Congress must answer people why it spoke in defence of urban Maoists: PM Modi

Published By : Admin | November 9, 2018 | 14:02 IST
We are sparing no efforts to strengthen the region of Bastar. We are making efforts to enhance quality of life of people here: PM Modi
For us, the mantra is 'Sabka Saath, Sabka Vikas'. We do not discriminate anyone on the grounds of gender and caste: PM in Chhattisgarh
Teach a fitting lesson to the Congress leaders, who on one hand try to shield the urban maoists, and in Chhattisgarh speak about freeing the state from maoists: PM
Congress always considers the poor, dalits, tribals and the marginalised as their vote-bank. It was Atal Bihari Vajpayee Ji who thought about their welfare and created a tribal affairs ministry: PM

जय मां दंतेश्वरी..जय मां दंतेश्वरी।। 

मंच पर विराजमान छत्तीसगढ़ के यशस्वी एवं लोकप्रिय मुख्यमंत्री हमारे मित्र डॉक्टर रमन सिंह जी, संसद में मेरे साथी श्रीमान दिनेश कश्यप जी, एक प्रकार से मेरे ही परिवार के सदस्य श्रीमान कमलचंद्र भंजदेव जी, इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार बस्तर से श्रीमान सुभाऊ कश्यप जी, जगदलपुर से भाई संतोष बाफना जी, चित्रकूट से लच्छू राम कश्यप जी, दंतेवाड़ा से भीमा राम मंडावी जी, कोटा से धनीराम बरसे जी, बीजापुर से महेश गागड़ा जी, कोंडागांव से सुश्री लता उसेंडी जी, केशकाल से हरिशंकर नेताम जी, नारायणपुर से केदार कश्यप जी...आप सब ताली बजा करके मेरे इन सभी साथियों को आशीर्वाद दीजिए...बहुत-बहुत धन्यवाद आपका।   

मंच पर विराजमान भारतीय जनता पार्टी के सभी  वरिष्ठ महानुभाव, अभी तो दिवाली का  पर्व चल रहा है, भाई दूज का पवित्र त्योहार है, इसके बावजूद भी इतनी बड़ी तादाद में आपका यहां आना...ये दूर-दूर जहां भी मेरी नज़र जाती है लोग धूप में खडे़ हैं। ये चुनाव सभा नहीं, ऐसा लग रहा है कि विकास की जो रैली चली है वो आज यहां जनसागर में परिवर्तित हो गई है। 

इस दौर का जो चुनाव है, पांच राज्यों में चुनाव है और मुझे प्रारंभ मां दंतेश्वरी के चरणों से करने का सौभाग्य मिला है। भाई दूज के पवित्र त्योहार, जहां माताओं-बहनों के आशीर्वाद हमेशा मेरी शक्ति बने हुए हैं उस भाई दूज के त्योहार के दिन आज मैं आपसे कुछ मांगने आया हूं। अभी हमारे मित्र रमन सिंह जी बता रहे थे कि इस देश में जितने प्रधानमंत्री हो गए, वे जितनी बार बस्तर आए होंगे उससे ज्यादा बार मैं अकेला आया हूं, लेकिन जब भी आया हूं खाली हाथ नहीं आया हूं। अपनी जिम्मेवारी को अदा करने के लिए आया हूं, आपकी आशा, आकांक्षा, अपेक्षाएं उसके अनुकूल विकास की कोई न कोई नई योजना लेकर आया हूं। आपके बच्चों का उज्ज्वल भविष्य बने, आने वाली पीढ़ी दर पीढ़ी...बस्तर में फिर कभी गरीबी इस तरफ मुंह भी न कर पाए ऐसा बस्तर को मजबूत बनाना है, समृद्ध बनाना है। यहां से बेरोजगारी, यहां से गरीबी, यहां से भुखमरी इन सब को मिटाने के लिए जो हम लगातार प्रयास कर रहे हैं। उसी सिलसिले में बार-बार मुझे आपके बीच आने का सौभाग्य मिला है। और ये हमारा दायित्व है क्योंकि आपने हमें जो जिम्मेवारी दी है, उस जिम्मेवारी के तहत आपको कठिनाइयों से मुक्त करना, हो सके उतनी सुविधाएं बढ़ाते जाना, आपके सपनों को पूरा करने के लिए ऐसी व्यवस्थाएं विकसित करना कि आपका परिश्रम, आपका पुरुषार्थ, आपका संकल्प, आपकी सारी इच्छाएं पूर्ण करने के लिए वो माहौल उपयुक्त हो, काम आए और ये बात हम लगातार करते आए हैं।

