ఫ్రాన్స్ అధ్యక్షుడు శ్రీ ఫ్రాన్స్ ఇమ్మాన్యుయేల్ మాక్రాన్ ఆహ్వానం మేరకు ప్రధాన మంత్రి శ్రీ నరేంద్ర మోడీ భారత్ - ఫ్రాన్స్ మధ్య 1998లో కుదిరిన వ్యూహాత్మక భాగస్వామ్యం రజతోత్సవం సందర్బంగా ఫ్రాన్స్ జాతీయ దినోత్సవంలో గౌరవ అతిథిగా పాల్గొని తన చారిత్రాత్మక పర్యటన ముగించారు. అనిశ్చిత ప్రపంచంలో రోజురోజుకు మారుతున్న పరిస్థితుల దృష్ట్యా భారత్ - ఫ్రాన్స్ 1998 జనవరి నెలలో రెండు దేశాల మధ్య సంబంధాలను అప్పటి ప్రధాన మంత్రి అటల్ బిహారీ వాజపేయి, ఫ్రాన్స్ అధ్యక్షుడు జాక్వెస్ చిరాక్
వ్యూహాత్మక భాగస్వామ్యం స్థాయికి పెంచారు. ఏదైనా దేశంతో ఇండియా వ్యూహాత్మక భాగస్వామ్యం కుదుర్చుకోవడం ఇదే మొదటిసారి.
1947లో భారత దేశానికి స్వాతంత్య్రం సిద్ధించినప్పటి నుంచి రెండు దేశాల మధ్య ఉన్న నిర్ణయాత్మక నిబద్ధత బలమైన, స్థిరమైన భాగస్వామ్యంలో చేసిన అసాధారణమైన ప్రయత్నాలలో ప్రతిబింబించిన పరస్పర విశ్వాసాన్ని ధ్రువీకరించడమే.
శ్రీ మోడీ పర్యటన సందర్బంగా ఇరువురు నేతలు సమావేశమయ్యారు. చీకటి తుపానుల వంటి అవరోధాలను కూడా అధిగమించి నిలకడగా సాగే బంధం తమదని వారు అంగీకరించారు. అవరోధాలను ధైర్యంగా అధిగమించి ముందుకు సాగిన తీరు
ప్రతిష్టాత్మకంగా ఉందని వారన్నారు. ఇది భాగస్వామ్య విలువలు, సార్వభౌమాధికారం మరియు వ్యూహాత్మక స్వయంప్రతిపత్తిపై నమ్మకం, అంతర్జాతీయ చట్టం మరియు UN చార్టర్పై తిరుగులేని నిబద్ధత, బహుపాక్షికతపై స్థిరమైన విశ్వాసం, స్థిరమైన బహుళ ధ్రువ ప్రపంచం కోసం ఉమ్మడి విలువల పునాదులపై స్థాపించిన బంధమని అన్నారు.
గత పాతికేళ్లలో రెండు దేశాల మధ్య ద్వైపాక్షిక సహకారం ప్రతి రంగంలో వచ్చిన పరివర్తన, విస్తరణను
ప్రధాని మోదీ మరియు అధ్యక్షుడు మాక్రాన్ సమీక్షించారు. భాగస్వామ్యం పరిణామక్రమంలో తమకున్న ప్రాంతీయ
బాధ్యతలు మరియు ప్రపంచ ప్రాముఖ్యత గురించి వారు ప్రముఖంగా ప్రస్తావించారు.
"మా రాజకీయ మరియు దౌత్య ఒప్పందాలు మాకు అత్యంత సన్నిహితమైనవి మరియు అత్యంత విశ్వసనీయమైనవి. మా రక్షణ మరియు భద్రతా భాగస్వామ్యం బలంగా ఉంది. అది సముద్రగర్భం నుండి రోదసి వరకు విస్తరించింది. మా ఆర్థిక సంబంధాలు రెండు దేశాలకు శ్రేయోదాయకంగా ఉండి సుసంపన్నం చేస్తాయి. దేశ సార్వభౌమాధికారాని బలోపేతం చేస్తాయి. సరఫరా శృంఖలలను ముందుకు తీసుకువెళతాయి. పరిశుభ్రమైన మరియు తక్కువ కర్బనం ఉన్న శక్తిని ప్రోత్సహించడం, జీవవైవిధ్యాన్ని పరిరక్షించడం, మహా సముద్రాలను రక్షించడం, కాలుష్యాన్ని ఎదుర్కోవడం సహకారానికి కీలకమైన స్తంభం. మా రెండు దేశాలలో అంకాత్మక, వినూత్న మరియు అంకుర సంస్థల భాగస్వామ్యమే కొత్త వృద్ధి రంగమని, అది రెండు దేశాల మధ్య లోతైన ఏకముఖత్వము మరియు బలమైన పూరకాలను నిర్మించగలదు" అని ఇరువురు నేతలు అంగీకరించారు.
