वित्त विश्व के सभी महानुभाव,

रिजर्व बैंक की 80 साल की यात्रा पर हम लोग आज मिले हैं। हमारे देश में 80 साल का विशेष महत्व रहता है। दुनिया में 25 साल, 50 साल, 75 साल, 100 साल, उस हिसाब से अवसरों को याद किया जाता है लेकिन शायद भारत इकलौता ऐसा देश है कि जिसमें 80 साल को भी एक बड़ा महत्वपूर्ण पड़ाव माना जाता है और उसका कारण ये है कि हमारे यहां इसको सहस्त्र-दर्शन, चंद्र-दर्शन के रूप में माना जाता है। जब 80 साल होते हैं तब Full moon एक हजार बार देखने का अवसर मिलता है, तो रिजर्व बैंक को एक हजार पूर्ण चंद्र के शीतलता के आशीर्वाद मिले हैं और उस अर्थ में इस अवसर का एक विशेष महत्व होता है।

मैं ज्यादा इस दुनिया का इंसान नहीं हूं, इसलिए जो भाषण आपने सुने अभी, वो मेरे Software के विषय नहीं हैं। ईश्वर ने मुझे जो Software दिया है, उससे ये सब बाहर है। लेकिन मैं इतना कहूंगा कि प्रधानमंत्री बनने के बाद इन सब चीजों को समझना पड़ता है, सीखना पड़ता। हर दो महीने में एक बार रघुराम से मिलना होता है और मैं देखता हूं वो 3 या 4 Slides लेकर के आते हैं और मुझे इतना Perfectly समझाते हैं यानी शायद वो Best teacher भी रहे होंगे? कोई मुझे Question नहीं करना पड़ता। मुझे बिल्कुल समझ आता है कि हां ये...ये कहना चाहते हैं और ये इसका ये मतलब होता है, इसके ये परिणाम होता है और इसका मतलब ये हुआ कि शायद सरकार की और आरबीआई की सोच में बहुत साम्यता होगी तब ये संभव होता होगा और मैं मानता हूं ये बहुत आवश्यक होता है और उस विषय में मैं एक सरकार के प्रतिनिधि के रूप में अपना संतोष व्यक्त करता हूं। आरबीआई अपनी जो भूमिका अदा कर रहा है, मैं रघुराम जी और उनकी पूरी टीम को बहुत-बहुत बधाई देता हूं और 80 साल की यात्रा में श्रीमान देशमुख और उनकी टीम से लेकर के अब तक जिन-जिन लोगों ने योगदान दिया है, कई लोगों ने अपनी जवानी इस काम के लिए खपाई होगी? तब जाकर के ये Institution इस ऊंचाई पर पहुंचती है।

Global Perspective में भी अपने आपको ढाला होगा, बदले हुए वैश्विक परिवेश में आरबीआई के Relevance को बनाए रखने के लिए यहां भी काफी जद्दोजहद हुई होगी। इस समय पर जो नेतृत्व दिया होगा, वे सब भी अभिनंदन के अधिकारी हैं और मेरी तरफ से अब तक जिन-जिन लोगों ने इस काम को आगे बढ़ाया है, उन सबको भी हृदय से बहुत-बहुत बधाई देता हूं। बहुत-बहुत अभिनंदन करता हूं और देशवासियों की तरफ से उनका आभार भी व्यक्त करता हूं। अमीर से अमीर व्यक्ति भी अपने Family doctor को Time देता हो या न देता हो, लेकिन Banker को अवश्य Time देता है। उसके जितने Lunch-dinner होते होंगे, उसमें ज्यादातर Banker के साथ होते होंगे। अमीर को भी जहां जाने पड़ता हैं मांगने के लिए, वो जगह है बैंक तो मैं भी आज यहां मांगने के लिए आया हूं और मैं भी यहां मेरे परिवार के लिए मांगने के लिए आया हूं और मेरा परिवार है, जिनके बीच में पैदा हुआ, जिनके बीच में पला-बढ़ा, वो गरीब परिवार हैं। गरीबों के बीच में मैं पला-बढ़ा हूं। मेरा बचपन वहां गया है। मेरी जिंदगी के उन चीजों को देखा है और अब प्रधानमंत्री बना हूं तो मेरा ये परिवार इतना विस्तृत हो गया है कि एक प्रकार से Below poverty line के नीचे जीने वाले सारे गरीब, एक प्रकार से marginal farmer, एक प्रकार से दलित, पीड़ित, शोषित, वंचित, आदिवासी ये सभी मेरे परिवार के सदस्य हैं और उस परिवार के एक प्रतिनिधि के रूप में मैं आज, ये वित्त विश्व के पास मैं कुछ मांगने आया हूं और जब आप 80 साल मना रहे हो तो जरूर किसी को निराश नहीं करोगे, ये मुझे पूरा विश्वास है और मैं आरबीआई के सभी नीति-निर्धारकों का अभिनंदन करता हूं, उन्होंने Financial inclusion को अपना विषय के रूप में पसंद किया है और 80 साल के समय इस अवसर को मना रहे हैं। इसका मतलब आप जब 100 साल के होंगे और जब शताब्दी मनाते होंगे, वो शताब्दी इस Financial inclusion को लेकर के कहां पर पहुंची होगी, मैं समझता हूं उसके Target भी Set करोगे तो 20 साल के अंदर भारत की बैंकिंग व्यवस्था गरीब के दरवाजे तक पर किस प्रकार से काम कर रही है इसका एक खाका तैयार हो जाएगा और जब 20 साल का पड़ाव आप सोचते हैं तो मैं आपको सुझाव दूंगा।

2019 महात्मा गांधी के 150 वर्ष हो रहे हैं। 2022 देश की आजादी को 75 साल हो रहे हैं। 2025 आपको 90 हो रहे हैं और 2035 ये आपके 100 होंगे। ये चार महत्वपूर्ण पड़ाव मानकर के हम अपना एक मैप तैयार कर सकते हैं कि ये Financial inclusion में जाने के लिए ये-ये हमारे Target group होगा, ये हमारा रोडमैप होगा और हम ये Achieve करके रहेंगे और पूरे भारत में चाहे Corporative Sector का बैंकिंग हो या Micro Finance करने वाले Institutions हो या हमारी Nationalized बैंक हो या हमारी रिजर्व बैंक स्वंय हो, हम सब एक ही दिशा में सोचे, ऐसा हो सकता है क्या?

अगर प्रधानमंत्री जन-धन योजना सफल न होती, मैं नहीं मानता हूं कि वित्त व्यवस्था से जुड़े हुए लोगों को इसकी इतनी ताकत का अंदाजा था। ये बड़ा ही उपेक्षित वर्ग रहा। आजादी के इतने साल के बाद भी 50 प्रतिशत से ज्यादा लोग, अर्थव्यवस्था की जो रीढ़ होती है, बैंकिंग व्यवस्था उसके दरवाजे तक नहीं पुहंचे थे। मैं सभी बैंकों के छोटे-मोटे हर व्यक्ति को आज बधाई देना चाहता हूं कि उन्होंने पुरुषार्थ किया, परिश्रम किया और आजे देश ने Achieve किया है। ये छोटा Achievement नहीं है। भारत की आजादी के बाद गरीब से गरीब व्यक्ति का देश की आर्थिक मुख्यधारा से जुड़ना ये अपने आप में बहुत बड़ा Achievement है। उसने Financial world में एक नया विश्वास पैदा किया है और एक नई दिशा का संकेत दिया है।

दूसरी तरफ जब तक हम गरीब की तरफ देखना का अपना नजरिया नहीं बदलेंगे। Individual level पर नहीं, एक समाज के आर्थिक ढांचे के रूप में तब तक हम शायद Project लेंगे, परिणाम लेंगे लेकिन जब तक वो Conviction नहीं बनता है, Article of faith नहीं बनता है, हम शायद परिणाम प्राप्त नहीं कर सकते और Article of faith बनने के पीछे या Conviction बनने के पीछे कुछ घटनाएं होती हैं, जो हमारी सोच को बदलती है।

मैं मानता हूं प्रधानमंत्री जन-धन योजना की सफलता उस बात की ओर संकेत करती है। सरकार ने तो तैयार किया था, आरबीआई ने माना था, बैंकों ने मदद की थी कि हम Zero balance account खोलेंगे और आप देखिए गरीब की अमीरी देखने का इससे बड़ा कोई अवसर नहीं हो सकता है। बैंक वालों ने अमीरों की गरीबी बहुत बार देखी होगी, समय पर पैसा न जमा करने वाले कई अमीर उन्होंने देखे होंगे। Risk लेने वाले बैंक मैनेजर भी परेशान रहते होंगे? यार March ending नहीं हुआ, तो मर जाऊंगा मैं तो? तो आपने अमीरों की गरीबी देखी होगी लेकिन इस जन-धन की योजना से गरीबों की अमीरी देखने का सौभाग्य मिला है। Zero balance से account खोलने के कहने के बावजूद भी, जो 14 करोड़ लोगों ने Bank account खोले, उसमें 41 Percent लोग ऐसे हैं कि जिनका लगा कि नहीं-नहीं मुफ्त में नहीं करना चाहिए। कुछ न कुछ तो रखना चाहिए और 14 हजार करोड़ रुपया उन्होंने जमा कराया। 14 हजार करोड़ रुपया। देश का गरीब Zero balance account खोलने के बावजूद भी 14 Thousand crore रूपया बैंक में जमा करता है, मैं समझता हूं कि इससे बड़ी गरीबी की अमीरी नहीं हो सकती है।

अगर इसको हम एक ताकत समझे और ये जो उनके संस्कार हैं, उनकी मनोवैज्ञानिक भूमिका है, उनके जो मन के आदर्श हैं, ये भी राष्ट्र की एक बहुत बड़ी ताकत होते हैं। हमें उनको nurture करना चाहिए, उस सामर्थ्य को हमें पहचानना चाहिए और मैं मानता हूं Banking sector के लोगों के लिए ये बहुत बड़ी आवश्यकता है। हमारे पुरुषार्थ से 14 करोड़ Bank account खुल गए, हम बधाई के पात्र हैं लेकिन 41 Percent लोग पैसे जमा कराएं, वो मैं समझता हूं वो हमारे लिए inspiration का कारण हैं। हमारी नई योजनाओं के लिए वो एक हमारे लिए एक land mark बन सकता है और मैं आशा करूंगा कि आने वाले दिनों में, ये बात ठीक है कि 5-50 client के साथ बड़ा काम करना, सरल रहता है और हम जब स्कूल में पढ़ते थे, तभी सिखाया जाता है कि जो सरल example है, वो पहले solve करो, तो उसी से हम पले-बढ़े हैं, इसलिए कठिन example की तरफ कोई जाएगा नहीं लेकिन अब सोच बदलन की आवश्यकता है और ये आवश्यकता है कि हम इस बढ़े mass को हम कैसे अपने में समेटे? हमारी विकास यात्रा का वो हिस्सा कैसे बने? उसके लिए हमारा रोडमैप क्या हो? अब मैं मानता हूं कि हमारे सामने सबसे बड़ा महत्वपूर्ण काम है कि एक सामान्य से सामान्य व्यक्ति जिसका बैंक खाता खुला है, वो operational कैसे हो?

सरकार ने कुछ योजनाएं बनाई हैं। वो योजनाएं ऐसी हैं जो बैंक के route से ही आगे बढ़ने वाली हैं। बैंक के route से आगे बढ़ने वाली हैं, करने के बाद न हो इसके लिए क्या? ये योजना है। जिसमें प्रधानमंत्री जन-धन योजना और direct cash transfer की व्यवस्था और 8 हजार करोड़, मैं बताता हूं कि, मैं ये आंकड़ा बताता नहीं हूं, लेकिन अभी बताऊंगा कि political पंडित जरा निकाले कि कितनी extra subsidy जाती थी। जिसमें cylinder भी नहीं होता था, cylinder लेने वाला भी नहीं होता था लेकिन cheque फटता था। अब इस व्यवस्था से यानि transparency भी लाई जा सकती है। बैंकिंग व्यवस्था से इतना बड़ा reform हो सकता है तो शायद हमारे यहां सोचा नहीं गया था, आज हो रहा है और उस अर्थ में बैंक के लोगों के लिए एक बड़ा गौरव का विषय है कि देश में transparency लाने में बहुत बड़ी भूमिका आज बैंकिंग सेक्टर ने करना शुरू किया है। ये भी हमें एक नया विश्वास पैदा करता है हमारे में, एक नई आशा को जन्म देता है।

कुछ बातें ऐसी हैं कि हम, आपने देखा होगा कि आपके बैंक में नबंर 2, नबंर 3, नबंर 4, नबंर 5, नबंर 6, नबंर 7, नबंर 8, नबंर 9, नबंर 10, जितने भी लोग होंगे, उनको खुश रखने के लिए आपको कितनी मेहनत पड़ती है। हर काम की तारीफ करनी पड़ती है, हर बार लेकिन आपको जो वर्ग 4 का कर्मचारी है, उसके लिए आपको कुछ नहीं करना पड़ता। सुबह-शाम ऐसे, चलो भई ठीक हो? बस वो दिन-भर दौड़ता रहता है, ये आपका अनुभव होगा। आपके ड्राइवर को इतना पूछ ले, अरे यार तुम्हारे बेटे की exam है, फिर भी तुम आज नौकरी पर आए? बस उसका जीवन धन्य हो जाता है अरे! मेरे बेटे की exam है और मेरे boss ये भी याद रखते हैं। आपने देखा होगा गरीब को बस इतना सा चाहिए। आपका नबंर 2, नबंर 3, आपका नबंर 2, नबंर 3, नबंर 4 उसको दौड़ाने के लिए आपका पसीना छूट जाता है। उस गरीब को दौड़ाने के लिए सिर्फ दो शब्द काफी होते हैं। कहने का तात्पर्य है कि ये जो जिसको हमने चौथी पायदान पर ऱखा हुआ है। उसके डीएनए में वो कौन सी चीज है, जो इतना बड़ा परिणाम देती है, आपके लिए risk लेती है, रात भर सोता नहीं है। जो वो आपके लिए करता है, वही वो देश के लिए भी कर सकता है। ये गरीब जो है, उसको थोड़ा सहारा चाहिए। जो आपके व्यक्तिगत जीवन में परिणाम देता है, वही गरीब राष्ट्र जीवन में परिणाम दे सकता है। जब तक intellectual इस चीज को हम convince नहीं होंगे, जब तक ये हमारा article of faith नहीं बनेगा और हमारी रोजमर्रा की घटनाओं को मैं जिस नजरिए से कह रहा हूं, उस नजरिए से नहीं देखें, तब तक inclusion एक programme बनेगा, inclusion स्वभाव नहीं बनेगा।

