जापान में बसे हुए सभी मेरे भारतीय भाइयों एवं बहनों, 

ये जो बच्‍चे गीत गा रहे थे, मैं करीब 25-30 साल पहले हर दिन इस गीत को गुनगुनाता था। यह मेरा बड़ा प्रिय गीत था। तो आज मेरी सारी थकान उतर गई और उसी मिजाज से बच्‍चे गा रहे थे, जो ओरिजिनल है। जबसे मैंने सुना है, वैसे ही मैं भी गुनगुनाता था। आज भी मेरा मन कर गया तो आपके साथ जुड़ गया था। इन बच्‍चों को बहुत बहुत बधाई। ये समझ लेते हैं, जो मैं बोल रहा हूं? 

जापान मैं पहले भी आया हूं। यहां के भारतीय समाज से भी मेरा मिलने का अवसर मुझे हमेशा मिला है। आप लोगों को सुनने का भी अवसर मिला है और कुछ कहने का भी अवसर मिला है। दुनिया के किसी भी देश में जाइए, तो अगर कोई भी भारतीय मिलता है तो, दो-तीन चीजें प्रमुख रूप से आती हैं। साफ एयरपोर्ट पर उतरे और ऐसा हुआ। टैक्‍सीवाला मिला, तो ऐसा हुआ। साफ शौचालय, वाश रूम। ये चार-पांच चीजें कॉमन सुनने को मिलती हैं। और बहुत स्‍वाभाविक है कि इतने सालों से यहां रहने बाद, यह सामान्य है और इसलिए मैंने देश में सबसे बड़ा एक काम जो उठाया है, वह है स्‍वच्‍छ भारत का। 

कठिन काम है, लेकिन किसी को तो शुरू करना चाहिए। मैंने देशवासियों के सामने एक बात रखी है कि 2019 जो, महात्‍मा गांधी के 150वीं जयंती का वर्ष है और महात्‍मा जी को सबसे प्रिय अगर कोई चीज थी तो सफाई थी। आपने महात्‍मा गांधी के जीवन को पढ़ा होगा, कहीं बचपन में कुछ बातें सुनने को मिली होगी तो ये बात हमेशा आती होगी। वे सफाई के संबंध में कभी कंपरमाइज नहीं करते थे। बड़े अग्रणी रहते थे। आप वर्धा का आश्रम देखिए, साबरमति का आश्रम देखिए। बहुत ही सिंपल थे। व्‍यवस्‍थाओं की दृष्टि से कोई बहुत नहीं था, लेकिन सफाई के संबंध में कोई कंपरमाइज नहीं करते थे। इसलिए मैंने देशवासियों के सामने एक बात रखी कि महात्‍मा गांधी ने हमें आजादी दिलाई, इतनी बड़ी सौगात महात्‍मा गांधी जी हमें दे के गए, हमने महात्‍मा जी को क्‍या दिया ? कुछ तो हमें लौटाना चाहिए। और इसलिए मैं देशवासियों से कहता रहता हूं कि 2019 तक ऐसा साफ-सुथरा हिंदुस्‍तान बना दें और 2019 में एकदम साफ-सुथरा हिंदुस्‍तान महात्‍मा जी को अर्पित करें। 

तो आप भी अपने रिश्‍तेदारों को चिट्ठी लिखते होंगे यहां से, लेकिन अब चिट्ठी तो नहीं लिखते होंगे, ईमेल करते होंगे, वाट्स अप पर बात करते होंगे। ट्वीटर पर दोस्‍ती बनाई होगी। माध्‍यम कोई भी हो लेकिन बात जरूर पहुंचाइए आप कि हमारे जापान में ऐसी सफाई होती है, आप भी यह काम कीजिए। अपने परिवार में कीजिए, अपने अड़ोस-पड़ोस में कीजिए। ये भी करने जैसा काम है, और मुझे विश्‍वास है कि आप भी इस काम को अवश्‍य करेंगे। 

भारतीय समुदाय की एक विशेषता रही है और हम लोग इस बात का गर्व जितनी मात्रा में करना चाहिए, नहीं करते हैं। बड़ी दबी जबान में, हल्‍के-फुल्‍के, ऐसे करते हैं। विश्‍व में कहीं पर भी अगर भारतीय समाज गया, 100 साल पहले गया, 150 साल पहले गया, कहीं पर भी गया हो, किसी भी देश से, उस समाज से अब तक कोई शिकायत नहीं आई है कि हिंदुस्‍तानियों ने आकर ऐसा कर दिया, हमें लूट लिया। ये छोटे संस्‍कार नहीं हैं जी, ये संस्‍कार छोटे नहीं हैं। 

