We are focussing on Jan Dhan, Van Dhan and Gobar Dhan: PM Modi in Anand, Gujarat

Published By : Admin | September 30, 2018 | 13:00 IST
QuotePM Modi says that his government is focussing on Jan Dhan, Van Dhan and Gobar Dhan
QuoteGuided by Sardar Patel, Pritamrai Desai Ji worked on cooperative housing in a big way in Ahmedabad. These efforts gave wings to the aspirations of several people: PM in Anand
QuoteAmul is not only about milk processing. This is an excellent model of empowerment, says PM Modi
QuoteSardar Patel worked on cooperative housing in a big way: PM Modi
QuoteToday, the time has come to give importance to innovation and value addition: PM Modi in Anand

मंच पर विराजमान सभी महानुभाव और विशाल संख्‍या में पधारे हुए मेरे प्‍यारे भाइयो और बहनों।

कैम छो? मैं देख रहा हूं कि इतना बड़ा पंडाल भी छोटा पड़ गया। वहां बहुत लोग बाहर धूप में खड़े हैं। आप सब इतनी बड़ी संख्‍या में आशीर्वाद देने के लिए आए, इसके लिए हम सब आपके बहुत-बहुत आभारी हैं। आज करीब करीब 1100 करोड़ रुपयों के प्रकल्‍प का उद्घाटन, लोकार्पण या शिलान्‍यास करने का आप सबने मुझे अवसर दिया। आपने मुझे ये जो सम्‍मान दिया है, इसके लिए भी सहकारिता आंदोलन से जुड़े हुए मेरे सभी किसान परिवारों का मैं आदरपूर्वक नमन करके धन्‍यवाद करता हूं।

आज दुनिया के 40 से भी ज्‍यादा देशों में अमूल ब्रांड, इसकी एक पहचान बन गई है। और मैं हैरान था कुछ देशों में जब मुझे जाने का अवसर आया तो कुछ जो delegates मिलना चाहते थे; कुछ भारतीय समाज से वहां रहने वाले लोग थे, कुछ वहां के लोग थे और एक बात कहने वाले मिल जाते थे कि हमारे यहां भी अमूल के प्रॉडक्‍ट की सप्‍लाई का कुछ इंतजाम कीजिए। और ये बात जब सुनता था तो इतना गर्व होता था कि किसानों के सहकारिता आंदोलन से करीब-करीब सात दशक के लगातार पुरुषार्थ का परिणाम है कि आज देश और देश के बाहर अमूल एक पहचान बन गया है, अमूल एक प्रेरणा बन गया है, अमूल एक अनिवार्यता बन गया है। ये सिद्धि छोटी नहीं है। ये बहुत बड़ा achievement है। ये एक सिर्फ कोई उत्‍पादन करने वाला उद्योग मात्र नहीं है, ये कोई सिर्फ milk processing की प्रक्रिया मात्र नहीं है; ये एक alternate अर्थव्‍यवस्‍था का model भी है।

एक तरफ समाजवादी अर्थ रचना, दूसरी तरफ पूंजीवादी अर्थ रचना; एक तरफ शासन के कब्‍जे वाली अर्थव्‍यवस्‍था, दूसरी तरफ धन्‍ना सेठों के कब्‍जे वाली अर्थव्‍यवस्‍था। दुनिया इन्‍हीं दो व्‍यवस्‍थाओं से परिचित रही है। सरदार साहब जैसे महापुरुषों ने उस बीज को बोया जो आज तीसरी अर्थव्‍यवस्‍था का नमूना बन करके उभरा है, जहां न सरकार का कब्‍जा होगा, न धन्‍ना सेठों का कब्‍जा होगा; वो सहकारिता आंदोलन होगा और किसानों के, नागरिकों के, जनता-जनार्दन की सहकारिता से अर्थव्‍यवस्‍था बनेगी, पनपेगी, बढ़ेगी और हर कोई उसका हिस्‍सेदार होगा।

ये अर्थव्‍यवस्‍था का एक ऐसा model है जो समाजवाद और पूंजीवाद को एक सार्थक alternate प्रदान करता है। हम सब भलीभांति परिचित हैं कि आजादी के करीब एक साल पहले इस अमूल का एक विधिवत रूप तैयार हुआ था, लेकिन सहकारिता आंदोलन इससे भी पहले था। बहुत कम लोगों को पता होगा जब सरदार वल्‍लभभाई पटेल अहमदाबाद म्‍युनिसिपॉलिटी के, उस समय कॉरपोरेशन नहीं था, नगरपालिका थी, उस नगरपालिका के चेयरमैन उनका चुनाव हुआ, वो नगरपालिका के अध्‍यक्ष बने। और दरियापुर से चुनाव जीत करके आए थे जहां कभी हमारे कौशिक भाई जीतते थे। और सरदार साहब म्‍युनिसिपॉलिटी में सिर्फ एक वोट से जीत करके आए थे, एक वोट से। और बाद में चेयरमैन बने।

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गुजरात में पहली बार urban development का प्‍लान होना चाहिए, urban development का planning होना चाहिए, इस concept जब सरदार साहब अहमदाबाद म्‍युनिसिपॉलिटी के प्रमुख थे, तब पहली बार गुजरात में introduce हुआ। और उसी समय उन्‍होंने सबसे पहला प्रयोग किया cooperative housing society का। सहकारिता के आधार पर गृह निर्माण का काम, मध्‍यमवर्गीय परिवार को मकान मिले। और उस समय एक प्रीतम राय देसाई हुआ करते थे, जिनको सरदार साहब ने काम दिया और गुजरात में वरदेश में पहली housing society बनी जिसका नेतृत्‍व, मार्गदर्शन, रचना सरदार साहब के मार्गदर्शन में प्रीतम राय देसाई ने की थी। और 28 जनवरी nineteen twenty seven, 28 जनवरी, 1927 को सरदार साहब ने उसका उद्घाटन किया था। और उद्घाटन करते साथ उन्‍होंने एक नया model है विकास का, इस बात को लोग याद रखें इसलिए प्रीतम राय देसाई का गौरव करते हुए उन्‍होंने उस सोसायटी का नाम प्रीतम नगर रखा था। आज भी अहमदाबाद में प्रीतम नगर इस सहकारी आंदोलन की पहली सफल यानी एक प्रकार से सफलता की पहली स्‍मृति मौजूद है। और उसी में से आगे जाते-जाते हर क्षेत्र में सहकारिता की प्रवृत्ति को और खास करके गुजरात और महाराष्‍ट्र; क्‍योंकि उस समय बृहद महाराष्‍ट्र था। इस पूरे क्षेत्र में सहकारिता-ये व्‍यवस्‍था नहीं, सहकारिता-ये नियमों के बंधन से बंधी हुई कोई रचना नहीं, सहकारिता-एक संस्‍कार के रूप में हमारे यहां जनमानस में स्थिर हुई और उसी का परिणाम है कि आज गुजरात के सहकारिता आंदोलन के साथ जुड़े लोग सारे देश के लिए एक मॉडल के रूप में काम करते हैं।

और अमूल से आगे उत्‍तर गुजरात ने इसमें अपना कदम रखा। दुग्‍ध सागर डेरी बनी, बनास डेरी बनी। कभी-कभी मैं सोचता हूं इस दृष्टिवान अगर हमारे यहां सहकारिता का नेतृत्‍व करने वाले लोग न होते तो गुजरात जो दस साल में सात साल अकाल की परिस्थिति में जीने के लिए मजबूर हुआ करता है, उस समय वो मुसीबत थी, आज वो कम हुआ है। वो किसान, वो पशुपालक, इस कठिनाइयों से कैसे गुजारा करता है। ये दुग्‍ध उत्‍पादक मंडली ने किसानों की उस समस्‍या का समाधान खोजा और अकाल हो जाए तो भी पशुपालन और दूध बेच करके किसान अपना गुजारा कर लेता था, पशुपालक गुजारा कर रहा था और जिंदगी चल पड़ती थी।

लेकिन बाद में वो भी एक समय आया, किसी न किसी कारणवश गांधीनगर में ऐसे लोग बैठे कि जिन्‍होंने इस सहकारिता आंदोलन डेरी उद्योग को रुकावटें पैदा करने वाले नियम बनाए। कच्‍छ–सौराष्‍ट्र में एक प्रकार से डेरी बनाना-चलाना एक बोझ बन गया, जबकि पशुपालन कच्‍छ-सौराष्‍ट्र में ज्‍यादा था।

जब हम लोगों को सेवा करने का मौका मिला हमने रूप बदल दिया। हमने कहा- हर जगह पर encourage किया जाए। और मैं अनुभव कर रहा हूं आज करीब-करीब गुजरात के सभी जिलों में पशुपालक के लिए, किसान के लिए, दुग्‍ध उत्‍पादक के लिए एक बहुत बड़ा अवसर बन गया है।

