भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमान अमित भाई, श्रद्धेय आडवाणी जी, मंच पर विराजमान सभी वरिष्ठ महानुभाव और देश के कोने-कोने से आये हुए भारतीय जनता पार्टी के सभी वरिष्ठ नेतागण।
पचास साल पहले इसी नगर में भारतीय जनसंघ ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी को अध्यक्ष के रूप में चुना था। पचास साल बाद 2016 में हम इसी नगर में पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जन्म शताब्दी के प्रारंभिक कार्यक्रम के लिए उपस्थित हुए हैं। वो समय था... यात्रा का एक पड़ाव था, तब हम भारतीय जनसंघ के रूप में थे और ये नगर कालीकट के रूप में जाना जाता था। हम भारतीय जनसंघ से भारतीय जनता पार्टी बन गए, कालीकट कोझिकोड बन गया और कालीकट कोझिकोड इसलिए बना कि वो अपने मूल की और जड़ों से जुड़ना चाहता था। कालीकट उसके लिए जड़ों से जुड़ने का एहसास नहीं कराता था और इसलिए उसने अपनी एक पहचान बनाई, जिस पहचान के साथ इस नगर का इतिहास, यहाँ की परम्पराएं, यहाँ की विशेषताएं सहज रूप से जुडी हुई हों। हम भारतीय जनसंघ से भारतीय जनता पार्टी बने, लेकिन हम भी आज उसी जगह पर आये ताकि पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी ने हमें भारत की राजनीति भारत की जड़ों से जुडी हुई हो ये जो हमें मंत्र दिया था, उस मंत्र को फिर से एक बार चेतना देना, नए उमंग और नए उत्साह के साथ फिर एक बार चल पड़ना, किसी भी राजनीतिक दल के लिए सत्ता के सिंहासन पर पहुंचना, एक प्रकार से यात्रा का अंत ही होता है। उसे लगता था जिस काम के लिए निकले थे... पहुँच गए। इस देश के एक प्रधानमन्त्री को एक बार पूछा गया था कि आप कितना समय प्रधानमंत्री पद पर रहोगे? क्यूंकि बड़े अस्थिरता के माहौल में वो प्रधानमंत्री बने थे। तो उन्होंने जवाब दिया था उस पत्रकार को सामने देखकर के कि भाई जो एवरेस्ट पर जाता है वो वहां पर घर बसाने के लिए जाता है क्या? वहां रहने के लिए जाता है क्या? एक बार पहुँच गया, पहुँच गया, इतिहास लिख लेगा कि हम एवरेस्ट पर पहुँच गए। वे बोले मैं एक बार प्रधानमंत्री बन गया, बन गया, अब आगे रहूँ या न रहूँ। हम वो यात्रा के यात्री नहीं हैं, हम सब लोग लेने, पाने, बनने के लिए निकले हुए लोग नहीं हैं। अगर लेना, पाना, बनना होता तो अपनी राजनीतिक यात्रा में हम भी कई सारे समझौते कर लेते। पचास-पचास साल तक विपक्ष में भूमिका निभाने के बजाय खुद के लिए जगह बनाने की कोशिश करते। लेकिन इस दल का मूलचरित्र रहा, इस दल के कार्यकर्ताओं का मूलचरित्र रहा कि जिन आदर्शों को लेकर के चल पड़े थे, उन आदर्शों की पूर्ति के लिए “चरैईवेति, चरैईवेति, चरैईवेति” का मंत्र लेकर के जन सामान्य के कल्याण के लिए अपने आप को खपा देंगे। और पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी जिनकी हम शताब्दी मानाने जा रहे हैं वे हमें यही तो मंत्र देके गए थे: ‘अन्त्योदय’, ‘दरिद्र नारायण’ और शास्त्रों ने भी तो हमें सिखाया है; जन सेवा ही प्रभु सेवा। सवा सौ करोड का देश हो, 800 मिलियन... 65% लोग 35 से कम आयु के हों, जिस देश की जवानी, लबालब जवानी से भरा हुआ देश हो, उस देश के सपने भी जवान होने चाहिए, उस देश के संकल्प भी जवान होने चाहिए और उस देश की यात्रा की गति भी जवान को शोभा देने जैसी होनी चाहिए और इसलिए पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी ने जिन बातों को हमें कहा है, ये शताब्दी का वर्ष हम भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं के लिए एक ऑल्टरनेटिव राजनीतिक चिंतन क्या हो सकता है, विचार और आचार में साम्यता क्या हो सकती है, आचार के माध्यम से राजनीति में पुनः प्रतिष्ठा का माहौल हम बना सकते हैं, हम चाहे या न चाहें। जब आज़ादी का आन्दोलन चलता था तो आज़ादी के दीवाने, आज़ादी के लिए मर-मिटने वाले लोग उस समय की हर पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत हुआ करते थे। लेकिन आज़ादी के बाद राजनीतिक जीवन में जो बदलाव आया, राजनीतिक जीवन में जो गिरावट