e-NAM launch a turning point for agriculture sector: PM Modi

Published By : Admin | April 14, 2016 | 19:50 IST
PM Modi launches e-NAM - the e-trading platform for the National Agriculture Market
e-NAM initiative to be benefit farmers, usher in transparency in agriculture sector
e-NAM initiative a turning point in the history of agriculture sector, says Prime Minister Modi
Agriculture sector has to be seen holistically and that's when maximum benefit for the farmer can be ensured: PM

मैं देश के किसानों को बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं, बधाई देता हूं कि इस प्रयास से किसानों की अर्थव्यवस्था में कितना बड़ा परिवर्तन आने वाला है। आज डॉ. बाबा साहेब अंबेडकर की 125वीं जयंती है और मैंने करीब 1 महीने पहले सार्वजनिक रूप से कहा था कि ई NAM का प्रारंभ हम डॉ. बाबा साहेब की जयंती पर करेंगे और मुझे खुशी है कि आज समय सीमा में काम प्रारंभ हो रहा है। राधामोहन सिंह जी कह रहे थे इसको हम औऱ जल्दी भी कर सकते हैं लेकिन ये काम राज्यों के सहयोग के साथ जुड़ा हुआ है। अभी भी देश के कुछ राज्य ऐसे हैं कि जहां मंडी का कोई क़ानून ही नहीं है।

अब किसानों के लिए सुनते तो बहुत हैं लेकिन ऐसे भी राज्य हैं आज भी इस देश में जहां किसानों के लिए मंडी के लिए कोई नीति निर्धारण कानून नहीं है। उन राज्यों में किसानों का exploitation कितना हो सकता है, इसका आप अंदाज कर सकते हैं। मैं नाम नहीं देना चाहता हूं राज्यों का क्योंकि आजकल ऐसे विषय 24 घंटे विवादों में फंस जाते हैं तो मैं उससे बचना चाहता हूं लेकिन ऐसे सभी राज्यों से मेरा आग्रह होगा कि वे अपने यहां किसान मंडी कानून बनाएं। उसी प्रकार से जिन राज्यों में कानून है। उसमें भी अब नई Technology आई है, काफी व्यवस्थाएं पलटी हैं तो उसके अनुरूप कानून में सुधार करना आवश्यक है। मैं आशा करता हूं कि वे राज्य भी अपने-अपने यहां जो existing कानून हैं उसमें भारत सरकार ने जो सुझाव दिए हैं उसके अनुसार अगर amendment कर देंगे तो उन राज्यों में भी ई NAM का लाभ किसान को प्राप्त होगा और इसलिए मैं इन सभी राज्यों से आग्रह करता हूं कि इसको प्राथमिकता दें।

वैसे मुझे लगता है कि शायद आग्रह मुझे अब नहीं करना पड़ेगा क्योंकि जैसे ही ये 21 मंडियों की खबर आना शुरू हो जाएगा तो नीचे से ही pressure इतना पैदा होगा कि हर राज्य को लगेगा कि भई मेरा किसान तो रह गया चलो मैं भी इसमें आ जाऊं ताकि मेरे राज्य के किसान को लाभ मिले। हमारे देश में वर्षों से किसी न किसी कारण से कुछ नियम न रहें। एक राज्य में जो कृषि उत्पादन होता था वो दूसरे राज्य में ले नहीं जा सकते थे, ये भी बंधन रहते थे। कभी कानूनी तौर पर रहते थे, कभी गैर कानूनी तौर पर रहते थे क्योंकि लगता था कि भई अगर ये चला गया तो राज्य की economy को क्या होगा, राज्य की आवश्यकताओं का क्या होगा तो ये चलता रहता था और उसके कारण मैं नहीं मानता हूं, मैं इसको कोई बहुत बड़ा गुनाह के रूप में नहीं देखता हूं।

वहां की सरकारों को practical problem रहता था कि भई ये चीज मेरे यहां उत्पादन होती है। मेरे यहां से बाहर चली गई तो मेरे यहां तो लोगों को कुछ मिलेगा ही नहीं तो ये उसकी चिंता बड़ी स्वाभाविक थी लेकिन उसका परिणाम ये होता था कि किसान को protection नहीं मिलता था। किसान के लिए मजबूरी हो जाती थी कि अपने 12-15-20-25 किलोमीटर के area में जो market है, वो जो दाम तय करता था। उसको उसी दाम पर बेचना पड़ता था और उसी से अपनी रोजी-रोटी कमानी पड़ती थी। किसान की समस्या ये भी रहती थी कि उसको कोई choice नहीं रहता था। एक बार घर से बैलगाड़ी में माल लेकर गया मंडी में और मंडी वालों को लगा कि आज दाम गिरा दो। अब वो बेचारा सोचता है कि भई अब मैं वापस इसको कहां ले जाऊंगा, 25 किलोमीटर कहां उठाकर ले जाऊंगा तो वो मजबूरन उनके हाथ-पैर जोड़कर कहता था चलिए जी ले लीजिए, 5 रुपए कम दे दीजिए, ले लीजिए मैं कहाँ ले जाऊँगा । ये हाल किसान का हमारे यहां market में रहा।

ये योजना ऐसी है कि जिस योजना से किसान का तो भरपूर फायदा है लेकिन ये ऐसी योजना नहीं है जो सिर्फ किसान का फायदा करती है। ऐसी व्यवस्था है, जिस व्यवस्था की तरफ जो थोक व्यापारी है, उनकी भी सुविधा बढ़ने वाली है। इतना ही नहीं ये ऐसी योजना है, जिससे उपभोक्ता को भी उतना ही फायदा होने वाला है। यानि ऐसी market व्यवस्था बहुत rare होती है कि जिसमें उपभोक्ता को भी फायदा हो, consumer को भी फायदा हो, बिचौलिए जो बाजार व्यापार लेकर के बैठे हैं, माल लेते हैं और बेचते हैं, उनको भी फायदा हो और किसान को भी फायदा हो। होता क्या है आज दुर्भाग्य से हमारे देश में कृषि उत्पादन का real time data अभी भी नहीं होता है। कभी हमें लगे कि फलां राज्य में गेंहू की जरूरत है तो सरकार सोचती है अच्छा भई क्या करेंगे, इनको गेंहू की जरूरत है लेकिन उसे पता नहीं होता कि दूसरे राज्य में गेहूं surplus पड़े हैं।

कभी गेंहू surplus हैं और वहां पहुंचाने हैं लेकिन उस समय ट्रेन की व्यवस्था नहीं मिलती माल ले जाने के लिए और वहां consumer परेशान रहता है, यहां किसान परेशान होता है, माल बेचना है। ये क्यों... वो जो structure ऐसा बना हुआ था कि जिस structure में वो बंध गया था, उसके बाहर नहीं जा पाता था। आज ई NAM के कारण। अभी तो प्रारंभ में 25 कृषि उत्पादन चीजें इस ई NAM पर बिकेंगी, सौदा होगा और 21 मंडी में होगी लेकिन बहुत ही निकट भविष्य में शायद 250 तक तो पहुंच जाएगी क्योंकि कुछ राज्यों ने कानून में जो सुधार करना चाहिए, वो कर दिया है। Technology के लिए ये कोई बड़ा मुश्किल काम नहीं है। वहां एक लैब बनेगी, उस लैब के कारण quality of agro product ये तय होगा। अब व्यापारी हाथ में पकड़कर के तय करेगा, नहीं यार तेरा माल तो ठीक नहीं है और किसान कहेगा नहीं-नहीं साहब बहुत ठीक है पहले जैसा ही है और आखिरकार उस बेचारे को लगता था कि चलो बेच दो। आज laboratory कहेगी कि तुम्हारा जो product है A grade का है, B grade का है, C grade का है औऱ वो नेशनली certified मान्यता होगी उसको।

