भगवान बिरसा मुंडा की इस पवित्र धरती को प्रणाम करते हुए आप सबको भी, मैं बहुत बहुत शुभकामनाएं देता हूं। हमारे कृषि मंत्री, श्रीमान राधा मोहन सिंह जी ने विस्तार से सौ साल पहले कृषि अनुसंधान के क्षेत्र में, बिहार की धरती पर कैसे कार्य प्रारंभ हुआ और बाद में इसी काम से ये भूभाग कैसे अछुता रह गया, इसका वर्णन किया है।

मैं देख रहा हूं, आज यंहा सिर्फ झारखंड के ही नहीं दक्षिण बिहार से भी बड़ी संख्या में लोग नज़र आ रहे हैं..क्योंकि दक्षिण बिहार के लोगों को बराबर समझ है कि इस अनुसंधान केंद्र का लाभ सिर्फ झारखंड को ही मिलेगा, ऐसा नहीं, दक्षिण बिहार के लोग भी इसका सर्वाधिक लाभ उठा पाएंगे, ये उनको भली-भांति पता है।

भारत कृषि प्रधान देश है, ये बात हम सदियों से सुनते आए हैं। लेकिन यह भी एक दुर्भाग्य है कि देश के कृषि जगत को किसानों के नसीब पर छोड़ दिया गया है। उसी का नतीजा है कि सारा विश्व कृषि के क्षेत्र में जो प्रगति कर चुका है, भारत आज भी उससे बहुत पीछे है। चाहे ज़मीन का रख-रखाव हो, चाहे अच्छी क्वालिटी के बीज मुहैया कराना हो, चाहे किसान को पानी और बिजली उपलब्ध कराना हो, चाहे किसान जो उत्पादित करता है चीजें, उसके लिए सही बाज़ार मिले, सही दाम मिले, मूल्य वृद्धि की प्रक्रिया हो, कृषि के साथ सहायक उद्योग, पशुपालन हो, मतस्य उद्योग हो, शहद का काम हो..इन सारी बातों को ले करके एक संतुलित, एक comprehensive, integrated जब तक हम प्लान नहीं करते, हम हमारे गांव के आर्थिक जीवन को बदल नहीं सकते, हम किसानों के जीवन में बदलाव नहीं ला सकते हैं।

इसलिए दिल्ली में बैठी हुई वर्तमान सरकार..परंपरागत ये कृषि है, जो हमारे भाई बहन अपने पुरखों से सीख करके आगे बढ़ा रहे हैं। वह .. कृषि आधुनिक कैसे बने, वह कृषि वैज्ञानिक कैसे बने और आज जो प्रति हेक्टेयर उत्पान होता है, वह उत्पादन कैसे बढ़े, ये चिंता का विषय है। इस सबके उपाय नहीं हैं, ऐसा नहीं है। उसके लिए कोई रास्ते नहीं खोजे जा सकते, ऐसा नहीं है। आवश्यकता है कि सरकार की नीतियों के द्वारा, प्रशिक्षण के द्वारा, संसाधन मुहैया कराने की पद्धति से कृषि को आधुनिक और वैज्ञानिक बनाया जा सकता है।

जनसंख्या बढ़ती चली जा रही है, ज़मीन कम होती चली जा रही है। आज से पचास साल पहले जिस परिवार के पास सौ बीघा ज़मीन होगी..परिवार का विस्तार होते होते, बेटे, बेटे के बेटे, चचेरे भाई, उनके बेटे..ज़मीन के टुकड़े होते होते अब परिवार के पास दो बीघा, पांच बीघा ज़मीन रह गई होगी। ज़मीन छोटे छोटे टुकड़ों में बंट रही है, परिवार का विस्तार हो रहा है। जनसंख्या बढ़ रही है, ज़मीन कम हो रही है। ऐसी स्थिति में हमारे पास जो उपलब्ध ज़मीन है, उसमें अगर हमारी उत्पादकता नहीं बढ़ेगी, हम ज़्यादा फसल नहीं प्राप्त करेंगे, न तो देश का पेट भरेगा, न तो किसान का जेब भरेगा।

इसलिए कृषि का विकास ऐसे हो, जो देशवासियों का पेट भी भरे और किसान का जेब भी भरे और इसलिए सबसे पहली आवश्यकता है, हमारी परंपरागत कृषि में पुनः संशोधन करने की, research करने की। भारत इतना विशाल देश है, कि एक कोने में एक laboratory में काम होने से काम चलेगा नहीं। सभी agro climatic zone में, वहां की वायु के अनुसार, ज़मीन के अनुसार, परंपराओं के अनुसार संशोधन करने पड़ेंगे। तब जा करके उन संसाधनों का उपयोग होगा। अगर, केरल में जो प्रयोग सफल होता है, वहीं प्रयोग हम झारखंड में फिट करने जाएंगे तो कभी कभी..न तो किसान उसको स्वीकार करेगा और कभी कोई प्रयोग अगर विफल गया, तो कभी किसान हाथ नहीं लगाएगा।

इसलिए वो जिस भू-भाग में रहता है, जिस प्राकृतिक अवस्था में रहता है, जिस परंपरा से खेती करता है, उसी में अगर हम संशोधन करेंगे, उसी में वैज्ञानिकता लाएंगे, तो किसान उसको सहज रूप में स्वीकार भी करेगा और किसान को वो उपकारक भी होगा। इसलिए हमने दूर-सुदूर इलाकों के विद्यार्थियों को.. कृषि के क्षेत्र में आधुनिक शिक्षा मिले, उनको research करने का अवसर मिले और वो अपने अपने क्षेत्र में, उस भूभाग के किसानों का भला करने की दिशा में नए संशोधन करे, जिसको आगे चल करके लागू किया जाए, उस दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास..जिसके तहत आज एक कृषि अनुसंधान के क्षेत्र में एक इंस्टीट्यूट झारखंड को मिल रहा है। इसका लाभ इस पूरे इलाके को मिलने वाला है।

हमारे देश ने प्रथम कृषि क्रांति देखी है, लेकिन उसको बहुत साल हो गए। अब समय की मांग है कि देश में दूसरी कृषि क्रांति बिना विलंब होनी चाहिए। ये दूसरी कृषि क्रांति होने की संभावना कहां है? मैं जानकारियों के आधार पर कह सकता हूं कि अब हिंदूस्तान में दूसरी कृषि क्रांति की संभावना अगर कहीं है, तो वह पूर्वी उत्तर प्रदेश, झारखंड, बिहार, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, असम, ये भारत के जो पूर्वी इलाके हैं, वहीं पर से दूसरी कृषि क्रांति की संभावना है। इसलिए सरकार ने पूरा अपना ध्यान इस क्षेत्र के विकास की ओर केंद्रित किया है और इस क्षेत्र के विकास के लिए जिस प्रकार से एक research institute का हम आरंभ कर रहे हैं, उसी प्रकार से.. किसान को fertilizer चाहिए, यूरिया चाहिए। इस इलाके में यूरिया के खातर के कारखाने बंद पड़े हैं। हमारी सरकार ने निर्णय किया.. चाहे गोरखपुर का कारखाना हो, चाहे सिंदरी का कारखाना हो, चाहे पश्चिम बंगाल, असम में कारखाने लगाने की बात हो, बिहार में लगाने की बात हो, अरबों, खरबों रूपयों की लागत से इन कारखानों को लगाया जाएगा, चालू किया जाएगा ताकि यहां के किसानों को खाद मिले, यूरिया मिले, उनको खातर मिले और पास में जो उत्पादन होता है, transportation का जो बोझ लगता है, उससे भी उसको मुक्ति मिले और यहां पर खाद के कारखाने लगें तो यहां के नौजवान को रोज़गार भी मिले।

सरकार ने एक महत्वपूर्ण initiative लिया है। आजकल, अगर हम बिमार होते हैं तो डाक्टर दवाई देने से पहले कहता है कि pathology laboratory में जाइए, रक्त परीक्षण करवाईए, यूरिन टेस्ट करवाइए, ब्लड टेस्ट करवाइए, उसके बाद तय करेंगे कि क्या बिमारी है और उसके बाद दवाई देंगे। गांव के अंदर भी आजकल डाक्टर सीधी दवाई देने के बजाए आपको ब्लड टेस्ट कराने के लिए भेजता है। शरीर के अंदर क्या कमी आई है, उसका पता पहले लगाया जाता है, उसके बाद दवाई दी जाती है। जैसा शरीर का स्वाभाव है, वैसा ही हमारी इस धरती माता का भी स्वभाव है। जैसे हम बिमार होते है, वैसे ही ये हमारी धरती माता भी बिमार होती है। जैसे हम अपने शरीर की चिंता करते हैं, वैसे हमें धरती माता की तबियत की भी चिंता करना ज़रूरी है। हमारी धरती माता को क्या बिमारी है? क्या कमियां आईं हैं? हमने किस प्रकार से हमारी धरती माता का दूरूपयोग किया है? कितना हमने उसको चूस लिया है? इसका अध्ययन ज़रूरी है..और इसलिए सरकार ने पूरे देश में हर खेत के लिए soil health card बनाना तय किया है। धरती के परीक्षण के द्वारा उसका एक कार्ड निकाला जाएगा। जैसे इंसान का health card होता है, वैसे किसान की धरती माता का भी health card होगा। आपकी धरती में क्या कमियां है, क्या बिमारियां हैं, आपकी धरती किस फसल के लिए उपयुक्त है, कौन से pesticide लगाना अच्छा है, कौन से लगाना बुरा है, कौन सा fertilizer डालना ठीक है, कौन सा डालना बुरा है, इसकी पूरी समझ किसान को अगर पहले से मिल जाए तो किसान तय कर सकता है कि मेरी ये धरती है, इसमें धान पैदा होगा, दलहन पैदा होंगे, क्या पैदा होगा, वो तय कर सकता है। एक बार यदि अपनी ज़मीन के हिसाब से फसल बोता है, तो उसको ज्यादा आय भी होती है, ज्यादा फसल पैदा होती है। पूरे हिंदूस्तान में वैज्ञानिक तरीके से हम ये बदलाव लाने के लिए लगे हैं ..और ये काम धीरे धीरे नौजवानों को रोज़गार देने वाला भी काम बन सकता है।

आज हिंदुस्तान में जितनी pathology laboratories हैं, वो सरकार कहां चलाती है? सरकार की तो बहुत कम हैं। लोग चलाते हैं, लोग अपना pathology laboratory बनाते हैं, patient आते हैं, परीक्षण करते हैं, अपना खर्चा वो ले लेते हैं, रोज़ी रोटी कमाते हैं, लोगों की तबियत की भी चिंता करते हैं। धीरे धीरे हम देश में नौजवानों को soil health card तैयार करने की laboratory का जाल बिछाने के लिए तैयार करना चाहते हैं। ताकि नौजवान का अपना व्यवसाय बन जाए..ज़मीन, मिट्टी का परीक्षण करने का उसका रोज़गार शुरू हो जाए और गांव का नौजवान गांव में ही कमाई करने लग जाए। उसके रोज़गार के भी द्वार खुल जाएं और ज़मीन के संबंध में किसान को सही जानकारी मिल जाए ताकि वो सही उत्पादन की दिशा में आगे बढ़ सके, उस दिशा में हम काम कर रहे हैं।