आई, सार्वजनिक जीवन में आचार के प्रति आशंकाओं का माहौल बना और एक ऐसा वक़्त आ गया कि बेटा अपने दोस्तों को ये परिचय नहीं करवाता है कि मेरे पिता एक नेता हैं। शायद, उसे कभी-कभी मन में संकोच होता है। शायद दोषी कुछ लोग होंगे, कुछ लोगों के आचरण के कारण लोकतान्त्रिक जीवन में अगर पॉलिटिकल इंस्टिट्यूशन्स में इस प्रकार की गिरावट जन सामान्य के मन में प्रस्थापित हो जाये तो उससे लोकतंत्र के लिए बहुत बड़ा खतरा पैदा होता है। लोकतंत्र में राजनीतिक दलों का होना बहुत स्वाभाविक है, जन प्रतिनिधियों का होना अनिवार्य है। भारतीय जनता पार्टी के नाते, हम पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जन्म शताब्दी मना रहे हैं तब, हम आचार और विचार के माध्यम से देश के सामान्य नागरिक के मन में फिर से एक बार इस इंस्टिट्यूशन की प्रतिष्ठा पुनः प्रस्थापित कर सकते हैं क्या? राजनेताओं की तरफ लोगों का देखने का दृष्टिकोण हम बदल सकते हैं क्या? हमारे लिए नहीं, अपने लिए नहीं, दल के लिए नहीं देश के लोकतंत्र के लिए आवश्यक हुआ है कि हम सच्चे अर्थ में एक ऑल्टरनेट क्या होता है, सब कुछ डूब चुका है ये गलत है। अब भी आशा जीवित है, अब भी अच्छे लोगों की कमी नहीं है और अच्छाइयों के साथ चलने वाले लोग आज भी हैं, ये विश्वास पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जन्म शताब्दी में अगर कोई निभा सकता है, अगर उसे कोई कर सकता है, तो प्रमुख रूप से कोई और नहीं कर सकता ऐसा मैं नहीं मानता। और दलों में भी अच्छे लोग हैं। लेकिन हमारे पास शायद ये मात्रा ज्यादा होगी क्यूंकि हम कई बीमारियों से बचे हुए लोग हैं। लेकिन बीमारी इतनी फ़ैल चुकी है कि अपने आप को बचाए रखने के लिए सतत जागरूक रहना पड़ता है, सतत पुरुषार्थ करना पड़ता है। हमारे सभी वरिष्ठ महानुभावों ने जैसा हमारा लालन-पालन किया है, हमें तैयार किया है और आज जब पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी की शताब्दी के लिए हम आगे बढ़ रहे हैं तब, हम विचार और अचार के माध्यम से हम उन आदर्शों के लघु प्रतीक भी बन सकते हैं क्या? एक छोटे प्रतीक भी बन सकते हैं क्या? इससे बड़ी श्रद्धांजलि उनके लिए क्या हो सकती है! दीनदयाल उपाध्याय जी ‘सर्व जन हिताय, सर्व जन सुखाय’ इसी बात को लेकर काम करते थे और वो कहते थे “समाज का कोई भी अंग हमारे लिए अछूत नहीं होना चाहिए”। समाज के सभी लोगों के प्रति, सभी वर्गों के प्रति, सभी पन्थों के प्रति हमारा भाव क्या हो? आज से पचास साल पहले जो लोग जनसंघ को समझने की गलती करते थे, जो लोग आज भी भारतीय जनता पार्टी को समझने की गलती करते हैं और जो कुछ लोग जान-बूझकर के भारतीय जनता पार्टी को गलत प्रस्तुत करने का अविरत प्रयास करते हैं। पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी ने कहा था, खास कर के हमारे यहाँ ‘सेकुलरिज्म’ की जो एक विकृत परिभाषा चल रही है, हमारे यहाँ देशभक्ति को भी कोसा जाता है, इस प्रकार का जो माहौल बना दिया गया है। ऐसे समय माइनॉरिटी की तरफ देखने का दृष्टिकोण क्या हो? मैं पचास साल पहले पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी ने जो कहा था, ताकि जिन लोगों को ग़लतफ़हमी हो उनको सोचने के लिए मजबूर करने वाली बात है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी ने कहा था “मुसलमानों को न पुरस्कृत करें और न ही उनको तिरस्कृत करें बल्कि उनका परिष्कार करें। मुसलमानों को न वोट की मंडी का माल और न ही कोई घृणा की वस्तु समझें, उसे अपना समझें।”