कुछ लोग होते हैं जो अपने-आपको बड़े ज्ञानी मानते हैं, बहुत विद्ववान मानते हैं और जब उनके दायरे के बाहर की चीज आती है तो उनका मन, उनका अहंकार उसे स्‍वीकार करने को तैयार नहीं होता। विरोध करने की हिम्‍मत नहीं होती है और इसलिए उसका मखौल उड़ाना, मजाक उड़ाना और ऐसी हल्‍की-हल्‍की बातें करना, जिसकी आप कल्‍पना नहीं कर सकते।

ऐसे लोग होते हैं और मुझे बराबर याद है जब कच्‍छ में white desert रणोत्‍सव का आरंभ कर रहे थे, रणोत्‍वस को बढ़ा रहे थे, भूकंप के बाद कच्‍छ की economy को vibrant करने के लिए अनेकविद् योजनाएं कर रहे थे तो एक बार वहां अपने भाषण में मैंने कहा था। मैंने कहा था कि जहां तक मेरी जानकारी है, जो camel का milk होता है ऊंटणी नो दूध, वो बहुत अधिक nutrition value वाला होता है। हमारे बच्‍चों के विकास के लिए बहुत काम आ सकता है। हम पता नहीं उस समय गुजरात के मुख्‍यमंत्री नरेन्‍द्र मोदी ने क्‍या गुनाह कर दिया कि camel के दूध को ले करके मैं जहां जाता, मेरी मजाक उड़ाई जाती थी, कार्टून बनते थे, मखौल उड़ाया जाता था, पता नहीं ऐसी-ऐसी भद्दी comment होती थी। आज मुझे खुशी हुई कि अमूल की camel के दूध से बनी हुई चॉकलेट, बहुत बड़ी उसकी मांग है। और मुझे अभी रामसिंह भाई बता रहे थे कि गाय के दूध से डबल कीमत camel के दूध की आज हो गई है।

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कभी-कभी अज्ञानवश लोग क्‍या हाल कर देते हैं, इसका ये उदाहरण है। अब रेगिस्‍तान के अंदर ऊंट को पालन करने वाले व्‍‍यक्ति को जब इतना बड़ा मार्केट मिलेगा तो उसकी रोजी-रोटी का एक नया संबल तैयार हो जाएगा, और मुझे खुशी है कि आज इतने सालों के बाद अमूल ने मेरे इस सपने को साकार कर दिया। पोषण के लिए, nutrition के लिए हमारे देश में बहुत कुछ करने की आवश्‍यकता हम महसूस करते आए हैं।

जब मैं गुजरात में मुख्‍यमंत्री था, तब भी मैं पोषण मिशन को ले करके बहुत कुछ चीजें initiate करता था। क्‍योंकि मेरा ये conviction रहा है कि हमारे यहां मां और बच्‍चा, अगर ये स्‍वस्‍थ होंगे तो हिन्‍दुस्‍तान कभी बीमार नहीं हो सकता है, हमारा भारत भी स्‍वस्‍थ रह सकता है।

मुझे आज एक और खुशी हुई कि यहां पर solar energy and cooperative movement, इस दोनों का मिलन किया गया है। अगर खेत में फसल पैदा होती है तब खेत में बिजली भी पैदा होगी। और मैं उन किसानों का अभिनंदन करता हूं, उन 11 किसानों ने मिल करके, cooperative बना करके बिजली पैदा की, खेती में उपयोग किया; जो अधिक थी वो राज्‍य सरकार की नीति के कारण अब खरीदी जा रही है। और मुझे बताया गया कि इस cooperative को साल भर में 50 हजार रुपये की अतिरिक्‍त इनकम होगी। सहकारिता क्षेत्र में ये चरोत्‍तर की धरती हर वक्‍त, सदा नए प्रयोग करने के लिए हिम्‍मत रखती है।

भारत सरकार ने तीन महत्‍वपूर्ण योजनाओं को आगे बढ़ाया- एक जनधन, दूसरा वनधन और तीसरा गोबरधन। जनधन, वनधन, गोबरधन। Waste में से Wealth, पशु का जो waste हैं उसमें से भी wealth और गोबर में से गैस बनाना, बिजली बनाना, फर्टिलाइजर बनाना, और मुझे बराबर याद है कि Dakor Umreth के पास हमारे एक बड़े उत्‍साही कार्यकर्ता साथी थे, उन्‍होंने 10-12 गांव से सारा गोबर इकट्ठा करने का प्रोजेक्‍ट शुरू किया। और एक बड़ा गोबर-गैस प्‍लांट बना करके अगल-बगल के गांवों में वो गैस पहुंचाने की योजना उस समय करते थे। आज भी जैसे 11 किसान इकट्ठे हो करके एक सोलान पंप के लिए बिजली पैदा करने का काम और बाद में बिजली बेचने का काम, खेती भी चलती रहे और सोलार की भी खेती होती रहे; वैसा ही 11-11 गांव इकट्ठे हो करके बहुत बड़ा उत्‍तम गोबरधन का भी मिशन मोड में काम कर सकते हैं।

मैं आज चरोतर की धरती पर आया हूं, सरदार साहब की तपस्‍या से, अनेक सहकारी क्षेत्र के महापुरुषों की तपस्‍या से यहां जो काम, यहां के जो संस्‍कार हैं, मैं आशा करता हूं कि आने वाले दिनों में अमूल मार्गदर्शन करे, और लोग मार्गदर्शन करें और इस गोबरधन योजना को हम सच्‍चे अर्थ में स्‍वच्‍छ भारत अभियान भी होगा, waste में से wealth होगा, clean energy मिलेगी और देश को विदेशों से जो चीजें लानी पड़ रही हैं उस पर depend नहीं होना पड़ेगा। हम उसमें देश सेवा का एक अच्‍छा रास्‍ता खुलेगा। आने वाले दिनों में उस काम को भी यहां के लोग अगर करेंगे तो देश के लिए एक बहुत बड़ा नमूने का रूप, काम हो सकता है, ऐसा मेरा विश्‍वास है।

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अब दो साल के बाद अमूल को 75 साल हो जाएंगे। और 2022 में भारत की आजादी को 75 साल हो जाएंगे। मैंने देखा है कि अमूल, कभी रुकने का नाम लेना, ये अमूल नहीं है। वो नया सोचना, नया करना, साहस करना, ये अमूल की प्रकृत्ति में है। यहां की पूरी जो टोली है, यहां का जो work culture है, इसको संभालने वाले जो professionals हैं, यहां के जो सहकारिता आंदोलन के नेता हैं, सबका मैंने क्‍योंकि मैं इसके साथ सालों से जुड़ा हुआ हूं, इसको समझने का हमेशा मैंने प्रयास किया है। वे साहसिक है, नई चीज करने के स्‍वभाव के हैं।

मैं अमूल में बैठे हुए सभी professionals से, अमूल का नेतृत्‍व करने वाले सहकारी आंदोलन के सभी नेताओं से आज एक आग्रह करने आया हूं। जब अमूल के 75 साल होंगे और जब हिन्‍दुस्‍तान की आजादी के 75 साल होंगे; दोनों साल को ध्‍यान में रखते हुए क्‍या अमूल कोई नए लक्ष्‍य तय कर सकता है? नए target निर्धारित कर सकता है क्‍या? और इस 75 साल के निमित्‍त हम ऐसा 75 साल बनाएंगे कि हम अभी से, हमारे पास दो-तीन साल का समय है। देश की आजादी के बीच में हमारे पास समय है 75 साल में। तो हम कुछ ऐसे लक्ष्‍य तय करके हमारे जितने भी लोग हमारे साथ जुड़े हैं, उनको ले करके देश और दुनिया को कोई नई चीज दे सकते हैं क्‍या?

आज पूरी दुनिया में milk processing में हम दस नंबर पर हैं। अगर अमूल चाहे, संकल्‍प करे कि आजादी के 75 साल होते-होते हम दस नंबर से बढ़ करके तीन नंबर पर पहुचने का निर्धारण करके चल सकते हैं क्‍या? मुझे मुश्किल नहीं लग रहा है।

हमारे देश में एक समय था जब हम अभाव के प्रभाव में जीते थे। अभाव की समस्‍याओं से जूझते थे। और तब शासन की निर्णय प्रक्रिया, सोचने की प्रक्रिया, काम करने के तरीके अलग हुआ करते थे। हमने बहुत तेजी से उसमें से बाहर आना देश के लिए अनिवार्य हो गया है। आज हमारे सामने संकट अभाव का नहीं है। आज देश के सामने चुनौती है विपुलता की। इतनी बड़ी मात्रा में किसान पैदावार करता है कि कभी-कभी बाजार गिर जाता है, किसान का भी नुकसान हो जाता है क्‍योंकि विपलुता है।

