भाइयों और बहनों,

आज 3 दिसंबर का महत्वपूर्ण दिन है। पूरा विश्व इस दिन को अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस के रूप में मनाता है। आज का दिन दिव्यांगजनों के साहस, आत्मबल और उपलब्धियों को नमन करने का विशेष अवसर होता है।

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भारत के लिए ये अवसर एक पवित्र दिन जैसा है। दिव्यांगजनों का सम्मान भारत की वैचारिकी में निहित है। हमारे शास्त्रों और लोक ग्रंथों में दिव्यांग साथियों के लिए सम्मान का भाव देखने को मिलता है।

रामायण में एक श्लोक है-

उत्साहो बलवानार्य, नास्त्युत्साहात्परं बलम्।

सोत्साहस्यास्ति लोकेऽस्मिन्, न किञ्चिदपि दुर्लभम्।

श्लोक का मूल यही है कि जिस व्यक्ति के मन में उत्साह है, उसके लिए विश्व में कुछ भी असंभव नहीं है।

आज भारत में हमारे दिव्यांगजन इसी उत्साह से देश के सम्मान और स्वाभिमान की ऊर्जा बन रहे हैं।

इस वर्ष ये दिन और भी विशेष है। इसी साल भारत के संविधान के 75 वर्ष पूर्ण हुए हैं। भारत का संविधान हमें समानता और अंत्योदय के लिए काम करने की प्रेरणा देता है।

संविधान की इसी प्रेरणा को लेकर बीते 10 वर्षों में हमने दिव्यांगजनों की उन्नति की मजबूत नींव रखी है। इन वर्षों में देश में दिव्यांगजनों के लिए अनेक नीतियां बनी हैं, अनेक निर्णय़ हुए हैं।

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ये निर्णय दिखाते है कि हमारी सरकार सर्वस्पर्शी है, संवेदनशील है और सर्वविकासकारी है। इसी क्रम में आज का दिन दिव्यांग भाई-बहनों के प्रति हमारे इसी समर्पण भाव को फिर से दोहराने का दिन भी बना है।

मैं जब से सार्वजनिक जीवन में हूं, मैंने हर मौके पर दिव्यांगजनों का जीवन आसान बनाने के लिए प्रयास किए हैं। प्रधानमंत्री बनने के बाद मैंने इस सेवा को राष्ट्र का संकल्प बनाया। 2014 में सरकार बनने के बाद हमने सबसे पहले ‘विक्लांग’ शब्द के स्थान पर ‘दिव्यांग’ शब्द को प्रचलित करने का फैसला लिया।

ये सिर्फ शब्द का परिवर्तन नहीं था, इसने समाज में दिव्यांगजनों की गरिमा भी बढ़ाई और उनके योगदान को भी बड़ी स्वीकृति दी। इस निर्णय ने ये संदेश दिया कि सरकार एक ऐसा समावेशी वातावरण चाहती है, जहां किसी व्यक्ति के सामने उसकी शारीरिक चुनौतियां दीवार ना बनें औऱ उसे उसकी प्रतिभा के अनुसार पूरे सम्मान के साथ राष्ट्र निर्माण का अवसर मिले। दिव्यांग भाई-बहनों ने विभिन्न अवसरों पर मुझे इस निर्णय के लिए अपना आशीर्वाद दिया। ये आशीर्वाद ही, दिव्यांगजन के कल्याण के लिए मेरी सबसे बड़ी शक्ति बना।

हर वर्ष देश भर में हम दिव्यांग दिवस पर अनेक कार्यक्रम करते हैं। मुझे आज भी याद है, 9 साल पहले हमने आज के ही दिन सुगम्य भारत अभियान का शुभारंभ किया था। 9 सालों में इस अभियान ने जिस तरह से दिव्यांगजनों को सशक्त किया, उससे मुझे बड़ा संतोष मिला है।

140 करोड़ देशवासियों की संकल्प-शक्ति से ‘सुगम्य भारत’ ने ना सिर्फ दिव्यांगजनों के मार्ग से कई बाधाएं हटाई, बल्कि उन्हें सम्मान और समृद्धि का जीवन भी दिया।

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पहले की सरकारों के समय जो नीतियां थीं...उनकी वजह से दिव्यांगजन सरकारी नौकरियों और उच्च शिक्षा के अवसरों से पीछे रह जाते थे। हमने वो स्थितियां बदलीं। आरक्षण की व्यवस्था को नया रूप मिला। 10 वर्षों में दिव्यांगजन के कल्याण के लिए खर्च होने वाली राशि को भी तीन गुना किया गया। इन निर्णयों ने दिव्यांगजनों के लिए अवसरों और उन्नतियों के नए रास्ते बनाए। आज हमारे दिव्यांग साथी, भारत के निर्माण के समर्पित साथी बनकर हमें गौरवान्वित कर रहे हैं।