విద్య, విజ్ఞానం మరియు సాంకేతికత, సంస్కృతి రంగాలలో రెండు దేశాల మధ్య పెరుగుతున్న సంబంధాలు, వృద్ధి చెందుతున్న యువత మార్పిడి మరియు అత్యంత నిష్ణాతులైన అభివృద్ధి చెందుతున్న వలస వెళ్లిన ప్రవాసులతో (డియాస్పోరా) సంబంధాలు మరింత బలపడుతున్నాయి. తద్వారా వారు మన ప్రజలకు మరింత దగ్గరవుతున్నారు. అవి భవిష్యత్ భాగస్వామ్యానికి బీజాలు వేస్తున్నాయని సంయుక్త ప్రకటనలో పేర్కొన్నారు.
అల్లకల్లోలం, సవాళ్లతో కూడిన ప్రస్తుత తరుణంలో మన భాగస్వామ్యానికి గతంలో కంటే ఎక్కువ ఆవశ్యకత ఉంది.
అంతర్జాతీయ చట్టానికి సమర్ధన, ముక్కలు ముక్కలైన ప్రపంచంలో సమన్వయాన్ని ముందుకు తీసుకెళ్లడం; బహుపాక్షిక వ్యవస్థ సంస్కరణ, పునరుత్తేజం/పునరుద్ధరణ; సురక్షితమైన, శాంతియుతమైన ఇండో-పసిఫిక్ ప్రాంతం నిర్మించడం; వాతావరణ మార్పు, పరిశుభ్రమైన ఇంధనం, ఆరోగ్యం, ఆహార భద్రత, పేదరికం మరియు అభివృద్ధి వంటి ప్రపంచ సవాళ్లకు పరిష్కారం కనుగొనడం.
"భారత స్వాతంత్య్ర శతాబ్ది, మా దౌత్య సంబంధాల శతాబ్ది మరియు మా వ్యూహాత్మక భాగస్వామ్యం అర్ధ శతాబ్దాన్ని మేము ధైర్యమైన దార్శనికతతో , ఉన్నత ఆశయాలతో కలిసికట్టుగా రాబోయే 25 సంవత్సరాలు అంటే 2047 దాకా ఆ తరువాత
కూడా కొనసాగే మా ప్రయాణం కోసం ఈరోజు మేము ఎదురు చూస్తున్నాం" అని ఇద్దరు నేతలు ప్రకటించారు.
రానున్న 25 సంవత్సరాలు రెండు దేశాలకు మరియు మన మధ్య భాగస్వామ్యానికి- మన ప్రజలకు మరియు మనతో పాటు ఈ గ్రహంలో నివసించే వారికి వారికి మంచి భవిష్యత్తును నిర్మించడానికి కీలకమైన సమయం. భారతదేశం-ఫ్రాన్స్ వ్యూహాత్మక భాగస్వామ్యం తదుపరి దశ కోసం తమ భాగస్వామ్య దృక్పథాన్ని నిర్దేశించడానికి, ఇండో-ఫ్రెంచ్ వ్యూహాత్మక భాగస్వామ్యం 25వ వార్షికోత్సవం సందర్భంగా "దిక్చక్రం 2047 -- భారత్ - ఫ్రాన్స్ సంబంధాలు శతాబ్ధి దిశగా పయనం" మార్గనిర్దేశం (రోడ్ మ్యాప్) అమలుకు ఇరువురు నేతలు అంగీకరించారు.
जय जगन्नाथ!
जय जगन्नाथ!
