Text of PM's remarks on National Panchayati Raj Day

Published By : Admin | April 24, 2015 | 13:46 IST

मंत्रिपरिषद के मेरे साथी, देश के अलग-अलग भागों से आए हुए पंचायत राज व्‍यवस्‍था के सभी प्रेरक महानुभाव,

जिन राज्‍यों को आज मुझे सम्‍मानित करने का सौभाग्‍य मिला है उन सभी राज्‍यों को मैं हृदय से बधाई देता हूं। आज जिला परिषदों को भी और ग्राम पंचायतों का भी सम्‍मान होने वाला है। उन सबको भी मैं हृदय से बहुत-बहुत अभिनंदन करता हूं। पंचायत राज दिवस पर मैं देशभर में पंचायत राज व्‍यवस्‍था से जुड़े हुए सक्रिय सभी महानुभावों को आज शुभकामनाएं देता हूं।

महात्‍मा गांधी हमेशा कहते थे कि भारत गांवों में बसता है। उन गांवों के विकास की तरफ हम कैसे आगे बढ़े दूर-सुदूर छोटे-छोटे गांवों के भी अब सपने बहुत बड़े हैं। और मुझे विश्‍वास है कि आप सब के नेतृत्‍व में गांव की चहुं दिशा में प्रगति होगी। मैं नहीं मानता हूं कि अब.. जैसे अभी हमारे चौधरी साहब बता रहे थे कि पहले से तीन गुना बजट होने वाला है आपका और तुरंत तालियां बज गई। कभी-कभी मुझे लगता है कि हम जो पंचायत में चुन करके आए हैं, कभी सोचा है कि हम 5 साल के कार्यकाल में हम हमारे गांव को क्‍या दें करके जाना चाहते है? कभी ये सोचा है कि हमारे 5 साल के बाद हमारा गांव हमें कैसे याद करेगा? जब तक हमारे मन में गांव के लिए कुछ कर गुजरना है - ये spirit पैदा नहीं होता है तो सिर्फ बजट के कारण स्थितियां बदलती नहीं हैं।

पिछले 60 साल में जितने रुपए आए होगे उसका सारा total लगा दिया जाए, और फिर देखा जाए कि भई गांव में क्‍या हुआ तो लगेगा कि इतने सारे रुपए गए तो परिणाम क्‍यों नहीं आया? और इसलिए कभी न कभी पंचायत level पर सोचना चाहिए। कुछ राज्‍य ऐसे हैं हमारे देश में जहां पर पंचायतें अपना five year plan बनाती हैं, पंचवर्षीय योजना बनाती हैं। 5 साल में इतने काम हम करेंगे और वो गांव के पंचायत के उसमें वो board पर लिख करके रखते हैं और उसके कारण एक निश्चित दिशा में काम होता है और गांव कुछ समस्‍याओं से बाहर आ जाता है। हम भी आदत डालें कि भई हम 5 साल में हमारे गांव में ये करके जाएंगे। अगर ये हम करते है तो आप देखिए कि बदलाव आना शुरू होगा।

बजट और leadership दोनों का combination कैसे परिणाम लाता है? हम जानते है कि गांव में CC road बनाना ये जैसे एक बहुत बड़ा काम है और बहुत महत्‍वपूर्ण काम है इस प्रकार की मानसिकता बनी हुई है। इसके पीछे कारण क्‍या है वो आप भी जानते है, मैं भी जानता हूं। लेकिन कुछ सरपंच ऐसे होते हैं जो CC road तो बना देते है, CC road तो बना देते है, लेकिन पहले से प्‍लान करके दोनों किनारों पर बढि़यां पेड़ लगा देते है। वृक्षारोपण करते है और जैसे ही गांव में entry करता तो ऐसा हरा-भरा गांव लगता है। तो बजट से तो CC road बनता है लेकिन उनकी leadership quality है कि गांव को जोड़ करके रोड़ बनते ही पौधे लगा देते हैं और वो वृक्ष बन जाते हैं और एकदम से गांव में कोई आता है तो बिल्‍कुल नजरिया ही बदल जाता है। कुछ दूसरे प्रकार के होते हैं सरपंच जो क्‍या करते हैं और गांव में से कोई धनी व्‍यक्ति कहीं कमाने गया तो उसको कहते है कि ऐसा करो भाई तुम गांव को gate लगा दो। तो बड़ा पत्‍थर का 2, 5, 10 लाख का gate लगवा देते हैं। उसको लगता है कि मैंने gate बनवा दिया तो बस गांव का काम हो गया। लेकिन दूसरे को लगता है कि मैं पेड़ लगाऊंगा। आप भी सोचिएं बैठे-बैठे कि सचमुच में जन-भागीदारी से जिसने पेड़ लगाएं हैं, CC road, enter होते ही आधे कि.मी., एक कि.मी. हरे-भरे वृक्षों की घटा के बीच से गांव जाता है तो वो दृश्‍य कैसा होता होगा? ये है leadership की quality कि हम किन चीजों को प्रधानता देते है। इस पर इस काम का प्रभाव होता है.. जिसमें आपको बजट का खर्च नहीं करना है, आपको बजट की चिंता नहीं करनी है। जो मिलने वाला है.. जैसे बताया गया कम से कम 15 लाख और ज्‍यादा से ज्‍यादा 1 करोड़ से भी ज्‍यादा।

लेकिन इसके अतिरिक्‍त बहुत पैसा गांव में आता है। आंगनवाड़ी चलती है, प्राथमिक स्‍कूल चलता है, PHC centre चलता है, बहुत सी चीजें चलती है, जिसका खर्चा तो सरकारी राह से अपनी व्‍यवस्‍था से आता है। इसमें आपको कोई लेना-देना नहीं होता है। क्‍या कभी एक सरपंच के नाते, गांव की पंचायत के नाते हमने इन चीजों पर ध्‍यान केन्द्रित किया है क्‍या? कि भई, मेरे गांव में एक भी बच्‍चा ऐसा नहीं होगा कि जो टीकाकरण में वंचित रह जाए। हम पंचायत के लोग जी-जान से जुटेंगे, गांव को जगाएंगे कि भई टीकाकरण है, सभी बच्‍चों का हुआ है कि नहीं हुआ, चलो देखो! अब इसमें कोई पैसे लगते है है क्‍या? बजट नहीं लगता है, leadership लगती है। एक समाज के प्रति कुछ कार्य करने के दायित्व का भाव लगता है।

