QuoteSwami Pranavananda connected his disciples to service and spirituality: PM
QuoteDuring several natural disasters, BSS teams have served people with great dedication: PM Modi
QuoteSocietal development through 'Bhakti', 'Shakti' and 'Jan Shakti' was achieved by Swami Pranavananda: PM
QuoteSwami Pranavananda never liked social divisions and inequalities: PM
QuoteIn the last three years, the development of the Northeast has become a priority. Focus is on connectivity and infrastructure: PM

The Prime Minister, Shri Narendra Modi, today addressed the Centenary Celebrations of Bharat Sevashram Sangha through video conference. The event is being organized at Shillong.

Welcoming the Prime Minister on the occasion, the General Secretary of Bharat Sevashram Sangha, Sreemat Swami Biswatmananda ji Maharaj, spoke of the glorious spiritual and service traditions of India.

Addressing the gathering, the Prime Minister recalled the time that he had worked with the Bharat Sevashram Sangha in Gujarat. He conveyed his best wishes on the occasion to the Bharat Sevashram Sangha, which he said, combined the virtues of service (seva) and labour (shram).

He said the work of the organization in the North-East, and during the time of disasters, has been especially praiseworthy.

The Prime Minister explained the significance of serving the poor and the needy, as described in the scriptures.

He said Swami Pranavananda, the founder of Bharat Sevashram Sangha, had spoken of social justice a century ago, and established the Sangh for this purpose.

The Prime Minister said a myth has been sought to be created in recent times that “service” and “spirituality” are two different things. He said the Bharat Sevashram Sangha has been able to dispel this myth, through its work.

The Prime Minister said that societal development through 'Bhakti', 'Shakti' and 'Jan Shakti' was achieved by Swami Pranavananda.

The Prime Minister urged the Bharat Sevashram Sangha to work towards “Swachhagrah” – or cleanliness, especially in North-Eastern India. He spoke of the Government’s resolve to develop the North-East, and added that focus on connectivity and infrastructure could help develop the North-East to become a gateway to South-East Asia.

Sreemant Swami Ambareeshananda ji Maharaj, who had worked with the Prime Minister in Gujarat, and who was mentioned by the Prime Minister during his address, proposed the vote of thanks on the occasion.

Following are the excerpts of the Prime Minister’s address: 
देवियो और सज्‍जनों,

दिल्‍ली और शिलांग के बीच लगभग 2000 किलोमीटर की दूरी है। लेकिन तकनीक ने इस दूरी को मिटा दिया है। पिछले वर्ष मई के महीने में ही मैं शिलाँग आया था, आज जब video conference के माध्‍यम से आप सभी से बात करने का अवसर मिला है, आपके आशीर्वाद पाने का अवसर मिला है तो अनेक विगत समृतियां ताजा होना बहुत स्‍वाभाविक है। गुजरात में मुझे भारत सेवाश्रम संघ के सदस्‍य स्‍वर्गीय स्‍वामी अक्षयानंद जी महाराज के साथ बहुत निकट वात्‍सल्‍य का अवसर मिला, काम करने का मौका मिला था। मंच पर उपस्थित स्‍वामी अम्बरीशानंद जी, उनके सभी बाल काले थे; तब से जानता हूं। कई वर्षों तक उनके एक मित्र भाव से उनके साथ काम करता रहा। स्‍वामी गणेशानंद जी, कई वर्ष हो गए मिलना नहीं हुआ है लेकिन उनको भी भली भांति मेरा, उनके साथ भी निकट संपर्क रहा। आचार्य श्रीमत स्‍वामी प्रणबानंद जी महाराज, जिन्‍होंने भारत सेवा संघ की स्‍थापना की। इस वर्ष सेवा यात्रा के 100 वर्ष पूरे हो रहे हैं। सेवा और श्रम को भारत के निर्माण के लिए साथ-साथ लेकर चलने वाले संघ के सभी सदस्‍यों को मेरी तरफ से बहुत-बहुत शुभकामनाएं हैं।

