आज हम एक ऐसे पर्व पर इकट्ठे हुए हैं जो एक प्रकार से त्रिगुण है, त्रिवेणी है। आज ही का पवित्र दिवस बुद्ध पूर्णिमा का है, जब भगवान बुद्ध ने देह धारण किया था। आज ही का पवित्र दिवस है, जब भगवान बुद्ध ने संबोधि प्राप्त की थी और आज ही का दिवस जब भगवान ने देह मुक्ति कर दिव्यता की ओर परायण कर दिया था। लेकिन आज हम इस उमंग भरे पर्व पर कुछ बोझिल सा भी महसूस करते हैं, बोझिल सा इसलिए महसूस कर रहे हैं कि जिस धरती पर भगवान बुद्ध का जन्म हुआ, वो हमारा सबका प्यारा नेपाल एक बहुत बड़े संकट से गुजर रहा है। ये यातना कितनी भयंकर होगी उसकी कल्पना करना भी कठिन है और कितने लंबे समय तक नेपाल के इन पीड़ित बंधुओं को इन यातनाओं से जूझना पड़ेगा इसका भी अंदाज करना कठिन है। लेकिन भगवान बुद्ध ने जो करुणा का संदेश दिया है विश्व की मानव जाति के लिए उस करुणा को जीने का एक मौका भी है। उसी करुणा से प्रेरित होकर के नेपाल के बंधुओं के दुख-दर्द को हम बांटें, उनके आंसुओं को पोंछें और उन्हें भी एक नई शक्ति प्राप्त हो, इसके लिए आज हम भगवान बुद्ध के चरणों में प्रार्थना करते हैं।

जब भगवान बुद्ध की चर्चा होती है तब ये स्वाभाविक है कि आज के युग में उन्होंने जो कहा था, उन्होंने जो जिया था और उन्होंने जीने के लिए जो प्ररेणा दी थी क्या आज के मानव-जाति को, आज के विश्व को, वो उपकारक है क्या? और हम देखिए तो जीवन का कोई भी विषय ऐसा नहीं जिसमें आज भी बुद्ध प्रस्तुत न हो? अगर युद्ध से मुक्ति पानी है तो बुद्ध के मार्ग से ही मिलती है। कभी-कभार लोगों का भ्रम होता है कि सत्ता और वैभव, समस्याओं का समाधान करने के लिए पूर्ण होती है लेकिन भगवान बुद्ध का जीवन इस बात को नकारता है। भगवान बुद्ध को संबोधि प्राप्त करने का अवसर हम सबको विदित है लेकिन भगवान बुद्ध के एक-एक आचरण में ऐसा लग रहा है कि वो पहले से ही.. उनके मन की भूमि तैयार थी। बारिश आने के बाद, बीज बोने के बाद फसल होना, ये हमारे ध्यान में होता है लेकिन उस धरती की अपनी एक ताकत होती है, उसका अपना एक समार्थ्य होता है जो बाद में उर्वरा का रूप ले, तब हमारे ध्यान जाता है।

भगवान बुद्ध में लग रहा है कि जन्मकाल से ही एक प्रकार से वो संबोधि को प्राप्त होकर के आए थे और विधिवत रूप से संबोधि प्राप्त करने का अवसर जो दुनिया की नजर में कोई और था ..वरना क्या कारण था कि जो व्यक्ति स्वंय राज परिवार में पैदा हुआ हो, जो व्यक्ति स्वंय युद्ध-विद्या में पारंगत हो, जो व्यक्ति जिसके पास अपार सत्ता हो, अपार संपत्ति हो, उसके बाद भी मानव कल्याण के लिए ये पूर्ण नहीं है, कुछ और आवश्यक है, इससे भी परे कुछ ताकत है और उस ताकत की ओर जाना अनिवार्य है, ये जब दृढ़ विश्वास भीतर होता है.. कितना बड़ा conviction होगा, कितना बड़ी courage होगी कि पल भर में ये सब कुछ छोड़ देना, राज-वैभव, सत्ता, पैसे, सब कुछ छोड़ देना और निकल पड़ना। इन सबसे भी ऊपर कोई शक्ति है जो मानव के काम आएगी, मानव-कल्याण के काम आएगी। ये विचार छोटा नहीं है। जब भगवान बुद्ध की तरफ देखते हैं, एक सातत्य नजर आता है। भीतर की करुणा उनके रोम-रोम में प्रतिबिंबित होती थी, प्रवाहित होती थी। बुद्ध जो कभी सिद्धार्थ के रूप में पल रहे थे, राज-पाठ के बीच पल रहे थे।

