उपस्थित सभी महानुभाव,

आप सबको क्रिसमस के पावन पर्व की बुहत-बहुत शुभकामनाएं। ये आज सौभाग्य है कि 25 दिसंबर, पंडित मदन मोहन मालवीय जी की जन्म जयंती पर, मुझे उस पावन धरती पर आने का सौभाग्य मिला है जिसके कण-कण पर पंडित जी के सपने बसे हुए हैं। जिनकी अंगुली पकड़ कर के हमें बड़े होने का सौभाग्य मिला, जिनके मार्गदर्शन में हमें काम करने का सौभाग्य मिला ऐसे अटल बिहारी वाजपेयी जी का भी आज जन्मदिन है और आज जहां पर पंडित जी का सपना साकार हुआ, उस धरती के नरेश उनकी पुण्यतिथि का भी अवसर है। उन सभी महापुरुषों को नमन करते हुए, आज एक प्रकार से ये कार्यक्रम अपने आप में एक पंचामृत है। एक ही समारोह में अनेक कार्यक्रमों का आज कोई-न-कोई रूप में आपके सामने प्रस्तुतिकरण हो रहा है। कहीं शिलान्यास हो रहा है तो कहीं युक्ति का Promotion हो रहा है तो Teachers’ Training की व्यवस्था हो रही है तो काशी जिसकी पहचान में एक बहुत महत्वपूर्ण बात है कि यहां कि सांस्कृतिक विरासत उन सभी का एक साथ आज आपके बीच में उद्घाटन करने का अवसर मुझे मिला है। मेरे लिए सौभाग्य की बात है।

मैं विशेष रूप से इस बात की चर्चा करना चाहता हूं कि जब-जब मानवजाति ने ज्ञान युग में प्रवेश किया है तब-तब भारत ने विश्व गुरू की भूमिका निभाई है और 21वीं सदी ज्ञान की सदी है मतलब की 21वीं सदी भारत की बहुत बड़ी जिम्मेवारियों की भी सदी है और अगर ज्ञान युग ही हमारी विरासत है तो भारत ने उस एक क्षेत्र में विश्व के उपयोगी कुछ न कुछ योगदान देने की समय की मांग है। मनुष्य का पूर्णत्व Technology में समाहित नहीं हो सकता है और पूर्णत्व के बिना मनुष्य मानव कल्याण की धरोहर नहीं बन सकता है और इसलिए पूर्णत्व के लक्ष्य को प्राप्त करना उसी अगर मकसद को लेकर के चलते हैं तो विज्ञान हो, Technology हो नए-नए Innovations हो, Inventions हो लेकिन उस बीच में भी एक मानव मन एक परिपूर्ण मानव मन ये भी विश्व की बहुत बड़ी आवश्यकता है।

हमारी शिक्षा व्यवस्था Robot पैदा करने के लिए नहीं है। Robot तो शायद 5-50 वैज्ञानिक मिलकर शायद लेबोरेटरी में पैदा कर देंगे, लेकिन नरकर्णी करे तो नारायण हो जाए। ये जिस भूमि का संदेश है वहां तो व्यक्तित्व का संपूर्णतम विकास यही परिलक्षित होता है और इसलिए इस धरती से जो आवाज उठी थी, इस धरती से जो संस्कार की गंगा बही थी उसमें संस्कृति की शिक्षा तो थी लेकिन इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण था शिक्षा की संस्कृति और आज कहीं ऐसा तो नहीं है सदियों से संजोयी हुई हमारी शैक्षिक परंपरा है, जो एक संस्कृतिक विरासत के रूप में विकसित हुई है। वो शिक्षा की संस्कृति तो लुप्त नहीं हो रही है? वो भी तो कहीं प्रदूषित नहीं हो रही है? और तब जाकर के आवश्यकता है कि कालवाह्य चीजों को छोड़कर के उज्जवलतम भविष्य की ओर नजर रखते हुए पुरानी धरोहर के अधिष्ठान को संजोते हुए हम किस प्रकार की व्यवस्था को विकसित करें जो आने वाली सदियों तक मानव कल्याण के काम आएं।

हम दुनिया के किसी भी महापुरुष का अगर जीवन चरित्र पढ़ेंगे, तो दो बातें बहुत स्वाभाविक रूप से उभर कर के आती हैं। अगर कोई पूछे कि आपके जीवन की सफलता के कारण तो बहुत एक लोगों से एक बात है कि एक मेरी मां का योगदान, हर कोई कहता है और दूसरा मेरे शिक्षक का योगदान। कोई ऐसा महापुरुष नहीं होगा जिसने ये न कहा हो कि मेरे शिक्षक का बुहत बड़ा contribution है, मेरी जिंदगी को बनाने में, अगर ये हमें सच्चाई को हम स्वीकार करते हैं तो हम ये बहुमूल्य जो हमारी धरोहर है इसको हम और अधिक तेजस्वी कैसे बनाएं और अधिक प्राणवान कैसे बनाएं और उसी में से विचार आया कि, वो देश जिसके पास इतना बड़ा युवा सामर्थ्य है, युवा शक्ति है।

आज पूरे विश्व को उत्तम से उत्तम शिक्षकों की बहुत बड़ी खोट है, कमी है। आप कितने ही धनी परिवार से मिलिए, कितने ही सुखी परिवार से मिलिए, उनको पूछिए किसी एक चीज की आपको आवश्यकता लगती है तो क्या लगती है। अरबों-खरबों रुपयों का मालिक होगा, घर में हर प्रकार का सुख-वैभव होगा तो वो ये कहेगा कि मुझे अच्छा टीचर चाहिए मेरे बच्चों के लिए। आप अपने ड्राइवर से भी पूछिए कि आपकी क्या इच्छा है तो ड्राइवर भी कहता है कि मेरे बच्चे भी अच्छी शिक्षी ही मेरी कामना है। अच्छी शिक्षा इंफ्रास्ट्रक्चर के दायरे में नहीं आती। Infrastructure तो एक व्यवस्था है। अच्छी शिक्षा अच्छे शिक्षकों से जुड़ी हुई होती है और इसलिए अच्छे शिक्षकों का निर्माण कैसे हो और हम एक नए तरीके से कैसे सोचें?

आज 12 वीं के बीएड, एमएड वगैरह होता है वो आते हैं, ज्यादातर बहुत पहले से ही जिसने तय किया कि मुझे शिक्षक बनना है ऐसे बहुत कम लोग होते हैं। ज्यादातर कुछ न कुछ बनने का try करते-करके करके हुए आखिर कर यहां चल पड़ते हैं। मैं यहां के लोगों की बात नहीं कर रहा हूं। हम एक माहौल बना सकते हैं कि 10वीं,12वीं की विद्यार्थी अवस्था में विद्यार्थियों के मन में एक सपना हो मैं एक उत्तम शिक्षक बनना चाहता हूं। ये कैसे बोया जाए, ये environment कैसे create किया जाए? और 12वीं के बाद पहले Graduation के बाद law faculty में जाते थे और वकालत धीरे-धीरे बदलाव आया और 12वीं के बाद ही पांच Law Faculty में जाते हैं और lawyer बनकर आते हैं। क्या 10वीं और 12वीं के बाद ही Teacher का एक पूर्ण समय का Course शुरू हो सकता है और उसमें Subject specific मिले और जब एक विद्यार्थी जिसे पता है कि मुझे Teacher बनना है तो Classroom में वो सिर्फ Exam देने के लिए पढ़ता नहीं है वो अपने शिक्षक की हर बारीकी को देखता है और हर चीज में सोचता है कि मैं शिक्षक बनूंगा तो कैसे करूंगा, मैं शिक्षक बनूंगा ये उसके मन में रहता है और ये एक पूरा Culture बदलने की आवश्यकता है।

उसके साथ-साथ भले ही वो विज्ञान का शिक्षक हो, गणित का शिक्षक हो उसको हमारी परंपराओं का ज्ञान होना चाहिए। उसे Child Psychology का पता होना चाहिए, उसको विद्यार्थियों को Counselling कैसे करना चाहिए ये सीखना चाहिए, उसे विद्यार्थियों को मित्रवत व्यवहार कैसे करना है ये सीखाना चाहिए और ये चीजें Training से हो सकती हैं, ऐसा नहीं है कि ये नहीं हो सकता है। सब कुछ Training से हो सकता है और हम इस प्रकार के उत्तम शिक्षकों को तैयार करें मुझे विश्वास है कि दुनिया को जितने शिक्षकों की आवश्यकता है, हम पूरे विश्व को, भारत के पास इतना बड़ा युवा धन है लाखों की तादाद में हम शिक्षक Export कर सकते हैं। Already मांग तो है ही है हमें योग्यता के साथ लोगों को तैयार करने की आवश्यकता है और एक व्यापारी जाता है बाहर तो Dollar या Pound ले आता है लेकिन एक शिक्षक जाता है तो पूरी-पूरी पीढ़ी को अपने साथ ले आता है। हम कल्पना कर सकते हैं कितना बड़ा काम हम वैश्विक स्तर पर कर सकते हैं और उसी एक सपने को साकार करने के लिए पंड़ित मदन मोहन मालवीय जी के नाम से इस मिशन को प्रारंभ किया गया है। और आज उसका शुभारंभ करने का मुझे अवसर मिला है।

आज पूरे विश्व में भारत के Handicraft तरफ लोगों का ध्यान है, आकर्षण है लेकिन हमारी इस पुरानी पद्धतियों से बनी हुई चीजें Quantum भी कम होता है, Wastage भी बहुत होता है, समय भी बहुत जाता है और इसके कारण एक दिन में वो पांच खिलौने बनाता है तो पेट नहीं भरता है लेकिन अगर Technology के उपयोग से 25 खिलौने बनाता है तो उसका पेट भी भरता है, बाजार में जाता है और इसलिए आधुनिक विज्ञान और Technology को हमारे परंपरागत जो खिलौने हैं उसका कैसे जोड़ा जाए उसका एक छोटा-सा प्रदर्शन मैंने अभी उनके प्रयोग देखे, मैं देख रहा था एक बहुत ही सामान्य प्रकार की टेक्नोलोजी को विकसित किया गया है लेकिन वो उनके लिए बहुत बड़ी उपयोगिता है वरना वो लंबे समय अरसे से वो ही करते रहते थे। उसके कारण उनके Production में Quality, Production में Quantity और उसके कारण वैश्विक बाजार में अपनी जगह बनाने की संभावनाएं और हमारे Handicrafts की विश्व बाजार की संभावनाएं बढ़ी हैं। आज हम उनको Online Marketing की सुविधाएं उपलब्ध कराएं। युक्ति, जो अभियान है उसके माध्यम से हमारे जो कलाकार हैं, काश्तकारों को ,हमारे विश्वकर्मा हैं ये इन सभी विश्वकर्माओं के हाथ में हुनर देने का उनका प्रयास। उनके पास जो skill है उसको Technology के लिए Up-gradation करने का प्रयास। उस Technology में नई Research हो उनको Provide हो, उस दिशा में प्रयास बढ़ रहे हैं।

हमारे देश में सांस्कृतिक कार्यक्रम तो बहुत होते रहते हैं। कई जगहों पर होते हैं। बनारस में एक विशेष रूप से भी आरंभ किया है। हमारे टूरिज्म को बढ़ावा देने में इसकी बहुत बड़ी ताकत है। आप देखते होंगे कि दुनिया ने, हम ये तो गर्व करते थे कि हमारे ऋषियों ने, मुनियों ने हमें योग दिया holistic health के लिए preventive health के लिए योग की हमें विरासत मिली और धीरे-धीरे दुनिया को भी लगने लगा योग है क्या चीज और दुनिया में लोग पहुंच गए। नाक पकड़कर के डॉलर भी कमाने लग गए। लेकिन ये शास्त्र आज के संकटों के युग में जी रहे मानव को एक संतुलित जीवन जीने की ताकत कैसे मिले। योग बहुत बड़ा योगदान कर सकता है। मैं सितंबर में UN में गया था और UN में पहली बार मुझे भाषण करने का दायित्व था। मैंने उस दिन कहा कि हम एक अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाएं और मैंने प्रस्तावित किया था 21 जून। सामान्य रूप से इस प्रकार के जब प्रस्ताव आते हैं तो उसको पारित होने में डेढ़ साल, दो साल, ढ़ाई साल लग जाते हैं। अब तक ऐसे जितने प्रस्ताव आए हैं उसमें ज्यादा से ज्यादा 150-160 देशों नें सहभागिता दिखाई है। जब योग का प्रस्ताव रखा मुझे आज बड़े आनंद और गर्व के साथ कहना है और बनारस के प्रतिनिधि के नाते बनारस के नागरिकों को ये हिसाब देते हुए, मुझे गर्व होता है कि 177 Countries Co- sponsor बनी जो एक World Record है। इस प्रकार के प्रस्ताव में 177 Countries का Co- sponsor बनना एक World Record है और जिस काम में डेढ़-दो साल लगते हैं वो काम करीब-करीब 100 दिन में पूरा हो गया। UN ने इसे 21 जून को घोषित कर दिया ये भी अपने आप में एक World Record है।