विश्‍व का कोई भी समाज, कहीं पर भी व्‍यक्तिगत रूप से किसी से कोई गलती हुई होगी, अच्‍छा बुरा हो गया होगा। लेकिन समाज के रूप में दुनिया में कहीं से कोई शिकायत भारतीय समुदाय के लिए नहीं आई है। ऊपर से सुनने को क्‍या मिलता है भई, ये बड़े लॉ एबाइडिंग सिटीजंस हैं, बहुत ही सरल हैं, हमारी इकोनोमी में कंट्रीब्‍यूट करते हैं, लेकिन समस्‍या कभी पैदा नहीं करते हैं। 

ये हमारी विरासत है। हमारी पूंजी है और पीढ़ी दर पीढ़ी संस्‍कारों से यह बनी है। और इसका श्रेय आप सबको जाता है। आपने ये करके दिखाया है। इसलिए मैं विशेष रूप से आपको बधाई देता हूं, आपका अभिनंदन करता हूं। 

एम्‍बेसी में आ करके भारत क्‍या है, जल्‍दी कोई समझ नहीं पाएगा। लेकिन आपसे मिल कर के तुरंत समझ पाएगा कि भारत क्‍या है। आप भारत को कैसे जीते हैं, आप भारत को कैसे अभिव्‍यक्‍त करते हैं। भारत की बात को गौरव से कैसे प्रस्‍तुत करते हैं। उस पर निर्भर करता है। 

जमाना ऐसा था मुझे याद है, बहुत साल पहले मैं ताईवान गया था, तब तो मैं इस सरकारी नौकरी में नहीं था। ऐसे ही, एक नागरिक के नाते गया था। और सात-आठ दिन, मेरे पास उन दिनों समय भी बहुत रहता था। कोई काम-धाम तो था नहीं। मेरे साथ वहां की सरकार ने एक इंटरप्रेटर लगाया था। इंटरप्रेटर पढ़ा लिखा था, कंप्‍यूटर इंजीनियर था। मेरे साथ इंटरप्रेटर के रूप में काम करता था। उसकी मदद के बिना हमारी गाड़ी चलती नहीं थी। दोस्‍ती हो गई हमारी, 5-6 दिन में। पहले तो बड़ा ही नियम से रहता था, प्रोटोकॉल में रहता था। शायद वह एमईए डिपार्टमेंट का ही होगा। जिसमें सबसे ज्‍यादा प्रोटोकॉल होता है। वह भी ऐसे ही रहता था। थोड़ा सा भी इधर-उधर खिसकता नहीं था। लेकिन 5-6 दिन में मेरा व्‍यवहार देखकर के उसकी लगा कि हां ये आदमी दोस्‍ती करने जैसा है। फिर दोस्‍ती हो गई। बातें करने लगा। आखिर एक-दो दिन बाकी थे तो उन्‍होंने एक सवाल पूछा। बोला, साहब, आपको बुरा न लगे तो मुझे कुछ पूछना है, मैंने कहा जरूर पूछिये। उन्‍होंने कहा- बुरा नहीं लगेगा, मैंने कहा पूछो भाई, कुछ भी बुरा नहीं लगेगा। बोले, सचमुच में आपको बुरा नहीं लगेगा, उसने बड़ा डरते-डरते ये पूछा, फिर मुझे कहता है मैं ताईवान की 20वीं सदी के उत्‍तरार्ध की घटना कह रहा हूं आपको। ब्रिटिश सेंचुरी के लास्‍ट इयर की। उन्‍होंने कहा है कि आज भी भारत में जादू-टोना वाले लोग रहते हैं? आज भी भारत में ब्‍लैक मैजिक चलता है ? आज भी भारत में सांप-छूछूंदर वाला सारा खेल चलता है और वो ये मानता था कि हिंदुस्‍तान में संपेरे लोग ही रहते हैं। यानी, आप कल्‍पना कीजिए, दुनिया इतनी बदल चुकी है, वह एक कंप्‍यूटर इंजीनियर था, लेकिन उस देश में हमारी छवि यह थी। 

मैंने कहा भाई, अब तो हम सांप वाले नहीं रहे। हमारा बहुत डिवेल्‍यूएशन हो गया। पीढ़ी दर पीढ़ी हम और हल्‍के-फुल्‍के हो गए। बेचारा समझा नहीं। मैंने कहा, पहले हम सांप से खेलते थे, अब हम माउस से खेलते हैं। पहले हम और सांप का खेल चलता था और अब हमारा डिवेल्‍यूएशन, डिग्रेडेशन होते होते हम माउस से ऐसे जुड़ गए कि अब हम माउस को हिलाते हैं, तो दुनिया पूरी हिलती है। 

