Knowledge is immortal and is relevant in every era: PM Modi

Published By : Admin | May 14, 2016 | 13:13 IST
At Simhasth Kumbh convention, we are seeing birth of a new effort: PM
We belong to a tradition where even a Bhikshuk says, may good happen to every person: PM
We should tell the entire world about the organising capacity of an event like the Kumbh: PM
Lets hold Vichar Kumbh every year with devotees...discuss why we need to plant trees, educate girl child: PM

हम लोगों का एक स्वभाव दोष रहा है, एक समाज के नाते कि हम अपने आपको हमेशा परिस्थितियों के परे समझते हैं। हम उस सिद्धांतों में पले-बढ़े हैं कि जहां शरीर तो आता और जाता है। आत्मा के अमरत्व के साथ जुड़े हुए हम लोग हैं और उसके कारण हमारी आत्मा की सोच न हमें काल से बंधने देती है, न हमें काल का गुलाम बनने देती है लेकिन उसके कारण एक ऐसी स्थिति पैदा हुई कि हमारी इस महान परंपरा, ये हजारों साल पुरानी संस्कृति, इसके कई पहलू, वो परंपराए किस सामाजिक संदर्भ में शुरू हुई, किस काल के गर्भ में पैदा हुई, किस विचार मंथन में से बीजारोपण हुआ, वो करीब-करीब अलब्य है और उसके कारण ये कुंभ मेले की परंपरा कैसे प्रारंभ हुई होगी उसके विषय में अनेक प्रकार के विभिन्न मत प्रचलित हैं, कालखंड भी बड़ा, बहुत बड़ा अंतराल वाला है।

कोई कहेगा हजार साल पहले, कोई कहेगा 2 हजार साल पहले लेकिन इतना निश्चित है कि ये परंपरा मानव जीवन की सांस्कृतिक यात्रा की पुरातन व्यवस्थाओं में से एक है। मैं अपने तरीक से जब सोचता हूं तो मुझे लगता है कि कुंभ का मेला, वैसे 12 साल में एक बार होता है और नासिक हो, उज्जैन हो, हरिद्वार हो वहां 3 साल में एक बार होता है प्रयागराज में 12 साल में एक बार होता है। उस कालखंड को हम देखें तो मुझे लगता है कि एक प्रकार से ये विशाल भारत को अपने में समेटने का ये प्रयास ये कुंभ मेले के द्वारा होता था। मैं तर्क से और अनुमान से कह सकता हूं कि समाज वेदता, संत-महंत, ऋषि, मुनि जो हर पल समाज के सुख-दुख की चर्चा और चिंता करते थे। समाज के भाग्य और भविष्य के लिए नई-नई विधाओं का अन्वेषण करते थे, Innovation करते थे। इन्हें वे हमारे ऋषि जहां भी थे वे बाह्य जगत का भी रिसर्च करते थे और अंतर यात्रा को भी खोजने का प्रयास करते थे तो ये प्रक्रिया निरंतर चलती रही, सदियों तक चलती रही, हर पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रही लेकिन संस्कार संक्रमण का काम विचारों के संकलन का काम कालानुरूप विचारों को तराजू पर तौलने की परंपरा ये सारी बातें इस युग की परंपरा में समहित थी, समाहित थी।

एक बार प्रयागराज के कुंभ मेले में बैठते थे, एक Final decision लिया जाता था सबके द्वारा मिलकर के कि पिछले 12 साल में समाज यहां-यहां गया, यहां पहुंचा। अब अगले 12 साल के लिए समाज के लिए दिशा क्या होगी, समाज की कार्यशैली क्या होगी किन चीजों की प्राथमिकता होगी और जब कुंभ से जाते थे तो लोग उस एजेंडा को लेकर के अपने-अपने स्थान पर पहुंचते थे और हर तीन साल के बाद जबकि कभी नासिक में, कभी उज्जैन में, कभी हरिद्वार में कुंभ का मेला लगता था तो उसका mid-term appraisal होता था कि भई प्रयागराज में जो निर्णय हम करके गए थे तीन साल में क्या अनुभव आया और हिंदुस्तान के कोने-कोने से लोग आते थे।

30 दिन तक एक ही स्थान पर रहकर के समाज की गतिविधियों, समाज की आवश्यकताएं, बदलता हुआ युग, उसका चिंतन-मनन करके उसमें फिर एक बार 3 साल का करणीय एजेंडा तय होता था। In the light of main Mahakumbh प्रयागराज में होता था और फिर 3 साल के बाद दूसरा जब कुंभ लगता था तो फिर से Review होता था। एक अद्भुत सामाजिक रचना थी ये लेकिन धीरे-धीरे अनुभव ये आता है कि परंपरा तो रह जाती है, प्राण खो जाता है। हमारे यहां भी अनुभव ये आया कि परंपरा तो रह गई लेकिन समय का अभाव है, 30 दिन कौन रहेगा, 45 दिन कौन रहेगा। आओ भाई 15 मिनट जरा डुबकी लगा दें, पाप धुल जाए, पुण्य कमा ले और चले जाए।

ऐसे जैसे बदलाव आय उसमें से उज्जैन के इस कुंभ में संतों के आशीर्वाद से एक नया प्रयास प्रारंभ हुआ है और ये नया प्रयास एक प्रकार से उस सदियों पुरानी व्यवस्था का ही एक Modern edition है और जिसमें वर्तमान समझ में, वैश्विक संदर्भ में मानव जाति के लिए क्या चुनौतियां हैं, मानव कल्याण के मार्ग क्या हो सकते हैं। बदलते हुए युग में काल बाह्य चीजों को छोड़ने की हिम्मत कैसे आए, पुरानी चीजों को बोझ लेकर के चलकर के आदमी थक जाता है। उन पुरानी काल बाह्य चीजों को छोड़कर के एक नए विश्वास, नई ताजगी के साथ कैसे आगे बढ़ जाए, उसका एक छोटा सा प्रयास इस विचार महाकुंभ के अंदर हुआ है।

जो 51 बिंदु, अमृत बिंदु इसमें से फलित हुए हैं क्योंकि ये एक दिन का समारोह नहीं है। जैसे शिवराज जी ने बताया। देश औऱ दुनिया के इस विषय के जानकार लोगों ने 2 साल मंथन किया है, सालभर विचार-विमर्श किया है और पिछले 3 दिन से इसी पवित्र अवसर पर ऋषियों, मुनियों, संतों की परंपरा को निभाने वाले महान संतों के सानिध्य में इसका चिंतन-मनन हुआ है और उसमें से ये 51 अमृत बिंदु समाज के लिए प्रस्तुत किए गए हैं। मैं नहीं मानता हूं कि हम राजनेताओं के लिए इस बात को लोगों के गले उतारना हमारे बस की बात है। हम नहीं मानते हैं लेकिन हम इतना जरूर मानते हैं कि समाज के लिए निस्वार्थ भाव से काम करने वाले लोग चाहे वो गेरुए वस्त्र में हो या न हो लेकिन त्याग और तपस्था के अधिष्ठान पर जीवन जीते हैं। चाहे एक वैज्ञानिक अपनी laboratory में खपा हुआ हो, चाहे एक किसान अपने खेत में खपा हुआ हो, चाहे एक मजदूर अपना पसीना बहा रहा हे, चाहे एक संत समाज का मार्गदर्शन करता हो ये सारी शक्तियां, एक दिशा में चल पड़ सकती हैं तो कितना बड़ा परिवर्तन ला सकती हैं और उस दिशा में ये 51 अमृत बिंदु जो है आने वाले दिनों में भारत के जनमानस को और वैश्विक जनसमूह को भारत किस प्रकार से सोच सकता है और राजनीतिक मंच पर से किस प्रकार के विचार प्रभाग समयानुकूल हो सकते हैं इसकी चर्चा अगर आने वाले दिनों में चलेगी, तो मैं समझता हूं कि ये प्रयास सार्थक होगा।


