Text of the PM's Statement at the United Nations General Assembly

Published By : Admin | September 27, 2014 | 22:49 IST

विशिष्‍ट अतिथिगण और मित्रों 

सर्वप्रथम मैं संयुक्‍त राष्‍ट्र महासभा के 69वें सत्र के अध्‍यक्ष चुने जाने पर आपको हार्दिक शुभकामनाएं देता हूं। भारत के प्रधानमंत्री के रूप में पहली बार आप सबको संबोधित करना मेरे लिए अत्‍यंत सम्‍मान की बात है। मैं भारतवासियों की आशाओं एवं अपेक्षाओं से अभिभूत हूं। उसी प्रकार मुझे इस बात का पूरा भान है कि विश्‍व को 1.25 बिलियन लोगों से क्‍या अपेक्षाएं हैं। भारत वह देश है, जहां मानवता का छठवां हिस्‍सा आबाद है। भारत ऐसे व्‍यापक पैमाने पर आर्थिक व सामाजिक बदलाव से गुजर रहा है, जिसका उदाहरण इतिहास में दुर्लभ है। 

प्रत्‍येक राष्‍ट्र की, विश्‍व की अवधारणा उसकी सभ्‍यता एवं धार्मिक परंपरा के आधार पर निरूपित होती है। भारत चिरंतन विवेक समस्‍त विश्‍व को एक कुटंब के रूप में देखता है। और जब मैं यह बात कहता हूं तो मैं यह साफ करता हूं कि हर देश की अपनी एक philosophy होती है। मैं ideology के संबंध में नहीं कह रहा हूं। और देश उस फिलोस्‍फी की प्रेरणा से आगे बढ़ता है। भारत एक देश है, जिसकी वेदकाल से वसुधैव कुंटुम्‍बकम परंपरा रही है। भारत एक देश है, जहां प्रकृति के साथ संवाद, प्रकृति के साथ कभी संघर्ष नहीं ये भारत के जीवन का हिस्‍सा है और इसका कारण उस philosophy के तहत, भारत उस जीवन दर्शन के तहत, आगे बढ़ता रहता है। प्रत्‍येक राष्‍ट्र की, विश्‍व अवधारणा उसकी सभ्‍यता और उसकी दार्शनिक परंपरा के आधार पर निरूपित होती है। भारत का चिरंतन विवेक समस्‍त विश्‍व को, जैसा मैंने कहा - वसुधैव कुटुंबमकम - एक कुटुम्‍ब के रूप में देखता है। भारत एक ऐसा राष्‍ट्र है, जो केवल अपने लिए नहीं, बल्कि विश्‍व पर्यंत न्‍याय, गरिमा, अवसर और समृद्धि के हक में आवाज उठाता रहा है। अपनी विचारधारा के कारण हमारा multi-literalism में दृढ़ विश्‍वास है। 

आज यहां खड़े होकर मैं इस महासभा पर एक टिकी हुई आशाओं एवं अपेक्षाओं के प्रति पूर्णतया सजग हूं। जिस पवित्र विश्‍वास ने हमें एकजुट किया है, मैं उससे अत्‍यंत प्रभावित हूं। बड़े महान सिद्धांतों और दृष्टिकोण के आधार पर हमने इस संस्‍था की स्‍थापना की थी। इस विश्‍वास के आधार पर कि अगर हमारे भविष्‍य जुड़े हुए हैं तो शांति, सुरक्षा, मानवाधिकार और वैश्विक आर्थिक विकास के लिए हमें साथ मिल कर काम करना होगा। तब हम 51 देश थे और आज 193 देश के झंडे इस बिल्डिंग पर लहरा रहे हैं। हर नया देश इसी विश्‍वास और उम्‍मीद के आधार पर यहां प्रवेश करता है। हम पिछले 7 दशकों में बहुत कुछ हासिल कर सके हैं। कई लड़ाइयों को समाप्‍त किया है। शांति कायम रखी है। कई जगह आर्थिक विकास में मदद की है। गरीब बच्‍चों के भविष्‍य को बनाने में मदद दी है। भुखमरी हटाने में योगदान दिया है। और इस धरती को बचाने के लिए भी हम सब सा‍थ मिल कर के जुटे हुए हैं। 

69 UN Peacekeeping मिशन में विश्‍व में blue helmet को शांति के एक रंग की एक पहचान दी है। आज समस्‍त विश्‍व में लोकतंत्र की एक लहर है। 