भाईयों-बहनों, हमारे कृषि के साथ पशुपालन का भी उतना ही महत्व है, मतस्य पालन का भी उतना ही महत्व है, मुर्गी पालन का भी उतना ही महत्व है, शहद का काम करना भी उतने ही महत्व का है। हमारी खेती अगर 6 महीना – 8 महीना चलती है तो बाकी समय में ये चीज़ें किसान की आर्थिक स्थिति में लाभ करते हैं। आज हमारे पास जितने पशु हैं, उसकी तुलना में हमारा दूध कम है। दुनिया में पशु कम हैं, दूध का उत्पादन ज्यादा है। हमारे यहां पशु ज्यादा है, दूध का उत्पादन कम है। ये स्थिति हमें पलटनी है। प्रति पशु ज्यादा से ज्यादा दूध कैसे उत्पादन हो..ताकि जो पशुपालक हैं, जो किसान हैं, उसके लिए पशुपालन कभी मंहगा नहीं होना चाहिए। पशुपालन का जितना खर्चा होता है, उससे ज्यादा आय उसको दूध में से मिलना चाहिए। इसलिए हमने डेयरी के क्षेत्र में, झारखंड को भी सेवाएं मिलें, ये अभी अभी निर्णय कर लिया है। झारखंड में भी डेयरी का विकास हो, पशुपालकों को लाभ हो, किसान को खेती के साथ साथ पशुपालन की भी व्यवस्था मिले, उस दिशा में हम प्रयास कर रहे हैं।

मैं एक बार बिहार में भ्रमण कर रहा था, तो वहां लोगों ने मुझे बताया कि बिहार में हर वर्ष करीब 400 करोड़ रूपए की मछली दूसरे राज्यों में से import करके खाते हैं। अब ये 400 करोड़ रूपया कहीं और चला जाता है। अगर वहीं पर सही तरीके से मतस्य उद्योग हो, वहां के नौजवानों को रोज़गार मिले, वहां के लोगों की आवश्यकता की पूर्ति हो तो 400 करोड़ रूपए वहीं बच जाएंगे। उन 400 करोड़ रूपयों से कितने लोगों को रोजी-रोटी मिल जाएगा।

इसलिए हम व्यवस्थाओं को विकसित करना चाहते हैं। हमारे देश में कुछ इलाके ऐसे हैं कि जहां किसान मधुमक्खी के पालन में लगा हुआ है और कुछ किसान तो ऐसे हैं जो शहद के उत्पादन से, मधु के उत्पादन से लाखों रूपयों की कमाई करते हैं। क्या हम हमारे देश में, हर राज्य में कम से कम एक जिला..वहां के किसानों को तैयार करें, मधु के लिए तैयार करें, शहद के लिए तैयार करें। और हर राज्य का एक जिला..जहां के किसान अपनी खेती, पशुपालन के साथ साथ मधु उत्पादन का भी काम करें। मधु खराब भी नहीं होता है। बोतल में पैक करके रख दिया। सालों तक चलता है। आज दुनिया में उसकी मांग है। हम हमारे किसान को आधुनिक रूप से बदलाव लाने की दिशा में ले जाना चाहते हैं।

आज किसान जागरूक हुआ है, Vermicompost की ओर बढ़ा है। क्या हम तय नहीं कर सकते कि पिछली बार हमारे पास सौ किलो earthworm थे.. पिछली बार अगर हमारे पास सौ किलो केंचुए थे, इस बार अगर हमने दो सौ किए। आपको तो सिर्फ एक गड्ढा खोद कर उसमें कूड़ा कचरा डालना है। बाकी काम अपने आप परमात्मा कर देता है। आपकी ज़मीन को भी वो संभालता है और आजकल केंचुओं का बाज़ार भी बहुत बड़ा होता जा रहा है। हमारी ज़मीन भी बचेगी, यूरिया का खपत भी बचेगा। यूरिया के कारण हमारी ज़मीन बरबाद हो रही है, वो भी बचेगी और Vermi-compost के द्वारा हम उत्पादन में वृद्धि ला सकते हैं, ये अपने घर में बैठ करके करने वाले काम हैं, उसको हम कर सकते हैं। इसलिए हम एक integrated approach के साथ हमारे कृषि क्षेत्र में बदलाव लाने की दिशा में एक के बाद एक कदम उठाने जा रहे हैं।

हमारे देश में आज भी..जब हमारे देश के प्रधानमंत्री थे, लाल बहादुर शास्त्री, उन्होंने एक बार कहा- जय जवान, जय किसान। देश के किसानों को कहा कि अन्न के भंडार भर दो, फिर इस देश के किसान ने कभी पीछे मुड़ करके देखा नहीं। उसने इतनी मेहनत की, इतनी मेहनत की, अन्न के भंडार भर दिए। अब विदेशों से खाने के लिए अन्न नहीं मंगवाना पड़ता। लेकिन मेरे किसान बहनों, भाईयों हमने अन्न के भंडार तो भर दिए, लकिन आज देश के लोगों को, खास करके गरीब लोगों को अपने खाने में दलहन की बड़ी आवश्यकता होती है। प्रोटीन उसी से मिलता है, दाल से मिलता है। हमारे यहां दाल का उत्पादन बहुत कम है, विदेशों से लाना पड़ता है। मैं देश के किसानों से आग्रह करता हूं कि अगर आपके पास पांच एकड़ भूमि है तो चार एकड़ भूमि में आप परंपरागत जो काम करते हैं, करिए। कम से कम एक एकड़ भूमि में आप दलहन की खेती कीजिए। देश को जो pulses बाहर से लाने पड़ते हैं, वो लाने न पड़ें और गरीब से गरीब व्यक्ति को जो दाल चाहिए, वो दाल हम उपलब्ध करा सकें। इसीलिए सरकार ने.. जो minimum support price देते हैं, उसमें pulses के लिए एक विशेष पैकेज दिया है - जो दाल वगैरह पैदा करेंगे, मूंग, चने वगैरह पैदा करेंगे, उनको अतिरिक्त minimum support price मिलेगा ताकि देश में दाल के उत्पादन को बढ़ावा मिले और देश की आवश्यकता हमारे देश का किसान पूर्ण करे।

इन बातों को ले करके हमने एक और काम का बीड़ा उठाया है। वो है- प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना। बहुत ही महत्वपूर्ण काम है। अगर हमारे किसान को पानी मिल जाए तो मिट्टी में से सोना पैदा करने की वो ताकत रखता है। आज हमारे देश की ज्यादातर कृषि आसमान पर निर्भर है, ईश्वर पर निर्भर है। बारिश ठीक हो गई तो काम चल जाता है। बारिश अगर ठीक नहीं हुई तो मामला गड़बड़ा जाता है। उसे पानी चाहिए। अगर हम पानी पहुंचाने का प्रबंध ठीक से कर पाते हैं तो सिर्फ एक फसल नहीं, वो दो फसल दे सकता है, कोई तीन फसल ले सकता है और बाकी समय में भी कुछ न कुछ उत्पादन करके वो रोजी-रोटी कमा सकता है। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना से पूरे हिंदूस्तान में खेतों में पानी पहुंचाने का, एक बहुत बड़ा भगीरथ काम उठाने की दिशा में ये सरकार आगे बढ़ रही है और आने वाले वर्षों में उस काम को हम पूर्ण करना चाहते हैं।

कितने जलाशय बने हुए हैं। लेकिन उन जलाशयों में खेतों तक पानी ले जाने की व्यवस्था नहीं है। मैं हैरान हूं..बिजली का कारखाना लग जाए लेकिन बिजली वहन करने के लिए जो तार नहीं लगेंगे तो कारखाना किस काम का? जलाशय बन जाए, पानी भर जाए, लेकिन उस पानी को पहुंचाने के लिए अगर नहर नहीं होगी तो उस पानी को देख करके क्या करेंगे? इसलिए देश भर में जलाशयों के बूंद बूंद पानी का उपयोग कैसे हो, हमारा किसान उससे लाभान्वित कैसे हो, उस दिशा में हम काम कर रहे हैं।

भारत जैसे देश में पानी भी बचाना पड़ेगा। इसलिए हमारा आग्रह है- per drop more crop. पानी के हर बूंद से फसल पैदा होनी चाहिए। एक एक बूंद का उपयोग करना चाहिए। micro-irrigation का उपयोग करना चाहिए..टपक सिंचाई, sprinkler, जहां जहां किसानों ने इस आधुनिक technology से पानी का उपयोग किया है, मेहनत भी कम हुई है, खर्चा भी कम हुआ है, उत्पादन ज्यादा बढ़ा है, मुनाफा भी ज्यादा बढ़ा है।

मैं किसानों से आग्रह करता हूं, देश भर के किसानों से आग्रह करता हूं कि आइए, ये हम flood irrigation..क्योंकि किसान का स्वभाव है, जब तक वो खेत में, लबालब पानी से भरा हुआ उसको खेत दिखता नहीं है, तब तक उसको लगता है कि पता नहीं फसल होगी कि नहीं होगी। ये सोच गलत है। फसल को इतने पानी की ज़रूरत नहीं होती है। पानी का प्रभाव भी फसल को नुकसान करता है, पानी का अभाव भी फसल को नुकसान करता है। अगर सही मात्रा में पानी पहुंचे तो उससे सर्वाधिक लाभ होता है। इसलिए micro-irrigation के द्वारा, टपक सिंचाई के द्वारा फसल का लाभ हम कैसे उठाएं, पानी पहुंचा पहुंचा कर कैसे लाभ उठाएं..।

आपने देखा होगा कि अगर कोई बच्चा घर में बीमार रहता है, और आपने अगर सोचा हो कि एक बाल्टी भर दूध ले लें, दूध के अंदर केसर, पिस्ता, बादाम डाल दें और उस बाल्टी भर दूध से रोज़ बच्चे को नहलाना शुरू कर दें। क्योंकि बच्चे की तबियत ठीक नहीं रहती, वजन नहीं बढ़ता है,ढीला ढाला रहता है और पूरे दिन पड़ा रहता है, बच्चे की तरह वो हंसता, खेलता, दौड़ता नहीं है तो एक बाल्टी भर दूध..बादाम हो, पिस्ता हो, केसर हो, उससे उसको नहलाएं, आप मुझे बताएं कि बच्चे को इतने बढि़या दूध से नहलाने से उसकी तबियत ठीक होगी क्या, उसका वजन बढ़ेगा क्या? उसकी सेहत में सुधार होगा क्या? नहीं होगा। लेकिन अगर समझदार मां एक एक चम्मच से एक एक बूंद दूध पिलाती है, शाम तक चाहे 100 ग्राम दूध पिला दे, बच्चे के स्वास्थ्य में सुधार नज़र आना शुरू हो जाता है। फसल का भी ऐसा ही है, जैसे बच्चे को एक एक चम्मच दूध से बदलाव आता है, फसल को भी, एक एक बूंद पानी अगर उसके मूंह में जाता है तो उसको सचमुच में विकास करने का अवसर मिलता है। जिस प्रकार से हम बच्चे का लालन पालन करते हैं, उसी प्रकार हम फसल का भी लालन पालन कर सकते हैं। इसलिए मैं सभी किसान भाईयों को micro irrigation के लिए, टपक सिंचाई के लिए फ़वारे वाली सिंचाई के लिए आग्रह करता हूं। पानी बचाएंगे, पैसा भी बचेगा और फसल ज्यादा पैदा होगी, इसकी मैं आपको गारंटी देने आया हूं।