हमारे देश 20- 22- 24 साल के नौजवानों ने दुनिया को अचंभित कर दिया, इंफोर्मेशन टेक्‍नोलॉजी के क्षेत्र में। पूरे विश्‍व को भारत की ओर देखने का नजरिया बदलना पड़ा। कोई सरकार, कोई पीआर एजेंसी, अरबों-खरबों का बजट जो काम नहीं कर सकता था, वह हिंदुस्‍तान के 20- 22 साल के नौजवानों ने कंप्‍यूटर पर उंगली घुमा-घुमा कर, दुनिया का रूप बदल दिया है। 

ये ताकत है देश की। इसका गर्व करता है इंडिया। विश्‍व के सामने हमें अपने इंडिया पर गर्व होता है। आप दुनिया का कोई भी देश देख लीजिए, क्‍या दुनिया के देशों में कठिनाइयां नहीं होगीं, होगीं। तकलीफें नहीं होगीं, होगीं। अच्‍छे-बुरे इंसान नहीं होंगे? होंगे। लेकिन विश्‍व का वही समाज आगे बढ़ता है जो अपने अच्‍छाइयों को लेकर के जीता है। रोने बैठता नहीं है। छोड़ो यार। पता नहीं पिछले जन्‍म में क्‍या पाप किया है, हिंदुस्‍तान में जन्‍म लिया। अच्‍छा होता मैं किसी और देश में पैदा हुआ होता। ऐसा समाज दुनिया में कभी कुछ नहीं कर सकता हैं। 

अपने पास जो भी है, उसके लिए जो गर्व करता है, स्‍वाभिमान से जीता है और इसलिए हम दुनिया में कहीं भी रहें, दुनिया भी सारी अच्‍छी चीजों पर गर्व करें, लेकिन अपने स्‍वाभिमान के प्रति कभी भी कंपरमाइज नहीं करना चाहिए। यह अपने आप में बहुत बड़ी ताकत है। देखिए, भगवान राम श्रीलंका गए थे। लंका गए, सोने की लंका गए। आखिर वो भी इंसान तो थे। कौन मोहित नहीं हो जाता। लेकिन सोने की नगरी में विजयी हो के खड़े रहने के बाद भी वह कहते क्‍या हैं, ‘स्‍वर्गादपि गरियसी’। अयोध्‍या के लिए यह भाव था उनके मन में। मेरा अयोध्‍या जैसा भी हो, गरीबी होगी, कठिनाइयां होंगी, भले तुम्‍हारी लंका सोने की हो, तुम्‍हें मुबारक। मेरे लिए तो ‘स्‍वर्गादपि गरियसी’। ये जो सबक है, संदेश है, वह हमारी सबसे बड़ी ताकत है। 

मैं चाहूंगा, विश्‍वभर में फैला हुआ हिंदुस्‍तान का कोई भी नागरिक हो, उसके हृदय में यह भाव बना रहना चाहिए। जिन लोगों ने, कैरिबियन कंट्रीज में हमारे लोग गए, सवा सौ-डेढ़ सौ साल पहले गए, मजदूर के रूप में गए। अंग्रेज उनको मजदूर के रूप में उठा के ले जाते थे। जो जेल में कैदी थे, उनको उठा के ले जाते थे। वहां छोड़ देते थे। उन लोगों ने वहां जाकर देश बनाए। वहां जाकर देखिए। देखिए आज भी एक रामायण की चौपाइयों के भरोसे उन्‍होंने हिंदुस्‍तान के साथ अपना नाता बनाये रखा है। यानी अपना जो मूल है, नाभी से ही तो प्राण तत्‍व मिलता है, नाभी से कभी नाता टूटना नहीं चाहिए। नाभी से नाता कैसे बना रहे, इसके लिए निरंतर प्रयास होना चाहिए। 

हम किसी भी देश में क्‍यों न हो। लेकिन ये तो तय कर सकते हैं कि कम से कम खाना खाते समय शाम को सब इकट्ठे बैठेंगे। तीन पीढ़ी होगी तो तीन पीढ़ी, दो पीढ़ी होगी तो दो पीढ़ी, चार पीढ़ी होगी तो चार पीढ़ी, कम से कम सब खाना खाने के टेबल पर हम अपनी मातृभाषा में बात करेंगे। यह कर सकते हैं क्‍या ? 