आजादी के इतने साल के बाद...पहले भी चुनाव होते थे, पहले भी राजनेता आते थे, सरकारें पहले भी बनती थीं लेकिन उन सरकारों की सोच यही रहती थी...मेरा-तेरा, अपना-पराया, मेरी जात वाला, मेरी बिरादरी वाला, मेरे इलाके वाला, मेरा रिश्तेदार, मेरा परिवार, सारा उनका कारोबार इसी के आसपास चलता था और आज भी इन दल के नेता हों, इन दलों का कार्यकलाप हो...अपनी एक सीमित क्षेत्र की भलाई करना ही उनका उद्देश्य रहता था ताकि उनका कुनबा बना रहे, वोट की पेटियां भरता रहे और उनकी दुनिया चलती रहे। हमने आ कर के स्थितियों को बदल दिया है। अपना-पराया नहीं, मेरा-तेरा नहींमेरी जाति-तेरी जाति...भेदभाव नहीं, शहर और गांव में भेदभाव नहीं, दलित शोषित, पीड़ित, वंचित आदिवासी में भेदभाव नहीं, पुरुष और स्त्री में भेदभाव नहीं, युवा और बुजुर्ग में भेदभाव नहींउन भेदभाव की दीवारों को खत्म करके एक ही मंत्र लेकर चले हैं सबका साथ, सबका विकास। हमें साथ भी सबका चाहिए और हमें विकास भी सबका करना है। मेरे-तेरे का खेल अब देश के अंदर कोई स्वीकार करने वाला नहीं है और इसीलिए भाइयो-बहनो, आज अभी रमन सिंह ढेर सारी योजना बता रहे थे, इतने रोड बन गए, इतनी रेल बन गई, इतना ये हुआ, इतना वो हो गया....ये कैसे हुआ भाई? लोगों को आश्चर्य होता है...सरकारें तो पहले भी होती थीं लेकिन इतने सारे काम क्यों नहीं होते थे? कहीं पर भी नजर डालो कोई ना कोई विकास का काम हो रहा है। इसका कारण एक ही...पैसे पहले भी थे, योजनाएं पहले भी थीं लेकिन कारोबार बिचौलियों के हाथ में था और इसीलिए नीचे कुछ पहुंचता नहीं था। हमने इन बिचौलियों को खत्म किया और रास्ता साफ कर दिया। आपके हक का आपको मिल रहा है और इसलिए मेरे प्यारे भाइयो-बहनो, आपके विकास के लिए जब हम लगातार इसी एक मंत्र को लेकर के काम कर रहे हैं....बालक...गरीब का बच्चा मां के गर्भ में हो वहां से लेकर के जन्म के समय हो, शिशुकाल हो, आंगनबाड़ी जाने की उम्र हो, स्कूल में पढ़ाई की उम्र हो, कॉलेज में पढाई की उम्र हो, स्किल डेवलपमेंट का काम करने की ताकत आई हो, रोजगार के अवसर आए हों, शादी का अवसर आया हो, घर बनाने का अवसर आया हो, खेती-बाड़ी में कोई व्यवस्था की आवश्यकता हो, बुढ़ापे की ओर जाना हो, कोई जीवन का कार्यकाल ऐसा नहीं है कि जिसमें हमारी सरकार आपका हाथ पकड़ करके आपकी मदद ना करती हो, आपके साथ ना खड़ी रहती है।  