सरकार ने एक open university.. किसानों को रोज़मर्रा जानकारियां देने के लिए, रोज़मर्रा प्रशिक्षण करने के लिए, सरकार ने किसान चैनल चालू किया हैं। हमारे देश में कार्टून फिल्मों की चैनल होती है, स्पोर्ट्स की, समाचारों की चैनल होती है, मनोरंजन के लिए चैनल होती है, लेकिन किसानों के लिए चैनल नहीं थी। भारत सरकार ने पिछले महीने सिर्फ और सिर्फ किसानों की आवश्यकताओं के लिए एक किसान चैनल चालू किया। आपने भी अब देखना शुरू किया होगा, उसमें सारी जानकारियां बताई जाती हैं। किसान के सवालों के जवाब दिए जाते हैं, देशभर में कृषि क्षेत्र में क्या क्या प्रगति हुई, उसकी जानकारी दी जाती है। मैं चाहता हूं ये किसान चैनल हमारे देश के किसानों के लिए एक open university के रूप में काम करे। घर घर आ करके हर किसान को वो गाइड करे। किसान और किसान चैनल, कृषि में आधुनिकता कैसे आए कृषि में वैज्ञानिकता कैसे आए, कृषि में बदलाव कैसे आए, उस दिशा में काम करे।

आज जो झारखंड की इस धरती में जो प्रयास आरंभ हुआ है, वो उत्तम स्तर कक्षा के कृषि वैज्ञानिकों को तैयार करेगा, कृषि क्षेत्र के निष्णातों को तैयार करेगा और हमारी कृषि को आधुनिक बनाने की दिशा में झारखंड की धरती पर से एक नया युग प्रारंभ होगा, इसी एक विश्वास के साथ मैं आप सबको, खास करके मेरे किसान भाइयों को हृदय से बहुत बहुत शुभकामनाएं देता हूं। झारखंड को भी बहुत ही जल्द, ये संस्थान निर्माण हो जाए, बहुत तेजी से यहां के विद्यार्थियों को लाभ मिले, उस दिशा में आगे बढ़ें, इन्हीं शुभकामनाओं के साथ आप सबको बहुत बहुत धन्यवाद। जय जवान, जय किसान।

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ମୋର ପ୍ରିୟ ଦେଶବାସୀଗଣ, ନମସ୍କାର । ୨୦୨୫ ବର୍ଷ ଆମ ଦ୍ୱାରଦେଶରେ ଉପନୀତ । ୨୬ ଜାନୁଆରୀ ୨୦୨୫ ଦିନ ଆମ ସମ୍ବିଧାନ କାର୍ଯ୍ୟକାରୀ ହେବାର ୭୫ ବର୍ଷ ପୂରଣ ହେବାକୁ ଯାଉଛି । ଆମ ସମସ୍ତଙ୍କ ପାଇଁ ଏହା ଏକ ଗୌରବର କଥା । ଆମ ସମ୍ବିଧାନ ନିର୍ମାତାଗଣ ଆମକୁ ଯେଉଁ ସମ୍ବିଧାନ ଅର୍ପଣ କରିଯାଇଛନ୍ତି, ତାହା ସବୁ ପରିସ୍ଥିତିରେ ଠିକ୍ ପ୍ରମାଣିତ ହୋଇଛି । ସମ୍ବିଧାନ ଆମକୁ ପଥ ପ୍ରଦର୍ଶିତ କରୁଥିବା ଆଲୋକ ପୁଞ୍ଜ, ଏହା ଆମ ମାର୍ଗଦର୍ଶକ । ଭାରତର ସମ୍ବିଧାନ ଯୋଗୁଁ ହିଁ ଆଜି ମୁଁ ଏଠାରେ ଉପସ୍ଥିତ ହୋଇ ଆପଣଙ୍କ ସହ ଭାବ ବିନିମୟ କରିପାରୁଛି । ଏ ବର୍ଷ ନଭେମ୍ବର ୨୬ ତାରିଖ ସମ୍ବିଧାନ ଦିବସଠାରୁ ଏକବର୍ଷ ବ୍ୟାପୀ ଅନେକ କାର୍ଯ୍ୟକ୍ରମ ଆରମ୍ଭ ହୋଇଛି । ଦେଶର ନାଗରିକମାନଙ୍କୁ ସମ୍ବିଧାନର ଐତିହ୍ୟ ସହ ସଂଯୋଜିତ କରିବା ପାଇଁ constitution75.com ନାମରେ ଏକ ସ୍ୱତନ୍ତ୍ର ୱେବସାଇଟ୍ ମଧ୍ୟ ସୃଷ୍ଟି କରାଯାଇଛି । ଏଥିରେ ଆପଣ ସମ୍ବିଧାନର ମୁଖବନ୍ଧ ପାଠ କରି ନିଜ ଭିଡିଓ ଅପଲୋଡ୍ କରିପାରିବେ । ଭିନ୍ନ ଭିନ୍ନ ଭାଷାରେ ସମ୍ବିଧାନ ପଢ଼ି ପାରିବେ । ସମ୍ବିଧାନ ବିଷୟରେ ପ୍ରଶ୍ନ ମଧ୍ୟ ପଚାରି ପାରିବେ । ଏହି ୱେବସାଇଟ୍ ପରିଦର୍ଶନ କରି ଏଥିରେ ଅଂଶଗ୍ରହଣ କରିବା ପାଇଁ ମୁଁ ‘ମନ୍ କି ବାତ୍’ର ଶ୍ରୋତା, ବିଦ୍ୟାଳୟରେ ପଢ଼ୁଥିବା ଛାତ୍ରଛାତ୍ରୀ, କଲେଜରେ ପଢ଼ୁଥିବା ଯୁବବର୍ଗ ସମସ୍ତଙ୍କୁ ଅନୁରୋଧ କରୁଛି ।

ବନ୍ଧୁଗଣ, ଆସନ୍ତା ମାସ ୧୩ ତାରିଖ ଠାରୁ ପ୍ରୟାଗରାଜରେ ମହାକୁମ୍ଭ ମଧ୍ୟ ଅନୁଷ୍ଠିତ ହେବାକୁ ଯାଉଛି । ଏବେ ସେଠାରେ ସଙ୍ଗମକୁଳରେ ଜୋରଦାର୍ ପ୍ରସ୍ତୁତି ଚାଲିଛି । ମୋର ମନେ ଅଛି, ଏଇ କିଛି ଦିନ ତଳେ ଯେତେବେଳେ ମୁଁ ପ୍ରୟାଗରାଜ୍ ଯାଇଥିଲି, ସେତେବେଳେ ହେଲିକପ୍ଟରରୁ ସମ୍ପୂର୍ଣ୍ଣ କୁମ୍ଭ କ୍ଷେତ୍ର ଦେଖି ମନ ଆନନ୍ଦିତ ହୋଇଯାଇଥିଲା । ଏତେ ବିଶାଳ ! ଏତେ ସୁନ୍ଦର ! ଏତେ ଭବ୍ୟ !

ବନ୍ଧୁଗଣ, ମହାକୁମ୍ଭର ବିଶେଷତ୍ୱ କେବଳ ଏହାର ବିଶାଳତା ନୁହେଁ । କୁମ୍ଭର ବିଶେଷତ୍ୱ ଏହାର ବିବିଧତାରେ ମଧ୍ୟ ରହିଛି । ଏହି ଆୟୋଜନରେ କୋଟି କୋଟି ଲୋକ ଏକତ୍ରିତ ହୁଅନ୍ତି । ଲକ୍ଷ ଲକ୍ଷ ସାଧୁ ସନ୍ଥ, ହଜାର ହଜାର ପରମ୍ପରା, ଶହ ଶହ ସମ୍ପ୍ରଦାୟ, ଅନେକ ଆଖଡ଼ା, ସମସ୍ତେ ଏହି ଆୟୋଜନରେ ଅଂଶଗ୍ରହଣ କରନ୍ତି । ଏହି କୁମ୍ଭମେଳାରେ କେବେ କୌଣସି ଭେଦଭାବ ନ ଥାଏ । ନା ଏଠି କେହି ବଡ଼, ନା କେହି ସାନ । ବିବିଧତା ମଧ୍ୟରେ ଏକତାର ଏଭଳି ଦୃଶ୍ୟ ବିଶ୍ୱରେ ଆଉ କେଉଁଠି ବି ଦେଖିବାକୁ ମିଳେନାହିଁ । ତେଣୁ ଆମ କୁମ୍ଭ ଏକତାର ମହାକୁମ୍ଭ ମଧ୍ୟ ହୋଇଥାଏ । ଏଥରର ମହାକୁମ୍ଭ ମଧ୍ୟ ଏକତାର ମହାକୁମ୍ଭର ମନ୍ତ୍ରକୁ ସଶକ୍ତ କରିବ । କୁମ୍ଭରେ ଅଂଶଗ୍ରହଣ କରିବା ସହ ଏକତାର ଏହି ସଂକଳ୍ପକୁ ମଧ୍ୟ ନିଜ ସହ ନେଇ ଫେରିବା ପାଇଁ ମୋର ଆପଣ ସମସ୍ତଙ୍କୁ ଅନୁରୋଧ । ଆମେ ସମାଜରେ ବିଭାଜନ ଓ ବିଦ୍ୱେଷର ଭାବନାକୁ ନଷ୍ଟ କରିବାର ସଂକଳ୍ପ ମଧ୍ୟ ଗ୍ରହଣ କରିବା । ସଂକ୍ଷେପରେ କହିବାକୁ ହେଲେ ମୁଁ ଏତିକି କହିବି . . .

ମହାକୁମ୍ଭର ଏଇ ସନ୍ଦେଶ, ଏକ୍ ହେଉ ସାରା ଦେଶ ।

ମହାକୁମ୍ଭର ଏଇ ସନ୍ଦେଶ, ଏକ୍ ହେଉ ସାରା ଦେଶ ।

ଆଉ ଅନ୍ୟ ଭାଷାରେ କହିବାକୁ ଗଲେ, କହିବି . . .

