The poor must have access to quality and affordable healthcare: PM Narendra Modi
Union Government is committed to providing affordable healthcare for the poor and the middle class: PM
Projects whose foundation stones are laid have to be completed on time that is when the benefits can reach the people: PM
Swachh Bharat Abhiyan is linked to our efforts towards healthier India: PM Modi

मंच पर विराजमान सभी साथी और विशाल संख्‍या में पधारे हुए मेरे सभी परिवारजन। मैं दुविधा में था कि गुजराती में बोलू कि हिंदी में बोलू, लेकिन बाद में मेरे मन में विचार आया कि आप सबने इतना बड़ा काम किया है इसका देश को भी तो पता चलना चाहिए। यहां पर सभी दाताश्रियों की बधाई की वर्षा हो रही है। पांच सौ करोड़, पांच सौ करोड़ बड़ी वाह-वाही चल रही है, लेकिन मैं वाह-वाही नहीं करूंगा। इन्‍होंने कुछ नहीं किया है। आपको झटका लगा न, यह अगर पांच सौ करोड़, पांच हजार करोड़ देते हैं कुछ नहीं है, मैं बता रहा हूं। इसलिए ये वो लोग हैं जो गुजरात के गांव में खेत में मिट्टी खा करके बड़े हुए हैं। ये वो लोग हैं जो कभी अपने साथियों के साथ आमली-पिपली के खेल खेलते थे। पेड़ पर चढ़ना-उतरना यही इनका जिम था। साइकिल के टायर को दौड़ाते हुए मजा लेना, यही बचपन था। बारहों महीना मां-बाप एक ही बात करते थे घर में इस बार बारिश अच्‍छी हो जाए, तो अच्‍छा होगा। बेटा पढ़ाई करेगा या नहीं करेगा यह चर्चा नहीं होती थी। चर्चा यही घर में होती थी कि भगवान करे इस बार बारिश अच्‍छी हो जाए। दूसरी प्रार्थना करते थे हमारे पास एक या दो जो पशु हैं वो कभी भूखा न रहे। ऐसे परिवार की संतान है यह वो संतान है जिन्‍होंने अपनी आंखों से यह सब देखा है, जिन्‍होंने बचपन में इस जिंदगी को जीया है।

बारिश कम भी हुई हो, परिवार को भी जितनी जरूरत है, उससे भी कम फसल हुई हो उसके बावजूद भी फसल का ढेर अगर खेत में तैयार पड़ा है, तो चोर खाए, मोर खाए, आया मेहमान खाए, जब बच जाए तो खेडू खाए। यह संस्‍कार जिन परिवारों के हैं। खुद के पसीने से पैदा की हुई फसल चोर भी उठा कर ले जाए गुस्‍सा नहीं, पशु-पक्षी आ करके खा जाए तो भी संतोष। कोई अतिथ‍ि आ जाए, झोली है भर दे और फिर कुछ बचा-कुचा है तो बच्‍चों के लिए घर ले जाए और एक साल गुजारा कर दे, यह मेरे गुजरात के खेडू परिवार के संस्‍कार है। यह उनके बच्‍चे हैं जिनके मां-बाप ने पेट काट करके भी किसी का पेट भरने में कभी कोई कमी महसूस नहीं करने दी। उनके लिए पांच सौ करोड़ कुछ नहीं होता। यह देने के संस्‍कार ले करके आए हैं। यह जब तक देंगे नहीं, रात को सौ पाएंगे नहीं। और मैं इन परिवारों के बीच में पला-बढ़ा हूं। मैं और जगह पर जाता हूं तो मुझे कभी-कभी feel होता है कि लोगों ने मेरे से नाता तोड़ दिया हैं। हर किसी की नजर में मैं प्रधनमंत्री बन गया हूं, लेकिन एक अगर कोई अपवाद है तो मेरा सूरत है। मैं जब भी मिला हूं वही प्‍यार, वही अपनापन। प्रधानमंत्री वाला कोई Tag कहीं नजर नहीं आता है। यह जो परिवार भाव मैं अनुभव करता हूं।

