा बचपन से ही यही करने का सपना था, जो मैं अभी कर रहा हूँ। तो मेरे लिए यह एक बहुत खास पल है। 17 साल की उम्र में एक और रोमांचक भाग आता है, जब आप घर छोड़कर दो साल तक हिमालय में घूमते रहे, आप अपने उद्देश्य, सच और भगवान की तलाश में थे। वैसे आपके उस समय के बारे में लोग कम ही जानते हैं। आपका घर नहीं था, आपके पास कोई चीज़ें नहीं थी। आपका जीवन एकदम सन्यासी वाला था। आपके पास सिर के ऊपर छत नहीं होती थी। आप उस समय के कुछ आध्यात्मिक पलों, पद्धति या अनुभवों के बारे में बात करना चाहेंगे?

प्रधानमंत्री - आपने मुझे लगता है काफी मेहनत की है। देखिए, मैं इस विषय में ज्यादा बातें बहुत करता नहीं हूँ, लेकिन कुछ मैं बाहरी चीज़ें आपको जरूर कह सकता हूँ। अब देखिए मैं छोटे से स्थान पर रहा। हमारी ज़िंदगी ही एक सामूहिकता की थी। क्योंकि लोगों के बीच में ही रहना, जीना वही था और एक लाइब्रेरी थी गांव में, तो वहाँ जाना किताबें पढ़ना। अब उन किताबों में जो मैं पढ़ता था, तो मुझे लगता था कि मुझे अपने जीवन को, हम भी क्यों न ऐसे ट्रेन करें अपने जीवन को, ऐसी इच्छा होती थी। जब मैं स्वामी विवेकानंद जी के लिए पढ़ता था, छत्रपति शिवाजी महाराज के लिए पढ़ता था, ये कैसे करते थे? कैसे जीवन को बढ़ाते थे। और उसके लिए मैं भी अपने साथ काफी प्रयोग करता रहता था। मेरे उस प्रयोग का तो लेवल ऐसा ही था, कि जिसको हम कहेंगे शारीरिक शरीर के साथ जुड़े हुए रहते थे। जैसे, मेरे यहाँ उतनी ठंड नहीं होती है, लेकिन दिसंबर महीने में ठंड होती है कभी। लेकिन फिर भी रात में और ठंडा लगता है, स्वाभाविक है। तो मैं कभी तय करता था, कि मैं आज खुले में बाहर सो जाऊँगा और कुछ भी शरीर पर ओढ़ने के लिए नहीं लूँगा। देखता हूँ ठंड क्या करती है। तो मैं कभी-कभी शरीर के साथ ऐसे प्रयोग, बहुत छोटी आयु में कर लेता था, और वो मुझे हमेशा रहता था। और मेरे लिए लाइब्रेरी में जाना और बाकी काफी चीजें पढ़ना, तालाब जाना, परिवार के सब लोगों के कपड़े धोना, स्विमिंग का काम मेरा हो जाता था। मेरा फिजिक्ल एक्टिविटी स्विमिंग हुआ करती थी। तो ये सारी चीज़ें मेरे जीवन से जुड़ी हुई थीं। उसके बाद जब मैं विवेकानंद जी को पढ़ने लगा तो मैं जरा और आकर्षित होने लगा। एक बार मैंने स्वामी विवेकानंद जी के लिए पढ़ा। उनकी माताजी बीमार थीं और उनको वो रामकृष्ण परमहंस जी के पास ले गए। उनसे झगड़ा करते थे वो, उनसे बहस करते थे। अपने प्रारंभिक काल में वे बौद्धिक जितनी शक्ति का उपयोग कर सकते थे, करते थे। और कहते कि मेरी माँ बीमार है, मैं पैसे कमाता तो आज माँ की कितनी सेवा करता वगैरह, वगैरह। तो रामकृष्ण देव ने कहा कि, "भाई मेरा सिर क्यों खा रहे हो तुम? जाओ, माँ काली के पास जाओ। माँ काली हैं। उनसे मांगो, तुम्हें जो चाहिए वो।" तो विवेकानंद जी गए। माँ काली की मूर्ति के सामने घंटों तक बैठे, साधना की, बैठे रहे। कई घंटों के बाद वापस आए, तो रामकृष्ण देव ने पूछा, "अच्छा भाई, मांग लिया तूने माँ से?" नहीं बोले, मैंने तो नहीं।" अच्छा, तो बोले, "दोबारा जाना कल। तेरा काम माँ करेंगी। माँ से माँगो न?" दूसरे दिन गए, तीसरे दिन गए। और वो, उन्होंने देखा कि भाई, मैं क्यों कुछ मांग नहीं सकता था? मेरी माँ की तबियत खराब थी, मुझे ज़रूरत थी। लेकिन मैं माँ के पास बैठा हूँ, मैं साक्षात माँ में ऐसे खोया हुआ हूँ उसमे, लेकिन मैं कुछ भी मांग नहीं पाता हूँ माँ से, ऐसे ही खाली हाथ लौट के आता हूँ। और रामकृष्ण देव जी को कहता हूं, मैं तो खाली हाथ चला आया, मैंने तो कुछ नहीं माँगा। देवी के पास जाना और कुछ मांग न पाना, उस एक बात ने उनके मन के अंदर एक ज्योति जला दी। स्पार्किंग था उनके जीवन में, और उसी में से देने का भाव, मैं समझता हूँ कि शायद, विवेकानंद जी की वह छोटी सी घटना मेरे मन में थोड़ा प्रभाव कर गई कि जगत को क्या दूंगा। शायद संतोष उससे पैदा होगा। जगत से मैं कुछ पाने के लिए तो मेरे मन में पाने की भूख ही जगती रहेगी। और उसी में था कि भाई शिव और जीव का एकात्म क्या होता है, शिव की सेवा करनी है, तो जीव की सेवा करो। शिव और जीव में एकत्व का अनुभूति करो। सच्चा अद्वैत इसी में जिया जा सकता है। तो मैं ऐसे विचारों में मैं खो जाता था। फिर थोड़ा उस तरफ मैं मन कर जाता था। मुझे याद है एक घटना, जिस मोहल्ले में हम रहते थे, उसके बाहर एक महादेव जी का मंदिर था, तो वहाँ एक संत आए थे, तो वो संत कुछ न कुछ साधना वगैरह करते रहते थे, मेरा भी उनके प्रति थोड़ा आकर्षण हो रहा था कि ये कुछ आध्यात्मिक शक्ति इनके पास होगी शायद, क्योंकि विवेकानंद जी को तो पढ़ते थे, देखा तो नहीं था कुछ, तो कुछ ऐसे ही लोग देखने को मिलते थे। तो नवरात्रि का व्रत कर रहे थे, तब उस समय उन्होंने अपने हाथ पर, हमारे यहाँ ज्वार बोलते हैं, जो उगाते हैं, एक प्रकार से घास हाथ के ऊपर उगाना और ऐसे ही सोना, नौ-दस दिन तक। ऐसा एक व्रत होता है। तो वो महात्मा जी कर रहे थे। अब उन्हीं दिनों में मेरे मामा के परिवार में एक हमारे यहां मौसी की शायद शादी थी। मेरा पूरा परिवार मामा के घर जा रहा था। अब मामा के घर जाना किसी भी बच्चे के लिए आनंद का विषय होता है। मैंने घरवालों से कहा, "नहीं, मैं तो नहीं आऊँगा, मैं तो यहीं रहूँगा, मैं स्वामी जी की सेवा करूँगा" "इनके हाथ पर ये रखा हुआ है, तो वो तो खा-पी नहीं सकते, तो मैं ही करूँगा उनका", तो उस बचपन में, मैं नहीं गया शादी में, मैं उनके पास रहा और स्वामी जी की सेवा कर रहा था। तो शायद मेरा कुछ उसी दिशा में कुछ मन लग जाता था। कभी लगता था कि भई हमारे गाँव में कुछ लोग जो फौज में काम करते थे, छुट्टियों में आते थे तो यूनिफॉर्म पहन कर चलते थे तो, मैं भी दिन भर उनके पीछे-पीछे भागता था, कि ये देखिए, कितनी बड़ी देश की सेवा कर रहा है। तो ऐसे, लेकिन कुछ मेरे लिए नहीं, कुछ करना है बस ये भाव रहता था। तो ज़्यादा समझ नहीं थी, कोई रोडमैप भी नहीं था, भूख थी कुछ मुझे, इस जीवन को जानने की, पहचानने की। तो मैं चला गया, निकल पड़ा। तो रामकृष्ण मिशन में मेरा संपर्क आया, वहाँ के संतों ने बहुत प्यार दिया, मुझे बहुत आशीर्वाद दिये। स्वामी आत्मस्थानंद जी के साथ तो मेरी बड़ी निकटता बन गई। वो 100 साल तक करीब-करीब जीवित रहे। और जीवन के उनके आखिरी क्षणों में मेरी बहुत इच्छा थी कि वो मेरे पीएम हाऊस में आकर रहें, लेकिन उनकी ज़िम्मेदारी इतनी थीं कि वो आए नहीं। जब मैं सीएम था, तब तो आते थे। मुझे बहुत उनका आशीर्वाद मिलता था। लेकिन उन्होंने मुझे गाइड दिया किया कि भई "तुम क्यों यहाँ आए हो? तुम्हें जो करना, कुछ और काम करना है। खुद की भलाई के लिए तुम्हारी प्रायोरटी है कि समाज की भलाई के लिए है, विवेकानंद जी ने जो भी कहा, वह समाज की भलाई के लिए है, तुम तो सेवा के लिए बने हो। तो मैं, एक प्रकार से वहाँ थोड़ा निराश भी हुआ, क्योंकि उपदेश ही सुनने को मिला, मदद तो नहीं मिली। फिर मैं अपने रास्ते पर चलता रहा, कई जगह पर हिमालयन लाइफ में रहा, बहुत कुछ अनुभव किया, देखा, बहुत सारे जीवन के अनुभव रहे, कई लोगों से मिलना हुआ, बड़े-बड़े तपस्वी लोगों से मिलने का मौका मिला। लेकिन मन स्थिर नहीं था मेरा। आयु भी शायद ऐसी थी, जिसमें जिज्ञासा बहुत थी, जानने समझने की ख्वाहिए थी, एक नया अनुभव था, वहाँ की मौसम की दुनिया भी अलग थी, पहाड़ों में, बर्फीले पहाड़ों के बीच रहना होता था। लेकिन इन सबने मुझे गढ़ने में बहुत बड़ी मदद की। मेरे भीतर की सामर्थ्य को, उससे से बल मिला। साधना करना, ब्रह्म मुहूर्त में उठना, स्नान करना, लोगों की सेवा करना। सहज रूप से जो बुजुर्ग संत होते थे, तपस्वी संत, उनकी सेवा करना। एक बार वहाँ पर natural calamity आई थी, तो मैं काफ़ी गाँव वालों की मदद में लग गया। तो ये मेरे, जो संत महात्मा जो भी, जिनके पास कभी न कभी मैं रहता था, ज़्यादा दिन एक जगह पर नहीं रहता था मैं, ज़्यादा भटकता ही रहता था। एक प्रकार से वैसा ही जीवन था।

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लेक्स फ्रिडमैन - और जो लोग नहीं जानते, उन्हें बताना है कि आपने रामकृष्ण मिशन आश्रम में स्वामी आत्मस्थानंद के साथ काफी समय बिताया है। जैसा कि आपने अभी बताया, उन्होंने आपका सेवा के जीवन की ओर मार्गदर्शन किया। तो एक और चीज़ होने की संभावना थी कि जहाँ आप सन्यास ले सकते थे, सब कुछ त्यागकर सन्यासी बन जाते। तो आप या सन्यासी नरेंद्र मोदी के रूप में या फिर प्रधानमंत्री के रूप में आज हमारे सामने होते। और उन्होंने हर स्तर पर सेवा का जीवन जीने का फ़ैसला लेने में आपकी मदद की।

प्रधानमंत्री - ऐसा है कि बाहर की दृष्टि से तो आपको लगता होगा कि इसको नेता कोई लोग कहते होंगे या प्रधानमंत्री कहते होंगे, मुख्यमंत्री कहते होंगे। लेकिन मेरा जो भीतर जीवन है, वह बस सातत्य है। जो बचपन में माँ बच्चों को कुछ उपचार करती थीं, उस समय उन बच्चों को संभालने वाला मोदी, हिमालय में भटकता हुआ मोदी या आज इस स्थान पर बैठकर काम कर रहा है मोदी, उसका सबके अंदर एक सातत्य है। हर पल औरों के लिए ही जीना है। और वो सातत्य के कारण मुझे साधु और नेता ऐसा कोई बहुत बड़ा differentiate, दुनिया की नज़रों में तो है ही, क्योंकि कपड़े अलग होते, जीवन अलग होता, दिन भर की भाषा अलग होती, यहाँ काम अलग है। लेकिन मेरे भीतर का जो व्यक्तित्व है, वह तो उसी detachment से दायित्व को संभाल रहा है।

लेक्स फ्रिडमैन - आपके जीवन का एक और महत्वपूर्ण हिस्सा ये है कि आपने जीवन भर अपने देश भारत को सबसे ऊपर रखने की बात कही है। जब आप आठ साल के थे, तब आप आरएसएस में शामिल हुए। जो हिंदू राष्ट्रवाद के विचार का समर्थन करता है। क्या आप आर एस एस के बारे में बता सकते हैं और उनका आप पर क्या प्रभाव पड़ा? आप जो भी आज हैं और आपके राजनीतिक विचारों के विकास पर उनका क्या प्रभाव पड़ा?

प्रधानमंत्री - देखिए, एक तो बचपन में कुछ न कुछ करते रहना, ये स्वभाव था मेरा। मुझे याद है, मेरे यहाँ एक माकोसी थे, मुझे नाम थोड़ा याद नहीं, वो सेवा दल के शायद हुआ करते थे। माकोसी सोनी ऐसा कुछ करके थे। अब वो हाथ में एक बजाने वाली डफ़ली जैसा रखते थे अपने पास, और वो देशभक्ति के गीत और उनकी आवाज़ भी बहुत अच्छी थी। तो हमारे गाँव में आते थे। तो अलग-अलग जगहों पर उनके कार्यक्रम होते थे। तो मैं पागल की तरह बस उनको सुनने चला जाता था। रात-रात भर उनके देशभक्ति के गाने सुनता था। मुझे बहुत मज़ा आता था, क्यों आता था, वो पता नहीं है। वैसे ही मेरे यहाँ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा चलती थी, शाखा में तो खेल-कूद होता, लेकिन देशभक्ति के गीत होते थे। तो मन को जरा बड़ा मजा आता था, एक मन को छूता था, अच्छा लगता था। तो ऐसे ही करके हम संघ में आ गए। तो संघ के एक संस्कार तो मिला कि भई कुछ भी सोचो, करो, अगर वो पढ़ते हो, तो भी सोचो मैं इतना पढ़ूं, इतना पढ़ूं कि देश के काम आऊ। अगर व्यायाम करता हूँ, तो मैं ऐसा व्यायाम करूं, ऐसा व्यायाम करूं कि मेरा शरीर भी देश को काम आए। ये संघ के लोग सिखाते रहते हैं। अब संघ एक बहुत बड़ा संगठन है। शायद अब उसके सौ साल हो रहे हैं, यह सौवां वर्ष है। और दुनिया में इतना बड़ा स्वयंसेवी संगठन कहीं होगा, ऐसा मैंने तो नहीं सुना है। करोड़ों लोग उसके साथ जुड़े हुए हैं। लेकिन संघ को समझना इतना सरल नहीं है। संघ के काम को समझने का प्रयास करना चाहिए। और संघ स्वयं तो एक purpose of life जिसको कहे, इसके विषय में आपको एक अच्छी दिशा देता है। दूसरा, देश ही सब कुछ है और जन सेवा ही प्रभु सेवा है। ये जो हमारे वेदकाल से जो कहा गया है, जो हमारे ऋषियों ने कहा, जो विवेकानंद ने कहा वही बातें संघ के लोग करते हैं। तो स्वयंसेवक को कहते हैं कि तुम्हें संघ में से जो प्रेरणा मिली, वो एक घंटे की शाखा वो नहीं, यूनिफार्म पहनना, वो स्वयंसेवक संघ नहीं है। तुमने समाज के लिए कुछ करना चाहिए। और वो उस प्रेरणा से आज ऐसे काम चल रहे हैं, जैसे, कुछ स्वयंसेवकों ने सेवा भारती नाम का संगठन खड़ा किया है। ये सेवा भारती जो गरीब बस्तियाँ होती हैं, झुग्गी-झोपड़ी में गरीब लोग रहते हैं, जिसको वो सेवा बस्ती कहते हैं। मेरी मोटी-मोटी जानकारी है, करीब सवा लाख सेवा प्रकल्प चलाते हैं वो। और किसी सरकार की मदद के बिना, समाज की मदद से, वहाँ जाना, समय देना, बच्चों को पढ़ाना, उनके हेल्थ की चिंता करना, ऐसे-ऐसे काम करते हैं। संस्कार उनके अंदर लाना, उस इलाके में स्वच्छता का काम करना। यानी, बिल्कुल, सवा लाख एक छोटा नंबर नहीं है। वैसे कुछ स्वयंसेवक हैं, संघ में से ही गढ़े हुए हैं। वो वनवासी कल्याण आश्रम चलाते हैं। और जंगलों में आदिवासियों के बीच में रहकर के, आदिवासियों की सेवा करते हैं। सत्तर हज़ार से ज़्यादा 'वन टीचर वन स्कूल' एकल विद्यालय चलाते हैं। और अमरीका में भी कुछ लोग हैं, जो उनके लिए शायद 10 डॉलर या 15 डॉलर का डोनेशन करते हैं, इस काम के लिए। और वो कहते हैं एक 'कोका-कोला' नहीं पीनी है इस महीने, एक 'कोका-कोला' मत पियो, और उतना पैसा ये एकल विद्यालय को दो। अब सत्तर हज़ार एकल विद्यालय आदिवासी बच्चों को पढ़ाने के लिए करना, कुछ स्वयंसेवकों ने शिक्षा में क्रांति लाने के लिए 'विद्या भारती' नाम का संगठन खड़ा किया। करीब पच्चीस हज़ार स्कूल चलते हैं उनके देश में। और तीस लाख से छात्र at a time होते हैं, और मैं मानता हूँ अब तक करोड़ों विद्यार्थियों की और बहुत ही कम दाम में पढ़ाई हो, और संस्कार को भी प्राथमिकता हो, ज़मीन से जुड़े हुए लोग हों, कुछ न कुछ हुनर सीखें, समाज पर बोझ न बनें। यानि जीवन के हर क्षेत्र में, वे चाहें महिला हों, युवा हों, इवन मजदूर, शायद membership के हिसाब से मैं कहूँ तो, 'भारतीय मजदूर संघ' है। शायद उसके पचपन हज़ार के करीब यूनियन हैं और करोड़ों की तादाद में उनके members हैं। शायद दुनिया में इतना बड़ा लेबर यूनियन कुछ नहीं होगा। और सिखाया कैसे जाता है? Leftist लोगों ने मजदूरों के मूवमेंटों को बड़ा बल दिया। लेबर मूवमेंट जो लगे हैं, उनका नारा क्या होता है- Workers of the world unite, "दुनिया के मज़दूरों एक हो जाओ", फिर देख लेंगे, ये भाव होता है। ये मजदूर संघ वाले क्या कहते हैं, जो आरएसएस की शाखा से निकले स्वयंसेवक मजदूर संघ चलाते हैं? वे कहते हैं, "Workers unite the world." वो कहते हैं, "Workers of the world unite." ये कहते हैं "Workers unite the world". ये कितना बड़ा वाक्य दो शब्दों में इधर-उधर है, लेकिन कितना बड़ा वैचारिक बदलाव है। ये शाखा से निकले हुए लोग, अपनी रुचि, प्रकृति, प्रवृत्ति के अनुसार जब काम करते हैं, तो इस प्रकार की गतिविधियों को बल देते हैं। और जब इन कामों को देखेंगे, तब आपको 100 साल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने, भारत के सारे चकाचौंध दुनिया से दूर रहते हुए, एक साधक की तरह समर्पित भाव से, तो मेरा यह सौभाग्य रहा कि ऐसे पवित्र संगठन से मुझे संस्कार मिले जीवन के, life of purpose मुझे मिला। फिर मेरा सौभाग्य रहा कि मैं कुछ पल के लिए, कुछ समय के लिए संतों के बीच चला गया, तो वहां मुझे एक आध्यात्मिक स्थान मिला। तो सिस्त मिली, life of purpose मिला, संतों के पास आध्यात्मिक स्थान मिला। स्वामी आत्मस्थानंद जी जैसे लोगों ने जीवन भर मेरा हाथ पकड़ कर रखा, हर पल मेरा मार्गदर्शन करते रहे, तो रामकृष्ण मिशन, स्वामी विवेकानंद जी उनके विचार, संघ के सेवा भाव, इन सब ने मुझे गढ़ने में बहुत बड़ी भूमिका अदा की है।

लेक्स फ्रिडमैन- लेकिन उन्होंने भारत के विचार को आगे बढ़ाने में भी मदद की है। वह कौन-सा विचार है जो भारत को एकजुट करता है? एक राष्ट्र के रूप में भारत क्या है? वह कौन-सा बुनियादी विचार है, जो इन सभी अलग-अलग समाजों, समुदायों और संस्कृतियों को एकजुट करता है? आपको क्या लगता है?

