मेरे मित्र शिंजो आबे...

Published By : Admin | July 8, 2022 | 22:39 IST

शिंजो आबे न सिर्फ जापान की एक महान विभूति थे, बल्कि विशाल व्यक्तित्व के धनी एक वैश्विक राजनेता थे। भारत-जापान की मित्रता के वे बहुत बड़े हिमायती थे। बहुत दुखद है कि अब वे हमारे बीच नहीं हैं। उनके असमय चले जाने से जहां जापान के साथ पूरी दुनिया ने एक बहुत बड़ा विजनरी लीडर खो दिया है, तो वहीं मैंने अपना एक प्रिय दोस्त…। 

आज उनके साथ बिताया हर पल मुझे याद आ रहा है। चाहे वो क्योटो में ‘तोज़ी टेंपल’ की यात्रा हो, शिंकासेन में साथ-साथ सफर का आनंद हो, अहमदाबाद में साबरमती आश्रम जाना हो, काशी में गंगा आरती का आध्यात्मिक अवसर हो या फिर टोक्यो की ‘टी सेरेमनी’, यादगार पलों की ये लिस्ट बहुत लंबी है। 

 

 

मैं उस क्षण को कभी भूल नहीं सकता , जब मुझे माउंट फूजी की तलहटी में में बसे बेहद ही खूबसूरत यामानाशी प्रीफेक्चर में उनके घर जाने का मौका मिला था। मैं इस सम्मान को सदा अपने हृदय में संजोकर रखूंगा। 

शिंजो आबे और मेरे बीच सिर्फ औपचारिक रिश्ता नहीं था। 2007 और 2012 के बीच और फिर 2020 के बाद, जब वे प्रधानमंत्री नहीं थे, तब भी हमारा व्यक्तिगत जुड़ाव हमेशा की तरह  उतना ही मजबूत बना रहा।  

आबे सान से मिलना हमेशा ही मेरे लिए बहुत ज्ञानवर्धक, बहुत ही उत्साहित करने वाला होता था। उनके पास हमेशा नए आइडियाज का भंडार होता था। इसका दायरा  गवर्नेंस और इकॉनॉमी से लेकर कल्चर और विदेश नीति तक बहुत ही व्यापक था। वे इन सभी मुद्दों की गहरी समझ रखते थे। 

उनकी बातों ने मुझे गुजरात के आर्थिक विकास को लेकर नई सोच के लिए प्रेरित किया। इतना ही नहीं, उनके सतत सहयोग से गुजरात और जापान के बीच वाइब्रेंट पार्टनरशिप के निर्माण को बड़ी ताकत मिली।

भारत और जापान के बीच सामरिक साझेदारी को लेकर उनके साथ काम करना भी मेरे लिए सौभाग्य की बात थी। इसके जरिए इस दिशा में अभूतपूर्व बदलाव देखने को मिला।

पहले जहां दोनों देशों के आपसी रिश्ते केवल आर्थिक संबंध तक सीमित थे, वहीं आबे सान इसे व्यापक विस्तार देने के लिए आगे बढ़े। इससे दोनों देशों के बीच राष्ट्रीय महत्त्व के मुद्दों पर न केवल तालमेल बढ़ा, बल्कि पूरे क्षेत्र की सुरक्षा को भी नया बल मिला।

वे मानते थे कि भारत और जापान के आपसी रिश्तों की मजबूती, न सिर्फ दोनों देशों के लोगों, बल्कि पूरी दुनिया के हित में है। वे भारत के साथ सिविल न्यूक्लियर एग्रीमेंट के लिए दृढ़ थे, जबकि उनके देश के लिए ये काफी मुश्किल काम था। भारत में हाई स्पीड रेल के लिए हुए समझौते को बेहद उदार रखने में भी उन्होंने निर्णायक भूमिका निभाई। न्यू इंडिया तेजी से विकास के रास्ते पर आगे बढ़ रहा है, तो उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि जापान कंधे से कंधा मिलाकर हर कदम पर भारत के साथ खड़ा रहेगा। भारत की आजादी के बाद इस सबसे महत्वपूर्ण कालखंड में उनका यह योगदान बेहद अहम है।

