माननीय अध्‍यक्ष जी, इस सदन में पहली बार, मेरा प्रवेश भी नया है और भाषण का अवसर भी पहली बार मिला।..... (व्‍यवधान)

इस सदन की गरिमा, परंपराएं बहुत ही उच्‍च रही हैं। इस सदन में काफी अनुभवी तीन-चार दशक से राष्‍ट्र के सवालों को उजागर करने वाले, सुलझाने वाले, लगातार प्रयत्‍न करने वाले वरि‍ष्‍ठ महानुभाव भी वि‍राजमान हैं। जब मुझ जैसा एक नया व्‍यक्‍ति‍ कुछ कह रहा है, सदन की गरि‍मा और मर्यादाओं में कोई चूक हो जाए तो नया हाने के नाते आप मुझे क्षमा करेंगे, ऐसा मुझे पूरा वि‍श्‍वास है। महामहिम राष्‍ट्रपति‍ जी के अभि‍भाषण पर लोकसभा में 50 से अधि‍क आदरणीय सदस्‍यों ने अपने वि‍चार रखे हैं। मैंने सदन में रहते हुए और कुछ अपने कमरे में करीब-करीब सभी भाषण सुने हैं।

आदरणीय मल्‍लि‍कार्जुन जी, आदरणीय मुलायम सिंह जी, डॉ0 थम्‍बीदुराई जी, भर्तुहरि जी, टी.एम.सी. के नेता तथा सभी वरि‍ष्‍ठ महानुभावों को मैंने सुना। एक बात सही है कि‍ एक स्‍वर यह आया है कि‍ आपने इतनी सारी बातें बताई हैं, इन्‍हें कैसे करोगे, कब करोगे। मैं मानता हूँ कि‍ सही वि‍षय को स्‍पर्श कि‍या है और यह मन में आना बहुत स्‍वाभावि‍क है। मैं अपना एक अनुभव बताता हूँ, मैं नया-नया गुरजरात में मुख्‍यमंत्री बनकर गया था और एक बार मैंने सदन में कह दि‍या कि मैं गुजरात के गाँवों में, घरों में 24 घंटे बि‍जली पहुँचाना चाहता हूँ। खैर ट्रेजरी बैंच ने बहुत तालि‍याँ बजाईं, लेकि‍न सामने की तरफ सन्‍नाटा था। लेकिन हमारे जो वि‍पक्ष के नेता थे, चौधरी अमर सिंह जी, वह कांग्रेस के ‍वरि‍ष्‍ठ नेता थे, बड़े सुलझे हुए नेता थे। वह बाद में समय लेकर मुझे मि‍लने आए। उन्‍होंने कहा कि‍ मोदी जी, कहीं आप की कोई चूक तो नहीं हो रही है, आप तो नए हो, आपका अनुभव नहीं है, यह 24 घंटे बि‍जली देना इम्‍पासिबल है, आप कैसे दोगे? एक मि‍त्र भाव से उन्‍होंने इस पर चिंता व्‍यक्‍त की थी। मैंने उनसे कहा कि मैंने सोचा है और मुझे लगता है ‍कि हम करेंगे। वह बोले संभव ही नहीं है। दो हजार मेगावाट अगर डेफि‍‍सि‍ट है तो आप कैसे करोगे? उनके मन में वह वि‍चार आना बड़ा स्‍वाभावि‍क था। लेकि‍न मुझे इस बात का आनंद है कि‍ वह काम गुजरात में हो गया था। अब इसलि‍ए यहाँ बैठे हुए सभी वरि‍ष्‍ठ महानुभावों के मन में सवाल आना बहुत स्‍वाभावि‍क है कि‍ अभी तक नहीं हुआ, अब कैसे होगा? अभी तक नहीं हुआ, इसलिए शक होना बहुत स्‍वाभावि‍क है। लेकिन मैं इस सदन को वि‍श्‍वास दि‍लाता हूँ कि‍ राष्‍ट्रपति‍ जी ने जो रास्‍ता प्रस्तुत कि‍या है, उसे पूरा करने में हम कोई कोताही नहीं बरतेंगे। हमारे लि‍ए राष्‍ट्रपति जी का अभि‍भाषण सि‍र्फ परंपरा और रि‍चुअल नहीं है। हमारे लि‍ए उनके माध्‍यम से कही हुई हर बात एक सैंक्‍टिटी है, एक पवि‍त्र बंधन है और उसे पूरा करने का हमारा प्रयास भी है और यही भावना हमारी प्रेरणा भी बन सकती है, जो हमें काम करने की प्रेरणा दे। इसलि‍ए राष्‍ट्रपति‍ जी के अभि‍भाषण को आने वाले समय के लि‍ए हमने हमेशा एक गरि‍मा देनी चाहि‍ए, उसे गंभीरता भी देनी चाहि‍ए और सदन में हम सब ने मि‍लकर उसे पूर्ण करने का प्रयास करना चाहि‍ए।

जब मतदान हुआ, मतदान होने तक हम सब उम्‍मीदवार थे, लेकि‍न सदन में आने के बाद हम जनता की उम्‍मीदों के दूत हैं। तब तो हम उम्‍मीदवार थे, लेकि‍न सदन में पहुँचने के बाद हम जनता की उम्‍मीदों के रखवाले हैं। कि‍सी का दायि‍त्‍व दूत के रूप में उसे परि‍पूर्ण करना होगा, कि‍सी का दा‍यि‍त्‍व अगर कुछ कमी रहती है तो रखवाले बनकर पूरी आवाज उठाना, यह भी एक उत्‍तम दायि‍त्‍व है। हम सब मि‍लकर उस दायि‍त्‍व को नि‍भायेंगे।

मुझे इस बात का संतोष रहा कि‍ अधि‍कतम इस सदन में जो भी वि‍षय आए हैं, छोटी-मोटी नोंक-झोंक तो आवश्‍यक भी होती है लकि‍न पूरी तरह सकारात्‍मक माहौल नजर आया। यहाँ भी जो मुद्दे उठाए गए, उनके भीतर भी एक आशा थी, एक होप थी। यानी‍ देश के सवा सौ करोड़ नागरि‍कों ने जि‍स होप के साथ इस संसद को चुना है, उसकी प्रति‍ध्‍वनि‍ इस तरफ बैठे हों या उस तरफ बैठे हुए हों, सबकी बातों में मुखर हुई है, यह मैं मानता हूँ।

यह भारत के भाग्‍य के लिए एक शुभ संकेत है। राष्‍ट्रपति जी ने अपने अभिभाषण में चुनाव, मतदाता, परिणाम की सराहना की है। मैं भी देशवासियों का अभिनंदन करता हूँ, उनका आभार व्‍यक्‍त करता हूँ कि कई वर्षों के बाद देश ने स्‍थिर शासन के लिए, विकास के लिए, सुशासन के लिए, मत दे कर 5 साल के लिए विकास की यात्रा को सुनिश्‍चित किया है। भारत के मतदाताओं की ये चिंता, उनका यह चिंतन और उन्‍होंने हमें जो जिम्‍मेवारी दी है, उसको हमें परिपूर्ण करना है। लेकिन हमें एक बात सोचनी होगी कि दुनिया के अंदर भारत एक बड़ा लोकतांत्रिक देश है, इस रूप में तो कभी-कभार हमारा उल्‍लेख होता है। लेकिन क्‍या समय की माँग नहीं है कि विश्‍व के सामने हम कितनी बड़ी लोकतांत्रिक शक्‍ति हैं, हमारी लोकतांत्रिक परंपराएं कितनी ऊँची हैं, हमारे सामान्‍य से सामान्‍य, अनपढ़ से अनपढ़ व्‍यक्‍ति की रगों में भी लोकतंत्र के प्रति श्रद्धा कितनी अपार है। अपनी सारी आशा और आकांक्षाओं को लोकतांत्रिक परंपराओं के माध्‍यम से परिपूर्ण करने के लिए वह कितना जागृत है। क्‍या कभी दुनिया में, हमारी इस ताकत को सही रूप में प्रस्‍तुत किया गया है? इस चुनाव के बाद हम सबका एक सामूहिक दायित्‍व बनता है कि विश्‍व को डंके की चोट पर हम यह समझाएं। विश्‍व को हम प्रभावित करें। पूरा यूरोप और अमरीका मिल कर जितने मतदाता हैं, उससे ज्‍यादा लोग हमारे चुनावों में शरीक होते हैं। यह हमारी कितनी बड़ी ताकत है। क्‍या विश्‍व के सामने, भारत के इस सामर्थवान रूप को कभी हमने प्रकट किया है? मैं मानता हूँ कि यह हम सब का दायित्‍व बनता है। यह बात सही है कि कुछ वैक्‍युम है। 1200 साल की गुलामी की मानसि‍कता हमें परेशान कर रही है। बहुत बार हमसे थोड़ा ऊँचा व्‍यक्‍ति‍ मि‍ले तो, सर ऊँचा करके बात करने की हमारी ताकत नहीं होती है। कभी-कभार चमड़ी का रंग भी हमें प्रभावि‍त कर देता है। उन सारी बातों से बाहर नि‍कल कर भारत जैसा सामर्थ्‍यवान लोकतंत्र और इस चुनाव में इस प्रकार का प्रगट रूप, अब वि‍श्‍व के सामने ताकतवर देश के रूप में प्रस्‍तुत होने का समय आ गया है। हमें दुनि‍या के सामने सर ऊँचा कर, आँख में आँख मि‍ला कर, सीना तान कर, भारत के सवा सौ करोड़ नागरि‍कों के सामर्थ को प्रकट करने की ताकत रखनी चाहि‍ए और उसको एक एजेंडा के रूप में आगे बढ़ाना चाहि‍ए। भारत का गौरव और गरि‍मा इसके कारण बढ़ सकते हैं।

माननीय अध्‍यक्ष महोदया, यह बात सही है इस देश पर सबसे पहला अधि‍कार कि‍सका है? सरकार कि‍सके लि‍ए होनी चाहि‍ए? क्‍या सरकार सिर्फ पढ़े-लि‍खे लोगों के लि‍ए हो? क्‍या सरकार सि‍र्फ इने-गि‍ने लोगों के लाभ के लि‍ए हो? मेरा कहना है कि‍ सरकार गरीबों के लि‍ए होनी चाहि‍ए। अमीर को अपने बच्‍चों को पढ़ाना है तो वह दुनि‍या का कोई भी टीचर हायर कर सकता है। अमीर के घर में कोई बीमार हो गया तो सैकड़ों डॉक्‍टर तेहरात में आ कर खड़े हो सकते हैं, लेकि‍न गरीब कहाँ जाएगा?

उसके नसीब में तो वह सरकारी स्‍कूल है, उसके नसीब में तो वह सरकारी अस्‍पताल है और इसीलि‍ए सब सरकारों का यह सबसे पहला दायि‍त्‍व होता है कि‍ वे गरीबों की सुनें और गरीबों के लि‍ए जि‍यें। अगर हम सरकार का कारोबार गरीबों के लि‍ए नहीं चलाते हैं, गरीबों की भलाई के लि‍ए नहीं चलाते हैं तो देश की जनता हमें कतई माफ नहीं करेगी।

माननीय अध्‍यक्ष महोदया जी यह इस सरकार की पहली प्राथमि‍कता है। हम तो पंडि‍त दीन दयाल उपाध्‍याय जी के आदर्शों से पले हुए लोग हैं। जि‍न्‍होंने हमें अंत्‍योदय की शि‍क्षा दी थी। गाँधी, लोहि‍या और दीन दयाल जी, तीनों के वि‍चार सूत्र को हम पकड़े हैं, तो आखि‍री मानवि‍की छोर पर बैठे हुए इंसान के कल्‍याण का काम इस शताब्‍दी के राजनीति‍ के इन तीनों महापुरूषों ने हमें एक ही रास्‍ता दि‍खाया है कि‍ समाज के आखि‍री छोर पर जो बैठा हुआ इन्‍सान है, उसके कल्‍याण को प्राथमि‍कता दी जाए। यह हमारी प्रति‍बद्धता है। अंत्‍योदय का कल्‍याण, यह हमारी प्रति‍बद्धता है। गरीब को गरीबी से बाहर लाने के लि‍ए उसके अंदर वह ताकत लानी है जि‍ससे वह गरीबी के खि‍लाफ जूझ सके। गरीबी के खि‍लाफ लड़ाई लड़ने का सबसे बड़ा औजार होता है- ‘शि‍क्षा’। गरीबी से लड़ने का सबसे बड़ा साधन होता है- ‘अंधश्रद्धा से मुक्‍ति‍’। अगर गरीबों में अंधश्रद्धा के भाव पड़े हैं, अशि‍क्षा की अवस्‍था पड़ी है, अगर हम उसमें से उसे बाहर लाने में सफल होते हैं, तो इस देश का गरीब कि‍सी के टुकड़ों पर पलने की इच्‍छा नहीं रखता है। वह अपने बलबूते पर अपनी दुनि‍या खड़ी करने के लि‍ए तैयार है। सम्‍मान और गौरव से जीना गरीब का स्‍वभाव है। अगर हम उसकी उस मूलभूत ताकत को पकड़कर उसे बल देने का प्रयास करते हैं और इसलि‍ए सरकार की योजनाएं गरीब को गरीबी से बाहर आने की ताकत दें। गरीब को गरीबी के खि‍लाफ लड़ाई लड़ने की ताकत दें। शासन की सारी व्‍यवस्‍थायें गरीब को सशक्‍त बनाने के लि‍ए काम आनी चाहि‍ए और सारी व्‍यवस्‍थाओं का अंति‍म नतीजा उस आखि‍री छोर पर बैठे हुए इंसान के लि‍ए काम में आए उस दि‍शा में प्रयास होगा, तब जाकर उसका कल्‍याण हम कर पाएंगे।

