देश के कोने-कोने से आये हुए Micro-Industries के, लघु उद्द्योग से जुड़े भाईयों और बहनों,
सामान्य तौर से यह कहा जाता था कि दिल्ली दूरस्थ, दिल्ली बहुत दूर है और होता भी ऐसा ही था। इतना बड़ा विशाल देश, लेकिन हर छोटे-मोटे काम दिल्ली में ही हुआ करते थे। हमने उस परंपरा को बदल दिया और हमारी कोशिश है कि कि दिल्ली के बाद भी, दिल्ली के बाहर भी बहुत बड़ा हिन्दुस्तान है, इसको हमें स्वीकार करना चाहिए। इसलिए अब दिल्ली दूरस्थ नहीं, दिल्ली समीपस्थ, दिल्ली पास है, यह अहसास है। पिछले दिनों भारत सरकार ने जितनी नई-नई योजनाओं को लागू किया, सभी योजनाएं हिन्दुस्तान के अलग-अलग केन्द्र में की गई। कभी कलकत्ता में, तो कभी रांची में, तो कभी रायपुर में, तो कभी भुवनेश्वर, तो कभी चेन्नई, कभी सोनीपत-हरियाणा। हर एक राज्य का अपना एक महत्म्य होता है, अपनी एक शक्ति होती है और आज मेरे लिए खुशी की बात है कि एक लुधियाना में लघु उद्योग क्षेत्र का एक लघु भारत आज मेरे सामने हैं। हिन्दुस्तान के हर कोने से इस क्षेत्र में काम करने वाले लोग यहां मौजूद हैं और मेरा सौभाग्य है कि इस क्षेत्र में योगदान देने वाले सभी उद्योगकारों को सम्मानित करने का मुझे अवसर मिला। वैसे आज जिनको सम्मान होना है, ये संख्या करीब-करीब 250 की है क्योंकि कई वर्षों से ये पुरानी सरकारों ने भी काफी काम मेरे लिए बाकी रखे हुए हैं। मेरे लिए बहुत खुशी की बात होती उन सवा दो सौ-ढाई सौ विजेताओं को मैं स्वयं उनसे मिल पाता, उनको सम्मानित करता, उनको मिलने मात्र से उनकी थोड़ी ऊर्जा का लाभ मुझे भी मिल जाता, जो देश के काम आता। लेकिन समय की सीमाएं रहती है। और अगर ये 250 लोगों को देने का सिलसिला चलता तो यहां आधे लोग रह जाते। तो आयोजकों ने बताया कि हो सकेगा तो हर राज्य से एक-एक को प्रतिनिधि के रूप में आपके द्वारा ही किया जाएगा, बाद में मंत्रिपरिषद के द्वारा हर किसी को सम्मानित किया जाएगा। लेकिन मेरी तरफ से आप सब को आपकी सफल यात्रा के लिए, आपकी भावी मंजिल के सपनों को प्राप्त करने के लिए अनेक-अनेक शुभकामनाएं हैं, सिर्फ शुभकामनाएं नहीं, भारत के आर्थिक जीवन में बदलाव लाने के लिए विकेन्द्रीकृत अर्थव्यवस्था को बल देना, सूक्ष्म एवं लघु उद्योगों को ताकत देना, ग्लोबल market को target करते हुए आगे बढ़ना, इस सुरेख सोच के साथ भारत सरकार पूरी तरह आपके साथ खड़ी हैं, कंधे से कंधा मिलाकर आपके साथ चलने के लिए तैयार हैं।
