Exclusive Interview: डिक्शनरी में जितने कड़वे और गंदे शब्द होंगे, वो सब मेरे बारे में बोले गये- पीएम मोदी
नई दिल्ली (जेएनएन)। प्रधानमंत्री ने दैनिक जागरण के वरिष्ठ कार्यकारी संपादक प्रशांत मिश्र, संपादक, उत्तर प्रदेश आशुतोष शुक्ल और राष्ट्रीय ब्यूरो प्रमुख आशुतोष झा से लंबी बात की। मुख्य अंश :

हाल ही में मायावती ने उत्तर प्रदेश में भाषण दिया कि मुसलमान एक होकर वोट दें? आप इसे कैसे देखते हैं?

जो लोग सेक्युलरिज्म के नाम पर घोर सम्प्रदायवाद करते हैं, कभी छुपकर करते हैं, कभी खुलेआम करते हैं। अब पराजय उनको इतना परेशान कर रही है कि अपनी जमीन तलाशने के लिए उन्हें ऐसी हरकतें करनी पड़ रही हैं। मायावती अपनी डूबती नैया बचाने के लिए किसी संप्रदाय विशेष से वोट मांगने के लिए अपील करें तो यह उनकी मजबूरी है। उन्हें परिणाम सामने दिख रहा है। असल चिंता का विषय यह है जो अपने आप को सेक्यूलरिज्म का ठेकेदार मानते हैं, वे पिछले 24 घंटे से चुप हैं। क्या यह सेक्यूलिरज्म के अनुकूल की भाषा है। केरल में सुरेश गोपी हमारे उम्मीदवार हैं। वहां के जाने माने एक्टर हैं। उन्होंने सबरीमाला पर कुछ बोला तो उनकी आलोचना करने लोग जमा हो गए। ऐसा क्यों? आप ऐसे अनेक मामले देख सकते हैं।

उत्तर प्रदेश में आप अपना मुख्य विरोधी किसे मानते हैं, कांग्रेस या महागठबंधन को? 

किसी को नहीं। दोनों अंतरविरोधों से ग्रस्त हैं और लड़ाई हार चुके हैं।

भाषा की मर्यादा पर सवाल उठ रहे हैं। आप पर तीखे आरोप लगाये जा रहे है। इसका कोई खास कारण?

डिक्शनरी में जितने कड़वे और गंदे शब्द होंगे, वो सब मेरे बारे में बोले गये लेकिन दुख इस बात का है कि देश का स्वतंत्र मीडिया इसे बैलेंस करने वाली स्टोरियां बनाने लगता है। यदि मैं नामदार और कामदार कहता हूं तो यह गाली नहीं हो सकती लेकिन इसके जवाब में विरोधी जिन शब्दों का प्रयोग करते हैं, वह ठीक नहीं। मीडिया को भी बुरे को बुरा कहना चाहिए। राहुल भी इधर कई व्यक्तिगत आरोप लगा रहे हैं। शायद उनके रणनीतिकारों ने उन्हें सिखाया होगा कि मोदी के विरोध में ऐसा बोलो। वही जाने लोग ऐसा किसलिए बोल रहे? रणनीतिकारों ने उन्हें सिखाया होगा कि अगर मोदी का आभामंडल यदि तोडऩा है तो मोदी को कुछ भी बोल कर कोशिश करो। हो सकता है कि दुनिया के कुछ दूसरे देशों में इस तरह की बात चल जाए लेकिन भारत इन चीजों को स्वीकृति नहीं देगा।

यूपी में आप किससे मुकाबला मानते हैं...गठबंधन से या कांग्रेस से ?

उत्तर प्रदेश में कोई मुकाबला ही नहीं है। अगर वे लोग मुकाबले की स्थिति में होते तो इस प्रकार मुस्लिम वोटों के लिए उन्हें अपील नहीं करना पड़ती। उनके लिए अस्तित्व की लड़ाई है, बचने की कोशिश हो रही है।

राष्ट्रवाद आपकी पार्टी का एक बड़ा एजेंडा है। अभी जिस तरह से पाकिस्तान के साथ एक छोटे युद्ध की स्थिति बनी है तो क्या इससे भाजपा की राष्ट्रवाद की नीति को और धार मिली है?