प्रधानमंत्री - देखिए, एक भारत, एक सांस्कृतिक पहचान है, एक सांस्कृतिक, हजारों साल पुरानी सिविलाइजेशन है। भारत की विशालता देखिए, सौ से ज़्यादा लैंवेजिज, हज़ारों बोलियाँ, आप भारत में कुछ मील पर जाएंगे, हमारे यहाँ कहते हैं, बीस मील पर जाने पर बोली बदल जाती है, कस्टम बदल जाते हैं, कुजिन बदल जाता है, पहनावा बदल जाता है। दक्षिण से लेकर उत्तर भारत तक, अब सारे देश में विविधताएँ दिखेंगी। लेकिन जब थोड़ा और गहराई जाएँगे, तो आपको एक तंतु मिलेगा, जैसे मैं कहूँ, हमारे यहाँ भगवान राम की चर्चा हर मुंह से सुनने को मिलेगी, राम का नाम हर जगह पर सुनने को मिलेगा। लेकिन अब आप देखेंगे, तमिलनाडु से शुरू करेंगे, जम्मू-कश्मीर तक जाएँगे, आपको कोई न कोई व्यक्ति मिलेंगे, जिनके नाम में कहीं न कहीं राम होगा।

गुजरात में जाएंगे तो 'राम भाई' कहेगा, तमिलनाडु में जाएंगे तो 'रामचंद्रन' कहेगा, महाराष्ट्र में जाएंगे तो 'रामभाऊ' कहेगा। तो यानी, ये विशेषता भारत को संस्कृति से बांध रही है। अब जैसे, आप स्नान भी करते हैं हमारे देश में, तो क्या करते हैं? स्नान तो वो बाल्टी वाले पानी से लेते हैं, लेकिन 'गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती, यानि भारत के हर कोने की नदियों का स्मरण करके, "नर्मदे, सिंधु, कावेरी जलेस्मिन सन्निधिं कुरु" यानी सभी नदियों के पानी से मैं स्नान कर रहा हूं, पूरे देश का वहां। हमारे यहाँ संकल्प की एक परंपरा होती है। कोई भी काम करें, पूजा हो वो, तो संकल्प है। और अब संकल्प पर बड़ी हिस्ट्री लिखी जा सकती हैं। यानी किस प्रकार से डेटा कलेक्शन मेरे देश में होता था, शास्त्र कैसे काम करते थे, बड़ा यूनिक वे था। कोई संकल्प लेता है या पूजा करता है या मानो शादी हो रही है, तो पूरे पहले ब्रह्मांड से शुरू करते हैं, जंबूद्वीपे, भारतखंडे, आर्याव्रत' से शुरू करते-करते-करते, गाँव तक आएंगे। फिर उस परिवार तक आएंगे, फिर उस परिवार के जो देवता होंगे, उसका स्मरण करेंगे।

यानी, यह भारत में, और आज भी हिंदुस्तान के हर कोने में हो रहा है ये। लेकिन दुर्भाग्य से वेस्टर्न मॉडल क्या रहा, दुनिया के और मॉडल क्या रहे, वो शासकीय व्यवस्था के आधार पर ढूंढने लगे। भारत में शासकीय व्यवस्थाएँ भी कई प्रकार की रहीं। कई बिखरी हुई, कई टुकड़ों में दिखाई देगी, राजा-महाराजाओं की संख्या दिखाई देगी। लेकिन भारत की एकता, इन सांस्कृतिक बंधनों से, हमारे यहाँ तीर्थ यात्रा की परंपरा रही, चार धाम की शंकराचार्य ने स्थापना की। आज भी लाखों लोग एक स्थान से दूसरे स्थान तक तीर्थ यात्रा करेंगे। हमारे यहाँ काशी में लोग आएंगे, रामेश्वरम का पानी, काशी-काशी का पानी रामेश्वरम करने वाले, अनेक प्रकार के लोग आपको मिलेंगे। यानी, एक प्रकार से, हमारे पंचांग भी देखोगे, तो आपको देश में इतनी चीज़ें मिलेगी, जिसकी आप कल्पना नहीं कर सकते।

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लेक्स फ्रिडमैन - अगर हम आधुनिक भारत की नींव के इतिहास पर नज़र डालें, महात्मा गांधी और आप, सबसे महत्वपूर्ण व्यक्तियों में से एक हैं, इतिहास के सबसे अहम लोगों में से एक हैं और निश्चित रूप से भारत के इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण व्यक्तियों में से एक हैं। आपको महात्मा गांधी की सबसे अच्छी बातें क्या लगती हैं?

प्रधानमंत्री - आप जानते हैं कि मेरा जन्म गुजरात में हुआ, मेरी मातृभाषा गुजराती है। महात्मा गांधी का जन्म भी गुजरात में हुआ, उनकी मातृभाषा भी गुजराती है। वो बैरिस्टर बने, विदेशों में रहे, उनको बहुत सारे अवसर मिले, लेकिन भीतर का जो भाव था, जो परिवार से संस्कार मिले थे। वो सब सुख छोड-छाड़कर करके भारत के लोगों की सेवा के लिए आ गए। भारत की आज़ादी की जंग में वे उतर गए। और महात्मा गांधी का कम-अधिक प्रभाव, आज भी भारतीय जीवन पर किसी न किसी रूप में दिखता है। और महात्मा गांधी जी ने जो बातें कहीं, उसको जीने का प्रयास किया। अब जैसे स्वच्छता, वे स्वच्छता के बड़े आग्रही थे, लेकिन वे खुद भी स्वच्छता करते थे। और कहीं पर भी जाते, स्वच्छता की चर्चा भी करते थे। दूसरा, भारत में आज़ादी का आंदोलन देखिए। भारत चाहे मुगल रहे होंगे या अंग्रेज रहे होंगे या कोई और रहे होंगे, हिंदुस्तान में सैकड़ों वर्षों की गुलामी के बावजूद भी कोई समय ऐसा नहीं गया होगा, कोई भू-भाग ऐसा नहीं रहा होगा, जहाँ भारत में कहीं न कहीं आज़ादी की ज्योत जली न हो। लक्ष्यावदी लोगों ने अपने आप को बलिदान दिया, लाखों लोगों ने बलिदान दिया, आज़ादी के लिए मर मिटे, जवानी जेलों में खपा दी। महात्मा गांधी ने भी आज़ादी के लिए काम किया, लेकिन फर्क क्या था? वे तपस्वी लोग थे, वीर पुरुष थे, त्यागी लोग थे, देश के लिए मरने-मिटने वाले लोग थे। लेकिन आते थे, देश के लिए शहीद हो जाते थे। परंपरा तो बहुत बनी रही, उसने एक वातावरण भी बनाया, लेकिन गांधी जी ने जन आंदोलन खड़ा किया, और सामान्य मानवी, झाड़ू भी लगाता है, तो कहते हैं, तुम आज़ादी के लिए कर रहे हो, किसी को पढ़ा रहे हो, तो बोले तुम आज़ादी को कर रहे हो, तुम चरखा कात रहे हो, और खादी बना रहे हो, तुम आज़ादी के लिए काम कर रहे हो, तुम लेप्रोसी के पेशेंट की सेवा कर रहे हो, तुम आज़ादी के लिए कर रहे हो। उन्होंने हर काम के साथ, आज़ादी के रंग से रंग दिया। और इसके कारण भारत का सामान्य मानवी को भी लगने लगा कि हां, मैं भी आज़ादी का सैनिक बन गया हूँ।

यह जन आंदोलन इतना बड़ा गांधी जी ने बड़ा बनाया, जिसको अंग्रेज कभी समझ ही नहीं पाए। अंग्रेजों को कभी अंदाज़ा ही नहीं था कि एक चुटकी भर नमक दांडी यात्रा एक बहुत बड़ा रेवोल्यूशन पैदा कर सकता है और वो करके दिखाया उन्होंने। और उनका जीवन, व्यवहार शैली, उनका दिखना, बैठना, उठना, उन सबका एक प्रभाव था और मैंने तो देखा है कि वे कई उनके किस्से बड़े मशहूर हैं। वो एक बार गोलमेज परिसर में, एक अंग्रेज उनको, गोलमेज परिसर में जा रहे थे, बकिंघम पैलेस में किंग जॉर्ज से उनकी मुलाकात का समय था। अब गांधी जी अपना धोती और एकाध चादर लगाकर के पहले चले गए। उस अब तमाम लोगों को एतराज था कि भाई ऐसे कपड़ों में मिलने आ रहे हैं, महाराज को। गांधी जी ने कहा कि भाई मुझे कपड़े पहनने की क्या जरूरत है, जितने कपड़े आपके राजा के बदन पर हैं, वो हम दोनों के लिए काफी हैं। तो ये मज़ाकिया स्वभाव उनका था। तो महात्मा गांधी की कई विशेषताएं रही हैं और मुझे लगता है कि उन्होंने सामूहिकता का भाव जो जगाया, जनशक्ति के सामर्थ्य को पहचाना। मेरे लिए आज भी वह उतना ही महत्वपूर्ण है। मैं जो भी काम करता हूँ, मेरी कोशिश रहती है कि वह उस जन सामान्य को जोड़ करके करूँ। ज़्यादा से ज़्यादा लोगों की भागीदारी हो। सरकार ही सब कुछ कर लेगी, ये भाव मेरे मन में नहीं होता है। समाज की शक्ति अपरंपार होती है, यह मेरा मत रहता है।

लेक्स फ्रिडमैन - तो गांधी जी शायद 20वीं सदी के सबसे महान नेताओं में से एक थे। आप भी 21वीं सदी के सबसे महान नेताओं में से एक हैं। वे दोनों समय अलग थे। और आप जियो-पॉलिटिक्स के खेल और कला में कुशल रहे हैं। तो आपसे जानना चाहूँगा कि आप चीज़ों को सही से संभाल रहे हैं। मतलब आप बड़े देशों के साथ भी अच्छे से बातचीत करके रास्ता निकाल लेते हैं। तो बेहतर क्या है? लोगों का आपसे प्यार करना या आपसे डरना? ऐसा लगता है कि आपको सब प्यार करते हैं, पर उनको आपकी ताकत का भी पता है। आप वो संतुलन कैसे ढूँढते हैं? इसपर कुछ बताना चाहेंगे?

प्रधानमंत्री - पहली बात है कि यह तुलना करना उचित नहीं होगा कि 20वीं सदी के महान नेता गांधी थे। वह 20वीं हो, 21वीं हो या 22वीं हो, गांधी महान नेता हर सदी के लिए हैं। आने वाली सदियों तक महात्मा गांधी रहने वाले हैं, क्योंकि मैं उनको उसी रूप में देखता हूँ और आज भी मैं उनको रिलेवेंट देख रहा हूँ। जहाँ तक मोदी का सवाल है, मेरे पास एक दायित्व है, उस, लेकिन दायित्व उतना बड़ा नहीं है जितना कि मेरा देश बड़ा है। व्यक्ति इतना महान नहीं है, जितना कि मेरा देश महान है। और मेरी जो ताकत है, वो मोदी नहीं है, 140 करोड़ देशवासी, हज़ारों साल की महान संस्कृति, परंपरा, वहीं मेरा सामर्थ्य है। इसलिए मैं जहाँ भी जाता हूँ, तो मोदी नहीं जाता है, हज़ारों साल की वेद से विवेकानंद की महान परंपरा को 140 करोड़ लोगों, उनके सपनों को लेकर के, उनकी आकांक्षाओं को लेकर के मैं निकलता हूँ, और इसलिए मैं दुनिया के किसी नेता को हाथ मिलाता हूँ ना, तो मोदी हाथ नहीं मिलाता है, 140 करोड़ लोगों का हाथ होता है वो। तो सामर्थ्य मोदी का नहीं है, सामर्थ्य भारत का है। और उसी के कारण और मुझे याद है, मैं 2013 में, जब मेरी पार्टी ने तय किया कि मैं प्रधानमंत्री का उम्मीदवार रहूँगा, तो मेरी जो आलोचना होती थी, वो एक ही आलोचना होती थी और वो व्यापक रूप से चर्चा हुई... मोदी तो एक स्टेट का नेता है, एक राज्य को चलाया है, उसको विदेश नीति क्या समझ आएगी? वो विदेश में जाकर क्या करेगा? ऐसी सारी बातें होती थीं। और मुझे जितने भी मेरे इंटरव्यूस होते थे, उसमें ये सवाल मुझे पूछा जाता था, तब मैंने एक जवाब दिया था। मैंने कहा कि देखिये भाई, एक प्रेस इंटरव्यू में तो पूरी विदेश नीति मैं समझा नहीं सकता हूँ और वो न ही ज़रूरी है। लेकिन मैं इतना आपको कहता हूँ, कि हिंदुस्तान न आँख झुकाकर बात करेगा, न आँख उठाकर बात करेगा। लेकिन अब हिंदुस्तान आँख में आँख मिलाकर बात करेगा। तो, मैं 2013 में इस प्रकार से, आज भी उस विचार को लेकर मैं रहूं, मेरे लिए मेरा देश प्रथम है, लेकिन किसी को नीचा दिखाना, किसी को बुरा-भला कहना, ये न मेरे संस्कृति के संस्कार हैं, न मेरी सांस्कृतिक परंपरा है, और हम तो मानते हैं कि भाई पूरी मानवजात का कल्याण, भारत में तो 'जय जगत' की कल्पना रही है, विश्व बंधुत्व की कल्पना रही है, 'वसुधैव कुटुम्बकम' के विचार लेकर हम सदियों से पहले से हम पूरे पृथ्वी, पूरे ब्रह्मांड के कल्याण की कल्पना करने वाले लोग रहे हैं। और इसलिए आपने देखा होगा कि हमारी बातचीत भी क्या होती है, मैंने दुनिया के सामने जो अलग-अलग विचार रखे हैं, उन विचारों को अगर आप एनालिसिस करेंगे, जैसे मैंने एक विषय रखा, एनवायरनमेंट की इतनी चर्चा होती थी, मेरे एक भाषण में मैंने कहा, 'वन सन', 'वन वर्ल्ड, वन ग्रिड' तो ये पूरा, फिर जब कोविड चल रहा था, तो जी20 में ही मेरा एक संबोधन था, मैंने कहा भाई हमारा 'वन हेल्थ' का कांसेप्ट, हमने डेवलप करना चाहिए। यानी हमेशा मेरी कोशिश ये रही है, जैसे हमने जी20 का हमारा लोगो था कि 'वन अर्थ, वन फैमिली, वन फ्यूचर'। हर चीज़ में हम उस भूमिका से ही पले-बड़े हैं। अब दुनिया को ये चीजें, अब मैंने जैसे रिन्यूएबल एनर्जी का मूवमेंट चलाया है, भाई, इंटरनेशनल सोलर अलायंस को हमने जन्म दिया है। और 'वन सन, वन वर्ल्ड, वन ग्रिड' उस भावना और दुनिया को, ग्लोबल हेल्थ की जब बात आई, तो मैंने कोविड में कहा था 'वन अर्थ, वन हेल्थ'। अब जब 'वन अर्थ, वन हेल्थ' कहता हूँ, तो जीव मात्र, चाहे वह वनस्पति हो, पशु-पक्षी हों या मानव जीवन हो, यानी मेरी हमेशा कोशिश ये रही है कि दुनिया का कल्याण करने वाली मूलभूत चीज़ों की ओर हमने कोशिश करनी चाहिए। अगर हम सब मिलकर के, और दूसरी बात है कि आज दुनिया इंटरकनेक्टेड है, आइसोलेशन में कोई नहीं कर सकता। आज दुनिया इंटरडिपेंडेंट है। आइसोलेशन में आप कुछ नहीं कर सकते। और इसलिए आपको सबके साथ ताल मिलाने की आदत भी बनानी होगी और सबको सबके साथ ताल मिलाने की आदत बनानी पड़ेगी। तो हम इस काम को आगे बढ़ा सकते हैं। यूनाइटेड नेशन्स जैसी संस्थाओं का जन्म हुआ वर्ल्ड वॉर के बाद, लेकिन काल रहते हुए उसमें जो रिफार्म होने चाहिए, वो नहीं हुए। उसके कारण आज कितना रेलेवन्स रहा, कितना नहीं, उस पर डिबेट चल रही है।

लेक्स फ्रिडमैन - आपने इस बारे में बात की है कि आपके पास दुनिया में शांति स्थापित करने का कौशल है, अनुभव है, जियो-पॉलिटिकल दबदबा है। आज दुनिया में और वर्ल्ड स्टेज पर, सबसे बड़ा पीसमेकर बनने के लिए जबकि कई वॉर्स चल रही हैं। क्या आप मुझे बता सकते हैं कि आप शांति की स्थापना कैसे करेंगे? दो देशों के युद्ध के बीच शांति समझौता लाने में मदद कर सकते हैं, उदाहरण के तौर पर रूस एंड यूक्रेन।

प्रधानमंत्री - आप देखिए, मैं उस देश का प्रतिनिधित्व कर रहा हूँ, जो भगवान बुद्ध की भूमि है। मैं उस देश का प्रतिनिधित्व कर रहा हूँ, जो महात्मा गांधी की भूमि है। और ये ऐसे महापुरुष हैं कि जिनके उपदेश, जिनकी वाणी, वर्तन, व्यवहार पूरी तरह शांति को समर्पित है और इसलिए सांस्कृतिक रूप से, ऐतिहासिक रूप से, हमारा बैकग्राउंड इतना मजबूत है कि जब भी हम शांति के लिए बात करते हैं, तो विश्व हमें सुनता है। क्योंकि ये बुद्ध की भूमि है, ये महात्मा गांधी की भूमि है, तो विश्व हमें सुनता है और हम संघर्ष के पक्ष के है ही नहीं, हम समन्वय के पक्ष में हैं। न हम प्रकृति से संघर्ष चाहते हैं, न हम राष्ट्रों के बीच में संघर्ष चाहते हैं, हम समन्वय चाहने वाले लोग हैं। और उसमें अगर कोई भूमिका हम अदा कर सकते हैं, तो हमने निरंतर अदा करने का प्रयत्न किया है। अब जैसे मेरा रूस के साथ भी घनिष्ठ संबंध है, यूक्रेन के साथ भी घनिष्ठ संबंध है। मैं राष्ट्रपति पुतिन के सामने बैठकर के मीडिया को कह सकता हूँ कि ये युद्ध का समय नहीं है और मैं ज़ेलेंस्की को भी एक मित्र भाव से उनको भी कहता हूँ, कि भाई, दुनिया कितनी ही आपके साथ खड़ी क्यों न हो जाए, युद्ध भूमि में कभी भी परिणाम नहीं निकलने वाला है। परिणाम तो टेबल पर ही निकलने वाला है और टेबल पर परिणाम तब निकलेगा, जब उस टेबल पर यूक्रेन और रूस दोनों मौजूद होंगे। पूरी दुनिया यूक्रेन के साथ बैठकर के कितनी ही माथा-पच्ची कर लें, उससे परिणाम नहीं आता है। दोनों पक्षों का होना ज़रूरी है। और शुरू में समझा नहीं पा रहा था, लेकिन आज जो जिस प्रकार का वातावरण बना है, उससे मुझे लगता है कि अब रूस-यूक्रेन, मैं आशावादी हूँ कि बहुत उन्होंने खुद ने तो गंवाया है, दुनिया का बहुत नुकसान हुआ है। अब ग्लोबल साउथ को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। पूरे विश्व में फूड, फ्यूल और फ़र्टिलाइज़र, उसका संकट रहा है। तो पूरा विश्व चाहता है कि जल्दी से जल्दी शांति हो। और मैं हमेशा कहता हूँ, कि मैं शांति के पक्ष में हूँ। मैं न्यूट्रल नहीं हूँ, मैं शांति के पक्ष में हूं और मेरा एक पक्ष है, मैं उसके लिए प्रयत्नरत हूँ।

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लेक्स फ्रिडमैन - एक और बहुत ही ऐतिहासिक और जटिल टकराव रहा है, वह है भारत और पाकिस्तान का टकराव। ये दुनिया के सबसे खतरनाक टकराव में से एक है। दोनों ही परमाणु शक्ति हैं, दोनों की विचारधारा काफी अलग है। आप शांति चाहते हैं, आप दूर की सोचने वाले नेता हैं। आप भारत-पाकिस्तान के बीच दोस्ती और शांति का क्या रास्ता देखते हैं?