भारत -जापान संबंधों को मजबूती देने में उन्होंने ऐतिहासिक योगदान दिया, जिसके लिए वर्ष 2021 में उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था।

आबे सान को दुनियाभर की उथलपुथल और तेजी से हो रहे बदलावों की गहरी समझ थी। उनमें दूरदर्शिता भरी थी और यही वजह थी कि वे वैश्विक घटनाक्रमों का राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर होने वाला प्रभाव, पहले ही भांप लेते थे। ये समझ कि किन विकल्पों को चुनना है, किस तरह के स्पष्ट और साहसिक फैसले लेने हैं, समझौतों की बात हो या फिर अपने लोगों और दुनिया को साथ लेकर चलने की बात, उनकी बुद्धिमत्ता का हर कोई कायल था। उनकी दूरगामी नीतियों – आबेनॉमिक्स - ने जापानी अर्थव्यवस्था को फिर से मजबूत किया और अपने देश के लोगों में इनोवेशन और आंत्रप्रन्योरशिप की भावना को नई ऊर्जा दी।

उन्होंने जो मजबूत विरासत हम लोगों के लिए छोड़ी है, उसके लिए पूरी दुनिया हमेशा उनकी ऋणी रहेगी। उन्होंने पूरे विश्व में बदलती परिस्थितियों को न केवल सही समय पर पहचाना, बल्कि अपने नेतृत्व में उसके अनुरूप समाधान भी दिया।

भारतीय संसद में वर्ष 2007 के अपने संबोधन में उन्होंने इंडो-पेसिफिक क्षेत्र के उदय की नींव रखी, साथ ही ये विजन प्रस्तुत किया कि किस प्रकार ये क्षेत्र इस सदी में राजनीतिक, रणनीतिक और आर्थिक रूप से पूरी दुनिया को एक नया आकार देने वाला है।

इसके साथ ही वे इसकी रूपरेखा तैयार करने में भी आगे रहे। उन्होंने इसमें स्थायित्व और सुरक्षा के साथ शांत और समृद्ध भविष्य का एक ऐसा दृष्टिकोण अपनाया, जिसमें वे अटूट विश्वास रखते थे। ये उन मूल्यों पर आधारित था, जिसमें संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता सर्वोपरि थी। इसमें अंतर्राष्ट्रीय कानूनों-नियमों और बराबरी के स्तर पर शांतिपूर्ण वैश्विक संबंधों पर भी जोर था। इसमें आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देकर हर किसी के लिए समृद्धि के द्वार खोलने का अवसर था।

चाहे Quad हो या ASEAN के नेतृत्व वाला मंच, इंडो पेसिफिक ओशन्स इनिशिएटिव हो या फिर एशिया-अफ्रीका ग्रोथ कॉरिडोर या Coalition for Disaster Resilient Infrastructure, उनके योगदान से इन सभी संगठनों को लाभ पहुंचा है। इंडो-पेसिफिक क्षेत्र में उन्होंने घरेलू चुनौतियों और दुनियाभर के संदेहों को पीछे छोड़कर, शांतिपूर्ण तरीके से डिफेंस, कनेक्टिविटी, इंफ्रास्ट्रक्चर और सस्टेनेबिलिटी समेत जापान के सामरिक जुड़ाव में आमूलचूल परिवर्तन लाने का काम किया है। उनके इसी प्रयास के कारण यह पूरा क्षेत्र आज बहुत आशान्वित है और पूरा विश्व अपने भविष्य को लेकर कहीं अधिक आश्वस्त है।

मुझे इसी वर्ष मई में जापान यात्रा के दौरान आबे सान से मिलने का अवसर मिला। उन्होंने उसी समय जापान-इंडिया एसोसिएशन के अध्यक्ष का पदभार संभाला था। उस समय भी वे अपने कार्यों को लेकर पहले की तरह ही उत्साहित थे, उनका करिश्माई व्यक्तित्व हर किसी को आकर्षित करने वाला था। उनकी हाजिरजवाबी देखते ही बनती थी। उनके पास भारत-जापान मैत्री को और मजबूत बनाने को लेकर कई नए आइडियाज थे। उस दिन जब मैं उनसे मिलकर निकला, तब यह कल्पना भी नहीं की जा सकती थी कि हमारी यह आखिरी मुलाकात होगी।

