कैबिनेट में मेरे सहयोगी जी. किशन रेड्डी जी, मीनाक्षी लेखी जी, अर्जुन राम मेघवाल जी, Louvre म्यूजियम के निदेशक मैनुअल रबाते जी, दुनिया के अलग-अलग देशों से आए अतिथि गण, अन्य महानुभाव, देवियों और सज्जनों, आप सभी को International Museum Day की बहुत-बहुत शुभकामनाएं। आज यहां म्यूजियम वर्ल्ड के दिग्गज जुटे हुए हैं। आज का ये अवसर इसलिए भी खास है क्योंकि भारत अपनी आजादी के 75 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में अमृत महोत्सव मना रहा है।
International Museum Expo में भी इतिहास के अलग-अलग अध्याय, आधुनिक तकनीक से जुड़कर जीवंत हो रहे हैं। जब हम किसी म्यूजियम में जाते हैं, तो ऐसा महसूस होता है जैसे बीते हुए कल से, उस दौर से हमारा परिचय हो रहा हो, हमारा साक्षात्कार हो रहा हो। म्यूजियम में जो दिखता है, वो तथ्यों के आधार पर होता है, प्रत्यक्ष होता है, Evidence Based होता है। म्यूजियम में हमें एक ओर अतीत से प्रेरणाएँ मिलती हैं, तो दूसरी ओर भविष्य के प्रति अपने कर्तव्यों का बोध भी होता है।
आपकी जो थीम है- Sustainability and Well Being, वो आज के विश्व की प्राथमिकताओं को highlight करती है, और इस आयोजन को और ज्यादा प्रासंगिक बनाती है। मुझे विश्वास है, आपके प्रयास, संग्रहालयों में युवा पीढ़ी की रुचि को और बढ़ाएँगे, उन्हें हमारी धरोहरों से परिचित कराएंगे। मैं आप सभी का इन प्रयासों के लिए अभिनंदन करता हूं।
यहां आने से पहले मुझे कुछ पल म्यूजियम में बिताने का अवसर मिला, हमें कई कार्यक्रमों में जाने का अवसर आता है सरकारी, गैर सरकारी, लेकिन मैं कह सकता हूं कि मन पर प्रभाव पैदा करने वाला पूरा प्लानिंग, उसका एजुकेशन और सरकार भी इस ऊंचाई के काम कर सकती है जिसके लिए बहुत गर्व होता है, वैसी व्यवस्था है। और मैं मानता हूं कि आज का ये अवसर भारत के म्यूजियम की दुनिया में एक बहुत बड़ा turning point ले करके आएगा। ऐसा मेरा पक्का विश्वास है।
साथियों,
गुलामी के सैकड़ों वर्षों के लंबे कालखंड ने भारत का एक नुकसान ये भी किया कि हमारी लिखित-अलिखित बहुत सारी धरोहर नष्ट कर दी गई। कितनी ही पांडुलिपियां, कितने ही पुस्तकालय, गुलामी के कालखंड में जला दिए गए, तबाह कर दिए गए। ये सिर्फ भारत का नुकसान नहीं हुआ है, ये पूरी दुनिया का, पूरी मानव जाति का नुकसान हुआ है। दुर्भाग्य से आजादी के बाद, अपनी धरोहरों को संरक्षित करने के जो प्रयास होने चाहिए थे, वो उतने हो नहीं पाए हैं।
लोगों में धरोहरों के प्रति जागरूकता की कमी ने इस क्षति को और ज्यादा बढ़ा दिया। और इसीलिए, आज़ादी के अमृतकाल में भारत ने जिन ‘पंच-प्राणों’ की घोषणा की है, उनमें प्रमुख है- अपनी विरासत पर गर्व! अमृत महोत्सव में हम भारत की धरोहरों को संरक्षित करने के साथ ही नया कल्चरल इंफ्रास्ट्रक्चर भी बना रहे हैं। देश के इन प्रयासों में स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास भी है, और हजारों वर्षों की सांस्कृतिक विरासत भी है।
