आदरणीय सभापति जी,
राष्ट्रपति जी की अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर जो चर्चा चल रही है। उस चर्चा में शरीक होकर मैं आदरणीय राष्ट्रपति जी का आदरपूर्वक धन्यवाद करता हूं। आदरणीय राष्ट्रपति जी का अभिनंदन करता हूं। आदरणीय सभापति जी, दोनों सदनों को संबोधित करते हुए उन्होंने विकसित भारत का एक खाका और विकसित भारत के संकल्प के लिए एक रोड मैप को प्रस्तुत किया है।
आदरणीय सभापति जी,
मैं उन सभी सदस्यों का भी आभार व्यक्त करता हूँ, जिन्होंने इस चर्चा में भाग लिया। अपनी कल्पना के अनुसार चर्चा को विस्तार देने का प्रयास भी किया और इसलिए मैं सदन में हिस्सा लेने और चर्चा में हिस्सा लेने वाले सभी आदरणीय सदस्यों का धन्यवाद करता हूं।
आदरणीय सभापति जी, ये सदन राज्यों का सदन है। बीते दशकों में अनेक बुद्धिजीवियों ने इस सदन से देश को दिशा दी है, देश का मार्गदर्शन किया है। इस सदन में अनेक साथी ऐसे हैं, जो अपने व्यक्तिगत जीवन में भी बहुत कुछ सिद्धियां प्राप्त की हुई हैं, अपने व्यक्तिगत जीवन में बहुत बड़े काम भी किए हुए हैं, और इसलिए इस सदन में जो भी बात होती है, उस बात को देश बहुत गंभीरता से सुनता है और देश उसे बहुत गंभीरता से लेता है।
माननीय सदस्यों को मैं यही कहूंगा कीचड़ उसके पास था, मेरे पास गुलाल, जो भी जिसके पास था, उसने दिया उछाल। और अच्छा ही है जितना कीचड़ उछालोगे कमल उतना ही ज्यादा खिलेगा। और इसलिए कमल खिलाने में आपका प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जो भी योगदान है, उसके लिए मैं उनका भी आभार व्यक्त करता हूं।
आदरणीय सभापति जी
कल विपक्ष के हमारे वरिष्ठ साथी आदरणीय खड़गे जी ने कहा कि हमने 60 साल में मजबूत बुनियाद बना रहे ऐसा कल आपने कहा और उनकी शिकायत थी कि बुनियाद तो हमने बनाई और क्रेडिट मोदी ले रहा है। लेकिन आदरणीय सभापति जी 2014 में आकर के जब मैंने बारीकी से चीजों से बड़ी गहराई से देखने का प्रयास किया, personal information लेने का प्रयास किया तो मुझे नजर आया कि 60 साल कांग्रेस के परिवार ने हो सकता है उनका इरादा मजबूत नींव बनाने का हो, मैं उस पर कोई टिप्पणी करना नहीं चाहता। लेकिन 2014 के बाद मैंने आकर के देखा कि उन्होंने गड्ढे ही गड्ढे कर दिए थे। उनका इरादा नींव का होगा, लेकिन उन्होंने गड्ढे ही गड्ढे कर दिए थे। और आदरणीय सभापति जी जब वो गड्ढे खोद रहे थे, 6-6 दशक बर्बाद कर दिए थे, उस समय दुनिया के छोटे-छोटे देश भी सफलता के शिखरों को छू रहे थे, आगे बढ़ रहे थे।
आदरणीय सभापति जी,
उनका तो उस साल इतना अच्छा माहौल था कि पंचायत से लेकर के पार्लियामेंट तक उन्हीं की दुनिया चलती थी। इतना देश भी अनेक आशा अपेक्षाओं के साथ आंख बंद करके उनका समर्थन करता था। लेकिन उन्होंने इस प्रकार की कार्य शैली विकसित की, इस प्रकार का कल्चर विकसित किया कि जिसके कारण उन्होंने एक भी चुनौती का Permanent Solution करने का न भी सोचा, न कभी उनको सूझा, न कभी उन्होंने प्रयास किया। वे बहुत हो-हल्ला हो जाता था तो चीजों को छू लेते थे, totalism कर लेते थे, तब फिर आगे चले जाते थे। समस्याओं का समाधान करना ये उनका दायित्व था। देश की जनता समस्याओं से जूझ रही थी। देश की जनता देख रही थी कि समस्या का समाधान कितना बड़ा लाभ कर सकता है। लेकिन उनकी priority अलग थी, उनके इरादे अलग थे और उसके कारण किसी भी बात के permanent solution का प्रयास नहीं किया।
आदरणीय सभापति जी,
हमारी सरकार की पहचान जो बनी है वो हमारे पुरुषार्थ के कारण बनी है, एक के बाद उठाए गए कदमों के कारण बनी है और आज हम permanent solution की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। हम एक-एक विषय को छूकर के भागने वाले लोग नहीं, लेकिन देश की मूलभूत आवश्यकताओं को permanent solution पर बल देते हुए हम आगे बढ़ रहे हैं।
आदरणीय सभापति जी,
अगर मैं पानी का ही उदाहरण लूँ तो वो जमाना था कि किसी गांव में एक हैंडपंप लगा दिया तो हफ्ते भर उसका उत्सव मनाया जाता था और उस tokenism से पानी का काम करके गाड़ी चलाई जाती थी। कल यहां गुजरात का जिक्र कर रहे थे, आप हैरान होंगे सबसे ज्यादा सीटों से जितने का उनका जो गर्व था वैसे एक मुख्यमंत्री एक शहर में पानी की टंकी का उद्घाटन करने गए थे। और वो फ्रंट पेज पर हेडलाइन न्यूज़ था। यानी समस्याओं का tokenism क्या होता है कैसे टाला जाता है, ये कल्चर देश ने देखा है। हमने भी पानी की समस्या को सुलझाने के लिए रास्ते बनाए। हमने जल संरक्षण, जल सिंचन हर पहलू पर ध्यान दिया। हमने catch the rain अभियान से जनता को जोड़ा। इतना ही नहीं आजादी के पहले से अब तक हमारी सरकार में आने तक 3 करोड़ घरों तक नल से जल मिलता था।
आदरणीय सभापति जी,
पिछले 3-4 साल में आज 11 करोड़ घरों को नल से जल मिल रहा है। पानी की समस्या तो हर परिवार की समस्या होती है, जीवन उसके बिना चल नहीं सकता और भविष्य की संभावनाओं को भी देखते हुए हमने उसके समाधान के रास्ते चुनें।
आदरणीय सभापति जी,
मैं एक और विषय पर भी जाना चाहता हूं Empowerment of Common People. बैंकों का राष्ट्रीयकरण हुआ था, इस बात से हुआ था कि गरीबों को बैंकों का अधिकार मिले ऐसी बहानेबाजी की गई थी। लेकिन इस देश के आधे से अधिक लोग बैंक के दरवाजे तक नहीं पहुंच पाए। हमने permanent solutions निकाला और जन धन अकाउंट का अभियान चलाया, बैंकों को motivate किया, onboard लिया। पिछले 9 साल में ही 48 करोड़ जन धन बैंक खाते खोले गए। इसमें 32 करोड़ बैंक खाते ग्रामीण और कस्बों में हुए हैं। यानी देश के गांव तक प्रगति की मिसाल को ले जाने का प्रयास हुआ है। कल खड़गे जी शिकायत कर रहे थे कि मोदी जी बार-बार मेरे चुनावी क्षेत्र में आते हैं, वो कह रहे थे – मोदी जी कलबुर्गी आ जाते हैं, मैं जरा खड़गे जी को कहना चाहता हूं, मैं आता हूं उसकी शिकायत करने से पहले ये भी तो देखो कि कर्नाटक में 1 करोड़ 70 लाख जन धन बैंक अकाउंट खुले हैं। इतना ही नहीं उन्हीं के इलाके में कलबुर्गी में 8 लाख से ज्यादा जन धन खाते खुले हैं।
