1971 తరువాత మొదటిసారిగా, దేశం ఒక ప్రభుత్వానికి అధికార అనుకూల ఉత్తర్వు ఇచ్చింది: ప్రధాని మోదీ
న్యూ ఇండియా కల, ఆకాంక్షలను తీర్చడానికి కృషి చేస్తాం: ప్రధాని మోదీ
కారు తయారు చేయడం నుండి, బుల్లెట్ రైళ్లు చేయడానికి భారతదేశం మరియు జపాన్ ఇప్పుడు సహకరిస్తున్నాయి: ప్రధాని మోదీ

जापान में रहने वाले भारत के दोस्‍तों और बड़ी संख्‍या में यहाँ पधारे भारतीय समुदाय के मेरे सभी साथियो, आप सबको नमस्‍कार।

मैं सोच रहा था कि मुझे कोबे क्‍यों ले जा रहे हैं। कितनी बार आया हूँ, इतने सारे चेहरे हैं। मैंने कहा आप मुझे क्‍यों ले जा रहे हो कौन आएगा? लेकिन मैं देख रहा हूँ कि पहले से आपका उत्‍साह बढ़ ही रहा है। इस प्‍यार के लिए मैं आपका बहुत-बहुत आभारी हूँ।

करीब 7 महीने बाद एक बार फिर मुझे जापान की धरती पर आने का सौभाग्‍य मिला है। पिछली बार भी यहाँ बसे आप सभी साथियों से और जापानी दोस्‍तों से संवाद का अवसर मिला था। ये संयोग ही है कि पिछले वर्ष जब मैं यहाँ आया था, तब मेरे प्रिय मित्र शिंजो आबे के चुनाव नतीजे आ चुके थे और आप सभी ने उन पर विश्‍वास जताया था। और आज जब मैं आपके बीच हूँ तो दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत ने इस प्रधान सेवक पर पहले से भी ज्‍यादा अधिक विश्‍वास, अधिक प्‍यार जताया है।

मुझे पता है कि आप में से भी अनेक साथियों का इस जनमत में योगदान रहा है। किसी ने भारत आ करके प्रत्‍यक्ष काम किया, मेहनत की, 40-45 डिग्री temperature में काम करते रहे, कुछ लोगों ने सोशल मीडिया के माध्‍यम से twitter, face book, नरेन्‍द्र मोदी एप, जो भी जगह से जो भी बात कह सकते हैं, पहुँचाने का प्रयास किया। कुछ लोगों ने अपने गाँव में अपने पुराने दोस्‍तों को चिट्ठियाँ लिखीं, ई-मेल भेजे, यानी आपने ने भी एक प्रकार से किसी न किसी रूप में भारत के इस लोकतंत्र के उत्‍सव को और अधिक ताकतवर बनाया, और अधिक प्राणवान बनाया। और इसके लिए भी आप सभी का मैं बहुत-बहुत आभार व्‍यक्‍त करता हूँ।

साथियो, 130 करोड़ भारतीयों ने पहले से भी मजबूत सरकार बनाई है और ये अपने-आप में एक बहुत बड़ी घटना है। और तीन दशक बाद पहली बार लगातार दूसरी बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई है। भारत जैसा विशाल देश, उसमें ये सिद्धि सामान्‍य नहीं है। और वैसे तो 1984 में भी लगातार दूसरी बार एक पार्टी की सरकार बनी थी, लेकिन उस समय के हालात आपको मालूम हैं। कारण क्‍या थे, वो भी पता हैं। लोग वोट क्‍यों करने गए थे, वो भी पता है और इसलिए मैं उसका वर्णन नहीं करता हूँ। लेकिन ये बात सही है कि 1971 के बाद देश ने पहली बार एक सरकार को pro incumbency जनादेश दिया।

सा‍थियो, ये जो प्रचंड जनादेश भारत ने दिया है, आपको खुशी हुई कि नहीं हुई? तो ये जीत किसकी है, किसकी जीत है? जब मैं आपसे ये जवाब सुनता हूँ, इतना आनंद आता है कि सच्‍चाई की जीत है। ये हिन्‍दुस्‍तान के लोकतंत्र की जीत है। भारत के मन को आप जापान में बैठ करके भी भलीभांति समझ पाते हैं, अनुभव कर पाते हैं, उनके aspirations और आपके aspirations के बीच में कोई फर्क महसूस नहीं होता है, तब जाकर ये जवाब आपके मुँह से सुनने का अवसर मिलता है और तब मन को बहुत संतोष होता है कि हम सही दिशा में हैं।

 

कभी-कभी स्‍टेडियम में हम क्रिकेट मैच देखते हैं तो बाद में पता चलता है कि आउट कैसे हुआ, बॉल कहाँ से कहाँ गया था, लेकिन जो घर में टीवी पर देखता है, दूर से देखता है; उसको तुरंत पता चलता है किwavelength में गड़बड़ है, इसीलिए आउट हुआ है। और इसलिए आप इतनी दूर बैठकर हिन्‍दुस्‍तान को देखते हैं तो सत्‍य पकड़ने की ताकत आपकी ज्‍यादा है। और इसलिए भी आपका ये जवाब- सच्‍चाई की जीत, लोकतंत्र की जीत, देशवासियों की जीत- मेरे लिए ये जवाब बहुत बड़ी अहमियत रखते हैं, मुझे एक नई ताकत देते हैं, नई प्रेरणा देते हैं। और इसके लिए मैं आपका बहुत-बहुत आभारी हूँ।