बात छोटी है लेकिन ये इसकी बहुत बड़ी ताकत है। और कभी ना कभी एक कंपीटिशन करनी चाहिए विदेश में और मैं चाहूंगा कि आप करेंगे विदेश में। हमारी बच्चियां है, साड़ी पहनने की कंपीटिशन। अच्‍छी से अच्‍छी साड़ी कौन पहनता है। जल्‍दी से जल्‍दी साड़ी कौन पहनता है। ईनाम दीजिए। बच्‍चों के लिए साफा बांधने की प्रैक्टिस। अच्‍छे से अच्‍छा साफा कैसे बांधते हैं, पगड़ी कैसे बांधते हैं। देखिए इन चीजों से लगाव पैदा होता है। कंपीटिशन का कंपीटिशन होगा, खेल का खेल होगा, लेकिन आप की नई पीढ़ी को संस्‍कार मिल जाएगा। और इसलिए चीजें छोटी हो, लेकिन छोटी-छोटी चीजों का, कभी भारतीय व्‍यंजनों का कंपीटिशन। कंपलसरी नहीं पीढ़ी ही बनाकर लाये, पुराने लोग जो हिंदुस्‍तान से आए, वो नहीं। जो यहां पैदा हुए, बढ़े, उनको बनाओ। चलो रोटी बनाके ले आओ। सब्‍जी बना के ले आओ। दाल बना, कैसे बनाते हैं। 

आपको आश्‍चर्य होगा कि मैं ऐसी छोटी-छोटी बातें कर रहा हूं। ये कोई प्रधानमंत्री है कोई ? लेकिन मुझे मालूम है कि ये छोटी-छोटी चीजों की जो ताकत होती है, वही दुनिया बदलती है। और हमारी नई पीढ़ी को इसके लिए तैयार करना चाहिए। अगर आप इसको करेंगे तो अच्छा होगा, बाकी तो मैं इस देश का मेहमान था, भारत की बात ले के आया था, भारत की बात सुनाने आया था। 

जापान की बातें सुनने समझने की कोशिश की। बहुत अच्‍छे निर्णय हुए। जापान के साथ बहुत अच्‍छे निर्णय हुए। हिंदुस्‍तान में ट्रिलियन शब्‍द शायद पहली बार चर्चा में आएगा। कानों पर मिलियन-बिलियन तो थोड़ा बहुत आने लगा है। ट्रिलियन शब्‍द पहली बार वहां चर्चा में आया। 3.5 ट्रिलियन येन, करीब 35 बिलियन डालर, यानी कि 2 लाख 10 हजार करोड़ रुपये, आने वाले दिनों में जापान भारत में निवेश करेगा। भारत के विकास के अंदर जुड़ेगा। ये अपने आप में बहुत बड़ा निर्णय है। 

कुछ एरिया बड़े सेंसेटिव होते है, जो जिसको दो देशों को जरा अशंका का माहौल रहता है। हमारे देश की छह कंपनियां ऐसी थी, जो प्रोडक्‍शन करती थी, वह जापान में प्रतिबंधित थी। जापान के साथ उस विषय से हमारा लंबे अरसे से झगड़ा चलता था। मुझे सबसे ज्‍यादा आनंद इस बात का है कि जापान ने हम पर भरोसा किया। भरोसा बहुत बड़ी ताकत होती है। दुनिया के संबंधों में भरोसा एक ऐसा केमिकल है जी, जो फेविकल से भी ज्‍यादा घनिष्‍ट दोस्‍ती बनाता है। गहरी दोस्‍ती बनाती ह। और उस भरोसे के कारण जापान ने उन छह हमारे जो कंपनियों के उत्‍पादन पर जो प्रतिबंध लगाया था, उसे हटा दिया। 

मैं पैदा तो गुजरात में हुआ हूं, गुजरात ने मुझे पाला-पोसा, बड़ा किया, लेकिन इन दिनों में काशी की सेवा में हूं। वाराणसी का मैं एमपी हूं। मेरा एक दायित्‍व भी बनता है। वाराणसी, वेद काल से भी पुरानी नगरी मानी जाती है। शायद दुनिया की सबसे पुरानी नगरी के रूप में उसका वर्णन आता है। क्‍योटो भी काफी पुरानी नगरी है। यहां भी हजारों मंदिर हैं। यहां पर भी उसकी आत्‍मा जो है, स्पिरिचुअल आत्‍मा जो है, उसको संभालते हुए उसका मोडर्नाइज किया। मेरे मन में रहता था कि वाराणसी में नहीं हो सकता है ऐसा ? इसलिए, इस यात्रा में मैंने कुछ समय क्‍योटो के लिए भी निकाला। मेरे लिए खुशी की बात है कि प्रधानमंत्री सारे प्रोटोकाल छोड़कर के क्‍योटो आए। मुझे सब जगह दिखाने के लिए ले गए। काफी समय मेरे साथ बिताया। हल्‍की-फुल्‍की, बहुत सी गप्‍पें, गोष्‍ठी, बातें हुई। हल्‍का-फुल्‍का माहौल रहा। लेकिन मेरा सपना था, मैं एक वाराणसी का जन प्रतिनिधि हूं, तो वहां के लिए भी कुछ में करूं। 