अगर मान लीजिए बंगाल से चावल खरीदना है और केरल को चावल की जरूरत है तो बंगाल का किसान online जाएगा और देखेगा कि केरल की कौन सी मंडी है जहां पर चावल इस quality का चाहिए, इतना दाम मिलने की संभावना है तो वो online ही कहेगा कि भई मेरे पास इतना माल है और मेरे पास ये certificate और मेरे ये माल ऐसा है, बताइए आपको चाहिए और अगर केरल के व्यापारी को लगेगा कि भई 6 लोगों में ये ठीक है तो उससे सौदा करेगा और अपना माल मंगवा देगा। कुछ व्यापारी क्या करेंगे बंगाल से माल खरीदेंगे, खरीदने वाला केरल से होगा लेकिन उसको बंगाल में market मिल जाए तो वहीं पर उसको बेच देगा। मेरा कहना का तात्पर्य ये है कि इतनी transparency होगी इस व्यवस्था के कारण कि जिसके कारण हमारा किसान ये तय कर पाएगा और माल, अपना product बैलगाड़ी में चढ़ाने से पहले या ट्रैक्टर में चढ़ाने से पहले तय कर पाएगा कि मेरे product का क्या होगा।

पहले तो क्या होता था सारी मेहनत करके 25 किलोमीटर दूर मंडी में गए उसके बाद तय होता था भविष्य क्या है। आज अपने घर में, अपने मोबइल फोन पर वो तय कर सकता है कि मैं कहां जाऊं, थोड़ा मैं मानता हूं हमारे देश का सामान्य से सामान्य व्यक्ति शायद वो साक्षर न हो लेकिन बुद्धिमान होता है। जैसे ही उसको पता चलेगा, वो monitor करेगा कि मंडी का trend क्या है, तीन दिन देखेगा बराबर और फिर trend के अनुसार तय करेगा कि हां अब लगता है कि market पक गया है तो तुरंत अंदर enter कर जाएगा और अपने माल बेचेगा। आज किसान निर्णायक होगा, किसान निर्णायक होगा। जो मंडी में बैठे हुए व्यापारी हैं, उन व्यापारियों के लिए भी ये सुविधाजनक होगा क्योंकि उसको लगता है कि भई जो जहां से पहले मैं खरीदता था तो वहां तो इस बार ये चावल पैदा ही नहीं हुई है तो सालभर क्या करूंगा, मैं तो चावल की व्यापारी हूं लेकिन अब उसको बैठे रहना नहीं पड़ेगा, वो हिंदुस्तान के किसी भी कोने से अपनी आवश्यकता के अनुसार चावल का ऑर्डर देकर के दूसरे व्यापारी से वो ले सकता है, दूसरे किसान से भी वो ले सकता है, अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकता है।

Consumer भी देख सकता है कि किस मंडी में किस रूप से बाजार चल रहा है और इसलिए अपने यहां कोई locally ही exploit करने जाता है तो कहता है, झूठ बोल रहे हो मैंने देखा है ई NAM पर तुमने तो माल लिया है थोडा बहुत तो ले सकतो हो लेकिन इतना क्यों ले रहे हो। यानि उत्पादन का balance use इसके लिए भी ई NAM portal एक बहुत बड़ी सुविधा बनने वाला है और मैं मानता हूं किसान का जैसे स्वाभाव है। एक बार उसको विश्वास पड़ गया तो वो उस भरोसे पर आगे बढ़ने चालू कर जाएगा। बहुत तेज गति से ई NAM पर लोग आएंगे, transparency आएगी। इस market में आने के कारण भारत सरकार बड़ी आसानी से, राज्य सरकारें भी monitor कर सकती हैं कि कहां पर क्या उत्पादन है, कितना ज्यादा मात्रा में है। इससे ये भी पता चलेगा transportation system कैसी होनी चाहिए, godown का उपयोग कैसे होना चाहिए, इस godown में माल shift करना है या उस godown में, यानि हर चीज एक portal के माध्यम से हम वैज्ञानिक तरीके से कर सकते हैं और इसलिए मैं मानता हूं कि कृषि जगत का एक बहुत बड़ा आर्थिक दृष्टि से आज की घटना एक turning point है।

एक मोड़ पर ले जा रही है हमें, जो पहले से कभी हम इंतजार कर रहे थे या हमारे सामने संभावना नजर नहीं आ रही थी। एक सप्ताह के भीतर-भीतर ये भी पता चलेगा कि जब इतनी बड़ी मात्रा में बाजार खुल जाता है तो competition बहुत बड़ा जाती है। खरीदने वाला ज्यादा दाम देकर के अच्छी quality खऱीदने की कोशिश करेगा। बेचने वाला कम पैसे में किस जगह से माल मिलता है, वो खोजेगा तो दूर-सुदूर भी जिसको market नहीं मिलता था, उसके लिए market सामने से invitation भेजेगा कि भई देखो तुम वहां बैठे हो सिलीगुड़ी में लेकिन तुम्हारी चीज कोई लेता नहीं, मैं यहां बैठा हूं अहमदाबाद में, मैं लेने के लिए तैयार हूं। ये इतनी बड़ी संभावना, हम कल्पना कर सकते हैं कि हमारे किसान को पहली बार ये तय करने का अवसर मिला है कि मेरे माल कैसे बिकेगा, कहां बिकेगा, कब बिकेगा, किस दाम से बिकेगा, ये फैसला अब हिंदुस्तान में किसान खुद करेगा।

अब वो किसी से आश्रित नहीं रहेगा, वो मोहताज नहीं रहेगा और जब ये पता औरों को चलेगा इतनी बड़ी competition शुरू हो गई है तो स्वाभाविक है कि बाकी राज्य जो अभी पीछे हैं, मुझे विश्वास है कि नीचे से ऐसा pressure पैदा होगा कि अब वो जल्दी कानून में भी सुधार करेंगे और ई NAM portal पर सारी मंडियां आएंगी और ये मेरा पूरा विश्वास है। मेरा आग्रह है और मैं मानता हूं कि कृषि को टुकड़ों में नहीं देखना चाहिए और इसलिए हमने हमारे मंत्रालय का नाम भी, इसके साथ किसान कल्याण जोड़ा है। हम उसको जब तक holistic approach नहीं होगा, हम किसानों की स्थिति में सुधार नहीं ला सकते हैं और holistic approach लेना है तो मान लीजिए जैसे आज solar revolution हो रहा है। किसान को तो लगता होगा कि ये तो कोई industry का काम चल रहा है, कोई उद्योगकारों का काम चल रहा है। कोई तो उसको समझाए ये solar revolution भी तेरे लिए है भाई।