केंद्रीय मंत्रिमंडल के मेरे सहयोगी श्रीमान धर्मेन्द्र प्रधान जी, अश्विनी वैष्णव जी, उड़िया समाज संस्था के अध्यक्ष श्री सिद्धार्थ प्रधान जी, उड़िया समाज के अन्य अधिकारी, ओडिशा के सभी कलाकार, अन्य महानुभाव, देवियों और सज्जनों।
ओडिशा र सबू भाईओ भउणी मानंकु मोर नमस्कार, एबंग जुहार। ओड़िया संस्कृति के महाकुंभ ‘ओड़िशा पर्व 2024’ कू आसी मँ गर्बित। आपण मानंकु भेटी मूं बहुत आनंदित।
मैं आप सबको और ओडिशा के सभी लोगों को ओडिशा पर्व की बहुत-बहुत बधाई देता हूँ। इस साल स्वभाव कवि गंगाधर मेहेर की पुण्यतिथि का शताब्दी वर्ष भी है। मैं इस अवसर पर उनका पुण्य स्मरण करता हूं, उन्हें श्रद्धांजलि देता हूँ। मैं भक्त दासिआ बाउरी जी, भक्त सालबेग जी, उड़िया भागवत की रचना करने वाले श्री जगन्नाथ दास जी को भी आदरपूर्वक नमन करता हूं।
ओडिशा निजर सांस्कृतिक विविधता द्वारा भारतकु जीबन्त रखिबारे बहुत बड़ भूमिका प्रतिपादन करिछि।
साथियों,
ओडिशा हमेशा से संतों और विद्वानों की धरती रही है। सरल महाभारत, उड़िया भागवत...हमारे धर्मग्रन्थों को जिस तरह यहाँ के विद्वानों ने लोकभाषा में घर-घर पहुंचाया, जिस तरह ऋषियों के विचारों से जन-जन को जोड़ा....उसने भारत की सांस्कृतिक समृद्धि में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है। उड़िया भाषा में महाप्रभु जगन्नाथ जी से जुड़ा कितना बड़ा साहित्य है। मुझे भी उनकी एक गाथा हमेशा याद रहती है। महाप्रभु अपने श्री मंदिर से बाहर आए थे और उन्होंने स्वयं युद्ध का नेतृत्व किया था। तब युद्धभूमि की ओर जाते समय महाप्रभु श्री जगन्नाथ ने अपनी भक्त ‘माणिका गौउडुणी’ के हाथों से दही खाई थी। ये गाथा हमें बहुत कुछ सिखाती है। ये हमें सिखाती है कि हम नेक नीयत से काम करें, तो उस काम का नेतृत्व खुद ईश्वर करते हैं। हमेशा, हर समय, हर हालात में ये सोचने की जरूरत नहीं है कि हम अकेले हैं, हम हमेशा ‘प्लस वन’ होते हैं, प्रभु हमारे साथ होते हैं, ईश्वर हमेशा हमारे साथ होते हैं।
साथियों,
ओडिशा के संत कवि भीम भोई ने कहा था- मो जीवन पछे नर्के पडिथाउ जगत उद्धार हेउ। भाव ये कि मुझे चाहे जितने ही दुख क्यों ना उठाने पड़ें...लेकिन जगत का उद्धार हो। यही ओडिशा की संस्कृति भी है। ओडिशा सबु जुगरे समग्र राष्ट्र एबं पूरा मानब समाज र सेबा करिछी। यहाँ पुरी धाम ने ‘एक भारत श्रेष्ठ भारत’ की भावना को मजबूत बनाया। ओडिशा की वीर संतानों ने आज़ादी की लड़ाई में भी बढ़-चढ़कर देश को दिशा दिखाई थी। पाइका क्रांति के शहीदों का ऋण, हम कभी नहीं चुका सकते। ये मेरी सरकार का सौभाग्य है कि उसे पाइका क्रांति पर स्मारक डाक टिकट और सिक्का जारी करने का अवसर मिला था।
साथियों,
उत्कल केशरी हरे कृष्ण मेहताब जी के योगदान को भी इस समय पूरा देश याद कर रहा है। हम व्यापक स्तर पर उनकी 125वीं जयंती मना रहे हैं। अतीत से लेकर आज तक, ओडिशा ने देश को कितना सक्षम नेतृत्व दिया है, ये भी हमारे सामने है। आज ओडिशा की बेटी...आदिवासी समुदाय की द्रौपदी मुर्मू जी भारत की राष्ट्रपति हैं। ये हम सभी के लिए बहुत ही गर्व की बात है। उनकी प्रेरणा से आज भारत में आदिवासी कल्याण की हजारों करोड़ रुपए की योजनाएं शुरू हुई हैं, और ये योजनाएं सिर्फ ओडिशा के ही नहीं बल्कि पूरे भारत के आदिवासी समाज का हित कर रही हैं।
