नमो बुद्धाय!
संस्कृति मंत्री श्रीमान गजेंद्र सिंह शेखावत जी, माइनॉरिटी अफेयर्स मिनिस्टर श्री किरण रिजिजू जी, भंते भदंत राहुल बोधी महाथेरो जी, वेनेरेबल चांगचुप छोदैन जी, महासंघ के सभी गणमान्य सदस्य, Excellencies, Diplomatic community के सदस्य, Buddhist Scholars, धम्म के अनुयायी, देवियों और सज्जनों।
आज एक बार फिर मुझे अंतर्राष्ट्रीय अभिधम्म दिवस के कार्यक्रम में शामिल होने का सौभाग्य मिला है। अभिधम्म दिवस हमें याद दिलाता है कि करुणा और सद्भावना से ही हम दुनिया को और बेहतर बना सकते हैं। इससे पहले 2021 में कुशीनगर में ऐसा ही आयोजन हुआ था । वहां उस आयोजन में भी मुझे शामिल होने का सौभाग्य मिला था। और ये मेरा सौभाग्य है कि भगवान बुद्ध के साथ जुड़ाव की जो यात्रा मेरे जन्म के साथ ही शुरू हुई है, वो अनवरत जारी है। मेरा जन्म गुजरात के उस वडनगर में हुआ, जो एक समय बौद्ध धर्म का महान केंद्र हुआ करता था। उन्हीं प्रेरणाओं को जीते-जीते मुझे बुद्ध के धम्म और शिक्षाओं के प्रसार के इतने सारे अनुभव मिल रहे हैं।
पिछले 10 वर्षों में, भारत के ऐतिहासिक बौद्ध तीर्थ-स्थानों से लेकर दुनिया के अलग-अलग देशों तक नेपाल में भगवान बुद्ध की जन्मस्थली के दर्शन, मंगोलिया में उनकी प्रतिमा के अनावरण से लेकर श्रीलंका में वैशाख समारोह तक....मुझे कितने ही पवित्र आयोजनों में शामिल होने का अवसर मिला है। मैं मानता हूँ, संघ और साधकों का ये संग, ये भगवान बुद्ध की कृपा का ही परिणाम है। मैं आज अभिधम्म दिवस के इस अवसर पर भी आप सभी को, और भगवान बुद्ध के सभी अनुयायियों को अनेक-अनेक शुभकामनाएँ देता हूँ। आज शरद पूर्णिमा का पवित्र पर्व भी है। आज ही, भारतीय चेतना के महान ऋषि वाल्मीकि जी की जन्म जयंती भी है। मैं समस्त देशवासियों को शरद पूर्णिमा और वाल्मीकि जयंती की भी बधाई देता हूं।
आदरणीय साथियों,
इस वर्ष अभिधम्म दिवस के आयोजन के एक साथ, एक ऐतिहासिक उपलब्धि भी जुड़ी है। भगवान बुद्ध के अभिधम्म, उनकी वाणी, उनकी शिक्षाएँ...जिस पाली भाषा में ये विरासत विश्व को मिली हैं, इसी महीने भारत सरकार ने उसे क्लासिकल लैंग्वेज, शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया है। और इसलिए, आज ये अवसर और भी खास हो जाता है। पाली भाषा को क्लासिकल लैंग्वेज का ये दर्जा, शास्त्रीय भाषा का ये दर्जा, पाली भाषा का ये सम्मान...भगवान बुद्ध की महान विरासत का सम्मान है। आप सभी जानते हैं, अभिधम्म धम्म के निहित है। धम्म को, उसके मूल भाव को समझने के लिए पाली भाषा का ज्ञान आवश्यक है। धम्म यानी, बुद्ध के संदेश, बुद्ध के सिद्धान्त...धम्म यानी, मानव के अस्तित्व से जुड़े सवालों का समाधान...धम्म यानी, मानव मात्र के लिए शांति का मार्ग...धम्म यानी, बुद्ध की सर्वकालिक शिक्षाएँ.....और, धम्म यानी, समूची मानवता के कल्याण का अटल आश्वासन! पूरा विश्व भगवान बुद्ध के धम्म से प्रकाश लेता रहा है।
लेकिन साथियों,
