विशाल संख्या में पधारे हुए मेरे प्यारे भाइयो और बहनों,
ये मेरा सौभाग्य है कि आज डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर की 125वीं जन्म जयंती निमित्त, जिस भूमि पर इस महा पुरूष ने जन्म लिया था, जिस धरती पर सबसे पहली बार जिसके चरण-कमल पड़े थे, उस धरती को नमन करने का मुझे अवसर मिला है।
मैं इस स्थान पर पहले भी आया हूं। लेकिन उस समय के हाल और आज के हाल में आसमान-जमीन का अंतर है और मैं मध्य प्रदेश सरकार को, श्रीमान सुंदरलाल जी पटवा ने इसका आरंभ किया, बाद में श्रीमान शिवराज की सरकार ने इसको आगे बढ़ाया, परिपूर्ण किया। इसके लिए हृदय से बहुत-बहुत बधाई देता हूं उनका अभिनंदन करता हूं।
बाबा साहेब अम्बेडकर एक व्यक्ति नहीं थे, वे एक संकल्प का दूसरा नाम थे। बाबा साहेब अम्बेडकर जीवन जीते नहीं थे वो जीवन को संघर्ष में जोड़ देते थे, जोत देते थे। बाबा साहेब अम्बेडकर अपने मान-सम्मान, मर्यादाओं के लिए नहीं लेकिन समाज की बुराईयों के खिलाफ जंग खेल करके आखिरी झोर पर बैठा हुआ दलित हो, पीढि़त हो, शोषित हो, वंचित हो। उनको बराबरी मिले, उनको सम्मान मिले, इसके लिए अपमानित हो करके भी अपने मार्ग से कभी विचलित नहीं हुए। जिस महापुरूष के पास इतनी बड़ी ज्ञान संपदा हो, जिस महापुरूष के युग में विश्व की गणमान्य यूनिवर्सिटिस की डिग्री हो, वो महापुरूष उस कालखंड में अपने व्यक्तिगत जीवन में लेने, पाने, बनने के लिए सारी दुनिया में अवसर उनके लिए खुले पड़े थे। लेकिन इस देश के दलित, पीढि़त, शोषित, वंचितों के लिए उनके दिल में जो आग थी, जो उनके दिल में कुछ कर गुजरने का इरादा था, संकल्प था। उन्होंने इन सारे अवसरों को छोड़ दिया और वह अवसरों को छोड़ करके, फिर एक बार भारत की मिट्टी से अपना नाता जोड़ करके अपने आप को खपा दिया।
आज 14 अप्रैल बाबा साहेब अम्बेडकर की जन्म जयंती हो और मुझे हमारे अखिल भारतीय भिक्षुक संघ के संघ नायक डॉ. धम्मवीरयो जी का सम्मान करने का अवसर मिला। वो भी इस पवित्र धरती पर अवसर मिला। बहुत कम लोगों को पता होगा कि कैसी बड़ी विभूति आज हमारे बीच में है।
कहते है 100 भाषाओं के वो जानकार है, 100 भाषाएं, Hundred Languages. और बर्मा में जन्मे बाबा साहेब अम्बेडकर उन्हें बर्मा में मिले थे और बाबा साहेब के कहने पर उन्होंने भारत को अपनी कर्म भूमि बनाया और उन्होंने भारत में बुद्ध सत्व से दुनिया को जोड़ने को प्रयास अविरत किया।
मेरा तो व्यक्तिगत नाता उनके इतना निकट रहा है, उनके इतने आर्शीवाद मुझे मिलते रहे है। मेरे लिए वो एक प्रेरणा को स्थान रहे है। लेकिन आज मुझे खुशी है कि मुझे उनका सम्मान करने का सौभाग्य मिला। बाबा साहेब अम्बेडकर के साथ उनका वो नाता और बाबा साहेब अम्बेडकर ने कहा तो पूरा जीवन भारत के लिए खपा दिया। और ज्ञान की उनकी कोई तुलना नहीं कर सकता, इतने विद्यमान है। वे आज हमारे मंच पर आए इस काम की शोभा बढ़ाई इसलिए मैं डॉ. धम्मवीरयो जी का, संघ नायक जी का हृदय से आभार करता हूं। मैं फिर से एक बार प्रणाम करता हूं।
