The real strength of a democracy is at the grassroots levels: PM Modi

Published By : Admin | August 18, 2023 | 11:00 IST
The real strength of a democracy is at the grassroots levels: PM Modi
Within this five-year term, Panchayats should identify issues whose resolution involves effective Jan-Andolan: PM Modi
Optimum utilization of resources and the planning and convergence of various schemes is the way forward for Zila Panchayats to develop in totality: PM Modi
In decision-making there should be a bottoms-up approach towards suggestions and top-down approach towards guidance: PM Modi
Perspectives from the grassroots and firm grasp on it facilitate effective policy-making: PM Modi
Aspirational Districts today have become the symbols of District-led Development: PM Modi
PM Vishwakarma Yojana seeks to augment the skill development of the various artisans involved in age-old traditions: PM Modi
Today, the branding and shaping a new identity of each district is of paramount importance, which can be achieved through a product focused and product-led development: PM Modi

भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमान जेपी नड्डा जी और आज अलग-अलग राज्यों से गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, गोवा, दमन-दीव इस क्षेत्र के सभी जिला परिषद के अध्यक्ष यहां एकत्र आए हैं, बाकि भी अपने संगठन के प्रमुख लोग वहां हैं। भारतीय जनता पार्टी की जो मूलभूत शक्ति है, वो उसका कार्यकर्ता है। और कार्यकर्ता एक ऐसा पद है जो कभी भी एक्स नहीं होता है। वो जीवन भर हमारे साथ रहता है और हमारी एक विशेषता जनसंघ के काल से रही है। हमारे जो वरिष्ठजन रहे हैं, उन्होंने हमेशा अभ्यास वर्ग को बहुत ही महत्व दिया है। हम संगठन का काम करते थे, तब भी बार-बार ट्रेनिंग अभ्यास वर्क चलते रहते थे। क्योंकि हम संगठन में विश्वास करते हैं, हम संस्कारों में विश्वास करते हैं, हम समर्पण में विश्वास करते हैं और हम एक सामूहिकता के संस्कारों के साथ, सामूहिक जिम्मेवारी से आगे बढ़ें और जो जिम्मेवारी मिले इसके लिए निरंतर अपनी योग्यता बढ़ाते जाएं, अपना कौशल्य बढ़ाते जाएं। इतना ही नहीं हमारी ये परंपरा रही है कि जिस किसी के पास से अच्छा सीखने को मिलता है, वो जरूर सीखें। मुझे पक्का विश्वास है कि पंचायत व्यवस्था से जुड़े हुए आप सभी बंधू दो दिन तीन दिन साथ रहेंगें, तो अनेक लोगों से अनेक विषयों की चर्चाएं होंगी, अलग-अलग जिलों में समस्याओं के सामाधान के लिए नए-नए रास्ते खोजे गए होंगे। ये सारी चीजें जो सीखने को मिलती हैं, जो उद्बोधन के द्वारा सत्र में विषय रखते हैं, उस समय जीतना सीखने को मिलता है उससे ज्यादा हम जो INFORMALLY 2-3 दिन रहते हैं साथ में, इससे सीखने को मिलता है। और मैं तो चाहूंगा कि आप सबका अपना एक व्बाट्स एप ग्रुप बने और आप भी एक दूसरे के साथ लगातार संपर्क में रहें, अपने जिले में क्या नया हो रहा है, वो लोगों को बताएं। उनके जिले में क्या नया हो रहा है उसको जानें। रियल टाइम इन्फॉर्मेशन प्राप्त करने का प्रयास करें। आप देखें बहुत लाभ होगा। और हम जानते हैं कि लोकतंत्र की मजबूती शिखर पर जितनी है उससे ज्यादा नींव पर होती है। हमारी लोकतांत्रिक संस्थाओं की नींव जितनी मजबूत होगी, पल-पल लोकतंत्र को हम जीते होंगे, तो आप देखिए हम जनसमर्थन अधिक से अधिक प्राप्त करेंगे। हम नई बुलंदियों को प्राप्त करेंगे।