मुझे विश्वास है कि जिस प्रकार से आज विश्व की तेज गति से आगे बढ़नी वाली जो अर्थव्यवस्थाएं हैं, आज बड़ी economy जिसको कहते हैं उसमें हिन्दुस्तान सबसे तेज गति से आगे बढ़ने वाली economy है, दो वर्ष आकाल होने के बावजूद भी। हमारा किसान परेशान था, कृषि उत्पादन में बड़ी जबरदस्त गिरावट आई थी, उसके बावजूद भी manufacturing sector ने खासकर ये सूक्ष्म और लघु उद्योगों ने एक कमाल करके दिखाया और भारत की विकास दर को न सिर्फ नीचे आने दिया, इतना ही नहीं, उसको आगे बढ़ाने में भी बहुत बड़ा योगदान किया और उसका परिणाम यह है कि World Bank हो, IMF हो, Credit rating agencies हो, एक स्वर से सारी दुनिया कह रही है कि हिन्दुस्तान की आर्थिक गतिविधि, जब पूरा विश्व 2008 की स्थिति में आ गया है, slow-down है, एक अकेला हिन्दुस्तान है जो दुनिया की economy को भी बल दे रहा है और उसके पीछे Manufacturing sector, Service sector का भी बहुत बड़ा योगदान है।
आज यहां तीन और प्रकार का भी मुझे अवसर मिला। सबसे पहले, पंजाब के गांव की माताएं-बहनें, टोकन स्वरूप 500 माताओं-बहनों को चरखा देने का मुझे आज अवसर मिला है और इन दिनों जो खादी पर हम बल दे रहे हैं, सूत के काम पर दाम बढ़ा रहे हैं, इन सबका नतीजा ये है कि जिस परिवार में एक चरखा है, करीब-करीब वो माताएं-बहनें, मैं सब माताओं-बहनों से बात कर रहा था, औसत 150 रुपए से ज्यादा per day उनकी कमाई हो रही है। एक प्रकार से गृह उद्योग के माध्यम से, खादी के माध्यम से एक स्वावलंबी जीवन जीने के लिए, स्वरोजगार को बढ़ावा देने के लिए और महात्मा गांधी का जो सपना था, अर्थव्यवस्था की इस नींव को भी मजबूत करने का, उसमें भी योगदान देने की दिशा में आज एक महत्वपूर्ण काम खादी के द्वारा किया गया है। मैं बाद में उनके stall पर गया था। आपसे भी मेरा आग्रह है कि जरा देखिए। पहले जो हम सोचते थे, वो जमाना बदल चुका है आज खादी की quality देखिए, खादी का packaging देखिए, खादी ने corporate world को compete करे, उस रूप में अपने आप को प्रस्तुत करने का सफल प्रयास किया है। और एक बात सही है कि जब आजादी का आंदोलन चल रहा था तो खादी का अपना एक महत्व था। उस समय का मंत्र था, ‘Khadi for Nation’. अब देश आजाद है। हमें आर्थिक क्रान्ति की ओर जाना है और इसलिए आज का मंत्र है, ‘Khadi for Fashion’. आजादी के पहले जो ‘Khadi for Nation’, आजादी के बाद ‘Khadi for Fashion’. अगर इसको हम बढ़ावा देते हैं तो वो भी गांव, गरीब, सामान्य व्यक्ति के आर्थिक जीवन में, बदलाव लाने की एक ताकत रखता है और मैं लोगों से हमेशा आग्रह करता हूं कि जरूरी नहीं है कि आप खादीधारी बने। नीचे से ऊपर तक हर चीज खादी की हो, ऐसा मेरा आग्रह नहीं है। लेकिन आपके घर में पचासों प्रकार के fabric होते हैं तो कुछ खादी के भी तो fabric के item होने चाहिए। अगर हिन्दुस्तान के हर परिवार में कुछ न कुछ खादी का होगा और दिवाली के समय अगर हम कुछ न कुछ खादी खरीदते हैं तो गरीब के घर में दीवाली का दीया जलता है। इससे बड़ा जीवन का संतोष क्या हो सकता है?