हम सदि‍यों से कहते आए हैं कि‍ हमारा देश कृषि‍ प्रधान देश है, यह गाँवों का देश है। ये नारे तो बहुत अच्‍छे लगे, सुनना भी बहुत अच्‍छा लगा, लेकिन क्‍या हम आज अपने सीने पर हाथ रखकर कह सकते हैं कि‍ हम हमारे गाँव के जीवन को बदल पाए हैं, हमारे कि‍सानों के जीवन को बदल पाए हैं। यहाँ मैं कि‍सी सरकार की आलोचना करने के लि‍ए खड़ा नहीं हुआ हूँ। यह हमारा सामूहि‍क दायि‍त्‍व है कि‍ भारत के गाँवों के जीवन को बदलने के लि‍ए उसको हम अग्रि‍मता दें, कि‍सानों के जीवन को बदलने के लि‍ए उसको अग्रि‍मता दें। राष्‍ट्रपति‍ जी के अभिभा‍षण में उस बात को करने के लि‍ए हमने कोशि‍श की है। यहाँ एक वि‍षय ऐसा भी आया कि‍ कैसे करेंगे? हमने एक शब्‍द प्रयोग कि‍या है ‘Rurban’। गाँवों के वि‍कास के लि‍ए जो राष्‍ट्रपति‍ के अभि‍भाषण में हमने देखा है। जहाँ सुवि‍धा शहर की हो, आत्‍मा गाँव की हो। गाँव की पहचान गाँव की आत्‍मा में बनी हुई है। आज भी वह अपनापन, गाँव में एक बारात आती है तो पूरे गाँव को लगता है कि‍ हमारे गाँव की बारात है। गाँव में एक मेहमान आता है तो पूरे गाँव को लगता है कि‍ यह हमारे गाँव का मेहमान है। यह हमारे देश की एक अनमोल वि‍रासत है। इसको बनाना है, इसको बचाये रखना है, लेकि‍न हमारे गाँव के लोगों को आधुनि‍क सुवि‍धा से हम वंचि‍त रखेंगे क्‍या? मैं अनुभव से कहता हूँ कि‍ अगर गाँव को आधुनि‍क सुवि‍धाओं से सज्‍ज कि‍या जाये तो गाँव देश की प्रगति‍ में ज्‍यादा कांट्रि‍‍ब्‍यूशन कर रहा है।

अगर गाँव में भी 24 घंटे बि‍जली हो, अगर गाँव को भी ब्रॉडबैण्‍ड कनैक्‍टि‍वि‍टी मि‍ले, गाँव के बालक को भी उत्‍तम से उत्‍तम शि‍क्षा मि‍ले; पल भर के लि‍ए मान लें कि‍ शायद हमारे गाँव में अच्‍छे टीचर न हों, लेकि‍न आज का वि‍ज्ञान हमें लाँग डि‍स्‍टैन्‍स एजुकेशन के लि‍ए पूरी ताकत देता है। शहर में बैठकर भी उत्‍तम से उत्‍तम शि‍क्षक के माध्‍यम से गाँव के आखि‍री छोर पर बैठे हुए स्‍कूल के बच्‍चे को हम पढ़ा सकते हैं। हम सैटेलाइट व्‍यवस्‍था का उपयोग, उस आधुनि‍क वि‍ज्ञान का उपयोग उन गरीब बच्‍चों की शि‍क्षा के लि‍ए क्‍यों न करें? अगर गाँव के जीवन में हम यह बदलाव लाएँ तो कि‍सी को भी अपना गाँव छोड़कर जाने का मन नहीं करेगा। गाँव के नौजवान को क्‍या चाहि‍ए? अगर रोज़गार मि‍ल जाए तो वह अपने माँ-बाप के पास रहना चाहता है। क्‍या गाँवों के अंदर हम उद्योगों का जाल खड़ा नहीं कर सकते हैं? एट लीस्‍ट हम एक बात पर बल दें- एग्रो बेस्‍ड इंडस्‍ट्रीज़ पर। अगर हम मूल्‍यवृद्धि‍ करें और मूल्‍यवृद्धि‍ पर अगर हम बल दें। आज उसकी एक ताकत है, उस ताकत को हमने स्‍वीकार कि‍या तो हम गाँव के आर्थि‍क जीवन को भी, गाँव की व्‍यवस्‍थाओं के जीवन को भी बदल सकते हैं और कि‍सान का स्‍वाभावि‍क लाभ भी उसके साथ जुड़ा हुआ है।

सि‍क्‍कि‍म एक छोटा सा राज्‍य है, बहुत कम आबादी है लेकि‍न उस छोटे से राज्‍य ने एक बहुत महत्‍वपूर्ण काम कि‍या है। बहुत ही नि‍कट भवि‍ष्‍य में सि‍क्‍कि‍म प्रदेश हि‍न्‍दुस्‍तान के लि‍ए गौरव देने वाला ‘ऑर्गैनि‍क स्‍टेट’ बनने जा रहा है। वहाँ का हर उत्‍पादन ऑर्गैनि‍क होने वाला है। आज पूरे वि‍श्‍व में ऑर्गैनि‍क खेत उत्‍पादन की बहुत बड़ी माँग है। होलि‍स्‍टि‍क हैल्‍थकेयर की चि‍न्‍ता करने वाला एक पूरा वर्ग है दुनि‍या में, जो जि‍तना माँगो उतना दाम देकर ऑर्गेनि‍क चीजे़ं खरीदने के लि‍ए कतार में खड़ा है। यह ग्‍लोबल मार्केट को कैप्‍चर करने के लि‍ए सि‍क्‍कि‍म के कि‍सानों ने जो मेहनत की है, उसको जोड़कर अगर हम इस योजना को आगे बढ़ाएँ तो दूर-सुदूर हि‍मालय की गोद में बैठा हुआ सि‍क्‍कि‍म प्रदेश कि‍तनी बड़ी ताकत के साथ उभर सकता है। इसलि‍ए क्‍या कभी हम सपना नहीं देख सकते हैं कि‍ हमारे पूरे नॉर्थ ईस्‍ट को ऑर्गैनि‍क स्‍टेट के रूप में हम कैसे उभार सकें। पूरे नॉर्थ ईस्‍ट को अगर ऑर्गैनि‍क स्‍टेट के रूप में हम उभारें और वि‍श्‍व के मार्केट पर कब्‍ज़ा करने के लि‍ए भारत सरकार की तरफ से उनको मदद मि‍ले तो वहाँ दूर पहाड़ों में रहने वाले लोगों की जि‍न्‍दगी में, कृषि‍ के जीवन में कि‍तना बड़ा बदलाव आ सकता है। हमारी इतनी कृषि‍ यूनि‍वर्सि‍टीज़ हैं। बहुत रि‍सर्च हो रही हैं, लेकि‍न यह दुर्भाग्‍य रहा है कि‍ जो लैब में है, वह लैण्‍ड पर नहीं है। लैब से लैण्‍ड तक की यात्रा में जब तक हम उस पर बल नहीं देंगे, आज कृषि‍ को परंपरागत कृषि‍ से बाहर लाकर आधुनि‍क कृषि‍ की ओर ले जाने की आवश्‍यकता है। गुजरात ने एक छोटा सा प्रयोग कि‍या था- सॉयल हैल्‍थ कार्ड। हमारे देश में मनुष्‍य के पास भी अभी हैल्‍थ कार्ड नहीं है। लेकि‍न गुजरात में हमने एक इनीशि‍येटि‍व लि‍या था। उसकी जमीन की तबीयत का उसके पास कार्ड रहे। उसके कारण से पता चला कि‍ उसकी जमीन जि‍स क्रॉप के लि‍ए उपयोगी नहीं है, वह उसी फसल के लि‍ए खर्चा कर रहा था। जि‍स फर्टि‍लाइज़र की जरूरत नहीं है, उतनी मात्रा में वह फर्टि‍लाइजर डालता था। जि‍न दवाइयों की कतई जरूरत नहीं थी, वह दवाइयाँ लगाता था। बेकार ही साल भर में 50 हजार रुपये या लाख रुपये यूँ ही फेंक देता था। लेकि‍न सॉयल हैल्‍थ कार्ड के कारण उसको समझ आई कि‍ उसकी कृषि‍ को कैसे लि‍या जाए। क्‍या हम हि‍न्‍दुस्‍तान के हर कि‍सान को सॉयल हैल्‍थ कार्ड देने का अभि‍यान पूर्ण नहीं कर सकते? हम इसको कर सकते हैं। सॉयल टैस्‍टिंग के लि‍ए भी हम अध्‍ययन के साथ कमाई का एक नया आयाम ले सकते हैं। जो लोग मुझसे पूछ रहे हैं कि‍ कैसे करोगे, मैं इसलि‍ए एक वि‍षय को लंबा खींचकर बता रहा हूँ कि‍ कैसे करेंगे?

हमारे एग्रीकल्‍चरल यूनि‍वर्सि‍टी के स्‍टूडेण्‍ट्स अप्रैल, मई और जून में गाँव जाते हैं और पूरे हि‍न्‍दुस्‍तान में 10+2 के जो स्‍कूल्‍स हैं, जि‍नमें एक लैबोरेटरी होती है। क्‍यों न वैकेशन में उन लैबोरेटरीज को ‘सॉयल टैस्‍टिंग लैबोरेटरीज़’ में कनवर्ट कि‍या जाए। एग्रीकल्‍चरल यूनि‍वर्सि‍टी के स्‍टूडेंट्स जो वैकेशन में अपने गाँव जाते हैं उनको स्‍कूलों के अंदर काम में लगाया जाए और वैकेशन के अंदर वे अपना सॉयल टैस्‍टिंग का काम उस लैबोरेटरी में करें। उस स्‍कूल को कमाई होगी और उसमें से अच्‍छी लैबोरेटरी बनाने का इरादा बनेगा। एक जन आंदेलन के रूप में इसे परि‍वर्ति‍त कि‍या जा सकता है या नहीं कि‍या जा सकता है? कहने का तात्‍पर्य यह है कि‍ हम छोटे-छोटे प्रायोगि‍क उपाय करेंगे तो हम चीजों को बदल सकते हैं।

आज हमारे रेलवे की आदत क्‍या है? वह लकीर के फकीर हैं। उनको लि‍खा गया है कि‍ मंडे को जो माल आए, वह एक वीक के अंदर चला जाना चाहि‍ए। अगर मंडे को मार्बल आया है स्‍टेशन पर, जि‍से मुम्‍बई पहुँचाना है और टयूज़डे को टमाटर आया है, तो वह पहले मार्बल भेजता है, बाद में टमाटर भेजता है। क्‍यों? मार्बल अगर चार दि‍न बाद पहुँचेगा तो क्‍या फर्क पड़ता है, ले‍कि‍न अगर टमाटर पहले पहुँचता है तो कम से कम वह खराब तो नहीं होगा। हमें अपनी पूरी व्‍यवस्‍था को सैंसेटाइज़ करना है।