मुझे inclusion programme नहीं, inclusion स्वभाव बनाना है और एक बार आप सोचिए फिर आपका आनंद कुछ और होगा। आपने देखा होगा जो women self-help group को जो पैसा देता हैं बैंक, आप उनमें से किसी का भी interview ले लीजिए, 100 लोगों को सर्वे करा लीजिए, वो आपको बताएंगे कि women self-help group में जो महिलाएं हैं, गरीब से गरीब हैं लेकिन अगर उसको बुधवार को 100 रुपया वापस करना है तो मंगल को आकर दरवाजा खटखटाती है कि मेरे 100 रुपए ले लो। आप देखिए इतनी बड़ी ताकत है, इस ताकत को हम राष्ट्र के विकास में कैसे जोड़े? मुझे विश्वास है, अब जो माहौल बना है और वो परिणाम बहुत बड़ा देंगे। अभी हम जो मुद्रा बैंक का concept आगे लेकर के बढ़ रहे हैं। मैं चाहता हूं कि वो आगे एक mobile banking के रूप में ही evolve हो जाए। इस देश में गरीब सवा 5 करोड़ से ज्यादा ऐसे छोटे-छोटे लोग हैं जो सबसे ज्यादा लोगों को रोजगार देते हैं और आज finance की जो स्थिति देखें तो average इन लोगों का 17 thousand rupees से ज्यादा कर्ज नहीं है। Only 17 thousand rupees, Only 17 thousand rupees के कर्ज से वो किस प्रकार से economy को drive कर रहा है, कितने लोगों को रोजगार दे रहा है, GDP में कितना बड़ा contribution कर रहा है।

अगर ये 5-6 करोड़ लोग हैं। जो कोई सब्जी बेचता होगा, दूध बेचता होगा, अखबार बेचता होगा, छोटे लोग हैं। उनको क्या चाहिए? हजार रुपया, दो हजार रुपया, पांच हजार रुपए, उसको कुछ नया करने की ताकत आएगी। सुबह अखबार बेचता है, अगर दो हजार रुपया है तो दोपहर को गुब्बारे बेचने जाएगा, शाम को बर्फ की लॉरी चला लेगा। वो अपना दिन भर में चार प्रकार के काम करके, अपनी income को 2 हजार से 20 हजार तक ले जाएगा और देश की economy को drive कर देगा और 6 लोगों को रोजगार देने की उसकी ताकत होगी। क्या हम उन चीजों पर ध्यान दे सकते हैं क्या? हम हमारा किसान आत्महत्या करता है ये दर्द सिर्फ अखबारों के पन्नों पर और टीवी स्क्रीन पर नहीं होना चाहिए? ये हमारा किसान जब मरता है क्या बैंकिग सेक्टर के हृदय को हिला देता है? साहूकार से पैसे लेने के कारण कभी-कभी उसको मरने की नौबत आ जाती है। 60 साल के बाद हम आज 80 साल मना रहे हैं आरबीआई के तब, हमारे दिल में ये आवाज उठ सकती है कि भई हम हमारी बैंकिग व्यवस्था के हाथ इतने पसारेंगे कि किसान को कम से कम कर्ज के कारण आत्महत्या करने की नौबत नहीं आएगी? क्या ये सपना हमारा नहीं हो सकता है?

मैं नहीं मानता हूं कि इसके कारण कोई बैंक डूब जाएगी? हम कभी ये तो सोचते हैं कि कोई कंपनी हमारे पास आए और वो कहे कि भई हमारा जो factory है, हम उसकी technology upgrade करना चाहते हैं, हम environment friendly technology लाने वाले हैं, carbon emission कम करने वाली लाने वाले हैं, हमें बैंक से इतना पैसा चाहिए। हम खुशी से देते हैं कि नहीं देते? हमारे brochure में भी छापते हैं कि हमने carbon emission कम करने वालों को इतना-इतना initiative किया, बड़ा गर्व करते हैं लेकिन कोई किसान आकर के कहे कि मुझे 50 पेड़ लगाने हैं, मुझे बैंक की लोन दो। मुझे बताइए carbon emission के लिए ये बहुत बड़ी-बड़ी से फैक्ट्री लगा रहा है कि नही लगा रहा? लेकिन मुझे, मेरे तराजू में वो तो है, लेकिन ये नहीं है। क्या हमारा बैंकिंग सेक्टर आप देखिए हम timber import करते हैं, किसान मर रहा है। अगर हम initiative लें, एक नई योजना बना सकते हैं कि हमारे देश में जो marginal farmer है, उसकी ज्यादा जमीन एक खेत और दूसरे खेत demarcation में जो ज्यादा जगह जाती है, उसमें वो बाड़ लगा देता है, इतना wastage है। भारत जैसे देश को ये जमीन बर्बाद होने की चिंता करने की आवश्यकता है। उसकी दिशा में कोई ध्यान नहीं देता है लेकिन हम बैंकिंग के द्वारा initiative लें कि भाई जो demarcation का जो तुम्हारा border है वहां अगर तुम पेड़ लगाते हो तो हम तुम्हें इतना finance करेंगे और ये पेड़ तुम्हारी मालिकी बनेगा औगे चलकर के हमारी partnership होगी, तुम्हारी बेटी की शादी होगी और चार पेड़ काटने होंगे, टिम्बर के रूप में बेचना होगा तो बैंक को इतना पैसा देना, तो मुझे बताइए कि होगा कि नही होगा?

हम carbon neutral development की दिशा में हमारा contribution होगा कि नहीं होगा और जिस किसान की फसल तो बर्बाद हो जाएगी, लेकिन पेड़ खड़ा होगा तो उसको लगेगा, अभी तो मेरी कोई छाया है, मैं जिंदगी में मरने की जरूरत नहीं है, ये पेड़ के सहारे मैं फिर से एक नई जिंदगी खड़ी कर दूंगा। विश्वास पैदा हो सकता है कि नहीं हो सकता है? और इसलिए मैं कहता हूं कि हमें समाज के भिन्न-भिन्न तबके और बड़े creative mind के साथ हम किस प्रकार से finance की व्यवस्था करें, जिसके कारण वो एक long term stability के लिए फायदा कर सके। हम उस एक नए तरीकों को कैसे सोचें? जिस प्रकार से finance inclusion में immediately हमारा दो चीजों पर ध्यान जाता है।

एक आर्थिक layer income के आधार पर, रहन-सहन के आधार पर दूसरा सामाजिक ताने-बाने, जाति-प्रथा का थोड़ा प्रभाव रहता है लेकिन inclusion में एक नए parameter की ओर देखने की जरूरत है और वो है geography inclusion। आज भी देश में देखिए हमारी economy को और ये हम सबने सोचना चाहिए। गोवा हो, कर्नाटक हो, महाराष्ट्र हो, गुजरात हो, राजस्थान हो, हरियाणा हो, देश का पश्चिमी छोर वहां तो आर्थिक गतिविधि दिखती है लेकिन जो देश का पूरब का छोर, जिसके पास सर्वाधिक प्राकृतिक संपदा है, वहां आर्थिक गतिविधि नहीं है। हमारे financial inclusion के model में, मैं देश के पश्चिमी छोर पर तो हमारी आर्थिक व्यवस्था, हमारी बैंक व्यवस्था सबसे ज्यादा काम कर रही है लेकिन पूरब का इलाका जहां पर इतनी बड़ी प्राकृतिक संपदा पड़ी हुई है, जहां पर इतना सामर्थ्यवान मनुष्यता का बल है, मैं उसके विकास के लिए क्या करूंगा? इसलिए हमारे geographical inclusion आवश्यकता है, वो कौन से इलाके हैं जिसमें Potential है लेकिन हमारी reach नहीं है, हमारे inclusion में जिस प्रकार से समाज के भिन्न-भिन्न तबको की ओर देखने की आवश्यकता है उसी प्रकार से भारत के भिन्न-भिन्न भू-भाग की ओर देखने की आवश्यकता है कि वो कौन सा भू-भाग है? कि जिसमें सामर्थ्य है लेकिन अवसर पैदा नहीं हुआ है और विकास करना है तो उसकी परंपरागत ताकत को सबसे पहले पहचानना पड़ता है। क्या हमारी बैंकिंग व्यवस्था में district को अगर एक block माने तो हमारे पास मैपिंग है क्या? कि भई वहां का Potential ये है, un-potential इतना है, tap करना है तो इतना। सरकार और बैंकिंग व्यवस्था मिलकर सोचें कि आप raw material के लिए decision ले लीजिए, आप human development resources के लिए कोई decision ले लीजिए, आप manager skill के लिए कोई decision ले लीजिए, आप वहां पर energy supply करने के लिए कर लीजिए, आप infrastructure के लिए कर लीजिए, banks are ready, हम यहां के नक्शे को बदल देंगे।

Inclusion में हमने, हमारे देश के विकसित इलाके, विकास की संभावना वाले इलाके, विकास से वंचित रहे गए इलाके इनके सारे parameter बनाकर के हमारे inclusion के मॉडल में इसको कैसे प्रतिस्थापित करें? मैं समझता हूं कि अगर ये हम करेंगे, तो बहुत है। भारत को दुनिया में आर्थिक ताकत की ओर बढ़ना है। 3 साल का बच्चा, 6 साल का होता है तो उसकी ऊंचाई बढ़ने में फर्क तुरंत आता है कि पहले वो दो फुट का था, अभी वो चार फुट का हो गया लेकिन 20 साल वाले को चार साल बाद भी दो इंच बढ़ाना मुश्किल हो जाता है। आप जहां बढ़ चुके हैं, वहां बढ़ने की गति धीरे रहेगी लेकिन जहां कुछ नहीं है वहां थोड़ा सा डालने से बढ़ना शुरू हो जाएगा और वो एक नए Confidence को जन्म देगा और आज विश्व में भारत के next 10 year के growth rate की जो चर्चा हो रही है, उसका potential यही है।

हिंदुस्तान की second green revolution करने की जगह अगर कहीं है तो हिंदुस्तान का पूर्वी इलाका है। हिंदुस्तान के mines और mineral में अभी हमने जो decision लिए हैं। आप कल्पना कर सकते हैं कि हिंदुस्तान के सभी धनी राज्य बनने की संभावना, जिनके पास कोयला था वो राज्य बन रहे हैं। छत्तीसगढ़ हो, झारखंड हो, उड़ीसा हो, बंगाल हो, ये राज्य एक नई ताकत के साथ उभरने वाले हैं। क्या हम बैंकिंग सेक्टर के लोगों को ध्यान है? कि भई इतना बड़ा वहां कल्पना भर का एकदम से Jump आया है, हम बैंकिंग व्यवस्था के द्वारा वहां कैसे बदलाव लाएं? अगर हम इस बात को करेंगे, मैं मानता हूं कि परिणाम बहुत प्राप्त होंगे। एक और क्षेत्र है, जिसको भी मैं financial inclusion का एक महत्वपूर्ण हिस्सा मानता हूं, जिसका संबंध न आर्थिक स्थिति से है, न सामाजिक स्थिति से है और न ही इसका संबंध भौगौलिक परिस्थिति से है और वो है Knowledge में हम financial partnership कैसे बने?

हमारे देश को सौभाग्य प्राप्त हुआ है कि 65 percent population, 35 से नीचे है। ये 35 से नीचे का जो population है, हमारी जो young generation है, उसे या तो skill चाहिए या Knowledge चाहिए। आज जो वर्तमान intuition हैं, उससे उसको जो प्राप्त होता है, globally competitive बनने के लिए कुछ कमी महसूस होती है। अब हम globally competitive knowledge institution लाते हैं तो हमारे देश के नौजवान के लिए वहां पढ़ना कठिन हैं क्योंकि उसके पास उतने पैसे नहीं है। क्या बैंक एक ऐसा mediator बन सकती हैं? कि कितना fee वाली institution क्यों न हो? गरीब से गरीब का बच्चा भी वहां पढ़ने जाएगा, हम खड़े हैं। हम ज्ञान उपार्जन के प्रयास में कभी पीछे नहीं हटेंगे। गरीब का बच्चा भी कितना ही धन खर्च करके अगर पढ़ाई करने ताकत रखता है, हम पूरा करेंगे। मैं समझता हूं कि लंबे समय के लिए benefit करने वाला ये सबसे बड़ा investment है, सबसे बड़ा financial inclusion है और इसलिए हम हमारी education system, हमारे students उनका अच्छे intuition में पढ़ने का इरादा और उसको, अगर हमारा human resource development की ताकत जितनी ज्यादा होगी, देश को आने वाली शताब्दी में नेतृत्व करने की ताकत आएगी। हमारी इमारतें कितनी अच्छी बनीं हैं, इससे दुनिया में हिंदुस्तान की ताकत बढ़ने वाली नहीं है, हिंदुस्तान की ताकत बढ़ने वाली है, हिंदुस्तान की युवा पीढ़ी के पास कितना सामर्थ्य है, कितना ताकत है इनके अंदर, उस ताकत का आधार दंड-बैठक से नहीं आता है, उस ताकत के लिए ये शिक्षा का अवसर होना चाहिए।

