नमस्ते,
अभी-अभी मैं, हमारे सभी विद्यार्थी साथियों ने कुछ न कुछ इनोवेशन किए हैं, अलग-अलग प्रकार की आकृतियां बनाई हैं। National Education Policy को आकृतियों में ढालने का प्रयास किया है। जल, थल, नभ और स्पेस और AI इन सभी क्षेत्रों में देश की भावी पीढ़ी क्या सोचती है, उसके पास कैसे-कैसे solutions हैं, ये सारी चीजें मुझे देखने का अवसर मिला। ऐसा लगा कि अगर मेरे पास 5-6 घंटे होते, तो वो भी कम पड़ जाते, क्योंकि सबने एक से बढ़कर एक प्रस्तुति की है। तो मैं उन विद्यार्थियों को, उनके टीचर्स को, उनके स्कूल को बहुत-बहुत बधाई देता हूं। और आपसे भी आग्रह करता हूं कि आप जाने से पहले उस exhibition को जरूर देखें और उसमें क्या है उसको समझने की कोशिश करें, और अपने स्कूल में वापस जाने के बाद अपने जो अनुभव हैं वो जरूर और विद्यार्थियों के साथ शेयर करें, करेंगे? इधर से आवाज आई, उधर से नहीं आई, उधर से नहीं आई, करेंगे। मेरी आवाज सुनाई देती है न.....अच्छा।
आपको पता है, आप किस स्थान पर आए हैं। आप उस स्थान पर आए हैं, जहां भारत मंडपम के प्रारंभ में दुनिया के सभी बड़े-बड़े दिग्गज नेता 2 दिन बैठकर के यहां पर विश्व के भविष्य की चर्चा की थी, आज आप उस जगह पर हैं। और आप भारत के भविष्य की चर्चा आज अपनी परीक्षाओं की चिंता के साथ-साथ करने वाले हैं। और एक प्रकार से ये परीक्षा पे चर्चा, ये कार्यक्रम मेरी भी परीक्षा होता है। और आप में से बहुत से लोग हैं, जो सकता है कि मेरी परीक्षा लेना चाहते होंगे। कुछ लोग होंगे genuinely जिनको लगता होगा कि जरूर कुछ बातें ऐसी पूछी जाए जिसका समाधान खुद को भी मिले, औरों को भी मिले। हो सकता है हम सब सवालों को तो address ना कर पाएं, लेकिन ज्यादातर उन सवालों के कारण बहुत से साथियों का समाधान हो जाएगा। तो आइए हम प्रारंभ करते हैं, ज्यादा समय ना गंवाते हुए। कहां से शुरू करना है?
प्रस्तुतकर्ता– प्रधानमंत्री जी। आपके प्रेरक वचनों के लिए हार्दिक आभार।
यही जज्बा रहा तो मुश्किलों का हल निकलेगा,
जमींन बंजर हुई तो क्या, वही से जल निकलेगा,
कोशिश जारी रख कुछ कर गुजरने की,
इन्हीं रातों के दामन से सुनहरा कल निकलेगा,
इन्हीं रातों के दामन से सुनहरा कल निकलेगा।
प्रधानमंत्री जी आपका प्रेरक एवं ज्ञानवर्धक उद्बोधन हमें सदैव सकारात्मक ऊर्जा और विश्वास से भर देता है। आपके आशीर्वाद और अनुमति से हम इस कार्यक्रम का शुभारंभ करना चाहते हैं। धन्यवाद मान्यवर।
प्रस्तुतकर्ता– प्रधानमंत्री जी। रक्षा, स्वास्थ्य और पर्यटन के क्षेत्र में भारत के सहयोगी अरब देश ओमान स्थित Indian School, Darsait की छात्रा डानिया शबु हमसे ऑनलाइन जुड़ रही है और आपसे एक प्रश्न पूछना चाहती है। डानिया कृपया अपना प्रश्न पूछिए।
डानिया- Respected Prime Minister, I am Dania Sabu Varki of class 10th from Indian School Darsait, Oman. My question is how do cultural and societal expectations contribute to the pressure students feel during examinations and, how can these external influences be adjust? Thank You!
प्रस्तुतकर्ता – धन्यवाद डानिया। सर, विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत की राजधानी दिल्ली स्थित Government Sarvodaya Bal Vidyalaya बुराड़ी से मो. अर्श हमसे ऑनलाइन जुड़ रहे है और आपसे अपने मन के संदेह का निवारण चाहते हैं। मो. अर्श कृपया अपना प्रश्न पूछिए।
मो. अर्श– माननीय प्रधानमंत्री जी। नमस्कार। मेरा नाम अर्श है, मैं GSSSB बुराड़ी 12th H का छात्र हूं। मेरा आपसे प्रश्न यह है कि हम अपने परिवेश में परीक्षाओं को लेकर नकारात्मक चर्चाओं को कैसे संबोधित कर सकते हैं, जो हमारी पढ़ाई और अच्छा प्रदर्शन करने की क्षमता को महत्वपूर्ण से प्रभावित करती है। क्या छात्रों के लिए अधिक सकारात्मक और सहायक वातावरण बनाने के लिए कदम उठाए जा सकते हैं? धन्यवाद।
प्रस्तुतकर्ता– Thank You Mohammad! ओमान से डानिया शबु और दिल्ली से मो. अर्श तथा हमारे जैसे अनेक विद्यार्थी समाज और आस-पास के लोगों की expectations के pressure को handle नहीं कर पाते। कृपया उनका मार्गदर्शन करें।
प्रधानमंत्री- शायद मुझे बताया गया कि ये परीक्षा पे चर्चा का 7वां एपिसोड है, और जितना मुझे याद है मैं देखा है कि ये प्रश्न हर बार आया है और अलग-अलग तरीके से आया है। इसका मतलब ये है कि 7 साल में 7 अलग-अलग batches इन परिस्थितियों से गुजरे हैं। और हर नए batch को भी इन्हीं समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। अब विद्यार्थियों का batch तो बदलता है लेकिन टीचर का batch इतनी जल्दी बदलता नहीं है। अगर टीचर्स ने अब तक मेरे जितने एपिसोड हुए हैं, उसमें मैंने इन बातों का जो वर्णन किया है, अगर उसका कुछ न कुछ उन्होंने अपने स्कूल में address किया हो तो हम इस समस्या को धीर-धीरे-धीरे कम कर सकते है। उसी प्रकार से हर परिवार में ज्यादातर हो सकता है, बड़े बेटे ने या बेटी ने पहले एकाध बार ये ट्रायल हुआ हो। लेकिन उनके लिए ज्यादा experience नहीं है। लेकिन हर मां-बाप ने किसी ना किसी रूप में इस समस्या को जरूर अनुभव किया है। अब सवाल ये है कि इसका समाधान क्या हो, हम ये तो नहीं कह सकते कि switch off, प्रेशर बंद, ऐसा तो नहीं कह सकते, तो हमने अपने आप को एक तो किसी भी प्रकार के प्रेशर को झेलने के लिए सामर्थ्यवान बनाना चाहिए, रोते बैठना नहीं चाहिए। मान के चलना चाहिए कि जीवन में आता रहता है, दबाव बनता रहता है। तो खुद को तैयार करना पड़ता है। अब जैसे कभी आप उस स्थान पर जाते हैं, जहां ठंड ज्यादा है और आप किसी गर्म इलाके में रहते हैं, तो आप मन को तैयार करते हैं कि आज अब मुझे 3-4 दिन के बाद ऐसे इलाके में जाना है, जहां ठंड ज्यादा है। तो मन से आप तैयार करते हैं तो धीरे-धीरे लगता है, पहुंचने के बाद कभी लगता है, यार मैंने जो सोचा था उससे तो ठंड कम है। क्योंकि आपने मन से तय कर लिया है। इसलिए आप temperature कितना है, कितना नहीं वो देखने की जरूरत नहीं पड़ती है, आपका मन तैयार हो जाता है। वैसे ही, दबाव को हमने अपने तरीके से मन से एक बार इस स्थिति से जीतना है ये तो संकल्प करना होगा। दूसरा- जरा दबाव के प्रकार देखें एक तो दबाव होता है खुद ने ही जो अपने लिए तय करके रखा है कि सुबह 4 बजे उठना ही उठना है, रात को 11 बजे तक पढ़ना ही पढ़ना है, आपने तो इतने answer solve करके उठना है और बड़ा दबाव खुद ही अनुभव करते हैं। मैं समझता हूं कि हमने इतना stretch नहीं करना चाहिए कि जिसके कारण हमारी ability ही टूट जाए। हमने slowly increment करना चाहिए, चलिए भई कल मैंने 7 Questions solve किए थे रात को, आज 8 करूंगा। फिर मुझे, वरना मैं 15 तय करूं और 7 ही कर पाऊ तो सुबह उठता हूं यार देखो कल तो कर नहीं पाया आज करूंगा। तो एक खुद भी दबाव का pressure पैदा करते हैं। हम इसको थोड़ा scientific तरीके से कर रहे हैं। दूसरा- मां-बाप pressure पैदा करते हैं ये क्यों नहीं किया?-वो क्यों नहीं किया? क्यों सोता रहा? चलो जल्दी उठते नहीं हो, पता नहीं exam है। और यहां तक कहते हैं देख वो तेरा दोस्त क्या करता है, तू क्या करता है। ये सुबह-शाम जो commentary चलती है, running commentary और कभी मां थक जाती है तो पापा की commentary शुरू होती है, कभी पापा थक जाते हैं तो बड़े भाई की commentary शुरू हो जाती है। और वो अगर कम पड़ता है तो स्कूल में टीचर की। फिर या तो कुछ लोग ऐसे होते हैं...जा, तुमको जो करना है कर लो, मैं तो अपना ऐसे ही रहूंगा। कुछ लोग इसे sincere लेते हैं। लेकिन ये दबाव का दूसरा प्रकार है। तीसरा ऐसा भी होता है कि जिसमें कारण कुछ नहीं है, समझ का भाव है, और बिना कारण उसको हम संकट मान लेते हैं। जब actually करते हैं तो लगता है नहीं यार इतना मुश्किल नहीं था, मैं बेकार में दबाव झेलता रहा। तो मुझे लगता है कि एक तो इनको पूरे परिवार ने, टीचर ने सबने मिलकर के address करना होगा। सिर्फ student address कर लेगा, सिर्फ Parents address कर लेंगे, इतने से बात बननी नहीं है। और मैं मानता हूं कि ये लगातार परिवारों में भी बातचीत होती रहनी चाहिए। हर परिवार ऐसी स्थितियों में कैसे handle करता है, उसकी चर्चाएं होनी चाहिए। उसकी एक systematic theory के बजाय हमें धीरे-धीरे चीजों को evolve करना चाहिए। अगर ये evolve करते हैं तो मुझे पक्का विश्वास है कि हम इन चीजों से बाहर निकलकर आते हैं। धन्यवाद।
प्रस्तुतकर्ता- PM Sir, प्रेशर झेलने का मार्ग सुझाने के लिए आपका धन्यवाद। वीर सावरकर के बलिदान के साक्षी एवं अनुपम प्राकृतिक सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध अंडमान निकोबार द्वीप समूह से एक अभिभावक भाग्य लक्ष्मी जी हमसे वर्चुअल माध्यम से जुड़ रही है। भाग्य लक्ष्मी जी अपना प्रश्न पूछिए।
भाग्य लक्ष्मी– माननीय प्रधानमंत्री जी नमस्कार। एक अभिभावक होने के नाते मेरा आपसे सवाल है कि छात्रा पर जो peer pressure प्रेशर रहता है, जो कि एक तरह से दोस्ती की सुंदरता छीन लेता है। और छात्राओं को अपने ही दोस्तों के प्रति प्रतिस्पर्धा करा देता है, उस पर आपकी क्या राय है। कृपया मुझे समाधान दें। धन्यवाद।
प्रस्तुतकर्ता– धन्यवाद भाग्य लक्ष्मी जी। विश्व को सत्य, अहिंसा और धर्म की त्रिमूर्ति प्रदान करने वाली भूमि गुजरात स्थित पंचमहल के जवाहर नवोदय विद्यालय की छात्रा दृष्टि चौहान, प्रधानमंत्री जी आपसे अपनी समस्या का हल जानना चाहती हैं। दृष्टि कृपया अपना प्रश्न पूछिए।
दृष्टि चौहान – माननीय प्रधानमंत्री जी नमस्कार। मैं दृष्टि चौहान जवाहर नवोदय विद्यालय पंचमहल में कक्षा 6 की छात्रा हूं। मेरा आपसे यह प्रश्न है कि कभी-कभी परीक्षा के प्रतिस्पर्धी माहौल में दोस्तों के साथ प्रतिस्पर्धा भी अधिक दबाव पैदा करती है। कृपया सुझाव दें कि इससे कैसे बचा जा सकता है? आप मुझे इस पर अपना मार्गदर्शन प्रदान करें। धन्यवाद सर।
प्रस्तुतकर्ता – धन्यवाद दृष्टि। नेचुरल ब्यूटी से भरपूर बारिश की पहली बूंदों से भीगने वाला राज्य केरल में स्थित केंद्रीय विद्यालय क्रमांक- 1 कालीकट से स्वाति दिलीप हमसे ऑनलाइन जुड़ रही है और आपसे अपना प्रश्न पूछना चाहती है। स्वाति कृपया अपना प्रश्न पूछिए।
स्वाति – नमस्कार। Hon’ble Prime Minister Sir, I am Swati Dilip a class 11th student from PM SHRI Kendriya Vidyalaya No. 1 Calicut of Ernakulam Region. Sir, could you please guide us on how in this competitive world we can avoid unhealthy and unnecessary competition and also how to not take peer pressure into our heads!