आज हमारे देश का दुर्भाग्‍य है, इंफोर्मेशन टेक्‍नोलॉजी के नाम पर दुनि‍या में हम छाये हुए रहें, साफ्टवेयर इंजीनि‍यर के रूप में हमारी पहचान बन गई लेकि‍न आज हमारे देश के पास एग्रो प्रोडक्‍ट का रि‍यल टाइम डाटा नहीं है। क्‍या हम इंफोर्मेशन टेक्‍नोलॅजी के नेटवर्क के माध्‍यम से एग्रो प्रोडक्‍ट का रि‍‍यल डाटा इक्‍ट्ठा कर सकते हैं? हमने महँगाई को दूर करने का वायदा कि‍या है और हम इस पर प्रमाणि‍कता से प्रयास करने के लि‍ए प्रति‍बद्ध हैं और यह इसलि‍ए नहीं कि‍ यह केवल चुनावी वायदा था इसलि‍ए करना है, यह हमारी सोच है कि‍ गरीब के घर में शाम को चूल्‍हा जलना चाहि‍ए। गरीब के बेटे आँसू पीकर के सो जाएं, इस स्‍थि‍ति‍ में बदलाव आना चाहि‍ए। यह हम सभी का कर्तव्‍य है चाहे राज्‍य सरकार हो या राष्‍ट्रीय सरकार हो, सत्‍ता में हो या वि‍पक्ष में हो। हम सभी का सामूहि‍क उत्‍तरदायि‍त्‍व है कि‍ हि‍न्‍दुस्‍तान का कोई भी गरीब भूखा न रहे। इस कर्तव्‍य की पूर्ति‍ के लि‍ए हम इस काम को करना चाहते हैं। अगर रि‍यल टाइम डाटा हो तो आज भी देश में अन्‍न के भंडार पड़े हैं। ऐसा नहीं है कि‍ अन्‍न के भंडार नहीं हैं, लेकि‍न व्‍यवस्थाओं की कमी है। अगर सरकार के पास यह जानकारी हो कि‍ कहाँ जरूरत है, रेलवे का जब लल पीरि‍यड हो उस समय उसे तभी शि‍फ्ट कर दि‍या जाए और वहाँ अगर गोदाम बनाए जाएं और वहाँ रख दि‍या जाए, तो इस समस्‍या का समाधान हो सकता है। फूड कार्पोरेशन ऑफ इंडि‍या, सालों से एक ढाँचा चल रहा है। क्‍या उसे आधुनि‍क नहीं बनाया जा सकता है? प्रोक्‍योरमेंट का काम कोई और करे, रि‍जर्वेशन का काम कोई अलग करे, डि‍स्‍ट्रि‍ब्‍यूशन का काम कोई अलग करे, एक ही व्‍यवस्‍था को अगर तीन हि‍स्‍सों में बाँट दि‍या जाए और तीनों की रि‍स्‍पोंसि‍बि‍लटी बना दी जाए तो मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि‍ हम इन स्‍थि‍ति‍यों को बदल सकते हैं।

एग्रीकल्‍चर सेक्‍टर में हमारी एग्रीकल्‍चर यूनि‍वर्सि‍टीज़ को, हमारे कि‍सानों को, अभी एक बात पर बल देना पड़ेगा, यह समय की माँग है। जैसा मैंने आधुनि‍क खेती के बारे में कहा, हम टेक्‍नोलॉजी को एग्रीकल्‍चर में जि‍तनी तेजी से लाएंगे उतना लाभ होगा क्‍योंकि‍ परि‍वारों का विस्‍तार होता जा रहा है और जमीन कम होती जा रही है। हमें जमीन में प्रोडक्‍टीवि‍टी बढ़ानी पड़ेगी। इसके लि‍ए हमें अपनी यूनि‍वर्सि‍टीज़ में रि‍सर्च का काम बढ़ाना पड़ेगा। कि‍तने वर्षों से Pulses में कोई रि‍सर्च नहीं हुआ है। Pulses हमारे सामने बहुत बड़ा चैलेंज बनी हुई हैं। आज गरीब आदमी को प्रोटीन पाने के लि‍ए Pulses के अलावा कोई उपाय नहीं है। Pulses ही हैं, जि‍सके माध्‍यम से उसे प्रोटीन प्राप्‍त होता है और शरीर की रचना में प्रोटीन का बहुत महत्‍व होता है। अगर कुपोषण के खि‍लाफ लड़ाई लड़नी है तो हमें इन सवालों को एड्रेस करना होगा। Pulses के क्षेत्र में कई वर्षों से न हम प्रोडक्‍टि‍वि‍टी में बढ़ावा ले पाए हैं और न ही Pulses के अंदर प्रोटीन कंटेंट के अंदर वृद्धि‍ कर पाए हैं। हम शुगरकेन में शुगर कंटेंट बढ़ाने में सफल हुए हैं, लेकि‍न हम Pulses में प्रोटीन कंटेंट बढ़ाने में सफल नहीं हुए हैं। यह बहुत बड़ा चैलेंज है। क्‍या हमारे वैज्ञानि‍क, हमारी कृषि‍ यूनि‍वर्सि‍टीज को प्रेरि‍त करेंगे? हम इन समस्‍याओं पर क्‍यूमलेटि‍व इफैक्‍ट के साथ अगर चीजों को आगे बढ़ाते हैं तो मैं मानता हूँ कि‍ इन समस्‍याओं का समाधान हो सकता है। इसका यह रास्‍ता है।

हमारी माताएँ -बहनें जो हमारी पचास परसेंट की जनसंख्‍या है भारत की वि‍कास यात्रा में, उन्‍हें नि‍र्णय में, भागीदार बनाने की जरूरत है। उन्‍हें हमें आर्थि‍क प्रगति‍ से जोड़ना होगा। वि‍कास की नई ऊँचाइयों को पार करना है तो हिंदुस्‍तान की पचास प्रति‍शत हमारी मातृ शक्‍ति‍ है, उसकी सक्रि‍य भागीदारी को हमें नि‍श्‍चि‍त करना होगा। उनके सम्‍मान की चिंता करनी होगी, उनकी सुरक्षा की चिंता करनी होगी।

पि‍छले दि‍नों जो कुछ घटनाएँ घटी हैं, हम सत्‍ता में हों या न हों, पीड़ा करने वाली घटना है। चाहे पुणे की हत्‍या हो, चाहे उत्‍तर प्रदेश में हुई हत्‍या हो, चाहे मनाली में डूबे हुए हमारे नौजवान हों, चाहे हमारी बहनों पर हुए बलात्‍कार हो, ये सारी घटनाएँ, हम सब को आत्‍मचिंतन करने के लि‍ए प्रेरि‍त करती हैं। सरकारों को कठोरता से काम करना होगा। देश लंबा इंतजार नहीं करेगा, पीड़ि‍त लोग लंबा इंतजार नहीं करेंगे और हमारी अपनी आत्‍मा हमें माफ नहीं करेगी। इसलि‍ए मैं तो राजनेताओं से अपील करता हूँ। मैं देश भर के राजनेताओं को वि‍शेष रूप से करबद्ध प्रार्थना करना चाहता हूँ कि‍ बलात्‍कार की घटनाओं का ‘मनोवैज्ञानि‍क वि‍श्‍लेषण’ करना कम से कम हम बंद करें। हमें शोभा नहीं देता है। हम माँ-बहनों की डि‍ग्‍नि‍टी पर खि‍लवाड़ करते हैं। हमें राजनीति‍क स्‍तर पर, इस प्रकार की बयानबाजी करना शोभा देता है क्‍या? क्‍या हम मौन नहीं रह सकते? इसलि‍ए नारी का सम्‍मान, नारी की सुरक्षा, यह हम सब की, सवा सौ करोड़ देशवासि‍यों की प्राथमि‍कता होनी चाहि‍ए।

इस देश की 65 प्रतिशत जनसंख्‍या 35 से कम आयु की है। हम कितने सौभाग्‍यशाली हैं। हम उस युग चक्र के अंदर आज जीवित है। हम उस युग चक्र में संसद में बैठे हैं जब हिंदुस्‍तान दुनिया का सबसे नौजवान देश है। डेमोग्राफिक डिवीज़न- इस ताकत को हम पहचानें। पूरे विश्‍व को आने वाले दिनों में लेबर फोर्स की मैन पावर की Skilled मैनपावर की बहुत बड़ी आवश्‍यकता है। जो लोग इस शास्‍त्र के अनुभवी हैं, वे जानते हैं कि‍ पूरे वि‍श्‍व को Skilled मैनपावर की आवश्‍यकता है। हमारे पड़ोस में चीन बूढ़ा होता जा रहा है, हम नौजवान होते जा रहे हैं। यह एक एडवांटेज है। इसलि‍ए दुनि‍या के सभी देश समृद्ध-से-समृद्ध देश का एक ही एजेंडा रहता है- स्‍कि‍ल डेवलपमेंट। हमारे देश की प्राथमि‍कता होनी चाहि‍ए ‘स्‍कि‍ल डेवलपमेंट’। उसके साथ-साथ हमें सफल होना है तो हमें ‘श्रमेव जयते’ – इस मंत्र को चरि‍तार्थ करना होगा। राष्‍ट्र के नि‍र्माण में श्रमि‍क का स्‍थान होता है। वह वि‍श्‍वकर्मा है। उसका हम गौरव कैसे करें।

भाइयो-बहनो, भारत का एक परसेप्‍शन दुनि‍या में बन पड़ा है। हमारी पहचान बन गयी है ‘स्‍कैम इंडि‍या’ की। हमारे देश की पहचान हमें बनानी है ‘Skilled’ इंडि‍या की और उस सपने को हम पूरा कर सकते हैं। इसलि‍ए पहली बार एक अलग मंत्रालय बनाकर के- इंटरप्रेन्‍योरशि‍प एण्‍ड स्‍कि‍ल डेवलपमेंट- उस पर वि‍शेष रूप से बल दि‍या गया है।

हमारे देश का एक दुर्भाग्‍य है। किसी से पूछा जाए कि क्‍या पढ़े-लि‍खे हो तो वह कहता है कि‍ ग्रैजुएट हूँ, एम.ए. हूँ, डबल ग्रैजुएट हूँ। हमें अच्‍छा लगता है। मैंने बहुत बचपन में दादा धर्माधि‍कारी जी की एक कि‍ताब पढ़ी थी। महात्‍मा गाँधी के वि‍चारों के एक अच्‍छे चिंतक रहे, बि‍नोवा जी के साथ रहते थे। दादा धर्माधि‍कारी जी ने एक अनुभव लि‍खा था कि‍ कोई नौजवान उनके पास नौकरी लेने गया। उन्‍होंने पूछा कि‍ भाई, क्‍या करते हो, क्‍या पढ़े हो वगैरह। उसने कहा कि‍ मैं ग्रैजुएट हूँ। फि‍र कहने लगा कि‍ मुझे नौकरी चाहि‍ए। दादा धर्माधि‍कारी जी ने उससे पूछा कि‍ तुम्‍हें क्‍या आता है? उसने बोला- मैं ग्रैजुएट हूँ। फि‍र उन्‍होंने कहा- हाँ, हाँ भाई, तुम ग्रैजुएट हो, पर बताओ तुम्‍हें क्‍या आता है? उसने बोला- नहीं, नहीं! मैं ग्रैजुएट हूँ। चौथी बार पूछा कि‍ तुम्‍हें बताओ क्‍या आता है। वह बोला मैं ग्रैजुएट हूँ। हम इस बात से अनुभव कर सकते हैं कि‍ जि‍न्‍दगी का गुजारा करने के लि‍ए हाथ में हुनर होना चाहि‍ए, सि‍र्फ हाथ में सर्टि‍फि‍केट होने से बात नहीं होती। इसलि‍ए हमें स्‍कि‍ल डेवलपमेंट की ओर बल देना होगा, लेकि‍न स्‍कि‍ल्‍ड वर्कर जो हैं, उसका एक सामाजि‍क स्‍टेटस भी खड़ा करना पड़ेगा। सातवीं कक्षा तक पढ़ा हुआ बच्‍चा, गरीबी के कारण स्‍कूल छोड़ देता है। कहीं जा करके स्‍कि‍ल डेवलपमेंट के कोर्स का सौभाग्‍य मि‍ला, चला जाता है, लेकि‍न लोग उसको महत्‍व नहीं देते, अच्‍छा सातवीं पढ़े हो, चले जाओ। हमें उसकी इक्‍वीवैलंट व्‍यवस्‍था खड़ी करनी पड़ेगी। मैंने गुजरात में प्रयोग कि‍या था। जो दो साल की आईटीआई करते थे, मैंने उनको दसवीं के इक्‍वल बना दि‍या, जो दसवीं के बाद आए थे, उनको 12वीं के इक्‍वल बना दि‍या। उनको डि‍प्‍लोमा या आगे पढ़ना है तो रास्‍ते खोल दि‍ए। डि‍ग्री में जाना है तो रास्‍ते खोल दि‍ए। सातवीं पास था, लेकि‍न डि‍ग्री तक जा सकता है, रास्‍ते खोल दि‍ए। बहुत हि‍म्‍मत के साथ नये नि‍र्णय करने होंगे।

अगर हम स्‍कि‍ल डेवलपमेंट को बल देना चाहते हैं तो उसकी सामाजि‍क प्रति‍ष्‍ठा पैदा करनी होगी। मैंने कहा कि‍ दुनि‍या में वर्क फोर्स की आवश्‍यकता है। आज सारे वि‍श्‍व को टीचर्स की आवश्‍यकता है। क्‍या हि‍न्‍दुस्‍तान टीचर एक्‍सपोर्ट नहीं कर सकता है। मैथ्‍स और साइंस के टीचर अगर हम दुनि‍या में एक्‍सपोर्ट करें, एक व्‍यापारी वि‍देश जाएगा तो ज्‍यादा से ज्‍यादा डालर लेकर आएगा, लेकि‍न एक टीचर वि‍देश जाएगा तो पूरी की पूरी पीढ़ी अपने साथ समेट करके ले आएगा। ये ताकत रखनी है। वि‍श्‍व में हमारे सामर्थ्‍य को खड़ा करना है तो ये रास्‍ते होते हैं। क्‍या हम अपने देश में इस प्रकार के नौजवानों को तैयार नहीं कर सकते? ये सारी संभावनाएँ पड़ी हैं, उन संभावनाओं को ले करके अगर आगे चलने का हम इरादा रखते हैं तो मुझे वि‍श्‍वास है कि‍ हम परि‍णाम ला सकते हैं। दलि‍त, पीड़ि‍त, शोषि‍त एवं वंचि‍त हो।