हम वो लोग हैं, जहां हमारी छोटी-छोटी चीज बड़ी समझने जैसी है। हम उस संस्कार सरिता से निकले हुए लोग हैं। जहां एक भिक्षुक भी भिक्षा मांगने के लिए जाता है, तो भी उसके मिहिल मुंह से निकलता है ‘जो दे उसका भी भला जो न दे उसका भी भला’। ये छोटी बात नहीं है। ये एक वो संस्कार परम्परा का परिणाम है कि एक भिक्षुक मुंह से भी शब्द निकलता है ‘देगा उसका भी भला जो नहीं देगा उसका भी भला’। यानी मूल चिंतन तत्वभाव यह है कि सबका भला हो सबका कल्याण हो। ये हर प्रकार से हमारी रगों में भरा पड़ा है। हमी तो लोग हैं जिनको सिखाया गया है। तेन तत्तेन भूंजीथा। क्या तर के ही भोगेगा ये अप्रतीम आनन्द होता है। ये हमारी रगों में भरा पड़ा है। जो हमारी रगों में है, वो क्या हमारे जीवन आचरण से अछूता तो नहीं हो रहा है। इतनी महान परम्परा को कहीं हम खो तो नहीं दे रहे हैं। लेकिन कभी उसको जगजोड़ा किया जाए कि अनुभव आता है कि नहीं आज भी ये सामर्थ हमारे देश में पड़ा है।

किसी समय इस देश के प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने देश को आहवान किया था कि सप्ताह में एक दिन शाम का खाना छोड़ दीजिए। देश को अन्न की जरूरत है। और इस देश के कोटी-कोटी लोगों ने तेन त्यक्तेन भुंजीथा इसको अपने जीवन में चरितार्थ करके, करके दिखाया था। और कुछ पीढ़ी तो लोग अभी भी जिन्दा हैं। जो लालबहादुर शास्त्री ने कहा था। सप्ताह में एक दिन खाना नहीं खाते हैं। ऐसे लोग आज भी हैं। तेन त्यक्तेन भुंजीथा का मंत्र हमारी रगों में पला है। पिछले दिनों में ऐसे ही बातों-बातों में मैंने पिछले मार्च महीने में देश के लोगों के सामने एक विषय रखा था। ऐसे ही रखा था। रखते समय मैंने भी नहीं सोचा था कि मेरे देश के जनसामान्य का मन इतनी ऊंचाइयों से भरा पड़ा है। कभी-कभी लगता है कि हम उन ऊंचाईयों को पहुंचने में कम पड़ जाते हैं। मैंने इतना ही कहा था। अगर आप सम्पन्न हैं, आप समर्थ हैं, तो आप रसोई गैस की सब्सिडी क्या जरूरत है छोड़ दीजिये न। हजार-पंद्रह सौ रुपये में क्या रखा है। इतना ही मैंने कहा था। और आज मैं मेरे देश के एक करोड़ से ज्यादा परिवारों के सामने सर झुका कर कहना चाहता हूं और दुनिया के सामने कहना चाहता हूं। एक करोड़ से ज्यादा परिवारों ने अपनी गैस सब्सिडी छोड़ दी। तेन त्यक्तेन भुंजीथा । और उसका परिणाम क्या है। परिणाम शासन व्यवस्था पर भी सीधा होता है। हमारे मन में विचार आया कि एक करोड़ परिवार गैस सिलेंडर की सब्सिडी छोड़ रहे हैं तो इसका हक़ सरकार की तिजोरी में भरने के लिये नहीं बनता है।

ये फिर से गरीब के घर में जाना चाहिए। जो मां लकड़ी का चूल्हा जला कर के एक दिन में चार सौ सिगरेट जितना धुआं अपने शरीर में ले जाती है। उस मां को लकड़ी के चूल्हे से मुक्त करा के रसोई गैस देना चाहिए और उसी में से संकल्प निकला कि तीन साल में पांच करोड़ परिवारों को गैस सिलेंडर दे कर के उनको इस धुएं वाले चूल्हे से मुक्ति दिला देंगे।

यहाँ एक चर्चा में पर्यावरण का मुद्दा है। मैं समझता हूं पांच करोड़ परिवारों में लकड़ी का चूल्हा न जलना ये जंगलों को भी बचाएगा, ये कार्बन को भी कम करेगा और हमारी माताओं को गरीब माताओं के स्वास्थ्य में भी परिवर्तन लाएगा। यहां पर नारी की एम्पावरमेंट की बात हुई नारी की dignity की बात हुई है। ये गैस का चूल्हा उसकी dignity को कायम करता है। उसकी स्वास्थ्य की चिंता करता है और इस लिए मैं कहता हूं - तेन त्यक्तेन भुंजीथा । इस मंत्र में अगर हम भरोसा करें। सामान्य मानव को हम इसका विश्वास दिला दें तो हम किस प्रकार का परिवर्तन प्राप्त कर सकते हैं। ये अनुभव कर रहे हैं।

हमारा देश, मैं नहीं मानता हूं हमारे शास्त्रों में ऐसी कोई चीज है, जिसके कारण हम भटक जाएं। ये हमलोग हैं कि हमारी मतलब की चीजें उठाते रहते हैं और पूर्ण रूप से चीजों को देखने का स्वभाव छोड़ दिया है। हमारे यहां कहा गया है – नर करनी करे तो नारायण हो जाए - और ये हमारे ऋषियों ने मुनियों ने कहा है। क्या कभी उन्होंने ये कहा है कि नर भक्ति करे तो नारायण हो जाए। नहीं कहा है। क्या कभी उन्होंने ये कहा है कि नर कथा करे तो नारायण हो जाए। नहीं कहा। संतों ने भी कहा हैः नर करनी करे तो नारायण हो जाए और इसीलिए ये 51 अमृत बिन्दु हमारे सामने है। उसका एक संदेश यही है कि नर करनी करे तो नारायण हो जाए। और इसलिए हम करनी से बाध्य होने चाहिए और तभी तो अर्जुन को भी यही तो कहा था योगः कर्मसु कौशलम्। यही हमारा योग है, जिसमें कर्म की महानता को स्वीकार किया गया है और इसलिए इस पवित्र कार्य के अवसर पर हम उस विचार प्रवाह को फिर से एक बार पुनर्जीवित कर सकते हैं क्या तमसो मा ज्योतिरगमय। ये विचार छोटा नहीं है। और प्रकाश कौनसा वो कौनसी ज्योति ये ज्योति ज्ञान की है, ज्योति प्रकाश की है। और हमी तो लोग हैं जो कहते हैं कि ज्ञान को न पूरब होता है न पश्चिम होता है। ज्ञान को न बीती हुई कल होती है, ज्ञान को न आने वाली कल होती है। ज्ञान अजरा अमर होता है और हर काल में उपकारक होता है। ये हमारी परम्परा रही है और इसलिए विश्व में जो भी श्रेष्ठ है इसको लेना, पाना, पचाना internalize करना ये हमलोगों को सदियों से आदत रही है।