आज 14 अप्रैल से आने वाली 24 अप्रैल तक भारत सरकार के द्वारा सभी राज्यों सरकारों के सहयोग के साथ “ग्राम उदय से भारत उदय”, एक व्यापक अभियान प्रारंभ हो रहा है और मुझे खुशी है कि बाबा साहेब अम्बेडकर ने हमें जो संविधान दिया। महात्मा गांधी ने ग्राम स्वराज की जो भावना हमें दी, ये सब अभी भी पूरा होना बाकी है। आजादी के इतने सालों के बाद जिस प्रकार से हमारे गांव के जीवन में परिवर्तन आना चाहिए था, जो बदलाव आना चाहिए था। बदले हुए युग के साथ ग्रामीण जीवन को भी आगे ले जाने का आवश्यक था। लेकिन ये दुख की बात है अभी भी बहुत कुछ करना बाकि है। भारत का आर्थिक विकास 5-50 बढ़े शहरों से होने वाला नहीं है। भारत का विकास 5-50 बढ़े उद्योगकारों से नहीं होने वाला। भारत का विकास अगर हमें सच्चे अर्थ में करना है और लंबे समय तक Sustainable Development करना है तो गांव की नींव को मजबूत करना होगा। तब जा करके उस पर विकास की इमारत हम Permanent बना सकते है।
और इसलिए इस बार आपने बजट में भी देखा होगा कि बजट पूरी तरह गांव को समर्पित है, किसान को समर्पित है। और एक लंबे समय तक देश के ग्रामीण अर्थकारण को नई ऊर्जा मिले, नई गति मिले, नई ताकत मिले उस पर बल दिया गया है। और मैं साफ देख रहा हूं, जो भावना महात्मा गांधी की अभिव्यक्ति में आती थी, जो अपेक्षा बाबा साहेब अम्बेडकर संविधान में प्रकट हुई है, उसको चरितार्थ करने के लिए, टुकड़ो में काम करने से चलने वाला नहीं है। हमें एक जितने भी विकास के स्रोत हैं, सारे विकास के स्रोत को गांव की ओर मोड़ना है।
मैं सरकार में आने के बाद अगल-अलग कामों का Review करता रहता हूं, बहुत बारिकी से पूछता रहता हूं। अभी कुछ महिने पहले मैं भारत में ऊर्जा की स्थिति का Review कर रहा था। मैंने अफसरों को पूछा कि आजादी के अब 70 साल होने वाले है कुछ ही समय के बाद। कितने गांव ऐसे है जहां आजादी के 70 साल होने आए, अभी भी बिजली का खंभा नहीं पहुंचा है, बिजली का तार नहीं पहुंचा है। आज भी वो गांव के लोग 18वीं शताब्दी की जिंदगी में जी रहे है, ऐसे कितने गांव है। मैं सोच रहा था 200-500 शायद, दूर-सुदूर कहीं ऐसी जगह पर होंगे जहां संभव नहीं होगा। लेकिन जब मुझे बताया गया कि आजादी के 70 साल होने को आए है लेकिन 18,000 गांव ऐसे जहां बिजली का खंभा भी नहीं पहुंचा है। अभी तक उन 18,000 हजार गांव के लोगों ने उजियारा देखा नहीं है।
20वीं सदी चली गई, 19वीं शताब्दी चली गई, 21वीं शताब्दी के 15-16 साल बीत गए, लेकिन उनके नसीब में एक लट्टू भी नहीं था। मेरा बैचेन होना स्वाभाविक था। जिस बाबा साहेब अम्बेडकर ने वंचितों के लिए जिंदगी गुजारने का संदेश दिया हो, उस शासन में 18,000 गांव अंधेरे में गुजारा करते हों, ये कैसे मंजूर हो सकता है।
मैंने अफसरों को कहा कितने दिन में पूरा करोंगे, उन्होंने न जवाब मुझे दिन में दिया, न जवाब महिनों में दिया, उन्होंने जवाब मुझे सालों में दिया। बोले साहब सात साल तो कम से कम लग जाएंगे। मैंने सुन लिया मैंने कहा भई देखिए सात साल तक तो देश इंतजार नहीं कर सकता, वक्त बदल चुका है। हमने हमारी गति तेज करनी होगी। खैर उनकी कठिनाईयां थी वो उलझन में थे कि प्रधानमंत्री कह रहे है कि सात साल तो बहुत हो गया कम करो। तो बराबर मार-पीट करके वो कहने लगे साहब बहुत जोर लगाये तो 6 साल में हो सकता है।