अफगानिस्‍तान में शांतिपूर्वक राजनीतिक परिवर्तन यह भी दिखलाता है कि अफगान जनता की शां‍ति की कामना हिंसा पर विजय अवश्‍य पाएगी। नेपाल युद्ध से शांति और लोकतंत्र की ओर आगे बढ़ा है। भूटान के नए लोकतंत्र में एक नई ताकत नजर आ रही है। पश्चिम एशिया एवं उत्‍तर अफ्रीका में लोकतंत्र के पक्ष में आवाज उठाए जाने के प्रयास हो रहे हैं। Tunisia की सफलता दिखा रही है कि लोकतंत्र की ये यात्रा संभव है। 

अफ्रीका में स्थिरता, शांति और प्रगति हेतु एक नई ऊर्जा एवं जागृति दिखायी दे रही है। 

हमें एशिया और उसके पूरे अभूतपूर्व समृद्धि का अभ्‍युदय देखा है। जिसके आधार में शांति एवं स्थिरता की शक्ति समाहित है। अपार संभावनाओं से समृद्ध महादेश लैटिन अमेरिका स्थिरता एवं समृद्धि के साझा प्रयास में एकजुट हो रहा है। यह महादेश विश्‍व समुदायों के लिए एक महत्‍वपूर्ण आधार स्‍तंभ सिद्ध हो सकता है। 

भारत अपनी प्रगति के लिए एक शांतिपूर्ण एवं स्थिर अंतरराष्‍ट्रीय वातावरण की अपेक्षा करता है। हमारा भविष्‍य हमारे पड़ोस से जुड़ा हुआ है। इसी कारण मेरी सरकार ने पहले ही दिन से पड़ोसी देशों से मित्रता और सहयोग बढ़ाने पर पूरी प्राथमिकता दी है। और पाकिस्‍तान के प्रति भी मेरी यही नीति है। मैं पाकिस्‍तान से मित्रता और सहयोग बढ़ाने के लिए गंभीरता से शांतिपूर्ण वातवारण में बिना आतंक के साये के साथ द्विपक्षीय वार्ता करना चाहते हैं।लेकिन पाकिस्‍तान का भी यह दायित्‍व है कि उपयुक्‍त वातावरण बनाये और गंभीरता से द्विपक्षीय बातचीत के लिए सामने आये। 

इसी मंच पर बात उठाने से समाधान के प्रयास कितने सफल होंगे, इस पर कइयों को शक है। आज हमें बाढ़ से पीडि़त कश्‍मीर में लोगों की सहायता देने पर ध्‍यान देना चाहिए, जो हमने भारत में बड़े पैमाने पर आयोजित किया है। इसके लिए सिर्फ भारत में कश्‍मीर, उसी का ख्‍याल रखने पर रूके नहीं हैं, हमने पाकिस्‍तान को भी कहा, क्‍योंकि उसके क्षेत्र में भी बाढ़ का असर था। हमने उनको कहा कि जिस प्रकार से हम कश्‍मीर में बाढ़ पीडि़तों की सेवा कर रहे हैं, हम पाकिस्‍तान में भी उन बाढ़ पीडि़तों की सेवा करने के लिए हमने सामने से प्रस्‍ताव रखा था। 

हम विकासशील विश्‍व का हिस्‍सा हैं, लेकिन हम अपने सीमित संसाधनों को उन सभी के सा‍थ साझा करने की छूट दें,जिन्‍हें इनकी नितांत आवश्‍यकता है। 

दूसरी ओर आज विश्‍व बड़े स्‍तर के तनाव और उथल-पुथल की स्थितियों से गुजर रहा है। बड़े युद्ध नहीं हो रहे हैं, परंतु तनाव एवं संघर्ष भरपूर नजर आ रहा है, बहुतेरे हैं, शांति का अभाव है तथा भविष्‍य के प्रति अनिश्चितता है। आज भी व्‍यापक रूप से गरीबी फैली हुई है। एक होता हुआ एशिया प्रशांत क्षेत्र अभी भी समुद्र में अपनी सुरक्षा, जो कि इसके भविष्‍य के लिए आधारभूत महत्‍व रखती है, को लेकर बहुत चिंतित है। 

यूरोप के सम्‍मुख नए वीजा विभाजन का खतरा मंडरा रहा है। पश्चिम एशिया में विभाजक रेखाएं और आतंकवाद बढ़ रहे हैं। हमारे अपने क्षेत्र में आतंकवादी स्थिरतावादी खतरे से जूझना जारी है। हम पिछले चार दशक से इस संकट को झेल रहे हैं। आतंकवाद चार नए नए रूप और नाम से प्रकट होता जा रहा है। इसके खतरे से छोटा या बड़ा, उत्‍तर में हो या दक्षिण में, पूरब में हो या पश्चिम में, कोई भी देश मुक्‍त नहीं है। 