अब सभापति जी बताइए, इतने बैंक के खाते खुल जाएं, इतना empowerment हो जाए, लोग इतने जागरूक हो जाए और किसी का इतने सालों के बाद खाता बंद हो जाए तो उनकी पीड़ा, मैं समझ सकता हूं। अब बार-बार उनका दर्द झलकता है और मैं तो हैरान हूं, कभी-कभी यहां तक कह देते हैं कि एक दलित को हरा दिया, अरे भई उसी इलाके की जनता जनार्दन है, एक दूसरे दलित को जीता दिया। अब आपको जनता नकार दे रही है, आपको हटा रही है, आपका खाता बंद कर रही है और आप रोना यहां रो रहे हो।
आदरणीय सभापति जी,
जन धन, आधार, मोबाइल ये जो त्रिशक्ति है और उसने सीधा Direct Benefit Transfer उस योजना के तहत पिछले कुछ वर्षों में 27 लाख करोड़ रुपये इस देश नागरिकों के बैंक खातों में ट्रांसफर किया है, हितधारकों के खातों में ट्रांसफर किया है और मुझे खुशी है कि Direct Benefit Transfer इस Technology का उपयोग करने के कारण इस देश के 2 लाख करोड़ रूपये से ज्यादा पैसे जो किसी Eco-system के गलत हाथों में जाता था वो बच गया है, देश की बहुत बड़ी सेवा की है। और मैं जानता हूं जिस Eco-system के शागिर्दों, चेले-चपाटों को जो जिन्हें 2 लाख करोड़ की ऐसे ही फायदे मिलते रहते थे, उनका चिल्लाना भी बहुत स्वाभाविक है।
आदरणीय सभापति जी,
हमारे देश में पहले परियोजनाएं अटकाना, लटकाना, भटकाना ये उनकी कार्य संस्कृति का हिस्सा बन गया था, यहीं उनका कार्य करने का तरीका बन गया था। ईमानदार Tax-payer की गाढ़ी कमाई उसका नुकसान होता था। हमने Technology का Platform तैयार किया पीएम गतिशक्ति मास्टर प्लान लेकर के आए और 1600 लेयर में डेटा के माध्यम से Infrastructure के इन प्रोजेक्ट्स को गति देने का काम हो रहा है। जो योजनाएं बनाने में महीनों लग जाते थे वो आज सप्ताहों के भीतर-भीतर उसको आगे बढ़ा दिया जाता है। क्योंकि आधुनिक भारत के निर्माण के लिए Infrastructure का महत्व हम भली भांति समझते हैं। स्केल का भी महत्व समझते हैं। स्पीड का भी महत्व समझते हैं और टेक्नोलॉजी के माध्यम से permanent solution और permanent aspiration को address करने का प्रयास आदरणीय सभापति जी हम कर रहे हैं।
आदरणीय सभापति जी,
कोई भी जब सरकार में आता है तो देश के लिए कुछ करने के वादे करके आता है। जनता का कुछ भला करने के वादे करके आता है। लेकिन सिर्फ भावनाएँ व्यक्त करने से बात बनती नहीं है। आप कह दें कि हम ऐसा चाहते हैं, हम ऐसा चाहते हैं जैसे कभी कहा जाता था गरीबी हटाओ 4-4 दशक हो गए, हुआ कुछ नहीं। इसलिए विकास की गति क्या है, विकास की नीयत क्या है, विकास की दिशा क्या है, विकास का प्रयास क्या है, परिणाम क्या है, ये बहुत मायने रखता है। सिर्फ आप कहते रहे कि हम भी कुछ करते थे, इतने से बात बनती नहीं है।
आदरणीय सभापति जी,
जबकि हम जनता को उनकी प्राथमिकताओं के आधार पर उनकी आवश्यकताओं और जब जनता की इतनी बड़ी आवश्यकताओं के लिए मेहनत करते हैं, तो हम पर दबाव भी बढ़ता है। हमें मेहनत भी ज्यादा करनी पड़ती है, हमें परिश्रम भी ज्यादा करना पड़ता है। लेकिन हमने जैसे महात्मा गांधी जी कहते थे, श्रेय और प्रिय। हमने श्रेय का रास्ता चुना है, प्रिय लग जाए आराम कर लें, वो रास्ता हमने नहीं चुना है। मेहनत करनी पड़ेगी तो हम लोग करेंगे। दिन रात खपाना पड़ेगा तो खपाएंगे, लेकिन जनता जर्नादन की aspiration को चोट नहीं पहुंचने देंगे और उसकी aspiration सिद्धियों में परिवर्तित हो जाए और देश विकास की यात्रा को पार करे, इसके लिए हम काम करते रहेंगे। इन सब सपनों को लेकर के चलने वाले हम लोग हैं और हमने वो करके दिखाया है।
आदरणीय सभापति जी,
अब आप देखिये, देश आजाद हुआ तब से 2014 तक 14 करोड़ एलपीजी कनेक्शन थे और लोगों की मांग भी थी। लोग सांसदों के पास जाते थे कि हमें एलपीजी कनेक्शन मिल जाए और उस समय 14 करोड़ घरों में था, डिमांड भी कम थी, प्रेशर भी कम था, आपको गैस लाने के लिए खर्चा भी नहीं करना पड़ता था, आपको गैस पहुंचाने के लिए व्यवस्था, आपके मजे में गाड़ी चलती थी, काम होता नहीं था। लोग इंतजार करते रहते थे। लेकिन हमने सामने से होकर के तय किया कि हर घर को एलपीजी कनेक्शन देंगे। हमें मालूम था कि हम कर रहे हैं, हमें मेहनत करनी पड़ेगी। हमें मालूम था हमें धन खर्च करना पड़ेगा। हमें मालूम था हमें दुनिया भर से गैस लाना पड़ेगा। एक साथ दबाव की संभावना जानने की बावजूद भी हमारी प्राथमिकता मेरे देश का नागरिक था। हमारी प्राथमिकता हमारे देश के सामान्य लोग थे और इसलिए हमने 32 करोड़ से ज्यादा परिवारों के पास गैस कनेक्शन पहुंचाये। नया infrastructure खड़ा करना पड़ा, धन खर्च करना पड़ा।
आदरणीय सभापति जी,
इस एक उदाहरण से आप समझ सकते हैं कि हमें कितनी मेहनत करनी पड़ी होगी। लेकिन हमने आनंद के साथ, संतोष के साथ, गर्व के साथ इस मेहनत को किया और मुझे खुशी है कि सामान्य मानवी को उसका संतोष मिला। इससे बड़ा एक सरकार के लिए संतोष क्या होगा।
आदरणीय सभापति जी,
आजादी के अनेक दशकों के बाद भी इस देश में 18 हजार से ज्यादा गांव ऐसे थे, जहां बिजली नहीं पहुंची थी और ये गांव अधिकतर हमारे आदिवासी बस्ती के गांव थे। हमारे पहाड़ों पर जिंदगी गुजराने वाले लोगों के गांव थे। जनजाति के गांव थे। नॉर्थ ईस्ट के गांव थे, लेकिन ये उनके चुनाव के हिसाब-किताब में बैठता नहीं था। इसलिए इनकी priority नहीं था। हम जानते थे, ये कठिन काम उन्होंने छोड़ दिये हैं। हमने कहा हम तो मक्खन पर लकीर करने वाले नहीं, पत्थर पर लकीर करने वाले लोग हैं। हम इस चुनौती को भी उठाएंगे। हम इस चुनौती को भी उठाएंगे और हमने हर गांव में बिजली पहुंचाने का संकल्प उठाया। समय सीमा में 18 हजार गांवों में बिजली पहुंचाई और उस चुनौतीपूर्ण काम करने के पीछे गांवों में एक नई जिंदगी की अनुभूति हुई। उनका विकास तो हुआ लेकिन सबसे बड़ी बात हुई देश की व्यवस्था पर उनका विश्वास बढ़ा और विश्वास बहुत बड़ी ताकत होती है। जब देश के नागरिकों का विश्वास बनता है तब वो लाखों करोड़ों गुना एक सामर्थ्य में परिवर्तित हो जाता है। वो विश्वास हमने जीता है और हमने मेहनत की, हमें करनी पड़ी, लेकिन मुझे खुशी है कि उन दूरदराज के गांवों को आजादी के इतने सालों के बाद नई आशा की किरण दिखाई दी, संतोष का भाव प्रकट हुआ और वो आशीर्वाद आज हमें मिल रहे हैं।