प्रस्तुतकर्ता – धन्यवाद स्वाति। प्रधानमंत्री जी। कृपया भाग्य लक्ष्मी जी, दृष्टि और स्वाति द्वारा पूछे गए प्रश्नों में peer pressure और competition से होने वाली चिंता तथा इसके कारण रिश्तों में आने वाली कड़वाहट से कैसे बचें? कृपया मार्गदर्शन कीजिए।
प्रधानमंत्री– अगर जीवन में चुनौतियां न हो, स्पर्धा न हो, तो फिर जीवन बहुत ही प्रेरणाहीन बन जाएगा, चेतनाहीन बन जाएगा, competition होनी ही चाहिए। लेकिन जैसे एक सवाल में पूछा कालीकट से बच्ची ने healthy competition कि competition healthy होना चाहिए। अब आपका जो सवाल है, वो जरा डेंजर है और वो मुझे चिंता कराता है शायद मुझे भी इस परीक्षा पे चर्चा में इस प्रकार का सवाल पहली बार आया है। देखिए कभी-कभी इस प्रवृत्ति का जहर, ये बीज पारिवारिक वातावरण में ही बो दिया जाता है। घर में भी मां-बाप 2 बच्चे हैं तो दोनों के बीच में, कभी एक लिए अच्छा बोलेंगे, कभी दूसरे के लिए। तो कभी उन 2 भाई-बहन में भी या 2 भाई में भी या 2 बहनों में भी, देखिए मां ने तो उसको ये कह दिया और मुझे ऐसा कह दिया। इस प्रकार की विकृत स्पर्धा का भाव जाने-अनजाने में परिवार के रोजमर्रा के जीवन में बो दिया जाता है। और इसलिए मेरा सभी parents से आग्रह है कि कृपा करके बच्चों की इस तरह की comparison अपनी ही संतानों की इस तरह की comparison मत कीजिए। उसके अंदर एक द्वेष का भाव पैदा कर देते हैं और वो परिवार में भी कभी न कभी लंबे समय के बाद वो बीज एक बहुत बड़ा जहरीला वृक्ष बन जाता है। उसी प्रकार से मैंने बहुत पहले एक वीडियो देखा था- शायद आप लोगों ने भी देखा होगा, कुछ दिव्यांग बच्चे उनके कम्पीटीशन में सब दौड़ रहे हैं, 12-15 बच्चे अलग-अलग, दिव्यांग हैं तो कठिनाइयां आएंगी, लेकिन वो दौड़ रहे हैं। इतने में एक बच्चा गिर जाता है। अब ज्यादा बुद्धिमान लोग होते तो क्या करते- वाह ये तो गया, चलो यार एक तो स्पर्धा में कम हो गया। लेकिन उन बच्चों ने क्या किया- सबके सब जो आगे चले गए थे वो भी पीछे आए, जो दौड़ रहे थे वो भी रुक गए, पहले उन सबने उसको खड़ा किया, और फिर, फिर दौड़ना शुरू किया। सचमुच में ये वीडियो दिव्यांग बच्चों के जीवन का भले होगा, लेकिन हम लोगों को भी ये बहुत बड़ी प्रेरणा और बहुत बड़ा संदेश देता है।
अब तीसरा विषय है कि आपके दोस्त से आपको किस चीज की स्पर्धा है भाई। मान लीजिए 100 मार्क्स का पेपर है, अब अगर आपका दोस्त 90 ले गया तो क्या आपके लिए 10 मार्क्स बचे हैं क्या? आपके लिए 10 मार्क्स बचे हैं क्या? आपके लिए भी तो 100 हैं ना। तो आपको उससे स्पर्धा नहीं करनी है, खुद से करनी है। खुद से करनी है कि वो 100 में से 90 लाया, मैं 100 में से कितने लाऊंगा। उससे द्वेष करने की जरूरत ही नहीं है। Actually तो वो आपके लिए aspiration बन सकता है। और अगर यही मानसिकता रहेगी तो क्या करेंगे आप...अपने तेज-तर्रार व्यक्ति को दोस्त ही नहीं बनाएंगे। आप ऐसे जिसकी कुछ चलती नहीं बाजार में उसी को दोस्त बनाएंगे और खुद बड़े ठेकेदार बनकर घूमते रहोगे। सचमुच में तो हमसे प्रतिभावान दोस्त ढूंढने चाहिए हमें। जितने ज्यादा प्रतिभावान दोस्त मिलते हैं उतना हमारा भी तो काम बढ़ता है। हमारा स्पिरिट भी तो बढ़ता है। और इसलिए कभी भी हमें इस प्रकार का ईर्ष्या भाव कतई अपने मन में नहीं आने देना चाहिए।
और तीसरा मां-बाप के लिए भी बहुत बड़ा चिंता का विषय है। मां-बाप हर बार अपने बच्चों को कोसते रहेंगे। देख- तू खेलता रहता है, देख वो किताबें पढ़ता है। तू ये करता रहता है, देख वो पढ़ता है। यानी वो भी हमेशा उसी का उदाहरण देते हैं। तो फिर आपके दिमाग में भी यही एक मानदंड बन जाता है। कृपा करके मां-बाप इन चीजों से बचें। कभी-कभी तो मैंने देखा है जो मां-बाप अपने जीवन में ज्यादा सफल नहीं हुए हैं, जिनको अपने पराक्रम, अपनी सफलता या अपनी सिद्धियों के विषय में दुनिया को कुछ कहने को नहीं है, बताने को नहीं है, तो वे अपने बच्चों का रिपोर्ट कार्ड ही अपना विजिटिंग कार्ड बना लेते हैं। किसी को मिलेंगे अपने बच्चे की कथा सुनाएंगे। अब ये जो नेचर है वो भी एक प्रकार से बच्चे के मन में एक ऐसा भाव भर देता है कि मैं तो सब कुछ हूं। अब मुझे कुछ भी करने की जरूरत नहीं है...वो भी बहुत नुकसान करता है।
सचमुच में तो हमें अपने दोस्त से ईर्ष्या भाव के बजाय उसके सामर्थ्य को ढूंढने का प्रयास करना चाहिए। उसके अंदर अगर mathematic में expertise है मेरी कम है, मेरे टीचर्स से ज्यादा अगर मेरा दोस्त मुझे mathematic में मदद करेगा तो मेरी साइकी समझ करके करेगा और हो सकता है मैं भी उसी की तरह mathematic में आगे जाऊंगा। वो अगर लैंग्वेज में वीक है और मैं लैंग्वेज में मजबूत हूं, मैं अगर लैंग्वेज में उसकी मदद करता हूं तो हम दोनों को एक-दूसरे की ताकत जोड़ेगी और हम अधिक सामर्थ्यवान बनेंगे। और इसलिए कृपा करके हम अपने दोस्तों से स्पर्धा और ईर्ष्या के भाव में न डूबें और मैंने तो ऐसे लोग देखे हैं कि खुद फेल हो जाएं, लेकिन अगर दोस्त सफल हुआ है तो मिठाई वो बांटता है। मैंने ऐसे भी दोस्त देखे हैं कि जो बहुत अच्छे नंबर से आए हैं, लेकिन दोस्त नहीं आया, इसलिए उसने अपने घर में पार्टी नहीं की, फेस्टिवल नहीं मनाया, क्यों...मेरा दोस्त पीछे रह गया...ऐसे भी तो दोस्त होते हैं। और क्या दोस्ती लेन-देन का खेल है क्या? जी नहीं...दोस्ती लेन-देन का खेल नहीं है। जहां कोई प्रकार का इस प्रकार का लेना-देना नहीं है, निःस्वार्थ प्यार होता है वहीं तो दोस्ती होती है। और ये जो दोस्ती होती है ना, वो स्कूल छोडि़ए...जिंदगी भर आपके साथ रहती है। और इसलिए कृपा करके दोस्त हमसे ज्यादा तेजस्वी-तपस्वी हमें ढूंढने चाहिए और हमेशा उनसे सीखने का प्रयास करना चाहिए। धन्यवाद।
प्रस्तुतकर्ता– प्रधानमंत्री जी स्पर्धा में भी मानवीयता का ये संदेश हमें हमेशा प्रेरित करता रहेगा। भारत का दक्षिण-पूर्वी राज्य, कृषि प्रधान देश तिरूमल्य की पवित्र भूमि, आंध्रप्रदेश स्थित जेडपी हाई स्कूल, उपरापल्ली, एन्कापल्ली जिले के संगीत शिक्षक श्री कोंडाकांची संपतराव जी हमारे साथ ऑनलाइन माध्यम से जुड़ रहे हैं और आपसे प्रश्न पूछना चाहते हैं। संपतराव जी कृपया अपना प्रश्न पूछिए।
संपतराव– प्रधानमंत्री को संपतराव की नमस्कार। मेरा नाम कोंडाकांची संपतराव है और मैं जेडपी हाई स्कूल, उपरापल्ली, एन्कापल्ली डिस्ट्रिक आंध्रप्रदेश में शिक्षक हूं। सर, मेरा आपसे यह प्रश्न है कि एक शिक्षक के रूप में मैं किन तरीकों से अपने छात्रों को परीक्षा देने में, तनावमुक्त बनाने में मदद कर सकता हूं। कृपया इस पर मेरा मार्गदर्शन कीजिए। धन्यवाद सर।
प्रस्तुतकर्ता– धन्यवाद सर। भारत के पूर्व में चाय बागानों तथा सुंदर पर्वतीय प्रदेश ब्रह्मपुत्र की भूमि, असम के शिवसागर स्थित सैरा हाई स्कूल से एक टीचर बंटी मेधी जी, जो कि सभागार में उपस्थित हैं, प्रधानमंत्री जी से एक प्रश्न पूछना चाहती हैं। मैम, कृपया अपना प्रश्न पूछिए।
बंटी मेधी- नमस्कार, Honourable प्राइम मिनिस्टर सर, I am Bunty Medhi, a teacher from Shivsagar district Assam. My question is what should be the role of a teacher in motivating students. Please guide us. Thank You.
