PM appreciates arrangements at Ujjain Simhasth

Published By : Admin | May 4, 2016 | 17:46 IST
QuotePM Modi appreciates arrangements made for devotees and tourists at Ujjain Simhasth
QuoteDelighted to know about the usage of technology in Simhasth: PM Modi

Prime Minister Shri Narendra Modi has appreciated the extensive arrangements made for devotees and tourists at Ujjain Simhasth. In a series of tweets after meeting the Chief Minister of Madhya Pradesh Shri Shivraj Singh Chouhan yesterday in New Delhi, PM also said that he was delighted to know about the usage of technology and the focus on cleanliness at Simhasth.

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“Had an excellent meeting with MP CM @ChouhanShivraj. He talked at length about extensive arrangements at @Simhasth.

Was delighted to know about the usage of technology in @Simhasth. Focus on cleanliness, both on the land and water is appreciable.

Its gladdening that devotees and tourists visiting @Simhasth will witness cultural programmes that celebrate our great culture and rich history.”, the Prime Minister tweeted.

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जय जिनेन्द्र,

मन शांत है, मन स्थिर है, सिर्फ शांति, एक अद्भुत अनुभूति है, शब्दों से परे, सोच से भी परे, नवकार महामंत्र अब भी मन मस्तिष्क में गूंज रहा है। नमो अरिहंताणं॥ नमो सिद्धाणं॥ नमो आयरियाणं॥ नमो उवज्झायाणं॥ नमो लोए सव्वसाहूणं॥ एक स्वर, एक प्रवाह, एक ऊर्जा, न कोई उतार, न कोई चढ़ाव, बस स्थिरता, बस समभाव। एक ऐसी चेतना, एक जैसी लय, एक जैसा प्रकाश भीतर ही भीतर। मैं नवकार महामंत्र की इस अध्यात्मिक शक्ति को अब भी अपने भीतर अनुभव कर रहा हूं। कुछ वर्ष पूर्व मैं बैंगलुरू में एैसे ही एक सामूहिक मंत्रोच्चार का साक्षी बना था, आज वही अनुभूति हूई और उतनी ही गहराई में। इस बार देश विदेश में एक साथ, एक ही चेतना से जुड़े लाखों करोड़ों पुण्य आत्माएं, एक साथ बोले गए शब्द, एक साथ जागी ऊर्जा, ये वाकई अभुतपूर्व है।

श्रावक-श्राविकाएं, भाईयों – बहनों,

इस शरीर का जन्म गुजरात में हुआ। जहां हर गली में जैन धर्म का प्रभाव दिखता है और बचपन से ही मुझे जैन आचार्यों का सानिध्य मिला।

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साथियों,

नवकार महामंत्र सिर्फ मंत्र नहीं है, ये हमारी आस्था का केंद्र है। हमारे जीवन का मूल स्वर और इसका महत्व सिर्फ आध्यात्मिक नहीं है। ये स्वयं से लेकर समाज तक सबको राह दिखाता है। जन से जग तक की यात्रा है। इस मंत्र का प्रत्येक पद ही नहीं, प्रत्येक अक्षर भी अपने आपमे एक मंत्र है। जब हम नवकार महामंत्र बोलते हैं, हम नमन करते हैं पंच परमेष्ठी को। कौन है पंच परमेष्ठी ? अरिहंत-जिन्होंने केवल ज्ञान प्राप्त किया, जो भव्य जीवों को बोध कराते हैं, जिनके 12 दिव्य गुण हैं। सिद्ध-जिन्होंने 8 कर्मों का क्षय किया, मोक्ष को प्राप्त किया, 8 शुद्ध गुण जिनके पास हैं। आचार्य- जो महावृत का पालन करते हैं, जो पथ प्रदर्शक हैं, 36 गुणों से युक्त उनका व्यक्तित्व है। उपाध्याय – जो मोक्ष मार्ग के ज्ञान को शिक्षा मे ढालते हैं, जो 25 गुणों से भरे हुए हैं। साधु – जो तप की अग्नि में खुद को कसते हैं। जो मोक्ष की प्राप्ति को, उस दिशा में बढ़ रहे हैं, इनमें भी हैं 27 महान गुण।