आपको हैरानी होगी, बाहर वालों को भी शायद हैरानी होगी। यह सब धनी परिवार हैं। अरबों-खरबों में खेलने वाले लोग हैं। जब से मेरा सूरत आना तय हुआ, तो जिन-जिन परिवारों से मेरा निकट नाता रहा है, अब तो अरबो-खरबों पति हो गए हैं। कभी उनकी मां के हाथ से बाजरे के रोटी खाई है। कभी खिचड़ी खाई है। मुझे फोन क्‍या आया कि आज रात को सर्किट हाऊस में आप रूकने वाले हैं, तो बाजरे की रोटी भेज दूं क्‍या? खिचड़ी भेज दू क्‍या? आज सुबह भी मुझे जो नाश्‍ता आया एक परिवार ने पुराने मुझे वो अपने सौराष्‍ट्र में जो मोटी भाखरी बनाते हैं न, उनको याद था सुबह-सुबह भेज दी। उनको पता है, प्रधानमंत्री को क्‍या खाना है, क्‍या नहीं खाना है कोई मुश्किल काम नहीं है। लेकिन यह परिवार भाव है जिसकी हर परिवार की माँ ने, जिन्‍होंने कभी न कभी मेरी चिंता की है, वो उसी प्‍यार से मेरी चिंता में लगे हुए हैं। मैं समझता हूं जीवन का इससे बड़ा कोई सौभाग्‍य नहीं होता। पद से इंसान बड़ा नहीं होता हैं, यह प्‍यार ही है जो बड़प्‍पन को अपने सीने से सिमट कर रख देता है, जो आप लोगों ने मेरे साथ किया है मैं आपका आभारी हूं।

आज एक अस्‍पताल का लोकार्पण हो रहा है, आधुनिक अस्‍पताल है। जब मैं यहां था तो कहता था कि जिसका शिलान्‍यास मैं करूंगा, उसका उद्घाटन भी मैं करूंगा, तो लोगों को लगता था कि यह बड़ा अहंकारी है। यह अंहकार नहीं था। यह मेरे मन में एक commitment है कि यह शिलान्‍यास करके पत्‍थर गाढ़ करके तख्‍तियां लगाने की fashion समाप्‍त होनी चाहिए, जो चीज शुरू करे वो चीज परिपूर्ण होनी चाहिए। अगर परिपूर्ण नहीं होने वाली है, तो शुरू नहीं करना चाहिए। यहां आप सबको जितनी खुशी होती है, मुझे उससे भी ज्‍यादा होती है, क्‍योंकि विजया दशमी का वो दिन था। भारतीय जनता पार्टी ने मुझे प्रधानमंत्री के नाते घोषित कर दिया था, उम्‍मीदवार के रूप में। मैं देशभर में दौड़ रहा था उस समय, लेकिन उसके बावजूद भी मेरे विजया दशमी और नवरात्रि के उपवास पूर्ण हुए थे। मैं तय किया कि नहीं, मैं सूरत तो जाऊंगा ही चाहे कितनी कठिनाई क्‍यों न हो, और मैं आया था। और उस दिन यह लाल जी बादशाह वो मेरी बगल में तस्वीर निकालना चाहते थे, तो भूमि पूजन के लिए फावड़ा चलाना था, तो मैंने बादशाह को कहा 50 करोड़ दोगे तो मैं करने दूंगा, नहीं तो नहीं करने दूंगा। इस अधिकार भाव से मैंने आप लोगों के बीच काम किया है और वो मान गए थे। इतने अधिकार भाव से मैंने आप लोगों के बीच काम किया। और तब यह अस्‍पताल, जब मैं अपने सामने इसका भव्‍य रूप देखता हूं, मेरे लिए इससे बड़ा कोई संतोष नहीं हो सकता है। और इस काम को इतने बढि़या ढंग से परिपूर्ण करने के लिए पूरी टीम को मैं हृदय से बहुत-बहुत अभिनंदन करता हूं।