अगर उसको पानी के लिए solar pump मिल गया, वो अपने ही खेत में solar panel लगा दिया तो उसको जो आज डीजल का खर्चा करना पड़ता है, नहीं करना पड़ेगा। आज solar revolution हो रहा है। जो बड़ा किसान हैं वो उच्च technology का उपयोग करता हैं। cutter लाते हैं, बाकी चीजें लाते हैं, वो बिजली से चलती हैं। जिस दिन उसको पता चलेगा, अब ये सारे जो साधन हैं, वो भी solar से चलने वाले आ गए हैं, उसका खर्चा कम हो जाएगा और साधन उसका सूर्य प्रकाश से चलने लग जाएगा। यानि जो technology का development हो रहा है। उसके साथ हमारे किसान की उपयोगी चीजों को कैसे जोड़ा जाए। अगर हमें ज्यादा उत्पादन करना है तो flood irrigation का जमाना चला गया है और अब ये विज्ञान ने सिद्ध कर दिया है कि flood irrigation से कोई अच्छी खेती होती नहीं लेकिन किसान का स्वभाव है कि जब-जब खेत, जब तक खेत पानी से लबालब भरा न हो, सारे पौधे डूबे हुए नजर न आए तो उसको लगता है, पौधा भूखा मर रहा है, वो खुद बेचारा परेशान हो जाता है क्योंकि उसकी भावना जुड़ी हुई है, वो अपने आप को रात को सो नहीं सकता है कि यार जितना पानी चाहिए था, उतना नहीं है, वो परेशान हो जाता है लेकिन अगर उसको विज्ञान का पता हो per drop, more crop.

हमारे उत्पादनों को पानी में डुबोए रखने की जरूरत नहीं है। हम सालों से मानकर के आए कि गन्ने की खेती करनी हो तो भरपूर पानी चाहिए। अब धीरे-धीरे अनुभव आ गया कि sprinkler से गन्ने की खेती बहुत अच्छी हो सकती है और sprinkler से गन्ने की खेती करें तो सामान्य गन्ने में जो sugar contain होता है, उससे sprinkler या drip से किए हुए गन्ने में sugar contain ज्यादा होता है, उसमें से ज्यादा चीनी निकलती है तो किसान को दाम भी ज्यादा मिलता है और आपने देखा होगा flood irrigation से गन्ने का जो डंडा होता है उसकी size और sprinkler से हुआ उसकी size देखते ही पता चलता है कि कितना बड़ा फर्क आया है। अब किसान को समझना होगा और मैं मानता हूं कि ये बात उन तक पहुंचाई जा सकती है और इसलिए मेरा मिशन है per drop, more crop एक-एक बूंद पानी से हम समृद्धि पैदा कर सकते हैं, हम भविष्य पैदा कर सकते हैं।

कभी-कभी मैं किसानों के साथ बैठना का स्वभाव रखता था तो काफी बातें करता था, जब गुजरात में था। मैं उनको कहता था और मैं आज उसको दुबारा कहना चाहूंगा, मैं उनको कहता था, मान लीजिए आपका बच्चा बीमार है और 3 साल की आय़ु हो गई, 5 साल की आयु हो गई, 7 साल की आय़ु हो गई लेकिन न वजन बढ़ रहा है, न चेहरे पर मुस्कान आ रही है, ऐसे ही दुबला-पतला, ऐसे ही पड़ा रहता है। अब आप सोचिए कि आपके बच्चे का ये हाल है और आप सोचें कि एक बाल्टी भर दूध लेंगे, उसमें केसर, बादाम, पिस्ता सब डालेंगे और रोज बच्चे को इस दूध से नहलाएंगे, उसकी तबीयत पर कोई फर्क पड़ेगा क्या, पड़ेगा क्या, मेरे किसान भाई पड़ेगा क्या लेकिन एक चम्मच में थोड़ा-थोड़ा दूध लेकर के 100 ग्राम, 100 ग्राम उसको शाम तक पिला दो, फर्क पड़ेगा कि नहीं पड़ेगा। जो बच्चा का है, वो ही पौधे का है। जो स्वभाव बच्चे का है, वो ही स्वभाव पौधे का है।

पौधे को भी अगर पानी से नहला दोगे तो पौधा मजबूत होगा, ऐसा नहीं है। एक-एक चम्मच से एक-एक बूंद पानी पिलाओगे तो आप देखते ही देखते देखोगे कि पौधा कितना ताकतवर बन जाता है और इसलिए हमने... बातें छोटी होती हैं लेकिन उनकी ताकत बड़ी होती है। हमने देखा है कि हमारे किसान का सबसे बड़ा नुकसान किससे हो रहा है। वो जो देखता है उसमें विश्वास करता है, जो सुनता है उस पर किसान कभी विश्वास नहीं करता। एक प्रकार से अच्छी चीज भी है। वो जब तक खुद अपनी आंखों से नहीं देखता है, भरोसा नहीं करता है लेकिन उसके कारण उसका misguide ऐसा हो जाता है कि अगर वाले खेत में किसी किसान ने लाल डिब्बे वाली दवा डाली तो वो भी सोचता है कि लाल डिब्बे वाली होती है तो वो भी जाकर के लाल डिब्बे वाली ले आता है। अगर उसने देखा बगल वाला दो बोरी fertilizer डालता है तो वो भी दो बोरी डाल देता है और उसको तो ज्यादा वो रंग से ही जानता है लाल डिब्बे वाली दवा, काले डिब्बे वाली दवा, लंबे डिब्बे वाली दवा या छोटे डिब्बे वाली उसी से वो उसका कारोबार चलता है जी, उसना अपना ये विज्ञान develop किया है।

ये गलती क्यों होती है। उसे पता नहीं है कि वो जिस जमीन पर काम कर रहा है, उसकी प्रकृति कैसी है। ये धरा हमारी मां है, ये भूमि हमारी मां है, कहीं बीमार तो नहीं हो गई है, हमने ज्यादा तो इसका शोषण नहीं किया है, उसका भी कोई ख्याल रखा है कि नहीं रखा है, ज्यादा अनुभव आता है कि हम धरा के साथ क्या करते हैं, फसल के संदर्भ में धरा के साथ जो करना होता है, करते हैं। धरा की तबीयत, चिंतन करनी चाहिए, इस भूमि की चिंता करनी चाहिए, इस पर हमारा ध्यान नहीं होता है और अगर बीमार धरा हो, कितना ही अच्छा बीज बोएं, इच्छित परिणाम नहीं मिलता है और इसलिए हमारे कृषि जगत को बदलना है तो हमारी धरा की तबीयत और उसके लिए अब सरल उपाय है Soil health card, laboratory में धऱा की test करवानी चाहिए और उसमें जो guidelines दें, उस प्रकार का पालन करना चाहिए। वरना कुछ लोग होते हैं कि डॉक्टर के पास जाएं, तबीयत दिखाएं। डॉक्टर कहे डायबीटीज है लेकिन घर में आकर के बताते ही नहीं हैं कि डायबीटीज है क्योंकि मिठाई खाने का शौक होता है तो फिर वो laboratory काम नहीं आती है।