आप बिल्कुल घर-मैदान से लेकर के मृत्यु तक पहुंचने की पूरी यात्रा को देख लीजिए। हर काम में कहीं ना कहीं सरकार आपके साथ खड़ी होती है, आपकी चिंता करती है। और इसीलिए भाइयो-बहनो, मैंने प्रारंभ में कहा...मैं बार-बार आया हूं आपके पास, कुछ ना कुछ इस क्षेत्र के विकास की बात लेकर के आया हूं, योजना लेकर के आया हूं और उसी का परिणाम है कि कल तक जो सोच भी नहीं सकते थे पुरानी सरकारों में और कभी विकास नहीं करते थे तो नक्सल और माओवादियों का नाम दे देते थे...वहां हो नहीं सकता है। हमने तय किया, होगा वहां भी होगा। जिन बच्चों के हाथ में कलम होनी चाहिए उन बच्चों के हाथ में ये राक्षसी मनोवृत्ति के लोग बंदूक पकड़ा देते हैं, उनकी जिंदगी बर्बाद करते हैं, उनके मां-बाप के सपनों को तबाह कर देते हैं। जो स्कूल में आग लगा दें वो राक्षसी मनोवृत्ति नहीं है तो क्या है, जो अस्पताल में डॉक्टरों को काम ना करने दे वो राक्षसी मनोवृत्ति नहीं है तो क्या है। और आपने देखा होगा जो अर्बन माओवादी हैं वो शहरों में एयरकंडीशंड घरों में रहते हैं, साफ-सुथरे दिखते हैं, अच्छे खासे लोगों में बैठने-उठने का रुतबा बनाते हैं, उनके बच्चे विदेशों में पढ़ते हैं, अच्छी-अच्छी गाड़ियों में घूमते हैं, लेकिन वहां बैठे-बैठे रिमोट सिस्टम से हमारे आदिवासी बच्चों की जिंदगी तबाह करने का ये काम करते हैं। और एक ऐसी जमात...इस चुनाव में लड़ रहे कांग्रेस के लोग जवाब दें कि आप उन अर्बन माओवादियों की रक्षा के लिए बयानबाजी करते हो, उनके खिलाफ अगर सरकार कानूनी कार्रवाई करे तो आप उनको बचाने के लिए मैदान में आते हो और यहां आकर के नक्सलवाद के खिलाफ ढुलमुल बात करके वोट तरासते हो! क्या ऐसे लोगों को माफ करेंगे क्या...आपकी जिंदगी बर्बाद करने वाले को माफ करेंगे क्या...क्या ऐसे लोगों को छत्तीसगढ़ की धरती पर फिर घुसने देंगे क्या? हमें बस्तर बचाना है कि नहीं बचाना है, हमें बस्तर बदलना है कि नहीं बदलना है, हमें नया बस्तर बनाना है कि नहीं बनाना है, हमें बस्तर के हर नौजवान का भविष्य बदलना है कि नहीं बदलना है, हमें बस्तर की माताओं-बहनों का भविष्य बदलना है कि नहीं बदलना है? और इसीलिए भाइयो-बहनो, मैं आपसे आग्रह करने आया हूं कि बस्तर की धरती पर सभी सीटों पर सिर्फ और सिर्फ कमल ही खिलना चाहिए, अगर और कोई आ गया..छत्तीसगढ़ में आनेवाला एक तो है ही नहीं लेकिन बस्तर के किसी कोने में आ गया तो वो पूरे बस्तर के सपनों में दाग लगा देंगे..दाग लगा देंगे। और इसीलिए भाइयो-बहनो, मुझे आपकी सेवा करनी है, मुझे अटल बिहारी वाजपेयी के सपनों को पूरा करना है और जो सपने अटल जी ने देखे थे ना, उसे पूरा करने के लिए बार-बार छत्तीसगढ़ आया हूं, बार-बार बस्तर की धरती पर आया हूं और आज भी उस संकल्प को दोबारा आपके सामने दोहराने आया हूं कि मैं जब तक अटल जी के सपनों को पूरे नहीं करूंगा तब तक चैन से बैठने वाला नहीं हूं। 

भाइयो-बहनो, अब हमारा छत्तीसगढ़ 18 साल का हो गया है...18 साल की उम्र तक घर में भी बच्चे को जो जरूरतें होती हैं उसका प्रकार अलग होता है लेकिन 18 के बाद उसकी जरूरतें बदल जाती हैं, उसकी आवश्यकताएं बदल जाती है, मां-बाप को भी...अगर वो समझदार है तो 18 साल के बाद बच्चों के साथ...उनकी आवश्यकता के अनुसार अपने बजट में भी खर्च बदलना पड़ता हैउनको बाहर यार-दोस्तों में जाना होता है, तो बच्चों के लिए मां-बाप सोचते हैं, चलो इस साल हम कपड़े नहीं बनवाएंगे लेकिन बेटे के लिए एक अच्छा शर्ट ले आएंगे क्योंकि अपने दोस्तों में उनकी अच्छी छवि रहेबेटी को भी कहते हैं कि बेटी को भी ये सिखाएंगे, उनको वो सिखाएंगे, शादी से पहले उसको ऐसे-ऐसे तैयार करेंगे। हर घर में 18 साल का बेटा-बेटी हो, तो घर के सारे सपने उन 18 साल के बच्चों के लिए बुनने शुरू हो जाते हैं। भाइयो-बहनो, जब छत्तीसगढ़ 18 साल का हुआ है, तो दिल्ली में बैठी हुई सरकार भी ये 18 साल की उम्र वाले छत्तीसगढ़ के सपनों को बुनने में लगी हुई है। आपके 18 साल की उम्र के सपने अलग होते हैं और उसको समझ करके आपके लिए काम करना ये हमने बीड़ा उठाया है। मुझे बताइए भाइयो-बहनो, 18 साल के बाद की जो यात्रा है, वो तेज गति से होनी चाहिए कि नहीं होनी चाहिए, चारों दिशाओं में होनी चाहिए कि नहीं होनी चाहिए, हर परिवार तक पहुंचनी चाहिए कि नहीं पहुंचनी चाहिए? इस काम के लिए रमन सिंह के साथ कंधे से कंधा मिलाकर के मोदी चलना चाहता है और अटल बिहारी वाजपेयी के सपने पूरे करना चाहता है।  