पहले समय था कि उत्‍पादन बहुत कम होता था, बाहर से हम- गेहूं तक बाहर से ला करके पेट भरते थे। जैसे श्‍वेत क्रांति हुई वैसे कृषि क्रांति हुई; देश के अन्‍न के भंडार भरे। लेकिन अब हमारी आवश्‍यकता से भी ज्‍यादा कुछ चीजों में हम ज्‍यादा हैं। इस स्थिति का उपाय, उसका processing होता है, value addition होता है। अगर हम इस डेरी उद्योग को न बढ़ाते, दूध के नए-नए processing, नए-नए product न बनाते तो शायद ये दुग्‍ध उत्‍पादन भी किसान छोड़ देता, पशुपालन छोड़ देता क्‍योंकि उसको टिकने की संभावना ही नहीं थी। लेकिन ये व्‍यवस्‍था होने के कारण किसान दुग्‍ध उत्‍पादन में आज भी उसी उत्‍साह के साथ जुड़ा हुआ है।

उसी प्रकार से हमारे लिए agriculture product, उसमें भी value addition हमारे लिए बहुत जरूरी है। जब मैं गुजरात का मुख्‍यमंत्री था, तो यहीं आणंद में एक दिन कृषि महोत्‍सव लगा था तो मैं उसमें आया था। तो मेरा एक पुराना साथी मुझे वहां मिल गया। अब मैं भी बड़ा हैरान था, कोट-पैंट-टाई पहन करके खड़ा था- मैंने कहा क्‍या बात है भाई, तुम तो बहुत बदल गए हो, क्‍या कर रहे हो आजकल? तो उसने मुझे क्‍या कहा- आपणे यहां सरद होए जना, सदर माने पांदड़ा, ऐनो पावडर बनावरी बेचूं सूं, अने बहुत मोटी कमाई करूं सूं। इसको कहते हैं value addition. यानी पहले सरद वो पहलां पड़ो थों, पांदड़ा पहले पड़ा थां नीचे पड़ता थां, पण ऐनी nutrition value नी खबर नो थी। कोई ए काम में लोग्‍यो नो तू। हमारी हर एग्रो प्रॉडक्‍ट में वो ताकत है। टमाटर पैदा ज्‍यादा होते हैं, टमाटर का मार्केट डाउन हो जाता है, टमाटर दो दिन, तीन दिन में खराब हो जाते हैं, लेकिन अगर टमाटर का value addition होता है, processing होता है, ketchup बन जाता है, बढ़िया सी बोतल में पैक हो जाता है, महीनों तक खराब नहीं होता है और दुनिया के बाजार में बिक जाता है। हमारे किसान को कभी नुकसान नहीं होता है। और इसलिए जिस प्रकार से दूध का processing, उसने हमारे किसानों को एक बड़ी ताकत दी है। आने वाले दिनों में हमने agriculture product का भी processing, value addition, मूल्‍य वृद्धि, इसको हमें बल देना है। और इसीलिए भारत सरकार ने प्रधानमंत्री कृषि संपदा योजना के तहत हिन्‍दुस्‍तान में हमारे कृषि उत्‍पादन को और अधिक बल मिले, उस दिशा में हम काम कर रहे हैं।

मैंने कभी हमारे इस डेरी वालों से कहा था- अमरेली और बनास डेरी ने उस काम को आगे बढ़ाया। शायद ओरों ने किया होगा लेकिन मुझे शायद जानकारी न हो। उनको मैंने कहा था कि जैसे हमने श्‍वेत क्रांति की वैसे हमें sweet revolution भी करना चाहिए। और जो हमारे किसान भाई इस दुग्‍ध मंडली से जुड़े हैं, उनको मधुमक्‍खी पालन का भी ट्रेनिंग देना चाहिए। और वो जो शहद उत्‍पादन करें, जब हम दूध लेने जाएं, उसके साथ शहद भी ले करके आएं। और जैसे इस प्‍लांट में उसका पैकेजिंग करते हैं, वैसा ही एक और पैकेजिंग करें। अमरेली जिला और बनास, दोनों डेयरी आज शहद उत्‍पादन की दिशा में बहुत बड़ा योगदान कर रहे हैं। हिन्‍दुस्‍तान में पहले जितना शहद उत्‍पादन होता था, उससे आज अनेक गुना शहद उत्‍पादन होना शुरू हुआ है और वो विदेशों में जाने लगा है। अगर वो बिकेगा नहीं, घर में खाया जाएगा तो भी बच्‍चों के पोषण में काम आएगा। इस ओर extra मेहनत नहीं है। जैसे वो ही खेत छोटा सा क्‍यो न हो, अगर उस पर सोलर पैनल लगाएं, अधिक मूल्‍य मिल जाएगा। उसी के अंदर मधुमक्‍खी पालन की कुछ चीजें लगा दें, और अधिक कमाई हो जाएगी। इसके लिए हम 2022, आजादी के 75 साल तक हिन्‍दुस्‍तान के किसान की आय डबल करने के लिए ऐसे अनेक नए-नए प्रकल्‍पों को जोड़ रहे हैं।

मैं आशा करता हूं कि हम इसके साथ जुड़ें। और एक विचार मैंने पहले रखा था, मैं इसको कर नहीं पाया जब मैं यहां था, लेकिन हम कर सकते हैं। जैसे यहां take home ration, इसके विषय में अच्‍छा काम हुआ है। यहां पर बच्‍चों के पोषण के लिए बाल अमूल की रचना के विषय में अच्‍छा काम हुआ है। हम मध्‍यान्‍ह भोजन की दिशा में भी बहुत बड़ा काम कर सकते हैं। जिन गांवों में हम दूध लेने जाते हैं, centrally अगर हम बड़ा कुकिंग का प्‍लांट लगाएं, और जब हमारी गाड़ी दूध लेने जाती है सुबह तो साथ में वहां जो स्‍कूल होगी, उन बच्‍चों के लिए बहुत बढ़िया टिफिन के अंदर मध्‍यान्‍ह भोजन ले करके जाएं, स्‍कूल के बच्‍चों के लिए वहां टिफिन छोड़ दिया जाए। टिुफिन भी ऐसा बढ़िया हो कि गरम-गरम खाना मिले और जब दूसरे दिन जब दूध वापिस आता है तो साथ में खाली टिफिन भी चला आए। कोई extra transportation का खर्च किए बिना हम आराम से, हमारी जहां-जहां दूध मंडली है वहां के स्‍कूलों में सरकार पैसे देती है, हम सिर्फ management करें।

मैं विश्‍वास दिलाता हूं जिस प्रकार से इस्‍कॉन के द्वारा मध्‍यानह भोजन योजना को एक ताकत मिली है, हमारी सभी डेरी बहुत उत्‍तम तरीके से हमारे इन बच्‍चों को इसी व्‍यवस्‍था के तहत खाना पहुंचा सकती हैं। एक ही व्‍यवस्‍था का multiple utility, इसको ध्‍यान में रख करके अगर हम योजनाएं बनाएंगे, मैं विश्‍वास से कहता हूं कि हम सिर्फ कुछ सीमित क्षेत्रों में नहीं, जीवन के हर क्षेत्र में प्रभाव पैदा करने का काम कर सकते हैं।

मुझे याद है धर्मच के हमारे लोग, पूरे देश में मैंने देखा है कि जो गोचर की जमीन होती है, उस पर हमेशा झगड़ा होता है। किसी ने encroachment कर दिया, ढिकना कर दिया, फलाना कर दिया। लेकिन हमारे धर्मच के भाइयों ने सालों पहले cooperative society बनाई और गोचर का विकास cooperative पर किया और daily, green grass home delivery देते थे उस समय। आज तो मुझे मालूम नहीं। मैं पहले कभी आया करता था। होम डिलीवरी देते थे green grass. अगर दो पशु हैं तो आपको इतना किलो चाहिए, पहुंचा देते थे। और उसमें से जो कमाई होती थी उससे वो गोचर की भूमि के development का आधुनिक काम उन्‍होंने खड़ा किया।

मेरा कहने का तात्‍पर्य ये है कि यहां की सोच में सहकारिता के संस्‍कार पड़े हैं। हम इस सहकारिता का व्‍यापक रूप कैसे बनाएं, हम कैसे और चीजों के साथ जोड़ें, और उसको आगे बढ़ाने की दिशा में हम कैसे काम करें।

मैं फिर एक बार आज अमूल परिवार को इस चरोतर की धरती के मेरे प्रगतिशील किसान पुत्रों को, इस धरती के महा मनीषी सरदार वल्‍लभभाई पटेल को स्‍मरण करते हुए और उन्‍होंने जो उत्‍तम परम्‍परा बनाई है, उस परम्‍परा से जुड़े हुए सहकारी क्षेत्र को समर्पित सभी लोगों को आदरपूर्वक स्‍मरण करते हुए, मैं आज इस बहुत बड़ी योजना को, अनेकविद् योजनाओं को गुजरात की धरती को, देश की धरती का समर्पित करते हुए अत्‍यंत गर्व की अनुभूति के साथ आप सबको बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं और भारत सरकार की तरफ से विश्‍वास दिलाता हूं, इन सारे प्रकल्‍पों में उसे आगे बढ़ाने में दिल्‍ली की सरकार कभी पीछे नहीं रहेगी। भारत सरकार कंधे से कंधा मिला करके इसकी प्रगति के लिए आपकी हिस्‍सेदार बनेगी। इसी एक अभ्‍यर्थना के साथ आप सबका बहुत-बहुत धन्‍यवाद। मेरे साथ पूरी ताकत से बोलेंगे-

भारत माता की - जय

क्‍यों भाई, क्‍या हो गया, ये मेरा चरोतर है। आवाज ऐसी नहीं होती।

भारत माता की – जय।

ये बात हुई, शाबास।

धन्‍यवाद।

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Urban areas are our growth centres, we will have to make urban bodies growth centres of economy: PM Modi in Gandhinagar
May 27, 2025
QuoteTerrorist activities are no longer proxy war but well thought out strategy, so the response will also be in a similar way: PM
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QuoteUrban areas are our growth centres, we will have to make urban bodies growth centres of economy: PM
QuoteToday we have around two lakh Start-Ups ,most of them are in Tier2-Tier 3 cities and being led by our daughters: PM
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QuoteWe should be proud of our brand “Made in India”: PM

भारत माता की जय! भारत माता की जय!