अगर laboratory ने कहा कि डायबीटीज है तो फिर मिठाई छोड़नी पड़ती है। उसी प्रकार से धरा को check करने के बाद पता चला कि ये बीमारियां हैं, उस फसल के लिए आपकी धरा ठीक नहीं है, वो fertilizer आपकी धरा के लिए ठीक नहीं है, वो दवाई आपकी धरा को बर्बाद कर देगी तो मेरा किसानों से प्रार्थना होगी कि उसमें जो सुझाव देते हैं, उन सुझाव को religiously follow करना चाहिए। देखिए विज्ञान की बड़ी ताकत होती है, विज्ञान की बड़ी ताकत होती है। इन चीजों को अगर हमने ढंग से कर लिया तो आप देखना... कभी-कभार मैंने देखा है, हमारे पंजाब, हरियाणा में, इधर पश्चिम उत्तर प्रदेश में वो पुरानी पद्धति फसल निकालने के बाद बाद में जो रह जाता है उसको मुझे हिंदी शब्द तो मालूम नहीं है, उसको जला देते हैं। अब हमें मालूम नहीं है ये मूल्यवान fertilizer है, उसके छोटे-छोटे टुकड़े करके उसी जमीन में दबा दीजिए, वो आपकी जमीन के लिए, वो खुराक बन जाएगा लेकिन जल्दबाजी होती है, दुबारा फसल के लिए काम करना है, कौन करेगा इसलिए डालते नहीं हैं।

मैं समझता हूं जिस चीज के लिए जो नियम हैं, प्रकृति ने बनाए हैं, उसका अगर हम थोड़ा सा पालन करें तो पर्यावरण का जो नुकसान हो रहा है और दिल्ली वाले चिल्लाते हैं कि धुँआ बहुत हो गया है, वो बंद भी हो जाएगा और मेरे किसान को ये फायदा  होगा। मुझे स्मरण है जो केले की खेती करते हैं। केला पकने के बाद, वो केले का जो पेड़ रह जाता है, उसको निकालने के लिए वो पैसे देते हैं लोगों को कि भाई उसको जरा आप साफ करके दे दो और पहले ये एक-एक एकड़ पर 15-20 हजार रुपए खेत खाली करने पर ये उनका खर्च होता था। बाद में उनके ध्यान में आय़ा कि ये तो most valuable है और आपको हैरानी होगी केला पकने के बाद वो जो खड़ा रह गया, बाकी बचा हुआ पुर्जा है, उसको आप कहीं गाड़ दें और वहां पर कोई पौधा लगा दें 90 दिन तक पानी की जरूरत नहीं पड़ती, उसी से पानी मिल जाता है, इतनी ताकत होती है उसमें। जब ये पता चला तो उन्होंने फिर से उसे फिर जमीन में गाड़ दिया और उनकी जमीन इतनी गीली होने लगी कि बीच में वो एक extra फसल करने लगे जो 60-70 दिन में पैदा होने वाली होगी, उस फसल का उपयोग करने लगे, उनकी income में पहले से डेढ़ गुना-ढ़ाई गुना तक फर्क होने लगा क्यों, उनको समझ आय़ा कि भई इसका उपयोग है।

हम अगर उन छोटे-छोटे प्रयाग हैं। हमारे किसान इसको समझ भी सकता है, उसको कैसे पहुंचाए, हम उसके उत्पादन की ओर बढ़ें। हमारे देश का एक बहुत बड़ा दुर्भाग्य है किसी न किसी कारण से टोडर मल ने जमीनों को नापने का बहुत बड़ा काम किया था। उसके बाद उसके प्रति बड़ी उदासीनता रखी गई। सरकारों में नियम था कि 30 साल में एक बार जमीन नापने का काम regular होना चाहिए लेकिन शायद पिछले 100-150 साल में ये परंपरा dilute हो गई और उसके कारण exact पता नहीं है जमीन की स्थिति का। किसान conscious है कोई जमीन ले न जाए इसलिए वो क्या है बाड़ करता है। नाप का ठिकाना नहीं, कागज पर exact नाप नहीं है तो बाड़ लगाता है, वो बाड़ लगाने में एक मीटर जमीन इसकी खराब होती है, एक मीटर जमीन दूसरी वाली खराब होती है। हर खेत के border पर दो मीटर जमीन खराब होना यानि पूरे देश में देखें हम तो लाखों square meter जमीन इसी में बर्बाद होती होगी।

अगर हम उसका रास्ता निकालें। आज देश को टिम्बर import करना पड़ता है। अगर हम हमारे border पर बाड़ करने के बजाए टिम्बर के पेड़ लगा दें। बेटी पैदा हो, उस दिन अगर पेड़ लगाया तो शादी करने का पूरा खर्चा एक पेड़ दे देगा। वो पेड़, बेटी बड़ी होगी उसके साथ-साथ बड़ा होगा और जब वो टिम्बर बेचोगे। आज हिंदुस्तान फर्नीचर के लिए टिम्बर दुनिया से import करता है, मेरा किसान अपने border पर, बाड़ पर ये काम कर सकता है आराम से कमा सकता है। उसके कारण जो waste of land है, वो हमारा बचा जाएगा। solar हम खेती के साथ solar बिजली पैदा कर-करके बेच सकते हैं। मैंने ऐसे किसान देखें हैं जो अपनी cooperative society बना रहे हैं और पड़ोस के किसान मिलकर के कोने पर बिजली पैदा कर रहे हैं और राज्य सराकारों को बेच रहे हैं, ये सब संभव है। मैं हैरान हूं दुनिया भर में honey का बहुत बड़ा market है, बहुत बड़ा market है और honey एक ऐसी चीज है शहद, जो सालों तक घर में रहे, जितना पुराना हो तो ज्यादा पैसा मिलता है और किसान अगर अपने खेत में साथ-साथ शहद का भी काम करें तो जो मधुमक्खी है वो भी फसल को ताकत देती है, वो एक जगह से दूसरी जगह पर बैठती हैं तो फसल को नई ताकत देती हैं। simple चीजें हैं, जब मैं कहता हूं double income संभव है, मेरे दिमाग में बहुत साफ है क्या-क्या प्रयोग करने से income double हो सकती है।

चाहे Fisheries का काम हो, milk production का काम हो, पशु का रखरखाव हो, इन सारी चीजों में से income बढ़ सकती है और हम आधुनिक वैज्ञानिक तरीक से खेती करना शुरू करें तो हम देश की economy को भी बहुत बड़ा बल दे सकते हैं। मेरे देश के किसानों ने एक बार तय किया कि अब देश का पेट भरने के लिए बाहर से अन्न नहीं आएगा, हिंदुस्तान के किसानों ने कर दिया है। आज Pulses हमें बाहर से लाना पड़ता है दलहन, क्यों न हमारे किसानों को संदेश जाए कि जहां पर पानी बहुत कम है, वहां और प्रयोग मत करिए, आप दलहन पर चले जाइए ताकि आपकी भी गारंटी होगी और भारत सरकार उसमें आपकी मदद करेगी और भारत को अब दलहन बाहर से नहीं लाना चाहिए दाल क्यों बाहर से लानी पड़े, मूंग क्यों बाहर से लानी पड़े, चना क्यों बाहर से लाना पड़े, उड़द क्यों बाहर से लाना पड़े। हम ये अपने संकल्प कर लें तो मैं नहीं मानता हूं इस देश को... और अभी गया था सऊदी अरबिया, उसके पहले मैं गया था यूएई, वहां के लोगों ने जो बात कही, मैं समझता हूं कि मेरे देश के किसान इसको भलीभांति समझें, वो कह रहे हैं कि हमारे पास तो बारिश ही नहीं है, हमारे पास खेती योग्य जमीन नहीं है, हमारी जनसंख्या बढ़ रही है, पूरे गल्फ की countries में, हम भविष्य में हमारा पेट भरने के लिए अनाज पर भारत पर ही depend करेंगे, हमें वहीं से import करना पड़ेगा।