पचास साल पहले दीनदयाल उपाध्याय जी ने हमारे सामने विषय रखा था। दलित, पीड़ित, शोषित, वंचित, गाँव, गरीब, किसान... ये हमारे राजनीतिक नारे नहीं हैं, ये हमारा कमिटमेंट है। ‘सबका साथ-सबका विकास’ ये विचार जब हम प्रस्तुत करते हैं तब समाज का आखिरी छोर का व्यक्ति यही हमारी आराधना का केंद्र होना चाहिए और यही तो अन्त्योदय की सीधी-सादी, सरल परिभाषा है और पंडित जी ने कहा था “समाज की अंतिम सीढ़ी पर जो बैठा हुआ है; दलित हो, पीड़ित हो, शोषित हो, वंचित हो, गाँव हो, गरीब हो, किसान हो... सबसे पहले उसका उदय होना चाहिए। राष्ट्र को सशक्त और स्वावलंबी बनाने के लिए समाज को अंतिम सीढ़ी पर ये जो लोग हैं उनका सामाजिक, आर्थिक विकास करना होगा।” इस मुल्क, वैचारिक पिंड से पले हुए हम लोग हैं और इसलिए दल के रूप में भी और जहाँ-जहाँ हमें सत्ता के माध्यम से सेवा करने का मौका मिला है वहां भी, इसी भाव को केंद्र में रखते हुए आगे बढ़ने का हम प्रयास करते रहे हैं। अब और पूरी ताकत लगाकर के, पूरा जोर लगाकर के दीनदयाल उपाध्याय की जन्म शताब्दी में ऐसा काम करके दिखाएं ताकि पंडित जी को एक सच्ची श्रद्धांजलि देने का समाधान हम लोगों के दिल में हो, हमारे मन में वो भाव जगे। दीनदयाल जी साफ़ बोलने वाले व्यक्ति थे लेकिन वैचारिक स्पष्टता इतनी रहती थी। आज कभी-कभी कुछ बातें हमारे कानों में सुनाई देती हैं, कभी-कभी हर बात को अलग तरीके से देखने का एक तौर-तरीका दिखाई देता है। उस समय जब वे दलित, पीड़ित, शोषित, वंचित, गाँव, गरीब, किसान इनके कल्याण की बात करते थे तब समाज के अग्र वर्ग को भी बेझिझक वे कहते थे। उन्होंने कहा था “अगर सभी को बराबरी में लाना है तो... अगर सभी को बराबरी में लाना है तो ऊपर के लोगों को झुक करके अपने हाथ वंचित लोगों तक बढ़ाने चाहिए, तब जाकर के उसको हम ऊपर उठा सकते हैं।” पंडित जी के चिंतन में अंगांगी भाव, उसकी चर्चा आती थी। आज आप अगर ये अंगांगी शब्द आप कहेंगे तो पता नहीं, कहाँ से कहाँ चर्चा पहुँच जाएगी! लेकिन सीध-सादा, सरल ये था कि जैसे शरीर में एकात्म भाव होता है; अगर आँख को कुछ हो जाए तो हाथ इस बात का इंतज़ार नहीं करता है कि मैं क्यूँ उधर जाऊं, उसकी आँख में पड़ा है वो संभाले अपना, पैर में कांटा लग जाये तो हाथ ये नहीं कहता है कि मेरा क्या लेना-देना? ये तो पैर को कांटा लगा है, वो जाने, उसका काम जाने; आँख नहीं कहती है, अरे उसको कांटा लगा है मैं क्यूँ आंसू बहाऊँ? लेकिन अंगांगी भाव, एकात्म शरीर की अनुभूति ऐसी होती है कि कांटा पैर में लग जाये तुरंत हाथ वहीँ पहुँच जाता है, पूरे शरीर को वेदना होती है, आँख से आंसू टपकता है, ये अंगांगी भाव होता है। समाज के अन्दर भी, समाज के भीतर भी अंगांगी भाव होना चाहिए, समाज के किसी कोने में भी किसी को दर्द हो पूरे समाज को उसकी पीड़ा होनी चाहिए। समाज के कोने में बैठे किसी व्यक्ति पर भी जुल्म हो, अन्याय हो, कठिनाई हो उसकी पीड़ा समग्र समाज को होनी चाहिए, ये अंगांगी भाव, सवा सौ करोड़ का देश, इन सवा सौ करोड देशवासी, हम उसको एकात्म भाव से अनुभव करें। हमारी राजनीति की यही तो दिशा है कि कोई हमारे लिए पराया नहीं हो सकता। हमारी विकास की यात्रा में कोई पीछे नहीं रह सकता लेकिन प्रारम्भ करेंगे, जो पीछे है उसी की भलाई से शुरू करेंगे और ये सिर्फ एकात्म समाज रचना के साथ-साथ भौगोलिक दृष्टि से भी... जैसे स्वस्थ समाज, वैसे स्वस्थ शरीर.... अगर किसी व्यक्ति का एक हाथ काम नहीं कर रहा है, दुर्बल है, अविकसित है, शरीर के और अंगों की तुलना में छोटा है तो उसे स्वस्थ शरीर नहीं कहा जाता है, वैसे ही हमारी ये भारत माता; अगर उसका कोई हिस्सा, कोई भूभाग, कोई प्रदेश, कोई जिला, कोई इलाका, ये अगर अविकसित रह जाता है, पीछे रह जाता है तो फिर हमारी भारत माता का विकास भी तो स्वस्थ नहीं होता है और इसलिए हिंदुस्तान के सभी क्षेत्रों में, सभी भू-भाग में, सभी समाज में, सभी लोगों के लिए विकास के समान अवसर की संभावनाओं को हमने तराशते रहना चाहिए, प्रयास करते रहना चाहिए। अगर हिंदुस्तान का पश्चिमी छोर आगे बढ़ जाये और हिंदुस्तान का पूर्वी छोर विकास की यात्रा में पिछड़ जाये तो ये भारत माता स्वस्थ नहीं लगेगी और इसलिए इस सरकार की कोशिश है कि हमारे हिंदुस्तान का पूर्वी इलाका चाहे पूर्वी उत्तर प्रदेश हो, बिहार हो, उड़ीसा हो, बंगाल हो, असम हो, नार्थ-ईस्ट हो, ये सारा भू-भाग जहाँ अपार प्राकृतिक सम्पदा है, तेजस्वी ओजस्वी जन सामान्य का जन सागर है।