सिद्धार्थ और देवव्रत दो भाई शिकार करने के लिए जाएं और बुद्ध के दर्शन वहीं हो जाते हैं कि जब शिकार करते समय देवव्रत के तीर से एक हंस मारा जाता है और सिद्धार्थ उसको बचाने के लिए अपना जीवन खपा देते हैं, उनके भाई शिकार करने के आनंद में मशगूल होना चाहते हैं.. और तब अपने सगे भाई के प्‍यार वगैरह सब छोड़ करके, अपने सिद्धांतों का रास्‍ता, बचपन में एक बच्‍चा पकड़ लेता है और कहता है कि नहीं! मारने नहीं दूंगा! अगर भीतर से करुणा प्रवाहित न हुई होती, अगर जीवन करुणा से प्रेरित न हुआ होता, प्रभावित न हुआ होता तो ये घटना संभव नहीं होती क्‍योंकि राजघराने में जिस प्रकार का लालन-पालन होता है, युद्ध की विभीषिकाओं के बीच जीने की जिनको तैयारी रखनी होती है, जिसको शस्‍त्र से सुसज्जित किया जाता है, वो व्‍यक्ति एक पंछी के लिए इतनी करुणा प्रकट करता हो और सगे भाई को छोड़ने के लिए तैयार हो जाता है, तब उस करुणा की तीव्रता कितनी ऊंची होगी, इसका अंदाज आता है। ये भाव ही तो है, यही तो ताकत है जो उसको राज-पाट छोड़ने के लिए प्रेरित करती है.. और जीवन का अंतकाल देखिए, करुणा की तीव्रता देखिए कि वे बाल्‍यकाल में राजघराने के जीवन में जीने के बाद भी करुणा को प्रकट करते हैं और जीवन के अंतकाल में कोई व्‍यक्ति अज्ञानवश उनके कान के अंदर कीलें ठोक देता है तब भी.. स्‍वयं वेदना से पीड़त थे, शरीर कराह रहा था.. कान में कीलें ठोक देना कितनी बड़ी दर्दनाक पीड़ा होगी, इसका अंदाज कर सकते हैं लेकिन तब भी वही करुणा प्रतिबिंबित होती है जो अपने सगे भाई के समय हुई थी। उस मारने वाले के प्रति भी वही करुणा प्रकट होती है। जीवन कितना एकसूत्र था, एकात्‍मता का वो आदेश देते थे। इस एकात्‍मता की अनुभूति जीवन के आखिर काल तक कैसे हुई इसका हम अंदाज कर सकते हैं।

आज पूरे विश्‍व में एक चर्चा है कि 21वीं सदी एशिया की सदी है और इसमें कोई दुविधा नहीं दुनिया में, मतभेद नहीं। इस विषय में सभी मानते है कि 21वीं सदी एशिया की है। इसमें मतभेद हो सकता है कि किस देश की होगी किस देश की नहीं, लेकिन एशिया की होगी इसमें कोई मतभेद नहीं है। जिन लोगों ने ‘21वीं सदी एशिया की सदी’ की कल्‍पना की है, शायद उन्‍होंने एक पहलू की ओर नहीं देखा। बुद्ध के बिना कभी एशिया की सदी 21वीं सदी नहीं बन सकती। बिना बुद्ध न ‘21वीं सदी एशिया की सदी’ हो सकती है.. और बुद्ध ही है जो ‘21वीं सदी एशिया की सदी’ को विश्‍व में एक प्रेरणा का कारण बना सकते हैं और वो प्रेरणा क्‍या है? विश्‍व संकटों से जूझ रहा है, एक-दूसरे की मौत पर उतारू हैं, हिंसा अपनी चरम सीमा पर है। विश्‍व का भौतिक भू-भाग रक्‍तरंजित है, तब करुणा का संदेश कहां से आएंगा? मरने-मारने की इस मानसिकता के बीच प्रेम का संदेश कौन दे पाएंगा और वो कौन ताकत है, कौन सी शख्सियत है जिसकी बात को दुनिया स्‍वीकारने के लिए तैयार होगी, तो जगह एक ही दिखती है। किनारा एक ही जगह पर नज़र आता है, वो है- बुद्ध। मानव जाति जिन संकटों से गुजर रही है उसके लिए भी, विश्‍व को भी रास्‍ता दिखाने के लिए ये मार्ग है। अपने ही जीवनकाल में कोई विचार इतना प्रभावी हो सकता है क्‍या? नहीं हो सकता है। दुनिया के ढेर सारे विचार प्रवाहों को हम देख लें, उस विचार के जनक के कार्यकाल में.. वो विचार न इतना फैला है, न इतना प्रचारित हुआ है। बाद में उनके शिष्‍यों के द्वारा फैला होगा। शासकीय व्‍यवस्‍थाओं के माध्‍यम से फैला होगा लेकिन किसी व्‍यक्ति के जीते-जी.. अगर वो कोई नाम है, तो एक ही नाम है पूरे विश्‍व में, वो है बुद्ध। विश्‍व के कितने बड़े भू-भाग पर ये विचार-प्रभाव पहुंच चुका है और जन-सामान्‍य की प्रेरणा का, श्रृद्धा का केंद्र बन चुका है। उस अर्थ में ये मानना होगा कि बुद्ध के साथ जितनी बातें जुड़ी हुई हैं.. कभी-कभार इस पहलू को देखते हैं तो लगता है कि बुद्ध ज्ञान-मार्गी भी थे। जब तक Conviction नहीं होता, जब तक विचारों के तराजू पर चीज़ें तौली नहीं जातीं, जब तक comparative study करके better decide नहीं होता है तब तक दुनिया अपने आप चीज़ों को स्‍वीकार नहीं करती है। बुद्ध की बातों में ज्ञान मार्ग की ताकत थी, तभी तो विश्‍व ने उनको स्‍वीकार किया होगा, विश्‍व ने तराजू पर तौल कर स्‍वीकार किया होगा।