साथियों,

जब हम नवकार महामंत्र बोलते हैं, हम नमन करते हैं 108 दिव्य गुणों का, हम स्मरण करते हैं मानवता का हित, ये मंत्र हमें याद दिलाता है – ज्ञान और कर्म ही जीवन की दिशा है, गुरू ही प्रकाश है और मार्ग वही है जो भीतर से निकलता है। नवकार महामंत्र कहता है, स्वयं पर विश्वास करो, स्वयं की यात्रा शुरू करो, दुशमन बाहर नहीं है, दुशमन भीतर है। नकारात्मक सोच, अविश्वास, वैमन्सय, स्वार्थ, यही वे शत्रु हैं, जिन्हें जीतना ही असली विजय है। और यही कारण है, कि जैन धर्म हमें बाहरी दुनिया नहीं, खुद को जीतने की प्रेरणा देता है। जब हम खुद को जीतते हैं, हम अरिहंत बनते हैं। और इसलिए, नवकार महामंत्र मांग नहीं है, ये मार्ग है। एक ऐसा मार्ग जो इंसान को भीतर से शुद्ध करता है। जो इंसान को सौहार्द की राह दिखाता है।

साथियों,

नवकार महामंत्र सही माइने में मानव ध्यान, साधना और आत्मशुद्धि का मंत्र है। इस मंत्र का एक वैश्विक परिपेक्ष्य है। यह शाश्वत महामंत्र, भारत की अन्य श्रुति–स्मृति परम्पराओं की तरह, पहले सदियों तक मौखिक रूप से, फिर शिलालेखों के माध्यम से और आखिर में प्राकृत पांडुलिपियों के द्वारा पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ा और आज भी ये हमें निरंतर राह दिखाता है। नवकार महामंत्र पंच परमेष्ठी की वंदना के साथ ही सम्यक ज्ञान है। सम्यक दर्शन है। सम्यक चरित्र है और सबसे ऊपर मोक्ष की ओर ले जाने वाला मार्ग है।

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हम जानते है जीवन के 9 तत्व हैं। जीवन को ये 9 तत्व पूर्णता की ओर ले जाते हैं। इसलिए, हमारी संस्कृति में 9 का विशेष महत्व है। जैन धर्म में नवकार महामंत्र, नौ तत्व, नौ पुण्य और अन्य परंपराओं में, नौ निधि, नवद्वार, नवग्रह, नवदुर्गा, नवधा भक्ति नौ, हर जगह है। हर संस्कृति में, हर साधना में। जप भी 9 बार या 27, 54, 108 बार, यानि 9 के multiples में ही। क्यों? क्योंकि 9 पूर्णता का प्रतीक है। 9 के बाद सब रिपीट होता है। 9 को किसी से भी गुणा करो, उत्तर का मूल फिर 9 ही होता है। ये सिर्फ math नहीं है, गणित नहीं है। ये दर्शन है। जब हम पूर्णता को पा लेते हैं, तो फिर उसके बाद हमारा मन, हमारा मस्तिष्क स्थिरता के साथ उर्ध्वगामी हो जाता है। नई चीज़ों की इच्छा नहीं रह जाती। प्रगति के बाद भी, हम अपने मूल से दूर नहीं जाते और यही नवकार का महामंत्र का सार है।

साथियों,

नवकार महामंत्र का ये दर्शन विकसित भारत के विज़न से जुड़ता है। मैंने लालकिले से कहा है- विकसित भारत यानि विकास भी, विरासत भी! एक ऐसा भारत जो रुकेगा नहीं, ऐसा भारत जो थमेगा नहीं। जो ऊंचाई छूएगा, लेकिन अपनी जड़ों से नहीं कटेगा। विकसित भारत अपनी संस्कृति पर गर्व करेगा। इसीलिए,हम अपने तीर्थंकरों की शिक्षाओं को सहेजते हैं। जब भगवान महावीर के दो हजार पांच सौ पचासवें निर्वाण महोत्सव का समय आया, तो हमने देश भर में उसे मनाया। आज जब प्राचीन मूर्तियां विदेश से वापस आती हैं, तो उसमें हमारे तीर्थंकर की प्रतिमाएं भी लौटती हैं। आपको जानकर गर्व होगा, बीते वर्षों में 20 से ज्यादा तीर्थंकरों की मूर्तियाँ विदेश से वापस आई हैं, ये कभी न कभी चोरी की गई थी।