हम ऐसे देश को आगे बढ़ाए ताकि जैसे भारत के पश्चिमी छोर में आर्थिक गतिविधि नज़र आ रही हैं...वैसी ही आर्थिक गतिविधि हिन्दुस्तान के पूर्वी छोर पर भी नज़र आ जाए। यही तो एक आत्मभाव है। वही तो एक आत्मदर्शन की अनुभूति का परिणाम है और इसीलिए आज हम जहां शासन की व्यवस्था में बैठे हुए हैं। हमारी हर कोशिश यह होनी चाहिए और कोशिश ये रहेगी कि हम असंतुलन को कैसे कम करें। संतुलित विकास यात्रा को हम कैसे आगे बढ़ाएं। और उस पर हम बल देते हुए किस प्रकार से हम आगे दिशा में करना चाहते हैं। कभी-कभी हम लोग प्राकृतिक संतुलन के सम्बन्ध में भी इन दिनों काफी चिंतित नज़र आते हैं। पूरा विश्व ग्लोबल वॉर्मिग, क्लाइमेट चेंज इससे परेशान नज़र आता है। हमारे यहां भी बारिश का टाइम-टेबल गड़बड़ हो जाए, बारिश कम-अधिक हो जाए तो सामान्य मानवीय भी कहने लगा है कि भाई प्रकृति रूठ गई है। प्रकृति में बदलाव आ गया है। दुनिया आज ग्लोबल वॉर्मिंग की चिंता करती है.. पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी ने विकास की अवधारणा की जब चर्चा की तो उस समय उन्होंने कहा था और वो कहते थे प्राकृतिक संसाधनों का हमें उतना ही दोहन करना चाहिए जिसके लिए वे सक्षम हों, अगर वही नष्ट ही जाएं और हम प्रयोग करते रहेंगे तो पूरा प्रकृति का चक्र ही नष्ट हो जाएगा। पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी ने ये कहा उसके बाद वर्षों बीत गए... बड़ी देर से दुनिया को ध्यान आया कि अनाप-शनाप स्वसुख के लिए हम सृष्टि का विनाश कर रहे हैं, ये हमारे ही विनाश का कारण बनने वाला है। आज पूरी दुनिया एक बात की मशक्कत कर रही है कि दो डिग्री temperature बढ़ने से कैसे रोका जाए। जो है उसे कम करने वाली बात अभी नहीं है जो बढ़ने वाला है उसमें दो डिग्री कम बढ़े Temperature.. इसके लिए COP21 हुआ पेरिस में...एक लंबे समय तक यह छवि थी कि भारत इन सब चीज़ों में अड़ंगे डालता है, भारत इन चीज़ों में रुकावट डालता है। पहली बार दुनिया ने देखा कि दुनिया के देश पेरिस में जब मिले थे और पर्यावरण की चर्चा कर रहे थे, COP21 के तहत जो निर्णय होना था.. सारे विश्व ने कहा कि भारत ने बहुत ही अग्रिम और सकारात्मक भूमिका निभाई। और दुनिया को ग्लोबल वॉर्मिंग से बचाने में भारत अग्रदूत बना है। यही तो पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के विचार थे, जिसको साकार करने का प्रयास COP21 हो, अंतरराष्ट्रीय समूह मिला हो और भारत की पुरानी छवि अलग हो... तब भी जाकर के हिम्मत के साथ COP21 के अंदर भारत नेतृत्व की भूमिका अदा करे। और हम जानते हैं कि अगर दो डिग्री टेम्परेचर बढ़ने की संभावना बढ़ गई तो दुनिया के कई देश वैज्ञानिकों का कहना है कि समुन्द्री तट पर स्थित देशों के लिए बहुत बड़ा जीवन-मरण का संकट पैदा हो जाएगा। तब तो हमारा केरल भई अछूता नहीं रह सकता, हमारे समुन्द्र तट के शहर अछूते नहीं रह सकते। तब हम सब की ज़िम्मेदारी बनती है कि उस संकट से बचाया जाए और आज 25 सितम्बर पंडित दीनदयाल की जन्मशती का अवसर है... उस समय मैं बड़े गर्व के साथ कहना चाहता हूं कि पंडित जी ने हमे जो मार्ग दिखाया, पर्यावरण की रक्षा के प्रति जागरूक किया, प्राकृतिक संसाधनों के अमर्यादित उपयोग से हमें चेताया..अब जब COP21 में दुनिया के सभी देशों ने जो निर्णय किए उसके अंदर एक काम बाकी है। उसका Ratification होना है। भारत ने भी वो Ratification करना है... भारत ने हमनें उसके लिए जो आवश्यक है कि हम 2030 तक क्या करेंगे... कैसा करेंगे... इसकी सारी बातें हमनें पेरिस में बताई थीं। लेकिन अब वक्त आया है Ratification का और जब दुनिया के 55 देश इसको Ratify करेंगे, तब जाकर के ये लागू होने वाला है। आज मैं 25 सितम्बर पंडितत दीनदयाल उपाध्याय की जन्मशती पर पूरे विश्व के सामने घोषणा करना चाहता हूं कि 02 अक्टूबर, एक सप्ताह के बाद महात्मा गांधी की जन्मजयंती पर भारत COP21 के जो निर्णय किए गए हैं, जिसमें भारत ने जो ज़िम्मेदारी उठाने का जो फैसला किया है उसे हम 02 अक्टूबर को Ratify करेंगे क्योंकि महात्मा गांधी का जीवन... महात्मा गांधी का