उस समय सामाजिक जीवन में भी बुराइयां.. और बुराइयों को अतिरेक था। आशंकाओं का दौर चलता था। भू-विस्‍तार एक सहज राज्‍य प्र‍वृत्ति बन गई थी। ऐसे समय, यानी ऐसे विपरित समय में त्‍याग की चर्चा करना, मर्यादाओं की चर्चा करना, प्रेम और करुणा का संदेश देना और सामाजिक सुधार की बात करना.. जिन मुद्दों को लेकर आज भी हम हिन्‍दुस्‍तान में चर्चा करते हैं, ढाई हज़ार साल पहले भगवान बुद्ध ने भी इन मुद्दों को स्‍पर्श किया था।

मैं अभी-अभी.. यहां जब मुझे किताब दी गई तो मैं पढ़ रहा था, एक चीज़ से मैं प्रभावित हुआ, मुझे लगता है कि मैं आपको बताऊं। एक स्‍थान पर लिखा है- ‘‘पर कल्‍याण के बिना भविष्‍य और परलोक जैसे तो दूर की बात है, इसी जीवन की अर्थ-सिद्धि भी नहीं हो सकती।’’ मरने के बाद के सुख की बात छोड़ो, इस जीवन में भी सुख नहीं मिल सकता। आगे कहा है- क्‍यों, कैसे- ‘‘मज़दूरी के अनुसार, काम न करने वाला मज़दूर और काम के अनुसार या समय पर मज़दूरी न देने वाला स्‍वामी, दोनों अपने ऐहिक अर्थ भी सिद्ध नहीं कर सकते हैं।’’ दुनिया में जो लोग एक मई मनाते हैं, पहली मई मनाते हैं, उन्‍होंने कभी कल्‍पना की होगी कि ढाई हजार वर्ष पहले मज़दूरों के संबंध में और मज़दूर के संबंध में भगवान बुद्ध क्‍या विचार रखते थे।

जाति प्रथा हो, ऊंच-नीच का भाव हो, अच्‍छे-बुरे की चर्चा हो, भगवान बुद्ध उस विषय में बड़े संवेदनशील थे। .. और क्‍या चाहते थे! एक जगह पर उन्‍होंने कहा है- ‘‘दूसरों से अपमानित अल्‍प ओजस्‍वी लोग महान ओजस्‍वी बनें’’ क्‍या इच्‍छा है! जो अपमानित होते है, अल्‍प ओजस्‍वी है वे लोग महान ओजस्‍वी बनें और ‘‘धूप, हवा या परिश्रम से पीडि़त कुरुप लोग सुदंर बनें’’ मज़दूरी करते-करते, पसीने से लथपथ रहते जिनका चेहरा-मोहरा मलिन हो गया है.. वो चाहते हैं कि ये लोग सुधरें, यानी हर पल.. दलित, पीडि़त, शोषित, वंचित यहीं लोग उनके दिल के अंदर जगह बनाते रहें। आगे एक जगह पर कहते हैं.. महिलाओं के गौरव की बात को किस ढंग से उन्‍होंने रखा है। आगे एक जगह पर कहते हैं.. महिलाओं के गौरव की बात को किस ढंग से उन्होंने रखा है, women empowerment की चर्चा कैसे की है, अपने तरीके से की है, युग-युग के अनुरूप कही है। उन्होंने कहा है- ‘‘इस लोक में जितनी स्त्रियां हैं, वे अगले जन्म में पुरुष बनेंगी, जिनको आज नीच जन्म वाला माना जाता है, वो अगले जन्म में उच्च जन्म-धारण करेंगे’’ और आगे बड़ा महत्वपूर्ण कहते हैं, ‘‘ये सब होने के बाद भी वे कभी अभिमान को प्राप्त न करेंगे।’’ आप देखिए, मैं तो ऐसे ही बैठे-बैठे देख रहा था लेकिन समाज का तरफ देखने का उनका रवैया क्या था? समाज में परिवर्तन चाहते थे, एक evolution चाहते थे, एक उत्क्रांति चाहते थे, व्यक्ति का जीवन भी उर्द्धवगामी पर जाए, समाज-व्यवस्था भी उर्द्धवगामी हो, ये उनका प्रयास था। बुद्ध का समयानुकूल संदेश ये ही था कि ‘एकला चलो रे’ ये परिणाम नहीं ला सकता है, वे संगठन के आग्रही थे और बाबा साहेब अंबेडकर से भी यही मंत्र दुनिया को मिला है, संगठित होने का.. और इसलिए जब भी बुद्ध की बात आती है तो- बुद्धम शरणं गच्छामि, धम्मं शरणं गच्छामि, संगम शरणं गच्छामि ये मंत्र बार-बार हमारे सामने आते हैं। संगठन की शक्ति को और इस रूप में जैसे वो ज्ञानमार्गी थे, वे एकात्ममार्गी भी थे। वे एकात्मता में विश्वास करते, जितने लोगों को जोड़ सकते हैं, जोड़ने में विश्वास रखते थे और उसी से एक संगठन की शक्ति को रूप देने का उनका प्रयास है।