मुझे याद है, जब मैं 20 साल पहले विश्‍व के कुछ नेताओं से मिलता था और आतंकवाद की चर्चा करता था, तो उनके यह बात गले नहीं उतरती थी। वह कहते थे कि यह law and order problem है। लेकिन आज धीरे धीरे आज पूरा विश्‍व देख रहा है कि आज आतंकवाद किस प्रकार के फैलाव को पाता चला जा रहा है। परंतु क्‍या हम वाकई इन ताकतों से निपटने के लिए सम्मि‍लित रूप से ठोस अंतरराष्ट्रीय प्रयास कर रहे हैं और मैं मानता हूं कि यह सवाल बहुत गंभीर है। आज भी कई देश आतंकवादियों को अपने क्षेत्र में पनाह दे रहे हैं और आतंकवादियों को अपनी नीति का उपकरण मानते हैं और जब good terrorism and bad terrorism , ये बातें सुनने को मिलती है, तब तो आतंकवाद के खिलाफ लड़ने की हमारी निष्‍ठाओं पर भी सवालिया निशान खड़े होते हैं। 

पश्‍चिम एशिया में आतंकवाद पाश्विकता की वापसी तथा दूर एवं पास के क्षेत्र पर इसके प्रभाव को ध्‍यान में रखते हुए सम्मिलित कार्रवाई का स्‍वागत करते हैं। परंतु इसमें क्षेत्र के सभी देशों की भागीदारी और समर्थन अनिवार्य है। अगर हम terrorism से लड़ना चाहते हैं तो क्‍यों न सबकी भागीदारी हो, क्‍यों न सबका साथ हो और क्‍यों न उस बात पर आग्रह भी किया जाए। sea, space एवं cyber space साझा समृद्धि के साथ –साथ संघर्ष के रंगमंच भी बने हैं। जो समुद्र हमें जोड़ता था, उसी समुद्र से आज टकराव की खबरें शुरू हो रही हैं। जो स्‍पेस हमारी सिद्धियों का एक अवसर बनता था, जो सायबर हमें जोड़ता था, आज इन महत्‍वपूर्ण क्षेत्रों में नए संकट नजर आ रहे हैं। 

उस अंतरराष्‍ट्रीय एकजुटता की, जिसके आधार पर संयुक्‍त राष्‍ट्र की स्‍थापना हुई, जितनी आवश्‍यकता आज है, उतनी पहले कभी नहीं थी। आज अब हम interdependence world कहते हैं तो क्‍या हमारी आपसी एकता बढ़ी है। हमें सोचने की जरूरत है। क्‍या कारण है कि UN जैसा इतना अच्‍छा प्‍लेटफार्म हमारे पास होने के बाद भी अनेक जी समूह बनाते चले गए हम। कभी G 4 होगा, कभी G 7 होगा, कभी G 20 होगा। हम बदलते रहते हैं और हम चाहें या न चाहें, हम भी उन समूहों में जुड़े हैं। भारत भी उसमें जुड़ा है। 

लेकिन क्‍या आवश्‍यकता नहीं है कि हम G 1 से आगे बढ़ कर के G-All की तरफ कदम उठाएं। और जब UN अपने 70 वर्ष मनाने जा रहा है, तब ये G-All का atmosphere कैसे बनेगा। फिर एक बार यही मंच हमारी समस्‍याओं के समाधान का अवसर कैसे बन सके। इसकी विश्‍वसनीयता कैसे बढ़े, इसका सामर्थ्‍य कैसे बढ़े, तभी जा कर के यहां हम संयुक्‍त बात करते हैं। लेकिन टुकड़ों में बिखर जाते हैं, उसमें हम बच सकते हैं, एक तरफ तो हम यह कहते हैं कि हमारी नीतियां परस्‍पर जुड़ी हुई हैं और दूसरी तरफ हम जीरो संघ के नजरिये से सोचते हैं। अगर उसे लाभ होता है तो मेरी हानि होती है, कौन किसके लाभ में है, कौन किसके हानि में है, यह भी मानदंड के आधार पर हम आगे बढ़ते हैं। 