Democratic values के प्रति समर्पित रहते हुए आशाओं और आकांक्षाओं के प्रति विश्‍वास- इस जीत के पीछे भी एक कारण है। आप कल्‍पना कीजिए 61 करोड़ वोटर्स ने 40-45 डिग्री temperature में अपने घर से कहीं दूर जा करके वोट किया है, 61 करोड़! अगर चायना को छोड़ दें तो दुनिया के किसी भी देश की population से ज्‍यादा मतदाता हैं ये। और भारत में लोकतंत्र की विशालता, व्‍यापकता, उसका भी अंदाज- 10 लाख ten lakh polling stations, more than forty lakh EVM machine, more than six hundred political parties active थीं, चुनाव में भागीदार थीं, और more than eight thousand candidates; कितना बड़ा उत्‍सव होगा लोकतंत्र का! मानवता के इतिहास में इससे बड़ा लोकतांत्रिक चुनाव नहीं हुआ है और हर भारतीय को इस बात का गर्व होना चाहिए।

भविष्‍य में भी इस रिकॉर्ड को अगर कोई तोड़ेगा, इस रिकॉर्ड को अगर कोई बेहतर बनाएगा तो वो हक भी हिन्‍दुस्तान के हाथ में ही है। एक प्रकार से इसका copyright भारत के पास है। भारतीय होने के नाते हम सभी को, भारत के शुभचिंतकों को तो इस पर गर्व है ही, पूरे विश्‍व को भी ये प्रेरित करने वाला है। इससे फिर साबित हुआ है कि लोकतंत्र के प्रति भारत के सामान्‍य जन की निष्‍ठा अटूट है। हमारी लोकतांत्रिक संस्‍थाएँ और लोकतांत्रिक प्रणाली दुनिया में अग्रणी है।

साथियो, भारत की यही शक्ति 21वीं सदी के विश्‍व को नई उम्‍मीद देने वाली है। ये चुनाव, उसका प्रभाव, सिर्फ भारत तक सीमित रहने वाले नहीं हैं; विश्‍व के लोकतांत्रिक मन को ये प्रेरित करने वाली घटना है। न्‍यू इंडिया की आशाओं और आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए‍ ये जनादेश मिला है। और ये आदेश पूरे विश्‍व के साथ हमारे संबंधों को भी नई ऊर्जा देगा। अब दुनिया भारत के साथ जब बात करेगी तो उसको विश्‍वास है- हाँ भाई, ये जनता-जनार्दन, इन्‍होंने सरकार को चुना है, पूर्ण बहुमत के साथ चुना है और इनके साथ जो कुछ भी तय करेंगे, ये आगे ले जाएंगे- विश्‍वास अपने-आप पैदा होता है। 

 

अंतरराष्‍ट्रीय संबंधों में पूर्ण बहुमत वाली सरकार होना बहुत बड़ी बात होती है, लेकिन पूर्ण बहुमत वाली सरकार में भी पहले से अधिक जनमत जब जुड़ता है तो वो शक्ति तो बढ़ती है, लेकिन उससे ज्‍यादा विश्‍वास बढ़ता है।

सबका साथ-सबका विकास, और उसमें लोगों ने अमृत मिलाया, सबका विश्‍वास। इसी मंत्र पर हम चल रहे हैं- वो भारत पर दुनिया के विश्‍वास को भी और मजबूत करेगा और विश्‍व को आश्‍वस्‍त करेगा- यही मैं अनुभव कर रहा हूँ, ये विश्‍व को आश्‍वस्‍त करेगा।

साथियो, जब दुनिया के साथ भारत के रिश्‍तों की बात आती है तो जापान का उसमें एक अहम स्‍थान है। ये रिश्‍ते आज के नहीं हैं बल्कि सदियों के हैं। इनके मूल में आत्‍मीयता है, सद्भावना है, एक-दूसरे की संस्‍कृति और सभ्‍यता के लिए सम्‍मान है। इन रिश्‍तों की एक कड़ी महात्‍मा गांधी जी से भी जुड़ती है। संयोग से ये पूज्‍य बापू की 150वीं जन्‍म जयंती का भी वर्ष है। गांधी जी की एक सीख बचपन से हम लोग सुनते आए हैं, समझते आए हैं, और वो सीख थी- बुरा मत देखा, बुरा मत सुनो, बुरा मत कहो। भारत का बच्‍चा-बच्‍चा इसे भलीभांति जानता है। लेकिन बहुत कम लोगों को ये पता है कि जिन तीन बंदरों को इस संदश के लिए बापू ने चुना- उनका जन्‍मदाता 17वीं सदी का जापान है। मिजारू, किकाजारू और इवाजारू- जापान की धरोहर हैं, जिनको पूज्‍य बापू ने एक महान सामाजिक संदेश के लिए प्रतीकात्‍मक के रूप में चुना और उसको प्रचारित किया, प्रसारित किया।

सा‍थियो, हमारे आचार, व्‍यवहार और संस्‍कार की ये कड़ी जापान में बौद्ध धर्म के आने से भी पहले की बताई जाती है। अभी अगले महीने क्‍योटो में गियोन त्‍योहार आने वाला है। और इस गियोन त्‍योहार में जिस रथ का उपयोग होता है, उसकी सजावट भारतीय रेशम के धागों से होती है। और ये परम्‍परा आज की नहीं है, अनगिनत काल से चली आ रही है। 