खैर मैंने सारी जानकारियां ली अभ्यास करना शुरू किया और लाल किले पर से 15 अगस्त को जब भाषण करना था, बिना पूछे मैंने बोल दिया कि हम 1000 दिन में 18,000 गांव में बिजली पहुंचा देंगे। मैंने देश के सामने तिरंगे झंडे की साक्षी में लाल किले पर से देश को वादा कर दिया। अब सरकार दोड़ने लगी और आज मुझे खुशी के साथ कहना है कि शायद ये सपना मैं 1000 दिन से भी कम समय में पूरा कर दूंगा। जिस काम के लिए 70 साल लगे, 7 साल और इंतजार मुझे मंजूर नहीं है। मैंने हजार दिन में काम पूरा करने का बेड़ा उठाया पूरी सरकार को लगाया है। राज्य सरकारों को साथ देने के लिए आग्रह किया है और तेज गति से काम चल रहा है।
और व्यवस्था भी इतनी Transparent है। कि आपने अपने मोबाइल पर ‘गर्व’ - ‘GARV’ ये अगर App लांच करेंगे तो आपको Daily किस गांव में खंभा पहुंचा, किस गांव में तार पहुंचा, कहां बिजली पहुंची, इसका Report आपकी हथेली में मोबाइल फोन पर यहां पर कोई भी देख सकता है। ये देश की जनता को हिसाब देने वाली सरकार है, पल-पल का हिसाब देने वाली सरकार है, पाई-पाई का हिसाब देने वाली सरकार है और हिन्दुस्तान के सामान्य मानवी के सपनों को पूरा करने के लिए तेज गति से कदम आगे बढ़ाने वाली सरकार है। और उसी का परिणाम है कि आज जिस गांव में इतने सालों के बाद बिजली पहुंची है उन गांवों में ऊर्जा उत्सव मनाए जा रहे है, हफ्ते भर नाच-गान चल रहे है। लोग खुशियां मना रहे है कि चलो गांव में बिजली आई, अब घर में भी आ जाएंगी ये mood बना है।
हमारी दुनिया बिजली की बात तो दुनिया के लिए 18वीं, 19वीं शताब्दी की बात है। आज विश्व को optical fiber चाहिए, आज विश्व को digital network से जुड़ना है। जो दुनिया में है वो सारा उसकी हथेली पर होना चाहिए। ये आज सामान्य-सामान्य नागरिक भी चाहता है। अगर दुनिया के हर नागरिक के हाथ में उसके मोबाइल फोन में पूरा विश्व उपलब्ध है तो मेरे हिन्दुस्तान के गांव के लोगों के हाथ में क्यों नहीं होना चाहिए। ढाई लाख गांव जिसको digital connectivity देनी है, optical fiber network लगाना है। कई वर्षों से सपने देखें गए, काम सोचा गया लेकिन कहीं कोई काम नजर नहीं आया। मैं जानता हूं ढाई लाख गांवों में optical fiber network करना कितना कठिन है, लेकिन कठिन है तो हाथ पर हाथ रख करके बैठे थोड़े रहना चाहिए। कहीं से तो शुरू करना चाहिए और एक बार शुरू करेंगे तो गति भी आएंगी और सपने पूरे भी होंगे। आखिरकर बाबा साहेब अम्बेडकर जैसे संकल्प के लिए जीने वाले महापुरूष हमारी प्ररेणा हो तो गांव का भला क्यों नहीं हो सकता है।
हमारा देश का किसान, किसान कुछ नहीं मांग रहा है। किसान को अगर पानी मिल जाए तो मिट्टी में से सोना पैदा कर सकता है। बाकि सब चीजें वो कर सकता है। उसके पास वो हुनर है, उसके पास वो सामर्थ्य है, वो मेहनतकश है वो कभी पीछे मुड़ करके देखता नहीं है। और किसान, किसान अपनी जेब भरे तब संतुष्ट होता है वो स्वभाव का नहीं है, सामने वाले का पेट भर जाए तो किसान संतुष्ट हो जाता है ये उसका चरित्र होता है। और जिसे दूसरे का पेट भरने से संतोष मिलता है वो परिश्रम में कभी कमी नहीं करता है, कभी कटौती नहीं करता है।