निराशावादी या आलोचनावादी की तरह कुछ भी नहीं बदलने वाला है। एक बहुत बड़ा वर्ग है, जिसके मन में है कि छोड़ो यार, कुछ नहीं बदलने वाला है, अब कुछ होने वाला नहीं है। ये जो निराशावादी और आलोचनावादी माहौल है, यह कहना आसान है। परंतु अगर हम ऐसा करते हैं तो हम अपनी जिम्‍मेदारियों से भागने का जोखिम उठा रहे हैं। हम अपने सामूहिक भविष्‍य को खतरे में डाल रहे हैं। आइए, हम अपने समय की मांग के अनुरूप अपने आप को ढालें। हम वक्‍त की शांति के लिए कार्य करें। 

कोई एक देश या कुछ देशों का समूह विश्‍व की धारा को तय नहीं कर सकता है। वास्‍तविक अन्‍तरराज्‍यीय होना, यह समय की मांग है और यह अनिवार्य है। हमें देशों के बीच सार्थक संवाद एवं सहयोग सुनिश्चित करना है। हमारे प्रयासों का प्रारंभ यहीं संयुक्‍त राष्‍ट्र में होना चाहिए। संयुक्‍त राष्‍ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार लाना, इसे अधिक जनतांत्रिक और भागीदारी परक बनाना हमारे लिए अनिवार्य है। 

20वीं सदी की अनिवार्यताओं को प्रतिविदित करने वाली संस्‍थाएं 21वीं सदी में प्रभावी सिद्ध नहीं होंगी। इनके सम्‍मुख अप्रासंगिक होने का खतरा प्रस्तुत होगा, और भी आग्रह से कहना चाहता हूं कि पिछली शताब्‍दी के आवश्‍यकताओं के अनुसार जिन बातों पर हमने बल दिया, जिन नीति-नियमों का निर्धारण किया वह अभी प्रासंगिक नहीं है। 21वीं सदी में विश्‍व काफी बदल चुका है, बदल रहा है और बदलने की गति भी बड़ी तेज है। ऐसे समय यह अनिवार्य हो जाता है कि समय के साथ हम अपने आप को ढालें। हम परिवर्तन करें, हम नए विचारों पर बल दें। अगर ये हम कर पायेंगे तभी जाकर के हमारा relevance रहेगा। हमें अपने सभी मतभेदों को दरकिनार कर आतंकवाद से लड़ने के लिए सम्मिलित अंतरराष्‍ट्रीय प्रयास करना चाहिए। 

मैं आपसे यह अनुरोध करता हूं कि इस प्रयास के प्रतीक के रूप में आप comprehensive convention on international terrorism को पारित करें। यह बहुत लंबे अरसे से pending mark है। इस पर बल देने की आवश्‍यकता है। terrorism के खिलाफ लड़ने की हमारी ताकत का वो एक परिचायक होगा और इसे हमारा देश, जो terrorism से इतने संकटों से गुजरा है, उसको समय लगता है कि जब तक वे इसमें initiative नहीं लेता है, और जब तक हम comprehensive convention on international terrorism को पारित नहीं करते हैं, हम वो विश्‍वास नहीं दिला सकते हैं। और इसलिए, फिर एक बार भारत की तरफ से इस सम्‍माननीय सभा के समक्ष बहुत आग्रहपूर्वक मैं अपनी बात बताना चाहता हूं। हमें outer space और cyber space में शांति, स्थिरता एवं व्‍यवस्‍था सुनिश्चित करनी होगी। हमें मिलजुल कर काम करते हुए यह सुनिश्चित करना है कि सभी देश अंतरराष्‍ट्रीय नियमों, मानदंडों का पालन करें। हमें UN Peace Keeping के पुनित कार्यों को पूरी शक्ति प्रदान करनी चाहिए। 

जो देश अपनी सैन्‍य टुकडि़यों को योगदान करते हैं, उन्‍हें निर्णय प्रक्रिया में शामिल करना चाहिए। निर्णय प्रक्रिया में शामिल करने से उनका हौसला बुलंद होगा। वो बहुत बड़ी मात्रा में त्‍याग करने को तैयार है; बलिदान देने को तैयार है, अपनी शक्ति और समय खर्च करने को तैयार हैं, लेकिन अगर हम उन्‍हें ही निर्णय प्रक्रिया से बाहर रखेंगे तो कब तक हम UN Peace Keeping फोर्स को प्राणवान बना सकते हैं, ताकतवर बना सकते हैं। इस पर गंभीरता से सोचने की आवश्‍यकता है। 