दुर्भाग्य से, पाली जैसी प्राचीन भाषा, जिसमें भगवान बुद्ध की मूल वाणी है, वो आज सामान्य प्रयोग में नहीं है। भाषा केवल संवाद का माध्यम भर नहीं होती! भाषा सभ्यता और संस्कृति की आत्मा होती है। हर भाषा से उसके मूल भाव जुड़े होते हैं। इसलिए, भगवान बुद्ध की वाणी को उसके मूल भाव के साथ जीवंत रखने के लिए पाली को जीवंत रखना, ये हम सबकी ज़िम्मेदारी है। मुझे खुशी है कि हमारी सरकार ने बड़ी नम्रता पूर्वक ये ज़िम्मेदारी निभाई है। भगवान बुद्ध के करोड़ों अनुयायियों को, उनकी लाखों भिक्षुकों की अपेक्षा को पूरा करने का हमारा नम्र प्रयास है। मैं इस महत्वपूर्ण निर्णय के लिए भी आप सबको बहुत-बहुत बधाई देता हूँ।
आदरणीय साथियों,
भाषा, साहित्य, कला, आध्यात्म...,किसी भी राष्ट्र की ये धरोहरें उसके अस्तित्व को परिभाषित करती हैं। इसीलिए, आप देखिए, दुनिया के किसी भी देश में कहीं कुछ सौ साल पुरानी चीज मिल भी होती है तो उसे पूरी दुनिया के सामने गर्व से प्रस्तुत करता है। हर राष्ट्र अपनी हेरिटेज को अपनी पहचान के साथ जोड़ता है। लेकिन दुर्भाग्य से, भारत इस दिशा में काफी पीछे छूट गया था। आज़ादी के पहले भारत की पहचान मिटाने में लगे आक्रमणकारी....और आज़ादी के बाद गुलामी की मानसिकता के शिकार लोग...भारत में एक ऐसे ecosystem का कब्जा हो गया था जिसने हमें उल्टी दिशा में धकेलने के लिए काम किया। जो बुद्ध भारत की आत्मा में बसे हैं...आज़ादी के समय बुद्ध के जिन प्रतीकों को भारत के प्रतीक चिन्हों के तौर पर अंगीकार किया गया....बाद के दशकों में उन्हीं बुद्ध को भूलते चले गए। पाली भाषा को सही स्थान मिलने में 7 दशक ऐसे ही नहीं लगे।
लेकिन साथियों,
देश अब उस हीनभावना से मुक्त होकर आत्मसम्मान, आत्मविश्वास, आत्मगौरव के साथ आगे बढ़ रहा है, देश इसकी बदौलत बड़े फैसले कर रहा है। इसीलिए, आज एक ओर पाली भाषा को शास्त्रीय भाषा, क्लासिकल लैंग्वेज का दर्जा मिलता है, तो साथ ही यही सम्मान मराठी भाषा को भी मिलता है। और देखिए कितना बड़ा सुभग संयोग है कि बाबा साहेब आंबेडकर से भी ये सुखद रूप से जुड़ जाता है। बौद्ध धर्म के महान अनुयायी हमारे बाबा साहब आंबेडकर….पाली में उनकी धम्म दीक्षा हुई थी, और वो स्वयं उनकी मातृभाषा मराठी थी। इसी तरह, हमने बांग्ला, असमिया और प्राकृत भाषा को भी शास्त्रीय भाषा, क्लासिकल लैंग्वेज का दर्जा दिया है।
साथियों,
भारत की ये भाषाएँ ही हमारी विविधता को पोषित करती हैं। अतीत में, हमारी हर भाषा ने राष्ट्र निर्माण में अहम भूमिका निभाई है। आज देश ने जो नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति अपनाई है, वो भी इन भाषाओं के संरक्षण का माध्यम बन रही है। देश के युवाओं को जब से मातृभाषा में पढ़ाई का विकल्प मिला है, मातृभाषाएं और ज्यादा मजबूत हो रही हैं।
साथियों,
हमने अपने संकल्पों को पूरा करने के लिए लालकिले से ‘पंच प्राण’ का विज़न देश के सामने रखा है। पंच प्राण यानी- विकसित भारत का निर्माण! गुलामी की मानसिकता से मुक्ति! देश की एकता! कर्तव्यों का पालन! और अपनी विरासत पर गर्व! इसीलिए, आज भारत, तेज़ विकास और समृद्ध विरासत के दोनों संकल्पों को एक साथ सिद्ध करने में जुटा हुआ है। भगवान बुद्ध से जुड़ी विरासत का संरक्षण इस अभियान की प्राथमिकता है। आप देखिए, हम भारत और नेपाल में भगवान बुद्ध से जुड़े स्थानों को बुद्ध सर्किट के रूप में विकसित कर रहे हैं। कुशीनगर में इंटरनेशनल एयरपोर्ट भी शुरू किया गया है। लुम्बिनी में India International Centre for Buddhist Culture and Heritage का निर्माण हो रहा है। लुम्बिनी में ही Buddhist University में हमने डॉ बाबा साहेब अम्बेडकर Chair for Buddhist Studies की स्थापना भी की है। बोधगया, श्रावस्ती, कपिलवस्तु, सांची, सतना और रीवा जैसे कई स्थानों पर कितने ही development projects चल रहे हैं। तीन दिन बाद 20 अक्टूबर को मैं वाराणसी जा रहा हूं...