देखिए राष्ट्रवाद की परिभाषा को लोग पाकिस्तान से जोड़ कर देखते है, यह देश में एक बड़ी भ्रांति है। जब मै भारत माता की जय बोलता हूं तो वह राष्ट्रवाद है। लेकिन जब मैं हर गरीब देशवासियों को रहने के लिए घर दूं, जब भारत माता को स्वच्छ करने के लिए बड़ा अभियान चलाऊं, जब किसानों के हितोंं के लिए काम करूं, जब बीमार लोगों के लिए आसानी से इलाज कराने के लिए आयुष्मान भारत जैसी स्कीमें लागू करें तो यह सब भाजपा के लिए और मेरे लिए राष्ट्रवाद है। गांव का विकास क्या राष्ट्रवाद नहीं है। राष्ट्रवाद को सीमित न किया जाए, इसके बड़े व्यापक अर्थ हैं।

फिल्म उद्योग और थिएटर की करीब 600 हस्तियां या कुछ दूसरे क्षेत्र के लोगों ने भाजपा के खिलाफ वोट करने की अपील की है, इसे कैसे देखते हैं?

ये वही लोग है जो वर्ष 2014 में थे। अच्छी बात यह है कि उनकी संख्या बढ़ नहीं रही है। इसका साफ मतलब है कि मै अच्छा काम कर रहा हूं और वे गलत है।

पाकिस्तान के साथ आपके अच्छे अनुभव भी रहे और बाद में तल्ख अनुभव भी रहे, क्या आप समझते है कि भारत व पाकिस्तान के रिश्ते नहीं सुधर सकते?

ऐसा है भारत जितना शक्तिशाली होगा उतना ही इच्छित परिणाम मिलेगा। इसलिए हमारा पूरा फोकस भारत को शक्तिशाली बनाने में लगाना चाहिए। हर चीज को पाकिस्तान से जोड़ कर नहीं देखना चाहिए और इस मानसिकता से बाहर निकलना चाहिए। खेल का ही उदाहरण लीजिए तो अगर सिर्फ भारत पाकिस्तान के खेल में ही रुचि लेते रहे तो हम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दूसरे खेल में नहीं बढ़ पाएंगे। जहां तक पाकिस्तान के साथ समस्याओं का सवाल है तो उसे सुलझाने के लिए जो भी रास्ते हैैं उसे देखा जाएगा।

वाजपेयी सरकार के वक्त सेना को सीमा पार करने पर पाबंदी थी। आपके लिए पाकिस्तान के अंदर घुसकर सैन्य कार्रवाई करने के बारे में फैसला करना कितना मुश्किल था?

कई मामलो में फैसला नहीं करना ज्यादा मुश्किल था। अगर मैं फैसला नहीं करता तो यह अन्याय होता। अभी मैैं मानता हूं कि आतंकवाद को खत्म किये बिना इस देश का भला नही होगा। पिछले 40 वर्षों में हम आतंकवाद के हाथों काफी कुछ भुगत चुके हैैं। इसकी वजह से मंदिरों तक को सुरक्षा देनी पड़ी है। बड़ी संख्या में सार्वजनिक जीवन से जुड़े लोगों को सुरक्षा देनी पड़ रही है। याद कीजिए जब आतंकवाद नहीं था तो लोग कितनी सहज जिंदगी जीते थे। सुख चैन की वही जिंदगी जीने के लिए आतंकवाद का खात्मा करना ही होगा। जो भी मानवता में विश्वास करता हो उसे इसे एक हो कर आतंकवाद को खत्म करना होगा। साथ ही यह भी ध्यान रखना होगा कि आतंंकवाद का मूल है उस पर वार करना होगा। उपर से टहनियों को काटने से काम नहीं चलेगा। हमारी नीति साफ है कि जिस तरह से 26 नवंबर के हमले के बाद चुप बैठे रहे उस तरह से चुप नही बैठेंगे। यह नई सरकार है, नया देश है।

तो क्या माना जाए कि अब यह न्यू नार्मल हो गया?