भगवान बुद्ध ने व्यक्ति के विकास के लिए भी जो मंत्र दिया है, मैं समझता हूं कि इससे बड़ा कोई संदेश नहीं हो सकता है। आज दुनिया की कितनी ही management की किताबें पढ़ लीजिए, व्यक्ति विकास के लिए कितनी ही lecture, कितनी ही ग्रंथों को ऊपर-नीचे कर लीजिए, मैं समझता हूं कि बुद्ध का एक मंत्र इसके लिए काफी है। एक तराजू में व्यक्ति विकास के सारे विचार रख दीजिए, सारे ग्रंथ रख दीजिए और दूसरे तराजू में भगवान बुद्ध का एक तीन शब्द का मंत्र रख दीजिए, मैं समझता हूं तराजू बुद्ध की तरफ ही झुकेगा। वो क्या मंत्र था? व्यक्ति विकास का उत्तम मंत्र था ‘अप्प दीपो भव’ मैं समझता हूं ‘अप्प दीपो भव’ से ऊपर व्यक्ति के जीवन की उर्द्धवगामी यात्रा के लिए और कोई रास्ता नहीं हो सकता है और उस अर्थ में मैं कहूं कि स्वंय भगवान बुद्ध.. कुछ लोग कहते हैं कि वो पूर्व के प्रकाश थे, ज्यादा इस रूप से उनको वर्णित किया जाता है लेकिन मैं मानता हूं कि शायद उनको पूर्व के प्रकाश कहते समय हमारी कल्पना शक्ति की मर्यादा नजर आती है, हमारी कल्पनाशीलता की मर्यादा नजर आती है। लगता तो ऐसा है कि पूरे ब्राहमांड के लिए वो तेज पुंज थे। जिस तेज पुंज में से, समय-समय पर जिसकी जैसी क्षमता प्रवाहित होने वाले प्रकाश को वो प्राप्त करता था और इसलिए वो अपने-आप में एक तेज पुंज थे, उस तेज पुंज से प्रकाश पाकर के हम भी उस दिव्य मार्ग को कैसे प्राप्त करें, जिसमें करुणा हो, जिसमें साथ लेने का स्वभाव हो, जिसमें औरों के लिए जीने की इच्छाशक्ति हो और उसके लिए त्याग करने का मार्ग हो।

बुद्ध ने हमें ये जो रास्ते दिखाए हैं, उन रास्ता को लेकर के जब हम चलते हैं तब.. भगवान बुद्ध ने अष्टांग की चर्चा की है और मैं मानता हूं कि अष्टांग के मार्ग को जाने बिना, पाए बिना बुद्ध को नहीं पा सकते हैं और उस अष्टांग मार्ग में भगवान बुद्ध ने जो कहा है एक सम्‍यक दृष्टि, दूसरा सम्‍यक संकल्प, तीसरा सम्‍यक वाणी, चौथा सम्‍यक आचरण, पांचवा सम्‍यक आजीविका, सम्‍यक प्रयत्न, सम्‍यक चेतना, सम्‍यक ध्यान, ये अष्ट मार्ग.. right view, right thought, right speech, right conduct, right livelihood, right effort, right conciseness, right construction ..भगवान बुद्ध ने ये अष्ट मार्ग हमारे लिए सूचित किए हैं। आज भी United Nation अंतरराष्ट्रीय योगा दिवस के लिए स्वीकृति देता है। दुनिया के 177 देश योगा दिवस को समर्थन करने के लिए और UN के इतिहास में इस प्रकार के resolution को इतना भारी समर्थन कभी पहले नहीं मिला है, इतने कम समय में कभी ऐसे विचार को स्वीकृति नहीं मिली है पूरे UN के इतिहास में, वो योग भी भोग से मुक्ति दिलाने का मार्ग है और योग, रोग से भी मुक्ति दिलाने का मार्ग है और वही एक कदम आगे बढ़ें तो ध्यान की ओर ले जाता है जिसकी और जाने के लिए भगवान बुद्ध हमें प्रेरित करते हैं और इस अर्थ में देखिए, आज के युग में जिन संकटों से हम जूझ रहे हैं, जिन समस्याओं से हम जूझ रहे हैं, उन समस्याओं का समाधान इन आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। पूरे एशिया में भी, मैं जहां भी इन दिनों जा रहा हूं, वो राज्य सरकारें, वो राष्ट्र की सरकारें एक बार मेरा कार्यक्रम बनाते समय जरूर ध्यान रखती हैं और मुझे भी अच्छा लगता है, जब वो ये करते हैं.. कहीं पर भी भगवान बुद्ध का मंदिर है तो मुझे जरूर वहां ले जाते हैं।

मैं मुख्यमंत्री था तो चीन गया था तो कोई कल्पना नहीं कर सकता है चीन में, चीन सरकार ने मेरा जो कार्यक्रम बनाया, उसमें एक शाम मेरी भगवान बुद्ध के मंदिर में बिताने के लिए आयोजित किया था। मैं अभी जापान गया तो, क्योटो में तो स्वंय वहां के प्रधानमंत्री जी आए, वहां के इस भगवान बुद्ध के मंदिर के परिसर को मुझे साथ लेकर के गए थे। अभी श्रीलंका गया, सभी बौद्ध भिक्षुओं के साथ मिलने का मुझे अवसर मिला और मैं देखता हूं कि कितनी बड़ी आध्यात्मिक चेतना है लेकिन बिखरी पड़ी है। समय की मांग है कि संकट से अगर विश्व को बचाने के लिए, बुद्ध का करुणा प्रेम का संदेश काम आता है तो ये शक्तियां सक्रिय होनी चाहिए और भगवान बुद्ध ने कहा था, उसी रास्ते पर संगठित भी होना चाहिए और तभी जाकर के सामर्थ्य प्राप्त होगा और मैं, ये अच्छा हुआ कि हमारे कुछ लोगों का ध्यान नहीं गया अभी तक वरना कई चीजें हमारे देश में विवाद का कारण बनाने में देर नहीं लगती है।