वह हमेशा अपनी आत्मीयता, बुद्धिमत्ता, व्यक्तित्व की गंभीरता, अपनी सादगी, अपनी मित्रता, अपने सुझावों, अपने मार्गदर्शन के लिए बहुत याद आएंगे।

उनका जाना हम भारतीयों के लिए भी ठीक उसी प्रकार दुखी करने वाला है, मानो घर का कोई अपना चला गया हो। भारतीयों के प्रति उनकी जो प्रगाढ़ भावना थी, ऐसे में भारतवासियों का दुखी होना बहुत स्वभाविक है। वे अपने आखिरी समय तक अपने प्रिय मिशन में लगे रहे और लोगों को प्रेरित करते रहे। आज वे भले ही हमारे बीच में न हों, लेकिन उनकी विरासत हमें हमेशा उनकी याद दिलाएगी।

मैं भारत के लोगों की तरफ से और अपनी ओर से जापान के लोगों को, विशेषकर श्रीमती अकी आबे और उनके परिवार के प्रति हार्दिक संवेदनाएं व्यक्त करता हूं।

ओम शांति!

Explore More
78ਵੇਂ ਸੁਤੰਤਰਤਾ ਦਿਵਸ ਦੇ ਅਵਸਰ ‘ਤੇ ਲਾਲ ਕਿਲੇ ਦੀ ਫਸੀਲ ਤੋਂ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ, ਸ਼੍ਰੀ ਨਰੇਂਦਰ ਮੋਦੀ ਦੇ ਸੰਬੋਧਨ ਦਾ ਮੂਲ-ਪਾਠ

Popular Speeches

78ਵੇਂ ਸੁਤੰਤਰਤਾ ਦਿਵਸ ਦੇ ਅਵਸਰ ‘ਤੇ ਲਾਲ ਕਿਲੇ ਦੀ ਫਸੀਲ ਤੋਂ ਪ੍ਰਧਾਨ ਮੰਤਰੀ, ਸ਼੍ਰੀ ਨਰੇਂਦਰ ਮੋਦੀ ਦੇ ਸੰਬੋਧਨ ਦਾ ਮੂਲ-ਪਾਠ
Mann Ki Baat: Who are Kari Kashyap and Punem Sanna? PM Modi was impressed by their story of struggle, narrated the story in Mann Ki Baat

Media Coverage

Mann Ki Baat: Who are Kari Kashyap and Punem Sanna? PM Modi was impressed by their story of struggle, narrated the story in Mann Ki Baat
NM on the go

Nm on the go

Always be the first to hear from the PM. Get the App Now!
...
ਅਟਲ ਜੀ ਨੂੰ ਸ਼ਰਧਾਂਜਲੀ, ਇੱਕ ਰਾਜਨੇਤਾ, ਜਿਨ੍ਹਾਂ ਨੇ ਆਪਣੇ ਵਿਜ਼ਨ ਅਤੇ ਸੰਕਲਪ ਨਾਲ ਭਾਰਤ ਨੂੰ ਆਕਾਰ ਦਿੱਤਾ
December 25, 2024

Today, 25th December is a very special day for all of us. Our nation marks the 100th Jayanti of our beloved former Prime Minister, Shri Atal Bihari Vajpayee Ji. He stands tall as a statesman who continues to inspire countless people.

Our nation will always be grateful to Atal Ji for being the architect of India’s transition into the 21st century. When he took oath as PM in 1998 our nation had passed through a period of political instability. In about 9 years we had seen 4 Lok Sabha elections. The people of India were getting impatient and also sceptical about governments being able to deliver. It was Atal Ji who turned this tide by providing stable and effective governance. Coming from humble roots, he realised the struggles of the common citizen and the transformative power of effective governance.

One can see the long-term impact of Atal Ji’s leadership in so many sectors around us. His era marked a gigantic leap in the world of Information Technology, telecom and communications. This was particularly important for a nation like ours, which is also blessed with a very dynamic Yuva Shakti. The NDA Government under Atal Ji made the first serious attempt to make technology accessible to the common citizens. At the same time, there was foresight in connecting India. Even today, most people recall the Golden Quadrilateral Project, which connected the length and breadth of India. Equally notable were the Vajpayee Government’s efforts to enhance local connectivity as well through initiatives like the Pradhan Mantri Gram Sadak Yojana. Similarly, his Government gave a push to metro connectivity by doing extensive work for the Delhi Metro, which stands out as a world-class infrastructure project. Thus, the Vajpayee Government not only boosted economic growth but also brought distant regions closer, fostering unity and integration.

