उपस्थित सभी महानुभाव,

आप सबको क्रिसमस के पावन पर्व की बुहत-बहुत शुभकामनाएं। ये आज सौभाग्य है कि 25 दिसंबर, पंडित मदन मोहन मालवीय जी की जन्म जयंती पर, मुझे उस पावन धरती पर आने का सौभाग्य मिला है जिसके कण-कण पर पंडित जी के सपने बसे हुए हैं। जिनकी अंगुली पकड़ कर के हमें बड़े होने का सौभाग्य मिला, जिनके मार्गदर्शन में हमें काम करने का सौभाग्य मिला ऐसे अटल बिहारी वाजपेयी जी का भी आज जन्मदिन है और आज जहां पर पंडित जी का सपना साकार हुआ, उस धरती के नरेश उनकी पुण्यतिथि का भी अवसर है। उन सभी महापुरुषों को नमन करते हुए, आज एक प्रकार से ये कार्यक्रम अपने आप में एक पंचामृत है। एक ही समारोह में अनेक कार्यक्रमों का आज कोई-न-कोई रूप में आपके सामने प्रस्तुतिकरण हो रहा है। कहीं शिलान्यास हो रहा है तो कहीं युक्ति का Promotion हो रहा है तो Teachers’ Training की व्यवस्था हो रही है तो काशी जिसकी पहचान में एक बहुत महत्वपूर्ण बात है कि यहां कि सांस्कृतिक विरासत उन सभी का एक साथ आज आपके बीच में उद्घाटन करने का अवसर मुझे मिला है। मेरे लिए सौभाग्य की बात है।

मैं विशेष रूप से इस बात की चर्चा करना चाहता हूं कि जब-जब मानवजाति ने ज्ञान युग में प्रवेश किया है तब-तब भारत ने विश्व गुरू की भूमिका निभाई है और 21वीं सदी ज्ञान की सदी है मतलब की 21वीं सदी भारत की बहुत बड़ी जिम्मेवारियों की भी सदी है और अगर ज्ञान युग ही हमारी विरासत है तो भारत ने उस एक क्षेत्र में विश्व के उपयोगी कुछ न कुछ योगदान देने की समय की मांग है। मनुष्य का पूर्णत्व Technology में समाहित नहीं हो सकता है और पूर्णत्व के बिना मनुष्य मानव कल्याण की धरोहर नहीं बन सकता है और इसलिए पूर्णत्व के लक्ष्य को प्राप्त करना उसी अगर मकसद को लेकर के चलते हैं तो विज्ञान हो, Technology हो नए-नए Innovations हो, Inventions हो लेकिन उस बीच में भी एक मानव मन एक परिपूर्ण मानव मन ये भी विश्व की बहुत बड़ी आवश्यकता है।

हमारी शिक्षा व्यवस्था Robot पैदा करने के लिए नहीं है। Robot तो शायद 5-50 वैज्ञानिक मिलकर शायद लेबोरेटरी में पैदा कर देंगे, लेकिन नरकर्णी करे तो नारायण हो जाए। ये जिस भूमि का संदेश है वहां तो व्यक्तित्व का संपूर्णतम विकास यही परिलक्षित होता है और इसलिए इस धरती से जो आवाज उठी थी, इस धरती से जो संस्कार की गंगा बही थी उसमें संस्कृति की शिक्षा तो थी लेकिन इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण था शिक्षा की संस्कृति और आज कहीं ऐसा तो नहीं है सदियों से संजोयी हुई हमारी शैक्षिक परंपरा है, जो एक संस्कृतिक विरासत के रूप में विकसित हुई है। वो शिक्षा की संस्कृति तो लुप्त नहीं हो रही है? वो भी तो कहीं प्रदूषित नहीं हो रही है? और तब जाकर के आवश्यकता है कि कालवाह्य चीजों को छोड़कर के उज्जवलतम भविष्य की ओर नजर रखते हुए पुरानी धरोहर के अधिष्ठान को संजोते हुए हम किस प्रकार की व्यवस्था को विकसित करें जो आने वाली सदियों तक मानव कल्याण के काम आएं।

हम दुनिया के किसी भी महापुरुष का अगर जीवन चरित्र पढ़ेंगे, तो दो बातें बहुत स्वाभाविक रूप से उभर कर के आती हैं। अगर कोई पूछे कि आपके जीवन की सफलता के कारण तो बहुत एक लोगों से एक बात है कि एक मेरी मां का योगदान, हर कोई कहता है और दूसरा मेरे शिक्षक का योगदान। कोई ऐसा महापुरुष नहीं होगा जिसने ये न कहा हो कि मेरे शिक्षक का बुहत बड़ा contribution है, मेरी जिंदगी को बनाने में, अगर ये हमें सच्चाई को हम स्वीकार करते हैं तो हम ये बहुमूल्य जो हमारी धरोहर है इसको हम और अधिक तेजस्वी कैसे बनाएं और अधिक प्राणवान कैसे बनाएं और उसी में से विचार आया कि, वो देश जिसके पास इतना बड़ा युवा सामर्थ्य है, युवा शक्ति है।

आज पूरे विश्व को उत्तम से उत्तम शिक्षकों की बहुत बड़ी खोट है, कमी है। आप कितने ही धनी परिवार से मिलिए, कितने ही सुखी परिवार से मिलिए, उनको पूछिए किसी एक चीज की आपको आवश्यकता लगती है तो क्या लगती है। अरबों-खरबों रुपयों का मालिक होगा, घर में हर प्रकार का सुख-वैभव होगा तो वो ये कहेगा कि मुझे अच्छा टीचर चाहिए मेरे बच्चों के लिए। आप अपने ड्राइवर से भी पूछिए कि आपकी क्या इच्छा है तो ड्राइवर भी कहता है कि मेरे बच्चे भी अच्छी शिक्षी ही मेरी कामना है। अच्छी शिक्षा इंफ्रास्ट्रक्चर के दायरे में नहीं आती। Infrastructure तो एक व्यवस्था है। अच्छी शिक्षा अच्छे शिक्षकों से जुड़ी हुई होती है और इसलिए अच्छे शिक्षकों का निर्माण कैसे हो और हम एक नए तरीके से कैसे सोचें?