हमारी सांस्कृतिक विरासत की एक ताकत है। हम दुनिया के सामने आत्मविश्वास के साथ कैसे ले जाएं। हमारा गीत-संगीत, नृत्य, नाट्य, कला, साहित्य कितनी बड़ी विरासत है। सूरज उगने से पहले कौन-सा संगीत, सूरज उगने के बाद कौन-सा संगीत यहां तक कि बारीक रेखाएं बनाने वाला काम हमारे पूर्वजों ने किया है और दुनिया में संगीत तो बहुत प्रकार के हैं लेकिन ज्यादातर संगीत तन को डोलाते हैं बहुत कम संगीत मन को डोलाते हैं। हम उस संगीत के धनी हैं जो मन को डोलाता है और मन को डोलाने वाले संगीत को विश्व के अंदर कैसे रखें यही प्रयासों से वो आगे बढ़ने वाला है लेकिन मेरे मन में विचार है क्या बनारस के कुछ स्कूल, स्कूल हो, कॉलेज हो आगे आ सकते हैं क्या और बनारस के जीवन पर ही एक विषय पर ही एक स्कूल की Mastery हो बनारस की विरासत पर, कोई एक स्कूल हो जिसकी तुलसी पर Mastery हो, कोई स्कूल हो जिसकी कबीर पर हो, ऐसी जो भी यहां की विरासत है उन सब पर और हर दिन शाम के समय एक घंटा उसी स्कूल में नाट्य मंच पर Daily उसका कार्यक्रम हो और जो Tourist आएं जिसको कबीर के पास जाना है उसके स्कूल में चला जाएगा, बैठेगा घंटे-भर, जिसको तुलसी के पास जाना है वो उस स्कूल में जाए बैठेगा घंटे भर , धीरे-धीरे स्कूल टिकट भी रख सकता है अगर popular हो जाएगी तो स्कूल की income भी बढ़ सकती है लेकिन काशी में आया हुआ Tourist वो आएगा हमारे पूर्वजों के प्रयासों के कारण, बाबा भोलेनाथ के कारण, मां गंगा के कारण, लेकिन रुकेगा हमारे प्रयासों के कारण। आने वाला है उसके लिए कोई मेहनत करने की जरूरत नहीं क्योंकि वो जन्म से ही तय करके बैठा है कि जाने है एक बार बाबा के दरबार में जाना है लेकिन वो एक रात यहां तब रुकेगा उसके लिए हम ऐसी व्यवस्था करें तब ऐसी व्यवस्था विकसित करें और एक बार रात रुक गया तो यहां के 5-50 नौजवानों को रोजगार मिलना ही मिलना है। वो 200-500-1000 रुपए खर्च करके जाएगा जो हमारे बनारस की इकॉनोमी को चलाएगा और हर दिन ऐसे हजारों लोग आते हैं और रुकते हैं तो पूरी Economy यहां कितनी बढ़ सकती है लेकिन इसके लिए ये छोटी-छोटी चीजें काम आ सकती हैं।

हमारे हर स्कूल में कैसा हो, हमारे जो सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं, परंपरागत जो हमारे ज्ञान-विज्ञान हैं उसको तो प्रस्तुत करे लेकिन साथ-साथ समय की मांग इस प्रकार की स्पर्धाएं हो सकती हैं, मान लीजिए ऐसे नाट्य लेखक हो जो स्वच्छता पर ही बड़े Touchy नाटक लिखें अगर स्वच्छता के कारण गरीब को कितना फायदा होता है आज गंदगी के कारण Average एक गरीब को सात हजार रुपए दवाई का खर्चा आता है अगर हम स्वच्छता कर लें तो गरीब का सात हजार रुपए बच जाता है। तीन लोगों का परिवार है तो 21 हजार रुपए बच जाता है। ये स्वच्छता का कार्यक्रम एक बहुत बड़ा अर्थ कारण भी उसके साथ जुड़ा हुआ है और स्वच्छता ही है जो टूरिज्म की लिए बहुत बड़ी आवश्यकता होती है। क्या हमारे सांस्कृतिक कार्यक्रम, नाट्य मंचन में ऐसे मंचन, ऐसे काव्य मंचन, ऐसे गीत, कवि सम्मेलन हो तो स्वच्छता पर क्यों न हो, उसी प्रकार से बेटी बचाओ भारत जैसा देश जहां नारी के गौरव की बड़ी गाथाएं हम सुनते हैं। इसी धरती की बेटी रानी लक्ष्मीबाई को हम याद करते हैं लेकिन उसी देश में बटी को मां के गर्भ में मार देते हैं। इससे बड़ा कोई पाप हो नहीं सकता है। क्या हमारे नाट्य मंचन पर हमारे कलाकारों के माध्यम से लगातार बार-बार हमारी कविताओं में, हमारे नाट्य मंचों पर, हमारे संवाद में, हमारे लेखन में बेटी बचाओ जैसे अभियान हम घर-घर पहुंच सकते हैं।

भारत जैसा देश जहां चींटी को भी अन्न खिलाना ये हमारी परंपरा रही है, गाय को भी खिलाना, ये हमारी परंपरा रही है। उस देश में कुपोषण, हमारे बालकों को……उस देश में गर्भवती माता कुपोषित हो इससे बड़ी पीड़ा की बात क्या हो सकती है। क्या हमारे नाट्य मंचन के द्वारा, क्या हमारी सांस्कृतिक धरोहर के द्वारा से हम इन चीजों को प्रलोभन के उद्देश्य में ला सकते हैं क्या? मैं कला, साहित्य जगत के लोगों से आग्रह करूंगा कि नए रूप में देश में झकझोरने के लिए कुछ करें।

जब आजादी का आंदोलन चला था तब ये ही साहित्यकार और कलाकार थे जिनकी कलम ने देश को खड़ा कर दिया था। स्वतंत्र भारत में सुशासन का मंत्र लेकर चल रहे तब ये ही हमारे कला और साहित्य के लोगों की कलम के माध्यम से एक राष्ट्र में नवजागरण का माहौल बना सकते हैं।

मैं उन सबको निमंत्रित करता हूं कि सांस्कृतिक सप्ताह यहां मनाया जा रहा है उसके साथ इसका भी यहां चिंतन हो, मनन हो और देश के लिए इस प्रकार की स्पर्धाएं हो और देश के लिए इस प्रकार का काम हो।

मुझे विश्वास है कि इस प्रयास से सपने पूरे हो सकते हैं साथियों, देश दुनिया में नाम रोशन कर सकता है। मैं अनुभव से कह सकता हूं, 6 महीने के मेरे अनुभव से कह सकता हूं पूरा विश्व भारत की ओर देख रहा है हम तैयार नहीं है, हम तैयार नहीं है हमें अपने आप को तैयार करना है, विश्व तैयार बैठा है।

मैं फिर एक बार पंडित मदन मोहन मालवीय जी की धरती को प्रणाम करता हूं, उस महापुरुष को प्रणाम करता हूं। आपको बहुत-बुहत शुभकामनाएं देता हूं।

धन्यवाद

Explore More
78ਵੇਂ ਸੁਤੰਤਰਤਾ ਦਿਵਸ ਦੇ ਅਵਸਰ ‘ਤੇ ਲਾਲ ਕਿਲੇ ਦੀ ਫਸੀਲ ਤੋਂ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ, ਸ਼੍ਰੀ ਨਰੇਂਦਰ ਮੋਦੀ ਦੇ ਸੰਬੋਧਨ ਦਾ ਮੂਲ-ਪਾਠ

Popular Speeches

78ਵੇਂ ਸੁਤੰਤਰਤਾ ਦਿਵਸ ਦੇ ਅਵਸਰ ‘ਤੇ ਲਾਲ ਕਿਲੇ ਦੀ ਫਸੀਲ ਤੋਂ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ, ਸ਼੍ਰੀ ਨਰੇਂਦਰ ਮੋਦੀ ਦੇ ਸੰਬੋਧਨ ਦਾ ਮੂਲ-ਪਾਠ
Cabinet extends One-Time Special Package for DAP fertilisers to farmers

Media Coverage

Cabinet extends One-Time Special Package for DAP fertilisers to farmers
NM on the go

Nm on the go

Always be the first to hear from the PM. Get the App Now!
...
The Constitution is our guiding light: PM Modi
A special website named constitution75.com has been created to connect the citizens of the country with the legacy of the Constitution: PM
Mahakumbh Ka Sandesh, Ek Ho Poora Desh: PM Modi in Mann Ki Baat
Our film and entertainment industry has strengthened the sentiment of 'Ek Bharat - Shreshtha Bharat': PM
Raj Kapoor ji introduced the world to the soft power of India through films: PM Modi
Rafi Sahab’s voice had that magic which touched every heart: PM Modi remembers the legendary singer during Mann Ki Baat
There is only one mantra to fight cancer - Awareness, Action and Assurance: PM Modi
The Ayushman Bharat Yojana has reduced the financial problems in cancer treatment to a great extent: PM Modi

ਮੇਰੇ ਪਿਆਰੇ ਦੇਸ਼ਵਾਸੀਓ,

ਨਮਸਕਾਰ। 2025 ਬਸ ਹੁਣ ਤਾਂ ਆ ਹੀ ਗਿਆ ਹੈ, ਦਰਵਾਜ਼ੇ ’ਤੇ ਦਸਤਕ ਦੇ ਹੀ ਰਿਹਾ ਹੈ। 2025 ਵਿੱਚ 26 ਜਨਵਰੀ ਨੂੰ ਸਾਡੇ ਸੰਵਿਧਾਨ ਨੂੰ ਲਾਗੂ ਹੋਇਆਂ 75 ਸਾਲ ਪੂਰੇ ਹੋਣ ਵਾਲੇ ਹਨ, ਸਾਡੇ ਸਾਰਿਆਂ ਲਈ ਬਹੁਤ ਮਾਣ ਦੀ ਗੱਲ ਹੈ। ਸਾਡੇ ਸੰਵਿਧਾਨ ਨਿਰਮਾਤਾਵਾਂ ਨੇ ਸਾਨੂੰ ਜੋ ਸੰਵਿਧਾਨ ਸੌਂਪਿਆ ਹੈ, ਉਹ ਸਮੇਂ ਦੀ ਹਰ ਕਸੌਟੀ ’ਤੇ ਖ਼ਤਰਾ ਉਤਰਿਆ ਹੈ। ਸੰਵਿਧਾਨ ਸਾਡੇ ਲਈ guiding light ਹੈ, ਸਾਡਾ ਮਾਰਗ ਦਰਸ਼ਕ ਹੈ। ਇਹ ਭਾਰਤ ਦਾ ਸੰਵਿਧਾਨ ਹੀ ਹੈ, ਜਿਸ ਦੀ ਵਜ੍ਹਾ ਨਾਲ ਮੈਂ ਅੱਜ ਇੱਥੇ ਹਾਂ, ਤੁਹਾਡੇ ਨਾਲ ਗੱਲ ਕਰ ਪਾ ਰਿਹਾ ਹਾਂ। ਇਸ ਸਾਲ 26 ਨਵੰਬਰ ਨੂੰ ਸੰਵਿਧਾਨ ਦਿਵਸ ਤੋਂ ਇੱਕ  ਸਾਲ ਤੱਕ ਚੱਲਣ ਵਾਲੀਆਂ ਕਈ ਗਤੀਵਿਧੀਆਂ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਈਆਂ ਹਨ। ਦੇਸ਼ ਦੇ ਨਾਗਰਿਕਾਂ ਨੂੰ ਸੰਵਿਧਾਨ ਦੀ ਵਿਰਾਸਤ ਨਾਲ ਜੋੜਨ ਦੇ ਲਈ constitution75.com ਨਾਂ ਨਾਲ ਇੱਕ  ਖਾਸ ਵੈੱਬਸਾਈਟ ਵੀ ਬਣਾਈ ਗਈ ਹੈ। ਇਸ ਵਿੱਚ ਤੁਸੀਂ ਸੰਵਿਧਾਨ ਦੀ ਪ੍ਰਸਤਾਵਨਾ ਪੜ੍ਹ ਕੇ ਆਪਣਾ ਵੀਡੀਓ ਅੱਪਲੋਡ ਕਰ ਸਕਦੇ ਹੋ। ਵੱਖ-ਵੱਖ ਭਾਸ਼ਾਵਾਂ ਵਿੱਚ ਸੰਵਿਧਾਨ ਪੜ੍ਹ ਸਕਦੇ ਹੋ, ਸੰਵਿਧਾਨ ਦੇ ਬਾਰੇ ਪ੍ਰਸ਼ਨ ਵੀ ਪੁੱਛ ਸਕਦੇ ਹੋ। ‘ਮਨ ਕੀ ਬਾਤ’ ਦੇ ਸਰੋਤਿਆਂ, ਸਕੂਲ ਵਿੱਚ ਪੜ੍ਹਨ ਵਾਲੇ ਬੱਚਿਆਂ ਨੂੰ, ਕਾਲਜ ਵਿੱਚ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਨੌਜਵਾਨਾਂ ਨੂੰ ਮੇਰੀ ਬੇਨਤੀ ਹੈ ਕਿ ਇਸ ਵੈੱਬਸਾਈਟ ’ਤੇ ਜ਼ਰੂਰ ਜਾ ਕੇ ਵੇਖੋ, ਇਸ ਦਾ ਹਿੱਸਾ ਬਣੋ।