ଗଙ୍ଗାର ଧାରା ବହୁ ନିରନ୍ତର, ବିଭାଜିତ ନ ହେଉ ସମାଜ ଆମର ।

ଗଙ୍ଗାର ଧାରା ବହୁ ନିରନ୍ତର, ବିଭାଜିତ ନ ହେଉ ସମାଜ ଆମର ।

ବନ୍ଧୁଗଣ, ଏଥର ପ୍ରୟାଗରାଜରେ ଦେଶ ବିଦେଶର ଶ୍ରଦ୍ଧାଳୁ ଡିଜିଟାଲ୍ ମହାକୁମ୍ଭର ମଧ୍ୟ ସାକ୍ଷୀ ହେବେ । ଡିଜିଟାଲ୍ ନେଭିଗେସନ୍ ସାହାର୍ଯ୍ୟରେ ଆପଣମାନେ ବିଭିନ୍ନ ଘାଟ, ମନ୍ଦିର, ସାଧୁସନ୍ଥଙ୍କ ଆଖଡ଼ା ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ପହଂଚିବାର ରାସ୍ତା ପାଇପାରିବେ । ଏହି ନେଭିଗେସନ୍ ସିଷ୍ଟମ୍ ଆପଣଙ୍କୁ ପାର୍କିଂ ସ୍ଥଳ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ପହଂଚିବା ପାଇଁ ମଧ୍ୟ ସାହାର୍ଯ୍ୟ କରିବ । କୁମ୍ଭ ଆୟୋଜନରେ ପ୍ରଥମ ଥର ପାଇଁ ଏ.ଆଇ. ଚାଟବୋଟର ବ୍ୟବହାର ହେବ । ଏ.ଆଇ. ଚାଟବୋଟ୍ ମାଧ୍ୟମରେ ୧୧ଟି ଭାରତୀୟ ଭାଷାରେ କୁମ୍ଭ ସମ୍ପର୍କିତ ସୂଚନା ପ୍ରାପ୍ତ କରାଯାଇପାରିବ । ଏହି ଚାଟବୋଟରେ text ଟାଇପ୍ କରି କିମ୍ବା ନିଜେ କହି ଯେକୌଣସି ପ୍ରକାର ସାହାଯ୍ୟ ପାଇଁ ଅନୁରୋଧ କରିପାରିବେ । ସମ୍ପୂର୍ଣ୍ଣ ମେଳା କ୍ଷେତ୍ରଟି ଏ.ଆଇ. ଶକ୍ତିଯୁକ୍ତ କ୍ୟାମେରାର ନଜରରେ ରହିବ । କୁମ୍ଭରେ ଯଦି କେହି ନିଜ ପ୍ରିୟପରିଜନଙ୍କ ଠାରୁ ନିଖୋଜ ହୋଇଥାଆନ୍ତି, ତାହେଲେ ଏହି କ୍ୟାମେରା ଗୁଡ଼ିକ ସାହାର୍ଯ୍ୟରେ ସେମାନଙ୍କୁ ଠାବ କରିବାରେ ମଧ୍ୟ ସାହାଯ୍ୟ ମିଳିବ । ଶ୍ରଦ୍ଧାଳୁମାନେ ଡିଜିଟାଲ୍ ଲଷ୍ଟ ଆଣ୍ଡ ଫାଉଣ୍ଡ ସେଂଟରର ସୁବିଧା ମଧ୍ୟ ପାଇପାରିବେ । ଶ୍ରଦ୍ଧାଳୁମାନଙ୍କୁ ମୋବାଇଲ ମାଧ୍ୟମରେ ହିଁ ସରକାରଙ୍କ ସ୍ୱୀକୃତିପ୍ରାପ୍ତ ଟୁର୍ ପ୍ୟାକେଜ୍, ରହିବା ସୁବିଧା ଏବଂ ହୋମଷ୍ଟେ ବିଷୟରେ ସୂଚନା ପ୍ରଦାନ କରାଯିବ । ମହାକୁମ୍ଭ ଯାତ୍ରା କଲେ ଆପଣମାନେ ମଧ୍ୟ ଏହି ସୁବିଧା ଗୁଡ଼ିକର ଲାଭ ଉଠାଇ ପାରିବେ । ଆଉ ହଁ, #ଏକତା କା ମହାକୁମ୍ଭ ରେ ନିଜର ସେଲ୍ଫି ନିଶ୍ଚୟ ଅପଲୋଡ୍ କରିବେ ।

ବନ୍ଧୁଗଣ, ମନ୍ କି ବାତ୍ ଅର୍ଥାତ୍ ଏମକେବିରେ ଏଥର କେଟିବି କଥା । ଅଧିକାଂଶ ବୟସ୍କ ଲୋକେ କେଟିବି ବିଷୟରେ ଜାଣିନଥିବେ । କିନ୍ତୁ, ପିଲାମାନଙ୍କୁ ଥରେ ପଚାରନ୍ତୁ, କେଟିବି ସେମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରେ ସୁପରହିଟ୍ । କେଟିବି ମାନେ କ୍ରିଷ, ତ୍ରିଶ୍ ଆଉ ବାଲ୍ଟିବୟ । ହୁଏତ ଆପଣ ଜାଣିଥିବେ, ଏହା ପିଲାମାନଙ୍କ ମନପସନ୍ଦର ଆନିମେଶନ୍ ସିରିଜ୍ ଏବଂ ଏହାର ନାଁ କେଟିବି-ଭାରତ ହେଁ ହମ୍ । ଏବେ ଏହାର ଦ୍ୱିତୀୟ ସିଜିନ୍ ମଧ୍ୟ ଆସିଗଲାଣି । ଏହି ତିନୋଟି ଆନିମେଶନ୍ କ୍ୟାରେକ୍ଟର ଆମକୁ ଭାରତର ସ୍ୱାଧୀନତା ସଂଗ୍ରାମର ସେହି ନାୟକ-ନାୟିକାମାନଙ୍କ ବିଷୟରେ ଜଣାଉଛନ୍ତି, ଯେଉଁମାନଙ୍କ ସମ୍ପର୍କରେ ଅଧିକ ଆଲୋଚନା ହୁଏ ନାହିଁ । ନିକଟ ଅତୀତରେ ଏହାର ସିଜିନ-ଟୁ ଏକ ନିଆରା ଢଙ୍ଗରେ ଗୋଆରେ ଭାରତୀୟ ଆନ୍ତର୍ଜାତିକ ଚଳଚ୍ଚିତ୍ର ମହୋତ୍ସବରେ ଉଦଘାଟିତ ହେଲା । ସବୁଠାରୁ ସୁନ୍ଦର କଥା ହେଉଛି, ଏହି ସିରିଜ୍ କେବଳ ଅନେକ ଭାରତୀୟ ଭାଷାରେ ନୁହେଁ, ବରଂ ବିଦେଶୀ ଭାଷାରେ ମଧ୍ୟ ପ୍ରସାରିତ ହେଉଛି । ଏହାକୁ ଦୂରଦର୍ଶନ ସହ ଅନ୍ୟ ଓଟିଟି ପ୍ଲାଟଫର୍ମରେ ମଧ୍ୟ ଦେଖାଯାଇପାରିବ ।

ବନ୍ଧୁଗଣ, ଆମ ଆନିମେଶନ୍ ଫିଲ୍ମ, ଚଳଚ୍ଚିତ୍ର, ଟେଲିଭିଜନ ସିରିଆଲ ଗୁଡ଼ିକର ଲୋକପ୍ରିୟତା ଏହା ଦର୍ଶାଉଛି ଯେ, ଭାରତର କ୍ରିଏଟିଭ୍ ଇଣ୍ଡଷ୍ଟ୍ରି ବା ସୃଜନାତ୍ମକ ଶିଳ୍ପରେ କେତେ କ୍ଷମତା ଭରିରହିଛି ! ଏହି ଶିଳ୍ପର କେବଳ ଦେଶର ଉନ୍ନତିରେ ଏକ ବଡ଼ ଯୋଗଦାନ ରହିଛି ତାହା ନୁହେଁ ବରଂ ଆମ ଅର୍ଥନୀତିକୁ ମଧ୍ୟ ଏହା ନୂତନ ଶିଖରକୁ ନେଇଯାଉଛି । ଆମ ଚଳଚ୍ଚିତ୍ର ଏବଂ ମନୋରଞ୍ଜନ ଶିଳ୍ପ ବହୁତ ବିଶାଳ । ଦେଶର ଅନେକ ଭାଷାରେ ଚଳଚ୍ଚିତ୍ର ନିର୍ମାଣ ଚାଲିଛି, କ୍ରିଏଟିଭ୍ କଂଟେଟ୍ ମଧ୍ୟ ସୃଷ୍ଟି କରାଯାଉଛି । ମୁଁ ଆମ ଚଳଚ୍ଚିତ୍ର ଏବଂ ମନୋରଞ୍ଜନ ଶିଳ୍ପ ଜଗତକୁ ଏଥିପାଇଁ ଅଭିନନ୍ଦନ ଜଣାଉଛି, କାରଣ, ଏହା ଏକ ଭାରତ- ଶ୍ରେଷ୍ଠ ଭାରତର ଭାବନାକୁ ସଶକ୍ତ କରିଛି ।

ବନ୍ଧୁଗଣ, ୨୦୨୪ରେ ଆମେ ଚଳଚ୍ଚିତ୍ର ଦୁନିଆର ଅନେକ ମହାନ ବ୍ୟକ୍ତିତ୍ୱମାନଙ୍କର ୧୦୦ତମ ଜୟନ୍ତୀ ପାଳନ କରୁଛୁ । ଏହି ମହାନ କଳାକାରମାନେ ଭାରତୀୟ ସିନେମାକୁ ବିଶ୍ୱସ୍ତରରେ ପରିଚିତ କରାଇଲେ । ରାଜକାପୁରଜୀ ନିଜ ଚଳଚ୍ଚିତ୍ର ମାଧ୍ୟମରେ ବିଶ୍ୱକୁ ଭାରତର Soft Power ସହ ପରିଚିତ କରାଇଲେ । ରଫି ସାହେବଙ୍କ ସ୍ୱରରେ ଏଭଳି କୁହୁକ ଭରି ରହିଥିଲା, ଯାହା ପ୍ରତ୍ୟେକ ହୃଦୟକୁ ସ୍ପର୍ଶ କରୁଥିଲା । ତାଙ୍କ ସ୍ୱର ଅତି ଚମତ୍କାର ଥିଲା । ଭକ୍ତି ଗୀତ ହେଉ, ରୋମାଣ୍ଟିକ୍ ଗୀତ କିମ୍ବା ଦୁଃଖଭରା ଗୀତ - ପ୍ରତ୍ୟେକ ଭାବାବେଗକୁ ସେ ନିଜ ସ୍ୱରରେ ଜୀବନ୍ତ କରିଦେଉଥିଲେ । ଜଣେ କଳାକାର ରୂପରେ ତାଙ୍କର ମହନୀୟତାର ଅନୁମାନ ଏହି କଥାରୁ କରିହେବ ଯେ, ଆଜିର ଯୁବପିଢ଼ି ମଧ୍ୟ ତାଙ୍କ ଗୀତଗୁଡ଼ିକୁ ସେତିକି ମନଧ୍ୟାନ ଦେଇ ଶୁଣୁଛନ୍ତି । ଏହାହିଁ ତ ହେଉଛି କାଳାତୀତ କଳାର ପରିଚୟ । ଅକ୍କିନେନୀ ନାଗେଶ୍ୱର ରାଓ ଗାରୁ ତେଲୁଗୁ ସିନେମାକୁ ନୂତନ ଶିଖରରେ ପହଞ୍ଚାଇଛନ୍ତି । ତାଙ୍କ ଚଳଚ୍ଚିତ୍ର ଗୁଡ଼ିକ ଭାରତୀୟ ପରମ୍ପରା ଏବଂ ମୂଲ୍ୟବୋଧକୁ ଖୁବ ଭଲଭାବେ ପ୍ରତିଫଳିତ କରୁଛି । ତପନ ସିହ୍ନାଙ୍କ କଥାଚିତ୍ର ଗୁଡ଼ିକ ସମାଜକୁ ଏକ ନୂତନ ଦୃଷ୍ଟିକୋଣ ପ୍ରଦାନ କରିଛି । ତାଙ୍କ ଚଳଚ୍ଚିତ୍ର ଗୁଡ଼ିକରେ ସାମାଜିକ ଚେତନା ଏବଂ ରାଷ୍ଟ୍ରୀୟ ଏକତାର ବାର୍ତ୍ତା ରହୁଥିଲା । ଏହି ମନିଷୀମାନଙ୍କ ଜୀବନ ଆମର ସମଗ୍ର ଚଳଚ୍ଚିତ୍ର ଜଗତ ପାଇଁ ପ୍ରେରଣାର ଉତ୍ସ ।