हमारे गांव में स्‍कूल तो है, teacher है, सरकार बजट खर्च कर रही है, हमने कभी देखा क्‍या - कि भई हमारे teacher आते है कि नहीं? बच्‍चे स्‍कूल जाते है कि नहीं? समय पर स्‍कूल चलता है कि नहीं चलता? बच्‍चे खेलकूद में हिस्‍सा लेते है कि नहीं लेते? बच्‍चे library का उपयोग करते है कि नहीं करते? Computer दिया है तो चलता है कि नहीं चलता? ये हम एक पंचायत के नाते.. हमारे गांव के बच्‍चे पढ़-लिख करके आगे बढ़ें, आपको बजट खर्च नहीं करना है, न ही बजट की चिंता करनी है सिर्फ आपको गांव की चिंता करनी है, आने वाली पीढ़ी की चिंता करनी है।

हमारे यहां आशा worker हैं, आशा worker को कभी पूछा है कि आपका काम कैसा चल रहा है, कोई कठिनाई है क्या? हर गांव में भी सरकार है लेकिन वो बिखरा पड़ा हुआ है। क्‍या हम एक प्रयास कर सकते है क्‍या कि सप्‍ताह में एक दिन, एक घंटे के लिए, जितने भी सरकारी व्‍यक्ति हैं गांव में, उनको बिठाएंगे एक साथ और बैठ करके अपना गांव, अपना विकास.. उसके लिए क्‍या कर सकते हैं। बैठ करके चर्चा करेंगे तो शिक्षक कहेंगा कि मुझे ये करना है लेकिन हो नहीं रहा है, तो आंगनवाड़ी worker कहेगी कि हां-हां चलो मैं मदद कर देती हूं, आशा worker कहेंगी कि अच्‍छा कोई बात नहीं, मैं कल आपके लिए 2 घंटे लगा दूंगी.. अगर गांव में हम leadership ले करके team बना लें, सरकार के इतने लोग हमारे यहां होते है लेकिन हमें भी पता नहीं होता। सरकार के इतने लोग हमारे यहां रहते हैं लेकिन हमें भी पता नहीं होता है। Even बस का driver, conductor भी रहता होगा और बस चलाता होगा, वो भी तो एक सरकार का मुलाजिम है। Constable होता होगा, वो भी एक मुलाजिम है। पटवारी है, वो भी एक मुलाजिम है।

क्या कभी हमने ये सोचा है, सप्ताह में एक घंटा कम से कम हम सरकार के रूप में एक साथ बैठेंगे? सामूहिक रूप से अपने पंचायत के विकास की चर्चा करेंगे। आप देखिए, देखते ही देखते बदलाव शुरू हो जाएगा, Team बनना शुरू हो जाएगा। और मैं वो बातें नहीं बता रहूं जिसमें बजट एक समस्या है। लेकिन वरना हमारे देश में एक ऐसा माहौल बना दिया गया है कि क्यों नहीं होता है, बजट नहीं है.. हकीकत वो नहीं है। बजट है लेकिन जो काम परिणाम नहीं देते हैं उसकी चिंता हमें ज्यादा करने की आवश्यकता है। हमारे गांव में कोई drop out होता है बच्चा, क्या हमें पीड़ा होती है क्या, हमारा खुद का बच्चा अगर स्कूल छोड़ दे तो हमें दुख होता है। अगर हम पंचायत के प्रधान हैं तो गांव का भी कोई बच्चा स्कूल छोड़ दे, हमें उतनी ही पीड़ा होनी चाहिए, पूरी पंचायत को दर्द होना चाहिए। अगर ये हम करते हैं, अगर ये हम करते हैं, मैं नहीं मानता हूं कि हमारे गांव में कोई अशिक्षित रहेगा। और कोई सरंपच ये तय करके कि मेरे कार्यकाल में पांच साल में एक भी बच्चा drop out नहीं होगा। अगर इतना भी कर ले तो मैं कहता हूं, उस सरपंच ने एक पीढ़ी की सेवा कर-करके जा रहा है। ऐसा मैं मानता हूं।

नरेगा का काम हर गांव में चलता है। क्या हम उसमें पानी के लिए प्राथमिकता दें? जितनी ताकत लगानी है, लगाएं लेकिन पानी का प्रबंधन करने के लिए ही नरेगा का उपयोग करें, तो क्या कभी पानी का संकट आएगा क्या? हम व्यवस्थाओं को विकसित कर सकते हैं। आवश्यकता ये है कि मिलकर के नेतृत्व दें। हमारे गांव में कुछ लोग तो होंगे जो सरकार में कभी न कभी मुलाजिम रहे हों। Teacher रहे हों, पटवारी रहे हों और retired हो गए हों। यानी सरकार का पेंशन लेते हों। सरकारी मुलाजिम होने के नाते, निवृत्त होने के बाद पेंशन लेते हों। किसी गांव में तीन होंगे, पांच होंगे, दस होंगे, पंद्रह होंगे। क्या महीने में एक बार इन retired लोगों की मिटिंग कर सकते हैं? उनका अनुभव क्योंकि वो खाली हैं, समय हैं उनके पास, अगर मान लीजिए गांव में 5 retired teacher हैं। उनको कहें कि देखिए भई अपने गांव में चार बच्चे ऐसे हैं, बहुत बेचारे पीछे रह गए, थोड़ा सा समय दीजिए, थोड़ा सा इन बेचारों को पढाइए ना। अगर वो retired हुआ होगा न तो भी उसके DNA में teaching पड़ा हुआ होगा। उसको कहोगे हां-हां चलिए मैं समझ लेता हूं। इन चार गरीब बच्चों को मैं पढ़ा दूंगा, मैं उनकी चिंता करूंगा। हम थोड़ा motivate करें लोगों को, हम नेतृत्व करें आप देखिए गांव हमारा ऐसा नहीं हो सकता क्‍या? अपना गांव.. और मैंने देखा जी, देश में मैंने कई गांव ऐसे देखे हैं कि जहां उस सरपंच की सक्रियता के कारण गांव में परिवर्तन आया है।