ਸਾਥੀਓ, ਅਗਲੇ ਮਹੀਨੇ 13 ਤਾਰੀਖ ਤੋਂ ਪ੍ਰਯਾਗਰਾਜ ਵਿੱਚ ਮਹਾਕੁੰਭ ਵੀ ਹੋਣ ਵਾਲਾ ਹੈ। ਇਸ ਸਮੇਂ ਉੱਥੇ ਸੰਗਮ ਤਟ ’ਤੇ ਜ਼ਬਰਦਸਤ ਤਿਆਰੀਆਂ ਚੱਲ ਰਹੀਆਂ ਹਨ। ਮੈਨੂੰ ਯਾਦ ਹੈ ਕਿ ਅਜੇ ਕੁਝ ਦਿਨ ਪਹਿਲਾਂ ਜਦੋਂ ਮੈਂ ਪ੍ਰਯਾਗਰਾਜ ਗਿਆ ਸੀ ਤਾਂ ਹੈਲੀਕੌਪਟਰ ਨਾਲ ਪੂਰਾ ਕੁੰਭ ਖੇਤਰ ਵੇਖ ਕੇ ਦਿਲ ਪ੍ਰਸੰਨ ਹੋ ਗਿਆ ਸੀ। ਏਨਾ ਵਿਸ਼ਾਲ! ਏਨਾ ਸੁੰਦਰ! ਏਨਾ ਸ਼ਾਨਦਾਰ!


ਸਾਥੀਓ, ਮਹਾਕੁੰਭ ਦੀ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾ ਸਿਰਫ ਇਸ ਦੀ ਵਿਸ਼ਾਲਤਾ ਵਿੱਚ ਹੀ ਨਹੀਂ ਹੈ, ਕੁੰਭ ਦੀ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾ ਇਸ ਦੀ ਵਿਭਿੰਨਤਾ ਵਿੱਚ ਵੀ ਹੈ। ਇਸ ਆਯੋਜਨ ਵਿੱਚ ਕਰੋੜਾਂ ਲੋਕ ਇਕੱਠੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ, ਲੱਖਾਂ ਸੰਤ, ਹਜ਼ਾਰਾਂ ਪਰੰਪਰਾਵਾਂ, ਸੈਂਕੜੇ ਸੰਪ੍ਰਦਾਇ, ਅਨੇਕਾਂ ਅਖਾੜੇ ਹਰ ਕੋਈ ਇਸ ਆਯੋਜਨ ਦਾ ਹਿੱਸਾ ਬਣਦੇ ਹਨ। ਕਿਤੇ ਕੋਈ ਭੇਦਭਾਵ ਨਹੀਂ ਦਿਖਾਈ ਦਿੰਦਾ, ਕੋਈ ਵੱਡਾ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਕੋਈ ਛੋਟਾ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦਾ ਹੈ। ਅਨੇਕਤਾ ਵਿੱਚ ਏਕਤਾ ਦਾ ਅਜਿਹਾ ਦ੍ਰਿਸ਼ ਵਿਸ਼ਵ ਵਿੱਚ ਕਿਤੇ ਹੋਰ ਵੇਖਣ ਨੂੰ ਨਹੀਂ ਮਿਲੇਗਾ। ਇਸ ਲਈ ਸਾਡਾ ਕੁੰਭ ਏਕਤਾ ਦਾ ਮਹਾਕੁੰਭ ਵੀ ਹੁੰਦਾ ਹੈ। ਇਸ ਵਾਰ ਦਾ ਮਹਾਕੁੰਭ ਵੀ ਏਕਤਾ ਦੇ ਮਹਾਕੁੰਭ ਦੇ ਮੰਤਰ ਨੂੰ ਮਜ਼ਬੂਤ ਕਰੇਗਾ। ਮੈਂ ਤੁਹਾਨੂੰ ਸਾਰਿਆਂ ਨੂੰ ਕਹਾਂਗਾ ਕਿ ਜਦੋਂ ਅਸੀਂ ਕੁੰਭ ਵਿੱਚ ਸ਼ਾਮਲ ਹੋਈਏ ਤਾਂ ਏਕਤਾ ਦੇ ਸੰਕਲਪ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਨਾਲ ਲੈ ਕੇ ਵਾਪਸ ਆਈਏ। ਇਸ ਸਮਾਜ ਵਿੱਚ ਵੰਡ ਅਤੇ ਦਵੈਸ਼ ਦੇ ਭਾਵ ਨੂੰ ਨਸ਼ਟ ਕਰਨ ਦਾ ਸੰਕਲਪ ਵੀ ਲਈਏ। ਜੇਕਰ ਘੱਟ ਸ਼ਬਦਾਂ ਵਿੱਚ ਮੈਂ ਕਹਿਣਾ ਹੋਵੇ ਤਾਂ ਮੈਂ ਕਹਾਂਗਾ:-


ਮਹਾਕੁੰਭ ਕਾ ਸੰਦੇਸ਼, ਏਕ ਹੋ ਪੂਰਾ ਦੇਸ਼।

ਮਹਾਕੁੰਭ ਕਾ ਸੰਦੇਸ਼, ਏਕ ਹੋ ਪੂਰਾ ਦੇਸ਼।


ਅਤੇ ਜੇਕਰ ਦੂਸਰੇ ਤਰੀਕੇ ਨਾਲ ਕਹਿਣਾ ਹੈ ਤਾਂ ਮੈਂ ਕਹਾਂਗਾ...

ਗੰਗਾ ਕੀ ਅਵਿਰਲ ਧਾਰਾ, ਨਾ ਬੰਟੇ ਸਮਾਜ ਹਮਾਰਾ।

ਗੰਗਾ ਕੀ ਅਵਿਰਲ ਧਾਰਾ, ਨਾ ਬੰਟੇ ਸਮਾਜ ਹਮਾਰਾ।


ਸਾਥੀਓ, ਇਸ ਵਾਰੀ ਪ੍ਰਯਾਗਰਾਜ ਵਿੱਚ ਦੇਸ਼ ਅਤੇ ਦੁਨੀਆ ਦੇ ਸ਼ਰਧਾਲੂ ਡਿਜੀਟਲ ਮਹਾਕੁੰਭ ਦੇ ਵੀ ਗਵਾਹ ਬਣਨਗੇ। ਡਿਜੀਟਲ ਨੈਵੀਗੇਸ਼ਨ ਦੀ ਮਦਦ ਨਾਲ ਤੁਹਾਨੂੰ ਵੱਖ-ਵੱਖ ਘਾਟ, ਮੰਦਿਰ, ਸਾਧੂਆਂ ਦੇ ਅਖਾੜਿਆਂ ਤੱਕ ਪਹੁੰਚਣ ਦਾ ਰਸਤਾ ਮਿਲੇਗਾ। ਇਹੀ ਨੈਵੀਗੇਸ਼ਨ ਸਿਸਟਮ ਤੁਹਾਡੀ ਪਾਰਕਿੰਗ ਤੱਕ ਪਹੁੰਚਣ ਵਿੱਚ ਵੀ ਮਦਦ ਕਰੇਗਾ। ਪਹਿਲੀ ਵਾਰੀ ਕੁੰਭ ਆਯੋਜਨ ਵਿੱਚ 19 chatbot ਦਾ ਪ੍ਰਯੋਗ ਹੋਵੇਗਾ। 19 chatbot ਦੇ ਮਾਧਿਅਮ ਨਾਲ 11 ਭਾਰਤੀ ਭਾਸ਼ਾਵਾਂ ਵਿੱਚ ਕੁੰਭ ਨਾਲ ਜੁੜੀ ਹਰ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੀ ਜਾਣਕਾਰੀ ਹਾਸਲ ਕੀਤੀ ਜਾ ਸਕੇਗੀ। ਇਸ 19 chatbot ਨਾਲ ਕੋਈ ਵੀ text type ਕਰਕੇ ਜਾਂ ਬੋਲ ਕੇ ਕਿਸੇ ਵੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਦੀ ਮਦਦ ਮੰਗ ਸਕਦਾ ਹੈ। ਪੂਰੇ ਮੇਲੇ ਖੇਤਰ ਨੂੰ 19-Powered cameras ਨਾਲ ਕਵਰ ਕੀਤਾ ਜਾ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਕੁੰਭ ਵਿੱਚ ਜੇਕਰ ਕੋਈ ਆਪਣੇ ਜਾਣਕਾਰਾਂ ਤੋਂ ਵਿਛੜ ਜਾਵੇਗਾ ਤਾਂ ਇਨ੍ਹਾਂ ਕੈਮਰਿਆਂ ਨਾਲ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਲੱਭਣ ਵਿੱਚ ਮਦਦ ਮਿਲੇਗੀ। ਸ਼ਰਧਾਲੂਆਂ ਨੂੰ digital lost & found center ਦੀ ਸੁਵਿਧਾ ਵੀ ਮਿਲੇਗੀ। ਸ਼ਰਧਾਲੂਆਂ ਨੂੰ ਮੋਬਾਈਲ ’ਤੇ government-approved tour packages, ਠਹਿਣ ਦੀ ਜਗ੍ਹਾ ਅਤੇ homestay ਦੇ ਬਾਰੇ ਵੀ ਜਾਣਕਾਰੀ ਦਿੱਤੀ ਜਾਵੇਗੀ। ਤੁਸੀਂ ਵੀ ਮਹਾਕੁੰਭ ਵਿੱਚ ਜਾਓ ਤਾਂ ਇਨ੍ਹਾਂ ਸਹੂਲਤਾਂ ਦਾ ਲਾਭ ਉਠਾਓ ਅਤੇ ਹਾਂ #ਏਕਤਾ ਦਾ ਮਹਾਕੁੰਭ ਦੇ ਨਾਲ ਆਪਣੀ ਸੈਲਫੀ ਜ਼ਰੂਰ ਅੱਪਲੋਡ ਕਰੋ।


ਸਾਥੀਓ, ‘ਮਨ ਕੀ ਬਾਤ’ ਯਾਨੀ MK2 ਵਿੱਚ ਹੁਣ ਗੱਲ K“2 ਦੀ, ਜੋ ਵੱਡੇ ਬਜ਼ੁਰਗ ਹਨ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚੋਂ ਬਹੁਤ ਸਾਰੇ ਲੋਕਾਂ ਨੂੰ K“2 ਦੇ ਬਾਰੇ ਪਤਾ ਨਹੀਂ ਹੋਵੇਗਾ, ਲੇਕਿਨ ਜ਼ਰਾ ਬੱਚਿਆਂ ਨੂੰ ਪੁੱਛੋ K“2 ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਵਿੱਚ ਬਹੁਤ ਹੀ ਸੁਪਰਹਿੱਟ ਹੈ। K“2 ਯਾਨੀ ਕ੍ਰਿਸ਼, ਤ੍ਰਿਸ਼ ਅਤੇ ਬਾਲਟੀਬਾਏ। ਤੁਹਾਨੂੰ ਸ਼ਾਇਦ ਪਤਾ ਹੋਵੇਗਾ ਕਿ ਬੱਚਿਆਂ ਦੇ ਮਨਪਸੰਦ animation series ਅਤੇ ਉਸ ਦਾ ਨਾਮ ਹੈ K“2 - ਭਾਰਤ ਹੈਂ ਹਮ ਅਤੇ ਹੁਣ ਇਸ ਦਾ ਦੂਸਰਾ ਸੀਜ਼ਨ ਵੀ ਆ ਗਿਆ ਹੈ। ਇਹ ਤਿੰਨ ਐਮੀਨੇਸ਼ਨ ਕਰੈਕਟਰ ਸਾਨੂੰ ਭਾਰਤੀ ਸੁਤੰਤਰਤਾ ਸੰਗ੍ਰਾਮ ਦੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨਾਇੱਕ -ਨਾਇਕਾਵਾਂ ਦੇ ਬਾਰੇ ਦੱਸਦੇ ਹਨ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਜ਼ਿਆਦਾ ਚਰਚਾ ਨਹੀਂ ਹੁੰਦੀ। ਹੁਣੇ ਜਿਹੇ ਹੀ ਇਸ ਦਾ ਸੀਜ਼ਨ-2 ਬੜੇ ਹੀ ਖਾਸ ਅੰਦਾਜ਼ ਵਿੱਚ International Film Festival of India, Goa ਵਿੱਚ launch ਹੋਇਆ। ਸਭ ਤੋਂ ਸ਼ਾਨਦਾਰ ਗੱਲ ਇਹ ਹੈ ਕਿ ਇਹ ਸੀਰੀਜ਼ ਨਾ ਸਿਰਫ ਭਾਰਤ ਦੀਆਂ ਕਈ ਭਾਸ਼ਾਵਾਂ ਵਿੱਚ, ਸਗੋਂ ਵਿਦੇਸ਼ੀ ਭਾਸ਼ਾਵਾਂ ਵਿੱਚ ਵੀ ਪ੍ਰਸਾਰਿਤ ਹੁੰਦੀ ਹੈ। ਇਸ ਨੂੰ ਦੂਰਦਰਸ਼ਨ ਦੇ ਇਲਾਵਾ ਹੋਰ OTT platform ’ਤੇ ਵੀ ਵੇਖਿਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ।