मैं देख रहा था कि दाताश्री के धन से यह अस्‍पताल नहीं बना है। यह अस्‍पताल परिवार भाव से बहाया गया परिश्रम से बना है। पैसा से ज्‍यादा मूल्‍यवान परिश्रम होता है, पसीना होता है और यहां सब लोग हैं। वहां पर बैठे हुए जो सब लोग हैं, उन्‍होंने बस पैसे बहाए नहीं है, अपना पसीना बहाया है, पैसों पर पसीने का अभिषेक किया है। और इसलिए इस अस्‍पताल में जो भी आएगा, सामान्‍य रूप से मैं डायमंड की फैक्‍ट्री का उद्घाटन करता तो मैं कह देता कि आपकी फैक्‍ट्री फले-फूले, आपका कारोबार बढ़े, आप textile industries करते तो मैं शुभकामनाएं देता, लेकिन आज मैं श्राप देता हूं, शुभकामनाएं नहीं देता हूं। मैं चाहूंगा कि किसी को भी अस्‍पताल में आने की जरूरत न पड़े। और एक बार आना पड़ा तो दोबारा कभी आने की जरूरत न पड़े, ऐसा मजबूत इंसान बन करके यहां से जाए यह भी साथ-साथ शुभकामनाएं देता हूं।

हमारे देश में डॉक्‍टरों की कमी, अस्‍पतालों की कमी, महंगाई दवाइयां। आज किसी मध्‍यम वर्ग के परिवार में अगर एक व्‍यक्ति बीमार हो जाए, तो उस परिवार का पूरा अर्थकारण समाप्‍त हो जाता है। मकान लेना है, नहीं ले पाता। बेटी की शादी करवानी है, नहीं करवा पाता। एक इंसान बीमार हो जाए तो। और ऐसे समय सरकार की जिम्‍मेदारी होती है कि हर किसी को आरोग्‍य सेवा उपलब्‍ध हो, हर किसी को एक सीमित खर्च से आरोग्‍य सेवा का लाभ मिलना चाहिए। भारत सरकार ने अभी Health Policy घोषित की है। अटल जी की सरकार के बाद, 15 साल के बाद इस सरकार ने Health Policy लाई है। बीच में बहुत काम रह गए, जो मुझे करने पड़ रहे हैं। अब दवाइयां, मैं गुजरात में था तो आपको मालूम है बहुत लोगों को मैं नाराज करता था अब दिल्‍ली में गया हूं तो देश में भी बहुत लोगों को नाराज करते रहता हूं। हर दिन एक काम करता ऐसा हूं कि कोई न कोई तो मेरे से नाराज हो ही जाता है। अब जो दवाइयां बनाने वाली कंपनियां जिस इंजेक्‍शन के कभी 1200 रुपया लेते थे, जिन गोलियों के कभी साढ़े तीन सौ, चार सौ रुपया लेते थे। हमने सबको बुलाया कि भई क्‍या कर रहे हो, कितनी लागत होती है, क्‍या खर्चा होता है और नियम बना करके जो दवाई 1200 रुपये में मिलती थी वो 70-80 रुपये में कैसे मिल जाए, जो 300 रुपये में मिलती थी वो 30 रुपये में कैसे मिल जाए। करीब सात सौ दवाइयां, उसके दाम तय कर लिए ताकि गंभीर से गंभीर बीमारी में गरीब से गरीब व्‍यक्ति को सस्‍ती दवाई मिले, यह काम किया है। दवाई बनाने वाले मुझसे कितने नाराज होंगे इसका आप अंदाजा कर सकते हैं।