और इसलिए हमने देश के किसानों के सामने एक संकल्प रखा है। गांव के अर्थ कारण को बदलना है। 2022 में किसान की income double करना बड़े-बड़े बुद्धिमान लोगों, बड़े-बड़े अनुभवी लोगों ने, बड़े-बड़े अर्थशस्त्रियों ने कहा है कि मोदी जी ये बहुत मुश्किल काम है। मुश्किल है तो मैं भी जानता हूं। अगर सरल होता तो ये देश की जनता मुझे काम न देती, देश की जनता ने काम मुझे इसलिए दिया है कि कठिन का ही तो मेरे नसीब में आए। काम कठिन होगा लेकिन इरादा उतना ही संकल्पबद्ध हो तो फिर रास्ते भी निकलते है और रास्ते मिल रहे है।
मैं शिवराज जी को बधाई देता हूं उन्होंने पूरी डिजाइन बनाई है, मध्य प्रदेश में 2022 तक किसानों की आया double करने का रास्ता क्या-क्या हो सकता है, initiative क्या हो सकते है, तरीके क्या हो सकते है, पूरा detail में उन्होंने बनाया। मैंने सभी राज्य सरकारों से आग्रह किया कि आप भी अपने तरीके से सोचिए। आपके पार जो उपलब्ध resource है, उसके आधार पर देखिए।
लेकिन ग्रामीण अर्थकारण भारत की अर्थनीति को ताकत देने वाला है। जब तक गांव के व्यक्ति का Purchasing Power बढ़ेगा नहीं और हम सोचें कि नगर के अंदर कोई माल खरीदने आएंगा और नगर की economy चलेंगी, तो चलने वाली नहीं है। इंदौर का बाजार भी तेज तब होगा, जब मऊ के गांव में लोगों की खरीद शक्ति बढ़ी होगी, तब जा करके इंदौर जा करके खरीदी करेगा और इसलिए ग्रामीण अर्थकारण की मजबूती ये भारत में आर्थिक चक्र को तेज गति देने का सबसे बड़ा Powerful engine है। और हमारी सारी विकास की जो दिशा है वो दिशा यही है।
बाबा साहेब अम्बेडकर जैसे एक प्रकार कहते थे कि शिक्षित बनो, संगठित बनो, संघर्ष करो। साथ-साथ उनका सपना ये भी था कि भारत आर्थिक रूप से समृद्ध हो, सामाजिक रूप से empowered हो और Technologically के लिए upgraded हो। वे सामाजिक समता, सामाजिक न्याय के पक्षकार थे, वे आर्थिक समृद्धि के पक्षकार थे और वे आधुनिक विज्ञान के पक्षकार थे आधुनिक Technology के पक्षकार थे। और इसलिए सरकार ने भी ये 14 अप्रैल से 24 अप्रैल, 14 अप्रैल बाबा अम्बेडकर साहेब की 125वीं जन्म जन्म जयंती और 24 अप्रैल पंचायती राज दिवस इन दोनों का मेल करके बाबा साहेब अम्बेडकर से सामाजिक-आर्थिक कल्याण का संदेश लेता हुए गांव-गांव जा करके गांव के एक ताकत का निर्णय लिया है।
आज सरकारी खजाने से, भारत सरकार के खजाने से एक गांव को करीब-करीब 75 लाख रुपए से ज्यादा रकम उसके गांव में हाथ में आती है। अगर योजनाबद्ध दीर्घ दृष्टि के साथ हमारा गांव का व्यक्ति करें काम, तो कितना बड़ा परिणाम ला सकता है ये हम जानते है।
हमारी ग्राम पंचायत की संस्था है। देश संविधान की मर्यादाओं से चलता है, कानून व्यवस्था, नियमों से चलता है। ग्राम पंचायत के अंदर उस भावना को प्रज्जवलित रखना आवश्यक है, वो निरंतर चेतना जगाए रखना आवश्यक है और इसलिए गांव के अंदर पंचायत व्यवस्था अधिक सक्रिय कैसे हो, अधिक मजबूत कैसे हो, दीर्घ दृष्टि वाली कैसे बने, उस दिशा में प्रयत्न करने की आवश्यकता, गांव-गांव में एक चेतना जगाकर के हो सकती है। बाबा साहेब अम्बेडकर का व्यक्तित्व ऐसा है कि गांव के अंदर वो चेतना जगा सकता है। गांव को संविधान की मर्यादा में आगे ले जाने के रास्ते उपलब्ध है। उसका पूरा इस्तेमाल करने का रास्ता उसको दिखा सकता है। अगर एक बार हम निर्णय करें।