हम एक ऐसे समाज के लोग हैं। जहां विविधताएं भी हैं और कभी-कभी बाहर वाले व्यक्ति को conflict भी नजर आता है। लेकिन दुनिया जो conflict management को लेकर के इतनी सैमिनार कर रही है, लेकिन रास्ते नहीं मिल रहे। हमलोग हैं inherent conflict management का हमें सिखाया गया है। वरना दो extreme हम कभी भी नहीं सोच सकते थे। हम भगवान राम की पूजा करते हैं, जिन्होंने पिता की आज्ञा का पालन किया था। और हम वो लोग हैं, जो प्रहलाद की भी पूजा करते हैं, जिसने पिता की आज्ञा की अवमानना की थी। इतना बड़ा conflict, एक वो महापुरुष जिसने पिता की आज्ञा को माना वो भी हमारे पूजनीय और एक दूसरा महापुरुष जिसने पिता की आज्ञा क का अनादर किया वो भी हमारा महापुरुष।

हम वो लोग हैं जिन्होंने माता सीता को प्रणाम करते हैं। जिसने पति और ससुर के इच्छा के अनुसार अपना जीवन दे दिया। और उसी प्रकार से हम उस मीरा की भी भक्ति करते हैं जिसने पति की आज्ञा की अवज्ञा कर दी थी। यानी हम किस प्रकार के conflict management को जानने वाले लोग हैं। ये हमारी स्थिति का कारण क्या है और कारण ये है कि हम हठबाधिता से बंधे हुए लोग नहीं हैं। हम दर्शन के जुड़े हुए लोग हैं। और दर्शन, दर्शन तपी तपाई विचारों की प्रक्रिया और जीवन शैली में से निचोड़ के रूप में निकलता रहता है। जो समयानुकूल उसका विस्तार होता जाता है। उसका एक व्यापक रूप समय में आता है। और इसलिए हम उस दर्शन की परम्पराओं से निकले हुए लोग हैं जो दर्शन आज भी हमें इस जीवन को जीने के लिए प्रेरणा देता है।

यहां पर विचार मंथन में एक विषय यह भी रहा – Values, Values कैसे बदलते हैं। आज दुनिया में अगर आप में से किसी को अध्ययन करने का स्वभाव हो तो अध्ययन करके देखिये। दुनिया के समृद्ध-समृद्ध देश जब वो चुनाव के मैदान में जाते हैं, तो वहां के राजनीतिक दल, वहां के राजनेता उनके चुनाव में एक बात बार-बार उल्लेख करते हैं। और वो कहते हैं – हम हमारे देश में families values को पुनःप्रस्थापित करेंगे। पूरा विश्व, परिवार संस्था, पारिवारिक जीवन के मूल्य उसका महत्व बहुत अच्छी तरह समझने लगा है। हम उसमें पले बड़े हैं। इसलिये कभी उसमें छोटी सी भी इधर-उधर हो जाता है तो पता नहीं चलता है कि कितना बड़ा नुकसान कर रहे हैं। लेकिन हमारे सामने चुनौती है कि values और values यानी वो विषय नहीं है कि आपकी मान्यता और मेरी मान्यता। जो समय की कसौटी पर कस कर के खरे उतरे हैं, वही तो वैल्यूज़ होते हैं। और इसलिए हर समाज के अपने वैल्यूज़ होते हैं। उन values के प्रति हम जागरूक कैसे हों। इन दिनों मैं देखता हूं। अज्ञान के कारण कहो, या तो inferiority complex के कारण कहो, जब कोई बड़ा संकट आ जाता है, बड़ा विवाद आ जाता है तो हम ज्यादा से ज्यादा ये कह कर भाग जाते हैं कि ये तो हमारी परम्परा है। आज दुनिया इस प्रकार की बातों को मानने के लिए नहीं है।

हमने वैज्ञानिक आधार पर अपनी बातों को दुनिया के सामने रखना पड़ेगा। और इसलिये यही तो कुम्भ के काल में ये विचार-विमर्श आवश्यकता है, जो हमारे मूल्यों की, हमारे विचारों की धार निकाल सके।

हम जानते हैं कभी-कभी जिनके मुंह से परम्परा की बात सुनते हैं। यही देश ये मान्यता से ग्रस्त था कि हमारे ऋषियों ने, मुनियों ने संतों ने समुद्र पार नहीं करना चाहिए। विदेश नहीं जाना चाहिए। ये हमलोग मानते थे। और एक समय था, जब समुद्र पार करना बुरा माना जाता था। वो भी एक परम्परा थी लेकिन काल बदल गया। वही संत अगर आज विश्व भ्रमण करते हैं, सातों समुद्र पार करके जाते हैं। परम्पराएं उनके लिए कोई रुकावट नहीं बनती हैं, तो और चीजों में परम्पराएं क्यों रुकावट बननी चाहिए। ये पुनर्विचार करने की आवश्यकता है और इसलिए परम्पराओं के नाम पर अवैज्ञानिक तरीके से बदले हुए युग को, बदले हुए समाज को मूल्य के स्थान पर जीवित रखते हुए उसको मोड़ना, बदलना दिशा देना ये हम सबका कर्तव्य बनता है, हम सबका दायित्व बनता है। और उस दायित्व को अगर हम निभाते हैं तो मुझे विश्वास है कि हम समस्याओं का समाधान खोज सकते हैं।

आज विश्व दो संकटों से गुजर रहा है। एक तरफ ग्लोबल वार्मिंग दूसरी तरफ आतंकवाद। क्या उपाय है इसका। आखिर इसके मूल पर कौन सी चीजें पड़ी हैं। holier than thou तेरे रास्ते से मेरा रास्ता ज्यादा सही है। यही तो भाव है जो conflict की ओर हमें घसीटता ले चला जा रहा है। विस्तारवाद यही तो है जो हमें conflict की ओर ले जा रहा है। युग बदल चुका है। विस्तारवाद समस्याओं का समाधान नहीं है। हम हॉरीजॉन्टल की तरह ही जाएं समस्याओं का समाधान नहीं है। हमें वर्टिकल जाने की आवश्यकता है अपने भीतर को ऊपर उठाने की आवश्यकता है, व्यवस्थाओं को आधुनिक करने की आवश्यकता है। नई ऊंचाइयों को पार करने के लिए उन मूल्यों को स्वीकार करने की आवश्यकता होती है और इसलिये समय रहते हुए मूलभूत चिंतन के प्रकाश में, समय के संदर्भ में आवश्यकताओं की उपज के रूप में नई विधाओं को जन्म देना होगा। वेद सब कुछ है लेकिन उसके बाद भी हमी लोग हैं जिन्होंने वेद के प्रकाश में उपनिषदों का निर्माण किया। उपनिषद में बहुत कुछ है। लेकिन समय रहते हमने भी वेद के प्रकाश में उपनिषद, उपनिषद के प्रकाश में समृति और स्रुति को जन्म दिया और समृति और स्रुतियां, जो उस कालखंड को दिशा देती है, उसके आधार पर हम चलें। आज हम में किसी को वेद के नाम भी मालूम नहीं होंगे। लेकिन वेद के प्रकाश में उपनिषद, उपनिषद के प्रकाश में श्रुति और समृति वो आज भी हमें दिशा देती हैं। समय की मांग है कि अगर 21वीं सदी में मानव जाति का कल्याण करना है तो चाहे वेद के प्रकाश में उपनिषद रही हो, उपनिषद के प्रकाश में समृति और श्रुति रही हो, तो समृति और श्रुति के प्रकाश में 21वीं सदी के मानव के कल्याण के लिए किन चीजों की जरूरत है ये 51 अमृत बिन्दु शायद पूर्णतयः न हो कुछ कमियां उसमें भी हो सकती हैं। क्या हम कुम्भ के मेले में ऐसे अमृत बिन्दु निकाल कर के आ सकते हैं।