आइए, हर सार्वभौमिक वैश्विक रिसेसिकरण एवं प्रसार हेतू अपने प्रयासों में दोगुनी शक्ति लगाएं। अपेक्षाकृ‍त अधिक स्थिर तथा समावेशी विकास हेतू निरंतर प्रयासरत रहें। वैश्विकरण ने विकास के नए ध्रुवों, नए उद्योगों और रोजगार के नए स्रोतों को जन्‍म दिया है। लेकिन साथ ही अरबों लोग गरीबी और अभाव के अर्द्धकगार पर जी रहे हैं। कई देश ऐेसे हैं, जो विश्‍वव्‍यापी आर्थिक तूफान के प्रभाव से बड़ी मुश्किल से बच पा रहे हैं। लेकिन इन सब में बदलाव लाना जितना मुमकिन आज लग रहा है, उतना पहले कभी नहीं लगता था। 

Technology ने बहुत कुछ संभव कर दिखाया है। इसे मुहैया करने में होने वाले खर्च में भी काफी कमी आई है। यदि आप सारी दुनिया में Facebook और Twitter के प्रसार की गति के बारे में, सेलफोन के प्रसार की गति के बारे में सोचते हैं तो आपको यह विश्‍वास करना चाहिए कि विकास और सशक्तिकरण का प्रसार भी कितनी तेज गति से संभव है। 

जाहिर है, प्रत्‍येक देश को अपने राष्‍ट्रीय उपाय करने होंगे, प्रगति व विकास को बल देने हेतु प्रत्‍येक सरकार को अपनी जिम्‍मेदारी निभानी होगी। साथ ही हमारे लिए एक स्‍तर पर एक सार्थक अंतर्राष्‍ट्रीय भागीदारी की आवश्‍यकता है, जिसका अर्थ हुआ, नीतियों को आप बेहतर समन्‍वय करें ताकि हमारे प्रयत्‍न, परस्‍पर संयोग को बढ़ावा दे तथा दूसरे को क्षति न पहुंचाये। ये उसकी पहली शर्त है कि दूसरे को क्षति न पहुंचाएं। इसका यह भी अर्थ है कि जब हम अंतरराष्‍ट्रीय व्‍यापारिक संबंधों की रचना करते हैं तो हमें एक दूसरे की चिंताओं व हितों का ध्‍यान रखना चाहिए। 

जब हम विश्‍व के अभाव के स्‍तर के विषय में सोचते हैं, आज basic sanitation 2.5 बिलियन लोगों के पहुंच के बाहर है। आज 1.3 बिलियन लोगों को बिजली उपलब्‍ध नहीं है और आज 1.1 बिलियन लोगों को पीने का शुद्ध पानी उपलब्‍ध नहीं है। तब स्‍पष्‍ट होता है कि अधिक व्‍यापक व संगठित रूप से अंतरराष्‍ट्रीय कार्यवाही करने की प्रबल आवश्‍यकता है। हम केवल आर्थिक वृद्धि के लिए इंतजार नहीं कर सकते। भारत में मेरे विकास का एजेंडा के सबसे महत्‍वपूर्ण पहलू इन्‍हीं मुद्दों पर केंद्रित हैं। 

मैं यह मानता हूं कि हमें post 2015 development agenda में इन्‍हीं बातों को केन्‍द्र में रखना चाहिए और उन पर ध्‍यान देना चाहिए। रहने लायक तथा टिकाऊ sustainable विश्‍व की कामना के साथ हम काम करें। इन मुद्दों पर ढेर सारे विवाद एवं दस्‍तावेज उपलब्‍ध हैं। लेकिन हम अपने चारों ओर ऐसी कई चीजें देखते हैं, जिनके कारण हमें चिंतित व आगाह हो जाना चाहिए। ऐसी भी चीजें हैं जिन्‍हें देखने से हम चिंतित होते जा रहे हैं। जंगल, पशु-पक्षी, निर्मल नदियां, जज़ीरे और नीला आसमान। 

मैं तीन बातें कहना चाहूंगा, पहली बात, हमें चुनौतियों से निपटने के लिए अपनी जिम्‍मेदारियों को निभाने में ईमानदारी बरतनी चाहिए। विश्‍व समुदाय ने सामूहिक कार्यवाही के सुंदर संतुलन को स्‍वीकारा है, जिसका स्‍वरूप common व differentiated responsibilities । इसे सतत कार्यवाही का आधार बनाना होगा। इसका यह भी अर्थ है कि विकसित देशों को funding और technology transfer की अपनी प्रतिबद्धता को अवश्‍य पूरा करना चाहिए। 

दूसरी बात, राष्‍ट्रीय कार्यवाही अनिवार्य है। टेक्‍नोलोजी ने बहुत कुछ संभव कर दिया है, जैसे नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकी। आवश्‍यकता है तो सृजनशीलता व प्रतिबद्धता की। भारत अपनी टेक्‍नोलोजी क्षमता को साझा करने के लिए तैयार है। जैसा कि हमने हाल ही में सार्क देशों के लिए एक नि:शुल्‍क उपग्रह बनाने की घोषणा की है। 