जहां सारनाथ में हुए अनेक विकास कार्यों का लोकार्पण भी किया जाएगा। हम नए निर्माण के साथ-साथ अपने अतीत को भी सुरक्षित कर रहे हैं। पिछले 10 वर्षों में हम 600 से ज्यादा प्राचीन धरोहरों, कलाकृतियों और अवशेषों को दुनिया के अलग-अलग देशों से वापस भारत लाए हैं, 600 से ज्यादा । और इनमें से कई अवशेष बौद्ध धर्म से संबंधित हैं। यानि बुद्ध की विरासत के पुनर्जागरण में, भारत अपनी संस्कृति और सभ्यता को नए सिरे से प्रस्तुत कर रहा है।
आदरणीय साथियों,
भारत की बुद्ध में आस्था, केवल अपने लिए ही नहीं बल्कि पूरी मानवता की सेवा का मार्ग है। दुनिया के देश, जो भी बुद्ध को जानने और मानने वाले लोग हैं, उन्हें हम इस मिशन में एक साथ ला रहे हैं। मुझे खुशी है, दुनिया के कई देशों में इस दिशा में सार्थक प्रयास भी किए जा रहे हैं। म्यांमार, श्रीलंका, थाईलैंड समेत कई देशों में पाली भाषा में टीकाएं संकलित की जा रही हैं। भारत में भी हम ऐसे प्रयासों को तेज कर रहे हैं। पारंपरिक तरीकों के साथ-साथ हम पाली को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स, डिजिटल आर्काइव्स और ऐप्स के जरिए भी प्रमोट करने की तरफ आगे बढ़ रहे हैं। भगवान बुद्ध को लेकर मैंने पहले भी कहा है- “बुद्ध बोध भी हैं, और बुद्ध शोध भी हैं”। इसलिए, हम भगवान बुद्ध को जानने के लिए आंतरिक और अकैडमिक, दोनों तरह की रिसर्च पर जोर दे रहे हैं। और मुझे खुशी है कि इसमें हमारे संघ, हमारे बौद्ध संस्थान, हमारे भिक्षुकगण इस दिशा में युवाओं का मार्गदर्शन कर रहे हैं।
आदरणीय साथियों,
21वीं सदी का ये समय….आज विश्व की geopolitical परिस्थिति...आज एक बार फिर विश्व कई अस्थिरताओं और आशंकाओं से घिरा है। ऐसे में, बुद्ध न केवल प्रासंगिक हैं, बल्कि अपरिहार्य भी बन चुके हैं। मैंने एक बार यूनाइटेड नेशन्स में कहा था- भारत ने विश्व को युद्ध नहीं, बुद्ध दिये हैं। और आज मैं बड़े विश्वास से कहता हूँ- पूरे विश्व को युद्ध में नहीं, बुद्ध में ही समाधान मिलेंगे। मैं आज अभिधम्म पर्व पर पूरे विश्व का आवाहन करता हूं- बुद्ध से सीखिए...युद्ध को दूर करिए...शांति का पथ प्रशस्त करिए...क्योंकि, बुद्ध कहते हैं- “नत्थि-संति-परम-सुखं”। अथवा अर्थात्, शांति से बड़ा कोई सुख नहीं है। भगवान बुद्ध कहते हैं-
“नही वेरेन वैरानि सम्मन्तीध कुदाचनम्
अवेरेन च सम्मन्ति एस धम्मो सनन्ततो”
वैर से वैर, दुश्मनी से दुश्मनी शांत नहीं होती। वैर अवैर से, मानवीय उदारता से खत्म होता है। बुद्ध कहते हैं- “भवतु-सब्ब-मंगलम्” ।। यानी, सबका मंगल हो, सबका कल्याण हो- यही बुद्ध का संदेश है, यही मानवता का पथ है।
आदरणीय साथियों,