क्यों ये सब तिरंगे नीचे हो गए हैं?

भारत माता की जय! भारत माता की जय! भारत माता की जय!

मंच पर विराजमान गुजरात के गवर्नर आचार्य देवव्रत जी, यहां के लोकप्रिय मुख्यमंत्री श्रीमान भूपेंद्र भाई पटेल, केंद्र में मंत्रिमंडल के मेरे सहयोगी मनोहर लाल जी, सी आर पाटिल जी, गुजरात सरकार के अन्य मंत्री गण, सांसदगण, विधायक गण और गुजरात के कोने-कोने से यहां उपस्थित मेरे प्यारे भाइयों और बहनों,

मैं दो दिन से गुजरात में हूं। कल मुझे वडोदरा, दाहोद, भुज, अहमदाबाद और आज सुबह-सुबह गांधी नगर, मैं जहां-जहां गया, ऐसा लग रहा है, देशभक्ति का जवाब गर्जना करता सिंदुरिया सागर, सिंदुरिया सागर की गर्जना और लहराता तिरंगा, जन-मन के हृदय में मातृभूमि के प्रति अपार प्रेम, एक ऐसा नजारा था, एक ऐसा दृश्य था और ये सिर्फ गुजरात में नहीं, हिन्‍दुस्‍तान के कोने-कोने में है। हर हिन्दुस्तानी के दिल में है। शरीर कितना ही स्वस्थ क्यों न हो, लेकिन अगर एक कांटा चुभता है, तो पूरा शरीर परेशान रहता है। अब हमने तय कर लिया है, उस कांटे को निकाल के रहेंगे।

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साथियों,

1947 में जब मां भारती के टुकड़े हुए, कटनी चाहिए तो ये तो जंजीरे लेकिन कांट दी गई भुजाएं। देश के तीन टुकड़े कर दिए गए। और उसी रात पहला आतंकवादी हमला कश्मीर की धरती पर हुआ। मां भारती का एक हिस्सा आतंकवादियों के बलबूते पर, मुजाहिदों के नाम पर पाकिस्तान ने हड़प लिया। अगर उसी दिन इन मुजाहिदों को मौत के घाट उतार दिया गया होता और सरदार पटेल की इच्छा थी कि पीओके वापस नहीं आता है, तब तक सेना रूकनी नहीं चाहिए। लेकिन सरदार साहब की बात मानी नहीं गई और ये मुजाहिदीन जो लहू चख गए थे, वो सिलसिला 75 साल से चला है। पहलगाम में भी उसी का विकृत रूप था। 75 साल तक हम झेलते रहे हैं और पाकिस्तान के साथ जब युद्ध की नौबत आई, तीनों बार भारत की सैन्य शक्ति ने पाकिस्तान को धूल चटा दी। और पाकिस्तान समझ गया कि लड़ाई में वो भारत से जीत नहीं सकते हैं और इसलिए उसने प्रॉक्सी वार चालू किया। सैन्‍य प्रशिक्षण होता है, सैन्‍य प्रशिक्षित आतंकवादी भारत भेजे जाते हैं और निर्दोष-निहत्थे लोग कोई यात्रा करने गया है, कोई बस में जा रहा है, कोई होटल में बैठा है, कोई टूरिस्‍ट बन कर जा रहा है। जहां मौका मिला, वह मारते रहे, मारते रहे, मारते रहे और हम सहते रहे। आप मुझे बताइए, क्या यह अब सहना चाहिए? क्या गोली का जवाब गोले से देना चाहिए? ईट का जवाब पत्थर से देना चाहिए? इस कांटे को जड़ से उखाड़ देना चाहिए?

साथियों,

यह देश उस महान संस्कृति-परंपरा को लेकर चला है, वसुधैव कुटुंबकम, ये हमारे संस्कार हैं, ये हमारा चरित्र है, सदियों से हमने इसे जिया है। हम पूरे विश्व को एक परिवार मानते हैं। हम अपने पड़ोसियों का भी सुख चाहते हैं। वह भी सुख-चैन से जिये, हमें भी सुख-चैन से जीने दें। ये हमारा हजारों साल से चिंतन रहा है। लेकिन जब बार-बार हमारे सामर्थ्य को ललकारा जाए, तो यह देश वीरों की भी भूमि है। आज तक जिसे हम प्रॉक्सी वॉर कहते थे, 6 मई के बाद जो दृश्य देखे गए, उसके बाद हम इसे प्रॉक्सी वॉर कहने की गलती नहीं कर सकते हैं। और इसका कारण है, जब आतंकवाद के 9 ठिकाने तय करके 22 मिनट में साथियों, 22 मिनट में, उनको ध्वस्त कर दिया। और इस बार तो सब कैमरा के सामने किया, सारी व्यवस्था रखी थी। ताकि हमारे घर में कोई सबूत ना मांगे। अब हमें सबूत नहीं देना पड़ रहा है, वो उस तरफ वाला दे रहा है। और मैं इसलिए कहता हूं, अब यह प्रॉक्सी वॉर नहीं कह सकते इसको क्योंकि जो आतंकवादियों के जनाजे निकले, 6 मई के बाद जिन का कत्ल हुआ, उस जनाजे को स्टेट ऑनर दिया गया पाकिस्तान में, उनके कॉफिन पर पाकिस्तान के झंडे लगाए गए, उनकी सेना ने उनको सैल्यूट दी, यह सिद्ध करता है कि आतंकवादी गतिविधियां, ये प्रॉक्सी वॉर नहीं है। यह आप की सोची समझी युद्ध की रणनीति है। आप वॉर ही कर रहे हैं, तो उसका जवाब भी वैसे ही मिलेगा। हम अपने काम में लगे थे, प्रगति की राह पर चले थे। हम सबका भला चाहते हैं और मुसीबत में मदद भी करते हैं। लेकिन बदले में खून की नदियां बहती हैं। मैं नई पीढ़ी को कहना चाहता हूं, देश को कैसे बर्बाद किया गया है? 1960 में जो इंडस वॉटर ट्रीटी हुई है। अगर उसकी बारीकी में जाएंगे, तो आप चौक जाएंगे। यहाँ तक तय हुआ है उसमें, कि जो जम्मू कश्मीर की अन्‍य नदियों पर डैम बने हैं, उन डैम का सफाई का काम नहीं किया जाएगा। डिसिल्टिंग नहीं किया जाएगा। सफाई के लिए जो नीचे की तरफ गेट हैं, वह नहीं खोले जाएंगे। 60 साल तक यह गेट नहीं खोले गए और जिसमें शत प्रतिशत पानी भरना चाहिए था, धीरे-धीरे इसकी कैपेसिटी काम हो गई, 2 परसेंट 3 परसेंट रह गया। क्या मेरे देशवासियों को पानी पर अधिकार नहीं है क्या? उनको उनके हक का पानी मिलना चाहिए कि नहीं मिलना चाहिए क्या? और अभी तो मैंने कुछ ज्यादा किया नहीं है। अभी तो हमने कहा है कि हमने इसको abeyance में रखा है। वहां पसीना छूट रहा है और हमने डैम थोड़े खोल करके सफाई शुरू की, जो कूड़ा कचरा था, वह निकाल रहे हैं। इतने से वहां flood आ जाता है।

साथियों,

हम किसी से दुश्मनी नहीं चाहते हैं। हम सुख-चैन की जिंदगी जीना चाहते हैं। हम प्रगति भी इसलिए करना चाहते हैं कि विश्व की भलाई में हम भी कुछ योगदान कर सकें। और इसलिए हम एकनिष्ठ भाव से कोटि-कोटि भारतीयों के कल्याण के लिए प्रतिबद्धता के साथ काम कर रहे हैं। कल 26 मई था, 2014 में 26 मई, मुझे पहली बार देश के प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेने का अवसर मिला। और तब भारत की इकोनॉमी, दुनिया में 11 नंबर पर थी। हमने कोरोना से लड़ाई लड़ी, हमने पड़ोसियों से भी मुसीबतें झेली, हमने प्राकृतिक आपदा भी झेली। इन सब के बावजूद भी इतने कम समय में हम 11 नंबर की इकोनॉमी से चार 4 नंबर की इकोनॉमी पर पहुंच गए क्योंकि हमारा ये लक्ष्य है, हम विकास चाहते हैं, हम प्रगति चाहते हैं।