क्‍योटो के साथ जी हमारा जो एमओयू हुआ है, और विशेषकर के उन परंपराओं को बनाये रखते हुए, हेरीटेज को पूरी तरह संभालते हुए और क्‍योटो एक ऐसी सिटी है, जिसके 17 स्‍ट्रक्‍चर्स ऐसे हैं, जो वर्ल्‍ड हेरीटेज में है। एक नगर के 17 स्‍ट्रक्‍चर्स वर्ल्‍ड हेरिटेज में हों, दुनिया में कहीं नहीं हो सकता है। ऐसी वो नगरी है। उससे हम बहुत कुछ सीख सकते हैं। क्‍योटो वाराणसी दोनों एज ए नगर ‘हेरीटेज सिटी’ में हैं। तो उसके दिशा में मैंने थोड़ा समय दिया था। मैं मानता हूं कि आने वाले दिनों में जापान के मार्गदर्शन से उस काम को हम भारत में कर पाएंगे। 

मेरे हिसाब से यात्रा बहुत ही सफल रही है। बहुत ही सफल।मैं इस यात्रा को एक और रूप में भी विशेष देखता हूं। समान्‍य रूप के प्रमुख लोग मिलते हैं तो एक दूसरे को गिफ्ट देते हैं। आपको जानकर के खुशी होगी, मैं गिफ्ट देने के लिए गीता ले आया था, भगवद् गीता। मैं नहीं जानता हूं कि हिंदुस्‍तान में इस पर क्‍या होगा, शायद एक टीवी डिबेट चलेगी इस पर। हमारे सारे सेक्‍यूलर मित्र बड़ा तूफान खड़ा कर देंगे कि मोदी अपने आप को समझता क्‍या है। गीता लेकर गया है, मतलब उसने उसको भी कम्‍यूनल कर दिया है। 

खैर उनकी भी तो रोजी रोटी चलनी चाहिए और अगर हम नहीं रहे तो उनकी कैसे चलेगी। लेकिन पता नहीं आज-कल ऐसे-ऐसे विषयों पर विवाद करते हैं। लेकिन, मेरा कमिटमेंट है, मेरा कनविक्‍शन है, मैंने निर्णय किया कि मैं दुनिया के किसी भी महापुरूष को मिलूंगा तो मैं ये दूंगा। 

मैंने जापान में आज यहां के महाराजा मिलने गया तो मैंने उनको भी गीता भेंट की। क्‍योंकि मेरे पास इससे बढ़कर के देने को कुछ नहीं है। दुनिया के पास भी इससे बढ़ कर पाने को कुछ नहीं है। भारत और जापान की मैत्री, इसका एक विशेष रूप है। जापान के लोगों के दिलों में भारत के लिए एक विशेष स्‍थान है। आप लोग यहां रहते हैं, आपका तो होगा ही। लेकिन उसका कारण हमारे लोगों के कुछ विशेष व्‍यवहार रहे होंगे। मुझे यहां बताया गया कि जब हिरोशिमा की घटना हुई तो उसके बाद दुनिया के कई देशों के लोग मदद को यहां आए थे। सब खत्‍म हो चुका था। अकेले हिन्‍दुस्‍तान के जो वालेंटियर्स आए थे, वही अकेले ऐसे थे जो डेड बॉडी को अपने हाथों से उठाते थे। बाकी दुनिया से आए हुए मशीन से सारी चीजें हटाते थे। भारत के लोग हिरोशिमा के उस आपत्ति में उनके शरीर को अपने हाथों से उठाकर ले जाते थे। इस बात का उनके मन पर प्रभाव आज भी है, कि यह देश जीवित जापानी के ही नहीं, मृतक जापानी को भी उतना ही सम्‍मान देता है, ये शिक्षा दी थी। चीजें छोटी होती है, लेकिन और इसके कारण एक ऐसा इमोशनल बाइंडिंग है। 