प्रस्तुतकर्ता– धन्यवाद मैम, कृपया प्रधानमंत्री जी कृपया आंध्र प्रदेश के संगीत शिक्षक श्री संपतराव जी और सभागार में उपस्थित शिक्षिका बंटी मेधी जी द्वारा पूछे गए इन प्रश्नों में वे परीक्षा के समय शिक्षकों की भूमिका के विषय में जानना चाहते हैं कि वे किस प्रकार विद्यार्थियों को तनाव मुक्त रहने में सहायता करें। कृपया समस्त शिक्षक वर्ग का मार्गदर्शन कीजिए।
प्रधानमंत्री– पहले तो मैं समझता हूं, जो संगीत के टीचर हैं वो तो अपनी क्लास का ही नहीं, पूरे स्कूल के बच्चों का तनाव खत्म कर सकते हैं। संगीत में वो सामर्थ्य है...हां अगर हम कान बंद करके संगीत में बैठे हैं...कभी-कभी ऐसा होता है...कि हम होते हैं संगीत बज तो रहा है लेकिन हम कहीं और होते हैं। और इसलिए हम उसका आनंद अनुभव नहीं कर पाते हैं। मैं समझता हूं कि किसी भी टीचर के मन में जब ये विचार आता है कि मैं स्टूडेंट के इस तनाव को कैसे दूर करूं। हो सकता है मैं गलत हूं, लेकिन शायद मुझे लगता है कि टीचर के मन में परीक्षा का कालखंड है। अगर टीचर और स्टूडेंट का नाता परीक्षा के कालखंड का है, तो सबसे पहले वो नाता correct करना चाहिए। आपका स्टूडेंट के साथ नाता जैसे ही आप पहले दिन, वर्ष के प्रारंभ में पहले ही दिन क्लासरूम में enter करते हैं, उसी दिन से exam आने तक आपका नाता निरंतर बढ़ते रहना चाहिए, तो शायद परीक्षा के दिनों में तनाव की नौबत ही नहीं आएगी।
आप सोचिए, आज मोबाइल का जमाना है, स्टूडेंट के पास भी आपका मोबाइल होगा ही होगा। क्या कभी किसी स्टूडेंट ने आपको फोन किया है? कॉल पर contact किया है कि मुझे ये तकलीफ हो रही है, मैं चिंता में हूं...कभी नहीं किया होगा। क्यों...क्योंकि उसे लगता ही नहीं है कि मेरी जिंदगी में आपका कोई विशेष स्थान है। उसको लगता है कि आपका-मेरा नाता सब्जेक्ट है। मैथ्स है, केमिस्ट्री है, लैंग्वेज है। जिस दिन आप सिलेबस से आगे निकल करके उससे नाता जोड़ोगे तो वो अपनी छोटी-मोटी दिक्कतों के समय भी जरूर आपसे अपने मन की बात करेगा।
अगर ये नाता है तो exam के समय तनाव की स्थिति पैदा होने की संभावना ही खत्म हो जाएगी। आपने कई डॉक्टर्स देखे होंगे, उन डॉक्टर्स में डिग्री तो सबसे पास होती है, लेकिन कुछ डॉक्टर्स जो जनरल प्रैक्टिशनर्स होते हैं...वो ज्यादा सफल इसलिए होते हैं कि पेशेंट के जाने के बाद, एकाध दिन के बाद उसको फोन करते हैं कि भई आपने वो दवाई ठीक से ले ली थी, कैसा है आपका? वो दूसरे दिन अपने अस्पताल आएगा तब तक इंतजार करने के बजाय बीच में एकाध बार बात कर लेते हैं। और वो उसको आधा ठीक कर देता है। आप में से कोई टीचर ऐसे हैं...मान लीजिए, किसी बच्चे ने बहुत अच्छा किया हो, और जा करके उसके परिवार में बैठ करके कहा कि भई अब तो मैं मिठाई खाने आया हूं, आपके बच्चे ने इतना शानदार कर दिया, आज आपसे मिठाई खाऊंगा। आपको कल्पना आती है कि उस मां-बाप को जब आप...बच्चे ने तो बताया ही होगा घर में जा करके कि आज मैं ये करके आया हूं। लेकिन एक टीचर खुद जा करके जब बताता है तो उस परिवार में टीचर का आना, टीचर का बताना उस बच्चे को भी ताकत देगा और परिवार भी कभी-कभी और भी सोचता होगा, जब टीचर ने आ करके कहा तो परिवार भी सोचता होगा यार मेरे बच्चे में ये तो शक्ति हमें मालूम नहीं थी कि टीचर ने जो वर्णन किया। वाकई हमें थोड़ा ध्यान देने की जरूरत है।
तो आप देखेंगे, एकदम से माहौल बदल जाएगा और अब इसलिए पहली बात तो ये है कि परीक्षा के समय तनाव दूर करने के लिए क्या करना है, उसके लिए तो मैं बहुत कुछ कह चुका हूं। मैं उसको repeat नहीं करता हूं। लेकिन अगर वर्षभर आपका उसके साथ नाता रहता है...मैं तो कभी-कभी पूछता हूं कई टीचरों से कि भई आप कितने सालों से टीचर हैं। जो पहली बार आपके यहां पढ़ाई करके गए होंगे शुरू में, अब तो उनकी शादी हो गई होगी। क्या कोई आपका स्टूडेंट आपके पास शादी का कार्ड देने आया था क्या? 99 प्रतिशत टीचर मुझे कहते हैं कि नहीं कोई स्टूडेंट नहीं आया। मतलब हम जॉब करते थे, हम जिंदगी नहीं बदलते थे। टीचर का काम जॉब करना नहीं है, टीचर का काम जिंदगी को संवारना है, जिंदगी को सामर्थ्य देना है और वही परिवर्तन लाता है। धन्यवाद।
प्रस्तुतकर्ता– शिक्षक एवं शिष्य के संबंधों में आपसी विश्वास महत्वपूर्ण है। हमें नया दृष्टिकोण देने के लिए धन्यवाद। अद्भुत जनजातीय संस्कृति को समेटे पूर्वोत्तर भारत के राज्य त्रिपुरा के प्रणवानंद विद्या मंदिर पश्चिम त्रिपुरा की छात्रा आद्रिता चक्रवर्ती हमसे ऑनलाइन जुड़ रही हैं। तथा परीक्षा के तनाव से मुक्ति हेतु माननीय प्रधानमंत्री जी से अपनी समस्या का समाधान चाहती हैं। आद्रिता कृपया अपना प्रश्न पूछिए।
आद्रिता चक्रवर्ती– नमस्कार प्रधानमंत्री महोदय, मेरा नाम आद्रिता चक्रवर्ती है। मैं प्रणवानंद विद्या मंदिर पश्चिम त्रिपुरा में कक्षा 12वीं की छात्रा हूं। मेरा आपसे यही प्रश्न है कि पेपर खत्म होने के आखिरी कुछ मिनटों में मैं घबरा जाती हूं और मेरी लिखावट भी बिगड़ जाती है। मैं इस स्थिति से कैसे निपटूं, मुझे इसका समाधान दीजिए, धन्यवाद श्रीमान।
प्रस्तुतकर्ता– Thank You Adrita. प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर धान का कटोरा के रूप में प्रसिद्ध राज्य छत्तीसगढ़ स्थित जवाहर नवोदय विद्यालय कराप कांकेर के छात्र शेख तैफूर रहमान ऑनलाइन के माध्यम से जुड़ रहे हैं तथा परीक्षा के तनाव से मुक्ति के लिए मार्गदर्शन चाहते हैं। तैफूर रहमान कृपया अपना प्रश्न पूछिए।
शेख तैफूर रहमान- प्रधानमंत्री महोदय नमस्कार, मेरा नाम शेख तैफूर रहमान है। मैं पीएम श्री जवाहर नवोदय विद्यालय कांकेर छत्तीसगढ़ का छात्र हूं। मान्यवर परीक्षा के दौरान अधिकांश छात्र घबराहट महसूस करते हैं, जिसके कारण वे मूर्खतापूर्ण गलतियां कर बैठते हैं, जैसे कि प्रश्नों को सही ढंग से न पढ़ना आदि। मान्यवर मेरा आपसे यह प्रश्न है कि इन गलतियों से कैसे बचा जाए। कृपया अपना मार्गदर्शन दें, धन्यवाद।
प्रस्तुतकर्ता– शुक्रिया तैफूर, उड़ीसा आदर्श विद्यालय कटक से हमारे बीच इस सभागार में एक छात्रा राजलक्ष्मी आचार्य मैजूद है। वे प्रधानमंत्री जी से प्रश्न पूछना चाहती हैं। राजलक्ष्मी कृपया अपना प्रश्न पूछिए।
राजलक्ष्मी आचार्य- Hon’ble Prime Minister, जय जगन्नाथ। My name is Rajlaxmi Aacharya, I am from Odisha Adarsh Vidyalaya, Jokidola Banki Cuttack. Sir, My question is- It is easy to say you face an exam with a cool mind, but in exam hall the situation is so scary like don’t move, look straight, and so on then how can it be so cool, Thank You Sir.
प्रस्तुतकर्ता– धन्यवाद राजलक्ष्मी, प्रधानमंत्री जी, आद्रिता, तैफूर और राजलक्ष्मी और इनके जैसे अनेक विद्यार्थियों द्वारा परीक्षा पर चर्चा के पिछले सभी संस्करणों में प्रायः यह प्रश्न पूछा जाता रहा है, और अब भी यह प्रश्न कुछ विद्यार्थियों की चिंता का कारण बना हुआ है कि वे परीक्षा के दौरान होने वाले तनाव का सामना कैसे करें, कृपया इनका मार्गदर्शन कीजिए।
प्रधानमंत्री– घूम-फिर कर के फिर तनाव आ गया। अब ये तनाव से मुक्ति कैसे हो। आप देखिए कैसी गलती होती है। कुछ गलतियां यानी रोजमर्रा को हम थोड़ा observe करें तो पता चलेगा। कुछ गलतियां पेरेंट्स के अति उत्साह के कारण होती हैं। कुछ गलतियां स्टूडेंट्स की अति से sincerity से देती है। मैं समझता हूं, इससे बचा जाए। जैसे मैंने देखा है कि कुछ मां बाप को लगता है कि आज एग्जाम है तो बेटे तो नई पेन लाकर के दो। जरा कपड़े अच्छे पहनाकर के भेजो, तो उसका काफी समय तो उसमें एडजस्ट होने में ही जाता है। शर्ट ठीक है कि नहीं है, यूनिफॉर्म ठीक पहना है कि नहीं पहना है। मां बाप से मेरा आग्रह है जो पेन रोज उपयोग करता है न वही दीजिए आप। या वहां पेन दिखाने थोड़ी जा रहा है वो, और परीक्षा के समय किसी को फुर्सत नहीं है आपका बच्चा नया पहनकर के आया, पुराना पहन के आया है। तो इस साइकी से उनको बाहर आना चाहिए। दूसरा कुछ ऐसी चीजें खिलाकर के भेजेंगे कि एग्जाम है ये खाकर जाओ, एग्जाम है ये खाकर जाओ, तो उसको और मुसीबत होती है कि उसका वो comfort नहीं है। आवश्यकता से अधिक उस दिन खाना फिर मां कहेगी कि अरे तुम्हारा तो एग्जाम सेंटर इतना दूर है। तुम रात आते-आते 7 बज जाएगा, ऐसा करो कुछ खाकर जाओ फिर कहेगी कुछ लेकर जाओ। वो resist करने लगता है नहीं, मैं नहीं ले जाऊंगा। वहीं से तनाव शुरू हो जाता है, घर से निकलने से पहले हो जाता है। तो मेरी सभी पेरेंट्स से अपेक्षा है और मेरा सुझाव है कि आप उसको अपनी मस्ती में जीने दीजिए। एग्जाम देने जा रहा है तो उत्साह उमंग के साथ चला जाए बस। जो उसकी रोजमर्रा की आदतें हैं वैसे ही रहे वो। फिर जो sincere स्टूडेंट्स हैं उनका problem क्या होता है? दरवाजे तक किताब छोड़ते नहीं हैं, दरवाजे तक। अब आप अचानक इस प्रकार से करें, इवन रेलवे स्टेशन पर भी जाते हैं ना तो कभी ट्रेन की एंट्री और आपकी एंट्री ऐसा होता है क्या? आप 5-10 मिनट पहले जाते हैं, प्लेटफार्म पर खड़े रहते हैं, कहां आपका डिब्बा आएगा उसका अनुमान लगाते हैं, फिर उस जगह पर जाते हैं, फिर सोचते हैं कि पहले कौन सा लगेज अंदर ले जाऊंगा, फिर कौन सा। यानि मन आपका तुरंत अपने आपको ट्रेन आने से पहले ही सेट करने लग जाता है। वैसे ही आपका जो एग्जामिनेशन हॉल है। हो सकता है वो कोई सुबह से आपके लिए खोलकर नहीं रखेंगे, लेकिन 10-15 मिनट पहले तो allow तो कर ही देते हैं। तो आराम से जैसे ही खुले अंदर पहुंच जाइये, और आराम से बैठिये मस्ती से, जरा पुरानी कोई हंसी मजाक की चीजें हैं तो उसको जरा याद कर लीजिए, और दोस्त ही बगल में है तो एकाध चुटकुला सुना दीजिए। हंसी मजाक में 5-10 मिनट बिता दीजिए। कुछ नहीं है जाने दीजिए, कम से कम एक डीप ब्रीथिंग करिये बहुत गहरा सांस लीजिए। धीरे-धीरे 8-10 मिनट खुद के लिए जिए आप, खुद में खो जाइये। एग्जाम से बाहर निकल जाएंगे। और फिर जब आपके हाथ में question paper आएगा, तो आप comfort रहोगे, वर्ना क्या होता है, वो आया कि नहीं, वो देखा कि नहीं, वो कैसा है, पता नहीं, टीचर कहां देखता है, सीसीटीवी कैमरा है। अरे आपका क्या काम है जी, सीसीटीवी कैमरा किसी भी कोने में पड़ा है, तेरा क्या लेना देना है जी। हम इन्ही चीजों में लटके रहते हैं जी और वो ही बिना कारण हमारी शक्ति समय waste करता है। हमें खुद में ही खोये रहना चाहिए और जैसे ही question paper आ जाए तो कभी कभी तो आपने देखा होगा। कि अगर first bench पर आपका नंबर आया है। लेकिन question paper वो पीछे से बांटना शुरू करता है। तो आपका दिमाग फडकता है, देखिए मेरे से पांच मिनट पहले उसको मिलेगा, मुझे पांच मिनट बाद में मिलेगा। ऐसी ही होता है न? ऐसा होता है न? अब ऐसी चीजों में अपना दिमाग खपाओगे कि पहले question paper मुझे मिला कि बीस नंबर के बाद मिला तो आप अपनी एनर्जी, आप परिस्थिति तो पलट नहीं सकते। टीचर ने वहां से शुरू किया आप खड़े होकर नहीं कह सकते पहले मेरे से दो, ऐसा तो नहीं कर सकते। तो आपको पता है ऐसा होना है तो फिर ऐसे ही अपने आपको एडजस्ट कर लेना चाहिए। एक बार आप ये