प्रधानमंत्री - एक तो, कुछ इतिहास की जो बातें हैं जिसको शायद दुनिया के बहुत लोगों को पता नहीं है। 1947 से पहले आज़ादी की लड़ाई सब लोग कंधे से कंधा मिलाकर के लड़ रहे थे। और देश आज़ादी के लिए, आज़ादी का जश्न मनाकर इंतज़ार कर रहा था। उसी समय, क्या मजबूरियां रही होंगी, वो कई उसके भी पहलू हैं, उसकी लंबी चर्चा हो सकती है, लेकिन उस समय जो भी नीति निर्धारक लोग थे, उन्होंने भारत के विभाजन को स्वीकार किया। और मुसलमानों को उनका अलग देश चाहिए, तो भाई दे दो। ऐसा और भारत के लोगों ने सीने पर पत्थर रखकर बड़ी पीड़ा के साथ, इसको भी मान लिया। लेकिन माना तो उसका परिणाम उसी समय ये आया कि लाखों लोग कत्लेआम चला। पाकिस्तान से ट्रेनें भर-भर करके लहूलुहान लोग और लाशें आने लगीं, बड़ा डरावना दृश्य था। उन्होंने अपना पाने के बाद, उनको लगना चाहिए था कि चलो भाई, हमें हमारा मिल गया, भारत के लोगों ने दे दिया है, भारत का धन्यवाद करें, हम सुख से जिए। उसके बजाय उन्होंने लगातार भारत से संघर्ष का रास्ता चुना। अब प्रॉक्सी वॉर चल रहा है। अब यह कोई आईडियोलॉजी नहीं है, आईडियोलॉजी ऐसी थोड़ी होती है कि लोगों को मारो, काटो, टेररिस्टों को एक्सपोर्ट करने का काम चल रहा है और सिर्फ़ हमारे साथ ही नहीं, अब दुनिया में कहीं पर भी टेररिस्ट की घटना घटती है, तो कहीं न कहीं सूत्र पाकिस्तान जा करके अटकते हैं। अब देखिए, 9/11 इतनी बड़ी घटना घटी अमेरिका में, उसका मेन जो सूत्रधार था ओसामा बिन लादेन, वो आखिर में कहां से मिला? पाकिस्तान में ही शरण लेकर बैठा था। तो दुनिया पहचान गई है कि एक प्रकार से आतंकवादी प्रवृत्ति, आतंकवादी मानसिकता और वो सिर्फ भारत ही नहीं है, दुनिया भर के लिए परेशानी का केंद्र बन चुका है। और हम लगातार उनको कहते रहे हैं कि इस रास्ते से किसका भला होगा? आप आतंकवाद के रास्ते को छोड़ दीजिए, ये State Sponsor Terrorism जो है, वो बंद होना चाहिए। Non state एक्टरों के हाथ में सब छोड़ दिया है, क्या होगा फायदा? और इसकी शांति के प्रयासों के लिए मैं खुद लाहौर चला गया था। मेरे प्रधानमंत्री बनने के बाद, मैंने मेरे शपथ समारोह में पाकिस्तान को स्पेशली इनवाइट किया था ताकि एक शुभ शुरुआत हो। लेकिन हर बार, हर अच्छे प्रयासों का परिणाम नकारात्मक निकला। हम आशा करते हैं कि उनको सद्बुद्धि मिलेगी और सुख शांति के रास्ते पर जाएंगे और वहाँ की आवाम भी दुखी होगी, ऐसा मैं मानता हूँ, क्योंकि वहाँ की आवाम भी ये नहीं चाहती होगी कि रोज़मर्रा की जिंदगी जिए, इस प्रकार के मार-धाड़, लहु-लुहान, बच्चे मर रहे हैं, जो टेररिस्ट बन करके आते हैं, उनकी जिंदगी तबाह हो जाती है।

लेक्स फ्रिडमैन- क्या कोई ऐसी कहानी है, जिसमें आपने कोशिश की हो, पाकिस्तान के साथ सब ठीक करना चाहा हो, जो पाकिस्तान के साथ संबंध सुधारने की कोशिशों से जुड़ी हो, जो भविष्य में आगे का रास्ता दिखा सके?

प्रधानमंत्री - पहली बात है कि संबंध सुधारने का सबसे बड़ा ब्रेकथ्रू था, प्रधानमंत्री बनते ही शपथ समारोह में उनको निमंत्रित करना। ये अपने आप में बहुत बड़ी घटना थी। और कई दशकों के बाद हुई थी यह घटना। और शायद जो लोग मुझे 2013 में सवाल पूछते थे कि मोदी की विदेश नीति क्या होगी, उन सबने जब ये सुना कि मोदी ने सार्क देशों के सभी नेताओं को शपथ समारोह में बुलाया है, तो वो चौंक गए थे और इस निर्णय की, प्रक्रिया जो हुई थी उसके संबंध में, हमारे उस वक्त के राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी साहब, उन्होंने अपनी किताब में जो संस्मरण लिखे हैं, उसमें इस घटना का वर्णन बहुत बढ़िया ढंग से किया है। और सचमुच में भारत की विदेश नीति कितनी स्पष्ट है और कितनी आत्मविश्वास से भरी है, उसके दर्शन हो चुके थे और भारत शांति के प्रति कितना प्रतिबद्ध है। उसका संदेश दुनिया के सामने साफ-साफ गया था, लेकिन परिणाम सही नहीं मिले।

लेक्स फ्रिडमैन - वैसे आपसे एक थोड़ा सा रोमांचक सवाल पूछना है। भारत या पाकिस्तान में से किसकी क्रिकेट टीम बेहतर है? दोनों टीमों की पिच पर दुश्मनी के चर्चे भी सभी ने सुने हैं। और दोनों में जियो-पॉलिटिकल तनाव भी है, जिसकी अभी आपने बात की है। स्पोर्ट्स, खासकर क्रिकेट और फुटबॉल, देशों के बीच बेहतर संबंध बनाने और आपसी सहयोग बढ़ाने में कैसी भूमिका निभाते हैं?

प्रधानमंत्री - वैसे, जो स्पोटर्स हैं, वो पूरी दुनिया में ऊर्जा भरने का काम करते हैं। स्पोर्ट्समैन स्पिरिट दुनिया के अंदर जोड़ने का काम करते हैं। तो मैं स्पोर्ट्स को बदनाम होते देखना नहीं चाहूँगा। स्पोर्ट्स को मैं बहुत मानव की विकास यात्रा का अत्यंत महत्वपूर्ण और खेलदिल एक रूप में हमेशा समझता हूँ। दूसरा विषय है कि कौन अच्छा, कौन बुरा। अगर खेल की technique के संबंध में कहें, तो मैं इसका एक्सपर्ट नहीं हूँ। तो technique जो लोग जानते होंगे, वही बता सकते हैं, कि किसका खेल अच्छा है और कौन खिलाड़ी अच्छे हैं। लेकिन कुछ परिणाम से पता चलता है, जैसे अभी कुछ दिन पहले ही इंडिया और पाकिस्तान के बीच एक मैच हुआ। तो जो परिणाम आया है, उससे पता चलेगा कि कौन बेहतर टीम है, स्वाभाविक पता चलेगा।

लेक्स फ्रिडमैन - हाँ, मैंने भी 'द ग्रेटेस्ट राइवलरी, इंडिया वर्सेस पाकिस्तान' नाम की सीरीज़ देखी है, जिसमें कई बेहतरीन खिलाड़ियों और मैचों की बात हुई है। दोनों देशों की ऐसी टक्कर और मुकाबला देखकर अच्छा लगता है। आपने फुटबॉल के बारे में भी बात की है। भारत में फुटबॉल बहुत पॉपुलर है। तो एक और मुश्किल सवाल, आपका फुटबॉल का सबसे पसंदीदा खिलाड़ी कौन है? हमारे पास मैसी, पेले, मैराडोना, क्रिस्टियानो रोनाल्डो, जिदान जैसे नाम हैं। आपको आजतक का सबसे महान फुटबॉल खिलाड़ी कौन लगता है?

प्रधानमंत्री - ये बात सही है कि भारत का बहुत बड़ा क्षेत्र ऐसा है, जहाँ फुटबॉल अच्छी तरह खेला जाता है और फुटबॉल की हमारी महिला टीम भी अच्छा काम कर रही है, पुरुषों की टीम भी अच्छा काम कर रही है। लेकिन अगर पुरानी बातें हम करें, 80’s के कालखंड की, तो मैराडोना का नाम हमेशा उभर करके आता है। हो सकता है कि उस जनरेशन के लिए वह एक हीरो के रूप में देखे जाते हो और आज की जनरेशन को पूछोगे तो वो मैसी की बात बताएँगे। लेकिन मुझे एक और इंटरेस्टिंग घटना आज याद आ रही है, आपने पूछा तो। हमारे यहाँ मध्य प्रदेश करके एक स्टेट है, सेंट्रल पार्ट ऑफ इंडिया में, वहाँ शहडोल करके एक डिस्ट्रिक्ट है। वहां सारा tribal built है काफ़ी लोग tribal लोग रहते हैं। तो मैं वहाँ tribal women के जो सेल्फ हेल्प ग्रुप चलते हैं, उनसे बातचीत करने का मेरा एक, मुझे एकदम पसंद आता है, ऐसे लोगों से बातचीत करना, तो मैं मिलने गया था। लेकिन वहाँ मैंने देखा कि कुछ स्पोर्ट्स की ड्रेस में पहने हुए, 80-100 नौजवान, छोटे बच्चे, थोड़े नौजवान, थोड़े बड़ी आयु के सब लोग एक ही प्रकार...तो मैं स्वाभाविक रूप से उनके पास गया। तो मैंने कहा "आप लोग सब कहाँ से हैं सब?" तो बोले हम मिनी ब्राज़ील से हैं। मैंने कहा ये मिनी ब्राज़ील क्या है भाई तेरा? नहीं बोले हमारे गाँव को लोग मिनी ब्राज़ील कहते हैं। मैंने कहा कैसे मिनी ब्राज़ील कहते हैं? बोले हमारे गाँव में से हर परिवार में चार-चार पीढ़ी से लोग फुटबॉल खेलते हैं। नेशनल प्लेयर 80 के करीब हमारे गाँव से निकले हैं, पूरा गाँव फुटबॉल को समर्पित है। और वो कहते हैं कि हमारे गाँव का एनुअल मैच जब होता है, तो 20-25 हज़ार दर्शक आसपास के गाँवों से आते हैं। तो भारत में फुटबॉल का जो इन दिनों क्रेज़ बढ़ रहा है, मैं उसको शुभ संकेत मानता हूँ। क्योंकि वो टीम स्पिरिट भी पैदा करता है।

लेक्स फ्रिडमैन - हाँ, फुटबॉल उन बेहतरीन खेलों में से एक है जो न सिर्फ भारत, बल्कि पूरी दुनिया को एकजुट करता है, और इससे किसी भी खेल की ताकत का पता चलता है। आपने हाल ही में अमेरिका का दौरा किया और डोनाल्ड ट्रंप के साथ अपनी दोस्ती को फिर से मज़बूत किया। एक दोस्त और नेता के रूप में आपको डोनाल्ड ट्रंप के बारे में क्या पसंद है?

प्रधानमंत्री - मैं घटना का वर्णन करना चाहूँगा, शायद आप उससे जज कर सकते हैं कि कि कौन-सी बातों की तरफ मैं ये कह रहा हूँ। अब जैसे हमारा ह्यूस्टन में एक कार्यक्रम था, 'हाउडी मोदी', मैं और राष्ट्रपति ट्रंप, दोनों, और पूरा स्टेडियम खचाखच भरा हुआ था। इतने लोगों का होना अमेरिका के जीवन के अंदर बहुत बड़ी घटना है, खेलकूद के मैदान में, तो पॉलिटिकल रैली में इतने बड़े लोग होना बहुत बड़ी बात है। तो इंडियन डायसपोरा के लोग इकट्ठे आए थे। तो हम लोग दोनों स्पीच किए, वो नीचे बैठ कर मुझे सुन रहे थे। अब ये उनका बड़प्पन है जी। अमेरिका के राष्ट्रपति स्टेडियम में नीचे बैठ करके, सुन रहे हैं और मैं मंच पर से भाषण कर रहा हूँ, ये उनका बड़प्पन है। मैं भाषण करके नीचे गया। और हम तो जानते हैं कि अमेरिका की सिक्योरिटी की कितनी बड़ी वो रहता है, कितने प्रकार की scrutiny होती है। मैं जाकर के, वो रहे इसके लिए धन्यवाद करने गया, तो मैंने उनको ऐसे ही कहा, अगर, मैंने कहा, "आपको ऐतराज़ न हो, तो आइए, हम ज़रा एक, पूरे स्टेडियम का चक्कर काट के आते हैं।" इतने लोग हैं तो, हाथ ऊपर करके, नमस्ते करके आ जाते हैं। आपके अमेरिका के लाइफ में impossible है कि हज़ारों की भीड़ में अमेरिकी राष्ट्रपति चल पड़े। एक पल का भी विलम्ब किए बिना, वे मेरे साथ चल पड़े, भीड़ में। अमेरिका की जो सुरक्षा तंत्र था, पूरा वो एकदम से डिस्टर्ब हो गया था। मेरे लिए टच कर गया कि इस व्यक्ति में हिम्मत है। ये डिसीजन खुद लेते हैं। और दूसरा मोदी पर उनको भरोसा है कि मोदी ले जा रहा है तो चलिए, चलते हैं। तो ये आपसी विश्वास का भाव, ये इतनी हमारी मज़बूती, मैंने उसी दिन देखा। और मैंने राष्ट्रपति ट्रंप को उस दिन जिस रूप में महसूस किया, कि सिक्योरिटी वालों को पूछे बिना मेरे साथ चल देना, हजारों लोगों के बीच में, अब उसका वीडियो देखोगे तो आपको आश्चर्य होगा। और जब उन पर गोली चली, अब इस चुनाव कैंपेन में, तो मुझे राष्ट्रपति ट्रंप एक ही नज़र आए। उस स्टेडियम में मेरा हाथ पकड़ करके चलने वाले ट्रंप और गोली लगने के बाद भी अमेरिका के लिए जीना, अमेरिका के लिए ही ज़िन्दगी। ये जो उनका reflection था। क्योंकि मैं 'नेशन फर्स्ट' वाला हूँ, वे 'अमेरिकन फर्स्ट' वाले हैं, मैं 'भारत फर्स्ट' वाला हूँ। तो हमारी जोड़ी बराबर जम जाती है। तो ये चीज़ें हैं कि, अपील करती हैं, और मैं मानता हूँ कि ज्यादातर दुनिया में राजनेताओं के विषय में मीडिया में इतना रिपोर्ट्स छपती हैं, कि हर कोई एक-दूसरे को मीडिया के माध्यम से आंकता है। स्वयं ज़्यादा एक-दूसरे से मिलकर के, एक-दूसरे को न पहचानते हैं, न जानते हैं। और शायद तनाव का कारण भी ये थर्ड पार्टी इंटरवेंशन ही है। मैं जब पहली बार व्हाइट हाउस गया, तो राष्ट्रपति ट्रंप के विषय में बहुत कुछ मीडिया में छपता था, उस समय नए-नए आए थे, दुनिया ज़रा, कुछ अलग ही रूप में उनको देखती थी। मुझे भी भाँति-भाँति का ब्रीफिंग किया गया था। जब मैं व्हाइट हाउस पहुँचा, पहली मिनट में उन्होंने सारे वो प्रोटोकॉल की दीवारें तोड़ दीं, एकदम से, और फिर जब मुझे पूरे व्हाइट हाउस में घुमाने ले गए, और मुझे दिखा रहे थे और मैं देख रहा हूँ, उनके हाथ में कोई कागज़ नहीं था, कोई पर्ची नहीं थी, कोई साथ में व्यक्ति नहीं था। मुझे दिखा रहे थे, यह अब्राहम लिंकन यहाँ रहते थे, ये कोर्ट इतना लंबा क्यों है? इसके पीछे क्या कारण है? ये टेबल पर कौन राष्ट्रपति ने signature किया था? Date wise बोलते थे जी। मेरे लिए वो बहुत impressive था, कि ये इंस्टिट्यूशन को कितना ऑनर करते हैं। कितना अमेरिका के हिस्ट्री के साथ उनका कैसा लगाव है, और कितना रिस्पेक्ट है। वो मैं अनुभव कर रहा था और बड़े खुल करके काफी बातें मेरे से कर रहे थे। ये मेरी पहली मुलाकात का मेरा अनुभव था। और मैंने देखा कि जब वो, पहली टर्म के बाद वो चुनाव बाइडेन जीते, तो ये चार साल का समय हुआ। मेरा और उनको बीच में जानने वाला कोई व्यक्ति उन्हें मिलता था, तो इन चार सालों में नहीं-नहीं तो पचासों बार, उन्होंने कहा होगा, "Modi is my friend, convey my regards" Normally, ये बहुत कम होता है। यानि हम एक प्रकार से फिजिकली भले न मिले, लेकिन हमारे बीच का direct-indirect संवाद या निकटता, या विश्वास, ये अटूट रहा है।

लेक्स फ्रिडमैन - उन्होंने कहा कि आप उनसे कहीं ज़्यादा अच्छे और बेहतर मोलभाव करते हैं। यह बात उन्होंने हाल ही में आपकी यात्रा के दौरान कही। एक वार्ताकार के तौर पर आप उनके बारे में क्या सोचते हैं? और आपके अनुसार उनके कहने का क्या मतलब था कि आप मोलभाव में अच्छे हैं?

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प्रधानमंत्री - अब ये तो मैं कह नहीं सकता हूं, क्योंकि उनका ये बड़प्पन है कि वो मेरे जैसे, आयु में भी उनसे छोटा हूँ, वो मेरी सार्वजनिक रूप से तारीफ करते हैं, अलग-अलग विषयों में तारीफ करते हैं। लेकिन ये बात सही है कि मैं, मेरे देश के हितों को ही सर्वोपरि मानता हूँ। और इसलिए मैं भारत के हितों को लेकर के हर Forum में अपनी बात रखता हूँ, किसी का बुरा करने के लिए नहीं रखता हूँ, सकारात्मक रूप से रखता हूँ, तो किसी को बुरा भी नहीं लगता है। लेकिन मेरे आग्रह को तो सब कोई जानते हैं कि भाई मोदी हैं तो इन चीज़ों का आग्रह करेगा, और वो तो मेरे देश के लोगों ने मुझे वो काम दिया है, तो मैं तो मेरा देश, यही मेरा high command है, मैं तो उनकी इच्छा का ही पालन करूँगा।

लेक्स फ्रिडमैन - आपने अमेरिका की अपनी यात्रा पर कई अन्य लोगों के साथ भी महत्वपूर्ण बैठकें कीं, एलोन मस्क, जेडी वेंस, तुलसी गैबर्ड, विवेक रामास्वामी। उन बैठकों में से कुछ मुख्य बातें क्या हैं, जो ख़ास रहीं? कोई अहम फैसले या खास यादें?

प्रधानमंत्री - देखिए मैं यह कह सकता हूँ कि राष्ट्रपति ट्रंप को मैंने पहले टर्म में भी देखा है, और सेकेंड टर्म में भी देखा है। इस बार पहले से बहुत अधिक वो prepared हैं। बहुत ही उनको क्या करना है, उसके विषय में उनके दिमाग में स्टेप्स रोडमैप बहुत क्लियर है। और मैं देख रहा हूँ कि मैं उनकी टीम के लोगों से मिला। मैं मानता हूँ बहुत अच्छी टीम उन्होंने सिलेक्ट की है और इतनी अच्छी टीम है तो राष्ट्रपति ट्रंप का जो भी विज़न है, उसको लागू करने वाली सामर्थ्यवान टीम मुझे महसूस हुई, जितनी मेरी बातें हुई हैं। जिन लोगों से मेरा मिलना हुआ, चाहे तुलसी जी हों, या विवेक जी हों, या एलोन मस्क हों। एक family like environment था। सब अपने परिवार के साथ मिलने आए थे। तो मेरा परिचय एलोन मस्क है तो में, मुख्यमंत्री था, तब से मेरा उनका परिचय है। तो अपने परिवार के साथ, बच्चों के साथ आए थे तो, स्वाभाविक है, वह माहौल था। ख़ैर, बातें तो होती हैं, कई विषयों पर चर्चा होती है। अब उनका जो डोज वाला मिशन चल रहा है, तो वो बड़े उत्साहित भी हैं कि किस प्रकार से वो कर रहे हैं। लेकिन मेरे लिए भी खुशी का विषय है, क्योंकि मैं 2014 में आया, तो मैं भी चाहता हूँ कि मेरे देश में, जो पुरानी बीमारियाँ जो घुस गई हैं, मेरे देश को मैं उन बीमारियों से, ग़लत आदतों से, जितनी ज़्यादा मुक्ति दिला सकता हूँ, वो तो दूँ। अब जैसे, मेरे यहाँ मैंने देखा 2014 में आने के बाद, हमारी कोई, इतनी कोई ग्लोबल लेवल पर चर्चा नहीं है, जितनी राष्ट्रपति ट्रंप और डोज की चर्चा है। लेकिन मैं उदाहरण दूँ तो आपको ध्यान में आएगा, कि कैसे काम हुआ है? मैंने देखा कि, जो सरकार के कुछ स्कीम्स के बेनेफिट होते हैं, ख़ास करके लोक कल्याण के काम, कुछ ऐसे लोग उसका बेनेफिट लेते थे, जिनका कभी जन्म ही नहीं हुआ था। लेकिन ghost नाम, शादी हो जाती है, विधवा हो जाते हैं, पेंशन मिलना शुरू हो जाता है, हैंडीकैप हो जाते हैं, पेंशन मिलना। और मैंने फिर उसको scrutiny शुरू किया। आप जानकर हैरान होंगे, यानी 100 मिलियन लोग, 10 करोड़ लोग, 10 करोड़ ऐसे नाम, फेक नाम, डुप्लिकेट नाम, उनको मैंने व्यवस्था से बाहर निकाला। और उसके कारण जो पैसों की बचत हुई, वे मैंने डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर शुरू किया। जो पैसा दिल्ली से निकलेगा, उतना ही पैसा उसके जेब में जाना चाहिए। इसके कारण मेरे देश का करीब तीन लाख करोड़ रुपये का पैसा, जो ग़लत हाथों में जाता था, वो बचत हुआ है। डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के कारण टेक्नोलॉजी का मैं भरपूर उपयोग करता हूँ, उसके कारण बिचौलिए वगैरह नहीं रहें। सरकार में मैंने खरीदार के लिए जेम पोर्टल बनाया टेक्नोलॉजी का। तो सरकार को ख़रीदी में भी बहुत पैसा बच रहा है, समय बच रहा है, कंप्टीशन अच्छा मिल रही है, अच्छी चीज़ें मिल रही हैं। हमारे यहाँ compliances का burden भी बहुत था। मैंने 40 हज़ार compliances खत्म किए। पुराने कानून ढेर सारे थे, जिनका कोई कारण नहीं था। करीब पंद्रह सौ कानून मैंने खत्म किए। तो मैं भी एक प्रकार से सरकार में इस प्रकार की जो चीज़ें dominate हो रही थीं, उससे मुक्ति दिलाने का, तो ये चीज़ें ऐसी हैं जो, डोज का जो काम है, स्वाभाविक है, ऐसी चीज़ों की चर्चा होना बहुत स्वाभाविक होता है।

लेक्स फ्रिडमैन - आप और शी ज़िंगपिंग एक-दूसरे को दोस्त मानते हैं। हाल के तनावों को कम करने और चीन के साथ संवाद और सहयोग फिर से शुरू करने में मदद के लिए, उस दोस्ती को कैसे फिर से मज़बूत किया जा सकता है?