इसी तरह शिचिफुकुजिन- Seven Gods of Fortune, उन Seven Gods में से चार का संबंध सीधा-सीधा भारत से है। माँ सरस्‍वती के बेंजाइटिन, माँ लक्ष्‍मी की किचिजोटेन, भगवान कुबेर की विशामोन, और महाकाल की दाइकोकुतेन के रूप में जापान में मान्‍यता है। 

साथियो, Fabric printing के जुशोबोरी आर्ट भारत और जापान के रिश्‍तों का एक बहुत पुराना एक प्रकार से ताना-बाना है, सूत्र है। गुजरात के कच्‍छ और जामनगर में सदियों से बाँधनी जिसको कहते हैं, बंधानी कोई बोलते हैं कोई बंदानी बोलता है, उसके कलाकार इस कला में उसी resist technique का उपयोग करते हैं जो यहाँ भी सदियों से इस्‍तेमाल होती है। या‍नी जापान में उस काम को करने वाले लोग और कच्‍छ में जामनगर में करने वाले आपको ऐसे ही लगेगा आप जापान में हैं और जापान वाले वहाँ जाएंगे तो लगेगा गुजरात में हैं, इतनी similarity है। इतना ही नहीं- हमारे बोलचाल के भी कुछ सूत्र हैं जो हमें जोड़ते हैं। जिसे भारत में ध्‍यान कहा जाता है उसे जापान में Zen कहा जाता है और जिसे भारत में सेवा कहा जाता है उसे जापान में भी सेवा ही कहा जाता है। सेवा परमो धर्म:, यानी नि:स्‍वार्थ सवा को भारतीय दर्शन में सबसे बड़ा धर्म माना गया है, वहीं जापान के समाज ने इसको जी करके दिखाया है।

साथियो, स्‍वामी विवेकानंद, गुरुदेव रवीन्‍द्रनाथ टैगोर, महात्‍मा गांधी, नेताजी सुभाषचंद्र बोस, जस्टिस राधा विनोदपाल सहित अनेक भारतीयों ने जापान के साथ हमारे रिश्‍तों को मजबूत किया है। जापान में भी भारत और भारतीयों के लिए प्‍यार और सम्‍मान का भाव रहा है।

इसी का परिणाम था कि दूसरे विश्‍वयुद्ध की समाप्ति के बाद से ही भारत-जापान के बीच के रिश्‍ते और मजबूत होने लगे हैं। लगभग दो दशक पहले प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी और प्रधानमंत्री योशिरो मोरी जी मिलकर हमारे रिश्‍तों को global partnership का रूप दिया था।

2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद मुझे मेरे मित्र प्रधानमंत्री शिंजो आबे के साथ मिलकर इस दोस्‍ती को मजबूत करने का मौका मिला। हम अपने diplomatic relationship को राजधानियों और राजनायिकों की औपचारिकताओं के दायरे से बाहर निकालकर सीधे जनता के बीच ले गए। प्रधानमंत्री आबे के साथ मैंने टोक्‍यो के अलावा क्‍योटो, ओसाका, कोबे, यमानासी, इसकी यात्राएँ भी कीं। यहाँ कोबे तो मैं, कभी-कभी गलती हो जाती है, कभी कहता हूँ चार बार, कभी कहता हूँ पाँच बार, कभी कहता हूँ तीन बार, यानी बार-बार आया हूँ। और पीएम नहीं था, तब भी आता था, आपके साथ बैठता था। प्रधानमंत्री आबे जी ने पिछले वर्ष यामानासी में अपने घर में उन्‍होंने मेरा स्‍वागत किया। उनका ये  स्‍पेशल gesture हर हिन्‍दुस्‍तानी के दिल को छूने वाली बात थी, वरना diplomatic relation में इस प्रकार का personal touch बहुत कम होता है।

दिल्‍ली के अलावा अहमदाबाद और वाराणसी प्रधानमंत्री आबे जी को मेरे मित्र को ले जाने का सौभाग्‍य मुझे मिला। प्रधानमंत्री आबे मेरे संसदीय क्षेत्र और दुनिया की सबसे पुरानी संस्‍कृति और आध्‍यात्मिक नगरी में से एक- काशी में गंगा आरती में भी शामिल हुए। और सिर्फ शामिल हुए नहीं, उनको जब भी जहाँ पर कुछ बोलने का मौका आया, उस आरती के समय उन्‍होंने जो अध्‍यात्‍म की अनुभूति की, उसका जिक्र किए बिना वो रहे नहीं, आज भी उसका उल्‍लेख करते हैं। उनकी ये तस्‍वीरें भी हर भारतीय के मन में बस गई हैं।

साथियो, बीते छह दशकों से अधिक समय में भारत की विकास यात्रा में जापान की एक महत्‍वपूर्ण भूमिका रही है। 21वीं सदी के न्‍यू इंडिया में ये रोल और मजबूत होने वाला है। 1958 में जापान ने अपना पहला  Yen loan भारत को ही स्‍वीकृत किया था, 1958 में। इसके बाद से ही जापानी कम्‍पनियाँ भारत में काम कर रही हैं और उन्‍होंने उत्‍तम गुणवत्‍ता के लिए अपनी एक अलग पहचान बनाई है।