जीवन मिनिमम कॉर्बन फुटप्रिन्ट वाला जीवन था। उससे बड़ा दुनिया के लिए प्रकृति के साथ संवार देने वाला जीवन क्या हो सकता है शायद महात्मा गांधी से बढ़कर के कोई उदाहरण नहीं हो सकता है और इसीलिए 02 अक्टूबर को भारत सरकार भारत के सवा सौ करोड़ देशवासी COP21 में जो निर्णय हुए उस दिशा में लागू करने की दिशा में Ratification का अपना काम हम 02 अक्टूबर को कर लेंगे। लेकिन आज यह एक ऐसा अवसर है कि इसकी घोषणा करना मुझे आज यहां उचित लगता है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी की जन्मशती सरकारी स्तर पर भी मनाई जाएगी। भारत सरकार ने भी पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी की जन्मशती मनाने के लिए कमेटी बनाई है। सरकार की तरफ से अनेक योजनाएं आने वाले दिनों में बनेंगी। आपके मन में भी कुछ सुझाव हों तो आप भी हम तक ज़रूर पहुंचाइए। लेकिन जैसा पंडित जी का चिन्तन था उस चिन्तन के आधार पर गरीब कल्याण... उसी को हम केन्द्र में रख कर के गरीब कल्याण के जो काम हैं उन कामों का गति कैसे मिले.... उन कामों का व्याप कैसे बढ़े और देश का गरीब गरीबी के खिलाफ लड़ने के लिए Empower कैसे हो उसके अंदर वो शक्ति पैदा हो.. ताकि वो गरीबी को परास्त करने के लिए हमारे इस जंगका सबसे बड़ा साथी बन सके। और इसलिए और जब सरकार बनी थी, जब एनडीए ने मुझे प्रधानमंत्री के रूप में अपने नेता के रूप में चुना था, उस दिन भी मैंने कहा था कि हमारी ये सरकार गरीबों को समर्पित है और जितनी योजनाएं बनीं... कई योजनाओं का वर्णन यहां हुआ है... मैं योजनाओं का वर्णन करने नहीं जा रहा हूं। उन सभी योजनाओं के केन्द्र बिन्दु में वो लोग हैं जो कभी पहले सरकार की विकास की योजनाओं के केन्द्र बिन्दु नहीं थे।
और इसलिए देश के सामान्य मानवीय को Empower करना उस बात को केन्द्र में रखते हुए कार्य की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास किया है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी की जन्मशती में स्वाभाविक रूप से हमें एख नई ताकत मिलेगी। पिछली कार्य समिति में पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी की जन्मशती के निमित्त मैंने कार्य़कर्ताओं के सामने एकप्रस्ताव रखा था, पंडित जी का मंत्र था चरैईवेती...चरैईवेती...चरैईवेती... आज हम सब जहां खड़े हैं, जहां पहुंचे हैं, उसके मूल में उन हज़ारों कार्य़कर्ताओं की श्रेणी भी है जिन्होंने अपना घर-बार छोड़कर के पूर्ण समय संगठन के लिए समर्पित किए। अनेक पीढ़ियां उसमें खप गईं। कैडर बेस्ड पार्टी बनाने में उसकी अहम भूमिका रही है। भारतीय जनसंघ सिर्फ कैडर बेस्ड पार्टी थी, भारतीय जनता पार्टी कैडर बेस्ट मास पार्टी है। और जब हम कैडर बेस्ड मास पार्टी हैं तब हम मास पार्टी तो बनते चले और कैडर सिकुड़ती जाए... ये नहीं चल सकता... दोनों का बेलैंस बना रहना चाहिए। और क्या हम पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी की जन्मशती को पार्टी की कैडर के लिए... संगठन शास्त्र के आदर्शों के लिए... मूल्यों के लिए... हम फिर से एक बार ग्यारह करोड़ मेम्बर वाली पार्टी... इन ग्यारह करोड़ मेम्बरों को कैडर में Convert करना...एक बहुत बड़ा ज़िम्मेवारी भरा काम है। और अगर ये हमने कर लिया तो हिन्दुस्तान की राजनीति की मुख्यधारा... हम कहीं भी हों... हिन्दुस्तान की राजनीति की मुख्यधारा कोई बदल नहीं सकता...इतनी ताकत हम लोग खड़ी कर सकते हैं और वो मुख्यधारा जो हिन्दुस्तान की जड़ों से जुड़ी हुई हो... भारत की महान उज्जवल परम्पराओं के रसकस से पनपती हो...