आज 12 वीं के बीएड, एमएड वगैरह होता है वो आते हैं, ज्यादातर बहुत पहले से ही जिसने तय किया कि मुझे शिक्षक बनना है ऐसे बहुत कम लोग होते हैं। ज्यादातर कुछ न कुछ बनने का try करते-करके करके हुए आखिर कर यहां चल पड़ते हैं। मैं यहां के लोगों की बात नहीं कर रहा हूं। हम एक माहौल बना सकते हैं कि 10वीं,12वीं की विद्यार्थी अवस्था में विद्यार्थियों के मन में एक सपना हो मैं एक उत्तम शिक्षक बनना चाहता हूं। ये कैसे बोया जाए, ये environment कैसे create किया जाए? और 12वीं के बाद पहले Graduation के बाद law faculty में जाते थे और वकालत धीरे-धीरे बदलाव आया और 12वीं के बाद ही पांच Law Faculty में जाते हैं और lawyer बनकर आते हैं। क्या 10वीं और 12वीं के बाद ही Teacher का एक पूर्ण समय का Course शुरू हो सकता है और उसमें Subject specific मिले और जब एक विद्यार्थी जिसे पता है कि मुझे Teacher बनना है तो Classroom में वो सिर्फ Exam देने के लिए पढ़ता नहीं है वो अपने शिक्षक की हर बारीकी को देखता है और हर चीज में सोचता है कि मैं शिक्षक बनूंगा तो कैसे करूंगा, मैं शिक्षक बनूंगा ये उसके मन में रहता है और ये एक पूरा Culture बदलने की आवश्यकता है।

उसके साथ-साथ भले ही वो विज्ञान का शिक्षक हो, गणित का शिक्षक हो उसको हमारी परंपराओं का ज्ञान होना चाहिए। उसे Child Psychology का पता होना चाहिए, उसको विद्यार्थियों को Counselling कैसे करना चाहिए ये सीखना चाहिए, उसे विद्यार्थियों को मित्रवत व्यवहार कैसे करना है ये सीखाना चाहिए और ये चीजें Training से हो सकती हैं, ऐसा नहीं है कि ये नहीं हो सकता है। सब कुछ Training से हो सकता है और हम इस प्रकार के उत्तम शिक्षकों को तैयार करें मुझे विश्वास है कि दुनिया को जितने शिक्षकों की आवश्यकता है, हम पूरे विश्व को, भारत के पास इतना बड़ा युवा धन है लाखों की तादाद में हम शिक्षक Export कर सकते हैं। Already मांग तो है ही है हमें योग्यता के साथ लोगों को तैयार करने की आवश्यकता है और एक व्यापारी जाता है बाहर तो Dollar या Pound ले आता है लेकिन एक शिक्षक जाता है तो पूरी-पूरी पीढ़ी को अपने साथ ले आता है। हम कल्पना कर सकते हैं कितना बड़ा काम हम वैश्विक स्तर पर कर सकते हैं और उसी एक सपने को साकार करने के लिए पंड़ित मदन मोहन मालवीय जी के नाम से इस मिशन को प्रारंभ किया गया है। और आज उसका शुभारंभ करने का मुझे अवसर मिला है।

आज पूरे विश्व में भारत के Handicraft तरफ लोगों का ध्यान है, आकर्षण है लेकिन हमारी इस पुरानी पद्धतियों से बनी हुई चीजें Quantum भी कम होता है, Wastage भी बहुत होता है, समय भी बहुत जाता है और इसके कारण एक दिन में वो पांच खिलौने बनाता है तो पेट नहीं भरता है लेकिन अगर Technology के उपयोग से 25 खिलौने बनाता है तो उसका पेट भी भरता है, बाजार में जाता है और इसलिए आधुनिक विज्ञान और Technology को हमारे परंपरागत जो खिलौने हैं उसका कैसे जोड़ा जाए उसका एक छोटा-सा प्रदर्शन मैंने अभी उनके प्रयोग देखे, मैं देख रहा था एक बहुत ही सामान्य प्रकार की टेक्नोलोजी को विकसित किया गया है लेकिन वो उनके लिए बहुत बड़ी उपयोगिता है वरना वो लंबे समय अरसे से वो ही करते रहते थे। उसके कारण उनके Production में Quality, Production में Quantity और उसके कारण वैश्विक बाजार में अपनी जगह बनाने की संभावनाएं और हमारे Handicrafts की विश्व बाजार की संभावनाएं बढ़ी हैं। आज हम उनको Online Marketing की सुविधाएं उपलब्ध कराएं। युक्ति, जो अभियान है उसके माध्यम से हमारे जो कलाकार हैं, काश्तकारों को ,हमारे विश्वकर्मा हैं ये इन सभी विश्वकर्माओं के हाथ में हुनर देने का उनका प्रयास। उनके पास जो skill है उसको Technology के लिए Up-gradation करने का प्रयास। उस Technology में नई Research हो उनको Provide हो, उस दिशा में प्रयास बढ़ रहे हैं।