एक समय था जब हम कार बनाने में सहयोग कर रहे थे और आज हम बुलेट ट्रेन बनाने में सहयोग कर रहे हैं। आज पूरब से पश्चिम तक, उत्‍तर से दक्षिण तक भारत का ऐसा कोई भाग नहीं है जहाँ जापान के projectsया investment ने अपनी छाप न छोड़ी हो। इसी प्रकार भारत का talent और manpower यहाँ जापान की अर्थव्‍यवस्‍था को मजबूत करने में अपना योगदान दे रहा है।

 

साथियो, न्‍यू इंडिया में हमारा ये सहयोग और व्‍यापक होने वाला है। हम आने वाले पाँच वर्षों में भारत को 5 trillion dollar की economy बनाने के लक्ष्‍य के साथ आगे बढ़ रहे हैं। Social sector हमारी प्राथमिकता है। इसके साथ-साथ infrastructure में व्‍यापक investment, उस पर भी हमारा बल है। विशेषतौर पर digital infrastructureभारत को आज पूरी दुनिया में निवेश के लिए एक आकर्षक अवसर के रूप में सामने रखता है। भारत मेंdigital literacy आज बहुत तेजी से बढ़ रही है। Digital transactions रिकॉर्ड स्‍तर पर हैं। Innovation औरincubation के लिए एक बहुत बड़ा  infrastructure तैयार हो रहा है, एक नया माहौल अनुभव हो रहा है। इसी के बल पर आने वाले पाँच वर्षों में 50 हजार startups का eco system भारत को बनाने का लक्ष्‍य हमने रखा है।

साथियो, अक्‍सर ये कहा जाता है कि Sky is the limit  किसी जमाने में ठीक था, लेकिन भारत इस लिमिट से आगे, आगे जाकर space को गंभीरता से explore कर रहा है। भारत की 130 करोड़ जनता के जीवन को आसान और सुरक्षित बनाने के लिए सस्‍ती और प्रभावी space technology हासिल करना हमारा लक्ष्‍य है। मुझे खुशी है कि हम इस सफलता के साथ आगे बढ़ पा रहे हैं।

हाल में फौनी cyclone सहित अनेक चुनौतियों को भारत कम से कम नुकसान के साथ manage कर पाया और दुनिया ने उसकी बड़ी सराहना की, कि किस प्रकार से government machinery, human resource, space technology, इन सबको मिला करके कैसे perform किया जा सकता है, वो भारत ने करके दिखाया और वो भी एक तरफ पूरा देश चुनाव की आपाधापी में व्‍यस्‍त था, तब भी इस काम को उत्तम तरीके से पूरा किया और विश्‍व ने इसको सराहा है। और इससे हमें हौसला मिल रहा है। यह कारण है कि कुछ महीनों में ही हम हमारे मून मिशन को आगे बढ़ाते हुए चन्‍द्रयान-2 लॉन्‍च करने वाले हैं। साल 2022 तक अपना पहला man mission, गगनयान भेजने की तैयारी में हम हैं। और कोई हिन्‍दुस्‍तानी तिरंगा झंडा वहाँ फहराए, ये सपना ले करके काम कर रहे हैं।

Space में हमारा अपना स्‍टेशन हो, इसके लिए संभावनाओं को तलाशा जा रहा है। ये जितने भी काम हम कर रहे हैं, आज हिंदुस्‍तान में aspirations से भरा हुआ एक न्‍यू मिडिल क्‍लास एक बहुत बड़ा बल्‍क सोसायटी में, जिसके सपने बहुत हैं, जिसकी आकाँक्षाएं बहुत हैं, जिसको तेज गति से परिणाम की प्रतीक्षा है, उसके अनुरूप हम विकास के नई-नई विधाओं को विकसित कर रहे हैं।

साथियो, ऐसे समय में जब पूरी दुनिया भारत को संभावनाओं के gateway के रूप में देख रही है, तब जापान के साथ हमारा तालमेल भी नई ऊँचाई तय करने वाला है। मैं तो ये मानता हूँ कि जापान की काइज़न फिलोसफी भारत-जापान संबंधों की प्रगति पर भी लागू होती है। मैं जब गुजरात में मुख्‍यमंत्री था तो मैं मेरे सीएम के स्‍टॉफ को एक काइज़न की ट्रेनिंग दिलाता था लगातार क्‍योंकि काइज़न की प्रक्रिया एक ऐसी प्रक्रिया है जो कभी रुकती नहीं है। हमारे संबंध लगातार बढ़ते रहेंगे, बुलंद होते रहेंगे।

साथियो, प्रधानमंत्री के रूप में ये मेरी जापान की चौथी यात्रा है, पीएम के रूप में। सभी यात्राओं में मैंने जापान में भारत के प्रति एक आत्‍मयीता, एक अपनापन अनुभव किया है। अपनी सभ्‍यता और अपने मूल्‍यों पर गर्व करना, talent और technology को राष्‍ट्र निर्माण कहा हिस्‍सा बनाना और tradition के दायरे में बनाना, ये मैंने जापान में प्रत्‍यक्ष अनुभव किया है। और ऐसा महसूस करने वाला मैं अकेला व्‍यक्ति नहीं हूँ।