मैं आज इंदौर जिले को भी हृदय से बधाई देना चाहता हूं और मैं मानता हूं कि इंदौर जिले ने जो काम किया है। पूरे जिले को खुले में शौच जाने से मुक्त करा दिया। यह बहुत उत्तम काम.. अगर 21वीं सदीं में भी मेरी मॉं-बहनों को खुले में शौच के लिए जाना पड़े, तो इससे बड़ी हम लोगों के लिए शर्मिन्दगी नहीं हो सकती। लेकिन इंदौर जिले ने, यहां की सरकार की टीम ने, यहां के राजनीतिक नेताओं ने, यहां के सामाजिक आगेवानों ने, यहां के नागरिकों ने, यह जो एक सपना पूरा किया, मैं समझता हूं बाबा साहेब अम्बेडकर को एक उत्तम श्रद्धांजलि इंदौर जिले ने दी है। मैं इंदौर जिले को बधाई देता हूं। और पूरे देश में एक माहौल बना है। हर जिले को लग रहा है Open defecation-free होने के लिए हर जिले में यह स्पर्धा शुरू हुई है। भारत को स्वच्छ बनाना है तो हमें सबसे पहले हमारी मॉं-बहनों को शौचालय के लिए खुले में जाना न पड़ रहा है, इससे मुक्ति दिलानी होगी। उसके लिए बहुत बड़ी मात्रा में हर किसी को मिलकर के काम करना पड़ेगा। ये करे, वो न करे; ये credit ले, वो न ले; इसके लिए काम नहीं है, यह तो एक सेवा भाव से करने वाला काम है, जिम्मेवारी से करने वाला काम है। इस “ग्रामोदय से भारत उदय” का जो पूरा मंत्र है, उसमें इस बात पर भी बल दिया गया है।
मेरे प्यारे भाइयो-बहनों, हमारे देश में हम कभी-कभी सुनते तो बहुत है। कई लोग छह-छह दशक से अपने आप को गरीबों के मसीहा के रूप में प्रस्तुत करते रहे हैं। जिनकी जुबां पर दिन-रात गरीब-गरीब-गरीब हुआ करता है। वे गरीबों के लिए क्या कर पाए, इसका हिसाब-किताब चौंकाने वाला है। मैं अपना समय बर्बाद नहीं करता। लेकिन क्या कर रहा हूं जो गरीबों की जिन्दगी में बदलाव ला सकता है। अभी आपने देखा मध्य प्रदेश के गरीबों के लिए, दलितों के लिए, पिछड़ों के लिए जो योजनाएं थी, उसके लोकार्पण का कार्यक्रम हुआ। कई लाभार्थियों को उनकी चीजें दी गई। इन सब में उस बात का संदेश है कि Empowerment of People. उनको आगे बढ़ने का सामर्थ्य दिया जा रहा है। जो मेरे दिव्यांग भाई-बहन है, किसी न किसी कारण शरीर का एक अंग उनको साथ नहीं दे रहा है। उनको आज Jaipur Foot का फायदा मिला और यह आंदोलन चलता रहने वाला है। यहां तो एक टोकन कार्यक्रम हुआ है और बाबा साहेब अम्बेडकर की जन्मभूमि पर यह कार्यक्रम अपने आप को एक समाधान देता है।
भाइयो-बहनों, आपको जानकर के हैरानी होगी। आज भी हमारे करोड़ों-करोड़ों गरीब भाई-बहन, जो झुग्गी-झोपड़ी में, छोटे घर में, कच्चे घर में गुजारा करते हैं, वे लकड़ी का चूल्हा जलाकर के खाना पकाते हैं। विज्ञान कहता है कि जब मॉ लकड़ी का चूल्हा जलाकर खाना पकाती है। एक दिन में 400 सिगरेट जितना धुँआ उस मॉं के शरीर में जाता है। आप कल्पना कर सकते हो, जिस मॉं के शरीर में 400 सिगरेट जितना धुँआ जाएगा, वो मॉं बीमार होगी कि नहीं होगी? उसके बच्चे बीमार होंगे कि नहीं होंगे और समाज के ऐसे कोटि-कोटि परिवार बीमारी से ग्रस्त हो जाए, तो भारत स्वस्थ बनाने क सपने कैसे पूरे होंगे?