आज भी हमारा सबसे ज्याजा अच्छा चावल उन्हीं देशों में जाता है। इसका मतलब ये हुआ अगर हम quality product की तरफ जाएंगे तो गल्फ का एक बहुत बड़ा market, agriculture product के लिए हमारा इंतजार करके बैठा है। वे ware house के लिए cold storage के लिए तैयार है, वो गारंटी के साथ माल खऱीदने के लिए तैयार है यानि भारत की कृषि भी एक global requirement के संदर्भ में उसे हम एक नया मोड़ दे सकते हैं, हम उसमें बदलाव ला सकते हैं और उस बदलाव लाने की दिशा में हमें प्रयास करना चाहिए। अभी इस बजट में एक बड़ा महत्वपूर्ण निर्णय किया, उस निर्णय की चर्चा बहुत कम आई है क्योंकि कुछ चीजें ऐसी हैं, जिसे लोगों को समझते-समझते दो साल चले जाते हैं इसलिए वो बात शायद पब्लिक में आई ही नहीं।

भारत सरकार ने एक बहुत महत्वपूर्ण निर्णय़ किया कि Agro processing में हम 100 percent foreign direct investment को हम स्वागत करते हैं। अब कुछ लोगों का दिमाग शायद ऐसा है कि FDI का नाम आते ही उनको लगता है ये कुछ उद्योग वाला हो गया।

ये food processing की सारी process किसान को बहुत बड़ी ताकत देती है। अगर वो कोई ऐसी पैदावार करता है और उसका  technology solution से valuable addition होता है तो income बहुत बढ़ जाती है और उसके लिए पूंजी निवेश के लिए दुनिया से पैसे आते हैं तो किसान की ताकत बढ़ने वाली है। आप कच्चे आम बेचो तो कम पैसा आता है, पके हुए बेचो तो थोड़ा ज्यादा आता है। कच्चे आम बेचो लेकिन आचार बनाकर बेचो और पैसा आता है। आचार भी बढ़िया सी बोतल में pack करके बेचो तो और ज्यादा पैसा आता है और बोतल की advertisement कोई नट या नटी करती हो तो औऱ ज्यादा पैसा मिल जाता है। value addition कैसे होता है, food processing का value addition कैसे होता है और इसलिए अभी हमने कोका कोला कंपनी के साथ महाराष्ट्र government का एक agreement करवाया। मैंने इन सारी कंपनियों कहा है कि आप जो पेप्सी, कोका कोला ये सब पानी बेचते हो colorful होता है, tasty होता है लोगों को आदत हो गई है अरबों-खरबों का बाजार है। मैंने कहा मेरे देश के किसानों के लिए आप एक नियम बनाइए कि कम से कम 5 percent, कम से कम 5 percent natural fruit juice आप इस aerated water में mix करोगे।

आप देखिए एक तो जो पीता है उसको फायदा होगा, कम से कम 5 percent तो माल अच्छा जाएगा शरीर में लेकिन उसके कारण किसान जो फल पैदा करता है, उसको तुरंत market मिल जाएगा,  वरना संतरा कोई पैदा करेगा, एकाध दिन में तो संतरा खराब हो जाएगा लेकिन संतरे का जूस अगर उसमें मिलना शुरू हुआ तो संतरे को market मिलना शुरू हो जाएगा, Apple को market मिल जाएगा, केले को market मिल जाएगा और इसलिए वो चीजें जो हमारे किसान को ताकत दें, ऐसे कई initiative लिए हैं और उस initiative के परिणाम मैं कहता हूं कि आने वाले दिनों में किसानों का भविष्य उज्जवल बनाया जा सकता है, सोची-समझी व्यवस्था के तहत बनाया जाता है और अब ये मंडी के माध्यम से, ई NAM के माध्यम से जो प्रयास किया है इस ई NAM के माध्यम से, मैं विश्वास से कहता हूं कि मेरा किसान अब तय करेगा कि उसका माल कहां बिकेगा, कब बिकेगा, कितने दाम से बिकेगा इसका फैसला अब मेरा किसान करेगा और consumer को कभी कोई बोझ नहीं होगा, ये मेरा भरोसा है। consumer को कभी कोई मुसीबत नहीं होगी, ये मेरा पूरा भरोसा है। मैं देश के किसानों को आज 14 अप्रैल बाबा साहेब अंबेडकर की जन्म जयंती पर जिनका empowerment of poor people वाला हमेशा रहा था, मेरा किसान empower हो इसलिए एक महत्वपूर्ण project आज प्रारंभ हो रहा है, मैं कृषि मंत्रालय को मंत्री के विभाग के सभी साथियों को हृदय से बहुत-बहुत बधाई देता हूं, मेरे देश के किसानों को बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं। असम का आज नया वर्ष है, असम का नववर्ष है, उस बिहू के मौके पर भी मैं शुभकामनाएं देता हूं। बहुत-बहुत धन्यवाद।

Explore More
78-வது சுதந்திர தின விழாவையொட்டி செங்கோட்டை கொத்தளத்தில் இருந்து பிரதமர் திரு நரேந்திர மோடி நிகழ்த்திய உரையின் தமிழாக்கம்

பிரபலமான பேச்சுகள்

78-வது சுதந்திர தின விழாவையொட்டி செங்கோட்டை கொத்தளத்தில் இருந்து பிரதமர் திரு நரேந்திர மோடி நிகழ்த்திய உரையின் தமிழாக்கம்
India’s organic food products export reaches $448 Mn, set to surpass last year’s figures

Media Coverage

India’s organic food products export reaches $448 Mn, set to surpass last year’s figures
NM on the go

Nm on the go

Always be the first to hear from the PM. Get the App Now!
...
The mantra of the Bharatiya Nyaya Sanhita is - Citizen First: PM Modi
December 03, 2024
These Laws signify the end of colonial-era laws: PM Modi
The new criminal laws strengthen the spirit of - "of the people, by the people, for the people," which forms the foundation of democracy: PM Modi
Nyaya Sanhita is woven with the ideals of equality, harmony and social justice: PM Modi
The mantra of the Bharatiya Nyaya Sanhita is - Citizen First: PM Modi

केंद्रीय मंत्रिमंडल में मेरे साथी श्रीमान अमित शाह, चंडीगढ़ के प्रशासक श्री गुलाबचंद कटारिया जी, राज्यसभा के मेरे साथी सासंद सतनाम सिंह संधू जी, उपस्थित अन्य जनप्रतिनिधिगण, देवियों और सज्जनों।