साथियों,

भारत की पहचान बनाने में जैन धर्म की भूमिका अमूल्य रही है। हम इसे सहेजने के लिए प्रतिबद्ध हैं। मैं नहीं जानता हूं, आपमे से कितने लोग नया संसद भवन देखने गए होंगे। और गए भी होंगे तो ध्यान से देखा होगा, कि नहीं देखा होगा। आपने देखा, नई संसद बनी लोकतंत्र का मंदिर। वहाँ भी जैन धर्म का प्रभाव साफ दिखता है। जैसे ही आप शार्दूल द्वार से प्रवेश करते हैं। स्थापत्य गैलरी में सम्मेद शिखर दिखता है। लोकसभा के प्रवेश पर तीर्थंकर की मूर्ति है, ये मूर्ति ऑस्ट्रेलिया से लौटी है। संविधान गैलरी की छत पर भगवान महावीर की अद्भुत पेंटिंग है। साउथ बिल्डिंग की दीवार पर सभी 24 तीर्थंकर एक साथ हैं। कुछ लोगों में जान आने में समय लगता है, बड़े इंतजार के बाद आता है, लेकिन मजबूती से आता है। ये दर्शन हमारे लोकतंत्र को दिशा दिखाते हैं, सम्यक मार्ग दिखाते हैं। जैन धर्म की परिभाषाएं बड़े ही सारगर्भित सूत्रों में प्राचीन आगम ग्रंथों में निबद्ध की गर्ई हैं। जैसे- वत्थु सहावो धम्मो, चारित्तम् खलु धम्मो, जीवाण रक्खणं धम्मो, इन्हीं संस्कारों पर चलते हुए हमारी सरकार, सबका साथ-सबका विकास के मंत्र पर आगे बढ़ रही है।

साथियों,

जैन धर्म का साहित्य भारत के बौद्धिक वैभव की रीढ़ है। इस ज्ञान को संजोना हमारा कर्तव्य है। और इसीलिए हमने प्राकृत और पाली को क्लासिकल लैंग्वेज का दर्जा दिया। अब जैन साहित्य पर और रिसर्च करना संभव होगा।

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और साथियों,

भाषा बचेगी तो ज्ञान बचेगा। भाषा बढ़ेगी तो ज्ञान का विस्तार होगा। आप जानते हैं, हमारे देश में सैकड़ों साल पुरानी जैन पांडुलिपियाँ मैन्यूस्क्रिप्ट्स हैं। हर पन्ना इतिहास का दर्पण है। ज्ञान का सागर है। "समया धम्म मुदाहरे मुणी" - समता में ही धर्म है। "जो सयं जह वेसिज्जा तेणो भवइ बंद्गो"- जो ज्ञान का गलत इस्तेमाल करता है, वो नष्ट हो जाता है। "कामो कसायो खवे जो, सो मुणी – पावकम्म-जओ।" "जो काम और कषायों को जीत लेता है, वही सच्चा मुनि है।"

लेकिन साथियों,

दुर्भाग्य से अनेक अहम ग्रंथ धीरे-धीरे लुप्त हो रहे थे। इसलिए हम ज्ञान भारतम मिशन शुरू करने जा रहे हैं। इस वर्ष बजट में इसकी घोषणा की गई है। देश में करोड़ों पांडुलिपियों का सर्वे कराने की तैयारी इसमे हो रही है। प्राचीन धरोहरों को डिजिटल करके हम प्राचीनता को आधुनिकता से जोड़ेंगे। ये बजट में बहुत महत्वपूर्ण घोषणा थी और आप लोगों को तो ज्यादा गर्व होना चाहिए। लेकिन, आपका ध्यान पूरा 12 लाख रुपया इन्कम टैक्स मुक्ति इस पर गया होगा। अकलमंद को इशारा काफी है।

साथियों,

ये जो मिशन हमने शुरू किया है, ये अपने आपमे एक अमृत संकल्प है! नया भारत AI से संभावनाएँ खोजेगा और आध्यात्म से दुनिया को राह दिखाएगा।