हां, गलत होगा तो हम छोड़ेंगे नहीं।

जिस तरह के मुद्दे चुनाव में हावी हो रहे हैं क्या विकास का मुद्दा भटक रहा है?

नहीं, आज भी विकास के मुद्दों पर चुनाव चलता है। मैं जो भी भाषण देता हूं उसमें 40 मिनट में 35 मिनट विकास पर बात होती है। पांच मिनट ही मैंने राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे मुद्दों पर बात की लेकिन मीडिया इन पांच मिनट के मुद्दों को ही उठाएगा। कई बार मीडिया व्यंग्य को भी इस तरह से उछाल देता है जो दुर्भाग्यपूर्ण होता है। बेहद सहजता से कही गई बात को भी टीआरपी की वजह से दूसरा रंग दे दिया जा रहा है। इससे डर भी लगता है। गुजरात का एक अनुभव बताता हूं कि एक बार भाषण में किसी दूसरे परिप्रेक्ष्य में मैैंने बिल्ली की बात कही थी लेकिन अगले दिन मीडिया में यह खबर छपी कि मैंने सोनिया गांधी को बिल्ली कहा था। संसद में एक दिन हंसी ठहाकों की आïवाज आ रही थी और मेरे भाषण को बाधित करने की कोशिश हो रही थी। सभाध्यक्ष ने माननीय सांसदों को रोकने की कोशिश तो मैंने कहा कि रहने दीजिए, रामायण के दिनों के बाद इस तरह की हंसी सुनाई दे रही है। मैैंने सहज भाव से कहा था और लेकिन कई दिनों तक बाल की खाल निकाली जाती रही।

जिस तरह के मुद्दे चुनाव में हावी हो रहे हैं क्या विकास का मुद्दा भटक रहा है?

नहीं, आज भी विकास के मुद्दों पर चुनाव चलता है। मैं जो भी भाषण देता हूं उसमें 40 मिनट में 35 मिनट विकास पर बात होती है। पांच मिनट ही मैंने राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे मुद्दों पर बात की लेकिन मीडिया इन पांच मिनट के मुद्दों को ही उठाएगा। कई बार मीडिया व्यंग्य को भी इस तरह से उछाल देता है जो दुर्भाग्यपूर्ण होता है। बेहद सहजता से कही गई बात को भी टीआरपी की वजह से दूसरा रंग दे दिया जा रहा है। इससे डर भी लगता है। गुजरात का एक अनुभव बताता हूं कि एक बार भाषण में किसी दूसरे परिप्रेक्ष्य में मैैंने बिल्ली की बात कही थी लेकिन अगले दिन मीडिया में यह खबर छपी कि मैंने सोनिया गांधी को बिल्ली कहा था। संसद में एक दिन हंसी ठहाकों की आïवाज आ रही थी और मेरे भाषण को बाधित करने की कोशिश हो रही थी। सभाध्यक्ष ने माननीय सांसदों को रोकने की कोशिश तो मैंने कहा कि रहने दीजिए, रामायण के दिनों के बाद इस तरह की हंसी सुनाई दे रही है। मैैंने सहज भाव से कहा था और लेकिन कई दिनों तक बाल की खाल निकाली जाती रही।

आपकी छवि जिद्दी नेता की है, है या बना दी गई है?

मैं चाहूंगा कि मूल्यांकन मैं खुद न करूं। कभी करना भी नहीं चाहिए और न ही ऐसा इंसान मैंने देखा है जो अपना मूल्यांकन कर सके। मेरी कोशिश है आप लोग दर्पण बनकर मेरा मूल्यांकन करें।

लेकिन एक छवि निश्चित तौर पर रही है कि मोदी कभी दबाव में काम नहीं करते हैं। लेकिन, जिस तरह हाल के दिनों मे पीएम किसान योजना, टैक्स मे छूट या फिर किसानों, व्यापारियों के लिए पेंशन आदि की घोषणा की गई है तो यह चुनाव के दबाव में नहीं?