मैंने स्वयं ये महसूस किया है कि भारत के युवा दिव्यांग साथियों में कितनी अपार संभावनाएं हैं। पैरालंपिक में हमारे खिलाड़ियों ने देश को जो सम्मान दिलाया है, वो इसी ऊर्जा का प्रतीक है। ये ऊर्जा राष्ट्र ऊर्जा बने, इसके लिए हमने दिव्यांग साथियों को स्किल से जोड़ा है, ताकि उनकी ऊर्जा राष्ट्र की प्रगति की सहायक बन सके। ये प्रशिक्षण सिर्फ सरकारी कार्यक्रम भर नहीं है। इन प्रशिक्षणों ने दिव्यांग साथियों का आत्मविश्वास बढ़ाया है। उन्हें रोजगार तलाशने की आत्म शक्ति दी है।

मेरे दिव्यांग भाई-बहनों का जीवन सरल, सहज और स्वाभिमानी हो, सरकार का मूल सिद्धांत यही है। हमने Persons with Disabilities Act को भी इसी भाव से लागू किया। इस ऐतिहासिक कानून में Disability के Definition की कैटेगरी को भी 7 से बढ़ाकर 21 किया गया। पहली बार हमारे एसिड अटैक सर्वाइवर्स भी इसमें शामिल किए गए। आज ये कानून दिव्यांगजनों के सशक्त जीवन का माध्यम बन रहा है।

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इन कानूनों ने दिव्यांगजनों के प्रति समाज की धारणा बदली है। आज हमारे दिव्यांग साथी भी विकसित भारत के निर्माण के लिए अपनी संपूर्ण शक्ति के साथ काम कर रहे हैं।

भारत का दर्शन हमें यही सिखाता है कि समाज के हर व्यक्ति में एक विशेष प्रतिभा जरूर है। हमें उसे बस सामने लाने की जरूरत है। मैंने हमेशा अपने दिव्यांग साथियों की उस अद्भुत प्रतिभा पर विश्वास किया है। और मैं पूरे गर्व से कहता हूं, कि हमारे दिव्यांग भाई-बहनों ने एक दशक में मेरे इस विश्वास को और प्रगाढ़ किया है। मुझे यह देखकर भी गर्व होता है कि उनकी उपलब्धियां कैसे हमारे समाज के संकल्पों को नया आकार दे रही हैं।

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आज जब पैरालंपिक का मेडल सीने पर लगाकर, मेरे देश के खिलाड़ी मेरे घर पर पधारते हैं, तो मेरा मन गौरव से भर जाता है। हर बार जब मन की बात में मैं अपने दिव्यांग भाई-बहनों की प्रेरक कहानियों को आपके साथ साझा करता हूं, तो मेरा हृदय गर्व से भर जाता है। शिक्षा हो, खेल या फिर स्टार्टअप, वे सभी बाधाओं को तोड़कर नई ऊंचाइयां छू रहे हैं और देश के विकास में भागीदार बन रहे हैं।

मैं पूरे विश्वास से कहता हूं कि 2047 में जब हम स्वतंत्रता का 100वां उत्सव मनाएंगे, तो हमारे दिव्यांग साथी पूरे विश्व का प्रेरणा पुंज बने दिखाई देंगे। आज हमें इसी लक्ष्य के लिए संकल्पित होना है।

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आइए, हम सब मिलकर एक ऐसे समाज का निर्माण करें, जहां कोई भी सपना और लक्ष्य असंभव ना हो। तभी जाकर हम सही मायने में एक समावेशी और विकसित भारत का निर्माण कर पाएंगे।

और निश्चित तौर पर मैं इसमें अपने दिव्यांग भाई-बहनों की बहुत बड़ी भूमिका देखता हूं। पुन: सभी दिव्यांग साथियों को आज के दिन की शुभकामनाएं।

  • krishangopal sharma Bjp December 17, 2024

    नमो नमो 🙏 जय भाजपा 🙏🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩,,
  • krishangopal sharma Bjp December 17, 2024

    नमो नमो 🙏 जय भाजपा 🙏🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩,
  • krishangopal sharma Bjp December 17, 2024

    नमो नमो 🙏 जय भाजपा 🙏🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
  • Parveen Kumar Saini December 07, 2024

    जय जय राम जय श्रीराम
  • Parveen Kumar Saini December 07, 2024

    जय जय राम जय श्रीराम
  • Parveen Kumar Saini December 07, 2024

    जय जय राम जय श्रीराम
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    जय जय राम जय श्रीराम
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    जय जय राम जय श्रीराम
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    jai 3
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ଏକତାର ମହାକୁମ୍ଭ - ନୂଆ ଯୁଗର ଆରମ୍ଭ
February 27, 2025

ନରେନ୍ଦ୍ର ମୋଦୀ
ପ୍ରଧାନମନ୍ତ୍ରୀ

ପବିତ୍ର ସହର ପ୍ରୟାଗରାଜରେ ମହାକୁମ୍ଭ ସଫଳତାର ସହ ସମାପନ ହୋଇଛି। ଏକତାର ଏକ ବିଶାଳ ମହାଯଜ୍ଞ ସମ୍ପନ୍ନ ହୋଇଛି। ଗୋଟିଏ ରାଷ୍ଟ୍ରର ଚେତନା ଜାଗ୍ରତ ହେଲେ, ଶହ ଶହ ବର୍ଷ ପୁରୁଣା ପରାଧୀନତାର ମାନସିକତାରୁ ମୁକ୍ତ ହେଲେ, ଦେଶରେ ନୂତନ ଶକ୍ତିର ସଂଚାର ହୋଇଥାଏ । ଏହାର ପରିଣାମ ଜାନୁଆରୀ 13ରୁ ପ୍ରୟାଗରାଜରେ ଆରମ୍ଭ ହୋଇଥିବା ‘ଏକତା କା ମହାକୁମ୍ଭ’ (ଏକତାର ମହାକୁମ୍ଭ) ରେ ଦେଖିବାକୁ ମିଳିଥିଲା।