हमारे दलि‍त एवं वनवासी भाई-बहनों, क्‍या हम वि‍श्‍वास से कह सकते हैं कि‍ आजादी के इतने सालों के बाद उनके जीवन में हम बदलाव ला सके हैं। ऐसा नहीं है कि‍ बजट खर्च नहीं हुए, कोई सरकार के पास गंभीरता नहीं थी। मैं ऐसा कोई कि‍सी पर आरोप नहीं लगा रहा हूँ, लेकि‍न हकीकत यह है कि‍ स्‍थि‍ति‍ में बदलाव नहीं आया। क्‍या हम पुराने ढर्रे से बाहर आने को तैयार हैं? हम सरकार की योजनाओं को कन्वर्जेंस कर-करके, कम से कम समाज के इन तबको को बाहर ला सकते हैं। क्‍यों नहीं उनके जीवन में बदलाव आ सकता है। मुसलमान भाई, मैं देखता हूँ, जब मैं छोटा था, जो साइकि‍ल रि‍पेयरिंग करता था, आज उसकी तीसरी पीढ़ी का बेटा भी साइकि‍ल रि‍पेयरिंग करता है। ऐसी दुर्दशा क्‍यों हुई? उनके जीवन में बदलाव कैसे आए? इस बदलाव के लि‍ए हमें फोकस एक्‍टि‍वि‍टी करनी पड़ेगी। उस प्रकार की योजनओं को ले करके आना पड़ेगा। मैं उन योजनाओं को तुष्‍टीकरण के रूप में देखता नहीं हूँ, मैं उनके जीवन को बदलाव के रूप में देखता हूँ। कोई भी शरीर अगर उसका एक अंग वि‍कलांग हो तो उस शरीर को कोई स्‍वस्‍थ नहीं मान सकता। शरीर के सभी अंग अगर सशक्‍त हों, तभी तो वह सशक्‍त शरीर हो सकता है। इसलि‍ए समाज का कोई एक अंग अगर दुर्बल रहा तो समाज कभी सशक्‍त नहीं हो सकता है। इसलि‍ए समाज के सभी अंग सशक्‍त होने चाहि‍ए। उस मूलभूत भावना से प्रेरि‍त हो करके हमें काम करने की आवश्‍यकता है और हम उससे प्रति‍बद्ध हैं। हम उसको करना चाहते हैं। हमारे देश में वि‍कास की एक नयी परि‍भाषा की ओर जाने की मुझे आवश्‍यकता लगी। क्‍या आजादी का आंदोलन, देश में आजादी की लड़ाई बारह सौ साल के कालखंड में कोई वर्ष ऐसा नहीं गया, जि‍समें आजादी के लि‍ए मरने वाले दीवाने न मि‍ले हों। 1857 के बाद सारा स्‍वतंत्र संग्राम का इति‍हास हमारे सामने है। हि‍न्‍दुस्‍तान का कोई भू-भाग ऐसा नहीं होगा, जहाँ से कोई मरने वाला तैयार न हुआ हो, शहीद होने के लि‍ए तैयार न हुआ हो। सि‍लसि‍ला चलता रहा था, फांसी के तख्‍त पर चढ़ करके देश के लि‍ए बलि‍दान होने वालों की श्रृंखला कभी रुकी नहीं थी।

भाइयों और बहनों, आप में से बहुत लोग ऐसे होंगे, जो आजादी के बाद पैदा हुए होंगे। कुछ महानुभाव ऐसे भी हैं, जो आजादी के पहले पैदा हुए होंगे, आजादी की जंग में लड़े भी होंगे। मैं आजादी के बाद पैदा हुआ हूँ। मेरे मन में वि‍चार आता है। मुझे देश के लि‍ए मरने का मौका नहीं मि‍ला, लेकि‍न देश के लि‍ए जीने का मौका तो मि‍ला है। हम यह बात लोगों तक कैसे पहुँचाये कि‍ हम देश के लि‍ए जि‍यें और देश के लि‍ए जीने का एक मौका लेकर वर्ष 2022 में जब आजादी के 75 साल हों, देश के लि‍ए जीवन न्‍यौछावर करने वाले उन महापुरूषों को याद करते हुए हम एक काम कर सकते हैं। बाकी सारे काम भी करने हैं, लेकि‍न एक काम जो प्रखरता से करें कि‍ हिंदुस्‍तान में कोई परि‍वार ऐसा न हो, जि‍सके पास रहने के लि‍ए अपना घर न हो। ऐसा घर जि‍समें नल भी हो, नल में पानी भी हो, बि‍जली भी हो, शौचालय भी हो। यह एक मि‍नि‍मम बात है। एक आंदोलन के रूप में सभी राज्‍य सरकारें और केंद्र सरकार मि‍लकर, हम सभी सदस्‍य मि‍लकर अगर आठ-नौ साल का कार्यक्रम बना दें, धन खर्च करना पड़े, तो खर्च करें, लेकि‍न आजादी के 75 साल जब मनायें तब भगत सिंह को याद करके, सुखदेव को याद करके, राजगुरु को याद करके, महात्‍मा गाँधी, सरदार पटेल इन सभी महापुरूषों को याद करके उनको हम मकान दे सकते हैं। अगर हम इस संकल्‍प की पूर्ति‍ करके आगे बढ़ते हैं तो देश के सपनों को पूरा करने का काम हम कर सकते हैं।

मैं जानता हूँ कि‍ शासन में आने के बाद जि‍सको नापा जा सके, ऐसा कार्यक्रम हाथ में लेना बड़ा कठि‍न होता है। आदरणीय मुलायम सिंह जी ने कहा कि‍ मैंने सरकार चलायी है। सरकार चलायी है, इसलि‍ए मैं कहता हूँ कि‍ भाई यह कैसे करोगे, यह कैसे होगा? उनकी सदभावना के लि‍ए मैं उनका आभारी हूँ। उन्‍होंने चि‍न्‍ता व्‍यक्‍त की है, लेकि‍न हम मि‍ल-बैठकर के रास्‍ता नि‍कालेंगे। हम सपना तो देखे हैं, उसे पूरा करने का प्रयास करेंगे। कुछ कठि‍नाई आयेगी तो आप जैसे अनुभवी लोग हैं, जि‍नका मार्गदर्शन हमें मि‍लेगा। गरीब के लि‍ए काम करना है, इसके लि‍ए हमें आगे बढ़ना है।

यहाँ यह बात भी आयी, नयी बोतल में पुरानी शराब है। उनको शराब याद आना बड़ा स्‍वाभावि‍क है। यह भी कहा कि‍ ये तो हमारी बातें हैं, आपने जरा ऊपर-नीचे करके रखी हैं, कोई नयी बात नहीं है। इसका मतलब यह है कि‍ जो हम कह रहे हैं, वह आपको भी पता था। कल से महाभारत की चर्चा हो रही है और मैं कहना चाहता हूँ कि‍ एक बार दुर्योधन से पूछा गया कि‍ भाई यह धर्म और अधर्म, सत्‍य और झूठ तुमको समझ है कि‍ नहीं है, तो दुर्योधन ने जवाब दि‍या था, उसने कहा कि‍ जानामि‍ धर्मम् न च में प्रवृत्‍ति‍:, मैं धर्म को जानता हूँ, लेकि‍न यह मेरी प्रवृत्‍ति‍ नहीं है। सत्‍य क्‍या है, मुझे मालूम है। अच्‍छा क्‍या है, मुझे मालूम है, लेकि‍न वह मेरे डीएनए में नहीं है। इसलि‍ए आपको पहले पता था, आप जानते थे, आप सोचते थे, मुझे इससे ऐतराज नहीं है, लेकि‍न दुर्योधन को भी तो मालूम था। इसलि‍ए जब महाभारत की चर्चा करते हैं, महाभारत लंबे अरसे से हमारे कानों में गूंजती रही है, सुनते आए हैं, लेकि‍न महाभारत काल पूरा हो चुका है। न पांडव बचे है, न कौरव बचे हैं, लेकि‍न जन-मन में आज भी पांडव ही वि‍जयी हों, हमेशा-हमेशा भाव रहा है। कभी पांडव पराजि‍त हों, यह कभी जन-मन का भाव नहीं रहा है।

भाइयों और बहनों, वि‍जय हमें बहुत सि‍खाता है और हमें सीखना भी चाहि‍ए। वि‍जय हमें सि‍खाता है नम्रता, मैं इस सदन को वि‍श्‍वास देता हूँ, मुझे वि‍श्‍वास है कि‍ यहाँ के जो हमारे सीनि‍यर्स हैं, चाहे वह कि‍सी भी दल के क्‍यों नहों, उनके आशीर्वाद से हम उस ताकत को प्राप्‍त करेंगे, जो हमें अहंकार से बचाये।

जो हमें हर पल नम्रता सि‍खाए। यहाँ पर कि‍तनी ही संख्‍या क्‍यों न हो, लेकि‍न मुझे आपके बि‍ना आगे नहीं बढ़ना है। हमें संख्‍या के बल पर नहीं चलना है, हमें सामूहि‍कता के बल पर चलना है इसलि‍ए उस सामूहि‍कता के भाव को ले कर हम आगे बढ़ना चाहते हैं।

इन दि‍नों मॉडल की चर्चा होती है- गुजरात मॉडल, गुजरात मॉडल। जि‍न्‍होंने मेरा भाषण सुना होगा उन्‍हें मैं बताता हूँ कि‍ गुजरात का मॉडल क्‍या है? गुजरात में भी एक जि‍ले का मॉडल दूसरे जि‍ले में नहीं चलता है क्‍योंकि‍ यह देश वि‍वि‍धताओं से भरा हुआ है। अगर मेरा कच्‍छ का रेगि‍स्‍तान है और वहाँ का मॉडल मैं वलसाड के हरे-भरे जि‍ले में लगाऊंगा तो नहीं चलेगा। इतनी समझ के कारण तो गुजरात आगे बढ़ा है।..... (व्‍यवधान) यही उसका मॉडल है कि‍ जि‍समें यह समझ है।..... (व्‍यवधान) गुजरात का दूसरा मॉडल यह है कि‍ हि‍न्‍दुस्‍तान के कि‍सी भी कोने में अच्‍छा हो, उन अच्‍छी बातों से हम सीखते हैं, उन अच्‍छी बातों को हम स्‍वीकार करते हैं। आने वाले दि‍नों में भी हम उस मॉडल को ले कर आगे बढ़ना चाहते हैं, हि‍न्‍दुस्‍तान के कि‍सी भी कोने में अच्‍छा हुआ हो, जो अच्‍छा है, वह हम सबका है, उसको और जगहों पर लागू करने का प्रयास करना है।

कल तमि‍लनाडु की तरफ से बोला गया था कि‍ तमि‍लनाडु का मॉडल गुजरात के मॉडल से अच्‍छा है। मैं इस बात का स्‍वागत करता हूँ कि‍ इस देश में इतना तो हुआ कि‍ वि‍कास के मॉडल की स्‍पर्द्धा शुरू हुई है।..... (व्‍यवधान) एक राज्‍य कहने लगा कि‍ मेरा राज्‍य तुम्‍हारे राज्‍य से आगे बढ़़ने लगा है। मैं मानता हूँ कि‍ गुजरात मॉडल का यह सबसे बड़ा कॉण्‍ट्रि‍ब्‍यूशन है कि‍ पहले हम स्‍पर्द्धा नहीं करते थे, अब कर रहे हैं। हम चाहते हैं कि‍ आने वाले दि‍नों में राज्‍यों के बीच वि‍कास की प्रति‍स्‍पर्द्धा हो। राज्‍य और केंद्र के बीच वि‍कास की स्‍पर्द्धा हो। हर कोई कहे कि‍ गुजरात पीछे रह गया है और हम आगे नि‍कल गए हैं। यह सुनने के लि‍ए मेरे कान तरस रहे हैं। देश में यही होगा, तभी तो बदलाव आएगा। छोटे-छोटे राज्‍य भी बहुत अच्‍छा करते हैं। जैसा मैंने कहा है कि‍ सि‍क्‍कि‍म, ऑर्गैनि‍क स्‍टेट बना है। तमि‍लनाडु ने अर्बन एरि‍या में रेन हार्वेस्‍टिंग का जो काम कि‍या है, वह हम सब को सीखने जैसा है। माओवाद के जुल्‍म के बीच जीने वाले राज्‍य छत्‍तीसगढ़ ने पी.डी.एस. सि‍स्‍टम का एक नया नमूना दि‍या है और गरीब से गरीब व्‍यक्‍ति‍ को पेट भरने के लि‍ए उसने नई योजना दी है।..... (व्‍यवधान)