स्‍वामी विवेकानंद जी ने भी एक सदी पहले जब जापान की यात्रा की थी तो वो भी यहाँ की सभ्‍यता, जनता के समर्पण और work ethic  से बहुत प्रभावित हुए थे। तब स्‍वामी विवेकानंद जी ने तो यहाँ तक कहा था कि हर भारतीय को जापान की यात्रा करनी चाहिए, लेकिन उस समय जरा जनसंख्‍या कम थी। अब ये तो संभव नहीं हो पाएगा, देश के 30 करोड़ लोग...खैर! हम भी मानते हैं, लेकिन 130 करोड़ भारतीयों के प्रतिनिधि, आप सब यहाँ पर हैं। आप जापान की बातों को यहां के work culture को, work ethic  को, यहाँ के talent को, यहाँ के tradition को, यहां की technology को भारत पहुँचाते रहें और भारत की बातें यहाँ के जन-सामान्‍य को सुनाते रहें। यही सेतु हमें नई शक्ति देता है, नित्‍य नूतन व्‍यवस्‍था में परिवर्तित करता है, संबंधों को प्राणवान बनाता है। ये rituals नहीं है एक जीवंत व्‍यवस्‍था है। और जीवंत व्‍यवस्‍था जन-सामान्‍य के जुड़ने से बनती है।

अंत में मैं मेरी बात समाप्‍त करने से पहले आप सभी का, जापानवासियों का, भारतवासियों का और अपने सभी जापानी बहनों-भाइयों के लिए मैं कामना करता हूँ नए रेवा ऐरा- रेवा-युग। मैं आप सबके जीवन, इस युग के नाम के अनुरूप सुंदर हारमनी हमेशा रहे। जापान में- विशेष रूप से कोबे में हर बार आपने जिस आत्‍मीयता से मेरा स्‍वागत, सत्‍कार और सम्‍मान किया, है उसके लिए मैं हृदय से आपका आभार प्रकट करता हूँ।

शायद आपको पता चला होगा 21 जून को अंतरराष्‍ट्रीय योगा दिवस था और भारत सरकार योगा के प्रचार, प्रसार और विकास-विस्‍तार के लिए काम करने वाली संस्‍थाओं को, व्‍यक्तियों को हिन्‍दुस्‍तान में भी और हिन्‍दुस्‍तान के बाहर भी उनको सम्‍मानित करती है, उनको ईनाम देती है। आपको पता चला होगा इस बार जापान में योग के लिए काम करने वाली संस्‍था को भारत सरकार ने सम्‍मानित करने का निर्णय लिया है। जो बहुत बड़े गर्व की बात है। यानी हम हर प्रकार से जुड़ चुके हैं।

इस गौरव के साथ फिर एक बार आप सबके बीच आने का मुझे मौका मिला। आपके आशीर्वाद प्राप्‍त करने का अवसर मिला। मैं आपका हृदय से बहुत-बहुत आभार व्‍यक्‍त करता हूँ।

 

धन्‍यवाद।

 

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Text of PM’s address at the Odisha Parba
November 24, 2024
Delighted to take part in the Odisha Parba in Delhi, the state plays a pivotal role in India's growth and is blessed with cultural heritage admired across the country and the world: PM
The culture of Odisha has greatly strengthened the spirit of 'Ek Bharat Shreshtha Bharat', in which the sons and daughters of the state have made huge contributions: PM
We can see many examples of the contribution of Oriya literature to the cultural prosperity of India: PM
Odisha's cultural richness, architecture and science have always been special, We have to constantly take innovative steps to take every identity of this place to the world: PM
We are working fast in every sector for the development of Odisha,it has immense possibilities of port based industrial development: PM
Odisha is India's mining and metal powerhouse making it’s position very strong in the steel, aluminium and energy sectors: PM
Our government is committed to promote ease of doing business in Odisha: PM
Today Odisha has its own vision and roadmap, now investment will be encouraged and new employment opportunities will be created: PM

जय जगन्नाथ!

जय जगन्नाथ!

केंद्रीय मंत्रिमंडल के मेरे सहयोगी श्रीमान धर्मेन्द्र प्रधान जी, अश्विनी वैष्णव जी, उड़िया समाज संस्था के अध्यक्ष श्री सिद्धार्थ प्रधान जी, उड़िया समाज के अन्य अधिकारी, ओडिशा के सभी कलाकार, अन्य महानुभाव, देवियों और सज्जनों।

ओडिशा र सबू भाईओ भउणी मानंकु मोर नमस्कार, एबंग जुहार। ओड़िया संस्कृति के महाकुंभ ‘ओड़िशा पर्व 2024’ कू आसी मँ गर्बित। आपण मानंकु भेटी मूं बहुत आनंदित।

मैं आप सबको और ओडिशा के सभी लोगों को ओडिशा पर्व की बहुत-बहुत बधाई देता हूँ। इस साल स्वभाव कवि गंगाधर मेहेर की पुण्यतिथि का शताब्दी वर्ष भी है। मैं इस अवसर पर उनका पुण्य स्मरण करता हूं, उन्हें श्रद्धांजलि देता हूँ। मैं भक्त दासिआ बाउरी जी, भक्त सालबेग जी, उड़िया भागवत की रचना करने वाले श्री जगन्नाथ दास जी को भी आदरपूर्वक नमन करता हूं।

ओडिशा निजर सांस्कृतिक विविधता द्वारा भारतकु जीबन्त रखिबारे बहुत बड़ भूमिका प्रतिपादन करिछि।