भाइयो-बहनो, जब मध्य प्रदेश का हिस्सा थे हम...अटल जी ने देखा ये कांग्रेस सरकार जिसने मध्य प्रदेश में इतने सालों तक राज किया और छत्तीसगढ़ उसका हिस्सा था, लोगों को भुखमरी का सामना करना पड़ता था, रात को घर में चूल्हा जलेगा कि नहीं जलेगा, बेटे आंसू पी के सोएंगे कि कुछ खा पीकर के सोएंगे, ये भी चिंता सताती थी इस समस्या का समाधान करने के लिए, छत्तीसगढ़ पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता को देखते हुए, बस्तर पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता को देखते हुए वाजपेयी जी ने छत्तीसगढ़ का निर्माण किया। प्रारंभ में ऐसे लोगों के हाथ में छत्तीसगढ़ चला गया, ऐसा लग रहा था शायद ये तबाह कर देंगे, बर्बाद कर देंगे लेकिन छत्तीसगढ़ की जनता समझदार थी, यहां का मेरा आदिवासी भाई समझदार था, यहां का मेरा दलित भाई समझदार था, यहां की मेरी माताएं-बहनें समझदार थीं और मैं उस समय यहां एक संगठन के कार्यकर्ता के रूप में आपके बीच में काम करता था और तब मैंने लोगों के मनोभाव को देखा था और बड़े-बड़े शहर के लोग नहीं समझते हैं वो मेरे यहां जंगलों में रहने वाले मेरे भाई-बहन बड़ी आसानी से समझते थे और उन्होंने देखते ही देखते उनको उखाड़ कर के फेंक दिया और ऐसे हाथों में, सुरक्षित हाथों में भारतीय जनता पार्टी के हाथों में छत्तीसगढ़ दे दिया। 

आज पीछे मुड़ करके देखने की आवश्यकता पैदा नहीं हुई है। ये काम करने की ताकत छत्तीसगढ़ की जनता की समझदारी के कारण है। आज हम जो कुछ भी हैं, छत्तीसगढ़ में जो कुछ भी हुआ है, वो भारतीय जनता पार्टी को आपने अवसर दिया है इसके कारण हुआ है। ये आपकी समझदारी के कारण हुआ है, ये आपके छत्तीसगढ़ की भलाई के लिए सोचने की आपकी मूलभूत प्रवृत्ति के कारण हुआ है। और इसीलिए भाइयो-बहनो, इस यात्रा को कहीं अटकने नहीं देना है और ये यात्रा आगे...ये 18 साल के बाद का समय ऐसा है, वो दिन दूर नहीं होगा जब छत्तीसगढ़ की हिन्दुस्तान के समृद्ध राज्यों में गिनती होने लग जाएगी। वो दिन दूर नहीं होगा, हिन्दुस्तान भर के लोग पूंजी निवेश करना है तो चलो छत्तीसगढ़, रोजी-रोटी कमानी है तो चलो छत्तीसगढ़, धन-दौलत खर्च करनी है तो चलो छत्तीसगढ़...ये दिन दूर नहीं होगा मेरे प्यारे भाइयो-बहनो, इतनी छत्तीसगढ़ की ऊंचाई आकर के रहने वाली है, क्योंकि हमने 15 साल तक खून-पसीना बहाया है और आने वाले वर्षों तक हम उसका फल आपको मिले, आपके बच्चों को मिले हम इसके लिए अविरत प्रयास करने वाले लोग हैं। और इसीलिए हम आज आपसे मांगने आए हैं भाइयो-बहनो, केंद्र और राज्य जब मिलकर के काम करते हैं और मैं बताऊं जब रमन सिंह जी यहां सरकार चला रहे थे वो 10 साल ऐसे बीते...कि दिल्ली, अड़ंगे डालना यही उनका काम था। उनको रमन सिंह को पराजित करना मुश्किल था, छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी को उखाड़ फेंकना मुश्किल था, तो 10 साल तक दिल्ली में जो सरकार बैठी थी, किसकी बैठी थी, किसकी सरकार थी, किसकी सरकार थी, चलाता था कौन, कौन चलाता था, कौन चलाता था, चेहरा किसका था, कारोबार किसका था और उनके दिल में ऐसी आग पड़ी थी ये रमन सिंह...छत्तीसगढ़ में, ये भाजपा वाले?... वो10 साल तक यही खोजते रहे...यहां के सारे काम अटक जाए, लटक जाए, भटक जाए, जनता में असंतोष पैदा हो...ये सारे कारनामे किए गए, लेकिन भारतीय जनता पार्टी किसी की कृपा पर रहने के स्वभाव की नहीं है। हमारा तो हाईकमान सवा सौ करोड़ हिन्दुस्तानी हैं, कोई एक व्यक्ति हमारा हाईकमान नहीं हो सकता है। जनता जनार्दन ही हमारे लिए सर्वोपरि है...और इसलिए जो भी संसाधन थे...दिल्ली ने कोई मदद नहीं की उसके बावजूद भी छत्तीसगढ़ को आगे बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। लेकिन, पिछले 4 साल से हमें मौका मिला...तो हमने तय किया कि 10 साल का गड्ढा भी भरने का काम दिल्ली सरकार छत्तीसगढ़ में करेगी और हमने किया। जो काम 10 साल में नहीं हो पाया वो छत्तीसगढ़ की धरती पर 4 साल में हो पाया और इसीलिए भाइयो-बहनो, जब उनकी सरकार थी, तो 10 साल में गांव जाने वाली सड़कें...ग्रामीण सड़क 20 हजार किलोमीटर बनी थी, 10 साल में 20 हजार...अगर अभी भी दिल्ली में उनकी सरकार होती तो आप वहीं पर वहीं अटके होते। हमारी सरकार ने आकर के चार साल में 30 हजार किलोमीटर बनाया। 