हमारी बहन ममता जी पश्‍चि‍म बंगाल को 35 साल की बुराइयों से बाहर लाने के लि‍ए आज कि‍तनी मेहनत कर रही हैं, हम उनकी इन बातों का आदर करते हैं। इसलि‍ए हर राज्‍य में ....... (व्‍यवधान) केरल से भी..... (व्‍यवधान) आप को जान कर खुशी होगी कि‍ मैंने केरल के एक अफसर को बुलाया था। वह बहुत ही जुनि‍यर ऑफि‍सर थे और वहाँ लेफ्ट की सरकार चल रही थी। उनकी आयु बहुत छोटी थी। मैंने अपने यहाँ एक चिंतन शि‍वि‍र कि‍या और मैं और मेरा पूरा मंत्री परि‍षद् एक स्‍टुडेंट के रूप में बैठा था। मैंने उनसे ‘कुटुम्‍बश्री’ योजना का अध्‍ययन कि‍या था। उन्‍होंने हमें दो घंटे पढ़ाया।

मैंने नागालैण्‍ड के चीफ सेक्रेट्री को बुलाया था कि‍ आइए मुझे पढ़ाइये। नागालैंड में ट्राइबल के लि‍ए एक बहुत अच्‍छी योजना बनी थी। यही तो हमारे देश का मॉडल होना चाहि‍ए। हि‍न्‍दुस्‍तान के कोने में कि‍सी भी वि‍चारधारा की सरकार क्‍यों न हो, उसकी अच्‍छाइयों का हम आदर करें, अच्‍छाइयों को स्‍वीकार करें।...... (व्‍यवधान) यही मॉडल देश के काम आएगा। हम बड़े भाई का व्‍यवहार कि‍ तुम कौन होते हो? तुम ले जाना दो-चार टुकड़े ऐसा नहीं चाहते हैं, हम मि‍ल करके देश को आगे बढ़ाना चाहते हैं, इसलि‍ए हमने ‘कॉपरेटि‍व फेडरलि‍ज्‍म’ की बात की है। सहकारि‍ता के संगठि‍त स्‍वरूप को लेकर चलने की हमने बात की है और इसलि‍ए एक ऐसे रूप को आगे बढ़ाने का हम लोगों का प्रयास है, उस प्रयास को लेकर आगे चलेंगे, ऐसा मुझे वि‍श्‍वास है।

माननीय अध्‍यक्ष महोदया जी, यह जो प्रस्‍ताव रखा गया है, उसके लि‍ए आज मैं सभी वरि‍ष्‍ठ नेताओं का आभारी हूँ और कुल मि‍ला कर कह सकता हूँ कि‍ आज एक सार्थक चर्चा रही है और समर्थन में चर्चा रही है और अगर आलोचना भी हुई तो अपेक्षा के संदर्भ में हुई है। मैं इसे बहुत हेल्‍दी मानता हूँ, इसका स्‍वागत करता हूँ और आज कि‍सी भी दल की तरफ से जो अच्‍छे सुझाव हमें मि‍ले हैं उन्‍हें मैं अपनी आलोचना नहीं मानता हूँ, उन्‍हें मैं मार्गदर्शक मानता हूँ।

उसका भी हम उपयोग करेंगे, अच्‍छाई के लि‍ए उपयोग करेंगे और लोकतंत्र में आलोचना अच्‍छाई के लि‍ए होती है और होनी भी चाहि‍ए। सिर्फ आरोप बुरे होते हैं आलोचना कभी बुरी नहीं होती है, आलोचना तो ताकत देती है। अगर लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकतवर कोई जड़ी-बूटी है तो वह आलोचना है। हम उस आलोचना के लि‍ए सदा-सर्वदा के लि‍ए तैयार हैं। मैं चाहूँगा हर नीति‍यों का अध्‍ययन करके गहरी आलोचना होनी चाहि‍ए ताकि‍ तप करके प्रखर होकर सोना नि‍कले जो आने वाले दि‍नों में देश के लि‍ए काम आए। उस भाव से हम चलना चाहते हैं।

आज नए सदन में मुझे अपनी बात बताने का अवसर मि‍ला। आदरणीय अध्यक्ष महोदया जी, कहीं कोई शब्‍द इधर-उधर हो गया हो, अगर मैं नि‍यमों के बंधन से बाहर चला गया हूँ तो यह सदन मुझे जरूर क्षमा करेगा। लेकि‍न मुझे वि‍श्‍वास है कि‍ सदन के पूरे सहयोग से, जैसे मैंने पहले कहा था, मतदान से पहले हम उम्‍मीदवार थे, मतदान के बाद हम उम्‍मीदों के रखवाले हैं, हम उम्‍मीदों के दूत हैं, सवा सौ करोड़ देशवासि‍यों की उम्‍मीदों को पूरा करने का हम प्रयास करें। इसी एक अपेक्षा के साथ इसे आप सबका समर्थन मि‍ले। इसी बात को दोहराते हुए आप सबका बहुत-बहुत धन्‍यवाद!

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The Ayushman Bharat Yojana has reduced the financial problems in cancer treatment to a great extent: PM Modi

           எனதருமை நாட்டுமக்களே, வணக்கம்.   இன்று மனதின் குரலில், 2025ஆம் ஆண்டு…… இதோ வந்தே விட்டது, வாயிற்கதவுகளைத் தட்டிக் கொண்டிருக்கிறது.  2025ஆம் ஆண்டு, ஜனவரி மாதம் 26ஆம் தேதியன்று நமது அரசியலமைப்புச்சட்டத்தின் 75ஆம் ஆண்டு நிறைவடைய இருக்கின்றது.  நம்மனைவருக்கும் இது மிகவும் கௌரவம்மிகு தருணமாகும்.  நமது அரசியலமைப்புச்சட்ட பிதாமகர்கள் நம்மிடத்தில் ஒப்படைத்திருக்கும் அரசியல்சட்டம், காலத்தின் அனைத்துக் காலகட்டங்களிலும் வெற்றிகரமாக வழிகாட்டியிருக்கிறது.  அரசியல் சட்டமானது நம்மனைவருக்கும் பாதை துலக்கும் ஒளிவிளக்காய், வழிகாட்டியாய் விளங்குகிறது.  பாரத நாட்டின் அரசியல் சட்டம் காரணமாகவே இன்றிருக்கும் இடத்தில் நான் இருக்கிறேன், உங்களோடு உரையாடிக் கொண்டிருக்கிறேன்.  இந்த ஆண்டும் நவம்பர் மாதம் 26ஆம் தேதியன்று அரசியல்சட்ட தினம் தொடங்கி ஓராண்டுக்காலம் வரை நடைபெறக்கூடிய செயல்பாடுகள் தொடங்கப்பட்டிருக்கின்றன.  தேசத்தின் குடிமக்களை அரசியல் சட்டத்தின் மரபோடு இணைக்க வேண்டி, constitution75.com என்ற பெயரில் ஒரு சிறப்பான இணையத்தளம் உருவாக்கப்பட்டிருக்கிறது.   அரசியல் சட்டத்தின் முன்மொழிவினை வாசிக்கும் வகையில் உங்களுடைய காணொளியை இதிலே தரவேற்றம் செய்யலாம்.  பல்வேறு மொழிகளில் அரசியல்சட்டத்தை வாசிக்கலாம், அரசியல் சட்டம் தொடர்பான வினாக்களை எழுப்பலாம்.  மனதின் குரலின் நேயர்கள் தொடங்கி, பள்ளிகளில் படிக்கும் குழந்தைகள், கல்லூரிப்படிப்பு படிக்கும் இளைஞர்கள் ஆகியோரிடம் நான் விடுக்கும் வேண்டுகோள் – இந்த இணையத்தளத்தை அணுகுங்கள், இதோடு உங்களை இணைத்துக் கொள்ளுங்கள் என்பதே.

     நண்பர்களே, அடுத்த மாதம் 13ஆம் தேதி முதல் பிரயாக்ராஜில் மகாகும்பமேளா நடைபெற இருக்கிறது.  இந்த வேளையில், அங்கே சங்கமத்தின் கரையில் தடபுடலாக ஏற்பாடுகள் நடந்தேறி வருகின்றன.  சில நாட்கள் முன்பாக நான் பிரயாக்ராஜ் சென்றிருந்த வேளையில், ஹெலிகாப்டர் மூலமாக மொத்த கும்பமேளாவும் நடைபெறவுள்ள இடத்தையும் பார்வையிட்ட போது மனதில் பெரும் நிறைவு உண்டானது.  என்னவொரு விசாலம்!!  என்னவொரு அழகு!!  எத்தனை பிரும்மாண்டம்!!  அடேயப்பா!!

     நண்பர்களே, மகாகும்பமேளாவின் விசேஷம் இதன் விசாலமான தன்மை மட்டுமல்ல; மாறாக இதன் சிறப்பே இதன் பன்முகத்தன்மையில் தான் அடங்கியிருக்கிறது.  இந்த ஏற்பாட்டிலே கோடிக்கணக்கானோர் ஒரே நேரத்தில் சங்கமிக்கிறார்கள்.  இலட்சக்கணக்கான புனிதர்கள், ஆயிரக்கணக்கான பாரம்பரியங்கள், பல்லாயிரம் சம்பிரதாயங்கள், பல்வேறு பிரிவுகள் என அனைவரும் இந்த ஏற்பாட்டின் அங்கமாக ஆகின்றார்கள்.  எங்கும் எந்த வேறுபாடும் காணப்படாது, பெரியவர்-சிறியோர் என்று ஒன்றும் கிடையாது.  வேற்றுமையில் ஒற்றுமையின் இந்தக் காட்சியை உலகில் வேறு எங்குமே காண இயலாது.  ஆகையால் தான் நமது கும்பமேளா என்பது ஒற்றுமையின் மகாகும்பமேளாவாகவும் திகழ்கிறது.  இந்த முறை வரும் மகாகும்பமேளாவும் கூட ஒற்றுமையின் மகாகும்ப மேளாவின் மந்திரத்திற்கு சக்தியூட்டும்.  நாம் கும்பமேளாவில் பங்கேற்றுத் திரும்பும் போது, ஒற்றுமையின் இந்த உறுதிப்பாட்டை மனதில் ஏந்தி வீடு வருவோம்.  சமுதாயத்தில் பிரிவினை மற்றும் வெறுப்புணர்வுக்கு முடிவுகட்டும் உறுதிப்பாட்டையும் ஏற்போம்.  சொற்களில் இதை வடிக்க வேண்டும் என்று சொன்னால்……

மகாகும்பமளிக்கும் செய்தி, நாட்டில் ஒற்றுமை மலரட்டும்.

மகாகும்பமளிக்கும் செய்தி, நாட்டில் ஒற்றுமை மலரட்டும்.

 

இதை வேறுவகையில் கூற வேண்டுமென்றால்…..

கங்கையின் இடைவிடாப் பெருக்கு, நமது சமூகம் பிளவுபடக்கூடாது.

கங்கையின் இடைவிடாப் பெருக்கு, நமது சமூகம் பிளவுபடக்கூடாது.

     நண்பர்களே, இந்த முறை பிரயாக்ராஜில் உள்நாட்டிலிருந்தும், அயல்நாடுகளிருந்தும் பக்தர்கள் டிஜிட்டல் வழிமுறையில் மகாகும்பமேளாவைக் காண இருக்கிறார்கள்.  டிஜிட்டல்முறை வழிகாட்டல் வாயிலாக பல்வேறு படித்துறைகள், ஆலயங்கள், புனிதர்களின் மடங்கள் வரை சென்றடைய பாதை துலக்கிக் காட்டப்படும்.  இதே வழிகாட்டும் முறையே வாகன நிறுத்துமிடத்திற்கு நீங்கள் செல்வதற்கும் உதவிகரமாக இருக்கும்.  முதன்முறையாக கும்பமேளாவுக்கான ஏற்பாடுகளில் செயற்கை நுண்ணறிவு chatbot, உரையாடல் பயன்படுத்தப்படும்.  இந்த செயற்கை நுண்ணறிவு chatbot வாயிலாக, கும்பமேளாவோடு தொடர்புடைய அனைத்துவிதமான தகவல்களும் 11 இந்திய மொழிகளில் பெற முடியும்.  இந்த chatbot வாயிலாக, தட்டச்சு செய்தோ, குரல்வழி பேசியோ, யாராலும் எந்தவொரு உதவியையும் கோர முடியும்.   செயற்கை நுண்ணறிவால் இயங்கும் காமிராக்கள் மொத்த திருவிழாப்பகுதியையும் கண்காணித்துவரும்.  கும்பமேளா நெரிசலில் யாராவது தங்களுடைய சொந்தங்களைப் பிரிய நேர்ந்தால், இந்தக் கேமிராக்கள் மூலமாக அவர்களைத் தேடிப் பிடிக்கவும் உதவிகள் கிடைக்கும்.  திருவிழா நடைபெறும் எந்த ஒரு பகுதியிலும் தொலைந்தவர்களை டிஜிட்டல்வழியே கண்டுபிடிக்கும் மையத்தின் வசதியும் பக்தர்களுக்கு கிடைக்கும்.  அரசு அங்கீகாரம் பெற்ற சுற்றுலாத் திட்டங்கள், தங்குவசதிகள், இல்லங்களில் தங்குவசதிகள் ஆகியன பற்றியும் பக்தர்களுக்கு செல்பேசி வாயிலாக தகவல்கள் அளிக்கப்படும்.  நீங்களும் கும்பமேளா செல்லுங்கள், இந்த வசதிகளை அனுபவியுங்கள், அப்புறம் ஒரு விஷயம்….. #ஏக்தா கா மகாகும்ப் என்பதில் உங்களுடைய சுயபுகைப்படத்தையும் மறக்காமல் தரவேற்றம் செய்யுங்கள்.