आज heart patient.. हर परिवार में चिंता रहती है heart की। हर घर में भोजन के टेबल पर खाने की चर्चा होती है। वजन कम करो, कम खाओ, चर्चा होती है करते नहीं है कोई। लेकिन dining table चर्चा जरूरत होती है। हर किसी को heart attack की चिंता रहती है और heart में stent लगवाना, अब हम लोग जानकार तो है नहीं, डॉक्‍टर कहता है कि यह लगवाओगे तो 30-40 हजार रुपया होगा, patient पूछता है कि जिंदगी का क्‍या होगा, वो कहता है कि यह लगवाओगे तो चार-पांच साल तो कोई problem नहीं होगी। फिर दूसरा बताता है कि यह लगवाओगे, imported है तो डेढ़ लाख रुपया लगता है, यह लगवा दिया तो फिर जीवनभर देखने की जरूरत नहीं है। तो गरीब आदमी भी सोचता है कि यार 40,000 खर्च करके चार साल जीना है तो डेढ़ लाख खर्च करके जिंदगी अच्‍छी क्‍यों न गुजारू, वो डेढ़ लाख रुपये वाला ले लेता है। मैं stent वालों को बुलाया, मैं कहा कि भई कितना खर्चा होता है, तुम इतने रुपये मांगते हो, सालभर उनसे चर्चा चलती रही आखिरकार दो महीने पहले हमने निर्णय कर दिया जो 40,000 रुपये में stent मिलता है वो उनको 6-7 हजार रुपये में बेचना पड़ेगा, देगा पड़ेगा। जो डेढ़ लाख में देते हैं वो 20-22 हजार में देना पड़ेगा, ताकि गरीब से गरीब व्‍यक्ति affordable हो।

कभी-कभार तो ऐसे सामान्‍य व्‍यक्ति को मुसीबत होती है, ज्ञान होता नहीं और कुछ न कुछ लोग… अब इसके कारण सामाज का एक तबका है, बड़ा ताकतवर तबका है, उसकी मेरे प्रति नाराजगी बढ़ना बहुत स्‍वाभाविक है। लेकिन गरीब के लिए मध्‍यम वर्ग के लिए आरोग्‍य सेवाएं सुचारू रूप से उपलब्‍ध हो, उस दिशा में सरकार एक के बाद एक कदम उठा रही है। अभी जो विजय भाई बता रहे थे। हम अस्‍पताल में सस्‍ती दवाई के लिए प्रधानमंत्री भारतीय जन औषधि परियोजना यह प्रारंभ कर रहे हैं ताकि बहुत सस्‍ते में.. अभी भी मैंने देखा है कि डॉक्‍टर लोग पर्चा लिखते हैं, पर्चा ऐसे लिखते हैं ताकि वो गरीब व्‍यक्ति को बिचारे को समझ नहीं तो उस दवाई की दुकान में माल खरीदने जाता है, जहां महंगी मिलती है। हम कानून व्‍यवस्‍था करने वाले हैं डॉक्‍टर पर्ची लिखेंगे, तो लिखेंगे कि जेनरिक दवा खरीदने के लिए उसके लिए काफी है और दवा खरीदने की जरूरत नहीं है। तभी आदमी, गरीब व्‍यक्ति सस्‍ते में दवाई खरीद सकता है। जिस प्रकार से आरोग्‍य की सेवाओं में बीमार होने के बाद की चिंता है, उससे पहले preventive health care की भी उतनी ही चिंता जरूरी है।