मैं जब मुख्यमंत्री था, एक घटना ने मुझे बहुत.. यानी मेरे मन को बहुत आंदोलित किया था। खेड़ा district में, जहां सरदार पटेल साहब का जन्म हुआ था। एक गांव के अंदर पंचायत प्रधान के नीचे women reservation था। Women reservation था तो गांव वालों ने तय किया कि प्रधान अगर women है तो सभी member women क्यों न बनाई जाए? और गांव ने तय किया कि कोई पुरुष चुनाव नहीं लड़ेगा। सब के सब पंचायत के member भी महिलाएं बनेंगी। Reservation तो one-third था लेकिन सबने तय किया गांव वालों ने। एक दिन उन्होंने मेरे से समय मांगा पंचायत की सभी महिला सदस्यों ने और पंचायत के प्रधान ने। मेरे लिए बड़ा surprise था कि ये गांव बड़ा कमाल है भाई, सारे पुरुषों ने अपने आप withdraw को कर लिया और महिलाओं के हाथ में कारोबार दे दिया। तो मेरा भी मन कर लिया कि चलो मिलूं तो वो सब मुझे कोई 17 member का वो पंचायत थी। तो वो मिलने आईं। और ये बात कोई 2005 या 2006 की है। तो उसमें सबसे ज्यादा जो पढ़ी-लिखी महिला थी प्रधान थी, वो पांचवी कक्षा तक पढ़ी हुई थी। यानी इतना पिछड़ा हुआ गांव था कोई ज्यादा पढ़े-लिखे हुए लोग नहीं थे। तो ऐसे ही मेरा मन कर गया, मैंने पूछा उनको, मैंने कहा अब पंचायत सभी महिलाओं के हाथ में है, आपको गांव का कारोबार चलाना है तो क्या करना है, आपकी योजना क्या है करनी की? उन्होंने जो जवाब दिया, मैं नहीं मानता हूं हिंदुस्तान की सरकार में कभी इस रूप में सोचा गया होगा। कम से कम मैं मुख्यमंत्री था, मैंने इस रूप में नहीं सोचा था। उस जवाब ने मुझे सोचने के लिए मजबूर कर दिया था। ठेठ गांव की सामान्य महिलाएं थी।

मैंने उनसे पूछा कि अब पांच साल आपको कारोबार चलाना है तो क्या आपके मन में है? उस प्रधान ने जो कि पढ़ी-लिखी नहीं थी, उसने मुझे जवाब दिया। उसने मुझे कहा, “हम चाहते हैं कि हमारे गांव में कोई गरीब न रहे।“ अब देखिए क्या कल्पना है ये, क्या कभी हमारे देश में पंचायत ने, नगरपालिका ने, महानगरपालिका ने, मिल-बैठकर के तय किया कि हम हमारे गांव में उस प्रकार की योजनाएं चलाएंगे कि गरीब गांव में कोई न रहे। एक बार इतने बड़े level पर काम शुरू हो जाए, कितना बड़ा फर्क पड़ता है! क्या हम कभी पंचायत के प्रधान के नाते विचार कर सकते हैं कि भई कम से कम 5 परिवार, ज्यादा मैं नहीं कह रहा हूं, 5 परिवार पंचायत की रचना में कुछ काम ऐसा निकालेंगे, उनको फलों का पेड़ बोने के लिए दे देंगे, कुछ करेंगे लेकिन 5 को तो गरीबी से बाहर लाएंगे।

अगर हिंदुस्तान में एक गांव साल में 5 लोगों को गरीबी से बाहर लाता है, पूरे हिंदुस्तान में कितना बड़ा फर्क पड़ता है जी? क्या कुछ नहीं कर सकते, आप कभी अंदाज लगाइए। और ये सारी बातें मैं बताता हूं कि बजट के constraint वाले काम नहीं हैं - हमारी संकल्प शक्ति, हमारी कल्पकता, इसके ऊपर जुड़े हुए हैं। अगर इस पर हम बल दें तो हम सच्‍चे अर्थ में इस व्यवस्था को अपने गांव के विकास के लिए परिवर्तित कर सकते हैं।

हम तब तक गांव का विकास नहीं कर पाएंगे जब तक हम गांव के प्रति गौरव और सम्मान का भाव पैदा नहीं करते हैं। उस गांव में पैदा हुए, मतलब सम्मान होना चाहिए। आप देखिए जिस गांव में महात्मा गांधी का जन्म हुआ होगा, उस गांव का व्यक्ति कभी कहीं मिलेगा तो कहेगा, मैं उस गांव से हूं जहां महात्मा गांधी पैदा हुए थे। कहेगा कि नहीं कहेगा? हर किसी को रहता है, कि कोई ऐसी बात होती है, गांव का गर्व होता है उसको। क्या हमने कभी हमारे गांव में,के प्रति एक लगाव पैदा हो, गांव के प्रति गर्व पैदा हो, ऐसी कोई चीज करते हैं क्या? नहीं करते हैं। क्या गांव का जन्मदिन मनाया जा सकता है क्या? हो सकता है कि record पर नहीं होगा तो गांव तय करे कि किस दिन को जन्मदिन मनाया जाएगा। उस दिन गांव इकट्ठा हो और गांव के बाहर जो लोग रहने गए हो, शहरों में रोजी-रोटी कमाने के लिए, किसी ने बड़ी प्रगति की हो, कोई पढ़-लिख करके डॉक्टर बना हो, उस दिन सबको बुलाया जाए। एक दिन सब लोग, नए-पुराने सब साथ रहें। कुछ बालकों के कार्यक्रम हो जाएं, कुछ बड़ों के कार्यक्रम हो जाएं, senior citizen के कुछ कार्यक्रम हो जाएं, गांव में सबसे बड़ी उम्र वाले व्यक्ति का सम्मान हो जाए। और एक अपनेपन का भाव! जो गांव से बाहर गए होंगे, उनको भी लगेगा उस दिन कि चलो भई अब तो हम रोजी-रोटी कमा रहे हैं, बड़े शहर में रहे रहे हैं चलिए अगले साल इतना हमारी तरफ से गांव के लिए दान दे देंगे, हमारे गांव में ये विकास कर दो। आप देखिए जन-भागीदारी का ऐसा माहौल बनेगा, गांव का रूप-रंग बदल जाएगा।