तीसरी बात हमें अपनी जीवनशैली बदलने की आवश्‍यकता है। जिस ऊर्जा का उपयोग न हुआ हो, वह सबसे साफ ऊर्जा है। इससे आर्थिक नुकसान नहीं होगा। अर्थव्‍यवस्‍था को एक नई दिशा मिलेगी। 

हमारे भारतवर्ष में प्रकृति के प्रति आदरभाव अध्‍यात्‍म का अभिन्‍न अंग है। हम प्रकृति की देन को पवित्र मानते हैं और मैं आज एक और विषय पर भी ध्‍यान आकर्षित करना चाहता हूं कि हम climate change की बात करते हैं। हम होलिस्टिक हेल्‍थ केयर की बात करते हैं। जब हम back to basic की बात करते हैं तब मैं उस विषय पर विशेष रूप से आप से एक बात कहना चाहता हूं। योग हमारी पुरातन पारम्‍परिक अमूल्‍य देन है। योग मन व शरीर, विचार व कर्म, संयम व उपलब्धि की एकात्‍मकता का तथा मानव व प्रकृति के बीच सामंजस्‍य का मूर्त रूप है। यह स्‍वास्‍थ्‍य व कल्‍याण का समग्र दृष्टिकोण है। योग केवल व्‍यायाम भर न होकर अपने आप से तथा विश्व व प्रकृति के साथ तादम्‍य को प्राप्त करने का माध्यम है। यह हमारी जीवन शैली में परिवर्तन लाकर तथा हम में जागरूकता उत्पन्न करके जलवायु परिवर्तन से लड़ने में सहायक हो सकता है। आइए हम एक ‘’अंतरराष्ट्रीय योग दिवस’’ को आरंभ करने की दिशा में कार्य करें। अंतत: हम सब एक ऐतिहासिक क्षण से गुजर रहे हैं। प्रत्येक युग अपनी विशेषताओं से परिभाषित होता है। प्रत्येक पीढी इस बात से याद की जाती है कि उसने अपनी चुनौतियों का किस प्रकार सामना किया। अब हमारे सम्मुख चुनौतियों के सामने खड़े होने की जिम्मेदारी है। अगले वर्ष हम 70 वर्ष के हो जाएंगे। हमें अपने आप से पूछना होगा कि क्या हम तब तक प्रतीक्षा करें तब हम 80 या 100 के हो जाएं। मैं मानता हूं कि UN के लिए अगला साल एक opportunity है। जब हम 70 साल की यात्रा के बाद लेखाजोखा लें, कहां से निकले थे, क्यूं निकले थे, क्या मकसद था, क्या रास्ता था, कहां पहुंचे हैं, कहां पहुंचना है। 

21 सदी के कौन से प्रकार हैं, कौन से challenges हैं, उन सबको ध्यान में रखते हुए पूरा एक साल व्यापक विचार मंथन हो। हम universities को जोडें, नई generation को जोड़ें जो हमारे कार्यकाल का विगत से मूल्यांकन करे, उसका अध्ययन करे और हमें वो भी अपने विचार दें। हम नई पीढ़ी को हमारी नई यात्रा के लिए कैसे जोड़ सकते हैं और इसलिए मैं कहता हूं कि 70 साल अपने आप में एक बहुत बड़ा अवसर है। इस अवसर का उपयोग करें और उसे उपयोग करके एक नई चेतना के साथ नई प्राणशक्ति के साथ, नए उमंग और उत्साह के साथ, आपस में एक नए विश्वास साथ हम UN की यात्रा को हम नया रूप रंग दें। इस लिए मैं समझता हूं कि ये 70 वर्ष हमारे लिए बहुत बड़ा अवसर है। 

आइए, हम संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार लाने के अपने वादे को निभाएं। यह बात लंबे अरसे से चल रही है लेकिन वादों को निभाने का सामर्थ्‍य हम खो चुके हैं। मैं आज फिर से आग्रह करता हूं कि आज इस विषय में गंभीरता से सोचें। आइए, हम अपने Post 2015 development agenda के लिए अपनी प्रतिबद्धता को पूरा करें। 

आइए 2015 को हम विश्व की प्रगति प्रवाह को एक नया मोड़ देने वाले एक वर्ष के रूप में हम अविस्मरणीय बनायें और 2015 एक नितांत नई यात्रा के प्रस्थान बिंदु के रूप में मानव इतिहास में दर्ज हो। यह हम सबकी सामूहिक जिम्मेदारी है। मुझे विश्वास है कि सामूहिक जिम्मेदारी को हम पूरी तरह निभाएंगे। 

आप सबका बहुत बहुत आभार। 

धन्यवाद। नमस्ते। 

English rendering of the Statement by Prime Minister, Shri Narendra Modi at the General Debate of the 69th Session of the United Nations General Assembly (UNGA)

Let me first congratulate you on your election as the President of the 69th session of United Nations General Assembly.