हमारे देश में सांस्कृतिक कार्यक्रम तो बहुत होते रहते हैं। कई जगहों पर होते हैं। बनारस में एक विशेष रूप से भी आरंभ किया है। हमारे टूरिज्म को बढ़ावा देने में इसकी बहुत बड़ी ताकत है। आप देखते होंगे कि दुनिया ने, हम ये तो गर्व करते थे कि हमारे ऋषियों ने, मुनियों ने हमें योग दिया holistic health के लिए preventive health के लिए योग की हमें विरासत मिली और धीरे-धीरे दुनिया को भी लगने लगा योग है क्या चीज और दुनिया में लोग पहुंच गए। नाक पकड़कर के डॉलर भी कमाने लग गए। लेकिन ये शास्त्र आज के संकटों के युग में जी रहे मानव को एक संतुलित जीवन जीने की ताकत कैसे मिले। योग बहुत बड़ा योगदान कर सकता है। मैं सितंबर में UN में गया था और UN में पहली बार मुझे भाषण करने का दायित्व था। मैंने उस दिन कहा कि हम एक अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाएं और मैंने प्रस्तावित किया था 21 जून। सामान्य रूप से इस प्रकार के जब प्रस्ताव आते हैं तो उसको पारित होने में डेढ़ साल, दो साल, ढ़ाई साल लग जाते हैं। अब तक ऐसे जितने प्रस्ताव आए हैं उसमें ज्यादा से ज्यादा 150-160 देशों नें सहभागिता दिखाई है। जब योग का प्रस्ताव रखा मुझे आज बड़े आनंद और गर्व के साथ कहना है और बनारस के प्रतिनिधि के नाते बनारस के नागरिकों को ये हिसाब देते हुए, मुझे गर्व होता है कि 177 Countries Co- sponsor बनी जो एक World Record है। इस प्रकार के प्रस्ताव में 177 Countries का Co- sponsor बनना एक World Record है और जिस काम में डेढ़-दो साल लगते हैं वो काम करीब-करीब 100 दिन में पूरा हो गया। UN ने इसे 21 जून को घोषित कर दिया ये भी अपने आप में एक World Record है।

हमारी सांस्कृतिक विरासत की एक ताकत है। हम दुनिया के सामने आत्मविश्वास के साथ कैसे ले जाएं। हमारा गीत-संगीत, नृत्य, नाट्य, कला, साहित्य कितनी बड़ी विरासत है। सूरज उगने से पहले कौन-सा संगीत, सूरज उगने के बाद कौन-सा संगीत यहां तक कि बारीक रेखाएं बनाने वाला काम हमारे पूर्वजों ने किया है और दुनिया में संगीत तो बहुत प्रकार के हैं लेकिन ज्यादातर संगीत तन को डोलाते हैं बहुत कम संगीत मन को डोलाते हैं। हम उस संगीत के धनी हैं जो मन को डोलाता है और मन को डोलाने वाले संगीत को विश्व के अंदर कैसे रखें यही प्रयासों से वो आगे बढ़ने वाला है लेकिन मेरे मन में विचार है क्या बनारस के कुछ स्कूल, स्कूल हो, कॉलेज हो आगे आ सकते हैं क्या और बनारस के जीवन पर ही एक विषय पर ही एक स्कूल की Mastery हो बनारस की विरासत पर, कोई एक स्कूल हो जिसकी तुलसी पर Mastery हो, कोई स्कूल हो जिसकी कबीर पर हो, ऐसी जो भी यहां की विरासत है उन सब पर और हर दिन शाम के समय एक घंटा उसी स्कूल में नाट्य मंच पर Daily उसका कार्यक्रम हो और जो Tourist आएं जिसको कबीर के पास जाना है उसके स्कूल में चला जाएगा, बैठेगा घंटे-भर, जिसको तुलसी के पास जाना है वो उस स्कूल में जाए बैठेगा घंटे भर , धीरे-धीरे स्कूल टिकट भी रख सकता है अगर popular हो जाएगी तो स्कूल की income भी बढ़ सकती है लेकिन काशी में आया हुआ Tourist वो आएगा हमारे पूर्वजों के प्रयासों के कारण, बाबा भोलेनाथ के कारण, मां गंगा के कारण, लेकिन रुकेगा हमारे प्रयासों के कारण। आने वाला है उसके लिए कोई मेहनत करने की जरूरत नहीं क्योंकि वो जन्म से ही तय करके बैठा है कि जाने है एक बार बाबा के दरबार में जाना है लेकिन वो एक रात यहां तब रुकेगा उसके लिए हम ऐसी व्यवस्था करें तब ऐसी व्यवस्था विकसित करें और एक बार रात रुक गया तो यहां के 5-50 नौजवानों को रोजगार मिलना ही मिलना है। वो 200-500-1000 रुपए खर्च करके जाएगा जो हमारे बनारस की इकॉनोमी को चलाएगा और हर दिन ऐसे हजारों लोग आते हैं और रुकते हैं तो पूरी Economy यहां कितनी बढ़ सकती है लेकिन इसके लिए ये छोटी-छोटी चीजें काम आ सकती हैं।

हमारे हर स्कूल में कैसा हो, हमारे जो सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं, परंपरागत जो हमारे ज्ञान-विज्ञान हैं उसको तो प्रस्तुत करे लेकिन साथ-साथ समय की मांग इस प्रकार की स्पर्धाएं हो सकती हैं, मान लीजिए ऐसे नाट्य लेखक हो जो स्वच्छता पर ही बड़े Touchy नाटक लिखें अगर स्वच्छता के कारण गरीब को कितना फायदा होता है आज गंदगी के कारण Average एक गरीब को सात हजार रुपए दवाई का खर्चा आता है अगर हम स्वच्छता कर लें तो गरीब का सात हजार रुपए बच जाता है। तीन लोगों का परिवार है तो 21 हजार रुपए बच जाता है। ये स्वच्छता का कार्यक्रम एक बहुत बड़ा अर्थ कारण भी उसके साथ जुड़ा हुआ है और स्वच्छता ही है जो टूरिज्म की लिए बहुत बड़ी आवश्यकता होती है। क्या हमारे सांस्कृतिक कार्यक्रम, नाट्य मंचन में ऐसे मंचन, ऐसे काव्य मंचन, ऐसे गीत, कवि सम्मेलन हो तो स्वच्छता पर क्यों न हो, उसी प्रकार से बेटी बचाओ भारत जैसा देश जहां नारी के गौरव की बड़ी गाथाएं हम सुनते हैं। इसी धरती की बेटी रानी लक्ष्मीबाई को हम याद करते हैं लेकिन उसी देश में बटी को मां के गर्भ में मार देते हैं। इससे बड़ा कोई पाप हो नहीं सकता है। क्या हमारे नाट्य मंचन पर हमारे कलाकारों के माध्यम से लगातार बार-बार हमारी कविताओं में, हमारे नाट्य मंचों पर, हमारे संवाद में, हमारे लेखन में बेटी बचाओ जैसे अभियान हम घर-घर पहुंच सकते हैं।