मुझे बताया गया है कि आपने इस आयोजन में लोकल और रूरल म्यूजियम पर विशेष महत्व दिया है। भारत सरकार भी लोकल और रूरल म्यूजियम को संरक्षित करने के लिए एक विशेष अभियान चला रही है। हमारे हर राज्य, हर क्षेत्र और हर समाज के इतिहास को संरक्षित करने के प्रयास किए जा रहे हैं। हम स्वाधीनता संग्राम में अपनी tribal community के योगदान को अमर बनाने के लिए 10 विशेष म्यूज़ियम्स भी बना रहे हैं।
मैं समझता हूँ कि, ये पूरे विश्व में एक ऐसी अनूठी पहल है जिसमें Tribal Diversity की इतनी व्यापक झलक दिखने वाली है। नमक सत्याग्रह के दौरान महात्मा गांधी जिस पथ पर चले थे, उस दांडी पथ को भी संरक्षित किया गया है। जिस स्थान पर गांधी जी ने नमक कानून तोड़ा था, वहां आज एक भव्य मेमोरियल बना हुआ है। आज देश और दुनिया से लोग दांडी कुटीर देखने गांधीनगर आते हैं।
हमारे संविधान के मुख्य शिल्पी, बाबा साहेब आंबेडकर का जहां महापरिनिर्वाण हुआ, वो स्थान दशकों से बदहाल था। हमारी सरकार ने इस स्थान को, दिल्ली में 5 अलीपुर रोड को नेशनल मेमोरियल में परिवर्तित किया है। बाबा साहेब के जीवन से जुड़े पंच तीर्थ, महू में जहां उनका जन्म हुआ, लंदन में जहां वो रहे, नागपुर में जहां उन्होंने दीक्षा ली, मुंबई की चैत्य भूमि जहां उनकी समाधि है, ऐसे स्थानों का भी विकास किया जा रहा है। भारत की 580 से ज्यादा रियासतों को जोड़ने वाले सरदार साहब की गगनचुंबी प्रतिमा- स्टैच्यू ऑफ यूनिटी आज देश का गौरव बनी हुई है। स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के भीतर भी एक म्यूजियम बना हुआ है।
चाहे पंजाब में जलियावालां बाग हो, गुजरात में गोविंद गुरू जी का स्मारक हो, यूपी के वाराणसी में मान महल म्यूजियम हो, गोवा में म्यूजियम ऑफ क्रिश्चियन आर्ट हो, ऐसे अनेक स्थानों को संरक्षित किया गया है। म्यूज़ियम से जुड़ा एक और अनूठा प्रयास भारत में हुआ है। हमने राजधानी दिल्ली में देश के सभी पूर्व प्रधानमंत्रियों की यात्रा और योगदान को समर्पित पीएम-म्यूज़ियम बनाया है। आज पूरे देश से लोग आकर पीएम म्यूज़ियम में, आज़ादी के बाद की भारत की विकास यात्रा के साक्षी बन रहे हैं। मैं यहां आए अपने अतिथियों से विशेष आग्रह करूंगा कि एक बार इस म्यूजियम को भी अवश्य देखें।
साथियों,
जब कोई देश, अपनी विरासत को सहेजना शुरू कर देता है, तो इसका एक और पक्ष उभरकर सामने आता है। ये पक्ष है- दूसरे देशों के साथ संबंधों में आत्मीयता। जैसे कि भगवान बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद भारत ने उनके पवित्र अवशेषों को पीढ़ी-दर-पीढ़ी संरक्षित किया है। और आज वो पवित्र अवशेष भारत ही नहीं, दुनिया के करोड़ों बौद्ध अनुयायियों को एक साथ जोड़ रहे हैं। अभी पिछले वर्ष ही हमने बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर 4 पवित्र अवशेषों को मंगोलिया भेजा था। वो अवसर पूरे मंगोलिया के लिए आस्था का एक महापर्व बन गया था।