आज मुझे उन सभी परिवारों की माताओं-बहनों का आशीर्वाद पाने का अवसर मिला। आज एक और महत्वपूर्ण काम ये पंजाब की धरती से हो रहा है। और जब मैं पंजाब की धरती से कह रहा हूं तब उसका अपना एक महत्व भी है। इस समय हम जब गुरु गोविन्द सिंह जी के 350वीं जयंती मना रहे हैं और जब मैं आज पंजाब की धरती पर आया हूं तब, गुरु गोविन्द सिंह जी का पुण्य स्मरण करते हुए उन्होंने एक बात जो कही थी, उसका उल्लेख करना चाहता हूं। गुरु गोविन्द सिंह जी ने कहा था, ‘मानस की जात सबई, एक पहचान वो’। मनुष्य की एक ही जात है, उसमें न ऊंच होता है, न नीच होता है; न स्पृश्य होता है, न अस्पृश्य होता है। गुरु गोविन्द सिंह जी ने उस कालखंड में जात-पात, छूत-अछूत इसके खिलाफ आवाज उठाई थी। लेकिन हम जानते हैं कि समाज में हमारी विकृतियां आज भी हमारे दलित भाइयों के साथ कभी-कभी ऐसी घटनाएं सुनने को मिलती हैं, माथा शर्म से झुक जाता है। आजादी के 70 साल के बाद अब हम ज्यादा इंतजार नहीं कर सकते। हमें हमारी दिशा की धार और तेज करनी पड़ेगी, हमारे कार्य के व्याप्त को बदलना पड़ेगा, विस्तृत करना पड़ेगा। आदिवासी हो, दलित हो, जितने aspiration हिन्दुस्तान के अन्य नौजवानों में है, उससे भी बढ़कर aspiration आज मेरे दलित भाइयों-बहनों और मेरे आदिवासी भाइयों-बहनों के अंदर है। अगर उनको अवसर मिले तो भारत का भाग्य बदलने में, वे भी हमसे पीछे रहने वालों में से नहीं है। वो और ज्यादा योगदान कर सकते हैं।
हमारे देश में, हमारे मिलिन्द जी दलित समाज से है, स्वयं उद्योगार है। उन्होंने पूरे देश में एक संगठन खड़ा किया है। दलित समाज के entrepreneurs का Dalit Chamber of Commerce उन्होंने शुरू किया है। मुझे एक बार उनके समारोह में जाने का अवसर मिला। हिन्दुस्तान के top most entrepreneurs जो 500 करोड़ से ज्यादा का कारोबार करते हैं, 1000 से ज्यादा बड़ी संख्या में, उसके कार्यक्रम में मुझे जाने का अवसर मिला। वहां मुझे कुछ माताएं-बहनें मिली, जो दलित परिवार से थीं, entrepreneur थी। उन्होंने कहा हमारी महिलाओं के संगठन में भी 300 से ज्यादा दलित entrepreneur महिलाओं का भी एक संगठन खड़ा हुआ है और वो 100 करोड़ से भी ज्यादा का कारोबार करती है। जब मैं उनसे मिला, तब मेरे मन में आया था कि इसको हमें एक और ताकत देनी चाहिए और ये जो schedule caste, schedule tribe, इसमें जो entrepreneurship है, उसको बढ़ावा देना चाहिए। इसलिए आज यहां पर जो हमने पिछले बजट में घोषित किया था वो schedule caste, schedule tribe के entrepreneur के लिए एक Hub के निर्माण का, आज लुधियाना की धरती पर, पूरे देश के लिए इस योजना का मैं शुभारंभ कर रहा हूं। इससे जो दलित मेरे भाई-बहन है, जो आदिवासी मेरे भाई-बहन है, जो नौकरी पाने के लिए कतार में खड़े रहना नहीं चाहते। वे ऐसी जिन्दगी बनाना चाहते हैं, खुद भी किसी को नौकरी देने की ताकत पैदा करें। ये जिनका मिजाज है, सपना है, उनके लिए मैं कुछ काम करना चाहता हूं।