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और साथियों,

मैं गुजरात का ऋणी हूं। इस मिट्टी ने मुझे बड़ा किया है। यहां से मुझे जो शिक्षा मिली, दीक्षा मिली, यहां से जो मैं आप सबके बीच रहकर के सीख पाया, जो मंत्र आपने मुझे दिए, जो सपने आपने मेरे में संजोए, मैं उसे देशवासियों के काम आए, इसके लिए कोशिश कर रहा हूं। मुझे खुशी है कि आज गुजरात सरकार ने शहरी विकास वर्ष, 2005 में इस कार्यक्रम को किया था। 20 वर्ष मनाने का और मुझे खुशी इस बात की हुई कि यह 20 साल के शहरी विकास की यात्रा का जय गान करने का कार्यक्रम नहीं बनाया। गुजरात सरकार ने उन 20 वर्ष में से जो हमने पाया है, जो सीखा है, उसके आधार पर आने वाले शहरी विकास को next generation के लिए उन्होंने उसका रोडमैप बनाया और आज वो रोड मैप गुजरात के लोगों के सामने रखा है। मैं इसके लिए गुजरात सरकार को, मुख्यमंत्री जी को, उनकी टीम को हृदय से बहुत-बहुत बधाई देता हूं।

साथियों,

हम आज दुनिया की चौथी इकोनॉमी बने हैं। किसी को भी संतोष होगा कि अब जापान को भी पीछे छोड़ कर के हम आगे निकल गए हैं और मुझे याद है, हम जब 6 से 5 बने थे, तो देश में एक और ही उमंग था, बड़ा उत्साह था, खासकर के नौजवानों में और उसका कारण यह था कि ढाई सौ सालों तक जिन्होंने हम पर राज किया था ना, उस यूके को पीछे छोड़ करके हम 5 बने थे। लेकिन अब चार बनने का आनंद जितना होना चाहिए उससे ज्यादा तीन कब बनोगे, उसका दबाव बढ़ रहा है। अब देश इंतजार करने को तैयार नहीं है और अगर किसी ने इंतजार करने के लिए कहा, तो पीछे से नारा आता है, मोदी है तो मुमकिन है।

और इसलिए साथियों,

एक तो हमारा लक्ष्य है 2047, हिंदुस्तान विकसित होना ही चाहिए, no compromise… आजादी के 100 साल हम ऐसे ही नहीं बिताएंगे, आजादी के 100 साल ऐसे मनाएंगे, ऐसे मनाएंगे कि दुनिया में विकसित भारत का झंडा फहरता होगा। आप कल्पना कीजिए, 1920, 1925, 1930, 1940, 1942, उस कालखंड में चाहे भगत सिंह हो, सुखदेव हो, राजगुरु हो, नेताजी सुभाष बाबू हो, वीर सावरकर हो, श्यामजी कृष्ण वर्मा हो, महात्मा गांधी हो, सरदार पटेल हो, इन सबने जो भाव पैदा किया था और देश की जन-मन में आजादी की ललक ना होती, आजादी के लिए जीने-मरने की प्रतिबद्धता ना होती, आजादी के लिए सहन करने की इच्छा शक्ति ना होती, तो शायद 1947 में आजादी नहीं मिलती। यह इसलिए मिली कि उस समय जो 25-30 करोड़ आबादी थी, वह बलिदान के लिए तैयार हो चुकी थी। अगर 25-30 करोड़ लोग संकल्पबद्ध हो करके 20 साल, 25 साल के भीतर-भीतर अंग्रेजों को यहां से निकाल सकते हैं, तो आने वाले 25 साल में 140 करोड़ लोग विकसित भारत बना भी सकते हैं दोस्तों। और इसलिए 2030 में जब गुजरात के 75 वर्ष होंगे, मैं समझता हूं कि हमने अभी से 30 में होंगे, 35… 35 में जब गुजरात के 75 वर्ष होंगे, हमने अभी से नेक्स्ट 10 ईयर का पहले एक प्लान बनाना चाहिए कि जब गुजरात के 75 होंगे, तब गुजरात यहां पहुंचेगा। उद्योग में यहां होगा, खेती में यहां होगा, शिक्षा में यहां होगा, खेलकूद में यहां होगा, हमें एक संकल्प ले लेना चाहिए और जब गुजरात 75 का हो, उसके 1 साल के बाद जो ओलंपिक होने वाला है, देश चाहता है कि वो ओलंपिक हिंदुस्तान में हो।

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और इसलिए साथियों,

जिस प्रकार से हमारा यह एक लक्ष्य है कि हम जब गुजरात के 75 साल हो जाए। और आप देखिए कि जब गुजरात बना, उस समय के अखबार निकाल दीजिए, उस समय की चर्चाएं निकाल लीजिए। क्या चर्चाएं होती थी कि गुजरात महाराष्ट्र से अलग होकर क्या करेगा? गुजरात के पास क्या है? समंदर है, खारा पाठ है, इधर रेगिस्तान है, उधर पाकिस्तान है, क्या करेगा? गुजरात के पास कोई मिनरल्स नहीं, गुजरात कैसे प्रगति करेगा? यह ट्रेडर हैं सारे… इधर से माल लेते हैं, उधर बेचते हैं। बीच में दलाली से रोजी-रोटी कमा करके गुजारा करते हैं। क्‍या करेंगे ऐसी चर्चा थी। वही गुजरात जिसके पास एक जमाने में नमक से ऊपर कुछ नहीं था, आज दुनिया को हीरे के लिए गुजरात जाना जाता है। कहां नमक, कहां हीरे! यह यात्रा हमने काटी है। और इसके पीछे सुविचारित रूप से प्रयास हुआ है। योजनाबद्ध तरीके से कदम उठाएं हैं। हमारे यहां आमतौर पर गवर्नमेंट के मॉडल की चर्चा होती है कि सरकार में साइलोज, यह सबसे बड़ा संकट है। एक डिपार्टमेंट दूसरे से बात नहीं करता है। एक टेबल वाला दूसरे टेबल वाले से बात नहीं करता है, ऐसी चर्चा होती है। कुछ बातों में सही भी होगा, लेकिन उसका कोई सॉल्यूशन है क्या? मैं आज आपको बैकग्राउंड बताता हूं, यह शहरी विकास वर्ष अकेला नहीं, हमने उस समय हर वर्ष को किसी न किसी एक विशेष काम के लिए डेडिकेट करते थे, जैसे 2005 में शहरी विकास वर्ष माना गया। एक साल ऐसा था, जब हमने कन्या शिक्षा के लिए डेडिकेट किया था, एक वर्ष ऐसा था, जब हमने पूरा टूरिज्म के लिए डेडिकेट किया था। इसका मतलब ये नहीं कि बाकी सब काम बंद करते थे, लेकिन सरकार के सभी विभागों को उस वर्ष अगर forest department है, तो उसको भी अर्बन डेवलपमेंट में वो contribute क्या कर सकता है? हेल्थ विभाग है, तो अर्बन डेवलपमेंट ईयर में वो contribute क्या कर सकता है? जल संरक्षण मंत्रालय है, तो वह अर्बन डेवलपमेंट में क्या contribute कर सकता है? टूरिज्म डिपार्टमेंट है, तो वह अर्बन डेवलपमेंट में क्या contribute कर सकता है? यानी एक प्रकार से whole of the government approach, इस भूमिका से ये वर्ष मनाया और आपको याद होगा, जब हमने टूरिज्म ईयर मनाया, तो पूरे राज्य में उसके पहले गुजरात में टूरिज्म की कल्पना ही कोई नहीं कर सकता था। विशेष प्रयास किया गया, उसी समय ऐड कैंपेन चलाया, कुछ दिन तो गुजारो गुजरात में, एक-एक चीज उसमें से निकली। उसी में से रण उत्‍सव निकला, उसी में से स्टैच्यू ऑफ यूनिटी बना। उसी में से आज सोमनाथ का विकास हो रहा है, गिर का विकास हो रहा है, अंबाजी जी का विकास हो रहा है। एडवेंचर स्पोर्ट्स आ रही हैं। यानी एक के बाद एक चीजें डेवलप होने लगीं। वैसे ही जब अर्बन डेवलपमेंट ईयर मनाया।