भारत जैसा देश जहां चींटी को भी अन्न खिलाना ये हमारी परंपरा रही है, गाय को भी खिलाना, ये हमारी परंपरा रही है। उस देश में कुपोषण, हमारे बालकों को……उस देश में गर्भवती माता कुपोषित हो इससे बड़ी पीड़ा की बात क्या हो सकती है। क्या हमारे नाट्य मंचन के द्वारा, क्या हमारी सांस्कृतिक धरोहर के द्वारा से हम इन चीजों को प्रलोभन के उद्देश्य में ला सकते हैं क्या? मैं कला, साहित्य जगत के लोगों से आग्रह करूंगा कि नए रूप में देश में झकझोरने के लिए कुछ करें।

जब आजादी का आंदोलन चला था तब ये ही साहित्यकार और कलाकार थे जिनकी कलम ने देश को खड़ा कर दिया था। स्वतंत्र भारत में सुशासन का मंत्र लेकर चल रहे तब ये ही हमारे कला और साहित्य के लोगों की कलम के माध्यम से एक राष्ट्र में नवजागरण का माहौल बना सकते हैं।

मैं उन सबको निमंत्रित करता हूं कि सांस्कृतिक सप्ताह यहां मनाया जा रहा है उसके साथ इसका भी यहां चिंतन हो, मनन हो और देश के लिए इस प्रकार की स्पर्धाएं हो और देश के लिए इस प्रकार का काम हो।

मुझे विश्वास है कि इस प्रयास से सपने पूरे हो सकते हैं साथियों, देश दुनिया में नाम रोशन कर सकता है। मैं अनुभव से कह सकता हूं, 6 महीने के मेरे अनुभव से कह सकता हूं पूरा विश्व भारत की ओर देख रहा है हम तैयार नहीं है, हम तैयार नहीं है हमें अपने आप को तैयार करना है, विश्व तैयार बैठा है।

मैं फिर एक बार पंडित मदन मोहन मालवीय जी की धरती को प्रणाम करता हूं, उस महापुरुष को प्रणाम करता हूं। आपको बहुत-बुहत शुभकामनाएं देता हूं।

धन्यवाद

Explore More
78వ స్వాతంత్ర్య దినోత్సవ వేళ ఎర్రకోట ప్రాకారం నుంచి ప్రధాన మంత్రి శ్రీ నరేంద్ర మోదీ ప్రసంగం

ప్రముఖ ప్రసంగాలు

78వ స్వాతంత్ర్య దినోత్సవ వేళ ఎర్రకోట ప్రాకారం నుంచి ప్రధాన మంత్రి శ్రీ నరేంద్ర మోదీ ప్రసంగం
India Eyes Rs 3 Lakh Crore Defence Production By 2025 After 174% Surge In 10 Years

Media Coverage

India Eyes Rs 3 Lakh Crore Defence Production By 2025 After 174% Surge In 10 Years
NM on the go

Nm on the go

Always be the first to hear from the PM. Get the App Now!
...
బవలియాలీ ధామ్ కార్యక్రమంలో ప్రధాని ప్రసంగానికి తెలుగు అనువాదం
March 20, 2025
Quote· “సేవకు అంకితమైన భర్వాడ్ సమాజానికి ప్రకృతిపైగల ప్రేమ.. గో రక్షణపైగల నిబద్ధత ప్రశంసనీయం”
Quote· “వికసిత భారత్‌ దిశగా పయనంలో గ్రామీణాభివృద్ధితోనే తొలి అడుగు పడుతుంది”
Quote· “ఆధునికత ద్వారా సమాజానికి సాధికారత కల్పించడంలో అత్యంత ప్రధానమైనది విద్య”
Quote· “దేశాన్ని శక్తిమంతం చేయగల ‘సమష్టి కృషి’ (సబ్ కా ప్రయాస్)కి ఎనలేని ప్రాధాన్యం ఉంది”

మహంత్ శ్రీ రామ్ బాపూజీ, సంఘానికి చెందిన గౌరవ సభ్యులు, ఇక్కడకు విచ్చేసిన భక్తులైన లక్షలాది మంది సోదర సోదరీమణులకు - నమస్కారం, జై ఠాకర్!

ముందుగా, భర్వాడ్ సమాజ సంప్రదాయాలకు, గౌరవనీయులైన సాధువులు, మహంతులకు, ఈ పవిత్ర సంప్రదాయాన్ని పరిరక్షించేందుకు తమ జీవితాలను అంకితం చేసిన వారికి నా ప్రణామాలు అర్పిస్తున్నాను. ఈ రోజు మన ఆనందం ఎన్నో రెట్లు పెరిగింది. ఈ సారి నిర్వహించిన మహాకుంభ్ చరిత్రలో నిలిచిపోవడమే కాకుండా, మనందరికీ గర్వకారణంగా నిలిచింది. ఎందుకంటే ఈ పవిత్ర కార్యక్రమంలో భాగంగానే మహంత్ శ్రీ రామ్ బాపూజీని మహామండలేశ్వర్ బిరుదుతో సత్కరించుకున్నాం. ఇది మనందరికీ అమితానందనాన్ని కలిగిస్తోంది. రామ్ బాపూజీకి, మన సమాజానికి చెందిన అన్ని కుటుంబాలకు నా హృదయపూర్వక శుభాకాంక్షలు.