आदरणीय सभापति जी,
पहले की सरकारों में कुछ घंटे बिजली आती थी। कहने को तो लगता था बिजली आ गई। गांव के बीच में एक खंभा डाल दिया तो हर साल उसकी anniversary मनाते थे। फलानी तारीख को खंभा डाला गया था। बिजली तो आती नहीं थी। आज बिजली पहुंची इतनी ही नहीं, औसत हमारे देश में 22, 22 घंटे बिजली देने के प्रयास में हम सफल हुए हैं। हमें इस काम के लिए नई transmission लाइनें लगानी पड़ी। हमें नए ऊर्जा उत्पादन के लिए काम करना पड़ा। हमें सौर ऊर्जा की ओर जाना पड़ा। हमें renewable energy के अनेक क्षेत्र खोजने पड़े। हमने लोगों को उनके भाग्य पर नहीं छोड़ दिया। राजनीतिक फायदे घाटे की बात नहीं सोची। हमने देश के आने वाले कल को उज्ज्वल बनाने का रास्ता चुना। हमने खुद के लिए दबाव बढ़ाया। लोगों की मांग बढ़ने लगी, दबाव बढ़ने लगा। हमने मेहनत वाला रास्ता चुना और इसके नतीजे आज देश देख रहा है। देश ऊर्जा के क्षेत्र में प्रगति की ऊंचाइयों को प्राप्त कर रहा है।
आदरणीय सभापति जी,
हमने आजादी के अमृत काल में एक बहुत बड़ा हिम्मत भरा कदम उठाया। मैं जानता हूँ ये आसान नहीं है, हमें बहुत मेहनत करनी पड़ी है। और वो रास्ता हमने चुना है सेचुरेशन का। हर योजना के जो लाभार्थी हैं, शत प्रतिशत लाभ कैसे पहुंचे, शत प्रतिशत लाभार्थियों को लाभ पहुंचे, बिना रोक टोक के लाभ पहुंचे और मैं कहता हूं, अगर सच्ची पंथ निरपेक्षता है तो यही है, सच्चा secularism है तो यही है और सरकार उस राह पर बड़ी ईमानदारी के साथ चल पड़ी है। अमृत काल में हमने Saturation का संकल्प लिया है। शत-प्रतिशत लाभार्थियों तक पहुंचने का भाजपा एनडीए सरकार का ये संकल्प है।
आदरणीय सभापति जी,
ये शत-प्रतिशत वाली बात, ये Saturation वाली बात देश की अनेक समस्याओं का समाधान तो है ही। उस नागरिक की समस्याओं का समाधान इतना ही नहीं है, देश की समस्याओं का समाधान है। एक ऐसी नई कार्य संस्कृति को ले करके हम आ रहे हैं जो देश में मेरा-तेरा, अपना-पराया, इन सारे भेदों को मिटाने वाला रास्ता है, Saturation वाला हम ले करके आए हैं।
Saturation तक पहुंचने का मतलब होता है भेदभाव की सारी गुंजाइशें खत्म करना। जब distinction रहता है तब करप्शन को भी संभावना मिलती है। कोई कहेगा मुझे जल्दी दो, वो कहता है इतना दोगे तो दूंगा, लेकिन शत-प्रतिशत जाना है तो उसको विश्वास होता है भले इस महीने मुझे नहीं पहुंचा, तीन महीने के बाद पहुंचेगा, लेकिन पहुंचेगा, विश्वास बढ़ता है। ये तुष्टिकरण की आशंकाओं को समाप्त कर देता है। फलानी जाति को मिलेगा, फलाने परिवार को मिलेगा, फलाने गांव को मिलेगा, फलानी बिरादरी को मिलेगा, फलाने पंथ-सम्प्रदाय वालों को मिलेगा; ये सारी तुष्टिकरण की आशंकाओं को खत्म कर देता है। स्वार्थ के आधार पर लाभ पहुंचाने की प्रवृत्ति को पूरी तरह खत्म कर देता है और समाज के आखिरी व्यक्ति को, जो आखिरी पंक्ति में खड़ा हुआ व्यक्ति है और महात्मा गांधी जिसकी हमेशा वकालत करते थे, उसके अधिकारों की रक्षा इसके अंदर समाहित होती है और हम उसको सुनिश्चित करते हैं। और सबका साथ-सबका विकास, ये मतलब यही है कि शत-प्रतिशत उनके हकों को पहुंचाना।
जब सरकार की मशीनरी का लक्ष्य हर पात्र व्यक्ति तक पहुंचने का हो तो भेदभाव, पक्षपात टिक ही नहीं सकता। इसलिए हमारा ये 100 पर्सेंट सेवा अभियान सोशल जस्टिस, सामाजिक न्याय, इसका बहुत बड़ा सशक्त माध्यम है। यही सामाजिक न्याय की असली गारंटी है। यही सच्ची पंथ निरपेक्षता है। यही सच्चा secularism है।
हम देश को विकास का ये मॉडल दे रहे हैं, जिसमे हितधारक सबको उनके हक मिलें। देश हमारे साथ है, कांग्रेस को बार-बार देश नकार रहा है, लेकिन कांग्रेस और उसके साथी अपनी साजिशों से बाज नहीं आते हैं और जनता ये देख भी रही है और उनको हर मौके पर सजा भी देती रही है।
आदरणीय सभापति जी,
हमारे देश की आजादी में 1857 से ले करके स्वातंत्र्य संग्राम का कोई भी दशक उठा लीजिए, हिन्दुस्तान का कोई भी भू-भाग उठा लीजिए, मेरे देश की आजादी की लड़ाई में मेरे देश के आदिवासियों का योगदान स्वर्णिम पृष्ठ से भरा पड़ा हुआ है। गर्व होता है देश को कि मेरे आदिवासी भाइयों ने आजादी के महात्मय को समझा था। लेकिन दशकों तक मेरे आदिवासी भाई विकास से वंचित रहे और विश्वास का सेतु तो कभी बन ही नहीं पाया, आशंकाओं से भरी हुई व्यवस्था बनी। और उन नौजवानों के मन में बार-बार सरकारों के लिए सवाल उठते चले गए। लेकिन उन्होंने सही नीयत से काम किया होता, नेक नीयत से काम किया होता, आदिवासियों के कल्याण के प्रति समर्पण भाव से काम किया होता तो आज 21वीं सदी के तीसरे दशक में मुझे इतनी मेहनत नहीं करनी पड़ती, लेकिन उन्होंने नहीं किया। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी। पहली बार इस देश में आदिवासियों के विकास के लिए अलग मंत्रालय बना, पहली बार आदिवासियों के कल्याण के लिए, भलाई के लिए, विकास के लिए अलग बजट की व्यवस्था हुई।
आदरणीय सभापति जी,
हमने 110 जिलों को आकांक्षी जिलों के रूप में identify किया है, जो विकास में पीछे रह गए। सामाजिक न्याय जैसे महत्व और भौगोलिक रूप से भी जो पीछे रह गए हैं उनको न्याय दिलाना उतना ही आवश्यक होता है। और इसलिए हमने 110 आकांक्षी जिले और 110 में आधे से अधिक वो इलाके हैं, जहां बहुल जनसंख्या जनजातीय है, मेरे आदिवासी भाई-बहन रहते हैं। तीन करोड़ से ज्यादा आदिवासी भाइयों को इसका सीधा लाभ मिला है। उनके जीवन में बदलाव आया है। इन क्षेत्रों में शिक्षा, स्वास्थ्य, इंफ्रास्ट्रक्चर, इसमें अभूतपूर्व सुधार हुआ है क्योंकि हमने 110 जिलों पर विशेष फोकस किया है, उसकी रेगुलर मॉनिटरिंग कर रहे हैं।