अब आप सबको पांच साल का एक कार्यकाल मिलता है। अब जो पांच साल का कार्यकाल मिलता है। वो क्या कभी आपने सोचा है बैठ करके, अपने साथियों के साथ, अपने जिले के जो गणमान्य लोग हैं, उनके साथ, या अपने सरकार के दफ्तर में जो बड़े अधिकारी होते हैं, उनके साथ बैठकर कि भई ये पांच साल में ऐसी कुछ चीजें हम तय करें जो हम जिले में परिपूर्ण करके रहेंगे। जरा आपने देखा होगा कि मैं जब 2014 में आया तो मैंने कहा कि मुझे टॉयलेट बनाने हैं। स्कूल में बच्चियों के लिए अलग टॉयलेट बना तो अब पूरी ताकत लगा दी। और एक विषय हाथ में लिया, पूरा किया, आप सब के सहयोग से किया। देश की सभी इकाइयों के सहयोग से किया। फिर विचार आया जन धन बैंक अकाउंट खोलने हैं। पूरी शक्ति लगा दी, धन बैंक अकाउंट खोलने में। यानि ऐसे मैं आपको सैकड़ों चीजें बता सकता हूं।

मेरा कहने का मतलब ये है कि आप अपने जिले में कौन से ऐसे विषय हैं जो आप हमेशा-हमेशा लोग याद करें कि भई उनके कालखंड में अपने जिले में ये-ये बहुत अच्छी चीजें हुई हैं। कुछ लोगों को क्या लगता है, जैसा मैंने देखा है कुछ गांव के प्रधान बन जाते हैं, उनको विचार आता है गांव के बाहर गेट बना देते हैं। मैं उस काम की बात नहीं कर रहा। मैं तो उस जनसामान्य से जुड़े काम, उनकी कठिनाइयां दूर हो, उनकी आवश्यकताएं पूरी हो, और उनका एक जनआंदोलन के रूप में काम कैसे हो। कुछ तो हमने साल भर में चार-पांच अवसर ऐसे निकालने चाहिए कि जिसमें सरकार के नेतृत्व में, पंचायत के नेतृत्व में पूरा जिला का जनसामान्य उससे जुड़ जाए। जैसे मान लीजिए, हम हर वर्ष वन महोत्सव करते हैं। ये वन महोत्सव सरकारी क्यों होना चाहिए भई। ये जन-जन का कैसे बने, उसके लिए दो महीने पहले मेहनत करनी चाहिए। एक-एक और हर कोई से…ये पेड़ जो है न ये आपको दत्तक लेना है। अब ये पेड़ को तीन साल तक आप ही को संभालना है, ये आपके परिवार के नाम पर रहेगा। आप देखिए, जनआंदोलन बना देंगे।

मान लीजिए हम, दुर्गा पूजा आती है या नवरात्रि आती है, बारिश के दिन समाप्त हो गए होते हैं। मान लीजिए हम तय करें कि भई 2 अक्टूबर गांधी जयंती है, 25 सितंबर पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती है, 11 अक्टूबर जयप्रकाश नारायण जी की जन्मजयंती है। चलिए उसमें से हम पांच दिन दस दिन पकड़ लें और पूरे जिले में ऐसा सफाई अभियान करें, ऐसा सफाई अभियान करें कि जब नवरात्रि हो, मां का स्वागत होना हो, एकदम से नया माहौल हो, और दिवाली से पहले-पहले तो पूरा, यानि बारिश के बाद जो छोटी-मोटी तकलीफें हुई हो उससे भी मुक्ति मिल जाए, हो सकता है। कहने का मेरा तात्पार्य ये है जो भी काम करें हम एक जनआंदोलन बनाकर करें।

अब जैसे शिक्षा का क्षेत्र है, हमें आग्रही बनना चाहिए कि स्कूल में जो माता-पिता की मीटिंग होती है, पैरेंट्स और गार्डियंस की जो मीटिंग होती है, उसमें कभी कंप्रोमाइज नहीं होने देने चाहिए। उस मीटिंग से मां-बाप को भी बच्चों के प्रति, स्कूल के प्रति एक लगाव बनता है, शिक्षा पर लगाव बनता है। मां-बाप का और परिवार से संपर्क आता है तो मां-बाप को भी पता चलता है कि बच्चों को स्कूल में इन-इन चीजों की प्राथमिकता है। तो घर में भी वैसा वातावरण बनता है। आपको अपने जिले के स्टैंडर्ड ऊपर ले जाने हैं।