मुझे विश्वास है कि हमारा इतना बड़ा समागम। कभी – कभी मुझे लगता है, दुनिया हमे कहती है कि हम बहुत ही unorganised लोग हैं। बड़े ही विचित्र प्रकार का जीवन जीने वाले बाहर वालों के नजर में हमें देखते हैं। लेकिन हमें अपनी बात दुनिया के सामने सही तरीके से रखनी आती नहीं है। और जिनको रखने की जिम्मेवारी है और जिन्होंने इस प्रकार के काम को अपना प्रोफेशन स्वीकार किया है। वे भी समाज का जैसा स्वभाव बना है शॉर्टकट पर चले जाते हैं। हमने देखा है कुम्भ मेला यानी एक ही पहचान बना दी गई है नागा साधु। उनकी फोटो निकालना, उनका प्रचार करना, उनका प्रदर्शन के लिए जाना इसीके आसपास उसको सीमित कर दिया गया है। क्या दुनिया को हम गर्व के साथ कह सकते हैं कि हमारे देश के लोगों की कितनी बड़ी organizing capacity है। क्या ये कुम्भ मेले का कोई सर्कुलर निकला था क्या। निमंत्रण कार्ड गया था क्या।

हिन्दुस्तान के हर कोने में दुनिया में रहते हुए भारतीय मूल के लोगों को कोई इनविटेशन कार्ड गया था क्या। कोई फाइवस्टार होटलों का बुकिंग था क्या। एक सिपरा मां नदी के किनारे पर उसकी गोद में हर दिन यूरोप के किसी छोटे देश की जनसंख्या जितने लोग आते हों, 30 दिन तक आते हों। जब प्रयागराज में कुंभ का मेला हो तब गंगा मैया के किनारे पर यूरोप का एकाध देश daily इकट्ठा होता हो, रोज नए लोग आते हों और कोई भी संकट न आता हो, ये management की दुनिया की सबसे बड़ी घटना है लेकिन हम भारत का branding करने के लिए इस ताकत का परिचय नहीं करवा रहे हैं।

मैं कभी-कभी कहता हूं हमारे हिंदुस्तान का चुनाव दुनिया के लिए अजूबा है कि इतना बड़ा देश दुनिया के कई देशों से ज्यादा वोटर और हमारा Election Commission आधुनिक Technology का उपयोग करते हुए सुचारु रूप से पूरा चुनाव प्रबंधन करता है। विश्व के लिए, प्रबंधन के लिए ये सबसे बड़ा case study है, सबसे बड़ा case study है। मैं तो दुनिया की बड़ी-बड़ी Universities को कहता हूं कि हमारे इस कुंभ मेले की management को भी एक case study के रूप में दुनिया की Universities को study करना चाहिए।

हमने अपने वैश्विक रूप में अपने आप को प्रस्तुत करने के लिए दुनिया को जो भाषा समझती है, उस भाषा में रखने की आदत भी समय की मांग है, हम अपनी ही बात को अपने ही तरीके से कहते रहेंगे तो दुनिया के गले नहीं उतरेगी। विश्व जिस बात को जिस भाषा में समझता है, जिस तर्क से समझता है, जिस आधारों के आधार पर समझ पाता है, वो समझाने का प्रयास इस चिंतन-मनन के द्वारा तय करना पड़ेगा। ये जब हम करते हैं तो मुझे विश्वास है, इस महान देश की ये सदियों पुरानी विरासत वो सामाजिक चेतना का कारण बन सकती है, युवा पीढ़ी के आकर्षण का कारण बन सकती है और मैं जो 51 बिंदु हैं उसके बाहर एक बात मैं सभी अखाड़े के अधिष्ठाओं को, सभी परंपराओं से संत-महात्माओं को मैं आज एक निवेदन करना चाहता हूं, प्रार्थना करना चाहता हूं। क्या यहां से जाने के बाद हम सभी अपनी परंपराओं के अंदर एक सप्ताह का विचार कुंभ हर वर्ष अपने भक्तों के बीच कर सकते हैं क्या।

मोक्ष की बातें करें, जरूर करें लेकिन एक सप्ताह ऐसा हो कि जहां धरती की सच्चाइयों के साथ पेड़ क्यों उगाना चाहिए, नदी को स्वच्छ क्यों रखना चाहिए, बेटी को क्यों पढ़ाना चाहिए, नारी का गौरव क्यों करना चाहिए वैज्ञानिक तरीके से और देश भर के विधिवत जनों बुलाकर के, जिनकी धर्म में आस्था न हो, जो परमात्मा में विश्वास न करता हो, उसको भी बुलाकर के जरा बताओ तो भाई और हमारा जो भक्त समुदाय है। उनके सामने विचार-विमर्श हर परंपरा में साल में एक बार 7 दिन अपने-अपने तरीके से अपने-अपने स्थान पर ज्ञानी-विज्ञानी को बुलाकर के विचार-विमर्श हो तो आप देखिए 3 साल के बाद अगला जब हमारा कुंभ का अवसर आएगा और 12 साल के बाद जो महाकुंभ आता है वो जब आएगा आप देखिए ये हमारी विचार-मंथन की प्रक्रिया इतनी sharpen हुई होगी, दुनिया हमारे विचारों को उठाने के लिए तैयार होगी।

जब अभी पेरिस में पुरा विश्व climate को लेकर के चिंतित था, भारत ने एक अहम भूमिका निभाई और भारत ने उन मूल्यों को प्रस्तावित करने का प्रयास किया। एक पुस्तक भी प्रसिद्ध हुई कि प्रकृति के प्रति प्रेम का धार्मिक जीवन में क्या-क्या महत्व रहा है और पेरिस के, दुनिया के सामने life style को बदलने पर बल दिया, ये पहली बार हुआ है।

हम वो लोग हैं जो पौधे में भी परमात्मा देखते हैं, हम वो लोग हैं जो जल में भी जीवन देखते हैं, हम वो लोग हैं जो चांद और सूरज में भी अपने परिवार का भाव देखते हैं, हम वो लोग हैं जिनको... आज शायद अंतरराष्ट्रीय Earth दिवस मनाया जाता होगा, पृथ्वी दिवास मनाया जाता होगा लेकिन देखिए हम तो वो लोग हैं जहां बालक सुबह उठकर के जमीन पर पैर रखता था तो मां कहती थी कि बेटा बिस्तर पर से जमीन पर जब पैर रखते हो तो पहले ये धरती मां को प्रणाम करो, माफी मांगों, कहीं तेरे से इस धरती मां को पीढ़ा न हो हो जाए। आज हम धरती दिवस मनाते हैं, हम तो सदियों से इस परंपरा को निभाते आए हैं।

हम ही तो लोग हैं जहां मां, बालक को बचपन में कहती है कि देखो ये पूरा ब्रहमांड तुम्हारा परिवार है, ये चाँद जो है न ये चाँद तेरा मामा है। ये सूरज तेरा दादा है। ये प्रकृति को अपना बनाना, ये हमारी विशेषता रही है।