ਸਾਥੀਓ, ਸਾਡੀਆਂ ਐਮੀਨੇਸ਼ਨ ਫਿਲਮਾਂ ਦੀ, ਰੈਗੂਲਰ ਫਿਲਮਾਂ, ਟੀ. ਵੀ. ਸੀਰੀਅਲ ਦੀ, ਮਸ਼ਹੂਰੀ ਦਿਖਾਉਂਦੀ ਹੈ ਕਿ ਭਾਰਤ ਦੀ ਕ੍ਰਿਏਟਿਵ ਇੰਡਸਟਰੀ ਵਿੱਚ ਕਿੰਨੀ ਸਮਰੱਥਾ ਹੈ। ਇਹ ਇੰਡਸਟਰੀ ਨਾ ਸਿਰਫ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਪ੍ਰਗਤੀ ਵਿੱਚ ਵੱਡਾ ਯੋਗਦਾਨ ਦੇ ਰਹੀ ਹੈ, ਸਗੋਂ ਸਾਡੀ ਅਰਥਵਿਵਸਥਾ ਨੂੰ ਵੀ ਨਵੀਆਂ ਉਚਾਈਆਂ ’ਤੇ ਲਿਜਾ ਰਹੀ ਹੈ। ਸਾਡੀ ਫਿਲਮ ਅਤੇ ਐਂਟਰਟੇਨਮੈਂਟ ਇੰਡਸਟਰੀ ਬਹੁਤ ਵਿਸ਼ਾਲ ਹੈ। ਦੇਸ਼ ਦੀਆਂ ਕਿੰਨੀਆਂ ਭਾਸ਼ਾਵਾਂ ਵਿੱਚ ਫਿਲਮਾਂ ਬਣਦੀਆਂ ਹਨ, creative content ਬਣਦਾ ਹੈ। ਮੈਂ ਆਪਣੀ ਫਿਲਮ ਅਤੇ ਐਂਟਰਟੇਨਮੈਂਟ ਇੰਡਸਟਰੀ ਨੂੰ ਇਸ ਲਈ ਵੀ ਵਧਾਈ ਦਿੰਦਾ ਹਾਂ, ਕਿਉਂਕਿ ਉਸ ਨੇ ‘ਏਕ ਭਾਰਤ - ਸ੍ਰੇਸ਼ਠ ਭਾਰਤ’ ਦੇ ਭਾਵ ਨੂੰ ਸਸ਼ਕਤ ਕੀਤਾ ਹੈ।


ਸਾਥੀਓ, ਸਾਲ 2024 ਵਿੱਚ ਅਸੀਂ ਫਿਲਮ ਜਗਤ ਦੀਆਂ ਕਈ ਮਹਾਨ ਸ਼ਖਸੀਅਤਾਂ ਦੀ 100ਵੀਂ ਜਯੰਤੀ ਮਨਾ ਰਹੇ ਹਾਂ। ਇਨ੍ਹਾਂ ਮਸ਼ਹੂਰ ਹਸਤੀਆਂ ਨੇ ਭਾਰਤੀ ਸਿਨੇਮਾ ਨੂੰ ਵਿਸ਼ਵ ਪੱਧਰ ’ਤੇ ਪਹਿਚਾਣ ਦਿਲਵਾਈ। ਰਾਜ ਕਪੂਰ ਜੀ ਨੇ ਫਿਲਮਾਂ ਦੇ ਮਾਧਿਅਮ ਨਾਲ ਦੁਨੀਆ  ਨੂੰ ਭਾਰਤ ਦੀ soft power ਨਾਲ ਜਾਣੂ ਕਰਵਾਇਆ। ਰਫੀ ਸਾਹਿਬ ਦੀ ਆਵਾਜ਼ ਵਿੱਚ ਉਹ ਜਾਦੂ ਸੀ ਜੋ ਹਰ ਦਿਲ ਨੂੰ ਛੂਹ ਲੈਂਦਾ ਸੀ, ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਆਵਾਜ਼ ਅਨੋਖੀ ਸੀ। ਭਗਤੀ ਗੀਤ ਹੋਣ ਜਾਂ ਰੋਮਾਂਟਿਕ ਗੀਤ, ਦਰਦ ਭਰੇ ਗਾਣੇ ਹੋਣ ਹਰ ਭਾਵਨਾ ਨੂੰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਆਪਣੀ ਆਵਾਜ਼ ਨਾਲ ਜਿਉਂਦਾ ਕਰ ਦਿੱਤਾ। ਇੱਕ  ਕਲਾਕਾਰ ਦੇ ਰੂਪ ਵਿੱਚ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਮਹਾਨਤਾ ਦਾ ਅੰਦਾਜ਼ਾ ਇਸੇ ਤੋਂ ਲਗਾਇਆ ਜਾ ਸਕਦਾ ਹੈ ਕਿ ਅੱਜ ਵੀ ਨੌਜਵਾਨ ਪੀੜ੍ਹੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੇ ਗਾਣਿਆਂ ਨੂੰ ਓਨੀ ਹੀ ਸ਼ਿੱਦਤ ਨਾਲ ਸੁਣਦੀ ਹੈ - ਇਹੀ ਤਾਂ ਟਾਈਮਲੈੱਸ ਆਰਟ ਦੀ ਪਹਿਚਾਣ ਹੈ। ਅੱਕੀਨੈਨੀ ਨਾਗੇਸ਼ਵਰ ਰਾਓ ਗਾਰੂ ਨੇ ਤੇਲਗੂ ਸਿਨੇਮਾ ਨੂੰ ਨਵੀਆਂ ਉਚਾਈਆਂ ਤੱਕ ਪਹੁੰਚਾਇਆ ਹੈ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਫਿਲਮਾਂ ਨੇ ਭਾਰਤੀ ਪਰੰਪਰਾਵਾਂ ਅਤੇ ਕਦਰਾਂ-ਕੀਮਤਾਂ ਨੂੰ ਬਾਖੂਬੀ ਪੇਸ਼ ਕੀਤਾ ਹੈ। ਤਪਨ ਸਿਨਹਾ ਜੀ ਦੀਆਂ ਫਿਲਮਾਂ ਨੇ ਸਮਾਜ ਨੂੰ ਇੱਕ  ਨਵੀਂ ਦ੍ਰਿਸ਼ਟੀ ਦਿੱਤੀ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀਆਂ ਫਿਲਮਾਂ ਵਿੱਚ ਸਮਾਜਿਕ ਚੇਤਨਾ ਅਤੇ ਰਾਸ਼ਟਰੀ ਏਕਤਾ ਦਾ ਸੰਦੇਸ਼ ਹੁੰਦਾ ਸੀ। ਸਾਡੀ ਪੂਰੀ ਫਿਲਮ ਇੰਡਸਟਰੀ ਦੇ ਲਈ ਇਨ੍ਹਾਂ ਹਸਤੀਆਂ ਦਾ ਜੀਵਨ ਪ੍ਰੇਰਣਾ ਵਾਂਗ ਹੈ।


ਸਾਥੀਓ, ਮੈਂ ਤੁਹਾਨੂੰ ਇੱਕ  ਹੋਰ ਖੁਸ਼ਖਬਰੀ ਦੇਣਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਹਾਂ। ਭਾਰਤ ਦੇ ਕ੍ਰਿਏਟਿਵ ਟੈਲੰਟ ਨੂੰ ਦੁਨੀਆ  ਦੇ ਸਾਹਮਣੇ ਰੱਖਣ ਦਾ ਇੱਕ  ਬਹੁਤ ਵੱਡਾ ਮੌਕਾ ਆ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਅਗਲੇ ਸਾਲ ਸਾਡੇ ਦੇਸ਼ ਵਿੱਚ ਪਹਿਲੀ ਵਾਰ World Audio Visual Entertainment Summit ਯਾਨੀ WAVES summit ਦਾ ਆਯੋਜਨ ਹੋਣ ਵਾਲਾ ਹੈ। ਤੁਸੀਂ ਸਾਰਿਆਂ ਨੇ ਦਾਵੋਸ ਦੇ ਬਾਰੇ ਸੁਣਿਆ ਹੋਵੇਗਾ, ਜਿੱਥੇ ਦੁਨੀਆ  ਦੇ ਅਰਥਜਗਤ ਦੇ ਮਹਾਰਥੀ ਇਕੱਠੇ ਹੁੰਦੇ ਹਨ। ਉਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ WAVES summit ਦੁਨੀਆ  ਭਰ ਦੇ ਮੀਡੀਆ ਅਤੇ entertainment industry ਦੇ ਦਿੱਗਜ, ਕ੍ਰਿਏਟਿਵ ਵਰਲਡ ਦੇ ਲੋਕ ਭਾਰਤ ਆਉਣਗੇ। ਇਹ summit ਭਾਰਤ ਨੂੰ global content creation ਦਾ ਹੱਬ ਬਣਾਉਣ ਦੀ ਦਿਸ਼ਾ ਵਿੱਚ ਇੱਕ  ਮਹੱਤਵਪੂਰਣ ਕਦਮ ਹੈ। ਮੈਨੂੰ ਇਹ ਦੱਸਦਿਆਂ ਮਾਣ ਹੋ ਰਿਹਾ ਹੈ ਕਿ ਇਸ summit ਦੀ ਤਿਆਰੀ ਵਿੱਚ ਸਾਡੇ ਦੇਸ਼ ਦੇ young creator ਵੀ ਪੂਰੇ ਜੋਸ਼ ਨਾਲ ਜੁੜ ਰਹੇ ਹਨ। ਜਦੋਂ ਅਸੀਂ 5 ਟ੍ਰਿਲੀਅਨ ਡਾਲਰ ਇਕੌਨਮੀ ਵੱਲ ਵਧ ਰਹੇ ਹਾਂ ਤਾਂ ਸਾਡੀ ਕ੍ਰਿਏਟਰ ਇਕੌਨਮੀ ਇੱਕ  ਨਵੀਂ ਊਰਜਾ ਲਿਆ ਰਹੀ ਹੈ। ਮੈਂ ਭਾਰਤ ਦੀ ਪੂਰੀ ਐਂਟਰਟੇਨਮੈਂਟ ਅਤੇ ਕ੍ਰਿਏਟਿਵ ਇੰਡਸਟਰੀ ਨੂੰ ਬੇਨਤੀ ਕਰਾਂਗਾ - ਚਾਹੇ ਤੁਸੀਂ ਯੰਗ ਕ੍ਰਿਏਟਰ ਹੋ ਜਾਂ ਸਥਾਪਿਤ ਕਲਾਕਾਰ, ਬਾਲੀਵੁੱਡ ਨਾਲ ਜੁੜੇ ਹੋ ਜਾਂ ਖੇਤਰੀ ਸਿਨੇਮਾ ਨਾਲ, ਟੀ. ਵੀ. ਇੰਡਸਟਰੀ ਦੇ ਕਲਾਕਾਰ ਹੋ ਜਾਂ ਐਮੀਨੇਸ਼ਨ ਦੇ ਐਕਸਪਰਟ, ਖੇਡਾਂ ਨਾਲ ਜੁੜੇ ਹੋ ਜਾਂ ਐਂਟਰਟੇਨਮੈਂਟ ਟੈਕਨੋਲੋਜੀ ਦੇ ਇਨੋਵੇਟਰ, ਤੁਸੀਂ ਸਾਰੇ WAVES summit ਦਾ ਹਿੱਸਾ ਬਣੋ।  