आपको ऐसा सपना क्यों नहीं होना चाहिए कि आपके जिले के स्कूल से 10वीं में एक नंबर आए, आपके जिले के स्कूल से 12वीं के एक्जाम में नंबर वन पर आए। ऐसा विचार यानि खेल-कूद हो तो सबसे आगे कैसे रहे। वैक्सीनेशन करना है, सबसे आगे कैसे रहे। इंद्रधनुष योजना है, बच्चों का टीकाकरण करना है, आपका जिला कैसे आगे रहे। हर चीज को नेतृत्व देकरके अगर मिशनमोड में करते हैं तो आपकी ताकत भी कम लगती है, आपको परिणाम भी ज्यादा मिलता है। आप आइडेंटिफाई कीजिए।

दूसरा, सरकार की क्या समस्या रहती है कभी-कभी। बजट आएगा तो थोड़ा जरा दम से बोलने वाला व्यक्ति होगा तो उस दिशा में बजट चला जाता है। कुछ काम कर रहे हैं, अब देखिए, पहले 70 हजार करोड़ का अनुदान मिलता था, आज वो तीन लाख करोड़ से ज्यादा हो गया है। इतना बड़ा धन आपके हाथ में आया है। 30 हजार से ज्यादा नए जिला पंचायत के भवन बना चुके हैं हम। यानि आज संसाधनों के विषय में कठिनाई नहीं है, सवाल ये है क्या उसका कनवर्जेंस होता है क्या वरना क्या होगा, एक गांव में दस परिवारों को एक लाभ मिलेगा, फिर दस परिवार दूसरे गांव के होंगे, फिर तीसरे गांव के होंगे, एक गांव में समस्या लटकी पड़ी रहेगी। क्या मिलकर के हम तय करेंगे भई कि इस गांव में से तीन समस्याएं मुक्त कर देंगे। इस गांव को इस दो समस्याओं से मुक्त कर देंगे। अगर निर्माण कार्य करना है तो चलो भई पहले इस बार इस 40 गांव में पूरा काम कर लेंगे, अगले साल वो 40 गांव करेंगे। जब तक आप प्लान कर के, कनवर्जेंस कर के, और पूरा परिणाम लाना है, जब मैं गुजरात में मुख्यमंत्री था तो मैंने एक कार्यशैली डेवलप की, मुझे बड़ा फायदा हुआ। वो कार्यशैली क्या थी.. मैं हर वर्ष एक विषय तय करता था। जैसे मान लीजिए मैंने तय किया कि गर्ल चाइल्ड एजुकेशन, बेटियों की शिक्षा, तो सरकार में पुलिस विभाग होगा तो उसको भी गर्ल चाइल्ड के लिए काम करना पड़ेगा, होमगार्ड होगा उसको भी गर्ल चाइल्ड के लिए काम करना होगा, अस्पताल का डॉक्टर होगा उसको भी गर्ल चाइल्ड के लिए काम करना होगा। अपने काम के उपरांत कुछ समय इसके लिए देना होगा। और पूरी शक्ति लगती थी, पूरा साल भर गर्ल चाइल्ड एजुकेशन का बहुत बड़ी सफलता मिली। कभी अर्बन डेवलपमेंट इयर मनाया। क्या आप अपने जिला, जिला की कई … होती है। साल में तीन ऐसे विषय तय कर लें, और हर विषय के लिए चार महीने दें, कि भाई ये चार महीने डिपार्टमेंट के सब काम तो करेंगे ही, लेकिन एक काम ये करेंगे, वो सब मिलकर के करेंगे। और चार महीने के जब आखिरी सप्ताह हो, तो बहुत बड़ा मास मुवमेंट बना कर के उस काम को सफल कर के रहेंगे। ऐसा कर सकते हैं क्या? आप देखिए अगर साल में तीन करते हैं तो पांच साल में 15 ऐसी समस्याओं का समाधार हंसते-हंसते आप कर सकते हैं। और फिर ये करने से जिले की टीम बन जाती है, विभाग जो साइलोज में होते हैं न वो भी बाहर आ जाते हैं। और जब पूरी टीम बन जाती है, टीम की शक्ति बहुत होती है साथियों, आपने भी देखा होगा.. आप जब अकेले खाना खाने के लिए बैठे हैं तो खाने की एक मात्रा रहती है, लेकिन चार-पांच दोस्तों के साथ खाना खा रहे हैं… कोई आग्रह नहीं कर रहा है, कोई रोटी परोस नहीं रहा है, फिर भी आप देखना एक-आध रोटी ज्यादा चली जाएगी, मिठाई होगी तो थोड़ी मिठाई भी ज्यादा पेट में चली जाएगी क्यों ? क्योंकि सामूहिकता का एक आनंद होता है। जितना हम सामूहिकता से काम करते हैं शक्ति अनेक गुना बढ़ जाती है और इसलिए मेरा आग्रह है कि आप इस दिशा में सोचिए।