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On January 22, 2024, during the Pran Pratishtha of the Ram Mandir in Ayodhya, I spoke about Devbhakti and Deshbhakti - devotion to the divine and to the nation. During the Mahakumbh in 22 ଜାନୁଆରୀ 2024ରେ, ଅଯୋଧ୍ୟାରେ ରାମ ମନ୍ଦିରର ପ୍ରାଣ ପ୍ରତିଷ୍ଠା ସମୟରେ, ମୁଁ ଦେବ ଭକ୍ତି ଏବଂ ଦେଶ ଭକ୍ତି ବିଷୟରେ କହିଥିଲି। ପ୍ରୟାଗରାଜରେ ମହାକୁମ୍ଭ ସମୟରେ, ସାଧୁ, ସନ୍ଥ, ମହିଳା, ଶିଶୁ, ଯୁବକ, ବରିଷ୍ଠ ନାଗରିକ ଏବଂ ସମାଜର ସମସ୍ତ ବର୍ଗର ଲୋକମାନେ ଏକାଠି ହୋଇଥିଲେ। ମହାକୁମ୍ଭରେ ଆମେ ରାଷ୍ଟ୍ରର ଜାଗ୍ରତ ଚେତନାକୁ ଦେଖିଛୁ। ଏହା ଥିଲା ଏକତାର ମହାକୁମ୍ଭ, ଯେଉଁଠି 140 କୋଟି ଭାରତୀୟଙ୍କ ଆସ୍ଥା ଏହି ପବିତ୍ର ଅବସର ପାଇଁ ଏକ ସମୟରେ, ଗୋଟିଏ ସ୍ଥାନରେ ଏକତ୍ରିତ ହୋଇଥିଲା।

ପ୍ରୟାଗରାଜର ଏହି ପବିତ୍ର ଅଞ୍ଚଳ ହେଉଛି ଶୃଙ୍ଗବେରପୁର । ଏହା ଏକତା, ସୌହାର୍ଦ୍ଦ୍ୟ ଏବଂ ପ୍ରେମର ଏକ ପବିତ୍ର ଭୂମି, ଯେଉଁଠାରେ ପ୍ରଭୁ ଶ୍ରୀରାମ ଓ ନିଶାଦରାଜଙ୍କ ମଧ୍ୟରେ ସାକ୍ଷାତ ହୋଇଥିଲା। ସେମାନଙ୍କର ଏହି ସାକ୍ଷାତ ଭକ୍ତି ଓ ସଦ୍‌ଭାବନାର ସଙ୍ଗମ ଥିଲା। ଆଜି ମଧ୍ୟ ପ୍ରୟାଗରାଜ ଆମକୁ ସେହି ଭାବନା ସହ ପ୍ରେରଣା ଦେଉଛି।

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45 ଦିନ ଧରି ମୁଁ ଦେଶର କୋଣ ଅନୁକୋଣରୁ କୋଟି କୋଟି ଲୋକଙ୍କୁ ସଙ୍ଗମକୁ ଯିବାଆସିବା କରୁଥିବାର ଦେଖିଲି। ସଙ୍ଗମସ୍ଥଳରେ ଭାବପ୍ରବଣତାର ତରଙ୍ଗ ବୃଦ୍ଧି ପାଇବାରେ ଲାଗିଥିଲା। ପ୍ରତ୍ୟେକ ଭକ୍ତ ସଙ୍ଗମରେ ବୁଡ଼ ପକାଇବାର ଆକାଂକ୍ଷା ନେଇ ଆସିଥିଲେ । ଗଙ୍ଗା, ଯମୁନା ଏବଂ ସରସ୍ୱତୀଙ୍କ ପବିତ୍ର ସଙ୍ଗମ ପ୍ରତ୍ୟେକ ତୀର୍ଥଯାତ୍ରୀଙ୍କୁ ଉତ୍ସାହ, ଶକ୍ତି ଏବଂ ଆତ୍ମବିଶ୍ୱାସରେ ଭରିଦେଇଥିଲା।

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ପ୍ରୟାଗରାଜର ଏହି ମହାକୁମ୍ଭ ଆଧୁନିକ ପ୍ରବନ୍ଧନ ବା ମ୍ୟାନେଜମେଣ୍ଟ ପେସାଦାର, ଯୋଜନା ଏବଂ ନୀତି ବିଶେଷଜ୍ଞଙ୍କ ପାଇଁ ଏକ ଅଧ୍ୟୟନର ବିଷୟ। ବିଶ୍ୱର କୌଣସି ସ୍ଥାନରେ ଏହି ବ୍ୟାପକତାର କୌଣସି ସମାନ୍ତରାଳ ଉଦାହରଣ ନାହିଁ।