     நண்பர்களே, மனதின் குரல் அதாவது மன் கீ பாத் MKBயில் இப்போது KTB பற்றி….. மிக மூத்தோர் இருக்கிறார்களே, அவர்களில் பலருக்கு KTB பற்றித் தெரிந்திருக்கும்.   ஆனால் சின்னக் குழந்தைகளிடம் வினவிப் பாருங்கள், அவர்கள் மத்தியிலோ KTB சூப்பர்ஹிட் என்றே சொல்லலாம்.  அதாவது, க்ருஷ், த்ருஷ், பால்டிபாய் ஆகியோர்.  உங்களுக்கு ஒரு வேளை தெரிந்திருக்கலாம், குழந்தைகளின் விருப்பமான அனிமேஷன் தொடரின் பெயர் தான் KTB – பாரதத்தில் நாம், இப்போது இதன் இரண்டாவது தொடரும் வந்து விட்டது.   இந்த மூன்று அனிமேஷன் பாத்திரங்களும் நமக்கும் பாரதநாட்டின் அதிகம் அறியப்படாத, அதிகம் பேசப்படாத சுதந்திரப் போராட்ட நாயகர்கள்-வீராங்கனைகள் பற்றித் தெரிவிக்கும்.  தற்போது தான் இதன் இரண்டாவது தொடர் மிகவும் சிறப்பான பொலிவோடு கோவாவில் நடந்த இந்தியாவின் சர்வதேச திரைப்படத் திருவிழாவில் அறிமுகப்படுத்தப்பட்டது.  மிகவும் அருமையான விஷயம் என்னவென்றால் இந்தத் தொடரானது பாரத நாட்டின் பல மொழிகளில் மட்டுமல்ல, அயல்நாட்டு மொழிகளிலும் கூட ஒளிபரப்பப்பட்டு வருகிறது.  இதை தூர்தர்ஷனோடு கூடவே இன்னபிற ஓடிடி தளங்களிலும் கண்டுகளிக்க முடியும்.

     நண்பர்களே, நமது அனிமேஷன் படங்களின், வாடிக்கையான படங்களின், டிவி தொடர்களின் பிரபலத்தன்மை பாரத நாட்டின் படைப்புத் திறன் துறையிடம் இருக்கும் திறமைகளைப் படம்பிடித்துக் காட்டுகிறது.  இந்தத் துறையானது தேசத்தின் முன்னேற்றத்திற்கு மட்டும் பெரும் பங்களிப்பு அளிக்கவில்லை, மாறாக நமது பொருளாதாரத்தையும் கூட புதிய சிகரங்களுக்கு இட்டுச் செல்கிறது.  நமது திரைப்படம் மற்றும் கேளிக்கைத் துறை மிகவும் விசாலமானது.  தேசத்தின் பல மொழிகளிலும் திரைப்படங்கள் தயாராகின்றன, படைப்புத்திறன்மிக்க உள்ளடக்கம் உருவாக்கப்படுகிறது.  ஒரே பாரதம் உன்னத பாரதம் என்ற உணர்வுக்கு வலுவூட்டுவதன் காரணத்தால் நான்நமது திரைப்பட மற்றும் கேளிக்கைத் தொழில்துறைக்கு என் பாராட்டுக்களைத் தெரிவித்துக் கொள்கிறேன்.

     நண்பர்களே, 2024ஆம் ஆண்டிலே நாம் திரைத்துறையின் பல மகத்தான நபர்களின் 100ஆம் ஆண்டு விழாவைக் கொண்டாடினோம்.  இந்த நபர்கள் பாரதநாட்டுத் திரைத்துறையை உலகளாவிய வகையில் அடையாளப்படுத்தினார்கள்.  ராஜ் கபூர் அவர்களின் படங்கள் வாயிலாக உலகம் பாரத நாட்டின் soft power மென்மையான சக்தியை இனம் கண்டு கொண்டது.  ரஃபி ஐயாவின் குரலில் இருந்த மாயாஜாலம், அனைவரின் இதயங்களையும் தொட்டுவருட வல்லது.  அவருடைய குரல் அலாதியானது.  பக்திப்பாடல்களாக இருந்தாலும் சரி, காதல் பாடல்களாக இருந்தாலும் சரி, துயரம்-வலி நிறைந்த பாடல்களாக இருந்தாலும் சரி, அனைத்து உணர்வுகளையும் அவர் தனது குரலில் உயிர்ப்படையச் செய்து விடுவார்.  ஒரு கலைஞன் என்ற முறையில் பார்க்கும் போது, இன்றும் கூட இளைய தலைமுறையினர் அவருடைய பாடல்களை அதே பேரார்வத்தோடு கேட்கிறார்கள் என்பதிலிருந்தே அவருடைய மாட்சிமையை நம்மால் புரிந்து கொள்ள முடிகிறது, காலத்தைக் கடந்த கலைக்கான அடையாளம் இது தானே.  அக்கினேனி நாகேஷ்வர் ராவ் காரு, தெலுகு திரைப்படத்துறையை புதிய உயரங்களுக்கு இட்டுச் சென்றவர்.  அவருடைய படங்கள் பாரதநாட்டுப் பாரம்பரியங்களையும், நன்மதிப்புக்களையும் மிகச் சிறப்பாகப் படம்பிடித்துக் காட்டுவன.  தபன் சின்ஹா அவர்களின் படங்கள், சமூகத்திற்கு ஒரு புதிய பார்வையை அளித்தன.  அவருடைய படங்களில் சமூக விழிப்புணர்வு மற்றும் தேசத்தின் ஒற்றுமை தொடர்பான செய்தி எப்போதும் இருக்கும்.  நமது ஒட்டுமொத்தத் திரைப்படத்துறைக்கும் இந்த மாமனிதர்களின் வாழ்க்கை கருத்தூக்கம் அளிப்பது.

     நண்பர்களே, நான் மேலும் ஒரு சந்தோஷமான செய்தியை உங்களுக்கு அளிக்க விரும்புகிறேன்.  பாரதநாட்டின் படைப்புத்திறனை உலகின் முன்பாக வைக்க ஒரு மிகப்பெரிய சந்தர்ப்பம் வந்து கொண்டிருக்கிறது.  அடுத்த ஆண்டு நமது தேசத்தில் முதன்முறையாக உலக ஒலிஒளி கேளிக்கை உச்சிமாநாடு அதாவது வேவ்ஸ் உச்சிமாநாடு நடைபெறவிருக்கிறது.  நீங்கள் அனைவரும் தாவோஸ் பற்றிக் கேள்விப்பட்டிருப்பீர்கள்; அங்கே உலகின் பொருளாதாரவுலகின் ஜாம்பவான்கள் ஒன்று கூடுவார்கள்.  இதைப் போலவே வேவ்ஸ் உச்சிமாநாட்டிலே உலகெங்கிலுமிருந்தும் ஊடகங்களும், திரைத்துறையின் ஜாம்பவான்களும், படைப்புலகத்தினரும் பாரத நாட்டிற்கு வருவார்கள்.   இந்த உச்சிமாநாடு, பாரத நாடு உலகம் தழுவிய உள்ளடக்க உருவாக்க மையமாக ஆகும் திசையில் ஒரு மகத்துவம் வாய்ந்த அடியெடுப்பாகும்.  இந்த உச்சிமாநாட்டின் தயாரிப்பு முஸ்தீபுகளிலே நமது தேசத்தின் இளம் படைப்பாளிகள் முழு உற்சாகத்தோடு இணைந்து பணியாற்றி வருகிறார்கள் என்று என்னிடம் கூறப்பட்டிருக்கிறது.  நாம் 5 ட்ரில்லியன் டாலர் பொருளாதாரம் என்ற திசையை நோக்கி முன்னேறும் வேளையில் நமது படைப்பாற்றல் பொருளாதாரமும் ஒரு புதிய ஆற்றலைக் கொண்டுவந்து சேர்க்கிறது.   நான் பாரத நாட்டின் மொத்த கேளிக்கை மற்றும் படைப்பாற்றல் துறையிடமும் என்ன வேண்டிக் கொள்கிறேன் என்றால், நீங்கள் இளம் படைப்பாளியோ, புகழ்மிக்க கலைஞரோ, பாலிவுட்டோடு இணைந்தவரோ அல்லது பிராந்திய திரைத்துறையைச் சேர்ந்தவரோ, தொலைக்காட்சித் துறையின் தொழில்வல்லுநரோ அல்லது அனிமேஷன் வல்லுநரோ, கேமிங்கோடு தொடர்புடையவரோ கேளிக்கைத் தொழில்நுட்பத் துறையில் கண்டுபிடிப்பாளரோ…. நீங்கள் அனைவரும் வேவ்ஸ் உச்சிமாநாட்டில் பங்கு பெறுங்கள். 

     எனதருமை நாட்டுமக்களே, பாரதநாட்டுக் கலாச்சாரம் பொழியும் ஒளியானது இன்று எப்படி உலகின் அனைத்து மூலைகளுக்கும் பரவி வருகிறது என்பதை நீங்கள் அனைவரும் நன்கறிவீர்கள்.  மூன்று கண்டங்களின் முயற்சிகளைப் பற்றி இன்று நான் உங்களிடம் பரிமாறிக் கொள்ள இருக்கிறேன், இவை நமது கலாச்சார மரபின் உலகளாவிய பரவலின் சான்றுகளாக இருக்கின்றன.  இவையனைத்தும் ஒன்றுக்கொன்று பல கி.மீ. தொலைவால் வேறுபட்டவை.  ஆனால் பாரத நாட்டைப் பற்றித் தெரிந்து கொள்ளவும், நமது கலாச்சாரத்தைக் கற்றுக் கொள்ளவும் அவர்களிடம் இருக்கும் தாகம் ஒன்று போலவே இருக்கிறது.

     நண்பர்களே, ஓவியங்களின் உலகம் எத்தனை வண்ணமயமாக இருக்குமோ, அந்த அளவுக்கு அழகாக இருக்கும்.  தொலைக்காட்சி வாயிலாக உங்களில் யாரெல்லாம் மனதின் குரலோடு இணைந்து வருகிறீர்களோ, சில ஓவியங்களை தொலைக்காட்சியில் உங்களால் காண முடியும்.  இந்தச் சித்திரங்களில் நமது தெய்வங்கள், நடனக்கலைகள் மற்றும் மாமனிதர்களைக் கண்டு உங்கள் உள்ளங்கள் உவப்பெய்தும்.  இவற்றிலே பாரதநாட்டில் இருக்கும் உயிரினங்கள் தொடங்கி நிறைய விஷயங்களை உங்களால் காணமுடியும்.   இவற்றில் தாஜ்மஹலின் ஒரு அற்புதமான ஓவியமும் அடங்கும், இதை 13 வயதேயான ஒரு குட்டிப் பெண் வரைந்திருக்கிறாள்.  இந்த மாற்றுத்திறனாளிக் குழந்தை தனதுவாயால் இந்த ஓவியத்தை வரைந்திருக்கிறாள் என்பதறிந்தால் நீங்கள் திகைத்துப் போவீர்கள்.   மிகவும் சுவாரசியமான விஷயம் என்னவென்றால் இந்த ஓவியங்களை வரைந்தவர்கள் பாரத நாட்டினர் அல்ல, எகிப்து தேசத்தைச் சேர்ந்த மாணவர்கள்.  சில வாரங்கள் முன்பு எகிப்து நாட்டில் சுமார் 23,000 மாணவர்கள் ஒரு ஓவியப் போட்டியில் பங்கெடுத்தார்கள்.  அங்கே அவர்கள் பாரத நாட்டின் கலாச்சாரம் மற்றும் இந்த இருநாடுகளின் சரித்திரப்பூர்வமான தொடர்புகளை வெளிப்படுத்தும் வகையிலான ஓவியங்களை வரைந்திருந்தார்கள்.  நான் இந்தப் போட்டியில் பங்கெடுத்துக் கொண்ட அனைத்து இளைஞர்களுக்கும் பாராட்டுக்களைத் தெரிவித்துக் கொள்கிறேன்.  அவர்களின் படைப்பாற்றலை எத்தனைப் பாராட்டினாலும் தகும்.

     நண்பர்களே, தென்னமெரிக்காவின் ஒரு தேசம் பராகுவே.  அங்கேயிருக்கும் பாரதநாட்டவரின் எண்ணிக்கை ஓராயிரத்தை மிகாது.  பராகுவேயில் ஒரு அற்புதமான முயற்சி நடைபெற்று வருகிறது.  அங்கே பாரதநாட்டு தூதரகத்தில் எரிகா ஹ்யூபர் என்பவர் இலவசமாக ஆயுர்வேத ஆலோசனை அளிக்கிறார்.  ஆயுர்வேத ஆலோசனை பெற, அந்நாட்டவர் அதிக எண்ணிக்கையில் வருகிறார்கள்.  எரிகா ஹ்யுபர் பொறியியல் படிப்பு படித்திருந்தாலும் கூட, அவருடைய மனம் ஆயுர்வேதத்திலேயே நிலை கொள்கிறது.  அவர் ஆயுர்வேதம் தொடர்பான படிப்புக்களை மேற்கொண்டார், காலப்போக்கில் இதில் வல்லுநராகவும் ஆகி விட்டார்.