बुद्ध के जो रेलिक्स हमारे पड़ोसी देश श्रीलंका में हैं, बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर उन्हें भी यहाँ कुशीनगर लाया गया था। ऐसे ही, गोवा में सेंट क्वीन केटेवान के पवित्र अवशेषों की धरोहर भी भारत के पास संरक्षित रही है। मुझे याद है, जब हमने सेंट क्वीन केटेवान के रेलिक्स को जॉर्जिया भेजा था तो वहां कैसे राष्ट्रीय पर्व का माहौल बन गया था। उस दिन जॉर्जिया के अनेकों नागरिक वहां के सड़कों पर एक बड़ा मैले जैसा माहौल हो गया था, उमड़ पड़े थे। यानी, हमारी विरासत, वैश्विक एकता-World Unity का भी सूत्रधार बनती है। और इसलिए, इस विरासत को संजाने वाले हमारे म्यूजियम्स की भूमिका भी और ज्यादा बढ़ जाती है।
साथियों,
जैसे हम परिवार में साधनों को आने वाले कल के लिए जोड़ते हैं, वैसे ही हमें पूरी पृथ्वी को एक परिवार मानकर अपने संसाधनों को बचाना है। मेरा सुझाव है कि हमारे म्यूज़ियम्स इन वैश्विक प्रयासों में active participants बनें। हमारी धरती ने बीती सदियों में कई प्राकृतिक आपदाएँ झेली हैं। इनकी स्मृतियाँ और निशानियाँ आज भी मौजूद हैं। हमें ज्यादा से ज्यादा म्यूज़ियम्स में इन निशानियों की, इनसे जुड़ी तस्वीरों की गैलरी की दिशा में सोचना चाहिए।
हम अलग-अलग समय में धरती की बदलती तस्वीर का चित्रण भी कर सकते हैं। इससे आने वाले समय में, लोगों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ेगी। मुझे बताया गया है कि इस expo में gastronomic experience के लिए भी स्पेस बनाया गया है। यहाँ आयुर्वेद और मिलेट्स-श्रीअन्न पर आधारित व्यंजनों का अनुभव भी लोगों को मिलेगा।
भारत के प्रयासों से आयुर्वेद और मिलेट्स-श्रीअन्न दोनों ही इन दिनों एक ग्लोबल मूवमेंट बन चुके हैं। हम श्रीअन्न और अलग-अलग वनस्पतियों की हजारों वर्षों की यात्रा के आधार पर भी नए म्यूज़ियम बना सकते हैं। इस तरह के प्रयास इस नॉलेज सिस्टम को आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाएंगे और उन्हें अमर बनाएँगे।
साथियों,
इन सभी प्रयासों में हमें सफलता तभी मिलेगी, जब हम ऐतिहासिक वस्तुओं के संरक्षण को, देश का स्वभाव बनाएं। अब सवाल ये कि अपनी धरोहरों का संरक्षण, देश के सामान्य नागरिक का स्वभाव बनेगा कैसे? मैं एक छोटा सा उदाहरण देता हूं। क्यों ना भारत में हर परिवार, अपने घर में अपना एक पारिवारिक संग्रहालय बनाए? घर के ही लोगों के विषय में, अपने ही परिवार की जानकारियां। इसमें घर की, घर के बुजुर्गों की, पुरानी और कुछ खास चीजें रखीं जा सकती हैं। आज आप जो एक पेपर लिखते हैं, वो आपको सामान्य लगता है। लेकिन आपकी लेखनी में वही कागज का टुकड़ा, तीन-चार पीढ़ी के बाद एक Emotional Property बन जाएगा। ऐसे ही हमारे स्कूलों को भी, हमारे भिन्न-भिन्न संस्थानों और संगठनों को भी अपने-अपने म्यूजियम जरूर बनाने चाहिए। देखिएगा, इससे कितनी बड़ी और ऐतिहासिक पूंजी भविष्य के लिए तैयार होगी।