When it comes to the social sector, an initiative like the Sarva Shiksha Abhiyan highlights how Atal Ji dreamt of building an India where modern education is accessible to people across the nation, particularly for the poor and marginalised sections. At the same time, his government presided over many economic reforms which set the stage for India’s economic surge after several decades of following an economic philosophy which encouraged cronyism and stagnation.

A wonderful example of Vajpayee Ji’s leadership can be seen in the summer of 1998. His Government had just assumed office and on 11th May, India conducted the Pokhran tests, known as Operation Shakti. These tests exemplified the prowess of India’s scientific community. The world was stunned that India had done the tests and expressed their anger in no uncertain terms. Any ordinary leader would have buckled, but Atal Ji was made differently. And what happened? India stood firm and resolute with the government calling for another set of tests two days later, on 13th May! If the tests of the 11th showed scientific skill, the ones on 13th showed true leadership. It was a message to the world that gone were the days when India would buckle under threats or pressure. Despite facing international sanctions, the then NDA government of Vajpayee Ji stood firm, articulating India’s right to safeguard its sovereignty while simultaneously being the strongest proponent of world peace.

Atal Ji understood Indian democracy and also the need to make it stronger. Atal Ji presided over the creation of the NDA, which redefined coalitions in Indian politics. He brought people together and made NDA a force for development, national progress and regional ambitions. His Parliamentary brilliance was seen throughout his political journey. He belonged to a party with a handful of MPs but his words were enough to rattle the might of the all-powerful Congress Party that time. As Prime Minister, he blunted the criticisms of the Opposition with style and substance. His was a career spent largely in the Opposition benches but never carried any trace of bitterness against anyone, even though the Congress stooped to new lows by going to the extent of calling him a traitor!

He was also not one to cling on to power through opportunistic means. He preferred to resign in 1996 instead of following the path of horse-trading and dirty politics. In 1999, his Government was defeated by 1 vote. A lot of people told him to challenge the immoral politics happening then but he preferred to go by the rules. Eventually, he came back with another resounding mandate from the people.

When it comes to commitment to protecting our Constitution too, Atal Ji stands tall. He was deeply impacted by the martyrdom of Dr. Syama Prasad Mookerjee. Years later, he was a pillar of the anti-Emergency movement. In the run-up to the 1977 elections after the Emergency, he agreed to merger of his own Party (Jan Sangh) into the Janata Party. I am sure it would have been a painful decision but for him, and the others, but safeguarding the Constitution was all that mattered.

It is also noteworthy how deeply rooted Atal Ji was in Indian culture. Upon becoming India’s External Affairs Minister, he became the first Indian leader to speak in Hindi at the United Nations. This one gesture showcased his immense pride in India's heritage and identity, leaving an indelible mark on the global stage.

Atal Ji’s persona was magnetic and his life was enriched by his love for literature and expression. A prolific writer and poet, he used words to inspire, provoke thought, and even offer solace. His poetry, often reflective of his inner struggles and hopes for the nation, continues to resonate with people across age groups.

For so many Bharatiya Janata Party Karyakartas like me, it is our privilege that we were able to learn and interact with a person like Atal Ji. His contribution to the BJP was foundational. In those days to spearhead an alternative narrative to the dominant Congress showed his greatness. Alongside stalwarts like Shri L.K. Advani Ji and Dr. Murli Manohar Joshi Ji he nurtured the party from its formative years, guiding it through challenges, setbacks and triumphs. Whenever the choice came between ideology and power, he always chose the former. He was able to convince the nation that an alternative world view from the Congress was possible and such a world view could deliver.

On his 100th Jayanti, let us rededicate ourselves to realising his ideals and fulfilling his vision for India. Let us strive to build an India that embodies his principles of good governance, unity, and progress. Atal Ji's unwavering belief in the potential of our nation continues to inspire us to aim higher and work harder.