अगल बगल की सारी दुनिया और हम बचपन से तो पढ़ते तो आए हैं। वो अर्जुन की पक्षी की आंख वाली कथा तो सुनते रहते हैं। लेकिन जीवन में आता है तो नहीं पेड़ भी दिखता है, पत्तियां भी दिखती हैं। तब आपको वो पक्षी की आंख नहीं दिखती है। आप भी मन ये कथाएं सुनते हैं, पढ़ते हैं तो उसको जीवन में लाने का ये मौका होता है। तो पहली बात तो यह है कि इन सारी बाह्य चीजों से आप, दूसरा परीक्षा में घबराहट का कभी कारण ये होता है, कभी लगता है समय कम पड़ गया, कभी लगता है कि अच्छा होता मैं वो question पहले कर लेता। तो इसका उपाय ये है पहले एक बार पूरा question paper पढ़ लीजिए। फिर मन से तय कीजिए कि किस answer में कितना मिनट मोटा-मोटा मेरा जाएगा। और उसी प्रकार से अपना समय तय कर लीजिए। अब खाना खाते हैं आप, खाने के लिए बैठते हैं तो घड़ी देखकर के थोड़ा खाते हैं कि भई बीस मिनट में खाना खाना है। तो खाते-खाते आदत हो ही जाती है हां भई इतने में 20 मिनट भी हो गए और खाना भी हो गया। इसके लिए कोई घड़ी और कोई बेल थोड़ा बजता है कि चलो अब खाना शुरू करो, अब खाना बंद करो ऐसा तो होता नहीं है। तो ये प्रैक्टिस से। दूसरा मैंने देखा है कि आजकल जो सबसे बड़ी समस्या है जिसके कारण ये समस्या है। आप मुझे बताइये, आप exam देने जाते हैं, मतलब आप physically क्या करते हैं। आप physically पेन हाथ में पकड़कर के लिखते हैं, यही करते है न? दिमाग अपना काम करता है लेकिन आप क्या करते हैं, लिखते हैं। आज के युग में आईपेड के कारण, कम्प्यूटर के कारण, मोबाइल के कारण मेरी लिखने की आदत धीरे-धीरे कम हो गई है। जबकि एग्जाम में लिखना होता है। इसका मतलब हुआ कि मुझे अगर एग्जाम के लिए तैयार करना है तो मुझे अपने आपको लिखने के लिए भी तैयार करना है। आजकल बहुत कम लोग हैं, जिनको लिखने की आदत है। अब इसलिए daily जितना समय आप अपने पठन पाठन में लगाते हैं स्कूल के बाद। उसका minimum 50% time, minimum 50% time आप खुद अपनी नोटबुक के अंदर कुछ न कुछ लिखेंगे। हो सके तो उस विषय पर लिखेंगे। और तीन बार चार बार खुद का लिखा हुआ पढ़ेंगे और खुद का लिखा हुआ करेक्ट करेंगे। तो आपका जो improvement होगा किसी की मदद बिना इतना बढ़िया हो जाएगा कि आपको बाद में लिखने की आदत हो जाएगी। तो कितने पेज पर लिखना, कितना लिखने में कितना समय जाता है, ये आपकी मास्टरी हो जाएगी। कभी-कभी बहुत से विषय आपको लगता है ये तो मुझे आता है। जैसे आप मान लीजिए कोई बड़ा प्रसिद्ध कोई गाना सुन रहे हैं। गाना बज रहा है तो आपको लगता है ये गाना तो मुझे आता है क्योंकि आपने बहुत बार सुना है। लेकिन एक बार गाना बंद करके जरा कागज पर लिखों ना वो गाना आता है क्या? तो पता चलेगा नहीं यार सुनते समय जो मेरा कॉन्फिडेंस था मुझे अच्छा लगता था और आता था, ,हकीकत में मुझे आता नहीं था मुझे वहां से prompting होती थी इसलिए मुझे वो लाइन याद आ जाती थी। और उसमें भी perfect के संबंध में बात आएगी तो मैं पीछे रह जाऊंगा।
मेरी आज की पीढ़ी के साथियों से मेरा आग्रह है कि कृपा करके आपके एग्जाम में एक बड़ा चैलेंज होता है लिखना। कितना याद रहा, सही रहा, गलत रहा, सही लिखते हैं, गलत लिखते हैं तो वो तो बाद का विषय है। आप अपना ध्यान प्रैक्टिस में इस पर कीजिए। अगर ऐसी कुछ चीजों पर अगर आप ध्यान केंद्रित करेंगे, मुझे पक्का विश्वास है कि एग्जाम हॉल में बैठने के बाद जो uncomfort या pressure फील करते हैं वो आपको लगेगा ही नहीं क्योंकि आप आदि हैं। अगर आपको तैरना आता है तो पानी में जाने से डर नहीं लगता है आपको क्योंकि आप तैरना जानते हैं। आपने किताबों में तैरना ऐसे होता है और आप सोचते हैं हां मैंने तो पढ़ा था भई हाथ पहले ऐसे करते हैं, फिर दूसरा हाथ फिर तीसरा हाथ फिर चौथा हाथ तो फिर आपको लगता है कि हां पहले हाथ पहले पैर। दिमाग से काम कर लिया, अंदर जाते ही फिर मुसीबत शुरू हो जाती है। लेकिन जिसने पानी में ही प्रैक्टिस शुरू कर दी, उसको कितना ही गहरा पानी क्यों न हो उसको भरोसा होता है मैं पार कर जाऊंगा। और इसलिए प्रैक्टिस बहुत आवश्यक है, लिखने की प्रैक्टिस बहुत आवश्यक है। और लिखना जितना ज्यादा होगा, शार्पनेस ज्यादा आएगी। आपके विचारों में भी शार्पनेस आएगी। और अपनी लिखी हुई चीज को तीन बार, चार बार पढ़कर खुद करेक्ट कीजिए। जितना ज्यादा खुद करेक्ट करोगे, आपकी उस पर ग्रिप बहुत ज्यादा आएगी। तो आपको अंदर बैठकर के कोई प्रॉबल्म नहीं होगी। दूसरा अगल-बगल में वो बड़ी स्पीड से लिख रहा है। मैं तो तीसरे question पर अड़ा हुआ हूं, वो तो सातवें पर चला गया। दिमाग इसमें मत खपाईये बाबा। वो 7 में पहुंचे, 9 में पहुंचे, करे न करे, पता नहीं वो सिनेमा की स्टोरी लिखता होगा, तुम अपने पर भरोसा करो, तुम अपने पर भरोसा करो। अगल-बगल में कौन क्या करता है छोड़ो। जितना ज्यादा अपने आप पर फोकस करोगे उतना ही ज्यादा आपका question paper पर फोकस होगा। जितना ज्यादा question paper पर फोकस होगा इतना ही आपके answer एक-एक शब्द पर हो जाएगा, और ultimately आपको परिणाम उचित मिल जाएगा, धन्यवाद।
प्रस्तुतकर्ता– धन्यवाद पीएम सर, तनाव प्रबंधन का ये सूत्र जीवन भर हमें प्रेरित करेगा। प्रधानमंत्री जी राजसमंद राजस्थान के छात्र धीरज सुथार जोकि गर्वमेंट सीनियर सेकेंडरी स्कूल कोंदवा में पढ़ते हैं हमारे बीच इस हॉल में मौजूद हैं और आपसे प्रश्न पूछना चाहते हैं। धीरज कृपया अपना प्रश्न पूछिए।
धीरज सुथार– नमस्ते माननीय प्रधानमंत्री जी, मैं धीरज सुथार, मैं राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय कोंदवा राजसमंद राजस्थान से हूं। मैं 12वीं कक्षा में अध्ययनरत हूं। मेरा प्रश्न यह है कि व्यायाम के साथ-साथ पढ़ाई को कैसे मैनेज करें, क्योंकि शारीरिक स्वास्थ्य भी उतना ही जरूरी है जितना कि मानसिक स्वास्थ्य, कृपया मार्गदर्शन करें, धन्यवाद सर।
प्रधानमंत्री– आपका शरीर देखकर के लगता है मुझे आपने सही सवाल पूछा है। और आपकी ये चिंता भी सही होगी।
प्रस्तुतकर्ता– धन्यवाद धीरज, अपनी सांस्कृतिक परंपरा और बर्फीली चोटियों पर तैनात सेना के जांबाजों के शौर्य के लिए विख्यात उत्तर भारत के प्रमुख केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के पीएम श्री केंद्रीय विद्यालय कारगिल की छात्रा नजमा खातून हमसे ऑनलाइन माध्यम से जुड़ रही हैं, और प्रधानमंत्री जी आपसे प्रश्न पूछना चाहती हैं, नजमा कृपया अपना प्रश्न पूछिए।
नजमा खातून– माननीय प्रधानमंत्री जी नमस्कार, मेरा नाम नजमा खातून है, मैं पीएम श्री केंद्रीय विद्यालय कारगिल लद्दाख में पढ़ती हूं। मैं कक्षा दसवीं की छात्रा हूं। मेरा आपसे प्रश्न यह है कि परीक्षा की तैयारी और स्वस्थ जीवन शैली बनाए रखने के बीच संतुलन कैसे बना सकते हैं, धन्यवाद।
प्रस्तुतकर्ता– शुक्रिया नजमा, पूर्वोत्तर भारत के रत्न जनजातीय बहुल राज्य अरुणाचल प्रदेश के नाहरलागुन गर्वमेंट हायर सेकेंडरी स्कूल से एक शिक्षिका तोबी लॉमी जी इस सभागार में उपस्थित हैं और प्रधानमंत्री जी से प्रश्न पूछना चाहती हैं।
तोबी लॉमी– नमस्कार माननीय प्रधानमंत्री जी, मेरा नाम तोबी लॉमी है, मैं एक शिक्षिका हूं, मैं गर्वमेंट हायर सेकेंडरी स्कूल नाहरलागुन अरुणाचल प्रदेश से आयी हूं। मेरा प्रश्न है विद्यार्थी खेल-कूद ही नहीं, बल्कि पढ़ाई में मुख्य रूप से क्या और कैसे ध्यान केंद्रित कर सकते हैं, कृपया मार्गदर्शन करें, धन्यवाद सर।
प्रस्तुतकर्ता- धन्यवाद मैम, प्रधानमंत्री जी धीरज, नजमा और तोबी जी पढ़ाई और हेल्दी लाइफ में सामंजस्य कैसे स्थापित करें, इस विषय पर आपका मार्गदर्शन चाहते हैं।
प्रधानमंत्री– आप में से बहुत सारे स्टूडेंट्स मोबाइल फोन का उपयोग करते होंगे। और कुछ लोग होंगे शायद उनको घंटों तक मोबाइल फोन की आदत हो गई होगी। लेकिन क्या कभी ऐसा विचार आया मन में कि नहीं-नहीं मैं चार्जिंग में फोन नहीं रखूंगा तो मेरा मोबाइल का उपयोग कम हो जाएगा, इसलिए रिचार्ज नहीं करूंगा। अगर रिचार्जिंग नहीं करूंगा तो मोबाइल काम करेगा क्या? करेगा क्या? तो मोबाइल जैसी चीज जो रोजमर्रा देखते हैं, उसको भी चार्ज करना पड़ता है कि नहीं करना पड़ता है? अरे जवाब तो दीजिए? रिजार्ज करना पड़ता है कि नहीं करना पड़ता है? अगर मोबाइल को करना पड़ता है तो ये बॉडी को करना चाहिए कि नहीं करना चाहिए? जैसे मोबाइल फोन में चार्जिंग ये मोबाइल फोन की requirement है। वैसे हमारा शरीर का भी चार्जिंग ये शरीर की requirement है। आप ऐसा सोचो की नहीं पढ़ना है तो बस कि विंडो बंद पढ़ाई, बाकी सब बंद, ऐसा कभी नहीं हो सकता है, जीवन ऐसे नहीं जी सकते हैं, और इसलिए जीवन को थोड़ा संतुलित बनाना पड़ता है। कुछ लोग होते हैं खेलते ही रहते हैं, वो भी एक संकट होता है, लेकिन जब आपको एग्जाम देना हो और लौकिक लाइफ जीवन में इन चीजों का अपना महत्व है। इन चीजों को टाल नहीं सकते। लेकिन अगर हम स्वस्थ ही नहीं रहेंगे, अगर हम अपने शरीर में वो सामर्थ्य ही नहीं होगा, तो हो सकता है कि तीन घंटे एग्जाम में ही बैठने का सामर्थ्य ही खो देंगे, फिर पांच मिनट ऐसा ही करके बैठा रहना पड़ेगा। और इसलिए स्वस्थ शरीर स्वस्थ मन के लिए भी बहुत जरूरी है। अब स्वस्थ शरीर का मतलब ये तो नहीं है कि आपको पहलवानी करनी है। ये आवश्यक नहीं है, लेकिन जीवन में कुछ नियम तय होते हैं। अब आप कभी सोचिए कितना समय है, जिसमें आप खुले आसमान के नीचे सनलाइट में बिताए हो। अगर आप चलो पढ़ना भी है, तो किताब लेकर के सनलाइट में बैठो न भई थोड़ी देर। कभी-कभी बॉडी को रिचार्ज करने में सनलाइट भी बहुत जरूरी होता है। क्या कभी कोशिश की? नियम से कि भई मैं दिन में कैसे भी करके इतना तो मौका निकाल दूं, ताकि मुझे सनलाइट के साथ मेरा नाता रहे। उसी प्रकार से कितना ही पढ़ना क्यों न हो, लेकिन नींद को कभी भी कम मत आंकिए। जब आपकी मम्मी आपको कहती हैं कि सो जाओ-सो जाओ तो उसको उसका interference मत मानिए। ज्यादातर स्टूडेंट्स का इगो इतना हर्ट हो जाता है कि तुम कौन होती हो, सोने-सो जाओ, और मुझे कल exam देना है। मैं सोऊंगा-नहीं सोऊंगा- तुम्हें क्या लेना देना है, ऐसा करते हैं न घर में। जो नहीं करते हैं वो ना बोलें, जो करते हैं वो बोलें जरा...करते हैं? कोई नहीं बोल रहा है। लेकिन ये पक्का है कि नींद के विषय में भी अगर एक बार रील पर चढ़ गए, एक के बाद, एक के बाद एक रील देखते ही गए...छुपाना चाहते हों ना…कितना समय बीत गया पता नहीं, कितनी नींद खराब हो गई पता नहीं। क्या निकाला- पहला रील निकालो जरा...याद करो याद भी नहीं है...ऐसे ही देख रहे हैं। ऐसे हम नींद को बहुत कम आंकते हैं।
आज आधुनिक हेल्थ सांइस जो है, वो नींद को बहुत तव्वजो देता है। आप आवश्यक नींद लेते हैं कि नहीं लेते हैं, वो आपके स्वास्थ्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। आपको उस पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। इसका मतलब ये भी नहीं कि भई exam तो आते रहेंगे...मोदी जी को मिला था उन्होंने बोला है सो जाओ। अभी यहां आर्टिस्टिक वर्ड बनाओ और घर में घुसते ही लिखो- सो जाओ। मम्मी-पापा को दिखा दो…सो जाओ, ऐसा तो नहीं करते ना? कम नींद स्वास्थ्य के लिए अनुचित है। कुछ upper लोग होते हैं, जो एक ऐसी स्टेज पर अपनी बॉडी को ले गए, वे शायद इससे बाहर होंगे। सामान्य मानवी के जीवन के लिए ये अनुचित है।