अब मुझे बताइए काम करने वाली सरकार चाहिए कि काम रोकने वाले लोग चाहिए। काम करने वाली सरकार चाहिए कि नहीं चाहिए। आपके गांव को सड़क जल्दी से जल्दी मिले ये हमारा सपना होना चाहिए कि नहीं होना चाहिए...क्या अब आज़ादी के इतने सालों बाद 20-20, 25-25 साल इंतजार करेंगे क्या? और इसलिए तेज गति से काम करने वाली सरकार होना जरूरी है। दिल्ली में ऐसी सरकार बैठी है और यहां छत्तीसगढ़ की सरकार दोनों कंधे से कंधा मिलाकर के चलते हैं...और मैं जब पिछले चुनाव में आया था...तब मैं गुजरात का मुख्यमंत्री था और तब मैंने आपको कहा था कि केंद्र में ऐसी सरकार आने वाली है कि छत्तीसगढ़ को डबल इंजन मिलने वाला है एक रायपुर का इंजन...एक नई दिल्ली का इंजन और दोनों मिलाकर के छत्तीसगढ़ को आगे ले जाएंगे और हमने करके दिखाया है। भाइयो-बहनो, इन 4 साल में छत्तीसगढ़ के 9,000 से ज्यादा गांवों को सड़क से जोड़ा गया। इतना ही नहीं करीब 35,000 करोड़ रुपया लगा करके 3,000 किलोमीटर के नेशनल हाईवे का काम हमारी सरकार ने छत्तीसगढ़ की  धरती पर किया है और नेशनल हाईवे बनने से छत्तीसगढ़ देश की अर्थव्यवस्था की मुख्यधारा का हिस्सा बन गया है। वो सिर्फ गाड़ियां तेज दौड़ने का हिस्सा नहीं होता है...ये बड़े रास्ते...नेशनल हाईवे अर्थव्यवस्था का हिस्सा बनते हैं,  अर्थव्यवस्था को गति देने का काम करते हैं। इतने कम समय में ये हमने करके दिखाया। करीब 12,000 करोड़ रुपये से 7 नई रेलवे लाइनों को मंजूरी दे दी गई। 11,000 करोड़ रुपये से ज्यादा लागत की 15 हजार किलोमीटर की रेल लाइन के चौड़ीकरण का काम भी हमारी सरकार ने स्वीकृत कर दिया है। भाइयो-बहनो, आज यहां का कोना-कोना विकास का पर्याय बना हुआ है। दुर्ग-कोंदल से लेकर भोपालपटनम तक आपको विकास ही विकास नजर आने लगा, ये दोनों सरकार ने मिलकर के काम किया इसके कारण हुआ है। भाइयो-बहनो, किसी ने सोचा था कि जगदलपुर के हवाई अड्डे से जहाज दिल्ली जाएंगे, उड़ेंगे, लोगों को लाएंगे-ले जाएंगे, आज हवाई अड्डा बना कि नहीं बना। भाइयो-बहनो, कोई सोच सकता था कि यहां पर बस्तर की अपनी यूनिवर्सिटी हो, बस्तर का अपना मेडिकल कॉलेज हो, बस्तर का अपना इंजीनियरिंग कॉलेज हो, राजधानी रायपुर में जैसी सुविधाएं हैं वैसी सुविधाएं सुकमा, दंतेवाड़ा या बीजापुर हो, उसमें उपलब्ध हो, ये क्या कभी पहले किसी ने सोचा तक था? भाइयो-बहनो, ये हमने करके दिखाया। और इसीलिए भाइयो-बहनो, और कांग्रेस पार्टी को तो ये दलित हो, पीड़ित हो, शोषित हो, वंचित हो, गरीब हो इसको तो वो अपना खजाना मानते हैं, खजाना। अपने वोट बैंक के रूप में ही उसको देखते हैं, इंसान के रूप में देखने को तैयार नहीं हैं। इतने साल वो सरकार में रहे लेकिन कभी भारत सरकार में अलग आदिवासियों के विकास का मंत्रालय नहीं बनाया। इतने उनके प्रधानमंत्री हो गए , इतनी सरकारें हो गईं...ये अटल बिहारी वाजपेयी देश के पहले ऐसे प्रधानमंत्री बने जिन्होंने हिन्दुस्तान के आदिवासियों के लिए भारत सरकार में अलग आदिवासी मंत्रालय बनाया, अलग बजट बनाया, अलग अफसर लगाए, अलग मंत्री बनाया, आदिवासी मंत्री को एक विभाग दिया और देश में आदिवासियों के विकास के लिए वैज्ञानिक तरीके से आगे बढ़ने का सिलसिला अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री बनने के बाद हुआ। ये भारतीय जनता पार्टी की सोच के कारण होता है, ये भारतीय जनता पार्टी के संस्कार के कारण होता है कि समाज के दबे-कुचले लोगों को विशेष ध्यान देकर के उनको सबकी बराबरी में एक बार ले आएंगे तो देश को तेज गति से आगे बढ़ाने में सभी सवा सौ करोड़ देशवासी समान रूप से योगदान दे पाएंगे। इस बात को लेकर के हम चले हैं। लेकिन कांग्रेस पार्टी को तो आदिवासियों का मजाक उड़ाना है, उनके कपड़ों का मजाक उड़ाना है, उनके पहनावे का, उनके नाच-गान का, उनके गाजे बाजे का...ये उनको मजा आता है। मैं तो हैरान हूं, मैं एक बार पूर्वोत्तर में गया था...वहां के मेरे आदिवासी भाइयों-बहनों ने बड़े प्यार से, सम्मान से मुझे एक टोपा पहनाया, पगड़ी पहनाई...उनके प्रकार की एक पगड़ी थी...मैंने बड़े शान से पहनी क्योंकि जंगलों में ज़िंदगी गुजारने वाले मेरे ही देश के एक भाई ने मुझे पहनाई थी। उसकी फोटो अखबारों में छप गई तो कांग्रेस के नेताओं ने उस पगड़ी का ऐसा मजाक उड़ाया, ऐसा मजाक उड़ाया और पूरे पूर्वोत्तर भारत के हमारे देश के लोग नाराज हो गए, देश के आदिवासी नाराज हो गए कि आप...देश के प्रधानमंत्री, आदिवासियों के कपड़ों को, पहनावे को, जीवन को इतना सम्मान देते हैं, उनकी अगर पगड़ी पहनी तो आप उसका मजाक उड़ाते हो। तब कांग्रेस वाले डर गए कि अब लेने के देने पड़ गए क्योंकि पहले तो उनकी ही गाड़ी चलती थी, अब देश का एक-एक व्यक्ति उसके पास जानकारियां हैं, वो जागरूक हो चुका है। ये कांग्रेस वाले जो घुट्टी पिलाते थे वो जमाना अब चला गया। उनका झूठ लंबा नहीं चल सकता भाइयो-बहनो और इसलिए अब फिर बोलने की हिम्मत नहीं करते...लेकिन क्या इस प्रकार से हमारे देश के आदिवासियों को अपमानित करते रहोगे। भाइयो-बहनो, ये हमारी बस्तरिया पहचान...और मेरे..मुझे सबसे पहले इस बस्तर क्षेत्र में विस्तार से किसी ने प्रवास करवाया था...हर-जगह पर ले जाते थे तो हमारे पुराने साथी बलिराम कश्यप जी मुझे ले जाते थे। हर जगह पर और उनको इतनी जानकारियां रहती थीं... हर चीज वो मुझे समझाते थे, सब क्षेत्र में कई दिनों तक मेरा उनके साथ भ्रमण होता था...यहां की खाने की चीजें कैसी होती हैं, यहां के बोलचाल के शब्दों का क्या अर्थ होता है...ये जगह किस चीज के लिए है...ये जगह कैसे बनी..यहां कौन सी लड़ाई हुई थी, सारी बातें बताते थे भाइयो-बहनो। आज जब मैं बस्तरिया पहचान की बात करता हूं, तो मुझे लगता है कि हमारे बलिराम कश्यप जी की आत्मा जहां भी होगी, उनको संतोष मिलता होगा, उनको आनंद होता होगा कि देश में एक ऐसा प्रधानमंत्री है जिसको कभी मैंने बस्तर की रोटी खिलाई थी वो भूला नहीं है और उस बस्तरिया पहचान के लिए, बलिराम कश्यप जी जैसे लोगों के सपनों को पूरा करने के लिए आज वो काम कर रहा है, ये भाव उनके अंदर आता होगा।  