ਮੇਰੇ ਪਿਆਰੇ ਦੇਸ਼ਵਾਸੀਓ, ਤੁਸੀਂ ਸਾਰੇ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ਕਿ ਭਾਰਤੀ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤੀ ਦੀ ਰੌਸ਼ਨੀ ਅੱਜ ਕਿਵੇਂ ਦੁਨੀਆ  ਦੇ ਕੋਨੇ-ਕੋਨੇ ਵਿੱਚ ਫੈਲ ਰਹੀ ਹੈ। ਅੱਜ ਮੈਂ ਤੁਹਾਨੂੰ 3 ਮਹਾਦੀਪਾਂ ਤੋਂ ਅਜਿਹੇ ਯਤਨਾਂ ਦੇ ਬਾਰੇ ਦੱਸਾਂਗਾ ਜੋ ਸਾਡੀ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤਕ ਵਿਰਾਸਤ ਦੇ ਆਲਮੀ ਵਿਸਥਾਰ ਦੇ ਗਵਾਹ ਹਨ। ਇਹ ਸਾਰੇ ਇੱਕ -ਦੂਸਰੇ ਤੋਂ ਮੀਲਾਂ ਦੂਰ ਹਨ। ਲੇਕਿਨ ਭਾਰਤ ਨੂੰ ਜਾਨਣ ਅਤੇ ਸਾਡੀ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤੀ ਨੂੰ ਸਿੱਖਣ ਦੀ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਤਾਂਘ ਇੱਕੋ ਜਿਹੀ ਹੈ।
ਸਾਥੀਓ, ਪੇਂਟਿੰਗ ਦਾ ਸੰਸਾਰ ਜਿੰਨਾ ਰੰਗਾਂ ਨਾਲ ਭਰਿਆ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਓਨਾ ਹੀ ਖੂਬਸੂਰਤ ਹੁੰਦਾ ਹੈ। ਤੁਹਾਡੇ ਵਿੱਚੋਂ ਜੋ ਲੋਕ ਟੀ. ਵੀ. ਦੇ ਮਾਧਿਅਮ ਨਾਲ ‘ਮਨ ਕੀ ਬਾਤ’ ਨਾਲ ਜੁੜੇ ਹਨ, ਉਹ ਹੁਣ ਕੁਝ ਪੇਂਟਿੰਗ ਟੀ. ਵੀ. ’ਤੇ ਵੇਖ ਵੀ ਸਕਦੇ ਹਨ। ਇਨ੍ਹਾਂ ਪੇਂਟਿੰਗਸ ਵਿੱਚ ਸਾਡੇ ਦੇਵੀ-ਦੇਵਤਾ, ਨਾਚ ਦੀਆਂ ਕਲਾਵਾਂ ਅਤੇ ਮਹਾਨ ਹਸਤੀਆਂ ਨੂੰ ਵੇਖ ਕੇ ਤੁਹਾਨੂੰ ਬਹੁਤ ਚੰਗਾ ਲੱਗੇਗਾ। ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਤੁਹਾਨੂੰ ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਪਾਏ ਜਾਣ ਵਾਲੇ ਜੀਵ-ਜੰਤੂਆਂ ਨੂੰ ਲੈ ਕੇ ਹੋਰ ਵੀ ਬਹੁਤ ਕੁਝ ਵੇਖਣ ਨੂੰ ਮਿਲੇਗਾ। ਇਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਤਾਜਮਹਿਲ ਦੀ ਇੱਕ  ਸ਼ਾਨਦਾਰ ਪੇਂਟਿੰਗ ਵੀ ਸ਼ਾਮਲ ਹੈ, ਜਿਸ ਨੂੰ 13 ਸਾਲ ਦੀ ਇੱਕ  ਬੱਚੀ ਨੇ ਬਣਾਇਆ ਹੈ। ਤੁਹਾਨੂੰ ਇਹ ਜਾਣ ਕੇ ਹੈਰਾਨੀ ਹੋਵੇਗੀ ਕਿ ਇਸ ਦਿਵਿਯਾਂਗ ਬੱਚੀ ਨੇ ਆਪਣੇ ਮੂੰਹ ਨਾਲ ਇਸ ਪੇਂਟਿੰਗ ਨੂੰ ਤਿਆਰ ਕੀਤਾ ਹੈ। ਸਭ ਤੋਂ ਦਿਲਚਸਪ ਗੱਲ ਇਹ ਹੈ ਕਿ ਇਨ੍ਹਾਂ ਪੇਂਟਿੰਗਸ ਨੂੰ ਬਣਾਉਣ ਵਾਲੇ ਭਾਰਤ ਦੇ ਨਹੀਂ, ਬਲਕਿ Egypt  ਦੇ ਸਟੂਡੈਂਟ ਹਨ, ਉੱਥੋਂ ਦੇ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਹਨ। ਕੁਝ ਹੀ ਹਫਤੇ ਪਹਿਲਾਂ Egypt  ਦੇ ਲਗਭਗ 23 ਹਜ਼ਾਰ ਵਿਦਿਆਰਥੀਆਂ ਨੇ ਇੱਕ  ਪੇਂਟਿੰਗ ਮੁਕਾਬਲੇ ਵਿੱਚ ਹਿੱਸਾ ਲਿਆ ਸੀ। ਉੱਥੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਭਾਰਤ ਦੀ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤੀ ਅਤੇ ਦੋਹਾਂ ਦੇਸ਼ਾਂ ਦੇ ਇਤਿਹਾਸਕ ਸਬੰਧਾਂ ਨੂੰ ਵਿਖਾਉਣ ਵਾਲੀਆਂ ਪੇਂਟਿੰਗਸ ਤਿਆਰ ਕਰਨੀਆਂ ਸਨ, ਮੈਂ ਇਸ ਮੁਕਾਬਲੇ ਵਿੱਚ ਹਿੱਸਾ ਲੈਣ ਵਾਲੇ ਸਾਰੇ ਨੌਜਵਾਨਾਂ ਦੀ ਸ਼ਲਾਘਾ ਕਰਦਾ ਹਾਂ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੀ ਰਚਨਾਤਮਕਤਾ ਦੀ ਜਿੰਨੀ ਵੀ ਸ਼ਲਾਘਾ ਕੀਤੀ ਜਾਵੇ, ਘੱਟ ਹੈ।
ਸਾਥੀਓ, ਦੱਖਣੀ ਅਮਰੀਕਾ ਦਾ ਇੱਕ  ਦੇਸ਼ ਹੈ ਪਰਾਗਵੇ। ਉੱਥੇ ਰਹਿਣ ਵਾਲੇ ਭਾਰਤੀਆਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਇੱਕ  ਹਜ਼ਾਰ ਤੋਂ ਜ਼ਿਆਦਾ ਨਹੀਂ ਹੋਵੇਗੀ। ਪਰਾਗਵੇ ਵਿੱਚ ਇੱਕ  ਅਨੋਖਾ ਯਤਨ ਹੋ ਰਿਹਾ ਹੈ, ਉੱਥੇ ਭਾਰਤੀ ਦੂਤਾਵਾਸ ਵਿੱਚ ਏਰਿਕਾ ਹਿਊਬਰ ਫਰੀ ਆਯੁਰਵੇਦ ਸਲਾਹ ਦਿੰਦੀ ਹੈ। ਆਯੁਰਵੇਦ ਦੀ ਸਲਾਹ ਲੈਣ ਦੇ ਲਈ ਅੱਜ ਉਨ੍ਹਾਂ ਕੋਲ ਸਥਾਨਕ ਲੋਕ ਵੀ ਵੱਡੀ ਗਿਣਤੀ ਵਿੱਚ ਪਹੁੰਚ ਰਹੇ ਹਨ। ਏਰਿਕਾ ਹਿਊਬਰ ਨੇ ਭਾਵੇਂ ਇੰਜੀਨੀਅਰਿੰਗ ਦੀ ਪੜ੍ਹਾਈ ਕੀਤੀ ਹੋਵੇ, ਲੇਕਿਨ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਮਨ ਤਾਂ ਆਯੁਰਵੇਦ ਵਿੱਚ ਹੀ ਵਸਦਾ ਹੈ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਆਯੁਰਵੇਦ ਨਾਲ ਜੁੜੇ ਕੋਰਸ ਕੀਤੇ ਸਨ ਅਤੇ ਸਮੇਂ ਦੇ ਨਾਲ ਉਹ ਇਸ ਵਿੱਚ ਮਾਹਿਰ ਹੁੰਦੀ ਚਲੀ ਗਈ।


ਸਾਥੀਓ, ਇਹ ਸਾਡੇ ਲਈ ਬਹੁਤ ਮਾਣ ਦੀ ਗੱਲ ਹੈ ਕਿ ਦੁਨੀਆ  ਦੀ ਸਭ ਤੋਂ ਪੁਰਾਣੀ ਭਾਸ਼ਾ ਤਮਿਲ ਹੈ ਅਤੇ ਹਰ ਹਿੰਦੁਸਤਾਨੀ ਨੂੰ ਇਸ ’ਤੇ ਮਾਣ ਹੈ। ਦੁਨੀਆ  ਭਰ ਦੇ ਲੋਕਾਂ ਵਿੱਚ ਇਸ ਨੂੰ ਸਿੱਖਣ ਵਾਲਿਆਂ ਦੀ ਗਿਣਤੀ ਲਗਾਤਾਰ ਵਧ ਰਹੀ ਹੈ। ਪਿਛਲੇ ਮਹੀਨੇ ਦੇ ਅਖੀਰ ਵਿੱਚ ਫਿਜ਼ੀ ਵਿੱਚ ਭਾਰਤ ਸਰਕਾਰ ਦੇ ਸਹਿਯੋਗ ਨਾਲ Tamil Teaching Programme ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਇਆ। ਬੀਤੇ 80 ਸਾਲਾਂ ਵਿੱਚ ਇਹ ਪਹਿਲਾ ਮੌਕਾ ਹੈ, ਜਦੋਂ ਫਿਜ਼ੀ ਵਿੱਚ ਤਮਿਲ ਦੇ ਟ੍ਰੇਂਡ ਟੀਚਰ ਇਸ ਭਾਸ਼ਾ ਨੂੰ ਸਿਖਾ ਰਹੇ ਹਨ। ਮੈਨੂੰ ਇਹ ਜਾਣ ਕੇ ਚੰਗਾ ਲੱਗਾ ਕਿ ਅੱਜ ਫਿਜ਼ੀ ਦੇ ਵਿਦਿਆਰਥੀ ਤਮਿਲ ਭਾਸ਼ਾ ਅਤੇ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤੀ ਨੂੰ ਸਿੱਖਣ ਵਿੱਚ ਕਾਫੀ ਦਿਲਚਸਪੀ ਲੈ ਰਹੇ ਹਨ।


ਸਾਥੀਓ, ਇਹ ਗੱਲਾਂ, ਇਹ ਘਟਨਾਵਾਂ ਸਿਰਫ ਸਫਲਤਾਵਾਂ ਦੀਆਂ ਕਹਾਣੀਆਂ ਨਹੀਂ ਹਨ, ਇਹ ਸਾਡੀਆਂ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤਕ ਵਿਰਾਸਤ ਦੀਆਂ ਵੀ ਕਹਾਣੀਆਂ ਹਨ। ਇਹ ਉਦਾਹਰਣਾਂ ਸਾਨੂੰ ਮਾਣ ਨਾਲ ਭਰ ਦਿੰਦੀਆਂ ਹਨ। ਆਰਟ ਤੋਂ ਆਯੁਰਵੇਦ ਤੱਕ ਅਤੇ ਲੈਂਗਵੇਜ਼ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਮਿਊਜ਼ਿਕ ਤੱਕ ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਇੰਨਾ ਕੁਝ ਹੈ ਜੋ ਦੁਨੀਆ  ਵਿੱਚ ਛਾ ਰਿਹਾ ਹੈ।


ਸਾਥੀਓ, ਸਰਦੀ ਦੇ ਇਸ ਮੌਸਮ ਵਿੱਚ ਦੇਸ਼ ਭਰ ਵਿੱਚ ਖੇਡ ਅਤੇ ਫਿਟਨੈੱਸ ਨੂੰ ਲੈ ਕੇ ਕਈ ਗਤੀਵਿਧੀਆਂ ਹੋ ਰਹੀਆਂ ਹਨ। ਮੈਨੂੰ ਖੁਸ਼ੀ ਹੈ ਕਿ ਲੋਕ ਫਿਟਨੈੱਸ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਦੈਨਿਕ ਜੀਵਨ ਦਾ ਹਿੱਸਾ ਬਣਾ ਰਹੇ ਹਨ। ਕਸ਼ਮੀਰ ਵਿੱਚ Skiing ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਗੁਜਰਾਤ ਵਿੱਚ ਪਤੰਗਬਾਜ਼ੀ ਤੱਕ, ਹਰ ਪਾਸੇ ਖੇਡਾਂ ਦਾ ਉਤਸ਼ਾਹ ਵੇਖਣ ਨੂੰ ਮਿਲ ਰਿਹਾ ਹੈ। # SundayOnCycle ਅਤੇ #CyclingTuesday ਵਰਗੀਆਂ ਮੁਹਿੰਮਾਂ ਨਾਲ ਸਾਈਕਲਿੰਗ ਨੂੰ ਹੁਲਾਰਾ ਮਿਲ ਰਿਹਾ ਹੈ।