बैंकों से कहा है, ‘Start-up India, Stand-up India’, इस कार्यक्रम के तहत हिन्दुस्तान में सवा लाख बैंकों के branches है, nationalised बैंक से। मैं और बैंकों की बात नहीं करता, cooperative वगैरह अलग। हर बैंक की branch एक महिला को, एक schedule caste को, एक schedule tribe को एक करोड़ रुपए तक की बैंक में से राशि दे और उनको entrepreneur बनाने के लिए मदद करें। देखते ही देखते सवा लाख branch पौने चार लाख ऐसे नए उद्योगकारों को जन्म दे सकती है। कितना बड़ा क्रान्तिकारी कदम उठाया जा सकता है। हमारे दलित भाई-बहन जो manufacturing करेंगे, भारत सरकार जिन चीजों को procure करती है, हमने राज्य सरकारों से भी अनुरोध किया है कि जो हमारे दलित और आदिवासी entrepreneur है, वे जो manufacturing करेंगे, चार प्रतिशत उनके यहां से लिया जाए ताकि उनको स्वाभाविक एक market मिले और उनका हौसला बुलंद हो, समाज के उन वर्गों को आर्थिक गतिविधि के केन्द्र में लाना है ताकि देश को एक नई आर्थिक ऊंचाई पर ले जाने के लिए नई-नई शक्तियों का स्रोत हमें मिलता रहे, उस दिशा में काम करने का एक प्रयास इसके साथ चला है।
आज यहां एक और प्रकल का भी प्रारंभ हुआ है ZED. ‘Zero effect Zero defect’. आप सब इस बात को भली-भांति जानते हैं कि अब सामान्य व्यक्ति खरीददार भी quality compromise करने को तैयार नहीं है। पहले हम भारत के ही market को देखते थे और सोचते थे कि ये चीजें हैं वो शहरी इलाकों में जरा पढ़-लिखे लोगों के बीच में बिक जाएगी, ये थोड़ी जरा finishing ठीक नहीं है। ऐसा करेंगे उसको Tier II, Tier III शहरों में बेचेंगे और ये जो जरा और मामूली दिखती है उसको जरा गांव में जाएंगे तो बिक जाएगी। ज्यादातर हम लोगों की सोच भारत के ही market को ध्यान में रखकर के और आखिर ये इतना बड़ा देश है तो कोई product पड़ी तो रहती नहीं है, कोई garment बनाएगा, top quality का होगा तो बड़े शहर में जाएगा और थोड़ी हल्की quality का बन गया तो चलो भई गांव के बाजार में रख देंगे चला जाएगा। अब वो वक्त नहीं है। सोच बदल रही है। लेकिन उससे बड़ी बात है कि क्या हिन्दुस्तान का लघु उद्योगकार, क्या हिन्दुस्तान का सूक्ष्म उद्योगकार ये सिर्फ भारत के market को ध्यान में रखकर ही अपना कारोबार चलाएगा क्या। अगर देश की उत्तम सेवा करनी है तो हम सबका लक्ष्य रहना चाहिए कि हम Quality control में global standard को अपनाएंगे और दुनिया के market में हम अपना पैर जमाने के लिए भारत की पहचान बनाने के लिए प्रयास करेंगे।
दूसरे विश्व युद्ध के बाद जापान तबाह हो गया था। कोई कल्पना नहीं कर सकता था कि जापान खड़ा हो जाएगा। लेकिन उनके छोटे-छोटे लघु उद्योगों ने quality में compromise किए बिना manufacturing sector में कदम उठाए। हम लोगों को मालूम है, हम बाजार में कभी आज से कोई 15-20 साल पहले कोई चीज खरीदने जाते थे, और अगर उस पर लिखा है made in Japan, तो हम कभी पूछते नहीं थे कि किस कंपनी ने बनाया, दाम पूछते थे, लेकर के चल देते थे क्योंकि भरोसा होता था कि एक quality में कोई गड़बड़ नहीं होगी। क्या हिन्दुस्तान की पहचान नहीं बन सकती दुनिया के किसी भी बाजार में, जैसे