भाइयो-बहनो, हमारे लिए...कांग्रेस पार्टी..आपको याद है...यही आदिवासियों को कांग्रेस ने गोलियों से भून दिया था...60 से अधिक मेरे आदिवासी भाई-बहनों को मार दिया गया थाक्या गुनाह था उनका, क्यों मार दिया था...कांग्रेस पार्टी के लोगों के पास जवाब नहीं है भाइयो-बहनो। महाराज प्रवीरचंद भंजदेव जी वो यहां आंदोलन चला रहे थे, खुद के लिए नहीं चलाते थे, आदिवासियों के अधिकार के लिए चलाते थे, आदिवासियों को हक दिलाने के लिए चलाते थे...उनके साथ क्या हुआ, ये बस्तर की हर मिट्टी को पता है, हर पेड़-पौधे को पता है, हर बच्चे को पता है जी और उस आंदोलन के बदले में 60 आदिवासियों को मार दिया...हमें महाराज साहब को खोना पड़ा। ऐसा जुल्म करने वाली कांग्रेस पार्टी आपके पास आज गुमराह करने के लिए उतर पड़ी है। और इसीलिए भाइयो-बहनो मैं आपसे आग्रह करूंगा कि हमें बस्तर के उज्ज्वल भविष्य के दिन किसी के हाथ में जाकर के तबाह नहीं होने देने हैं, बर्बाद नहीं होने देने हैं और वो दिन भी दूर नहीं कि छत्तीसगढ़ का भविष्य़ भी बस्तर की आर्थिक समृद्धि से जुड़ने वाला है। लोग बस्तर की  आर्थिक समृध्दि से पूरे छत्तीसगढ़ की आर्थिक समृद्धि देखने वाले हैं। 