ऐसी राजनीति की मुख्यधारा हम प्रस्तावित कर सकते हैं। और इसीलिए मैंने आगृह किया था इस एक वर्ष के लिए हम समय देने के लिए आगे आएं। पार्टी जो कहे, जहां कहे.. जाएंगे। जिस अवस्था में रहना पड़े... रहेंगे। जहां अभी भी भारतीय जनता पार्टी की मूलबात न पहुंची हो हम वहां पहुचंगे और बात को पहुचाएंगे। आज जो रूप बना है उसका मूल कारण ऐसे अनेक लोग थे जिन्होंने अपना राजनीतिक इरादा नहीं था सिर्फ संगठन शास्त्र का इरादा था। राजनीतिक जीवन के लिए संगठन खड़ा करने का मकसद था और अपने आप को संगठन के लिए आहूति कर दिया था। आने वाले समय में ऐसे संगठन के कितने कार्यकर्ता हम निकाल सकते हैं। विस्तार के लिए हम कितने लोगों को निकाल सकते हैं। कोई छः महीने के लिए जाए.. कोई साल के लिए जाए... कोई ढाई साल के लिए निकले लेकिन हम एक बहुत बड़ी नई परम्परा और ये भी पंडित दीनदयाल की प्रेरणा से होना चाहिए। उससे बड़ी कोई प्रेरणा नहीं हो सकती। और पंडित जी का जो मंत्र था चरैईवेती...चरैईवेती...चरैईवेती। चलते रहो... अभी भी हमें देश में बहुत कुछ करना बाकी है। और करने का इरादा साफ है। संकल्प दृढ़ है और पुरुषार्थ की पराकाष्ठा करने की ठान रखी है। और इसीलिए भाईयों-बहनों, भारतीय जनसंघ, दीपक के प्रकाश से चला था, भारतीय जनता पार्टी सूरज की किरणों को अपने में समाहित करने वाले कमल के फूल के भरोसे चल पड़ा है। एक दीपक की ताकत और सूरज की सब किरणों को अपने में समाहित करने वाले उस कमल की ताकत को भांप करके हमनें आगे बढ़ने का निर्णय करना है। अगर हम उस निर्णय में चलते हैं तो हम देश की आशा-अपेक्षाएं... निराशा की गर्त में जो डूबे हुए हैं...समाज के एक वर्ग के प्रति जो निराशा पैदा हुई है, उसमें चेतना पैदा करने का काम हम कर सकते हैं। जिस पार्टी के पास इतनी बड़ी और हिन्दुस्तान में... हम ही हम हैं जिसके पास संगठन की इतनी बड़ी शक्ति है। हम ही हम हैं... जिसके पास निस्वार्थ संगठन कार्यकर्ताओं की फौज लगी हुई है। ये औरों के नसीब में नहीं है। और जिसके पास यह ताकत हो तो देश को बदलने का मादा भी रखता है। और ये बात सही भी है, सरकरी योजनाएं बनेंगी, इसी विचार से बनेंगी कि गांव, गरीब, किसान का भला करने के लिए बनेंगी। दलित, पीड़ित, शोषित, वंचित.. इनके कल्यांण के लिए बनेंगी। प्रधानमंत्री का जहां निवास स्थान है...वो गुलामी कालखंड से रेसकोर्स रोड नाम से जाना जाता है, अभी दीनदयाल जी शताब्दी वर्ष से उस मार्ग का नाम भी लोक कल्याण मार्ग कर दिया है। चीजें Symbolic होती हैं...लेकिन वे लंबे अरसे तक प्रेरणा का कारण भी बनती हैं। और ये बात सही है कि हमारा एक ही मकसद है, सबका साथ-सबका विकास। और ये बात भली-भांति हम जानते हैं कि देश की समस्याओं का समाधान मात्र ही मात्र विकास में है। समाज के प्रति खाई मिटानी है तो नीचे के तबकों का विकास खाई मिटाने में मदद करेगा। नौजवानों की ऊर्जा का उपयोग करना है तो विकास ही है जो ऊर्जा को Channelize कर पाएगा। और इसलिए हम सब के लिए आवश्यक है कि हम पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के जीवन को...उनके आदर्शों को...जिन मूल्यों की उन्होंने हमारे सामने प्रस्तुति की है और जो मूल्यों को वो जीते थे, उसे लेकर हम कैसे आगे बढ़ें। जैसे हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष जी कह रहे थे, मैं भी उन्हीं लोगों में से हूं...हमें भी पंडित दीनदयाल जी को देखने का सौभाग्य नहीं मिला। लेकिन जब से संगठन में आएं हैं और जिन-जिन लोगों के साथ काम करने का मौका मिला, हर किसी से दीनदयाल जी के लिए सुनने का अवसर मिलता था। वो कैसे रहते थे, कैसे बोलते थे, उनका स्वभाव कैसा था, ज्यादा ठंड होती थी तो उनको कैसे तकलीफ होती थी। बिना रिजर्वेशन ट्रेन के दूसरे दर्जे, तीसरे दर्जे के उस समय जो हुआ करते थे, उसमें कैसे ट्रेवल करते थे, कैसी कठिनाईयों से गुजारा करते थे। ऐसी अनेक घटनाएं पुराने-पुराने कार्यकर्ताओं के पास से सुनने को मिलती हैं। बाहर के लोगों का एक स्वभाव बना हुआ है, समाज का एक वर्ग है जिसके साथ कोई बड़ी आभा हो.. औरा हो, जरा ताम झाम हो.. चमक-धमक हो, कोई चमत्कार हो, तभी लोगों को लगता है हां यार कुछ है...। सादी सीधी निर्मल जिंदगी को, एक वर्ग ऐसा है कि उसको स्वीकार करने के लिए तैयार ही नहीं होता है। और इसिलिए जब हम पंडित दीनदयाल जी की बात करेंगे तो कई लोग हमें मिलेंगे...अच्छा ये कौन थे भाई। कुछ लोगों को बुरा लगेगा कि जब कोई पूछेगा कि दीनदयाल जी कौन थे, मुझे बड़ा गर्व होगा एक ऐसा दल जिस आदमी ने खड़ा किया...