ही वो पढ़े make in India वो आंख बंद करके सोचेगा कि ये योग्य होगा, अच्छा होगा, किफायत भाव से बना होगा और वो लेने को तैयार हो जाए। ये dream लेकर के हमें चलना है और इस dream को पूरा करना है तो Zero defect उसकी पहली शर्त होगी। और कभी छोटी सी भी कमी, इतना बड़ा नुकसान कर सकती है। अगर एक नाविक नाव लेकर के जाना है उसको दरिया में, समुद्र में तो अपनी नाव को बराबर देखता है। छोटा सा भी छेद कहीं है तो नहीं, वो पक्का देखता है। कोई ये कहेगा कि इतनी बड़ी नाव है, कोने में एक छोटा छेद क्या है चिंता मत करो, चल पड़ो। नहीं जाता है। उसे मालूम है कि एक छोटा सा छेद भी उसको कभी वापिस आने में मदद नहीं करेगी, जिन्दगी वहीं पूरी हो जाएगी। manufacturing करने वाले के दिमाग में ये उदहारण रहना चाहिए कि Zero defect होगा तब जाकर के मैं दुनिया के अंदर अपनी ताकत पहुंचा पाऊंगा और इसलिए standardization, quality control और उसी से branding पैदा होता है।
Global market हमारा इंतजार कर रहा है। कुछ लोगों को लगता है कि भई हम तो एक छोटे से व्यक्ति है, छोटी सी मशीन है, तीन कामगार है- पांच कामगार है- दस कामगार है, हम क्या दुनिया देखेंगे। ऐसा मत सोचो। आज दुनिया में स्पेस के क्षेत्र में, सैटेलाइट की दुनिया में, दुनिया भारत का लोहा मानती है। हमने मार्स मिशन किया। हम मंगलयान में सफल हुए और दुनिया में भारत पहला देश है जो पहले ही trial में मंगलयान में सफल हुआ। हमारे नौजवानों की बुद्धि, ताकत देखिए। कितने खर्चे में हुआ। लुधियाना में अगर आपको ऑटो रिक्शा में एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना है तो शायद एक किमी. का 8-10 रुपए लग जाते होंगे। हमने मंगलयान तैयार किया। एक किमी. का सिर्फ 7 रुपए खर्च आए। इतना ही नहीं अमेरिका में हॉलिवुड की जो फिल्म बनती है, हॉलिवुड की फिल्म का जो खर्चा होता है उससे भी कम खर्चे में भारत के वैज्ञानिकों ने, साइंटिस्टों ने, टैक्निशियनों ने मार्स मिशन का खर्चा, कम खर्चे में पूरा किया।
इतनी बड़ी सफलता, उसका अगर इतिहास देखेंगे तो ध्यान में आएगा कि आज जो दुनिया में, स्पेस में हमारा नाम है। कभी ये स्पेस की दुनिया का कारोबार कहा होता था, बंगलूर की और हिन्दुस्तान की अलग-अलग जगह पर लोगों के motor garage की जो खाली जगह पड़ी रहती थी, उसमें दो-चार लोग मिलकर के इस काम को करते थे और कभी आपने प्रारंभिक दिनों की एक फोटो देखी होगी तो दो लोग साईकिल पर ये सैटेलाइट का एक part साईकिल पर बांधकर के, tow करके ले जा रहे है ताकि वो आसमान में जाना है। कोई कल्पना कर सकता है कि उस दिन जिसने देखा होगा कि साईकिल पर सैटेलाइट का पार्ट ले जाने वाला ये देश आज दुनिया के अंदर अपना लोहा मनवा लेता है। लघु उद्योगकारों के लिए, ये उनके मन में सपना रहना चाहिए कि भले आज हमारा product छोटा लगता होगा, मामूली लगता होगा, लेकिन इसके अंदर एक बहुत बड़ी ऊंचाई पर पहुंचने का in-built ताकत पड़ी हुई है, ये इसका एहसास करके अगर हम काम करते हैं तो हम उस ऊंचाइयों को पार कर सकते हैं और उन सपनों को लेकर के चलना चाहिए।