मैं गांधी नगर में मुख्यमंत्री था तो हमारा एक सचिवालय का नया परिसर बना है, उस परिसर में मैंने बहुत बड़ी एक भगवान बुद्ध की मूर्ति लगाई है, प्रवेश होते ही सामने है और मैं जिस मुख्यमंत्री के निवास में रहता था वहां पर भी प्रवेश पर सामने ही भगवान बुद्ध विराजमान हैं। अभी तक शायद इन लोगों का ध्यान नहीं गया वरना तो अब तक मेरी चमड़ी उधेड़ दी गई होती। शायद एक कारण ये है.. वो मेरे ज्ञान या जानकारियों के कारण नहीं है, कुछ बातें होती हैं, जो हमें पता भी नहीं होती है। मेरा जन्म जिस गांव में हुआ, तो जब हम बच्‍चे थे, पढ़ते थे तो यहां आए थे, यहां रहे थे.. थोड़े बड़े हुए तो पता चला कि ह्वेन सांग काफी समय मेरे गांव में रहे थे। क्‍यों रहे थे? तो फिर पता चला कि.. हमारी सामान्‍य Impression ये है कि भगवान बुद्ध पूर्वी क्षेत्र में थे लेकिन आपको यह जानकर आश्‍चर्य होगा कि भारत के दूर, सुदूर पश्चिमी क्षेत्र में, मेरे गांव में बौद्ध भिक्षुओं के लिए एक बहुत बड़ा हॉस्‍टल था और हजारों की तादात में बौद्ध भिक्षुओं की शिक्षा-दीक्षा का वहां काम होता था। तो ये सब ह्वेन सांग ने लिखा है।

मैं जब मुख्‍यमंत्री बना तो मुझे स्‍वाभाविक इच्‍छा हुई कि भई ये लिखा गया है तो यहां कुछ तो होगा। मैंने मेरे यहां पुरातत्‍व विभाग को कहा कि ज़रा खुदाई करो भई, देखों की क्‍या है। मुझे खुशी हुई कि वे सारी चीजें खुदाई में से मिल गईं। बुद्ध के स्‍तूप मिल गए, वहां के हॉस्‍टल भी मिल गए और ह्वेन सांग ने जो वर्णन किया था कि हज़ारों की तदात में लोग वहां शिक्षा-दीक्षा लेते थे। उसके बाद मैंने एक ग्‍लोबल Buddhist Conference की थी और बहुतेक बौद्ध भिक्षुओं को मैं उस जगह पर ले गया था। .. और मुझे ये भी खुशी थी कि हम एक जगह पर खुदाई कर रहे थे तो वहां से तो हमें भगवान बुद्ध के अवशेष मिले हैं। सोने की एक डिबिया मिली है जो अभी एमएस यूनिवर्सिटी में रखी गई है। भविष्‍य में सपना है कि भगवान बुद्ध के जो अवशेष हैं, वहां एक भव्‍य भगवान बुद्ध का एक मंदिर बने और विश्‍वभर में भगवान बुद्ध से प्रेरणा पाने वाले सबके लिए ये प्रेरणा का केंद्र बने।

तो मेरा नाता.. मैं हमेशा अनुभव करता हूं कि कुछ विशेष कारण से भगवान बुद्ध के साथ है, उन विचारों के साथ है, उस करुणा और प्रेम के रास्‍ते के साथ है। मुझे आज बुद्ध पूर्णिमा के इस पावन अवसर पर भगवान बुद्ध के चरणों में आ करके बैठने का अवसर मिला, उनका स्‍मरण करने का अवसर मिला और आप सबके दर्शन करने का अवसर मिला, मैं अपने आप को धन्‍य मानता हूं।

मैं फिर एक बार नेपाल के लोगों के लिए भगवान बुद्ध से प्रार्थना करता हूं कि मेरे पीडि़त भाईयों को बहुत शक्ति दें और बहुत ही जल्‍द हमारा ये प्‍यारा भाई ताकतवर बने और शक्तिशाली बन करके हि‍मालय की गोद में फले-फूले, यही प्रार्थना करते हुए मैं मेरी वाणी को विराम देता हूं।

बहुत-बहुत धन्‍यवाद

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Consistent efforts are being made to strengthen the NCC in our country: PM Modi
Viksit Bharat Young Leaders Dialogue is an effort to connect one lakh new youth to politics: PM
Heartening to see the youth help senior citizens become part of the digital revolution: PM Modi
Innovative efforts from Chennai, Hyderabad & Bihar to enhance children’s education: PM Modi
Indian diaspora has made their mark in different nations: PM Modi
A museum is being developed in Lothal, dedicated to showcasing India’s maritime heritage: PM Modi
#EkPedMaaKeNaam campaign has crossed the milestone of 100 crore trees planted in just 5 months: PM
Unique efforts are being made to revive the sparrows: PM Modi

My dear countrymen, Namaskar. 'Mann Ki Baat' means touching upon the collective efforts of the country; referring to the achievements of the country; discussing the strength of the people. 'Mann Ki Baat' means touching upon the dreams of the youth, the aspirations of the citizens of the country. I wait for 'Mann Ki Baat' throughout the month, so that I can communicate with you directly. There are innumerable messages! My earnest endeavour is to read as many messages as possible; to brainstorm on your suggestions.