It is a truly a great honour to address you for the first time as the Prime Minister of India. I stand here conscious of the hopes and expectations of the people of India.

I am also mindful of the expectations of the world from 1.25 billion people.

India is a country that constitutes one-sixth of humanity; a nation experiencing economic and social transformation on a scale rarely seen in history.

Every nation`s world view is shaped by its civilization and philosophical tradition. India`s ancient wisdom sees the world as one family. It is reflected in a tradition of openness and diversity; co-existence and cooperation.

This is why India speaks not just for itself, but also for the cause of justice, dignity, opportunity and prosperity around the world.

It is also because of this timeless current of thought that India has an unwavering belief in multilateralism.

Today, as I stand here, I am equally aware of the hopes that are pinned on this great assembly. I am struck by the sacred belief that brought us together.

An extraordinary vision and a clear recognition of our shared destiny brought us together to build this institution for advancing peace and security, the rights of every human being and economic development for all. From 51 nations then, today 193 sovereign flags fly at this building. Each nation, born into freedom, has sought a place here with the same belief and hope.

We have achieved much in the past six decades in our mission in ending wars, preventing conflict, maintaining peace, feeding the hungry, striving to save our planet and creating opportunities for children. 69 UN peacekeeping missions since 1948 have made the blue helmet the colour of peace.

Today, there is a surge to democracy across the world; including in South Asia; in Afghanistan, we are at a historic moment of democratic transition and affirmation of unity. Afghans are showing that their desire for a peaceful and democratic future will prevail over violence. Nepal has moved from violence to peace and democracy; Bhutan`s young democracy is flourishing. Democracy is trying to find a voice in West Asia and North Africa; Tunisia`s success makes us believe that it is possible.

There is a new stirring for stability, progress and progress in Africa. There is unprecedented spread of prosperity in Asia and beyond, rising on the strength of peace and stability. Latin America, a continent of enormous potential, is coming together in shared pursuit of stability and prosperity, which could make it an important anchor of the world.

India desires a peaceful and stable environment for its development. A nation`s destiny is linked to its neighbourhood. That is why my Government has placed the highest priority on advancing friendship and cooperation with her neighbours.

This includes Pakistan. I am prepared to engage in a serious bilateral dialogue with Pakistan in a peaceful atmosphere, without the shadow of terrorism, to promote our friendship and cooperation. However, Pakistan must also take its responsibility seriously to create an appropriate environment for it. Raising issues in this forum will derail the efforts to resolve the issues between our two countries. Instead, today, we should be thinking about the victims of floods in Jammu and Kashmir. In India, we have organized massive flood relief operations and have also offered assistance for Pakistan Occupied Kashmir.

India is part of the developing world, but we are prepared to share our modest resources with those countries that need this assistance as much as we do.

This is a time of great flux and change. The world is witnessing tensions and turmoil on a scale rarely seen in recent history. There are no major wars, but tensions and conflicts abound; and, there is absence of real peace and uncertainty about the future. An integrating Asia Pacific region is still concerned about maritime security that is fundamental to its future. Europe faces risk of new division. In West Asia, extremism and fault lines are growing. Our own region continues to face the destabilizing threat of terrorism. Africa faces the twin threat of rising terrorism and a health crisis.

Terrorism is taking new shape and new name. No country, big or small, in the north or the south, east or west, is free from its threat.

Are we really making concerted international efforts to fight these forces, or are we still hobbled by our politics, our divisions, our discrimination between countries, distinction between good and bad terrorists? Even today, states allow terrorist sanctuaries on their territory or use terrorism as instruments of their policy.

We welcome efforts to combat terrorism`s resurgence in West Asia, which is affecting countries near and far. The effort should involve the support of all countries in the region.

Today, even as seas, space and cyber space have become new instruments of prosperity, they could also become a new theatre of conflicts.

Today, more than ever, the need for international compact, which is the foundation of the United Nations, is stronger than before.

While we speak of an interdependent world, have we become more united as nations? Today, we still operate in various Gs with different numbers. India, too, is involved in several. But, how much are we able to work together as G1 or G-All.