साथियों,

जितना मैंने जैन धर्म को जाना है, समझा है, जैन धर्म बहुत ही साइंटिफिक है, उतना ही संवेदनशील भी है। विश्व आज जिन परिस्थितियों से जूझ रहा है। जैसे युद्ध, आतंकवाद या पर्यावरण की समस्याएं हों, ऐसी चुनौतियों का हल जैन धर्म के मूल सिद्धांतों में समाहित है। जैन परम्परा के प्रतीक चिन्ह में लिखा है -"परस्परोग्रहो जीवानाम" अर्थात जगत के सभी जीव एक दूसरे पर आधारित हैं। इसलिए जैन परम्परा सूक्ष्मतम हिंसा को भी वर्जित करती है। पर्यावरण संरक्षण, परस्पर सद्भाव और शांति का यह सर्वोत्तम संदेश है। हम सभी जैन धर्म के 5 प्रमुख सिद्धांतों के बारे में भी जानते हैं। लेकिन एक और प्रमुख सिद्धांत है- अनेकांतवाद। अनेकांतवाद का दर्शन, आज के युग में और भी प्रासंगिक हो गया है। जब हम अनेकांतवाद पर विश्वास करते हैं, तो युद्ध और संघर्ष की स्थिति ही नहीं बनती। तब लोग दूसरों की भावनाएं भी समझते हैं और उनका perspective भी समझते हैं। मैं समझता हूं आज पूरे विश्व को अनेकांतवाद के दर्शन को समझने की सबसे ज्यादा जरूरत है।

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साथियों,

आज भारत पर दुनिया का विश्वास और भी गहरा हो रहा है। हमारे प्रयास, हमारे परिणाम, अपने आपमे अब प्रेरणा बन रहे हैं। वैश्विक संस्थाएं भारत की ओर देख रही हैं। क्यों? क्योंकि भारत आगे बढ़ा है। और जब हम आगे बढ़ते हैं, ये भारत की विशेषता है, जब भारत आगे बढ़ता है, तो दूसरों के लिए रास्ते खुलते हैं। यही तो जैन धर्म की भावना है। मैं फिर कहूंगा, परस्परोपग्रह जीवानाम्! जीवन आपसी सहयोग से ही चलता है। इसी सोच के कारण भारत से दुनिया की अपेक्षाएँ भी बढ़ी हैं। और हम भी अपने प्रयास तेज कर चुके हैं। आज सबसे बड़ा संकट है, अनेक संकटों में से एक संकट की चर्चा ज्यादा है - क्लाइमेट चेंज। इसका हल क्या है? Sustainable लाइफस्टाइल। इसीलिए भारत ने शुरू किया मिशन लाइफ। Mission Life का अर्थ है Life Style for Environment’ LIFE. और जैन समाज तो सदियों से यही जीता आया है। सादगी, संयम और Sustainability आपके जीवन के मूल हैं। जैन धर्म में कहा गया है- अपरिग्रह, अब समय हैइन्हें जन-जन तक पहुँचाने का। मेरा आग्रह है, आप जहां हों, दुनिया के किसी भी कोने में हो, जिस भी देश में हो, जरूर मिशन लाइफ के ध्वजावाहक बनें।

साथियों,

आज की दुनिया Information की दुनिया है। Knowledge का भंडार नजर आने लगा है। लेकिन, न विज्जा विण्णाणं करोति किंचि! विवेक के बिना ज्ञान बस भारीपन है, गहराई नहीं। जैन धर्म हमें सिखाता है - Knowledge और Wisdom से ही Right Path मिलता है। हमारे युवाओं के लिए ये संतुलन सबसे ज़रूरी है। हमें, जहाँ tech हो, वहाँ touch भी हो। जहाँ skill हो, वहाँ soul भी तो हो, आत्मा भी तो हो। नवकार महामंत्र, इस Wisdom का स्रोत बन सकता है। नई पीढ़ी के लिए ये मंत्र केवल जप नहीं, एक दिशा है।

साथियों,

आज जब इतनी बड़ी संख्या में, विश्वभर में एक साथ नवकार महामंत्र का जाप किया है, तो मैं चाहता हूं- आज हम सब, जहां भी बैठे हों, इस कमरे में ही सिर्फ नहीं। से 9 संकल्प लेकर जाएं। ताली नहीं बजेगी, क्योंकि आपको लगेगा कि मुसीबत आ रही है। पहला संकल्प- पानी बचाने का संकल्प। आपमें से बहुत सारे साथी महुड़ी यात्रा करने गए होंगे। वहां बुद्धिसागर जी महाराज ने 100 साल पहले एक बात कही थी, वो वहां लिखी हुई है। बुद्धिसागर महाराज जी ने कहा था - "पानी किराने की दुकान में बिकेगा..." 100 साल पहले कहा। आज हम उस भविष्य को जी रहे हैं। हम किराने की दुकान से पानी पीने के लिए लेते हैं। हमें अब एक-एक बूँद की कीमत समझनी है। एक-एक बूँद उसे बचाना, ये हमारा कर्तव्य है।

