मंच पर विराजमान सभी महानुभाव और विशाल संख्या में पधारे हुए मेरे प्यारे भाइयो और बहनों।
कैम छो? मैं देख रहा हूं कि इतना बड़ा पंडाल भी छोटा पड़ गया। वहां बहुत लोग बाहर धूप में खड़े हैं। आप सब इतनी बड़ी संख्या में आशीर्वाद देने के लिए आए, इसके लिए हम सब आपके बहुत-बहुत आभारी हैं। आज करीब करीब 1100 करोड़ रुपयों के प्रकल्प का उद्घाटन, लोकार्पण या शिलान्यास करने का आप सबने मुझे अवसर दिया। आपने मुझे ये जो सम्मान दिया है, इसके लिए भी सहकारिता आंदोलन से जुड़े हुए मेरे सभी किसान परिवारों का मैं आदरपूर्वक नमन करके धन्यवाद करता हूं।
आज दुनिया के 40 से भी ज्यादा देशों में अमूल ब्रांड, इसकी एक पहचान बन गई है। और मैं हैरान था कुछ देशों में जब मुझे जाने का अवसर आया तो कुछ जो delegates मिलना चाहते थे; कुछ भारतीय समाज से वहां रहने वाले लोग थे, कुछ वहां के लोग थे और एक बात कहने वाले मिल जाते थे कि हमारे यहां भी अमूल के प्रॉडक्ट की सप्लाई का कुछ इंतजाम कीजिए। और ये बात जब सुनता था तो इतना गर्व होता था कि किसानों के सहकारिता आंदोलन से करीब-करीब सात दशक के लगातार पुरुषार्थ का परिणाम है कि आज देश और देश के बाहर अमूल एक पहचान बन गया है, अमूल एक प्रेरणा बन गया है, अमूल एक अनिवार्यता बन गया है। ये सिद्धि छोटी नहीं है। ये बहुत बड़ा achievement है। ये एक सिर्फ कोई उत्पादन करने वाला उद्योग मात्र नहीं है, ये कोई सिर्फ milk processing की प्रक्रिया मात्र नहीं है; ये एक alternate अर्थव्यवस्था का model भी है।
एक तरफ समाजवादी अर्थ रचना, दूसरी तरफ पूंजीवादी अर्थ रचना; एक तरफ शासन के कब्जे वाली अर्थव्यवस्था, दूसरी तरफ धन्ना सेठों के कब्जे वाली अर्थव्यवस्था। दुनिया इन्हीं दो व्यवस्थाओं से परिचित रही है। सरदार साहब जैसे महापुरुषों ने उस बीज को बोया जो आज तीसरी अर्थव्यवस्था का नमूना बन करके उभरा है, जहां न सरकार का कब्जा होगा, न धन्ना सेठों का कब्जा होगा; वो सहकारिता आंदोलन होगा और किसानों के, नागरिकों के, जनता-जनार्दन की सहकारिता से अर्थव्यवस्था बनेगी, पनपेगी, बढ़ेगी और हर कोई उसका हिस्सेदार होगा।
ये अर्थव्यवस्था का एक ऐसा model है जो समाजवाद और पूंजीवाद को एक सार्थक alternate प्रदान करता है। हम सब भलीभांति परिचित हैं कि आजादी के करीब एक साल पहले इस अमूल का एक विधिवत रूप तैयार हुआ था, लेकिन सहकारिता आंदोलन इससे भी पहले था। बहुत कम लोगों को पता होगा जब सरदार वल्लभभाई पटेल अहमदाबाद म्युनिसिपॉलिटी के, उस समय कॉरपोरेशन नहीं था, नगरपालिका थी, उस नगरपालिका के चेयरमैन उनका चुनाव हुआ, वो नगरपालिका के अध्यक्ष बने। और दरियापुर से चुनाव जीत करके आए थे जहां कभी हमारे कौशिक भाई जीतते थे। और सरदार साहब म्युनिसिपॉलिटी में सिर्फ एक वोट से जीत करके आए थे, एक वोट से। और बाद में चेयरमैन बने।