आप कोशिश कीजिए कि आपकी required जितनी भी नींद हो, आप पूरी लेते हैं और ये भी देखिए कि sound sleep है कि नहीं। बहुत गहरी नींद होनी चाहिए जी। आप हैरान हो जाएंगे...जो टीचर बैठे हैं ना बड़ी आयु के टीचर...ये सुन करके जरूर चौंक जाएंगे। आज भी मैं...इतना सारा मेरे पास काम है ना...आप लोगों जितना नहीं है, लेकिन 365 दिन कोई अपवाद नहीं…अगर मैं बिस्तर पर लेटा नहीं कि 30 सेकेंड में deep sleep की तरफ नहीं चला गया तो होता नहीं...30 सेकेंड लगते हैं मुझे। आप में से बहुत छोटी आयु के भी होंगे...कभी इधर, कभी उधर, कभी उधर, कभी उधर, फिर नींद आएगी तो आएगी। क्यों...मेरा बाकी जो जागृत अवस्था का समय है उसमें बहुत जागृत रहता हूं मैं। तो जब जागृत हूं, तो पूरी तरह जागृत हूं, जब सोया हूं तो पूरी तरह सोया हूं। और वो बैलेंस...जो बड़ी आयु के लोग हैं वो परेशान होते होंगे...हां-हां भईया हमें तो नींद ही नहीं आती, आधा घंटा तो ऐसे ही करवट बदलते रहते हैं। और ये आप achieve कर सकते हैं।
फिर एक विषय है कि न्यूट्रिशन...संतुलित आहार और आप जिस उम्र में हैं...उस उम्र में जिन चीजों की जरूरत है, वो आपके आहार में हैं कि नहीं हैं...एक चीज पसंद है बस खाते रहते हो...पेट भर जाता है...कभी मन भर जाता है...लेकिन शरीर की आवश्यकताएं पूरी नहीं करता है।
10th, 12th का ये कालखंड ऐसा है, जब आपके पास exam का वातावरण है तो एक बात तय कीजिए कि मेरे शरीर को जितनी requirement है वो मैं लेता रहूं। मां-बाप भी बच्चों को ऐसा न करें...नहीं-नहीं…आज तो हलवा बनाया है जरा ज्यादा खा लें। कभी मां-बाप को भी लगता है कि quantity ज्यादा खिला दी तो बच्चा खुश है...जी नहीं, उसके शरीर...और इसके लिए कोई अमीरी-गरीबी का मुद्दा नहीं है, जो उपलब्ध चीजें होती हैं उसी में से मिल जाता है जी। उसमें सारी चीजें रहती हैं...कम से कम खर्च वाली भी चीजें होती हैं जो हमारे न्यूट्रिशन को cater कर सकती हैं। और इसलिए हमारे आहार में संतुलन...ये भी स्वास्थ्य के लिए उतना ही जरूरी है।
और फिर एक्सरसाइज- हम पहलवानी वाली एक्सरसाइज करें या न करें, अलग बात है...लेकिन फिटनेस के लिए एक्सरसाइज करना चाहिए। जैसे daily टूथब्रश करते हैं ना...वैसे ही no compromise…एक्सरसाइज करनी चाहिए। मैंने कुछ बच्चे ऐसे देखे हैं, जो छत पर चले जाते हैं कि किताब लेकर चलते हैं...पढ़ते रहते हैं...दोनों काम कर लेते हैं...कुछ गलत नहीं है। वो पढ़ता भी है और अपना धूप के अंदर चल भी लेता है...एक्सरसाइज भी हो जाती है। कोई न कोई ऐसा रास्ता निकालना चाहिए, जिसमें आपकी फिजिकल एक्टिविटी होती रहनी चाहिए। 5 मिनट, 10 मिनट dedicated physical activity करनी ही चाहिए। ज्यादा कर सकें तो अच्छी बात है। अगर इन चीजों को सहज रूप से आप लाएंगे। Exam के तनाव के बीच सब कुछ इधर करेंगे, वो नहीं करेंगे तो नहीं चलेगा। संतुलित करिए, आपको बहुत फायदा होगा। धन्यवाद।
प्रस्तुतकर्ता- पीएम सर आपने एग्जाम वॉरियर में भी हमें यही संदेश दिया है...जितना खेलोगे उतना खिलोगे। Thank You PM Sir. रवींद्रनाथ टैगोर वंदे मातरम की अमर भूमि, समृद्ध कला-कौशल से भरपूर राज्य बंगाल के नॉर्थ 24 परगना से केन्द्रीय विद्यालय की छात्रा मधुमिता मल्लेख हमसे वर्चुअल माध्यम से प्रश्न पूछना चाहती हैं। मधुमिता कृपया अपना प्रश्न पूछिए।
मधुमिता– माननीय प्रधानमंत्री महोदय नमस्कार, मेरा नाम मधुमिता मल्लेख है। मैं पीएम श्री केंद्रीय विद्यालय बैरकपुर थल सेना कोलकाता संभाग की 11वीं विज्ञान की छात्रा हूं। मेरा आपसे यह प्रश्न है आप उन छात्रों को क्या सलाह देना चाहेंगे जो अपने करियर के बारे में अनिश्चित हैं या किसी विशेष करियर या पेशे को चुनने के बारे में दबाव महसूस करते हैं। कृपया इस विषय पर मुझे मार्गदर्शन करें। धन्यवाद महोदय।
प्रस्तुतकर्ता– धन्यवाद मधुमिता। पीएम सर, भगवान कृष्ण की उपदेश भूमि वीर बहादुर खिलाड़ियों के प्रदेश हरियाणा पानीपत के द मिलेनियम स्कूल की छात्रा अदिति तनवर, ऑनलाइन माध्यम से जुड़ी हुई हैं और आपसे मार्गदर्शन चाहती है। अदिति कृपया अपना प्रश्न पूछिए।
अदिति तनवर– माननीय प्रधानमंत्री जी, नमस्कार। मेरा नाम अदिति तनवर है और मैं द मिलेनियम स्कूल, पानीपत, हरियाणा की कक्षा ग्यारहवीं की छात्रा हूं। मेरा आपसे प्रश्न ये है कि मैंने humanities को अपने विषय के रूप में चुना है और लोग रोज मुझ पर ताने कसते हैं। मुझे ये विषय पसंद है, इसीलिए मैंने इसे चुना है। पर कभी-कभी तानों को संभालना मुश्किल हो जाता है। इन्हें कैसे संभालें और कैसे नजरअंदाज करें। मैं इसमें आपसे मार्गदर्शन चाहती हूं। धन्यवाद श्रीमान, नमस्कार।
प्रस्तुतकर्ता– थैंक्यू अदिति। मधुमिता और अदिति तथा इन जैसे कुछ विद्यार्थी जीवन में करियर के चयन में दबाव अनुभव करते हैं। सर, एक विशेष करियर या स्ट्रीम चुनने की मानसिकता के दबाव की समस्या का कैसे समाधान करें?
प्रधानमंत्री– मुझे नहीं लगता है कि आप स्वयं confused हैं। आप स्वयं उलझन में हैं ऐसा मुझे नहीं लगता है। हकीकत ये है कि आपको अपने पर भरोसा नहीं है। आपको अपने सोचने के संबंध में दुविधा है। अब इसलिए आप 50 लोगों को पूछते रहते हैं। क्या लगता है ये करुं तो…क्या लगेगा ये करूं तो। आप खुद को जानते नहीं हैं। और उसके कारण आप किसी की advise पर dependent रहते हो। और जो व्यक्ति ज्यादा अच्छा लगता है, आपको और जो advise आपको सबसे सरल लगती है, आप उसी को adopt कर लेते हो। अब जैसे मैंने कहा कि खेलो तो बहुत कुछ होंगे जो आज संकल्प ले करके घर जाएंगे...मोदी जी ने कहा खेलो-खिलो, खेलो-खिलो। अब मैं पढूंगा नहीं, बस...क्योंकि उसने अपनी चीज पसंद कर ली है।
मैं समझता हूं कि सबसे बुरी जो स्थिति है ना, वो कन्फ्यूजन है..अनिर्णयाकता है। अनिर्णयाकता...आपने देखा होगा पुराने जमाने में से कथा चलती थी...कोई गाड़ी लेकर जा रहा था और कुत्ता तय नहीं कर पाया, इधर जाऊं...उधर जाऊं और आखिरकार वो नीचे आ गया। यही होता है...अगर उसको पता है कि मैं उधर चला जाऊं तो हो सकता है कि वो ड्राइवर ही उसको बचा ले। लेकिन इधर गया...उधर गया..उधर गया... तो ड्राइवर कितना ही एक्सपर्ट हो नहीं बचा पाएगा। हमें अनिश्चितता से भी बचना चाहिए, अनिर्णायकता से भी बचना चाहिए। और निर्णय करने से पहले सारी चीजें...हमें उसको जितने तराजू पर तोल सकते हैं, तोलना चाहिए।
दूसरा, कभी-कभी कुछ लोगों को लगता है कि फलानी चीज वैसी है..ढिगनी चीज...अब मुझे बताइए- स्वच्छता का विषय है, अगर प्रधानमंत्री के रूप में देखें तो बहुत मामूली विषय है कि नहीं है? बहुत मामूली विषय है कि नहीं है? कोई भी कहेगा...यार, पीएम को इतने सारे काम है...ये स्वच्छता-स्वच्छता करता रहता है। लेकिन जब मैंने उसके अंदर अपना मन लगा दिया, हर बार मैंने उसको अपना एक महत्व का साधन बना दिया…आज स्वच्छता देश का प्राइम एजेंडा बन गया कि नहीं बन गया? स्वच्छता तो छोटा विषय था, लेकिन मैंने अगर उसमें जान मैंने भर दी तो वो बहुत बड़ा बन गया। इसलिए हम ये न सोचें...आपने देखा होगा कि कहीं मैं पूरा तो पढ़ नहीं पाया लेकिन मेरी नजर गई कि किसी ने कहा कि पिछले दस साल में आर्ट और कल्चर के क्षेत्र में भारत का मार्केट 250 गुना बढ़ गया है। अब आज से पहले कोई पेंटिग करता था तो मां-बाप कहते थे पहले पढ़ाई करो। Vacation में पेंटिंग करना। उसको लगता ही नहीं था कि पेंटिंग भी जीवन में महत्वपूर्ण विषय हो सकता है। और इसलिए हम किसी चीज को कम न आंकें। हमारे में दम होगा तो हम उसमें जान भर देंगे। हमारे में सामर्थ्य होना चाहिए। और आप जो चीज हाथ में लें...उसमें जी-जान से जुट जाएं…हम आधे-अधूरे.. यार उसने ये लिया...मैं ये लेता तो शायद अच्छा होता। उसने ये लिया, मैं ये लेता तो अच्छा होता। ये उलझन आपको बहुत संकटों में डाल सकती है।
दूसरा विषय है कि आज नेशनल एजुकेशन पॉलिसी ने आपके लिए बहुत सुविधा कर दी है। आप एक क्षेत्र में बढ़ रहे हैं, लेकिन आपको मन कर गया चलो एक और ट्राई करना है तो आप शिफ्ट कर सकते हैं...आपकी राह बदल सकते हैं। आपको किसी पर बंधे रहने की जरूरत नहीं है, आप अपने-आप प्रगति कर सकते हैं। और इसलिए अब शिक्षा में भी बहुत सी आज मैं अभी exhibition देख रहा था, मैं देख रहा था कि बच्चों की प्रतिभा जिस प्रकार से प्रकट हुई है, प्रभावित करने वाली है।
सरकार की आईएनबी मिनिस्ट्री, सरकार की योजनाओं को communicate करने के लिए जो कर रहे हैं...उससे ज्यादा इन बच्चों ने बहुत अच्छा किया है। नारी शक्ति का महत्व इतने बढ़िया तरीके से रखा है। इसका मतलब ये हुआ कि किसी भी हालत में हमें निर्णायक होना ही चाहिए। और एक बार निर्णायक होने की आदत लग जाती है ना फिर कन्फ्यूजन नहीं रहता है जी। वरना तो आपने देखा होगा कि कभी हम रेस्टोरेंट में चले जाएं परिवार के साथ...याद कीजिए आप...मुझे तो मौका नहीं मिलता है लेकिन आपको मिलता होगा। रेस्टोरेंट में जाते होंगे...पहले आप सोचते होंगे मैं ये मंगवाऊंगा...फिर बगल वाले टेबल पर कुछ देखते हैं तो कहते हैं नहीं ये नहीं ये मंगवाऊंगा। फिर वो बैरा जो है, कुछ और ट्रे में ले जाता दिखता है...तो यार ये कुछ और है, नहीं-नहीं, ये क्या है भाई...अच्छा मेरा वो दो कैंसिल, ये ले आओ। अब उसका कभी पेट ही नहीं भरेगा जी। उसको कभी संतोष नहीं होगा और जब डिश आएगी तो उसको लगेगा यार इसके बजाय वो पहले वाला ले लिया होता तो अच्छा होता। जो लोग रेस्टोरेंट के डाइनिंग टेबल पर निर्णय नहीं कर पाते हैं, वो कभी रेस्टोरेंट का या खाने का आनंद नहीं ले सकते हैं, आपको निर्णायक बनना पड़ता है जी। अगर आपकी माँ आपको daily सुबह पूछे आज क्या खाओगे और आपके सामने 50 तरह की वैरायटी बोल दे...आप क्या करोगे? घूम-फिर करके आ जाओगे, रोज खाते हो...वहीं पर आकर खड़े हो जाओगे।
मैं समझता हूं कि हमें आदत डालनी चाहिए कि हम निर्णायक बनें। निर्णय लेने से पहले 50 चीजों को हम बारीकियों से देखें, उसके प्लस-माइनस प्वाइंट देखें, प्लस-माइनस प्वाइंट के लिए किसी से पूछें…लेकिन उसके बाद हम निर्णायक बनें। और इसलिए कन्फ्यूजन किसी भी हालत में किसी के लिए अच्छा नहीं है। अनिर्णायकता और खराब होती है और उसमें से हमें बाहर आना चाहिए। थैंक्यू।
प्रस्तुतकर्ता– सर निर्णय की स्पष्टता में ही सफलता निहित है...आपका ये कथन सदा याद रहेगा। धन्यवाद। शांत समुद्र तट, चित्रमय गलियां और सांस्कृतिक विभिन्नताओं के लिए प्रसिद्ध नगर पुदुच्चेरी के गवर्नमेंट हायर सेकेंडरी स्कूल सेडारापेट की छात्रा डी. वर्सरी हमारे बीच इस सभागार में मौजूद हैं और अपना प्रश्न पूछना चाहती हैं। दीपश्री कृपया अपना प्रश्न पूछिए।
दीपश्री – नमस्ते, वणक्कम ऑनरेबल प्राइम मिनिस्टर साहब।
प्रधानमंत्री– वणक्कम, वणक्कम
डी. वर्सरी– My name is Deepshri. I am coming from Government Higher Secondary School, Sedarapet Puducherry. My question is how can we build our trust in parents, that we are working hard. Thank You Sir.