अगर कोई educational institution world class बनाता है, बैंक मदद करें, student पढ़ने के लिए जाना चाहता है, बैंक मदद करें और मैं विश्वास दिलाता हूं जी। अब तक का आपका जो NPA का अनुभव है, इसमें कभी ऐसा कटु अनुभव नहीं आएगा, मुझ पर भरोसा कीजिए। देश का नौजवान पाई-पाई लौटा देगा, लौटाएगा लेकिन देश बहुत आगे बढ़ेगा और इसलिए हम financial inclusion एक सब्जी बेचने वाले से लेकर के एक top class, high qualified man power तैयार करने तक पूरा chain कैसे बनाएं? मैं समझता हूं कि एक बहुत बड़ा role कर सकते हैं और एक विषय मेरे मन में है। Make in India, मैं Make in India की विस्तार में और बातें नहीं करना चाहता हूं। मुझे पूरा ज्ञान भी नहीं है शायद सोचा जाए। हम आज आरबीआई के 80 साल मना रहे हैं। आज हम संकल्प कर सकते हैं क्या? कि फलां तारीख को जो हमारी currency छपेगी, उस currency का कागज भी Indian होगा और Ink भी Indian होगी। ऐसा नहीं चल सकता, जिस गाधी ने स्वदेशी के लिए इतनी लड़ाई लड़ी, वो विदेशी कागज पर उसकी तस्वीर छपती रहे, वो शोभा देता है क्या? क्या मेरे देश के पास ऐसे उद्योग कार नहीं हैं? उनको compel किया जाए कि ये फैक्ट्री लगानी है, पैसा नहीं है, दूंगा लेकिन ये लगाओ बगल में, लाओ दुनिया से technology लाओ और हमारी currency हमारी नोट, कागज हिंदुस्तानी होना चाहिए, ईंक भी हिंदुस्तानी होनी चाहिए और मैं चाहता हूं कि आरबीआई इस बात को समझकर के एक नेतृत्व दे, ये Make in India तो यहीं से शुरू होता है जी।

मैं मानता हूं कि हम इन चीजों को कर सकते हैं, लेकिन मैं ये भी मानता हूं कि देश आज जहां पहुंचा है, उसमें आप सबका बहुत योगदान है, इन institutions का बहुत योगदान है और वो इंसान हूं, मैं मानता हूं कि idea कितने ही होनहार क्यों न हो? अगर institutional frame ताकतवर नहीं हैं तो सारे विचार बांझ रह जाते हैं और इसलिए institutional strengthen हो, आरबीआई की गरिमा और कैसे बढ़े? बैंकिंग सेक्टर की अपनी गरिमा कैसे बढ़ें? सभी संस्थाएं अपने आप में ताकतवर कैसे बनें? जितना संस्थाओं का नेटवर्क ताकतवर होगा, स्वतंत्र रूप से निर्णय करने का होगा, ultimately देश का लाभ होने वाला है। जरूरी नहीं है कि प्रधानमंत्री की इच्छा के अनुसार देश चलना चाहिए, देश आपने जिन values को स्वीकार किया है उन values के अनुसार चलेगा और देश आगे बढेगा। ये मेरा विश्वास है और उस बात को लेकर के हमको चलना चाहिए।

हमने एक छोटा सा initiative लिया देखिए देश की ताकत देखिए। कभी-कभी हम अपने देशवासियों को कुछ भी कह देते हैं, मेरा अनुभव अलग है। हमने ऐसे ही कानों-कानों में एक बात शुरू की थी कि भई जो लोग afford करते हैं, इन लोगों ने gas subsidy नहीं लेनी चाहिए। अब जो लेते थे, वो कोई सरकार से 500 रुपया मिलने वाले थे, भूखे नहीं रहते थे लेकिन ध्यान नहीं था, ऐसा चलता है यार, ध्यान नहीं था। सहज रूप से हमने बातों-बातों में कहा, मैंने कहीं publically रूप से नहीं कहा था और मैं हैरान था, मैं सचमुच में हैरान था, 2 लाख लोगों ने voluntarily अपनी gas subsidy surrender कर दी। कानों-कानों पर बात पहुंची, ये देखकर के मेरा विश्वास बढ़ा तो मैंने अभी officially मैंने पिछले हफ्ते launch किया कि जो भाई afford करते हैं, उन्होंने gas subsidy को surrender करना चाहिए और सरकार का इरादा subsidy बचाकर के तिजोरी भरने का नहीं है, हमारे इरादे ये हैं कि आप अगर एक सिलेंडर छोड़ते हो, तो मैं वो सिलेंडर उस घर को देना चाहता हूं, जिसमें लकड़ी का चूल्हा है और जिसके कारण pollution होता है और जिसके कारण उनके बच्चों को धुएं में पलना पड़ता है और बीमारी का घर हो जाता है। मैं financial inclusion की जब बात करता हूं तब आप जिस गैस सिलेंडर को छोड़ें, वो उस गरीब के घर में सिलेंडर जाएं ताकि उस महिला को लकड़ी जलाकर के धुएं में अपने बच्चों को पालने की नौबत न आए। मुझे बताइए ये सेवा नहीं है क्या?

मैं विश्वास करता हूं कि सभी हमारे बैंक अपने सभी कर्मचारियों को विश्वास में लें, एक-एक बैंक resolve करे कि हमारे बैंक के 20 हजार कर्मचारी हैं, हम subsidy छोड़े देंगे, सारे industrial house decide करें कि हमारे यहां जो 5 हजार employee हैं, हम subsidy छोड़ देंगे और इसका मतलब ये नहीं कि वो industry उनको पैसे दे, ये मैं नहीं चाहता। voluntarily देना यानि देना, हर व्यक्ति को। अगर हिंदुस्तान में हम एक करोड़ लोग ये गैस सिलेंडर की subsidy छोड़ दें इतनी ताकत रखते हैं। एक करोड़ गरीब परिवारों में जहां लकड़ी का चूल्हा जलता है, जिसके कारण जंगल कटते हैं, जिसके कारण carbon emission होता है, जिसके कारण गरीब के बच्चे को धुएं में पलना पड़ता है, financial inclusion हर छोटी चीज में संभव होता है। अपने आचरण से, अपने व्यवहार से, अपने vision से ये संभव होता है। मैं फिर एक बार आप सबका बहुत आभारी हूं, मैंने काफी समय ले लिया। ले

किन मुझे विश्वास है मैंने पहले ही कहा था मेरे ये software नहीं है, मैं इस क्षेत्र का नहीं हूं लेकिन मैं जिस बिरादरी में पैदा हुआ हूं, गरीबी मैंने देखी है और गरीब की गरीबी से बाहर निकलने की ताकत है। थोड़े hand holding की आवश्यकता है, थोड़ा सा hand holding करने की ताकत, बैंकिंग सेक्टर के पास है। आइए हम सब मिलकर के देश को गरीबी से मुक्त कराने के अभियान को, financial inclusion के इस mission से आगे बढ़ें।

मेरी आप सबको बहुत-बहुत शुभकामनाएं हैं। धन्यवाद।

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The Ayushman Bharat Yojana has reduced the financial problems in cancer treatment to a great extent: PM Modi

ਮੇਰੇ ਪਿਆਰੇ ਦੇਸ਼ਵਾਸੀਓ,

ਨਮਸਕਾਰ। 2025 ਬਸ ਹੁਣ ਤਾਂ ਆ ਹੀ ਗਿਆ ਹੈ, ਦਰਵਾਜ਼ੇ ’ਤੇ ਦਸਤਕ ਦੇ ਹੀ ਰਿਹਾ ਹੈ। 2025 ਵਿੱਚ 26 ਜਨਵਰੀ ਨੂੰ ਸਾਡੇ ਸੰਵਿਧਾਨ ਨੂੰ ਲਾਗੂ ਹੋਇਆਂ 75 ਸਾਲ ਪੂਰੇ ਹੋਣ ਵਾਲੇ ਹਨ, ਸਾਡੇ ਸਾਰਿਆਂ ਲਈ ਬਹੁਤ ਮਾਣ ਦੀ ਗੱਲ ਹੈ। ਸਾਡੇ ਸੰਵਿਧਾਨ ਨਿਰਮਾਤਾਵਾਂ ਨੇ ਸਾਨੂੰ ਜੋ ਸੰਵਿਧਾਨ ਸੌਂਪਿਆ ਹੈ, ਉਹ ਸਮੇਂ ਦੀ ਹਰ ਕਸੌਟੀ ’ਤੇ ਖ਼ਤਰਾ ਉਤਰਿਆ ਹੈ। ਸੰਵਿਧਾਨ ਸਾਡੇ ਲਈ guiding light ਹੈ, ਸਾਡਾ ਮਾਰਗ ਦਰਸ਼ਕ ਹੈ। ਇਹ ਭਾਰਤ ਦਾ ਸੰਵਿਧਾਨ ਹੀ ਹੈ, ਜਿਸ ਦੀ ਵਜ੍ਹਾ ਨਾਲ ਮੈਂ ਅੱਜ ਇੱਥੇ ਹਾਂ, ਤੁਹਾਡੇ ਨਾਲ ਗੱਲ ਕਰ ਪਾ ਰਿਹਾ ਹਾਂ। ਇਸ ਸਾਲ 26 ਨਵੰਬਰ ਨੂੰ ਸੰਵਿਧਾਨ ਦਿਵਸ ਤੋਂ ਇੱਕ  ਸਾਲ ਤੱਕ ਚੱਲਣ ਵਾਲੀਆਂ ਕਈ ਗਤੀਵਿਧੀਆਂ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਈਆਂ ਹਨ। ਦੇਸ਼ ਦੇ ਨਾਗਰਿਕਾਂ ਨੂੰ ਸੰਵਿਧਾਨ ਦੀ ਵਿਰਾਸਤ ਨਾਲ ਜੋੜਨ ਦੇ ਲਈ constitution75.com ਨਾਂ ਨਾਲ ਇੱਕ  ਖਾਸ ਵੈੱਬਸਾਈਟ ਵੀ ਬਣਾਈ ਗਈ ਹੈ। ਇਸ ਵਿੱਚ ਤੁਸੀਂ ਸੰਵਿਧਾਨ ਦੀ ਪ੍ਰਸਤਾਵਨਾ ਪੜ੍ਹ ਕੇ ਆਪਣਾ ਵੀਡੀਓ ਅੱਪਲੋਡ ਕਰ ਸਕਦੇ ਹੋ। ਵੱਖ-ਵੱਖ ਭਾਸ਼ਾਵਾਂ ਵਿੱਚ ਸੰਵਿਧਾਨ ਪੜ੍ਹ ਸਕਦੇ ਹੋ, ਸੰਵਿਧਾਨ ਦੇ ਬਾਰੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ ਵੀ ਪੁੱਛ ਸਕਦੇ ਹੋ। ‘ਮਨ ਕੀ ਬਾਤ’ ਦੇ ਸਰੋਤਿਆਂ, ਸਕੂਲ ਵਿੱਚ ਪੜ੍ਹਨ ਵਾਲੇ ਬੱਚਿਆਂ ਨੂੰ, ਕਾਲਜ ਵਿੱਚ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਨੌਜਵਾਨਾਂ ਨੂੰ ਮੇਰੀ ਬੇਨਤੀ ਹੈ ਕਿ ਇਸ ਵੈੱਬਸਾਈਟ ’ਤੇ ਜ਼ਰੂਰ ਜਾ ਕੇ ਵੇਖੋ, ਇਸ ਦਾ ਹਿੱਸਾ ਬਣੋ।


ਸਾਥੀਓ, ਅਗਲੇ ਮਹੀਨੇ 13 ਤਾਰੀਖ ਤੋਂ ਪ੍ਰਯਾਗਰਾਜ ਵਿੱਚ ਮਹਾਕੁੰਭ ਵੀ ਹੋਣ ਵਾਲਾ ਹੈ। ਇਸ ਸਮੇਂ ਉੱਥੇ ਸੰਗਮ ਤਟ ’ਤੇ ਜ਼ਬਰਦਸਤ ਤਿਆਰੀਆਂ ਚੱਲ ਰਹੀਆਂ ਹਨ। ਮੈਨੂੰ ਯਾਦ ਹੈ ਕਿ ਅਜੇ ਕੁਝ ਦਿਨ ਪਹਿਲਾਂ ਜਦੋਂ ਮੈਂ ਪ੍ਰਯਾਗਰਾਜ ਗਿਆ ਸੀ ਤਾਂ ਹੈਲੀਕੌਪਟਰ ਨਾਲ ਪੂਰਾ ਕੁੰਭ ਖੇਤਰ ਵੇਖ ਕੇ ਦਿਲ ਪ੍ਰਸੰਨ ਹੋ ਗਿਆ ਸੀ। ਏਨਾ ਵਿਸ਼ਾਲ! ਏਨਾ ਸੁੰਦਰ! ਏਨਾ ਸ਼ਾਨਦਾਰ!