साथियों,
ओडिशा, माता सुभद्रा के रूप में नारीशक्ति और उसके सामर्थ्य की धरती है। ओडिशा तभी आगे बढ़ेगा, जब ओडिशा की महिलाएं आगे बढ़ेंगी। इसीलिए, कुछ ही दिन पहले मैंने ओडिशा की अपनी माताओं-बहनों के लिए सुभद्रा योजना का शुभारंभ किया था। इसका बहुत बड़ा लाभ ओडिशा की महिलाओं को मिलेगा। उत्कलर एही महान सुपुत्र मानंकर बिसयरे देश जाणू, एबं सेमानंक जीबन रु प्रेरणा नेउ, एथी निमन्ते एपरी आयौजनर बहुत अधिक गुरुत्व रहिछि ।
साथियों,
इसी उत्कल ने भारत के समुद्री सामर्थ्य को नया विस्तार दिया था। कल ही ओडिशा में बाली जात्रा का समापन हुआ है। इस बार भी 15 नवंबर को कार्तिक पूर्णिमा के दिन से कटक में महानदी के तट पर इसका भव्य आयोजन हो रहा था। बाली जात्रा प्रतीक है कि भारत का, ओडिशा का सामुद्रिक सामर्थ्य क्या था। सैकड़ों वर्ष पहले जब आज जैसी टेक्नोलॉजी नहीं थी, तब भी यहां के नाविकों ने समुद्र को पार करने का साहस दिखाया। हमारे यहां के व्यापारी जहाजों से इंडोनेशिया के बाली, सुमात्रा, जावा जैसे स्थानो की यात्राएं करते थे। इन यात्राओं के माध्यम से व्यापार भी हुआ और संस्कृति भी एक जगह से दूसरी जगह पहुंची। आजी विकसित भारतर संकल्पर सिद्धि निमन्ते ओडिशार सामुद्रिक शक्तिर महत्वपूर्ण भूमिका अछि।
साथियों,
ओडिशा को नई ऊंचाई तक ले जाने के लिए 10 साल से चल रहे अनवरत प्रयास....आज ओडिशा के लिए नए भविष्य की उम्मीद बन रहे हैं। 2024 में ओडिशावासियों के अभूतपूर्व आशीर्वाद ने इस उम्मीद को नया हौसला दिया है। हमने बड़े सपने देखे हैं, बड़े लक्ष्य तय किए हैं। 2036 में ओडिशा, राज्य-स्थापना का शताब्दी वर्ष मनाएगा। हमारा प्रयास है कि ओडिशा की गिनती देश के सशक्त, समृद्ध और तेजी से आगे बढ़ने वाले राज्यों में हो।
साथियों,
एक समय था, जब भारत के पूर्वी हिस्से को...ओडिशा जैसे राज्यों को पिछड़ा कहा जाता था। लेकिन मैं भारत के पूर्वी हिस्से को देश के विकास का ग्रोथ इंजन मानता हूं। इसलिए हमने पूर्वी भारत के विकास को अपनी प्राथमिकता बनाया है। आज पूरे पूर्वी भारत में कनेक्टिविटी के काम हों, स्वास्थ्य के काम हों, शिक्षा के काम हों, सभी में तेजी लाई गई है। 10 साल पहले ओडिशा को केंद्र सरकार जितना बजट देती थी, आज ओडिशा को तीन गुना ज्यादा बजट मिल रहा है। इस साल ओडिशा के विकास के लिए पिछले साल की तुलना में 30 प्रतिशत ज्यादा बजट दिया गया है। हम ओडिशा के विकास के लिए हर सेक्टर में तेजी से काम कर रहे हैं।
साथियों,
ओडिशा में पोर्ट आधारित औद्योगिक विकास की अपार संभावनाएं हैं। इसलिए धामरा, गोपालपुर, अस्तारंगा, पलुर, और सुवर्णरेखा पोर्ट्स का विकास करके यहां व्यापार को बढ़ावा दिया जाएगा। ओडिशा भारत का mining और metal powerhouse भी है। इससे स्टील, एल्युमिनियम और एनर्जी सेक्टर में ओडिशा की स्थिति काफी मजबूत हो जाती है। इन सेक्टरों पर फोकस करके ओडिशा में समृद्धि के नए दरवाजे खोले जा सकते हैं।
साथियों,
ओडिशा की धरती पर काजू, जूट, कपास, हल्दी और तिलहन की पैदावार बहुतायत में होती है। हमारा प्रयास है कि इन उत्पादों की पहुंच बड़े बाजारों तक हो और उसका फायदा हमारे किसान भाई-बहनों को मिले। ओडिशा की सी-फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री में भी विस्तार की काफी संभावनाएं हैं। हमारा प्रयास है कि ओडिशा सी-फूड एक ऐसा ब्रांड बने, जिसकी मांग ग्लोबल मार्केट में हो।