यहां पर हमारे कुछ माननीय सदस्यों ने tribal sub-plan की बात का ज़िक्र किया था। मैं ऐसे साथियों से अनुरोध करता हूं कि जरा समय निकाल करके किसी पढ़े-लिखे व्यक्ति की मदद ले करके बैठिए जो बजट को अध्ययन कर सकता है, थोड़ा समझा सकता है। और आप देखेंगे तो पता चलेगा कि बजट में scheduled tribe component funds इसके तहत 2014 के पहले की तुलना में पांच गुना अधिक वृद्धि हुई है।
आदरणीय सभापति जी,
2014 के पहले जब उनकी सरकार थी, तब एलोकेशन 20-25 हजार करोड़ रुपये के आसपास रहता था, बहुत पुरानी बात नहीं है, सिर्फ 20-25 हजार करोड़ रुपये। आज यहां आ करके गीत गा रहे हैं। हमने आ करके इस वर्ष 1 लाख 20 हजार करोड़ का प्रावधान किया है। हमने बीते 9 वर्षों में हमारे आदिवासी, हमारे जनजातीय भाई-बहनों के उज्ज्वल भविष्य के लिए, उन बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए 500 नए एकलव्य मॉडल स्कूल स्वीकृत किए हैं और ये चार गुना ज्यादा बढ़ोतरी है। इतना ही नहीं स्कूलों में टीचर, स्टाफ इस बार हमने 38 हजार नए लोगों के recruitment का, हमने भर्ती का इस बजट में प्रावधान किया है। आदिवासियों के कल्याण के लिए समर्पित हमारी सरकार ने, मैं जरा आपको forest right act की बात की तरफ ले जाना चाहता हूं।
आदरणीय सभापति जी,
देश आजाद होने से लेकर हमारे आने से पहले, 2014 के पहले आदिवासी परिवारों को 14 लाख जमीन के पट्टे दिए गए थे। पिछले 7-8 वर्षों में हमने 60 लाख नए पट्टे दिए हैं। ये अभूतपूर्व काम हुआ है। हमारे आने से पहले 23 हजार सामुदायिक पट्टे दिए गए, हमारे आने के बाद 80 हजार से अधिक सामुदायिक पट्टे दिए गए हैं। Deep sympathy बता करके आदिवासियों की भावनाओं के साथ खेलने के बजाय अगर कुछ किया होता तो आज मुझे इतनी मेहनत न करनी पड़ती और ये काम पहले आराम से हो जाता। लेकिन ये उनकी priority में नहीं था।
आदरणीय सभापति जी,
इनकी अर्थनीति, उनकी समाज नीति, उनकी राजनीति वोट बैंक के आधार पर ही चलती रही। और उसके कारण समाज की जो बेसिक ताकत होती है, स्वरोजगार के कारण देश की आर्थिक गतिविधि बढ़ाने वाला जो सामर्थ्य होता है, इन्होंने हमेशा use नजरअंदाज कर दिया। उनको वो इतने छोटे लगते थे, इतने बिखरे हुए लगते थे कि उसका उनको कोई मूल्य ही नहीं था जो छोटे-छोटे काम में जुड़े हुए थे। वो स्वरोजगार के ऊपर समाज पर बोझ बने बिना समाज में कुछ न कुछ value edition करते हैं, छोटे काम में जुटे हुए इन करोड़ों लोगों को भूला दिया गया। मुझे गर्व है कि मेरी सरकार ने रेहड़ी वाले, ठेले वाले, फुटपाथ पर व्यापार करने वाले लोग की सहूलियत के लिए, ब्याज के चक्कर में जिनके जीवन तबाह हो जाते थे। दिन भर का पसीना ब्याजखोरों के घर जाकर के चुकाना पड़ता था उन गरीबों की चिंता हमने की, उन रेहड़ी, ठेले, पटरी वालों की चिंता हमने की। और आदरणीय सभापति जी, हमने इतना ही नहीं, हमारे विश्वकर्मा समुदाय जो समाज निर्माण के अंदर एक भूमिका देते हैं, जो अपने हाथ से औजार की मदद से कुछ न कुछ सृजन करते रहते हैं, समाज की आवश्यकताओं की बहुत बड़ी मात्रा में पूर्ति करते हैं। चाहे हमारा बंजारा समुदाय हो, चाहे हमारे घुमंतू जाति के लोग हैं हमने उनकी चिंता करने का काम किया है। पीएम स्वनिधि योजना हो, पीएम विश्वकर्मा योजना हो, जिसके द्वारा हमने समाज के इन लोगों की मजबूती के लिए काम किया है, उनके सामर्थ्य को बढ़ाने के लिए काम किया है।
आदरणीय सभापति जी,
आप तो स्वयं किसान पुत्र हैं, इस देश के किसानों के साथ क्या बीती है। ऊपर के कुछ एक वर्ग को संभाल लेना और उन्हीं से अपनी राजनीति चलाए रखना, यही सिलसिला चला। इस देश की कृषि की सच्ची ताकत छोटे किसानों में है। एक एकड़, दो एकड़ भूमि की उपज करने वाला मुश्किल से 80-85 प्रतिशत इस देश का ये वर्ग है। ये छोटे किसान उपेक्षित थे, उनकी आवाज़ काेई सुनने वाला नहीं था। हमारी सरकार ने छोटे किसानों पर ध्यान केंद्रित किया। छोटे किसानों को फाॅर्मल बैंकिंग के साथ जोड़ा। आज साल में 3 बार सीधे पीएम किसान सम्मान निधि छोटे किसान के खाते में जमा होती है। इतना ही नहीं हमने पशुपालकों को भी बैंकों से जोड़ा, हमने मछुआरों को बैंकों से जोड़ा और उनको ब्याज में रियायत देकर के उनके आर्थिक सामर्थ्य को बढ़ाया, ताकि वो अपना व्यवसाय विकसित कर सके, अपने क्रॉप-पैटर्न को बदल सकें, अपने उत्पादित किए हुए माल को रोककर के उचित दाम मिलने पर बाजार में ले जा सके उस दिशा में हमने काम किया।
आदरणीय सभापति जी,
हम जानते हैं, हमारे देश के बहुत सारे किसान ऐसे हैं कि जिनको बरसाती पानी पर गुजारा करना पड़ता है। सिंचाई की व्यवस्थाएँ पिछली सरकारों ने की नहीं। हमने और देखा है कि ये छोटे किसान बरसाती पानी के भरोसे जीने वाले मोटी अनाज की खेती करते हैं, पानी होता नहीं है। ये मोटे अनाज की खेती करने वाले किसानों को हमने विशेष स्थान दिया। हमने यूएन को लिखा कि millet year मनाइये। दुनिया में भारत के मोटे अनाज की एक ब्रांडिंग बने, मार्केटिंग बने और उसे सुविचारिक रूप से अब उस मोटे अनाज को श्री अन्न के रूप में जैसे श्रीफल का महात्मय है, वैसे ही श्री अन्न का महात्मय बने और छोटे किसान जो पैदावार करते हैं, उनको उचित दाम मिले, ग्लोबल मार्किट मिले, देश में क्रॉप-पैटर्न में परिवर्तन आए और इतना ही नहीं ये millet superfood है, पोषण के लिए बहुत बड़ी ताकत है। हमारे देश के नई पीढ़ी को पोषण की समस्या के समाधान में भी ये काम आए, जो मेरे छोटे किसान को भी मजबूत करेगा। हमने फर्टिलाइजर में भी अनेक नए विकल्प डेवलप किए हैं उसका भी लाभ मिला है।
आदरणीय सभापति जी,