दूसरा संकल्प- एक पेड़ माँ के नाम। पिछले कुछ महीनों में देश में 100 करोड़ से ज्यादा पेड़ लगे हैं। अब हर इंसान अपनी मां के नाम एक पेड़ लगाएं, माँ के आशीर्वाद जैसा उसे सींचे। मैंने एक प्रयोग किया था, जब गुजरात की धरती पर आपने मुझे सेवा का मौका दिया था। तो तारंगा जी में मैंने तीर्थंकर वन बनाया था। तारंगा जी वीरान सी अवस्था है, यात्री आते तो बैठने की जगह मिल जाए और मेरा मन था, कि इस तीर्थंकर वन में हमारे 24 तीर्थंकर जिस वृक्ष के नीचे बैठे थे, उसको मैं ढूंढ कर लगाऊंगा। मेरे प्रयासों में कोई कमी नहीं थी, लेकिन दुर्भाग्य से मैं सिर्फ 16 वृक्ष इकट्ठे कर पाया था, आठ वृक्ष मुझे नहीं मिले। जिन तीर्थंकरों ने जिस वृक्ष के नीचे साधना की हो और वो वृक्ष विलुप्त हो जाएं, क्या हमें दिल में कसक होती है क्या? आप भी तय करें, हर तीर्थंकर जिस वृक्ष के नीचे बैठे थे, वो वृक्ष मैं बोऊंगा और मेरी मां के नाम वो पेड़ बोऊंगा।

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तीसरा संकल्प- स्वच्छता का मिशन। स्वच्छता में भी शूक्ष्म अहिंसा है, हिंसा से मुक्ति है। हमारी हर गली, हर मोहल्ला, हर शहर स्वच्छ होना चाहिए, हर व्यक्ति को उसमें योगदान करना चाहिए, नहीं करोगे? चौथा संकल्प- वोकल फॉर लोकल। एक काम करिए, खास करके मेरे युवा, नौजवान, दोस्त, बेटियां, अपने घर में सुबह उठने से लेकर के रात को सोने तक जो चीजें उपयोग करते होंगे ब्रश, कंघी, जो भी, जरा लिस्ट बनाइए कितनी चीजें विदेशी हैं। आप स्वयं चौंक जाएंगे, कि कैसी-कैसी चीजें आपकी जिंदगी में घुस गई है और फिर तय करिए, कि इस वीक में तीन कम करूंगा, अगले वीक में पांच कम करूंगा और फिर धीरे-धीरे हर दिन नौ कम करूंगा और एक-एक कम करता जाऊंगा, एक एक नवकार मंत्र बोलता जाऊंगा।

साथियों,

जब मैं वोकल फॉर लोकल कहता हूं। जो सामान बना है भारत में, जो बिके भारत में भी और दुनिया भर में। हमें Local को Global बनाना है। जिस सामान को बनाने में किसी भारतीय के पसीने की खुशबू हो, जिस सामान में भारत की मिट्टी की महक हो, हमें उसे खरीदना है और दूसरों को भी प्रेरित करना है।

पांचवा संकल्प- देश दर्शन। आप दुनिया घूमिए, लेकिन, पहले भारत जानें, अपना भारत जानें। हमारा हर राज्य, हर संस्कृति, हर कोना, हर परंपरा अद्भुत है, अनमोल है, इसे देखना चाहिए और हम नहीं देखेंगे और कहेंगे कि दुनिया देखने के लिए आए तो क्यों आएगी भई। अब घर में अपने बच्चों को महात्मय नहीं देंगे, तो मोहल्ले में कौन देगा।

छठा संकल्प- नैचुरल फार्मिंग को अपनाना। जैन धर्म में कहा गया है- जीवो जीवस्स नो हन्ता - "एक जीव को दूसरे जीव का संहारक नहीं बनना चाहिए।" हमें धरती माँ को केमिकल्स से मुक्त करना है। किसानों के साथ खड़ा होना है। प्राकृतिक खेती के मंत्र को गांव-गांव लेकर जाना है।