जीवन के बहुत छोटे समय में चले गए और एक ऐसा दल बना के गए जो आज हिन्दुस्तान पर शासन करने की शक्ति रखता है। वो इंसान कितना बड़ा होगा, उसकी ताकत को पहचानने के लिए ये आज का परिणाम ही काफी होगा। और इसलिए वे अपने कालखंड में शायद लोगों की नजर में नहीं आए होंगे, अखबार की सुर्खियों में नहीं दिखे होंगे, लोग चर्चा का विषय नहीं बने होंगे लेकिन इसके लिए वो उनका डिसक्वालिफिकेशन नहीं हो सकता, वो तो उनकी पूंजी थी, वह हमारी अमानत है और उसी अमानत को हम गर्व करें। जिस समय हम इस प्रकार की लोगों की चर्चा करते हैं तो एक वर्ग होता है वो कहता है कि आप लोग बड़े कमाल हो, छोटे-छोटे लोगों को भी बहुत बड़ा बना देते हो। मैंने ऐसे लोगों को एक बार कहा था कि जिनको आप छोटा मानते हो वो छोटे नहीं होते हैं पर तुम्हारा मन इतना छोटा है कि छोटी चीजों को देखने का सामर्थ्य तुम खो चुके हो लेकिन उसके अंदर जो विराट पड़ा हुआ है वो विराट का सृजन भी कर सकता है और उस विराट का सृजन हम आज देख रहे हैं। कल तक जिन्होंने स्वीकार नहीं किया था... हां जो रक्त को पहचानते हैं कर देते थे। हमने फिल्म में देखा श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कहा था कि अगर मेरे पास दो दीनदयाल हों.. दो... तो मैं हिन्दुस्तान की राजनीति की सूरत बदल सकता हूं। कैसा अजोड़ व्यक्तित्व तो होगा जिसका हम अंदाज लगा सकते हैं। आर्थिक नीतियों पर उनका गहन चिंतन था। उस समय आज से पचास साल पहले उन्होंने कहा था कि आर्थिक दिशा में सोचा जा रहा है, आर्थिक योजनाएं बन रही हैं, नीतियां घोषित हो रही हैं लेकिन दुर्भाग्य है कि इस ताम-झाम दिखने वाली अर्थव्यवस्थाओं में कही हिन्दुस्तान नजर नहीं आता है। भारत की जड़ो से जुड़ा हुआ नही है, ये अर्थ रचना काम नहीं करेगी उन्होंने कहा था लेकिन उनके कहने के पच्चीस साल बाद इस देश के अर्थ राजकर्ताओं को अपने आर्थिक चिंतन को बदलना पड़ा, 1992 में उन्हें पीछे जाना पड़ा... ये सारा देश इसका गवाह है। ये बात पंडित जी ने पचास साल पहले कही थी। और इसलिए वक्त के तकाजे पर हमारा आचार और विचार खरा उतर रहा है। पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जन्म शताब्दी मना रहे हैं तब... एक क्षेत्र है जिसकी व्यापक चर्चा करने का समय आ गया है। हमारे देश में चुनाव प्रक्रिया में सुधार। एक बहुत व्यापक चर्चा की आवश्यकता खड़ी हुई है। इतना बड़ा लोकतंत्र हमारी चुनाव प्रक्रियाएं कैसी हैं उसमें क्या कमियां हैं, धन का रोल क्या हो रहा है उसमें... शासकीय शक्ति का कितना विनिवेश हो रहा है, अलग-अलग चुनाव होने के कारण देश पर कितने प्रकार का बोझ पड़ता है। कई राजनीतिक दल के लोग मुझे मिलते हैं तो कहते हैं कि साहब चुनाव सुधार पर कुछ सोचना चाहिए। क्या पंडित दीनदयाल उपाध्याय जन्मशताब्दी के वर्ष में, हम पूरे देश में इसके सेमीनार ऑर्गनाइज कर सकते हैं, निष्पक्ष संगठनों के द्वारा कर सकते हैं। मंथन तो हो... और मंथन में से जो अमृत निकलेगा...निकलेगा। बने हुए विचारों से चुनाव सुधार नहीं होते हैं। प्रधानमंत्री कोई सुझाव दे दे उससे चुनाव सुधार होगा तो अच्छा नहीं होगा और होना भी नहीं चाहिए। लेकिन चुनाव सुधार पर मंथन होना चाहिए, चर्चा होनी चाहिए। हमारे चुनाव प्रक्रियाओं में क्या अच्छापन लाएं? सामान्य मानवीय के हकों को और बल कैसे मिले? वोट देने से कोई वंचित रह जाए, यह स्थिति हमारे लिए पीड़ा दायक हो ऐसा वातावरण हम कैसे बनाएं? लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत बनाने के लिए समय की मांग है कि हमारे चुनाव सुधारों में कई नई चीजें जोड़ने जैसी हैं, काल बाह्यत कई चीजें निकालने जैसी हैं। अगर इन चीजों को हम कर पाएंगे तो लोकतंत्र को स्वस्थ बनाने की दिशा में भी हम बहुत कुछ कर सकते हैं। करीब तीन दिन से यहां एक के बाद एक कार्यक्रम चल रहे हैं। कल भी सभी पदाधिकारी बैठे हुए थे और उसका जो वृत मुझे बताया गया, बहुत ही सार्थक चर्चा हुई है। भारतीय जनता पार्टी उत्साह और उमंग