और मुझे याद है, मैं राजनीति में नया-नया आया था। और कुछ समय के बाद हम अहमदाबाद municipal कॉरपोरेशन सबसे पहले जीते, तब तक हमारे पास एक राजकोट municipality हुआ करती थी, तब वो कारपोरेशन नहीं थी। और हमारे एक प्रहलादभाई पटेल थे, पार्टी के बड़े वरिष्ठ नेता थे। बहुत ही इनोवेटिव थे, नई-नई चीजें सोचना उनका स्वभाव था। मैं नया राजनीति में आया था, तो प्रहलाद भाई एक दिन आए मिलने के लिए, उन्होंने कहा ये हमें जरा, उस समय चिमनभाई पटेल की सरकार थी, तो हमने चिमनभाई और भाजपा के लोग छोटे पार्टनर थे। तो हमें चिमनभाई को मिलकर के समझना चाहिए कि यह जो लाल बस अहमदाबाद की है, उसको जरा अहमदाबाद के बाहर जाने दिया जाए। तो उन्होंने मुझे समझाया कि मैं और प्रहलाद भाई चिमनभाई को मिलने गए। हमने बहुत माथापच्ची की, हमने कहा यह सोचने जैसा है कि लाल बस अहमदाबाद के बाहर गोरा, गुम्‍मा, लांबा, उधर नरोरा की तरफ आगे दहेगाम की तरफ, उधर कलोल की तरफ आगे उसको जाने देना चाहिए। ट्रांसपोर्टेशन का विस्तार करना चाहिए, तो सरकार के जैसे सचिवों का स्वभाव रहता है, यहां बैठे हैं सारे, उस समय वाले तो रिटायर हो गए। एक बार एक कांग्रेसी नेता को पूछा गया था कि देश की समस्याओं का समाधान करना है तो दो वाक्य में बताइए। कांग्रेस के एक नेता ने जवाब दिया था, वो मुझे आज भी अच्छा लगता है। यह कोई 40 साल पहले की बात है। उन्होंने कहा, देश में दो चीजें होनी चाहिए। एक पॉलीटिशियंस ना कहना सीखें और ब्यूरोक्रेट हां कहना सीखे! तो उससे सारी समस्या का समाधान हो जाएगा। पॉलीटिशियंस किसी को ना नहीं कहता और ब्यूरोक्रेट किसी को हां नहीं कहता। तो उस समय चिमनभाई के पास गए, तो उन्‍होंने पूछा सबसे, हम दोबारा गए, तीसरी बार गए, नहीं-नहीं एसटी को नुकसान हो जाएगा, एसटी को कमाई बंद हो जाएगी, एसटी बंद पड़ जाएगी, एसटी घाटे में चल रही है। लाल बस वहां नहीं भेज सकते हैं, यह बहुत दिन चला। तीन-चार महीने तक हमारी माथापच्ची चली। खैर, हमारा दबाव इतना था कि आखिर लाल बस को लांबा, गोरा, गुम्‍मा, ऐसा एक्सटेंशन मिला, उसका परिणाम है कि अहमदाबाद का विस्तार तेजी से उधर सारण की तरफ हुआ, इधर दहेगाम की तरफ हुआ, उधर कलोल की तरह हुआ, उधर अहमदाबाद की तरह हुआ, तो अहमदाबाद की तरफ जो प्रेशर, एकदम तेजी से बढ़ने वाला था, उसमें तेजी आई, बच गए छोटी सी बात थी, तब जाकर के, मैं तो उस समय राजनीति में नया था। मुझे कोई ज्यादा इन चीजों को मैं जानता भी नहीं था। लेकिन तब समझ में आता था कि हम तत्कालीन लाभ से ऊपर उठ करके सचमुच में राज्य की और राज्य के लोगों की भलाई के लिए हिम्मत के साथ लंबी सोच के साथ चलेंगे, तो बहुत लाभ होगा। और मुझे याद है जब अर्बन डेवलपमेंट ईयर मनाया, तो पहला काम आया, यह एंक्रोचमेंट हटाने का, अब जब एंक्रोचमेंट हटाने की बात आती हे, तो सबसे पहले रुकावट बनता है पॉलिटिकल आदमी, किसी भी दल का हो, वो आकर खड़ा हो जाता है क्योंकि उसको लगता है, मेरे वोटर है, तुम तोड़ रहे हो। और अफसर लोग भी बड़े चतुर होते हैं। जब उनको कहते हैं कि भई यह सब तोड़ना है, तो पहले जाकर वो हनुमान जी का मंदिर तोड़ते हैं। तो ऐसा तूफान खड़ा हो जाता है कि कोई भी पॉलिटिशयन डर जाता है, उसको लगता है कि हनुमान जी का मंदिर तोड़ दिया तो हो… हमने बड़ी हिम्मत दिखाई। उस समय हमारे …..(नाम स्पष्ट नहीं) अर्बन मिनिस्टर थे। और उसका परिणाम यह आया कि रास्ते चौड़े होने लगे, तो जिसका 2 फुट 4 फुट कटता था, वह चिल्लाता था, लेकिन पूरा शहर खुश हो जाता था। इसमें एक स्थिति ऐसी बनी, बड़ी interesting है। अब मैंने तो 2005 अर्बन डेवलपमेंट ईयर घोषित कर दिया। उसके लिए कोई 80-90 पॉइंट निकाले थे, बडे interesting पॉइंट थे। तो पार्टी से ऐसी मेरी बात हुई थी कि भाई ऐसा एक अर्बन डेवलपमेंट ईयर होगा, जरा सफाई वगैरह के कामों में सब को जोड़ना पड़ेगा ऐसा, लेकिन जब ये तोड़ना शुरू हुआ, तो मेरी पार्टी के लोग आए, ये बड़ा सीक्रेट बता रहा हूं मैं, उन्होंने कहा साहब ये 2005 में तो अर्बन बॉडी के चुनाव है, हमारी हालत खराब हो जाएगी। यह सब तो चारों तरफ तोड़-फोड़ चल रही है। मैंने कहा यार भई यह तो मेरे ध्यान में नहीं रहा और सच में मेरे ध्यान में वो चुनाव था ही नहीं। अब मैंने कार्यक्रम बना दिया, अब साहब मेरा भी एक स्वभाव है। हम तो बचपन से पढ़ते आए हैं- कदम उठाया है तो पीछे नहीं हटना है। तो मैंने मैंने कहा देखो भाई आपकी चिंता सही है, लेकिन अब पीछे नहीं हट सकते। अब तो ये अर्बन डेवलपमेंट ईयर होगा। हार जाएंगे, चुनाव क्या है? जो भी होगा हम किसी का बुरा करना नहीं चाहते, लेकिन गुजरात में शहरों का रूप रंग बदलना बहुत जरूरी है।

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साथियों,

हम लोग लगे रहे। काफी विरोध भी हुआ, काफी आंदोलन हुए बहुत परेशानी हुई। यहां मीडिया वालों को भी बड़ा मजा आ गया कि मोदी अब शिकार आ गया हाथ में, तो वह भी बड़ी पूरी ताकत से लग गए थे। और उसके बाद जब चुनाव हुआ, देखिए मैं राजनेताओं को कहता हूं, मैं देश भर के राजनेता मुझे सुनते हैं, तो देखना कहता हूं, अगर आपने सत्यनिष्ठा से, ईमानदारी से लोगों की भलाई के लिए निर्णय करते हैं, तत्कालीन भले ही बुरा लगे, लोग साथ चलते हैं। और उस समय जो चुनाव हुआ 90 परसेंट विक्ट्री बीजेपी की हुई थी, 90 परसेंट यानी लोग जो मानते हैं कि जनता ये नहीं और मुझे याद है। अब यह जो यहां अटल ब्रिज बना है ना तो मुझे, यह साबरमती रिवर फ्रंट पर, तो पता नहीं क्यों मुझे उद्घाटन के लिए बुलाया था। कई कार्यक्रम थे, तो मैंने कहा चलो भई हम भी देखने जाते हैं, तो मैं जरा वो अटल ब्रिज पर टहलने गया, तो वहां मैंने देखा कुछ लोगों ने पान की पिचकारियां लगाई हुई थी। अभी तो उद्घाटन होना था, लेकिन कार्यक्रम हो गया था। तो मेरा दिमाग, मैंने कहा इस पर टिकट लगाओ। तो ये सारे लोग आ गए साहब चुनाव है, उसी के बाद चुनाव था, बोले टिकट नहीं लगा सकते मैंने कहा टिकट लगाओ वरना यह तुम्हारा अटल ब्रिज बेकार हो जाएगा। फिर मैं दिल्ली गया, मैंने दूसरे दिन फोन करके पूछा, मैंने कहा क्या हुआ टिकट लगाने का एक दिन भी बिना टिकट नहीं चलना चाहिए।