గడచిన వారం రోజులుగా, భావనగర్ నేల అంతా కృష్ణభగవానుని బృందావనంగా మారిపోయినట్లుగా అనిపిస్తోంది. మన గౌరవ సోదరుడు నిర్వహించిన భాగవత కథ ఈ సందర్భాన్ని మరింత ప్రత్యేకంగా మార్చింది. ఇక్కడ పొంగి పొర్లుతున్న భక్తిభావన, భక్తులు కృష్ణుని ప్రేమలో తమను తాము లీనం చేసుకుంటున్న విధానం ఈ వాతావరణాన్ని ఆధ్యాత్మికంగా మార్చేశాయి. నా ప్రియ కుటుంబ సభ్యులారా, బవలియాలీ ధామ్ధార్మిక ప్రదేశం మాత్రమే కాదు.. ఇది భర్వాడ్ సమాజంతో పాటు ఇతరుల నమ్మకానికి, సంస్కృతికి, ఏకత్వానికి ప్రతీక.
 

|

నగా లఖా ఠాకర్ ఆశీర్వాదంతో ఈ పుణ్యస్థలం ఎల్లప్పుడూ భర్వాడ్ సమాజానికి అసలైన మార్గనిర్దేశం, గొప్ప ప్రేరణను అందిస్తోంది. ఈ రోజు, శ్రీ నగ లఖా ఠాకర్ ఆలయ పున:ప్రతిష్ఠ చేయడం మనకు దక్కిన సువర్ణావకాశం. గడచిన వారం రోజులుగా ఇక్కడ పండగ వాతావరణం నెలకొంది. ఈ సమాజం ప్రదర్శిస్తున్న ఆసక్తి, ఉత్సాహం అద్భుతంగా ఉన్నాయి - ఇక్కడ ఉన్నవారి నుంచి నాకు ప్రశంసలు వినపడుతున్నాయి. మీలో ఒకడిగా అక్కడ ఉండి ఉంటే బాగుండునని నా మనసుకు అనిపిస్తోంది. కానీ పార్లమెంటులో నాకున్న బాధ్యతలు, పని కారణంగా నేను అక్కడికి రాలేకపోయాను. దానికి నేను చాలా విచారిస్తున్నాను. వేలాది మంది సోదరీమణులు అద్భుతంగా ప్రదర్శించిన రాస్ (దాండియా నృత్యం) గురించి విన్నప్పుడు నాకెంతో సంతోషం కలిగింది. వారు ఇక్కడే బృందావనానికి జీవం పోశారు!

నమ్మకం, సంస్కృతి, సంప్రదాయాల మేళవింపు హృదయాన్ని ఉప్పొంగిపోయేలా చేస్తోంది. ఈ కార్యక్రమాలన్నింటిలో, పాల్గొన్న కళాకారులు, సోదరసోదరీమణులను నేను అభినందిస్తున్నాను. వారు తమ అద్భుతమైన ప్రదర్శనల ద్వారా అర్థవంతమైన సందేశాలను ఈ సమాజానికి అందించారు. కథల ద్వారా భాయ్ జీ తన జ్ఞానాన్ని మనందరికీ పంచడం కొనసాగిస్తారని నేను నమ్ముతున్నాను. ఎన్నిసార్లు నేను కృతజ్ఞతలు తెలిపినా అది సరిపోదు.

ఈ పవిత్రమైన కార్యంలో పాల్గొనేందుకు నాకు అనుమతిచ్చిన మహంత్ శ్రీ రామ్ బాపూజీ, బవలియాలీ ధామ్కు నేను హృదయపూర్వకంగా కృతజ్ఞతలు తెలియజేస్తున్నాను. ఈ పవిత్రమైన రోజున మీ అందరి మధ్య నేను ఉండలేకపోయాను కాబట్టి  క్షమాపణలు కూడా కోరుతున్నాను. మీ అందరికీ నాపై సమాన హక్కు ఉందని నాకు తెలుసు. కానీ భవిష్యత్తులో ఈ ప్రదేశాన్ని సందర్శించినప్పుడల్లా భక్తితో నా శిరస్సు వంచి నమస్కరిస్తాను.
 

|

నా ప్రియమైన కుటుంబ సభ్యులారా,

భర్వాడ్ సమాజంతో, బవలియాలీ ధామ్తో నా అనుంబంధం చాలా పాతది. భర్వాడ్ సమాజం అనుసరించే సేవా దృక్పథం, గోసేవ పట్ల వారి అంకితభావాన్ని మాటల్లో వర్ణించడం అసాధ్యం. ఎల్లప్పుడూ మనం ఉచ్చరించే ఒక వచనం:

నగా లాఖా నర్ భలా,

పచ్ఛమ్ ఘరా కే పీర్|

ఖారే పానీ మీఠే బనాయే,

సూకీ సూఖీ నదియోం మే బహాయే నీర్|

(నాగ లఖా, గొప్ప వ్యక్తి,

పశ్చిమ ప్రాంతానికి చెందిన సాధువు.

ఉప్పునీటిని తీపిగా మార్చారు,

ఎండిపోయిన నదులకు తిరిగి జీవం పోశారు.)