ବନ୍ଧୁଗଣ, ମୁଁ ଆପଣମାନଙ୍କୁ ଆଉ ଗୋଟିଏ ଖୁସି ଖବର ଦେବାକୁ ଚାହୁଁଛି । ଭାରତର ସୃଜନାତ୍ମକ ପ୍ରତିଭା ବା କ୍ରିଏଟିଭ୍ ଟାଲେଣ୍ଟ ବିଶ୍ୱ ଆଗରେ ଉପସ୍ଥାପିତ କରିବାର ଗୋଟିଏ ବଡ଼ ସୁଯୋଗ ଆସୁଛି । ଆସନ୍ତା ବର୍ଷ ଆମ ଦେଶରେ ପ୍ରଥମ ଥର ପାଇଁ ୱାର୍ଲଡ୍ ଅଡିଓ ଭିଜୁଆଲ୍ ଏଂଟରଟେନମେଣ୍ଟ ସମିଟ୍ ଅର୍ଥାତ୍ ୱେଭସ ସମିଟର ଆୟୋଜନ ହେବାକୁ ଯାଉଛି । ଆପଣମାନେ ଦାଭୋସ୍ ବିଷୟରେ ଶୁଣିଥିବେ, ଯେଉଁଠାରେ ବିଶ୍ୱର ଆର୍ଥିକ ଜଗତର ମହାରଥିମାନେ ଏକତ୍ରିତ ହୋଇଥାଆନ୍ତି । ସେହିଭଳି ୱେଭସ ସମିଟରେ ସାରା ବିଶ୍ୱର ଗଣମାଧ୍ୟମ ଏବଂ ମନୋରଞ୍ଜନ ଶିଳ୍ପର ମହାରଥି, ସୃଜନ ଜଗତର ବ୍ୟକ୍ତିବିଶେଷ ଭାରତକୁ ଆସିବେ । ଏହି ସମ୍ମିଳନୀ ଭାରତକୁ ଗ୍ଲୋବାଲ୍ କଣ୍ଟେଟ୍ କ୍ରିଏଶନର ହବ୍ କରିବା ଦିଗରେ ଗୋଟିଏ ଗୁରୁତ୍ୱପୂର୍ଣ୍ଣ ପଦକ୍ଷେପ । ଏହି ସୂଚନା ଦେବାରେ ମୁଁ ଗର୍ବ ଅନୁଭବ କରୁଛି ଯେ, ଏହି ସମ୍ମିଳନୀ ପାଇଁ ପ୍ରସ୍ତୁତିରେ ଆମ ଦେଶର ୟଙ୍ଗ୍ କ୍ରିଏଟର୍ସ ବା ନୂତନ ସୃଜନଶୀଳ ପ୍ରତିଭାମାନେ ଖୁବ ଉତ୍ସାହର ସହିତ ଲାଗି ପଡ଼ିଛନ୍ତି । ଆମେ ୫ ଟ୍ରିଲିଅନ୍ ଡଲାର୍ ଇକୋନମୀ ଦିଗକୁ ଅଗ୍ରସର ହେଉଥିବା ସମୟରେ ଆମ କ୍ରିଏଟର୍ ଇକୋନମୀ ଏକ ନୂତନ ଶକ୍ତି ପ୍ରଦାନ କରୁଛି । ମୁଁ ଭାରତର ସମଗ୍ର ମନୋରଞ୍ଜନ ଏବଂ ସୃଜନାତ୍ମକ ଶିଳ୍ପକୁ ଅନୁରୋଧ କରୁଛି - ଆପଣ ଯୁବ-ପ୍ରତିଭା ହୁଅନ୍ତୁ କିମ୍ବା ପ୍ରତିଷ୍ଠିତ କଳାକାର, ବଲିଉଡ୍ ସହ ଜଡ଼ିତ ହୋଇଥାଆନ୍ତୁ କିମ୍ବା ଆଞ୍ଚଳିକ ସିନେମା ଜଗତ ସହ, ଟେଲିଭିଜନ ଶିଳ୍ପର ପେଶାଗତ ବ୍ୟକ୍ତି ହୋଇଥାଆନ୍ତୁ କିମ୍ବା ଆନିମେଶନ୍ ବିଶେଷଜ୍ଞ, ଗେମିଂ ସହ ଜଡ଼ିତ ଥାଆନ୍ତୁ ବା ଏଂଟରଟେନମେଣ୍ଟ ଟେକ୍ନୋଲଜିର ଇନ୍ନୋଭେଟର୍ ହେଇଥାଆନ୍ତୁ - ଆପଣ ସମସ୍ତେ ୱେଭସ ସମ୍ମିଳନୀରେ ଭାଗ ନିଅନ୍ତୁ ।

ମୋର ପ୍ରିୟ ଦେଶବାସୀଗଣ, ଆପଣ ସମସ୍ତେ ଜାଣନ୍ତି ଯେ ଭାରତୀୟ ସଂସ୍କୃତିର ଆଲୋକ ଆଜି କିଭଳି ପୃଥିବୀର କୋଣ ଅନୁକୋଣରେ ବିଛାଡ଼ି ହୋଇ ପଡ଼ୁଛି । ଆଜି ମୁଁ ଆପଣଙ୍କୁ ତିନି ମହାଦ୍ୱୀପରୁ ଏଭଳି ପ୍ରୟାସଗୁଡ଼ିକ ବିଷୟରେ କହିବି, ଯାହା ଆମ ସାଂସ୍କୃତିକ ଐତିହ୍ୟର ବୈଶ୍ୱିକ ବିସ୍ତୃତିର ସାକ୍ଷୀ । ସେମାନେ ପରସ୍ପରଠାରୁ ବହୁତ ଦୂରରେ, କିନ୍ତୁ ଭାରତକୁ ଜାଣିବାରେ ଓ ଆମ ସଂସ୍କୃତିରୁ ଶିଖିବା କ୍ଷେତ୍ରରେ ସେମାନଙ୍କ ଆଗ୍ରହ ଉଦ୍ଦୀପନା ସମାନ ।

ବନ୍ଧୁଗଣ, ପେଣ୍ଟିଙ୍ଗ୍‌ସ ଯେତେ ବେଶୀ ରଙ୍ଗୀନ ହୋଇଥାଏ ସେତିକି ସୁନ୍ଦର ଦେଖାଯାଇଥାଏ । ଆପଣଙ୍କ ମଧ୍ୟରୁ ଯେଉଁମାନେ ଟିଭି ମାଧ୍ୟମରେ ‘ମନ୍‌ କୀ ବାତ୍‌’ ସହ ଯୋଡ଼ି ହୋଇଛନ୍ତି, ସେମାନେ ଏବେ କିଛି ପେଣ୍ଟିଙ୍ଗ୍‌ସକୁ ଟିଭିରେ ଦେଖି ମଧ୍ୟ ପାରିବେ । ଏସବୁ ପେଣ୍ଟିଙ୍ଗ୍ସରେ ଆମର ଦେବାଦେବୀ, ନୃତ୍ୟକଳା ଓ ମହାପୁରୁଷମାନଙ୍କୁ ଦେଖି ଆପଣଙ୍କୁ ବହୁତ ଭଲ ଲାଗିବ । ଏଥିରେ ଆପଣଙ୍କୁ ଭାରତରେ ଦେଖାଯାଉଥିବା ଜୀବଜନ୍ତୁଙ୍କଠାରୁ ଆରମ୍ଭ କରି ଆଉ ବହୁତ କିଛି ଦେଖିବାକୁ ମିଳିବ । ଏଥିରେ ତାଜମହଲର ଏକ ସୁନ୍ଦର ଚିତ୍ର ମଧ୍ୟ ସାମିଲ୍‌ ହୋଇଛି, ଯାହାକୁ ୧୩ ବର୍ଷର ଝିଅଟିଏ ଆଙ୍କିଛି । ଆପଣଙ୍କୁ ଏହା ଜାଣି ଆଶ୍ଚର୍ଯ୍ୟ ଲାଗିବ ଯେ ଏହି ଦିବ୍ୟାଙ୍ଗ ଝିଅଟି ନିଜ ପାଟିରେ ଏହି ଚିତ୍ରଟିକୁ ତିଆରି କରିଛି । ସବୁଠୁ ବଡ଼କଥା ହେଲା ଯେ ଏହାର ଚିତ୍ରଶିଳ୍ପୀ ଜଣକ ଭାରତର ନୁହନ୍ତି, ସେ ଇଜିପ୍ଟର ଜଣେ ବିଦ୍ୟାର୍ଥୀ । କିଛି ସପ୍ତାହ ତଳେ ଇଜିପ୍ଟର ପ୍ରାୟ ୨୩ ହଜାର ଛାତ୍ରଛାତ୍ରୀ ଏକ ପେଣ୍ଟିଂ ପ୍ରତିଯୋଗିତାରେ ଭାଗ ନେଇଥିଲେ । ସେଠାରେ ସେମାନଙ୍କୁ ଭାରତର ସଂସ୍କୃତି ଓ ଦୁଇ ଦେଶର ଐତିହାସିକ ସମ୍ପର୍କକୁ ବର୍ଣ୍ଣନା କରୁଥିବା ପେଣ୍ଟିଂ କରିବାର ଥିଲା । ମୁଁ ଏହି ପ୍ରତିଯୋଗିତାରେ ଭାଗ ନେଇଥିବା ସମସ୍ତ ଯୁବକଯୁବତୀଙ୍କୁ ପ୍ରଶଂସା କରୁଛି । ସେମାନଙ୍କ ସୃଜନଶୀଳତାର ଯେତେ ପ୍ରଶଂସା କଲେ ମଧ୍ୟ ତାହା କମ୍‌ ହେବ ।

ବନ୍ଧୁଗଣ, ଦକ୍ଷିଣ ଆମେରିକାର ଏକ ଦେଶ ହେଉଛି ପାରାଗୁଏ । ସେଠାରେ ରହୁଥିବା ଭାରତୀୟଙ୍କ ସଂଖ୍ୟା ହଜାରେରୁ ବେଶି ହେବନାହିଁ । ପାରାଗୁଏରେ ଏକ ଚମତ୍କାର ପ୍ରୟାସ ହେଉଛି । ସେଠାକାର ଭାରତୀୟ ଦୂତାବାସରେ ଏରିକା ହ୍ୟୁବର ମାଗଣା ଆୟୁର୍ବେଦ ପରାମର୍ଶ ଦିଅନ୍ତି । ଆୟୁର୍ବେଦ ପରାମର୍ଶ ନେବାପାଇଁ ଏବେ ତାଙ୍କ ନିକଟକୁ ବହୁ ସ୍ଥାନୀୟ ଲୋକ ଆସୁଛନ୍ତି । ଏରିକା ହ୍ୟୁବର୍ ଇଂଜିନିୟରିଂ ପଢ଼ିଛନ୍ତି ସତ, କିନ୍ତୁ ତାଙ୍କର ମନ ଆୟୁର୍ବେଦରେ ରହିଛି । ସେ ଆୟୁର୍ବେଦ ସହ ସଂପୃକ୍ତ ପାଠ୍ୟକ୍ରମ ପଢ଼ିଥିଲେ ଓ ସମୟକ୍ରମେ ସେ ସେଥିରେ ପାରଙ୍ଗମ ହୋଇପାରିଲେ ।