ପ୍ରୟାଗରାଜରେ ନଦୀ ସଙ୍ଗମ କୂଳରେ କୋଟି କୋଟି ଲୋକ କିପରି ଏକାଠି ହେଲେ, ତାହା ବିଶ୍ୱ ଆଶ୍ଚର୍ଯ୍ୟର ସହ ଦେଖିଲା। ଏହି ଲୋକମାନଙ୍କ ପାଖରେ କୌଣସି ଆନୁଷ୍ଠାନିକ ନିମନ୍ତ୍ରଣ ନଥିଲା, କେତେବେଳେ ଯିବେ ସେ ବିଷୟରେ କୌଣସି ପୂର୍ବ ସୂଚନା ନଥିଲା। ତଥାପି କୋଟି କୋଟି ଲୋକ ନିଜ ଇଚ୍ଛାରେ ମହାକୁମ୍ଭ ଅଭିମୁଖେ ବାହାରିଥିଲେ ଏବଂ ପବିତ୍ର ଜଳରାଶିରେ ବୁଡ଼ ପକାଇବାର ଆନନ୍ଦ ଅନୁଭବ କରିଥିଲେ।

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ପବିତ୍ର ସ୍ନାନ ପରେ ଅପାର ଆନନ୍ଦ ଏବଂ ସନ୍ତୋଷ ପ୍ରଦାନ କରୁଥିବା ସେହି ମୁହଁ ଗୁଡ଼ିକୁ ମୁଁ ଭୁଲି ପାରିବି ନାହିଁ। ମହିଳା, ବୟସ୍କ, ଦିବ୍ୟାଙ୍ଗ ଭାଇ ଓ ଭଉଣୀ-ସମସ୍ତେ ସଙ୍ଗମରେ ପହଞ୍ଚିବାର ରାସ୍ତା ଖୋଜି ବାହାର କଲେ।

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ଭାରତର ଯୁବକମାନଙ୍କ ବିପୁଳ ଅଂଶଗ୍ରହଣକୁ ଦେଖିବା ମୋ ପାଇଁ ବିଶେଷ ଭାବରେ ହୃଦୟସ୍ପର୍ଶୀ ଥିଲା। ମହାକୁମ୍ଭରେ ଯୁବପିଢ଼ିର ଉପସ୍ଥିତି ଏକ ଗଭୀର ବାର୍ତ୍ତା ଦେଉଛି ଯେ ଭାରତର ଯୁବବର୍ଗ ଆମର ଗୌରବମୟ ସଂସ୍କୃତି ଏବଂ ଐତିହ୍ୟର ପଥପ୍ରଦର୍ଶକ ହେବେ। ସେମାନେ ଏହାର ସଂରକ୍ଷଣ ଦିଗରେ ସେମାନଙ୍କର ଦାୟିତ୍ୱକୁ ବୁଝନ୍ତି ଏବଂ ଏହାକୁ ଆଗକୁ ନେବା ପାଇଁ ପ୍ରତିଶ୍ରୁତିବଦ୍ଧ।

ଏହି ମହାକୁମ୍ଭ ପାଇଁ ପ୍ରୟାଗରାଜରେ ପହଞ୍ଚୁଥିବା ଲୋକଙ୍କ ସଂଖ୍ୟା ନିଃସନ୍ଦେହରେ ନୂତନ ରେକର୍ଡ ସୃଷ୍ଟି କରିଛି। କିନ୍ତୁ ଶାରୀରିକ ଭାବେ ଉପସ୍ଥିତ ଥିବା ଲୋକମାନଙ୍କ ବ୍ୟତୀତ, ପ୍ରୟାଗରାଜରେ ପହଞ୍ଚି ପାରୁନଥିବା କୋଟି କୋଟି ଲୋକ ମଧ୍ୟ ଏହି ଅବସରରେ ଭାବପ୍ରବଣତାର ସହ ଗଭୀର ଭାବେ ଜଡ଼ିତ ଥିଲେ। ତୀର୍ଥଯାତ୍ରୀମାନେ ନେଇ ଆସୁଥିବା ପବିତ୍ର ଜଳ ଲକ୍ଷ ଲକ୍ଷ ଲୋକଙ୍କ ପାଇଁ ଆଧ୍ୟାତ୍ମିକ ଆନନ୍ଦର ଉତ୍ସ ପାଲଟିଥିଲା। ମହାକୁମ୍ଭରୁ ଫେରୁଥିବା ଅନେକଙ୍କୁ ସେମାନଙ୍କ ଗ୍ରାମରେ ସମ୍ମାନର ସହ ସ୍ୱାଗତ କରାଯାଇଥିଲା, ସମାଜ ଦ୍ୱାରା ସମ୍ମାନିତ କରାଯାଇଥିଲା।

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ଗତ କିଛି ସପ୍ତାହ ମଧ୍ୟରେ ଯାହା ଘଟିଛି ତାହା ଅଭୂତପୂର୍ବ ଏବଂ ଆଗାମୀ ଶତାବ୍ଦୀ ପାଇଁ ଏକ ମୂଳଦୁଆ ପକାଇଛି।