भाइयो-बहनो, इन्होंने इतने साल सरकार चलाई लेकिन इनको महलों की दुनिया का पता था, परिवार की दुनिया का पता था, मेरे जंगलों का पता नहीं था। आप मुझे बताइए....क्या कारण होगा कि इन्होंने कानूनन हमारे जंगल में आदिवासियों की मील्कियत बांस को उन्होंने पेड़ की कैटेगरी में डाल दिया। अब पर्यावरण के कानून ऐसे हैं कि आप पेड़ काट नहीं सकते...उसके कारण मेरा आदिवासी बांस भी काट नहीं सकता। जिस बांस से उसकी अर्थव्यवस्था चलती, रोजी-रोटी चलती, घर बनाता, सामान बनाकर बेचता वो बांस काटने पर मंजूरी ही नहीं। मैं हैरान था कि आजादी के इतने सालों के बाद भी जमीन से कटे हुए, महलों में पले-बढ़े, सोने के चम्मच लेकर के पैदा हुए कांग्रेस के नेता कभी आदिवासी की समस्या समझ नहीं पाए भाइयो-बहनो। हम आप ही के बीच से पले बढ़े आगे आए हैं जी... बस्तर की मिट्टी में पैदल घूमने का सौभाग्य मिला है तो हमें पता चलता है कि बांस को ग्रास की कैटेगरी में डालो और बांस को, हमारे आदिवासियों को हक दिला दीजिए। हमने कानून में परिवर्तन किया और आज पूरे हिन्दुस्तान के आदिवासियों की सबसे बड़ी ताकत वो बांस उसकी अर्थव्यवस्था के केंद्र में आ गया। उसको कानूनी झंझटों से मुक्ति मिल गई।   