किसी भी संस्‍था के लिए ये बहुत ही गौरव का विषय है कि उसकी सेवा का विस्‍तार 100 वर्ष पूरे कर रहा हो। और विशेषकर उत्‍तर-पूर्व के राज्‍यों में भारत सेवाश्रम संघ ने जन-कल्‍याणकारी कार्य बहुत ही प्रशंसनीय रहे हैं। बाढ़ हो या सूखा, या फिर भूकंप; भारत सेवाश्रम संघ के सदस्‍य पूरी तन्‍मयता से, सेवा भाव से, पीढि़तों को राहत पहुंचाते नजर आते हैं। संकट के समय जब इंसान को मदद की सबसे ज्‍यादा आवश्‍यकता होती है तो स्‍वामी प्रणबानंद जी के शिष्‍य सब कुछ भूल करके सिर्फ और सिर्फ मानव-सेवा में जुट जाते हैं। पीडि़त मनुष्‍य की सेवा तो हमारे शास्‍त्रों में तीर्थाटन के रूप में मानी जाती है। कहा गया है :-

एकत: क्रतव: सर्वे सहस्त्र वरदक्षिणा अन्यतो रोग-भीतानाम् प्राणिनाम् प्राण रक्षणम्

यानी एक ओर विधिपूर्वक सब को अच्‍छी दक्षिणा दे करके किया गया यज्ञ कर्म और दूसरी तरफ दुखी और रोग से पीडि़त मनुष्‍य की सेवा करना, ये दोनों कर्म उतने ही पुण्‍यप्रद हैं। यानी यज्ञ करना और दुखियारों की सेवा करना, दोनों की पवित्रता एक बराबर है; ये हमारे शास्‍त्रों ने हमें सिखाया है।

साथियो,

स्‍वामी प्रणबानंद जी ने अपनी आध्‍यात्मिक यात्रा के चरम पर पहुंचने पर भी, और ये कहा था- ये समय महा-मिलन, महा-जागरण, महा-मुक्ति और महा-समान न्‍याय का है। आज जो हम social justice की बात कर रहे हैं, स्‍वामी प्रणबानंद जी ने उस समय अपने कार्यकाल में social justice के लिए आवाज उठाई थी। इसी के बाद उन्‍होंने भारत सेवाश्रम संघ की नींव रखी थी।

1917 में स्‍थापना के बाद जिस सेवाभाव के साथ इस संस्‍था ने काम शुरू किया था, और उसे बड़ौदा के उस समय के महाराजा, महाराजा  सयाजीराव गायकवाड़ भी बहुत ही प्रभावित हुए थे। महाराजा  सयाजीराव गायकवाड़ स्‍वयं जिस अथक परिश्रम से लोगों के उत्‍थान के लिए कार्य  करते थे, वो जग-जाहिर है। लोक-कल्‍याण के कार्यों की चलती-फिरती संस्‍था की तरह वो थे, इ‍सलिए श्रीमंत स्‍वामी प्रणबानंद जी के देशभर में भेज सेवा-दूतों को उन्‍होंने जमीनी स्‍तर पर कार्य करते देखा तो महाराजा उनकी प्रशंसा किए बिना नहीं रह सके।

जनसंघ के संस्‍थापक, हम सबके प्रेरणा-पुरुष, श्रद्धेय श्‍यामाप्रसाद मुखर्जी तो स्‍वामी प्रणबानंद जी को अपने गुरू की तरह मानते थे। डॉक्‍टर मुखर्जी के विचारों में स्‍वामी प्रणबानंद जी के विचारों की झलक भी हम देख सकते हैं। राष्‍ट्र निर्माण के जिस vision के साथ स्‍वामी प्रणबानंद जी ने अपने शिष्‍यों को अध्‍यात्‍म और सेवा से जोड़ा, वो अतुलनीय है। जब 1923 में बंगाल में सूखा पड़ा और तब तो भारत सेवाश्रम संघ की उम्र सिर्फ छह साल थी1 जब 1946 में नोआखली में दंगे हुए, जब 1950 में जलपाईगुड़ी में बहुत बाढ़ आई, जब 1956 में कच्‍छ के अंदर अंजार में पहला भूकंप आया था, जब 1977 में आन्‍ध्र प्रदेश में भीषण चक्रवात आया था, जब 1984 में भोपाल में गैस-त्रासदी हुई; तो भारत सेवाश्रम संघ के लोगों ने पीडि़तों के बीच रहकर उनकी सेवा; वो आज भी लोग याद करते हैं।