     நண்பர்களே, உலகின் மிகத் தொன்மையான மொழி தமிழ்மொழி, இந்தியர்கள் அனைவருக்கும் இது பெருமை சேர்க்கும் விஷயமாகும்.  உலகெங்கிலும் இருக்கும் நாடுகளில் இதைக் கற்போரின் எண்ணிக்கை தொடர்ந்து அதிகரித்து வருகிறது.   கடந்த மாத இறுதியில், ஃபிஜியில் பாரத அரசின் உதவியோடு தமிழ் பயில்விக்கும் நிகழ்ச்சி தொடங்கப்பட்டது.  கடந்த 80 ஆண்டுகளில், ஃபிஜியில் தமிழில் பயிற்சி பெற்ற ஆசிரியர்கள் தமிழ் பயிற்றுவிப்பது என்பது இதுவே முதல் முறை.  இன்று ஃபிஜியின் மாணவர்கள் தமிழ்மொழியையும், சம்ஸ்கிருதத்தையும் கற்றுக் கொள்ள நிறைய ஆர்வம் காட்டுகிறார்கள் என்பது எனக்கு உவப்பைத் தருகிறது.

     நண்பர்களே, இந்த விஷயங்கள், இந்தச் சம்பவங்கள், வெறும் வெற்றிக்கதைகள் அல்ல.   இவை நமது கலாச்சார மரபின் காதைகளும் கூட.  இந்த எடுத்துக்காட்டுகள் நம் உள்ளங்களைப் பெருமிதத்தால் நிரப்பி விடுகின்றன.  கலை முதல் ஆயுர்வேதம், மொழி, இசை என அனைத்தும் பாரதத்திடம் கொட்டிக் கிடக்கிறது, இதுவே உலகை மயக்குகிறது.

     நண்பர்களே, குளிர்காலத்தில் நாடெங்கிலும் விளையாட்டு மற்றும் உடலுறுதி தொடர்பாக பல செயல்பாடுகள் நடைபெற்று வருகின்றன.  மக்கள் உடலுறுதியைத் தங்களுடைய தினசரி வாடிக்கையாக்கி வருகிறார்கள் என்பது மகிழ்ச்சியை அளிக்கிறது.  கஷ்மீரில் பனிச்சறுக்கு முதல் குஜராத்தில் காற்றாடிவிடுதல் வரை அனைத்து இடங்களிலும் விளையாட்டுக்களின் உற்சாகத்தைக் காண முடிகிறது.   #SundayOnCycle மற்றும்  #CyclingTuesday போன்ற இயக்கங்கள் சைக்கிள்விடுதலுக்கு ஊக்கமளித்து வருகின்றன.

     நண்பர்களே, இப்போது நான் உங்களோடு ஒரு வித்தியாசமான விஷயத்தைப் பகிர்ந்து கொள்ள விரும்புகிறேன், இது நமது தேசத்தில் ஏற்பட்டும்வரும் மாற்றங்கள் மற்றும் இளைய நண்பர்களின் உற்சாகத்தையும், ஊக்கத்தையும் அடையாளப்படுத்துகிறது.  நமது பஸ்தர் பகுதியில் ஒரு வித்தியாசமான ஒலிம்பிக் போட்டி தொடங்கப்பட்டிருப்பது பற்றிக் கேள்விப்பட்டிருக்கிறீர்களா?  ஆமாம்….. முதன்முறையாக பஸ்தர் ஒலிம்பிக்ஸ் வாயிலாக பஸ்தரில் ஒரு புதிய புரட்சி பிறப்பெடுத்து வருகிறது.  என்னைப் பொறுத்தமட்டில் மிக சந்தோஷமான விஷயம் என்னவென்றால், பஸ்தர் ஒலிம்பிக்ஸ் என்ற கனவு மெய்ப்பட்டிருக்கிறது என்பது தான்.  ஒருகாலத்தில் மாவோவாதிகளின் பயங்கரவாதம் பாதிக்கப்பட்ட பகுதியாக இருந்த பகுதியில் இது நடக்கிறது என்பது உங்களுக்கும் மகிழ்ச்சியை ஏற்படுத்தலாம்.  பஸ்தர் ஒலிம்பிக்ஸின் சின்னம், வன் பைன்ஸா ஔர் பஹாடி மைனா, அதாவது காட்டெருமையும், மலைப்பகுதி மைனாவும்.   இதிலே பஸ்தரின் நிறைவான கலாச்சாரம் பளிச்சிடுவதைக் காண முடிகிறது.  இந்த பஸ்தர் விளையாட்டு மகாகும்பமேளாவின் மூல மந்திரம் என்ன தெரியுமா? 

கர்ஸாய் தா பஸ்தர் பர்ஸாயே தா பஸ்தர்

அதாவது, விளையாடும் பஸ்தர் – வெல்லும் பஸ்தர்.

     முதன்முறையாக பஸ்தர் ஒலிம்பிக்ஸில் 7 மாவட்டங்களைச் சேர்ந்த ஒரு இலட்சத்துஅறுபத்து ஐயாயிரம் விளையாட்டு வீரர்கள் பங்கெடுத்துக் கொண்டார்கள்.  இது வெறும் எண்ணிக்கையல்ல.  இது நமது இளைய சமூகத்தின் உறுதிப்பாட்டின் கௌரவக்காதை.  தடகளப் போட்டிகள், கயிறு இழுத்தல், பூப்பந்தாட்டம், கால்பந்தாட்டம், ஹாக்கி, பளுதூக்குதல், கராட்டே, கபடி, கோகோ, கைப்பந்தாட்டம் என அனைத்து விளையாட்டுக்களிலும் நமது இளைஞர்கள் தங்களுடைய திறன்கள்-திறமைகளை வெளிப்படுத்தினார்கள்.  காரி கஷ்யப் அவர்களின் கதை எனக்கு மிகவும் உத்வேகம் அளித்தது.  ஒரு சின்னஞ்சிறிய கிராமத்திலிருந்து வரும் காரி அவர்கள் அம்பு எய்தல் போட்டியில் வெள்ளிப்பதக்கம் வென்றார்.  “பஸ்தர் ஒலிம்பிக்ஸ் போட்டியானது எங்களுக்கு விளையாட்டு மைதானத்தை மட்டுமல்ல, வாழ்க்கையில் முன்னேற ஒரு சந்தர்ப்பத்தை அளித்திருக்கிறது” என்று கூறியிருக்கிறார் இவர்.  சுக்மாவைச் சேர்ந்த பாயல் கவாசி அவர்களின் கூற்று ஒன்றும் குறைந்த ஊக்கத்தை அளிக்கவில்லை.  ஈட்டி எறிதல் போட்டியில் தங்கப்பதக்கம் வென்ற பாயல், “ஒழுக்கம் மற்றும் கடும் உழைப்பு வாயிலாக யாராலும் எதையும் சாதிக்க முடியும்” என்றார் இவர்.   சுக்மாவின் தோர்நாபாலைச் சேர்ந்த புனேம் ஸன்னா அவர்களின் கதை, புதிய பாரதத்துக்கே உத்வேகம் அளிப்பதாகும்.  ஒரு காலத்தில் நக்ஸல் தாக்கத்தால் கவரப்பட்ட புனேம் அவர்கள் இன்று சக்கர நாற்காலியில் விரைந்து பதக்கங்களை வென்று வருகிறார்.  இவருடைய சாகஸமும், தன்னம்பிக்கையும், அனைவருக்கும் கருத்தூக்கம் அளிக்க வல்லவை.  கோடாகாவின் அம்பெறிதல் போட்டியாளரான ரஞ்ஜூ ஸோரி அவர்கள், பஸ்தரின் இளைஞர்களின் சின்னமாகத் தேர்ந்தெடுக்கப்பட்டிருக்கிறார்.  நெடுந்தலைவுகளில் இருக்கும் இளைஞர்களை தேசிய அளவில் கொண்டு சேர்க்கும் சந்தர்ப்பத்தை பஸ்தர் ஒலிம்பிக்ஸ் அளித்து வருகிறது என்று கருதுகிறார்.

     நண்பர்களே, பஸ்தர் ஒலிம்பிக்ஸ் என்பது ஒரு விளையாட்டு நிகழ்ச்சி மட்டுமல்ல.  இங்கே வளர்ச்சி மற்றும் விளையாட்டுக்களின் சங்கமம் நடக்கிறது.  இங்கே நமது இளைஞர்களின் திறமைகள் ஒளி உமிழ்கின்றன, ஒரு புதிய பாரதத்தை அவர்கள் படைக்கிறார்கள்.  நான் உங்கள் அனைவரிடத்திலும் வேண்டிக் கொள்கிறேன் –

  • உங்கள் பகுதிகளில் இப்படிப்பட்ட விளையாட்டு நிகழ்ச்சிகளுக்கு ஊக்கம் தாருங்கள்.
  • #खेलेगा भारत – जीतेगा भारत என்பதிலே உங்களுடைய பகுதிகளில் விளையாட்டுத் திறமைகளைப் பற்றிய கதைகளைப் பகிர்ந்து கொள்ளுங்கள்.
  • விளையாட்டில் திறமைகள் உள்ளவர்கள் வட்டாரத்தில் இருந்தால் அவர்கள் முன்னேற வாய்ப்பளியுங்கள்.

நினைவில் கொள்ளுங்கள், விளையாட்டுக்கள் நமது உடல் வளர்ச்சியை மட்டுமல்லாமல், ஆரோக்கியமான மனநிலையையும் ஏற்படுத்தி, சமூகத்தின் இணைப்புக்களை-உறவுகளை மேலும் வலுவாக்க வல்லது.  ஆகையால் விளையாடுங்கள், நன்றாக விளையாடுங்கள்.

     எனதருமை நாட்டுமக்களே, பாரதத்தின் இருபெரும் சாதனைகள் இன்று உலகத்தின் கவனத்தை ஈர்த்திருக்கின்றன.  இதைக் கேட்டு நீங்கள் பெருமைப்படுவீர்கள்.  இந்த இருபெரும் வெற்றிகளும் ஆரோக்கியத் துறையில் கிடைத்திருக்கின்றன.  முதல் சாதனை என்னவென்றால், அது மலேரியாவுடனான போராட்டத்தில்.  மலேரியா என்ற நோய் 4000 ஆண்டுகளாக மனித சமூகத்திற்கே ஒரு பெரும் சவாலாக இருந்து வருகிறது.  சுதந்திரமடைந்த காலகட்டத்தில், இது நமது மிகப்பெரிய சுகாதாரச் சவால்களில் ஒன்றாக இருந்தது.  ஒரு மாதம் முதல் ஐந்து ஆண்டுகள் வரையிலான குழந்தைகளின் உயிர்குடிக்கும் அனைத்துத் தொற்றுநோய்களில் மலேரியாவுக்கு மூன்றாவது இடம்.   இன்று, நாட்டுமக்களை அனைவரும் இந்தச் சவாலை தீவிரத்தோடு எதிர்கொண்டார்கள், முன்னேற்றமும் கண்டார்கள் என்பதைப் பகிர்ந்து கொள்வதில் எனக்கு பேருவகை ஏற்படுகிறது.  உலக சுகாதார நிறுவனத்தின் அறிக்கை என்ன கூறுகிறது தெரியுமா?  பாரத நாட்டில் 2015ஆம் ஆண்டு தொடங்கி 2023ஆம் ஆண்டிற்குள்ளாக மலேரியா பாதிப்பு விஷயங்கள் மற்றும் இதனால் ஏற்படும் இறப்புக்களில் 80 சதவீத வீழ்ச்சி காணப்பட்டிருக்கிறது.   இது ஒன்றும் சிறிய சாதனையே அல்ல.  மேலும் மிகவும் மகிழ்ச்சிதரும் செய்தி என்னவென்றால் இந்த வெற்றி, நாட்டுமக்கள் அனைவரின் பங்களிப்புக் காரணமாகவே கிடைத்திருக்கிறது.  பாரத நாட்டின் அனைத்து இடங்களிலும், அனைத்து மாவட்டங்களிலும் அனைவரும் இந்த இயக்கத்தில் பங்கெடுத்தார்கள்.  அஸாமின் ஜோர்ஹாட்டில் தேயிலைத் தோட்டங்களில் நான்காண்டுகள் முன்புவரை மக்களின் கவலைக்குக் காரணமாக மலேரியா இருந்துவந்தது.  ஆனால் இதை வேரடி மண்ணோடு கெல்லி எறிய தேயிலைத் தோட்டத்தில் வசிப்பவர்கள் ஒன்று திரண்ட போது, இதில் கணிசமான அளவுக்கு வெற்றியை ஈட்ட முடிந்தது.  தங்களுடைய இந்த முயற்சியில் அவர்கள் தொழில்நுட்பத்தோடு கூட, சமூக ஊடகங்களையும் முழுமையாகப் பயன்படுத்தினார்கள்.   இதைப் போலவே ஹரியாணாவின் குருக்ஷேத்திரம் மாவட்டவாசிகளும் கூட மலேரியாவைக் கட்டுப்படுத்த மிக நேர்த்தியான மாதிரி ஒன்றினை முன்வைத்தார்கள்.  இங்கே மலேரியாவைக் கண்காணிப்பதில் மக்களின் பங்களிப்பு கணிசமாக வெற்றி பெற்றிருக்கிறது.  தெருமுனை நாடகங்கள், வானொலி ஆகியவை வாயிலாக செய்திகள் ஓங்கி ஒலிக்கப்பட்டன, இதன் காரணமாக கொசுக்களின் இனப்பெருக்கம் குறைய கணிசமாக உதவியது.  நாடெங்கிலும் இப்படிப்பட்ட முயற்சிகளால் தான் நம்மால் மலேரியாவுக்கு எதிரான போராட்டத்தை முன்னேற்ற முடிந்தது.