गुजरात में पहली बार urban development का प्लान होना चाहिए, urban development का planning होना चाहिए, इस concept जब सरदार साहब अहमदाबाद म्युनिसिपॉलिटी के प्रमुख थे, तब पहली बार गुजरात में introduce हुआ। और उसी समय उन्होंने सबसे पहला प्रयोग किया cooperative housing society का। सहकारिता के आधार पर गृह निर्माण का काम, मध्यमवर्गीय परिवार को मकान मिले। और उस समय एक प्रीतम राय देसाई हुआ करते थे, जिनको सरदार साहब ने काम दिया और गुजरात में वरदेश में पहली housing society बनी जिसका नेतृत्व, मार्गदर्शन, रचना सरदार साहब के मार्गदर्शन में प्रीतम राय देसाई ने की थी। और 28 जनवरी nineteen twenty seven, 28 जनवरी, 1927 को सरदार साहब ने उसका उद्घाटन किया था। और उद्घाटन करते साथ उन्होंने एक नया model है विकास का, इस बात को लोग याद रखें इसलिए प्रीतम राय देसाई का गौरव करते हुए उन्होंने उस सोसायटी का नाम प्रीतम नगर रखा था। आज भी अहमदाबाद में प्रीतम नगर इस सहकारी आंदोलन की पहली सफल यानी एक प्रकार से सफलता की पहली स्मृति मौजूद है। और उसी में से आगे जाते-जाते हर क्षेत्र में सहकारिता की प्रवृत्ति को और खास करके गुजरात और महाराष्ट्र; क्योंकि उस समय बृहद महाराष्ट्र था। इस पूरे क्षेत्र में सहकारिता-ये व्यवस्था नहीं, सहकारिता-ये नियमों के बंधन से बंधी हुई कोई रचना नहीं, सहकारिता-एक संस्कार के रूप में हमारे यहां जनमानस में स्थिर हुई और उसी का परिणाम है कि आज गुजरात के सहकारिता आंदोलन के साथ जुड़े लोग सारे देश के लिए एक मॉडल के रूप में काम करते हैं।
और अमूल से आगे उत्तर गुजरात ने इसमें अपना कदम रखा। दुग्ध सागर डेरी बनी, बनास डेरी बनी। कभी-कभी मैं सोचता हूं इस दृष्टिवान अगर हमारे यहां सहकारिता का नेतृत्व करने वाले लोग न होते तो गुजरात जो दस साल में सात साल अकाल की परिस्थिति में जीने के लिए मजबूर हुआ करता है, उस समय वो मुसीबत थी, आज वो कम हुआ है। वो किसान, वो पशुपालक, इस कठिनाइयों से कैसे गुजारा करता है। ये दुग्ध उत्पादक मंडली ने किसानों की उस समस्या का समाधान खोजा और अकाल हो जाए तो भी पशुपालन और दूध बेच करके किसान अपना गुजारा कर लेता था, पशुपालक गुजारा कर रहा था और जिंदगी चल पड़ती थी।
लेकिन बाद में वो भी एक समय आया, किसी न किसी कारणवश गांधीनगर में ऐसे लोग बैठे कि जिन्होंने इस सहकारिता आंदोलन डेरी उद्योग को रुकावटें पैदा करने वाले नियम बनाए। कच्छ–सौराष्ट्र में एक प्रकार से डेरी बनाना-चलाना एक बोझ बन गया, जबकि पशुपालन कच्छ-सौराष्ट्र में ज्यादा था।
जब हम लोगों को सेवा करने का मौका मिला हमने रूप बदल दिया। हमने कहा- हर जगह पर encourage किया जाए। और मैं अनुभव कर रहा हूं आज करीब-करीब गुजरात के सभी जिलों में पशुपालक के लिए, किसान के लिए, दुग्ध उत्पादक के लिए एक बहुत बड़ा अवसर बन गया है।
कुछ लोग होते हैं जो अपने-आपको बड़े ज्ञानी मानते हैं, बहुत विद्ववान मानते हैं और जब उनके दायरे के बाहर की चीज आती है तो उनका मन, उनका अहंकार उसे स्वीकार करने को तैयार नहीं होता। विरोध करने की हिम्मत नहीं होती है और इसलिए उसका मखौल उड़ाना, मजाक उड़ाना और ऐसी हल्की-हल्की बातें करना, जिसकी आप कल्पना नहीं कर सकते।