प्रधानमंत्री - देखिए, भारत और चीन का संबंध ये कोई आज का नहीं है, दोनों पुरातन संस्कृति हैं, पुरातन सीविलाइजेशन हैं। और modern world में भी अपनी उनकी भूमिका है। आप अगर पुराने रिकॉर्ड देखेंगे, सदियों तक चीन और भारत एक दूसरे से सीखते रहे हैं, और दोनों मिलकर के दुनिया की भलाई के लिए कोई न कोई contribute करते रहे, ग्लोबल पुराने जो रिकॉर्ड हैं, कहते हैं कि दुनिया का जो GDP था, उसका 50% से ज़्यादा अकेले भारत और चीन का हुआ करता था, इतना बड़ा contribution भारत का रहा। और मैं मानता हूँ कि इतने सशक्त संबंध रहे, इतने गहन सांस्कृतिक संबंध रहे और पहले की सदियों में कोई हमारे बीच में संघर्ष का इतिहास नहीं मिलता है। हमेशा एक दूसरे से सीखना, एक दूसरे को जानने का ही प्रयास रहा है। और बुद्ध का प्रभाव किसी ज़माने में तो चीन में काफ़ी था और यहीं से ही वो विचार गया था। हम भविष्य में भी इन संबंधों को ऐसे ही मज़बूत रहना चाहिए, continue रहना चाहिए। ये हमारा, जहां तक differences तो होते हैं, दो पड़ोसी देश होते हैं तो कुछ न कुछ तो होता है। Occasional disagreement भी बहुत स्वाभाविक है, कोई ऐसा तो हर चीज नहीं, वो तो एक परिवार में भी रहता है। लेकिन हमारी कोशिश है कि हमारे जो differences हैं, ये dispute में न बदलें, उस दिशा में हमारा प्रयास रहता है। उसी प्रकार से हम dispute नहीं, dialogue इसी पर बल देते हैं। तभी जाकर के एक stable, cooperative relationship और दोनों ही देशों के लिए best interest में है। ये सच है कि हमारा सीमा विवाद चलता रहता है। तो 2020 में सीमा पर जो घटनाएं घटीं, उसके कारण हमारे बीच स्थितियाँ काफी दूरी की बन गईं। लेकिन अभी राष्ट्रपति शी के साथ मेरा मिलना हुआ। उसके बाद सीमा पर जो चीजें थी, उसमें नॉर्मल स्थिति आ चुकी है, 2020 से पहले की स्थिति में हम लोग अब काम कर रहे हैं। अब धीरे-धीरे वो विश्वास और वह उत्साह और उमंग और ऊर्जा वापस आ जाए, उसको थोड़ा एक समय लगेगा, क्योंकि बीच में पाँच साल का अंतराल गया है। हमारा साथ होना न सिर्फ़ beneficial है, बल्कि global stability और prosperity के लिए भी ज़रूरी है, और जब 21वीं सदी एशिया की सदी है, तो हम तो चाहेंगे कि भारत-चीन के बीच में स्पर्धा सब स्वाभाविक है, स्पर्धा कोई गलत चीज़ नहीं है, लेकिन संघर्ष नहीं होना चाहिए।

लेक्स फ्रिडमैन - दुनिया एक उभरते हुए वैश्विक युद्ध को लेकर चिंतित है। चीन और अमेरिका के बीच तनाव। यूक्रेन और रूस में तनाव, यूरोप में तनाव इज़राइल और मध्य पूर्व में तनाव। आप इस बारे में क्या कह सकते हैं कि 21वीं सदी में हम वैश्विक युद्ध को कैसे टाल सकते हैं? ज़्यादा संघर्ष और युद्ध की ओर बढ़ने से कैसे बच सकते हैं?

प्रधानमंत्री - देखिए, कोविड ने हम सबकी मर्यादाओं को उजागर कर दिया। हम जितने भी भले ही अपने आपको महान राष्ट्र क्यों न मानते हों, बहुत प्रगतिशील क्यों न मानते हों, scientific बहुत ही advance गए हुए मानते हों, जो भी हो, सब अपने-अपने तरीके से, लेकिन कोविड के काल में हम सब ज़मीन पर आ गए, दुनिया के हर देश। और तब लगता था कि दुनिया उससे कुछ सीखेगी, और एक नए world order की तरफ हम जाएंगे। जैसे, second world war के बाद एक world order बना। वैसा शायद कोविड के बाद बनेगा, लेकिन दुर्भाग्य से, स्थिति ये बनी कि शांति की तरफ जाने के बजाय दुनिया बिखर गई, एक अनिश्चितता का कालखंड आ गया, युद्ध ने उसको और मुसीबत में डाल दिया। और मैं मानता हूँ कि modern wars सिर्फ़ resource या interest के लिए नहीं, आज मैं देख रहा हूँ कि इतना, इतने प्रकार का संघर्ष चल रहा है, फिजिकल लड़ाइयों की तो चर्चा होती है, लेकिन हर क्षेत्र में संघर्ष चल रहा है। जो अंतर्राष्ट्रीय संगठन पैदा हुए, करीब-करीब irrelevant हो गए, उसमें कोई reform नहीं हो रहा है। UN जैसे संस्थाएं अपनी भूमिका अदा नहीं कर सकते हैं। दुनिया में जो लोग कानून की, नियमों की परवाह नहीं करते, वो सब कुछ कर रहे हैं, कोई रोक नहीं पा रहा है। तो ऐसी स्थितियों में बुद्धिमानी यही होगी कि सब लोग संघर्ष का रास्ता छोड़कर समन्वय के रास्ते पर आगे आएं। और विकासवाद का रास्ता सही होगा, विस्तारवाद का रास्ता काम नहीं आएगा। और जैसा मैंने पहले ही कहा, दुनिया inter dependent है, inter connected है, हर किसी को, हर एक की ज़रूरत है, कोई अकेला कुछ नहीं कर सकता है। और मैं देख रहा हूँ कि जितने अलग-अलग forum में मुझे जाना होता है, उसमें चिंता सबको सता रही है, संघर्ष की। हम आशा करते हैं कि बहुत जल्द उससे मुक्ति मिले।

लेक्स फ्रिडमैन - मैं अभी भी सीख रहा हूँ।

प्रधानमंत्री - आप घड़ी की तरफ देखते है।

लेक्स फ्रिडमैन - नहीं-नहीं, मैं अभी ये काम सीख रहा हूँ, प्रधानमंत्री जी। मैं इसमें ज़्यादा अच्छा नहीं हूँ, ठीक है। अपने करियर और अपने जीवन में आपने भारत के इतिहास में कई कठिन हालात देखे हैं। 2002 के गुजरात दंगे उनमें से एक है। वो भारत के हाल ही के इतिहास के सबसे कठिन समय में से एक था। जब गुजरात के हिंदू और मुस्लिम लोगों के बीच हिंसा हुई। जिसमें एक हज़ार से ज़्यादा मौतें हुईं। इससे उस जगह के धार्मिक तनाव का पता चलता है। जैसा कि आपने बताया उस समय आप गुजरात के मुख्यमंत्री थे। तब की बात करें तो उस समय से आपने क्या सीखा है? मैं यह भी बताना चाहूँगा कि भारत की सुप्रीम कोर्ट ने दो बार फैसला दिया है। उन्होंने 2012 और 2022 में कहा कि आपकी हिंसा में कोई भूमिका नहीं थी। 2002 के गुजरात दंगों की हिंसा में। लेकिन मैं जानना चाहता था कि आपने उस समय से क्या सबसे बड़ी बातें सीखी?

प्रधानमंत्री - देखिए, मैं समझता हूँ कि सबसे पहले जो आपने कहा कि मैं इस विषय में एक्सपर्ट नहीं हूँ, मैं अब इंटरव्यू ठीक कर रहा हूँ, नहीं कर रहा हूँ, जो आपके मन में जो दुविधा पैदा हुई। मुझे लग रहा है कि आपने काफ़ी मेहनत की है, काफ़ी रिसर्च किया है और आपने हर चीज़ की बारीकियों में जाने का प्रयास किया है। तो मैं ये नहीं मानता हूँ कि आपके लिए कोई कठिन काम है। और आपने जितने पॉडकास्ट किए हैं, मैं मानता हूँ कि आप लगातार अच्छा ही परफार्म कर रहे हैं। और आपने मोदी को question करना, उसकी बजाय आपने भारत के परिवेश को जानने की भरपूर कोशिश की है, ऐसा मैं फील कर रहा हूँ। और इसलिए मैं समझता हूँ कि सच्चाई तक जाने के आपके प्रयास है, उसमें ईमानदारी नज़र आती है। और इस प्रयास के लिए मैं आपका बहुत-बहुत अभिनंदन करता हूँ।

लेक्स फ्रिडमैन - धन्यवाद।

प्रधानमंत्री - जहाँ तक आपने उन पुरानी चीजों की बात की। लेकिन आप 2002 और गुजरात के riots, लेकिन उसके पहले के कुछ दिनों का मैं आपको एक 12-15 महीने का एक चित्र आपके सामने पेश करना चाहूँगा, ताकि आपको अंदाज़ आ जाए कि क्या स्थिति थी। जैसे 24 दिसंबर 1999, यानी तीन साल पहले की बात है। काठमांडू से दिल्ली जो फ्लाइट आ रही थी, वो हाईजैक कर-करके अफगानिस्तान ले जाया गया, कंधार में ले गए। और भारत के सैकड़ों यात्रियों को ban बनाया गया। पूरे भारत में एक बहुत बड़ा तूफान था, लोगों की जिंदगी और मौत का सवाल था। अब 2000 के अंदर, हमारे यहाँ लाल किले में आतंकी हमला हुआ, दिल्ली में। एक नया और उसके साथ तूफान जुड़ गया। 11 सितंबर 2001, अमेरिका में ट्विन टावर पर बहुत बड़ा आतंकी हमला हुआ, उसने फिर एक बार दुनिया को चिंतित कर दिया, क्योंकि यह सब जगह पर करने वाले एक ही प्रकार के लोग हैं। अक्टूबर 2001 को जम्मू-कश्मीर विधानसभा पर आतंकी हमला हुआ। 13 दिसंबर 2001 को भारत की संसद पर आतंकी हमला हुआ। यानी आप उस समय की एक 8-10 महीने की घटनाएँ देखिए, वैश्विक स्तर की घटनाएँ, आतंकी घटनाएँ, खून-खराबे की घटनाएं, निर्दोष लोगों की मौत की घटनाएँ। तो कोई भी, एक प्रकार से अशांति के लिए एक चिंगारी काफ़ी होती है, ये स्थिति पैदा हो चुकी थी, हो चुकी थी। ऐसे समय, अचानक, 7 अक्टूबर 2001, मुझे मुख्यमंत्री बनने का दायित्व मेरे सिर पर आ गया अचानक, और वह भी मेरी सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी थी, गुजरात में जो भूकंप आया था, उस भूकंप के rehabilitation के लिए बहुत बड़ा काम था और पिछली शताब्दी का सबसे बड़ा भूकंप था। हज़ारों लोग मारे गए थे। तो एक काम के लिए मैं, मेरे लिए सीएम का काम मेरे ज़िम्मे आ गया। बहुत महत्वपूर्ण काम था और मैं शपथ लेने के बाद पहले ही दिन से इस काम में जुड़ गया था। मैं एक ऐसा व्यक्ति हूँ, जो कभी सरकार नाम से मेरा कोई रिश्ता नहीं रहा, मैं सरकार में कभी रहा नहीं, मैं सरकार क्या होती है, जानता नहीं था। मैं कभी एमएलए नहीं बना, मैंने कभी चुनाव नहीं लड़ा। मुझे जीवन में पहली बार चुनाव लड़ना पड़ा। मैं 24 फरवरी 2002, मैं पहली बार MLA बना, एक चुना हुआ जनप्रतिनिधि बना। और मैं पहली बार 24 तारीख को या 25 तारीख को या 26 तारीख को गुजरात विधानसभा में मैंने पैर रखा। 27 फरवरी 2002, विधानसभा में मेरा बजट सत्र था, हम हाउस में बैठे थे, और उसी दिन, यानी अभी मुझे एमएलए बने तीन दिन हुए थे, और गोधरा की घटना हो गई और भयंकर घटना थी, लोगों को ज़िंदा जला दिया गया था। आप कल्पना कर सकते हैं कि जो कंधार के विमान अपहरण को, या पार्लियामेंट पर का हमला कहो या 9/11 कहो, ये सारी घटनाओं का background हो और उसमें एक इतनी बड़ी संख्या में लोगों का मर जाना, ज़िंदा जला देना, आप कल्पना कर सकते हैं कि स्थिति कैसी होगी। कुछ भी नहीं होना चाहिए, हम भी चाहते हैं, कोई भी चाहेगा, शांति ही रहनी चाहिए। दूसरा, जो कहते हैं ये बहुत बड़े riot वगैरह, तो यह भ्रम फैलाया गया है। अगर 2002 के पहले का डेटा देखें, तो पता चलता है कि गुजरात में कितने दंगे होते थे। हमेशा कहीं न कहीं कर्फ्यू लगा रहता था। पतंग के अंदर communal violence हो जाती थी, साइकिल टकरा जाने पर communal violence हो जाए। 2002 से पहले गुजरात में 250 से ज़्यादा बड़े दंगे हुए थे। और 1969 में जो दंगे हुए थे, वह तो करीब 6 महीने चले थे। यानी तब तो हम कहीं थे ही नहीं दुनिया के उस चित्र में, उस समय की मैं बता रहा हूँ। और इतनी बड़ी घटना एक ऐसा sparking point बन गया कि कुछ लोगों की हिंसा हो गई। लेकिन न्यायालय ने उसको बहुत डिटेल से देखा है। लंबे, और उस समय हमारे जो विरोध के लोग हैं, वो सरकार में थे। और वो तो चाहते थे कि हम पर जितने आरोप लगे थे, हमको सज़ा हो जाए। लेकिन उनके लाखों कोशिशों के बाद भी Judiciary ने पूरी तरह डिटेल में उसका एनालिसिस किया, 2-2 बार किया और हम पूरी तरह निर्दोष निकले। जिन लोगों ने गुनाह किया था, उनके लिए न्यायालय ने अपना काम किया है। लेकिन सबसे बड़ी बात है, जिस गुजरात में साल में कहीं न कहीं दंगे हुआ करते थे, 2002 के बाद, आज 2025 है, गुजरात में 20-22 सालों में कोई बड़ा दंगा नहीं हुआ, पूरी तरह शांति है, और हमारी कोशिश ये रही है कि हम वोट बैंक की राजनीति नहीं करते, हम सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, सबका प्रयास, इसी मंत्र को लेकर के चलते हैं। Politics of Appeasement से हम, Politics of Aspiration की तरफ गए हैं। और उसके कारण जिसको भी कुछ करना है, वो हमारे साथ जुड़ जाते हैं, और एक अच्छी तरह गुजरात विकसित राज्य बने, उस दिशा में हम लगातार प्रयास करते रहे हैं, अब विकसित भारत के लिए काम कर रहे हैं, उसमें भी गुजरात अपनी भूमिका अदा कर रहा है।

लेक्स फ्रिडमैन - बहुत से लोग आपको प्यार करते हैं। मैंने ये कई लोगों से सुना है, लेकिन ऐसे लोग भी हैं जो आपकी आलोचना करते हैं, मीडिया समेत, और मीडिया के लोगों ने 2002 के गुजरात दंगों पर आपकी आलोचना की है। आलोचना के साथ आपका कैसा रिश्ता है? कैसे आप आलोचकों से निपटते हैं, कैसे आप आलोचना से निपटते हैं, जो मीडिया या आपके आस-पास या आपके जीवन में कही से भी आ सकती है?

प्रधानमंत्री - देखिए, आपने जो कहा, आलोचना और कैसे डील करते हैं। तो अगर मुझे एक वाक्य में कहना हो, तो मैं उसका स्वागत करता हूँ। क्योंकि मेरा एक conviction है कि criticism, ये democracy की आत्मा है। अगर आप too democrat हैं, आपके blood में democracy है, तो हमारे यहाँ तो कहा जाता है शास्त्रों में- 'निंदक नियरे राखिए', जो आलोचक होते हैं, वो सबसे निकट होने चाहिए, आपके पास। तो आप democratic way से, अच्छे ढंग से, अच्छी जानकारियों के साथ काम कर सकते हैं। और मैं मानता हूँ कि criticism होना चाहिए और ज़्यादा होना चाहिए और बहुत तीखा criticism होना चाहिए। लेकिन मेरी शिकायत ये है कि आजकल criticism नहीं हो रहा है, criticism करने के लिए बहुत अध्ययन करना पड़ता है, विषय की बारीकी में जाना पड़ता है, सच और झूठ खोज करके निकालना पड़ता है। आजकल लोग शॉर्टकट ढूँढने की आदत के कारण कोई स्टडी करते नहीं हैं, रिसर्च नहीं करते हैं, weaknesses को ढूंढकर निकालते नहीं हैं और आरोप लगाने में लग जाते हैं। Allegation और criticism के बीच में बहुत अंतर होता है। आप जिन लोगों का reference दे रहे हैं, वो allegation हैं, वो criticism नहीं है। और लोकतंत्र की मज़बूती के लिए criticism चाहिए। आरोप से किसी का भला नहीं होता है। तू-तू मैं-मैं चलता है। और इसलिए मैं criticism को हमेशा welcome करता हूँ और जब आरोप झूठे होते हैं, तो मैं बहुत स्वस्थतापूर्वक अपने dedications के साथ मेरे देश की सेवा में लगा रहता हूँ।

लेक्स फ्रिडमैन - हाँ, आप जिस चीज़ की बात कर रहे हैं, वह मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि मैं अच्छी पत्रकारिता की प्रशंसा करता हूँ। और दुर्भाग्य से, आधुनिक समय में बहुत से पत्रकार फटाफट सुर्खियों की तलाश में रहते हैं, आरोप लगाते हैं क्योंकि ऐसा करने से उन्हें फायदा पहुँचता है। क्योंकि उन्हें सुर्खियाँ चाहिए, सस्ती लोकप्रियता चाहिए। मुझे लगता है कि महान पत्रकार बनने के लिए इच्छा और भूख होनी चाहिए। और उसके लिए गहरी समझ की आवश्यकता होती है। और इससे मुझे दुख होता है कि कितनी बार ऐसा हुआ है। हमारी बात करने का भी यही कारण है। मुझे नहीं लगता कि मैं इसमें बहुत अच्छा हूँ, लेकिन मैं इन्हीं कारणों से आपसे बात करना चाहता था। लोग ज्यादा कोशिश भी नहीं करते और, ज्यादा रिसर्च भी नहीं करते। मुझे नहीं पता कि मैंने कितनी किताबें पढ़ी हैं। मैंने सिर्फ अनुभव करने, सिर्फ समझने की कोशिश की तैयारी में बहुत कुछ पढ़ा है। इसमें बहुत तैयारी, बहुत काम लगता है। और मैं चाहूँगा कि बड़े पत्रकार ऐसा ही करें। इसी आधार से आप आलोचना कर सकते हैं, गहराई से जांच कर सकते हैं आप वास्तव में, सत्ता में बैठे लोगों की स्थिति कैसी है, इसकी जटिलता की जांच कर सकते हैं। उनकी ताकत, उनकी कमज़ोरिया, और उनकी गलतियाँ भी जो उन्होंने की हैं, लेकिन इसके लिए बहुत ज़्यादा तैयारी की ज़रूरत है। काश ऐसे महान पत्रकार इस तरह के और काम करें।