इस मैत्री को आगे बढ़ाने के पीछे एक वैश्विक परिदृश्‍य में बहुत अलग रूप देखता हूं। टर्मिनोलॉजिकली, मैं कोई डिप्‍लोमेट नहीं हूं। इसलिए मुझे इस टर्मिनोलोजी का कोई ज्ञान नहीं है कि वे लोग कैसे इसे सोचते होंगे। लेकिन मेरा जो रॉ विजन है, सामान्‍य समझ जो मेरी है, वो मुझे कहती है। सारी दुनिया कहती है कि 21वीं सदी एशिया की होगी। इसमें कोई कंफ्यूजन नहीं है। सब लोग बोलते है, दुनिया के टॉप मोस्‍ट सब लोग बोल चुके हैं कि 21वीं सदी एशिया की होगी। कोई आगे बढ़ के कहता है कि 21वीं सदी चाइना की होगी, कोई कहता है 21 वीं इंडिया की होगी। लेकिन इसमें कोई कंफ्यूजन नहीं है कि 21वीं एशिया की होगी। अब 21वीं सदी एशिया की होगी, यह तो कंफर्म है, लेकिन 21वीं सदी कैसी होगी, यह अभी कंफर्म नहीं है और वो कैसी होगी, यह उस बात पर डिपेंड करता है कि भारत और जापान की मैत्री कैसी होगी। भारत और जापान मिल कर के किन वैल्‍यूज को प्रोमोट करते हैं। विश्‍व को किस दिशा में ले जाने के लिए प्रयास करते हैं। उस पर 21 वीं सदी की दिशा, 21वीं सदी की दशा यह निर्भर रहने वाली है। उस अर्थ में, उस अर्थ में भारत और जापान की मैत्री का प्रभाव आने वाली पूरी शताब्‍दी पर रहने वाला है। 

आप जब जापान में रहते है तो इसकी ताकत क्‍या है, इस ताकत को समझ करके एक नागरिक के नाते, एक भारत में प्रतिनिधि के नाते जापानियों के दिल में किस प्रकार से हमारा जुड़ाव बढ़ता चले, और इस सपने को साकार करें। मुझे विश्‍वास है कि भारत के गौरव को बढ़ाने में आप लोगों का बहुत-बहुत योगदान रहेगा। 

दो छोटी चीजें मैं आपके सामने कहना चाहता हूं। हम इतने सालों से जापान में रहते हैं, एक संकल्‍प कर सकते हैं कि हमारे अपने प्रयत्‍न से कम से कम पांच जापानीज परिवार को हर वर्ष मैं हिंदुस्‍तान जाने के लिए, देखने के लिए प्रेरित करूंगा। कर सकते हैं क्या ? भारत सरकार जो टूरिज्‍म को प्रमोट नहीं कर सकती है, वह आप कर सकते हैं। आप मुझे बताइए, कितने 23000 बताए यहां, पूरे जापान में। अगर 23000 है, पूरे 5000 फैमिली हैं। 5000 फैमिली 5 परिवार को भेजे, मतलब 25000 फैमिली मतलब मोर देन 75000 टू वन लाख लोग, आपके प्रयत्‍न से हर वर्ष हिंदुस्‍तान आए, मुझे बताइए, वहां के गरीब को रोजी-रोटी मिलेगी कि नहीं मिलेगी, चाय बेचने वाले की चाय बिकेगी कि नहीं बिकेगी। आप भी चाहते हैं ना कि चाय बेचने वाले की चाय बिके। 

हम एक काम कर सकते हैं, लेकिन हम करते नहीं है। उनको समझायें, उनको विश्‍वास दें। और आप चलिये, हम आपको अता पता देते हैं, इन चार जगह पर जाके आइये, अच्‍छा लगेगा। देखिए सिर्फ विश्‍व में फैले हुए भारतीय प्रतिवर्ष पांच अपने साथी मित्र परिवारों को हिंदुस्‍तान भेजना शुरू करें, हिंदुस्‍तान का टूरिज्‍म दुनिया में कतई पीछे नहीं रहेगा। बड़ी सरलता से करने वाला काम है। 

दूसरी बात, अब तो दुनिया सारी सोशल मीडिया से जुड़ी हुई है, इंटरनेट से जुड़ी हुई है। मैंने प्रधानमंत्री कार्यालय में ‘माई गोव. एमआई.जीओवी’, एक इंटरैक्टिव वेबसाइट है। आप इसमें जाकर के डिटेल देखिए। आप एक ग्रुप के रूप में ज्‍वाइन करके भारत में क्‍या किया जा सकता है। बहुत कंस्‍ट्रक्टिव सुझाव डाइटेक्‍ट मुझे भेज सकते हैं। आपके मन में जो भी विचार आए लिख सकते हैं। यह एक ओपन फोरम है, बहुत ही नया कंसेप्‍ट है। ‘माई गोवमेंट’ यानी जनता कहती है, ‘मेरी सरकार’ है। उस मूड में उसको बनाया है। मैं चाहूंगा कि आप उसको स्‍टडी कीजिए। उसमें जिन विषयों को मैंने रेज किया है, आप उस पर अपना योगदान दीजिए। ये कंट्रीबूशन पूरे विश्‍व में फैले हुए अपने लोगों के द्वारा जितना कंट्रीब्‍यूशन मिलेगा, नए-नए आइडियाज भारत की प्रगति के लिए काम आएंगे। मैंने आपसे न येन मांगा है, न पाउंड मांगा है, न डॉलर मांगा है। उसके बावजूद भी आप देश की बहुत कुछ देश की सेवा कर सकते हैं। 