पिछले एक वर्ष में, हमने trial basis पर काम चालू किया। मैंने समाज को कहा कि भाई, आप अपने गैस सिलेंडर की सब्सिडी छोड़ दीजिए और मुझे आज संतोष के साथ कहना है कि मैंने तो ऐसे ही चलते-चलते कह दिया था, लेकिन करीब-करीब 90 लाख परिवार और जो ज्यादातर मध्यम वर्गीय है, कोई स्कूल में टीचर है, कोई टीचर रिटायर्ड हुई मॉं है, पेंशन पर गुजारा करती है लेकिन मोदी जी ने कहा तो छोड़ दो। करीब 90 लाख लोगों ने अपने गैस सिलेंडर की सब्सिडी छोड़ दी और पिछले एक वर्ष में आजादी के बाद, एक वर्ष में इतने गैस सिलेंडर का कनेक्शन कभी नहीं दिया गया। पिछले वर्ष एक करोड़ गरीब परिवारों को गैस सिलेंडर का कनेक्शन दे दिया गया और उनको चूल्हे के धुँअे से मुक्ति दिलाने का काम हो गया। जब ये मेरा ‘पायलट प्रोजेक्ट’ सफलतापूर्वक हुआ और मैंने कोई घोषणा नहीं की थी, कर रहा था, चुपचाप उसको कर रहा था। जब सफलता मिली तो इस बजट में हमने घोषित किया है कि आने वाले तीन वर्ष में हम भारत के पॉंच करोड़ परिवार, आज देश में कुल परिवार है 25 करोड़ और थोड़े ज्यादा; कुल परिवार है 25 करोड़। संख्या है सवा सौ करोड़, परिवार है 25 करोड़ से ज्यादा। पॉंच करोड़ परिवार, जिनको गैस सिलेंडर का कनेक्शन देना है, गैस सिलेंडर देना है और उन पॉंच करोड़ परिवार में लकड़ी के चूल्हे से, धुँए में गुजारा कर रही मेरी गरीब माताओं-बहनों को मुक्ति दिलाने का अभियान चलाया है।
गरीब का भला कैसे होता है? प्रधानमंत्री जन-धन योजना! हम जानते है, अखबारों में पढ़ते हैं। कभी कोई शारदा चिट फंड की बात आती है, कभी और चिट फंड की बात आती है। लोगों की आंख में धूल झोंककर के बड़ी-बड़ी कंपनियॉं बनाकर के, लोगों से पैसा लेने वाले लोग बाद में छूमंतर हो जाते हैं। गरीब ने बेचारे ने बेटी की शादी के लिए पैसे रखे हैं, ज्यादा ब्याज मिलने वाला है इस सपने से; लेकिन बेटी कुंवारी रह जाती है क्योंकि पैसे जहां रखे, वो भाग जाता है। ये क्यों हुआ? गरीब को ये चिट फंड वालों के पास क्यों जाना पड़ा? क्योंकि बैंक के दरवाजे गरीबों के लिए खुलते नहीं थे। हमने प्रधानमंत्री जन-धन योजना के द्वारा हिन्दुस्तान के हर गरीब के लिए बैंक में खाते खोल दिए और आज गरीब आदमी को साहूकारों के पास जाकर के ब्याज के चक्कर में पड़ना नहीं पड़ रहा है। गरीब को अपने पैसे रखने के लिए किसी चिट फंड के पास जाना नहीं पड़ रहा है और गरीब को एक आर्थिक सुरक्षा देने का काम हुआ और उसके साथ उसको रूपे कार्ड दिया गया। उसके परिवार में कोई आपत्ति आ जाए तो दो लाख रुपए का बीमा दे दिया और मेरे पास जानकारी है, कई परिवार मुझे मिले कि अभी तो जन-धन एकाउंट खोला था और 15 दिन के भीतर-भीतर उनके घर में कोई नुकसान हो गया तो उनके पास दो लाख रुपए आ गए। परिवार ने कभी सोचा भी नहीं था कि दो लाख रुपए सीधे-सीधे उनके घर में पहुंच जाएंगे।