सातवां संकल्प- हेल्दी लाइफस्टाइल को अपनाना। खानपान में भारतीय परंपरा की वापसी होनी चाहिए। मिलेट्स श्रीअन्न ज्यादा से ज्यादा थालियों में हो। और खाने में तेल 10 परसेंट कम हो ताकि मोटापा दूर रहे! और आपको तो हिसाब-किताब आता है, पैसा बचेगा काम को और कम का।

साथियों,

जैन परंपरा कहती है – ‘तपेणं तणु मंसं होइ।’ तप और संयम से शरीर स्वस्थ और मन शांत होता है। और इसका एक बड़ा माध्यम है- योग और खेल कूद। इसलिए आठवां संकल्प है- योग और खेल को जीवन में लाना। घर हो या दफ्तर, स्कूल हो या पार्क, हमें खेलना और योग करना जीवन का हिस्सा बनाना है। नवां संकल्प है- गरीबों की सहायता का संकल्प। किसी का हाथ थामना,किसी की थाली भरना यही असली सेवा है।

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साथियों,

इन नव संकल्पों से हमें नई ऊर्जा मिलेगी, ये मेरी गारंटी है। हमारी नई पीढ़ी को नई दिशा मिलेगी। और हमारे समाज में शांति, सद्भाव और करुणा बढ़ेगी। और एक बात मैं जरूर कहूंगा, इन नव संकल्पों में से एक भी मैंने मेरे भले के लिए किया है, तो मत करना। मेरी पार्टी की भलाई के लिए किया हो, तो भी मत करना। अब तो आपको कोई बंधन नहीं होना चाहिए। और सारे महाराज साहब भी मुझे सुन रहे हैं, मैं उनसे प्रार्थना करता हूं, कि मेरी ये बात आपके मुहं से निकलेगी तो ताकत बढ़ जाएगी।

साथियों,

हमारे रत्नत्रय, दशलक्षण, सोलह कारण, पर्युषण आदि महापर्व आत्म कल्याण का मार्ग प्रशस्त करते हैं। वही विश्व नवकार महामंत्र, ये दिवस विश्व में निरंतर सुख, शांति और समृद्धि बढ़ाएगा, मेरा हमारे आचार्यों भगवंतों पर पूरा भरोसा है और इसलिए आप पर भी भरोसा है। आज मुझे खुशी है, जो खुशी मैं व्यक्त करना चाहता हूं, क्योंकि मैं इन बातों से पहले भी जुड़ा हुआ हूं। मेरी बहुत खुशी है, कि चारों फिरके इस आयोजन में एक साथ जुटे हैं। यह स्टैंडिंग ओवेशन मोदी के लिए नहीं है, ये उन चारों फिरकों के सभी महापुरुषों के चरणों में समर्पित करता हूं। ये आयोजन, ये आयोजन हमारी प्रेरणा, हमारी एकता, हमारी एकजुटता और एकता का सामर्थ्य की अनुभूति और एकता की पहचान बना है। हमें देश में एकता का संदेश इसी तरह लेकर जाना है। जो कोई भी भारत माता की जय बोलता है, उसको हमें जोड़ना है। ये विकसित भारत के निर्माण की ऊर्जा है, उसकी नींव को मजबूत करने वाला है।

साथियों,

आज हम सौभाग्यशाली हैं, कि देश में अनेक स्थानों पर हमें गुरू भगवंतों का भी आशीर्वाद प्राप्त हो रहा है। मैं इस ग्लोबल इवेंट के आयोजन के लिए समस्त जैन परिवार को नमन करता हूं। आज पूरे देश में, विदेश में जो हमारे आचार्य भगवंत, मारा साहेब, मुनि महाराज, श्रावक-श्राविका जुटे हैं, मैं उन्हें भी श्रद्धापूर्वक प्रणाम करता हूं। और मैं विशेष रूप से JITO को भी इस आयोजन के लिए बधाई देता हूं। नवकार मंत्र के लिए जितनी ताली बजी, उससे ज्यादा JITO के लिए बज रही है। जीतो Apex के चेयरमैन पृथ्वीराज कोठारी जी, प्रेसीडेंट विजय भंडारी जी, गुजरात के गृहमंत्री हर्ष सांघवी जी, जीतो के अन्य पदाधिकारी और देश-दुनिया के कोने-कोने से जुड़े महानुभाव, आप सभी को इस ऐतिहासिक आयोजन के लिए ढेरों शुभकामनाएं। धन्यवाद।

जय जिनेन्द्र।

जय जिनेन्द्र।

जय जिनेन्द्र।