ସମସ୍ତଙ୍କ କଳ୍ପନା ଠାରୁ ଯଥେଷ୍ଟ ଅଧିକ ସଂଖ୍ୟକ ଭକ୍ତ ପ୍ରୟାଗରାଜରେ ପହଞ୍ଚିଥିଲେ। କୁମ୍ଭର ପୂର୍ବ ଅଭିଜ୍ଞତାକୁ ଆଧାର କରି ପ୍ରଶାସନ ଉପସ୍ଥାନର ଆକଳନ କରିଥିଲା।

ଆମେରିକାର ପ୍ରାୟ ଦୁଇଗୁଣ ଜନସଂଖ୍ୟା ଏହି ଏକତାର ମହାକୁମ୍ଭରେ ଅଂଶଗ୍ରହଣ କରିଥିଲେ।

ଆଧ୍ୟାତ୍ମିକ ବିଦ୍ୱାନମାନେ ଯଦି କୋଟି କୋଟି ଭାରତୀୟଙ୍କ ଉତ୍ସାହୀ ଅଂଶଗ୍ରହଣକୁ ବିଶ୍ଳେଷଣ କରନ୍ତି, ତେବେ ସେମାନେ ଦେଖିବେ ଯେ ଭାରତ ନିଜର ଐତିହ୍ୟକୁ ନେଇ ଗର୍ବିତ ଏବଂ ବର୍ତ୍ତମାନ ଦେଶ ଏକ ନୂତନ ଶକ୍ତି ସହିତ ଆଗକୁ ବଢ଼ୁଛି। ଏହା ଏକ ନୂତନ ଯୁଗର ପ୍ରାରମ୍ଭ ଏବଂ ଏହି ମହାକୁମ୍ଭ ନୂତନ ଭାରତର ଭବିଷ୍ୟତ ଲେଖିବ ବୋଲି ମୋର ବିଶ୍ୱାସ ରହିଛି ।

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For thousands of years, the Mahakumbh has strengthened India's national consciousness. Every Purnakumbh used to witness a gathering of saints, scholars and thinkers deliberating upon the state of ହଜାର ହଜାର ବର୍ଷ ଧରି, ମହାକୁମ୍ଭ ଭାରତର ଜାତୀୟ ଚେତନାକୁ ସୁଦୃଢ଼ କରିଛି। ଅତୀତରେ ପ୍ରତ୍ୟେକ ପୂର୍ଣ୍ଣ କୁମ୍ଭରେ ସନ୍ଥ, ବିଦ୍ୱାନ ଏବଂ ଚିନ୍ତାନାୟକମାନେ ନିଜ ସମୟର ସମାଜର ସ୍ଥିତି ଉପରେ ବିଚାରବିମର୍ଶ କରୁଥିବା ଦେଖିବାକୁ ମିଳୁଥିଲା। ସେମାନଙ୍କ ବିଚାରର ପ୍ରତିଫଳନ ଦେଶ ଏବଂ ସମାଜକୁ ଏକ ନୂତନ ଦିଗ ପ୍ରଦାନ କରୁଥିଲା। ପ୍ରତି ଛଅ ବର୍ଷରେ, ଅର୍ଦ୍ଧକୁମ୍ଭ ସମୟରେ, ଏହି ବିଚାରଗୁଡ଼ିକର ସମୀକ୍ଷା କରାଯାଇଥିଲା। 144 ବର୍ଷ ଧରି ଚାଲିଥିବା 12ଟି ପୂର୍ଣ୍ଣ କୁମ୍ଭ ଘଟଣା ପରେ, ପୁରୁଣା ପରମ୍ପରାକୁ ପରିତ୍ୟାଗ କରାଯାଉଥିଲା, ନୂତନ ଚିନ୍ତାଧାରାକୁ ଗ୍ରହଣ କରାଯାଇଥିଲା ଏବଂ ସମୟ ସହିତ ଆଗକୁ ବଢ଼ିବା ପାଇଁ ନୂତନ ପରମ୍ପରା ସୃଷ୍ଟି କରାଯାଇଥିଲା।

144 ବର୍ଷ ପରେ, ଏହି ମହାକୁମ୍ଭରେ, ଆମର ସନ୍ଥମାନେ ପୁନର୍ବାର ଭାରତର ବିକାଶ ପାଇଁ ଏକ ନୂତନ ବାର୍ତ୍ତା ଦେଇଛନ୍ତି । ସେହି ବାର୍ତ୍ତା ହେଉଛି - ବିକଶିତ ଭାରତ ।