कभी आपने सोचा है, हमारी आने वाली पीढ़ी को तैयार करना है तो.. मैं कई बार गांव को पूछता हूं, भई आपके गांव में सबसे वृद्ध-oldest, oldest tree कौन सा है, कौन सा वृक्ष है जो सबसे बूढ़ा होगा? गांव को पता नहीं है, क्यों? ध्यान ही नहीं है! क्या हम पंचायत के लोग तय कर सकते हैं कि चलो भई ये सबसे बड़ी आयु का वृक्ष कौन सा दिखता है, ये सबसे बड़ा है, स्कूल के बच्चों को ले जाइए कि देखो भई अपने गांव की सबसे बड़ी आयु का वृक्ष ये है, ये है सबसे बड़ा वो, 200 साल उम्र होगी उसकी, 100 साल होगी उसकी, 80 साल होगी उसकी, जो भी होगा। चलो भई उसका भी सम्मान करे, उसका भी गौरव करें। यही तो है जो गांव के विकास का सबसे बड़ा साक्ष्य है। He is a witness! हम किस प्रकार से अपने गांव के गौरव को जोड़ें, गांव के साथ अपने आप कैसे लगाव लोगों का पैदा करें? आप देखिए अपने आप बदलाव आना शुरू हो जाएगा। और इसलिए मैं आग्रह करता हूं कि आप नेतृत्व दीजिए, अनेक नई कल्पकताओं के साथ नेतृत्व दीजिए।

हमारे देश ने बहुत बड़ा निर्णय किया है। कभी-कभी पश्चिम के देशों से बातें होती हैं और जब कहते हैं कि भारत में महिलाओं के लिए पंचायती व्यवस्था में reservation है तो कईयों आश्चर्य होता है। हिंदुस्तान में political process में decision making process में महिलाओं को इतना बड़ा अधिकार दिया गया है कि विश्व के बहुत बड़े-बड़े देशों के लिए surprise होता है। लेकिन कभी-कभी हमारे यहां क्या होता है।.. एक पहले तो मैं सरकार से जुड़ा हुआ नहीं था, संगठन के काम में लगा रहता था तो देशभर में मेरा भ्रमण होता था। तो लोगों से मिलता था। मिलता था तो थोड़ा परिचय भी करता था, एक बार परिचय देकर मैंने कहा, आप कौन हैं? तो उसने कहा मैं so and so SP हूं। तो मैंने कहा SP हैं! और political meeting में कैसे आ गए? क्योंकि मैं... SP यानी Superintendent of Police.. ये ही मेरे दिमाग में था। क्योंकि SP यानी पुलिस – पुलिसवाला हो के ये meeting में कैसे आ गए? तो मैंने कहा SP... तो बोले नहीं-नहीं मैं सरकारी नहीं हूं तो मैंने बोला क्या हैं? तो बोले “मैं सरपंच पति हूं।“

अब कानून ने तो empower कर दिया लेकिन जो SP कारोबार चला रहे हैं भई... है ना? हकीकत है ना? अब कानून ने महिलाओं को अधिकार दिया है तो उनको मौका भी देना चाहिए। और मैं कहता हूं जी, वो बहुत अच्‍छा काम करेंगी आप विश्‍वास कीजिए, बहुत अच्‍छा काम करेंगी। सच्‍चे अर्थों में गांव में परिवर्तन होंगे। अभी आपने छत्‍तीसगढ़ का भाषण सुना। बिना हाथ में कागज़ लिए गांव में क्या काम किया है, उन्‍होंने बताया कि नहीं बताया? और पता है उनको कि सरपंच के नाते अपने गांव में कितने काम हैं, किन-किन कामों पर ध्‍यान देना चाहिए, सब चीज का पता है। ये सामर्थ्‍य है हमारी माताओं-बहनों में। इसलिए ये SP वाला जो culture है वो बंद होना चाहिए। उनको अवसर देना चाहिए, उनको काम करने के लिए प्रोत्‍साहित करना चाहिए। और हम अवसर देंगे तो वे परिणाम भी दिखाएंगे।

तो मैं आज पंचायती राज दिवस पर आप सबको हृदय से बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं। जो award winner हैं, उनसे आप बात करेंगे तो पता चलेगा कि उन्‍होंने अपने-अपने यहां बहुत नए-नए प्रयोग किए होंगे, जो आपको भी काम आ सकते हैं। लेकिन अगर गांव तय करे तो दुनिया देखने के लिए आए, ऐसा गांव बन सकता है जी। ये ताकत होती है गांव की, एक परिवार होता है, अपनापन होता है, सुख-दु:ख के साथी होते हैं।

उस भाव को फिर से हम जगाएं और गांवों को बहुत आगे बढ़ाएं, इसी एक अपेक्षा के साथ बहुत-बहुत शुभकामनाएं।

धन्‍यवाद।

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श्री विनीत जैन जी, Industry Leaders, CEOs, अन्य सभी वरिष्ठ महानुभाव, देवियों और सज्जनों ! आप सबको नमस्कार…

 Last time जब मैं ET समिट में आया था तो चुनाव होने ही वाले थे। और उस समय मैंने आपके बीच पूरी विनम्रता से कहा था कि हमारे तीसरे टर्म में भारत एक नई स्पीड से काम करेगा। मुझे संतोष है कि ये स्पीड आज दिख भी रही है और देश इसको समर्थन भी दे रहा है। नई सरकार बनने के बाद, देश के अनेक राज्यों में बीजेपी-NDA को जनता का आशीर्वाद लगातार मिल रहा है! जून में ओडिशा के लोगों ने विकसित भारत के संकल्प को गति दी, फिर हरियाणा के लोगों ने समर्थन किया और अब दिल्ली के लोगों ने हमें भरपूर समर्थन दिया है। ये एक एक्नॉलेजमेंट है कि देश की जनता आज किस तरह विकसित भारत के लक्ष्य के लिए कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है।