जी नहीं। एक बार चीन से होते हुए बराक ओबामा यहां आए थे। वहां ग्लोबल वार्मिंग को लेकर कुछ लक्ष्य तय हुए थे। चीन से उस पर सहमति दे दी थी। मुझसे पूछा गया था कि क्या मोदी जी आप भी दबाव में आ गए..। मैंने कहा था कि मोदी कभी दबाव में कोई काम नहीं करता है। हां एक दबाव है- फ्यूचर जनरेशन का। तीन पीढ़ी बाद जो बच्चा पैदा होगा वह पूछेगा कि पर्यावरण के लिए हमने क्या किया? हम उन्हें अच्छी जिंदगी देना चाहते हैं। हमारा मकसद होना चाहिए कि समाज और देश सबल हो। और इसलिए मेरे जितने फैसले हुए हैं उसमें मूलत: यह ध्यान रखा गया है कि समाज का हर वर्ग सबल हो, मजबूत हो।

क्या आप टीआरएस और वाईएसआर कांग्रेस को भी भविष्य के साथी के रूप मे देख रहे हैं?

मैं आपको बता दूं कि हमें चुनाव के बाद किसी की जरूरत नहीं होगी। भाजपा भी पहले से ज्यादा संख्या मे आएगी और राजग के दूसरे साथी भी पहले से ज्यादा मजबूत होंगे। हमारी टोटल टैली पहले से बढ़ेगी। इसलिए जहां तक सरकार बनाने की बात है हमें बाहर के कसी समर्थन की जरूरत नहीं होगी। लेकिन मैं हमेशा इस मत का रहा हूं कि सरकार चलाने के लिए भले भी बहुमत चाहिए, देश चलाने के लिए सर्वमत होना चाहिए। ऐसे मे हमारा घोर विरोधी भी चाहे वह एक भी सीट जीतकर न आया हो, मैं सबको साथ लेकर चलना चाहता हूं।

आपकी महत्वाकांक्षी आदर्श ग्राम योजना और एक बार में तीन तलाक परवान नहीं चढ़ पाई।

यह समझना जरूरी है कि आदर्श ग्राम योजना सरकार का कोई कार्यक्रम नहीं था। यह सांसदों से मेरी प्रार्थना थी कि गांव को पहचानो, वहां काम करो तभी संसद में भी गांव का समस्या को सही तरीके से उठा सकोगे। जब काम करना शुरू करोगे तो अपने अनुभव से बताओगे कि कहां कठिनाई आ रही है। जैसे स्वच्छता सरकार के कार्यक्रम की बजाय जनआंदोलन है। उसे सरकार के कार्यक्रम के रूप में मत देखिए। जहां तक तीन तलाक का सवाल है तो इसका जवाब तो कांग्रेस को देना चाहिए। यह तो महिलाओं को हक दिलाने के लिए है। उन्हें बराबरी का हक देने के लिए है। कांग्रेस बताएं कि क्या उन्हें न्याय देंगे।

ऐसी कोई योजना जिसे लेकर कसक रह गई हो?

देखिए मैं इसलिए काम कर पा रहां हूं क्योंकि मैं कसक को मरने नहीं देता हूं। मै तो इसे दाना पानी डालता रहा हूं। यह कसक ही है जो मुझे दौड़ाती है। और यह कसक हर किसी के अंदर रहनी चाहिए। सुख चैन की जिंदगी में फंस गए तो प्रगति नहीं हो सकती है।

370 और 35 ए को लेकर इस बार घोषणा पत्र में फिर से बात की गई है। पार्टी का इसे लेकर रुख कंडीशनल या अनकंडीशनल है।