प्रधानमंत्री - देखिए, मैं बताता हूँ, well directed और specific criticism वास्तव में policy making में, आपको मदद करता है। Clear cut policy vision इससे निकलता है। और मैं विशेष रूप से ऐसी चीज़ों पर ध्यान भी देता हूँ कि ऐसी जो criticism होता है, उसका मैं स्वागत करता हूँ। देखिए, आपने जो कहा, journalism headline, देखिए अगर headline का मोह हो, और शायद कोई शब्दों का खेल खेले, मैं उसको बहुत बुरा नहीं मानता हूं। एजेंडा लेकर के जो काम किया जाता है, सत्य को नकार दिया जाता है, तब वो आने वाले दशकों तक बर्बादी करता है। किसी को अच्छे शब्दों का मोह हो जाए, कोई अपने रिडर्स हैं या दर्शक हैं, उनको अच्छा लगे, चलिए, तो उतना सा हम Compromise कर लें। लेकिन इरादा ग़लत हो, एजेंडा तय करके चीज़ों को सेट करना हो, तो वह चिंता का विषय होता है।

लेक्स फ्रिडमैन - और उसमें, सत्य पीड़ित होता है, ऐसा मेरा मानना है।

प्रधानमंत्री - मुझे याद है, मेरा एक बार, लंदन में मेरा एक भाषण हुआ था। वहाँ का एक अखबार है लंदन में गुजराती अखबार है, तो उनका एक कार्यक्रम था, उसमें मुझे… तो मैंने ऐसे ही अपने भाषण में कहा, मैंने कहा, देखिए, क्योंकि वह पत्रकार थे, पत्रकार का कार्यक्रम था, तो मैंने कहा, देखिए भाई, पत्रकारिता कैसी होनी चाहिए? मक्खी जैसी होनी चाहिए कि मधुमक्खी जैसी होनी चाहिए? तो मैंने कहा कि मक्खी जो होती है, वह गंद पर बैठती है और गंद ही उठाकर के फैलाती है। मधुमक्खी है, जो फूल पर बैठती है और मधु लेकर के मधु प्रसारित करती है। लेकिन, कोई ग़लत करे, तो मधुमक्खी ऐसा डंक देती है, कि तीन दिन तक आप अपना चेहरा किसी को दिखा नहीं सकते हो। तो मैंने कहा अब मैं… मेरे इस आधी बात को उठा लिया किसी ने और उसका इतना विवाद खड़ा कर दिया। तो मैं बहुत ईमानदारी से किसी के प्रति नकारात्मकता के विचार में नहीं कह रहा था, ऊपर से मैं तो ताकत बता रहा था कि मधुमक्खी की ताकत यह है, कि वह ऐसा एक छोटा सा भी डंक लगा दे, तो आप तीन दिन तक मुँह नहीं दिखा सकते हो। मुँह छुपा करके रहना पड़ेगा। यह ताकत होनी चाहिए पत्रकारिता की। लेकिन, कुछ लोगों को मक्खी वाला रास्ता अच्छा लगता है।

लेक्स फ्रिडमैन - अब मेरी जिंदगी का नया लक्ष्य है, मधुमक्खी की तरह बनना। आपने लोकतंत्र का ज़िक्र किया, तो… और 2002 तक आपको सरकार के बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं थी। लेकिन 2002 से लेकर आज तक, मेरी गिनती में आपने आठ चुनाव जीते हैं। तो, भारत में कई चुनावों में 80 करोड़ से भी ज़्यादा लोग मतदान करते हैं। इतने बड़े चुनाव जीतने के लिए और 1.4 अरब लोगों के देश में चुनाव जीतने के लिए क्या करना पड़ता है, जहाँ आपको दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में उन लोगों का प्रतिनिधित्व करने का अवसर मिलता है?

प्रधानमंत्री - ऐसा है कि मैं जब से राजनीति में आया हूँ। मैं बहुत देर से राजनीति में आया और मैं पहले तो संगठन का काम करता था, तो मेरे पास संगठन का काम रहता था, तो election management का भी काम रहता था। तो मेरा समय उसी में जाता था और मैं पिछले 24 साल से Head of the Government के रूप में देशवासियों ने और गुजरात के लोगों ने मुझे काम करने का अवसर दिया, तो एक समर्पित भाव से जनता-जनार्दन को जो मैं ईश्वर मानता हूँ। उसने मुझे जो दायित्व दिया है। इसको पूरा करने का मैं प्रयास कर रहा हूँ। मैं कभी भी उनके विश्वास को टूटने नहीं देता हूं और वो भी मैं जैसा हूं, वो देखते हैं। मेरी सरकार की जो नीतियां रहती हैं, वो जैसे मैं अभी कह रहा हूं, सेचुरेशन की नीति, जो भी योजना होगी, शत-प्रतिशत लागू करना चाहिए। उसके जो लाभार्थी हैं, उसमें कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। न जाति, न पंथ, न आस्‍था, न पैसा, न Politics, कुछ नहीं, हमने जो सबके लिए, सबको करना चाहिए और उसके कारण अगर किसी का काम नहीं भी हुआ है, तो उसको ये नहीं लगता है कि भई मेरे से गलत कारणों से रोका गया है, उसको लगता है कि चलिए अभी नहीं हुआ, कल हो जाएगा। तो विश्वास पैदा होता है और एक तो मेरे गवर्नेंस के मॉडल में विश्वास बहुत बड़ी ताकत है। दूसरा, मैं चुनाव Centric गवर्नेंस नहीं चलाता हूं, मैं People Centric गवर्नेंस चलाता हूं। मेरे देश के लोगों का भला कैसे हो? मेरे देश के लिए अच्छा क्या हो? और मैं तो आध्यात्मिक यात्रा के लिए निकला था। तो अब, मैंने देश को ही देव मान लिया है। और मैंने जनता-जनार्दन को ही ईश्‍वर का रूप मान लिया है। तो एक पुजारी की तरह, मैं इस जनता-जनार्दन की सेवा करता रहूं, ये ही मेरा भाव रहा है। तो दूसरा मैं जनता से कटता नहीं हूं, उनके बीच में रहता हूं, उनके जैसा रहता हूं और मैं पब्लिक्ली कहता हूं कि आप कि अगर आप 11 घंटे काम करोगे, तो मैं 12 घंटे काम करूँगा। और लोग देखते भी हैं, तो उनको विश्वास है। दूसरा, मेरा अपना कोई इंटरेस्ट नहीं है, न मेरे कोई मेरे अगल-बगल में कोई मेरा रिश्‍तेदार दिखता है, मेरा कोई पहचान वाला दिखता है, तो सामान्य मानवी इन चीजों को पसंद करता है और शायद ऐसे कई कारण होंगे। दूसरा मैं जिस पार्टी से हूं, वहां लाखों समर्पित कार्यकर्ता हैं, सिर्फ और सिर्फ भारत माता का भला हो, देशवासियों का भला हो, इसके लिए जीने वाले जिन्‍होंने राजनीति में कुछ नहीं पाया है, न कुछ बने हैं, न कभी सत्ता के इस गलियारे में कभी आए हैं। ऐसे लाखों कार्यकर्ता हैं, जो दिन रात काम करते हैं। दुनिया की सबसे बड़ी पॉलिटिकल पार्टी है मेरी, उस पार्टी का मैं मेंबर हूं, मुझे गर्व है। और आयु भी मेरी पार्टी की बहुत छोटी है, फिर भी… तो लाखों कार्यकर्ताओं का परिश्रम है, उन कार्यकर्ताओं को लोग देखते हैं कि भई बिना स्वार्थ ये इतनी मेहनत करता है, उसके कारण भारतीय जनता पार्टी के प्रति लोगों का विश्वास बढ़ता है और उसके कारण चुनाव जीतते हैं। मैंने तो गिना नहीं, कितने चुनाव जीता लेकिन जनता के आशीर्वाद लगातार हमें मिलते रहे हैं।

लेक्स फ्रिडमैन - मैं अविश्वसनीय चुनाव प्रणाली और तंत्र के बारे में आपकी राय क्या है सोच रहा था। भारत में जैसे चुनाव होते हैं, उसने मुझे हैरान कर दिया। तो, बहुत सारे रोचक किस्से सामने आते हैं। उदाहरण के लिए कोई भी मतदाता मतदान केंद्र से दो किलोमीटर से अधिक दूर नहीं होना चाहिए। इसकी वजह से, भारत के दूरदराज के क्षेत्रों में, वोटिंग मशीन ले जाने की, कई कहानियां हैं। यह वास्तव में अविश्वसनीय है। बस हर एक मतदाता मायने रखता है। और 60 करोड़ से ज़्यादा लोगों के मतदान कराने का तंत्र, क्या कोई ऐसा किस्सा है जिसके बारे में आप बात कर सकते हैं, जो आपको विशेष रूप से प्रभावशाली लगे या शायद आप आम तौर पर इतने बड़े चुनाव कराने के लिए तंत्र के बारे में बात कर सकते हैं, वह भी इतने बड़े लोकतंत्र में?

प्रधानमंत्री - एक तो मैं आपका बहुत आभारी हूँ कि आपने बड़ा ही अच्छा सवाल पूछा है जो दुनिया में लोकतंत्र में विश्वास रखने वाले लोगों को जरूर इस जवाब को सुनना चाहिए। कभी-कभी चुनाव हार-जीत की चर्चा होती है, लेकिन कितने बड़े स्केल पर क्या काम होता है, इसकी चर्चा नहीं होती है। अब देखिए, जैसे 2024 का चुनाव, अभी जो लोकसभा का हुआ, 980 मिलियन रजिस्टर्ड वोटर्स और हर एक का फोटो है, हर एक का पूरा बायोडाटा है। इतना बड़ा डेटा और ये संख्या उत्तर अमेरिका की आबादी से दो गुने से भी अधिक है। ये पूरे यूरोपीय संघ की कुल आबादी से ज्यादा है। 980 मिलियन रजिस्टर्ड वोटर्स में से 646 मिलियन लोग, अपने घर से बाहर निकलकर के और मई महीने में मेरे देश में भयंकर गर्मी होती है, कुछ जगह पर 40 डिग्री टेम्‍परेचर होता है, उन्‍होंने वोट डाला। और ये वोट डालने वालों की संख्‍या अमेरिका की कुल आबादी से डबल है। 1 मिलियन से अधिक पोलिंग बूथ जहां पर वोटिंग हुई, 1 मिलियन से ज्‍यादा पोलिंग बूथ, इसमें कितने लोग लगते हैं। मेरे देश में 2500 से ज्यादा Political Parties हैं, ये आंकड़ा सुनकर दुनिया के देश के लोगों के लिए आश्चर्य करते हैं कि ऐसा देश जहां 2500 Political Registered Political पार्टियां हैं। मेरे देश में 900 से ज्यादा 24×7 टीवी चैनल्स हैं, 5 हजार से ज्‍यादा डेली अखबार निकलते हैं। ये जो डेमोक्रेसी के साथ जुड़े हुए कुछ न कुछ हो और हमारे यहां कोई भी गरीब से गरीब होगा गांव का व्यक्ति, वो Technology को बहुत तेजी से adopt करता है। ईवीएम मशीन से वोट देता है, दुनिया के कई देशों में चुनाव के रिजल्ट महीने-महीने तक नहीं आते नहीं हैं, मेरे यहां एक दिन में रिजल्ट आ जाता है, इतने लोगों का काउंटिंग हो जाता है और आपने सही कहा कि कुछ दूर दराज क्षेत्रों में पोलिंग स्टेशन होते हैं, हेलीकॉप्टर से हमें भेजना पड़ता है। अरुणाचल प्रदेश में एक पोलिंग बूथ, वो शायद दुनिया का सबसे टॉप पोलिंग बूथ होगा। मेरा यहाँ गुजरात में गिर फॉरेस्ट में एक पोलिंग बूथ था, जहां एक ही वोटर था, उसके लिए एक पोलिंग बूथ था, गिर फॉरेस्ट में जहां गिर लैंड्स हैं। तो हमारे यहां कई प्रकार के यानी कोशिश रहती है कि लोकतंत्र के काम के लिए, डेमोक्रेसी को strengthen करने के लिए कितने ही प्रकार से कोशिश किया जाए, और हम मतदान के लिए पूरी व्यवस्था हमारी है और इसलिए मैं तो कहता हूं कि दुनिया में भारत के एक निष्पक्ष स्वतंत्र Election Commission ही चुनाव करवाता है, सारे निर्णय वो करता है। ये अपने आप में कितनी बड़ी ब्राइट स्टोरी है कि दुनिया की बड़ी-बड़ी Universities ने उसका केस स्टडी करना चाहिए। इसके मैनेजमेंट का केस स्‍टडी करना चाहिए। ये मोटिवेशन का, इतने लोग वोट करते हैं, कितना बड़ा Politically Alertness होगा। इन सारी बातों का एक बहुत बड़ा केस स्‍टडी करके दुनिया की नई पीढ़ी के सामने रखना चाहिए।

लेक्स फ्रिडमैन - मुझे लोकतंत्र से प्यार है। इन्हीं कुछ वजहों से मुझे अमेरिका से प्यार है। लेकिन जैसे भारत में लोकतंत्र काम करता है, इससे ज़्यादा खूबसूरत कुछ भी नहीं है। जैसा कि आपने कहा, 90 करोड़ लोग मतदान करने के लिए पंजीकृत हैं! यह वास्तव में एक केस स्टडी है। यह देखना खूबसूरत है कि इतने सारे लोग अपनी मर्ज़ी से उत्साह से, एक साथ आते हैं, किसी ऐसे व्यक्ति के लिए वोट डालते हैं, जो उनका प्रतिनिधित्व करेगा, जैसे वे इसमें काफी उत्साह से भाग लेते हैं। किसी व्यक्ति के लिए यह महसूस करना वाकई महत्वपूर्ण है कि उनकी आवाज़ें सुनी जाएगी। यह खूबसूरत है। जिस बात से बात निकली है, आपको बहुत से लोग प्यार करते हैं। आप दुनिया के सबसे शक्तिशाली इंसानों में से एक हैं। क्या आप कभी इस बारे में सोचते हैं कि इतनी शक्ति का आप पर अलग प्रभाव हो सकता है? खासकर सत्ता के इतने सालों में?

प्रधानमंत्री - एक तो शायद मेरे लिए शब्द ही मेरे मुझे मेरे जीवन से फिट नहीं बैठता है। मैं शक्तिशाली हूं ऐसा दावा मैं नहीं कर सकता हूं और न ही, क्योंकि मैं एक सेवक हूँ। और मैं तो मेरा पहचान भी प्रधान सेवक के रूप में करता हूं। और सेवा के मंत्र को लेकर के मैं निकला हूं। जहां तक की Power की आपने बात कही, I have never bothered about Power. I never came to politics to pursue power games. और मैं तो Powerful के बजाए कहूंगा मैं Pro Workful होने का सामर्थ्य रखूं। Powerful नहीं हूं, Pro Workful हूं। और मेरा Purpose हमेशा से एक लोगों की सेवा करने का रहा है, उनके जीवन में कुछ भी Positive योगदान कर सकता हूं, तो करने का रहा है ये मेरा…

लेक्स फ्रिडमैन - जैसा कि आपने ज़िक्र किया, आप बहुत काम करते हैं। आप जी जान से काम करते हैं। क्या आप कभी अकेलापन महसूस करते हैं?

प्रधानमंत्री - देखिए, मैं अकेलापन कभी महसूस नहीं करता हूं। इसलिए क्योंकि मैं हमेशा मानता हूं 1+1 की थ्योरी को और जो 1+1 की मेरी थ्‍योरी है वो मेरा सात्विक समर्थन करती है और ये 1+1 कोई भी पूछेगा 1+1 कौन है, तो मैं कहता हूं, पहला 1 जो है वो मोदी है और +1 है वो ईश्वर है। मैं अकेला कभी नहीं होता हूं, वो हमेशा मेरे साथ होता है। तो मैं हमेशा उस भाव से और मैंने जैसा कहा मैंने विवेकानंद जी के सिद्धांतों को जो जीया था कि नर सेवा ही नारायण सेवा। मेरे लिए देश ही देव है, नर ही नारायण है। तो जन सेवा ही प्रभु सेवा, इस भाव को लेकर मैं चला हूं और इसलिए मुझे उस प्रकार से अकेलापन वगैरह इसका मैनेज करने का कोई प्रसंग आया नहीं। अब जैसे कोविड के समय सारे बंधन लगे हुए थे, ट्रैवलिंग बंद था। तो समय का कैसे उपयोग करना, लॉकडाउन था। तो मैंने क्या किया, गवर्नेंस को वीडियो कॉन्फ्रेंस के द्वारा मॉडल डेवलप कर दिया और Work From Home and Meeting Virtually करना शुरू कर दिया। मैं अपने आप को Busy रखता था। दूसरा, मैंने तय किया कि जिन लोगों के साथ मैंने जीवन भर काम करता रहा हूं, पूरे देश में मेरे कार्यकर्ता हैं, उसमें जो 70+ के लोग हैं, उनको याद करकर के कोविड के समय में छोटे से छोटे कार्यकर्ताओं को भी, यानी फैमिली बैकग्राउंड बहुत सामान्‍य होगा ऐसे भी… 70+ हैं उनको मैं फोन करता था और उनको मैं कोविड के समय में उनकी तबीयत ठीक है क्या, उनके परिवार की तबीयत ठीक है क्या, उनके आस-पास के इलाके में व्यवस्था कैसी चल रही है, ये सारी बाते में उनके साथ कर लेता था। तो मैं भी एक प्रकार से उनके साथ जुड़ जाता था। पुरानी यादें ताज़ा हो जाती थी। उनको भी लगता था अरे ये वहां पहुंच गए, ये इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी हैं, लेकिन आज बीमारी के समय मेरे पास फोन करते हैं। और मैं डेली एवरेज 30-40 फ़ोन करता था, डेली और पूरे कोविड काल के कार्यकाल के दरमियान करता रहा। तो मुझे खुद को भी पुराने-पुराने लोगों से बातें करने का आनंद मिलता था। तो यह अकेलापन नहीं था, मेरी व्यस्तता के तरीके मैं ढूंढता रहता हूं। और मैं खुद से बातचीत करने के लिए बहुत अभ्यस्त हूं। मेरी हिमालयन लाइफ मुझे बड़ी मदद कर रहा है।

लेक्स फ्रिडमैन - मैंने कई लोगों से सुना है कि जितने लोगों को वे जानते हैं, उनमें आप सबसे ज़्यादा मेहनती हैं। इसके पीछे आपकी क्या सोच है? आप हर दिन कई घंटे काम करते हैं। क्या आप कभी थकते नहीं हैं? इन सब चीजों के दौरान आपकी ताकत और धैर्य का स्रोत क्या है?

प्रधानमंत्री - देखिए एक तो मैं यह नहीं मानता हूँ कि मैं ही काम करता हूँ। मैं मेरे आसपास लोगों को देखता हूँ और मैं हमेशा से सोचता हूँ, यह मेरे से ज़्यादा काम करते हैं। मैं जब किसान का स्मरण करता हूँ, मुझे लगता है किसान कितनी मेहनत करता है। खुले आसमान के नीचे कितना पसीना बहाता है। मैं मेरे देश के जवान को देखता हूँ, तो मुझे विचार आता है कि अरे, कितने घंटे तक कोई बर्फ में, कोई रेगिस्तान में, कोई पानी में, दिन-रात काम कर रहा है। मैं किसी मजदूर को देखता हूँ, तो मुझे लगता है, यह कितनी मेहनत कर रहा है। यानी मैं हमेशा सोचता हूँ कि हर परिवार में मेरी माताएं-बहनें, कितनी मेहनत करती हैं परिवार के सुख के लिए। सुबह सबसे पहले उठ जाए, रात को सबसे बाद में सो जाए और परिवार के हर व्यक्ति की केयर करें, सामाजिक रिश्ते-नातों को भी संभाल लें। तो जैसे मैं सोचता हूँ, तो मुझे लगता है, अरे, लोग कितना काम करते हैं? मैं कैसे सो सकता हूँ? मैं कैसे आराम कर सकता हूँ? तो मुझे स्वाभाविक मोटिवेशन, मेरी आँखों के सामने जो चीज़ें हैं, वही मुझे मोटिवेट करती रहती हैं। दूसरा, मेरी जिम्मेदारी मुझे दौड़ाती हैं। जो जिम्मेदारी देशवासियों ने मुझे दी है, मुझे हमेशा लगता है कि मैं पद पर मौज-मस्ती करने के लिए नहीं आया हूँ। मेरी तरफ से मैं पूरा प्रयास करूँगा। हो सकता है मैं दो काम न कर पाऊँ। लेकिन मेरे प्रयास में कमी नहीं रहेगी। मेरे परिश्रम में कमी नहीं रहेगी। और मैं जब 2014 में चुनाव लड़ रहा था, तब मैंने पहले जब गुजरात में था, तब भी मैंने लोगों के सामने रखा था और यहाँ आया तो यहाँ भी कहा था, मैंने कहा, मैं देशवासियों से वादा करता हूँ कि मैं कभी भी परिश्रम करने में पीछे नहीं रहूँगा। दूसरा, मैं कहता था कि मैं बद इरादे से कोई काम नहीं करूँगा। और तीसरा मैं कहता था, मैं अपने लिए मैं कुछ नहीं करूँगा। आज मुझे चौबीस साल हो गए। इतने लंबे कालखंड से मैं Head of the Government के रूप में देशवासियों ने मुझे काम दिया है। मेरे इन तीन कसौटियों पर मैंने अपने आप को तोल करके रखा हुआ है और मैं उसको करता हूँ। तो मुझे मेरा एक Inspiration, 1.4 बिलियन लोगों की सेवा, उनकी Aspiration, उनकी आवश्यकता, जितनी मेहनत कर सकूँ, जितना कर सकूं, मैं करने के मूड में हूँ। आज भी मेरी ऊर्जा वही है जी।

लेक्स फ्रिडमैन - एक इंजीनियर और गणित प्रेमी होने के नाते, मुझे पूछना होगा, श्रीनिवास रामानुजन एक सदी पहले के भारतीय गणितज्ञ थे। उन्हें इतिहास के सबसे महानतम गणितज्ञों में से एक माना जाता है। अपने आप सब सीखा, गरीबी में पले-बढ़े। आपने अक्सर उनके बारे में बात की है। आपको उनसे क्या प्रेरणा मिलती है?