ఇవి వట్టి మాటలేం కావు. ఆ కాలంలో సైతం, నిస్వార్థ సేవ, ఏదైనా అసాధ్యమనుకున్న దానిని సాధించాలన్న సత్తా వారు పూనుకొని చేపట్టే పనుల్లో కనిపించేది. (గుజరాతీలో ఒక నానుడి ఉంది.. నేవా కే పానీ మోభే లగా లియే- ఎండిపోయిన బావి నుంచి నీటిని తోడడం). వారు వేసిన ప్రతి అడుగూ సేవా పరిమళాన్ని వెదజల్లింది. మరి వందల ఏళ్ల తరువాత కూడా, ఇంకా ప్రజలు వారిని స్మరించుకొంటూనే వస్తున్నారంటే అది దానంతట అదే ఒక ఘనమైన కార్యం. పూజ్య ఈశు బాపు స్వార్థరహిత సేవను నేను ప్రత్యక్షంగా గమనించాను. ఆయనలో ఉన్న అంకితభావాన్ని నా కళ్లారా చూశాను. అనావృష్టి పరిస్థితులు గుజరాత్‌కు కొత్త కాదు. పదేళ్లలో ఏడు సంవత్సరాల పాటు దుర్భిక్షం తాండవించేది. గుజరాత్‌లో చివరకు ఈ మాటలు కూడా అనే వారు.. ‘‘ఏమైనా చేయి, కానీ ధంధూకా (దుర్భిక్ష ప్రాంతం) వారికి మీ అమ్మాయిని ఇచ్చి పెళ్లి చేయకు’’. (గుజరాతీలో ‘బందూకే దేజో పణ్ ధంధూకే న దేనా..’ అని. ఈ మాటలకు.. మీ కుమార్తెను ధంధూకాకు వధువుగా పంపే కన్నా తుపాకితో కాల్చి చంపడమే నయం అని భావం). ధంధూకా తరచుగా తీవ్ర కరవులతో అల్లాడిపోయేది కాబట్టి ఈ నానుడి చలామణిలోకి వచ్చింది. ధంధూకాతోపాటు రాణ్‌పుర్ నీటికి కటకటలాడింది. ఆ కాలంలో, పూజ్య ఈశు బాపు చేసిన నిస్వార్థ సేవ సుస్పష్టం. ఆయన ప్రజల ఇక్కట్లను తీర్చిన తీరును ఈనాటికీ జ్ఞాపకం పెట్టుకొన్నారు. నేనొక్కడినే కాదు, గుజరాత్ ప్రజలంతా ఆయన చేసిన పనిని దైవీకార్యమనే తలుస్తున్నారు. ఆయన అందించిన తోడ్పాటులను ప్రజలు ప్రశంసించకుండా ఉండలేరు. సంచార జాతులకు సేవలు చేయడం కావచ్చు, వారి పిల్లలు చదువుకునేటట్టు చూడడం కావచ్చు, పర్యావరణ పరిరక్షణకు సంబంధించిన ఆశయాలకు తనను తాను అంకితం చేసుకోవడం కావచ్చు, లేదా గిర్ గోవులను కంటికి రెప్పలా కాపాడడం కావచ్చు.. సేవకు కట్టుబడిపోయిన ఆయన తత్వాన్ని ఆయన చేసిన ప్రతి పనిలోనూ చూడవచ్చు. ఆయన చేసిన పనుల ద్వారా, స్వార్థరహిత సేవా సంప్రదాయం ఎంత లోతుగా వేళ్లూనుకుపోయిందీ మనం సుస్పష్టంగా గమనించవచ్చు.    

 

|

ప్రియమైన నా కుటుంబ సభ్యులారా,

భర్‌వాడ్ ప్రజలు కష్టపడి పనిచేయడానికి, త్యాగాలు చేయడానికి ఎన్నడూ వెనుకాడలేదు.. వారు సదా ముందుభాగంలో నిలబడుతూ వచ్చారు. నేను మీ మధ్యకు వచ్చినప్పుడల్లా, నేను సూటిగా స్పష్టంగా మాట్లాడిన సంగతి మీకందరికీ తెలుసు. కర్రలు పట్టుకొనే రోజులు పోయాయని నేను ఒక సారి భర్‌వాడ్  ప్రజలతో అన్నాను.. మీరు చాలా కాలం పాటు కర్రలు పట్టుకున్నారు. కానీ కలం పట్టుకోవాల్సిన కాలమిది. మరి ఈ రోజు, నేను గర్వంగా చెప్పి తీరాలి.. గుజరాత్‌కు నేను సేవలందించిన కాలంలో, భర్‌వాడ్ ప్రజల్లో నవ తరం ఈ మార్పును హృదయానికి హత్తుకుంది. పిల్లలు ఇప్పుడు చదువుకుంటూ, జీవనంలో ముందడుగు వేస్తున్నారు. ఇంతకు ముందు నేను అంటుండే వాడిని.. ‘‘మీ కర్రలు కిందపడేసి కలం పట్టుకోండి’’ అని. ఇప్పుడు, నేను అంటున్నా.. ‘‘నా కుమార్తెలు వారి చేతుల్లో కంప్యూటర్లతో కనపడాలి అని’’. మారుతున్న ఈ కాలంలో, మనం ఎంతో సాధించవచ్చు.. ఇదే కదా మనకు ప్రేరణనిచ్చేది. మన సముదాయం ప్రకృతి పరిరక్షకురాలు. మీరు ‘‘అతిథి దేవో భవ’’ అనే భావనను ప్రవేశపెట్టారు. చాలా మందికి మన ధార్మిక సంప్రదాయాలు, బల్వా సముదాయాల సంప్రదాయాల గురించి తెలియదు. భర్‌వాడ్ ప్రజల్లో వయోవృద్ధులు వృద్ధాశ్రమాల్లో కనిపించరు. ఉమ్మడి కుటుంబ భావన, వయస్సు మళ్లిన వారికి సేవ చేయడాన్ని దైవానికి సేవ చేయడంగా భావించడం వారి సంస్కృతిలో ఉంది. కుటుంబాల్లోని పెద్దవారిని వృద్ధాశ్రమాలకు పంపించరు.. వారిని వారు జాగ్రత్తగా చూసుకుంటారు. ఈ విలువలను తరువాతి తరం వారికి అందించడం ఒక గొప్ప విజయం. తరాల తరబడి, భర్‌వాడ్ ప్రజల్లో నైతిక విలువలను, కుటుంబ విలువలను బలపరచే కృషి సాగుతూ వచ్చింది.