हमें ध्‍यान रखना होगा कि ये वो समय था जब देश में disaster management को ले करके न इतनी एजेंसियां बनी थी, न इतनी चर्चा थी, न इतना कोई awareness था। संकट आता था तो वहीं स्‍थानीय लोग अपनी बुद्धि, शक्ति के अनुसार कुछ न कुछ अपना काम कर लेते थे। प्राकृतिक आपदा हो, या इंसान के आपसीं संघर्ष से पैदा हुए संकट, हर मुश्किल घड़ी में भारत सेवाश्रम संघ ने उससे निपटने में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाई।

मुझे लगता है कि आप लोग जहां बैठे हैं वहां बिजली चली गई लगता है। अंधेरा नजर आ रहा है मुझे यहां से। लेकिन मुझे तो देख पा रहे हो ना आप लोग? मेरी बात की सुनाई दे रही है? चलिए मुझे आपकी आवाज तो सुनाई दी।

बीते कुछ वर्षों की बात करें तो जब 2001 में गुजरात में भूकंप आया, 2004 में सुनामी आई, 2013 में उत्‍तराखंड में त्रासदी आई, 2015 में तमिलनाडु में बाढ़ आई, आप कोई भी ऐसी दुर्घटना देख लीजिए; भारत सेवाश्रम संघ की तरफ से जो भी उनकी शक्ति है, भक्तिपूर्वक सेवा करने में वो कभी पीछे नहीं रहे हैं।

भाइयों और बहनों, स्‍वामी प्रणबानंद जी कहा करते थे बिना आदर्श के जीवन मृत्‍यु के समान है। अपने जीवन में उच्‍च आदर्श स्‍थापित करके ही कोई भी व्‍यक्ति मानवता की सच्‍ची सेवा कर सकता है। भारत सेवाश्रम संघ के सभी सदस्‍यों ने उनकी इन बातों को अपने जीवन में उतारा है।

आज स्‍वाम प्रणबानंद जी जहां भी कहीं होंगे, मानवता के लिए आपके प्रयासों को देखकर बहुत ही प्रसन्‍न होते होंगे। देश ही नहीं, विदेश में भी प्राकृतिक आपदा आने पर भी भारत सेवाश्रम के सदस्‍य लोगों को राहत देने के लिए पहुंच जाते हैं। इसके लिए आप सभी का‍ जितना अभिनंदन किया जाये उतना कम है।

हमारे शास्‍त्रों में भी कहा गया है-

आत्मार्थम् जीव लोके अस्मिन् को न जीवति मानवः।

परम परोपकार आर्थम यो जीवति स जीवति॥

यानी संसार में अपने लिए कौन मनुष्‍य नहीं जीता है, परंतु जिसका जीवन परोपकार के लिए है, उसका ही जीवन सच्‍चे अर्थ में जीवन है। इसलिए प‍रोपकार के अनेक प्रयासों से सुशोभित भारत सेवाश्रम संघ 100 वर्ष पूरे होने पर अनेक-अनेक बधाई के पात्र हैं।

साथियों,

बीते कुछ दशकों में देश में एक मिथक बनाया गया कि अध्‍यात्‍म और सेवा के रास्‍ते अलग-अलग हैं। कुछ लोगों द्वारा ये बताने की कोशिश की गई कि जो अध्‍यात्‍म की राह पर है वो सेवा के रास्‍ते से अलग है। आपने इस मिथक को सि‍र्फ गलत साबित कर दिया, लेकिन अध्‍यात्‍म और भारतीय मूल्‍यों पर आधारित सेवा को एक साथ आगे बढ़ाया। आज देशभर में भारत सेवाश्रम संघ की सौ से ज्‍यादा शाखाएं और 500 से ज्‍यादा इकाइयां, स्‍वास्‍थ्‍य सेवा, शिक्षा के क्षेत्र में, नौजवानों को ट्रेनिंग देने के कार्य में जुटी हुई हैं और बहुत बड़ी सेवा कर रही हैं।