इसी एक अपेक्षा के साथ आप सबको मेरी बहुत-बहुत शुभकामनाएं।धन्‍यवाद। 

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December 26, 2024

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – I have written three Books, my main cause of writing books is i love reading. And I myself have this rare disease and I was given only two years to live but with help of my mom, my sister, my School, …… and the platform that I have published my books on which is every books, I have been able to make it to what I am today.

प्रधानमंत्री जी – Who inspired you?

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – I think it would be my English teacher.

प्रधानमंत्री जी – Now you have been inspiring others. Do they write you anything, reading your book.

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – Yes I have.

प्रधानमंत्री जी – So what type of message you are getting?

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – one of the biggest if you I have got aside, people have started writing their own books.

प्रधानमंत्री जी – कहां किया, ट्रेनिंग कहां हुआ, कैसे हुआ?

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – कुछ नहीं।

प्रधानमंत्री जी – कुछ नहीं, ऐसे ही मन कर गया।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – हां सर।

प्रधानमंत्री जी – अच्छा तो और किस किस स्पर्धा में जाते हो?

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – मैं इंग्लिश उर्दू कश्मीरी सब।

प्रधानमंत्री जी – तुम्हारा यूट्यूब चलता है या कुछ perform करने जाते हो क्या?

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – सर यूट्यूब भी चलता है, सर perform भी करता हूं।

प्रधानमंत्री जी – घर में और कोई है परिवार में जो गाना गाते हैं।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – नहीं सर, कोई भी नहीं।

प्रधानमंत्री जी – आपने ही शुरू कर दिया।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – हां सर।

प्रधानमंत्री जी – क्या किया तुमने? Chess खेलते हो?

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – हां।

प्रधानमंत्री जी – किसने सिखाया Chess तुझे?

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – Dad and YouTube.

प्रधानमंत्री जी – ओहो।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – and my Sir

प्रधानमंत्री जी – दिल्ली में तो ठंड लगता है, बहुत ठंड लगता है।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – इस साल कारगिल विजय दिवस की रजत जयंती मनाने के लिए मैंने 1251 किलोमीटर की साईकिल यात्रा की थी। कारगिल वार मेमोरियल से लेकिर नेशनल वार मेमोरियल तक। और दो साल पहले आजादी का अमृत महोत्सव और नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 125 वी जयंती मनाने के लिए मैंने आईएनए मेमोरियल महिरांग से लेकर नेशनल वार मेमोरियल नई दिल्ली तक साईकलिंग की थी।

प्रधानमंत्री जी – कितने दिन जाते थे उसमे?

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – पहली वाली यात्रा में 32 दिन मैंने साईकिल चलाई थी, जो 2612 किलोमीटर थी और इस वाली में 13 दिन।

प्रधानमंत्री जी – एक दिन में कितना चला लेते हो।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – दोनों यात्रा में maximum एक दिन में मैंने 129.5 किलोमीटर चलाई थी।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – नमस्ते सर।

प्रधानमंत्री जी – नमस्ते।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – मैंने दो international book of record बनाया है। पहला रिकॉर्ड मैंने one minute में 31 semi classical का और one minute में 13 संस्कृत श्लोक।

प्रधानमंत्री जी – हम ये कहां से सीखा सब।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – सर मैं यूट्यूब से सीखी।

प्रधानमंत्री जी – अच्छा, क्या करती हो बताओं जरा एक मिनट में मुझे, क्या करती हो।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्। (संस्कृत में)

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – नमस्ते सर।

प्रधानमंत्री जी – नमस्ते।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – मैंने जूड़ो में राष्ट्रीय स्तर पर गोल्ड मेडल लाई।

प्रधानमंत्री जी – ये सब तो डरते होंगे तुमसे। कहां सीखे तुम स्कूल में सीखे।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – नो सर एक्टिविटी कोच से सीखा है।

प्रधानमंत्री जी – अच्छा, अब आगे क्या सोच रही हो?