ਸਾਥੀਓ, ਮਹਾਕੁੰਭ ਦੀ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾ ਸਿਰਫ ਇਸ ਦੀ ਵਿਸ਼ਾਲਤਾ ਵਿੱਚ ਹੀ ਨਹੀਂ ਹੈ, ਕੁੰਭ ਦੀ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾ ਇਸ ਦੀ ਵਿਭਿੰਨਤਾ ਵਿੱਚ ਵੀ ਹੈ। ਇਸ ਆਯੋਜਨ ਵਿੱਚ ਕਰੋੜਾਂ ਲੋਕ ਇਕੱਠੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ, ਲੱਖਾਂ ਸੰਤ, ਹਜ਼ਾਰਾਂ ਪਰੰਪਰਾਵਾਂ, ਸੈਂਕੜੇ ਸੰਪ੍ਰਦਾਇ, ਅਨੇਕਾਂ ਅਖਾੜੇ ਹਰ ਕੋਈ ਇਸ ਆਯੋਜਨ ਦਾ ਹਿੱਸਾ ਬਣਦੇ ਹਨ। ਕਿਤੇ ਕੋਈ ਭੇਦਭਾਵ ਨਹੀਂ ਦਿਖਾਈ ਦਿੰਦਾ, ਕੋਈ ਵੱਡਾ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਕੋਈ ਛੋਟਾ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ ਹੈ। ਅਨੇਕਤਾ ਵਿੱਚ ਏਕਤਾ ਦਾ ਅਜਿਹਾ ਦ੍ਰਿਸ਼ ਵਿਸ਼ਵ ਵਿੱਚ ਕਿਤੇ ਹੋਰ ਵੇਖਣ ਨੂੰ ਨਹੀਂ ਮਿਲੇਗਾ। ਇਸ ਲਈ ਸਾਡਾ ਕੁੰਭ ਏਕਤਾ ਦਾ ਮਹਾਕੁੰਭ ਵੀ ਹੁੰਦਾ ਹੈ। ਇਸ ਵਾਰ ਦਾ ਮਹਾਕੁੰਭ ਵੀ ਏਕਤਾ ਦੇ ਮਹਾਕੁੰਭ ਦੇ ਮੰਤਰ ਨੂੰ ਮਜ਼ਬੂਤ ਕਰੇਗਾ। ਮੈਂ ਤੁਹਾਨੂੰ ਸਾਰਿਆਂ ਨੂੰ ਕਹਾਂਗਾ ਕਿ ਜਦੋਂ ਅਸੀਂ ਕੁੰਭ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਹੋਈਏ ਤਾਂ ਏਕਤਾ ਦੇ ਸੰਕਲਪ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਨਾਲ ਲੈ ਕੇ ਵਾਪਸ ਆਈਏ। ਇਸ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਵੰਡ ਅਤੇ ਦਵੈਸ਼ ਦੇ ਭਾਵ ਨੂੰ ਨਸ਼ਟ ਕਰਨ ਦਾ ਸੰਕਲਪ ਵੀ ਲਈਏ। ਜੇਕਰ ਘੱਟ ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਮੈਂ ਕਹਿਣਾ ਹੋਵੇ ਤਾਂ ਮੈਂ ਕਹਾਂਗਾ:-


ਮਹਾਕੁੰਭ ਕਾ ਸੰਦੇਸ਼, ਏਕ ਹੋ ਪੂਰਾ ਦੇਸ਼।

ਮਹਾਕੁੰਭ ਕਾ ਸੰਦੇਸ਼, ਏਕ ਹੋ ਪੂਰਾ ਦੇਸ਼।


ਅਤੇ ਜੇਕਰ ਦੂਸਰੇ ਤਰੀਕੇ ਨਾਲ ਕਹਿਣਾ ਹੈ ਤਾਂ ਮੈਂ ਕਹਾਂਗਾ...

ਗੰਗਾ ਕੀ ਅਵਿਰਲ ਧਾਰਾ, ਨਾ ਬੰਟੇ ਸਮਾਜ ਹਮਾਰਾ।

ਗੰਗਾ ਕੀ ਅਵਿਰਲ ਧਾਰਾ, ਨਾ ਬੰਟੇ ਸਮਾਜ ਹਮਾਰਾ।


ਸਾਥੀਓ, ਇਸ ਵਾਰੀ ਪ੍ਰਯਾਗਰਾਜ ਵਿੱਚ ਦੇਸ਼ ਅਤੇ ਦੁਨੀਆ ਦੇ ਸ਼ਰਧਾਲੂ ਡਿਜੀਟਲ ਮਹਾਕੁੰਭ ਦੇ ਵੀ ਗਵਾਹ ਬਣਨਗੇ। ਡਿਜੀਟਲ ਨੈਵੀਗੇਸ਼ਨ ਦੀ ਮਦਦ ਨਾਲ ਤੁਹਾਨੂੰ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਘਾਟ, ਮੰਦਿਰ, ਸਾਧੂਆਂ ਦੇ ਅਖਾੜਿਆਂ ਤੱਕ ਪਹੁੰਚਣ ਦਾ ਰਸਤਾ ਮਿਲੇਗਾ। ਇਹੀ ਨੈਵੀਗੇਸ਼ਨ ਸਿਸਟਮ ਤੁਹਾਡੀ ਪਾਰਕਿੰਗ ਤੱਕ ਪਹੁੰਚਣ ਵਿੱਚ ਵੀ ਮਦਦ ਕਰੇਗਾ। ਪਹਿਲੀ ਵਾਰੀ ਕੁੰਭ ਆਯੋਜਨ ਵਿੱਚ 19 chatbot ਦਾ ਪ੍ਰਯੋਗ ਹੋਵੇਗਾ। 19 chatbot ਦੇ ਮਾਧਿਅਮ ਨਾਲ 11 ਭਾਰਤੀ ਭਾਸ਼ਾਵਾਂ ਵਿੱਚ ਕੁੰਭ ਨਾਲ ਜੁੜੀ ਹਰ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੀ ਜਾਣਕਾਰੀ ਹਾਸਲ ਕੀਤੀ ਜਾ ਸਕੇਗੀ। ਇਸ 19 chatbot ਨਾਲ ਕੋਈ ਵੀ text type ਕਰਕੇ ਜਾਂ ਬੋਲ ਕੇ ਕਿਸੇ ਵੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੀ ਮਦਦ ਮੰਗ ਸਕਦਾ ਹੈ। ਪੂਰੇ ਮੇਲੇ ਖੇਤਰ ਨੂੰ 19-Powered cameras ਨਾਲ ਕਵਰ ਕੀਤਾ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਕੁੰਭ ਵਿੱਚ ਜੇਕਰ ਕੋਈ ਆਪਣੇ ਜਾਣਕਾਰਾਂ ਤੋਂ ਵਿਛੜ ਜਾਵੇਗਾ ਤਾਂ ਇਨ੍ਹਾਂ ਕੈਮਰਿਆਂ ਨਾਲ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਲੱਭਣ ਵਿੱਚ ਮਦਦ ਮਿਲੇਗੀ। ਸ਼ਰਧਾਲੂਆਂ ਨੂੰ digital lost & found center ਦੀ ਸੁਵਿਧਾ ਵੀ ਮਿਲੇਗੀ। ਸ਼ਰਧਾਲੂਆਂ ਨੂੰ ਮੋਬਾਈਲ ’ਤੇ government-approved tour packages, ਠਹਿਣ ਦੀ ਜਗ੍ਹਾ ਅਤੇ homestay ਦੇ ਬਾਰੇ ਵੀ ਜਾਣਕਾਰੀ ਦਿੱਤੀ ਜਾਵੇਗੀ। ਤੁਸੀਂ ਵੀ ਮਹਾਕੁੰਭ ਵਿੱਚ ਜਾਓ ਤਾਂ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸਹੂਲਤਾਂ ਦਾ ਲਾਭ ਉਠਾਓ ਅਤੇ ਹਾਂ #ਏਕਤਾ ਦਾ ਮਹਾਕੁੰਭ ਦੇ ਨਾਲ ਆਪਣੀ ਸੈਲਫੀ ਜ਼ਰੂਰ ਅੱਪਲੋਡ ਕਰੋ।


ਸਾਥੀਓ, ‘ਮਨ ਕੀ ਬਾਤ’ ਯਾਨੀ MK2 ਵਿੱਚ ਹੁਣ ਗੱਲ K“2 ਦੀ, ਜੋ ਵੱਡੇ ਬਜ਼ੁਰਗ ਹਨ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ K“2 ਦੇ ਬਾਰੇ ਪਤਾ ਨਹੀਂ ਹੋਵੇਗਾ, ਲੇਕਿਨ ਜ਼ਰਾ ਬੱਚਿਆਂ ਨੂੰ ਪੁੱਛੋ K“2 ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਹੀ ਸੁਪਰਹਿੱਟ ਹੈ। K“2 ਯਾਨੀ ਕ੍ਰਿਸ਼, ਤ੍ਰਿਸ਼ ਅਤੇ ਬਾਲਟੀਬਾਏ। ਤੁਹਾਨੂੰ ਸ਼ਾਇਦ ਪਤਾ ਹੋਵੇਗਾ ਕਿ ਬੱਚਿਆਂ ਦੇ ਮਨਪਸੰਦ animation series ਅਤੇ ਉਸ ਦਾ ਨਾਮ ਹੈ K“2 - ਭਾਰਤ ਹੈਂ ਹਮ ਅਤੇ ਹੁਣ ਇਸ ਦਾ ਦੂਸਰਾ ਸੀਜ਼ਨ ਵੀ ਆ ਗਿਆ ਹੈ। ਇਹ ਤਿੰਨ ਐਮੀਨੇਸ਼ਨ ਕਰੈਕਟਰ ਸਾਨੂੰ ਭਾਰਤੀ ਸੁਤੰਤਰਤਾ ਸੰਗ੍ਰਾਮ ਦੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨਾਇੱਕ -ਨਾਇਕਾਵਾਂ ਦੇ ਬਾਰੇ ਦੱਸਦੇ ਹਨ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਜ਼ਿਆਦਾ ਚਰਚਾ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੀ। ਹੁਣੇ ਜਿਹੇ ਹੀ ਇਸ ਦਾ ਸੀਜ਼ਨ-2 ਬੜੇ ਹੀ ਖਾਸ ਅੰਦਾਜ਼ ਵਿੱਚ International Film Festival of India, Goa ਵਿੱਚ launch ਹੋਇਆ। ਸਭ ਤੋਂ ਸ਼ਾਨਦਾਰ ਗੱਲ ਇਹ ਹੈ ਕਿ ਇਹ ਸੀਰੀਜ਼ ਨਾ ਸਿਰਫ ਭਾਰਤ ਦੀਆਂ ਕਈ ਭਾਸ਼ਾਵਾਂ ਵਿੱਚ, ਸਗੋਂ ਵਿਦੇਸ਼ੀ ਭਾਸ਼ਾਵਾਂ ਵਿੱਚ ਵੀ ਪ੍ਰਸਾਰਿਤ ਹੁੰਦੀ ਹੈ। ਇਸ ਨੂੰ ਦੂਰਦਰਸ਼ਨ ਦੇ ਇਲਾਵਾ ਹੋਰ OTT platform ’ਤੇ ਵੀ ਵੇਖਿਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ।


ਸਾਥੀਓ, ਸਾਡੀਆਂ ਐਮੀਨੇਸ਼ਨ ਫਿਲਮਾਂ ਦੀ, ਰੈਗੂਲਰ ਫਿਲਮਾਂ, ਟੀ. ਵੀ. ਸੀਰੀਅਲ ਦੀ, ਮਸ਼ਹੂਰੀ ਦਿਖਾਉਂਦੀ ਹੈ ਕਿ ਭਾਰਤ ਦੀ ਕ੍ਰਿਏਟਿਵ ਇੰਡਸਟਰੀ ਵਿੱਚ ਕਿੰਨੀ ਸਮਰੱਥਾ ਹੈ। ਇਹ ਇੰਡਸਟਰੀ ਨਾ ਸਿਰਫ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਪ੍ਰਗਤੀ ਵਿੱਚ ਵੱਡਾ ਯੋਗਦਾਨ ਦੇ ਰਹੀ ਹੈ, ਸਗੋਂ ਸਾਡੀ ਅਰਥਵਿਵਸਥਾ ਨੂੰ ਵੀ ਨਵੀਆਂ ਉਚਾਈਆਂ ’ਤੇ ਲਿਜਾ ਰਹੀ ਹੈ। ਸਾਡੀ ਫਿਲਮ ਅਤੇ ਐਂਟਰਟੇਨਮੈਂਟ ਇੰਡਸਟਰੀ ਬਹੁਤ ਵਿਸ਼ਾਲ ਹੈ। ਦੇਸ਼ ਦੀਆਂ ਕਿੰਨੀਆਂ ਭਾਸ਼ਾਵਾਂ ਵਿੱਚ ਫਿਲਮਾਂ ਬਣਦੀਆਂ ਹਨ, creative content ਬਣਦਾ ਹੈ। ਮੈਂ ਆਪਣੀ ਫਿਲਮ ਅਤੇ ਐਂਟਰਟੇਨਮੈਂਟ ਇੰਡਸਟਰੀ ਨੂੰ ਇਸ ਲਈ ਵੀ ਵਧਾਈ ਦਿੰਦਾ ਹਾਂ, ਕਿਉਂਕਿ ਉਸ ਨੇ ‘ਏਕ ਭਾਰਤ - ਸ੍ਰੇਸ਼ਠ ਭਾਰਤ’ ਦੇ ਭਾਵ ਨੂੰ ਸਸ਼ਕਤ ਕੀਤਾ ਹੈ।


ਸਾਥੀਓ, ਸਾਲ 2024 ਵਿੱਚ ਅਸੀਂ ਫਿਲਮ ਜਗਤ ਦੀਆਂ ਕਈ ਮਹਾਨ ਸ਼ਖਸੀਅਤਾਂ ਦੀ 100ਵੀਂ ਜਯੰਤੀ ਮਨਾ ਰਹੇ ਹਾਂ। ਇਨ੍ਹਾਂ ਮਸ਼ਹੂਰ ਹਸਤੀਆਂ ਨੇ ਭਾਰਤੀ ਸਿਨੇਮਾ ਨੂੰ ਵਿਸ਼ਵ ਪੱਧਰ ’ਤੇ ਪਹਿਚਾਣ ਦਿਲਵਾਈ। ਰਾਜ ਕਪੂਰ ਜੀ ਨੇ ਫਿਲਮਾਂ ਦੇ ਮਾਧਿਅਮ ਨਾਲ ਦੁਨੀਆ  ਨੂੰ ਭਾਰਤ ਦੀ soft power ਨਾਲ ਜਾਣੂ ਕਰਵਾਇਆ। ਰਫੀ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਆਵਾਜ਼ ਵਿੱਚ ਉਹ ਜਾਦੂ ਸੀ ਜੋ ਹਰ ਦਿਲ ਨੂੰ ਛੂਹ ਲੈਂਦਾ ਸੀ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਆਵਾਜ਼ ਅਨੋਖੀ ਸੀ। ਭਗਤੀ ਗੀਤ ਹੋਣ ਜਾਂ ਰੋਮਾਂਟਿਕ ਗੀਤ, ਦਰਦ ਭਰੇ ਗਾਣੇ ਹੋਣ ਹਰ ਭਾਵਨਾ ਨੂੰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਆਪਣੀ ਆਵਾਜ਼ ਨਾਲ ਜਿਉਂਦਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ। ਇੱਕ  ਕਲਾਕਾਰ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਮਹਾਨਤਾ ਦਾ ਅੰਦਾਜ਼ਾ ਇਸੇ ਤੋਂ ਲਗਾਇਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ ਕਿ ਅੱਜ ਵੀ ਨੌਜਵਾਨ ਪੀੜ੍ਹੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਗਾਣਿਆਂ ਨੂੰ ਓਨੀ ਹੀ ਸ਼ਿੱਦਤ ਨਾਲ ਸੁਣਦੀ ਹੈ - ਇਹੀ ਤਾਂ ਟਾਈਮਲੈੱਸ ਆਰਟ ਦੀ ਪਹਿਚਾਣ ਹੈ। ਅੱਕੀਨੈਨੀ ਨਾਗੇਸ਼ਵਰ ਰਾਓ ਗਾਰੂ ਨੇ ਤੇਲਗੂ ਸਿਨੇਮਾ ਨੂੰ ਨਵੀਆਂ ਉਚਾਈਆਂ ਤੱਕ ਪਹੁੰਚਾਇਆ ਹੈ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਫਿਲਮਾਂ ਨੇ ਭਾਰਤੀ ਪਰੰਪਰਾਵਾਂ ਅਤੇ ਕਦਰਾਂ-ਕੀਮਤਾਂ ਨੂੰ ਬਾਖੂਬੀ ਪੇਸ਼ ਕੀਤਾ ਹੈ। ਤਪਨ ਸਿਨਹਾ ਜੀ ਦੀਆਂ ਫਿਲਮਾਂ ਨੇ ਸਮਾਜ ਨੂੰ ਇੱਕ  ਨਵੀਂ ਦ੍ਰਿਸ਼ਟੀ ਦਿੱਤੀ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਫਿਲਮਾਂ ਵਿੱਚ ਸਮਾਜਿਕ ਚੇਤਨਾ ਅਤੇ ਰਾਸ਼ਟਰੀ ਏਕਤਾ ਦਾ ਸੰਦੇਸ਼ ਹੁੰਦਾ ਸੀ। ਸਾਡੀ ਪੂਰੀ ਫਿਲਮ ਇੰਡਸਟਰੀ ਦੇ ਲਈ ਇਨ੍ਹਾਂ ਹਸਤੀਆਂ ਦਾ ਜੀਵਨ ਪ੍ਰੇਰਣਾ ਵਾਂਗ ਹੈ।