चंडीगढ़ आने से लगता है कि अपनों के बीच आ गया हूं। चंडीगढ़ की पहचान शक्ति-स्वरूपा माँ चंडीका नाम से जुड़ी है। माँ चंडी, यानी शक्ति का वह स्वरूप जिससे सत्य और न्याय की स्थापना होती है। यही भावना भारतीय न्याय संहिता, नागरिक सुरक्षा संहिता के पूरे प्रारूप का आधार भी है। एक ऐसे समय में जब देश विकसित भारत का संकल्प लेकर आगे बढ़ रहा है, जब संविधान के 75 वर्ष हुए हैं.. तब, संविधान की भावना से प्रेरित भारतीय न्याय संहिता का प्रभाव प्रारंभ होना, उसका प्रभाव में आना, ये एक बहुत बड़ी शुरुआत है। देश के नागरिकों के लिए हमारे संविधान ने जिन आदर्शों की कल्पना की थी, उन्हें पूरा करने की दिशा में ये ठोस प्रयास है। ये कानून कैसे अमल में लाये जाएंगे, अभी मैं इसका Live Demo देख रहा था। और मैं भी यहां सबसे आग्रह करता हूं कि समय निकालकर के इस Live Demo का जरूर देखें। Law के Students देखें, Bar के साथी देखें, Judiciary के भी साथियों को अगर सुविधा हो, वे भी देखें। मैं इस अवसर पर, सभी देशवासियों को भारतीय न्याय संहिता, नागरिक संहिता के लागू होने की अनेक-अनेक शुभकामनाएं देता हूं। और चंडीगढ़ प्रशासन से जुड़े सबको बधाई देता हूं।

साथियों,

देश की नई न्याय संहिता अपने आपमें जितना समग्र दस्तावेज़ है, इसको बनाने की प्रक्रिया भी उतनी ही व्यापक रही है। इसमें देश के कितने ही महान संविधानविदों और कानूनविदों की मेहनत जुड़ी है। गृह मंत्रालय ने इसे लेकर जनवरी 2020 में सुझाव मांगे थे। इसमें देश के मुख्य न्यायधीशों का सुझाव और मार्गदर्शन रहा। इनमें हाइ-कोर्ट्स के चीफ़ जस्टिसेस उन्होंने भरपूर सहयोग दिया। देश का सुप्रीम कोर्ट, 16 हाइकोर्ट, judicial academies, अनेकों law institutions, सिविल सोसाइटी के लोग, अन्य बुद्धिजीवी....इन सबने वर्षों तक मंथन किया, संवाद किया, अपने अनुभवों को पिरोया, आधुनिक परिप्रेक्ष्य में देश की जरूरतों पर चर्चा की गई। आज़ादी के 7 दशकों में न्याय व्यवस्था के सामने जो challenges आए, उन पर गहन मंथन किया गया। हर कानून का व्यावहारिक पक्ष देखा गया, futuristic parameter पर उसे कसा गया...तब भारतीय न्याय संहिता अपने इस स्वरूप में हमारे सामने आई है। मैं इसके लिए देश के सुप्रीम कोर्ट का, honorable judges का, देश की सभी हाइ-कोर्ट्स का, विशेषकर हरियाणा, पंजाब हाईकोर्ट का मैं विशेष आभार प्रकट करता हूँ। मैं Bar का भी धन्यवाद करता हूँ कि जिन्होंने आगे आकर इस न्याय संहिता की ownership ली है, Bar के सभी साथी बहुत-बहुत अभिनंदन के अधिकारी हैं। मुझे भरोसा है, सबके सहयोग से बनी भारत की ये न्याय संहिता भारत की न्याय यात्रा में मील का पत्थर साबित होगी।

साथियों,

हमारे देश ने 1947 में आज़ादी हासिल की थी। आप कल्पना करिए, सदियों की गुलामी के बाद जब हमारा देश आज़ाद हुआ, पीढ़ियों के इंतज़ार के बाद, लक्ष्यावदी लोगों के बलिदानों के बाद, जब आज़ादी की सुबह आई...तब कैसे-कैसे सपने थे, देश में कितना उत्साह था, देशवासियों ने भी सोचा था...अंग्रेज गए हैं, तो अंग्रेजी क़ानूनों से भी मुक्ति मिलेगी। अंग्रेजों के अत्याचार का, उनके शोषण का ज़रिया ये कानून ही तो थे। ये कानून बनाए भी तब गए थे, जब अंग्रेजी सत्ता भारत पर अपना शिकंजा बनाए रखने के लिए कुछ भी करने को तैयार थी। 1857 में और मेरे नौजवान साथियों को मैं कहूंगा- याद रखिए, 1857 में देश का पहला बड़ा स्वाधीनता संग्राम लड़ा गया। उस 1857 के स्वाधीनता संग्राम ने अंग्रेजी हुकुमत की जड़े हिला दी थीं, देश के हर कौने में बहुत बड़ी चुनौती पैदा कर दी थी। तब जाकर के, उसके जवाब में, अंग्रेज़ 1860 में, 3 साल के बाद इंडियन पीनल कोड, यानी IPC लेकर आए। फिर कुछ साल बाद इंडियन एविडेंस एक्ट लाया गया। और फिर CRPC का पहला ढांचा अस्तित्व में आया। इन क़ानूनों की सोच और मकसद यही था कि भारतीयों को दंड दिया जाए, गुलाम रखा जाए, और दुर्भाग्य देखिए, आजादी के बाद...दशकों तक हमारे कानून उसी दंड संहिता और penal mindset के इर्द-गिर्द ही घूमते रहे, मंडराते रहे। और जिनका इस्तेमाल नागरिकों को गुलाम मानकर होता था। समय-समय पर इन क़ानूनों में छोटे-मोटे सुधार करने के प्रयास हुए, लेकिन इनका चरित्र वही बना रहा। आजाद देश में गुलामों के लिए बने कानूनों को क्यों ढोया जाए? ये सवाल ना हमने खुद से पूछा, ना शासन कर रहे लोगों ने इस पर विचार करने की ज़रूरत समझी। गुलामी की इस मानसिकता ने भारत की प्रगति को, भारत की विकास यात्रा को बहुत ज्यादा प्रभावित किया।

साथियों,

देश अब उस colonial माइंडसेट से बाहर निकले, राष्ट्र के सामर्थ्य का प्रयोग राष्ट्र निर्माण में हो....इसके लिए राष्ट्रीय चिंतन आवश्यक था। और इसीलिए, मैंने 15 अगस्त को लालकिले से गुलामी की मानसिकता से मुक्ति का संकल्प देश के सामने रखा था। अब भारतीय न्याय संहिता, नागरिक संहिता इसके जरिए देश ने उस दिशा में एक और मजबूत कदम उठाया है। हमारी न्याय संहिता ‘of the people, by the people, for the people' की उस भावना को सशक्त कर रही है, जो लोकतंत्र का आधार होती है।

साथियों,

न्याय संहिता समानता, समरसता और सामाजिक न्याय के विचारों से बुनी गई है। हम हमेशा से सुनते आए हैं कि, कानून की नज़र में सब बराबर होते हैं। लेकिन, व्यवहारिक सच्चाई कुछ और ही दिखाई देती है। गरीब, कमजोर व्यक्ति कानून के नाम से डरता था। जहां तक संभव होता था, वो कोर्ट-कचहरी और थाने में कदम रखने से डरता था। अब भारतीय न्याय संहिता समाज के इस मनोविज्ञान को बदलने का काम करेगी। उसे भरोसा होगा कि देश का कानून समानता की, equality की गारंटी है। यही...यही सच्चा सामाजिक न्याय है, जिसका भरोसा हमारे संविधान में दिलाया गया है।