पहली बात यह है कि यह भाजपा का कमिटमेंट है। उसको करने के जो रास्ते हैं, वह संविधान ने जो निर्धारित किए है, वही है। ऐसे में मुझे संविधान के रास्ते से जाना पड़ेगा। संविधान के रास्ते में जो भी नियम होंगे, उनका पालन करना होगा। उनमें क्या कंडीशन है, उसे आप कंडीशन से जोड़ सकते है। जहां तक बीजेपी का सवाल है, वह हमारा कमिटमेंट है। राम मंदिर और धारा-370 जैसे मुद्दों को लेकर वोटर्स कह रहे है, कि सरकार के पास पांच साल का समय था, लेकिन कुछ हुआ नहीं, हालांकि यह वह लोग है, जिन्हें इसके पीछे के तकनीकी पक्षों की जानकारी नहीं है। आपको हमारी मदद करनी चाहिए, ऐसी टेक्नीकल चीजों को समझाना चाहिए।

हाल ही के दिनों में राज्यों के साथ कटुता काफी बढ़ गई है। खासकर पश्चिम बंगाल में जिस तरीके से हुआ। ममता बनर्जी ने किया। आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू नायडू ने किया। इसे कैसे देखते है।

जहां तक सरकार का सवाल है। सरकार ने सभी राज्यों को साथ लेकर चलने में पहले की तुलना में काफी अच्छा किया है। मै मुख्यमंत्री रख कर आया हूं। ऐसे में मुझे अच्छी तरह से पता है कि देश चलाना है, तो राज्यों को मजबूत करना बेहद जरूरी है। एक मुख्यमंत्री के नाते में मेरा अनुभव है। इसके कारण मै यह कह सकता हूं, कि राज्यों को जितनी ताकत मिल सकती थी, वह मैने दी है। जो विरोध हो रहा है, वह राजनीतिक है। राज्यों के हितों के साथ कोई टकराव नहीं है।

यूपी के मुख्यमंत्री ने एक इंटरव्यू में कहा था कि चुनावी लड़ाई 80 बनाम 20 कीं है। आप की राय?

ऐसा है कि मायावती जी ने अभी जो उत्तर प्रदेश में बोला है, उसी की चर्चा कर ले देश।

पार्टी से जुड़ा एक सवाल है। एक फैसला होता है, कि 75 प्लस को पार्टी में कोई जिम्मेदारी नहीं लेनी चाहिए। इस बार जिस तरीके से टिकट का बंटवारा हुआ, उससे लगता है, कि 75 प्लस को चुनाव मैदान में भी उतरने से रोक दिया गया। क्या यह नीतिगत फैसला हो गया है।

ऐसा है कि जब नानाजी देशमुख जनसंघ के समय में काम करते थे, उस समय यह फैसला लिया गया था। उस समय साठ साल तक ही सक्रिय राजनीति में रहने की सीमा तय की गई थी। तब खुद नानाजी देखमुख ने साठ साल में सक्रिय राजनीति छोड दी थी। अब स्थिति बदल गई है। साठ तो कम होती है, लेकिन अब इसे 75 तक करने का पार्टी का विचार बना है। इसके अमल की कोशिश हमारे कार्यकर्ता भी कर रहे है। जैसे –जैसे 75 होते जा रहे है, वह खुद ही पद छोड रहे है। गुजरात के मुख्यमंत्री आनंदीबेन ने भी किया था। 75 होने पर छोड़ दिया।

कलराज मिश्रा ने भी किया। इस बार भी हमारे खंडुरी जी हो, शांता कुमार जी हो। ऐसे कई वरिष्ठ नेता है। लेकिन इसका मतलत यह नहीं, कि उनका कोई योगदान कम है। पार्टी में वो उस जगह पर नहीं है, कि उन्हें पद की जरुरत है। अब जैसे अटल जी। उसके पास कोई पद ही नहीं था। पर अटल जी हमारे लिए सर्वेसर्वा थे। जो वरिष्ठ लोग है, वह पद नहीं चाहते हैं। उनका कद पद के कारण नहीं है। वह किसी पद पर नहीं तो इससे उनका योगदान कम नहीं हो जाता है। उनकी तपस्या हमारे लिए हमेशा प्रेरणा रहेगी।

आप 2014 के चुनाव से इस चुनाव को अलग कैसे देख रहे हैं?