भारत सेवाश्रम संघ ने साधना और समाज-सेवा के संयुक्‍त उपक्रम के तौर पर लोकसेवा का एक मॉडल विकसित किया है। दुनिया के कई देशों में ये मॉडल सफलतापूर्वक चल भी रहा है। संयुक्‍त राष्‍ट्र तक ने भारत सेवाश्रम संघ के कल्‍याणकारी कार्यों की प्रशंसा की है। स्‍वामी प्रणबानंद जी महाराज पिछली शताब्‍दी में देश की आध्‍यात्मिक चेतना की रक्षा करने वाले, उसे स्‍वतंत्रता आंदोलन से जोड़ने वाले, कुछेक महान अवतारों में से एक थे। स्‍वामी विवेकानंद जी, महर्षि अरविंद, ऐसे अनगिनत उन्‍हीं लोगों की तरह प्रणबानंद जी महाराज का नाम भी पिछली शताब्‍दी के उन महान संतों में लिया जाता है। और स्‍वामीजी कहा करते थे मनुष्‍य को अपने एक हाथ में भक्ति और एक हाथ में शक्ति रखनी चाहिए। उनका मानना था, कि बिना शक्ति के कोई मनुष्‍य अपनी रक्षा नहीं कर सकता, और बिना भक्ति के उसके खुद के ही भक्षक बन जाने का खतरा होता है।

समाज के विकास के लिए शक्ति और भक्ति को साथ लेकर जन-शक्ति को एकजुट करने का काम, जन-चेतना को जागृत करने का काम, उन्‍होंने अपनी बाल्‍यावस्‍था से ही शुरू कर दिया था। निर्वाण की अवस्‍था से बहुत पहले जब वो स्‍वामी प्रणबानंद नहीं हुए थे; सिर्फ बि‍नोद के नाम से जाने जाते थे। अपने गांव के घर-घर जाकर चावल और सब्जियां जमा करते थे, और फिर उन्‍हें गरीबों में बांट देते थे। जब उन्‍होंने देखा कि गांव तक पहुंचने के लिए सड़क नहीं है, तो सभी को प्रेरित करके, जन‍शक्ति को जगा करके उन्‍होंने गांव तक पहुंचने के सड़क निर्माण का भी काम करवाया था। जातपात, छुआछूत के जहर ने कैसे समाज को विभक्‍त करके रखा है, इसका एहसास उन्‍हें बहुत पहले ही हो गया था। इसलिए सभी को बराबरी का मंत्र सिखाते हुए वो गांव के हर व्‍यक्ति के साथ बिठाकर ईश्‍वर की पूजा किया करते थे। 19वीं सदी के आखिरी में और 20वीं सदी के प्रारंभ में बंगाल जिस तरह की राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र बना हुआ था, उस दौरान राष्‍ट्रीय चेतना जगाने के स्‍वामी प्रणबानंद जी के प्रयास और ज्‍यादा बढ़ गए थे। बंगाल में ही स्‍थापित अनुशीलन समिति के क्रांतिकारियों को वो खुला समर्थन देते थे। अंग्रेजों के खिलाफ लड़ते हुए वो एक बार जेल भी गए। अपने कार्यों से उन्‍होंने साबित किया कि साधना के लिए सिर्फ गुफाओं में रहना आवश्‍यक नहीं, बल्कि जन-जागरण और जन-चेतना जागृत करके भी साधना की जा सकती है, ईश्‍वर को प्राप्‍त किया जा सकता है।

भाइयो और बहनों,

आज से 100 वर्ष पहले देश जिस मनोस्थिति से गुजर रहा था, गुलामी की बेडि़यों से, अपनी कमजोरियों से मुक्ति पाना चाहता था। उसमें देश अलग-अलग भू-भागों पर जनशक्ति को संगठित करने के प्रयास अनवरत चल रहे थे। 1917 का ही वो वर्ष था, जब महात्‍मा गांधी ने चम्‍पारण में सत्‍याग्रह आंदोलन का बीजारोपण किया। हम सभी के लिए सुखद संयोग है कि इस वर्ष देश चम्‍पारण सत्‍याग्रह के 100 वर्ष का भी उत्‍सव मना रहा है। सत्‍याग्रह आंदोलन के साथ-साथ ही महात्‍मा गांधी ने लोगों को स्‍वच्‍छता के प्रति जागरूक भी किया था। आपकी जानकारी में होगा कि पिछले महीने चम्‍पारण सत्‍याग्रह की तरह ही देश में स्‍वच्‍छाग्रह का अभियान की शुरूआत की गई है। आजादी के लिए सत्‍याग्रह, तो भारत के उज्‍ज्‍वल भविष्‍य के लिए स्‍वच्‍छाग्रह, यानी स्‍वच्‍छता के प्रति आग्रह।

आज इस अवसर पर मैं स्‍वच्‍छाग्रह को भी आपकी साधना का, सेवा का अभिन्‍न अंग बनाने का आग्रह करना चाहता हूं। इसकी एक वजह भी है; आपने देखा होगा कि अभी तीन-चार दिन पहले ही इस साल के स्‍वच्‍छ सर्वेक्षण में शहरों की रैंकिंग घोषित की गई है। उत्‍तर-पूर्वी राज्‍यों के 12 शहरों का भी सर्वे किया गया था, लेकिन स्थिति बहुत अच्‍छी नहीं है, सिर्फ गंगटोक ऐसा शहर है जो 50वें नंबर पर आया है। चार शहरों की रैकिंग 100 से 200 के बीच है, और बाकी 7 शहर 200 और 300 के दायरे में आ गए हैं। शिलॉंग जहां आप बैठे हुए हैं, वो भी Two hundred and seventy six नंबर पर है। ये स्थिति हमारे लिए, राज्‍य सरकारों के लिए, भारत सेवाश्रम संघ जैसी संस्‍थाओं के लिए; मैं समझता हूं कि हम सब के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती है। स्‍थानीय एजेंसियां अपना काम कर रही हैं, लेकिन इनके साथ-साथ प्रत्‍येक व्‍यक्ति को ये एहसास कराया जाना बहुत आवश्‍यक है कि वो अपने-आप में स्‍वच्‍छता मिशन का एक सिपाही है। हर व्‍यक्ति ने अपने प्रयास से ही स्‍वच्‍छ भारत, स्‍वच्‍छ उत्‍तर-पूर्व के लिए, उस लक्ष्‍य को हम हासिल कर सकते हैं।

भाइयो और बहनों,

स्‍वामी प्रणबानंद जी महाराज कहते थे देश के हालात को बदलने के लिए लाखों नि:स्‍वार्थ कर्मयोगियों की आवश्‍यकता है। यही नि:स्‍वार्थ कर्मयोगी देश के प्रत्‍येक नागरिक का मनोभाव बदलेंगे, और उस बदले हुए मनोभाव में एक नये राष्‍ट्र का निर्माण होके रहेगा। स्‍वामी प्रणबानंद जी, ऐसी महान आत्‍माओं की प्रेरणा से देश में आप जैसे करोड़ों नि:स्‍वार्थ कर्मयोगी हैं। बस हम सभी मिल करके अपनी ऊर्जा, स्‍वच्‍छाग्रह के इस आंदोलन को सफल बनाने में लगा देनी है। मुझे बताया गया है कि जब स्‍वच्‍छ भारत अभियान शुरू हुआ था, तब आप लोगों ने उत्‍तर-पूर्व के पांच रेलवे स्‍टेशनों का चयन किया था कि उन स्‍टेशनों में सफाई की जिम्‍मेदारी उठाएंगे; वहां हर पखवाड़े स्‍वच्‍छता का अभियान चलाया। अब आपके प्रयासों को और ज्‍यादा बढ़ाए जाने की जरूरत है। 

आपको आश्‍चर्य होता होगा, मोदी जी हमें काम बता रहे हैं, अब मैं आपको इसलिए बता रहा हूं कि आप लोग करते हैं, और बताने का मन भी तो उन्‍हीं को होता है, जो करने की आदत रखता है। तो मुझे भी मोह हो जाता है कि मैं भी आपको कुछ कह दूं। इस वर्ष जब आप सभी अपनी संस्‍था के घटन के 100 वर्ष मना रहे हैं तो इस महत्‍वपूर्ण वर्ष को क्‍या पूरी तरह स्‍वच्‍छता पर केन्द्रित कर सकते हैं? क्‍या आपकी संस्‍था जिन इलाकों में काम कर रही है, वहां पर पर्यावरण की रक्षा के लिए, पूरे इलाके को प्‍लास्टिक-फ्री बनाने के लिए, और स्‍वच्‍छता के ऐसे और कामों को भी कर सकती है क्‍या? क्‍या जल संरक्षण और जल प्रबंधन के फायदों के लिए लोगों को जागरूक कर सकती है क्‍या? क्‍या अपने लक्ष्‍यों को, संस्‍था के कुछ कार्यों को आप वर्ष Twenty twenty two, 2022, उसके साथ जोड़ सकते हैं क्‍या? 2022, भारत अपनी स्‍वतंत्रता के 75वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है। इसमें अभी पांच वर्ष का समय है, और इस समय का उपयोग कर हर व्‍यक्ति, हर संस्‍था को अपने आसपास व्‍याप्‍त बुराइयों को खत्‍म करके, पीछे छोड़कर; आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए, संकल्‍प लेना चाहिए, चल पड़़ना चाहिए।

साथियो,

आपको ज्ञात होगा कि 1924 में स्‍वामी प्रणबानंद जी ने देशभर में स्थित अनेक तीर्थस्‍थलों का पुनरुद्धार करवाया था। तीर्थशंकर नाम से आपने एक कार्यक्रम शुरू करके उस समय हमारे तीर्थस्‍थलों से जुड़ी जो कमजोरियां थीं, उसको दूर करने का उन्‍होंने भरसक प्रयास किया था। आज हमारे तीर्थस्‍थलों की एक बड़ी कमजोरी अस्‍वच्‍छता है। क्‍या भारत सेवाश्रम संघ, प्रणबानंद जी ने जिस काम को शुरू किया था, वो तीर्थशंकर कार्यक्रम को पुन: एक बार शुरू करके, स्‍वच्‍छता से जोड़ते हुए, नए सिरे से उसको और अधिक प्राणवान बना करके आगे बढ़ा सकता है क्‍या? आपदा प्रबंधन के अपने अनुभवों को भारत सेवाश्रम संघ कैसे ज्‍यादा से ज्‍यादा लोगों तक पहुंचा सकता है, उस बारे में भी सोचा जाना चाहिए। हर वर्ष देश में हजारों जिंदगियां प्राकृतिक आपदा की वजह से संकट में आती हैं। प्राकृतिक आपदाओं के समय कैसे कम से कम नुकसान हो, इसी को ध्‍यान में रखते हुए पिछले वर्ष देश में पहली बार National disaster management plan बनाया गया है। सरकार बड़े पैमाने पर लोगों को जागरूक कर रही है, लोगों को Mock exercise के जरिए भी disaster management के तरीकों के बारे में बताया जा रहा है।

सा‍थियो,

आपके उत्‍तर-पूर्व के राज्‍यों में सक्रियता और संगठन शक्ति का disaster management में बहुत उपयोग हो सकता है। आपकी संस्‍था आपदा के बाद और आपदा से पहले, दोनों ही स्थितियों से निपटने के लिए लोगों को तैयार कर सकती है।

इसी तरह जैसे स्‍वामी प्रणबानंद जी देशभर में प्रवचन दल भेज करके अध्‍यात्‍म और सेवा का संदेश देश-विदेश तक पहुंचाया, वैसे ही आपकी संस्‍था उत्‍तर-पूर्व के कोने-कोने में जा करके, आदिवासी इलाकों में जाकर, खेल से जुड़ी प्रतिभाओं की तलाश में प्रभावी भूमिका निभा सकती है। इन इलाकों में पहले से आपके दर्जनों स्‍कूल चल रहे हैं। आपके बनाए Hostel में सैंक़ड़ों आदिवासी बच्‍चे पढ़ रहे हैं। इसलिए ये काम आपके लिए मुश्किल नहीं है। आप जमीन पर काम करने वाले लोग हैं। लोगों के बीच में काम करने वाले लोग हैं। आपकी पारखी दृष्टि खेल प्रतिभाओं को सामने लाने में मदद कर सकती है।

स्‍वामी प्रणबानंद जी कहते थे कि देश की युवा शक्ति जागरूक नहीं हुई तो सारे प्रयास विफल हो जाएंगे। अब एक बार फिर अवसर आया है। सुदूर उत्‍तर-पूर्व में छिपी इस युवा शक्ति को, खेल की प्रतिभाओं को, मुख्‍यधारा में लाने का, इसमें आपकी संस्‍था की बड़ी भूमिका हो सकती है। बस मेरा आग्रह है कि आप अपनी इस सेवा-साधना के लिए जो भी लक्ष्‍य तय करें वो measurable हो। यानी जिसे आंकड़ों में तय किया जा सके, नापा जा सके। स्‍वच्‍छता के‍ लिए आप उत्‍तर-पूर्व के दस शहरों तक पहुंचे या एक हजार गांवों तक पहुंचे, ये निर्णय आप करें। Disaster management के लिए 100 कैम्‍प लगाए या 1000 कैम्‍प लगाएं, इसका निर्णय आप करें। लेकिन मेरा फिर आग्रह है जो भी तय करें, उसको नापा जा सकना चाहिए, हिसाब-किताब निकलना चाहिए, measurable होना चाहिए।

2022 तक, भारत सेवाश्रम संघ ये कहने की स्थिति में हो कि हमने सिर्फ अभियान ही नहीं बल्कि 50 हजार या एक लाख लोगों को इससे जोड़ा है। जैसे स्‍वामी प्रणबानंद जी कहा करते थे, हमेशा एक डायरी maintain करनी चाहिए, वैसे ही आप भी संस्‍था की एक डायरी बना सकते हैं, जिनमें लक्ष्‍य भी लिखें जाएं और तय अंतराल पर ये भी लिखा जाए कि उस लक्ष्‍य को कितना प्राप्‍त किया। आपका ये प्रयास, आपका ये श्रम देश के निर्माण के लिए New India, इस सपने को पूरा करने के लिए बहुत ही महत्‍वपूर्ण है।

श्रम को तो हमारे यहां सबसे बड़ा दान माना गया है। और हमारे यहां हर स्थिति में दान देने की प्रेरणा दी जाती है।

श्रद्धया देयम्, अ-श्रद्धया देयम्, श्रिया देयम्, ह्रया देयम्, भिया देयम्, सम्विदा देयम्

हमारे यहां तो कहते हैं व्यक्ति को चाहिए कि वो श्रद्धा से दान दे, और यदि श्रद्धा न हो तो भी बिना श्रद्धा को दान देना चाहिए। धन में व़ृद्धि हो तो दान देना चाहिए और यदि धन न बढ़ रहा हो तो फिर लोकलाज से दान देना चाहिए; भय से देना चाहिए अथवा प्रेम से देना चाहिए। कहने का तात्‍पर्य ये है कि हर परिस्थिति में मनुष्‍य को दान देना चाहिए।

साथियों,

उत्‍तर-पूर्व को लेकर मेरा जोर इसलिए है, क्‍योंकि स्‍वतंत्रता के बाद इतने वर्षों में देश के इस क्षेत्र को संतुलित विकास नहीं हुआ है। अब केंद्र सरकार पिछले तीन वर्षों से अपने सम्‍पूर्ण संसाधनों से उत्‍तर-पूर्व के संतुलित विकास का प्रयास कर रही है। पूरे इलाके में connectivity बढ़ाने पर भी जोर दिया जा रहा है। 40 हजार करोड़ के निवेश से उत्‍तर-पूर्व में Road Infrastructure तैयार किया जा रहा है। रेलवे से जुड़े 19 बड़े Project शुरू किस गए हैं। बिजली की व्‍यवस्‍था सुधारी जा रही है।

पूरे इलाके को पर्यटन के लिहाज से, Tourism की दृष्टि से मजबूत किया जा रहा है। उत्‍तर-पूर्व के छोटे हवाई अड्डों का भी आधुनिकीकरण किया जा रहा है। आपके इस शिलॉंग Airport  में भी Runway की लम्‍बाई बढ़ाने की मंजूरी दे दी गई है। बहुत जल्‍द ही उत्‍तर-पूर्व को उड़ान योजना से भी जोडा जाएगा। ये सारे प्रयास North-East को South-East Asia का gateway बनाने में मदद करने वाले हैं।  South-East Asia का ये खूबसूरत gateway अगर अस्‍वच्‍छ होगा, अस्‍वस्‍थ होगा, अशिक्षित होगा, असंतुलित होगा तो देश विकास के gateway को पार करने में पिछड़ जाएगा। साधनों और संसाधनों से भरपूर हमारे देश में कोई ऐसी वजह नहीं जो हम पिछड़े रहें, गरीब रहें। ''सबका साथ, सबका विकास'' मंत्र के साथ हमें सभी को सशक्‍त करते हुए आगे बढ़ना है। हमारा समाज समन्‍वय, सहयोग और सौहार्द से सशक्‍त होगा। हमारा युवा चरित्र, चिन्‍तन और चेतना से सशक्‍त होगा। हमारा देश जनशक्ति, जनसमर्थन और जनभावना से सशक्‍त होगा। इस परिवर्तन के लिए, हालात बदलने के लिए, New India बनाने के लिए हम सभी को, करोड़ों-करोड़ों न‍िस्‍वार्थ कर्मयोग‍ियों का भारत सेवाश्रम संघ जैसी अनेकानेक संस्‍थाओं को मिल करके काम करना होगा।

 इसी आह्वान के साथ मैं अपनी बात समाप्‍त करता हूं, और एक बार फिर भारत सेवाश्रम संघ के सभी सदस्‍यों को बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं। देवस्‍त विराजमान परमानंद जी महाराज के चरणों में भी वंदन करता हूं, और आप सभी को अनेक-अनेक शुभ कामनाओं के साथ बहुत-बहुत धन्‍यवाद देता हूं।

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PM Modi’s remarks at the BRICS session: Environment, COP-30, and Global Health
July 07, 2025

Your Highness,
Excellencies,

I am glad that under the chairmanship of Brazil, BRICS has given high priority to important issues like environment and health security. These subjects are not only interconnected but are also extremely important for the bright future of humanity.

Friends,

This year, COP-30 is being held in Brazil, making discussions on the environment in BRICS both relevant and timely. Climate change and environmental safety have always been top priorities for India. For us, it's not just about energy, it's about maintaining a balance between life and nature. While some see it as just numbers, in India, it's part of our daily life and traditions. In our culture, the Earth is respected as a mother. That’s why, when Mother Earth needs us, we always respond. We are transforming our mindset, our behaviour, and our lifestyle.

Guided by the spirit of "People, Planet, and Progress”, India has launched several key initiatives — such as Mission LiFE (Lifestyle for Environment), 'Ek Ped Maa Ke Naam' (A Tree in the Name of Mother), the International Solar Alliance, the Coalition for Disaster Resilient Infrastructure, the Green Hydrogen Mission, the Global Biofuels Alliance, and the Big Cats Alliance.

During India’s G20 Presidency, we placed strong emphasis on sustainable development and bridging the gap between the Global North and South. With this objective, we achieved consensus among all countries on the Green Development Pact. To encourage environment-friendly actions, we also launched the Green Credits Initiative.

Despite being the world’s fastest-growing major economy, India is the first country to achieve its Paris commitments ahead of schedule. We are also making rapid progress toward our goal of achieving Net Zero by 2070. In the past decade, India has witnessed a remarkable 4000% increase in its installed capacity of solar energy. Through these efforts, we are laying a strong foundation for a sustainable and green future.

Friends,

For India, climate justice is not just a choice, it is a moral obligation. India firmly believes that without technology transfer and affordable financing for countries in need, climate action will remain confined to climate talk. Bridging the gap between climate ambition and climate financing is a special and significant responsibility of developed countries. We take along all nations, especially those facing food, fuel, fertilizer, and financial crises due to various global challenges.

These countries should have the same confidence that developed countries have in shaping their future. Sustainable and inclusive development of humanity cannot be achieved as long as double standards persist. The "Framework Declaration on Climate Finance” being released today is a commendable step in this direction. India fully supports this initiative.

Friends,

The health of the planet and the health of humanity are deeply intertwined. The COVID-19 pandemic taught us that viruses do not require visas, and solutions cannot be chosen based on passports. Shared challenges can only be addressed through collective efforts.

Guided by the mantra of 'One Earth, One Health,' India has expanded cooperation with all countries. Today, India is home to the world’s largest health insurance scheme "Ayushman Bharat”, which has become a lifeline for over 500 million people. An ecosystem for traditional medicine systems such as Ayurveda, Yoga, Unani, and Siddha has been established. Through Digital Health initiatives, we are delivering healthcare services to an increasing number of people across the remotest corners of the country. We would be happy to share India’s successful experiences in all these areas.

I am pleased that BRICS has also placed special emphasis on enhancing cooperation in the area of health. The BRICS Vaccine R&D Centre, launched in 2022, is a significant step in this direction. The Leader’s Statement on "BRICS Partnership for Elimination of Socially Determined Diseases” being issued today shall serve as new inspiration for strengthening our collaboration.

Friends,

I extend my sincere gratitude to all participants for today’s critical and constructive discussions. Under India’s BRICS chairmanship next year, we will continue to work closely on all key issues. Our goal will be to redefine BRICS as Building Resilience and Innovation for Cooperation and Sustainability. Just as we brought inclusivity to our G-20 Presidency and placed the concerns of the Global South at the forefront of the agenda, similarly, during our Presidency of BRICS, we will advance this forum with a people-centric approach and the spirit of ‘Humanity First.’

Once again, I extend my heartfelt congratulations to President Lula on this successful BRICS Summit.

Thank you very much.