प्रस्तुतकर्ता– धन्यवाद दीपश्री। प्रधानमंत्री जी, हम माता-पिता को कैसे विश्वास दिलाएं कि हम मेहनत कर रहे हैं। इस विषय पर दीपश्री आपसे मार्गदर्शन चाहती हैं।
प्रधानमंत्री– आपने सवाल पूछा है, लेकिन सवाल के पीछे दूसरा सवाल है आपके मन में, जो आप पूछ नहीं रही हैं। दूसरा सवाल ये है कि पूरे परिवार में miss-trust है। Trust deficit है और ये यानी आपके साथ बहुत अच्छी परिस्थिति को अपने पकड़ा है। आपने उसको प्रस्तुत ऐसे किया, घर में कोई नाराज न हो जाए, लेकिन ये सोचने का विषय है, टीचर के लिए भी और पेरेंट्स के लिए भी। कि ऐसा क्या कारण है कि हम Trust deficit पारिवारिक जीवन में अनुभव कर रहे हैं। अगर पारिवारिक जीवन में भी हम Trust deficit अनुभव करते हैं तो ये बहुत ही चिंता का विषय है। और ये Trust deficit अचानक नहीं होती है...एक लम्बे कालखंड से गुजर कर निकलती है। और इसलिए हर पेरेंट्स को, हर टीचर को, हर स्टुडेंट्स को बहुत ही बारीकी से अपने आचरण को anaylise करते रहना चाहिए। आखिरकार मां-बाप मेरी बात पर भरोसा क्यों नहीं करते हैं…कहीं न कहीं तो ऐसी बातें हुई होंगी जिसके कारण उनका ये मन बन गया होगा। कभी आपने कहा होगा कि मैं अपनी सहेली को मिलने जा रही हूं और मां-बाप को अगर बाद में पता चला कि आप तो उसके यहां गई ही नहीं थीं तो Trust deficit शुरू हो जाती है। उसने तो कहा था कि वहाँ जाऊँगी लेकिन बाद में जब वहाँ गए नहीं लेकिन आपने कह दिया कि मैंने तय किया था कि उनके यहां जाऊंगा लेकिन रास्ते में मेरा मन बदल गया तो मैं वहां चली गई थी। तो कभी भी ये Trust deficit की स्थिति पैदा नहीं होगी। और एक विद्यार्थी के नाते हमें जरूर ऐसा सोचना चाहिए कि कहीं ऐसा तो नहीं है कि मैंने कहा था मम्मी आप सो जाओ, चिंता मत कीजिए, मैं तो पढ़ लूंगा। और मम्मी चुपके से देखती है और मैं सो रहा हूं तो फिर Trust deficit होगा कि ये तो कह रहा था मैं पढूंगा, लेकिन पढ़ नहीं रहा है, सोया पड़ा है।
आप कहते थे कि मां मैं अब एक सप्ताह तक मोबाइल को हाथ नहीं लगाऊंगा। लेकिन चुपके से दिख रहा है मां को.. अरे...तो फिर Trust deficit पैदा हो जाती है। क्या आप जो कहते हैं उसका सचमुच में पालन करते हैं क्या। अगर आप पालन करते हैं तो मैं नहीं मानता हूं कि parents को या teachers को इस प्रकार की trust deficit की स्थिति पैदा होगी, आपके प्रति अविश्वास का कारण बनेगा। उसी प्रकार से मां-बाप को भी सोचना चाहिए। कुछ मां-बाप को ऐसी आदत होती है, जैसे मान लीजिए किसी मां-बाप ने.. मां ने बहुत बढ़िया खाना बनाया है और बेटा आया है, किसी न किसी कारण से उसे खाने का मन नहीं है लेकिन बहुत कम खाया है तो मां क्या कहेगी....हम्म जरूर कहीं खाकर के आए होंगे, जरूर किसी के घर में पेट भरकर आए होंगे। तो फिर उसको चोट पहुंचती है, फिर वो सच बोलता नहीं है। फिर मां को ठीक रखने के लिए, ठीक है चलो अच्छा लगे, बुरा लगे मैं जितना मुंह में डालता हूं, डाल दूंगा। ये trust deficit पैदा हो जाता है, हर घर के अंदर ये अनुभव आता होगा। आपको माता जी ने, पिता जी ने मानो आपको पैसे दिए और आपको कहा एक महीने का तुम्हारा ये 100 रूपये तुम्हें ये देते है पॉकेट का, और फिर हर तीसरे दिन पूछते है, वो 100 रुपये का क्या किया?.....अरे भई तुमने 30 दिन के लिए दिया है ना, दूसरा मांगने तो आया नहीं तुम्हारे पास….तो भरोसा करो ना। अगर भरोसा नहीं तो नहीं देना था। ज्यादातर मां-बाप के केस में ऐसा होता है, रोज पूछते हैं, अच्छा वो 100 रूपया...हां कोई ये तो पूछ सकता है, पूछने का तरीका होता है कोई कहे – बेटा उस दिन पैसे नहीं थे तुम्हें 100 ही रूपये दिए थे तुम चिंता मत करना जरूरत पड़े तो कह देना। तो उस बेटे को लगा नहीं-नहीं मेरे माता-पिता ने मुझे 100 रूपया....हां देखो आपके पसंद की बात आई तो ताली बजाते हो आप लोग।
अगर वही सवाल ये पूछते हैं 100 का क्या किया, इसके बजाय ये कह दे.. तो बेटा कहेगा ना मां बिल्कुल नहीं मेरे पास पैसे है, sufficient है। यानि हमारा एक-दूसरे के बीच बात करने का तरीका कैसा है। ये चीजें सामान्य जीवन में जो अनुभव आती है, वो भी धीरे-धीरे-धीरे education system के साथ रोजमर्रा की हमारी अपेक्षाएं होती हैं, उसके टकराव में कनवर्ट हो जाती है। फिर कहा marks क्यों नहीं आए? तुम पढ़ते ही नहीं होंगे, ध्यान देते ही नहीं होंगे, क्लॉस में बैठते ही नहीं होंगे, अपने दोस्तों के साथ गप्पे मारते होंगे। हो सकता है वो पैसे है, सिनेमा देखने चले गए होंगे, मोबाइल फोन पर रिल्स देखते होंगे। फिर वो कुछ न कुछ कहना शुरू हो जाता है, फिर दूरी बढ़ जाती है, पहले trust खत्म हो जाता है फिर दूरी बढ़ जाती है और ये दूरी कभी-कभी बच्चों को डिप्रेशन की तरफ धकेल देती है। और इसलिए मां-बाप के लिए बहुत आवश्यक है।
उसी प्रकार से टीचर्स, टीचर्स ने भी बच्चों के साथ इतना खुलापन रखना चाहिए कि वह सहज रूप से अपनी बात कह सकें, अगर उसको कोई सवाल समझ नहीं आया तो कोई टीचर हड़का देगा, तुझे कुछ समझ नहीं आने वाला है तू बाकी विद्यार्थियों का टाइम खराब मत कर बैठ जाओ। कभी-कभी क्या करते हैं टीचर्स भी कि जो 4-5 होनहार बच्चे होते हैं ना, उनको वो बहुत प्रिय लगते हैं, उनसे उनका मन लग जाता हैं, बाकी क्लास में 20 बच्चे हैं, 30 बच्चे हैं वो जाने, उनका नसीब जाने। ये 2-4 में अपना मन लगा देते हैं, सब चीजे, वाहावाही उन्हीं की करते रहते हैं, उन्हीं के रिजल्ट लेकर के। अब आप उसको कितना आगे ले जा पाते है, वो तो अलग बात है लेकिन बाकी जो हैं, वहां से नीचे गिरा देते हैं। और इसलिए कृपा करके आपके लिए सभी students समान होने चाहिए। सबके साथ equally, हां जो तेज होगा वो अपने आप, अपने से जो अमृत है वो ले लेगा। लेकिन जिसको सबसे ज्यादा जरूरत है, उसके प्रति अगर आप symptomatic और उसमें भी मैं मानता हूं उसके गुणों की तारीफ कीजिए। कभी कोई एक बच्चा बिल्कुल weak है पढ़ने में, लेकिन उसकी handwriting अच्छी है तो उसके सीट पर जाकर के अरे यार क्या बढ़िया लिखते हो तुम, तुम्हारी handwriting कितनी अच्छी है, क्या स्मार्टनेस है तुम्हारी। कभी एक ऐसा dull विद्यार्थी है, अरे यार तेरा कपड़ा बहुत सख्त है, कपड़ा बहुत अच्छा है। उसके अंदर confidence build up होगा, वो आपके साथ खुलने लग जाएगा, वो आपसे बातें करने लगेगा कि साहब का मेरे प्रति उनका ध्यान है। अगर यह सहज वातावरण बन जाएगा, मैं नहीं मानता हूं लेकिन ये विद्यार्थियों का भी उतना ही दायित्व है, हमें आत्मचिंतन करना चाहिए कि मेरी ऐसी कौन-सी बातें थी जिसके कारण मेरे घर के लोगों का मुझसे भरोसा उठ गया। ये किसी भी हालत में, हमारे आचरण से, हमारे परिवार का, हमारे टीचर्स का हमसे भरोसा उठना नहीं चाहिए, हमसे कुछ नहीं हुआ तो कहना चाहिए। दूसरा मुझे लगता है कि परिवार में एक प्रयोग कर सकते है..... मान लीजिए आपका बेटे या बेटी के 5 दोस्त हैं, तय कीजिए की महीने में एक बार 2 घंटे वो पांचों परिवार किसी एक परिवार में एकत्र होंगे, दूसरे महीने दूसरे परिवार में, बिल्कुल get together करेंगे और उसमें बच्चे बूढ़े सब होंगे ऐसा नहीं है कि 2 लोगों को घर छोड़कर आ जाएंगे, 80 साल के मां-बाप की अगर फिजिकली फिट हैं, आ सकते हैं, उनको भी लेकर आइए। और फिर तय कीजिए कि आज वो जो तीसरे नंबर का दोस्त है, उसकी माता जी एक कोई पॉजिटिव बुक पढ़कर के उसकी कथा सुनाएगी। अगली बार तय कीजिए जो 4 नंबर का दोस्त है, उसके पिताजी एक कोई पॉजिटिव मूवी देखा होगा तो उसकी कथा सुनाएंगे। जब भी आप एक घंटे का get together करें सिर्फ और सिर्फ उदाहरणों के साथ, किसी रेफरेंस के साथ पॉजिटिव चीजों की चर्चा करें, वहां के किसी के रेफरेंस से नहीं। आप देख लेना धीरे-धीरे वो पॉजिटिविटी पर्कुलेट होगी। और यही पॉजिटिविटी सिर्फ आपके बच्चों के प्रति नहीं, अंदर-अंदर भी एक ऐसे ट्रस्ट का वातावरण बना देगी की आप सब एक इकाई बन जाएंगे, एक-दूसरे के मददगार बन जाएंगे और मैं मानता हूं ऐसे कुछ प्रयोग करते रहना चाहिए। धन्यवाद।
प्रस्तुतकर्ता- PM Sir, परिवार में विश्वास महत्वपूर्ण है, आपका ये संदेश हमारे घरों में खुशियां लाएगा। धन्यवाद PM Sir. छत्रपति शिवाजी महाराज और समाज सुधारक महात्मा ज्योतिबा फुले की जन्मस्थली महाराष्ट्र की पुण्य नगरी पुणे से एक अभिभावक श्री चंद्रेश जैन जी इस कार्यक्रम से ऑनलाइन जुड़ रहे है और प्रधानमंत्री जी आपसे प्रश्न पूछना चाहते है। चंद्रेश जी कृपया अपना प्रश्न पूछिए।
चंद्रेश जैन- माननीय प्रधानमंत्री जी। आपको मेरा सादर प्रणाम। मेरा नाम चंद्रेश जैन है, मैं एक अभिभावक हूं। मेरा आपसे एक प्रश्न है, क्या आपको नहीं लगता है आजकल के बच्चों के अपने दिमाग का इस्तेमाल करना बंद कर दिया है, वे तकनीक पर अधिक निर्भर रहने लगे हैं क्योंकि सब कुछ उंगलियों पर उपलब्ध है। कोई इस युवा पीढ़ी को कैसे जागरूक कर सकता है कि वे प्रौद्योगिकी के स्वामी बनने चाहिए, उसका गुलाम नहीं। कृपया मार्गदर्शन कीजिए। धन्यवाद।
प्रस्तुतकर्ता– Thank you चंद्रेश जी। आदिवासी जनजाति के लोकनायक स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा की जन्म भूमि झारखंड के रामगढ़ जिले से एक अभिभावक श्रीमती पूजा श्रीवास्तव जी ऑनलाइन माध्यम से इस कार्यक्रम से जुड़ी हुई है और प्रधानमंत्री जी आपसे प्रश्न पूछकर अपनी शंका का समाधान चाहती है। Pooja, please ask your question.