बड़े conviction के साथ मैं मानता हूं कि जब निर्णय प्रक्रिया में माताओं–बहनों की भागीदारी बढ़ती है तो परिणाम अच्छे मिलते हैं, जल्दी मिलते हैं और निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने वाले होते हैं। और इसलिए माता-बहनों की भागीदारी बढ़े, वे निर्णय प्रक्रियाओं में हमारे साथ जुड़ें उस दिशा में महिला सशक्तिकरण को लेकर के महिलाओं के नेतृत्व के विकास के लिए हमारी सरकार ने प्राथमिकता दी है। सदन में हमारे एक मान्य सदस्य ने कहा कि महिलाओं को टॉयलेट देने से क्या महिलाओं का विकास हो जाएगा। हो सकता है उनका ध्यान सिर्फ टॉयलेट पर गया हो वो उनकी कठिनाई होगी, लेकिन मैं जरा बताना चाहता हूं। मुझे इस बात का गर्व है और मैं गर्व अनुभव करता हूं। क्योंकि मैं राज्य में रहकर के आया हूं। मैं गांव में जिंदगी गुजार के आया हूं। मुझे गर्व है कि 11 करोड़ शौचालय बनाकर के मैंने मेरी माताओं-बहनों को इज्जत घर दिया है। मुझे इस बात का गर्व है। हमारी माताओं बहनों हमारी बेटियों के जीवन चक्र की तरफ जरा नजर करें, हमारी सरकार माताओं बहनों के सशक्तिकरण के लिए कितनी संवेदनशील है, उसकी तरफ मैं जरा ध्यान आकर्षित करना चाहता हूं। और जिनकी सोच सिर्फ टॉयलेट ही सोच गई थी, वो जरा कान खोलकर के सुने ताकि आगे चल के उनको ये बताने में सुविधा होगी। गर्भावस्था के दौरान शिशु को पौष्टिक खाना मिले, इसके लिए हमने मातृवंदना योजना चलाई और इसके लिए प्रेग्नेंसी के समय महिला के बैंक खाते में सीधा पैसा जाए, ताकि उसको पोषण से उसके गर्भ में जो बच्चा है, उसके स्वास्थ्य को भी लाभ हो। हमारे यहां माता मृत्यु दर, शिशु मृत्यु दर इस गंभीर समस्या से मुक्ति का एक उपाय institutional delivery हमारे गरीब से गरीब मां की institutional delivery हो, शिशु का जन्म अस्पताल में हो, इसके लिए हमने धन भी खर्च करना तय किया और व्यापक अभियान भी चलाया और उसके परिणाम दिखाई भी दे रहे हैं। हम जानते हैं किसी न किसी मानसिक विकृति के कारण बेटियों को मां के कोख में ही मारने की प्रवृत्ति बढ़ गई थी। ये समाज के लिए कलंक था। हमने बेटी बचाओ अभियान चलाया और आज मुझे खुशी है कि बेटे जन्म लेते हैं उसकी तुलना में बेटियों की संख्या बढ़ रही है। ये हमारे लिए संतोष का विषय है। हमने बेटियों की रक्षा का काम किया है। बेटी जब बड़ी होकर स्कूल जाए और शौचालय के अभाव में पाँचवीं, छठी कक्षा में आते-आते स्कूल छोड़ दे, हमने उस चिंता को भी अड्रेस किया और स्कूलों में बच्चियों के लिए अलग टॉयलेट बनाए, ताकि मेरी बच्चियों को स्कूल छोड़ना न पड़ें, ये हमने चिंता की। बेटी की शिक्षा जारी रहे और इसलिए हमने सुकन्या समृद्धि योजना, जिसमें अधिक ब्याज देकर के बेटियों को सुरक्षित शिक्षा की व्यवस्था का प्रबंध किया, ताकि परिवार भी उनको प्रोत्साहन दे। बेटी बड़ी होकर अपना काम करने के लिए बिना गारंटी मुद्रा योजना से लोन ले सके, अपने पैरों पर खड़ी हो सके और मुझे खुशी है कि मुद्रा योजना के लाभार्थियों में 70 प्रतिशत हमारी माताएं-बेटियां हैं। हमने ये काम किया है।
मां बनने के बाद भी नौकरी जारी रख सके इसके लिए मातृत्व अवकाश में हमने वृद्धि की है वो Developed Country से भी कभी-कभी ज्यादा है ये काम हमने किया है। बेटियों के लिए सैनिक स्कूल खोल दिए हैं।
आदरणीय सभापति जी,
आप तो स्वयं सैनिक स्कूल के विद्यार्थी रहे हैं I बेटियों को वहां एंट्री नहीं थी वो काम भी हमने कर दिया आज सैनिक स्कूलों में मेरी बेटियां पढ़ रही हैं। इतना ही नहीं हमारी बेटियां अबला नहीं सबला हैं वो सेना में जाना चाहती हैं, अफसर बनना चाहती हैं। हमे-हमारी बेटियों को सेना के दरवाजें भी खोल दिए हैं। और आज गर्व होता है सियाचिन में मेरे देश की कोई बेटी मां भारती की रक्षा करने के लिए तैनात होती है।
बेटी को गांव में कमाई के अवसर मिले और इसके लिए हमने Women’s Self Help Group उसको एक नई ताकत दी Value Edition किया और बैंकों से मिलने वाली उनकी रकम में बहुत बड़ा इजाफा किया और इसलिए वो भी हमने उनकी प्रगति के लिए हमारी माताओं-बेटियों, बहनों को लकड़ी के धुए से जिंदगी में मुसीबतें झेलनी न पड़े इसलिए हमने उज्जवला योजना से गैस का कनेक्शन दिया। हमारी माताओं-बहनों को, बेटियों को पीने के पानी के लिए जूझना न पड़े 2-2, 4-4 किलोमीटर तक जाना न पड़े हमने नल से घर तक पानी पहुंचाने का अभियान चलाया ताकि मेरी माताओं-बेटियों को, बहनों को, बेटियों को अंधेरे में गुजारा न करना पड़े इसलिए हमने सौभाग्य योजना से ऐसे गरीब परिवारों तक बिजली पहुंचाई। बेटी, मां, बहन कितनी ही गंभीर बिमारी हो लेकिन कभी बताती नहीं है, उसको चिंता रहती है कि कही बच्चों पर कर्ज हो जाएगा, परिवार पर बोझ हो जाएगा वो पीड़ा सहती है लेकिन अपने बच्चों को अपनी बीमारी के विषय में नहीं बताती है। उन माताओं-बहनों को आयुष्मान कार्ड देकर के अस्पताल में बड़ी से बड़ी बीमारी से मुक्ति का रास्ता हमने खोल दिया है।
आदरणीय सभापति जी,
बेटी का संपत्ति पर अधिकार हो इसलिए हमने सरकार की तरफ से जो आवास देते है उसमें बेटी के राइट को निश्चित किया, उसके नाम पर प्रॉपर्टी करने का काम किया। हमने महिला सशक्तिकरण के लिए हमारी माताओं-बहनों को जो भी छोटी-मोटी बचत कर लें, मुसीबत झेलकर के बचत करना माताओं-बहनों का स्वभाव होता है और वो घर में अनाज के डिब्बे में पैसे रखकर के गुजारा करती है। उस मुसीबत से निकाल के हमने उसको जनधन के खाते दे दिए। बैंक में पैसा जमा करें, इसकी घोषणा कर दी।
और आदरणीय सभापति जी,
इस बजट सत्र के लिए तो गर्व की बात है कि बजट सत्र का प्रारंभ महिला राष्ट्रपति के द्वारा होता है और बजट सत्र का विधिवत प्रारंभ महिला वित्त मंत्री के भाषण में होता है। देश में ऐसा संयोग पहले कभी नहीं आया जो आज आया है। और हमारा तो प्रयास रहेगा के ऐसे शुभ अवसर आगे भी देखने को मिले।
आदरणीय सभापति जी,