ਸਾਥੀਓ, ਮੈਂ ਤੁਹਾਨੂੰ ਇੱਕ  ਹੋਰ ਖੁਸ਼ਖਬਰੀ ਦੇਣਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਹਾਂ। ਭਾਰਤ ਦੇ ਕ੍ਰਿਏਟਿਵ ਟੈਲੰਟ ਨੂੰ ਦੁਨੀਆ  ਦੇ ਸਾਹਮਣੇ ਰੱਖਣ ਦਾ ਇੱਕ  ਬਹੁਤ ਵੱਡਾ ਮੌਕਾ ਆ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਅਗਲੇ ਸਾਲ ਸਾਡੇ ਦੇਸ਼ ਵਿੱਚ ਪਹਿਲੀ ਵਾਰ World Audio Visual Entertainment Summit ਯਾਨੀ WAVES summit ਦਾ ਆਯੋਜਨ ਹੋਣ ਵਾਲਾ ਹੈ। ਤੁਸੀਂ ਸਾਰਿਆਂ ਨੇ ਦਾਵੋਸ ਦੇ ਬਾਰੇ ਸੁਣਿਆ ਹੋਵੇਗਾ, ਜਿੱਥੇ ਦੁਨੀਆ  ਦੇ ਅਰਥਜਗਤ ਦੇ ਮਹਾਰਥੀ ਇਕੱਠੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ। ਉਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ WAVES summit ਦੁਨੀਆ  ਭਰ ਦੇ ਮੀਡੀਆ ਅਤੇ entertainment industry ਦੇ ਦਿੱਗਜ, ਕ੍ਰਿਏਟਿਵ ਵਰਲਡ ਦੇ ਲੋਕ ਭਾਰਤ ਆਉਣਗੇ। ਇਹ summit ਭਾਰਤ ਨੂੰ global content creation ਦਾ ਹੱਬ ਬਣਾਉਣ ਦੀ ਦਿਸ਼ਾ ਵਿੱਚ ਇੱਕ  ਮਹੱਤਵਪੂਰਣ ਕਦਮ ਹੈ। ਮੈਨੂੰ ਇਹ ਦੱਸਦਿਆਂ ਮਾਣ ਹੋ ਰਿਹਾ ਹੈ ਕਿ ਇਸ summit ਦੀ ਤਿਆਰੀ ਵਿੱਚ ਸਾਡੇ ਦੇਸ਼ ਦੇ young creator ਵੀ ਪੂਰੇ ਜੋਸ਼ ਨਾਲ ਜੁੜ ਰਹੇ ਹਨ। ਜਦੋਂ ਅਸੀਂ 5 ਟ੍ਰਿਲੀਅਨ ਡਾਲਰ ਇਕੌਨਮੀ ਵੱਲ ਵਧ ਰਹੇ ਹਾਂ ਤਾਂ ਸਾਡੀ ਕ੍ਰਿਏਟਰ ਇਕੌਨਮੀ ਇੱਕ  ਨਵੀਂ ਊਰਜਾ ਲਿਆ ਰਹੀ ਹੈ। ਮੈਂ ਭਾਰਤ ਦੀ ਪੂਰੀ ਐਂਟਰਟੇਨਮੈਂਟ ਅਤੇ ਕ੍ਰਿਏਟਿਵ ਇੰਡਸਟਰੀ ਨੂੰ ਬੇਨਤੀ ਕਰਾਂਗਾ - ਚਾਹੇ ਤੁਸੀਂ ਯੰਗ ਕ੍ਰਿਏਟਰ ਹੋ ਜਾਂ ਸਥਾਪਿਤ ਕਲਾਕਾਰ, ਬਾਲੀਵੁੱਡ ਨਾਲ ਜੁੜੇ ਹੋ ਜਾਂ ਖੇਤਰੀ ਸਿਨੇਮਾ ਨਾਲ, ਟੀ. ਵੀ. ਇੰਡਸਟਰੀ ਦੇ ਕਲਾਕਾਰ ਹੋ ਜਾਂ ਐਮੀਨੇਸ਼ਨ ਦੇ ਐਕਸਪਰਟ, ਖੇਡਾਂ ਨਾਲ ਜੁੜੇ ਹੋ ਜਾਂ ਐਂਟਰਟੇਨਮੈਂਟ ਟੈਕਨੋਲੋਜੀ ਦੇ ਇਨੋਵੇਟਰ, ਤੁਸੀਂ ਸਾਰੇ WAVES summit ਦਾ ਹਿੱਸਾ ਬਣੋ।  


ਮੇਰੇ ਪਿਆਰੇ ਦੇਸ਼ਵਾਸੀਓ, ਤੁਸੀਂ ਸਾਰੇ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ਕਿ ਭਾਰਤੀ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤੀ ਦੀ ਰੌਸ਼ਨੀ ਅੱਜ ਕਿਵੇਂ ਦੁਨੀਆ  ਦੇ ਕੋਨੇ-ਕੋਨੇ ਵਿੱਚ ਫੈਲ ਰਹੀ ਹੈ। ਅੱਜ ਮੈਂ ਤੁਹਾਨੂੰ 3 ਮਹਾਦੀਪਾਂ ਤੋਂ ਅਜਿਹੇ ਯਤਨਾਂ ਦੇ ਬਾਰੇ ਦੱਸਾਂਗਾ ਜੋ ਸਾਡੀ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤਕ ਵਿਰਾਸਤ ਦੇ ਆਲਮੀ ਵਿਸਥਾਰ ਦੇ ਗਵਾਹ ਹਨ। ਇਹ ਸਾਰੇ ਇੱਕ -ਦੂਸਰੇ ਤੋਂ ਮੀਲਾਂ ਦੂਰ ਹਨ। ਲੇਕਿਨ ਭਾਰਤ ਨੂੰ ਜਾਨਣ ਅਤੇ ਸਾਡੀ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤੀ ਨੂੰ ਸਿੱਖਣ ਦੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਤਾਂਘ ਇੱਕੋ ਜਿਹੀ ਹੈ।
ਸਾਥੀਓ, ਪੇਂਟਿੰਗ ਦਾ ਸੰਸਾਰ ਜਿੰਨਾ ਰੰਗਾਂ ਨਾਲ ਭਰਿਆ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਓਨਾ ਹੀ ਖੂਬਸੂਰਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ। ਤੁਹਾਡੇ ਵਿੱਚੋਂ ਜੋ ਲੋਕ ਟੀ. ਵੀ. ਦੇ ਮਾਧਿਅਮ ਨਾਲ ‘ਮਨ ਕੀ ਬਾਤ’ ਨਾਲ ਜੁੜੇ ਹਨ, ਉਹ ਹੁਣ ਕੁਝ ਪੇਂਟਿੰਗ ਟੀ. ਵੀ. ’ਤੇ ਵੇਖ ਵੀ ਸਕਦੇ ਹਨ। ਇਨ੍ਹਾਂ ਪੇਂਟਿੰਗਸ ਵਿੱਚ ਸਾਡੇ ਦੇਵੀ-ਦੇਵਤਾ, ਨਾਚ ਦੀਆਂ ਕਲਾਵਾਂ ਅਤੇ ਮਹਾਨ ਹਸਤੀਆਂ ਨੂੰ ਵੇਖ ਕੇ ਤੁਹਾਨੂੰ ਬਹੁਤ ਚੰਗਾ ਲੱਗੇਗਾ। ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਤੁਹਾਨੂੰ ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਪਾਏ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਜੀਵ-ਜੰਤੂਆਂ ਨੂੰ ਲੈ ਕੇ ਹੋਰ ਵੀ ਬਹੁਤ ਕੁਝ ਵੇਖਣ ਨੂੰ ਮਿਲੇਗਾ। ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਤਾਜਮਹਿਲ ਦੀ ਇੱਕ  ਸ਼ਾਨਦਾਰ ਪੇਂਟਿੰਗ ਵੀ ਸ਼ਾਮਲ ਹੈ, ਜਿਸ ਨੂੰ 13 ਸਾਲ ਦੀ ਇੱਕ  ਬੱਚੀ ਨੇ ਬਣਾਇਆ ਹੈ। ਤੁਹਾਨੂੰ ਇਹ ਜਾਣ ਕੇ ਹੈਰਾਨੀ ਹੋਵੇਗੀ ਕਿ ਇਸ ਦਿਵਿਯਾਂਗ ਬੱਚੀ ਨੇ ਆਪਣੇ ਮੂੰਹ ਨਾਲ ਇਸ ਪੇਂਟਿੰਗ ਨੂੰ ਤਿਆਰ ਕੀਤਾ ਹੈ। ਸਭ ਤੋਂ ਦਿਲਚਸਪ ਗੱਲ ਇਹ ਹੈ ਕਿ ਇਨ੍ਹਾਂ ਪੇਂਟਿੰਗਸ ਨੂੰ ਬਣਾਉਣ ਵਾਲੇ ਭਾਰਤ ਦੇ ਨਹੀਂ, ਬਲਕਿ Egypt  ਦੇ ਸਟੂਡੈਂਟ ਹਨ, ਉੱਥੋਂ ਦੇ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਹਨ। ਕੁਝ ਹੀ ਹਫਤੇ ਪਹਿਲਾਂ Egypt  ਦੇ ਲਗਭਗ 23 ਹਜ਼ਾਰ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਨੇ ਇੱਕ  ਪੇਂਟਿੰਗ ਮੁਕਾਬਲੇ ਵਿੱਚ ਹਿੱਸਾ ਲਿਆ ਸੀ। ਉੱਥੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਭਾਰਤ ਦੀ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤੀ ਅਤੇ ਦੋਹਾਂ ਦੇਸ਼ਾਂ ਦੇ ਇਤਿਹਾਸਕ ਸਬੰਧਾਂ ਨੂੰ ਵਿਖਾਉਣ ਵਾਲੀਆਂ ਪੇਂਟਿੰਗਸ ਤਿਆਰ ਕਰਨੀਆਂ ਸਨ, ਮੈਂ ਇਸ ਮੁਕਾਬਲੇ ਵਿੱਚ ਹਿੱਸਾ ਲੈਣ ਵਾਲੇ ਸਾਰੇ ਨੌਜਵਾਨਾਂ ਦੀ ਸ਼ਲਾਘਾ ਕਰਦਾ ਹਾਂ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਰਚਨਾਤਮਕਤਾ ਦੀ ਜਿੰਨੀ ਵੀ ਸ਼ਲਾਘਾ ਕੀਤੀ ਜਾਵੇ, ਘੱਟ ਹੈ।
ਸਾਥੀਓ, ਦੱਖਣੀ ਅਮਰੀਕਾ ਦਾ ਇੱਕ  ਦੇਸ਼ ਹੈ ਪਰਾਗਵੇ। ਉੱਥੇ ਰਹਿਣ ਵਾਲੇ ਭਾਰਤੀਆਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਇੱਕ  ਹਜ਼ਾਰ ਤੋਂ ਜ਼ਿਆਦਾ ਨਹੀਂ ਹੋਵੇਗੀ। ਪਰਾਗਵੇ ਵਿੱਚ ਇੱਕ  ਅਨੋਖਾ ਯਤਨ ਹੋ ਰਿਹਾ ਹੈ, ਉੱਥੇ ਭਾਰਤੀ ਦੂਤਾਵਾਸ ਵਿੱਚ ਏਰਿਕਾ ਹਿਊਬਰ ਫਰੀ ਆਯੁਰਵੇਦ ਸਲਾਹ ਦਿੰਦੀ ਹੈ। ਆਯੁਰਵੇਦ ਦੀ ਸਲਾਹ ਲੈਣ ਦੇ ਲਈ ਅੱਜ ਉਨ੍ਹਾਂ ਕੋਲ ਸਥਾਨਕ ਲੋਕ ਵੀ ਵੱਡੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿੱਚ ਪਹੁੰਚ ਰਹੇ ਹਨ। ਏਰਿਕਾ ਹਿਊਬਰ ਨੇ ਭਾਵੇਂ ਇੰਜੀਨੀਅਰਿੰਗ ਦੀ ਪੜ੍ਹਾਈ ਕੀਤੀ ਹੋਵੇ, ਲੇਕਿਨ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਮਨ ਤਾਂ ਆਯੁਰਵੇਦ ਵਿੱਚ ਹੀ ਵਸਦਾ ਹੈ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਆਯੁਰਵੇਦ ਨਾਲ ਜੁੜੇ ਕੋਰਸ ਕੀਤੇ ਸਨ ਅਤੇ ਸਮੇਂ ਦੇ ਨਾਲ ਉਹ ਇਸ ਵਿੱਚ ਮਾਹਿਰ ਹੁੰਦੀ ਚਲੀ ਗਈ।