ਸਾਥੀਓ, ਹੁਣ ਮੈਂ ਤੁਹਾਨੂੰ ਇੱਕ  ਅਜਿਹੀ ਅਨੋਖੀ ਗੱਲ ਦੱਸਣਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਹਾਂ ਜੋ ਸਾਡੇ ਦੇਸ਼ ਵਿੱਚ ਆ ਰਹੇ ਬਦਲਾਓ ਅਤੇ ਨੌਜਵਾਨ ਸਾਥੀਆਂ ਦੇ ਜੋਸ਼ ਅਤੇ ਜਜ਼ਬੇ ਦੀ ਪ੍ਰਤੀਕ ਹੈ। ਕੀ ਤੁਸੀਂ ਜਾਣਦੇ ਹੋ ਕਿ ਸਾਡੇ ਬਸਤਰ ਵਿੱਚ ਇੱਕ  ਅਨੋਖਾ ਓਲੰਪਿਕ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਇਆ ਹੈ। ਜੀ ਹਾਂ ਪਹਿਲੀ ਵਾਰ ਹੋਏ ਬਸਤਰ ਓਲੰਪਿਕ ਨਾਲ ਬਸਤਰ ਵਿੱਚ ਇੱਕ ਨਵੀਂ ਕ੍ਰਾਂਤੀ ਜਨਮ ਲੈ ਰਹੀ ਹੈ। ਮੇਰੇ ਲਈ ਇਹ ਬਹੁਤ ਹੀ ਖੁਸ਼ੀ ਦੀ ਗੱਲ ਹੈ ਕਿ ਬਸਤਰ ਓਲੰਪਿਕ ਦਾ ਸੁਪਨਾ ਸਾਕਾਰ ਹੋਇਆ ਹੈ। ਤੁਹਾਨੂੰ ਇਹ ਜਾਣ ਕੇ ਚੰਗਾ ਲੱਗੇਗਾ ਕਿ ਇਹ ਉਸ ਖੇਤਰ ਵਿੱਚ ਹੋ ਰਿਹਾ ਹੈ ਜੋ ਕਦੇ ਮਾਓਵਾਦੀ ਹਿੰਸਾ ਦਾ ਗਵਾਹ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਬਸਤਰ ਓਲੰਪਿਕ ਦਾ ਮਾਸਕੌਟ ਹੈ - ‘ਵਨ ਭੈਂਸਾ’ ਅਤੇ ‘ਪਹਾੜੀ ਮੈਨਾ’। ਇਸ ਵਿੱਚ ਬਸਤਰ ਦੀ ਸਮ੍ਰਿੱਧ ਸੰਸਕ੍ਰਿਤੀ ਦੀ ਝਲਕ ਵਿਖਾਈ ਦਿੰਦੀ ਹੈ। ਇਸ ਬਸਤਰ ਖੇਡ ਮਹਾਕੁੰਭ ਦਾ ਮੂਲਮੰਤਰ ਹੈ –


‘ਕਰਸਾਯ ਤਾ ਬਸਤਰ ਬਰਸਾਯ ਤਾ ਬਸਤਰ’

ਯਾਨੀ ‘ਖੇਡੇਗਾ ਬਸਤਰ’ - ਜਿੱਤੇਗਾ ਬਸਤਰ’।


ਪਹਿਲੀ ਹੀ ਵਾਰ ਵਿੱਚ ਬਸਤਰ ਓਲੰਪਿਕ ਵਿੱਚ 7 ਜ਼ਿਲ੍ਹਿਆਂ ਦੇ ਇੱਕ  ਲੱਖ 65 ਹਜ਼ਾਰ ਖਿਡਾਰੀਆਂ ਨੇ ਹਿੱਸਾ ਲਿਆ ਹੈ। ਇਹ ਸਿਰਫ ਇੱਕ  ਅੰਕੜਾ ਨਹੀਂ ਹੈ - ਇਹ ਸਾਡੇ ਨੌਜਵਾਨਾਂ ਦੇ ਸੰਕਲਪ ਦੀ ਗੌਰਵਗਾਥਾ ਹੈ। ਐਥਲੈਟਿਕਸ, ਤੀਰਅੰਦਾਜ਼ੀ, ਬੈਡਮਿੰਟਨ, ਫੁੱਟਬਾਲ, ਹਾਕੀ, ਵੇਟ ਲਿਫਟਿੰਗ, ਕਰਾਟੇ, ਕਬੱਡੀ, ਖੋ-ਖੋ ਅਤੇ ਵਾਲੀਬਾਲ - ਹਰ ਖੇਡ ਵਿੱਚ ਸਾਡੇ ਨੌਜਵਾਨਾਂ ਨੇ ਆਪਣੀ ਪ੍ਰਤਿਭਾ ਦਾ ਝੰਡਾ ਲਹਿਰਾਇਆ ਹੈ। ਕਾਰੀ ਕਸ਼ਯਪ ਜੀ ਦੀ ਕਹਾਣੀ ਮੈਨੂੰ ਬਹੁਤ ਪ੍ਰੇਰਿਤ ਕਰਦੀ ਹੈ। ਇੱਕ  ਛੋਟੇ ਜਿਹੇ ਪਿੰਡ ਦੇ ਰਹਿਣ ਵਾਲੇ ਕਾਰੀ ਜੀ ਨੇ ਤੀਰਅੰਦਾਜ਼ੀ ਵਿੱਚ ਚਾਂਦੀ ਦਾ ਤਗਮਾ ਜਿੱਤਿਆ ਹੈ। ਉਹ ਕਹਿੰਦੀ ਹੈ - ਬਸਤਰ ਓਲੰਪਿਕ ਨੇ ਸਾਨੂੰ ਸਿਰਫ ਖੇਡ ਦਾ ਮੈਦਾਨ ਹੀ ਨਹੀਂ, ਜੀਵਨ ਵਿੱਚ ਅੱਗੇ ਵਧਣ ਦਾ ਮੌਕਾ ਦਿੱਤਾ ਹੈ। ਸੁਕਮਾ ਦੀ ਪਾਇਲ ਕਵਾਸੀ ਜੀ ਦੀ ਗੱਲ ਵੀ ਘੱਟ ਪ੍ਰੇਰਣਾਦਾਇਕ  ਨਹੀਂ ਹੈ। ਜੈਵਲਿਨ ਥ੍ਰੋਅ ਵਿੱਚ ਤਗਮਾ ਜਿੱਤਣ ਵਾਲੀ ਪਾਇਲ ਜੀ ਕਹਿੰਦੇ ਹਨ ਕਿ ਅਨੁਸ਼ਾਸਨ ਅਤੇ ਸਖਤ ਮਿਹਨਤ ਨਾਲ ਕੋਈ ਵੀ ਟੀਚਾ ਅਸੰਭਵ ਨਹੀਂ ਹੈ। ਸੁਕਮਾ ਦੇ ਦੋਰਨਾਪਾਲ ਦੇ ਪੁਨੇਮ ਸੰਨਾ ਜੀ ਦੀ ਕਹਾਣੀ ਤਾਂ ਨਵੇਂ ਭਾਰਤ ਦੀ ਪ੍ਰੇਰਕ ਕਥਾ ਹੈ। ਇੱਕ  ਸਮੇਂ ਨਕਸਲੀ ਪ੍ਰਭਾਵ ਵਿੱਚ ਆਏ ਪੁਨੇਮ ਜੀ ਅੱਜ ਵੀਲ੍ਹਚੇਅਰ ’ਤੇ ਦੌੜ ਕੇ ਮੈਡਲ ਜਿੱਤ ਰਹੇ ਹਨ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਸਾਹਸ ਅਤੇ ਹੌਂਸਲਾ ਹਰ ਕਿਸੇ ਦੇ ਲਈ ਪ੍ਰੇਰਣਾ ਹੈ। ਕੋਡਾਗਾਂਵ ਦੇ ਤੀਰਅੰਦਾਜ਼ ਰੰਜੂ ਸੋਰੀ ਜੀ ਨੂੰ ‘ਬਸਤਰ ਯੂਥ ਆਈਕਨ’ ਚੁਣਿਆ ਗਿਆ ਹੈ। ਉਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਮੰਨਣਾ ਹੈ - ਬਸਤਰ ਓਲੰਪਿਕ ਦੂਰ-ਦੁਰਾਡੇ ਦੇ ਨੌਜਵਾਨਾਂ ਨੂੰ ਰਾਸ਼ਟਰੀ ਮੰਚ ਤੱਕ ਪਹੁੰਚਾਉਣ ਦਾ ਮੌਕਾ ਦੇ ਰਿਹਾ ਹੈ।
ਸਾਥੀਓ, ਬਸਤਰ ਓਲੰਪਿਕ ਸਿਰਫ ਇੱਕ  ਖੇਡ ਆਯੋਜਨ ਨਹੀਂ ਹੈ। ਇਹ ਇੱਕ  ਅਜਿਹਾ ਮੰਚ ਹੈ, ਜਿੱਥੇ ਵਿਕਾਸ ਅਤੇ ਖੇਡ ਦਾ ਸੰਗਮ ਹੋ ਰਿਹਾ ਹੈ, ਜਿੱਥੇ ਸਾਡੇ ਨੌਜਵਾਨ ਆਪਣੀ ਪ੍ਰਤਿਭਾ ਨੂੰ ਦਿਖਾ ਰਹੇ ਹਨ ਅਤੇ ਇੱਕ  ਨਵੇਂ ਭਾਰਤ ਦਾ ਨਿਰਮਾਣ ਕਰ ਰਹੇ ਹਨ। ਮੈਂ ਤੁਹਾਨੂੰ ਸਾਰਿਆਂ ਨੂੰ ਬੇਨਤੀ ਕਰਦਾ ਹਾਂ -  ਆਪਣੇ ਖੇਤਰ ਵਿੱਚ ਅਜਿਹੇ ਖੇਡ ਆਯੋਜਨਾਂ ਨੂੰ ਉਤਸ਼ਾਹਿਤ ਕਰੋ।


- #ਖੇਲੇਗਾ ਭਾਰਤ, ਜੀਤੇਗਾ ਭਾਰਤ ਦੇ ਨਾਲ ਆਪਣੇ ਖੇਤਰ ਦੀਆਂ ਖੇਡ ਸ਼ਖਸੀਅਤਾਂ ਦੀਆਂ ਕਹਾਣੀਆਂ ਸਾਂਝੀਆਂ ਕਰੋ।

- ਸਥਾਨਕ ਖੇਡ ਸ਼ਖਸੀਅਤਾਂ ਨੂੰ ਅੱਗੇ ਵਧਣ ਦਾ ਮੌਕਾ ਦਿਓ।

ਯਾਦ ਰੱਖੋ, ਖੇਡ ਨਾਲ ਨਾ ਸਿਰਫ ਸਰੀਰਕ ਵਿਕਾਸ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਸਗੋਂ ਇਹ ਸਪੋਰਟਸਮੈਨ ਸਪੀਰਿਟ ਨਾਲ ਸਮਾਜ ਨੂੰ ਜੋੜਨ ਦਾ ਇੱਕ  ਸਸ਼ਕਤ ਮਾਧਿਅਮ ਹੈ ਤਾਂ ਖੂਬ ਖੇਡੋ - ਖੂਬ ਖਿੜ੍ਹੋ।