मेरा स्‍वच्‍छता अभियान वो सीधा-सीधा आरोग्‍य से जुड़ा हुआ है। दुनिया में सारे सर्वे कहते हैं कि बच्‍चे अगर हाथ साबुन से धोए बिना खाना खाते हैं, तो दुनिया में करोड़ो बच्‍चे इस एक कारण से मौत के शरण हो जाते हैं। क्‍या हम आदत नहीं डाल सकते। आरोग्‍य की दृष्टि से स्‍वच्‍छता। सूरत के लोगों को स्‍वच्‍छता के पाठ पढ़ाने की जरूरत नहीं है। सूरत में जब महामारी आई उसके बाद सूरत ने स्‍वच्‍छता को अपना बना लिया। सूरत का स्‍वाभाव बन गया है स्‍वच्‍छता। देश के लिए प्रेरणा है। मैं कल यह रोड शो कर रहा था, मेरे साथ दिल्‍ली से जो अफसर आए थे, वो रोड शो नहीं देख रहे थे, सफाई देख रहे थे। बोले इतनी सफाई होती है, उनके दिमाग में सफाई भर गई। मैंने कहा आप जहां जाओंगे जरा बताना सबको। यह सूरत ने स्‍वाभाव बना दिया है। स्‍वच्‍छता अगर भारत का स्‍वभाव बने तो हमारे अरबों-खरबों रुपये बीमारी के पीछे खर्च होने बंद हो जाएंगे। हमारे गरीब एक बार बीमार हो जाते हैं, एक ऑटो रिक्‍शा, ड्राइवर बीमार हो जाए तो सिर्फ वो इंसान बीमार नहीं होता उसका परिवार तीन दिन के लिए भूखा रह जाता है, घर में कोई कमाने वाला नहीं होता। और इसलिए स्‍वच्‍छता.. मैं योग को ले करके पूरे विश्‍व में आंदोलन चला रहा हूं। 21 जून को सूरत भी शानदार योग का कार्यक्रम करके दिखाए। wellness के लिए योग, शरीर स्‍वास्‍थ्‍य के लिए आज जीवन का हिस्‍सा बनता जा रहा है। हमने इंद्रधनुष योजना के तहत देशभर में उन माताओं को, उन बालकों को खोज रहे हैं, जिनका टीकाकरण नहीं हुआ। टीकाकरण का अभियान चलाते हैं। दो करोड़ से ज्‍यादा ऐसी माताएं-बहनों को खोजा है, जिन्‍होंने टीकाकरण गांव में हो रहा था, लेकिन उन्‍होंने नहीं लगवाया है। सरकार ने खोज-खोज कर लोगों की सेवा करने के लिए बीड़ा उठाया है। लेकिन जन आंदोलन आवश्‍यक होता है, जन सहकार आवश्‍यक होता है।