ଏହି ଏକତାର ମହାକୁମ୍ଭରେ ପ୍ରତ୍ୟେକ ତୀର୍ଥଯାତ୍ରୀ, ଧନୀ ହୁଅନ୍ତୁ ଅବା ଗରିବ, ଯୁବ ହୁଅନ୍ତୁ ଅବା ବୃଦ୍ଧ, ଗାଁ ଅବା ସହରରୁ, ଭାରତ ହେଉ କି ବିଦେଶ, ପୂର୍ବ ହେଉ କି ପଶ୍ଚିମ, ଉତ୍ତର ହେଉ କି ଦକ୍ଷିଣ, ଜାତି, ଧର୍ମ ଏବଂ ବିଚାର ନିର୍ବିଶେଷରେ ଏକାଠି ହୋଇଥିଲେ। ଏହା ‘ଏକ ଭାରତ ଶ୍ରେଷ୍ଠ ଭାରତ’ ପରିକଳ୍ପନାର ପ୍ରତିମୂର୍ତ୍ତି ଥିଲା, ଯାହା କୋଟି କୋଟି ଲୋକଙ୍କ ମଧ୍ୟରେ ଆତ୍ମବିଶ୍ୱାସ ଭରିଥିଲା। ଏବେ ଆମକୁ ଏକ ବିକଶିତ ଭାରତ ନିର୍ମାଣର ଲକ୍ଷ୍ୟ ପାଇଁ ସମାନ ଭାବନା ନେଇ ଏକାଠି ହେବାକୁ ପଡ଼ିବ।

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ମୋର ଗୋଟିଏ କଥା ମନେ ପଡ଼ୁଛି । ଭଗବାନ ଶ୍ରୀକୃଷ୍ଣ ଛୋଟ ଥିବା ସମୟରେ ନିଜ ପାଟିରେ ମା’ ଯଶୋଦାଙ୍କୁ ସମ୍ପୂର୍ଣ୍ଣ ବ୍ରହ୍ମାଣ୍ଡର ଚିତ୍ର ଦେଖାଇଥିଲେ। ସେହିପରି, ଏହି ମହାକୁମ୍ଭରେ ଭାରତ ଓ ବିଶ୍ୱର ଲୋକମାନେ ଭାରତର ସାମୂହିକ ଶକ୍ତିର ବ୍ୟାପକ ସମ୍ଭାବନାକୁ ଦେଖିଛନ୍ତି । ଏବେ ଆମକୁ ଏହି ଆତ୍ମବିଶ୍ୱାସର ସହିତ ଆଗକୁ ବଢ଼ିବାକୁ ହେବ ଏବଂ ଏକ ବିକଶିତ ଭାରତ ଗଠନ ଦିଗରେ ନିଜକୁ ସମର୍ପିତ କରିବାକୁ ହେବ।

ଏହାପୂର୍ବରୁ ଭକ୍ତି ଆନ୍ଦୋଳନର ସନ୍ଥମାନେ ସମଗ୍ର ଭାରତରେ ଆମର ସାମୂହିକ ସଂକଳ୍ପର ଶକ୍ତିକୁ ଚିହ୍ନଟ କରିଥିଲେ ଏବଂ ପ୍ରୋତ୍ସାହିତ କରିଥିଲେ। ସ୍ୱାମୀ ବିବେକାନନ୍ଦଙ୍କ ଠାରୁ ଆରମ୍ଭ କରି ଶ୍ରୀ ଅରବିନ୍ଦଙ୍କ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ପ୍ରତ୍ୟେକ ମହାନ ଚିନ୍ତାନାୟକ ଆମକୁ ଆମ ସାମୂହିକ ସଂକଳ୍ପର ଶକ୍ତି ବିଷୟରେ ସ୍ମରଣ କରାଇ ଦେଇଥିଲେ। ଏପରିକି ମହାତ୍ମା ଗାନ୍ଧୀ ମଧ୍ୟ ସ୍ୱାଧୀନତା ଆନ୍ଦୋଳନ ସମୟରେ ଏହା ଅନୁଭବ କରିଥିଲେ। ସ୍ୱାଧୀନତା ପରେ, ଯଦି ଏହି ସାମୂହିକ ଶକ୍ତିକୁ ସଠିକ୍ ଭାବରେ ସ୍ୱୀକୃତି ଦିଆଯାଇଥାନ୍ତା ଏବଂ ସମସ୍ତଙ୍କ କଲ୍ୟାଣକୁ ପ୍ରୋତ୍ସାହିତ କରିବା ଦିଗରେ ଏହାର ଉପଯୋଗ କରାଯାଇଥା’ନ୍ତା, ତେବେ ଏହା ଗୋଟିଏ ନୂତନ ଭାବେ ସ୍ୱାଧୀନ ରାଷ୍ଟ୍ର ପାଇଁ ଏକ ମହାଶକ୍ତି ହୋଇପାରିଥାନ୍ତା। ଦୁର୍ଭାଗ୍ୟବଶତଃ, ପୂର୍ବରୁ ଏହା କରାଯାଇ ନଥିଲା। କିନ୍ତୁ ବର୍ତ୍ତମାନ, ଏକ ବିକଶିତ ଭାରତ ପାଇଁ ଲୋକମାନଙ୍କର ଏହି ସାମୂହିକ ଶକ୍ତି ଯେପରି ଭାବେ ଏକାଠି ହେଉଛି, ତାହା ଦେଖି ମୁଁ ଆନନ୍ଦିତ ।