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – मैं ओलंपिक में गोल्ड लाकर देश का नाम रोशन कर सकती हूं।

प्रधानमंत्री जी – वाह , तो मेहनत कर रही हो।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – जी।

प्रधानमंत्री जी – इतने हैकर कल्ब है तुम्हारा।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – जी अभी तो हम law enforcement को सशक्त करने के लिए जम्मू कश्मीर में trainings provide कर रहे हैं और साथ साथ 5000 बच्चों को फ्री में पढ़ा चुके हैं। हम चाहते हैं कि हम ऐसे models implement करे, जिससे हम समाज की सेवा कर सकें और साथ ही साथ हम मतलब।

प्रधानमंत्री जी – तुम्हारा प्रार्थना वाला कैसा चल रहा है?

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – प्रार्थना वाला अभी भी development phase पर है! उसमे कुछ रिसर्च क्योंकि हमें वेदों के Translations हमें बाकी languages में जोड़नी है। Dutch over बाकी सारी कुछ complex languages में।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – मैंने एक Parkinsons disease के लिए self stabilizing spoon बनाया है और further हमने एक brain age prediction model भी बनाया है।

प्रधानमंत्री जी – कितने साल काम किया इस पर?

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – सर मैंने दो साल काम किया है।

प्रधानमंत्री जी – अब आगे क्या करोगी?

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – सर आगे मुझे रिसर्च करना है।

प्रधानमंत्री जी – आप हैं कहां से?

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – सर मैं बैंगलोर से हूं, मेरी हिंदी उतनी ठीक नहीं है।

प्रधानमंत्री जी – बहुत बढ़िया है, मुझसे भी अच्छी है।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – Thank You Sir.

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – I do Harikatha performances with a blend of Karnataka music and Sanskritik Shlokas

प्रधानमंत्री जी – तो कितनी हरि कथाएं हो गई थी।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – Nearly hundred performances I have.

प्रधानमंत्री जी – बहुत बढ़िया।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – पिछले दो सालों में मैंने पांच देशों की पांच ऊंची ऊंची चोटियां फतेह की हैं और भारत का झंडा लहराया है और जब भी मैं किसी और देश में जाती हूं और उनको पता चलता है कि मैं भारत की रहने वाली हूं, वो मुझे बहुत प्यार और सम्मान देते हैं।

प्रधानमंत्री जी – क्या कहते हैं लोग जब मिलते हैं तुम भारत से हो तो क्या कहते हैं?

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – वो मुझे बहुत प्यार देते हैं और सम्मान देते हैं, और जितना भी मैं पहाड़ चढ़ती हूं उसका motive है एक तो Girl child empowerment और physical fitness को प्रामोट करना।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – I do artistic roller skating. I got one international gold medal in roller skating, which was held in New Zealand this year and I got 6 national medals.

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – मैं एक Para athlete हूं सर और इसी month में मैं 1 से 7 दिसम्बर Para sport youth competetion Thailand में हुआ था सर, वहां पर हमने गोल्ड मेडल जीतकर अपने देश का नाम रोशन किया है सर।

प्रधानमंत्री जी – वाह।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – मैं इस साल youth for championship में gold medal लाई हूं। इस मैच में 57 केजी से गोल्ड लिया और 76 केजी से वर्ल्ड रिकॉर्ड किया है, उसमें भी गोल्ड लाया है, और टोटल में भी गोल्ड लाया है।

प्रधानमंत्री जी – इन सबको उठा लोगी तुम।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – नहीं सर।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – one flat पर आग लग गई थी तो उस टाइम किसी को मालूम नहीं था कि वहां पर आग लग गई है, तो मेरा ध्यान उस धुएं पर चला गया, जहां से वो धुआं निकल रहा था घर से, तो उस घर पर जाने की किसी ने हिम्मत नहीं की, क्योंकि सब लोग डर गए थे जल जाएंगे और मुझे भी मना कर रहे थे कि मत जा पागल है क्या, वहां पर मरने जा रही, तो फिर भी मैंने हिम्म्त दिखकर गई और आग को बुझा दिया।

प्रधानमंत्री जी – काफी लोगों की जान बच गई?

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – 70 घर थे उसमे और 200 families थीं उसमें।

प्रधानमंत्री जी – स्विमिंग करते हो तुम?

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – हां।

प्रधानमंत्री जी – अच्छा तो सबको बचा लिया?

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – हां।

प्रधानमंत्री जी – डर नहीं लगा तुझे?

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – नहीं।

प्रधानमंत्री जी – अच्छा, तो निकालने के बाद तुम्हे अच्छा लगा कि अच्छा काम किया।

पुरस्कार प्राप्तकर्ता – हां।

प्रधानमंत्री जी – अच्छा, शाबास!