ऐसे लोग होते हैं और मुझे बराबर याद है जब कच्छ में white desert रणोत्सव का आरंभ कर रहे थे, रणोत्वस को बढ़ा रहे थे, भूकंप के बाद कच्छ की economy को vibrant करने के लिए अनेकविद् योजनाएं कर रहे थे तो एक बार वहां अपने भाषण में मैंने कहा था। मैंने कहा था कि जहां तक मेरी जानकारी है, जो camel का milk होता है ऊंटणी नो दूध, वो बहुत अधिक nutrition value वाला होता है। हमारे बच्चों के विकास के लिए बहुत काम आ सकता है। हम पता नहीं उस समय गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने क्या गुनाह कर दिया कि camel के दूध को ले करके मैं जहां जाता, मेरी मजाक उड़ाई जाती थी, कार्टून बनते थे, मखौल उड़ाया जाता था, पता नहीं ऐसी-ऐसी भद्दी comment होती थी। आज मुझे खुशी हुई कि अमूल की camel के दूध से बनी हुई चॉकलेट, बहुत बड़ी उसकी मांग है। और मुझे अभी रामसिंह भाई बता रहे थे कि गाय के दूध से डबल कीमत camel के दूध की आज हो गई है।
कभी-कभी अज्ञानवश लोग क्या हाल कर देते हैं, इसका ये उदाहरण है। अब रेगिस्तान के अंदर ऊंट को पालन करने वाले व्यक्ति को जब इतना बड़ा मार्केट मिलेगा तो उसकी रोजी-रोटी का एक नया संबल तैयार हो जाएगा, और मुझे खुशी है कि आज इतने सालों के बाद अमूल ने मेरे इस सपने को साकार कर दिया। पोषण के लिए, nutrition के लिए हमारे देश में बहुत कुछ करने की आवश्यकता हम महसूस करते आए हैं।
जब मैं गुजरात में मुख्यमंत्री था, तब भी मैं पोषण मिशन को ले करके बहुत कुछ चीजें initiate करता था। क्योंकि मेरा ये conviction रहा है कि हमारे यहां मां और बच्चा, अगर ये स्वस्थ होंगे तो हिन्दुस्तान कभी बीमार नहीं हो सकता है, हमारा भारत भी स्वस्थ रह सकता है।
मुझे आज एक और खुशी हुई कि यहां पर solar energy and cooperative movement, इस दोनों का मिलन किया गया है। अगर खेत में फसल पैदा होती है तब खेत में बिजली भी पैदा होगी। और मैं उन किसानों का अभिनंदन करता हूं, उन 11 किसानों ने मिल करके, cooperative बना करके बिजली पैदा की, खेती में उपयोग किया; जो अधिक थी वो राज्य सरकार की नीति के कारण अब खरीदी जा रही है। और मुझे बताया गया कि इस cooperative को साल भर में 50 हजार रुपये की अतिरिक्त इनकम होगी। सहकारिता क्षेत्र में ये चरोत्तर की धरती हर वक्त, सदा नए प्रयोग करने के लिए हिम्मत रखती है।
भारत सरकार ने तीन महत्वपूर्ण योजनाओं को आगे बढ़ाया- एक जनधन, दूसरा वनधन और तीसरा गोबरधन। जनधन, वनधन, गोबरधन। Waste में से Wealth, पशु का जो waste हैं उसमें से भी wealth और गोबर में से गैस बनाना, बिजली बनाना, फर्टिलाइजर बनाना, और मुझे बराबर याद है कि Dakor Umreth के पास हमारे एक बड़े उत्साही कार्यकर्ता साथी थे, उन्होंने 10-12 गांव से सारा गोबर इकट्ठा करने का प्रोजेक्ट शुरू किया। और एक बड़ा गोबर-गैस प्लांट बना करके अगल-बगल के गांवों में वो गैस पहुंचाने की योजना उस समय करते थे। आज भी जैसे 11 किसान इकट्ठे हो करके एक सोलान पंप के लिए बिजली पैदा करने का काम और बाद में बिजली बेचने का काम, खेती भी चलती रहे और सोलार की भी खेती होती रहे; वैसा ही 11-11 गांव इकट्ठे हो करके बहुत बड़ा उत्तम गोबरधन का भी मिशन मोड में काम कर सकते हैं।