2047 तक के ये 25 वर्ष का कार्यकाल, इस 25 वर्ष को अमृतकाल की पहचान दी है। अमृतकाल का ये समय भारत के उत्कर्ष का होगा। ये विकसित भारत के निर्माण का कालखंड होगा। भारत ने अपने विकास का जो रोडमैप बनाया है, उसमें भगवान बुद्ध की शिक्षाएँ हमारा पथप्रदर्शन करेंगी। ये बुद्ध की धरती पर ही संभव है कि आज दुनिया की सबसे बड़ी आबादी संसाधनों के उपयोग को लेकर सजग है। आप देखिए, आज क्लाइमेट चेंज के रूप में इतना बड़ा संकट दुनिया के सामने है। भारत इन चुनौतियों के लिए न केवल खुद समाधान तलाश रहा है, बल्कि उन्हें विश्व के साथ साझा भी कर रहा है। हमने दुनिया के कई देशों को साथ जोड़कर मिशन LiFE शुरू किया है। भगवान बुद्ध कहते थे- “अत्तान मेव पठमन्// पति रूपे निवेसये”।। अर्थात्, हमें किसी भी अच्छाई की शुरुआत स्वयं से करनी चाहिए। बुद्ध की यही शिक्षा मिशन LiFE के केंद्र में है। यानी, sustainable future का रास्ता हर व्यक्ति की sustainable lifestyle से निकलेगा।
भारत ने जब दुनिया को इंटरनेशनल सोलर अलायंस जैसा मंच दिया….भारत ने जब जी-20 की अपनी अध्यक्षता में Global Biofuel Alliance का गठन किया...भारत ने जब One Sun, One World, One Grid का विजन दिया...तो उसमें बुद्ध के विचारों का ही प्रतिबिंब दिखता है। हमारा हर प्रयास दुनिया के लिए sustainable future को सुनिश्चित कर रहा है। India-Middle East- Europe Economic corridor हो, हमारा ग्रीन हाइड्रोजन मिशन हो, भारतीय रेलवे को 2030 तक नेट जीरो करने का लक्ष्य हो, पेट्रोल में इथेनॉल ब्लेंडिंग को बढ़ाकर 20 परसेंट तक करना हो...ऐसे कई तरीकों से हम इस धरती की रक्षा का अपना मजबूत इरादा दिखा रहे हैं, जता रहे हैं।
साथियों,
हमारी सरकार के कितने ही निर्णय, बुद्ध, धम्म और संघ से प्रेरित रहे हैं। आज दुनिया में जहां भी संकट की स्थिति होती है, वहां भारत first responder के रूप में मौजूद रहता है। यह बुद्ध के करुणा के सिद्धांत का ही विस्तार है। चाहे तुर्किए में भूकंप हो, श्रीलंका में आर्थिक संकट की स्थिति हो, कोविड जैसी महामारी के हालात हों, भारत ने आगे बढ़कर मदद का हाथ बढ़ाया है। विश्वबंधु के रूप में भारत सबको साथ लेकर चल रहा है। आज योग हो या मिलेट्स से जुड़ा अभियान, आयुर्वेद हो या नैचुरल फार्मिंग से जुड़ा अभियान, हमारे ऐसे प्रयासों के पीछे भगवान बुद्ध की भी प्रेरणा है।
आदरणीय साथियों,
विकसित होने की तरफ बढ़ रहा भारत, अपनी जड़ों को भी मजबूत कर रहा है। हमारा प्रयास है कि भारत का युवा, साइंस और टेक्नॉलॉजी में विश्व का नेतृत्व करे। और साथ ही, हमारा युवा, अपनी संस्कृति और अपने संस्कारों पर भी गर्व करे। इन प्रयासों में बौद्ध धर्म की शिक्षाएं हमारी बड़ी मार्गदर्शक हैं। मुझे भरोसा है, हमारे संतों और भिक्षुकों के मार्गदर्शन से, भगवान बुद्ध की शिक्षाओं से हम सब साथ मिलकर निरंतर आगे बढ़ेंगे।
मैं आज के इस पवित्र दिवस पर, इस आयोजन के लिए आप सभी को एक बार फिर अनेक-अनेक शुभकामनाएं देता हूं। और पाली भाषा शास्त्रीय भाषा बनने के गौरव के पल, गौरव के साथ-साथ उस भाषा के संरक्षण, संवर्धन के लिए हम सबकी एक सामूहिक जिम्मेवारी भी बनती है, उस संकल्प को हम लें, उसे पूरा करने का प्रयास करें, ये ही अपेक्षाओं के साथ मैं फिर एक बार आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद करता हूं।
नमो बुद्धाय!