सहज रूप से हमारे जीवन में प्रकृति का प्रेम, प्रकृति के साथ संघर्ष नहीं, सहजीवन के संस्कार हमें मिले हैं और इसलिए जिन बिंदुओं को लेकर के आज हम चलना चाहते हैं। उन बिंदुओं पर विश्वास रखते हुए और जो काल बाह्य है उसको छोड़ना पड़ेगा। हम काल बाह्य चीजों के बोझ के बीच जी नहीं सकते हैं और बदलाव कोई बड़ा संकट है, ये डर भी मैं नहीं मानता हूं कि हमारी ताकत का परिचय देता है। अरे बदलाव आने दो, बदलाव ही तो जीवन होता है। मरी पड़ी जिंदगी में बदलाव नहीं होता है, जिंदा दिल जीवन में ही तो बदलाव होता है, बदलाव को स्वीकार करना चाहिए। हम सर्वसमावेशक लोग हैं, हम सबको जोड़ने वाले लोग हैं। ये सबको जोड़ने का हमारा सामर्थ्य है, ये कहीं कमजोर तो नहीं हो रहा अगर हम कमजोर हो गए तो हम जोड़ने का दायित्व नहीं निभा पाएंगे और शायद हमारे सिवा कोई जोड़ पाएगा कि नहीं पाएगा ये कहना कठिन है इसलिए हमारा वैश्विक दायित्व बनता है कि जोड़ने के लिए भी हमारे भीतर जो विशिष्ट गुणों की आवश्यकता है उन गुणों को हमें विकसित करना होगा क्योंकि संकट से भरे जन-जीवन को सुलभ बनाना हम लोगों ने दायित्व लिया हुआ है और हमारी इस ऋषियों-मुनियों की परंपरा ज्ञान के भंडार हैं, अनुभव की एक महान परंपरा रही है, उसके आधार पर हम इसको लेकर के चलेंगे तो मुझे पूरा विश्वास है कि जो अपेक्षाएं हैं, वो पूरी होंगी। आज ये समारोह संपन्न हो रहा है।

मैं शिवराज जी को और उनकी पूरी टीम को हृदय से बहुत-बहुत बधाई देता हूं इतने उत्तम योजना के लिए, बीच में प्रकृति ने कसौटी कर दी। अचानक आंधी आई, तूफान सा बारिश आई, कई भक्त जनों को जीवन अपना खोना पड़ा लेकिन कुछ ही घंटों में व्यवस्थाओं को फिर से ठीक कर दी। मैं उन सभी 40 हजार के करीब मध्य प्रदेश सरकार के छोटे-मोटे साथी सेवारत हैं, मैं विशेष रूप से उनको बधाई देना चाहता हूं कि आपके इस प्रयासों के कारण सिर्फ मेला संपन्न हुआ है, ऐसा नहीं है। आपके इन उत्तम प्रयासों के कारण विश्व में भारत की एक छवि भी बनी है। भारत के सामान्य मानव के मन में हमारा अपने ऊपर एक विश्वास बढ़ता है इस प्रकार के चीजों से और इसलिए जिन 40 हजार के करीब लोगों ने 30 दिन, दिन-रात मेहनत की है उनको भी मैं बधाई देना चाहता हूं, मैं उज्जैनवासियों का भी हृदय से अभिनंदन करना चाहता हूं, उन्होंने पूरे विश्व का यहां स्वागत किया, सम्मान किया, अपने मेहमान की तरह सम्मान किया और इसलिए उज्जैन के मध्य प्रदेश के नागरिक बंधु भी अभिनंदन के बहुत-बहुत अधिकारी हैं, उनको भी हृदय से बहुत-बहुत अभिनंदन करता हूं और अगले कुंभ के मेले तक हम फिर एक बार अपनी विचार यात्रा को आगे बढ़ाएं इसी शुभकामनाओं के साथ आपका बहुत-बहुत धन्यवाद, फिर एक बार सभी संतों को प्रणाम और उनका आशीर्वाद, उनका सामर्थ्य, उनकी व्यवस्थाएं इस चीज को आगे चलाएगी, इसी अपेक्षा के साथ सबको प्रणाम।

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श्री विनीत जैन जी, Industry Leaders, CEOs, अन्य सभी वरिष्ठ महानुभाव, देवियों और सज्जनों ! आप सबको नमस्कार…

 Last time जब मैं ET समिट में आया था तो चुनाव होने ही वाले थे। और उस समय मैंने आपके बीच पूरी विनम्रता से कहा था कि हमारे तीसरे टर्म में भारत एक नई स्पीड से काम करेगा। मुझे संतोष है कि ये स्पीड आज दिख भी रही है और देश इसको समर्थन भी दे रहा है। नई सरकार बनने के बाद, देश के अनेक राज्यों में बीजेपी-NDA को जनता का आशीर्वाद लगातार मिल रहा है! जून में ओडिशा के लोगों ने विकसित भारत के संकल्प को गति दी, फिर हरियाणा के लोगों ने समर्थन किया और अब दिल्ली के लोगों ने हमें भरपूर समर्थन दिया है। ये एक एक्नॉलेजमेंट है कि देश की जनता आज किस तरह विकसित भारत के लक्ष्य के लिए कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है।

साथियों,

जैसा आपने भी उल्लेख किया मैं अभी कल रात ही अमेरिका और फ्रांस की अपनी यात्रा से लौटा हूं। आज दुनिया के बड़े देश हों, दुनिया के बड़े मंच हों, भारत को लेकर जिस विश्वास से भरे हुए हैं, ये पहले कभी नहीं था। ये पेरिस में AI एक्शन समिट के दौरान हुए डिशकशंस में भी रिफ्लेक्ट हुआ है। आज भारत ग्लोबल फ्यूचर से जुड़े विमर्श के सेंटर में है, और कुछ चीजों में उसे लीड भी कर रहा है। मैं कभी-कभी सोचता हूं, अगर 2014 में देशवासियों ने हमें आशीर्वाद नहीं दिए होते, आप भी सोचिये, भारत में reforms की एक नई क्रांति नहीं शुरू हुई होती, यानी मुझे नहीं लगता है कि हो सकता है ये कतई नहीं होता, आप भी इस बात को यानी सिर्फ कहने को नहीं convince होंगे। क्या इतने सारे बदलाव होते क्या? आपमें से जो हिन्दी समझते होंगे उनको मेरी बात तुरंत समझ में आई होगी। देश तो पहले भी चल रहा था। Congress speed of development...और congress speed of corruption,ये दोनों चीज़ें देश देख रहा था। अगर वही जारी रहता, तो क्या होता? देश का एक अहम Time Period बर्बाद हो जाता। 2014 में तो कांग्रेस सरकार ये लक्ष्य लेकर चल रही थी कि 2044, यानी 2014 में वो सोचते थे और उनका डिक्लेयर टारगेट था कि 2044 तक भारत को Eleventh से Third Largest Economy बनाएंगे। 2044, यानी तीस साल का टाइम पीरियड था। ये था...congress का speed of development और विकसित भारत का स्पीड ऑफ डेवलपमेंट क्या होता है, ये भी आप देख रहे हैं। सिर्फ एक दशक में भारत, टॉप फाइव इकॉनॉमी में आ गया। और साथियों मैं पूरी जिम्मेदारी से कह रहा हूं अब अगले कुछ सालों में ही, आप भारत को दुनिया की third largest economy बनते देखेंगे। आप हिसाब लगाइए 2044… एक युवा देश को, यही स्पीड चाहिए और आज इसी स्पीड से भारत चल रहा है।