प्रधानमंत्री - देखिए, मैं देख रहा हूं मैं उनका बहुत आदर करता हूं और मेरे देश में हर कोई उनको आदर करता हैं क्योंकि, Science और Spirituality के बीच बहुत बड़ा कनेक्‍ट है, ऐसा मेरा मत है। बहुत से Scientific Advanced Minds, अगर थोड़ा भी देखें, तो वो Spiritually Advanced होते हैं, उससे कट-ऑफ नहीं होते हैं। श्रीनिवास रामानुजन कहते थे कि उन्हें Mathematical Ideas, उस देवी से आते हैं, जिसकी वो पूजा करते थे। यानी Ideas तपस्या से आते हैं। और तपस्या सिर्फ़ Hard Work नहीं है। एक तरह से किसी एक काम के लिए खुद को devote कर देना, खुद को खपा देना, स्वयं ही जैसे वह कार्य का रूप बन जाए। और हम knowledge के जितने ज़्यादा sources के लिए हम open रहेंगे, हमारे पास उतने ही ज़्यादा ideas आएंगे। हमें information और knowledge के बीच में फर्क करना भी समझना चाहिए। कुछ लोग information को ही knowledge मानते हैं। और information का बहुत बड़ा पूंज लेकर घूमते रहते हैं। मैं नहीं मानता कि information का मतलब knowledge करना है। knowledge एक विधा है, जो एक Processing के बाद धीरे-धीरे evolve होती है। और उसको हमने उस फर्क को समझ कर के इसको Handle करना चाहिए।

लेक्स फ्रिडमैन - आपकी छवि एक फैसला लेने वाले नेता की है। तो क्या आप मुझे विचारों के इस विषय पर कुछ बता सकते हैं? आप फ़ैसले कैसे लेते हैं? आपकी प्रक्रिया क्या है? जैसे जब कुछ बड़ा दांव पर लगा हुआ हो, तब उसके लिए फैसले लेना, जहां कोई स्पष्ट उदाहरण न हो, बहुत अनिश्चितता हो, संतुलन बनाना हो, तो आप निर्णय कैसे लेते हैं?

प्रधानमंत्री - बहुत सी बातें हैं इसके पीछे। एक, शायद ही हिंदुस्तान में मैं एक ऐसा Politician हूँ, जो मेरे देश के 85 to 90 percent district में रात्रि मुकाम कर चुका हूँ। मेरे पूर्व जीवन की मैं बात करता हूँ, मैं भ्रमण करता था। उससे जो मैंने पाया है, वो जो सीखा है, तो मेरे पास तो एक बहुत बड़ा चीजों को grassroot level पर स्थितियों के विषय में मेरी फर्स्ट hand information है। किसी से पूछा हुआ, जाना हुआ, ऐसे किताबों के द्वारा नहीं पाया है। दूसरा, गवर्नेंस की दृष्टि से देखें तो मेरे पास कोई प्रकार का baggage नहीं है कि जिस baggage को लेकर मुझे दबे रहना है, उसके आधार पर मेरा चलना है, वह नहीं है। तीसरा, निर्णय करने में मेरा एक तराजू है, मेरा देश सबसे पहले। मैं जो कर रहा हूँ, मेरे देश का नुकसान तो नहीं हो रहा है, वो? दूसरा हमारे यहाँ महात्मा गांधी कहते थे कि भाई तुम्हें कोई निर्णय करते समय कोई उलझन हो, तो तुम किसी गरीब का चेहरा देख लो, उनको याद करो। और सोचो, यह उसके काम आएगा क्या? तो आपका निर्णय सही होगा। वह मंत्र मेरे बहुत काम आता है कि भाई आप सामान्य मानवीय को याद करो कि भई मैं जो कर रहा हूँ उसको, दूसरी प्रक्रिया जहां तक है कि मैं बहुत Well Connected हूँ। मेरी सरकार में मेरे अफसरों को मेरे प्रति ईर्ष्या भी होती होगी और उनको तकलीफ़ भी होती होगी। और वह है, मेरे Information Channels बहुत हैं और बहुत Live हैं और इसलिए मुझे चीजों की जानकारियां, बहुत सारी, मिल जाती हैं, बहुत जगह से, तो मुझे कोई आकर के ब्रीफ़ करे, वही अकेली Information नहीं होती है। मेरे पास एक दूसरे पहलू भी होते हैं। तो मैं… दूसरा, मैं एक, मेरे में एक विद्यार्थी भाव है। मान लीजिए कोई चीज नहीं आई। मुझे किसी अफसर ने कुछ बताया। तो मैं विद्यार्थी भाव से उसको पूछता हूँ, भाई, अच्छा मुझे बताओ, भाई कैसे है? फिर क्या है? फिर कैसे है? और कभी मेरे पास दूसरी Information है, तो मैं Devil Advocate बन करके उल्टे प्रश्न पूछता हूँ। उसको बहुत बारीकी से अनेक प्रकार से मंथन करना पड़ता है। तो ऐसा करने से अमृत निकले, इस प्रकार की मेरी कोशिश रहती है, मैं बताता हूं। दूसरा, मैं जब निर्णय लेता हूँ, मुझे लगता है कि हाँ, यह करने जैसा है, तो फिर मैं एक सहमना जो लोग हैं मेरे विचारों को, उनको share करके हल्‍के-फुल्‍के शब्दों में मैं डालता हूँ। उनके भी reaction देखता हूँ कि इस निर्णय का क्या होगा। और जब मुझे फिर जब conviction बन जाए कि हाँ, यह मैं सही कर रहा हूँ, तो एक पूरी Process मेरी और यह जो मैं इतना बोलता हूँ, इतना भी टाइम नहीं लगता है। मेरी स्‍पीड बहुत है। अब जैसे मैं एक उदाहरण दूँ, कोरोना के समय कैसे निर्णय लिए? अब मुझे नोबेल प्राइज विनर मिलते हैं, इकोनॉमी में भांति-भांति के मुझे उदाहरण देते थे। फलाने देश ने यह कर दिया, ढिकाने ने यह किया, तुम भी करो-तुम भी करो। बड़े-बड़े इकोनॉमिस्ट आकर के मेरा सिर खाते थे। Political पार्टियाँ मुझ पर pressure करती थीं, इतना पैसा दे दो, उतना पैसा। मैं कुछ करता नहीं था। मैं सोचता था, मैं क्या करूंगा? और फिर मैंने मेरी अपनी मेरी देश की परिस्थिति के अनुसार वो निर्णय किए। मैं गरीब को भूखा नहीं सोने दूंगा। मैं रोजमर्रा की आवश्यकता के लिए सामाजिक तनाव पैदा नहीं होने दूंगा। ऐसे कुछ विचार मेरे मन में भाव तय हुए। सब दुनिया तो लॉकडाउन में पड़ी थी। इकोनॉमी पूरी दुनिया की बैठ चुकी थी। दुनिया मुझ पर प्रेशर करती थी कि खजाना खाली करो, नोट छापो और नोट देते रहो। इकोनॉमी कैसे वो? मैं उस रास्ते पर जाना नहीं चाहता था। लेकिन अनुभव यह कहता है कि मैं जिस रास्ते पर चला, Expert के Opinion मैंने सुने थे, समझने का प्रयास भी किया था, विरोध भी नहीं किया था। लेकिन मैंने मेरे देश की परिस्थिति, मेरे अपने अनुभव, उन सबको मिलाकर के, मिश्रण करके जिन चीज़ों को विकसित किया और जो व्यवस्थाएँ खड़ी कीं उसके कारण, दुनिया ने जो inflation की मुसीबत झेली Immediate After Covid, मेरे देश ने नहीं झेली। मेरा देश आज लगातार दुनिया की बड़ी इकोनॉमी में तेज़ी गति से प्रगति करने वाला है। उसका मूल कारण, उस संकट के समय, बड़े धैर्य के साथ, कोई दुनिया भर की थ्योरी को लागू करने के मोह में पड़े बिना, अखबार वालों को अच्छा लगेगा या बुरा लगेगा, अच्छा छपेगा या अच्छा नहीं छपेगा, आलोचना होगी, इन सारी चीजों से परे रहकर के मैंने बेसिक फंडामेंटल पर फोकस करते हुए काम किया और मैं सफलता के साथ आगे बढ़ा। तो मेरी इकोनॉमी को भी लाभ हुआ। तो मेरी कोशिश यही रही कि भई मैं इन्हीं चीजों को लेकर के चलूँ। दूसरा, मेरी Risk Taking Capacity बहुत है। मैं यह नहीं सोचता हूं मेरा क्या नुकसान होगा। अगर मेरे देश के लिए सही है, मेरे देश के लोगों के लिए सही है, तो मैं Risk लेने के लिए तैयार रहता हूँ। और दूसरा, मैं ओनरशिप लेता हूँ। मानों कभी कुछ ऐसा भी हो जाए गलत, तो किसी के सर पर डालने नहीं देता हूँ। मैं खुद ज़िम्मेदारी लेता हूँ कि Yes, मैं खुद खड़ा रहता हूँ। और जब आप ओनरशिप लेते हैं न, तो आपके साथी भी आपके प्रति समर्पित भाव से जुड़ जाते हैं। उनको लगता है कि यह आदमी हमें नहीं डूबो देगा, हमें मरवा नहीं देगा। यह खुद खड़ा रहेगा हमारे साथ क्योंकि मैं ईमानदारी से निर्णय कर रहा हूँ। मेरे लिए कुछ नहीं कर रहा हूँ। देशवासियों से कहा, गलती हो सकती है। मैंने देशवासियों को पहले ही कहा था कि भई मैं इंसान हूँ, मेरे से गलती हो सकती है। बद इरादे से काम नहीं करूँगा। तो वो बातें सब तुरंत वो देखते हैं कि यार, मोदी ने 2013 में यह कहा था, अब यह हो गया है। लेकिन उसका इरादा ग़लत नहीं होगा। वह कुछ अच्छा करना चाहता होगा, नहीं हुआ होगा। तो समाज मैं जैसा हूँ, वैसा ही देखते हैं, स्वीकार करता हैं।

लेक्स फ्रिडमैन- आपने कुछ हफ़्ते पहले फ़्रांस में एआई शिखर सम्मेलन में एआई पर एक बेहतरीन भाषण दिया। उसमें आपने भारत में एआई इंजीनियरों की बड़ी संख्या के बारे में बात की। मुझे लगता है कि शायद यह दुनिया में प्रतिभाशाली इंजीनियरों की सबसे बड़ी संख्या में से एक है। तो भारत एआई के एक क्षेत्र में वैश्विक नेतृत्व कैसे हासिल कर सकता है? वर्तमान में यह अमेरिका से पीछे है। भारत को एआई में दुनिया से आगे निकलने और फिर सबसे अच्छा बनने के लिए क्या करना होगा?

प्रधानमंत्री - एक बात आप शायद ज़्यादा लगेगी और हो सकता है किसी को बुरी भी लगे। लेकिन जब आपने पूछा है, तो अभी मेरे मन से निकल रहा है, मैं कहना चाहता हूँ। दुनिया एआई के लिए कुछ भी कर ले, भारत के बिना एआई अधूरा है। बहुत ज़िम्मेदार स्‍टेटमेंट मैं कर रहा हूँ। देखिए, एआई के संबंध में आपके अपने अनुभव क्या हैं? मैं खुद, आपने मेरा भाषण तो सुना पेरिस वाला और उसको by n large… क्या कोई अकेला एआई डेवलप कर सकता है क्या? आपका खुद का अनुभव क्या है?

लेक्स फ्रिडमैन - असल में आपने अपने भाषण में एआई के सकारात्मक प्रभाव और एआई की सीमाओं का एक शानदार उदाहरण दिया। मुझे लगता है कि आपने जो उदाहरण दिया वह यह है कि जब आप इसे एक ऐसे व्यक्ति की फोटो बनाने के लिए कहते हैं जो अपने..

प्रधानमंत्री - लेफ्ट हेंड!

लेक्स फ्रिडमैन - लेफ्ट हेंड से, तो ये हमेशा एक ऐसे व्यक्ति की फोटो बनाता है, जो राइट हेंड से लिखता है। तो इस तरह पश्चिमी देशों द्वारा एक एआई सिस्टम बनाना, जिसमें भारत उस प्रक्रिया का, हिस्सा नहीं है, जिसमें यह हमेशा दाएँ हाथ वाले व्यक्ति की फोटो बनाएगा। तो ये ऐतिहासिक रूप से दुनिया का एक ज़रूरी हिस्सा है और विशेष रूप से 21वीं सदी में।

प्रधानमंत्री - मुझे लगता है देखिए, एआई डेवलपमेंट एक collaboration है। यहाँ हर कोई एक दूसरे को अपने experience और learnings से support कर सकता है। और India सिर्फ़ इसका मॉडल नहीं बना रहा है, बल्कि specific use cases के हिसाब से, एआई based application को भी develop कर रहा है। जीपीयू access को society के सारे sections के पास पहुँचाने के लिए, हमारे पास एक Unique Marketplace based Model already मौजूद है। Mindset shift is Happening in India Historical Factors, सरकारी कार्यशैली या अच्छे Support System की कमी के कारण, यह सही है कि औरों की नजर में देरी लगती होगी। मुझे जब 5जी आया। दुनिया को लगता था कि हम 5जी में काफ़ी पीछे हैं। लेकिन एक बार हमने शुरू किया, तो हमने, हम आज दुनिया में सबसे तेज़ गति से 5जी पहुँचाने वाले देश बन गए हैं। मुझे एक अमेरिका की एक कंपनी के मालिक आए थे। वे अपना अनुभव share कर रहे थे। वे कह रहे थे कि मैं अमेरिका में एक Advertisement दूँ, इंजीनियर की ज़रूरत है। तो मेरे पास जो इंजीनियर आएंगे, वह ज़्यादा से ज़्यादा एक कमरा भर जाए, इतने आते हैं। और मैं हिंदुस्तान में Advertisement दूँ, तो एक फुटबॉल मैदान भी छोटा पड़ जाए, इतने इंजीनियर आते हैं। यानी इतनी बड़ी मात्रा में Talent Pool भारत के पास है। यह इसकी सबसे बड़ी ताकत है और इंटेलिजेंस आर्टिफिशियल भी रियल इंटेलिजेंस के सहारे ही जीती है। रियल इंटेलिजेंस के बिना आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का भविष्य नहीं हो सकता है। और वो रियल इंटेलिजेंस जो है, वो भारत के Youth Talent Pool में है। और मैं समझता हूँ कि इसकी अपनी एक बहुत बड़ी ताकत है।

लेक्स फ्रिडमैन - लेकिन, अगर आप देखें, तो कई टॉप टैक लीडर, सबसे पहले, टैक टैलेंट, लेकिन अमेरिका में टैक लीडर भारतीय मूल के हैं। सुंदर पिचाई, सत्या नडेला, अरविंद श्रीनिवास, आप उनमें से कुछ से मिले हैं, उनकी भारतीय पृष्ठभूमि की कौन सी बात है, जो उन्हें इतना सफल होने में सक्षम बनाती है?

प्रधानमंत्री - देखिए, भारत के जो संस्कार हैं वो ऐसे हैं कि जन्मभूमि और कर्मभूमि, दोनों का सम्मान उसमें कोई भेद नहीं होना चाहिए। जितना जन्मभूमि के प्रति समर्पण भाव हो, तो उतना ही कर्मभूमि के प्रति समर्पण भाव होना चाहिए। और आपका जो बेस्‍ट दे सकते हो, वह देना चाहिए। और इस संस्कार के कारण हर भारतीय अपना बेस्‍ट देने के लिए, वह जहाँ भी हो, वो कोशिश करता है। वह बड़े पद पर हों, तब करेगा, ऐसा नहीं, छोटे पद पर भी। और दूसरा, कहीं गलत चीजों में वो फँसता नहीं हैं। ज्यादातर वह सही काम के हैं और दूसरा, उसका नेचर है कि हर एक के साथ मिल जाता हैं। Ultimately success के लिए आपके पास केवल knowledge enough नहीं है। आपके पास टीम वर्क करने का ताकत बहुत बड़ी, हर एक व्यक्ति को समझ कर उनसे काम लेने का सामर्थ्य बहुत बड़ी बात होती है। By enlarge, भारत में से जो पले-बढ़े लोग होते हैं, जो Joint Family से निकले हुए लोग होते हैं, Open Society में से निकले हुए लोग होते हैं, उनके लिए ये बहुत आसान होता है कि वो इस प्रकार के बड़े-बड़े कामों को नेतृत्व आसानी से कर सकते हैं। और सिर्फ़ ये बड़ी-बड़ी कंपनियाँ ही नहीं, दुनिया के कई देशों में अच्छे और महत्वपूर्ण पदों पर आज भारतीय काम कर रहे हैं। और Indian Professionals की Problem Solving जो Skill है, Analytical जो Thinking है और मैं समझता हूँ कि वह सामर्थ्‍य इतना बड़ा है कि उसका व्यक्तित्व Globally Competitive हो जाता है और बहुत ही फायदेमंद हो जाता है। और इसलिए मैं समझता हूँ कि इनोवेशन, Entrepreneurship, स्टार्टअप, बोर्ड रूम, आप कहीं पर भी देखिए, आपको भारत के लोग Extraordinary करते हैं। अब हमारे यहाँ स्‍पेस सेक्‍टर देख लीजिए आप। पहले से स्‍पेस हमारा सरकार के पास था। मैंने आकर के उसको 1-2 साल पहले ओपन-अप किया। इतने कम समय में 200 स्टार्टअप स्‍पेस में, और हमारी जो चंद्रयान वगैरह की जो हमारी यात्रा है, वह इतनी Low Cost में होती हैं, अमेरिका की हॉलीवुड की फिल्म का जितना खर्चा होता है, उससे कम खर्चे में मेरी चंद्रयान यात्रा होती है। तो दुनिया देखती है कि वो इतनी Cost Effective है, तो क्यों न हम उसके साथ जुड़ें। तो उस Talent के प्रति आदर अपने आप पैदा हो जाता है। तो मैं समझता हूँ कि यह हमारे Civilisational Ethos का ये Hallmark है।

लेक्स फ्रिडमैन - तो आपने इंसानी इंटेलिजेंस के बारे में बात की। तो क्या आपको इसकी चिंता है कि एआई, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, हम इंसानों की जगह ले लेगी?

प्रधानमंत्री - ऐसा है कि हर युग में कुछ समय तक Technology और मानव के बीच, स्पर्धा का वातावरण बनाया गया। या उनके बीच में संघर्ष का वातावरण बनाया गया। मानव जाति को ही challenge करेगा, ऐसा ही वातावरण बनाया गया। लेकिन हर बार टेक्नोलॉजी भी बढ़ती गई और मानव उससे ऊपर एक कदम आगे ही बढ़ता गया, हर बार हुआ। और मनुष्य ही है जो उत्तम तरीके से उस टेक्नोलॉजी का उपयोग करता है। और मुझे लगता है कि एआई के कारण इंसान को इंसान होने का मतलब सोचना पड़ रहा है, यह एआई ने अपनी ताकत दिखाई है। क्योंकि जिस तरीके से वह काम कर रहा है, वो उसको प्रश्न कर दिया है। लेकिन जो इंसान की imagination है, एआई जैसी कई चीज़ें वह product कर सकता है। शायद इससे भी ज़्यादा कर देगा आने वाले दिनों में और इसलिए मैं नहीं मानता हूँ कि उस imagination को कोई replace कर पाएगा।

लेक्स फ्रिडमैन - मैं आपसे सहमत हूँ, इससे मुझे और बहुत से लोगों को यह सोचने पर मजबूर होना पड़ता है कि क्या चीज़ इंसान को खास बनाती है, क्योंकि ऐसा लगता है ऐसा बहुत कुछ है। जैसे कि कल्पना, रचनात्मकता, चेतना, डरने की क्षमता, प्यार करने की, सपने देखने की क्षमता सबसे अलग सोचने की क्षमता, सबसे अलग, उससे अलग, उससे अलग! जोखिम लेने की, ये सब चीजें।

प्रधानमंत्री - अब देखिए, केयर करने की जो intact ability है, मनुष्य एक दूसरे की जो चिंता करता है। अब कोई मुझे बताए साहब एआई यह कर सकता है क्या?