मैं आज चरोतर की धरती पर आया हूं, सरदार साहब की तपस्या से, अनेक सहकारी क्षेत्र के महापुरुषों की तपस्या से यहां जो काम, यहां के जो संस्कार हैं, मैं आशा करता हूं कि आने वाले दिनों में अमूल मार्गदर्शन करे, और लोग मार्गदर्शन करें और इस गोबरधन योजना को हम सच्चे अर्थ में स्वच्छ भारत अभियान भी होगा, waste में से wealth होगा, clean energy मिलेगी और देश को विदेशों से जो चीजें लानी पड़ रही हैं उस पर depend नहीं होना पड़ेगा। हम उसमें देश सेवा का एक अच्छा रास्ता खुलेगा। आने वाले दिनों में उस काम को भी यहां के लोग अगर करेंगे तो देश के लिए एक बहुत बड़ा नमूने का रूप, काम हो सकता है, ऐसा मेरा विश्वास है।
अब दो साल के बाद अमूल को 75 साल हो जाएंगे। और 2022 में भारत की आजादी को 75 साल हो जाएंगे। मैंने देखा है कि अमूल, कभी रुकने का नाम लेना, ये अमूल नहीं है। वो नया सोचना, नया करना, साहस करना, ये अमूल की प्रकृत्ति में है। यहां की पूरी जो टोली है, यहां का जो work culture है, इसको संभालने वाले जो professionals हैं, यहां के जो सहकारिता आंदोलन के नेता हैं, सबका मैंने क्योंकि मैं इसके साथ सालों से जुड़ा हुआ हूं, इसको समझने का हमेशा मैंने प्रयास किया है। वे साहसिक है, नई चीज करने के स्वभाव के हैं।
मैं अमूल में बैठे हुए सभी professionals से, अमूल का नेतृत्व करने वाले सहकारी आंदोलन के सभी नेताओं से आज एक आग्रह करने आया हूं। जब अमूल के 75 साल होंगे और जब हिन्दुस्तान की आजादी के 75 साल होंगे; दोनों साल को ध्यान में रखते हुए क्या अमूल कोई नए लक्ष्य तय कर सकता है? नए target निर्धारित कर सकता है क्या? और इस 75 साल के निमित्त हम ऐसा 75 साल बनाएंगे कि हम अभी से, हमारे पास दो-तीन साल का समय है। देश की आजादी के बीच में हमारे पास समय है 75 साल में। तो हम कुछ ऐसे लक्ष्य तय करके हमारे जितने भी लोग हमारे साथ जुड़े हैं, उनको ले करके देश और दुनिया को कोई नई चीज दे सकते हैं क्या?
आज पूरी दुनिया में milk processing में हम दस नंबर पर हैं। अगर अमूल चाहे, संकल्प करे कि आजादी के 75 साल होते-होते हम दस नंबर से बढ़ करके तीन नंबर पर पहुचने का निर्धारण करके चल सकते हैं क्या? मुझे मुश्किल नहीं लग रहा है।
हमारे देश में एक समय था जब हम अभाव के प्रभाव में जीते थे। अभाव की समस्याओं से जूझते थे। और तब शासन की निर्णय प्रक्रिया, सोचने की प्रक्रिया, काम करने के तरीके अलग हुआ करते थे। हमने बहुत तेजी से उसमें से बाहर आना देश के लिए अनिवार्य हो गया है। आज हमारे सामने संकट अभाव का नहीं है। आज देश के सामने चुनौती है विपुलता की। इतनी बड़ी मात्रा में किसान पैदावार करता है कि कभी-कभी बाजार गिर जाता है, किसान का भी नुकसान हो जाता है क्योंकि विपलुता है।
पहले समय था कि उत्पादन बहुत कम होता था, बाहर से हम- गेहूं तक बाहर से ला करके पेट भरते थे। जैसे श्वेत क्रांति हुई वैसे कृषि क्रांति हुई; देश के अन्न के भंडार भरे। लेकिन अब हमारी आवश्यकता से भी ज्यादा कुछ चीजों में हम ज्यादा हैं। इस स्थिति का उपाय, उसका processing होता है, value addition होता है। अगर हम इस डेरी उद्योग को न बढ़ाते, दूध के नए-नए processing, नए-नए product न बनाते तो शायद ये दुग्ध उत्पादन भी किसान छोड़ देता, पशुपालन छोड़ देता क्योंकि उसको टिकने की संभावना ही नहीं थी। लेकिन ये व्यवस्था होने के कारण किसान दुग्ध उत्पादन में आज भी उसी उत्साह के साथ जुड़ा हुआ है।