साथियों,

ओडिशा हमेशा से संतों और विद्वानों की धरती रही है। सरल महाभारत, उड़िया भागवत...हमारे धर्मग्रन्थों को जिस तरह यहाँ के विद्वानों ने लोकभाषा में घर-घर पहुंचाया, जिस तरह ऋषियों के विचारों से जन-जन को जोड़ा....उसने भारत की सांस्कृतिक समृद्धि में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। उड़िया भाषा में महाप्रभु जगन्नाथ जी से जुड़ा कितना बड़ा साहित्य है। मुझे भी उनकी एक गाथा हमेशा याद रहती है। महाप्रभु अपने श्री मंदिर से बाहर आए थे और उन्होंने स्वयं युद्ध का नेतृत्व किया था। तब युद्धभूमि की ओर जाते समय महाप्रभु श्री जगन्नाथ ने अपनी भक्त ‘माणिका गौउडुणी’ के हाथों से दही खाई थी। ये गाथा हमें बहुत कुछ सिखाती है। ये हमें सिखाती है कि हम नेक नीयत से काम करें, तो उस काम का नेतृत्व खुद ईश्वर करते हैं। हमेशा, हर समय, हर हालात में ये सोचने की जरूरत नहीं है कि हम अकेले हैं, हम हमेशा ‘प्लस वन’ होते हैं, प्रभु हमारे साथ होते हैं, ईश्वर हमेशा हमारे साथ होते हैं।

साथियों,

ओडिशा के संत कवि भीम भोई ने कहा था- मो जीवन पछे नर्के पडिथाउ जगत उद्धार हेउ। भाव ये कि मुझे चाहे जितने ही दुख क्यों ना उठाने पड़ें...लेकिन जगत का उद्धार हो। यही ओडिशा की संस्कृति भी है। ओडिशा सबु जुगरे समग्र राष्ट्र एबं पूरा मानब समाज र सेबा करिछी। यहाँ पुरी धाम ने ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ की भावना को मजबूत बनाया। ओडिशा की वीर संतानों ने आज़ादी की लड़ाई में भी बढ़-चढ़कर देश को दिशा दिखाई थी। पाइका क्रांति के शहीदों का ऋण, हम कभी नहीं चुका सकते। ये मेरी सरकार का सौभाग्य है कि उसे पाइका क्रांति पर स्मारक डाक टिकट और सिक्का जारी करने का अवसर मिला था।

साथियों,

उत्कल केशरी हरे कृष्ण मेहताब जी के योगदान को भी इस समय पूरा देश याद कर रहा है। हम व्यापक स्तर पर उनकी 125वीं जयंती मना रहे हैं। अतीत से लेकर आज तक, ओडिशा ने देश को कितना सक्षम नेतृत्व दिया है, ये भी हमारे सामने है। आज ओडिशा की बेटी...आदिवासी समुदाय की द्रौपदी मुर्मू जी भारत की राष्ट्रपति हैं। ये हम सभी के लिए बहुत ही गर्व की बात है। उनकी प्रेरणा से आज भारत में आदिवासी कल्याण की हजारों करोड़ रुपए की योजनाएं शुरू हुई हैं, और ये योजनाएं सिर्फ ओडिशा के ही नहीं बल्कि पूरे भारत के आदिवासी समाज का हित कर रही हैं।

साथियों,

ओडिशा, माता सुभद्रा के रूप में नारीशक्ति और उसके सामर्थ्य की धरती है। ओडिशा तभी आगे बढ़ेगा, जब ओडिशा की महिलाएं आगे बढ़ेंगी। इसीलिए, कुछ ही दिन पहले मैंने ओडिशा की अपनी माताओं-बहनों के लिए सुभद्रा योजना का शुभारंभ किया था। इसका बहुत बड़ा लाभ ओडिशा की महिलाओं को मिलेगा। उत्कलर एही महान सुपुत्र मानंकर बिसयरे देश जाणू, एबं सेमानंक जीबन रु प्रेरणा नेउ, एथी निमन्ते एपरी आयौजनर बहुत अधिक गुरुत्व रहिछि ।

साथियों,

इसी उत्कल ने भारत के समुद्री सामर्थ्य को नया विस्तार दिया था। कल ही ओडिशा में बाली जात्रा का समापन हुआ है। इस बार भी 15 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा के दिन से कटक में महानदी के तट पर इसका भव्य आयोजन हो रहा था। बाली जात्रा प्रतीक है कि भारत का, ओडिशा का सामुद्रिक सामर्थ्य क्या था। सैकड़ों वर्ष पहले जब आज जैसी टेक्नोलॉजी नहीं थी, तब भी यहां के नाविकों ने समुद्र को पार करने का साहस दिखाया। हमारे यहां के व्यापारी जहाजों से इंडोनेशिया के बाली, सुमात्रा, जावा जैसे स्थानो की यात्राएं करते थे। इन यात्राओं के माध्यम से व्यापार भी हुआ और संस्कृति भी एक जगह से दूसरी जगह पहुंची। आजी विकसित भारतर संकल्पर सिद्धि निमन्ते ओडिशार सामुद्रिक शक्तिर महत्वपूर्ण भूमिका अछि।

साथियों,

ओडिशा को नई ऊंचाई तक ले जाने के लिए 10 साल से चल रहे अनवरत प्रयास....आज ओडिशा के लिए नए भविष्य की उम्मीद बन रहे हैं। 2024 में ओडिशावासियों के अभूतपूर्व आशीर्वाद ने इस उम्मीद को नया हौसला दिया है। हमने बड़े सपने देखे हैं, बड़े लक्ष्य तय किए हैं। 2036 में ओडिशा, राज्य-स्थापना का शताब्दी वर्ष मनाएगा। हमारा प्रयास है कि ओडिशा की गिनती देश के सशक्त, समृद्ध और तेजी से आगे बढ़ने वाले राज्यों में हो।

