आदरणीय सभापति जी, और सभी आदरणीय वरिष्‍ठ सदस्‍यों, सदन में मुझे पहली बार बोलने का अवसर मिला है। यहां सारे अनुभवी, वरिष्‍ठ महानुभाव हैं। आगे मुझे उन सबसे बहुत कुछ सीखना भी है, लेकिन आज प्रारंभ में मेरे अनुभव की कमी के कारण कोई अगर चूक रह जाए, आप सब मुझे क्षमा करेंगे। राष्‍ट्रपति जी के अभिभाषण पर सदन में करीब 42 आदरणीय सदस्‍यों ने अपने विचार रखे हैं। अकेले गुलाम नबी आजाद जी, फिर सतीश जी, देरेक ओब्रायन जी, श्रीमान डी पी त्रिपाठी जी, प्रो. रामगोपाल यादव जी, श्री सीताराम येचुरी जी, सभी वरिष्‍ठ महानुभावों ने अपने-अपने विचार रखे हैं। सभी दलों के नेताओं ने अपने-अपने विचार रखे हैं और बहुतायत इसका समर्थन हुआ है। कहीं पर कुछ रचनात्‍मक सुझाव भी आए हैं। कुछ एक में अपेक्षाएं भी व्‍यक्‍त की गई हैं, लेकिन ये चर्चा बहुत सार्थक रही है। किसी भी बैंच पर क्‍यों न बैठे हों, लेकिन स्वीकार करने योग्य भी सुझाव आए हैं, उन सुझावों का आने वाले दिनों में रचनात्‍मक तरीके से सही उपयोग करने का प्रयास हम करेंगे और इसके लिए मैं रचनात्‍मक सुझाव देने वाले सभी आदरणीय सदस्‍यों का आभार व्‍यक्‍त करता हूं।

कुछ आदरणीय सदस्‍यों ने चिंता व्‍यक्‍त की है और आकांक्षा भी व्‍यक्‍त की है कि यह कैसे संभव होगा, कब करोगे, कैसे करोगे? ये बात सही है कि पिछले कई वर्षों से एक ऐसा निराशा का माहौल छाया हुआ है और हर किसी का मन ऐसा बन गया है कि अब कुछ नहीं हो सकता, अब सब बेकार हो गया है उसकी छाया अभी भी है और उसके कारण कैसे होगा, कब होगा, कौन करेगा यह सवाल उठना बहुत स्‍वाभाविक है, लेकिन कुछ ही दिनों में विश्‍वास हो जाएगा, ऐसे मित्रों को भी कि अब निराशा का माहौल छंट चुका है और एक नये आशा और विश्‍वास के साथ देश आगे बढने का संकल्‍प कर चुका है।

कई वर्षों के बाद देश ने एक ऐसा जनादेश दिया है जिसमें देश ने स्थिरता को प्राथमिकता दी है और एक स्‍टेबल गवर्मेंट के लिए वोट दिया है। भारत के मतदाताओं का ये निर्णय सामान्‍य निर्णय नहीं है। हम देशवासियों के आभारी हैं। उन्होंने भारत की संसदीय प्रणाली को इतनी उमंग और उत्‍साह के साथ देश ने अनुमोदन किया है। इसके साथ-साथ समय की मांग है कि हम सब हमारे अपने महान लोकतंत्र के प्रति गौरान्वित हो कर के, विश्‍व के सामने जरा सिर ऊंचा करके, हाथ मिलाकर बोलने की आदत बनाएं। हमारे मतदाताओं की संख्या अमेरिका और यूरोप, उनकी कुल जनसंख्‍या से भी ज्‍यादा हैं, यानी हमारा इतना विशाल देश हैं, इतना बड़ा लोकतंत्र हैं। पर चाहे, हमारे यहां अनपढ़ हो, गरीब हो, गांव में रहता हो, और उसके पास पहनने को कपड़े भी न हो, लेकिन उसकी रगों में जिस प्रकार से लोकतंत्र ने जगह बनाई, ये हमारे देश के लिए बड़े गौरव की बात है, लेकिन हम इसको उस रूप में अभी तक विश्‍व के सामने ला नहीं पाए हैं। ये हम सबका सामूहिक कर्तव्‍य है कि हम भारत की इस लोकतांत्रिक ताकत को विश्‍व के सामने उजागर करें और एक नये आत्‍मविश्‍वास का संचार करें, इस दिशा में हम आगे बढ़े।