 

     நண்பர்களே, நம்முடைய மனவுறுதிப்பாடு மற்றும் விழிப்புணர்வு காரணமாக நம்மால் எந்த அளவுக்கு சாதிக்க முடியும் என்பதற்கான இரண்டாவது எடுத்துக்காட்டுத் தான் புற்றுநோயோடு போர்.  உலகின் பிரபலமான மருத்துவ சஞ்சிகையான Lancetஇன் ஆய்வு, உள்ளபடியே நம்பிக்கை அளிக்கவல்லது.  இந்த சஞ்சிகைப்படி இப்போது பாரதத்தில், சரியான காலத்தில் புற்றுநோய்க்கான சிகிச்சையைத் தொடங்குவதற்கான சாத்தியக்கூறு கணிசமாக அதிகரித்து விட்டது.  குறித்த காலத்தில் என்றால், புற்றுநோயால் பாதிக்கப்பட்டவர்களுக்கான சிகிச்சை 30 நாட்களுக்கு உள்ளாகத் தொடங்குவது என்பது தான்.  மேலும் இதில் பெரிய பங்களிப்பை அளித்துவருவது ஆயுஷ்மான் பாரத் திட்டம் தான்.  இந்தத் திட்டத்தின் காரணமாக, புற்றுநோயாளிகளில் 90 சதவீதம் பேரால், குறித்த காலத்தில் சிகிச்சையை மேற்கொள்ள முடிகிறது.  இது எப்படி நடந்தது என்றால், முன்பெல்லாம் பணத்தட்டுப்பாடு காரணமாக ஏழை நோயாளிகளால் புற்றுநோய்ப் பரிசோதனையில், சிகிச்சை மேற்கொள்ளத் தயக்கம் காட்டினார்கள்.  இப்போதோ ஆயுஷ்மான் பாரத் திட்டம் அவர்களுக்கு வரப்பிரசாதமாக ஆகியிருக்கிறது.  இப்போது அவர்கள் முன்வந்து சிகிச்சை மேற்கொள்ள வருகிறார்கள்.  ஆயுஷ்மான் பாரதம் திட்டம் புற்றுநோய் சிகிச்சையில் ஏற்படும் பணப்பற்றாக்குறை என்ற பிரச்சனையைக் கணிசமாகக் குறைத்திருக்கிறது.  மேலும் ஒரு நல்ல விஷயம் என்னவென்றால் இன்றைய காலத்தில், புற்றுநோய்க்கான சிகிச்சை தொடர்பாக மக்கள் முன்பை விட அதிக விழிப்புணர்வோடு இருக்கிறார்கள் என்பது தான்.  இந்தச் சாதனைக்கான பாராட்டுக்கள் நமது உடல்பராமரிப்பு முறை, மருத்துவர்கள், செவிலியர்கள், தொழில்நுட்ப பணியாளர்கள், குடிமக்களான சகோதர சகோதரிகள் அனைவருக்கும் சொந்தமானது.  அனைவரின் முயற்சியால் மட்டுமே புற்றுநோயை முறியடிக்கும் உறுதிப்பாடு மேலும் பலப்பட்டிருக்கிறது.  விழிப்புணர்வை உண்டாக்குவதில் தங்களுடைய முதன்மையான பங்களிப்பை அளித்த அனைவருக்கும் கூட இந்த வெற்றிக்கான பாராட்டுக்கள் சேரும்.

 

     புற்றுநோயோடுடனான போராட்டத்தில் ஒரே மந்திரம் – விழிப்புணர்வு, செயல்பாடு, உத்திரவாதம்.  விழிப்புணர்வு அதாவது புற்றுநோய் மற்றும் அதன் அறிகுறிகள் தொடர்பான விழிப்புணர்வு, செயல்பாடு அதாவது காலத்தில் ஆய்வு மற்றும் சிகிச்சை, உத்திரவாதம் அதாவது நோயாளிகளுக்கு அனைத்து உதவிகளும் கிடைக்கும் என்ற நம்பிக்கை.  வாருங்கள், நாமனைவரும் இணைந்து, புற்றுநோய்க்கு எதிரான இந்தப் போரை இன்னும் விரைவாக முன்னெடுத்துச் செல்வோம், அதிக அளவு நோயாளிகளுக்கு உதவுவோம்.

 

     என் மனம்நிறை நாட்டுமக்களே, ஒடிஷாவின் காலாஹாண்டியின் ஒரு முயற்சி குறித்து இன்று நான் உங்களோடு பரிமாறிக்கொள்ள விரும்புகிறேன், குறைந்த நீரில் குறைந்த ஆதாரங்களைத் தாண்டி, எப்படி ஒரு புதிய வெற்றிக்கதை எழுதப்படுகிறது என்பது தான் இது.  இது தான் காலாஹாண்டியின் காய்கறிப் புரட்சி.  இந்த இடத்திலிருந்து, ஒரு காலத்தில் விவசாயிகள் வெளியேறும் நிலைக்குத் தள்ளப்பட்டார்கள்; ஆனால் இங்கே இன்றோ, காலாஹாண்டியின் கோலாமுண்டா தொகுதியே கூட காய்கறி மையமாக ஆகி வருகிறது.  எப்படி நிகழ்ந்தது இந்த மாற்றம்?  இதன் தொடக்கம் வெறும் பத்து விவசாயிகளின் ஒரு சின்ன சமூகத்தில் நடந்தது.  இந்தச் சமூகம் இணைந்து, FPO உற்பத்தியாளர் விவசாயிகள் அமைப்பு ஒன்றை நிறுவினார்கள், விவசாயத்தின் நவீன உத்திகளைப் பயன்படுத்தி இன்று இவர்களின் இந்த உற்பத்தியாளர் விவசாயிகள் அமைப்பு, கோடிக்கணக்கான ரூபாய் அளவுக்கு வியாபாரம் செய்து வருகிறது.  இன்று 200க்கும் மேற்பட்ட விவசாயிகள் இந்த அமைப்போடு இணைந்திருக்கிறார்கள், இதிலே 45 பெண் விவசாயிகளும் அடங்குவார்கள்.  இவர்கள் இணைந்து 200 ஏக்கரில் தக்காளி சாகுபடியை மேற்கொண்டு வருகிறார்கள், 150 ஏக்கர்பரப்பில் பாகற்காயை சாகுபடி செய்கிறார்கள்.   இந்த அமைப்பின் ஆண்டுவருவாயும் கூட ஒண்ணரை கோடியையும் தாண்டி விட்டது.  இன்று காலாஹாண்டியின் காய்கறிகள், ஒடிஷாவின் பல்வேறு மாவட்டங்களில் மட்டுமல்ல, மேலும் பிற மாநிலங்களுக்கும் அனுப்பி வைக்கப்படுகின்றன.  அடுத்து அந்தப்பகுதி விவசாயிகள் இப்போது உருளை, வெங்காயம் ஆகியவற்றை விளைவிக்கும் புதிய உத்திகளைக் கற்கத் தொடங்கி விட்டார்கள்.

    

     நண்பர்களே, காலாஹாண்டியின் இந்த வெற்றி நமக்கெல்லாம் உறுதிப்பாட்டின் சக்தி மற்றும் சமூகமாக இணைந்துபுரியும் முயற்சியால் சாதிக்கக்கூடியவற்றை விளக்குகிறது.  இப்போது நான் உங்களிடம் வேண்டிக் கொள்வதெல்லாம் –

  • உங்களுடைய பகுதியில் விவசாயிகள் உற்பத்தியாளர் அமைப்பை ஊக்கப்படுத்துங்கள்.
  • விவசாயிகள் உற்பத்தியாளர்கள் அமைப்புக்களோடு இணையுங்கள், அவற்றைப் பலப்படுத்துங்கள்.

 

நினைவில் கொள்ளுங்கள், ஒரு சிறிய தொடக்கம் கூட பெரியதொரு மாற்றத்தை ஏற்படுத்த முடியும்.  மனவுறுதியும், கூட்டுமுயற்சியும் மட்டுமே போதுமானது.

 

     நண்பர்களே, இன்றைய மனதின் குரலில் எப்படி நமது பாரதம் பன்முகத்தன்மையில் ஒற்றுமையோடு முன்னேறி வருகிறது என்பதைக் கண்டோம்.  அது விளையாட்டு மைதானமாகட்டும், அறிவியல் களமாகட்டும், உடல்நலம் அல்லது கல்வித் துறையாகட்டும் – அனைத்துத் துறைகளிலும் பாரதம் புதிய சிகரங்களைத் தொட்டு வருகிறது.  நாம் ஓர் குடும்பத்தவரைப் போல இணைந்து, அனைத்துச் சவால்களையும் எதிர்கொண்டு, புதிய வெற்றிகளை ஈட்டியிருக்கிறோம்.   2014ஆம் ஆண்டு தொடங்கப்பட்ட மனதின் குரலின் 116 பகுதிகளைக் காணும் போது, தேசத்தின் சமூகசக்தியின் ஒரு உயிர்ப்புடைய ஆவணமாக மனதின் குரல் ஆகியிருக்கிறது என்பதை என்னால் உணர முடிந்தது.  நீங்கள் அனைவரும்தான் இந்த நிகழ்ச்சியை ஏற்றுக்கொண்டு, உங்களுடையதாக ஆக்கிக் கொண்டீர்கள்.  ஒவ்வொரு மாதமும் நீங்கள் உங்களுடைய கருத்துக்களையும், சிந்தனைகளையும், முயற்சிகளையும் பகிர்ந்து கொண்டீர்கள்.  ஒரு சமயம் ஒரு இளம் படைப்பாளியின் கருத்து நம்மைக் கவர்ந்தது, இன்னொரு சமயத்தில் ஒரு பெண் குழந்தையின் சாதனைகள் நம்மைப் பெருமைப்படச் செய்தன.  உங்களனைவரின் பங்களிப்புதான் தேசத்தின் மூலாமூலைகளெங்கும் இருக்கும் ஆக்கப்பூர்வமான சக்தியை ஒருங்கிணைக்கிறது.  மனதின் குரல் இந்த ஆக்கப்பூர்வமான ஆற்றலை மிகப்படுத்தும் அல்லது மிகுவிக்கும் மேடையாக ஆகியிருக்கிறது.  இப்போது 2025 கதவைத் தட்டிக் கொண்டிருக்கிறது.  வரும் ஆண்டில் மனதின் குரல் வாயிலாக நாம் மேலும் உத்வேகம் அளிக்கும் முயற்சிகளைப் பரிமாறிக் கொள்வோம்.  நாட்டுமக்களின் ஆக்கப்பூர்வமான சிந்தனையும், புதுமைகள் கண்டுபிடிக்கும் உணர்வும் நம் நாட்டை மாபெரும் உயரங்களுக்குக் கொண்டு போகும் என்பதில் எனக்கு நம்பிக்கை உள்ளது.  நீங்கள் உங்களுக்கருகே இருக்கும் தனித்தன்மை வாய்ந்த முயற்சிகளை #Mannkibaat என்பதில் பகிர்ந்து வாருங்கள்.  அடுத்த மாதம் மனதின் குரலில் ஒருவருக்கு ஒருவர் பகிர்ந்து கொள்ள ஏராளமான விஷயங்கள் இருக்கும் என்பதை நான் நன்கறிவேன்.  உங்கள் அனைவருக்கும் 2025ஆம் ஆண்டுக்கான பலப்பல நல்வாழ்த்துக்கள்.  உடல்நலத்தோடு இருங்கள், சந்தோஷமாக இருங்கள், உடலுறுதி இந்தியா இயக்கத்தில் நீங்களனைவரும் உங்களை இணைத்துக் கொள்ளுங்கள், நீங்களும் உடலுறுதியோடு இருங்கள்.  வாழ்க்கையில் தொடர்ந்து முன்னேற்றம் காணுங்கள்.  பலப்பல நன்றிகள்.