साथियों,
हमारा प्रयास है कि ओडिशा निवेश करने वालों की पसंदीदा जगहों में से एक हो। हमारी सरकार ओडिशा में इज ऑफ डूइंग बिजनेस को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध है। उत्कर्ष उत्कल के माध्यम से निवेश को बढ़ाया जा रहा है। ओडिशा में नई सरकार बनते ही, पहले 100 दिनों के भीतर-भीतर, 45 हजार करोड़ रुपए के निवेश को मंजूरी मिली है। आज ओडिशा के पास अपना विज़न भी है, और रोडमैप भी है। अब यहाँ निवेश को भी बढ़ावा मिलेगा, और रोजगार के नए अवसर भी पैदा होंगे। मैं इन प्रयासों के लिए मुख्यमंत्री श्रीमान मोहन चरण मांझी जी और उनकी टीम को बहुत-बहुत बधाई देता हूं।
साथियों,
ओडिशा के सामर्थ्य का सही दिशा में उपयोग करके उसे विकास की नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया जा सकता है। मैं मानता हूं, ओडिशा को उसकी strategic location का बहुत बड़ा फायदा मिल सकता है। यहां से घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाजार तक पहुंचना आसान है। पूर्व और दक्षिण-पूर्व एशिया के लिए ओडिशा व्यापार का एक महत्वपूर्ण हब है। Global value chains में ओडिशा की अहमियत आने वाले समय में और बढ़ेगी। हमारी सरकार राज्य से export बढ़ाने के लक्ष्य पर भी काम कर रही है।
साथियों,
ओडिशा में urbanization को बढ़ावा देने की अपार संभावनाएं हैं। हमारी सरकार इस दिशा में ठोस कदम उठा रही है। हम ज्यादा संख्या में dynamic और well-connected cities के निर्माण के लिए प्रतिबद्ध हैं। हम ओडिशा के टियर टू शहरों में भी नई संभावनाएं बनाने का भरपूर हम प्रयास कर रहे हैं। खासतौर पर पश्चिम ओडिशा के इलाकों में जो जिले हैं, वहाँ नए इंफ्रास्ट्रक्चर से नए अवसर पैदा होंगे।
साथियों,
हायर एजुकेशन के क्षेत्र में ओडिशा देशभर के छात्रों के लिए एक नई उम्मीद की तरह है। यहां कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय इंस्टीट्यूट हैं, जो राज्य को एजुकेशन सेक्टर में लीड लेने के लिए प्रेरित करते हैं। इन कोशिशों से राज्य में स्टार्टअप्स इकोसिस्टम को भी बढ़ावा मिल रहा है।
साथियों,
ओडिशा अपनी सांस्कृतिक समृद्धि के कारण हमेशा से ख़ास रहा है। ओडिशा की विधाएँ हर किसी को सम्मोहित करती है, हर किसी को प्रेरित करती हैं। यहाँ का ओड़िशी नृत्य हो...ओडिशा की पेंटिंग्स हों...यहाँ जितनी जीवंतता पट्टचित्रों में देखने को मिलती है...उतनी ही बेमिसाल हमारे आदिवासी कला की प्रतीक सौरा चित्रकारी भी होती है। संबलपुरी, बोमकाई और कोटपाद बुनकरों की कारीगरी भी हमें ओडिशा में देखने को मिलती है। हम इस कला और कारीगरी का जितना प्रसार करेंगे, उतना ही इस कला को संरक्षित करने वाले उड़िया लोगों को सम्मान मिलेगा।
साथियों,
हमारे ओडिशा के पास वास्तु और विज्ञान की भी इतनी बड़ी धरोहर है। कोणार्क का सूर्य मंदिर… इसकी विशालता, इसका विज्ञान...लिंगराज और मुक्तेश्वर जैसे पुरातन मंदिरों का वास्तु.....ये हर किसी को आश्चर्यचकित करता है। आज लोग जब इन्हें देखते हैं...तो सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि सैकड़ों साल पहले भी ओडिशा के लोग विज्ञान में इतने आगे थे।