जमाना बदल चुका है। जितना महत्व product का है, कभी-कभी लगता है कि उससे ज्यादा महत्व पैकेजिंग का हो गया है। कभी-कभी हमारा माल बहुत बढ़िया होता है लेकिन पैकेजिंग में कंजूसी के कारण हम मर जाते हैं। जब पंडित नेहरु जी की सरकार थी तो आयुर्वेद को पुनर्जीवित करने के लिए एक कमीशन बैठा था और उस कमीशन का काम था कि आयुर्वेद हमारी traditional medicine है, वो खत्म होती जा रही है फिर से उसको पुनर्जीवित कैसे किया जाए। उसको popular कैसे किया जाए तो एक हाथी कमीशन बैठा था, जयसुख लाल हाथी करके थे। उन्होंने उसकी रिपोर्ट दी थी। वो रिपोर्ट बड़ी पढ़ने जैसी है। उस रिपोर्ट के पहले पेज पर बड़ी महत्वपूर्ण बात लिखी है। उन्होंने लिखा है कि आयुर्वेद को अगर बढ़ावा देना है तो सबसे पहले उसकी पैकेजिंग पर ध्यान देना चाहिए। ये कागज की पुड़िया में जो आयुर्वेद देते हैं दुनिया में ये चलने वाला नहीं है। उसकी पैकेजिंग बदलनी चाहिए आयुर्वेद अपने आप दवाईयां बिकने लगेंगी। पहला सुझाव था उनका और मैं ये 60 की बात कर रहा हूं। आज तो हम जानते हैं कि पैकेजिंग का कितना महत्म्य बढ़ा है। हमने भी हमारी product के साथ पैकेजिंग को भी उतना ही महत्व देना होगा और जैसा देश। अगर हम जो देश अंग्रेजी नहीं जानते, अगर वहां हम अपना product हमारी पैकेजिंग पर अंग्रेजी में लिखकर के बेचेंगे तो कहा बिकने वाला है। आपको उसकी भाषा में पैकेजिंग बनवाना पड़ेगा। इसलिए हर चीज में Zero defect. इन दिनों इस ZED योजना के तहत एक बड़ा competition की कल्पना है। Bronze से लेकर के platinum तक पांच अलग-अलग layer के इनाम दिए जाएंगे और बड़े handsome prize दिए जाएंगे। कोई सीधा platinum नहीं पा सकेगा। पहले उसको नीचे के layer से पांच layer करते-करते उसको आगे बढ़ना होगा और उसको विशेष मान्यता मिलेगी। उस मान्यता के तहत दुनिया के बाजार में उसकी एक साख बनेगी। हमारी कोशिश है और मेरा उद्योगकारों को निमंत्रण है कि इस ‘Zero defect Zero effect’ movement में कम से कम 10 लाख उद्योग उस competition में आए आगे। 50 parameter तय किए है। उस 50 parameter के लिए अपने आप को सज्ज करे। कुछ कमियां हैं तो ठीक करे। आप देखिए Global market के लिए हमारे product जगह बनाना शुरू कर देंगे और भारत सरकार का यह प्रयास, यह सर्टिफिकेशन जो है वो दुनिया में काम आने वाला है। उस दिशा में एक महत्वपूर्ण initiative आज यहां किया गया है।
Zero effect की बात जब मैं कर रहा हूं तब, दुनिया के देश, उनकी भी अपनी-अपनी एक रणनीति रहती है। अगर आपका माल दुनिया के बाजार में पहुंच रहा है तो कभी एकाध आवाज उठ जाए कि किसी NGO के द्वारा दुनिया में से कि हिन्दुस्तान से फलां चीज आती है लेकिन वो तो environment को नुकसान करके manufacture होता है तो हम उस चीज का बहिष्कार कर देंगे। इतनी सी आवाज किसी ने उठा दी तो आपका माल उस देश में जाना बंद हो जाएगा। ऐसी स्थिति में ये मानकर चलिए कि 5 साल-10 साल के भीतर-भीतर ऐसे कुछ लोग पैदा हो जाएंगे जो भारत की चीजों को अपने देश में प्रवेश करने से