लेक्स फ्रिडमैन - यह 21वीं सदी का एक बड़ा अनसुलझा प्रश्न है। हर साल आप "परीक्षा पर चर्चा" कार्यक्रम आयोजित करते हैं, जहाँ आप सीधे युवा छात्रों के साथ बातचीत करते हैं और उन्हें परीक्षा की तैयारी कैसे करें इस पर सलाह देते हैं। मैंने उनमें से कई कार्यक्रम देखे, आप सलाह देते हैं कि परीक्षाओं में कैसे सफल हों, तनाव को कैसे संभालें, और बाकी चीज़ें भी। क्या आप संक्षेप में बता सकते हैं कि भारत में छात्रों को अपनी शिक्षा यात्रा में कौन-कौन सी परीक्षाएँ देनी होती हैं, और ये इतनी तनावपूर्ण क्यों हैं?

प्रधानमंत्री- By and large, समाज में एक विचित्र प्रकार की मानसिकता बन गई। स्कूलों में भी अपनी सफलता के लिए उनको लगता है कि हमारे कितने बच्चे किस रैंक में आए। परिवार में भी वातावरण बन गया कि मेरा बच्चा इस रैंक में आया तो मेरा परिवार शिक्षा-दीक्षा में समाज में अच्छी पोजीशन में है। तो एक ऐसी सोच का परिणाम यह हो गया कि बच्चों पर प्रेशर बढ़ गया। बच्चों को भी लगने लग गया कि जीवन में यह 10वीं और 12वीं की exam ही सब कुछ है। तो हमने उसमें बदलाव लाने के लिए हमारी जो नई एजुकेशन पॉलिसी में हम काफी कुछ बदलाव लाए हैं। लेकिन वो चीज़ें धरती पर उतरें, तब तक मेरा दूसरा भी रहता है कि अगर उनके जीवन में कठिनाई है, तो मेरा भी कोई कर्तव्य बनता है, मैं उनसे बातें करूँ, उनको समझने का प्रयास करूँ। तो एक प्रकार से मैं जब "परीक्षा पर चर्चा" करता हूँ, तो मुझे उन बच्चों से समझने को मिलता है। उनके माता-पिता की क्या मानसिकता है, वह समझने को मिलती है। एजुकेशन फील्ड के जो लोग हैं, उनकी क्या मानसिकता है, वह समझने को मिलती है। तो यह परीक्षा पे चर्चा उनका तो लाभ करती ही करती है, मेरा भी लाभ करती है और किसी खास specific domain में खुद को टेस्ट करने के लिए एग्जाम ठीक है। लेकिन यह overall potential को judge करने का पैमाना नहीं बन सकता। बहुत से लोग हैं शायद पढ़ाई में अच्छे marks नहीं लाए लेकिन क्रिकेट में सेंचुरी लगाते हैं, क्योंकि उसकी उसमें वो ताकत होती है। और जब learning पर focus होता है, तो score अक्सर खुद ही ठीक होने लग जाता है। अब मुझे याद है जब मैं पढ़ता था, तो मेरे एक Teacher थे। Learning की उनकी Technique मुझे आज भी बड़ी appeal करती है। वह हम बच्चों से कहते थे, एक को कहेंगे ऐसा है भाई तुम घर जाकर, घर से 10 चना के दाने ले आना। दूसरों को कहेंगे तुम चावल के 15 दाने ले आना। तीसरे को कहते थे कि मूंग के 21 दाने ले आना। ऐसे अलग-अलग आँकड़े भी अलग और variety भी अलग, तो वह बच्चा सोचता था, मुझे 10 लाने हैं, फिर घर जाकर गिनता था, तो उसको 10 के आगे याद आ जाता था। फिर उसको पता चलता था कि इसको चना कहते थे, फिर स्कूल में जाते थे, सब इकट्ठा कर देते थे, फिर बच्चों को कहते थे कि चलो भाई इसमें से 10 चना निकालो, 3 चना निकालो, 2 मूंग निकालो, 5 यह निकालो। तो गणित भी सीख लेते थे, चने की पहचान हो जाती थी, मूंग किसको कहते हैं पहचान हो जाए, मैं बहुत बाल्‍यावस्‍था की बात करता हूँ। तो यह Learning Technique जो होती है, बिना बोझ के बच्चों को पढ़ाने का तो हमारी ये नई एजुकेशन पॉलिसी में इसका एक प्रयास है। जब मैं स्कूल में था, तो मैंने देखा था कि मेरे एक टीचर का बड़ा ही इनोवेटिव आइडिया था उनका, वो उन्होंने आते ही पहले दिन कहा कि देखो भाई, यह डायरी मैं यहाँ रखता हूँ और सुबह जो जल्दी आएगा, वह डायरी में एक वाक्य लिखेगा, साथ में अपना नाम लिखेगा। फिर जो भी दूसरा आएगा उसको उसके अनुरूप ही दूसरा वाक्य लिखना पड़ेगा। तो मैं बहुत जल्दी स्कूल भाग करके जाता था, क्यों? तो मैं पहला वाक्य मैं लिखूँ। और मैंने लिखा कि आज सूर्योदय बहुत ही शानदार था, सूर्योदय ने मुझे बहुत ऊर्जा दी। ऐसा कुछ मैंने वाक्य लिख दिया, अपना नाम लिख दिया, फिर मेरे पीछे जो भी आएँगे, वो सूर्योदय पर ही कुछ न कुछ लिखना होता था। कुछ दिनों के बाद मैंने देखा कि मैं मेरी Creativity को इससे ज्यादा फायदा नहीं होगा। क्यों? क्योंकि मैं एक Thought Process लेकर के निकलता हूँ, और वह जाकर के मैं लिख देता हूँ। तो फिर मैंने तय किया कि नहीं, मैं लास्ट में जाऊँगा। तो उससे क्या हुआ कि औरों ने क्या लिखा है, वह मैं पढ़ता था, और फिर मेरा बेस्ट देने की कोशिश करता था। तो मेरी Creativity और बढ़ने लगी। तो कभी कुछ टीचर्स ऐसी छोटी-छोटी चीज़ें करते हैं, जो आपके जीवन को बहुत उपयोगी होती हैं। तो ये मेरे जो अनुभव हैं और मैं खुद एक प्रकार से संगठन का काम करता रहा। उसके कारण मेरे Human Resource Development के मेरा एक विशेष क्षेत्र रहा काम का, तो मैं इन बच्चों के साथ मिलकर के साल में एकाध बार कार्यक्रम निकालता हूँ, अब वह करते-करते एक किताब भी बन गई है, जो लाखों की तादाद में बच्चों को काम आती है reference के लिए।

लेक्स फ्रिडमैन - क्या आप छात्रों को उनके करियर में सफल होने से जुड़ी थोड़ी बहुत और सलाह दे सकते हैं, अपना करियर कैसे खोजें, सफलता कैसे प्राप्त करें, ये भारत के, और साथ ही, दुनिया भर के उन सभी लोगों के लिए सलाह, जिन्हें आपके शब्दों से प्रेरणा मिलती हैं, उनके लिए कुछ कहेंगे?

प्रधानमंत्री - मुझे लगता है कि जो काम मिले, वो समर्पण भाव से पूरी तरह डेडिकेशन से अगर कोई करता है, तो अवश्य ही आज नहीं तो कल उसकी एक्सपेटाइज भी हो जाती है और उसकी क्षमता जो है, उसको सफलता के द्वार खोल देती है और मनुष्य को काम करते-करते अपनी क्षमता बढ़ाने की तरफ ध्यान देना चाहिए। और अपनी Learning Ability को कभी भी Undermined नहीं करना चाहिए। जब Learning Ability को लगातार महत्व देता है, हर चीज़ में सीखने की कोशिश करता है, कुछ लोग होंगे जो अपने सिवाए भी बगल वाले का काम भी देखेंगे, तो उसकी एक क्षमता डबल हो जाती है, तिगुना हो जाती है। अगर मैं नौजवानों को कहूँगा कि भाई, निराश होने की कोई ज़रूरत नहीं होती है। दुनिया में कोई न कोई काम, आपके लिए परमात्मा ने लिखा हुआ ही है, आप चिंता मत करो। आप अपनी एक क्षमता बढ़ाओ, ताकि आप योग्य कर पाओ। मैंने तो सोचा था डॉक्टर बनूँ, अब डॉक्टर नहीं बना, मैं टीचर बन गया, मेरी ज़िन्दगी बेकार हो गई। ऐसे करके बैठोगे तो नहीं चलेगा, ठीक है डॉक्टर नहीं बने, लेकिन अब तुम टीचर बनकर सौ डॉक्टर बना सकते हो। तुम तो एक डॉक्टर बनके तब पेशेंट का भला करते, अब तुम टीचर के नाते ऐसे Student तैयार करो उनके डॉक्टर बनने के सपने पूरे हों, ताकि तुम और वह लाखों रोगियों की सेवा कर सकें। तो उसको जीने का एक और नया दृष्टिकोण मिल जाता है। कहां यार मैं डॉक्टर नहीं बन पाया और मैं रोता बैठा था। मैं टीचर बन गया, उसका ही मुझे दुःख था, लेकिन मैं टीचर बनकर डॉक्टर भी बना सकता हूँ। तो हम जीवन की बड़ी चीज़ों की ओर उसको अगर जोड़ देते हैं, तो उसको एक प्रेरणा मिलती है। और मैं हमेशा मानता हूँ कि परमात्मा ने हर एक को सामर्थ्य दिया हुआ होता है। अपने सामर्थ्य पर भरोसा कभी छोड़ना नहीं चाहिए। अपने सामर्थ्य पर भरोसा बनाए रखना चाहिए। और विश्वास होना चाहिए, जब भी मौका मिलेगा मैं ये करके दिखाऊंगा, मैं करूँगा, मैं सफल होता होऊँगा। वह आदमी कर के देता है।

लेक्स फ्रिडमैन - छात्र उस तनाव से, संघर्ष से, उस रास्ते पर आने वाली कठिनाइयों से कैसे निपटें?

प्रधानमंत्री - उनको एक बार तो समझ होनी चाहिए कि परीक्षा ही जिंदगी नहीं है। परिवार को पता चलना चाहिए कि अपने बच्चों को समाज के अंदर एक प्रकार से दिखाने के लिए नहीं है, ये मेरा बच्चा मॉडल कि देखिए ये इतने मार्क लाता है, देखो मेरा बच्चा। यह माँ-बाप ने मॉडल के रूप में बच्चों का उपयोग करना बंद कर देना चाहिए। और दूसरा मुझे लगता है कि अपने आप को prepared रखना चाहिए, तब जाकर के Exam के लिए बिना Stress के वह Exam दे सकता है, उसको विश्वास होना चाहिए और उसको पूरा पता होना चाहिए। और कभी-कभी तो मैं कहता हूँ भाई तुम कभी-कभी क्या कह जाते हैं, वो पेपर ले लिया, यह लिया, और कभी पेन थोड़ी चलती नहीं, तो एकदम निराश हो जाता है। फिर कभी उसको लगता है कि यार यह बगल में यह बैठा है तो मुझे मज़ा नहीं आएगा। बेंच हिलती है, उसी में उसका दिमाग लगा रहता है, अपने पर विश्वास ही नहीं है। जो अपने पर विश्वास नहीं है, वह नई-नई चीजें ढूँढता रहता है। लेकिन अगर अपने पर विश्वास है और पूरी मेहनत की है, तो एक-दो मिनट लगता है, आप आराम से ज़रा गहरी सांस लीजिए, आराम से ज़रा ध्यान केंद्रित कीजिए। धीरे से पढ़कर के कहिए और फिर टाइम को allot कर दीजिए कि मेरे पास इतना समय है, मैं एक सवाल इतने मिनट में लिखूँगा। मैं मानता हूँ, जिसने पेपर लिखने की प्रैक्टिस डाली हो, वह बच्चा बिना प्रॉब्लम के इन चीज़ों को अच्छी तरह पार कर लेता है।

लेक्स फ्रिडमैन - और आपने कहा कि हमेशा सीखने की कोशिश करनी चाहिए। आप कोई चीज़ कैसे सीखते हैं? कोई भी सबसे अच्छी तरीके से कैसे सीख सकता है, इसपर आप क्या सलाह देंगे, सिर्फ़ जवानी में ही नहीं, बल्कि पूरी ज़िंदगी में?

प्रधानमंत्री - देखिए मैंने पहले ही कहा अब जैसे मेरे जीवन में पहले तो मुझे पढ़ने का अवसर मिलता था। बाद में तो मेरी ऐसी स्थिति है मैं पढ़ नहीं पाता हूं, लेकिन मैं बहुश्रुत हूं। मैं वर्तमान में होता हूँ। जब भी मैं किसी से मिलता हूँ, तो मैं वर्तमान में होता हूँ। तो मेरा Attentive बहुत मैं रहता हूँ। मैं चीज़ों को बहुत जल्दी से Grasp कर सकता हूँ। अभी मैं आपके साथ हूँ, मैं आपके साथ ही हूँ, फिर मैं और कहीं नहीं हूँ। न कोई मोबाइल फोन है, न टेलीफोन है, न कोई मैसेज आ रहा है, बैठा हूं। मैं हर चीज को concentrate कर पा रहा हूँ और इसलिए मैं हमेशा कहूंगा कि यह आदत डालनी चाहिए। आपकी learning ability बढ़ती जाएगी और आप दूसरा, अकेले ज्ञान से होता नहीं है जी, आपको अपने आप को प्रैक्‍टिस में डालना चाहिए। आप अच्छे ड्राइवरों की आत्‍मकथाएं पढ़कर के अच्छे ड्राइवर नहीं बन सकते जी, मतलब गाड़ी में बैठना ही पड़ता है और स्‍टेरिंग पकड़ना पड़ता है। सीखना पड़ता है, रिस्क लेना ही पड़ता है। Accident होंगे, तो क्या होगा? मर जाऊंगा, तो क्या होगा? ऐसा नहीं चलता और ये मेरा मत है, जो वर्तमान में जीता है, उसके जीवन में एक मंत्र काम आता है कि जो समय हमने जी लिया, वह हमारा भूतकाल बन चुका है। तुम वर्तमान में जीओ, इस पल को भूतकाल मत बनने दो, वरना तुम भविष्य के तलाश में वर्तमान को भूतकाल बना दोगे, तो तुम्हारा वो घाटे में जाएगा मामला और ज्यादातर लोग ऐसे होते हैं कि जो भविष्य के दिमाग खपाने में इतना खराब करते हैं कि उनका वर्तमान ऐसे ही चला जाता है और वर्तमान चला जाने के कारण वो भूतकाल में गुजर जाता है।

लेक्स फ्रिडमैन - हाँ, मैंने लोगों के साथ आपकी मुलाकातों के बारे में बहुत सी कहानियाँ सुनी हैं, और यह आमतौर पर ध्यान भटकता है। अभी कोई ध्यान नहीं भटक रहा, इस पल में हम दोनों बात कर रहे हैं। बस इस पल और बातचीत पर ध्यान केंद्रित है, और यह वास्तव में एक खूबसूरत चीज है। और आपने आज पूरा ध्यान मुझ पर लगाया, मेरे लिए यह किसी उपहार से कम नहीं। आपका धन्यवाद! अब आपसे थोड़ा मुश्किल और सबसे जुड़ा हुआ सवाल पूछता हूँ। क्या आप अपनी मृत्यु पर विचार करते हैं? क्या आपको मौत से डर लगता है?

प्रधानमंत्री - मैं आपको एक सवाल पूछूं?

लेक्स फ्रिडमैन - पूछिए।

प्रधानमंत्री - जन्म के बाद, आप मुझे बताइए, जीवन है, मृत्यु है। इसमें से सबसे निश्चित क्या है?

लेक्स फ्रिडमैन - मृत्यु!

प्रधानमंत्री - मृत्यु! अब, मुझे बताइए, आपने मुझे सही जवाब दिया कि जन्म के साथ जो जन्म लेता है, वो मृत्यु है। जीवन तो पनपता है जी। जीवन और मृत्यु में मृत्यु ही निश्चित है। आपको पता है कि ये निश्चित है और जो निश्चित है, उसका डर काहे का भई? तो फिर शक्ति, समय जीवन पर लगाओ, दिमाग मृत्यु पर मत खपाओ। तो जीवन पनपेगा, जो अनिश्चित है, वो जीवन है। फिर उसके लिए मेहनत करनी चाहिए, उसको Streamline करना चाहिए, Stages by stages उसको upgrade करते जाना चाहिए। ताकि आप मृत्यु जब तक न आए, तब आप जीवन का फूल बहार में खिला सको और इसलिए दिमाग में से मृत्यु निकाल देना चाहिए। वो तो निश्चित है, वो तो लिखा है, आने वाला है। कब आएगा, कब आएगा, वो जाने, जब आना है, तब आए। उसको जब फुर्सत होगी, तब आएगा।

लेक्स फ्रिडमैन - भविष्य के बारे में आपको क्या उम्मीद है, सिर्फ भारत का ही नहीं, बल्कि पूरी मानव सभ्यता का, हम सभी मनुष्यों का यहाँ पृथ्वी पर भविष्य?

प्रधानमंत्री - मैं स्वभाव से ही बहुत आशावादी व्यक्ति हूँ। मैं निराशा, नकारात्मकता, ये मेरी यानी मेरे शायद software में है ही नहीं वो चिप। इसलिए मेरा उस दिशा में दिमाग मेरा जाता नहीं है। मैं मानता हूं कि मानव जाति का इतिहास की तरफ हम देखें, तो बड़े संकटों को पार करते हुए मानव जाति आगे निकली है। और समय की आवश्यकता के अनुसार उसको कितने बड़े बदलाव स्वीकार किए हैं और लगातार उसने कितना और दूसरा हर युग में मानव नई चीज़ों को स्वीकारने का उसका एक स्‍वभाव है। दूसरा मैंने देखा मानव जाति में हो सकता है प्रोग्रेस में उतार-चढ़ाव होंगे लेकिन कालबाह्य छोड़ने की ताकत रखता है, वह सबसे तेजी से बोझ मुक्त हो करके आगे बढ़ सकता है। कालबाह्य चीजें हैं, उससे मुक्त होने की सामर्थ्य और मैं देखता हूं आज मैं जिस समाज के साथ ज्यादा जुड़ा रहा, उसको मैं ज्यादा समझ सकता है। और मैं मानता हूँ कि कालबाह्य चीज़ों के छोड़कर नई चीज़ों को पकड़ने का वह काम कर सकता है जी।

लेक्स फ्रिडमैन - मैं अभी सोच रहा था कि क्या आप मुझे हिंदू प्रार्थना या ध्यान लगाना सिखा सकते हैं, थोड़े पल के लिए? मैंने कोशिश की, मैं गायत्री मंत्र सीखने की कोशिश कर रहा हूँ। और अपने उपवास में, मैं मंत्रों का जाप करने की कोशिश कर रहा था। शायद मैं जाप करने की कोशिश कर सकता हूँ और आप आप मुझे इस मंत्र और बाकी मंत्रों के महत्व के बारे में बता सकते हैं और इनका आपके जीवन और आपकी आध्यात्मिकता पर क्या असर पड़ा। मैं कोशिश करूँ?

प्रधानमंत्री - हाँ, करिए!

लेक्स फ्रिडमैन - ॐ भूर् भुवः स्वः तत् सवितुर्वरेण्यं। भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।। मैंने कैसा बोला?

प्रधानमंत्री - काफी अच्छा किया आपने, ॐ भूर् भुवः स्वः तत् सवितुर्वरेण्यं। भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।। यानी actually यह सूर्य उपासना से जुड़ा हुआ है और सूर्य शक्‍ति का उस जमाने में कितना महत्‍मय है, वो हिंदू… हिंदू Philosophy में जो मंत्र है, उस मंत्र का विज्ञान से कोई न कोई नाता है। और विज्ञान होगा, प्रकृति होगी, उनसे कहीं न कहीं वो जुड़ा हुआ होता है। जीवन के भी अलग-अलग पहलुओं के साथ जुड़ा हुआ होता है। और मंत्रों के पाठ उसको regular rhythm में ला जाने के कारण बहुत बड़ा लाभ करता है जी।

लेक्स फ्रिडमैन - अपनी आध्यात्मिकता में, अपने शांत पलों में जब आप ईश्वर के साथ होते हैं, तो आपका मन कहाँ जाता है, मंत्र इसमें कैसे मदद करता है, जब आप उपवास कर रहे होते हैं, जब आप बस अपने आप में अकेले होते हैं?