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ବେଦ ଠାରୁ ଆରମ୍ଭ କରି ବିବେକାନନ୍ଦଙ୍କ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ, ପ୍ରାଚୀନ ଶାସ୍ତ୍ରଠାରୁ ଆରମ୍ଭ କରି ଆଧୁନିକ ଉପଗ୍ରହ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ, ଭାରତର ମହାନ ପରମ୍ପରା ଏହି ରାଷ୍ଟ୍ରକୁ ରୂପ ଦେଇଛି । ଜଣେ ନାଗରିକ ଭାବେ ମୁଁ ପ୍ରାର୍ଥନା କରୁଛି ଯେ ଆମେ ଆମର ପୂର୍ବପୁରୁଷ ଏବଂ ସନ୍ଥମାନଙ୍କ ସ୍ମୃତିରୁ ନୂତନ ପ୍ରେରଣା ପାଇବା। ଏହି ଏକତାର ମହାକୁମ୍ଭ ଆମକୁ ନୂତନ ସଂକଳ୍ପ ସହିତ ଆଗକୁ ବଢିବାରେ ସାହାଯ୍ୟ କରୁ। ଆସନ୍ତୁ ଏକତାକୁ ଆମର ମାର୍ଗଦର୍ଶକ ନୀତି କରିବା । ‘‘ରାଷ୍ଟ୍ରର ସେବା ହେଉଛି ଈଶ୍ୱରଙ୍କ ସେବା’’, ଆସନ୍ତୁ ଆମେ ଏହି ବୁଝାମଣା ସହିତ କାର୍ଯ୍ୟ କରିବା ।

କାଶୀରେ ମୋର ନିର୍ବାଚନ ପ୍ରଚାର ସମୟରେ, ମୁଁ କହିଥିଲି, ‘‘ମା’ ଗଙ୍ଗା ମୋତେ ଡାକିଛନ୍ତି ।’’ ଏହା କେବଳ ଏକ ଭାବପ୍ରବଣତା ନଥିଲା, ବରଂ ଆମର ପବିତ୍ର ନଦୀଗୁଡ଼ିକର ସ୍ୱଚ୍ଛତା ପ୍ରତି ଦାୟିତ୍ୱର ଏକ ଆହ୍ୱାନ ମଧ୍ୟ ଥିଲା। ପ୍ରୟାଗରାଜରେ ଗଙ୍ଗା, ଯମୁନା ଏବଂ ସରସ୍ୱତୀଙ୍କ ସଙ୍ଗମ ସ୍ଥଳରେ ଠିଆ ହୋଇ ମୋର ସଂକଳ୍ପ ଆହୁରି ଦୃଢ଼ ହୋଇଗଲା। ଆମ ନଦୀଗୁଡ଼ିକର ସ୍ୱଚ୍ଛତା ଆମ ନିଜ ଜୀବନ ସହିତ ଗଭୀର ଭାବେ ଜଡ଼ିତ। ବଡ଼ ହେଉ କିମ୍ବା ଛୋଟ, ଆମ ନଦୀଗୁଡ଼ିକୁ ଜୀବନଦାୟିନୀ ମା’ ଭାବେ ସମ୍ମାନ କରିବା ଆମର ଦାୟିତ୍ୱ। ଏହି ମହାକୁମ୍ଭ ଆମକୁ ଆମ ନଦୀଗୁଡ଼ିକର ସ୍ୱଚ୍ଛତା ଦିଗରେ କାର୍ଯ୍ୟ କରିବା ପାଇଁ ପ୍ରେରଣା ଦେଇଛି।

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ମୁଁ ଜାଣେ ଯେ ଏତେ ବଡ଼ କାର୍ଯ୍ୟକ୍ରମ ଆୟୋଜନ କରିବା ସହଜ କାମ ନଥିଲା। ଯଦି ଆମର ଭକ୍ତିରେ କୌଣସି ତ୍ରୁଟି ଥାଏ ତେବେ ଆମକୁ କ୍ଷମା କରନ୍ତୁ ବୋଲି ମୁଁ ମା’ ଗଙ୍ଗା, ମା’ ଯମୁନା ଏବଂ ମା’ ସରସ୍ୱତୀଙ୍କୁ ପ୍ରାର୍ଥନା କରୁଛି । ମୁଁ ଜନତା ଜନାର୍ଦ୍ଦନ, ଜନସାଧାରଣଙ୍କୁ ଦେବତ୍ୱର ପ୍ରତିମୂର୍ତ୍ତି ଭାବେ ଦେଖୁଛି। ଯଦି ସେମାନଙ୍କ ସେବା କରିବା ପାଇଁ ଆମ ପ୍ରୟାସରେ କୌଣସି ତ୍ରୁଟି ରହିଛି, ତେବେ ମୁଁ ଜନସାଧାରଣଙ୍କୁ କ୍ଷମା ପ୍ରାର୍ଥନା କରୁଛି।