ਸਾਥੀਓ, ਇਹ ਸਾਡੇ ਲਈ ਬਹੁਤ ਮਾਣ ਦੀ ਗੱਲ ਹੈ ਕਿ ਦੁਨੀਆ  ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਪੁਰਾਣੀ ਭਾਸ਼ਾ ਤਮਿਲ ਹੈ ਅਤੇ ਹਰ ਹਿੰਦੁਸਤਾਨੀ ਨੂੰ ਇਸ ’ਤੇ ਮਾਣ ਹੈ। ਦੁਨੀਆ  ਭਰ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਵਿੱਚ ਇਸ ਨੂੰ ਸਿੱਖਣ ਵਾਲਿਆਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਲਗਾਤਾਰ ਵਧ ਰਹੀ ਹੈ। ਪਿਛਲੇ ਮਹੀਨੇ ਦੇ ਅਖੀਰ ਵਿੱਚ ਫਿਜ਼ੀ ਵਿੱਚ ਭਾਰਤ ਸਰਕਾਰ ਦੇ ਸਹਿਯੋਗ ਨਾਲ Tamil Teaching Programme ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਇਆ। ਬੀਤੇ 80 ਸਾਲਾਂ ਵਿੱਚ ਇਹ ਪਹਿਲਾ ਮੌਕਾ ਹੈ, ਜਦੋਂ ਫਿਜ਼ੀ ਵਿੱਚ ਤਮਿਲ ਦੇ ਟ੍ਰੇਂਡ ਟੀਚਰ ਇਸ ਭਾਸ਼ਾ ਨੂੰ ਸਿਖਾ ਰਹੇ ਹਨ। ਮੈਨੂੰ ਇਹ ਜਾਣ ਕੇ ਚੰਗਾ ਲੱਗਾ ਕਿ ਅੱਜ ਫਿਜ਼ੀ ਦੇ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਤਮਿਲ ਭਾਸ਼ਾ ਅਤੇ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤੀ ਨੂੰ ਸਿੱਖਣ ਵਿੱਚ ਕਾਫੀ ਦਿਲਚਸਪੀ ਲੈ ਰਹੇ ਹਨ।


ਸਾਥੀਓ, ਇਹ ਗੱਲਾਂ, ਇਹ ਘਟਨਾਵਾਂ ਸਿਰਫ ਸਫਲਤਾਵਾਂ ਦੀਆਂ ਕਹਾਣੀਆਂ ਨਹੀਂ ਹਨ, ਇਹ ਸਾਡੀਆਂ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤਕ ਵਿਰਾਸਤ ਦੀਆਂ ਵੀ ਕਹਾਣੀਆਂ ਹਨ। ਇਹ ਉਦਾਹਰਣਾਂ ਸਾਨੂੰ ਮਾਣ ਨਾਲ ਭਰ ਦਿੰਦੀਆਂ ਹਨ। ਆਰਟ ਤੋਂ ਆਯੁਰਵੇਦ ਤੱਕ ਅਤੇ ਲੈਂਗਵੇਜ਼ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਮਿਊਜ਼ਿਕ ਤੱਕ ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਇੰਨਾ ਕੁਝ ਹੈ ਜੋ ਦੁਨੀਆ  ਵਿੱਚ ਛਾ ਰਿਹਾ ਹੈ।


ਸਾਥੀਓ, ਸਰਦੀ ਦੇ ਇਸ ਮੌਸਮ ਵਿੱਚ ਦੇਸ਼ ਭਰ ਵਿੱਚ ਖੇਡ ਅਤੇ ਫਿਟਨੈੱਸ ਨੂੰ ਲੈ ਕੇ ਕਈ ਗਤੀਵਿਧੀਆਂ ਹੋ ਰਹੀਆਂ ਹਨ। ਮੈਨੂੰ ਖੁਸ਼ੀ ਹੈ ਕਿ ਲੋਕ ਫਿਟਨੈੱਸ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਦੈਨਿਕ ਜੀਵਨ ਦਾ ਹਿੱਸਾ ਬਣਾ ਰਹੇ ਹਨ। ਕਸ਼ਮੀਰ ਵਿੱਚ Skiing ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਗੁਜਰਾਤ ਵਿੱਚ ਪਤੰਗਬਾਜ਼ੀ ਤੱਕ, ਹਰ ਪਾਸੇ ਖੇਡਾਂ ਦਾ ਉਤਸ਼ਾਹ ਵੇਖਣ ਨੂੰ ਮਿਲ ਰਿਹਾ ਹੈ। # SundayOnCycle ਅਤੇ #CyclingTuesday ਵਰਗੀਆਂ ਮੁਹਿੰਮਾਂ ਨਾਲ ਸਾਈਕਲਿੰਗ ਨੂੰ ਹੁਲਾਰਾ ਮਿਲ ਰਿਹਾ ਹੈ।


ਸਾਥੀਓ, ਹੁਣ ਮੈਂ ਤੁਹਾਨੂੰ ਇੱਕ  ਅਜਿਹੀ ਅਨੋਖੀ ਗੱਲ ਦੱਸਣਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਹਾਂ ਜੋ ਸਾਡੇ ਦੇਸ਼ ਵਿੱਚ ਆ ਰਹੇ ਬਦਲਾਓ ਅਤੇ ਨੌਜਵਾਨ ਸਾਥੀਆਂ ਦੇ ਜੋਸ਼ ਅਤੇ ਜਜ਼ਬੇ ਦੀ ਪ੍ਰਤੀਕ ਹੈ। ਕੀ ਤੁਸੀਂ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ਕਿ ਸਾਡੇ ਬਸਤਰ ਵਿੱਚ ਇੱਕ  ਅਨੋਖਾ ਓਲੰਪਿਕ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਇਆ ਹੈ। ਜੀ ਹਾਂ ਪਹਿਲੀ ਵਾਰ ਹੋਏ ਬਸਤਰ ਓਲੰਪਿਕ ਨਾਲ ਬਸਤਰ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਨਵੀਂ ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਜਨਮ ਲੈ ਰਹੀ ਹੈ। ਮੇਰੇ ਲਈ ਇਹ ਬਹੁਤ ਹੀ ਖੁਸ਼ੀ ਦੀ ਗੱਲ ਹੈ ਕਿ ਬਸਤਰ ਓਲੰਪਿਕ ਦਾ ਸੁਪਨਾ ਸਾਕਾਰ ਹੋਇਆ ਹੈ। ਤੁਹਾਨੂੰ ਇਹ ਜਾਣ ਕੇ ਚੰਗਾ ਲੱਗੇਗਾ ਕਿ ਇਹ ਉਸ ਖੇਤਰ ਵਿੱਚ ਹੋ ਰਿਹਾ ਹੈ ਜੋ ਕਦੇ ਮਾਓਵਾਦੀ ਹਿੰਸਾ ਦਾ ਗਵਾਹ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਬਸਤਰ ਓਲੰਪਿਕ ਦਾ ਮਾਸਕੌਟ ਹੈ - ‘ਵਨ ਭੈਂਸਾ’ ਅਤੇ ‘ਪਹਾੜੀ ਮੈਨਾ’। ਇਸ ਵਿੱਚ ਬਸਤਰ ਦੀ ਸਮ੍ਰਿੱਧ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤੀ ਦੀ ਝਲਕ ਵਿਖਾਈ ਦਿੰਦੀ ਹੈ। ਇਸ ਬਸਤਰ ਖੇਡ ਮਹਾਕੁੰਭ ਦਾ ਮੂਲਮੰਤਰ ਹੈ –


‘ਕਰਸਾਯ ਤਾ ਬਸਤਰ ਬਰਸਾਯ ਤਾ ਬਸਤਰ’

ਯਾਨੀ ‘ਖੇਡੇਗਾ ਬਸਤਰ’ - ਜਿੱਤੇਗਾ ਬਸਤਰ’।


ਪਹਿਲੀ ਹੀ ਵਾਰ ਵਿੱਚ ਬਸਤਰ ਓਲੰਪਿਕ ਵਿੱਚ 7 ਜ਼ਿਲ੍ਹਿਆਂ ਦੇ ਇੱਕ  ਲੱਖ 65 ਹਜ਼ਾਰ ਖਿਡਾਰੀਆਂ ਨੇ ਹਿੱਸਾ ਲਿਆ ਹੈ। ਇਹ ਸਿਰਫ ਇੱਕ  ਅੰਕੜਾ ਨਹੀਂ ਹੈ - ਇਹ ਸਾਡੇ ਨੌਜਵਾਨਾਂ ਦੇ ਸੰਕਲਪ ਦੀ ਗੌਰਵਗਾਥਾ ਹੈ। ਐਥਲੈਟਿਕਸ, ਤੀਰਅੰਦਾਜ਼ੀ, ਬੈਡਮਿੰਟਨ, ਫੁੱਟਬਾਲ, ਹਾਕੀ, ਵੇਟ ਲਿਫਟਿੰਗ, ਕਰਾਟੇ, ਕਬੱਡੀ, ਖੋ-ਖੋ ਅਤੇ ਵਾਲੀਬਾਲ - ਹਰ ਖੇਡ ਵਿੱਚ ਸਾਡੇ ਨੌਜਵਾਨਾਂ ਨੇ ਆਪਣੀ ਪ੍ਰਤਿਭਾ ਦਾ ਝੰਡਾ ਲਹਿਰਾਇਆ ਹੈ। ਕਾਰੀ ਕਸ਼ਯਪ ਜੀ ਦੀ ਕਹਾਣੀ ਮੈਨੂੰ ਬਹੁਤ ਪ੍ਰੇਰਿਤ ਕਰਦੀ ਹੈ। ਇੱਕ  ਛੋਟੇ ਜਿਹੇ ਪਿੰਡ ਦੇ ਰਹਿਣ ਵਾਲੇ ਕਾਰੀ ਜੀ ਨੇ ਤੀਰਅੰਦਾਜ਼ੀ ਵਿੱਚ ਚਾਂਦੀ ਦਾ ਤਗਮਾ ਜਿੱਤਿਆ ਹੈ। ਉਹ ਕਹਿੰਦੀ ਹੈ - ਬਸਤਰ ਓਲੰਪਿਕ ਨੇ ਸਾਨੂੰ ਸਿਰਫ ਖੇਡ ਦਾ ਮੈਦਾਨ ਹੀ ਨਹੀਂ, ਜੀਵਨ ਵਿੱਚ ਅੱਗੇ ਵਧਣ ਦਾ ਮੌਕਾ ਦਿੱਤਾ ਹੈ। ਸੁਕਮਾ ਦੀ ਪਾਇਲ ਕਵਾਸੀ ਜੀ ਦੀ ਗੱਲ ਵੀ ਘੱਟ ਪ੍ਰੇਰਣਾਦਾਇਕ  ਨਹੀਂ ਹੈ। ਜੈਵਲਿਨ ਥ੍ਰੋਅ ਵਿੱਚ ਤਗਮਾ ਜਿੱਤਣ ਵਾਲੀ ਪਾਇਲ ਜੀ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ਕਿ ਅਨੁਸ਼ਾਸਨ ਅਤੇ ਸਖਤ ਮਿਹਨਤ ਨਾਲ ਕੋਈ ਵੀ ਟੀਚਾ ਅਸੰਭਵ ਨਹੀਂ ਹੈ। ਸੁਕਮਾ ਦੇ ਦੋਰਨਾਪਾਲ ਦੇ ਪੁਨੇਮ ਸੰਨਾ ਜੀ ਦੀ ਕਹਾਣੀ ਤਾਂ ਨਵੇਂ ਭਾਰਤ ਦੀ ਪ੍ਰੇਰਕ ਕਥਾ ਹੈ। ਇੱਕ  ਸਮੇਂ ਨਕਸਲੀ ਪ੍ਰਭਾਵ ਵਿੱਚ ਆਏ ਪੁਨੇਮ ਜੀ ਅੱਜ ਵੀਲ੍ਹਚੇਅਰ ’ਤੇ ਦੌੜ ਕੇ ਮੈਡਲ ਜਿੱਤ ਰਹੇ ਹਨ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਸਾਹਸ ਅਤੇ ਹੌਂਸਲਾ ਹਰ ਕਿਸੇ ਦੇ ਲਈ ਪ੍ਰੇਰਣਾ ਹੈ। ਕੋਡਾਗਾਂਵ ਦੇ ਤੀਰਅੰਦਾਜ਼ ਰੰਜੂ ਸੋਰੀ ਜੀ ਨੂੰ ‘ਬਸਤਰ ਯੂਥ ਆਈਕਨ’ ਚੁਣਿਆ ਗਿਆ ਹੈ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਮੰਨਣਾ ਹੈ - ਬਸਤਰ ਓਲੰਪਿਕ ਦੂਰ-ਦੁਰਾਡੇ ਦੇ ਨੌਜਵਾਨਾਂ ਨੂੰ ਰਾਸ਼ਟਰੀ ਮੰਚ ਤੱਕ ਪਹੁੰਚਾਉਣ ਦਾ ਮੌਕਾ ਦੇ ਰਿਹਾ ਹੈ।
ਸਾਥੀਓ, ਬਸਤਰ ਓਲੰਪਿਕ ਸਿਰਫ ਇੱਕ  ਖੇਡ ਆਯੋਜਨ ਨਹੀਂ ਹੈ। ਇਹ ਇੱਕ  ਅਜਿਹਾ ਮੰਚ ਹੈ, ਜਿੱਥੇ ਵਿਕਾਸ ਅਤੇ ਖੇਡ ਦਾ ਸੰਗਮ ਹੋ ਰਿਹਾ ਹੈ, ਜਿੱਥੇ ਸਾਡੇ ਨੌਜਵਾਨ ਆਪਣੀ ਪ੍ਰਤਿਭਾ ਨੂੰ ਦਿਖਾ ਰਹੇ ਹਨ ਅਤੇ ਇੱਕ  ਨਵੇਂ ਭਾਰਤ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਰ ਰਹੇ ਹਨ। ਮੈਂ ਤੁਹਾਨੂੰ ਸਾਰਿਆਂ ਨੂੰ ਬੇਨਤੀ ਕਰਦਾ ਹਾਂ -  ਆਪਣੇ ਖੇਤਰ ਵਿੱਚ ਅਜਿਹੇ ਖੇਡ ਆਯੋਜਨਾਂ ਨੂੰ ਉਤਸ਼ਾਹਿਤ ਕਰੋ।