ବନ୍ଧୁଗଣ, ଏହା ଆମ ପାଇଁ ବହୁତ ଗର୍ବର କଥା ଯେ ପୃଥିବୀର ସବୁଠୁ ପ୍ରାଚୀନ ଭାଷା ତାମିଲ ଏବଂ ପ୍ରତ୍ୟେକ ଭାରତୀୟ ଏଥିପାଇଁ ଗର୍ବିତ । ବିଶ୍ୱର ବହୁ ଦେଶରେ ଏହାକୁ ଶିଖୁଥିବା ଲୋକଙ୍କ ସଂଖ୍ୟା କ୍ରମାଗତ ବଢ଼ିଚାଲିଛି । ଗତ ମାସର ଶେଷରୁ ଫିଜିରେ ଭାରତ ସରକାରଙ୍କ ସହଯୋଗରେ ତାମିଲ୍‌ ଶିକ୍ଷା କାର୍ଯ୍ୟକ୍ରମ ଆରମ୍ଭ ହୋଇଛି । ଗତ ୮୦ ବର୍ଷ ମଧ୍ୟରେ ପ୍ରଥମ ଥର ପାଇଁ ଫିଜିରେ ତାଲିମପ୍ରାପ୍ତ ଶିକ୍ଷକ ତାମିଲ୍‌ ଶିଖାଉଛନ୍ତି । ଆଜି ଫିଜିର ଛାତ୍ରଛାତ୍ରୀମାନେ ତାମିଲ ଭାଷା ଓ ସଂସ୍କୃତିକୁ ଶିଖିବା ପାଇଁ ଆଗ୍ରହୀ ଥିବା ଜାଣି ମୋତେ ବହୁତ ଖୁସି ଲାଗିଛି ।

ବନ୍ଧୁଗଣ, ଏ କଥା, ଏ ଘଟଣା କେବଳ ସଫଳତାର କାହାଣୀ ନୁହେଁ । ଏହା ଆମ ସାଂସ୍କୃତିକ ଐତିହ୍ୟର ଗାଥା ମଧ୍ୟ । ଏହି ଉଦାହରଣ ଆମକୁ ବହୁତ ଗର୍ବିତ କରିଥାଏ । କଳାରୁ ଆୟୁର୍ବେଦ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ଓ ଭାଷାରୁ ସଂଗୀତ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ଭାରତରେ ଏତେ ବିଷୟ ଅଛି, ଯାହା ପୃଥିବୀ ସାରା ବ୍ୟାପି ଚାଲିଛି ।

ବନ୍ଧୁଗଣ, ଏ ଶୀତ ଋତୁରେ ସମଗ୍ର ଦେଶରେ ବିଭିନ୍ନ କ୍ରୀଡ଼ା ଓ ଫିଟ୍‌ନେସ୍‌କୁ ନେଇ ବିଭିନ୍ନ କାର୍ଯ୍ୟକ୍ରମ ଆୟୋଜିତ ହେଉଛି । ମୁଁ ଖୁସି ଯେ ଲୋକେ ଫିଟ୍‌ନେସ୍‌କୁ ନିଜ ଦିନଚର୍ଯ୍ୟାରେ ସାମିଲ୍‌ କରୁଛନ୍ତି । କାଶ୍ମୀରରେ ସ୍କିଙ୍ଗ୍ ଠାରୁ ଗୁଜରାଟର ଗୁଡ଼ିଉଡ଼ା ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ, ସବୁ ସ୍ଥାନରେ ଖେଳର ଉତ୍ସାହ ଦେଖିବାକୁ ମିଳୁଛି । #SundayOnCycle I #CyclingTuesday ଭଳି ଅଭିଯାନ ଦ୍ୱାରା ସାଇକଲ ଚାଳନାକୁ ପ୍ରୋତ୍ସାହନ ମିଳୁଛି ।

ବନ୍ଧୁଗଣ, ମୁଁ ଆପଣଙ୍କୁ ଏଭଳି ଏକ ନିଆରା କଥା କହିବାକୁ ଚାହୁଁଛି ଯାହା ଆମ ଦେଶରେ ଆସିଥିବା ପରିବର୍ତ୍ତନ ଓ ଯୁବବନ୍ଧୁମାନଙ୍କର ଉତ୍ସାହ ଉଦ୍ଦୀପନାର ପ୍ରତୀକ । ଆପଣ ଜାଣନ୍ତି କି ଆମର ବସ୍ତରରେ ଏକ ଅନନ୍ୟ ଅଲିମ୍ପିକ୍‌ ଆରମ୍ଭ ହୋଇଛି ! ଆଜ୍ଞା ହଁ, ପ୍ରଥମ ଥର ଆୟୋଜିତ ବସ୍ତର ଅଲିମ୍ପିକ୍‌ ଦ୍ୱାରା ବସ୍ତରରେ ଏକ ନୂଆ ବିପ୍ଳବ ଜନ୍ମ ନେଉଛି । ମୋ ପାଇଁ ବହୁତ ଖୁସିର କଥା ଯେ ବସ୍ତର ଅଲିମ୍ପିକର ସ୍ୱପ୍ନ ସାକାର ହୋଇଛି । ଆପଣଙ୍କୁ ମଧ୍ୟ ଜାଣିବା ପରେ ବହୁତ ଖୁସି ଲାଗିବ ଯେ ଏହା ଏଭଳି ଏକ ଅଞ୍ଚଳରେ ହେଉଛି, ଯାହା ଏକଦା ମାଓବାଦୀ ହିଂସାଗ୍ରସ୍ତ ଅଞ୍ଚଳ ଥିଲା । ବସ୍ତର ଅଲିମ୍ପିକର ମାସ୍କଟ୍‌ ହେଉଛି ‘ବଣ ମଇଁଷି’ ଓ ‘ପାହାଡ଼ୀ ମଇନା’ । ଏଥିରେ ବସ୍ତରର ସମୃଦ୍ଧ ସଂସ୍କୃତିର ଝଲକ ଦେଖିବାକୁ ମିଳିଥାଏ । ଏହି ବସ୍ତର କ୍ରୀଡ଼ା ମହାକୁମ୍ଭର ମୂଳ ମନ୍ତ୍ର ହେଉଛି-

‘କର୍‌ସାୟ ତା ବସ୍ତର୍ ବରସାଏ ତା ବସ୍ତର୍’ ଅର୍ଥାତ ‘ଖେଳିବ ବସ୍ତର୍-ଜିତିବ ବସ୍ତର୍’ ।

ପ୍ରଥମ ଥର ହିଁ ବସ୍ତର ଅଲିମ୍ପିକ୍‌ରେ ୭ଟି ଜିଲାର ଏକ ଲକ୍ଷ ୬୫ ହଜାର ଖେଳାଳି ଭାଗ ନେଇଛନ୍ତି । ଏହା କେବଳ ଏକ ପରିସଂଖ୍ୟାନ ନୁହେଁ- ଏହା ଆମ ଯୁବକଯୁବତୀଙ୍କର ସଂକଳ୍ପର ଗୌରବ ଗାଥା ବହନ କରେ । ଆଥ୍‌ଲେଟିକ୍ସ, ତୀରଚାଳନା, ବ୍ୟାଡ଼ମିଣ୍ଟନ, ଫୁଟବଲ, ହକି, ଭାରୋତ୍ତୋଳନ, କରାଟେ, କବାଡ଼ି, ଖୋ ଖୋ ଓ ଭଲିବଲ୍‌- ପ୍ରତ୍ୟେକ ଖେଳରେ ଆମର ଯୁବପିଢ଼ି ନିଜ ପ୍ରତିଭାର ପତାକା ଉଡ଼ାଇଛନ୍ତି । କାରୀ କଶ୍ୟପ୍ ଜୀଙ୍କ କାହାଣୀ ମୋତେ ଖୁବ୍‌ ପ୍ରେରଣା ଦେଇଥାଏ । ଏକ ଛୋଟିଆ ଗାଁରୁ ଆସିଥିବା କାରୀ ଜୀ ତୀରଚାଳନାରେ ରୌପ୍ୟପଦକ ଜିତିଛନ୍ତି । ସେ କହନ୍ତି, “ବସ୍ତର ଅଲିମ୍ପିକ୍‌ ମୋତେ କେବଳ ଖେଳ ପଡ଼ିଆ ଦେଇନାହିଁ, ଜୀବନରେ ଆଗକୁ ବଢ଼ିବାର ସୁଯୋଗ ଦେଇଛି ।” ସୁକ୍‌ମା-ର ପାୟଲ୍‌ କୱାସି ଜୀଙ୍କ କଥା ବେଶ୍ ପ୍ରେରଣାଦାୟକ । ଜାଭଲିନ୍‌ ଥ୍ରୋରେ ସ୍ୱର୍ଣ୍ଣପଦକ ହାସଲ କରିଥିବା ପାୟଲ୍‌ ଜୀ କହନ୍ତି “ଅନୁଶାସନ ଓ କଠିନ ପରିଶ୍ରମ ଦ୍ୱାରା ଯେ କୌଣସି ଲକ୍ଷ୍ୟ ହାସଲ କରିବା ସମ୍ଭବ” । ସୁକମା-ର ଦୋରନାପାଲ୍‌-ର ପୁନେମ୍ ସନ୍ନା ଜୀଙ୍କ କଥା ତ ନୂଆ ଭାରତର ପ୍ରେରଣାଦାୟକ କାହାଣୀ । ଏକଦା ନକ୍ସଲଙ୍କ ଦ୍ୱାରା ପ୍ରଭାବିତ ପୁନେମ୍ ଜୀ ଆଜି ହ୍ୱିଲ୍‌ଚେୟାରରେ ଦୌଡ଼ି ପଦକ ଜିତୁଛନ୍ତି । ତାଙ୍କର ସାହସ ଓ ଧୈର୍ଯ୍ୟ ସଭିଙ୍କ ପାଇଁ ବଡ଼ ପ୍ରେରଣା । କୋଡ଼ାଗାଓଁର ତୀରନ୍ଦାଜ ରଂଜୁ ସୋରୀ ଜୀଙ୍କୁ ‘ବସ୍ତର ୟୁଥ୍‌ ଆଇକନ’ ଭାବେ ବଛାଯାଇଛି । ତାଙ୍କର କହିବା କଥା ହେଲା- ବସ୍ତର ଅଲିମ୍ପିକ୍‌ ଉପାନ୍ତ ଅଞ୍ଚଳର ଯୁବକଯୁବତୀଙ୍କୁ ଜାତୀୟ ମଞ୍ଚ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ପହଞ୍ଚିବାର ସୁଯୋଗ ଦେଉଛି ।

ବନ୍ଧୁଗଣ, ବସ୍ତର ଅଲିମ୍ପିକ୍‌ କେବଳ ଏକ କ୍ରୀଡ଼ା ଆୟୋଜନ ନୁହେଁ । ଏହା ଏଭଳି ଏକ ମଞ୍ଚ, ଯେଉଁଠି ବିକାଶ ଓ କ୍ରୀଡ଼ାର ସଂଗମ ହେଉଛି; ଯେଉଁଠି ଆମର ଯୁବପିଢ଼ି ନିଜ ପ୍ରତିଭାକୁ ଆହୁରି ଚମକାଉଛନ୍ତି ଓ ଏକ ନୂଆ ଭାରତର ନିର୍ମାଣ କରୁଛନ୍ତି । ମୁଁ ଆପଣମାନଙ୍କୁ ସମସ୍ତଙ୍କୁ ନିବେଦନ କରୁଛି ଯେ