उसी प्रकार से हमारे लिए agriculture product, उसमें भी value addition हमारे लिए बहुत जरूरी है। जब मैं गुजरात का मुख्यमंत्री था, तो यहीं आणंद में एक दिन कृषि महोत्सव लगा था तो मैं उसमें आया था। तो मेरा एक पुराना साथी मुझे वहां मिल गया। अब मैं भी बड़ा हैरान था, कोट-पैंट-टाई पहन करके खड़ा था- मैंने कहा क्या बात है भाई, तुम तो बहुत बदल गए हो, क्या कर रहे हो आजकल? तो उसने मुझे क्या कहा- आपणे यहां सरद होए जना, सदर माने पांदड़ा, ऐनो पावडर बनावरी बेचूं सूं, अने बहुत मोटी कमाई करूं सूं। इसको कहते हैं value addition. यानी पहले सरद वो पहलां पड़ो थों, पांदड़ा पहले पड़ा थां नीचे पड़ता थां, पण ऐनी nutrition value नी खबर नो थी। कोई ए काम में लोग्यो नो तू। हमारी हर एग्रो प्रॉडक्ट में वो ताकत है। टमाटर पैदा ज्यादा होते हैं, टमाटर का मार्केट डाउन हो जाता है, टमाटर दो दिन, तीन दिन में खराब हो जाते हैं, लेकिन अगर टमाटर का value addition होता है, processing होता है, ketchup बन जाता है, बढ़िया सी बोतल में पैक हो जाता है, महीनों तक खराब नहीं होता है और दुनिया के बाजार में बिक जाता है। हमारे किसान को कभी नुकसान नहीं होता है। और इसलिए जिस प्रकार से दूध का processing, उसने हमारे किसानों को एक बड़ी ताकत दी है। आने वाले दिनों में हमने agriculture product का भी processing, value addition, मूल्य वृद्धि, इसको हमें बल देना है। और इसीलिए भारत सरकार ने प्रधानमंत्री कृषि संपदा योजना के तहत हिन्दुस्तान में हमारे कृषि उत्पादन को और अधिक बल मिले, उस दिशा में हम काम कर रहे हैं।
मैंने कभी हमारे इस डेरी वालों से कहा था- अमरेली और बनास डेरी ने उस काम को आगे बढ़ाया। शायद ओरों ने किया होगा लेकिन मुझे शायद जानकारी न हो। उनको मैंने कहा था कि जैसे हमने श्वेत क्रांति की वैसे हमें sweet revolution भी करना चाहिए। और जो हमारे किसान भाई इस दुग्ध मंडली से जुड़े हैं, उनको मधुमक्खी पालन का भी ट्रेनिंग देना चाहिए। और वो जो शहद उत्पादन करें, जब हम दूध लेने जाएं, उसके साथ शहद भी ले करके आएं। और जैसे इस प्लांट में उसका पैकेजिंग करते हैं, वैसा ही एक और पैकेजिंग करें। अमरेली जिला और बनास, दोनों डेयरी आज शहद उत्पादन की दिशा में बहुत बड़ा योगदान कर रहे हैं। हिन्दुस्तान में पहले जितना शहद उत्पादन होता था, उससे आज अनेक गुना शहद उत्पादन होना शुरू हुआ है और वो विदेशों में जाने लगा है। अगर वो बिकेगा नहीं, घर में खाया जाएगा तो भी बच्चों के पोषण में काम आएगा। इस ओर extra मेहनत नहीं है। जैसे वो ही खेत छोटा सा क्यो न हो, अगर उस पर सोलर पैनल लगाएं, अधिक मूल्य मिल जाएगा। उसी के अंदर मधुमक्खी पालन की कुछ चीजें लगा दें, और अधिक कमाई हो जाएगी। इसके लिए हम 2022, आजादी के 75 साल तक हिन्दुस्तान के किसान की आय डबल करने के लिए ऐसे अनेक नए-नए प्रकल्पों को जोड़ रहे हैं।