- #ਖੇਲੇਗਾ ਭਾਰਤ, ਜੀਤੇਗਾ ਭਾਰਤ ਦੇ ਨਾਲ ਆਪਣੇ ਖੇਤਰ ਦੀਆਂ ਖੇਡ ਸ਼ਖਸੀਅਤਾਂ ਦੀਆਂ ਕਹਾਣੀਆਂ ਸਾਂਝੀਆਂ ਕਰੋ।

- ਸਥਾਨਕ ਖੇਡ ਸ਼ਖਸੀਅਤਾਂ ਨੂੰ ਅੱਗੇ ਵਧਣ ਦਾ ਮੌਕਾ ਦਿਓ।

ਯਾਦ ਰੱਖੋ, ਖੇਡ ਨਾਲ ਨਾ ਸਿਰਫ ਸਰੀਰਕ ਵਿਕਾਸ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਸਗੋਂ ਇਹ ਸਪੋਰਟਸਮੈਨ ਸਪੀਰਿਟ ਨਾਲ ਸਮਾਜ ਨੂੰ ਜੋੜਨ ਦਾ ਇੱਕ  ਸਸ਼ਕਤ ਮਾਧਿਅਮ ਹੈ ਤਾਂ ਖੂਬ ਖੇਡੋ - ਖੂਬ ਖਿੜ੍ਹੋ।


ਮੇਰੇ ਪਿਆਰੇ ਦੇਸ਼ਵਾਸੀਓ, ਭਾਰਤ ਦੀਆਂ ਦੋ ਵੱਡੀਆਂ ਪ੍ਰਾਪਤੀਆਂ ਅੱਜ ਵਿਸ਼ਵ ਦਾ ਧਿਆਨ ਆਕਰਸ਼ਿਤ ਕਰ ਰਹੀਆਂ ਹਨ। ਇਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਸੁਣ ਕੇ ਤੁਹਾਨੂੰ ਵੀ ਮਾਣ ਮਹਿਸੂਸ ਹੋਵੇਗਾ। ਇਹ ਦੋਵੇਂ ਸਫਲਤਾਵਾਂ ਸਿਹਤ ਦੇ ਖੇਤਰ ਵਿੱਚ ਮਿਲੀਆਂ ਹਨ। ਪਹਿਲੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਹੈ - ਮਲੇਰੀਆ ਨਾਲ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ। ਮਲੇਰੀਆ ਦੀ ਬਿਮਾਰੀ 4 ਹਜ਼ਾਰ ਸਾਲਾਂ ਤੋਂ ਮਨੁੱਖਤਾ ਦੇ ਲਈ ਇੱਕ  ਵੱਡੀ ਚੁਣੌਤੀ ਰਹੀ ਹੈ। ਆਜ਼ਾਦੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਵੀ ਇਹ ਸਾਡੀਆਂ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡੀਆਂ ਸਿਹਤ ਚੁਣੌਤੀਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਇੱਕ  ਸੀ। ਇੱਕ  ਮਹੀਨੇ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਪੰਜ ਸਾਲ ਤੱਕ ਦੇ ਬੱਚਿਆਂ ਦੀ ਜਾਨ ਲਾਣ ਵਾਲੀਆਂ ਸਾਰੀਆਂ ਅਛੂਤ ਦੀਆਂ ਬਿਮਾਰੀਆਂ ਵਿੱਚ ਮਲੇਰੀਏ ਦਾ ਤੀਸਰਾ ਸਥਾਨ ਹੈ। ਅੱਜ ਮੈਂ ਤਸੱਲੀ ਨਾਲ ਕਹਿ ਸਕਦਾ ਹਾਂ ਕਿ ਦੇਸ਼ਵਾਸੀਆਂ ਨੇ ਮਿਲ ਕੇ ਇਸ ਚੁਣੌਤੀ ਦਾ ਮਜ਼ਬੂਤੀ ਨਾਲ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕੀਤਾ ਹੈ। ਵਿਸ਼ਵ ਸਿਹਤ ਸੰਗਠਨ - WHO  ਦੀ ਰਿਪੋਰਟ ਕਹਿੰਦੀ ਹੈ - ‘ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ 2015 ਤੋਂ 2023 ਦੇ ਵਿਚਕਾਰ ਮਲੇਰੀਆ ਦੇ ਮਾਮਲਿਆਂ ਅਤੇ ਇਸ ਨਾਲ ਹੋਣ ਵਾਲੀਆਂ ਮੌਤਾਂ ਵਿੱਚ 80 ਫੀਸਦੀ ਦੀ ਕਮੀ ਆਈ ਹੈ।’ ਇਹ ਕੋਈ ਛੋਟੀ ਉਪਲਬਧੀ ਨਹੀਂ ਹੈ। ਸਭ ਤੋਂ ਚੰਗੀ ਗੱਲ ਇਹ ਹੈ, ਇਹ ਸਫਲਤਾ ਜਨ-ਜਨ ਦੀ ਭਾਗੀਦਾਰੀ ਨਾਲ ਮਿਲੀ ਹੈ। ਭਾਰਤ ਦੇ ਕੋਨੇ-ਕੋਨੇ ਤੋਂ, ਹਰ ਜ਼ਿਲ੍ਹੇ ਤੋਂ ਹਰ ਕੋਈ ਇਸ ਮੁਹਿੰਮ ਦਾ ਹਿੱਸਾ ਬਣਿਆ ਹੈ। ਅਸਮ ਵਿੱਚ ਜੋਰਹਾਟ ਦੇ ਚਾਹ ਦੇ ਬਾਗਾਂ ਵਿੱਚ ਮਲੇਰੀਆ 4 ਸਾਲ ਪਹਿਲਾਂ ਤੱਕ ਲੋਕਾਂ ਵਿੱਚ ਚਿੰਤਾ ਦੀ ਇੱਕ  ਵੱਡੀ ਵਜ੍ਹਾ ਬਣਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ। ਲੇਕਿਨ ਜਦੋਂ ਇਸ ਦੇ ਨਿਵਾਰਨ ਦੇ ਲਈ ਚਾਹ ਦੇ ਬਾਗਾਂ ਵਿੱਚ ਰਹਿਣ ਵਾਲੇ ਇਕਜੁੱਟ ਹੋਏ ਤਾਂ ਇਸ ਵਿੱਚ ਕਾਫੀ ਹੱਦ ਤੱਕ ਸਫਲਤਾ ਮਿਲਣ ਲਗੀ। ਆਪਣੇ ਇਸ ਯਤਨ ਵਿੱਚ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਟੈਕਨੋਲੋਜੀ ਦੇ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਸੋਸ਼ਲ ਮੀਡੀਆ ਦਾ ਵੀ ਭਰਪੂਰ ਇਸਤੇਮਾਲ ਕੀਤਾ ਹੈ। ਇਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹਰਿਆਣਾ ਦੇ ਕੁਰੂਕਸ਼ੇਤਰ ਜ਼ਿਲ੍ਹੇ ਨੇ ਮਲੇਰੀਆ ’ਤੇ ਕਾਬੂ ਪਾਉਣ ਦੇ ਲਈ ਬੜਾ ਚੰਗਾ ਮਾਡਲ ਪੇਸ਼ ਕੀਤਾ। ਉੱਥੇ ਮਲੇਰੀਆ ਦੀ ਨਿਗਰਾਨੀ ਦੇ ਲਈ ਜਨਭਾਗੀਦਾਰੀ ਕਾਫੀ ਸਫਲ ਰਹੀ। ਨੁੱਕੜ ਨਾਟਕ ਅਤੇ ਰੇਡੀਓ ਦੇ ਜ਼ਰੀਏ ਅਜਿਹੇ ਸੰਦੇਸ਼ਾਂ ’ਤੇ ਜ਼ੋਰ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ, ਜਿਸ ਨਾਲ ਮੱਛਰਾਂ ਦੀ ਬ੍ਰੀਡਿੰਗ ਘੱਟ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਕਾਫੀ ਮਦਦ ਮਿਲੀ। ਦੇਸ਼ ਵਿੱਚ ਅਜਿਹੇ ਯਤਨਾਂ ਨਾਲ ਹੀ ਅਸੀਂ ਮਲੇਰੀਆ ਦੇ ਖਿਲਾਫ ਜੰਗ ਨੂੰ ਹੋਰ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਅੱਗੇ ਵਧਾ ਸਕੇ ਹਾਂ।


ਸਾਥੀਓ, ਆਪਣੀ ਜਾਗਰੂਕਤਾ ਅਤੇ ਸੰਕਲਪ ਸ਼ਕਤੀ ਨਾਲ ਅਸੀਂ ਕੀ ਕੁਝ ਹਾਸਲ ਕਰ ਸਕਦੇ ਹਾਂ, ਇਸ ਦੀ ਦੂਸਰਾ ਉਦਾਹਰਣ ਹੈ ਕੈਂਸਰ ਨਾਲ ਲੜਾਈ। ਦੁਨੀਆ  ਦੇ ਮਸ਼ਹੂਰ Medical Journal Lancet ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਵਾਕਿਆ ਹੀ ਬਹੁਤ ਉਮੀਦ ਵਧਾਉਣ ਵਾਲਾ ਹੈ। ਇਸ ਜਨਰਲ ਦੇ ਮੁਤਾਬਕ ਹੁਣ ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਸਮੇਂ ’ਤੇ ਕੈਂਸਰ ਦਾ ਇਲਾਜ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਣ ਦੀ ਸੰਭਾਵਨਾ ਕਾਫੀ ਵਧ ਗਈ ਹੈ। ਸਮੇਂ ’ਤੇ ਇਲਾਜ ਦਾ ਮਤਲਬ ਹੈ - ਕੈਂਸਰ ਦੇ ਮਰੀਜ਼ ਦਾ ਇਲਾਜ 30 ਦਿਨਾਂ ਦੇ ਅੰਦਰ ਹੀ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਜਾਣਾ ਅਤੇ ਇਸ ਵਿੱਚ ਵੱਡੀ ਭੂਮਿਕਾ ਨਿਭਾਈ ਹੈ - ‘ਆਯੁਸ਼ਮਾਨ ਭਾਰਤ ਯੋਜਨਾ’ ਨੇ। ਇਸ ਯੋਜਨਾ ਦੀ ਵਜ੍ਹਾ ਨਾਲ ਕੈਂਸਰ ਦੇ 90 ਫੀਸਦੀ ਮਰੀਜ਼ ਸਮੇਂ ’ਤੇ ਆਪਣਾ ਇਲਾਜ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰਵਾ ਸਕੇ ਹਨ। ਅਜਿਹਾ ਇਸ ਲਈ ਹੋਇਆ, ਕਿਉਂਕਿ ਪਹਿਲਾਂ ਪੈਸਿਆਂ ਦੀ ਕਮੀ ਨਾਲ ਗਰੀਬ ਮਰੀਜ਼ ਕੈਂਸਰ ਦੀ ਜਾਂਚ ਵਿੱਚ, ਉਸ ਦੇ ਇਲਾਜ ਤੋਂ ਬਚਦੇ ਸਨ। ਹੁਣ ‘ਆਯੁਸ਼ਮਾਨ ਭਾਰਤ ਯੋਜਨਾ’ ਉਨਾਂ ਦੇ ਲਈ ਇੱਕ  ਵੱਡਾ ਸਹਾਰਾ ਬਣੀ ਹੈ। ਹੁਣ ਉਹ ਅੱਗੇ ਵਧ ਕੇ ਆਪਣਾ ਇਲਾਜ ਕਰਵਾਉਣ ਦੇ ਲਈ ਆ ਰਹੇ ਹਨ। ‘ਆਯੁਸ਼ਮਾਨ ਭਾਰਤ ਯੋਜਨਾ’ ਨੇ ਕੈਂਸਰ ਦੇ ਇਲਾਜ ਵਿੱਚ ਆਉਣ ਵਾਲੀ ਪੈਸਿਆਂ ਦੀ ਪ੍ਰੇਸ਼ਾਨੀ ਨੂੰ ਕਾਫੀ ਹੱਦ ਤੱਕ ਘੱਟ ਕੀਤਾ ਹੈ। ਚੰਗਾ ਇਹ ਵੀ ਹੈ ਕਿ ਅੱਜ ਸਮੇਂ ’ਤੇ ਕੈਂਸਰ ਦੇ ਇਲਾਜ ਨੂੰ ਲੈ ਕੇ ਲੋਕ ਪਹਿਲਾਂ ਤੋਂ ਕਿਤੇ ਜ਼ਿਆਦਾ ਜਾਗਰੂਕ ਹੋਏ ਹਨ। ਇਹ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਜਿੰਨੀ ਸਾਡੇ ਹੈਲਥ ਕੇਅਰ ਸਿਸਟਮ ਦੀ ਹੈ, ਡਾਕਟਰਾਂ-ਨਰਸਾਂ ਅਤੇ ਟੈਕਨੀਕਲ ਸਟਾਫ ਦੀ ਹੈ, ਓਨੀ ਹੀ ਤੁਹਾਡੀ, ਸਾਰੇ ਮੇਰੇ ਨਾਗਰਿਕ ਭੈਣ-ਭਰਾਵਾਂ ਦੀ ਵੀ ਹੈ। ਸਭ ਦੇ ਯਤਨਾਂ ਨਾਲ ਕੈਂਸਰ ਨੂੰ ਹਰਾਉਣ ਦਾ ਸੰਕਲਪ ਹੋਰ ਮਜਬੂਤ ਹੋਇਆ ਹੈ। ਇਸ ਸਫਲਤਾ ਦਾ ਸਿਹਰਾ ਉਨ੍ਹਾਂ ਸਾਰਿਆਂ ਨੂੰ ਜਾਂਦਾ ਹੈ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਜਾਗਰੂਕਤਾ ਫੈਲਾਉਣ ਵਿੱਚ ਆਪਣਾ ਮਹੱਤਵਪੂਰਣ ਯੋਗਦਾਨ ਦਿੱਤਾ ਹੈ। 