से भरी हुई पार्टी है, कार्यकर्ताओं का जज्बा बड़ा गजब है, मूड गजब है और उसको देखकर मुझे लगता है कि देश के सामन्य मानवीय आशा आकांक्षाओं की जो पूर्ति करनी है इन कार्यकर्ताओं के सामर्थ्य से हम इन चीजों को गरीब से गरीब के घर तक पहुंचाने में कामयाब होंगे... ऐसा विश्वास पैदा होता है। आज के प्रस्ताव पर भी बहुत अच्छी चर्चा हुई है। प्रस्ताव का सेंट्रल आइडिया भी हर किसी की चिंता करने का रहा है। और उसी को लेकर के हम आगे बढ़ना चाहते हैं। राष्ट्रीय अध्यक्ष जी का मार्ग दर्शन भी हम सबको नए उमंग और उत्साह के साथ कार्य करने की प्रेरणा देने वाला बना है। दूर-सुदूर केरल की धरती पर... जहां भारतीय जनता पार्टी के अनेक वीर कार्यकर्ताओं ने इस धरती को अपने रक्त से सींचा है। मैं खास करके मीडिया के मित्रों से प्राथना करूंगा कि आज यहां जो आहूति नाम की किताब बांटी गई है आप समय निकालकर के उसको पढ़िए। हम किसी की राजनीतिक विचारधारा को मानते नहीं हैं इस पर हमें कितने जुल्म झेलने पड़े हैं। हमारे कितने निर्दोष साथियों को मार दिया गया है। दिल्ली इतना दूर है कि शायद ये चीख दिल्ली में पहुंची नहीं होगी। लेकिन आज जब केरल में देश की मीडिया का ध्यान है, मानव अधिकारों की चर्चा करने वालों का ध्यान है, मैं उनसे आग्रह करूंगा कि क्या ये लोकतंत्र को शोभा देने वाली घटनाएं है। मैं आज भोजन कर रहा था तब मुझे एक कार्यकर्ता मिले। बड़ी मुश्किल से उसकी जिंदगी बच गई। उस पर ऐसा मार हुआ था ऐसा प्रहार हुआ था कि तीन महीने तक अस्पताल में वह जीवन और मृत्यु के साथ संघर्ष करता रहा। बस इसलिए कि हम आपसे अलग विचार रखते हैं। लोकतंत्र में ये कभी स्वीकार्य नहीं हो सकता। ये लोकतंत्र का रास्ता नहीं है और किसी के लिए भी नहीं है। मैं चाहूंगा कि केरल से इस ‘आहूति’ की चर्चा...मैं तो आप सबसे आग्रह करता हूं कि हर राज्य के अंदर तीन या चार स्थान पर इस आहूति किताब पर डिबेट होनी चाहिए, Intellectuals को बुलाएं, विचार-विमर्श करें कि क्या हुआ है। पूरा देश केरल के साथ खड़ा होना चाहिए। केरल के कार्यकर्ताओं ने तपस्या की है बलिदान दिए हैं और उनके बलिदान लोकतंत्र की भावनाओं को जगाने का कारण बन सकते हैं और हिंदुस्तान के और कोनो में इसे हम पहुंचा सकते हैं। और इसलिए मैं चाहूंगा, कि इसको सिर्फ एक...केरल गए थे... बहुत सारी किताबें मिली थी उसमें से एक थी... ऐसा नहीं है.... ये कुछ और है। इसको उस रूप में देखना चाहिए ये मेरा हर कार्यकर्ता से आग्रह है। जब अगली आपकी प्रदेश कार्यसमिति की बैठक होगी और मैं राष्ट्रीय अध्यक्ष और उनकी टीम का आभारी हूं कि उन्होंने राष्ट्रीय कार्य समिति के तुरंत बाद प्रदेश कार्य समितियों की डेट पहले से फिक्स कर दी। इस बार आपके कार्य समिति में एक कार्यकर्ता हो जो इस किताब पर पूरा ब्यौरा दे। इसकी चर्चा होनी चाहिए और हमें जुल्म सहना ये भी कभी-कभी जुल्म बढ़ाने का कारण बनता है। हम लोकतंत्र के मार्गों को कभी छोड़ेगें नहीं लेकिन लोकतांत्रिक तरीके से सत्य को उजागर करने का प्रयास अविरत करते रहेंगे और ये हमारा दायित्व बनता है। इस काम को हम करेंगे। मैं आशा करता हूं कि जिस धरती पर से पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी ने अध्यक्ष पद ग्रहण किया था, उनकी आत्मा ने हमेशा-हमेशा प्रेरणा दी है, उनके जीवन ने हमें ताकत दी है, उनके विचारों ने हमें संभल दिया है। ये शताब्दी वर्ष हमारे लिए नई ऊर्जा, नई चेतना, नई शक्ति का कारण बने इसी एक अपेक्षा के साथ पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के श्री चरणों में, उस महान पवित्र आत्मा को आदर-पूर्वक श्रद्धांजलि देते हुए देश के कोटि-कोटि जनों को आशा-आकांक्षाएं पूर्ण करने के लिए हम सब पर निरन्तर आशीर्वाद बने रहे ताकि हम गरीब का कल्याण कर पाएं, दलित पीड़ित, शोषित, वंचित का कल्याण कर पाएं, गांव, गरीब, किसान का कल्याण कर पाएं, पहले से अच्छा कर पाएं, अच्छे से भी और अच्छा करने का प्रयास करते रहें इसी एक भावना के साथ आप सब का बहुत-बहुत धन्यवाद।