राष्‍ट्रपति जी ने अपने अभिभाषण में अनेक बिन्‍दुओं को स्पर्श किया है और सभी माननीय सदस्‍यों ने अपने-अपने तरीके से उनको व्‍यक्‍त करने का प्रयास किया है। लेकिन एक बात मैं जरूर कहना चाहता हूं कि विजय और पराजय दोनों में सीख देने की ताकत होती है और सीख पाने की आवश्‍यकता भी होती है, जो विजय से सीख नहीं लेता है, वो पराजय के बीज बोता है और जो पराजय से सीख नहीं लेता वो विनाश के बीज बोता है,‘जय और पराजय’ के तराजू से ऊपर उठ करके, हमने कुछ सीखा है।

मैं एक बार आचार्य विनोबा जी के चिंतन को पढ़ रहा था और उसमें उन्‍होंने युवा की व्‍याख्‍या की है और बड़ी सरल और अच्‍छी व्‍याख्‍या की। उन्‍होंने कहा युवा वो होता है, जो आने वाले कल की सोचता है, आने वाली कल की बोलता है, लेकिन जो बीती हुई बातों को गाता रहता है, वो युवा नहीं हो सकता। उसकी सोच युवा नहीं हो सकती। उसके लिए बीती हुई बातों को ही गुनगुनाते रहना, लोग चाहे स्‍वीकार करें, या न करे लोग अस्‍वीकार करें तो भी उसी अपने लहजे में रहना, ये हमने भी देखा है। कभी रेलवे में बस में कोई ऐसे बूढ़े सज्‍जन मिल जाते थे, तो उनको देर तक सुनना पड़ता है उनका भूत काल क्या था उनको वो सारी कथायें सुनानी होती हैं। ये विनोबा जी की युवा की बड़ी बढि़या डेफिनेशन है और मैं मानता हूं उसे अपने आने वाले दिनों की ओर सोचने के लिए प्रेरित करेगी।

भारत की एक ताकत उसका संघीय ढांचा है। बाबा साहेब अंबेडकर और उस समय के हमारे विद्धत पुरुषों ने हमें जो संविधान दिया है उसकी सबसे बड़ी एक ताकत है ये संघीय ढांचा है। हमें आत्‍म-चिंतन करने की आवश्‍यकता है कि क्‍या हमने दिल्‍ली में बैठ करके संघीय ढांचे को ताकत दी है या नहीं दी है, इसको और अधिक सामर्थ्‍यवान बनाया है या नहीं बनाया है और अगर भारत को आगे बढ़ाना है तो राज्‍यों को आगे बढ़ना पड़ेगा। अगर राष्‍ट्र को समृद्ध होना है, तो राज्‍यों को समृद्ध होना पड़ेगा और अगर राष्‍ट्र को सशक्‍त होना है तो राज्‍यों को सशक्‍त होना होगा और इसलिए जब मैं गुजरात में मुख्‍यमंत्री के रूप में काम करता था, हम एक मंत्र हमेशा बोलते थे ‘भारत के विकास के लिए गुजरात का विकास’। हम हमेशा ये शब्‍द प्रयोग करते थे। क्‍या राज्‍यों के अंदर ये माहौल हम पनपा पाए हैं?

मेरा ये सदभाग्‍य रहा है कि एक राज्‍य के मुखिया के रूप में पीड़ा क्‍या होती है, उसे बहुत मैंने झेला है, अनुभव किया है। मेरा ये भी सौभाग्‍य रहा है कि यदि दिल्ली में अनुकूल सरकार हो, तब राज्‍य का क्‍या हाल होता है और प्रतिकूल सरकार दिल्‍ली में हो तब राज्‍यों का क्‍या हाल होता है और इसीलिए मैं एक भुक्‍तभोगी व्‍यक्ति हूं। मैंने इन कठिनाईयों को झेला है कि राज्‍यों को कितनी मुसीबतें झेलनी पड़ती हैं मैंने, इसको भली-भांति समझा है। राज्‍य कितनी ठोकरें खाता है, राज्‍यों की बात को किस प्रकार से नकारा जाता है, सिर्फ निजी स्‍वार्थ के खातिर राज्‍यों की विकास की योजनाओं को किस प्रकार से रोका जाता है। पर्यावरण के नाम पर राज्‍यों की विकास यात्रा को दबोचने के लिए किस प्रकार के षडयंत्र होते हैं, इन सारी बातों का मैं भुक्‍तभोगी हूं।