2014 में देश के मतदाताओं के लिए मोदी नया था। उस समय मतदाता निराशा के गर्त में डूबे हुए थे। घोटाले दर घोटाले की खबरों से वोटर तंग आ गया था। पूरा देश तंग था। वो इस सबसे मुक्ति चाहता था। फिर मैं आया। मेरे पास कुल जमा गुजरात का अनुभव था। उसकी सुवास देशभर में पहुंची हुई थी। उसके आधार पर लोगों ने भाजपा और मुझ पर भरोसा जताया। दूसरे, देश तीस साल की मिलीजुली सरकार से नुकसान उठा चुका था। लोग आजिज आ गए थे। देश पूर्ण बहुमत की सरकार चाहता था। इसी का नतीजा है कि भाजपा की पूर्ण बहुमत वाली सरकार बनी। पांच साल का हमारा ट्रैक रिकार्ड साबित करता है कि निर्णय करने में हम कभी पीछे नहीं रहे। गरीबों के नाम पर हमने राजनीति नहीं की लेकिन सबसे ज्यादा गरीबों को ताकतवर बनाने के लिए हमने काम किया।

उन्हें घर देना हो, गैस का चूल्हा देना हो, गरीबों के घर में बिजली कनेक्शन देना हो, शिक्षा का वजीफा देना हो, आयुष्मान भारत योजना लाकर सबको स्वास्थ्य की सुविधा देनी हो, हमारी सरकार ने दी। हमारी सोच विकास की रही है, जितना ध्यान हमने सोशल इंफ्रास्ट्रक्चर पर दिया, उतना ही फिजिकल इंफ्रास्ट्रक्चर पर दिया। इसलिए जो समाज का प्रबुद्ध वर्ग है, जो दूर की सोचता है, मिडिल क्लास है, ये लोग किसी के आगे हाथ पसारने वाले लोग नहीं हैं। इस समय पढ़े लिखे मतदाताओं की संख्या बढ़ती जा रही है। रोड, रेल और हवाईअड्डे बन रहे हैं और यही लोगों को अपील कर रहा है। देश के हर भूभाग, हर वर्ग के लिए हमने काम किया। हमारे कार्य प्रदर्शन के आधार पर लोग वोट करेंगे। पहली बार देश में प्रो- इनकंबैंसी वेव चल रही है। आप देखियेगा यह बहुत बड़ा परिणाम लाएगी।

कांग्रेस न्याय योजना लेकर आई है। भाजपा इसे कितनी बड़ी चुनौती मानती है?

पहली बात तो यह है कि देश की जनता और मीडिया को यह बात निष्पक्षता से कहनी चाहिए कि कांग्रेस ने जाने अनजाने में स्वीकार किया है कि उन्होंने 60 साल के शासनकाल में कुछ नहीं किया है, बल्कि अन्याय ही अन्याय किया। वह अपने इस अन्याय के पाप धोने की अब कोशिश कर रहे हैं तो सबसे पहले देश का सिख न्याय मांगेगा कि हमें 1984 के दंगे में न्याय दीजिए। राजस्थान, मध्य प्रदेशऔर छत्तीसगढ़ का नौजवान न्याय मांगेगा कि उसे आपने जो बेरोजगारी का भत्ता देने को कहा था, वो दीजिए। सबसे पहले कर्नाटक व पंजाब के साथ तीन राज्यों का किसान कर्ज मांफी का न्याय मांगेगा। कर्ज माफी तो नहीं मिली, वारंट अलग से आ गये। बैंक ने नया कर्ज देने से मना कर दिया। देश का हर व्यक्ति न्याय मांगेगा। 60 साल के अन्याय का न्याय देंगे क्या कांग्रेस वाले।

कांग्रेस ने 22 लाख को रोजगार देने का वादा किया है

कभी कभी चुनाव घोषणा पत्र में पता चल जाता है कि जीतने वाली पार्टी कौन सी है और हारने वाली कौन सी है। दुख यह है कि 60 साल तक सरकार में रही पार्टी जिसे सरकार के संसाधानों का ज्ञान है, रीति नीति सबका पता है लेकिन, ऐसी पार्टी जब लुभावने वायदों को रास्ते पर चल पड़ी तो मतलब है कि पराजय से बचने के लिए वह छटपटा रही है।

कांग्रेस अपने चुनाव घोषणा पत्र में देशद्रोह की धारा व अफस्पा जैसे कानूनों को हटाने की बात कर रही है। इसे आप कैसे देख रहे हैं?