ਮੇਰੇ ਪਿਆਰੇ ਦੇਸ਼ਵਾਸੀਓ, ਭਾਰਤ ਦੀਆਂ ਦੋ ਵੱਡੀਆਂ ਪ੍ਰਾਪਤੀਆਂ ਅੱਜ ਵਿਸ਼ਵ ਦਾ ਧਿਆਨ ਆਕਰਸ਼ਿਤ ਕਰ ਰਹੀਆਂ ਹਨ। ਇਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਸੁਣ ਕੇ ਤੁਹਾਨੂੰ ਵੀ ਮਾਣ ਮਹਿਸੂਸ ਹੋਵੇਗਾ। ਇਹ ਦੋਵੇਂ ਸਫਲਤਾਵਾਂ ਸਿਹਤ ਦੇ ਖੇਤਰ ਵਿੱਚ ਮਿਲੀਆਂ ਹਨ। ਪਹਿਲੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਹੈ - ਮਲੇਰੀਆ ਨਾਲ ਲੜਾਈ ਵਿੱਚ। ਮਲੇਰੀਆ ਦੀ ਬਿਮਾਰੀ 4 ਹਜ਼ਾਰ ਸਾਲਾਂ ਤੋਂ ਮਨੁੱਖਤਾ ਦੇ ਲਈ ਇੱਕ  ਵੱਡੀ ਚੁਣੌਤੀ ਰਹੀ ਹੈ। ਆਜ਼ਾਦੀ ਦੇ ਸਮੇਂ ਵੀ ਇਹ ਸਾਡੀਆਂ ਸਭ ਤੋਂ ਵੱਡੀਆਂ ਸਿਹਤ ਚੁਣੌਤੀਆਂ ਵਿੱਚੋਂ ਇੱਕ  ਸੀ। ਇੱਕ  ਮਹੀਨੇ ਤੋਂ ਲੈ ਕੇ ਪੰਜ ਸਾਲ ਤੱਕ ਦੇ ਬੱਚਿਆਂ ਦੀ ਜਾਨ ਲਾਣ ਵਾਲੀਆਂ ਸਾਰੀਆਂ ਅਛੂਤ ਦੀਆਂ ਬਿਮਾਰੀਆਂ ਵਿੱਚ ਮਲੇਰੀਏ ਦਾ ਤੀਸਰਾ ਸਥਾਨ ਹੈ। ਅੱਜ ਮੈਂ ਤਸੱਲੀ ਨਾਲ ਕਹਿ ਸਕਦਾ ਹਾਂ ਕਿ ਦੇਸ਼ਵਾਸੀਆਂ ਨੇ ਮਿਲ ਕੇ ਇਸ ਚੁਣੌਤੀ ਦਾ ਮਜ਼ਬੂਤੀ ਨਾਲ ਮੁਕਾਬਲਾ ਕੀਤਾ ਹੈ। ਵਿਸ਼ਵ ਸਿਹਤ ਸੰਗਠਨ - WHO  ਦੀ ਰਿਪੋਰਟ ਕਹਿੰਦੀ ਹੈ - ‘ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ 2015 ਤੋਂ 2023 ਦੇ ਵਿਚਕਾਰ ਮਲੇਰੀਆ ਦੇ ਮਾਮਲਿਆਂ ਅਤੇ ਇਸ ਨਾਲ ਹੋਣ ਵਾਲੀਆਂ ਮੌਤਾਂ ਵਿੱਚ 80 ਫੀਸਦੀ ਦੀ ਕਮੀ ਆਈ ਹੈ।’ ਇਹ ਕੋਈ ਛੋਟੀ ਉਪਲਬਧੀ ਨਹੀਂ ਹੈ। ਸਭ ਤੋਂ ਚੰਗੀ ਗੱਲ ਇਹ ਹੈ, ਇਹ ਸਫਲਤਾ ਜਨ-ਜਨ ਦੀ ਭਾਗੀਦਾਰੀ ਨਾਲ ਮਿਲੀ ਹੈ। ਭਾਰਤ ਦੇ ਕੋਨੇ-ਕੋਨੇ ਤੋਂ, ਹਰ ਜ਼ਿਲ੍ਹੇ ਤੋਂ ਹਰ ਕੋਈ ਇਸ ਮੁਹਿੰਮ ਦਾ ਹਿੱਸਾ ਬਣਿਆ ਹੈ। ਅਸਮ ਵਿੱਚ ਜੋਰਹਾਟ ਦੇ ਚਾਹ ਦੇ ਬਾਗਾਂ ਵਿੱਚ ਮਲੇਰੀਆ 4 ਸਾਲ ਪਹਿਲਾਂ ਤੱਕ ਲੋਕਾਂ ਵਿੱਚ ਚਿੰਤਾ ਦੀ ਇੱਕ  ਵੱਡੀ ਵਜ੍ਹਾ ਬਣਿਆ ਹੋਇਆ ਸੀ। ਲੇਕਿਨ ਜਦੋਂ ਇਸ ਦੇ ਨਿਵਾਰਨ ਦੇ ਲਈ ਚਾਹ ਦੇ ਬਾਗਾਂ ਵਿੱਚ ਰਹਿਣ ਵਾਲੇ ਇਕਜੁੱਟ ਹੋਏ ਤਾਂ ਇਸ ਵਿੱਚ ਕਾਫੀ ਹੱਦ ਤੱਕ ਸਫਲਤਾ ਮਿਲਣ ਲਗੀ। ਆਪਣੇ ਇਸ ਯਤਨ ਵਿੱਚ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਟੈਕਨੋਲੋਜੀ ਦੇ ਨਾਲ-ਨਾਲ ਸੋਸ਼ਲ ਮੀਡੀਆ ਦਾ ਵੀ ਭਰਪੂਰ ਇਸਤੇਮਾਲ ਕੀਤਾ ਹੈ। ਇਸੇ ਤਰ੍ਹਾਂ ਹਰਿਆਣਾ ਦੇ ਕੁਰੂਕਸ਼ੇਤਰ ਜ਼ਿਲ੍ਹੇ ਨੇ ਮਲੇਰੀਆ ’ਤੇ ਕਾਬੂ ਪਾਉਣ ਦੇ ਲਈ ਬੜਾ ਚੰਗਾ ਮਾਡਲ ਪੇਸ਼ ਕੀਤਾ। ਉੱਥੇ ਮਲੇਰੀਆ ਦੀ ਨਿਗਰਾਨੀ ਦੇ ਲਈ ਜਨਭਾਗੀਦਾਰੀ ਕਾਫੀ ਸਫਲ ਰਹੀ। ਨੁੱਕੜ ਨਾਟਕ ਅਤੇ ਰੇਡੀਓ ਦੇ ਜ਼ਰੀਏ ਅਜਿਹੇ ਸੰਦੇਸ਼ਾਂ ’ਤੇ ਜ਼ੋਰ ਦਿੱਤਾ ਗਿਆ, ਜਿਸ ਨਾਲ ਮੱਛਰਾਂ ਦੀ ਬ੍ਰੀਡਿੰਗ ਘੱਟ ਕਰਨ ਵਿੱਚ ਕਾਫੀ ਮਦਦ ਮਿਲੀ। ਦੇਸ਼ ਵਿੱਚ ਅਜਿਹੇ ਯਤਨਾਂ ਨਾਲ ਹੀ ਅਸੀਂ ਮਲੇਰੀਆ ਦੇ ਖਿਲਾਫ ਜੰਗ ਨੂੰ ਹੋਰ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਅੱਗੇ ਵਧਾ ਸਕੇ ਹਾਂ।


ਸਾਥੀਓ, ਆਪਣੀ ਜਾਗਰੂਕਤਾ ਅਤੇ ਸੰਕਲਪ ਸ਼ਕਤੀ ਨਾਲ ਅਸੀਂ ਕੀ ਕੁਝ ਹਾਸਲ ਕਰ ਸਕਦੇ ਹਾਂ, ਇਸ ਦੀ ਦੂਸਰਾ ਉਦਾਹਰਣ ਹੈ ਕੈਂਸਰ ਨਾਲ ਲੜਾਈ। ਦੁਨੀਆ  ਦੇ ਮਸ਼ਹੂਰ Medical Journal Lancet ਦਾ ਅਧਿਐਨ ਵਾਕਿਆ ਹੀ ਬਹੁਤ ਉਮੀਦ ਵਧਾਉਣ ਵਾਲਾ ਹੈ। ਇਸ ਜਨਰਲ ਦੇ ਮੁਤਾਬਕ ਹੁਣ ਭਾਰਤ ਵਿੱਚ ਸਮੇਂ ’ਤੇ ਕੈਂਸਰ ਦਾ ਇਲਾਜ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਣ ਦੀ ਸੰਭਾਵਨਾ ਕਾਫੀ ਵਧ ਗਈ ਹੈ। ਸਮੇਂ ’ਤੇ ਇਲਾਜ ਦਾ ਮਤਲਬ ਹੈ - ਕੈਂਸਰ ਦੇ ਮਰੀਜ਼ ਦਾ ਇਲਾਜ 30 ਦਿਨਾਂ ਦੇ ਅੰਦਰ ਹੀ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋ ਜਾਣਾ ਅਤੇ ਇਸ ਵਿੱਚ ਵੱਡੀ ਭੂਮਿਕਾ ਨਿਭਾਈ ਹੈ - ‘ਆਯੁਸ਼ਮਾਨ ਭਾਰਤ ਯੋਜਨਾ’ ਨੇ। ਇਸ ਯੋਜਨਾ ਦੀ ਵਜ੍ਹਾ ਨਾਲ ਕੈਂਸਰ ਦੇ 90 ਫੀਸਦੀ ਮਰੀਜ਼ ਸਮੇਂ ’ਤੇ ਆਪਣਾ ਇਲਾਜ ਸ਼ੁਰੂ ਕਰਵਾ ਸਕੇ ਹਨ। ਅਜਿਹਾ ਇਸ ਲਈ ਹੋਇਆ, ਕਿਉਂਕਿ ਪਹਿਲਾਂ ਪੈਸਿਆਂ ਦੀ ਕਮੀ ਨਾਲ ਗਰੀਬ ਮਰੀਜ਼ ਕੈਂਸਰ ਦੀ ਜਾਂਚ ਵਿੱਚ, ਉਸ ਦੇ ਇਲਾਜ ਤੋਂ ਬਚਦੇ ਸਨ। ਹੁਣ ‘ਆਯੁਸ਼ਮਾਨ ਭਾਰਤ ਯੋਜਨਾ’ ਉਨਾਂ ਦੇ ਲਈ ਇੱਕ  ਵੱਡਾ ਸਹਾਰਾ ਬਣੀ ਹੈ। ਹੁਣ ਉਹ ਅੱਗੇ ਵਧ ਕੇ ਆਪਣਾ ਇਲਾਜ ਕਰਵਾਉਣ ਦੇ ਲਈ ਆ ਰਹੇ ਹਨ। ‘ਆਯੁਸ਼ਮਾਨ ਭਾਰਤ ਯੋਜਨਾ’ ਨੇ ਕੈਂਸਰ ਦੇ ਇਲਾਜ ਵਿੱਚ ਆਉਣ ਵਾਲੀ ਪੈਸਿਆਂ ਦੀ ਪ੍ਰੇਸ਼ਾਨੀ ਨੂੰ ਕਾਫੀ ਹੱਦ ਤੱਕ ਘੱਟ ਕੀਤਾ ਹੈ। ਚੰਗਾ ਇਹ ਵੀ ਹੈ ਕਿ ਅੱਜ ਸਮੇਂ ’ਤੇ ਕੈਂਸਰ ਦੇ ਇਲਾਜ ਨੂੰ ਲੈ ਕੇ ਲੋਕ ਪਹਿਲਾਂ ਤੋਂ ਕਿਤੇ ਜ਼ਿਆਦਾ ਜਾਗਰੂਕ ਹੋਏ ਹਨ। ਇਹ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਜਿੰਨੀ ਸਾਡੇ ਹੈਲਥ ਕੇਅਰ ਸਿਸਟਮ ਦੀ ਹੈ, ਡਾਕਟਰਾਂ-ਨਰਸਾਂ ਅਤੇ ਟੈਕਨੀਕਲ ਸਟਾਫ ਦੀ ਹੈ, ਓਨੀ ਹੀ ਤੁਹਾਡੀ, ਸਾਰੇ ਮੇਰੇ ਨਾਗਰਿਕ ਭੈਣ-ਭਰਾਵਾਂ ਦੀ ਵੀ ਹੈ। ਸਭ ਦੇ ਯਤਨਾਂ ਨਾਲ ਕੈਂਸਰ ਨੂੰ ਹਰਾਉਣ ਦਾ ਸੰਕਲਪ ਹੋਰ ਮਜਬੂਤ ਹੋਇਆ ਹੈ। ਇਸ ਸਫਲਤਾ ਦਾ ਸਿਹਰਾ ਉਨ੍ਹਾਂ ਸਾਰਿਆਂ ਨੂੰ ਜਾਂਦਾ ਹੈ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਜਾਗਰੂਕਤਾ ਫੈਲਾਉਣ ਵਿੱਚ ਆਪਣਾ ਮਹੱਤਵਪੂਰਣ ਯੋਗਦਾਨ ਦਿੱਤਾ ਹੈ। 

ਕੈਂਸਰ ਨਾਲ ਮੁਕਾਬਲੇ ਲਈ ਇੱਕ  ਹੀ ਮੰਤਰ ਹੈ - Awareness, Action ਅਤੇ Assurance. Awareness ਯਾਨੀ ਕੈਂਸਰ ਅਤੇ ਇਸ ਦੇ ਲੱਛਣਾਂ ਦੇ ਪ੍ਰਤੀ ਜਾਗਰੂਕਤਾ, Action  ਯਾਨੀ ਸਮੇਂ ’ਤੇ ਜਾਂਚ ਅਤੇ ਇਲਾਜ। Assurance ਯਾਨੀ ਮਰੀਜ਼ਾਂ ਦੇ ਲਈ ਹਰ ਮਦਦ ਉਪਲਬਧ ਹੋਣ ਦਾ ਵਿਸ਼ਵਾਸ। ਆਓ, ਅਸੀਂ ਸਾਰੇ ਮਿਲ ਕੇ ਕੈਂਸਰ ਦੇ ਖਿਲਾਫ ਲੜਾਈ ਨੂੰ ਤੇਜ਼ੀ ਨਾਲ ਅੱਗੇ ਲੈ ਜਾਈਏ ਅਤੇ ਜ਼ਿਆਦਾ ਤੋਂ ਜ਼ਿਆਦਾ ਮਰੀਜ਼ਾਂ ਦੀ ਮਦਦ ਕਰੀਏ।