गरीब के लिए काम कैसे होता है? प्रधानमंत्री जन-धन योजना के द्वारा सिर्फ बैंक में खाता खुला, ऐसा नहीं है। वो भारत की आर्थिक व्यवस्था की मुख्यधारा में हिन्दुस्तान के गरीब को जगह मिली है, जो पिछले 70 साल में हम नहीं कर पाए थे। उसको पूरा करने से भारत की आर्थिक ताकत को बढ़ावा मिलेगा। आज दुनिया के अंदर हिन्दुस्तान के आर्थिक विकास का जय-जयकार हो रहा है। विश्व की सभी संस्थाएं कह रही हैं कि भारत बहुत तेज गति से आगे बढ़ रहा है। उसका मूल कारण देश के गरीब से गरीब व्यक्ति को साथ लेकर के चलने का हमने एक संकल्प किया, योजना बनाई और चल रहे हैं। जिसका परिणाम है कि आज आर्थिक संकटों के बावजूद भी भारत आर्थिक ऊंचाइयों पर जा रहा है। दुनिया आर्थिक संकटों को झेल रही है, हम नए-नए अवसर खोज रहे हैं।
अभी मैं मुम्बई से आ रहा था। आज मुम्बई में एक बड़ा महत्वपूर्ण कार्यक्रम था। बहुत कम लोगों को अम्बेडकर साहेब को पूरी तरह समझने का अवसर मिला है। ज्यादातर लोगों को तो यही लगता है कि बाबा साहेब अम्बेडकर यानी दलितों के देवता। लेकिन बहुत कम लोगों को मालूम है कि बाबा साहेब अम्बेडकर दीर्घदृष्टा थे। उनके पास भारत कैसा बने, उसका vision था। आज मैंने मुम्बई में एक maritime को लेकर के, सामुद्रिक शक्ति को लेकर के एक अंतर्राष्ट्रीय बड़े कार्यक्रम का उद्घाटन किया। वो 14 अप्रैल को इसलिए रखा था कि भारत में बाबा साहेब अम्बेडकर पहले व्यक्ति थे जिन्होंने maritime, navigation, use of water पर दीर्घदृष्टि से उन्होंने vision रखा था। उन्होंने ऐसी संस्थाओं का निर्माण किया था उस समय, जब वे सरकार में थे, जिसके आधार पर आज भी हिन्दुस्तान में पानी वाली, maritime वाली, navigation वाली संस्थाएं काम कर रही हैं। लेकिन बाबा साहेब अम्बेडकर को भुला दिया। हमने आज जानबूझ करके 14 अप्रैल को बाबा साहेब अम्बेडकर ने जो vision दिया था, उनके जन्मदिन 14 अप्रैल को, उसको साकार करने की दिशा में आज मुम्बई में एक समारोह करके मैं आ रहा हूं, आज उसका मैंने प्रारम्भ किया। लाखों-करोड़ों समुद्री तट पर रहने वाले लोग, हमारे मछुआरे भाई, हमारे नौजवान, उनको रोजगार के अवसर उपलब्ध होने वाले हैं, जो बाबा साहेब अम्बेडकर का vision था। इतने सालों तक उसको आंखों से ओझल कर दिया गया था। उसको आज चरितार्थ करने की दिशा में, एक तेज गति से आगे बढ़ने का प्रयास अभी-अभी मुम्बई जाकर के मैं करके आया हूं।
अभी हमारे दोनों पूर्व वक्ताओं ने पंचतीर्थ की बात कही है। कुछ लोग इसलिए परेशान है कि मोदी ये सब क्यों कर रहे हैं? ये हमारे श्रद्धा का विषय है, ये हमारे conviction का विषय है। हम श्रद्धा और conviction से मानते हैं कि बाबा साहेब अम्बेडकर ने सामाजिक एकता के लिए बहुत उच्च मूल्यों का प्रस्थापन किया है। सामाजिक एकता, सामाजिक न्याय, सामाजिक समरसता, बाबा साहेब अम्बेडकर ने जो रास्ता दिखाया है उसी से प्राप्त हो सकती है इसलिए हम बाबा साहेब अम्बेडकर के चरणों में बैठकर के काम करने में गर्व अनुभव करते हैं।