साथियों,

जैसा आपने भी उल्लेख किया मैं अभी कल रात ही अमेरिका और फ्रांस की अपनी यात्रा से लौटा हूं। आज दुनिया के बड़े देश हों, दुनिया के बड़े मंच हों, भारत को लेकर जिस विश्वास से भरे हुए हैं, ये पहले कभी नहीं था। ये पेरिस में AI एक्शन समिट के दौरान हुए डिशकशंस में भी रिफ्लेक्ट हुआ है। आज भारत ग्लोबल फ्यूचर से जुड़े विमर्श के सेंटर में है, और कुछ चीजों में उसे लीड भी कर रहा है। मैं कभी-कभी सोचता हूं, अगर 2014 में देशवासियों ने हमें आशीर्वाद नहीं दिए होते, आप भी सोचिये, भारत में reforms की एक नई क्रांति नहीं शुरू हुई होती, यानी मुझे नहीं लगता है कि हो सकता है ये कतई नहीं होता, आप भी इस बात को यानी सिर्फ कहने को नहीं convince होंगे। क्या इतने सारे बदलाव होते क्या? आपमें से जो हिन्दी समझते होंगे उनको मेरी बात तुरंत समझ में आई होगी। देश तो पहले भी चल रहा था। Congress speed of development...और congress speed of corruption,ये दोनों चीज़ें देश देख रहा था। अगर वही जारी रहता, तो क्या होता? देश का एक अहम Time Period बर्बाद हो जाता। 2014 में तो कांग्रेस सरकार ये लक्ष्य लेकर चल रही थी कि 2044, यानी 2014 में वो सोचते थे और उनका डिक्लेयर टारगेट था कि 2044 तक भारत को Eleventh से Third Largest Economy बनाएंगे। 2044, यानी तीस साल का टाइम पीरियड था। ये था...congress का speed of development और विकसित भारत का स्पीड ऑफ डेवलपमेंट क्या होता है, ये भी आप देख रहे हैं। सिर्फ एक दशक में भारत, टॉप फाइव इकॉनॉमी में आ गया। और साथियों मैं पूरी जिम्मेदारी से कह रहा हूं अब अगले कुछ सालों में ही, आप भारत को दुनिया की third largest economy बनते देखेंगे। आप हिसाब लगाइए 2044… एक युवा देश को, यही स्पीड चाहिए और आज इसी स्पीड से भारत चल रहा है।

साथियों,

पहले की सरकारें Reforms से बचती रहीं, और ये बात भूलनी नहीं चाहिए ये ईटी वाले भूला देते हैं, ये मैं याद कराता हूं। जिस रिफार्म के गाजे बाजे हो रहे हैं ना वो because of compulsion था conviction से नहीं था। आज हिन्दुस्तान जो रिफार्म कर रहा है वो conviction से कर रहा है। उनमें एक सोच रही, अब कौन इतनी मेहनत करे, रिफार्म की क्या जरूरत है, अब लोगों ने बिठाया है, मौज करो यार, 5 साल निकाल दो, चुनाव आएगा तब देखेंगे। अक्सर, इस बात की चर्चा ही नहीं होती थी कि बड़े reforms से देश में कितना कुछ बदल सकता है। आप व्यापार जगत के लोग हैं सिर्फ हिसाब किताब आंकड़े नहीं लगाते, आप अपनी strategy को रिव्यु करते हैं। पुरानी पद्यतियों को छोड़ते हैं। एक समय में कितनी ही लाभकारक रही हो उसको भी छोड़ते हैं आप, जो कालवाहय हो जाता है उसका बोझ उठाकर कोई उद्योग चलता नहीं है जी, उसे छोड़ता ही है। आमतौर पर भारत में जहां तक सरकारों की बात है, गुलामी के बोझ में जीने की एक आदत पड़ चुकी थी। इसलिए, आज़ादी के बाद भी अंग्रेज़ों के जमाने की चीज़ों को ढोया जाता रहा। अब हम लोग आमतौर पर बोलते भी हैं, सुनते भी हैं और कभी कभी तो लगता है कि जैसे कोई बड़ा महत्वपूर्ण मंत्र है, बड़ा श्रद्धापूर्ण मंत्र है ऐसे बोलते हैं, justice delayed is justice denied, ऐसी बातें हम लंबे समय तक सुनते रहे, लेकिन इसको ठीक कैसे किया जाए, इस पर काम नहीं हुआ। समय के साथ हम इन चीजों के इतने आदी हो गए कि बदलाव को नोटिस ही नहीं कर पाते। और हमारे यहां तो एक ऐसा इकोसिस्टम भी है, कुछ साथी यहां भी बैठे होंगे जो अच्छी चीज़ों के बारे में चर्चा होने ही नहीं देते। वो उसको रोकने में ही ऊर्जा लगाए रखते हैं। जबकि लोकतंत्र में अच्छी चीज़ों पर भी चर्चा होना, मंथन होते रहना, ये भी लोकतंत्र की मजबूती के लिए उतना ही जरूरी है। लेकिन एक धारणा बना दी गई है कि कुछ नेगेटिव कहो, नेगेटिविटी फैलाओ, वही डेमोक्रेटिक है। अगर पॉजिटिव बातें होती हैं, तो डेमोक्रेसी को कमज़ोर करार कर दिया जाता है। इस मानसिकता से बाहर आना बहुत ज़रूरी है। मैं आपको कुछ उदाहरण दूंगा।