साथियों,

पहले की सरकारें Reforms से बचती रहीं, और ये बात भूलनी नहीं चाहिए ये ईटी वाले भूला देते हैं, ये मैं याद कराता हूं। जिस रिफार्म के गाजे बाजे हो रहे हैं ना वो because of compulsion था conviction से नहीं था। आज हिन्दुस्तान जो रिफार्म कर रहा है वो conviction से कर रहा है। उनमें एक सोच रही, अब कौन इतनी मेहनत करे, रिफार्म की क्या जरूरत है, अब लोगों ने बिठाया है, मौज करो यार, 5 साल निकाल दो, चुनाव आएगा तब देखेंगे। अक्सर, इस बात की चर्चा ही नहीं होती थी कि बड़े reforms से देश में कितना कुछ बदल सकता है। आप व्यापार जगत के लोग हैं सिर्फ हिसाब किताब आंकड़े नहीं लगाते, आप अपनी strategy को रिव्यु करते हैं। पुरानी पद्यतियों को छोड़ते हैं। एक समय में कितनी ही लाभकारक रही हो उसको भी छोड़ते हैं आप, जो कालवाहय हो जाता है उसका बोझ उठाकर कोई उद्योग चलता नहीं है जी, उसे छोड़ता ही है। आमतौर पर भारत में जहां तक सरकारों की बात है, गुलामी के बोझ में जीने की एक आदत पड़ चुकी थी। इसलिए, आज़ादी के बाद भी अंग्रेज़ों के जमाने की चीज़ों को ढोया जाता रहा। अब हम लोग आमतौर पर बोलते भी हैं, सुनते भी हैं और कभी कभी तो लगता है कि जैसे कोई बड़ा महत्वपूर्ण मंत्र है, बड़ा श्रद्धापूर्ण मंत्र है ऐसे बोलते हैं, justice delayed is justice denied, ऐसी बातें हम लंबे समय तक सुनते रहे, लेकिन इसको ठीक कैसे किया जाए, इस पर काम नहीं हुआ। समय के साथ हम इन चीजों के इतने आदी हो गए कि बदलाव को नोटिस ही नहीं कर पाते। और हमारे यहां तो एक ऐसा इकोसिस्टम भी है, कुछ साथी यहां भी बैठे होंगे जो अच्छी चीज़ों के बारे में चर्चा होने ही नहीं देते। वो उसको रोकने में ही ऊर्जा लगाए रखते हैं। जबकि लोकतंत्र में अच्छी चीज़ों पर भी चर्चा होना, मंथन होते रहना, ये भी लोकतंत्र की मजबूती के लिए उतना ही जरूरी है। लेकिन एक धारणा बना दी गई है कि कुछ नेगेटिव कहो, नेगेटिविटी फैलाओ, वही डेमोक्रेटिक है। अगर पॉजिटिव बातें होती हैं, तो डेमोक्रेसी को कमज़ोर करार कर दिया जाता है। इस मानसिकता से बाहर आना बहुत ज़रूरी है। मैं आपको कुछ उदाहरण दूंगा।

साथियों,

भारत में कुछ समय पहले तक जो पीनल कोड चल रहे थे, वो 1860 के बने थे। 1860 के, देश आजाद हुआ लेकिन हमें याद नहीं आया, क्योंकि गुलामी की मानसिकता में जीने की आदत हो गई थी। इनका मकसद, 1860 में जो कानून बने, मकसद क्या था, उसका मकसद था भारत में गुलामी को मजबूत करना, भारत के नागरिकों को दंड देना। जिस सिस्टम के मूल में ही दंड है, वहां न्याय कैसे मिल सकता था। इसलिए इस सिस्टम के कारण न्याय मिलने में कई-कई साल लग जाते थे। अब देखिए, हमने परिवर्तन किया बहुत बड़ा, बड़ी मेहनत करनी पड़ी ऐसे नहीं हुआ है, लाखों ह्यूनम आवर्स लगे है इसमें और भारतीय न्याय संहिता को लेकर के हम आए, भारतीय संसद ने इसको मान्यता दी, अब ये न्याय संहिता को लागू हुए अभी 7-8 महीने ही हुए हैं, लेकिन बदलाव साफ-साफ नज़र आ रहा है। अखबार में नहीं, आप लोगों में जाएंगे तो बदलाव नजर आएगा। न्याय संहिता लागू होने के बाद क्या बदलाव आया है, मैं बताता हूं, एक ट्रिपल मर्डर केस में FIR से लेकर फैसला आने तक सिर्फ 14 दिन लगे, इसमें उम्रकैद की सजा हो गई। एक स्थान पर एक नाबालिग की हत्या के केस को 20 दिन में अंतिम परिणाम तक पहुंचाया गया। गुजरात में गैंगरेप के एक मामले में 9 अक्टूबर को केस दर्ज हुआ, 26 अक्टूबर को चार्जशीट भी दाखिल हो गई। और आज 15 फरवरी को ही कोर्ट ने आरोपियों को दोषी करार दे दिया। आंध्र प्रदेश में 5 महीने के एक बच्चे से अपराध के मामले में अदालत ने दोषी को 25 वर्ष की सजा सुनाई है। इस केस में डिजिटल सबूतों ने बड़ी भूमिका निभाई। एक और मामले में रेप और मर्डर के आरोपी की तलाश में e-prison मॉड्यूल से बड़ी मदद मिली। इसी तरह एक राज्य में रेप और मर्डर का केस हुआ और तुरंत ही ये पता चल गया कि संदिग्ध दूसरे राज्य में एक क्राइम में पहले जेल जा चुका है। इसके बाद उसकी गिरफ्तारी में भी समय नहीं लगा। ऐसे अनेक मामले मैं गिना सकता हूं, जिसमें आज लोगों को तेज़ी से न्याय मिलने लगा है।

साथियों,

ऐसा ही एक बड़ा Reform प्रॉपर्टी राइट्स को लेकर हुआ है। यूएन की एक स्टडी में किसी देश के लोगों के पास प्रॉपर्टी राइट्स का ना होना एक बहुत बड़ा चैलेंज माना गया है। दुनिया के अनेक देशों में करोड़ों लोगों के पास प्रॉपर्टी के कानूनी दस्तावेज नहीं हैं। जबकि लोगों के पास प्रॉपर्टी राइट्स होने से गरीबी कम करने में मदद मिलती है। ये बारीकियां पहले की सरकारों को पता भी नहीं था, और कौन इतना सिरदर्द उठाए जी, कौन मेहनत करे, एैसे काम को ईटी की हेडलाइन तो बनने वाली नहीं है, तो करेगा कौन, ऐसी अप्रोच से न देश चला करते हैं, न देश बना करते हैं और इसलिए हमने स्वामित्व योजना की शुरुआत की। स्वामित्व योजना के तहत देश के 3 लाख से ज्यादा गांवों का ड्रोन सर्वे किया गया। सवा 2 करोड़ से ज्यादा लोगों को प्रॉपर्टी कार्ड दिए गए। और मैं ET को एक हेडलाइन आज दे रहा हूं, स्वामित्व लिखना जरा ईटी के लिए तकलीफ वाला है, लेकिन फिर भी वो तो आदत से हो जाएगा।