सरकारें बहुत आईं.. ये 26-अलीपुर, बाबा साहेब अम्बेडकर की मृत्यु के 60 साल के बाद उसका स्मारक बनाने का सौभाग्य हमें मिला। क्या 60 साल तक हमने रोका था किसी को क्या? और आज हम कर रहे हैं तो आपको परेशानी हो रही है। पश्चाताप होना चाहिए कि आपने किया क्यों नहीं? परेशान होने की जरूरत नहीं है, आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देने के लिए यही तो सामाजिक आंदोलन काम आने वाला है। और इसलिए मेरे भाइयो-बहनों एक श्रद्धा के साथ.. और मैं बड़े गर्व के साथ कहता हूं कि ऐसा व्यक्ति जिसकी मॉं बचपन में अड़ोस-पड़ोस के घरों में बर्तन साफ करती हो, पानी भरती हो, उसका बेटा आज प्रधानमंत्री बन पाया, उसका credit अगर किसी को जाता है तो बाबा साहेब अम्बेडकर को जाता है, इस संविधान को जाता है। और इसलिए श्रद्धा के साथ, एक अपार, अटूट श्रद्धा के साथ इस काम को हम करने लगे हैं। और आज से कर रहे हैं, ऐसा नहीं। हमने तो जीवन इन चीजों के लिए खपाया हुआ है। लेकिन वोट बैंक की राजनीति करने वालों ने समाज को टुकड़ों में बांटने के सिवाए कुछ सोचा नहीं है।
बाबा साहेब आम्बेडर, उन पर जो बीतती थी, शिक्षा में उनके साथ अपमान, जीवन के हर कदम पर अपमान, कितना जहर पीया होगा इस महापुरुष ने, कितना जहर पीया होगा जीवन भर और जब संविधान लिखने की नौबत आई, अगर वो सामान्य मानव होते, हम जैसे सामान्य मानव होते तो उनकी कलम से संविधान के अंदर कहीं तो कहीं उस जहर की एक-आध बिन्दु तो निकल पाती। लेकिन ऐसे महापुरुष थे जिसने जहर पचा दिया। अपमानों को झेलने के बाद भी जब संविधान बनाया तो किसी के प्रति कटुता का नामो-निशान नहीं था, बदले का भाव नहीं था। वैर भाव नहीं था, इससे बड़ी महानता क्या हो सकती है? लेकिन दुर्भाग्य से देश के सामने इस महापुरुष की महानताओं को ओझल कर दिया गया है। तब ऐसे महापुरुष के चरणों में बैठकर के कुछ अच्छा करने का इरादा जो रखते हैं, उनके लिए यही रास्ता है। उस रास्ते पर जाने के लिए हम आए हैं। मुझे गर्व है कि आज 14 अप्रैल को पूरे देश में “ग्राम उदय से भारत उदय” के आंदोलन का प्रारंभ इस धरती से हो रहा है। सामाजिक न्याय के लिए हो रहा है, सामाजिक समरसता के लिए हो रहा है।
मैं हर गांव से कहूंगा कि आप भी इस पवित्रता के साथ अपने गांव का भविष्य बदलने का संकल्प कीजिए। बाबा साहेब की 125वीं जयंती की अच्छी श्रद्धांजलि वही होगी कि हम हमारे गांव में कोई बदलाव लाए। वहां के जीवन में बदलाव लाए। सरकारी योजनाओं का व्यय न करते हुए, पाई-पाई का सदुपयोग करते हुए चीजों को करने लगे तो अपने आप बदलाव आना शुरू हो जाएगा।
मैं फिर एक बार मध्यप्रदेश सरकार का, इतनी विशाल संख्या में आकर के आपने हमें आशीर्वाद दिया। इसलिए जनता-जनार्दन का हृदय से बहुत-बहुत अभिनंदन करता हूं।
जय भीम, जय भीम। दोनों मुट्ठी पूरी ऊपर करके बोलिए जय भीम, जय भीम, जय भीम, जय भीम।