दूसरी बात.. आखिरकार हम संगठन से आए हुए लोग हैं। हमारे संगठन की अपनी एक ताकत है। संगठन के द्वारा नीचे से जानकारी ऊपर आनी चाहिए और ऊपर निर्णय कर के मार्गदर्शन नीचे की तरफ जाना चाहिए। ये कब होगा? आप बैठकर के विचार-विमर्श करेंगे तो होगा। एक-एक को सैकड़ों को मिलते ही रहेंगे तो अच्छा है मिलना चाहिए, लेकिन सामूहिक बैठ के चर्चा नहीं करेंगे अपने क्षेत्र के लिए, अपने लोगों के प्रश्नों के तो पूरा चित्र आपके सामने नहीं आएगा। मेरा तो आपको सुझाव है कि जिला के जो अध्यक्ष हैं, जिला के बीजेपी के जो अध्यक्ष होंगे, जिला के महासचिव होंगे, ये पूरी टोली महीने में दो बार अलग-अलग जिला परिषद की जो सीट होती है, वहां के सौ-डेढ़ सौ कार्यकर्ताओं के साथ टिफिन बैठक करें। दो घंटे जिला परिषद से जुड़े सवालों की चर्चा करें। जिला परिषद की आपको जितनी जानकारी होगी न, ग्रासरूट लेवेल की परफेक्ट जानकारी होगी उससे अफसरों से आप अच्छी तरह काम ले पाएंगे। मेरा एक अनुभव रहा है, चूंकि संगठन का व्यक्ति रहा इस कारण राज्य में मुझे ग्रास रूट के इनफॉरमेशन बहुत मिलती थी जल्दी मिलती थी। और मैंने उसे वेरिफाई करने का एक मैकेनिज्म भी बना लिया था और वो बात जब अफसरों के सामने रखता था तो अफसरों के लिए आश्चर्य होता था कि साहब ये जानकारी तो हमारे पास आई ही नहीं, साहब के पास कैसे आ गई, तो हमेशा वो एलर्ट रहते थे, बहुत अच्छा परिणाम देते थे। आपको भी अपने जिले की हर जानकारी लगातार मिलती रहे वो आपकी एडमिनिस्ट्रेटर के नाते जो परफॉर्मेंस है, उसको बहुत बढ़ा सकते हैं। और इसलिए आपसे मेरा आग्रह है कि आप उस दिशा में प्रयास करें।