जब देश को आधुनिक होना है नए संकल्पों को पार करना है तो हम साइंस और टेक्नोलॉजी के सामर्थ्य का नकार नहीं सकते। साइंस और टेक्नोलॉजी के महकमे को हमारी सरकार भली-भांति समझती है। लेकिन हम टुकड़ों में नहीं सोचते, हम tokenism में नहीं सोचते हैं। हम साइंस और टेक्नोलॉजी की तरफ से देश को आगे बढ़ाने के लिए हर दिशा में काम कर रहे हैं, सावृत्रिक प्रयास कर रहे हैं, हर एक initiative ले रहे हैं। और इसलिए बचपन में Scientific Temperament develop करने के लिए अटल टिंकरिंग लैब एक वैज्ञानिक सोच के निर्माण के लिए स्कूल के लेवल पर बच्चों को हमने अवसर दिया उससे थोड़ा आगे निकले बच्चा कुछ करना शुरू करे तो हमने अटल इन्क्यूबेशन सेंटर खड़े किए ताकि कुछ अगर अच्छी प्रगति की है तो उसको वो वायुमंडल मिले ताकि वो टेक्नोलॉजी में कनवर्ट करने के लिए वो सोच वो इनोवेशन काम आ जाए इसके लिए हमने विज्ञान की प्रगति का परिणाम हमने नीतियां बदली, स्पेश के क्षेत्र में प्राइवेट भागीदारी का हमने सपना पूरा किया और मुझे खुशी है मेरे देश के नौजवान आज प्राइवेट सेटेलाइट छोड़ने की ताकत रखते हैं ये साइंस और टेक्नोलॉजी है। आज स्टार्टअप की दुनिया जो मूलत: साइंस और टेक्नोलॉजी से जुड़ी हुई है उसमें यूनिकार्न की संख्या आज हम दुनिया में तीसरे नंबर पर पहुंच गए हैं।
आदरणीय सभापति जी,
आज ये देश गर्व करेगा कि सर्वाधिक पेटेंट, इनोवेशन और दुनिया के बाजार में टिकता है पेटेंट ये सबसे अधिक पेटेंट रजिस्टर करने में आज मेरे देश के नौजवान आगे आ रहे हैं।
आदरणीय सभापति जी,
आधार की ताकत क्या होती है वो हमारी सरकार ने आकर दिखा दिया और आधार से जुड़े हुए जो विद्वान लोग है उन्होंने भी कहा है कि आधार के महत्व को, टेक्नोलॉजी के महत्व को 2014 के बाद समझा गया और उसके कारण वो मेहनत अब रंग ला रही है। हमने देखा है कोविड के काल में कोविन प्लेटफार्म 200 करोड़ वैक्सीनेशन और सर्टिफिकेट कोविन का आपके मोबाइल पर within a second आ जाता है। लेकिन दुनिया को अचम्भा तब हुआ कि भारत अपनी वैक्सीन लेकर आ गया है कोविड में, दुनिया के लोग अपनी वैक्सीन हमारे यहां से बहुत बड़ा मार्केट था बेचने के लिए भांति-भांति प्रेसर करते थे, आर्टिकल लिखे जाते थे, टीवी में इंटरव्यू दिए जाते थे, सेमिनार किए जाते थे। इतना ही नहीं मेरे देश के वैज्ञानिकों को बदनाम करने के लिए उनको नीचा दिखाने के लिए कंकर प्रयास करें। और मेरे ही देश वैज्ञानिकों ने आज दुनिया में जिसको स्वीकृति मिली है ऐसी वैक्सीन से मेरे देशवासियों का ही नहीं देशों-देशों के लोगों की आवश्यकता का पूरा किया। ये विज्ञान के विरोधी लोग ये टेक्नोलॉजी के...
आदरणीय सभापति जी,
ये विज्ञान के विरोधी हैं, ये टेक्नोलॉजी के विरोधी हैं हमारे वैज्ञानिकों को बदनाम करने का कोई मौका नहीं छोड़ते। Pharmacy की दुनिया में हमारा देश एक ताकत बनकर उभर रहा है, दुनिया की Pharmacy का हब बन रहा है। हमारे नौजवान नए-नए इनोवेशन कर रहे हैं। उसको बदनाम करने के रास्ते खोज रहे हैं ये लोग उनको देश की चिंता नहीं है अपने राजनीतिक उठा-पटक की चिंता है, ये दुर्भाग्य है देश का।
आदरणीय सभापति जी,
आज मैं बाली में था जी20 देश के समूह डिजिटल इंडिया इनको समझने के लिए लड़ाई करते थे। Success को पूरी दुनिया ने प्रभावित किया है डिजिटल लेनदेन में आज हिन्दुस्तान दुनिया का लीडर बना हुआ है।
आदरणीय सभापति जी,
हमें खुशी है आज 100 करोड़ से ज्यादा मोबाइल फोन मेरे देशवासियों के हाथ में है।
आदरणीय सभापति जी,
एक समय था हम मोबाइल इंपोर्ट करते थे आज गर्व है मेरा देश मोबाइल एक्सपोर्ट कर रहा है। 5जी हो, AI हो, IOT हो उस तकनीक को आज देश बहुत तेज गति से अपना रहा है, उसका विस्तार कर रहा है।
ड्रोन, इसका इस्तेमाल सामान्य जीवन में हो, सामान्य नागरिक की भलाई हो। हमने पॉलिसी में वो बदलाव किया और दवाइयां दूर से दूर इलाकों में ड्रोन से पहुंचाने का काम आज मेरे देश में हो रहा है। Science और Technology के माध्यमों को आज खेत में मेरा किसान ड्रोन की ट्रेनिंग लेकर के खेती में ड्रोन का क्या उपयोग हो, आज मेरे गांव में दिखाई दे रहा है। जियो स्पेशल सेक्टर में हमने दरवाजे खोल दिये। ड्रोन के लिए एक पूरा नया विकास का विस्तार करने का अवसर हमने कर दिया। आज देश में UN जैसे लोग चर्चा करते हैं कि दुनिया में लोगों के पास अपने पास जमीन के घर के मालिकाना हक नहीं हैं। UN की चिंता है दुनिया। भारत ने ड्रोन की मदद से स्वामित्व योजना से गांव में घरों में उसका नक्शा और मालिकी हक देने का काम किया है। उसको कोर्ट कचहरी के चक्करों से और कभी घर बंद हो, कोई आकर कब्जा कर ना ले, सुरक्षा का एहसास दिया है। हमने टेक्नोलॉजी का भरपूर प्रयास common man के लिए करने की दिशा में सफलता पाई है।
आज देश टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में आधुनिक विकसित भारत के सपने में उसका महात्म्य है हम समझते हैं और इसलिए human resource development, innovation, इसका महात्म्य बहुत है और इसलिए दुनिया की एकमात्र forensic science university हमारे देश में है। हमने गतिशक्ति university बनाकर के infrastructure की दुनिया में एक नई पहल की है। हमने energy university बनाकर के आज देश renewable energy के क्षेत्र में एक नया jump लगाए, अभी से हमारे नौजवान तैयार हो, उस दिशा में हम कार्य कर रहे हैं। हमारे देश में Technocrat की तरफ, engineers की तरफ, science की तरफ नफरत करने में, कांग्रेस ने अपने शासन काल में कोई कमी नहीं रखी है और science and technology को सम्मान देने में हमारे कार्यकाल में कोई कमी नहीं रही है, ये हमारा रास्ता है।
आदरणीय सभापति जी,
यहां रोजगार की भी चर्चा हुई, मैं हैरान हूँ कि जो अपने आपको सबसे लंबे समय तक सार्वजनिक जीवन का दावा करते हैं, इनको ये मालूम नहीं है कि नौकरी और रोजगार में फर्क होता है। जिनको नौकरी और रोजगार का फर्क समझ नहीं है, वो हमें उपदेश दे रहे हैं।
आदरणीय सभापति जी,
नए-नए नैरेटिव गढ़ने के लिए आधी अधूरी चीजों को पकड़कर झूठ फैलाने के प्रयास हो रहे हैं। बीते 9 वर्षों में अर्थव्यवस्थाओं का जो विस्तार हुआ है, नए सैक्टरर्स में रोजगार की नई संभावनाएं बढ़ी हैं। आज ग्रीन इकोनॉमी में देश जिस प्रकार से आगे बढ़ रहा है उसे ग्रीन जॉब्स की बहुत बड़ी संभावनाएं धरती पर उतारकर के दिखाई है और और अधिक संभावनाएं बनी हुई हैं। डिजिटल इंडिया के विस्तार से डिजिटल इकोनॉमी, उसका भी एक नया क्षेत्र आज सर्विस सेक्टर में डिजिटल इंडिया एक नई बुलंदी पर हैं। पांच लाख कॉमन सर्विस सेंटर, गांव के अंदर एक-एक कॉमन सर्विस सेंटर में दो-दो, पांच-पांच लोग रोजी-रोटी कमाते हैं और दूर से दूर जंगलों के छोटे-छोटे गांव में भी कॉमन सर्विस सेंटर में आज हमारे देश की आवश्यक सेवाएं गांव के लोगों को एक बटन पर उपलब्ध हों, ये व्यवस्था हुई है। डिजिटल इकोनॉमी ने अनेक नए रोजगार की संभावनाएं पैदा की हैं।