पूजा श्रीवास्तव– नमस्कार। Hon’ble Prime Minister Sir. My name is Kumari Pooja Srivastava. I am a parent of Priyanshi Srivastava studying in Shri Gurunanak Public School, Ramgarh, Jharkhand. Sir, I want to ask that how I can manage my daughter’s studies with using social media platforms like Instagram, Snapchat, Twitter. Please guide me on this. Thank You Sir.
प्रस्तुतकर्ता – Thank You Mam. हिमाचल प्रदेश शिवालिक पहाड़ियों की तलहटी में स्थित हमीरपुर जिले के T.R. DAV school Kangoo के एक छात्र अभिनव राणा ऑनलाइन माध्यम से जुड़ रहे है और प्रधानमंत्री जी आपसे एक प्रश्न पूछना चाहते हैं। अभिनव कृपया अपना प्रश्न पूछिए।
अभिनव राणा – Hon’ble Prime Minister Sir नमस्कार। My name is Abhinav Rana, I am a student of T.R. DAV Public Senior Secondary School Kangoo Distt. Hamirpur, Himachal Pradesh. Sir, my question is how can we educate and encourage students to manage exam stress effectively while also harnessing the benefits of mobile technology as a tool for learning rather than let it become a distraction during precious study periods. Thank You Sir.
प्रस्तुतकर्ता– Thank You Abhinav. प्रधानमंत्री जी, चंद्रेश जैन, पूजा और अभिनव जैसे अनेक लोग जीवन में सोशल मीडिया और टेक्नोलॉजी के बढ़ते दबाव की स्थिति से परेशान हैं। वे सभी तकनीक पर निर्भरता और इसके अधिक प्रयोग से होने वाले दुष्प्रभाव से कैसे बचें? कृपया इस विषय में उचित परामर्श प्रदान कीजिए।
प्रधानमंत्री– देखिए, हमारे यहां शास्त्रों में भी कहा गया है और सहज जीवन में भी कहा गया है...किसी भी चीज की अति किसी का भला नहीं करती है। हर चीज, उसका एक मानदंड होना चाहिए, उसके आधार पर होता है। अगर मान लीजिए, मां ने बहुत बढ़िया खाना बनाया है...न्यूट्रिशन की दृष्टि से रिच है...टेस्ट आपकी पसंद का है...समय भी खाने का है...लेकिन बस खा रहे हैं, खा रहे हैं, खा रहे हैं, मां परोसती जा रही है। क्या ये संभव है क्या? संभव है क्या? कभी-कभी तो आप मां को कहोगे..नहीं मां बहुत हो गया, अब नहीं खा सकता। करते हो कि नहीं करते हो? आपका प्रिय खाना था, हर प्रकार से न्यूट्रिशन वैल्यू वाला था, वो समय भी ऐसा था खाने का वक्त था, फिर भी एक स्टेज आ जाती है जब वो खाना आपके लिए तकलीफ कर सकता है, vomiting करवाएगा, हेल्थ खराब कर देगा, आप का कितना ही प्रिय खाना... आपको रुकना पड़ेगा, रुकना पड़ता है कि नहीं रुकना पड़ता है?
वैसे ही मोबाइल के ऊपर कितनी ही प्रिय चीजें, कितनी ही चीजें आती हों लेकिन कुछ तो समय तय करना पड़ेगा। अगर आप...मैंने देखा है आजकल...बहुत से लोगों को जब भी देखो...लगे पड़े हैं। आपने देखा होगा मेरे हाथ में कभी...बहुत rare case में कभी मोबाइल फोन मेरे हाथ में होता है। क्योंकि मुझे मालूम है कि मेरे समय का मुझे सर्वाधिक उपयोग क्या करना है। जबकि मैं ये भी मानता हूं कि information के लिए मेरे लिए एक बहुत आवश्यक साधन भी है। लेकिन उसका कैसे उपयोग करना...कितना करना…इसका मुझे विवेक होना चाहिए। और इन दोनों जो पेरेंट्स की चिंता है वो इन दो की नहीं है वो हर पेरेंट्स की चिंता है। शायद ही कोई अपवाद होगा। जो मां-बाप खुद भी दिन भर मोबाइल में अटके रहते होंगे ना वो भी चाहते होंगे कि बेटा इससे बचे। और आपने देखा होगा...सबसे बड़ी बात...आपके जीवन को कुंठित कर देता है जी। अगर आप परिवार में देखोगे तो घर के चार लोग चार कोने में बैठे हैं और एक-दूसरे को मैसेज फॉरवर्ड करते हैं। उठ करके मोबाइल नहीं दिखाते...देखो मुझे ये आया है...क्यों...secrecy, ये इसके कारण एक बहुत बड़ा अविश्वास पैदा करने का ये भी एक साधन बन गया है आजकल। अगर मां ने मोबाइल फोन को हाथ लगा दिया बस आ गया घर में तूफान। तुम कौन होती हो मेरे मोबाइल को हाथ लगाने वाली...यही हो जाता है।
मैं समझता हूं कि परिवार में कुछ नियम होने चाहिए, जैसे खाना खाते समय डाइनिंग टेबल पर कोई इलेक्ट्रॉनिक गजट नहीं होगा, मतलब नहीं होगा। सब लोग खाना खाते समय गप्पे मारेंगे, बातें करेंगे, खाना खाएंगे। ये हम discipline follow कर सकते हैं जी। घर के अंदर...मैंने पहले भी कहा है, दोबारा कहता हूं…no gadget zone. की भई ये कमरे में कोई गैजेट की एंट्री नहीं, हम बैठेंगे, बातें करेंगे, गप्पें मारेंगे। परिवार के अंदर वो ऊष्मा का वातावरण...उसके लिए जरूरी है।
तीसरा हम, हमारे खुद के लिए भी...अब टेक्नोलॉजी से हम बच नहीं सकते हैं, टेक्नोलॉजी को बोझ नहीं मानना चाहिए, टेक्नोलॉजी से दूर भागना नहीं चाहिए, लेकिन उसका सही उपयोग सीखना उतना ही अनिवार्य है। अगर आप टेक्नोलॉजी से परिचित हैं...आपके माता-पिता को पूरी नॉलेज नहीं है...सबसे पहला आपका काम है आज मोबाइल पर क्या-क्या available है, उनसे चर्चा कीजिए...उनको एजुकेट कीजिए...और उनको विश्वास में लीजिए कि देखिए, मैथ में मुझे ये चीजें यहां मिलती हैं, केमिस्ट्री में मुझे ये मिलती हैं, हिस्ट्री में ये मिलती हैं, और मैं इसको देखता हूं, आप भी देखिए। तो वो भी थोड़ी रुचि लेंगे, वरना क्या होगा...हर बार उनको लगता होगा कि मोबाइल मतलब ये दोस्तों के साथ चिपका हुआ है। मोबाइल मतलब रील देख रहा है। अगर उसको पता चले कि भई इसमें ये-ये पार्ट है....इसका मतलब ये नहीं कि मां-बाप को मूर्ख बनाने के लिए बढ़िया चीज दिखा दें और फिर दूसरा करें...ऐसा नहीं हो सकता है। हमारे पूरे परिवार में पता होना चाहिए क्या चल रहा है। हमारे मोबाइल फोन का लॉक करने का जो नंबर होता है वो परिवार में सबको पता हो तो क्या नुकसान होगा? परिवार के हर सदस्य को हरेक मोबाइल का...अगर इतनी transparency आ जाए, आप काफी बुराइयों से बच जाएंगे। कि भई, हर किसी का भले ही मोबाइल अलग होगा लेकिन उसका जो कोड वर्ड है सबको मालूम होगा, तो ये भला हो जाएगा।
दूसरा आप भी अपने स्क्रीन टाइम को मॉनिटर करने वाले जो ऐप्स होते हैं उनको डाउनलोड करके रखिए। वो बताएगा कि आपका स्क्रीन टाइम आज इतना हो गया है, आपने यहां इतना टाइम लगाया है। आपने इतना टाइम...वो स्क्रीन पर ही आपको मैसेज देता है। वो आपको अलर्ट देता है। जितने ज्यादा ऐसे अलर्ट के टूल्स हैं, हमें अपने गैजेट्स के साथ जोड़ कर रखना चाहिए ताकि हमें भी पता चले...हां यार ज्यादा हो गया अब मुझे रुकना चाहिए...कम से कम वो हमें अलर्ट करता है। At the same time उसका पॉजिटिव उपयोग कैसे कर सकते हैं। अगर मान लीजिए मैं कुछ लिख रहा हूं, लेकिन मेरा...मुझे एक अच्छा शब्द मिल नहीं रहा है तो मुझे dictionary की जरूरत है।
मैं डिजिटल व्यवस्था का उपयोग करके उसका लाभ ले सकता हूं। मान लीजिए कि मैं कर रहा हूं और मुझे कोई अर्थमेटिक का कोई सूत्र ध्यान नहीं आता है। चलिए मैंने डिजिटल चीज का सपोर्ट सिस्टम ले लिया, पूछ लिया उसको क्या हुआ, फायदा होगा लेकिन अगर मैं जानता ही नहीं हूं कि मेरे मोबाइल में क्या ताकत है। तो मैं क्या उपयोग करूंगा? और इसलिए मुझे तो लगता है कि कभी-कभी क्लासरूम में भी मोबाइल के पॉजिटिव पहलू क्या क्या हैं, positively उपयोग आने वाली कौन सी चीजें हैं। कभी 10-15 मिनट क्लासरूम में चर्चा करनी चाहिए। कोई स्टूडेंट अपने अनुभव बताएगा कि मैंने उस वेबसाइट को देखा, हमारे स्टूडेंट्स के लिए अच्छी वेबसाइट है। मैंने उस वेबसाइट को देखा, फलाने सब्जेक्ट के लिए वहां अच्छी लर्निंग मिलती है, अच्छे lessons मिलते हैं। मान लीजिए टूर जा रहा है कहीं पर, टूर प्रोग्राम हमारे पास है और बच्चे जा रहे कि चलो भई हम जैसलमेर जा रहे हैं। सबको कहा जाए जरा ऑनलाइन जाओ भई, जैसलमेर का पूरा प्रोजेक्ट रिपोर्ट बनाओ। तो उसका पॉजिटिव उपयोग करने की आदत डालनी चाहिए। उसको लगना चाहिए कि तुम्हारी मदद में बहुत सारी व्यवस्थाएं उपलब्ध हैं, तुम इसका उपयोग करो। जितना ज्यादा सकारात्मकता से आप उपयोग करोगे उतना आपको लाभ होगा, और मेरा आग्रह रहेगा कि हमें उससे दूर भी नहीं भागना है। लेकिन हमें हर चीज का विवेक से और पूरे परिवार में transparency से, जितनी ज्यादा transparency आएगी, ऐसे छुप-छुप करके देखना पड़े तो मतलब कुछ गड़बड़ है। जितनी transparency आएगी, उतना लाभ ज्यादा होगा, बहुत-बहुत धन्यवाद।
प्रस्तुतकर्ता– पीएम सर सफलता के लिए जीवन में संतुलन बहुत महत्वपूर्ण है। यह मंत्र हमें सही राह पर अग्रसर करेगा, धन्यवाद। महाकवि सुब्रमण्यम भारती की जन्मभूमि तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई के मॉडल सीनियर सेकेंडरी स्कूल के छात्र एम वागेश ऑनलाइन माध्यम से जुड़े हैं, और प्रधानमंत्री जी आपसे प्रश्न पूछना चाहते हैं। एम वागेश please ask your question.
एम वागेश – Hon’ble Prime Minister Sir Namaste, My name is M Vagesh, I am student of Modern Senior Secondary School, Nanganallur Chennai, My question is how to you handle stress and pressure in the super strong position as a Prime Minister, what is your key factor of controlling stress, Thank you.
प्रधानमंत्री – आप भी बनना चाहते हैं क्या? तैयारी कर रहे हो क्या?