कुछ चीजें ऐसी हैं, जिसे भारत सरकार ने तय की है। उसको हम कैसे इमप्लीमेंट करें, जैसे हर जिले में कम से कम 75 अमृत सरोवर बनाने हैं। क्या जैसे चाहिए वैसे अमृत सरोवर बने हैं क्या? गांव के लोग गर्व करें, हां, शानदार काम हो रहा है। दूसरे गांव को भी लगे कि 75 बने है, तो हमारे जिले में तो 700 गांव है। 700 गांवों में भी तालाब बनना चाहिए। चलो, हमारे गांव में बनाते हैं। कितने गांव वालों को प्रेरणा मिली हमारे अमृत सरोवर को देखकर के ? आजादी के अमृत महोत्सव की सबसे बड़ी भेंट-सौगात। और आप अपने कार्यकाल में हर गांव में अगर एक बहुत शानदार और पानी भरे और काफी गहरा हो ऐसा एक तालाब भी बना देते हैं तो आपको लंबे अर्से तक, आज भी आप देखिए कई जगह हम लाखा बनजारा का नाम सुनते हैं। पता नहीं वो किस समय हुआ। उसका कार्यकाल क्या था। उसके गांव का कुछ पता नहीं, लेकिन लाखा बनजारा ने तालाब बनाया था। लाखा बनजारा ने ये काम किया था। आज भी लोग याद करते हैं। आपको नहीं लगता है कि जनसामान्य की भलाई के लिए ऐसा कुछ काम करें कि हमेशा लोग याद करें। अरे भाई, जिला पंचायत में वो सज्जन थे न तब हमारे गांव में तालाब बना। हमारे गांव की कितनी समस्याओं का समाधान हो गया। हो सकता है। मनरेगा का पैसा… आप तय कीजिए कि मनरेगा का पैसा कुछ न कुछ निर्माण कार्य के लिए लगना चाहिए। चाहे वो तालाब के लिए हो, चाहे गांव की सड़क बन रही है तो अर्थवर्क करने के लिए हो, चाहे पौधा लगाने का काम हो, वृक्षारोपण का काम हो, चाहे स्वच्छता का काम हो। मानरेगा सिर्फ गड्ढे खोदो, पैसा जाए, जिसको रोजगार चाहिए, उसको रोजगार देना हमारी प्राथमिकता है। लेकिन उस पैसे से कुछ न कुछ निर्माण कार्य होना चाहिए। आप ये काम तय कर सकते हैं। हमारे गांव में अब मनरेगा से छह महीने में दो काम पूरे करने हैं। मनरेगा का काम वहीं चलेगा। पैसा भारत सरकार देती है। निर्माण कार्य आपके गांव में हो जाएगा। आपके जिले में हो जाएगा। आप धन का, समय का, शक्ति का, संसाधन का इतना बढ़िया उपयोग कर सकते हो। हमें मालूम है गुजरात जैसे राज्य में तो आम तौर पर जनवारी आते-आते तालाब सूख जाते हैं। हमारे यहां पानी की दिक्कत है। तो क्या मनरेगा को जनवरी, फरवरी, मार्च, अप्रैल में, जब भी पानी सूख जाए उन तालाबों को फिर से गहरा करना, मिट्टी निकालना, और ज्यादा पानी आए, उसके लिए जितने रास्ते हैं उसकी सफाई करना, ये काम कर सकते हैं। अब गुजरात में नर्मदा कैनाल का काम हुआ है। महाराष्ट्र में भी जल संचय का काम देवेंद्र फडणवीस जी के समय अच्छा चला है। मध्य प्रदेश में भी उस दिशा में काम हुआ है। इन सारे कामों को लेकर के क्या हम अभी से, कैनल तो बनी है, लेकिन उसमें मिट्टी भर गई, कूड़ा-कचरा भर गया तो पानी आगे जाता ही नहीं है। हम आखिरी बिन्दु तक पानी पहुंचे, मनरेगा की मेहनत से उन कैनालों की सफाई करवा देंगे। दिवाली के बाद बड़ी मात्रा में वो काम करेंगे। यानी हम तय करें कि मेरे जिले के अंदर मुझे जो काम करने हैं। शिक्षा है, स्वास्थ्य है ऐसे महत्वपूर्ण काम पूरी ताकत से होने चाहिए। आप में से कई जिले होंगे, जो एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट होंगे। अनुभव से ये देखा है कि आकांक्षी जिलों में एक नई ऊर्जा आई है। अफसरों को भी लगता है कि आकांक्षी जिलों को मुझे समर्थ्य जिलों में परिवर्तित करना है। हर मिनट कंप्टीशन चलता है। देश के सौ-सवा सौ जिलों के बीच में लगातार कंप्टीशन चलते हैं और हर कोई आगे आने की कोशिश करता है। उसके कारण सुधार भी हो रहा है। जहां पर हॉस्पिटल डिलिवरी, यानी हमारी प्रसूता माताएं ज्यादातर डिलिवर घर में करती थीं और दाइयों से करावा लेती थीं। कभी बच्चा मर जाता था। कभी मां मर जाती थी। अब एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट के अंदर इस्टीट्यूशनल डिलिवरी करेंगे। माताओं की मृत्यु नहीं होने देंगे। बच्चों की मृत्यु नहीं होने देंगे। सुधार दिखने लगा है।