साथियों,

खैर मेरा मान-सम्मान रखते हैं सब लोग, आखिर के हमारे लोगों ने ब्रिज पर टिकट लगा दिया। आज टिकट भी हुआ, चुनाव भी जीते दोस्तों और वो अटल ब्रिज चल रहा है। मैंने कांकरिया का पुनर्निर्माण का कार्यक्रम लिया, उस पर टिकट लगाया तो कांग्रेस ने बड़ा आंदोलन किया। कोर्ट में चले गए, लेकिन वह छोटा सा प्रयास पूरे कांकरिया को बचा कर रखा हुआ है और आज समाज का हर वर्ग बड़ी सुख-चैन से वहां जाता है। कभी-कभी राजनेताओं को बहुत छोटी चीजें डर जाते हैं। समाज विरोधी नहीं होता है, उसको समझाना होता है। वह सहयोग करता है और अच्छे परिणाम भी मिलते हैं। देखिए शहरी शहरी विकास की एक-एक चीज इतनी बारीकी से बनाई गई और उसी का परिणाम था और मैं आपको बताता हूं। यह जो अब मुझ पर दबाव बढ़ने वाला है, वो already शुरू हो गया कि मोदी ठीक है, 4 नंबर तो पहुंच गए, बताओ 3 कब पहुंचोगे? इसकी एक जड़ी-बूटी आपके पास है। अब जो हमारे ग्रोथ सेंटर हैं, वो अर्बन एरिया हैं। हमें अर्बन बॉडीज को इकोनॉमिक के ग्रोथ सेंटर बनाने का प्लान करना होगा। अपने आप जनसंख्या के कारण वृद्धि होती चले, ऐसे शहर नहीं हो सकते हैं। शहर आर्थिक गतिविधि के तेजतर्रार केंद्र होने चाहिए और अब तो हमने टीयर 2, टीयर 3 सीटीज पर भी बल देना चाहिए और वह इकोनॉमिक एक्टिविटी के सेंटर बनने चाहिए और मैं तो पूरे देश की नगरपालिका, महानगरपालिका के लोगों को कहना चाहूंगा। अर्बन बॉडी से जुड़े हुए सब लोगों से कहना चाहूंगा कि वे टारगेट करें कि 1 साल में उस नगर की इकोनॉमी कहां से कहां पहुंचाएंगे? वहां की अर्थव्यवस्था का कद कैसे बढ़ाएंगे? वहां जो चीजें मैन्युफैक्चर हो रही हैं, उसमें क्वालिटी इंप्रूव कैसे करेंगे? वहां नए-नए इकोनॉमिक एक्टिविटी के रास्ते कौन से खोलेंगे। ज्यादातर मैंने देखा नगर पालिका की जो नई-नई बनती हैं, तो क्या करते हैं, एक बड़ा शॉपिंग सेंटर बना देते हैं। पॉलिटिशनों को भी जरा सूट करता है वह, 30-40 दुकानें बना देंगे और 10 साल तक लेने वाला नहीं आता है। इतने से काम नहीं चलेगा। स्टडी करके और खास करके जो एग्रो प्रोडक्ट हैं। मैं तो टीयर 2, टीयर 3 सीटी के लिए कहूंगा, जो किसान पैदावार करता है, उसका वैल्यू एडिशन, यह नगर पालिकाओं में शुरू हो, आस-पास से खेती की चीजें आएं, उसमें से कुछ वैल्यू एडिशन हो, गांव का भी भला होगा, शहर का भी भला होगा।

उसी प्रकार से आपने देखा होगा इन दिनों स्टार्टअप, स्टार्टअप में भी आपके ध्यान में आया होगा कि पहले स्‍टार्टअप बड़े शहर के बड़े उद्योग घरानों के आसपास चलते थे, आज देश में करीब दो लाख स्टार्टअप हैं। और ज्यादातर टीयर 2, टीयर 3 सीटीज में है और इसमें भी गर्व की बात है कि उसमें काफी नेतृत्व हमारी बेटियों के पास है। स्‍टार्टअप की लीडरशिप बेटियों के पास है। ये बहुत बड़ी क्रांति की संभावनाओं को जन्म देता है और इसलिए मैं चाहूंगा कि अर्बन डेवलपमेंट ईयर के जब 20 साल मना रहे हैं और एक सफल प्रयोग को हम याद करके आगे की दिशा तय करते हैं तब हम टीयर 2, टीयर 3 सीटीज को बल दें। शिक्षा में भी टीयर 2, टीयर 3 सीटीज काफी आगे रहा, इस साल देख लीजिए। पहले एक जमाना था कि 10 और 12 के रिजल्ट आते थे, तो जो नामी स्कूल रहते थे बड़े, उसी के बच्चे फर्स्ट 10 में रहते थे। इन दिनों शहरों की बड़ी-बड़ी स्कूलों का नामोनिशान नहीं होता है, टीयर 2, टीयर 3 सीटीज के स्कूल के बच्चे पहले 10 में आते हैं। देखा होगा आपने गुजरात में भी यही हो रहा है। इसका मतलब यह हुआ कि हमारे छोटे शहरों के पोटेंशियल, उसकी ताकत बढ़ रही है। खेल का देखिए, पहले क्रिकेट देखिए आप, क्रिकेट तो हिंदुस्तान में हम गली-मोहल्ले में खेला जाता है। लेकिन बड़े शहर के बड़े रहीसी परिवारों से ही खेलकूद क्रिकेट अटका हुआ था। आज सारे खिलाड़ी में से आधे से ज्यादा खिलाड़ी टीयर 2, टीयर 3 सीटीज गांव के बच्चे हैं जो खेल में इंटरनेशनल खेल खेल कर कमाल करते हैं। यानी हम समझें कि हमारे शहरों में बहुत पोटेंशियल है। और जैसा मनोहर जी ने भी कहां और यहां वीडियो में भी दिखाया गया, यह हमारे लिए बहुत बड़ी opportunity है जी, 4 में से 3 नंबर की इकोनॉमी पहुंचने के लिए हम हिंदुस्तान के शहरों की अर्थव्यवस्था पर अगर फोकस करेंगे, तो हम बहुत तेजी से वहां भी पहुंच पाएंगे।

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साथियों,

ये गवर्नेंस का एक मॉडल है। दुर्भाग्य से हमारे देश में एक ऐसे ही इकोसिस्टम ने जमीनों में अपनी जड़े ऐसी जमा हुई हैं कि भारत के सामर्थ्य को हमेशा नीचा दिखाने में लगी हैं। वैचारिक विरोध के कारण व्यवस्थाओं के विकास का अस्वीकार करने का उनका स्वभाव बन गया है। व्यक्ति के प्रति पसंद-नापसंद के कारण उसके द्वारा किये गए हर काम को बुरा बता देना एक फैशन का तरीका चल पड़ा है और उसके कारण देश की अच्‍छी चीजों का नुकसान हुआ है। ये गवर्नेंस का एक मॉडल है। अब आप देखिए, हमने शहरी विकास पर तो बल दिया, लेकिन वैसा ही जब आपने दिल्‍ली भेजा, तो हमने एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट, एस्पिरेशनल ब्लॉक पर विचार किया कि हर राज्य में एकाध जिला, एकाध तहसील ऐसी होती है, जो इतना पीछे होता है, कि वो स्‍टेट की सारी एवरेज को पीछे खींच ले जाता है। आप जंप लगा ही नहीं सकते, वो बेड़ियों की तरह होता है। मैंने कहा, पहले इन बेड़ियों को तोड़ना है और देश में 100 के करीब एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट उनको identify किया गया। 40 पैरामीटर से देखा गया कि यहां क्या जरूरत है। अब 500 ब्‍लॉक्‍स identify किए हैं, whole of the government approach के साथ फोकस किया गया। यंग अफसरों को लगाया गया, फुल टैन्‍यूर के साथ काम करें, ऐसा लगाया। आज दुनिया के लिए एक मॉडल बन चुका है और जो डेवलपिंग कंट्रीज हैं उनको भी लग रहा है कि हमारे यहां विकास के इस मॉडल की ओर हमें चलना चाहिए। हमारा academic world भारत के इन प्रयासों और सफल प्रयासों के विषय में सोचे और जब academic world इस पर सोचता है तो दुनिया के लिए भी वो एक अनुकरणीय उदाहरण के रूप में काम आता है।