रोकने के लिए environment नाम की चीजों को जोड़ देंगे। हमें अभी से तैयारी करे कि हमारी manufacturing से environment को zero effect होगा। Zero negative effect होगा। उस पर हम बल दे और डंके की चोट पर दुनिया को हम कहे कि हम वो चीज लेकर के विश्व में आए है जो मानव जात के भाग्य को भी सुरक्षित रखती है, भविष्य को भी सुरक्षित रखती है और आपकी आवश्यकताओं की भी उत्तम से उत्तम पूर्ति कर सकती है। इसलिए ‘Zero effect, Zero defect’, इस मंत्र को हम आगे बढ़ाना चाहते हैं।
भारत सरकार ने एक महत्वपूर्ण निर्णय और लिया है और मैं चाहता हूं कि आप लोग इसका फायदा उठाएं। पहले भारत सरकार इस प्रकार के जो सर्टिफिकेट देती थी, अवार्ड देती थी तो आप अपने चैम्बर में लटकाते थे। कोई आए तो उसको दिखाते थे लेकिन अब हम इसकी प्रतिष्ठा को और अधिक व्यापक बनाना चाहते हैं। भारत सरकार विधिवत रूप से आपको इस बात की अनुमति देती है कि आपको ये जो अवार्ड मिले हैं, आपको जो उसका एक logo मिला है, वे अब आपकी फैक्टरी में जो laborers है उनकी यूनिफॉर्म पर लगा सकते हैं। आप अगर अखबार में advertisement देते हैं, तो ये logo का उपयोग कर सकते हैं क्योंकि ये आपकी मालिकी हो गई अब। इसके कारण आप उसके साथ गौरव अनुभव करेंगे। पहले इतने सारे बंधन थे आप इसका उपयोग नहीं कर पाते थे, हमने इसको relax करना तय कर लिया ताकि इसका आप भली-भांति उपयोग कर सके और इसके कारण जो आपका laborer होगा, जब उसके सीने पर वो लगा होगा तो वो कहेगा कि मैं उस कंपनी में काम करता हूं जो अवार्ड winner कंपनी है और देश की विकास की यात्रा में इतना बड़ा contribute करने वाली कंपनी में मैं मुलाजिम हूं। वो भी एक शान का अनुभव करेगा। उस दिशा में भी काम करने की दिशा में हमने सोचा है।
अनेक ऐसे विषय हैं जैसे मैंने आपके सामने रखा, इन सारी योजनाओं का। आज लुधियाना की इस धरती पर नई गति मिली है। मैं फिर एक बार manufacturing सेक्टर को बड़ा महत्व देता हूं।
Start-up पर हमारा बल है। मुद्रा योजना के द्वारा बैंकों से बड़ी मात्रा में छोटे-छोटे कारोबारियों को पैसा देने का काम किया है। आपको हैरानी होगी कि योजना को शुरू हुए अभी सवा डेढ़ साल हुआ है। डेढ़ साल में करीब-करीब साढ़े तीन-पौने चार करोड़ कारोबारियों को दो लाख करोड़ रुपया, बैंक से without गारंटी पैसे दे दिए गए। वे नए रोजगार का निर्माण करने की ताकत रखते हैं और अच्छी बात यह है कि यह जो करीब पौने चार करोड़ लोगों को दो लाख करोड़ रुपया मिला है उसमें ज्यादातर करीब-करीब 70 प्रतिशत महिलाएं हैं, दलित, पिछड़ी जाति के लोग है। वे कुछ करना चाहते हैं। मुद्रा योजना के द्वारा उनको ये अवसर दिया गया है।