हमने टीबी मुक्त भारत का काम उठाया है। आपके जिले में एक भी टीबी का पेशेंट ऐसा ना हो जिसकी सरकार को जानकारी ना हो। एक भी टीबी का पेशेंट ऐसा ना कि भारत सरकार जो किट पहुंचाती है वो किट उसका ना पहुंची हो। सिर्फ भाजपा के कार्यकर्ता हमारे चुने हुए लोग वो एक-एक टीबी पेशेंट का जिम्मा ले ले और हफ्ते उसको फोन करे कि कैसे हो भाई तबियत कैसी है? दवाई लेते हो कि नहीं लेते हो ? फालां चीज दी है खाने के लिए दी है वो खाते हो कि नहीं खाते हो? इतना आराम करते हो कि नहीं करते ? उसको भी लगेगा अरे ये मेरी तबियत की चिंता करते हैं चलो मैं भी करूंगा। मेरा कहने का तात्पर्य ये है कि हम इन जब ऐसे अभ्यास वर्गों में आये हैं तब प्रशासन से जुड़ी हुई बहुत सी बातें आपको बताई जाएंगी। अच्छे-अच्छे लोग अच्छे-अच्छे विषय रखने वाले हैं। मैं ज्यादातर उस दिशा में नहीं गया। मैं आपसे यहीं कहना चाहता हूं कि आपका भी विकास होना चाहिए आपके क्षेत्र का भी विकास होना चाहिए। आप easily available होने चाहिए। सहजता से लोगों के बीच में होने चाहिए। हम जितना जमीन की तरफ जाएंगे उतना जमीन से जुड़ेंगे। जितना जमीन से जुड़ेंगे उतनी हमारी ताकत और ज्यादा मजबूत होगी। और इसलिए मैं आपसे आग्रह करता हूं।