-ନିଜ ଅଞ୍ଚଳରେ ଏଭଳି କ୍ରୀଡ଼ା ଆୟୋଜନ ପାଇଁ ପ୍ରୋତ୍ସାହନ ଦିଅନ୍ତୁ

- #ଖେଲେଗା ଭାରତ୍-ଜିତେଗା ଭାରତ୍ ଜରିଆରେ ନିଜ ଅଞ୍ଚଳର କ୍ରୀଡ଼ା ପ୍ରତିଭାଙ୍କ କାହାଣୀକୁ ଅନ୍ୟମାନଙ୍କ ସହ ବାଣ୍ଟନ୍ତୁ

-ସ୍ଥାନୀୟ କ୍ରୀଡ଼ା ପ୍ରତିଭାମାନଙ୍କୁ ଆଗକୁ ବଢ଼ିବାର ସୁଯୋଗ ଦିଅନ୍ତୁ

ମନେ ରଖନ୍ତୁ, କ୍ରୀଡ଼ା ଦ୍ୱାରା କେବଳ ଶାରୀରିକ ବିକାଶ ହୁଏ ନାହିଁ, ବରଂ ଏହି ସ୍ପୋର୍ଟସ୍‌ମେନ୍‌ ସ୍ପିରିଟ୍‌ ସମାଜକୁ ଯୋଡ଼ିବାର ମଧ୍ୟ ଏକ ସଶକ୍ତ ମାଧ୍ୟମ । ତେଣୁ ବହୁତ ଖେଳନ୍ତୁ-ଖୁସି ରୁହନ୍ତୁ ।

ମୋର ପ୍ରିୟ ଦେଶବାସୀଗଣ, ଭାରତର ଦୁଇଟି ବଡ଼ ଉପଲବ୍ଧି ଆଜି ବିଶ୍ୱର ଧ୍ୟାନ ଆକର୍ଷଣ କରୁଛି । ଏହାକୁ ଶୁଣି ଆପଣ ମଧ୍ୟ ନିଜକୁ ଗର୍ବିତ ଅନୁଭବ କରିବେ । ଏହି ଦୁଇଟି ସଫଳତା ସ୍ୱାସ୍ଥ୍ୟ କ୍ଷେତ୍ରରେ ମିଳିଛି । ପ୍ରଥମ ଉପଲବ୍ଧି ମିଳିଛି ମେଲେରିଆ ବିରୋଧରେ ଲଢ଼େଇରେ । ମେଲେରିଆ ରୋଗ ଚାରି ହଜାର ବର୍ଷ ଧରି ମଣିଷ ପାଇଁ ଏକ ବଡ଼ ସମସ୍ୟା ହୋଇ ରହିଆସିଛି । ସ୍ୱାଧୀନତା ସମୟରେ ବି ଏହା ସବୁଠୁ ବଡ଼ ସମସ୍ୟା ମଧ୍ୟରୁ ଥିଲା ଅନ୍ୟତମ । ମାସକରୁ ପାଞ୍ଚ ବର୍ଷ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ଶିଶୁଙ୍କର ଜୀବନ ନେଉଥିବା ସମସ୍ତ ସଂକ୍ରାମକ ରୋଗ ମଧ୍ୟରେ ମେଲେରିଆର ସ୍ଥାନ ତୃତୀୟ । ଆଜି ମୁଁ ସନ୍ତୋଷର ସହ କହିପାରିବି ଯେ ଦେଶବାସୀ ମିଳିମିଶି ଏହି ସମସ୍ୟାର ଦୃଢ଼ ମୁକାବିଲା କରିଛନ୍ତି । ବିଶ୍ୱ ସ୍ୱାସ୍ଥ୍ୟ ସଙ୍ଗଠନ - WHOର ରିପୋର୍ଟ କହେ ଯେ ଭାରତରେ ୨୦୧୫ରୁ ୨୦୨୩ ମଧ୍ୟରେ ମେଲେରିଆ ଏବଂ ଏହାଦ୍ୱାରା ହୋଇଥିବା ମୃତ୍ୟୁ ଶତକଡ଼ା ୮୦ ଭାଗ କମିଯାଇଛି । ଏହା କୌଣସି ଛୋଟ ଉପଲବଧି ନୁହେଁ । ସବୁଠାରୁ ବଡ଼କଥା ହେଲା ଏହି ସଫଳତା ଜନସାଧାରଣଙ୍କ ସହଯୋଗ ଯୋଗୁଁ ମିଳିଛି । ଭାରତର କୋଣ ଅନୁକୋଣରୁ, ପ୍ରତ୍ୟେକ ଜିଲ୍ଲାରୁ କେହି ନା କେହି ଏହି ଅଭିଯାନରେ ଅଂଶଗ୍ରହଣ କରିଛନ୍ତି । ଏହି ଚାରିବର୍ଷ ପୂର୍ବେ ଆସାମର ଜୋରହଟ୍ ଜିଲ୍ଲାର ଚା’ବଗିଚାମାନଙ୍କରେ ମେଲେରିଆ ଲୋକମାନଙ୍କର ଦୁଃଶ୍ଚିନ୍ତାର ଏକ ବଡ଼ କାରଣ ହୋଇଥିଲା । କିନ୍ତୁ ଏବେ ଏହାର ମୂଳୋତ୍ପାଟନ ପାଇଁ ଚା’ବଗିଚାରେ ରହୁଥିବା ଲୋକମାନେ ଏକଜୁଟ୍ ହେଲେ, ଫଳରେ ଏଥିରେ ବହୁ ପରିମାଣରେ ସଫଳତା ମିଳିବାକୁ ଲାଗିଲା । ତାଙ୍କର ଏହି ପ୍ରୟାସରେ ସେମାନେ ଟେକ୍ନୋଲୋଜି ସହିତ ସାମାଜିକ ଗଣମାଧ୍ୟମର ମଧ୍ୟ ବହୁଳ ବ୍ୟବହାର କଲେ । ସେହିପରି ହରିଆନାର କୁରୁକ୍ଷେତ୍ର ଜିଲ୍ଲା ମେଲେରିଆ ନିୟନ୍ତ୍ରଣ ଦିଗରେ ଏକ ଆଦର୍ଶ ପ୍ରଦର୍ଶନ କଲା । ଏଠାରେ ମେଲେରିଆର ମନିଟରିଂ ପାଇଁ ଜନଭାଗିଦାରୀ ଅତ୍ୟନ୍ତ ସଫଳ ହେଲା । ପଥପ୍ରାନ୍ତ ନାଟକ ତଥା ରେଡ଼ିଓ ମାଧ୍ୟମରେ ଏହିଭଳି ସନ୍ଦେଶ ଉପରେ ଜୋର୍ ଦିଆଗଲା । ଯାହା ଫଳରେ ମଶାମାନଙ୍କର ପ୍ରଜନନ କମ୍ କରିବାରେ ଖୁବ୍ ସହାୟତା ମିଳିଲା । ସାରା ଦେଶରେ ଏହିଭଳି ପ୍ରୟାସ କରିବା ଦ୍ୱାରା ଆମେ ମେଲେରିଆ ବିରୁଦ୍ଧରେ ଲଢ଼େଇକୁ ତୀବ୍ର କରିପାରିଛୁ ।

ବନ୍ଧୁଗଣ, ନିଜର ସଚେତନତା ଏବଂ ସଂକଳ୍ପଶକ୍ତି ଦ୍ୱାରା ଆମେ କ’ଣ କ’ଣ ହାସଲ କରିପାରିବା ତା’ର ଦ୍ୱିତୀୟ ଉଦାହରଣ ହେଲା କ୍ୟାନସର ସହିତ ଲଢ଼େଇ । ଦୁନିଆର ପ୍ରସିଦ୍ଧ ମେଡ଼ିକାଲ ପତ୍ରିକା ‘LANCET’ର ଅଧ୍ୟୟନ ବାସ୍ତବରେ ଆମ ଭିତରେ ବହୁତ ଆଶା ଜାଗ୍ରତ କରେ । ଏହି ପତ୍ରିକା ଅନୁସାରେ ଏବେ ଭାରତରେ ଠିକ୍ ସମୟରେ କ୍ୟାନସରର ଚିକିତ୍ସାର ସମ୍ଭାବନା ଖୁବ୍ ବଢ଼ିଯାଇଛି । ଠିକ୍ ସମୟରେ ଚିକିତ୍ସାର ଅର୍ଥ କ୍ୟାନସର ରୋଗୀର ଚିକିତ୍ସା ୩୦ ଦିନ ଭିତରେ ଆରମ୍ଭ ହୋଇଯିବା ଦରକାର । ଏ ଦିଗରେ ‘ଆୟୁଷ୍ମାନ୍ ଭାରତ ଯୋଜନା’ ଅତି ମହତ୍ତ୍ୱପୂର୍ଣ୍ଣ ଭୂମିକା ଗ୍ରହଣ କରିଛି । ଏହି ଯୋଜନା ଯୋଗୁଁ ଶତକଡ଼ା ୯୦ ଭାଗ କ୍ୟାନସର ରୋଗୀ ଠିକ୍ ସମୟରେ ନିଜର ଚିକିତ୍ସା ଆରମ୍ଭ କରିପାରିଛନ୍ତି । ଏହା ସମ୍ଭବ ହେବାର କାରଣ ପ୍ରଥମେ ପଇସା ଅଭାବରେ ଗରିବ ରୋଗୀ କ୍ୟାନସରର ପରୀକ୍ଷା ଏବଂ ତା’ର ଚିକିତ୍ସା ପାଇଁ ପଛଘୁଞ୍ଚା ଦେଉଥିଲେ । ଏବେ ଆୟୁଷ୍ମାନ ଭାରତ ଯୋଜନା ସେମାନଙ୍କ ପାଇଁ ବଡ଼ ସମ୍ବଳ ହୋଇଛି । ଏବେ ସେମାନେ ନିଜର ଚିକିତ୍ସା ପାଇଁ ଆଗେଇ ଆସୁଛନ୍ତି । ‘ଆୟୁଷ୍ମାନ ଭାରତ ଯୋଜନା’ କ୍ୟାନସର ଚିକିତ୍ସା କ୍ଷେତ୍ରରେ ଥିବା ଆର୍ଥିକ ଅସୁବିଧାକୁ ବହୁ ପରିମାଣରେ କମ୍ କରିପାରିଛି । ଆହୁରି ଭଲ କଥା ହେଲା ଆଜିକାଲି ଲୋକମାନେ ଠିକ ସମୟରେ କ୍ୟାନସର ଚିକିତ୍ସା ପାଇଁ ବେଶ୍ ସଚେତନ । ଏହି ସଫଳତା ପାଇଁ ଆମର ସ୍ୱାସ୍ଥ୍ୟସେବା ପ୍ରଣାଳୀ, ଡାକ୍ତର, ନର୍ସ ତଥା ଟେକ୍ନିକାଲ କର୍ମଚାରୀମାନଙ୍କର ଯେତିକି ଭୂମିକା ରହିଛି ମୋ ନାଗରିକ ଭାଇଭଉଣୀମାନଙ୍କର ମଧ୍ୟ ସେତିକି ମହତ୍ତ୍ୱପୂର୍ଣ୍ଣ ଭୂମିକା ରହିଛି । ସମସ୍ତଙ୍କ ପ୍ରୟାସ ଦ୍ୱାରା କ୍ୟାନସରକୁ ହରାଇବାର ସଂକଳ୍ପ ଅଧିକ ଦୃଢ଼ ହୋଇଛି । ଯେଉଁମାନେ ସଚେତନତା ସୃଷ୍ଟି କରିବାରେ ବିଶେଷ ଯୋଗଦାନ ଦେଇଛନ୍ତି, ଏହି ସଫଳତାର ଶ୍ରେୟ ସେମାନଙ୍କର । କ୍ୟାନସରକୁ ମୁକାବିଲା କରିବାର ଗୋଟିଏ ମନ୍ତ୍ର ହେଲା Awareness, Action ଏବଂ Assurance । Awareness ଅର୍ଥାତ୍ କ୍ୟାନସର୍ ଲକ୍ଷଣ ପ୍ରତି ସଚେତନତା, Action ଅର୍ଥାତ୍ ଠିକ୍ ସମୟରେ ପରୀକ୍ଷା ଏବଂ ଚିକିତ୍ସା, Assurance ଅର୍ଥାତ୍ ରୋଗୀମାନଙ୍କ ପାଇଁ ସମସ୍ତ ସହାୟତା ଉପଲବ୍ଧ କରାଇବାର ବିଶ୍ୱାସ । ଆସନ୍ତୁ ଆମେ ସମସ୍ତେ ମିଶି କ୍ୟାନସର ବିରୁଦ୍ଧରେ ଏହି ଲଢ଼େଇକୁ ଦ୍ରୁତଗତିରେ ଆଗେଇନେବା ଏବଂ ଅଧିକରୁ ଅଧିକ ରୋଗୀଙ୍କୁ ସାହାଯ୍ୟ କରିବା ।