साथियों,

आने वाले दिनों में टूरिज्म पर हमें बल देना चाहिए। गुजरात ने कमाल कर दिया है जी, कोई सोच सकता है। कच्छ के रेगिस्तान में जहां कोई जाने का नाम नहीं लेता था, वहां आज जाने के लिए बुकिंग नहीं मिलती है। चीजों को बदला जा सकता है, दुनिया का सबसे बड़ा ऊंचा स्टैच्यू, ये अपने आप में अद्भुत है। मुझे बताया गया कि वडनगर में जो म्यूजियम बना है। कल मुझे एक यूके के एक सज्‍जन मिले थे। उन्होंने कहा, मैं वडनगर का म्यूजियम देखने जा रहा हूं। यह इंटरनेशनल लेवल में इतने global standard का कोई म्यूजियम बना है और भारत में काशी जैसे बहुत कम जगह है कि जो अविनाशी हैं। जो कभी भी मृतप्राय नहीं हुए, जहां हर पल जीवन रहा है, उसमें एक वडनगर हैं, जिसमें 2800 साल तक के सबूत मिले हैं। अभी हमारा काम है कि वह इंटरनेशनल टूरिस्ट मैप पर कैसे आए? हमारा लोथल जहां हम एक म्यूजियम बना रहे हैं, मैरीटाइम म्यूजियम, 5 हजार साल पहले मैरीटाइम में दुनिया में हमारा डंका बजता था। धीरे-धीरे हम भूल गए, लोथल उसका जीता-जागता उदाहरण है। लोथल में दुनिया का सबसे बड़ा मैरीटाइम म्यूजियम बन रहा है। आप कल्पना कर सकते हैं कि इन चीजों का कितना लाभ होने वाला है और इसलिए मैं कहता हूं दोस्तों, 2005 का वो समय था, जब पहली बार गिफ्ट सिटी के आईडिया को कंसीव किया गया और मुझे याद है, शायद हमने इसका launching Tagore Hall में किया था। तो उसके बड़े-बड़े जो हमारे मन में डिजाइन थे, उसके चित्र लगाए थे, तो मेरे अपने ही लोग पूछ रहे थे। यह होगा, इतने बड़े बिल्डिंग टावर बनेंगे? मुझे बराबर याद है, यानी जब मैं उसका मैप वगैरह और उसका प्रेजेंटेशन दिखाता था केंद्र के कुछ नेताओं को, तो वह भी मुझे कह रहे थे अरे भारत जैसे देश में ये क्या कर रहे हो तुम? मैं सुनता था आज वो गिफ्ट सिटी हिंदुस्तान का हर राज्य कह रहा है कि हमारे यहां भी एक गिफ्ट सिटी होना चाहिए।

साथियों,

एक बार कल्पना करते हुए उसको जमीन पर, धरातल पर उतारने का अगर हम प्रयास करें, तो कितने बड़े अच्छे परिणाम मिल सकते हैं, ये हम भली भांति देख रहे हैं। वही काल खंड था, रिवरफ्रंट को कंसीव किया, वहीं कालखंड था जब दुनिया का सबसे बड़ा स्टेडियम बनाने का सपना देखा, पूरा किया। वही कालखंड था, दुनिया का सबसे ऊंचा स्टैच्यू बनाने के लिए सोचा, पूरा किया।

भाइयों और बहनों,

एक बार हम मान के चले, हमारे देश में potential बहुत हैं, बहुत सामर्थ्‍य है।

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साथियों,

मुझे पता नहीं क्यों, निराशा जैसी चीज मेरे मन में आती ही नहीं है। मैं इतना आशावादी हूं और मैं उस सामर्थ्य को देख पाता हूं, मैं दीवारों के उस पार देख सकता हूं। मेरे देश के सामर्थ्य को देख सकता हूं। मेरे देशवासियों के सामर्थ्य को देख सकता हूं और इसी के भरोसे हम बहुत बड़ा बदलाव ला सकते हैं और इसलिए आज मैं गुजरात सरकार का बहुत आभारी हूं कि आपने मुझे यहां आने का मौका दिया है। कुछ ऐसी पुरानी-पुरानी बातें ज्यादातर ताजा करने का मौका मिल गया। लेकिन आप विश्वास करिए दोस्तों, गुजरात की बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। हम देने वाले लोग हैं, हमें देश को हमेशा देना चाहिए। और हम इतनी ऊंचाई पर गुजरात को ले जाए, इतनी ऊंचाई पर ले जाएं कि देशवासियों के लिए गुजरात काम आना चाहिए दोस्तों, इस महान परंपरा को हमें आगे बढ़ाना चाहिए। मुझे विश्वास है, गुजरात एक नए सामर्थ्य के साथ अनेक विद नई कल्पनाओं के साथ, अनेक विद नए इनीशिएटिव्स के साथ आगे बढ़ेगा मुझे मालूम है। मेरा भाषण शायद कितना लंबा हो गया होगा, पता नहीं क्या हुआ? लेकिन कल मीडिया में दो-तीन चीजें आएंगी। वो भी मैं बता देता हूं, मोदी ने अफसरों को डांटा, मोदी ने अफसरों की धुलाई की, वगैरह-वगैरह-वगैरह, खैर वो तो कभी-कभी चटनी होती है ना इतना ही समझ लेना चाहिए, लेकिन जो बाकी बातें मैंने याद की है, उसको याद कर करके जाइए और ये सिंदुरिया मिजाज! ये सिंदुरिया स्पिरिट, दोस्‍तों 6 मई को, 6 मई की रात। ऑपरेशन सिंदूर सैन्य बल से प्रारंभ हुआ था। लेकिन अब ये ऑपरेशन सिंदूर जन-बल से आगे बढ़ेगा और जब मैं सैन्य बल और जन-बल की बात करता हूं तब, ऑपरेशन सिंदूर जन बल का मतलब मेरा होता है जन-जन देश के विकास के लिए भागीदार बने, दायित्‍व संभाले।

हम इतना तय कर लें कि 2047, जब भारत के आजादी के 100 साल होंगे। विकसित भारत बनाने के लिए तत्काल भारत की इकोनॉमी को 4 नंबर से 3 नंबर पर ले जाने के लिए अब हम कोई विदेशी चीज का उपयोग नहीं करेंगे। हम गांव-गांव व्यापारियों को शपथ दिलवाएं, व्यापारियों को कितना ही मुनाफा क्यों ना हो, आप विदेशी माल नहीं बेचोगे। लेकिन दुर्भाग्य देखिए, गणेश जी भी विदेशी आ जाते हैं। छोटी आंख वाले गणेश जी आएंगे। गणेश जी की आंख भी नहीं खुल रही है। होली, होली रंग छिड़कना है, बोले विदेशी, हमें पता था आप भी अपने घर जाकर के सूची बनाना। सचमुच में ऑपरेशन सिंदूर के लिए एक नागरिक के नाते मुझे एक काम करना है। आप घर में जाकर सूची बनाइए कि आपके घर में 24 घंटे में सुबह से दूसरे दिन सुबह तक कितनी विदेशी चीजों का उपयोग होता है। आपको पता ही नहीं होता है, आप hairpin भी विदेशी उपयोग कर लेते हैं, कंघा भी विदेशी होता है, दांत में लगाने वाली जो पिन होती है, वो भी विदेशी घुस गई है, हमें मालूम तक नहीं है। पता ही नहीं है दोस्‍तों। देश को अगर बचाना है, देश को बनाना है, देश को बढ़ाना है, तो ऑपरेशन सिंदूर यह सिर्फ सैनिकों के जिम्‍मे नहीं है। ऑपरेशन सिंदूर 140 करोड़ नागरिकों की जिम्‍मे है। देश सशक्त होना चाहिए, देश सामर्थ्‍य होना चाहिए, देश का नागरिक सामर्थ्यवान होना चाहिए और इसके लिए हमने वोकल फॉर लोकल, वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट, मैं मेरे यहां, जो आपके पास है फेंक देने के लिए मैं नहीं कह रहा हूं। लेकिन अब नया नहीं लेंगे और शायद एकाध दो परसेंट चीजें ऐसी हैं, जो शायद आपको बाहर की लेनी पड़े, जो हमारे यहां उपलब्ध ना हो, बाकि आज हिंदुस्तान में ऐसा कुछ नहीं। आपने देखा होगा, आज से पहले 25 साल 30 साल पहले विदेश से कोई आता था, तो लोग लिस्ट भेजते थे कि ये ले आना, ये ले आना। आज विदेश से आते हैं, वो पूछते हैं कि कुछ लाना है, तो यहां वाले कहते हैं कि नहीं-नहीं यहां सब है, मत लाओ। सब कुछ है, हमें अपनी ब्रांड पर गर्व होना चाहिए। मेड इन इंडिया पर गर्व होना चाहिए। ऑपरेशन सिंदूर सैन्‍य बल से नहीं, जन बल से जीतना है दोस्तों और जन बल आता है मातृभूमि की मिट्टी में पैदा हुई हर पैदावार से आता है। इस मिट्टी की जिसमें सुगंध हो, इस देश के नागरिक के पसीने की जिसमें सुगंध हो, उन चीजों का मैं इस्तेमाल करूंगा, अगर मैं ऑपरेशन सिंदूर को जन-जन तक, घर-घर तक लेकर जाता हूं। आप देखिए हिंदुस्तान को 2047 के पहले विकसित राष्ट्र बनाकर रहेंगे और अपनी आंखों के सामने देखकर जाएंगे दोस्तों, इसी इसी अपेक्षा के साथ मेरे साथ पूरी ताकत से बोलिए,

भारत माता की जय! भारत माता की जय!

भारत माता की जय! जरा तिरंगे ऊपर लहराने चाहिए।

भारत माता की जय! भारत माता की जय! भारत माता की जय!

वंदे मातरम! वंदे मातरम! वंदे मातरम!

वंदे मातरम! वंदे मातरम! वंदे मातरम!

वंदे मातरम! वंदे मातरम! वंदे मातरम!

वंदे मातरम! वंदे मातरम! वंदे मातरम!

धन्यवाद!