भारत का कोई भी नागरिक देश की सुरक्षा के साथ इस प्रकार के खिलवाड़ को सहन नहीं कर सकता। कांग्रेस की इस पहल को स्वीकार नहीं किया जा सकता है। जो भाषा हमेशा पाकिस्तान बोलता है, कांग्रेस ने उसे अपने ही मेनिफेस्टो से एक प्रकार से मान्यता दे दी है। पाकिस्तान यही तो कहता है कि वहां का लोकतंत्र तो नाम मात्र का है, वहां की सरकार को फौज चला रही है। कांग्रेस ने तो भारत के किये कराये पर पानी फेर दिया। उन्होंने तो अफस्पा हटाने की बात कही है।

सेना के जवानों को हम सुरक्षा नहीं देंगे तो उनके खिलाफ कोई भी एफआईआर कर देगा। पाकिस्तान को आतंकवाद की घटनाएं करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। वह तो यही चाहता है। वह कुछ महिलाओं को पैसा देकर सेना के जवानों पर एफआईआर करा देगा। हमारी सेना को हतोत्साहित करके आतंकवादियों को खुला मैदान देना चाहते हैं क्या। इससे बड़ा कोई अपराध नहीं होगा, जो कांग्रेस करने जा रही है या करने की कोशिश कर रही।

राहुल गांधी अमेठी के साथ केरल के वायनाड से भी लड़ रहे हैं। क्या आप भी बनारस के अलावा कहीं और से लड़ेंगे?

जहां तक नरेंद्र मोदी का सवाल है तो मूलत: मैं संगठन का व्यक्ति रहा हूं। संगठन का काम करता था। आप लोगों से भी तब अशोक रोड के कार्यालय में मिला करता था। मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि मुझे चुनावी राजनीति में आना पड़ेगा। लेकिन भाजपा ने तय किया तो मुख्यमंत्री का दायित्व मिला। एमएलए का चुनाव लड़ा। फिर लोकसभा का चुनाव आया। मेरे बारे में सारा निर्णय संगठन करता है। मैं इस बारे में माइंड अप्लाई नहीं करता। पार्टी जो तय करेगी, वही होगा।

राहुल को वायनाड क्यों जाना पड़ा?

इसका जवाब तो वही दे सकते हैं। उनकी मजबूरी होगी।

इस बार पूरा चुनाव एक मुद्दे पर हो हो रहा है-मोदी लाओ-मोदी हटाओ। आपका यह विरोध राजनीतिक है, या सांस्कृतिक व सामाजिक?

मोदी हटाओ उनकी मजबूरी है क्योंकि उनके पास देश को देने के लिए न विजन है ,न नीति है और न नेता है। न उनमें किसी भी दल की देशव्यापी प्रजेंस है। सब टुकड़ों में बिखरे हैं। मोदी पर आरोप लगाने के लिए उनके पास कोई विशेष मुद्दा नहीं है। इसलिए उन्हें मोटी मोटी बातें करनी पड़ती है। उनके भीतर ही इतने विवाद हैं कि वे एक हो ही नहीं सकते। हां, केवल मोदी के मुद्दे पर सभी एकजुट हो जाएंगे। मेरे नाम पर उन्हें एक प्लेटफार्म मिल जाता है। उनके भेद दिखाई न दें इसलिए मोदी को निशाना बनाते हैं। चंद्राबाबू नायडू और कांग्रेस आंध्र में लड़ रहे हैं लेकिन तेलंगाना में एक साथ है। देश की जनता के मन में सवाल उठता है कि यह क्या तरीका है।

चुनावी आपा-धापी में आप की दिनचर्चा में क्या बदलाव आया है

एक तो आचार संहिता के कारण सरकार के काम-काज रुक जाते है। दूसरा मेरी कोशिश होती है, कि ज्यादा से ज्यादा लोगों से मिलूं। ऐसे ज्यादा से ज्यादा दौड़धूप करता रहता हूं। अभी नवरात्रि है फिर भी मेरा कार्यक्रम वैसे ही चल रहा है।

आपके रुटीन आहार में, जो लेते थे और जो ले रहे हैंं, उसमें कितना बदलाव आया है?