Friends, today is a very special day - it is NCC Day. As soon as the name of NCC comes up, we remember our school-college days. I myself have been an NCC Cadet, so I can say with full confidence that the experience gained from it is invaluable for me. 'NCC' instills a spirit of discipline, leadership and service in the youth. You must have seen around you that whenever there is a disaster; be it a flood, an earthquake or an accident, NCC cadets unfailingly make themselves available there to help. Today, efforts are being undertaken continuously to strengthen NCC in the country. In 2014, about 14 lakh youth were associated with NCC. Now in 2024, more than 20 lakh youth are associated with NCC.

Compared to earlier times, provision for NCC has been made in five thousand new schools and colleges… and the biggest aspect is that earlier the number of girl cadets in NCC was just around 25% (percent). Now the number of girl cadets in NCC has risen to almost 40% (percent). The campaign to connect more and more youth residing along the border with NCC is also going on continuously. I would urge the youth to join NCC in maximum numbers. You will notice that no matter what career you choose, NCC will help you a lot in personality development. Friends, the role of the youth in building a developed India is very significant. When young minds come together and deliberate upon the country's future journey, positively, concrete paths emerge. You know that on the 12th of January, on the birth anniversary of Swami Vivekananda, the country celebrates 'Youth Day'. Next year is Swami Vivekananda's 162nd birth anniversary. This time it will be celebrated in a very special way. On this occasion, a Maha Kumbh of young minds is going to be held at Bharat Mandapam in Delhi on 11-12 January, and the name of this initiative is 'Vikasit Bharat Young Leaders Dialogue'. Crores of youth from all over India will participate in it. 2 thousand such youth selected from villages, blocks, districts, states will gather at Bharat Mandapam for the 'Vikasit Bharat Young Leaders Dialogue'. You might remember that from the ramparts of the Red Fort, I have urged such youths to join politics, none of whose family members or even the entire family have had a political background.


To connect 1 lakh such youths, new youths, to politics, many special campaigns will be run in the country. 'Vikasit Bharat Young Leaders Dialogue' is also one such effort. Experts from the country and abroad will grace this. Many national and international personalities would also be there. I will also be present in it for as much time as possible. The youth will get an opportunity to present their ideas directly before us. How can the country take these ideas forward? How can a solid roadmap be made? A blueprint will be prepared for this. So you too get ready; this is a great opportunity for those who are going to build the future of India, who are the future generation of the country. Come, let us build the country together, make the country developed.

My dear countrymen, in Mann ki Baat, we often talk about such youth. There are many youths who are working selflessly for the society and are engaged in finding solutions to numerous minor problems of the people. If we look around us, we see so many people who need some kind of help or information. I am happy to know that some youths have formed groups and addressed such issues as well. For example, Virendra, who lives in Lucknow, helps the elderly in the matter of Digital Life Certificate. As you know as per rules, all pensioners have to submit Life Certificate once a year. Till 2014, the process was such that the elderly had to go to the banks and submit it themselves. You can imagine how much inconvenience it used to cause to our elderly. Now this system has changed.

Now, by enabling the Digital Life Certificate, things have become very simple; the elderly do not have to go to the bank. Youths like Virendra have a major role in ensuring that the elderly do not face any problem on account of technology. They keep making the elderly of their neighbourhood aware about it. Not just that, they are also making the elderly tech savvy. Today, with such efforts, the number of people receiving Digital Life certificates has crossed the 80 lakh mark. Among these, more than 2 lakh are such elderly people whose age has crossed even 80.

Friends, in many cities, the youth are also coming forward to make the elderly a part of the digital revolution. Mahesh from Bhopal has taught many elderly people of his locality to make payments through mobile. These elderly people had smart phones, but there was no one to tell them their correct usage. The youth have also come forward to save the elderly from the risk of Digital Arrest. Rajiv from Ahmedabad warns people about the risk of Digital Arrest. I had discussed Digital Arrest in the last episode of 'Mann Ki Baat'. The elderly are the most common victims of such crimes. In such a situation, it is our responsibility to make them aware and help them stay safe from cyber fraud. We have to explain to people again and again that there is no provision of digital arrest in the government; this is a blatant lie, a conspiracy to trap people. I am happy that our young friends are participating in this work with full sensitivity and are motivating others as well.