ఆధునికత వైపునకు మన సమాజం శరవేగంగా దూసుకుపోతూనే తన సంప్రదాయాలను పరిరక్షించుకోవడం చూసి నాకు చాలా సంతోషం కలుగుతోంది. సంచార జాతుల కుటుంబాల పిల్లలకు విద్యతోపాటు వసతిగృహ సదుపాయాల కల్పన సైతం గొప్ప సేవే. మన ప్రజల్ని ఆధునికతకు జోడించడం, ప్రపంచంతో మమేకం అయ్యే అవకాశాలను కల్పించడం కూడా ఒక కీలక బాధ్యత. మన ఆడబిడ్డలు క్రీడల్లో సైతం రాణించడం చూడాలని నేను అభిలషిస్తున్నాను. ఈ లక్ష్యాన్ని సాధించే దిశగా మనం తప్పక కృషిచేయాలి. ఇదీ ఒక మహా సేవే. నేను గుజరాత్‌లో ఉన్నప్పుడు, బాలికలు బడికి వెళ్లడంతోపాటు ఖేల్ మహాకుంభ్‌లో క్రీడా పతకాలను గెలుచుకోవడం గమనించాను. వారికి దైవం ప్రత్యేక బలాన్నిచ్చినందువల్ల, మనం కూడా వారి పురోగతి విషయంలో శ్రద్ధ తీసుకోవాలి. మనం మన పశుగణం సంరక్షణపై దృష్టి పెడతాం.. వాటికి రోగం వస్తే,  పున:స్వస్థత కోసం మనం చేయాల్సిందంతా చేస్తాం. ఇప్పుడు, మన పిల్లల పట్ల కూడా మనం అదే అంకితభావాన్ని, ఆందోళనను వ్యక్తం చేసి తీరాలి. బావలియాలీ పశు సంవర్ధకం విషయంలో ఆరితేరింది. ముఖ్యంగా గిర్ గోజాతిని సంరక్షించడంలో. ఇది యావత్తు దేశానికి గర్వకారణం. ప్రస్తుతం, గిర్ గోవును ప్రపంచం అంతటా ప్రశంసిస్తున్నారు. 

నా ప్రియమైన కుటుంబ సభ్యులారా, సోదరసోదరీమణులారా,

మనం వేర్వేరు కాదు, సహచరులమన్నది నా భావన. మనమంతా ఒకే కుటుంబ సభ్యులమని నాకనిపిస్తూ ఉంటుంది. నేను ఎప్పుడూ మీ మధ్య ఒక కుటుంబ సభ్యుడిగానే ఉన్నాను. ఈ రోజు బవలియాలీ ధామ్ కు చేరుకున్న లక్షలాది మందిని చూస్తుంటే మీ నుంచీ ఆశించే హక్కు నాకుందని, మిమ్మల్ని కొన్ని విషయాలు అడగాలనీ అనిపిస్తోంది. మీరు నన్ను నిరాశ పరచరనే నమ్మకంతో అభ్యర్థిస్తున్నాను. మనం ఇప్పుడు ఉన్న విధంగానే కొనసాగే వీలు లేదు. వేగంగా ముందడుగు వేస్తూ రానున్న 25 సంవత్సరాల్లో భారత్ ను అభివృద్ధి చెందిన దేశంగా తీర్చిదిద్దే దిశగా పనిచేయాలి. మీ సహకారం లేనిదే నా పని నెరవేరే అవకాశం లేదు. ఈ లక్ష్యాన్ని సాధించేందుకు మొత్తం సమాజం ఒకటిగా కదలాలి. ఒకనాడు నేను ఎర్రకోట నుంచీ ఇచ్చిన 'సబ్ కా ప్రయాస్' పిలుపు మీకు గుర్తుండే ఉంటుంది. 'సబ్ కా ప్రయాస్' మన సిసలైన బలం. ‘వికసిత్ భారత్’ వైపు తొలి అడుగులు మన గ్రామాల అభివృద్ధి నుంచే ప్రారంభమవుతుంది. ప్రకృతిని, మన పశు సంపదను కాపాడుకోవడం మన కర్తవ్యం. ఈ విషయాన్ని గుర్తుంచుకుని మనం చేయవలసిన మరొక ముఖ్యమైన పని ఉంది. భారత ప్రభుత్వం ఫుట్ అండ్ మౌత్ వ్యాధికి సంబంధించి పూర్తి ఉచిత కార్యక్రమాన్ని నిర్వహిస్తోంది. ఈ వ్యాధినే మన భాషలో ఖుర్పకా-ముఖ్‌పకా (నోరు, కాలి వ్యాధి) అని పిలుస్తాం. మన జంతువుల్ని సంపూర్ణంగా కాపాడుకోవాలంటే, అవసరాన్ని బట్టి ఎప్పటికప్పుడు వాటికి టీకాలు వేయించడం చాలా అవసరం. మూగజీవాల పట్ల కరుణతో చేపట్టవలసిన పని. ఈ టీకాలను ప్రభుత్వం పూర్తి ఉచితంగా అందిస్తోంది. మన పశువులన్నింటికీ ఈ టీకాలు సరైన పద్ధతిలో అందేలా మనం జాగ్రత్తలు తీసుకోవాలి. అప్పుడే శ్రీ కృష్ణుడి అనుగ్రహం పొందగలం. మన థాకర్లు మనకు తప్పక సహాయం చేస్తారు.