ମୋର ପ୍ରିୟ ଦେଶବାସୀଗଣଆଜି ମୁଁ ଆପଣଙ୍କୁ ଓଡ଼ିଶାର କଳାହାଣ୍ଡି ଜିଲ୍ଲାର ଏକ ଏଭଳି ପ୍ରୟାସ ବିଷୟରେ କହିବାକୁ ଚାହୁଁଛିଯାହା କମ୍ ପାଣି ଏବଂ କମ୍ ସଂସାଧନ ସତ୍ତ୍ୱେ ସଫଳତାର ନୂତନ କାହାଣୀ ଲେଖୁଛି  ଏହା ହେଉଛି କଳାହାଣ୍ଡିର ‘ସବଜି କ୍ରାନ୍ତି’ ବା ପରିବା ବିପ୍ଳବ  ସମୟ ଥିଲା ଯେଉଁଠି କୃଷକ ପଳାୟନ କରିବାକୁ ବାଧ୍ୟ ହେଉଥିଲା ଆଜି ସେଇଠି କଳାହାଣ୍ଡିର ଗୋଲମୁଣ୍ଡା ବ୍ଲକ୍ ଏକ ପରିବା ଭଣ୍ଡାରରେ ପରିଣତ ହୋଇଛି   ପରିବର୍ତ୍ତନ କିପରି ଆସିଲା ଏହାର ଆରମ୍ଭ ମାତ୍ର ୧୦ ଜଣ କୃଷକଙ୍କ ଗୋଟିଏ ଛୋଟିଆ ସମୂହ ଦ୍ୱାରା ହୋଇଥିଲା  ସେମାନେ ମିଳିମିଶି ଗୋଟିଏ FPO ବା କିଷାନ୍ ଉତ୍ପାଦକ ସଂଗଠନ ସ୍ଥାପନ କଲେଚାଷରେ ଆଧୁନିକ କୌଶଳ ପ୍ରୟୋଗ କରିବା ଆରମ୍ଭ କଲେ ଏବଂ ଆଜି ସେମାନଙ୍କର ଏହି FPO କୋଟି କୋଟି ଟଙ୍କାର କାରବାର କରୁଛି  ଆଜି ୨୦୦ରୁ ଅଧିକ କୃଷକ ଏହି FPO ସହ ଯୋଡ଼ି ହୋଇଛନ୍ତିଯେଉଁମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରେ ୪୫ ଜଣ ମହିଳା ଚାଷୀ ମଧ୍ୟ ଅଛନ୍ତି  ଏହି ଲୋକମାନେ ମିଶି ୨୦୦ ଏକର ଜମିରେ ବିଲାତି ବାଇଗଣ ଚାଷ କରୁଛନ୍ତି ଏବଂ ୧୫୦ ଏକର ଜମିରେ କଲରା ଉତ୍ପାଦନ କରୁଛନ୍ତି  ଏବେ ଏହି FPOର ବାର୍ଷିକ କାରବାର ରାଶି ଦେଢ଼ କୋଟିରୁ ଅଧିକ ହୋଇଗଲାଣି  ଆଜି କଳାହାଣ୍ଡିର ପରିବା ଖାଲି ଓଡ଼ିଶାରେ ନୁହେଁବରଂ ଅନ୍ୟ ରାଜ୍ୟମାନଙ୍କରେ ମଧ୍ୟ ପହଞ୍ଚୁଛି ଏବଂ ସେଠିକାର କୃଷକମାନେ ଏବେ ଆଳୁ ଏବଂ ପିଆଜ ଚାଷର ନୂତନ ପ୍ରଣାଳୀ ଶିଖୁଛନ୍ତି 

ବନ୍ଧୁଗଣକଳାହାଣ୍ଡିର ଏହି ସଫଳତା ଆମକୁ ଶିଖଉଛି ଯେ ସଂକଳ୍ପଶକ୍ତି ଏବଂ ସାମୂହିକ ପ୍ରଚେଷ୍ଟା ଦ୍ୱାରା  କରାଯାଇ  ପାରେ । ମୁଁ ଆପଣ ସମସ୍ତଙ୍କୁ ଅନୁରୋଧ କରୁଛି :-

- ନିଜ ଅଞ୍ଚଳରେ FPO ଗଠନକୁ ଉତ୍ସାହିତ କରନ୍ତୁ ।

- କୃଷକ ଉତ୍ପାଦକ ସଂଗଠନଗୁଡ଼ିକ ସହିତ ଯୋଡ଼ିହୁଅନ୍ତୁ ଏବଂ ସେଗୁଡ଼ିକୁ ମଜଭୁତ୍ କରନ୍ତୁ ।

ମନେରଖନ୍ତୁ – ଛୋଟିଆ ପ୍ରୟାସରୁ ମଧ୍ୟ ବଡ଼ ପରିବର୍ତ୍ତନ ସମ୍ଭବ ହୁଏ । ଖାଲି ଆମର ଦୃଢ଼ ସଂକଳ୍ପ ଏବଂ ସାମୂହିକ ଭାବନାର ଆବଶ୍ୟକତା ରହିଛି ।

ବନ୍ଧୁଗଣ, ଆଜିର ‘ମନ୍ କି ବାତ୍’ରେ ଆମେ ଶୁଣିଲେ, କେମିତି ଆମ ଭାରତ ବିବିଧତାରେ ଏକତା ସହ ଆଗକୁ ବଢ଼ୁଛି । ସେ ଖେଳପଡ଼ିଆ ହେଉ ବା ବିଜ୍ଞାନ, ସ୍ୱାସ୍ଥ୍ୟ ହେଉ ଅବା ଶିକ୍ଷା - ପ୍ରତ୍ୟେକ କ୍ଷେତ୍ରରେ ଭାରତ ନୂତନ ଶିଖରକୁ ଛୁଇଁ ଚାଲିଛି । ଆମେମାନେ ଗୋଟିଏ ପରିବାର ଭଳି ମିଳିମିଶି ପ୍ରତ୍ୟେକ ଆହ୍ୱାନର ସାମ୍ନା କଲେ ଏବଂ ସଫଳ ହେଲେ । ୨୦୧୪ରୁ ଆରମ୍ଭ ହୋଇଥିବା ‘ମନ୍ କି ବାତ୍’ର ୧୧୬ତମ ଅଧ୍ୟାୟରେ ମୁଁ ଦେଖିଛି ଯେ ‘ମନ୍ କି ବାତ୍’ ଦେଶର ସାମୂହିକ ଶକ୍ତିର ଗୋଟିଏ ଜୀବନ୍ତ ଦସ୍ତାବିଜ ହୋଇଯାଇଛି । ଆପଣମାନେ ସମସ୍ତେ ଏହି କାର୍ଯ୍ୟକ୍ରମକୁ ଆପଣାର କରିଛନ୍ତି । ପ୍ରତିମାସରେ ଆପଣମାନେ ନିଜର ବିଚାର ଏବଂ ପ୍ରୟାସ ସମ୍ବନ୍ଧରେ ମୋତେ ଜଣାଇଛନ୍ତି । କେତେବେଳେ କେଉଁ Young Innovatorର ଚିନ୍ତାଧାରା ପ୍ରଭାବିତ କରିଛି ତ କେତେବେଳେ କୌଣସି ଝିଅର ସଫଳତା ଆମକୁ ଗୌରବାନ୍ୱିତ କରିଛି । ଏହା ଆପଣ ସମସ୍ତଙ୍କର ସହଭାଗିତା ଯାହା ଦେଶର କୋଣ ଅନୁକୋଣରୁ ସକରାତ୍ମକ ଶକ୍ତିକୁ ଏକାଠି କରିଛି । ‘ମନ୍ କି ବାତ୍’ ଏହି ସକରାତ୍ମକ ଶକ୍ତିର ବିସ୍ତାରର ମଞ୍ଚ ହୋଇପାରିଛି । ଏବେ ୨୦୨୫ ପାଖେଇ ଆସିଲାଣି । ଆସନ୍ତା ବର୍ଷ ‘ମନ୍ କି ବାତ୍’ ମାଧ୍ୟମରେ ଆମେ ଆହୁରି ପ୍ରେରଣାଦାୟୀ ପ୍ରୟାସଗୁଡ଼ିକୁ ସାମିଲ୍ କରିବା । ମୋର ବିଶ୍ୱାସ ଯେ ଦେଶବାସୀଙ୍କ ସକାରାତ୍ମକ ଭାବନା ଏବଂ ନୂତନ ଚିନ୍ତାଧାରା ଦ୍ୱାରା ଭାରତ ଏକ ନୂତନ ଶିଖରକୁ ଛୁଇଁପାରିବ । ଆପଣ ନିଜ ଆଖପାଖର ନିଆରା ପ୍ରୟାସ ଗୁଡ଼ିକୁ #Mannkibaatରେ ପଠାନ୍ତୁ । ମୁଁ ଜାଣିଛି ଯେ ଆସନ୍ତା ବର୍ଷର ପ୍ରତ୍ୟେକ ‘ମନ୍ କି ବାତ୍’ରେ ଆମ ପାଖରେ ପରସ୍ପରକୁ ଜଣେଇବା ପାଇଁ ବହୁତ କିଛି ଥିବ । ଆପଣମାନଙ୍କୁ ୨୦୨୫ର ବହୁତ ବହୁତ ଶୁଭକାମନା । ସୁସ୍ଥ ରୁହନ୍ତୁ ଖୁସି ରୁହନ୍ତୁ, Fit India Movementରେ ଆପଣ ମଧ୍ୟ ଯୋଗଦିଅନ୍ତୁ ଏବଂ ନିଜକୁ ସୁସ୍ଥ ରଖନ୍ତୁ । ଜୀବନରେ ପ୍ରଗତି କରନ୍ତୁ । ବହୁତ ବହୁତ ଧନ୍ୟବାଦ ।