ଭକ୍ତି ଭାବନା ନେଇ କୋଟି କୋଟି ଲୋକ ମହାକୁମ୍ଭକୁ ଆସିଥିଲେ। ସେମାନଙ୍କର ସେବା କରିବା ମଧ୍ୟ ଏକ ଦାୟିତ୍ୱ ଥିଲା ଯାହା ସମାନ ଭକ୍ତିର ଭାବନା ସହିତ କାର୍ଯ୍ୟକାରୀ ହୋଇଥିଲା। ଉତ୍ତର ପ୍ରଦେଶର ଜଣେ ସାଂସଦ ଭାବେ ମୁଁ ଗର୍ବର ସହ କହିପାରିବି ଯେ ଯୋଗୀ ଜୀଙ୍କ ନେତୃତ୍ୱରେ ପ୍ରଶାସନ ଏବଂ ଲୋକମାନେ ମିଳିତ ଭାବେ ଏହି ଏକତାର ମହାକୁମ୍ଭକୁ ସଫଳ କରିବା ପାଇଁ କାର୍ଯ୍ୟ କରିଥିଲେ। ରାଜ୍ୟ ହେଉ କିମ୍ବା କେନ୍ଦ୍ର, ସେଠାରେ କୌଣସି ଶାସକ କିମ୍ବା ପ୍ରଶାସକ ନଥିଲେ। ଏହା ପରିବର୍ତ୍ତେ ସମସ୍ତେ ଜଣେ ଉତ୍ସର୍ଗୀକୃତ ସେବକ ଥିଲେ। ସଫେଇ କର୍ମଚାରୀ, ପୁଲିସ, ଡଙ୍ଗାଚାଳକ, ଡ୍ରାଇଭର, ଖାଦ୍ୟ ପରିବେଷଣ କରୁଥିବା ଲୋକ-ସମସ୍ତେ ଅକ୍ଳାନ୍ତ ପରିଶ୍ରମ କରିଥିଲେ। ଅନେକ ଅସୁବିଧାର ସମ୍ମୁଖୀନ ହେବା ସତ୍ତ୍ୱେ ପ୍ରୟାଗରାଜର ଲୋକମାନେ ଯେଭଳି ଭାବେ ତୀର୍ଥଯାତ୍ରୀମାନଙ୍କୁ ଖୋଲା ହୃଦୟରେ ସ୍ୱାଗତ କରିଥିଲେ, ତାହା ବିଶେଷ ଭାବେ ପ୍ରେରଣାଦାୟୀ ଥିଲା। ମୁଁ ସେମାନଙ୍କୁ ଏବଂ ଉତ୍ତର ପ୍ରଦେଶର ଜନସାଧାରଣଙ୍କୁ ହୃଦୟରୁ କୃତଜ୍ଞତା ଓ ଧନ୍ୟବାଦ ଜ୍ଞାପନ କରୁଛି।

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ଆମ ଦେଶର ଉଜ୍ଜ୍ୱଳ ଭବିଷ୍ୟତ ଉପରେ ମୋର ସର୍ବଦା ଅତୁଟ ବିଶ୍ୱାସ ରହିଛି। ଏହି ମହାକୁମ୍ଭକୁ ଦେଖିବା ଦ୍ୱାରା ମୋର ବିଶ୍ୱାସ ଅନେକ ଗୁଣ ବୃଦ୍ଧି ପାଇଛି।

140 କୋଟି ଭାରତୀୟ ଯେଉଁଭଳି ଭାବେ ଏକତାର ମହାକୁମ୍ଭକୁ ଏକ ବିଶ୍ୱସ୍ତରୀୟ ସମାରୋହରେ ପରିଣତ କରିଛନ୍ତି, ତାହା ବାସ୍ତବରେ ଚମତ୍କାର। ଆମ ଲୋକମାନଙ୍କ ସମର୍ପଣ, ଭକ୍ତି ଏବଂ ପ୍ରୟାସ ଦ୍ୱାରା ଅନୁପ୍ରାଣିତ ହୋଇ, ମୁଁ ଖୁବଶୀଘ୍ର ଦ୍ୱାଦଶ ଜ୍ୟୋତିର୍ଲିଙ୍ଗଙ୍କ ମଧ୍ୟରେ ପ୍ରଥମ ଶ୍ରୀ ସୋମନାଥଙ୍କୁ ଦର୍ଶନ କରିବି । ତାଙ୍କୁ ଏହି ଶ୍ରଦ୍ଧାରୂପୀ ସଂକଳ୍ପ ପୁଷ୍ପ ସମର୍ପଣ କରି ପ୍ରତ୍ୟେକ ଭାରତୀୟଙ୍କ ପାଇଁ ପ୍ରାର୍ଥନା କରିବି। ଦେଶବାସୀଙ୍କ ମଧ୍ୟରେ ଏକତାର ଏହି ଅବିରତ ଧାରା ପ୍ରବାହିତ ହୋଇ ଚାଲିବା ପାଇଁ କାମନା କରିବି ।

ମହାକୁମ୍ଭର ଭୌତିକ ସ୍ୱରୂପ ମହାଶିବରାତ୍ରୀ ଉପଲକ୍ଷେ ସଫଳତାର ସହ ସମାପ୍ତ ହୋଇଥାଇପାରେ, କିନ୍ତୁ ଗଙ୍ଗାର ଶାଶ୍ୱତ ପ୍ରବାହ ପରି ମହାକୁମ୍ଭ ଜାଗ୍ରତ କରିଥିବା ଆଧ୍ୟାତ୍ମିକ ଶକ୍ତି, ଜାତୀୟ ଚେତନା ଏବଂ ଏକତା ଆମକୁ ଆଗାମୀ ଅନେକ ପିଢ଼ି ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ପ୍ରେରଣା ଯୋଗାଇବ ।