स्वामित्व योजना की वजह से देश के ग्रामीण क्षेत्र में अब तक सौ लाख करोड़ रुपए की प्रॉपर्टी की वैल्यू अनलॉक हुई है। यानी 100 लाख करोड़ रुपए की ये प्रॉपर्टी पहले भी गांवों में मौजूद थी, गरीब के पास मौजूद थी। लेकिन इसका उपयोग आर्थिक विकास में नहीं हो पाता था। प्रॉपर्टी के राइट्स ना होने से गांव के लोगों को बैंक से लोन नहीं मिल पाता था। अब ये दिक्कत हमेशा-हमेशा के लिए दूर हो गई है। आज पूरे देश से ऐसी खबरें आती हैं कि कैसे स्वामित्व योजना के प्रॉपर्टी कार्ड्स से लोगों का फायदा हो रहा है। अभी कुछ दिन पहले राजस्थान की एक बहन से मेरी बातचीत हुई, उस बहन को स्वामित्व योजना के तहत प्रॉपर्टी कार्ड मिला हुआ है। इनका परिवार 20 साल से एक छोटे से मकान में रह रहा था। जैसे ही प्रॉपर्टी कार्ड मिला, तो उनको बैंक से करीब 8 लाख का लोन मिला, 8 लाख रूपये का लोन मिला, कागज मिलने से। इस पैसे से उस बहन ने एक दुकान शुरु की, अब उससे हुई कमाई से वो परिवार अब अपने बच्चों की हायर एजुकेशन के लिए सपोर्ट कर पा रहा है। यानी देखिए कैसे बदलाव आता है। एक और राज्य में, एक गांव में एक व्यक्ति ने प्रॉपर्टी कार्ड दिखाकर बैंक से साढ़े चार लाख का लोन लिया। उस लोन से उसने एक गाड़ी खरीदी औऱ ट्रांसपोर्टेशन का काम उसने शुरू कर दिया। एक और गांव में एक व्यक्ति ने प्रॉपर्टी कार्ड पर लोन लेकर अपने खेत में मॉडर्न इरिगेशन फेसिलिटीज तैयार करवाईं। ऐसे ही कई उदाहरण हैं, जिनसे गांवों में, गरीबों को कमाई के नए रास्ते बन रहे हैं। ये रिफॉर्म, परफॉर्म, ट्रांसफॉर्म की असली स्टोरीज़ हैं, जो अखबारों और टीवी चैनल्स की हेडलाइन्स में नहीं आती है।

साथियों,

आजादी के बाद हमारे देश में अनेकों ऐसे जिले थे, जहां सरकारें विकास नहीं पहुंचा पाईं। और ये उनके गवर्नेंस की कमी थी, बजट तो होता था, डिक्लेयर भी होता था, सेंसेक्स के रिपोर्ट भी छपते थे, ऊपर गया की नीचे गया। करना ये चाहिए था कि इन जिलों पर खास फोकस करते। लेकिन इन जिलों को पिछड़े जिले, बैकवर्ड डिस्ट्रिक्ट इसका लेबल लगाकर उन जिलों को अपने हाल पर छोड़ दिया। इन जिलों को कोई हाथ लगाने को तैयार नहीं होता था। यहां सरकारी अफसर भी अगर ट्रांसफर भी होती थी, तो ये मान लिया जाता था, कि punishment posting पर भेजा गया है।

साथियों,

इतना नेगेटिव एनवायरमेंट उस स्थिति को मैंने एक चुनौती के रूप में लिया और पूरे अप्रोच को ही बदला डाला। हमने ऐसे देश के करीब सौ से ज्यादा जिलों को identify किया, जिसको कभी backward जिला कहते थे मैंने कहा ये एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट्स है। ये backward नहीं है। हमने यहां देश के युवा अफसरों को वहां पर ड्यूटी देना शुरू कर दिया। माइक्रो लेवल पर गवर्नेंस को सुधारने का प्रयास शुरू किया। हमने उन इंडीकेटर्स पर काम किया, जिसमें ये सबसे पीछे थे। फिर मिशन मोड पर, कैंप लगाकर, सरकार की फ्लैगशिप योजनाओं को यहां लागू किया। आज इनमें से कई aspirational districts, देश के inspirational districts बन चुके हैं।

साल 2018 में असम के मैं उन जो aspirational districts जिसको मैं कहता हूं, जिसको पहले की सरकार backward कहती थी, मैं उनका ही जिक्र करना चाहता हूं। असम के बारपेटा जिले में सिर्फ 26 परसेंट एलीमेंट्री स्कूलों में ही सही student to teacher ratio था, only 26 परसेंट। आज उस डिस्ट्रिक्ट में 100 पर्सेंट स्कूलों में student to teacher ratio आवश्यकता के अनुसार हो गया। बिहार के बेगुसराय जिले में सप्लीमेंट्री न्यूट्रिशन लेने वाली गर्भवती महिलाओं की संख्या, only 21 परसेंट थी, बजट नहीं था ऐसा नहीं था, बजट तो था, only 21 परसेंट। उसी प्रकार से यूपी के चंदौली जिले में ये 14 परसेंट थी। आज दोनों जिलों में ये 100 परसेंट हो चुकी है। इसी तरह बच्चों के शत-प्रतिशत टीकाकरण के अभियान में भी कई जिले बेहतरीन प्रदर्शन कर रहे हैं। यूपी के श्रावस्ती में 49 परसेंट से बढ़कर 86 परसेंट, तो तमिलनाडु के रामनाथपुरम में 67 परसेंट से बढ़कर 93 परसेंट हम पहुंचे हैं। ऐसी ही सफलताओं को देखते हुए ही अब देश के हम फिर ये प्रयोग बहुत सफल रहा, ग्रास रूट लेवल पर परिवर्तन लाने का ये प्रयास सफल रहा, तो जैसे पहले हमने 100 करीब करीब aspirational districts identify किए, अब हम एक स्टेज नीचे जाकर के 500 ब्लॉक्स उसको हमने aspirational blocks घोषित किया गया है, और वहां हम बिल्कुल फ़ोकस वे में तेजी से काम कर रहे हैं। अब आप कल्पना कर सकते हैं हिन्दुस्तान के 500 ब्लॉक्स उसके बेसिक बदलाव आएगा, मतलब देश के सारे पैरामीटर बदल जाते हैं।

साथियों,

यहां बहुत बड़ी संख्या में इंडस्ट्री लीडर्स बैठे हैं। आपने कई-कई दशक देखे हैं, दशकों से आप बिजनेस में हैं। भारत में बिजनेस का माहौल कैसा होना चाहिए, ये अक्सर आपकी Wish list का हिस्सा हुआ करता था। सोचिए कि हम 10 साल पहले कहां थे और आज कहां है? एक दशक पहले भारत के बैंक भारी संकट से गुजर रहे थे। हमारा बैंकिंग सिस्टम fragile था। करोड़ों भारतीय बैंकिंग सिस्टम से बाहर थे। और अभी विनीत जी ने जन धन एकाउंट की चर्चा भी की, भारत दुनिया के उन देशों में से एक था जहां, access to credit सबसे मुश्किल था।