प्रस्तुतकर्ता– धन्यवाद, एम वागेश, आज की परिचर्चा का अंतिम प्रश्न। देवभूमि उत्तराखंड जो अपनी प्राकृतिक सुषमा के लिए प्रसिद्ध है। उधम सिंह नगर स्थित Dynasty Modern Gurukul Academy की छात्रा स्नेहा त्यागी ऑनलाइन माध्यम से जुड़ी हैं और प्रधानमंत्री जी से प्रश्न पूछना चाहती हैं। स्नेहा कृपया अपना प्रश्न पूछिए।
स्नेहा त्यागी– दिव्य है, अतुल्य है, अदम्य साहस का परिचय हैं आप। युगों युगों के निर्माता अद्भुत भारत का भविष्य हैं आप। देवभूमि उत्तराखंड से आदरणीय प्रधानमंत्री मोदी जी को मेरा चरण स्पर्श प्रणाम। मेरा नाम स्नेहा त्यागी है। मैं Dynasty Modern Gurukul Academy Chhinki Farm, Khatima, Udham Singh Nagar की कक्षा सात की छात्रा हूं। आदरणीय प्रधानमंत्री जी से मेरा प्रश्न है कि हम आपकी तरह सकारात्मक कैसे हो सकते हैं, धन्यवाद श्रीमान।
प्रस्तुतकर्ता– Thanks Neha. प्रधानमंत्री जी, आप अपने बिजी लाइफ में प्रेशर को कैसे हैंडल करते हैं, और इतना प्रेशर होने पर भी हमेशा सकारात्मक कैसे रह पाते हैं, आप यह सब कैसे कर पाते हैं, कृपया अपनी सकारात्मक ऊर्जा का रहस्य हमसे साझा करें, प्रधानमंत्री जी।
प्रधानमंत्री- इसके कई जवाब हो सकते हैं। एक तो मुझे अच्छा लगा की आपको पता है कि प्रधानमंत्री को कितना प्रेशर झेलना पड़ता है। वर्ना आपको तो लगता होगा हवाई जहाज है, हेलीकॉप्टर है, उनको क्या है, यहां से यहां जाना है, यही करना है, लेकिन आपको पता है कि भांति-भांति के सुबह शाम। दरअसल हर एक के जीवन में अपनी स्थिति से अतिरिक्त ऐसी बहुत सी चीजें होती हैं, जिसको उसे मैनेज करना पड़ता है। जो उसने सोचा नहीं, वैसी चीजें व्यक्तिगत जीवन में भी आ जाती है, परिवार जीवन में आ जाती है और फिर उसको उसे भी संभालना पड़ता है। अब एक नेचर ऐसा होता है कि भई बहुत बड़ी आंधी आई है, चलो कुछ पल बैठ जाएं निकल जाने दो, कुछ संकट आया है, नीचे मुंडी करो यार समय जाएगा। शायद ऐसे लोग जीवन में कुछ एचीव नहीं कर सकते। मेरी प्रकृति है और जो मुझे काफी उपकारक लगी है। मैं हर चुनौती को चुनौती देता हूं। चुनौती जाएगी, स्थितियां सुधर जाएगी, इसकी प्रतीक्षा करते हुए मैं सोया नहीं रहता हूं। और उसके कारण मुझे नया-नया सिखने को मिलता है। हर परिस्थिति को हैंडल करने का नया तरीका, नए प्रयोग, नई strategy evolve करने का सहज मेरी एक विधा का अपना विकास होता जाता है। दूसरा मेरे भीतर एक बहुत बड़ा कान्फिडेंस है। मैं हमेशा मांगता हूं कि कुछ भी है, 140 करोड़ देशवासी मेरे साथ हैं। अगर 100 मिलियन चुनौतियां हैं तो billions of billions समाधान भी हैं। मुझे कभी नहीं लगता है कि मैं अकेला हूं, मुझे कभी नहीं लगता है कि मुझे करना है। मुझे हमेशा पता होता है, मेरा देश सामर्थ्यवान है, मेरे देश के लोग सामर्थ्यवान हैं, मेरे देश के लोगों का मस्तिष्क सामर्थ्यवान है, हम हर चुनौती को पार कर जाएंगे। ये मूलभूत मेरे भीतर मेरा सोचने का पिंड है। और इसके कारण मुझे कभी नहीं लगता है यार मुझ पर आया है क्या करूंगा? मुझे लगता है नहीं-नहीं 140 करोड़ लोग हैं, संभल जाएंगे। ठीक है आगे मुझे रहना पड़ेगा और गलत हुआ तो गाली मुझे खानी पड़ेगी। लेकिन मेरे देश का सामर्थ्य और इसलिए मैं अपनी शक्ति देश के सामर्थ्य को बढ़ाने में लगा रहा हूं। और जितना ज्यादा मैं मेरे देशवासियों का सामर्थ्य बढ़ाता जाऊंगा, चुनौतियों को चुनौती देने की हमारी ताकत और बढ़ती जाएगी।
अब हिन्दुस्तान ही हर सरकार को गरीबी के संकट से जूझना पड़ा है। हमारे देश में ये संकट है ही है। लेकिन मैं डरकर के बैठ नहीं गया। मैंने उसका रास्ता खोजा और मैंने ये सोचा कि सरकार होती कौन है- जो गरीबी हटाएगी। गरीबी तो तब हटेगी, जब मेरा हर गरीब तय करेगा कि अब मुझे गरीबी को परास्त करना है। अब वो सपने ही देखेगा तो होगी कि नहीं होगा। तो मेरी जिम्मेदारी बनती है कि मैं उसके सपने को पूरा करने के लिए सामर्थ्यवान बनाऊं, उसको पक्का घर दे दूं, उसको टॉयलेट दे दूं, उसको शिक्षा की व्यवस्था दे दूं, उसको आयुष्मान योजना का लाभ दे दूं, उसके घर से नल पहुंचा दूं, अगर मैं उन चीजों से जिससे उसे रोजमर्रा की जिंदगी में जूझना पड़ता है, अगर मैं उसको उससे मुक्ति दिला देता हूं, उसको empower करता जाता हूं, तो वो भी मानेगा अब गरीबी गई, अब मैं इसको मारूंगा। और आप देखिए कि इस दस साल के मेरे कार्यकाल में देश में 25 करोड़ लोग गरीबी से बाहर आए हैं। अब यही चीज और लोग ने भी जैसे बिताया था, मैं भी बिता देता। और इसलिए मेरी कोशिश रहती है कि हम देश की शक्ति पर, देश के संसाधनों पर भरोसा करें। जब हम इन सारी चीजों को देखते हैं। तो कभी हम अपने आपको अकेला महसूस नहीं करते जी। मैं क्या करूं? मैं कैसे करूं? अरे मैं तो एक चाय बेचने वाला इंसान क्या करूंगा, ऐसे नहीं सोच सकता हूं जी। मुझे पूरा भरोसा होना चाहिए और इसलिए पहली बात है कि आप जिनके लिए कर रहे हैं, उन पर आपका अपार भरोसा। दूसरा आपके पास नीर-क्षीर का विवेक चाहिए। कौन सा सही है, कौन सा गलत है। कौन सा आज जरूरी है, कौन सा अभी नहीं बाद में देखेंगे। आपमें priority तय करने का सामर्थ्य चाहिए। वो अनुभव से आता है, हर चीज को analyse करने से आता है, मैं दूसरा प्रयास ये करता हूं। तीसरा मैं गलती भी हो जाए तो ये मानकर चलता हूं कि ये मेरे लिए lesson है। मैं इसको निराशा का कारण नहीं मानता हूं। अब आप देखिए कोविड का संकट कितना भयंकर था, मामूली चुनौती थी क्या? पूरी दुनिया फंसी पड़ी थी। अब मेरे लिए भी था कि क्या करूं भई, मैं कह दूं अब क्या करे ये तो वैश्विक बीमारी है, दुनिया भर में से आई है, सब अपना अपना संभाल लो, मैंने ऐसा नहीं किया। रोज टीवी पर आया, रोज देशवासियों से बात की, कभी ताली बजाने के लिए कहा, कभी थाली बजाने के लिए कहा, कभी दीया जलाने के लिए कहा, वो एक्ट कोरोना को खत्म नहीं करता है। लेकिन वो एक्ट कोरोना के खिलाफ लड़ाई लड़ने की एक सामूहिक शक्ति को जन्म देता है। सामूहिक शक्ति को उभारना, अब देखिए पहले भी खेल के मैदान में हमारे लोग जाते थे, कभी कोई जीतकर आता था, कोई जीतकर नहीं आता था। जाने वाले को कोई पूछता नहीं था, आने वाले को कोई पूछता नहीं था। मैंने कहा भई तीन मेडल ये जीतकर आएंगे लेकिन मैं उसके ढोल पीटूंगा। तो धीरे-धीरे करके 107 मेडल लाने का सामर्थ्य उन्हीं बच्चों में से निकला। सामर्थ्य तो था, सही दिशा, सही रणनीति, सही नेतृत्व परिणाम लाता है। जिसका जिसके पास सामर्थ्य है, उसका सही उपयोग करना चाहिए। और मेरा तो गवर्नेंस का एक सिद्धांत रहा है कि अच्छी सरकार चलाने के लिए इन समस्याओं के समाधान के लिए भी आपको नीचे से ऊपर की तरफ सही जानकारी आनी चाहिए, perfect information आनी चाहिए और ऊपर से नीचे की तरफ perfect guidance जाना चाहिए। अगर ये 2 चैनल perfect रही, उसका communication, उसकी व्यवस्थाएं, उसके protocol उसको ठीक से किया तो आप चीजों को संभाल सकते हैं।
कोरोना एक बहुत बड़ा उदाहरण है। और इसलिए मैं माना हूं कि हम निराश होने का कोई कारण ही नहीं होता है जीवन में, और अगर एक बार मन में तय कर लिया कि निराश होना ही नहीं है, तो फिर सिवाय positivity कुछ आता ही नहीं है। और मेरे यहां निराशा के सारे दरवाजे बंद हैं। कोई कोना भी एक छोटी खिड़की भी मैंने खुली नहीं रखी है कि निराशा वहां से घुस जाए। और मैं आपने कभी देखा होगा मैं कभी रोता बैठता नहीं हूं जी। पता नहीं क्या होगा, वो हमारे साथ आएगा कि नहीं आएगा, वो हमसें भिड़ जाएगा क्या, अरे होता रहता है जी। हम किस चीज के लिए हैं, और इसलिए मैं मानता हूं कि जीवन में आत्मविश्वास से भरे हुए और अपने लक्ष्य के विषय में, और दूसरी बात है जब कोई निजी स्वार्थ नहीं होता है, खुद के लिए कुछ करना तय होता ,है तो निर्णयों में कभी भी दुविधा पैदा नहीं होती है। और वो एक बहुत बड़ी अमानत मेरे पास है। मेरा क्या, मुझे क्या, इससे मेरा कोई लेना-देना नहीं है, सिर्फ और सिर्फ देश के लिए करना है। और आपके लिए करना ताकि आपके माता-पिता को जिन मुसीबतों से गुजरना पड़ा, मैं नहीं चाहता हूं कि उन मुसीबतों से आपको गुजरना पड़े। हमें ऐसा देश बनाकर देना है दोस्तों, ताकि आपकी भावी पीढ़ी को भी, आपकी संतानों को भी लगे कि हम ऐसे देश के अंदर और पूरी तरह खिल सकते हैं, अपना सामर्थ्य दिखा सकते हैं, और ये हमारा सामूहिक संकल्प होना चाहिए। ये हमारा सामूहिक resolve होना चाहिए, और परिणाम मिलता है।
और इसलिए साथियों, जीवन में positive thinking की बहुत बड़ी ताकत होती है। बुरी से बुरी चीज में भी positive देखा जा सकता है। उसको हमें देखना चाहिए। धन्यवाद जी।
प्रस्तुतकर्ता– पीएम सर, आपने अत्यंत सरलता और सरसता से हमारे सभी प्रश्नों का समाधान कर दिया। हम हमारे अभिभावक और शिक्षक सदा आपके कृतज्ञ रहेंगे। हम सदा exam warrior रहेंगे, worrier नहीं। धन्यवाद माननीय प्रधानमंत्री जी।
प्रधानमंत्री – हो गए सारे सवाल।
प्रस्तुतकर्ता– कुछ परिंदे उड़ रहे हैं आंधियों के सामने, कुछ परिंदे उड़ रहे हैं आंधियों के सामने, उनमें ताकत है सही और हौसला होगा जरूर, इस तरह नित बढ़ते रहे तो देखना तुम एक दिन, तय समंदर तक कम फासला होगा जरूर, तय समंदर तक कम फासला होगा जरूर।
प्रधानमंत्री – आप लोगों ने देखा होगा कि ये बच्चे भी जिस प्रकार से anchoring कर रहे हैं। आप भी अपने स्कूल-कॉलेज में ये सब कर सकते हैं, तो उनसे जरूर सीखिएगा।
प्रस्तुतकर्ता– As the distinguished morning of ‘Pariksha Pe Charcha 2024’ concludes, we extend our sincere gratitude to Hon’ble Prime Minister, Shri Narendra Modi Ji for his wise counsel and inspirational touch. Today, Prime Minister Sir has exemplified the attributes of teaching as identified in the book …..(name Unclear). His suggestions have resonated and ignited the spirit of myriad of students, teachers and parents across our nation. Thank you once again PM Sir.
प्रधानमंत्री – चलिए साथियों, आप सबका भी बहुत-बहुत धन्यवाद। और मैं आशा करता हूं कि आप इसी उमंग, उत्साह के साथ आपके परिवार को भी विश्वास देंगे, खुद भी आत्मविश्वास से भरे हुए और अच्छे परिणाम, और जीवन में जो चाहा है, उसके लिए जीने की आदत बनेगी। और आप जो चाहते हैं वो परिणाम आपको प्राप्त होगा, मेरी आप सबको बहुत-बहुत शुभकामनाएं हैं। धन्यवाद।