साथियों,

एक समय था, जब भारत के पूर्वी हिस्से को...ओडिशा जैसे राज्यों को पिछड़ा कहा जाता था। लेकिन मैं भारत के पूर्वी हिस्से को देश के विकास का ग्रोथ इंजन मानता हूं। इसलिए हमने पूर्वी भारत के विकास को अपनी प्राथमिकता बनाया है। आज पूरे पूर्वी भारत में कनेक्टिविटी के काम हों, स्वास्थ्य के काम हों, शिक्षा के काम हों, सभी में तेजी लाई गई है। 10 साल पहले ओडिशा को केंद्र सरकार जितना बजट देती थी, आज ओडिशा को तीन गुना ज्यादा बजट मिल रहा है। इस साल ओडिशा के विकास के लिए पिछले साल की तुलना में 30 प्रतिशत ज्यादा बजट दिया गया है। हम ओडिशा के विकास के लिए हर सेक्टर में तेजी से काम कर रहे हैं।

साथियों,

ओडिशा में पोर्ट आधारित औद्योगिक विकास की अपार संभावनाएं हैं। इसलिए धामरा, गोपालपुर, अस्तारंगा, पलुर, और सुवर्णरेखा पोर्ट्स का विकास करके यहां व्यापार को बढ़ावा दिया जाएगा। ओडिशा भारत का mining और metal powerhouse भी है। इससे स्टील, एल्युमिनियम और एनर्जी सेक्टर में ओडिशा की स्थिति काफी मजबूत हो जाती है। इन सेक्टरों पर फोकस करके ओडिशा में समृद्धि के नए दरवाजे खोले जा सकते हैं।

साथियों,

ओडिशा की धरती पर काजू, जूट, कपास, हल्दी और तिलहन की पैदावार बहुतायत में होती है। हमारा प्रयास है कि इन उत्पादों की पहुंच बड़े बाजारों तक हो और उसका फायदा हमारे किसान भाई-बहनों को मिले। ओडिशा की सी-फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री में भी विस्तार की काफी संभावनाएं हैं। हमारा प्रयास है कि ओडिशा सी-फूड एक ऐसा ब्रांड बने, जिसकी मांग ग्लोबल मार्केट में हो।

साथियों,

हमारा प्रयास है कि ओडिशा निवेश करने वालों की पसंदीदा जगहों में से एक हो। हमारी सरकार ओडिशा में इज ऑफ डूइंग बिजनेस को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है। उत्कर्ष उत्कल के माध्यम से निवेश को बढ़ाया जा रहा है। ओडिशा में नई सरकार बनते ही, पहले 100 दिनों के भीतर-भीतर, 45 हजार करोड़ रुपए के निवेश को मंजूरी मिली है। आज ओडिशा के पास अपना विज़न भी है, और रोडमैप भी है। अब यहाँ निवेश को भी बढ़ावा मिलेगा, और रोजगार के नए अवसर भी पैदा होंगे। मैं इन प्रयासों के लिए मुख्यमंत्री श्रीमान मोहन चरण मांझी जी और उनकी टीम को बहुत-बहुत बधाई देता हूं।

साथियों,

ओडिशा के सामर्थ्य का सही दिशा में उपयोग करके उसे विकास की नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया जा सकता है। मैं मानता हूं, ओडिशा को उसकी strategic location का बहुत बड़ा फायदा मिल सकता है। यहां से घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाजार तक पहुंचना आसान है। पूर्व और दक्षिण-पूर्व एशिया के लिए ओडिशा व्यापार का एक महत्वपूर्ण हब है। Global value chains में ओडिशा की अहमियत आने वाले समय में और बढ़ेगी। हमारी सरकार राज्य से export बढ़ाने के लक्ष्य पर भी काम कर रही है।

साथियों,

ओडिशा में urbanization को बढ़ावा देने की अपार संभावनाएं हैं। हमारी सरकार इस दिशा में ठोस कदम उठा रही है। हम ज्यादा संख्या में dynamic और well-connected cities के निर्माण के लिए प्रतिबद्ध हैं। हम ओडिशा के टियर टू शहरों में भी नई संभावनाएं बनाने का भरपूर हम प्रयास कर रहे हैं। खासतौर पर पश्चिम ओडिशा के इलाकों में जो जिले हैं, वहाँ नए इंफ्रास्ट्रक्चर से नए अवसर पैदा होंगे।

साथियों,

हायर एजुकेशन के क्षेत्र में ओडिशा देशभर के छात्रों के लिए एक नई उम्मीद की तरह है। यहां कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय इंस्टीट्यूट हैं, जो राज्य को एजुकेशन सेक्टर में लीड लेने के लिए प्रेरित करते हैं। इन कोशिशों से राज्य में स्टार्टअप्स इकोसिस्टम को भी बढ़ावा मिल रहा है।

साथियों,

ओडिशा अपनी सांस्कृतिक समृद्धि के कारण हमेशा से ख़ास रहा है। ओडिशा की विधाएँ हर किसी को सम्मोहित करती है, हर किसी को प्रेरित करती हैं। यहाँ का ओड़िशी नृत्य हो...ओडिशा की पेंटिंग्स हों...यहाँ जितनी जीवंतता पट्टचित्रों में देखने को मिलती है...उतनी ही बेमिसाल हमारे आदिवासी कला की प्रतीक सौरा चित्रकारी भी होती है। संबलपुरी, बोमकाई और कोटपाद बुनकरों की कारीगरी भी हमें ओडिशा में देखने को मिलती है। हम इस कला और कारीगरी का जितना प्रसार करेंगे, उतना ही इस कला को संरक्षित करने वाले उड़िया लोगों को सम्मान मिलेगा।