आपको मालूम है कल ही मैंने जब 15 अगस्त को लाल किले से एक बात कही थी। पीएम विश्वकर्मा योजना अब हमारे यहां मालूम है कि हमारी जो समाज व्यवस्था रही है पुरानी उसमें कुछ कमियां आई हैं बुराई आई हैं वो एक अलग चर्चा का विषय है। लेकिन समाज को बनाने और चलाने में कुछ व्यवस्थाएं बहुत काम कर रही हैं। आपने देखा होगा हर गांव में सोनार होगा, हर गांव में लोहार होगा. हर गांव में कुम्हार होगा, हर गांव में नाई होगा। यानि कुछ ऐसे काम हैं जिसको करने वाले लोग हर गांव में मिलेंगे। क्यों ? उस गांव की जरूरतों को पूरा करना वो परंपरागत करता है अपने मां-बाप से सीख कर करते हैं और आर्थिक स्थिति अच्छी हो बुरी हो। लेकिन अपनी इस काम को एक समाज धर्म के रूप में करते हैं और आपने देखा होगा कि ये जो समाज है जिसमें क्राइम लेवल न के बराबर होता है। कोई क्रिमिनल एक्टिविटी वाले ये समाज नहीं होते हैं। हर एक के साथ मिलजुल कर प्यार से रहने वाले लोग हैं। अगर सोनार होगा तो गांव का नगर सेठ भी उसके पास काम कराता होगा और गांव का गरीब की बच्ची की शादी होने वाली है वो भी उसके घर आता है। यानि ये ऐसे लोग हैं हमने सोचा है कि उनको एक नई ताकत दें। 13-15 हजार करोड़ का एक बजट बनाया भी एक प्रारंभिक बजट है। उनको कुछ आर्थिक मदद करें। उनको आधुनिक नए-नए मशीन दें टूल दें, उनका स्किल डेवलपमेंट करें और Wave बहुत तेजी से आगे बढ़े और शक्तिशाली बने। अब आपका काम है अब आपके इलाके में इस प्रकार के जो हमारे विश्वाकर्मा भाई-बहन हैं। उनकी सूची बनाइए, जो ये परंपरागत काम करते हैं। कुम्हार हैं तो कुम्हारी का काम करते हैं। लोहार हैं तो लोहारी का काम करते हैं। बार्बर हैं आज भी उस प्रकार से छोटी सी दुकान चलाते हैं। आप सूची बनाइए पूरी नाम पते समेत और हम उनको आर्थिक मदद कर सके तो 17 सितंबर को उन सबको एक बड़ा समारोह कर के पैसे देने की शुरुआत करने वाले हैं और इस योजना को आगे बढ़ाने वाले हैं। और देश में ऐसे 25-30 लाख परिवार उनको एक नई मजबूती देनी है। अब ये फायदा आप उठा सकते हैं। आप उन सब लोगों को मिल सकते हैं कि देखिए ऐसी योजना आ रही है। अभी आपके पास करीब 15-20 दिन बचे हैं मेहनत करने के लिए आप कर सकते हैं। कहने का तात्पर्य ये है कि हम। उसी प्रकार जब देखिए ये सावन माह से मेला चलते रहते हैं दिवाली तक उत्सव ही उत्सव होते हैं। उन उत्सवों का उपयोग समाज को शिक्षित करने के लिए समाज को जागृत करने के लिए हम कर सकते हैं क्या ? हमने करना चाहिए। हमें कोशिश करनी चाहिए कि होर्डिंग्स लगें सबको योजनाओं का पता चले। कुछ चीजें हैं जो care करनी है तो उनको बताया जाये कि भाई ये मत करो ये मत करो ये मत करो ये भी बताई जाये। हम जितना ज्यादा कर सकते हैं हमने करना चाहिए। अभी मेरा आग्रह रहता है सांसद खेल-कूद स्पर्धा। इस अक्टूबर महीने से लेकर कर के फरवरी महीने तक हम पूरे देश में हजारों नौजवानों को खेलकूद स्पर्धा में जोड़ना चाहते हैं। हजारों बेटियों को जोड़ना चाहते हैं। अब आप अपने यहां बढ़िया से बढ़िया खेलकूद स्पर्धा कैसे हो एक-एक बच्चा उस खेलकूद में भाग लें और आपके जिल में खेलकूद का कल्चर बने ये नेतृत्व आप कर सकते हैं। दूसरा साथियों देखिए जमाना ब्रांडिंग का है जब तक हम अपने जिले की ब्रांडिंग नहीं करते हैं, जिले की पहचान नहीं बनाते हैं, तो कुछ आपको कमी महसूस होगी, किसी भी चीज के लिए आप बना सकते हैं, मान लीजिए आपके जिले में अमृतफल अच्छा होता है। गुजराती में जिसको जामफल कहते हैं। मुझे याद है गुजरात के अंदर जब भी अमृतफल या जामफल की बात आती थी तो बोले की धोलका है। तो किसी को भी कहें तो हां भई धोलका का खाएंगे, क्यों उसकी एक पहचान बनी थी। बाद में धोलका के किसानों ने गुलाब की खेती की ओर मुड़ गए, तो उस पूरे इलाके की पहचान हो गई, भई गुलाब कहां के, तो उस इलाके के। हरेक की ऐसी एक पहचान होती है। या तो कुछ खिलौने कि जैसे कि अब ईडर। तो ईडर की पहचान होती थी खिलौने के लिए, किसी जमाने में लकड़ी के खिलौने के लिए पहचान होती थी। सुरेंद्रनगर, हमारे बुनकर भाई बहुत रहते हैं, वहां के कॉटन की पहचान होती थी। वहां के कपड़ों की पहचान होती थी। यानी हम अपने जिले में ऐसे कौन सी सचमुच में बड़ी ताकतवर व्यवस्था है और सहज है। अब उसको कैसे आधुनिक बनाएं। उसकी क्वालिटी कैसे सुधरे। उसका पैकेजिंग कैसे अच्छा बने। वो आपके जिले के बाहर वो कैसे पापुलर हो। आपका जिला उस बात से कैसे प्रभावित हो, चाहे वो एग्रो प्रॉडक्ट हो सकता है। चाहे वो मैनुफैक्चर का काम हो सकता है। चाहे वो हस्तकला का काम हो सकता है। हो सकता है कोई एजुकेशन इंटीट्यूट अच्छी हो। पूरे राज्य में भई फलानी शिक्षा तो वहां, मुझे याद है, मैं जब छोटा था तो मेरे गांव के बाहर अंबाजी जाते थे तो रास्ते में सतलासा गांव आता है, तो वहां सतलासा के एक टीचर थे, वो बहुत ही अच्छा पढ़ाते थे, और स्थिति ये बनी कि हम जैसे गांवों के अलग-अलग गांवों के लोग भी सतलासा जाते थे उस जमाने में और वो कोचिंग क्लास चलाते थे। आज भी हम वो कोचिंग क्लास का सुनते हैं, मैंने उस समय में सतलासा जैसे छोटे गांव में देखा था। और सतलासा की पहचान ये बन गई थी कि यहां पर अच्छी शिक्षा बच्चों को देनी है तो यहां आकर के छोड़ जाओ और लोग जाते थे। मैं ये पचास साल पहले की बात कर रहा हूं लेकिन मेरे कहने का तात्पर्य है कि आप जैसे कोई तीर्थ क्षेत्र होता है। अब तीर्थ क्षेत्र के कारण उस जिले की पहचान, आज भी उज्जैन को कोई महाकाल से ही जानेगा। तो उसकी पहचान अपनेआप में बहुत बड़ी ताकत बन जाती है।