साथियों,

भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता...हर पीड़ित के प्रति संवेदनशीलता से परिपूर्ण है। देश के नागरिकों को इसकी बारीकियों का पता चलना ये भी उतना ही आवश्यक है। इसलिए मैं चाहूंगा, आज यहां चंडीगढ़ में दिखाए Live Demo को हर राज्य की पुलिस को अपने यहां प्रचारित, प्रसारित करना चाहिए। जैसे शिकायत के 90 दिनों के भीतर पीड़ित को केस की प्रगति से संबंधित जानकारी देनी होगी। ये जानकारी SMS जैसी डिजिटल सेवाओं के जरिए सीधे उस तक पहुंचेगी। पुलिस के काम में बाधा डालने वाले व्यक्ति के खिलाफ एक्शन लेने की व्यवस्था बनाई गई है। महिलाओं की सुरक्षा के लिए न्याय संहिता में एक अलग चैप्टर रखा गया है। वर्क प्लेस पर महिलाओं के अधिकार और सुरक्षा, घर और समाज में उनके और बच्चों के अधिकार, भारतीय न्याय संहिता ये सुनिश्चित करती है कि कानून पीड़िता के साथ खड़ा हो। इसमें एक और अहम प्रावधान किया गया है। अब महिलाओं के खिलाफ बलात्कार जैसे घृणित अपराधों में पहली हियरिंग से 60 दिन के भीतर चार्ज फ्रेम करने ही होंगे। सुनवाई पूरी होने के 45 दिनों के भीतर-भीतर फैसला भी सुनाया जाना अनिवार्य कर दिया गया है। ये भी तय किया गया है कि किसी केस में 2 बार से अधिक स्थगन, एडजर्नमेंट नहीं लिया जा सकेगा।

साथियों,

भारतीय न्याय संहिता का मूल मंत्र है- सिटिज़न फ़र्स्ट! ये कानून नागरिक अधिकारों के protector बन रहे हैं, ‘ease of justice’ का आधार बन रहे हैं। पहले FIR करवाना भी कितना मुश्किल होता था। लेकिन अब ज़ीरो FIR को भी कानूनी रूप दे दिया गया है, अब उसे कहीं से भी केस दर्ज कराने की सहूलियत मिली है। FIR की कॉपी पीड़ित को दी जाए, उसे ये अधिकार दिया गया है। अब आरोपी के ऊपर कोई केस अगर हटाना भी है, तो तभी हटेगा जब पीड़ित की सहमति होगी। अब पुलिस किसी भी व्यक्ति को अपनी मर्जी से हिरासत में नहीं ले सकेगी। उसके परिजनों को सूचित करना, ये भी न्याय संहिता में अनिवार्य कर दिया गया है। भारतीय न्याय संहिता का एक और पक्ष है...उसकी मानवीयता, उसकी संवेदनशीलता अब आरोपी को बिना सजा बहुत लंबे समय तक जेल में नहीं रखा जा सकता। अब 3 वर्ष से कम सजा वाले अपराध के मामले में गिरफ़्तारी भी हायर अथॉरिटी की सहमति से ही हो सकती है। छोटे अपराधों के लिए अनिवार्य जमानत का प्रावधान भी किया गया है। साधारण अपराधों में सजा की जगह Community Service का विकल्प भी रखा गया है। ये आरोपी को समाज हित में, सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ने के नए अवसर देगा। First Time Offenders के लिए भी न्याय संहिता बहुत संवेदनशील है। देश के लोगों को ये जानकर भी खुशी होगी कि भारतीय न्याय संहिता के लागू होने के बाद जेलों से ऐसे हजारों कैदियों को छोड़ा गया है...जो पुराने क़ानूनों की वजह से जेलों में बंद थे। आप कल्पना कर सकते हैं, एक नई व्यवस्था, नया कानून नागरिक अधिकारों के सशक्तिकरण को कितनी ऊंचाई दे सकता है।

साथियों,

न्याय की पहली कसौटी है- समय से न्याय मिलना। हम सब बोलते और सुनते भी आए हैं- justice delayed, justice denied! इसीलिए, भारतीय न्याय संहिता, नागरिक सुरक्षा संहिता के जरिए देश ने त्वरित न्याय की तरफ बड़ा कदम उठाया है। इसमें जल्दी चार्जशीट फाइल करने और जल्दी फैसला सुनाने को प्राथमिकता दी गई है। किसी भी केस में हर चरण को पूरा करने के लिए समय-सीमा तय की गई है। ये व्यवस्था देश में लागू हुए अभी कुछ ही महीने हुए हैं। इसे परिपक्व होने के लिए अभी समय चाहिए। लेकिन, इतने कम अंतराल में ही जो बदलाव हमें दिख रहे हैं, देश के अलग-अलग हिस्सों से जो जानकारियां मिल रही हैं...वे वाकई बहुत संतोष देने वाली हैं, उत्साहजनक है। आप लोग तो यहां भली-भांति जानते हैं, हमारे इस चंडीगढ़ में ही वाहन चोरी, व्हीकल की चोरी करने के एक केस में FIR होने के बाद आरोपी को सिर्फ 2 महीने 11 दिन में अदालत से सजा सुना दी, उसको सजा मिल गई। क्षेत्र में अशांति फैलाने के एक और आरोपी को अदालत ने सिर्फ 20 दिन में पूरी सुनवाई के बाद सजा भी सुना दी। दिल्ली में भी एक केस में FIR से लेकर फैसला आने तक सिर्फ 60 दिन का समय लगा...आरोपी को 20 साल की सजा सुनाई गई। बिहार के छपरा में भी एक मर्डर केस में FIR से लेकर फैसला आने तक सिर्फ 14 दिन लगे और आरोपियों को उम्र कैद की सजा हो गई। ये फैसले दिखाते हैं कि भारतीय न्याय संहिता की ताकत क्या है, उसका प्रभाव क्या है। ये बदलाव दिखाता है कि जब सामान्य नागरिकों के हितों के लिए समर्पित सरकार होती है, जब सरकार ईमानदारी से जनता की तकलीफ़ों को दूर करना चाहती है, तो बदलाव भी होता है, और परिणाम भी आते हैं। मैं चाहूंगा कि देश में इन फैसलों की ज्यादा से ज्यादा चर्चा हो ताकि हर भारतीय को पता चले कि न्याय के लिए उसकी शक्ति कितनी बढ़ गई है। इससे अपराधियों को भी पता चलेगा कि अब तारीख पर तारीख के दिन लद गए हैं।

साथियों,

नियम या कानून तभी प्रभावी रहते हैं, जब समय के मुताबिक प्रासंगिक हों। आज दुनिया इतनी तेजी से बदल रही है। अपराध और अपराधियों के तोर-तरीके बदल गए हैं। ऐसे में 19वीं शताब्दी में जड़ें जमाए कोई व्यवस्था कैसे व्यावहारिक हो सकती थी? इसीलिए, हमने इन क़ानूनों को भारतीय बनाने के साथ-साथ आधुनिक भी बनाया है। यहां अभी हमने देखा भी कि अब Digital Evidence को भी कैसे एक महत्वपूर्ण साक्ष्य के रूप में रखा गया है। जांच के दौरान सबूतों से छेड़छाड़ ना हो, इसके लिए पूरे प्रोसेस की वीडियोग्राफी को अनिवार्य किया गया है। नए कानूनों को लागू करने के लिए ई-साक्ष्य, न्याय श्रुति, न्याय सेतु, e-Summon Portal जैसे उपयोगी साधन तैयार किए गए हैं। अब कोर्ट और पुलिस की तरफ से सीधे फोन पर, electronic mediums से सम्मन सर्व किए जा सकते हैं। विटनेस के स्टेटमेंट की audio-video recording भी की जा सकती है। डिजिटल एविडेंस भी अब कोर्ट में मान्य होंगे, वो न्याय का आधार बनेंगे। उदाहरण के तौर पर, चोरी के मामले में फिंगर प्रिंट का मिलान, बलात्कार के मामलों में DNA sample का मिलान, हत्या के केस में पीड़ित को लगी गोली और आरोपी के पास से जब्त की गई बंदूक के साइज़ का मैच....विडियो एविडेंस के साथ ये सब कानूनी आधार बनेंगे।