मैं आशा करता हूं कि हम इसके साथ जुड़ें। और एक विचार मैंने पहले रखा था, मैं इसको कर नहीं पाया जब मैं यहां था, लेकिन हम कर सकते हैं। जैसे यहां take home ration, इसके विषय में अच्छा काम हुआ है। यहां पर बच्चों के पोषण के लिए बाल अमूल की रचना के विषय में अच्छा काम हुआ है। हम मध्यान्ह भोजन की दिशा में भी बहुत बड़ा काम कर सकते हैं। जिन गांवों में हम दूध लेने जाते हैं, centrally अगर हम बड़ा कुकिंग का प्लांट लगाएं, और जब हमारी गाड़ी दूध लेने जाती है सुबह तो साथ में वहां जो स्कूल होगी, उन बच्चों के लिए बहुत बढ़िया टिफिन के अंदर मध्यान्ह भोजन ले करके जाएं, स्कूल के बच्चों के लिए वहां टिफिन छोड़ दिया जाए। टिुफिन भी ऐसा बढ़िया हो कि गरम-गरम खाना मिले और जब दूसरे दिन जब दूध वापिस आता है तो साथ में खाली टिफिन भी चला आए। कोई extra transportation का खर्च किए बिना हम आराम से, हमारी जहां-जहां दूध मंडली है वहां के स्कूलों में सरकार पैसे देती है, हम सिर्फ management करें।
मैं विश्वास दिलाता हूं जिस प्रकार से इस्कॉन के द्वारा मध्यानह भोजन योजना को एक ताकत मिली है, हमारी सभी डेरी बहुत उत्तम तरीके से हमारे इन बच्चों को इसी व्यवस्था के तहत खाना पहुंचा सकती हैं। एक ही व्यवस्था का multiple utility, इसको ध्यान में रख करके अगर हम योजनाएं बनाएंगे, मैं विश्वास से कहता हूं कि हम सिर्फ कुछ सीमित क्षेत्रों में नहीं, जीवन के हर क्षेत्र में प्रभाव पैदा करने का काम कर सकते हैं।
मुझे याद है धर्मच के हमारे लोग, पूरे देश में मैंने देखा है कि जो गोचर की जमीन होती है, उस पर हमेशा झगड़ा होता है। किसी ने encroachment कर दिया, ढिकना कर दिया, फलाना कर दिया। लेकिन हमारे धर्मच के भाइयों ने सालों पहले cooperative society बनाई और गोचर का विकास cooperative पर किया और daily, green grass home delivery देते थे उस समय। आज तो मुझे मालूम नहीं। मैं पहले कभी आया करता था। होम डिलीवरी देते थे green grass. अगर दो पशु हैं तो आपको इतना किलो चाहिए, पहुंचा देते थे। और उसमें से जो कमाई होती थी उससे वो गोचर की भूमि के development का आधुनिक काम उन्होंने खड़ा किया।
मेरा कहने का तात्पर्य ये है कि यहां की सोच में सहकारिता के संस्कार पड़े हैं। हम इस सहकारिता का व्यापक रूप कैसे बनाएं, हम कैसे और चीजों के साथ जोड़ें, और उसको आगे बढ़ाने की दिशा में हम कैसे काम करें।
मैं फिर एक बार आज अमूल परिवार को इस चरोतर की धरती के मेरे प्रगतिशील किसान पुत्रों को, इस धरती के महा मनीषी सरदार वल्लभभाई पटेल को स्मरण करते हुए और उन्होंने जो उत्तम परम्परा बनाई है, उस परम्परा से जुड़े हुए सहकारी क्षेत्र को समर्पित सभी लोगों को आदरपूर्वक स्मरण करते हुए, मैं आज इस बहुत बड़ी योजना को, अनेकविद् योजनाओं को गुजरात की धरती को, देश की धरती का समर्पित करते हुए अत्यंत गर्व की अनुभूति के साथ आप सबको बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं और भारत सरकार की तरफ से विश्वास दिलाता हूं, इन सारे प्रकल्पों में उसे आगे बढ़ाने में दिल्ली की सरकार कभी पीछे नहीं रहेगी। भारत सरकार कंधे से कंधा मिला करके इसकी प्रगति के लिए आपकी हिस्सेदार बनेगी। इसी एक अभ्यर्थना के साथ आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद। मेरे साथ पूरी ताकत से बोलेंगे-
भारत माता की - जय
क्यों भाई, क्या हो गया, ये मेरा चरोतर है। आवाज ऐसी नहीं होती।
भारत माता की – जय।
ये बात हुई, शाबास।
धन्यवाद।