साथियों,

भारत में कुछ समय पहले तक जो पीनल कोड चल रहे थे, वो 1860 के बने थे। 1860 के, देश आजाद हुआ लेकिन हमें याद नहीं आया, क्योंकि गुलामी की मानसिकता में जीने की आदत हो गई थी। इनका मकसद, 1860 में जो कानून बने, मकसद क्या था, उसका मकसद था भारत में गुलामी को मजबूत करना, भारत के नागरिकों को दंड देना। जिस सिस्टम के मूल में ही दंड है, वहां न्याय कैसे मिल सकता था। इसलिए इस सिस्टम के कारण न्याय मिलने में कई-कई साल लग जाते थे। अब देखिए, हमने परिवर्तन किया बहुत बड़ा, बड़ी मेहनत करनी पड़ी ऐसे नहीं हुआ है, लाखों ह्यूनम आवर्स लगे है इसमें और भारतीय न्याय संहिता को लेकर के हम आए, भारतीय संसद ने इसको मान्यता दी, अब ये न्याय संहिता को लागू हुए अभी 7-8 महीने ही हुए हैं, लेकिन बदलाव साफ-साफ नज़र आ रहा है। अखबार में नहीं, आप लोगों में जाएंगे तो बदलाव नजर आएगा। न्याय संहिता लागू होने के बाद क्या बदलाव आया है, मैं बताता हूं, एक ट्रिपल मर्डर केस में FIR से लेकर फैसला आने तक सिर्फ 14 दिन लगे, इसमें उम्रकैद की सजा हो गई। एक स्थान पर एक नाबालिग की हत्या के केस को 20 दिन में अंतिम परिणाम तक पहुंचाया गया। गुजरात में गैंगरेप के एक मामले में 9 अक्टूबर को केस दर्ज हुआ, 26 अक्टूबर को चार्जशीट भी दाखिल हो गई। और आज 15 फरवरी को ही कोर्ट ने आरोपियों को दोषी करार दे दिया। आंध्र प्रदेश में 5 महीने के एक बच्चे से अपराध के मामले में अदालत ने दोषी को 25 वर्ष की सजा सुनाई है। इस केस में डिजिटल सबूतों ने बड़ी भूमिका निभाई। एक और मामले में रेप और मर्डर के आरोपी की तलाश में e-prison मॉड्यूल से बड़ी मदद मिली। इसी तरह एक राज्य में रेप और मर्डर का केस हुआ और तुरंत ही ये पता चल गया कि संदिग्ध दूसरे राज्य में एक क्राइम में पहले जेल जा चुका है। इसके बाद उसकी गिरफ्तारी में भी समय नहीं लगा। ऐसे अनेक मामले मैं गिना सकता हूं, जिसमें आज लोगों को तेज़ी से न्याय मिलने लगा है।

साथियों,

ऐसा ही एक बड़ा Reform प्रॉपर्टी राइट्स को लेकर हुआ है। यूएन की एक स्टडी में किसी देश के लोगों के पास प्रॉपर्टी राइट्स का ना होना एक बहुत बड़ा चैलेंज माना गया है। दुनिया के अनेक देशों में करोड़ों लोगों के पास प्रॉपर्टी के कानूनी दस्तावेज नहीं हैं। जबकि लोगों के पास प्रॉपर्टी राइट्स होने से गरीबी कम करने में मदद मिलती है। ये बारीकियां पहले की सरकारों को पता भी नहीं था, और कौन इतना सिरदर्द उठाए जी, कौन मेहनत करे, एैसे काम को ईटी की हेडलाइन तो बनने वाली नहीं है, तो करेगा कौन, ऐसी अप्रोच से न देश चला करते हैं, न देश बना करते हैं और इसलिए हमने स्वामित्व योजना की शुरुआत की। स्वामित्व योजना के तहत देश के 3 लाख से ज्यादा गांवों का ड्रोन सर्वे किया गया। सवा 2 करोड़ से ज्यादा लोगों को प्रॉपर्टी कार्ड दिए गए। और मैं ET को एक हेडलाइन आज दे रहा हूं, स्वामित्व लिखना जरा ईटी के लिए तकलीफ वाला है, लेकिन फिर भी वो तो आदत से हो जाएगा।

स्वामित्व योजना की वजह से देश के ग्रामीण क्षेत्र में अब तक सौ लाख करोड़ रुपए की प्रॉपर्टी की वैल्यू अनलॉक हुई है। यानी 100 लाख करोड़ रुपए की ये प्रॉपर्टी पहले भी गांवों में मौजूद थी, गरीब के पास मौजूद थी। लेकिन इसका उपयोग आर्थिक विकास में नहीं हो पाता था। प्रॉपर्टी के राइट्स ना होने से गांव के लोगों को बैंक से लोन नहीं मिल पाता था। अब ये दिक्कत हमेशा-हमेशा के लिए दूर हो गई है। आज पूरे देश से ऐसी खबरें आती हैं कि कैसे स्वामित्व योजना के प्रॉपर्टी कार्ड्स से लोगों का फायदा हो रहा है। अभी कुछ दिन पहले राजस्थान की एक बहन से मेरी बातचीत हुई, उस बहन को स्वामित्व योजना के तहत प्रॉपर्टी कार्ड मिला हुआ है। इनका परिवार 20 साल से एक छोटे से मकान में रह रहा था। जैसे ही प्रॉपर्टी कार्ड मिला, तो उनको बैंक से करीब 8 लाख का लोन मिला, 8 लाख रूपये का लोन मिला, कागज मिलने से। इस पैसे से उस बहन ने एक दुकान शुरु की, अब उससे हुई कमाई से वो परिवार अब अपने बच्चों की हायर एजुकेशन के लिए सपोर्ट कर पा रहा है। यानी देखिए कैसे बदलाव आता है। एक और राज्य में, एक गांव में एक व्यक्ति ने प्रॉपर्टी कार्ड दिखाकर बैंक से साढ़े चार लाख का लोन लिया। उस लोन से उसने एक गाड़ी खरीदी औऱ ट्रांसपोर्टेशन का काम उसने शुरू कर दिया। एक और गांव में एक व्यक्ति ने प्रॉपर्टी कार्ड पर लोन लेकर अपने खेत में मॉडर्न इरिगेशन फेसिलिटीज तैयार करवाईं। ऐसे ही कई उदाहरण हैं, जिनसे गांवों में, गरीबों को कमाई के नए रास्ते बन रहे हैं। ये रिफॉर्म, परफॉर्म, ट्रांसफॉर्म की असली स्टोरीज़ हैं, जो अखबारों और टीवी चैनल्स की हेडलाइन्स में नहीं आती है।

साथियों,

आजादी के बाद हमारे देश में अनेकों ऐसे जिले थे, जहां सरकारें विकास नहीं पहुंचा पाईं। और ये उनके गवर्नेंस की कमी थी, बजट तो होता था, डिक्लेयर भी होता था, सेंसेक्स के रिपोर्ट भी छपते थे, ऊपर गया की नीचे गया। करना ये चाहिए था कि इन जिलों पर खास फोकस करते। लेकिन इन जिलों को पिछड़े जिले, बैकवर्ड डिस्ट्रिक्ट इसका लेबल लगाकर उन जिलों को अपने हाल पर छोड़ दिया। इन जिलों को कोई हाथ लगाने को तैयार नहीं होता था। यहां सरकारी अफसर भी अगर ट्रांसफर भी होती थी, तो ये मान लिया जाता था, कि punishment posting पर भेजा गया है।