साथियों,

इससे अपराधी के पकड़े जाने तक अनावश्यक समय बर्बाद नहीं होगा। ये बदलाव देश की सुरक्षा के लिए भी उतने ही जरूरी थे। डिजिटल साक्ष्यों और टेक्नोलॉजी के इंटिग्रेशन से हमें आतंकवाद के खिलाफ लड़ने में भी ज्यादा मदद मिलेगी। अब नए क़ानूनों में आतंकवादी या आतंकी संगठन कानून की जटिलताओं का फायदा नहीं उठा सकेंगे।

साथियों,

नई न्याय संहिता, नागरिक सुरक्षा संहिता से हर विभाग की productivity बढ़ेगी और देश की प्रगति को गति मिलेगी। कानूनी अड़चनों के कारण जो भ्रष्टाचार को बल मिलता था, उस पर लगाम लगाने में मदद मिलेगी। ज़्यादातर विदेशी निवेशक पहले भारत में इसलिए निवेश नहीं करना चाहते थे, क्योंकि कोई मुकदमा हुआ तो उसी में वर्षों निकल जाएंगे। जब ये डर खत्म होगा, तो निवेश बढ़ेगा, देश की अर्थव्यवस्था मजबूत होगी।

साथियों,

देश का कानून नागरिकों के लिए होता है। इसलिए, कानूनी प्रक्रियाएँ भी पब्लिक की सुविधा के लिए होनी चाहिए। लेकिन, पुरानी व्यवस्था में process ही punishment बन गया था। एक स्वस्थ समाज में कानून का संबल होना चाहिए। लेकिन, IPC में केवल कानून का डर ही एकमात्र तरीका था। वो भी, अपराधी से ज्यादा ईमानदार लोगों को, जो बेचारे विक्टिम हैं, उनको डर रहता था। यहाँ तक की, सड़क पर किसी का एक्सिडेंट हो जाए तो लोग मदद करने से घबराते थे। उन्हें लगता था कि उल्टा वो खुद पुलिस के पचड़े में फंस जाएंगे। लेकिन अब मदद करने वालों को इन परेशानियों से मुक्त कर दिया गया है। इसी तरह, हमने अंग्रेजी शासन के 1500 से ज्यादा कानून, पुराने कानूनों को भी खत्म किया। जब ये कानून खत्म हुये, तब लोगों को हैरानी हुई थी कि क्या देश में ऐसे-ऐसे कानून हम ढ़ो रहे थे, ऐसे-ऐसे कानून बने थे।

साथियों,

हमारे देश में कानून नागरिक सशक्तिकरण का माध्यम बनें, इसके लिए हम सबको अपना नज़रिया व्यापक बनाना चाहिए। ये बात मैं इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि हमारे यहाँ कुछ क़ानूनों की तो खूब चर्चा हो जाती है। चर्चा होनी भी चाहिए लेकिन, कई अहम कानून हमारे विमर्श से वंचित रह जाते हैं। जैसे, आर्टिकल-370 हटा, इस पर खूब बात हुई। तीन तलाक पर कानून आया, उसकी खूब चर्चा हुई। इन दिनों वक़्फ़ बोर्ड से जुड़े कानून पर बहस चल रही है। हमें चाहिए, हम इतना ही महत्व उन क़ानूनों को भी दें जो नागरिकों की गरिमा और स्वाभिमान बढ़ाने के लिए बने हैं। अब जैसे आज अंतर्राष्ट्रीय दिव्यांग दिवस है। देश के दिव्यांग हमारे ही परिवारों के सदस्य हैं। लेकिन, पुराने क़ानूनों में दिव्यांगों को किस कैटेगरी में रखा गया था? दिव्यांगों के लिए ऐसे-ऐसे अपमानजनक शब्दों का प्रयोग किया गया था, जिन्हें कोई भी सभ्य समाज स्वीकार नहीं कर सकता। हमने ही सबसे पहले इस वर्ग को दिव्यांग कहना शुरू किया। उन्हें कमजोर फील कराने वाले शब्दों से छुटकारा दिया। 2016 में हमने Rights of Persons with Disabilities Act लागू करवाया। ये केवल दिव्यांगों से जुड़ा कानून नहीं था। ये समाज को और ज्यादा संवेदनशील बनाने का अभियान भी था। नारी शक्ति वंदन अधिनियम अभी इतने बड़े बदलाव की नींव रखने जा रहा है। इसी तरह, ट्रांसजेंडर्स से जुड़े कानून, Mediation act, GST Act, ऐसे कितने ही कानून बने हैं, जिन पर सकारात्मक चर्चा आवश्यक है।

साथियों,

किसी भी देश की ताकत उसके नागरिक होते हैं। और, देश का कानून नागरिकों की ताकत होता है। इसीलिए, जब भी कोई बात होती है, तो लोग गर्व से कहते हैं कि- I am a law abiding citizen. कानून के प्रति नागरिकों की ये निष्ठा राष्ट्र की बहुत बड़ी पूंजी होती है। ये पूंजी कम न हो, देशवासियों का विश्वास बिखरे ना...ये हम सबकी सामूहिक ज़िम्मेदारी है। इसलिए, मैं चाहता हूं कि हर विभाग, हर एजेंसी, हर अधिकारी और हर पुलिसकर्मी नए प्रावधानों को जाने, उनकी भावना को समझे। विशेष रूप से मैं देश की सभी राज्य सरकारों से अनुरोध करना चाहता हूँ, भारतीय न्याय संहिता, नागरिक सुरक्षा संहिता...प्रभावी ढंग से लागू हो, उनका जमीन पर असर दिखे, इसके लिए सभी राज्य सरकारों को सक्रिय होकर काम करना होगा। और मेरा फिर कहना है...नागरिकों को अपने इन अधिकारों की ज्यादा से ज्यादा जानकारी होनी चाहिए। हमें मिलकर इसके लिए प्रयास करना है। क्योंकि, ये जितना प्रभावी तरीके से लागू होंगे, हम देश को उतना ही बेहतर भविष्य दे पाएंगे। ये भविष्य आपके भी और आपके बच्चों का जीवन तय करने वाला है, आपके सर्विस satisfaction को तय करने वाला है। मुझे विश्वास है, हम सब मिलकर इस दिशा में काम करेंगे, राष्ट्र निर्माण में अपनी भूमिका बढ़ाएंगे। इसी के साथ, आप सभी को, सभी देशवासियों को एक बार फिर भारतीय न्याय संहिता, नागरिक सुरक्षा संहिता की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ देता हूं, और चंडीगढ़ का ये शानदार माहौल, आपका प्यार, आपका उत्साह उसको सलाम करते हुए मेरी वाणी को विराम देता हूं।

बहुत-बहुत धन्यवाद!