आदरणीय सभापति जी,
90 हजार रजिस्टर्ड र्स्टाटअप, इसने भी रोजगार के नए द्वार खोले हैं। अप्रैल से नवंबर, 2022 के दौरान ईपीएफओ पे-रोल में एक करोड़ से अधिक लोग जोड़े गए हैं, एक करोड़ से अधिक लोग।
आदरणीय सभापति जी,
आत्मनिर्भर भारत रोजगार योजना इसके जरिये 60 लाख से अधिक नए कर्मचारियों का लाभ हुआ है। आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत हमने अपने उद्यमियों के लिए स्पेस, डिफेंस, ड्रोन, माइनिंग, कोल, अनेक क्षेत्रों को खोला है जिसके कारण रोजगार की संभावनाओं में नई गति आई है। और देखिये हमारे नौजवानों ने इन सारे कदमों का आगे आकर के अवसर लिया, उठाया है उसका फायदा।
आदरणीय सभापति जी,
रक्षा के क्षेत्र में ये देश आत्मनिर्भर बनें, ये देश के लिए बहुत आवश्यक है। मुझे खुशी है कि रक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर का मिशन लेकर के हम चले। आज साढ़े तीन सौ से ज्यादा निजी कंपनियां रक्षा के क्षेत्र में आई है और करीब-करीब एक लाख करोड़ रुपये का एक्सपोर्ट रक्षा के क्षेत्र में मेरा देश कर रहा है और अभूतपूर्व रोजगार इस क्षेत्र में भी पैदा हुए हैं।
आदरणीय सभापति जी,
रिटेल से लेकर के टूरिज्म तक हर सेक्टर का विस्तार हुआ है। खादी और ग्रामोद्योग, महात्मा गांधी के साथ जो व्यवस्था जुड़ी हुई है, खादी ग्रामोद्योग को भी डुबो दिया था। आजादी के बाद सर्वाधिक, खादी ग्रामोद्योग के रिकॉर्ड तोड़ने का काम हमारे कालखंड में हुआ है। Infrastructure में हो रहा रिकॉर्ड निवेश चाहे रोयल का काम होता हो, रोड का काम होता हो, पोर्ट का काम होता हो, एयरपोर्ट का काम होता हो, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना बनती हों, ये सारी Infrastructure के काम, उसके लिए जो मटेरियल लगता है, उस इंडस्ट्री में रोजगार की संभावनाएं बढ़ी हैं। हर जगह निर्माण कार्य के अंदर मजदूर से लेकर मैकेनिक तक हर प्रकार के रोजगार की संभावनाएं, engineer से लेकर के श्रमिक तक हर किसी के लिए रोजगार के नए अवसर बने हैं और उसी के कारण youth विरोधी नीति लेकर के चले लोगों को आज youth नकार रहा है और वो youth की भलाई के लिए हम जिन नीतियों को लेकर के चले हैं, इसको आज देश स्वीकार कर रहा है।
आदरणीय सभापति जी,
यहां ये भी कहा गया…
आदरणीय सभापति जी,
यहां ये भी कहा गया कि सरकार की योजनाओं को उनके नामों को लेकर के आपत्ति उठाई। कुछ लोगों को ये भी परेशानी है कि नामों में कुछ संस्कृत touch है। बताइए इसकी भी परेशानी है।
आदरणीय सभापति जी,
मैंने किसी अखबार में पढ़ा था, मैंने कोई वेरीफाई तो नहीं किया है और वो रिपोर्ट कह रही थी 600 जितनी सरकारी योजनाएं सिर्फ गांधी-नेहरू परिवार के नाम पर हैं।
आदरणीय सभापति जी,
किसी कार्यक्रम में अगर नेहरू जी के नाम का उल्लेख नहीं हुआ तो कुछ लोगों के बाल खड़े हो जाते हैं। उनका लहु एकदम गर्म हो जाता है कि नेहरू जी का नाम क्यों नहीं दिया।
आदरणीय सभापति जी,
मुझे बहुत आश्चर्य होता है कि चलो भाई हमसे कभी छूट जाता होगा नेहरू जी का नाम और छूट जाता होता तो हम ठीक भी कर लेंगे क्योंकि वो देश के पहले प्रधानमंत्री थे। लेकिन मुझे ये समझ नहीं आता है कि उनकी पीढ़ी का कोई व्यक्ति नेहरू सरनेम रखने से डरता क्यों है? क्या शर्मिंदगी है नेहरू सरनेम रखने से? क्या शर्मिंदगी है? इतना बड़ा महान व्यक्तित्व अगर आपको मंजूर नहीं है, परिवार को मंजूर नहीं है और हमारा हिसाब मांगते रहते हो।
आदरणीय सभापति जी,
कुछ लोगों को समझना होगा ये सदियों पुराना देश सामान्य मानवी के पसीने और पुरुषार्थ से बना हुआ देश है, जन-जन की पीढ़ियों की परंपरा से बना हुआ देश है। ये देश किसी परिवार की जागीर नहीं है। हमने मेजर ध्यानचंद जी के नाम पर खेल रत्न का पुरस्कार कर दिया, अंडमान में नेताजी सुभाष के नाम पर, स्वराज के नाम पर हमने द्वीपों का नामकरण किया, हमें गर्व हो रहा है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस के योगदान के लिए देश गर्व करता है, हम गर्व करते हैं।
इतना ही नहीं, जो लोग आए दिन हमारे देश की सेना को नीचा दिखाने का मौका नहीं छोड़ते, हमने इन द्वीपों को परमवीर चक्र प्राप्त करने वाले सेनानियों के नाम कर दिया है। आने वाली सदियों तक कोई हिमालय की चोटी, एक एवरेस्ट व्यक्ति के नाम पर एवरेस्ट बन गई, मेरे द्वीप समूह मेरे परमवीर चक्र विजेता, मेरे देश के सेनानियों के नाम कर दिया ये हमारी श्रद्धा है, ये हमारी भक्ति है और उसको ले करके हम चलते हैं। और इससे आपको तकलीफ है और तकलीफ व्यक्त भी हो रही है। हरेक के तकलीफ व्यक्त करने के रास्ते अलग होंगे, हमारा रास्ता है सकारात्मक।
कभी-कभी- अब ये सदन है, एक प्रकार से राज्यों का महात्मय है। हम पर ऐसे भी आरोप लगाए जाते हैं कि हम राज्यों को परेशान करते हैं।
आदरणीय सभापति जी,
मैं लंबे अर्से तक राज्य का मुख्यमंत्री रह करके आया हूं। Federalism का क्या महत्व होता है वो भली भांति समझता हूं। उसको जी करके आया हूं। और इसलिए हमने cooperative competitive federalism पर बल दिया है। आओ हम स्पर्धा करें, हम आगे बढ़ें, हम सहयोग करें हम आगे बढें, उस दिशा में हम चले आएं। हमने हमारी नीतियों में national progress का भी ध्यान रखा है और regional aspiration को भी address किया है। National progress and regional aspiration इसका perfect combination हमारी नीतियों में दिखा है क्योंकि हम सब मिल करके 2047 तक एक विकसित भारत का सपना पूरा करने के लिए चल पड़े हैं।