On the one side, we say that our destinies are inter-linked, on the other hand we still think in terms of zero sum game. If the other benefits, I stand to lose.

It is easy to be cynical and say nothing will change; but if we do that, we run the risk of shirking our responsibilities and we put our collective future in danger. Let us bring ourselves in tune with the call of our times.

First, let us work for genuine peace.

No one country or group of countries can determine the course of this world. There has to be a genuine international partnership. This is not just a moral position, but a practical reality.

We need a genuine dialogue and engagement between countries. I say this from the conviction of the philosophical tradition that I come from.

Our efforts must begin here - in the United Nations.

We must reform the United Nations, including the Security Council, and make it more democratic and participative. Institutions that reflect the imperatives of 20th century won`t be effective in the 21st. It would face the risk of irrelevance; and we will face the risk of continuing turbulence with no one capable of addressing it.

We should put aside our differences and mount a concerted international effort to combat terrorism and extremism. As a symbol of this effort, I urge you to adopt the Comprehensive Convention on International Terrorism.

We should ensure that there will be peace, stability and order in the outer space and cyber space.

We should work together to ensure that all countries observe international rules and norms.

We should energise the noble task of UN Peacekeeping; we should involve troop contributing countries in the process of decision making

Let us continue redouble our efforts to pursue universal global disarmament and non-proliferation.

Second, we must pursue a more stable and inclusive global development

Globalisation has created new poles of growth; new industries; and new source of employment.

At the same time, billions live on the edge of poverty and want; countries that are barely able to survive a global economic storm.

There has never been a time when it has seemed more possible than now to change this.

Technology has made things possible; the cost of providing it has reduced. We no longer are totally dependent on bricks and mortars.

If you think of the speed with which Facebook or Twitter has spread around the world, if you think of the speed with which cell phones have spread, then you must also believe that development and empowerment can spread with the same speed.

Each country must of course take its own national measures; each government must fulfil its responsibility to support growth and development.

At the same time, we also require a genuine international partnership. At one level, it means a better coordination of policy so that our efforts becomes mutually supportive, not mutually damaging.

It also means that when we craft agreements on international trade, we accommodate each other`s concerns and interests.

When we think of the scale of want in the world – 2.5 billion people without access to basic sanitation; 1.3 billion people without access to electricity; or 1.1 billion people without access to drinking water, we need a more comprehensive and concerted direct international action.

In India, the most important aspects of my development agenda are precisely to focus on these issues and address them in a definite time frame.

The eradication of poverty must remain at the core of the Post-2015 Development Agenda and command our fullest attention.

Third, we must seek a more habitable and sustainable world

There are debates and documents on these issues. But, we see many things around us that should cause us alarm. And, also many things that we no longer see – forests, birds and animals, clean rivers and lakes and blue skies.

I want to say three things.

One, we should be honest in shouldering our responsibilities in meeting the challenges.

The world had agreed on a beautiful balance of collective action – common but differentiated responsibilities. That should form the basis of continued action.

This also means that the developed countries must fulfill their commitments for funding and technology transfer.

Second, national action is imperative. Technology has made many things possible. We need imagination and commitment.

India is prepared to share its technology and capabilities, just as we have announced a free satellite for the SAARC countries.

Third, we need to change our lifestyles. Energy not consumed is the cleanest energy.

We can achieve the same level of development, prosperity and well being without necessarily going down the path of reckless consumption. It doesn`t mean that economies will suffer; it will mean that our economies will take on a different character.

For us in India, respect for nature is an integral part of spiritualism. We treat nature`s bounties as sacred.

Yoga is an invaluable gift of our ancient tradition.

Yoga embodies unity of mind and body; thought and action; restraint and fulfillment; harmony between man and nature; a holistic approach to health and well being. It is not about exercise but to discover the sense of oneness with yourself, the world and the nature. By changing our lifestyle and creating consciousness, it can help us deal with climate change.

Let us work towards adopting an International Yoga Day.

Finally,

We are at a historic moment

Every age is defined by its character; and, each generation is remembered for how it rose together to meet its challenges.

We have that responsibility to rise to our challenges now. Nowhere is this more pronounced than in this great assembly.

Next year we will be seventy. We should ask ourselves whether we should wait until we are 80 or 100.

Let us fulfill our promise to reform the United Nations Security Council. Let us fulfill our pledge on a Post-2015 Development Agenda so that there is new hope and belief in us around the world. Let us make 2015 also a new watershed for a sustainable world. Let it be the beginning of a new journey together.

Thank you.

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