ਮੇਰੇ ਪਿਆਰੇ ਦੇਸ਼ਵਾਸੀਓ, ਅੱਜ ਮੈਂ ਤੁਹਾਨੂੰ ਓਡੀਸ਼ਾ ਦੇ ਕਾਲਾਹਾਂਡੀ ਦੇ ਇੱਕ  ਅਜਿਹੇ ਯਤਨ ਦੀ ਗੱਲ ਦੱਸਣਾ ਚਾਹੁੰਦਾ ਹੈ ਜੋ ਘੱਟ ਪਾਣੀ ਅਤੇ ਘੱਟ ਸਾਧਨਾਂ ਦੇ ਬਾਵਜੂਦ ਸਫਲਤਾ ਦੀ ਨਵੀਂ ਗਾਥਾ ਲਿਖ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਇਹ ਹੈ ਕਾਲਾਹਾਂਡੀ ਦੀ ‘ਸਬਜੀ ਕ੍ਰਾਂਤੀ’। ਜਿੱਥੇ, ਕਦੇ ਕਿਸਾਨ ਪਲਾਇਨ ਕਰਨ ਨੂੰ ਮਜਬੂਰ ਸਨ, ਉੱਥੇ ਅੱਜ ਕਾਲਾਹਾਂਡੀ ਦਾ ਗੋਲਾਮੁੰਡਾ ਬਲਾਕ ਇੱਕ  ਵੈਜੀਟੇਬਲ ਹੱਬ ਬਣ ਗਿਆ ਹੈ। ਇਹ ਬਦਲਾਓ ਕਿਵੇਂ ਆਇਆ? ਇਸ ਦੀ ਸ਼ੁਰੂਆਤ ਸਿਰਫ 10 ਕਿਸਾਨਾਂ ਦੇ ਇੱਕ  ਛੋਟੇ ਜਿਹੇ ਸਮੂਹ ਤੋਂ ਹੋਈ। ਇਸ ਸਮੂਹ ਨੇ ਮਿਲ ਕੇ ਇੱਕ  FPO  - ‘ਕਿਸਾਨ ਉਤਪਾਦ ਸੰਘ’ ਦੀ ਸਥਾਪਨਾ ਕੀਤੀ। ਖੇਤੀ ਵਿੱਚ ਆਧੁਨਿਕ ਤਕਨੀਕ ਦਾ ਇਸਤੇਮਾਲ ਸ਼ੁਰੂ ਕੀਤਾ ਅਤੇ ਅੱਜ ਇਨ੍ਹਾਂ ਦਾ ਇਹ FPO  ਕਰੋੜਾਂ ਦਾ ਕਾਰੋਬਾਰ ਕਰ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਅੱਜ 200 ਤੋਂ ਜ਼ਿਆਦਾ ਕਿਸਾਨ ਇਸ FPO  ਨਾਲ ਜੁੜੇ ਹਨ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ 45 ਮਹਿਲਾ ਕਿਸਾਨ ਵੀ ਹਨ। ਇਹ ਲੋਕ ਮਿਲ ਕੇ 200 ਏਕੜ ਵਿੱਚ ਟਮਾਟਰ ਦੀ ਖੇਤੀ ਕਰ ਰਹੇ ਹਨ। 150 ਏਕੜ ਵਿੱਚ ਕਰੇਲੇ ਦਾ ਉਤਪਾਦਨ ਕਰ ਰਹੇ ਹਨ। ਹੁਣ ਇਸ FPO  ਦਾ ਸਲਾਨਾ ਟਰਨਓਵਰ ਵੀ ਵਧ ਕੇ ਡੇਢ ਕਰੋੜ ਤੋਂ ਜ਼ਿਆਦਾ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈ। ਅੱਜ ਕਾਲਾਹਾਂਡੀ ਦੀਆਂ ਸਬਜ਼ੀਆਂ ਨਾ ਸਿਰਫ ਓਡੀਸ਼ਾ ਦੇ ਵਿਭਿੰਨ ਜ਼ਿਲ੍ਹਿਆਂ ਵਿੱਚ, ਸਗੋਂ ਦੂਸਰੇ ਰਾਜਾਂ ਵਿੱਚ ਵੀ ਪਹੁੰਚ ਰਹੀਆਂ ਹਨ ਅਤੇ ਉੱਥੋਂ ਦਾ ਕਿਸਾਨ ਹੁਣ ਆਲੂ ਅਤੇ ਪਿਆਜ਼ ਦੀ ਖੇਤੀ ਦੀਆਂ ਨਵੀਆਂ ਤਕਨੀਕਾਂ ਸਿੱਖ ਰਿਹਾ ਹੈ।


ਸਾਥੀਓ, ਕਾਲਾਹਾਂਡੀ ਦੀ ਇਹ ਸਫਲਤਾ ਸਾਨੂੰ ਸਿਖਾਉਂਦੀ ਹੈ ਕਿ ਸੰਕਲਪ ਸ਼ਕਤੀ ਅਤੇ ਸਮੂਹਿਕ ਯਤਨ ਨਾਲ ਕੀ ਨਹੀਂ ਕੀਤਾ ਜਾ ਸਕਦਾ। ਮੈਂ ਤੁਹਾਨੂੰ ਸਾਰਿਆਂ ਨੂੰ ਬੇਨਤੀ ਕਰਦਾ ਹਾਂ ਕਿ –


* ਆਪਣੇ ਖੇਤਰ ਵਿੱਚ FPO  ਨੂੰ ਉਤਸ਼ਾਹਿਤ ਕਰੋ।

* ਕਿਸਾਨ ਉਤਪਾਦਕ ਸੰਗਠਨਾਂ ਨਾਲ ਜੁੜੋ ਅਤੇ ਉਨ੍ਹਾਂ ਨੂੰ ਮਜ਼ਬੂਤ ਬਣਾਓ।


ਯਾਦ ਰੱਖੋ - ਛੋਟੀ ਸ਼ੁਰੂਆਤ ਤੋਂ ਹੀ ਵੱਡੇ ਬਦਲਾਓ ਸੰਭਵ ਹਨ। ਸਾਨੂੰ ਬਸ ਦ੍ਰਿੜ ਸੰਕਲਪ ਅਤੇ ਟੀਮ ਭਾਵਨਾ ਦੀ ਜ਼ਰੂਰਤ ਹੈ।


ਸਾਥੀਓ, ਅੱਜ ਦੀ ‘ਮਨ ਕੀ ਬਾਤ’ ਵਿੱਚ ਅਸੀਂ ਸੁਣਿਆ ਕਿ ਕਿਵੇਂ ਸਾਡਾ ਭਾਰਤ ਵਿਭਿੰਨਤਾ ਵਿੱਚ ਏਕਤਾ ਦੇ ਨਾਲ ਅੱਗੇ ਵਧ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਭਾਵੇਂ ਉਹ ਖੇਡ ਦਾ ਮੈਦਾਨ ਹੋਵੇ ਜਾਂ ਵਿਗਿਆਨ ਦਾ ਖੇਤਰ, ਸਿਹਤ ਹੋਵੇ ਜਾਂ ਸਿੱਖਿਆ ਹਰ ਖੇਤਰ ਵਿੱਚ ਭਾਰਤ ਨਵੀਆਂ ਉਚਾਈਆਂ ਨੂੰ ਛੂਹ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਅਸੀਂ ਇੱਕ  ਪਰਿਵਾਰ ਦੇ ਵਾਂਗ ਮਿਲ ਕੇ ਹਰ ਚੁਣੌਤੀ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾ ਕੀਤਾ ਅਤੇ ਨਵੀਆਂ ਸਫਲਤਾਵਾਂ ਹਾਸਲ ਕੀਤੀਆਂ। 2014 ਤੋਂ ਸ਼ੁਰੂ ਹੋਏ ‘ਮਨ ਕੀ ਬਾਤ’ ਦੇ 116 episodes ਵਿੱਚ ਮੈਂ ਵੇਖਿਆ ਹੈ ਕਿ ‘ਮਨ ਕੀ ਬਾਤ’ ਦੇਸ਼ ਦੀ ਸਮੂਹਿਕ ਸ਼ਕਤੀ ਦਾ ਇੱਕ  ਜਿਉਂਦਾ-ਜਾਗਦਾ ਦਸਤਾਵੇਜ਼ ਬਣ ਗਿਆ ਹੈ। ਤੁਸੀਂ ਸਾਰਿਆਂ ਨੇ ਇਸ ਪ੍ਰੋਗਰਾਮ ਨੂੰ ਅਪਣਾਇਆ, ਆਪਣਾ ਬਣਾਇਆ। ਹਰ ਮਹੀਨੇ ਤੁਸੀਂ ਆਪਣੇ ਵਿਚਾਰਾਂ ਅਤੇ ਯਤਨਾਂ ਨੂੰ ਸਾਂਝਾ ਕੀਤਾ। ਕਦੇ ਕਿਸੇ ਯੰਗ ਇਨੋਵੇਟਰ ਦੇ ਆਈਡੀਆ ਨੇ ਪ੍ਰਭਾਵਿਤ ਕੀਤਾ ਤਾਂ ਕਿਸੇ ਬੇਟੀ ਦੀ ਪ੍ਰਾਪਤੀ ਨੇ ਮਾਣ ਨਾਲ ਭਰ ਦਿੱਤਾ। ਇਹ ਤੁਹਾਡੇ ਸਾਰਿਆਂ ਦੀ ਭਾਗੀਦਾਰੀ ਹੈ ਜੋ ਦੇਸ਼ ਦੇ ਕੋਨੇ-ਕੋਨੇ ਤੋਂ positive energy ਨੂੰ ਇਕੱਠਿਆਂ ਲਿਆਉਂਦੀ ਹੈ। ‘ਮਨ ਕੀ ਬਾਤ’ ਇਸੇ positive energy ਦੇ ਵਾਧੇ ਦਾ ਮੰਚ ਬਣ ਗਿਆ ਹੈ ਅਤੇ ਹੁਣ 2025 ਦਸਤਕ ਦੇ ਰਿਹਾ ਹੈ। ਆਉਣ ਵਾਲੇ ਸਾਲ ਵਿੱਚ ‘ਮਨ ਕੀ ਬਾਤ’ ਦੇ ਮਾਧਿਅਮ ਨਾਲ ਅਸੀਂ ਹੋਰ ਵੀ ਪ੍ਰੇਰਕ ਯਤਨਾਂ ਨੂੰ ਸਾਂਝਾ ਕਰਾਂਗੇ। ਮੈਨੂੰ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਹੈ ਕਿ ਦੇਸ਼ਵਾਸੀਆਂ ਦੀ positive ਸੋਚ ਅਤੇ innovation ਦੀ ਭਾਵਨਾ ਨਾਲ ਭਾਰਤ ਨਵੀਆਂ ਉਚਾਈਆਂ ਨੂੰ ਛੂਹੇਗਾ। ਤੁਸੀਂ ਆਪਣੇ ਆਸ-ਪਾਸ ਦੇ ਅਨੋਖੇ ਯਤਨਾਂ ਨੂੰ #Mannkibaat ਦੇ ਨਾਲ ਸਾਂਝਾ ਕਰਦੇ ਰਹੋ। ਮੈਂ ਜਾਣਦਾ ਹਾਂ ਕਿ ਅਗਲੇ ਸਾਲ ਦੀ ਹਰ ‘ਮਨ ਕੀ ਬਾਤ’ ਵਿੱਚ ਸਾਡੇ ਕੋਲ ਇੱਕ -ਦੂਸਰੇ ਨਾਲ ਸਾਂਝਾ ਕਰਨ ਦੇ ਲਈ ਬਹੁਤ ਕੁਝ ਹੋਵੇਗਾ। ਤੁਹਾਨੂੰ ਸਾਰਿਆਂ ਨੂੰ 2025 ਦੀਆਂ ਢੇਰ ਸਾਰੀਆਂ ਸ਼ੁਭਕਾਮਨਾਵਾਂ। ਤੰਦਰੁਸਤ ਰਹੋ। ਖੁਸ਼ ਰਹੋ। ਫਿੱਟ ਇੰਡੀਆ ਮੂਵਮੈਂਟ ਵਿੱਚ ਤੁਸੀਂ ਵੀ ਜੁੜ ਜਾਓ, ਖੁਦ ਨੂੰ ਵੀ ਫਿੱਟ ਰੱਖੋ। ਜੀਵਨ ਵਿੱਚ ਤਰੱਕੀ ਕਰਦੇ ਰਹੋ। ਬਹੁਤ-ਬਹੁਤ ਧੰਨਵਾਦ।