जो देश के विभिन्न शहर हैं, वो भी अपने यहां सिटी म्यूजियम जैसे प्रकल्पों को आधुनिक स्वरूप में तैयार कर सकते हैं। इसमें उन शहरों से जुड़ी ऐतिहासिक वस्तुएं रख सकते हैं। विभिन्न पंथों में जो रिकॉर्ड रखने की पुरानी परंपरा हम देखते हैं, वो भी हमें इस दिशा में काफी मदद करेगी।
साथियों,
मुझे खुशी है कि म्यूज़ियम आज युवाओं के लिए सिर्फ एक विजिटिंग प्लेस ही नहीं बल्कि एक करियर ऑप्शन भी बन रहे हैं। लेकिन मैं चाहूँगा कि हम अपने युवाओं को केवल म्यूज़ियम वर्कर्स की दृष्टि से ना देखें। हिस्ट्री और आर्किटैक्चर जैसे विषयों से जुड़े ये युवा ग्लोबल कल्चरल एक्सचेंज के मीडियम बन सकते हैं। ये युवा दूसरे देशों में जा सकते हैं, वहाँ के युवाओं से दुनिया के अलग-अलग कल्चर्स के बारे में सीख सकते हैं, भारत के कल्चर के बारे में उन्हें बता सकते हैं। इनका अनुभव और अतीत से जुड़ाव, अपने देश की विरासत के संरक्षण के लिए बहुत ही प्रभावी सिद्ध होगा
साथियों,
आज जब हम साझी विरासत की बात कर रहे हैं, तो मैं एक साझी चुनौती का भी जिक्र करना चाहता हूं। ये चुनौती है- कलाकृतियों की तस्करी और appropriation. भारत जैसे प्राचीन संस्कृति वाले देश सैकड़ों वर्षों से इससे जूझ रहे हैं। आजादी के पहले और आजादी के बाद भी हमारे देश से अनेकों कलाकृतियां Unethical तरीके से बाहर ले जाई गई हैं। हमें इस तरह के अपराध को रोकने के लिए मिलकर काम करना होगा।
मुझे खुशी है कि आज दुनियाभर में भारत की बढ़ती साख के बीच, अब विभिन्न देश, भारत को उसकी धरोहरें लौटाने लगे हैं। बनारस से चोरी हुई मां अन्नपूर्णा की मूर्ति हो, गुजरात से चोरी हुई महिषासुरमर्दिनी की प्रतिमा हो, चोल साम्राज्य के दौरान निर्मित नटराज की प्रतिमाएं हों, करीब 240 प्राचीन कलाकृतियों को भारत वापस लाया गया है। जबकि इसके पहले कई दशकों तक ये संख्या 20 नहीं पहुंची थी। इन 9 वर्षों में भारत से सांस्कृतिक कलाकृतियों की तस्करी भी काफी कम हुई है।
मेरा दुनियाभर के कला पारखियों से आग्रह है, विशेषकर म्यूजियम से जुड़े लोगों से अपील है कि इस क्षेत्र में सहयोग को और बढ़ाएं। किसी भी देश के किसी भी म्यूज़ियम में कोई ऐसी कलाकृति नहीं हो, जो unethical तरीके से वहाँ पहुंची हो। हमें सभी म्यूज़ियम्स के लिए इसे एक moral commitment बनाना चाहिए।
साथियों,
मुझे विश्वास है, हम अतीत से जुड़े रहकर भविष्य के लिए नए ideas पर इसी तरह काम करते रहेंगे। हम विरासत को सहेंजेंगे भी, और नई विरासत का निर्माण भी करेंगे। इसी कामना के साथ, आप सभी का हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद!