QuotePM Modi addresses Indian Community in Singapore
QuotePM applauds the Indian Diaspora for being a living example of Vasudhaiva Kutumbakam - the whole world is 1 family
QuoteIndia can learn a lot from Singapore, cleanliness is one of them: PM 
QuotePM pitches for Make in India in defence. Says we have opened up FDI upto 49% in defence sector
QuoteToday the world looks towards India with great faith: PM 
QuoteFDI is needed to First Develop India: PM
QuoteThere is an increase in FDI since we have taken office: PM
QuoteIndian currency must gain more respect globally: PM
QuoteWe have begun a movement, we are working on skill development with Singapore, Germany, USA:  PM
QuoteWe want to provide 24x7 electricity to everyone in India: PM
QuoteWe want renewable energy, wind energy & nuclear energy: PM
QuoteWe have set a target of producing 175 GW renewable energy: PM
QuoteDeclaration of International Yoga Day on June 21st by UN brought the world together to celebrate yoga as holistic health care: PM

नमस्‍ते, वणक्‍कम, दीपावली का पर्व अभी-अभी गया, लेकिन मुझे बताया गया कि Little India ने इस बार दीपावली की रोशनी एक हफ्ते तक उसको extend कर दिया। मैं इसके लिए सभी Singaporeans का हृदय से आभार व्‍यक्‍त करता हूं। मैं सिंगापुर पहले भी आया हूं। पहले भी Indian Community के साथ मिलने का बातें करने का मुझे अवसर मिला है। लेकिन आज का ये नजारा हिन्‍दुस्‍तान में बैठ करके कोई सोच भी नहीं सकता है कि सिंगापुर का ये मूड है। मैं हृदय से आप सबका धन्‍यवाद करता हूं आज पूरे विश्‍व में भारत की जो छवि बनी है, पूरा विश्‍व भारत की तरफ एक विश्‍वास के भाव से देख रहा है उसका कारण, उसका कारण, उसका कारण मोदी नहीं है। उसका कारण विदेशों में बसे हुए आप मेरे भारतीय भाई-बहन हैं। आप लोगों ने दुनिया के जिस देश में गए, जिस धरती पर पहुंचे, जान-पहचान थी या नहीं थी, हालात अनुकूल थे या प्रतिकूल थे, आपने उस धरती को अपना बना लिया। आपने उस देश के लोगों के साथ आप ऐसे मिल गए ऐसे मिल गए, जैसे दूध में शक्‍कर मिल जाती है।

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हम कभी सुना करते थे, पढ़ा करते थे इतिहास में कि पारसी कौम जब सबसे पहले हिन्‍दुस्‍तान की धरती पर आए, गुजरात के किनारे पर आए और उस समय के हिन्‍दु राजा थे जदीराणा, ये विदेश से आए थे, कौन है क्‍या है जानते नहीं थे। क्‍यों आए थे पता नहीं था लेकिन उन्‍होंने समुंदर में से मैसेज भेजा तो राजा ने एक दूध का गिलास भरा हुआ उनको भेज दिया। और उसमें मैसेज ये था कि जैसे ये गिलास में दूध पूरी तरह भरा हुआ है और बिल्‍कुल जगह नहीं है, मैं आपको यहां कैसे समाऊंगा? ये Symbolic मैसेज था। तो पारसियों ने क्‍या किया, उस दूध में चीनी मिला दी, शक्‍कर मिला दी और वो दूध का कटोरा वापिस भेजा और उन्‍होंने राजा को संदेश दिया कि हम विदेश की धरती से आए हैं, संकटों के मारे आए हैं लेकिन जैसे इस भरे हुए दूध से भरे गिलास में जगह न होने के बावजूद भी चीनी जैसे उसमें मिल गई हम भी मिल जाएंगे और हम और मिठास भर देंगे। हिन्‍दुस्‍तानी भी जहां गया उसने वहां के जीवन के साथ अपने आचरण के द्वारा, अपने व्‍यवहार के द्वारा, उस समाज में वो ऐसे घु‍लमिल गया कि हर किसी को अपना लगने लगा, अपने लगने लगा। दुनिया के कई देशों से पता चलता है कि अगर अड़ौस-पड़ौस में कोई Indian आता है तो खुशी महसूस करते हैं। उनको लगता है अच्‍छा भई कोई Indian हमारे पड़ौस में आया है। और वो अपने बच्‍चों को प्रेरित करते हैं कि जरा तुम Indian बच्‍चों से दोस्‍ती करो।

ये, ये, इस, आपके इस व्‍यवहार के कारण और सदियों से हमारे देशवासी जहां गए, वहां वे एक अपनापन की महक ले करके गए, अपने बन करके रहे, हर किसी को गले लगा करके रहे और ये सदियों से परंपरा चली आ रही है। इसी के कारण भारत जब सोने की चिडि़या था तब भी किसी को भी आंख में खटकता नहीं था। और हमारे बुरे दिन आए तब भी किसी ने हमें हड़दूत नहीं किया था, अपमानित नहीं किया था क्‍योंकि सदियों से हमारे लोगों ने ये प्‍यार, ये अपनापन, इसी का मूलमंत्र ले करके और हमने सिर्फ शास्‍त्रों में पढ़ा था, ऐसा नहीं है। वसुधैव कुटुम्‍बकम् से वेदकाल से हमारे यहां उद्घोष चला आ रहा है। लेकिन भारतीयों ने सच्‍चे अर्थ में वसुधैव कुटुम्‍बकम् Whole world is one family, इस मंत्र को जी करके दिखाया है। और उसी के कारण आज विश्‍व में भारतीयों के प्रति, भारत के प्रति कहीं कोई आशंका का माहौल नहीं होता है, अपनेपन की श्‍वास होती है और इसलिए मैं विश्‍व भर में फैले हुए मेरे सभी भारतीय भाइयों-बहनों का आदरपूर्वक अभिनंदन करता हूं।

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मैं गत मार्च महीने में एक दिन के लिए सिंगापुर आया था। जिस महापुरुष ने इस सिंगापुर को बनाया, अपने खून-पसीने से बनाया। अपने-आप को खपा दिया। एक छोटा सा मछुआरों का गांव आज विश्‍व के समृद्ध देशों की बराबरी कर रहा हो, ऐसा सिंगापौर बन गया। ऐसे महापुरुष स्‍वर्गीय Lee Kuan Yew, उनकी अंत्‍येष्टि के लिए, अंतिम दर्शन के लिए मैं आया था। जब सिंगापुर को याद करते हैं एक विश्‍वास पैदा होता है।

अगर कुछ करने का माजा है तो होके रहता है। अगर सपने है और सपनों के लिए समर्पण है तो सिद्धि आपके चरण चूमने के लिए तैयार रहती है। प्रसिद्धि और सिद्धि में बहुत बड़ा फर्क होता है। कुछ भी करने पर प्रसिद्धि तो मिल जाती है लेकिन सिद्धि के लिए तो सिर्फ तपस्‍या, यही एक मार्ग होता है और जिन्‍होंने प्रसिद्धि का रास्‍ता अपनाया है वो कभी कुछ सिद्धि नहीं कर पाए हैं। कुछ समय तक सुर्खियों में जगह बना सकते हैं लेकिन धरती पर बदलाव नहीं ला सकते हैं सिंगापुर वो एक उदाहरण है कि 50 साल के कार्यकाल में एक ही generation की आंखों के सामने एक देश को कहां से कहां पहुंचाया जा सकता है, इसका ये उत्‍तम उदाहरण है। भारत महान देश है, भारत विशाल देश है, सवा सौ करोड़ देशवासियों का देश है। सब कुछ है फिर भी सिंगापुर से बहुत कुछ सीखना भी है।

आज से 50 साल पहले, 60 साल पहले जिस महापुरुष को एक विचार आया – सिंगापुर की सफाई, स्‍वच्‍छता, cleanliness। अब क्‍या हमारा देश ये काम नहीं कर सकता क्‍या, करना चाहिए कि नहीं करना चाहिए? यहां के नागरिकों की भूमिका है कि नहीं है? और मुझे महात्‍मा गांधी जीवन भर एक बात के लिए बड़े आग्रही थे – स्‍वच्‍छता के लिए। और वो तो यहां तक कह दिया था कि मुझे आजादी और स्‍वच्‍छता दोनों में से पहले प्राथमिकता देनी है तो मैं स्‍वच्‍छता को दूंगा।

आज भारत में सबका एक मन बना है। हर किसी को लग रहा है कि हमारा देश ऐसा नहीं होना चाहिए। गंदगी में बहुत गुजारा कर लिया। दुनिया बदल रही है, हिन्‍दुस्‍तान को बदलना चाहिए कि नहीं बदलना चाहिए। और अच्‍छी बात यह है कि सवा सौ करोड़ देशवासियों ने बदलने का मन बना लिया है। कोई देश न सरकारों से बनते है न सरकारों से बढ़ते है, देश बनते है जन-जन की इच्‍छा से, जन-जन के संकल्‍प से, जन-जन के पुरुषार्थ से] जन-जन के त्‍याग और तपस्‍या से, पीढ़िया खप जाती है तब एक राष्‍ट्र का निर्माण होता है। आज भारत में वो मिजाज पैदा हुआ है। हर भारतीय को लगने लगा है हम देश को आगे बढ़ाएंगे, देश को आगे ले जाएंगे। हम उस युग में जी रहे हैं कि जिस युग में अगर कुछ मिला है तो छोड़ने का मन कभी नहीं करता है। हम travel करते हो और travel करते समय हमारी सीट reserve हो, हम सीट पर बैठे हो, बगल की सीट खाली हो, हमने अपने बैग वहां रख दिए हो, अखबार रख दिए हो, कुछ सामान रख दिया हो। वो सीट अपनी नहीं है, लेकिन किसी और को आने में देर हुई है, हमने सब रखा है और जब वो आ जाए तो ऐसा मन खट्टा हो जाता है। किसी और का.. ये मूलभूत प्रवृत्‍ति है, लेकिन मैंने मेरे देशवासियों का जो मिजाज देखा है, भारत के लोगों ने क्‍या मन बनाया है।

मैंने एक बार एक छोटी-सी बात कही, देशवासियों के सामने। मैंने कहा कि आप जो घर में गैस का चूल्‍हा जलाते हैं, वो जो गैस का सिलेंडर आता है, उस पर करीब 500 रुपए सरकार सब्‍सिडी के रुप में देती है। आप ऐसे परिवार के हो जिनमें 500 रुपए तो चाय-पानी पर खर्च कर देते हैं। आप से सब्‍सिडी क्‍यों लेते हो, क्‍या आप ये सब्‍सिडी छोड़ नहीं सकते। इतना सा मैंने कहा था और आज मैं गर्व के साथ कहता हूं मेरे देश के 40 लाख परिवारों ने गैस सब्‍सिडी छोड़ दी। बगल की कुर्सी न छोड़ने का जो मन रहता था वो आज सब्‍सिडी छोड़ने के लिए तैयार हो जाता है और वो भी महात्‍मा गांधी कुछ कहे, लाल बहादुर शास्‍त्री कुछ कहे और देश कर ले, ये तो हमारे गले उतरता है, लेकिन मुझ जैसा एक सामान्‍य मानवीय, एक चाय बेचने वाला, ये देश के सामने एक बात रखे और मेरा देश इस बात को सर-आँखों पर उठा ले तब मेरा मन कहता है, ये देश नई ऊंचाइयों पर जाकर के रहेगा, ये देश स्‍वामी विवेकानंद जी ने जो सपना देखा था कि मैं मेरी भारत माता को विश्‍व गुरु के रूप में देख रहा हूं। मैं विश्‍वास से कहता हूं कि अब हिन्‍दुस्‍तान विवेकानंद जी के सपनों को साकार करने के लिए सज हो चुका है। जितनी विविधताएं, जितनी विशेषताएं, जितने किंतु परंतु हिन्‍दुस्‍तान में है, उतने ही सिंगापुर में है, उसके बावजूद भी हर कोई सिंगापोरियन है। हर कोई सिंगापुर बनाने में लगा हुआ है, हर कोई कंधे से कंधा मिलाकर के काम कर रहा है। हम भी इस बात में सिंगापुर से बहुत कुछ सीखना चाहते हैं। वसुधैव कुटुम्‍बकम, जिस धरती से मंत्र निकला, वहां भी जन-जन मेरे परिवार का है, हर कोई मेरा अपना है। वही भाव देश को आगे बढ़ाने की ताकत बनता है और उसी को आगे बढ़ाने की दिशा में हम लगातार कोशिश कर रहे हैं। सारी दुनिया को किस प्रकार से हिन्‍दुस्‍तान की तरफ, मैं पिछले दिनों विश्‍व के बहुत सारे नेताओं से मिला हूं। मैं जब चुनाव के मैदान में था तो मुझे पत्रकारों ने पूछा था कि आपकी विदेश नीति कैसी होगी? और मैं देख रहा था चुनाव के समय, पत्रकार बहुत बुद्धिमान होते हैं और बड़े चतुर भी होते हैं। तो जब मैं चुनाव अभियान करता था तो उनको मालूम था कि मोदी की weaknesses क्‍या है। वो बराबर लेकर के आते थे। तो उनको लगता था कि ये गुजरात जैसे छोटे राज्‍य में काम करता है, इसे हिन्‍दुस्‍तान का कोई अनुभव नहीं है, विदेश का तो सवाल ही नहीं होता। तो मुझे वो हर दूसरा-तीसरा सवाल घुमाकर के विदेश नीति पर ले आते थे। अब उस समय मैं चुनाव के कैम्‍पेन में था मैं उनको विदेश नीति क्‍या समझाऊ? लेकिन वो बराबर पकड़ लेते थे और उनको ये समझ आता था कि इसमें ये बंदा weak है और वो घुमा फिराकर मुझे वहीं ले जाते थे। तो फिर मैं इतना ही कहता था कि देखिए भाई जब हमें इस जिम्‍मेवारी को निर्वाह करने की नौबत आएगी तब क्‍या करना है वो देखेंगे, लेकिन मैं इतना विश्‍वास देता हूं, न हम आंख झुकाकर के बात करेंगे और न ही हम आंख दिखाकर के बात करेंगे, हम दुनिया से आंख मिलाकर बात करेंगे। आज 18 महीने के बाद मेरे प्‍यारे देशवासियों मैंने जो वादा किया था, वो निभाया है, न हिन्‍दुस्‍तान आंख झुकाकर के बात करता है, न कभी हिन्‍दुस्‍तान किसी को आंख दिखाने की कोशिश करता है, लेकिन हिन्‍दुस्‍तान आत्‍मविश्‍वास से भरा हुआ है, वो आंख मिलाकर के बात करता है। बराबरी से बात करता है और उसका एक परिणाम भी है। आज पूरा विश्‍व भारत के साथ बराबरी का व्‍यवहार कर रहा है। सारे विश्‍व को सवा सौ करोड़ देशवासियों वाला देश क्‍या होता है, उसकी ताकत क्‍या होती है, अब विश्‍व पहचानने भी लगा है, अनुभव भी करने लगा है। अब विश्‍व ये नहीं सोचता है कि भारत एक बहुत बड़ा बाजार है, हम अपना माल बेचने के लिए पहुंच जाएंगे, वो सोच बदल चुकी है। अब उसको लगता है, मौका मिल जाए तो हिन्‍दुस्‍तान के साथ पार्टनरशिप कर ले, भागीदारी कर ले। और ये अुनभव अब आ रहा है। इन दिनों हर क्षेत्र में ये अनुभव आ रहा है। 

भारत में विदेश का पूंजी निवेश एक बात निश्‍चित है। यहां बैठा हुआ कोई व्‍यक्‍ति ऐसा चाहता है कि हिन्‍दुस्‍तान जैसा है वैसा ही रहे, कोई चाहता है। हर कोई चाहता है न देश में बदलाव आए, हर कोई चाहता है देश आगे बढ़े, हर कोई चाहता है देश आधुनिक बने, हर कोई चाहता है देश से गरीबी मिटे, हर कोई चाहता है देश में नौजवान को रोजगार मिले। इस काम को पूरा करना है तो जहा से जो शक्‍ति मिले वो लेनी चाहिए कि नहीं लेनी चाहिए। अगर परिवार में कोई बीमार है और विेदेश की दवाई से काम चलने वाला है तो लानी चाहिए कि नहीं लानी चाहिए, बीमारी ठीक करनी चाहिए कि नहीं करनी चाहिए।

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भारत में भी बहुत बड़ी मात्रा में विदेश पूंजी की जरूरत है। Foreign direct investment की आवश्‍यकता है और जब मैं FDI कहता हूं तो मेरे दिमाग में FDI एक साथ दो विषय लेकर चलती है। दुनिया की नजरों में FDI है foreign direct investment। लेकिन उस समय मेरे दिमाग में है – first develop India. और इसलिए FDI to FDI, foreign direct investment to first develop India. अब मुझे बताइए आप कितने ही सालों से पड़ोसी के बराबर-बराबर रहते हो और कभी अचानक 5-10 हजार की जरूरत पड़ गई और गए तो दे देगा क्‍या? वो कहेगा हां-हां बिलकुल, मैं तो मदद जरूर करूंगा। आप लोग ऐसा करो, आपके भाईसाहब बाहर गए है Monday को आएंगे, फिर मैं कुछ करूंगा। ऐसा ही करते हैं न, 10 हजार रुपया भी कोई बगल में देने के लिए तैयार नहीं होता। आज foreign direct investment में मैं जब सत्‍ता पर आया उसके पहले जो स्‍थिति थी, उसकी तुलना में 40% growth हुआ है 40%। हमें ये रुपयों की क्‍यों जरूरत है, कागज पर दिखाने के लिए नहीं। हमें बदलाव लाना है।

आज हमारे देश की रेलवे, मुझे बताइए रेलवे का इतना बड़ा नेटवर्क है, इतना बढ़िया नेटवर्क। दुनिया के कई देश जिसकी जनसंख्‍या है उससे ज्‍यादा लोग हमारे यहां एक समय रेल के डिब्‍बे में होते हैं। लेकिन समय रहते रेल आधुनिक होनी चाहिए कि नहीं होनी चाहिए, स्‍पीड बढ़नी चाहिए कि नहीं बढ़नी चाहिए। रेल की लंबाई बढ़नी चाहिए कि नहीं बढ़नी चाहिए, सेवाएं सुधरनी चाहिए कि नहीं सुधरनी चाहिए। अगर दुनिया के पास technology है, दुनिया के पास पैसे हैं, दुनिया के पास भारत एक अवसर है तो हमें मौका देना चाहिए कि नहीं देना चाहिए। मैं आज दुनिया में जो-जो देश रेलवे के लिए काम कर रहे हैं, उन सबसे मिला हूं, मैं कहा रहा हूं आइए। आधुनिक से आधुनिक technology लाइए और मेरे लिए रेलवे ये सिर्फ transportation नहीं है, मेरे लिए रेलवे transformation का engine है, हिन्‍दुस्‍तान के transformation का engine है। मैंने उसकी ताकत को जाना है, पहचाना है और आज विश्‍व भर के लोग। इसलिए हमने पहली बार देश में रेलवे को 100% foreign direct investment के लिए open up कर दिया है। नई technology आएगी, नई स्‍पीड आएगी, परिवर्तन आएगा और सबसे बड़ी बात।

जो लोगों विदेशों में जाते हैं उनको तो बराबर मालूम है आपकी जेब में लाखों रुपए पड़े हो, लेकिन कहीं एक चाय भी पीनी है तो मिलती है क्‍या? जब तक डॉलर नहीं होगा, चाय नहीं मिलती है। रुपया का डॉलर करना पड़ता है, रुपया का पाउंड करना पड़ता है, करना पड़ता है कि नहीं करना पड़ता है? अरे वो टैक्‍सी वाला भी कहेगा यार रुपया मेरे काम का क्‍या है भाई ये तो कागज है, मेरे काम का क्‍या है। तुम डॉलर में लाओ। भारत की करेंसी उसकी इज्‍जत बढ़नी चाहिए कि नहीं बढ़नी चाहिए, विश्‍व भारत की करेंसी को भी उतना ही सम्‍मान दे, ये हम चाहते हैं कि नहीं चाहते हैं? पहली बार लंदन के stock exchange में rupee bond के लिए हम लोग आगे बढ़े। रेलवे के लिए अब rupee bond दुनिया का कोई भी व्‍यक्‍ति रुपयों में invest कर सकता है और उसको रुपयों में वापिस मिल सकता है। ये रुपयों की इज्‍जत का कमाल है, वर्ना या तो गोल्‍ड चलता था, या डॉलर या पाउंड चलते थे। आज दुनिया के बाजार में हम रुपयों के रूप में enter कर रहे हैं। इसका कारण ये है कि पूरे विश्‍व में एक विश्‍वास पैदा हुआ है। ये जो rupee bond हमने लागू किया, अभी मैं जब UK गया था, अभी तक बहुत लोगों को पल्‍ले ही नहीं पड़ा है कि करके क्‍या आया है मोदी। अब आज मैं समझा रहा हूं तो शायद चर्चा शुरू होगी। rupee bond अपने आप में भारत की आर्थिक संपन्‍नता का एक महत्‍वपूर्ण मिसाल है और हिन्‍दुस्तान के हर नागरिक को इसे गौरव के रूप में देखना चाहिए और इसको उजागर करना चाहिए। तभी तो भारत की ताकत बढ़ती है। हम ही अपने आप को कोसते रहेंगे तो दुनिया हमारी तरफ क्‍यों देखेगी। इसलिए आत्‍मविश्‍वास के साथ एक समाज के रूप में विश्‍व के सामने हमारी एक पहचान बने, ताकत खड़ी हो, उस दिशा में हमारा प्रयास है।

आज हिन्‍दुस्‍तान में रक्षा के क्षेत्र में हमें सब चीजें import करनी पड़ती है, बाहर से लानी पड़ती है। अब आज के युग में क्‍या सवा सौ करोड़ देशवासियों को हम असुरक्षित रख सकते हैं, उनके नसीब पर छोड़ सकते हैं? देश के सवा सौ करोड़ देशवासियों को सुरक्षा की गारंटी होनी चाहिए कि नहीं होनी चाहिए? अब उसके लिए हमारे सेना के जवान डंडा लेकर के खड़ा हो जाएगा तो काम चलेगा क्‍या? उसको भी शक्‍ति संपन्‍न औजारों से ताकतवर बनाना पड़ेगा कि नहीं बनाना पड़ेगा? लेकिन क्‍या हम आजादी के 70 साल के बावजूद भी हर चीज बाहर से लाएंगे क्‍या, हर चीज import करेंगे क्‍या ? क्‍या सवा सौ करोड़ देशवासी बना नहीं सकते क्‍या? आपको हैरानी होगी, सुरक्षा के क्षेत्र में पुलिस वालों के पास एक साधन होता है – अश्रु गैस, tear gas. भीड़ को तितर-बितर करने के लिए वो tear gas छिड़कते हैं। आंसू निकलते हैं तो फिर आंदोलनकारी भागते है। हम रोने के लिए भी बाहर से लाते हैं। अब रोना कि हंसना मुझे समझ नहीं आता है। ये स्‍थिति बदलनी चाहिए। भारत का बहुत एक धन defence के लिए जो चीजें हम import करते हैं उसमें खर्च हो जाता है। भारत के पास नौजवान है, भारत के पास talent है, भारत के पास raw material है, भारत की आवश्‍यकता है। क्‍यों न हमारे defence equipment हिन्‍दुस्‍तान में क्‍यों नहीं बनने चाहिए और इसलिए मैंने बीड़ा उठाया है कि भारत में रक्षा क्षेत्र में भारत अपने कदमों पर खड़ा हो और इसके लिए हमने foreign direct investment को पहली बार 49% open up कर दिया है और हमने ये भी कहा है कि अगर उत्‍तम कक्षा की technology अगर उसमें involve है तो हम उसको 100% foreign direct investment के लिए open up कर देंगे। लोग आएंगे भारत में पूंजी लगाएंगे और भारत के नौजवान शस्‍त्रार्थ बनाएंगे, वो हमारी भी रक्षा करेंगे और कही भेजना है तो भेज भी पाएंगे और इसलिए दुनिया के देश आज हमारे साथ समझौता कर रहे हैं। एक समय ऐसा था कि defence में कुछ भी खरीददारी करनी है तो हर बार corruption के आरोप लग जाते थे। इसलिए या तो निर्णय नहीं होता था, या निर्णय होता था तो कहीं न कहीं से कोई बू आती थी। 18 महीने हो गए, हमने एक के बाद एक निर्णय किए, transparency के साथ निर्णय किए और अब तक कोई हमारे ऊपर उंगली नहीं उठा पा रहा है, देश की रक्षा के लिए आवश्‍यक है।

हमारा देश दुनिया में जिन देशों के पास समृद्धि है उनके सामने एक कठिनाई भी है। दुनिया के बहुत देश ऐसे भी है जो आर्थिक संपन्‍नता की ऊंचाइयों पर पहुंच चुके हैं। लेकिन उन देशों में बुढ़ापा घर कर गया है। जवानी नहीं बची है। भारत अकेला देश ऐसा है, जो दुनिया के जवान देशों में है। भारत की 65 प्रतिशत जनसंख्‍या; 800 मिलियन लोग, 35 साल से कम उम्र के है। जो देश जवानी से लबालब भरा हुआ हो उसके सपने भी जवान होते हैं, संकल्‍प भी जवान होते हैं, इरादे भी जवान होते हैं और पुरुषार्थ भी जवान होता है। हमें demographic dividend मिला हुआ है, लेकिन ये ताकत में तब बदलेगा जब हमारे नौजवान के हाथों में हुनर होगा, skill हो, रोजगार के अवसर हो, अगर वो नहीं है तो ये 35 साल की उम्र का नौजवान लंबे समय तक इंतजार नहीं कर सकता है और इसलिए देश को ये 65 प्रतिशत नौजवान है, उनकी शक्‍ति को भारत के निर्माण में लगाना है और इसलिए हमने अभियान चलाया है skill development और skill development में सिंगापुर का ITES, उसके साथ मिलकर के हम काम कर रहे हैं। हम जर्मनी जिसने skill development में काम किया है उसके साथ काम कर रहे हैं, हम USA के साथ काम कर रहे हैं। दुनिया के देशों से जिन्‍होंने skill development में महारत हासिल की है, उसके पास जो उत्‍तम है उसे हम लाना चाहते हैं। फिर उसमें जो, हमारे लोग उसमें तो ताकतवर है, जोड़ देंगे नया। हम बहुत तेजी से आगे निकल सकते हैं और इसलिए विश्‍व के साथ जब संबंध जोड़ते हैं तो ये ताकत हमारे काम आती है।

हमारे यहां बहुत बड़ी मात्रा में Universities, Colleges खुलते चले जा रहे हैं। private भी बहुत आ रहे हैं। लेकिन faculty नहीं मिलती है। खुल तो जाता है, student भी आ जाते हैं। हमने एक योजना बनाई ज्ञान। हमने विश्‍व भर में रहने वाले लोगों से कहा विशेषकर के भारतीय समुदाय को कहा कि आप जब आपके यहां मौसम खराब रहता हो, बड़ी कड़ाके की ठंड रहती हो, बर्फ रहता हो, तकलीफ से गुजारा करना पड़ता हो तो उस समय आप भारत चले आइए। 6 महीने हमारे यहां रहिए बच्‍चों को पढ़ाइए, 6 महीने उधर चले जाइए। जब हमारे यहां गर्मी शुरू हो तो वहां चले जाना। हमने USA के साथ समझौता किया और मुझे खुशी है कि बहुत बड़ी मात्रा में, सैंकड़ों की तादाद में बड़े-बड़े विद्वान भारतीय मूल के भी और विदेशी भी जो रिटायर्ड हुए हैं, वे आज भारत में आकर के पढ़ाने के लिए तैयार हुए हैं, हमारी नई पीढ़ी को शिक्षित करने के लिए।

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कहने का मेरा तात्‍पर्य यह है कि मेरी कोशिश यह है कि दुनिया में जो श्रेष्‍ठ है हिन्‍दुस्‍तान में होना चाहिए और हमारा जो श्रेष्‍ठ है उसमें दुनिया का श्रेष्‍ठ जुड़ना चाहिए। इसलिए हमारी कोशिश यह है कि हमारा देश, हमारे नौजवान उसकी शक्‍ति को जोड़कर के हम आगे बढ़ना चाहते हैं।

अब आप में से यहां बहुत लोग होंगे जिनको शायद अपने गांव में बिजली का संकट रहता होगा, जिस गांव से 24 घंटे बिजली तो नसीब ही नहीं होती होगी। वो दिन याद है न कि सब भूल गए। आजादी के 70 साल के बाद क्‍या मेरा देशवासी उसे बिजली मिलनी चाहिए कि नहीं मिलनी चाहिए, 24 घंटे बिजली मिलनी चाहिए कि नहीं मिलनी चाहिए? उसको मोबाइल फोन तो मिल जाता है कि लेकिन चार्जिंग के लिए दूसरे गांव जाना पड़ता है। ये स्‍थिति बदलनी है, बस बदलनी है और हम सच्‍चाई से मुंह नहीं मोड़ सकते। ये हकीकत है कि आज भी मेरे देश के लाखों परिवार, करोड़ों परिवार, हजारों गांव बिजली के संकट से जूझ रहे हैं। अगर मुझे आधुनिक हिन्‍दुस्‍तान बनाना है, हमारे बच्‍चे स्‍कूलों में कंप्‍यूटर चलना, अगर उनको सीखाना है तो बिजली की जरूरत तो पड़ेगी। हमने बीड़ा उठाया है 2022, जब भारत की आजादी के 75 साल होंगे। देश आजादी के 75 साल मनाता होगा तब हिन्‍दुस्‍तान में हर परिवार को 24 घंटे बिजली, 365 दिन मिलेगी और एक तरफ दुनिया ग्‍लोबल वार्मिंग के कारण परेशान है। दुनिया दबाव डाल रही है कि कोयले से बिजली पैदा मत करो। हम भी चाहते हैं कि दुनिया के सुख में हम भी जुड़े क्‍योंकि हम तो वो लोग है जिन्‍होंने सदियों से पर्यावरण की रक्षा की है। हम ही तो लोग है जिन्‍होंने पौधे में परमात्‍मा देखा था। हम ही तो लोग है जो जीव में शिव के दर्शन करते हैं। इस महान परंपरा से निकले हुए हम लोग हैं और इसलिए हमारे लिए तो पर्यावरण ये हमारी सांसों की तरह हमारे साथ जुड़ा हुआ है और इसलिए हम मानव जाति को नुकसान हो ऐसा कभी सोच नहीं सकते और महात्‍मा गांधी से बढ़कर के पर्यावरण का कोई ambassador नहीं हो सकता है। environment का कोई ambassador नहीं हो सकता है। शायद दुनिया में अपने जीवन काल में कम से कम कार्बन foot print वाला कोई इंसान होगा, मैं कहता हूं शायद महात्‍मा गांधी अकेले होंगे और इसलिए हम ऊर्जा तो चाहते हैं लेकिन दुनिया के लिए कोई संकट भी पैदा नहीं करना चाहते। भारत ने सपना देखा है 2030 तक 40% बिजली non fossil के माध्‍यम से होगी, कोयले के माध्‍यम से नहीं होगी। मतलब ये जो छोटे-छोटे टापू देश हैं न जिनको डर लग रहा है कि समंदर का अगर स्‍तर बढ़ गया तो डूब जाएंगे, हम आपको डूबने नहीं देंगे। हमसे जो हो सकता है वो हिन्‍दुस्‍तान करेगा क्‍योंकि हम वसुधैव कुटुम्‍बकम वाले हैं। और इसलिए nuclear energy चाहिए, renewal energy चाहिए, hydro चाहिए, solar चाहिए, wind चाहिए, biomass में से निकलना चाहिए। अब ये चीजें जो हैं खर्चीली है। हम अगर nuclear energy में जाना चाहते हैं, हमे यूरेनियम चाहिए। यूरेनियम इसलिए नहीं मिलता है कि आपको जरूरत है या आपके पास पैसे है। यूरेनियम आजकल जब मिलता है जब आप पर विश्‍व का भरोसा हो कि आप इसका शांति के लिए ही उपयोग करेंगे और किसी पाप को आप भाग नहीं करोगे तब जाकर के दुनिया यूरेनियम देती है। भारत ने ये विश्‍वास पैदा किया है। हमारी आवश्‍यकता के अुनसार दुनिया के नए-नए देश अब हमें यूरेनियम देने के लिए तैयार हो गए। पिछले 18 महीने में कजाखिस्‍तान कहो, कनाडा कहो, ऑस्‍ट्रेलिया कहो इन्‍होंने भारत को Civil nuclear energy के लिए, हमारे साथ करार किए और कुछ लोगों को डिलीवरी देना शुरू कर दिया।

हम भारत के लोग जब बिजली की बात करते हैं तो ज्‍यादा से ज्‍यादा पहले तो यूनिट पे चर्चा करते थे, कितने यूनिट बिजली, कितना दाम वगैरह। थोड़ा आगे बढ़े, तो हम मेगावाट पर सोचने लगे भई इतना मेगावाट, इतना मेगावाट। भारत ने कभी बिजली के क्षेत्र में मेगावाट से आगे सोचा ही नहीं। हमने पहली बार फैसला किया है hundred seventy five gigawatt, Hundred seventy five gigawatt renewable energy. बड़ी सामान्‍य बुद्धि का विषय होता है। हम लोग स्‍कूल में जब exam देते थे तो टीचर क्‍या सिखाते थे? टीचर सिखाते थे कि exam में जाते हो तो देखा भाई जो सरल सवाल है उसको पहले उठाओ। ये ही सिखाते थे ना? मेरे टीचर ने तो ये ही सिखाया था। आपको भी वैसे ही सिखाया होगा कि जो easy question है उसको पहले address करो और जो कठिन है तो बाद में समय बच जाये तब देख लेना। ये होता है ना? मुझे बताइए हमारे पास कितना सूरज तपता है, करीब-करीब 365 दिन सूरज तपता हो और हम बच्‍चों को भी environment बढि़या ढंग से सिखाते हैं। हर मां बच्‍चे को कहती है कि ये चांदा तेरा मामा है और सूरज तेरा दादा है। लेकिन हमने कभी उस दादा की उंगली पकड़कर के चलना सीखा नहीं। क्‍यों न सूर्य शक्‍ति हमारे जैसे देश की विकास का बड़ा स्‍तंभ बन सकता है और इसलिए solar energy पर हम बल दे रहे हैं। 100 gigawatt solar energy, wind energy, biomass. मेरा जो clean India movement है न, 500 शहरों का जो कूड़ा-कचरा है, गंदगी हैं उसमें से बिजली पैदा करना, भले ही महंगी पड़े, लेकिन मेरा साफ शहर बनना चाहिए।

अब इन चीजों के लिए विदेशों से धन चाहिए, विदेशों से technology चाहिए, विदेशों से manufacturing करने वाले लोग चाहिए, जिन लोगों की इन चीजों में मास्‍टरी है वो लोग चाहिए, और मैं बड़े आनंद से कह सकता हूं कि आज दुनिया को भारत के hundred seventy five gigawatt renewable energy में इतना आकर्षण पैदा हुआ है, विश्‍व के राजनेताओं को ताज्‍जुब हो रहा है और विश्‍व के पूंजी निवेशकों को एक नया अवसर नजर आ रहा है कि वो भारत में आकर के बिजली के उत्‍पादन के अंदर हमारे साथ जुड़ने के लिए तैयार हो रहे हैं।

दुनिया के साथ संबंध होते हैं, वो संबंध goody-goody बातों से नहीं होते हैं। विश्‍व या तो आपका लोहा मानता है, या विश्‍व अपनेपन की भाषा समझता है। आज मैं संतोष के साथ कहता हूं कि विश्‍व के साथ भारत ने ऐसे संबंधों को बनाने का रूप लिया है। आप मुझे बताइए, पश्चिम एशिया के देशों में जो तूफान चल रहा है, निर्दोषों को मौत के घाट उतारा जा रहा है, आतंकवाद अपनी चरम सीमा पर है। उन देशों में 70 लाख हिन्‍दस्‍तानी रहते हैं, 70 लाख, seven million. आप मुझे बताइए आप सिंगापुर में रहते हैं इसलिए बहुत जल्‍द बात को समझोगे। क्‍या उनको उनके नसीब पे छोड़ देना चाहिए क्‍या? उन पर संकट आएगा तो किसी तरफ देखेंगे? किसकी तरफ देखेंगे? वे मुसीबत में होंगे तो किसकी तरफ देखेंगे? और तब भारत ये कहे के बेटे तुम तो चले गए थे अब क्‍या याद कर रहे हो, चलेगा क्‍या? अगर कहीं से आवाज उठती है, कहीं से एक भी सिसकी सुनाई देती है तो दूसरे ही पल उसको ये ही आवाज सुनाई देनी चाहिए कि चिंता मत करो, भारत है ना। कहीं पर भी सिसकी सुनाई दे, उसको ये ही आवाज सुनाई देनी चाहिए, हां भारत है ना। और एक बार उसके कान में स्‍वर गूंजता है तो वो निश्चिंत हो जाता है, ठीक है संकट के बादल आए हैं लेकिन मेरा देश मुझे बचा लेगा। और तब, ये विश्‍व के रिश्‍ते काम आते हैं, संबंध काम आते हैं। यमन हो, ईराक हो, हजारों की तादाद में हमारे भारतीय भाई-बहन फंसे थे, even हमारी केरल की Nurses बहनें, जीवन और मौत के बीच वो पल उन्‍होंने कैसे बिताए होंगे हम कल्‍पना कर सकते हैं।

लेकिन विश्‍व के साथ जो संबंध जुड़े हैं दुनिया के कुछ देशों से प्रार्थना की कि देखिए इसमें क्‍या मदद कर सकते हैं और मैं आज संतोष के साथ कह सकता हूं उन देशों ने हमारी इन बच्चियों को ला करके केरल तक पहुंचाने में हमारी भरपूर मदद की है। यमन में हमारे हजारों लोग फंसे थे, हम तीन महीने से उनको कह रहे थे कि भई निकलो, निकलो, निकलो। लेकिन कोई निकलने को तैयार नहीं था। ये बाहर जो रहते हैं इतनी बात ध्‍यान रखें भई। कितना हम समझाऐं वो, नहीं नहीं साहब वो तो देखा जाएगा। क्‍योंकि इतने प्‍यार से रहते थे, इतनी निकटता थी, उनको शक ही नहीं था कि कभी कोई मुसीबत आ सकती है? लेकिन चारों तरफ Bombarding शुरू हुआ। हमने दुनिया के कुछ देशों के लोगों के साथ मैंने फोन पर बात की। और आज मैं संतोष के साथ कहना हूं दुनिया के उन देशों ने हमारी मदद की और हम हजारों की तादाद में हमारे सभी यमन में फंसे हुए नागरिकों को ले करके वापिस आए। ईराक हो, लीबिया हो, यमन हो, विश्‍व के साथ संबंध आज के युग में हर पल, हर समय आवश्‍यकता होती है। अरे कभी-कभार नेपाल में हमारे यात्री चले जाएं और एक बस गड्ढे में पड़ जाए, अगर नेपाल सरकार के साथ नाता नहीं होगा तो उन बेचारों का कौन देखेगा? विश्‍व के साथ संबंध बनाने का प्रयास और formality से नहीं चलता, आज युग बदल चुका है, जीवंत नाता होना अनिवार्य होता है और तब जा करके हमारे देशवासियों की जिंदगी दांव पर लगी हो तब वो संबंध काम आ जाते हैं और उनकी जिंदगी बच जाती है।

दुनिया के किसी एक देश में कोई एक भारतीय की जान चली जाए तो पूरा हिंदुस्‍तान बेचैन हो जाता है, हजारों की जान बच जाएं तो खुशी कितनी हो सकती है इसका आप अंदाज लगा सकते हो भाई। और इसलिए हमारी ये कोशिश रही है कि भारत विकास की नई ऊंचाइयों को पार करे और आज वो जमाना नहीं है कि आपने चार देशों के साथ दोस्‍ती बना ली तो गाड़ी चल जाएगी। पहले तो दुनिया दो गुटों में बंटी हुई थी, आप किसी गुट के साथ दोस्‍ती कर लो तो वो गुट आपकी रखवाली कर लेता था। आज वो युग नहीं है। आज पूरा विश्‍व Inter-dependent हो गया है। कोई भी दुनिया का देश Isolated नहीं रह सकता है और कोई भी दुनिया का देश अकेला ही सब कर लूंगा, दुनिया का समृद्ध से समृद्ध देश होगा, ताकतवर से ताकतवर देश होगा, लेकिन छोटे से छोटे देश पर भी वो dependent होता है। पूरी दुनिया Inter-dependent है। भारत ने अगर दुनिया में आगे बढ़ना है, भारत ने अपनी जगह बनानी है तो Inter-dependent इस दुनिया के अंदर हमने भी अपने संबंधों को ताजगी देनी पड़ती है। देश छोटा, कितना ही छोटा क्‍यों न हो, लेकिन union में उसकी ताकत होती है। आप कल्‍पना कर सकते हैं, मैं हिंदुस्‍तान के वासियों को कहूं कि गैस की Subsidy छोड़ दो, 40 लाख लोग Gas Subsidy छोड़ दें, भारत का वक्‍त कैसा बदला है।

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अगर हिंदुस्‍तान ये कहे कि दुनिया नाक पकड़ ले, योगा करे, हमने किसी को कान पकड़ने के लिए नहीं कहा है। 21 जून को पूरा विश्‍व अंतर्राष्‍ट्रीय योगा दिवस मनाए। कौन भारतीय होगा जिसको इस बात का गर्व नहीं हुआ होगा भाइयो, बहनों। जिस दिन Neil Armstrong ने चन्‍द्रमा पर पग रखा होगा, सिर्फ American नहीं, विश्‍व की मानव जात ने गौरव अनुभव किया होगा। आज जब 21 जून को पूरा विश्‍व Holistic Health Care को ले करके योगा दिवस बनाने के लिए आगे आ जाए, कोई बंधन नहीं, कोई रंग नहीं, कोई रूप नहीं, कोई परंपरा नहीं, कोई सम्‍प्रदाय नहीं, कोई बाधाएं नहीं, एक मन से योगा के लिए विश्‍व तैयार हो गया। और दुनिया की पहली घटना है कि इतने कम समय में, United Nation में ये प्रस्‍ताव पारित हुआ, इतने देशों ने इसको Co-sponsor किया, और दुनिया के इतने देशों ने इसको बनाया। सिगापुर ने भी बड़े धूमधाम से योगा दिवस बनाया। अब ये कोई, मोदी कोई योगा लाया है क्‍या? ये तो था ही था। लेकिन हमें हमारे पर भरोसा नहीं था क्‍योंकि हम संकोच करते थे, यार किसी को कहेंगे तो पता नहीं वो नाक चढ़ा देगा, और पता नहीं इंकार कर देगा तो, अगर हमारा अपने-आप में विश्‍वास हो तो दुनिया हमारे साथ चलने के लिए तैयार होती है। दुनिया भी, दुनिया भी शांति की तलाश में है, दुनिया भी संतोष की तलाश में है, कोई तो आएं जो अंगुली पकड़ करके चलाएं, दुनिया चलने के लिए तैयार है और भारत, भारत आज तैयार हुआ है विश्‍व के साथ कंधे से कंधा मिला करके तैयार हुआ है, चल सकता है भारत।

भाइयों, बहनों मेरा एक ही काम लेकर के मैं निकला हूं और उस काम को पूरा करने के लिए मुझे आपका आशीर्वाद चाहिए। सवा सौ करोड़ देशवासियों के आशीर्वाद के साथ-साथ विश्‍व में फैले हुए मेरे भारत के प्‍यारे भाइयों-बहनों, आपके आशीर्वाद चाहिए। और वो काम है, एक ही काम करना है मुझे, विकास, विकास, विकास। और वो विकास जो गरीब के आंसू पोंछने की ताकत रखता हो, वो विकास जो नौजवान को रोजगार देता हो, वो विकास जो किसान की जिंदगी में खुशहाली लाता हो, वो विकास जो हमारी माताओं-बहनों को empower करता हो, वो विकास जो एकता और अखंडता के मंत्र को ले करके विश्‍व के अंदर सिर ऊंचा करके खड़ा रह सकता हो, वैसा विकास करने का सपना ले करके मैं चला हूं। भारत आगे बढ़े इतना काफी नहीं है, भारत आधुनिक बने ये भी उतना ही आवश्‍यक है। हम सिर्फ, कभी-कभी क्‍या होता है, आप देखा होगा, किसी senior citizen को आप मिलोगे, 70 साल की उम्र हो गई होगी, 80 साल की उम्र हो गई होगी, पोते-पोतियां नमस्‍ते करने जाएंगे तो वो क्‍या करता है, आओ बैठो, देखो मैं जब 30 साल का था ना ऐसा करता था और बच्‍चों ने ये बात दस बार सुनी होगी, तो जब दादा बुलाते हैं तो बच्‍चे भाग जाते हैं। उनको लगता है कि ये दादा अब फिर कुछ कथा सुनाएंगे। ऐसा हम देखते हैं, परिवार के जीवन में हम देखते हैं। बालक भी लंबे समय तक पुराने पराक्रमों को सुनने के लिए तैयार नहीं हैं।

मैं देशवासियों को ये कहने की हिम्‍मत करता हूं आज, हमारे पूर्वजों ने जो परा‍क्रम किए हैं, वो हमारी प्रेरणा के कारण बन सकते हैं लेकिन हमारे पूर्वजों के पराक्रम पर गीत गाते-गाते हम गुजारा नहीं कर सकते हैं। हमने अपने युग में, हमने पूर्वजों के पराक्रम से प्ररेणा ले करके अपने वर्तमान को भी उज्‍जवल करना है, और भविष्‍य की मजबूत नींव डालना ये हमारा दायित्‍व बनता है। सिर्फ महान संस्‍कृति, महान परंपरा, पांच हजार साल का उज्‍ज्‍वल इतिहास, इसी के गीत गाते रहें और पड़ोसी को कभी पानी भी पिलाने को तैयार न हों, ऐसा कभी मेरा देश नहीं हो सकता है। और इसलिए पूवर्जों के पराक्रम, महान संस्‍कृति, महान परंपरा, उसकी जो उत्‍तम चीजें हैं, उसको हमें प्रेरणा लेनी है लेकिन अपने पसीने से वर्तमान को भरना है। अपनी इच्‍छाशक्ति से इसकी मजबूत नींव डालनी है ताकि आने वाली पीढ़ी ये न कहे कि आपने पूर्वजों ने तो बहुत कर के गये, तुम बताओ बेटे तुमने क्‍या किया? ये सवाल का जवाब देने का हमारे में हौसला होना चाहिए ऐसा हिंदुस्‍तान बनाना है। अपने सामर्थ्‍य से, अपने पराक्रम से, अपने पुरुषार्थ से, अपने त्‍याग से, अपनी तपस्‍या से, हमने हमारे देश को बनाना चाहिए, हमने हमारे देश को आगे बढ़ाना चाहिए और हमारे जो मूल्‍य हैं, सांस्‍कृतिक विरासतें हैं उसको विश्‍व को परिचित कराना चाहिए, ये जब तक हम संतुलन नहीं करते, दुनिया हमें स्‍वीकार नहीं करेगी।

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मुझे विश्‍वास है कि विकास के इन सपनों को ले करके जो हम चल रहे हैं, उसमें आपका पूरा-पूरा योगदान रहेगा। भारत का गौरव बढ़ाने के लिए हम जहां हों, जहां भी हों हम जरूर अपनी तरफ से प्रयास करते रहें। दुनिया को देने के लिए इस देश के पास बहुत कुछ है। अनेक संकटों के बाद भी आज भी सीना तान करके खड़े रहने की हम में हिम्‍मत है। लेकिन सीना सीना तानना पड़े, दिन आने नहीं चाहिए। और वो तब होता है, जब हम अपने वर्तमान को विकास की नई ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए पुरुषार्थ करते हैं, सामूहिक पुरुषार्थ करते हैं, सामर्थ्‍य के साथ चलते हैं, तब जा करके परिणाम मिलता है।

सिंगापुर को हर किसी ने बनाया है, हर कोई बना रहा है, और सिंगापुर भी अगल-बगल के मुल्‍कों को बनाने की ताकत रखता है। मैं सिंगापुर को बहुत-बहुत बधाई देता हूं, इस सिंगापुर की विकास यात्रा को मैं नमन करता हूं। इस सिंगापुर ने, सिंगापुर सचमुच में सौ-सौ सलाम करने वाला देश बन गया है, मैं उसको मेरी तरफ से बहुत-बहुत बधाई देता हूं और सवा सौ करोड़ का देश हिंदुस्‍तान वो भी उमंग और उत्‍साह के साथ आगे बढ़ेगा इसी एक संकल्‍प के साथ मैं फिर एक बार सभी को बहुत-बहुत बधाई देता हूं, बहुत-बहुत अभिनंदन करता हूं, बहुत-बहुत धन्‍यवाद करता हूं। धन्‍यवाद। Thank You.

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Our language is the carrier of our culture: PM Modi at Akhil Bharatiya Marathi Sahitya Sammelan
February 21, 2025
QuoteOur language is the carrier of our culture: PM
QuoteMarathi is a complete language: PM
QuoteSeveral saints of Maharashtra showed a new direction to society through the Bhakti movement in the Marathi language: PM
QuoteThere has never been any enmity among Indian languages, instead they have always adopted and enriched each other: PM

Respected senior leader Shri Sharad Pawar ji, the popular Chief Minister of Maharashtra Shri Devendra Fadnavis ji, President of the Akhil Bharatiya Marathi Sahitya Sammelan Dr. Tara Bhawalkar ji, former President Dr. Ravindra Shobhane ji, all esteemed members, scholars of the Marathi language, and all brothers and sisters present here.

Just now, Dr. Tara Ji completed her speech, and I casually said “Tharchhan." She responded to me in Gujarati, and I also know Gujarati. Greetings to all the Marathi Saraswat community members who have come from the state of the country's financial capital to the national capital.

Today, this prestigious event dedicated to the Marathi language is being organised on the land of Delhi. The Akhil Bharatiya Marathi Sahitya Sammelan is not limited to just one language or state. This conference on Marathi literature carries the essence of the freedom struggle, as well as the cultural heritage of Maharashtra and the nation. The Marathi language by Dnyaneshwar and Tukaram is being wholeheartedly honoured today in the capital Delhi.

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Brothers and sisters,

Since its first event in 1878, the Akhil Bharatiya Marathi Sahitya Sammelan has been a witness to 147 years of history. Many great personalities of the nation, such as Mahadev Govind Ranade ji, Hari Narayan Apte ji, Madhav Shrihari Aney ji, Shivram Paranjape ji, and Veer Savarkar ji, have presided over this conference. Today, I have the opportunity to be a part of this prestigious tradition at the invitation of Sharad ji. I extend my heartfelt congratulations to all of you and to all Marathi language enthusiasts across the country and the world for this grand event. And today, it is also International Mother Language Day. You have chosen an excellent day for this literary conference in Delhi!

Friends,

When I think about Marathi, it is only natural for me to recall the words of Saint Dnyaneshwar: 'माझा मराठीची बोलू कौतुके। परि अमृतातेहि पैजासी जिंके। This means that the Marathi language is sweeter than nectar itself. That is why my love for the Marathi language and culture is well known to all of you. I may not be as proficient in Marathi as you scholars, but I have continuously made an effort to speak Marathi and learn new Marathi words.

Friends,

This Marathi conference is taking place at a historic moment. It marks 350 years since the coronation of Chhatrapati Shivaji Maharaj, 300 years since the birth anniversary of the revered Ahilyabai Holkar ji, and, not long ago, we also celebrated 75 years of our Constitution, which was shaped through the efforts of Babasaheb Ambedkar.

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Friends,

Today, we also take pride in the fact that a great Marathi-speaking personality sowed the seeds of the Rashtriya Swayamsevak Sangh (RSS) on the sacred land of Maharashtra a hundred years ago. Today, it has grown into a mighty banyan tree, celebrating its centenary year. From the Vedas to Swami Vivekananda, the Rashtriya Swayamsevak Sangh has been carrying forward Bharat’s great and traditional culture to the new generations through a sacred yajna of values for the past 100 years. It is my fortune that I too, like millions of others have been inspired by the RSS to dedicate my life to the nation. It is because of the Sangh that I have had the privilege of connecting deeply with the Marathi language and tradition. Just a few months ago, the Marathi language was officially granted the status of ‘Abhijat Bhasha’ (Classical Language). With over 12 crore Marathi-speaking people across the world, this recognition had been awaited for decades. I consider myself incredibly fortunate to have had the opportunity to fulfil this long-standing aspiration of millions of Marathi speakers.

Respected scholars,

You all know that language is not merely a tool for communication—Our language is the carrier of our culture. It is true that languages are born in society, but they also play an equally crucial role in shaping that very society. Our Marathi language has given voice to the thoughts of countless individuals in Maharashtra and across the nation, shaping our cultural identity. That is why Samarth Ramdas ji said: मराठा तितुका मेळवावा महाराष्ट्र धर्म वाढवावा आहे तितके जतन करावे पुढे आणिक मेळवावे महाराष्ट्र राज्य करावे जिकडे तिकडे, meaning Marathi is a complete language—it embodies bravery and valour, beauty and sensitivity, equality and harmony. It carries both the spiritual essence of devotion and the waves of modernity. Marathi is a language of ‘bhakti’ (devotion), ‘shakti’ (strength), and ‘yukti’ (wisdom). Whenever Bharat required spiritual guidance, Maharashtra's great saints have made the wisdom of ancient sages accessible through Marathi. Saints like Dnyaneshwar, Tukaram, Ramdas, Namdev, Tukdoji Maharaj, Gadge Baba, Gora Kumbhar, and Bahinabai led the Bhakti movement, using Marathi to illuminate society with new ideals. Even in modern times, we have seen how the ‘Geet Ramayan’ by Gajanan Digambar Madgulkar and Sudhir Phadke left a profound impact on all of us.

Friends,

During the long centuries of foreign rule, the Marathi language became a battle cry for liberation from oppressors. Chhatrapati Shivaji Maharaj, Sambhaji Maharaj, and Bajirao Peshwa—these valiant Maratha warriors struck fear into their enemies, forcing them into submission. In the fight for independence, revolutionaries like Vasudev Balwant Phadke, Lokmanya Tilak, and Veer Savarkar disturbed the sleep of the British. And behind their fearless resistance, the Marathi language and literature played a significant role. Newspapers like ‘Kesari’ and ‘Maratha’, the powerful poetry of Govindagraj, and the plays of Ram Ganesh Gadkari ignited a wave of patriotism that spread across the country, fuelling the freedom movement. Even Lokmanya Tilak’s ‘Gita Rahasya’ was written in Marathi. But it infused the entire nation with a new energy.

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Friends,

The Marathi language and literature have played a remarkable role in opening the doors of social liberation for the oppressed and marginalized sections of society. Jyotiba Phule, Savitribai Phule, Maharshi Karve, and Babasaheb Ambedkar—these great social reformers used Marathi to nurture a vision of a new era. Marathi has also given the country a rich tradition of Dalit literature. Thanks to its progressive outlook, Marathi literature has even ventured into science fiction. Even in the past, Maharashtra has made extraordinary contributions to Ayurveda, science, and logic. This culture of intellectual and scientific inquiry has made Maharashtra a hub for new ideas and exceptional talent, fostering continuous progress. It is because of this spirit that Mumbai has emerged not just as Maharashtra’s pride but as the economic capital of the entire country!

And brothers and sisters,

When we mention Mumbai, it is impossible to talk about literature without also mentioning films! It is Maharashtra and Mumbai that have not only elevated Marathi cinema but also taken Hindi cinema to great heights. And these days, there is immense excitement around ‘Chhava’! The world is rediscovering the valour of Sambhaji Maharaj, a story that was first introduced to us through Shivaji Sawant’s iconic Marathi novel.

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Friends,

Poet Keshavsut once wrote: “जुनें जाऊं द्या, मरणालागुनि जाळुनि किंवा, पुरुनि टाकासडत न एक्या ठायी ठाका. This means that we must not remain stuck in old ideas. Human civilization, thoughts, and languages continuously evolve. Today, Bharat stands as one of the world's most ancient yet living civilizations because we have constantly evolved, embraced new ideas, and welcomed change. Our vast linguistic diversity is proof of this. And this very diversity is the foundation of our unity. Marathi itself is a great example of this. A language is like a mother—it seeks to impart more and more knowledge to its children. Just like a mother, language does not discriminate—it embraces all ideas and all progress. As you know, Marathi originated from Sanskrit, but it also carries a significant influence from Prakrit. Over generations, it has evolved, broadening human thought. I just mentioned Lokmanya Tilak’s ‘Gita Rahasya’ — it is a commentary on the Sanskrit Bhagavad Gita, where Tilak ji infused the essence of Marathi, making Gita more accessible to the masses. Similarly, ‘Dnyaneshwari Gita’ is a Sanskrit text explained in Marathi, and today, it is considered a standard text for scholars and saints. Marathi has borrowed from other languages and enriched other Indian languages. For example, Marathi writer Bhargavram Vitthal Varerkar translated ‘Anandamath’ into Marathi. The works of Vinda Karandikar have been translated into multiple languages. He wrote about Panna Dhai, Rani Durgavati, and Rani Padmavati. This shows that Indian languages have never been in conflict with one another. Instead, they have always embraced and enriched each other.

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Friends,

Many times, when attempts are made to create divisions in the name of language, our shared linguistic heritage itself becomes the strongest response to such efforts. Instead of falling for such misconceptions, our collective responsibility is to enrich and embrace all languages. That is why today, we are recognizing all Indian languages as mainstream languages. We are actively promoting education in Marathi and other regional languages. Now, the youth of Maharashtra can easily pursue higher education, engineering, and medical studies in Marathi. We have changed the old mindset that ignored talent simply because someone did not know English.

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Friends,

We all say that literature is the mirror of society, but it is also a guide for society. That is why literary conferences and institutions play a crucial role in shaping our nation. Great figures like Govind Ranade ji, Hari Narayan Apte ji, Acharya Atre ji, and Veer Savarkar ji set high standards in literature, and I hope that the Akhil Bharatiya Marathi Sahitya Mahamandal will continue to carry this legacy forward. In 2027, the Marathi Sahitya Sammelan will complete 150 years, and it will also mark the 100th conference. I encourage you to make this a grand and memorable occasion, and start preparing for it now. Many young people today are contributing to Marathi literature through social media. You can give them a platform, recognize their talent, and encourage more people to learn Marathi. Utilizing online platforms and initiatives like ‘Bhashini’ can help promote the language further. You can also organize competitions among youth to foster interest in Marathi literature.

I am confident that these efforts—along with the inspirational legacy of Marathi literature—will provide new energy, new awareness, and new motivation to 140 crore Indians in building a ‘Viksit Bharat’ (Developed India). With this wish—that you all continue to advance the great literary tradition of stalwarts like Mahadev Govind Ranade ji, Hari Narayan Apte ji, Madhav Shrihari Aney ji, and Shivram Paranjape ji—I once again extend my heartfelt thanks to you all!