ऐसा है कि मै अपना रूटीन आहार, जब भी दौरा करता था, तो विमान में अपनी सुविधा के तहत घर से लेकर ही जाता हूं। विमान की चीजों को कम ही खाता हू। कभी कभार की बात अलग है। कुछ हेल्दी फूड है, तो खा भी लेता हूं। आज भी ऐसा ही है। फिलहाल अभी तो नवरात्रि है, ऐसे में इसके खाने का कोई सवाल ही नहीं है।
नवरात्रि में आप क्या खाते हैं, यह लोग जानना चाहते है

दो बातें है। एक तो 45-50 साल हो गए, इस बात को लेकर। एक तो मेरी पहले की दुनिया थी, लंबे समय से उसी में गुजारा है। वह चीजें अभी भी वैसे ही बनी है। नौ दिन पानी और हवा के साथ बीतता हूं। अभी भी नौ दिन नमक नहीं खाता हूं। नीम के पत्ते और फूल-फल की जूस निकाल कर धीरे-धीरे पीता हूं। बहुत कड़वा होता है,पर इसे सुबह साढे पांच बजे चुस्की लेकर पीता हूं। इस नवरात्रि में फिर एक फल तय करता हूं। इस बार हमने सिर्फ नारियल पानी तय किया है। इस दौरान अन्न बिल्कुल भी नहीं लेता हूं।

आप सोते कितनी देर हैं?

मेरी नींद बिल्कुल कम है। हंसते हुए..। मेरे साथी इसलिए मुझसे नाराज रहते हैं। सर्जिकल स्ट्राइक के दिन भी मैं नहीं सोया। मै उस दिन भी किसी काम से सुबह साढ़े चार बजे उठा। दिन भर काम चलते रहे। व्यस्त रहा। इस बीच स्ट्राइक टीम के साथ भी बात करता रहा। रात में 11 से साढ़े ग्यारह बजे तक सर्जिकल स्ट्राइक टीम के साथ मीटिंग करता रहा। ढाई बजे तक मीटिंग चलती रही। करीब तीन -3.40 बजे फाइनल रिपोर्ट आ गई थी। सभी सुरक्षित थे। उसके बाद भी मै सो सकता था लेकिन सोया नहीं। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जानकारी लेने लगे। इंटरनेट पर सर्च करने लगा, कि कहीं से कोई सुगबुगाहट तो नहीं लगी। तब तक पांच बज गए थे। उस समय तक पाकिस्तान से खबर आने लगी, कि वह चिल्लाने लगा कि हमें मार कर चले गए। मुझे पहले ऐसा लग रहा था, कि पाकिस्तान छुपाएगा। लेकिन ऐसा बड़ा घाव मिला था जिसमें उसके पास कोई चारा ही नहीं था। इसके बाद मैने फिर अपनी टीम को जगाया। सात बजे मीटिंग की। इसके बाद विदेश सचिव के माध्यम से हमने बताया, कि हां हमने मारा है। इसके बाद हम चुरु आदि के दौरे पर भी गए। और रात में 11 बजे आया। उन दिन मैने 43 घंटे बगैर रुके काम किया था।

पिछली सरकार जब आपकी बनी थी, तो पहला आपका काम था, ब्लैक मनी के खिलाफ। फिर से आप सरकार में आते है, तो आपकी पहली प्राथमिकता क्या होगी?

जहां तक भ्रष्ट्राचार, कालाधन के खिलाफ लड़ाई की बात है, तो इसके खिलाफ हमारी लडाई पहले भी चलती रही है और आगे भी चलती रहेगी। जहां तक नई सरकार में पहली प्राथमिकता की बात है, तो वह...(फिर थोड़ा रुकते हुए).....कुछ तो मेरे पास रहने दीजिए।

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