प्रधानमंत्री - देखिए, कभी हम लोगों को कहते हैं न मेडिटेशन! तो बड़ा भारी शब्द बन गया है। हमारे यहां भाषा में एक सादा शब्द है ध्यान, अब किसी को मैं कहूं कि भई मेडिटेशन के संदर्भ में ध्यान की बात करूं तो सबको लगेगा बहुत बड़ा बोझिल है। ये तो हम कर सकते ही नहीं, कैसे कर सकते हैं हम, हम कोई आध्यात्मिक पुरुष तो हैं नहीं। फिर मैं उन्हें समझाता हूँ, भई तुम्हें बेध्‍यान होने की जो आदत है न, उससे मुक्ति लो। जैसे कि तुम क्लास में बैठे हो, लेकिन उस समय तुम्हारा चलता है भई खेल का पीरियड कब आएगा, मैदान में कब जाऊंगा, इसका मतलब तुम्हारा ध्यान नहीं है। अगर तुम यहाँ रखा दो, that is meditation. मुझे याद है जब मैं मेरी हिमालयन लाइफ थी, तो मुझे एक संत मिले। उन्होंने बड़ा अच्छा सा मुझे एक Technique सिखाया, Technique था वो कोई Spiritual World नहीं था, Technique था। हिमालय में झरने बहते रहते हैं छोटे-छोटे। तो उन्होंने मुझे ये जो सूखे पत्तल जो होते हैं, उसका एक टुकड़ा होता है, झरने के अंदर ऐसे लगा दिया। और नीचे जो बर्तन था, उसको उल्टा कर दिया, तो उसमें से टपक-टपक पानी गिरता था। तो उन्होंने मुझे सिखाया कि देखो तुम कुछ मत करो, सिर्फ इसी की आवाज़ सुनो, कोई और आवाज़ तुमको सुनाई नहीं देनी चाहिए। कितने ही पक्षी बोलते हों, कुछ भी बोलते हो, हवा का आवाज आती हो, कुछ नहीं, तुम इस पानी की जो बूंद गिरते हैं और वो मुझे वो Set करके देते थे, तो मैं बैठता था। मेरा अनुभव था कि उसकी आवाज, उस पानी की बूंद उस बर्तन पर गिरना, उसकी जो आवाज थी, धीरे-धीरे-धीरे-धीरे मेरा Mind Train होता गया, बड़े आराम से Train होता गया। कोई मंत्र नहीं था, कोई परमात्मा नहीं था, कुछ नहीं था। उसको मैं कह सकता हूं नाद-ब्रह्म, उस नाद-ब्रह्म से नाता जुड़ना, अब ये मुझे concentration सिखाया गया। मेरा वो धीरे-धीरे Meditation बन गया। यानी एक और कभी-कभी देखिए आप बहुत ही अच्छा आपका फाइव स्‍टार होटल है, बहुत ही ठाठ आपको चाहिए वैसा कमरा है, सारा डेकोरेशन बहुत बढ़िया है और आप भी एक मन से वो उपवास किया हुआ है, लेकिन बाथरूम में पानी टपक रहा है। वह छोटी से आवाज आपकी हजारों रुपयों की किराए वाला बाथरूम आपके लिए बेकार बना देती है। तो कभी-कभार हम जीवन में अंतर्मन की यात्रा को निकट से हम देखते हैं न, तो इसकी value समझती आती है कि कितना बड़ा बदलाव हो सकता है, अगर हम… अब जैसे हमारे शास्त्रों में, एक जो हम लोग जीवन और जीवन और मृत्यु के बारे में आपने बात की, एक मंत्र है हमारे यहां, ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदम पूर्णात्पूर्णमुदच्यते। यानी पूरा जीवन को एक सर्कल के अंदर उसने रखा हुआ है। पूर्णता ही है, पूर्णता को प्राप्त करने का विषय है। उसी प्रकार से हमारे यहां कल्याण की बात कैसे करते हैं, सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः। यानी सबका भला हो, सबका सुख हो, सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःख भाग भवेत्। अब ये मंत्रों में भी लोगों के सुख की बात है, लोगों के आरोग्‍य का बात है और फिर करें क्या? ॐ शांतिः, शांतिः, शांतिः। हमारे हर मंत्र के बाद आएगा, “Peace, Peace, Peace” यानी ये जो Rituals भारत में डेवलप हुए हैं, वो हज़ारों सालों की ऋषियों की साधना से निकले हुए हैं। लेकिन वे जीवन तत्व से जुड़े हुए हैं। वैज्ञानिक तरीके से रखे हुए हैं।

लेक्स फ्रिडमैन - शांतिः, शांतिः, शांतिः। इस सम्मान के लिए धन्यवाद, इस अविश्वसनीय बातचीत के लिए धन्यवाद। भारत में मेरा स्वागत करने के लिए धन्यवाद, और अब मुझे कल भारतीय खाने के साथ अपना उपवास तोड़ने का इंतज़ार है। बहुत-बहुत धन्यवाद, प्रधानमंत्री जी। मेरे लिए यह एक बड़ा सम्मान था।

प्रधानमंत्री - मुझे बहुत अच्छा लगा कि आपसे बात करने का अवसर मिला। दो दिन फास्‍ट किया है, तो आप एक दम से खाना शुरू मत कीजिए। एक दिन थोड़ा Liquid से शुरू कीजिए, तो आपको एक Systematic उसका फायदा मिलेगा। मेरे लिए भी शायद मैंने कई विषय ऐसे हैं, जिसको मैंने पहली बार छुआ होगा क्‍योंकि मैं इन चीजों को बहुत अपने तक ही सीमित रखता था। लेकिन आज कुछ चीजें आप निकालने में सफल हुए। हो सकता है कि…

लेक्स फ्रिडमैन - धन्यवाद।

प्रधानमंत्री - आपके दर्शकों को अच्छा लगेगा। मुझे बहुत अच्छा लगा। मेरी तरफ से आपको बहुत शुभकामनाएँ। Thank You!

लेक्स फ्रिडमैन - धन्यवाद! प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ इस बातचीत को सुनने के लिए आपका धन्यवाद। अब मैं कुछ सवालों के जवाब देना चाहता हूँ। और कुछ बातें ज़ाहिर करना चाहता हूँ, जो मेरे दिमाग में चल रही हैं। अगर आप कुछ पूछना चाहें, या किसी भी वजह से मुझसे बात करना चाहें, तो lexfridman.com/contact पर जाएँ। सबसे पहले, मैं प्रधानमंत्री के साथ जुड़ी टीम को बधाई देना चाहता हूँ। बहुत ही बढ़िया टीम थी! वो लोग बहुत अच्छे, अपने काम में माहिर, फटाफट काम करने वाले, बात करने में बेहतरीन थे। कुल मिलाकर वो एक कमाल की टीम थी। और क्योंकि मैंने इंग्लिश में बात की और प्रधानमंत्री मोदी जी ने हिंदी में, तो मुझे उस इंटरप्रेटर के बारे में कुछ ज़रूर कहना है, जो हम दोनों की बातों की इंटरप्रेटिंग कर रही थीं। वो एकदम एक्सीलेंट थीं। जितनी तारीफ़ करूँ कम है। इक्विपमेंट से लेकर ट्रांसलेशन की क्वालिटी तक, उनका पूरा काम ही एकदम बेहतरीन था। और वैसे भी दिल्ली और भारत में घूमने पर, मुझे कुछ बाकी दुनिया से काफी अलग चीज़ें देखने को मिलीं, वहाँ ऐसा लग रहा था मानो, जैसे कोई दूसरी ही दुनिया में आ गया। कल्चर के नज़रिए से मैंने ऐसा पहले कभी महसूस नहीं किया था। इंसानों के मिलने-जुलने का एक अलग ही नज़ारा, वहाँ, बड़े ज़बरदस्त और दिलचस्प लोग देखने को मिले। ज़ाहिर है, भारत अलग-अलग तरह के कल्चर से मिलकर बना है और दिल्ली तो बस उसकी एक झलक दिखाता है। जैसे कि न्यूयॉर्क, टैक्सस, या आयोवा अकेले पूरे अमेरिका को नहीं दिखाते। ये सब अमेरिका के अलग-अलग तरह के रंग हैं। अपनी इस ट्रिप में, मैं रिक्शा में ही हर जगह घूमा-फिरा और गया। बस यूँ ही गलियों में घूमता फिरता रहा। लोगों से उनकी ज़िंदगी के बारे में बात करता था। हाँ, दुनिया में बाकी जगहों की तरह, यहाँ भी आपको कुछ ऐसे लोग मिलेंगे, जो आपको कुछ न कुछ बेचना चाहते हैं। जिन्होंने पहली बार में मुझे एक टूरिस्ट समझा, एक विदेशी मुसाफिर, जिसके पास खर्च करने के लिए थोड़े पैसे होंगे। लेकिन हमेशा की तरह, मैंने ऐसी हल्की बातों से परहेज़ किया। मैं इन बातों को छोड़कर, सीधे दिल से दिल की बातें करने लगा जैसे कि उन्हें क्या पसंद है। किससे डर लगता है। और ज़िंदगी में उन्होंने क्या-क्या मुश्किलें और खुशियाँ देखी हैं। लोगों के बारे में सबसे अच्छी बात यही है, आप कहीं भी हों, पर वो, बहुत जल्दी आपको पहचान जाते हैं, उस दिखावे से परे जो अजनबी एक-दूसरे के साथ करते हैं। अगर आप इतने खुले और सच्चे हों कि उन्हें अपनी असलियत दिखा सकें और मैं यही करने की कोशिश करता हूँ। और मैं ये कहना चाहूँगा कि ज़्यादातर, हर कोई बहुत दयालु था, सबमें बहुत इंसानियत थी। भले ही वो इंग्लिश न बोल पाते हों, फिर भी समझना हमेशा आसान रहा। शायद मैं आज तक जिन लोगों से मिला हूँ, उनसे कई ज़्यादा आसान भारत में, लोगों की आँखें, चेहरे, बॉडी लैंग्वेज, सब बहुत कुछ बता देती थी। सब साफ दिखता है, भावनाएं भी खुलकर दिखती हैं। जैसे कि जब मैं ईस्टर्न यूरोप में घूमता हूँ, उसके मुकाबले किसी को समझना यहाँ कहीं ज़्यादा आसान है। वो जो मीम आप देखते हैं, उसमें थोड़ी सच्चाई तो है। आमतौर पर इंसान अपने दिल की बात को दुनिया तक खुलकर नहीं आने देता है। लेकिन, भारत में हर कोई खुलकर सामने आता है। तो कई हफ़्ते दिल्ली में घूमते हुए, लोगों से मिलते हुए, बहुत सारी कमाल की बातें हुईं, और मिलना-जुलना भी हुआ। आम तौर पर, जब बात लोगों को पढ़ने की आती है, तो मुझे लगता है कि आँखें अक्सर शब्दों से ज़्यादा बोल सकती हैं। हम इंसान बड़े ही दिलचस्प होते हैं। सच में, ऊपर से शांत दिखने वाली लहरों के नीचे एक गहरा, तूफानी समंदर छुपा होता है। एक तरह से, मैं बातचीत में जो करने की कोशिश करता हूँ, चाहे ऑन कैमरा या ऑफ कैमरा हो, उस गहराई तक पहुँचना।

खैर, भारत में जो कुछ हफ्ते मैंने बिताए, वो एक जादुई अनुभव था। यहाँ का ट्रैफिक ही अपने आप में कमाल था। जैसे किसी सेल्फ़-ड्राइविंग कार्स के लिए दुनिया का सबसे मुश्किल टेस्ट हो। उससे मुझे नेचर डॉक्यूमेंट्री वीडियो देखने की याद आ गई, मछलियों वाली वीडियो। जहाँ हज़ारों मछलियाँ एक साथ बेहद तेज़ रफ़्तार में तैर रही होती हैं, ऐसा लगता है जैसे सब तितर-बितर हो गई हों। और फिर भी, जब आप इसे एक बड़े नज़रिए से देखते हैं, तो लगता है जैसे ये सब एक ही लय और ताल में हों। मैं पक्का अपने दोस्त पॉल रोज़लि के साथ और शायद कुछ और दोस्तों के साथ भी, बहुत जल्द घूमने जाऊंगा। पूरे भारत में उत्तर से दक्षिण तक घूमने जाऊँगा।

अब मैं एक और बात कहना चाहता हूँ, उस किताब के बारे में जिसने पहली बार मुझे भारत की तरफ खींचा और इसके गहरे दार्शनिक और आध्यात्मिक विचारों की ओर भी। वो किताब है हरमन हैसे की "सिद्धार्थ"। मैंने हैसे की ज़्यादातर मशहूर किताबें टीनएज में ही पढ़ ली थीं, लेकिन फिर सालों बाद उन्हें दोबारा पढ़ा। सिद्धार्थ नाम की किताब मुझे उस समय मिली जब मैं बिलकुल अलग तरह के साहित्य में डूबा हुआ था, जैसे दॉस्तेयेस्की, कमू, काफ़्का, ऑरवैल, हैमिंग्वे, कैरोएक, स्टैनबैक, वगैरह। कई ऐसी किताबें इंसान की वही उलझन दिखाती हैं, जो मुझे जवानी में अक्सर समझ नहीं आती थी और आज भी ये मुझे पहले से ज़्यादा हैरान करती है। पर "सिद्धार्थ" से ही मुझे समझ में आया, पूर्व के नज़रिए से इन उलझनों को कैसे देखते हैं। इसे हरमन हैसे ने लिखा, और हाँ, प्लीज़, मुझे उनका नाम ऐसे ही बोलने दीजियेगा। सुना है कुछ लोग हैस कहते हैं, पर मैंने तो हमेशा हैसे ही कहा है, हमेशा से। तो हाँ, हरमन हैसे ने लिखा था, जर्मनी और स्विट्जरलैंड के नोबेल विजेता लेखक। वो भी अपनी ज़िंदगी के सबसे मुश्किल दौर में। उनकी शादी टूट रही थी, पहले विश्व युद्ध ने उनके शांति के सपनों को तोड़ दिया। और उन्हें बहुत तेज़ सिरदर्द, नींद न आने और डिप्रेशन की शिकायत थी। तभी उन्होंने कार्ल युंग से साइकोएनालिसिस शुरू किया, जिससे वो पूर्व की फिलोसफ़ी को समझने की ओर मुड़े, अपने परेशान मन को शांत करने के लिए। हैसे ने पुराने हिंदू ग्रंथों के अनुवाद खूब पढ़े, बौद्ध किताबें पढ़ी, उपनिषद को पढ़ा, और भगवद गीता को भी। और "सिद्धार्थ" को लिखना, खुद में, उनके लिए एक सफर था, जो उस किताब के मेन कैरेक्टर जैसा ही था। हैसे ने ये किताब 1919 में लिखना शुरू की और तीन साल में पूरी की, और बीच में, उन्हें एक बहुत बड़ी मानसिक समस्या का सामना करना पड़ा। ये किताब सिद्धार्थ की कहानी है, प्राचीन भारत के एक नौजवान की कहानी। जो दौलत और आराम छोड़कर, सत्य की खोज में निकल जाता है। आप हर पन्ने पर उसके पर्सनल स्ट्रगल महसूस कर सकते हैं और सिद्धार्थ की बेचैनी, दुनियादारी से उनका उबना, सच को अपने आप जानने की उनकी इच्छा भी इसमें दिखती है। फिर से बताना चाहूँगा, ये किताब सिर्फ़ हैसे के लिए फिलोसोफी की बात नहीं थी, बल्कि उनकी मानसिक परेशानी से बचने का रास्ता था। वो दुःख से बाहर निकलने के लिए लिख रहे थे और अपने अंदर के ज्ञान की ओर बढ़ रहे थे। मैं यहाँ किताब पर बहुत ज़्यादा बात नहीं करूँगा। पर दो खास बातें ज़रूर बताना चाहूँगा, जो मैंने उससे सीखीं और आज तक याद हैं। पहली बात किताब के उस सीन से है, जो मेरे लिए इस किताब के सबसे शानदार सीन्स में से है। सिद्धार्थ नदी के किनारे बैठे ध्यान से सुन रहे हैं और उस नदी में उन्हें जीवन की सारी आवाजें सुनाई देती हैं, समय की हर तरह की आवाजें। बीता समय, वर्तमान और भविष्य, सब एक साथ बह रहे हैं। उस सीन से मुझे ये अहसास हुआ और समझ आया कि आम इंसानों की तरह सोचें, तो समय सीधी धारा की ही तरह बहता है, लेकिन, दूसरे मायने में देखें तो वक्त एक धोखा है। सच्चाई तो ये है कि, सब कुछ एक साथ एक समय में ही मौजूद है। तो इस तरह हमारा जीवन पल दो पल का भी है और साथ ही ये अनंत भी। इन बातों को शब्दों में बताना मुश्किल है, मुझे लगता है, ये तो बस खुद के अहसास से समझ में आती हैं।

मुझे डेविड फ़ॉस्टर वॉलेस की वह मछली वाली कहानी याद आती है। वो मेरे एक और पसंदीदा राइटर हैं। जो उन्होंने 20 साल पहले एक कॉन्वोकेशन स्पीच में बताई थी। कहानी ये है कि, दो जवान मछलियाँ पानी में तैर रही थीं। तभी वो एक बूढ़ी मछली से मिलती हैं, जो दूसरी दिशा में जा रही थी। बूढ़ी मछली सिर हिलाकर कहती है, "गुड मॉर्निंग बच्चों, पानी कैसा है?" जवान मछलियाँ आगे तैरती हैं और फिर एक-दूसरे से मुड़कर पूछती हैं, "ये पानी क्या होता है?" जैसे समय आगे बढ रहा है, उसका धोखा वो इस कहानी में पानी है। हम इंसान इसमें पूरी तरह डूबे हुए हैं। पर ज्ञान मिलने का मतलब है, थोड़ा पीछे हटकर, असलियत को एक गहरे नज़रिए से देख पाना, जहाँ सब कुछ आपस में जुड़ा हुआ है, पूरी तरह से। ये सब वक़्त और दुनिया दोनों से परे है। इस नॉवेल से एक और ज़रूरी सबक, जिसने मुझ पर बहुत असर किया, जब मैं जवान था। वो ये है कि किसी को भी आँख बंद करके फॉलो नहीं करना चाहिए। या सिर्फ़ किताबों से ही दुनिया के बारे में नहीं सीखना चाहिए। बल्कि अपना रास्ता खुद बनाना चाहिए और खुद को दुनिया में झोंक देना चाहिए, जहाँ ज़िंदगी के सबक सिर्फ़ तभी सीखे जा सकते हैं, जब उनका सीधा अनुभव लिया हो। और हर एक्सपीरियंस, चाहे अच्छा हो या बुरा, ग़लतियाँ, दुख, और वो वक्त भी जो आपको लगता है आपने बर्बाद किया, ये सब आपकी तरक्की का जरूरी हिस्सा हैं। इसी बात पर, हैसे ज्ञान और समझदारी में फर्क बताते हैं। ज्ञान तो कोई भी सिखा सकता है। पर समझदारी तो बस तभी मिलती है, जब आप ज़िंदगी की उथल-पुथल का सामना करते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो, समझदारी का रास्ता दुनियादारी को ठुकराने से नहीं, बल्कि उसमें पूरी तरह डूब जाने से मिलता है। तो मैंने इस पूर्वी दर्शन के नज़रिए से, दुनिया को देखने की शुरुआत की। पर हैसे की कई किताबों ने मुझ पर असर डाला। तो मेरी ये सलाह है कि "डेमियन" तब पढ़ें, जब आप जवान हों, "स्टैपनवॉल्फ" जब थोड़े बड़े हो जाएं, "सिद्धार्थ" किसी भी उम्र में, खासकर मुश्किल वक़्त में। और "द ग्लास बीड गेम" अगर आप हैसे की सबसे महान रचना पढ़ना चाहें, जो हमें गहराई से यह बताती है कि इंसान का दिमाग, और मानव सभ्यता, कैसे ज्ञान, समझ और सत्य की तलाश में लग सकते हैं। पर "सिद्धार्थ" ही एक ऐसी किताब है, जिसे मैंने दो से ज़्यादा बार पढ़ा है। मेरी अपनी ज़िंदगी में, जब भी कोई मुश्किल आती है, तो मुझे उस किताब का वो पल याद आता है, जब सिद्धार्थ से पूछा जाता है कि उनमें क्या खूबियाँ हैं, उनका जवाब बस ये होता है, "मैं सोच सकता हूँ, मैं इंतज़ार कर सकता हूँ और मैं उपवास रख सकता हूँ।" चलिए, इसे थोड़ा समझाता हूँ। सच में, पहले हिस्से में, "मैं सोच सकता हूँ," की बात है। जैसा कि मारकस ऑरेलियस ने कहा, "आपकी ज़िंदगी की क्वालिटी, आपके विचारों की क्वालिटी से तय होती है।" दूसरा हिस्सा है, "मैं इंतज़ार कर सकता हूँ," सब्र और इंतज़ार करना अक्सर, सच में, किसी प्रॉब्लम का सामना करने का सही तरीका होता है। वक्त के साथ, समझ और गहराई भी आती है। तीसरा हिस्सा है, "मैं उपवास रख सकता हूँ," ज़रूरत पड़ने पर, कम में भी जीना और खुश रहना, आज़ाद होने की पहली शर्त है। जहाँ मन, शरीर और समाज, सभी आपको बंधन में रखना चाहते हैं। तो ठीक है, दोस्तों! बुरा लग रहा है, पर इस एपिसोड में हमारा साथ यहीं तक था। हमेशा की तरह, आपका धन्यवाद और सालों से सपोर्ट करने के लिए भी आपका बहुत धन्यवाद। भगवद गीता के कुछ शब्दों के साथ, मैं आपसे विदा लेता हूँ। "जो जीवन की एकता का अनुभव करता है, वो हर प्राणी में अपनी आत्मा को देखता है और सभी प्राणियों में अपनी आत्मा को, और वो सभी को बिना किसी भेदभाव से देखता है।" सुनने के लिए शुक्रिया। अगली बार आपसे फिर मिलूँगा।