आज आपने देखा होगा कि उद्योगकारों के साथ-साथ हमने बैकों को भी सम्मानित किया क्योंकि हम बैंकों को भी competition में लाना चाहते हैं कि सूक्ष्म और लघु उद्योग को कौन तेजी से पैसा देता है, कौन ज्यादा पैसा देता है, कौन ज्यादा मदद करता है, ऐसे बैकों को भी हम प्रोत्साहित करना चाहते हैं। ताकि बैंकों के बीच में भी लघु उद्योगकारों को पैसा देने का competition पैदा हो, उनके अंदर एक स्पर्धा चले और ज्यादा से ज्यादा इन छोटे उद्योगकारों को आर्थिक कठिनाई न आए, उसकी व्यवस्था खड़ी हो। ऐसे अनेक पहलू है। उन सभी पहलुओं को जोड़कर के भारत में छोटे-छोटे उद्योगों का एक बड़ा जाल निर्माण हो। हमारी जो नई पीढ़ी है वे साहस करना चाहती है, innovation करना चाहती है और ये बात सही है कि हम अब ये सोचे कि मेरी ये product मेरे दादा के जमाने से चलती थी तो अब भी चल जाएगी, तो ये होने वाला नहीं है। हर पीढ़ी को इनोवेशन के साथ नया product लाना पड़ेगा। छोटा उद्योग होगा तो भी innovation करते ही रहना होगा। Start-up innovation को बल देता है। talent को अवसर देता है। Start up में से लघु उद्योगों के लिए scale-up किया जाए, ऐसी अनेक नई चीजों के काम हो रहे हैं।
इन दिनों जो स्वच्छता का अभियान चला है। स्वच्छता के अभियान में भी एक बहुत बड़ा आर्थिक कारोबार संभावित है। अगर हम स्वच्छता को आर्थिक दृष्टि से भी देखे तो waste में से wealth create करने के लिए बहुत सारी संभावनाएं है। हम ऐसे tools बनाए, ऐसी मशीन बनाएं। अब जैसे आपने यहां एक प्रदर्शनी देखी होगी। पांच लाख रुपए की एक छोटी मशीन बना दी गई। पांच लाख रुपयों में वो फलों का essence निकालकर के fragrance वाली चीजें market में ला सकता है। अब गरीब व्यक्ति भी और मंदिर वाले भी। मंदिर के बाहर एक मशीन लगा दे तो मंदिर में जितने फूल चढ़ते हैं उसमें से बहुत बड़ी quality का इत्र तैयार करके बाजार में बेचा जा सकता है। कैसे ऐसी छोटी-छोटी मशीनें तैयार की जाए, सहज रूप से काम आने वाली मशीन कैसे तैयार की जाए। अगर हम इस प्रकार की innovation को बदलेंगे। Start up को बढ़ावा देंगे। आप देखिए हम लघु उद्योग सूक्ष्म उद्योग की दुनिया में बहुत बड़ा contribution कर सकते हैं।
मैं फिर एक बार कलराज जी और उनकी पूरी टीम को, उनके सभी मंत्रियों को, उनके विभाग के सभी अधिकारियों का हृदय से बहुत-बहुत अभिनंदन करता हूं। जिस तेज गति से गृह उद्योग से लेकर के लघु उद्योग तक, सारा ये जो पूरा holistic network है उसको बल देने का जो प्रयास हो रहा है, इसके लिए विभाग के सभी अभिनंदन अधिकारी है।
मैं बादल साहब का भी बहुत-बहुत आभारी हूं कि पंजाब सरकार ने इस कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए भारी परिश्रम किया। इसको यशस्वी बनाया और मैं बादल साहब ने मुझे भटिंडा के लिए याद कराया है, वैसे मुझे भटिंडा पहले जाना चाहिए था लेकिन समय अभाव से मैं जा नहीं पाया हूं। करीब एक हजार करोड़ रुपए की लागत से बहुत बड़ा एम्स का अस्पताल भटिंडा में बनाने की भारत सरकार योजना है। लेकिन मैं वादा करता हूं बादल साहब आप तो हमारे सबसे बड़े सीनियर है। आपकी इच्छा हमारे लिए आदेश होती है। मैं जरूर भटिंडा आउंगा जितना हो सके उतना जल्दी आऊंगा और एम्स के कारोबार को आगे बढ़ाएंगे।
मैं फिर एक बार आप सबका हृदय से बहुत-बहुत आभार व्यक्त करता हूं। पंजाब सरकार का आभार व्यक्त करता हूं। विशेष रूप से बादल साहब का आभार व्यक्त करता हूं। बहुत-बहुत धन्यवाद।