My dear countrymen, these days many experiments are being conducted for the education of children. The effort is to enhance the creativity of our children and their love for books. It is said that 'books' are humans’ best friend and what better place than the library to strengthen this friendship. I want to share one such example from Chennai with you. Here one such library has been set up for children, which has become a hub of creativity and learning. It is known as Prakrith Arivagam. The idea of this library is the brainchild of Shriram Gopalan ji, who is associated with the world of technology. During his work abroad, he remained connected with the world of latest technology. But, he also kept thinking about developing the habit of reading and learning in children. After returning to India, he established Prakrith Arivagam. It has more than three thousand books, which children eagerly wait to read. Apart from books, different types of activities being organized in this library also attract children. Be it Story Telling sessions, Art Workshops, Memory Training Classes, Robotics Lessons or Public Speaking, there is something or the other, to the liking of everyone.

Friends, The Food for Thought Foundation has also established many wonderful libraries in Hyderabad. It’s their endeavor as well, to ensure that children get books to read with solid information on as many topics as possible. The Prayog library of Gopalganj in Bihar has started being talked about in many cities in the neighbourhood.
Apart from youths of around 12 villages getting the facility to read books from this library, this library is also providing other important facilities to the people. Some libraries are such that they are very useful for students in preparing for competitive examinations. It is indeed very heartening to note that the library is being used in the best possible way to strengthen the society. You too should develop friendship with books and see how it brings a change in your life.

My dear countrymen, I have returned from Guyana, a country in South America, the night before yesterday. Thousands of kilometres away from India, a ‘Mini India’ dwells in Guyana too. Around 180 years ago, people from India were taken to Guyana to work in the fields and for other tasks. Today, people of Indian origin in Guyana are leading the country in every field… be it politics, business, education or culture. The President of Guyana, Dr. Irfan Ali, is also of Indian origin and is proud of his Indian heritage. When I was in Guyana, a thought struck my mind which I am sharing with you in ‘Mann Ki Baat’. Just like Guyana, there are lakhs of Indians in dozens of countries across the world. Their ancestors have their own stories of decades; even those over 200-300 years ago. Can you be on the lookout for such stories of how Indian immigrants made their mark in different countries! How they took part in their freedom struggle! How they kept their Indian heritage alive! I want you to find out such true stories, and share them with me. You can also share these stories on the NaMo App or on MyGov with #IndianDiasporaStories.

Friends, you will also find an extraordinary project going on in Oman very interesting. Numerous Indian families have been living in Oman for many centuries. Most of them who have settled there are from Kutch in Gujarat. These people had created important trade links. Even today they have Omani citizenship, but Indianness is ingrained in their personae. With the support of the Indian Embassy in Oman and the National Archives of India, a team has started the work of preserving the history of these families. Thousands of documents have been collected under this campaign so far. These include diaries, account books, ledgers, letters and telegrams. Some of these documents even date back to the year 1838. These documents are full of sentiments. When they reached Oman years ago, what kind of life they lived, what kind of joys and sorrows they faced, and, how their relations with the people of Oman progressed. All of this is a part of these documents. The ‘Oral History Project’ is also an important basis of this mission. In this mission, senior people from there have shared their experiences. People have expressed in detail about their lifestyle there.

Friends, a similar ‘Oral History Project’ is being carried out in India as well. Under this project, history enthusiasts are collating the experiences of the victims during the period of partition of the country. Now, there are very few people left in the country who have witnessed the horrors of Partition. In such a situation, this effort has become even more significant.

Friends, the country, the place that preserves it’s history, its future is also secure. With this very thought in mind, an effort has been made in which a directory has been created to preserve the history of villages. A campaign is also going on in the country to preserve evidences related to India's ancient maritime capability. Under this series, a very big museum is also being built in Lothal. Apart from that, if you are aware of any manuscript, any historical document, any handwritten copy, you can preserve it with the help of National Archives of India.

Friends, I have come to know about another such effort being undertaken in Slovakia which is related to conserving and promoting our culture. Here, for the first time, our Upanishads have been translated into the Slovak language. These efforts also underscore the global influence of Indian culture. It is a matter of pride for all of us that there are crores of people across the world who cherish India in their hearts.

My dear countrymen, I now want to share with you one such achievement of the country which will make you happy and proud, and if you have not done it, you will probably regret it. A few months ago, we started the 'Ek Ped Maa Ke Naam' campaign. People from all over the country participated in this campaign with great enthusiasm. I am very happy to tell you that this campaign has crossed the important milestone of planting 100 crore trees. A 100 crore trees, that too, in just 5 months.

This has been possible only due to the tireless efforts of our countrymen. You will be proud to know one more fact related to this. The 'Ek Ped Maa Ke Naam' campaign is now spreading to other countries of the world as well. When I was in Guyana, I witnessed this campaign there as well. There, Guyana's President Dr. Irfan Ali, his mother in law, and other family members joined me in the 'Ek Ped Maa Ke Naam' campaign.

Friends, this campaign is going on continuously in different parts of the country. A record of tree planting was made in Indore, Madhya Pradesh under the campaign 'Ek Ped Maa Ke Naam' - more than 12 lakh trees were planted here in 24 hours. On account of this campaign, the barren area of Revati Hills of Indore will now turn into a green zone. A unique record was made through this campaign in Jaisalmer, Rajasthan - here a team of women planted 25 thousand trees in one hour. Mothers planted trees in the name of their mothers and inspired others too. Here, more than 5 thousand people planted trees at one location.