साथियों,

इतना नेगेटिव एनवायरमेंट उस स्थिति को मैंने एक चुनौती के रूप में लिया और पूरे अप्रोच को ही बदला डाला। हमने ऐसे देश के करीब सौ से ज्यादा जिलों को identify किया, जिसको कभी backward जिला कहते थे मैंने कहा ये एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट्स है। ये backward नहीं है। हमने यहां देश के युवा अफसरों को वहां पर ड्यूटी देना शुरू कर दिया। माइक्रो लेवल पर गवर्नेंस को सुधारने का प्रयास शुरू किया। हमने उन इंडीकेटर्स पर काम किया, जिसमें ये सबसे पीछे थे। फिर मिशन मोड पर, कैंप लगाकर, सरकार की फ्लैगशिप योजनाओं को यहां लागू किया। आज इनमें से कई aspirational districts, देश के inspirational districts बन चुके हैं।

साल 2018 में असम के मैं उन जो aspirational districts जिसको मैं कहता हूं, जिसको पहले की सरकार backward कहती थी, मैं उनका ही जिक्र करना चाहता हूं। असम के बारपेटा जिले में सिर्फ 26 परसेंट एलीमेंट्री स्कूलों में ही सही student to teacher ratio था, only 26 परसेंट। आज उस डिस्ट्रिक्ट में 100 पर्सेंट स्कूलों में student to teacher ratio आवश्यकता के अनुसार हो गया। बिहार के बेगुसराय जिले में सप्लीमेंट्री न्यूट्रिशन लेने वाली गर्भवती महिलाओं की संख्या, only 21 परसेंट थी, बजट नहीं था ऐसा नहीं था, बजट तो था, only 21 परसेंट। उसी प्रकार से यूपी के चंदौली जिले में ये 14 परसेंट थी। आज दोनों जिलों में ये 100 परसेंट हो चुकी है। इसी तरह बच्चों के शत-प्रतिशत टीकाकरण के अभियान में भी कई जिले बेहतरीन प्रदर्शन कर रहे हैं। यूपी के श्रावस्ती में 49 परसेंट से बढ़कर 86 परसेंट, तो तमिलनाडु के रामनाथपुरम में 67 परसेंट से बढ़कर 93 परसेंट हम पहुंचे हैं। ऐसी ही सफलताओं को देखते हुए ही अब देश के हम फिर ये प्रयोग बहुत सफल रहा, ग्रास रूट लेवल पर परिवर्तन लाने का ये प्रयास सफल रहा, तो जैसे पहले हमने 100 करीब करीब aspirational districts identify किए, अब हम एक स्टेज नीचे जाकर के 500 ब्लॉक्स उसको हमने aspirational blocks घोषित किया गया है, और वहां हम बिल्कुल फ़ोकस वे में तेजी से काम कर रहे हैं। अब आप कल्पना कर सकते हैं हिन्दुस्तान के 500 ब्लॉक्स उसके बेसिक बदलाव आएगा, मतलब देश के सारे पैरामीटर बदल जाते हैं।

साथियों,

यहां बहुत बड़ी संख्या में इंडस्ट्री लीडर्स बैठे हैं। आपने कई-कई दशक देखे हैं, दशकों से आप बिजनेस में हैं। भारत में बिजनेस का माहौल कैसा होना चाहिए, ये अक्सर आपकी Wish list का हिस्सा हुआ करता था। सोचिए कि हम 10 साल पहले कहां थे और आज कहां है? एक दशक पहले भारत के बैंक भारी संकट से गुजर रहे थे। हमारा बैंकिंग सिस्टम fragile था। करोड़ों भारतीय बैंकिंग सिस्टम से बाहर थे। और अभी विनीत जी ने जन धन एकाउंट की चर्चा भी की, भारत दुनिया के उन देशों में से एक था जहां, access to credit सबसे मुश्किल था।

साथियों,

हमने बैंकिंग सेक्टर को मजबूत करने के लिए अलग-अलग स्तर पर एक साथ काम किया। Banking the unbanked, Securing the unsecured, Funding the unfunded, ये हमारी स्ट्रैटजी रही है। 10 साल पहले ये तर्क दिया जाता था कि देश में बैंक ब्रांच नहीं है, तो कैसे फाइनेंशल इंक्लूजन होगा? आज देश के करीब-करीब हर गांव के 5 किलोमीटर के दायरे में कोई बैंक ब्रांच या बैंकिंग कॉरसपॉन्डेंट मौजूद है। एक्सेस टू क्रेडिट कैसे बढ़ा इसका एक उदाहरण, मुद्रा योजना है। करीब 32 लाख करोड़ रुपए, उन लोगों तक पहुंचे हैं, जिनको बैंकों की पुरानी व्यवस्था के तहत लोन मिल ही नहीं सकता था। ये कितना बड़ा परिवर्तन हुआ है। MSMEs के लिए लोन मिलना आज बहुत आसान हुआ है। आज रेहड़ी-पटरी ठेले वालों तक को हमने आसान लोन से जोड़ा है। किसानों को मिलने वाला लोन भी दोगुने से अधिक किया है। हम बहुत बड़ी संख्या में लोन दे रहे हैं, बड़े अमाउंट में लोन दे रहे हैं औऱ साथ ही हमारे बैंकों का प्रॉफिट भी बढ़ रहा है। 10 साल पहले तक इकोनॉमिक्स टाइम्स ही, बैंकों के रिकॉर्ड घोटाले की खबरें छापता था। रिकॉर्ड NPAs पर चिंता जताने वाले editorials छपते थे। आज आपके अखबार में क्या छप रहा है? अप्रैल से दिसंबर तक सरकारी बैंकों ने सवा लाख करोड़ रुपए से अधिक का रिकॉर्ड प्रॉफिट दर्ज किया है। साथियों, ये सिर्फ हेडलाइन्स नहीं बदली हैं। ये सिस्टम बदला है, जिसके मूल में हमारे बैंकिंग रिफॉर्म्स हैं। ये दिखाता है कि हमारी इकॉनॉमी के पिलर्स कितने मजबूत हो रहे हैं।