मैं समझता हूं कि आप हरेक को प्रयास करके सबको साथ लेकर चर्चा करके तय करो कि आपके जिले की एक चीज जिसकी आन, बान, शान चारों तरफ फैले। वैसी कौनसी ताकत है ढूंढो। ऐसे ही सब चलता है, चलने मत दो। अब देखिए बहुत बड़ा फायदा होगा, क्या आपका मन न करे कि आपकी जिले की चीजें दुनिया के बाजार में बिके। एक्सपोर्ट हो, इच्छा होनी चाहिए आपके मन में। क्या आपके मन में इच्छा नहीं होनी चाहिए कि जीएसटी कलेक्शन में आपका जिला, राज्य में पहला नंबर आना चाहिए। आपके मन में नहीं होना चाहिए शिक्षा हो, खेलकूद हो, हेल्थ पैरामीटर हो, मेरा जिला हर चीज में आगे रहेगा। मैं सरकारी मशीनरी का पूरा शक्ति काम में लूंगा। और एक बात देख लीजिए कि अच्छी सरकार चलाने के लिए जिले की भी सरकार अच्छी चलानी है तो आपको रेगुलरली पूछताछ करनी चाहिए। और आंकड़ों में पूछना चाहिए, जनरल-जनरल नहीं। कार्यक्रम बहुत अच्छा हुआ, लोग बहुत संख्या में आए थे, बातचीत बहुत नहीं। बताइये भई आपने दस नंबर कहा था, कितना पहुंचे आप। क्यों दो पहुंचे। अच्छा आठ कैसे पहुंचे। एक्जक्टली पर जितना जाएंगे, आप देखिए जिले के काम को बहुत गति दे सकते हैं आप।

साथियो, ये पूरे देश भर के, जिला के क्षेत्र के हमारे कार्यकर्ता हैं। वे इन दिनों अभ्यास वर्ग और मुझे नड्डा जी बता रहे थे, कि हजारों की तादाद में जो एक-एक हमारा पंच, सरपंच और जिला का मेंबर चुना है, तहसील का उनका भी अभ्यास वर्ग चल रहा है। ये सब हम क्यों करते हैं। ये चुनाव जीतने का काम नहीं है, ये सब इसलिए करते हैं कि हमारा देश 2047 में विकसित भारत बने। विकसित भारत बनने के लिए हर गांव में विकसित गांव बनाने की ज्योत जलानी है। हर तहसील में विकसित तहसील बनाने की ज्योत जलानी है। हर जिले को विकसित जिला बनाने की ज्योत जलानी है। और ऐसी लाखों ज्योत, एक ऐसा प्रकाशपुंज बन जाएंगी, अपना देश 2047 में विकसित भारत बनके रहेगा दोस्तो। और इसके लिए हमने मेहनत करनी है। हमारी अपनी शक्ति भी बढ़ानी है। अपना व्यक्तिगत विकास भी करना है ओर क्षेत्र का भी विकास करना है। और दूसरा हम लोग जानते हैं कि हम लोग लोक संग्राहक हैं। हमें संग्रह करना है, जितनी ज्यादा लोग हमारे साथ जुड़ें, जोड़ना है। जितनी नई-नई विधाएं जुड़ें, हमें जोड़नी है। हम एक अच्छे लोक संग्राहक बनकर के अपने क्षेत्र का विस्तार बहुत बड़ा कर सकते हैं। और हम तो सबका साथ, सबका विकास की बात करते हैं ना, वो नारा नहीं है, हर पल उसको जीना है साथियो। सबको साथ लेना है। और आप देखिए जब सबको साथ लेते हैं ना तो विकास की गति भी बहुत बढ़ जाती है।

मित्रो मुझे बहुत अच्छा लगा, आप सबसे बात करने का मौका मिला। आने वाले कार्यक्रमों को भी आप सफल करेंगे और जिन सपनों को लेकर हम आगे बढ़ रहे हैं, उन सपनों को आप परिपूर्ण करेंगे।

मेरी आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएं हैं।

बहुत-बहुत धन्यवाद।

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