कभी-कभी हम लोग यह सोचते हैं कि देश आजाद होने के बाद एक ऐसा माहौल बन गया है कि सब कुछ सरकार करेगी, लेकिन हमारा देश, उसका चरित्र अलग है। हमारा देश सरकारों से न चला है न बना है। हमारा देश न राजाओं से चला है न राजाओं ने बनाया है। हमारा देश न नेताओं से चला है न नेताओं ने बनाया है। हमारा देश चला है जनशक्ति के भरोसे, जन सेवा भाव के भरोसे। जिसके जन-जन में सेवा परमो धर्म, यह उनकी प्रकृति रही है। आप मुझे बताइये गांव-गांव आपको धर्मशालाएं दिखती हैं। हर तीर्थ यात्रा के बाद हजारों लोग रह सके, इतनी धर्मशालाएं हैं। दुनिया की कितने बड़े होटल से भी ज्‍यादा रूम होते हैं इन धर्मशालाओं के। दो-दो हजार कमरों की धर्मशालाएं होती है हमारे देश में। किसने बनाई? सरकारों ने नहीं बनाई, जतना जनार्दन ने बनाई है। गांव-गांव पानी नहीं होते थे, कुंए होते थे, बावड़ी होती थी। कौन बनाता था? सरकारें नहीं बनाती थी, जनता जनार्दन बनाती थी। गो-शालाएं क्‍या सरकार बनाती थी? जनता जनार्दन बनाती थी। पुस्‍तकालय सरकार बनाती थी, जनता जनार्दन बनाती थी। हमारे देश का यह मूल चरित्र रहा है सामाज जीवन के सारे कामों को करना सामाज की सामूहिक शक्ति का स्‍वाभाव रहा था। लेकिन आजादी के बाद धीरे-धीरे उसमें कमी आने लगी। फिर से एक बार दोबारा वो माहौल बना है। हर किसी को लगता है कि मैं समाज के लिए कुछ करूंगा, मैं सामूहिक रूप से कुछ करूंगा, मैं समाज की भलाई के कुछ करूंगा, उस दिशा में आज काम हो रहा है। मैं सूरत में बैठे हुए खास करके सौराष्‍ट्र के जितने लोग हैं। छोटे से छोटा रतन कलाकार भी उसके दिल में एक चीज़ मैंने हमेशा देखी है, अपने गांव में कुछ न कुछ अच्‍छा करने के लिए वो कुछ न कुछ देता रहता है। यह छोटी बात नहीं है जी। छोटा रतन कलाकार है। कोई ज्‍यादा income नहीं है। बड़ी म‍ुश्किल से महीना निकालता है। लेकिन खुद के गांव में कुछ होता है, तो मैं सूरत रहता हूं। गांव वाले कहते हैं कि भई जरा तुम स्‍कूल में इतना कर दो, गांव में इतना कर दो, वो रतन कलाकार कष्‍ट झेल करके भी कर देता है। यहां बैठे हर प्रमुख लोगों ने अपने गांव में उत्‍तम से उत्‍तम काम किए। कुछ न कुछ ऐसा किया है, अपने मां-बाप के नाम पर किया है, अपने परिवारजनों के नाम पर किया है, कुछ न कुछ किया है। गांव के विकास के अंदर योगदान दिया है। और आज भी गांव के साथ वैसे का वैसा नाता रखा है। दीवाली के दिन में अगर सौराष्‍ट्र जाना है, तो बस में टिकट नहीं मिलती है। यह जो लगाव है, यह समाज का उत्‍तम लक्षण है। और मैं चाहूंगा हमारे आने वाली पीढि़यों में भी यह बना रहा। पुरानी पीढ़ी के लोग रहे, तब तक चले ऐसा नहीं, आने वाली पीढि़यों में भी बना रहे। यह इस पूरे गुजरात की अमानत बनेगी। मैं फिर एक बार आज इस अस्‍पताल के उद्घाटन समारोह के समय आप सबके बीच आने का अवसर मिला, मैं आपका आभारी हूं और जैसा मथुर दास कह रहे थे, यहां से बयाना जा रहा हूं, वहां भी पानी का कार्यक्रम करने जा रहा हूं। --- जा रहा हूं वहां भी पानी का कार्यक्रम कर रहा हूं गुजरात ने पानी को ही अपनी एक बहुत बड़ी ताकत बना दिया और उसी ताकत से गुजरात आगे बढ़ रहा है और बढ करके रहेगा। इसी एक विश्‍वास के साथ मैं सबको बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं। उत्‍तम स्‍वास्‍थ्‍य के लिए शुभकामनाएं देता हूं।

जुलाई महीने में मैं इस्राइल जा रहा हूं। आप लोगों में से हर किसी का इस्राइल से नाता है। मैं देश्‍ का पहला प्रधानमंत्री हूं जो इस्राइल जा रहा है और डायमंड का कारोबार और इस्राइल से आज सीधा-सीधा नाता है और इसलिए वहां मैं आपका प्रतिनिधि बन करके भी जा रहा हूं। यह बात मैं आपको विश्‍वास दिलाता हूं। बहुत-बहुत धन्‍यवाद।

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Prime Minister Shri Narendra Modi paid homage today to Mahatma Gandhi at his statue in the historic Promenade Gardens in Georgetown, Guyana. He recalled Bapu’s eternal values of peace and non-violence which continue to guide humanity. The statue was installed in commemoration of Gandhiji’s 100th birth anniversary in 1969.

Prime Minister also paid floral tribute at the Arya Samaj monument located close by. This monument was unveiled in 2011 in commemoration of 100 years of the Arya Samaj movement in Guyana.