साथियों,

हमारे ओडिशा के पास वास्तु और विज्ञान की भी इतनी बड़ी धरोहर है। कोणार्क का सूर्य मंदिर… इसकी विशालता, इसका विज्ञान...लिंगराज और मुक्तेश्वर जैसे पुरातन मंदिरों का वास्तु.....ये हर किसी को आश्चर्यचकित करता है। आज लोग जब इन्हें देखते हैं...तो सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि सैकड़ों साल पहले भी ओडिशा के लोग विज्ञान में इतने आगे थे।

साथियों,

ओडिशा, पर्यटन की दृष्टि से अपार संभावनाओं की धरती है। हमें इन संभावनाओं को धरातल पर उतारने के लिए कई आयामों में काम करना है। आप देख रहे हैं, आज ओडिशा के साथ-साथ देश में भी ऐसी सरकार है जो ओडिशा की धरोहरों का, उसकी पहचान का सम्मान करती है। आपने देखा होगा, पिछले साल हमारे यहाँ G-20 का सम्मेलन हुआ था। हमने G-20 के दौरान इतने सारे देशों के राष्ट्राध्यक्षों और राजनयिकों के सामने...सूर्यमंदिर की ही भव्य तस्वीर को प्रस्तुत किया था। मुझे खुशी है कि महाप्रभु जगन्नाथ मंदिर परिसर के सभी चार द्वार खुल चुके हैं। मंदिर का रत्न भंडार भी खोल दिया गया है।

साथियों,

हमें ओडिशा की हर पहचान को दुनिया को बताने के लिए भी और भी इनोवेटिव कदम उठाने हैं। जैसे....हम बाली जात्रा को और पॉपुलर बनाने के लिए बाली जात्रा दिवस घोषित कर सकते हैं, उसका अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रचार कर सकते हैं। हम ओडिशी नृत्य जैसी कलाओं के लिए ओडिशी दिवस मनाने की शुरुआत कर सकते हैं। विभिन्न आदिवासी धरोहरों को सेलिब्रेट करने के लिए भी नई परम्पराएँ शुरू की जा सकती हैं। इसके लिए स्कूल और कॉलेजों में विशेष आयोजन किए जा सकते हैं। इससे लोगों में जागरूकता आएगी, यहाँ पर्यटन और लघु उद्योगों से जुड़े अवसर बढ़ेंगे। कुछ ही दिनों बाद प्रवासी भारतीय सम्मेलन भी, विश्व भर के लोग इस बार ओडिशा में, भुवनेश्वर में आने वाले हैं। प्रवासी भारतीय दिवस पहली बार ओडिशा में हो रहा है। ये सम्मेलन भी ओडिशा के लिए बहुत बड़ा अवसर बनने वाला है।

साथियों,

कई जगह देखा गया है बदलते समय के साथ, लोग अपनी मातृभाषा और संस्कृति को भी भूल जाते हैं। लेकिन मैंने देखा है...उड़िया समाज, चाहे जहां भी रहे, अपनी संस्कृति, अपनी भाषा...अपने पर्व-त्योहारों को लेकर हमेशा से बहुत उत्साहित रहा है। मातृभाषा और संस्कृति की शक्ति कैसे हमें अपनी जमीन से जोड़े रखती है...ये मैंने कुछ दिन पहले ही दक्षिण अमेरिका के देश गयाना में भी देखा। करीब दो सौ साल पहले भारत से सैकड़ों मजदूर गए...लेकिन वो अपने साथ रामचरित मानस ले गए...राम का नाम ले गए...इससे आज भी उनका नाता भारत भूमि से जुड़ा हुआ है। अपनी विरासत को इसी तरह सहेज कर रखते हुए जब विकास होता है...तो उसका लाभ हर किसी तक पहुंचता है। इसी तरह हम ओडिशा को भी नई ऊचाई पर पहुंचा सकते हैं।

साथियों,

आज के आधुनिक युग में हमें आधुनिक बदलावों को आत्मसात भी करना है, और अपनी जड़ों को भी मजबूत बनाना है। ओडिशा पर्व जैसे आयोजन इसका एक माध्यम बन सकते हैं। मैं चाहूँगा, आने वाले वर्षों में इस आयोजन का और ज्यादा विस्तार हो, ये पर्व केवल दिल्ली तक सीमित न रहे। ज्यादा से ज्यादा लोग इससे जुड़ें, स्कूल कॉलेजों का participation भी बढ़े, हमें इसके लिए प्रयास करने चाहिए। दिल्ली में बाकी राज्यों के लोग भी यहाँ आयें, ओडिशा को और करीबी से जानें, ये भी जरूरी है। मुझे भरोसा है, आने वाले समय में इस पर्व के रंग ओडिशा और देश के कोने-कोने तक पहुंचेंगे, ये जनभागीदारी का एक बहुत बड़ा प्रभावी मंच बनेगा। इसी भावना के साथ, मैं एक बार फिर आप सभी को बधाई देता हूं।

आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद।

जय जगन्नाथ!