మన ప్రభుత్వం తీసుకున్న మరో ముఖ్యమైన చర్య పశుపాలన పరంగా రైతులకు ఆర్థిక సహాయం అందించేందుకు సంబంధించినది. గతంలో కిసాన్ క్రెడిట్ కార్డులు కేవలం రైతులకు మాత్రమే అందుబాటులో ఉండేవి. ఇప్పుడు వీటిని పశువులున్న రైతులకు కూడా అందుబాటులోకి తెచ్చాం. ఈ క్రెడిట్ కార్డులతో పశుపాలన రైతులు తమ వ్యాపారాలను విస్తరించుకునేందుకు బ్యాంకుల నుంచీ తక్కువ వడ్డీతో రుణాలు పొందవచ్చు. ఇక దేశవాళీ గోజాతుల సంరక్షణ, కొత్త జాతుల సృష్టి కోసం జాతీయ గోకుల్ మిషన్ అమల్లో ఉంది. మీ అందరినీ అభ్యర్థించేది ఇదే... నేను ఢిల్లీలో ఉండి ఈ చర్యలను తీసుకుంటున్నా. మీరు వాటిని ఉపయోగించుకోకపోతే ప్రయోజనం ఏముంది? మీరు ఈ పథకాల లబ్ధి తప్పక పొందాలి. అప్పుడు ఇక్కడున్న లక్షలాది పశువుల, మనుషుల ఆశీస్సులు నాకు దక్కుతాయి. ఈ పథకాన్ని సద్వినియోగం చేసుకొమ్మని మిమ్మల్ని మరోసారి కోరుతున్నాను.

నేను గతంలో చెప్పిన ముఖ్యమైన విషయాన్ని మరోసారి గుర్తు చేస్తాను. మొక్కలు నాటడం ఎంత ముఖ్యమైన విషయమో మీకు చెప్పాను. ఈ సంవత్సరం నేను ప్రారంభించిన ఒక ప్రచారం ప్రపంచవ్యాప్తంగా ప్రశంసలు అందుకుంది – అదే ‘ఏక్ పేడ్ మా కే నామ్’ (తల్లి పేరు మీద ఒక చెట్టు). మీ తల్లి జీవించి ఉన్నట్లయితే, ఆమె సమక్షంలో ఒక చెట్టు నాటండి. ఆమె గనక స్వర్గస్తురాలై ఉంటే, ఆమె జ్ఞాపకార్థం ఆమె ఫోటో ముందు ఒక చెట్టు నాటండి. భార్వాడ్ సామాజిక వర్గ పెద్దలు దృఢమైన వారని, దీర్ఘాయుష్కులని పేరుంది. వీరిలో చాలామంది 90-100 సంవత్సరాల వరకు జీవిస్తారు. వారికి సేవ చేయడంలో మనం గొప్ప తృప్తిని, గర్వాన్ని అనుభవిస్తాం. ఇప్పుడు మన తల్లుల పేరుతో చెట్లు నాటి అదే గర్వాన్ని అనుభూతి చెందాలి. పుడమి తల్లికి మనమంతా హాని చేశామన్న విషయాన్ని అంగీకరించాల్సిందే! నీళ్ళు తోడుకున్నాం, రసాయనాలు ఉపయోగించాం. చుక్క నీటిని మిగల్చకుండా ఆమెకు దాహం కలిగించాం. చివరికి మట్టిని విషపూరితం చేశాం. భూమాతకి తిరిగి స్వస్థత చేకూర్చే పూచీ మనదే. పశువుల పేడ మన భూమికి వరం వంటిది, అది మట్టికి పోషణనందిస్తుంది, బలాన్నందిస్తుంది. అందుకే సహజ వ్యవసాయం ఎంతో కీలకమైనది. భూమి కలిగి, అవకాశం ఉన్నవారు సహజ వ్యవసాయాన్ని తప్పక మొదలుపెట్టాలి. గుజరాత్ గవర్నర్ ఆచార్యజీ సహజ వ్యవసాయాన్ని ప్రోత్సహించేందుకు ఎంతో కృషి చేస్తున్నారు. మీ అందరికి నా అభ్యర్థన ఇదే, మనకు ఉన్న భూమి – పెద్దదైనా చిన్నదైనా, మనం సహజ వ్యవసాయం వైపు మళ్ళాలి, భూమాతను కాపాడుకోవాలి.

నా ప్రియమైన సోదర సోదరీమణులారా,

భార్వాడ్ సమాజానికి మరొకసారి హృదయపూర్వక శుభాకాంక్షలు, నాగ లక్ఖా థాకర్ మనపై సదా ఆశీర్వాదాలు కురిపించాలని ప్రార్థిస్తున్నాను. బవలియాలీ ధామ్ కు చెందిన ప్రతి ఒక్కరూ సుఖసమృద్ధులతో ప్రగతి సాధించాలని థాకర్ పాదాలనంటి వేడుకుంటున్నాను. మన ఆడపిల్లలు, మగపిల్లలూ పెద్ద చదువులు చదివి ఎదుగుతూ, మన సమాజం బలంగా ఎదగడం కంటే నేనేమి కోరుకోగలను! ఈ శుభ సందర్భంలో, భాయిజీ మాటలను గౌరవించి, ఆయన మాటలు నిజమయ్యేలా ఈ సమాజం తన శక్తిని నిలుపుకుంటూ ఆధునికత వైపు ప్రయాణం సాగించాలి. నాకు ఈరోజు నిజంగా ఎంతో ఆనందం కలిగింది. నేను స్వయంగా వచ్చి ఉంటే, ఈ సంతోషం రెట్టింపయ్యేది.

జై థాకర్!