This too is a record in itself. Under the campaign 'Ek Ped Maa Ke Naam', many social organizations are planting trees according to local needs. Their effort is that wherever trees are planted, a complete eco system should develop in an environment friendly manner. Therefore, these organizations are planting medicinal plants at some places, and at other places, they are planting trees to facilitate nesting for birds. In Bihar, the women of 'Jeevika Self Help Group' are running a campaign to plant 75 lakh trees. The focus of these women is on fruit trees, so that income could also be generated in the future.

Friends, by joining this campaign, any person can plant a tree in the name of his mother. If the mother is with you, you can plant the tree along with her, otherwise you can become a part of this campaign by carrying her photograph with you. You can also post a selfie with the tree on mygov.in. We can never repay the debt of what our mother does for all of us, but by planting a tree in her name, we can keep her presence alive forever.

My dear countrymen, all of you must have seen sparrows chirping on roof tops or trees during your childhood. Sparrows are known as Kuruvi in Tamil and Malayalam, Pichhuka in Telugu and Gubbi in Kannada. Stories about sparrows are told in every language and culture. Sparrows play a very important role in maintaining bio-diversity around us, but today sparrows are hardly visible in cities. Due to increasing urbanization, sparrows have gone away from us. There are many children of today's generation who have seen sparrows only in pictures or videos. Some unique efforts are being made to bring back this lovely bird in the lives of such children. Chennai's Kudugal Trust has involved school children in its campaign to increase the sparrow population. The people of the organisation go to schools and tell the children how important sparrows are in everyday life. This organisation trains children to make sparrow nests. For this, the people of the organisation taught the children to make a small wooden house. In that, arrangements for food and shelter were made for the sparrows. These are homes that can be placed on the outer wall of any building or on a tree.

Children participated in this campaign with enthusiasm and started making nests for sparrows in large numbers. In the last 4 years, the organization has prepared ten thousand such nests for sparrows. With this initiative of the Kudugal Trust, the sparrow population has started rising in the surrounding areas. If you too make such efforts in your surroundings, sparrows will certainly again become a part of our lives. Friends, an organization in Mysuru, Karnataka has started a campaign called 'Early Bird' for children. This organization runs a special kind of library to tell children about birds. Not only this, it has prepared a 'Nature Education Kit' to create a sense of responsibility towards nature in children. This kit contains story books, games, activity sheets and jig-saw puzzles for children. This organization takes children from cities to villages and introduces them to birds. On account of the efforts of this organization, children have started recognizing many species of birds. The listeners of 'Mann Ki Baat' can also develop a different perspective in children to see and understand their surroundings through such efforts.

My dear countrymen, you must have noticed that as soon as someone mentions a 'government office', a picture of a pile of files emerges in your mind. You must have seen something similar in films too. So many jokes are made on these piles of files in government offices; so many stories have been written. These files used to gather dust after lying in offices for years and years, and would start accumulating dirt.

A special Swachhata Abhiyan was launched to remove such decades-old files and scrap. You will be happy to know that this campaign has brought amazing results in government departments. Cleanliness has freed up a lot of space in offices. This has also brought in a sense of ownership among the people working in the offices. They have also become serious about keeping their work place clean.

Friends, you must have often heard elders say that where there is cleanliness, Goddess Lakshmi resides there. The concept of 'waste to wealth' is very old in our country. In many parts of the country, the 'youth' are transforming items considered useless, that is waste, to wealth. They are innovating in different ways. They are earning money from that; generating avenues of employment. These youth are also promoting a sustainable lifestyle through their efforts. The effort of two daughters of Mumbai is really very inspiring. These two daughters named Akshara and Prakriti are creating fashion items through fabric scraps. You also know that the scraps that come out during cutting and stitching of clothes are considered useless and thrown away. Akshara and Prakriti's team transforms the same fabric scraps into fashion products. Caps and bags made from cuttings are literally flying off the shelves.

Friends, a good initiative is on in Kanpur, UP as well, pertaining to cleanliness. Here some people go for daily morning walks picking up plastic and other garbage spread on the banks of the Ganga. This group has been named the 'Kanpur Ploggers Group'.

This campaign was started by a few friends collectively. Gradually, it became a big campaign of public participation. Many people of the city have joined this campaign. Its members have now started collecting garbage from shops and houses as well. Tree guards are made from this garbage in the Recycle Plant, i.e., people of this group also protect the plants with tree guards made from garbage.

Friends, Iitisha from Assam too is an example of how tiny efforts can lead to big success. Iitisha has studied in Delhi and Pune. Iitisha has left the glitz and glamour of the corporate world and is engaged in cleaning the Sangti Valley of Arunachal. A lot of plastic waste had started accumulating there because of tourists. The river there, which was once pristine, had become polluted because of the plastic waste. Iitisha is working with the local people to clean it. People of her group spread awareness among the tourists there and put up bamboo dustbins all over the valley to collect plastic waste.

Friends, such efforts lend momentum to India's Swachhata Abhiyan. This is a perpetual campaign. This must certainly be happening around you as well. Do keep writing to me about such efforts.

Friends, that is all for this episode of Mann Ki Baat. I eagerly await your feedback, letters and suggestions throughout the month. Your messages every month inspire me to do even better. We will meet again next month in another episode of Mann Ki Baat with new achievements of the country and countrymen. Until then, my best wishes to all the countrymen. Thank you very much.