साथियों,

बीते दशक में हमने Fear of business को ease of doing businessमें बदला है। GST के कारण, देश में जो Single Large Market की व्यवस्था बनी है उससे भी इंडस्ट्री को बहुत फायदा मिल रहा है। बीते दशक में इंफ्रास्ट्रक्चर में भी अभूतपूर्व विकास हुआ है। इससे देश में Logistics Cost घट रही है, Efficiency बढ़ रही है। हमने सैकड़ों Compliances खत्म किए और अब जन विश्वास 2.0 से और भी Compliances को कम कर रहे हैं। समाज में, और ये मेरा conviction है, सरकार का दखल और कम हो, इसके लिए सरकार एक Deregulation Commission भी बनाने जा रही है।

Friends,

आज के भारत में एक और बहुत बड़ा परिवर्तन हम देख रहे हैं। ये परिवर्तन, फ्यूचर की तैयारी से जुड़ा है। जब दुनिया में पहली औद्योगिक क्रांति शुरु हुई, तो भारत में गुलामी की जकड़न मज़बूत होती जा रही थी। दूसरी औद्योगिक क्रांति के दौरान जहां दुनिया में नए-नए इन्वेंशन्स, नई फैक्ट्रियां लग रही थीं, तब भारत में लोकल इंडस्ट्री को नष्ट किया जा रहा था। भारत से रॉ मटीरियल बाहर ले जाया जा रहा था। आजादी के बाद भी स्थितियां ज्यादा नहीं बदलीं। जब दुनिया, कंप्यूटर क्रांति की तरफ बढ़ रही थी, तब भारत में कंप्यूटर खरीदने के लिए भी लाइसेंस लेना पड़ता था। पहली तीन औद्योगिक क्रांतियों का उतना लाभ भले ही भारत नहीं ले पाया, लेकिन चौथी औद्योगिक क्रांति में भारत दुनिया के साथ कदम से कदम मिलाने के लिए तैयार है।

साथियों,

विकसित भारत की यात्रा में हमारी सरकार, प्राइवेट सेक्टर को बहुत अहम सहभागी मानती है। सरकार ने बहुत सारे नए सेक्टर्स को प्राइवेट सेक्टर के लिए खोल दिया है, जैसे स्पेस सेक्टर। आज बहुत सारे नौजवान, बहुत सारे स्टार्टअप्स इस स्पेस सेक्टर में बड़ा योगदान दे रहे हैं। ऐसे ही ड्रोन सेक्टर कुछ समय पहले तक, लोगों के लिए closed था। आज इस सेक्टर में यूथ के लिए बहुत सारा स्कोप दिख रहा है। प्राइवेट फर्म्स के लिए Commercial Coal Mining का क्षेत्र खोला गया है। Auctions को प्राइवेट कंपनियों के लिए Liberalised किया गया है। देश के Renewable Energy Achievements में, हमारे Private Sector की बहुत बड़ी भूमिका है। और अब Power Distribution Sector में भी हम Private Sector को आगे बढ़ा रहे हैं, ताकि इसमें और Efficiency आए। हमारे इस बार के बजट में भी, एक बहुत बड़ा बदलाव हुआ है। हमने, यानी पहले कोई ये बोलने की हिम्मत नहीं करता था। हमने न्यूक्लियर सेक्टर को भी private participation के लिए खोल दिया है।

साथियों,

आज हमारी पॉलिटिक्स भी परफॉर्मेंस oriented हो चुकी है। अब भारत की जनता ने दो टूक कह दिया है- टिकेगा वही, जो जमीन से जुड़ा रहेगा, जमीन पर रिजल्ट लाकर दिखाएगा। सरकार को लोगों की समस्याओं के प्रति संवेदनशील होना बहुत ज़रूरी है, उसकी पहली आवश्यकता है। हमसे पहले जिन पर पॉलिसी मेकिंग का ज़िम्मा था, उनमें संवेदनशीलता शायद बहुत आखिर में नजर आती थी। इच्छाशक्ति भी बहुत आखिर में नजर आती थी। हमारी सरकार ने संवेदनशीलता के साथ लोगों की समस्याओं को समझा, जोश और जुनून के साथ उन्हें सुलझाने के लिए ज़रूरी कदम उठाए। आज दुनिया की तमाम स्टडीज़ बताती हैं कि बीते दशक में जो बेसिक सुविधाएं देशवासियों को मिली हैं, जिस तरह वो Empower हुए हैं, उसके कारण ही, सिर्फ 10 साल में 25 करोड़ भारतीय गरीबी से बाहर निकलकर के आए हैं। इतना बड़ा वर्ग निओ-मिडिल क्लास का हिस्सा बन गया। ये निओ-मिडिल क्लास अब अपनी पहला टू-व्हीलर, अपनी पहली कार, अपना पहला घर खरीदने का सपना देख रहा है। मिडिल क्लास को सपोर्ट करने के लिए इस वर्ष के बजट में भी हमने ज़ीरो टैक्स की सीमा को 7 लाख से बढ़ाकर 12 लाख किया है। इस फैसले से पूरा मिडिल क्लास मजबूत होगा, देश में इकॉनॉमिक एक्टीविटी भी और बढ़ेगी। ये pro-active सरकार के साथ ही एक Sensitive सरकार की वजह से ही संभव हो पाया।

साथियों,

विकसित भारत की असली नींव विश्वास है, ट्रस्ट है। हर देशवासी, हर सरकार, हर बिजनेस लीडर में ये element होना बहुत ज़रूरी है। सरकार अपनी तरफ से देशवासियों में विश्वास बढ़ाने के लिए पूरी शक्ति से काम कर रही है। हम इनोवेटर्स को भी एक ऐसे माहौल का विश्वास दे रहे हैं, जिस पर वो अपने ideas को incubate कर सकते हैं। हम बिजनेस को भी पॉलिसीज़ के स्टेबल और सपोर्टिव रहने का विश्वास दे रहे हैं। मुझे उम्मीद है कि ET की ये समिट, इस विश्वास को और मज़बूती देगी। इन्हीं शब्दों के साथ, मैं अपनी बात समाप्त करता हूं, एक बार फिर आप सभी को अपनी शुभकामनाएं देता हूं। बहुत-बहुत धन्यवाद।