साथियों,

हमने बैंकिंग सेक्टर को मजबूत करने के लिए अलग-अलग स्तर पर एक साथ काम किया। Banking the unbanked, Securing the unsecured, Funding the unfunded, ये हमारी स्ट्रैटजी रही है। 10 साल पहले ये तर्क दिया जाता था कि देश में बैंक ब्रांच नहीं है, तो कैसे फाइनेंशल इंक्लूजन होगा? आज देश के करीब-करीब हर गांव के 5 किलोमीटर के दायरे में कोई बैंक ब्रांच या बैंकिंग कॉरसपॉन्डेंट मौजूद है। एक्सेस टू क्रेडिट कैसे बढ़ा इसका एक उदाहरण, मुद्रा योजना है। करीब 32 लाख करोड़ रुपए, उन लोगों तक पहुंचे हैं, जिनको बैंकों की पुरानी व्यवस्था के तहत लोन मिल ही नहीं सकता था। ये कितना बड़ा परिवर्तन हुआ है। MSMEs के लिए लोन मिलना आज बहुत आसान हुआ है। आज रेहड़ी-पटरी ठेले वालों तक को हमने आसान लोन से जोड़ा है। किसानों को मिलने वाला लोन भी दोगुने से अधिक किया है। हम बहुत बड़ी संख्या में लोन दे रहे हैं, बड़े अमाउंट में लोन दे रहे हैं औऱ साथ ही हमारे बैंकों का प्रॉफिट भी बढ़ रहा है। 10 साल पहले तक इकोनॉमिक्स टाइम्स ही, बैंकों के रिकॉर्ड घोटाले की खबरें छापता था। रिकॉर्ड NPAs पर चिंता जताने वाले editorials छपते थे। आज आपके अखबार में क्या छप रहा है? अप्रैल से दिसंबर तक सरकारी बैंकों ने सवा लाख करोड़ रुपए से अधिक का रिकॉर्ड प्रॉफिट दर्ज किया है। साथियों, ये सिर्फ हेडलाइन्स नहीं बदली हैं। ये सिस्टम बदला है, जिसके मूल में हमारे बैंकिंग रिफॉर्म्स हैं। ये दिखाता है कि हमारी इकॉनॉमी के पिलर्स कितने मजबूत हो रहे हैं।

साथियों,

बीते दशक में हमने Fear of business को ease of doing businessमें बदला है। GST के कारण, देश में जो Single Large Market की व्यवस्था बनी है उससे भी इंडस्ट्री को बहुत फायदा मिल रहा है। बीते दशक में इंफ्रास्ट्रक्चर में भी अभूतपूर्व विकास हुआ है। इससे देश में Logistics Cost घट रही है, Efficiency बढ़ रही है। हमने सैकड़ों Compliances खत्म किए और अब जन विश्वास 2.0 से और भी Compliances को कम कर रहे हैं। समाज में, और ये मेरा conviction है, सरकार का दखल और कम हो, इसके लिए सरकार एक Deregulation Commission भी बनाने जा रही है।

Friends,

आज के भारत में एक और बहुत बड़ा परिवर्तन हम देख रहे हैं। ये परिवर्तन, फ्यूचर की तैयारी से जुड़ा है। जब दुनिया में पहली औद्योगिक क्रांति शुरु हुई, तो भारत में गुलामी की जकड़न मज़बूत होती जा रही थी। दूसरी औद्योगिक क्रांति के दौरान जहां दुनिया में नए-नए इन्वेंशन्स, नई फैक्ट्रियां लग रही थीं, तब भारत में लोकल इंडस्ट्री को नष्ट किया जा रहा था। भारत से रॉ मटीरियल बाहर ले जाया जा रहा था। आजादी के बाद भी स्थितियां ज्यादा नहीं बदलीं। जब दुनिया, कंप्यूटर क्रांति की तरफ बढ़ रही थी, तब भारत में कंप्यूटर खरीदने के लिए भी लाइसेंस लेना पड़ता था। पहली तीन औद्योगिक क्रांतियों का उतना लाभ भले ही भारत नहीं ले पाया, लेकिन चौथी औद्योगिक क्रांति में भारत दुनिया के साथ कदम से कदम मिलाने के लिए तैयार है।

साथियों,

विकसित भारत की यात्रा में हमारी सरकार, प्राइवेट सेक्टर को बहुत अहम सहभागी मानती है। सरकार ने बहुत सारे नए सेक्टर्स को प्राइवेट सेक्टर के लिए खोल दिया है, जैसे स्पेस सेक्टर। आज बहुत सारे नौजवान, बहुत सारे स्टार्टअप्स इस स्पेस सेक्टर में बड़ा योगदान दे रहे हैं। ऐसे ही ड्रोन सेक्टर कुछ समय पहले तक, लोगों के लिए closed था। आज इस सेक्टर में यूथ के लिए बहुत सारा स्कोप दिख रहा है। प्राइवेट फर्म्स के लिए Commercial Coal Mining का क्षेत्र खोला गया है। Auctions को प्राइवेट कंपनियों के लिए Liberalised किया गया है। देश के Renewable Energy Achievements में, हमारे Private Sector की बहुत बड़ी भूमिका है। और अब Power Distribution Sector में भी हम Private Sector को आगे बढ़ा रहे हैं, ताकि इसमें और Efficiency आए। हमारे इस बार के बजट में भी, एक बहुत बड़ा बदलाव हुआ है। हमने, यानी पहले कोई ये बोलने की हिम्मत नहीं करता था। हमने न्यूक्लियर सेक्टर को भी private participation के लिए खोल दिया है।

साथियों,

आज हमारी पॉलिटिक्स भी परफॉर्मेंस oriented हो चुकी है। अब भारत की जनता ने दो टूक कह दिया है- टिकेगा वही, जो जमीन से जुड़ा रहेगा, जमीन पर रिजल्ट लाकर दिखाएगा। सरकार को लोगों की समस्याओं के प्रति संवेदनशील होना बहुत ज़रूरी है, उसकी पहली आवश्यकता है। हमसे पहले जिन पर पॉलिसी मेकिंग का ज़िम्मा था, उनमें संवेदनशीलता शायद बहुत आखिर में नजर आती थी। इच्छाशक्ति भी बहुत आखिर में नजर आती थी। हमारी सरकार ने संवेदनशीलता के साथ लोगों की समस्याओं को समझा, जोश और जुनून के साथ उन्हें सुलझाने के लिए ज़रूरी कदम उठाए। आज दुनिया की तमाम स्टडीज़ बताती हैं कि बीते दशक में जो बेसिक सुविधाएं देशवासियों को मिली हैं, जिस तरह वो Empower हुए हैं, उसके कारण ही, सिर्फ 10 साल में 25 करोड़ भारतीय गरीबी से बाहर निकलकर के आए हैं। इतना बड़ा वर्ग निओ-मिडिल क्लास का हिस्सा बन गया। ये निओ-मिडिल क्लास अब अपनी पहला टू-व्हीलर, अपनी पहली कार, अपना पहला घर खरीदने का सपना देख रहा है। मिडिल क्लास को सपोर्ट करने के लिए इस वर्ष के बजट में भी हमने ज़ीरो टैक्स की सीमा को 7 लाख से बढ़ाकर 12 लाख किया है। इस फैसले से पूरा मिडिल क्लास मजबूत होगा, देश में इकॉनॉमिक एक्टीविटी भी और बढ़ेगी। ये pro-active सरकार के साथ ही एक Sensitive सरकार की वजह से ही संभव हो पाया।

साथियों,

विकसित भारत की असली नींव विश्वास है, ट्रस्ट है। हर देशवासी, हर सरकार, हर बिजनेस लीडर में ये element होना बहुत ज़रूरी है। सरकार अपनी तरफ से देशवासियों में विश्वास बढ़ाने के लिए पूरी शक्ति से काम कर रही है। हम इनोवेटर्स को भी एक ऐसे माहौल का विश्वास दे रहे हैं, जिस पर वो अपने ideas को incubate कर सकते हैं। हम बिजनेस को भी पॉलिसीज़ के स्टेबल और सपोर्टिव रहने का विश्वास दे रहे हैं। मुझे उम्मीद है कि ET की ये समिट, इस विश्वास को और मज़बूती देगी। इन्हीं शब्दों के साथ, मैं अपनी बात समाप्त करता हूं, एक बार फिर आप सभी को अपनी शुभकामनाएं देता हूं। बहुत-बहुत धन्यवाद।