भाइयो-बहनो, यहां पर आपने देखा होगा हमारे देश के पत्रकारिता जगत से जुड़ा हुआ दूरदर्शन का हमारा एक साथी, हमारे लोकतंत्र के पर्व को कैमरा में कैद करने के लिए जंगलों के अंदर जाकर के लोगों से मिलकर के लोकशक्ति, लोकशाही इसका गुणगान करने के लिए अपना जीवन खपा दे रहा था, वो हमारे भाई अच्युत साहू को माओवादियों ने गोलियों से भून दिया, उसे मौत का शिकार बना दिया। क्या गुनाह था उसका? वो तो आपके कल्याण की बात लेकर आया था, आपके सपनों को दुनिया के सामने ले जाने के लिए वो अपने कंधे पर कैमरा लेकर के घूम रहा थावो बंदूक लेकर नहीं आया था, वो कंधे पर कैमरा लेकर आया था और उसे मार दिया जाए? अभी दो दिन पहले हमारे 5 जवान शहीद हो गए। ये माओवादी निर्दोषों की हत्या करें औऱ ये कांग्रेस के नेता उन्हें क्रांतिकारी कहें, क्या आपको ये बात मंजूर है क्या...कांग्रेस पार्टी की ये बात आपको मंजूर है क्या? निर्दोषों को मौत के घाट उतारने वाले लोगों को कांग्रेस क्रांतिकारी कहे...क्या ऐसी कांग्रेस को हिन्दुस्तान में जगह होनी चाहिए क्या? क्या भाषा बोल रहे हैं...एक पत्रकार को जिन्होंने, एक निर्दोष पत्रकार को जिन लोगों ने मौत के घाट के उतार दिया वो आपको क्रांतिकारी लगने लगे हैं? ये देश कभी कांग्रेस के नेताओं को कभी माफ नहीं करेगा...ये कैसी जुबान बोल रहे हैं। और भाइयो-बहनो, देश को गुमराह करना, झूठ बोलना ये उनकी प्रकृति बन गई है और मुझे विश्वास है इस प्रकार से काम करने वाले लोगों को, ऐसी कांग्रेस पार्टी का कोई भविष्य नहीं है जी। और जिनको झूठ के सहारे जीना पड़े, तब मान लीजिए कि धरती पर उनके पास जगह बची नहीं है। आए दिन लगातार झूठ बोलो..बार-बार बोलो, जहां जाओ वहां बोलो, जो मिले उसको बोलो, यही उन्होंने मंत्र ले लिया है। हमारा मंत्र है सबका साथ, सबका विकास। हमारा मंत्र है विकास..विकास..विकास और उनका कारोबार है झूठ बोलो..झूठ बोलो..झूठ बोलो। और इसीलिए भाइयो-बहनो, 12 तारीख को मतदान है बार-बार भाजपा, ये 12 तारीख का मंत्र लेकर के भारी संख्या में मतदान करें। इस चुनाव को रक्तरंजित करने का सपना देखने वालों को अभूतपूर्व मतदान करके जवाब दीजिए। लोकतंत्र ही हमारी समस्याओं का समाधान दे सकता है। बैठ करके...विवाद का संवाद से, चर्चा से समस्याओं का समाधान हो सकता है, यही रास्ता लोकतंत्र में होता है। बम-बंदूक के रास्ते से समस्याओं के समाधान नहीं होते हैं।   

भाइयो-बहनो, हमें शांति की राह पर चलना है18 साल के छत्तीसगढ़ के सपने एक नौजवान के सपने हैंवो अधीर होता है, ज्यादा इंतजार नहीं करता है और मैं भी अधीर हूं आपके विकास के लिए। आइए, आपके सपने-हमारा पसीना, आपके सपने-हमारा पुरुषार्थ, आपके सपने- हमारा संकल्प...आओ मिलकर के चल पड़ें...एक नया बस्तर बनाएं, एक नया छत्तीसगढ़ बनाएं...फिर रमन सिंह की सरकार बनाएं...फिर भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनाएं। मेरे साथ बोलिए भारत माता की...जय, भारत माता की...जय, भारत माता की...जय। बहुत-बहुत धन्यवाद! 

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PM to participate in ‘Odisha Parba 2024’ on 24 November
November 24, 2024

Prime Minister Shri Narendra Modi will participate in the ‘Odisha Parba 2024’ programme on 24 November at around 5:30 PM at Jawaharlal Nehru Stadium, New Delhi. He will also address the gathering on the occasion.

Odisha Parba is a flagship event conducted by Odia Samaj, a trust in New Delhi. Through it, they have been engaged in providing valuable support towards preservation and promotion of Odia heritage. Continuing with the tradition, this year Odisha Parba is being organised from 22nd to 24th November. It will showcase the rich heritage of Odisha displaying colourful cultural forms and will exhibit the vibrant social, cultural and political ethos of the State. A National Seminar or Conclave led by prominent experts and distinguished professionals across various domains will also be conducted.