लेकिन जो लोग आज विपक्ष में बैठे हैं उन्होंने तो राज्यों की अधिकारों की धज्जियां उड़ा दी थीं। जरा में कच्चा चिट्ठा आज खोलना चाहता हूं। जरा इतिहास उठा करके देख लीजिए, वो कौन पार्टी थी, वो लोग कौन सत्ता में बैठे थे जिन्होंने आर्टिकल 356 का सबसे ज्यादा दुरुपयोग किया। 90 बार चुनी हुई सरकारों को गिरा दिया। कौन हैं वो, कौन हैं जिन्होंने किया, कौन हैं जिन्होंने किया, कौन हैं जिन्होंने किया।
सम्मानीय सभापति जी,
एक प्रधानमंत्री ने आर्टिकल 356 का 50 बार उपयोग किया, आधी सेंचुरी कर दी। वो नाम है श्रीमती इंदिरा गांधी का। 50 बार सरकारों को गिरा दिया। केरल में आज जो लोग इनके साथ खड़े हैं जरा याद कर लीजिए थोड़ा वहां माइक लगा दीजिए। केरल में वामपंथी सरकार चुनी गई जिसे पंडित नेहरू पसंद नहीं करते थे। कुछ ही कालखंड के अंदर चुनी हुई पहली सरकार को घर भेज दिया। आज आप वहां खड़े हैं, आपके साथ क्या हुआ था जरा याद कीजिए।
आदरणीय सभापति जी,
जरा डीएमके के मित्रों को भी बताता हूं। तमिलनाडु में एमजीआर और करुणानिधि जैसे दिग्गजों की सरकारें, उन सरकारों को भी इन्हीं कांग्रेस वालों ने बर्खास्त कर दिया था। एमजीआर की आत्मा देखती होगी आप कहां खड़े हो। यहां पर पीछे बैठे हैं इस सदन के वरिष्ठ सदस्य और जिनको मैं हमेशा एक आदरणीय नेता मानता हूं, श्रीमान शरद पवार जी। 1980 में शरद पवार जी की आयु 35-40 साल की थी। एक नौजवान मुख्यमंत्री मां की सेवा करने के लिए निकला था, उनकी सरकार को भी गिरा दिया गया था, आज वो वहां हैं।
हर क्षेत्रीय नेता को उन्होंने परेशान किया और एनटीआर, एनटीआर के साथ क्या किया। यहां कुछ लोग आज कपड़े बदले होंगे, नाम बदला होगा, ज्योतिषियों की सूचना के अनुसार नाम बदला होगा। लेकिन कभी वो भी उनके साथ थे। उन एनटीआर की सरकार को और वो तब, वो तबियत के लिए अमेरिका गए थे, अपनी हेल्थ के लिए गए थे, आपने एनटीआर की सरकार को गिराने का प्रयास किया। ये कांग्रेस की राजनीति का स्तर था।
आदरणीय सभापति जी,
अखबार निकाल कर देख लीजिए, हर अखबार लिखता था कि राजभवनों को कांग्रेस के दफ्तर बना दिए गए थे, कांग्रेस के हेड क्वार्टर बना दिए गए। 2005 में झारखंड में एनडीए के पास ज्यादा सीटें थीं लेकिन गवर्नर ने यूपीए को शपथ के लिए बुला लिया था। 1982 में हरियाणा में भाजपा और देवीलाल के पास pre poll उनका एग्रीमेंट था, उसके बावजूद भी गवर्नर ने कांग्रेस की सरकार के लिए निमंत्रण दिया था। ये कांग्रेस के past और आज-आज देश को गुमराह करने की बातें कर रहे हैं।
आदरणीय सभापति जी,
मैं इस बात को जानना चाहता हूं, मैं एक गंभीर विषय की ओर अब ध्यान देना भी चाहता हूं। महत्वपूर्ण विषयों को मैंने स्पर्श किया है और आज देश में आर्थिक नीतियों की जिनको समझ नहीं है, जो 24 घंटे राजनीति के सिवाय कुछ सोचते नहीं हैं, जो सत्ता के खेल खेलना यही जिनको सार्वजनिक जीवन का काम दिखता है, उन्होंने अर्थनीति को अनर्थनीति में परिवर्तित कर दिया है।
मैं उनको चेतावनी देना चाहता हूं और मैं इस सदन की गंभीरता के साथ उनसे कहना चाहता हूं कि अपने respective state को जाकर समझाएं कि ये गलत रास्ते पर न चले जाएं। हमारे पड़ोस के देशों का हाल देख रहे हैं कि वहां पर क्या हाल हुआ है। अनाप-शनाप कर्ज ले करके किस प्रकार से देशों को डुबो दिया गया। आज हमारे देश में भी तत्कालीन लाभ के लिए अगर भुगतान करेगी तो आने वाली पीढ़ी करेगी, हम तो कर्ज करो, जीपीओ वाला खेल, आने वाला देखेगा, ये कुछ राज्यों ने अपनाया है। वो उनका तो तबाह कर देंगे देश को भी बर्बाद कर देंगे।
अब देश, अब कर्ज के तले दबते जा रहे हैं। ये देश आज दुनिया में कोई उनको कर्ज देने के लिए तैयार नहीं है, ये मुसीबतों से गुजर रहे हैं।
मैं राजनीतिक, वैचारिक मतभेद हो सकते हैं, दलों के विषय में एक-दूसरे के प्रति शिकायतें थोड़ी हो सकती हैं, लेकिन देश की आर्थिक सेहत के साथ खिलवाड़ मत कीजिए। आप ऐसा कोई पाप मत कीजिए जो आपके बच्चों के अधिकारों को छीन ले और आज अपना मौज कर लें और बच्चों के नसीब में बर्बादी छोड़कर चले जाएं, ऐसा करके न जाएं। आज आपको पॉलिटीकली ...मैंने तो देखा एक मुख्यमंत्री ने बयान दिया कि भई अब ठीक है मैं निर्णय कर रहा, अभी मुसीबत मुझे तो आएगी 2030-32 के बाद आएगी, जो आएगा वो भुगतेगा। क्या कोई देश ऐसे लता है क्या। लेकिन ये जो युक्ति बन रही है वो बहुत चिंता का विषय है।
आदरणीय सभापति जी,
देश की आर्थिक सेहत के लिए राज्यों ने भी अपनी आर्थिक सेहत के संबंध में discipline का रास्ता चुनना पड़ेगा और तभी जा करके राज्य भी इस विकास की यात्रा का लाभ ले पाएंगे और उनके राज्यों के नागरिकों का भला करने में हमें भी सुविधा हो जाएगी, ताकि हम उन तक लाभ पहुंचाना चाहते हैं।
आदरणीय सभापति जी,
2047 में ये देश विकसित भारत में ये हम सबका संकल्प है, 140 करोड़ देशवासियों का संकल्प। अब देश पीछे मुड़ करके देखने को तैयार नहीं है, देश लंबी छलांग मारने को तैयार है। जिनकी दो वक्त की रोटी का सपना था उसको आपने address नहीं किया, हमने उसको address किया है। जिसको सामाजिक न्याय की अपेक्षा थी आपने address नहीं किया, हमने address किया है। जिन अक्सर अवसरों को तलाशता था, उन अवसरों को उपलब्ध कराने के लिए हमने अनेक कदम उठाए हैं और आजाद भारत का जो सपना है उस सपने को पूरा करने के लिए हम संकल्पबद्ध हो करके चलें,
और आदरणीय सभापति जी,
देश देख रहा है, एक अकेला कितनों को भारी पड़ रहा है। अरे नारे बोलने के लिए भी उनको डबल करना पड़ता है। आदरणीय सभापति जी, मैं conviction के कारण चला हूं। देश के लिए जीता हूं, देश के लिए कुछ करने के लिए निकला हुआ हूं। और इसलिए ये राजनीतिक खेल खेलने वाले लोग, उनके अंदर वो हौसला नहीं है, वो ढूंढ रहे हैं बचने का रास्ता खोज रहे हैं।
आदरणीय सभापति जी,
राष्ट्रपति जी के उम्दा भाषण को, राष्ट्रपति जी के मार्गदर्शक भाषण को, राष्ट्रपति जी के प्रेरक भाषण को इस सदन के अंदर अभिनंदन करते हुए, धन्यवाद करते हुए, आपका भी आभार व्यक्त करते हुए अपनी बात को समाप्त करता हूं।