ਕੈਂਸਰ ਨਾਲ ਮੁਕਾਬਲੇ ਲਈ ਇੱਕ  ਹੀ ਮੰਤਰ ਹੈ - Awareness, Action ਅਤੇ Assurance. Awareness ਯਾਨੀ ਕੈਂਸਰ ਅਤੇ ਇਸ ਦੇ ਲੱਛਣਾਂ ਦੇ ਪ੍ਰਤੀ ਜਾਗਰੂਕਤਾ, Action  ਯਾਨੀ ਸਮੇਂ ’ਤੇ ਜਾਂਚ ਅਤੇ ਇਲਾਜ। Assurance ਯਾਨੀ ਮਰੀਜ਼ਾਂ ਦੇ ਲਈ ਹਰ ਮਦਦ ਉਪਲਬਧ ਹੋਣ ਦਾ ਵਿਸ਼ਵਾਸ। ਆਓ, ਅਸੀਂ ਸਾਰੇ ਮਿਲ ਕੇ ਕੈਂਸਰ ਦੇ ਖਿਲਾਫ ਲੜਾਈ ਨੂੰ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਅੱਗੇ ਲੈ ਜਾਈਏ ਅਤੇ ਜ਼ਿਆਦਾ ਤੋਂ ਜ਼ਿਆਦਾ ਮਰੀਜ਼ਾਂ ਦੀ ਮਦਦ ਕਰੀਏ।


ਮੇਰੇ ਪਿਆਰੇ ਦੇਸ਼ਵਾਸੀਓ, ਅੱਜ ਮੈਂ ਤੁਹਾਨੂੰ ਓਡੀਸ਼ਾ ਦੇ ਕਾਲਾਹਾਂਡੀ ਦੇ ਇੱਕ  ਅਜਿਹੇ ਯਤਨ ਦੀ ਗੱਲ ਦੱਸਣਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਹੈ ਜੋ ਘੱਟ ਪਾਣੀ ਅਤੇ ਘੱਟ ਸਾਧਨਾਂ ਦੇ ਬਾਵਜੂਦ ਸਫਲਤਾ ਦੀ ਨਵੀਂ ਗਾਥਾ ਲਿਖ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਇਹ ਹੈ ਕਾਲਾਹਾਂਡੀ ਦੀ ‘ਸਬਜੀ ਕ੍ਰਾਂਤੀ’। ਜਿੱਥੇ, ਕਦੇ ਕਿਸਾਨ ਪਲਾਇਨ ਕਰਨ ਨੂੰ ਮਜਬੂਰ ਸਨ, ਉੱਥੇ ਅੱਜ ਕਾਲਾਹਾਂਡੀ ਦਾ ਗੋਲਾਮੁੰਡਾ ਬਲਾਕ ਇੱਕ  ਵੈਜੀਟੇਬਲ ਹੱਬ ਬਣ ਗਿਆ ਹੈ। ਇਹ ਬਦਲਾਓ ਕਿਵੇਂ ਆਇਆ? ਇਸ ਦੀ ਸ਼ੁਰੂਆਤ ਸਿਰਫ 10 ਕਿਸਾਨਾਂ ਦੇ ਇੱਕ  ਛੋਟੇ ਜਿਹੇ ਸਮੂਹ ਤੋਂ ਹੋਈ। ਇਸ ਸਮੂਹ ਨੇ ਮਿਲ ਕੇ ਇੱਕ  FPO  - ‘ਕਿਸਾਨ ਉਤਪਾਦ ਸੰਘ’ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ। ਖੇਤੀ ਵਿੱਚ ਆਧੁਨਿਕ ਤਕਨੀਕ ਦਾ ਇਸਤੇਮਾਲ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ ਅਤੇ ਅੱਜ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਇਹ FPO  ਕਰੋੜਾਂ ਦਾ ਕਾਰੋਬਾਰ ਕਰ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਅੱਜ 200 ਤੋਂ ਜ਼ਿਆਦਾ ਕਿਸਾਨ ਇਸ FPO  ਨਾਲ ਜੁੜੇ ਹਨ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ 45 ਮਹਿਲਾ ਕਿਸਾਨ ਵੀ ਹਨ। ਇਹ ਲੋਕ ਮਿਲ ਕੇ 200 ਏਕੜ ਵਿੱਚ ਟਮਾਟਰ ਦੀ ਖੇਤੀ ਕਰ ਰਹੇ ਹਨ। 150 ਏਕੜ ਵਿੱਚ ਕਰੇਲੇ ਦਾ ਉਤਪਾਦਨ ਕਰ ਰਹੇ ਹਨ। ਹੁਣ ਇਸ FPO  ਦਾ ਸਲਾਨਾ ਟਰਨਓਵਰ ਵੀ ਵਧ ਕੇ ਡੇਢ ਕਰੋੜ ਤੋਂ ਜ਼ਿਆਦਾ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈ। ਅੱਜ ਕਾਲਾਹਾਂਡੀ ਦੀਆਂ ਸਬਜ਼ੀਆਂ ਨਾ ਸਿਰਫ ਓਡੀਸ਼ਾ ਦੇ ਵਿਭਿੰਨ ਜ਼ਿਲ੍ਹਿਆਂ ਵਿੱਚ, ਸਗੋਂ ਦੂਸਰੇ ਰਾਜਾਂ ਵਿੱਚ ਵੀ ਪਹੁੰਚ ਰਹੀਆਂ ਹਨ ਅਤੇ ਉੱਥੋਂ ਦਾ ਕਿਸਾਨ ਹੁਣ ਆਲੂ ਅਤੇ ਪਿਆਜ਼ ਦੀ ਖੇਤੀ ਦੀਆਂ ਨਵੀਆਂ ਤਕਨੀਕਾਂ ਸਿੱਖ ਰਿਹਾ ਹੈ।


ਸਾਥੀਓ, ਕਾਲਾਹਾਂਡੀ ਦੀ ਇਹ ਸਫਲਤਾ ਸਾਨੂੰ ਸਿਖਾਉਂਦੀ ਹੈ ਕਿ ਸੰਕਲਪ ਸ਼ਕਤੀ ਅਤੇ ਸਮੂਹਿਕ ਯਤਨ ਨਾਲ ਕੀ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ ਜਾ ਸਕਦਾ। ਮੈਂ ਤੁਹਾਨੂੰ ਸਾਰਿਆਂ ਨੂੰ ਬੇਨਤੀ ਕਰਦਾ ਹਾਂ ਕਿ –


* ਆਪਣੇ ਖੇਤਰ ਵਿੱਚ FPO  ਨੂੰ ਉਤਸ਼ਾਹਿਤ ਕਰੋ।

* ਕਿਸਾਨ ਉਤਪਾਦਕ ਸੰਗਠਨਾਂ ਨਾਲ ਜੁੜੋ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਮਜ਼ਬੂਤ ਬਣਾਓ।


ਯਾਦ ਰੱਖੋ - ਛੋਟੀ ਸ਼ੁਰੂਆਤ ਤੋਂ ਹੀ ਵੱਡੇ ਬਦਲਾਓ ਸੰਭਵ ਹਨ। ਸਾਨੂੰ ਬਸ ਦ੍ਰਿੜ ਸੰਕਲਪ ਅਤੇ ਟੀਮ ਭਾਵਨਾ ਦੀ ਜ਼ਰੂਰਤ ਹੈ।


ਸਾਥੀਓ, ਅੱਜ ਦੀ ‘ਮਨ ਕੀ ਬਾਤ’ ਵਿੱਚ ਅਸੀਂ ਸੁਣਿਆ ਕਿ ਕਿਵੇਂ ਸਾਡਾ ਭਾਰਤ ਵਿਭਿੰਨਤਾ ਵਿੱਚ ਏਕਤਾ ਦੇ ਨਾਲ ਅੱਗੇ ਵਧ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਭਾਵੇਂ ਉਹ ਖੇਡ ਦਾ ਮੈਦਾਨ ਹੋਵੇ ਜਾਂ ਵਿਗਿਆਨ ਦਾ ਖੇਤਰ, ਸਿਹਤ ਹੋਵੇ ਜਾਂ ਸਿੱਖਿਆ ਹਰ ਖੇਤਰ ਵਿੱਚ ਭਾਰਤ ਨਵੀਆਂ ਉਚਾਈਆਂ ਨੂੰ ਛੂਹ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਅਸੀਂ ਇੱਕ  ਪਰਿਵਾਰ ਦੇ ਵਾਂਗ ਮਿਲ ਕੇ ਹਰ ਚੁਣੌਤੀ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾ ਕੀਤਾ ਅਤੇ ਨਵੀਆਂ ਸਫਲਤਾਵਾਂ ਹਾਸਲ ਕੀਤੀਆਂ। 2014 ਤੋਂ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਏ ‘ਮਨ ਕੀ ਬਾਤ’ ਦੇ 116 episodes ਵਿੱਚ ਮੈਂ ਵੇਖਿਆ ਹੈ ਕਿ ‘ਮਨ ਕੀ ਬਾਤ’ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਸਮੂਹਿਕ ਸ਼ਕਤੀ ਦਾ ਇੱਕ  ਜਿਉਂਦਾ-ਜਾਗਦਾ ਦਸਤਾਵੇਜ਼ ਬਣ ਗਿਆ ਹੈ। ਤੁਸੀਂ ਸਾਰਿਆਂ ਨੇ ਇਸ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ ਨੂੰ ਅਪਣਾਇਆ, ਆਪਣਾ ਬਣਾਇਆ। ਹਰ ਮਹੀਨੇ ਤੁਸੀਂ ਆਪਣੇ ਵਿਚਾਰਾਂ ਅਤੇ ਯਤਨਾਂ ਨੂੰ ਸਾਂਝਾ ਕੀਤਾ। ਕਦੇ ਕਿਸੇ ਯੰਗ ਇਨੋਵੇਟਰ ਦੇ ਆਈਡੀਆ ਨੇ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਕੀਤਾ ਤਾਂ ਕਿਸੇ ਬੇਟੀ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਨੇ ਮਾਣ ਨਾਲ ਭਰ ਦਿੱਤਾ। ਇਹ ਤੁਹਾਡੇ ਸਾਰਿਆਂ ਦੀ ਭਾਗੀਦਾਰੀ ਹੈ ਜੋ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਕੋਨੇ-ਕੋਨੇ ਤੋਂ positive energy ਨੂੰ ਇਕੱਠਿਆਂ ਲਿਆਉਂਦੀ ਹੈ। ‘ਮਨ ਕੀ ਬਾਤ’ ਇਸੇ positive energy ਦੇ ਵਾਧੇ ਦਾ ਮੰਚ ਬਣ ਗਿਆ ਹੈ ਅਤੇ ਹੁਣ 2025 ਦਸਤਕ ਦੇ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਆਉਣ ਵਾਲੇ ਸਾਲ ਵਿੱਚ ‘ਮਨ ਕੀ ਬਾਤ’ ਦੇ ਮਾਧਿਅਮ ਨਾਲ ਅਸੀਂ ਹੋਰ ਵੀ ਪ੍ਰੇਰਕ ਯਤਨਾਂ ਨੂੰ ਸਾਂਝਾ ਕਰਾਂਗੇ। ਮੈਨੂੰ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਹੈ ਕਿ ਦੇਸ਼ਵਾਸੀਆਂ ਦੀ positive ਸੋਚ ਅਤੇ innovation ਦੀ ਭਾਵਨਾ ਨਾਲ ਭਾਰਤ ਨਵੀਆਂ ਉਚਾਈਆਂ ਨੂੰ ਛੂਹੇਗਾ। ਤੁਸੀਂ ਆਪਣੇ ਆਸ-ਪਾਸ ਦੇ ਅਨੋਖੇ ਯਤਨਾਂ ਨੂੰ #Mannkibaat ਦੇ ਨਾਲ ਸਾਂਝਾ ਕਰਦੇ ਰਹੋ। ਮੈਂ ਜਾਣਦਾ ਹਾਂ ਕਿ ਅਗਲੇ ਸਾਲ ਦੀ ਹਰ ‘ਮਨ ਕੀ ਬਾਤ’ ਵਿੱਚ ਸਾਡੇ ਕੋਲ ਇੱਕ -ਦੂਸਰੇ ਨਾਲ ਸਾਂਝਾ ਕਰਨ ਦੇ ਲਈ ਬਹੁਤ ਕੁਝ ਹੋਵੇਗਾ। ਤੁਹਾਨੂੰ ਸਾਰਿਆਂ ਨੂੰ 2025 ਦੀਆਂ ਢੇਰ ਸਾਰੀਆਂ ਸ਼ੁਭਕਾਮਨਾਵਾਂ। ਤੰਦਰੁਸਤ ਰਹੋ। ਖੁਸ਼ ਰਹੋ। ਫਿੱਟ ਇੰਡੀਆ ਮੂਵਮੈਂਟ ਵਿੱਚ ਤੁਸੀਂ ਵੀ ਜੁੜ ਜਾਓ, ਖੁਦ ਨੂੰ ਵੀ ਫਿੱਟ ਰੱਖੋ। ਜੀਵਨ ਵਿੱਚ ਤਰੱਕੀ ਕਰਦੇ ਰਹੋ। ਬਹੁਤ-ਬਹੁਤ ਧੰਨਵਾਦ।