साथियों,
ओडिशा, पर्यटन की दृष्टि से अपार संभावनाओं की धरती है। हमें इन संभावनाओं को धरातल पर उतारने के लिए कई आयामों में काम करना है। आप देख रहे हैं, आज ओडिशा के साथ-साथ देश में भी ऐसी सरकार है जो ओडिशा की धरोहरों का, उसकी पहचान का सम्मान करती है। आपने देखा होगा, पिछले साल हमारे यहाँ G-20 का सम्मेलन हुआ था। हमने G-20 के दौरान इतने सारे देशों के राष्ट्राध्यक्षों और राजनयिकों के सामने...सूर्यमंदिर की ही भव्य तस्वीर को प्रस्तुत किया था। मुझे खुशी है कि महाप्रभु जगन्नाथ मंदिर परिसर के सभी चार द्वार खुल चुके हैं। मंदिर का रत्न भंडार भी खोल दिया गया है।
साथियों,
हमें ओडिशा की हर पहचान को दुनिया को बताने के लिए भी और भी इनोवेटिव कदम उठाने हैं। जैसे....हम बाली जात्रा को और पॉपुलर बनाने के लिए बाली जात्रा दिवस घोषित कर सकते हैं, उसका अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रचार कर सकते हैं। हम ओडिशी नृत्य जैसी कलाओं के लिए ओडिशी दिवस मनाने की शुरुआत कर सकते हैं। विभिन्न आदिवासी धरोहरों को सेलिब्रेट करने के लिए भी नई परम्पराएँ शुरू की जा सकती हैं। इसके लिए स्कूल और कॉलेजों में विशेष आयोजन किए जा सकते हैं। इससे लोगों में जागरूकता आएगी, यहाँ पर्यटन और लघु उद्योगों से जुड़े अवसर बढ़ेंगे। कुछ ही दिनों बाद प्रवासी भारतीय सम्मेलन भी, विश्व भर के लोग इस बार ओडिशा में, भुवनेश्वर में आने वाले हैं। प्रवासी भारतीय दिवस पहली बार ओडिशा में हो रहा है। ये सम्मेलन भी ओडिशा के लिए बहुत बड़ा अवसर बनने वाला है।
साथियों,
कई जगह देखा गया है बदलते समय के साथ, लोग अपनी मातृभाषा और संस्कृति को भी भूल जाते हैं। लेकिन मैंने देखा है...उड़िया समाज, चाहे जहां भी रहे, अपनी संस्कृति, अपनी भाषा...अपने पर्व-त्योहारों को लेकर हमेशा से बहुत उत्साहित रहा है। मातृभाषा और संस्कृति की शक्ति कैसे हमें अपनी जमीन से जोड़े रखती है...ये मैंने कुछ दिन पहले ही दक्षिण अमेरिका के देश गयाना में भी देखा। करीब दो सौ साल पहले भारत से सैकड़ों मजदूर गए...लेकिन वो अपने साथ रामचरित मानस ले गए...राम का नाम ले गए...इससे आज भी उनका नाता भारत भूमि से जुड़ा हुआ है। अपनी विरासत को इसी तरह सहेज कर रखते हुए जब विकास होता है...तो उसका लाभ हर किसी तक पहुंचता है। इसी तरह हम ओडिशा को भी नई ऊचाई पर पहुंचा सकते हैं।
साथियों,
आज के आधुनिक युग में हमें आधुनिक बदलावों को आत्मसात भी करना है, और अपनी जड़ों को भी मजबूत बनाना है। ओडिशा पर्व जैसे आयोजन इसका एक माध्यम बन सकते हैं। मैं चाहूँगा, आने वाले वर्षों में इस आयोजन का और ज्यादा विस्तार हो, ये पर्व केवल दिल्ली तक सीमित न रहे। ज्यादा से ज्यादा लोग इससे जुड़ें, स्कूल कॉलेजों का participation भी बढ़े, हमें इसके लिए प्रयास करने चाहिए। दिल्ली में बाकी राज्यों के लोग भी यहाँ आयें, ओडिशा को और करीबी से जानें, ये भी जरूरी है। मुझे भरोसा है, आने वाले समय में इस पर्व के रंग ओडिशा और देश के कोने-कोने तक पहुंचेंगे, ये जनभागीदारी का एक बहुत बड़ा प्रभावी मंच बनेगा। इसी भावना के साथ, मैं एक बार फिर आप सभी को बधाई देता हूं।
आप सबका बहुत-बहुत धन्यवाद।
जय जगन्नाथ!