अब इसीलिए एक ऐसे व्‍यक्ति को प्रधानमंत्री बनने का अवसर मिला है, एक ऐसे व्‍यक्ति को देश की सेवा करने का सौभाग्‍य मिला है, जो राज्‍यों की पीड़ा को भली-भांति समझता है। आज मैं इस पीड़ी को जानते हुए इस सदन को विश्‍वास दिलाता हूं कि हम कार्य करेंगे। आदरणीय सभापति जी, राष्‍ट्रपति जी के भाषण में हमने इस बात को बल दिया है और हमने को-ऑपरेटिव फेडर्लिज्‍म की बात की है कि बड़े भाई, छोटे भाई वाला कारोबार नहीं चलेगा। हमें राज्‍यों के साथ समानता का व्‍यवहार करना होगा, हमें उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करने का दिशा बना लेनी है। हमें एक ऐसी कार्य संस्‍कृति विकसित करनी होगी, जिसमें राज्‍य को भी अनुभूति हो कि मैं भारत की भलाई के लिए काम कर रहा हूं और भारत की सरकार चलाने वाले लोगों के मन में भी यह रहना चाहिए कि हिन्‍दुस्‍तान का छोटा से छोटा राज्‍य भी क्‍यों न हो, उसके विकास के बिना हिन्‍दुस्‍तान का विकास होने वाला नहीं है। हमें इस मन की रचना के साथ देश को आगे चलाना है। आदरणीय सभापति जी, यह मैं बड़े विश्‍वास से कहता हूं कि बहुत सी बातें ऐसी हैं अगर हम राज्‍यों को विश्‍वास में लें तो हमारे कार्य की गति बहुत बढ़ सकती है। हमने ‘टीम इंडिया कांसेप्‍ट’ की बात आदरणीय राष्‍ट्रपति जी के भाषण में कही। भारत जैसे संघीय राज्‍य व्‍यवस्‍था वाले देश को चलना है तो प्रधानमंत्री और सभी मुख्‍यमंत्री इनको टीम इंडिया के रूप में काम करना चाहिए। प्रधानमंत्री और उनके कैबिनेट के मंत्री, ये टीम सफिशियंट नहीं है। प्रधानमंत्री और राज्‍यों के मुख्‍यमंत्री, यह टीम का एक स्‍वरूप हमें उभारना होगा और उस पर अगर हम बल देंगे, तो हम राज्‍यों की ताकत, राष्‍ट्र के विकास पर में जोड़ पाएंगे।

मैंने सुना, मैत्रीयन जी का भाषण हुआ। उन्‍होंने कहा कि उनके मुख्‍यमंत्री ने चालीस चिट्टियां लिखी थी लेकिन एक का जवाब नहीं आया था। ये स्थिति हमें बदलनी होगी। इसलिए इस अवस्‍था को लाने के लिए कोई मैकेनिज्‍़म विकसित हो, उस पर हम प्रयास करने के पक्ष में हैं। हम आगे बढ़ना चाहते हैं। हमारे देश में कुछ लोगों को ‘गुजरात मॉडल’ की बडी चिंता हो रही है। कुछ लोगों के मन में ये भी सवाल है कि ‘गुजरात मॉडल’ आखिर है क्‍या? तो उनकी इस मुसीबत का तो मैं अंदाज लगा सकता हूं। ‘गुजरात मॉडल’ को अगर सरल भाषा में समझना है तो वो ये है कि अगर उत्‍तर प्रदेश में मायावती जी की सरकार ने कोई अच्‍छा काम किया, उसको समझना, स्‍वीकार करना और हमारे यहां लागू करना, यह ‘गुजरात मॉडल’ है। केरल में लेफ्ट की सरकार थी लेकिन उनका एक कुटुम्‍बश्री प्रोग्राम था, हमने उससे सीखा। हमारे यहां अनुकूलता के अनुसार उसे लागू किया। सबसे बड़ी बात है कि आज एक राज्‍य दूसरे राज्‍य की जो चर्चा हो रही है, वो मॉडल की चर्चा है और मॉडल की चर्चा विकास के संदर्भ में हो रही है। ये हमारे लिए एक अच्‍छा माहौल तैयार कर रही है कि एक राज्‍य दूसरे राज्‍य के साथ विकास की स्‍पर्धा के साथ चर्चा कर रहा है मेरे कान ये सुनने के लिए हमेशा लालायित रहते हैं कि कभी बंगाल ये कहे कि हम गुजरात से आगे निकल गए। कभी तमिलनाडु कहे कि गुजरात और बंगाल दोनों से हम आगे निकल गए। कभी आंध्र कहे कि हम तेलंगाना से आगे निकल गए, तो तेलंगाना कहे कि हम आंध्र प्रदेश से आगे निकल गए। कभी बिहार कहे कि हमने गुजरात को पीछे छोड़ दिया, ये स्‍पर्धा का माहौल, विकास की स्‍पर्धा का माहौल, हमें देश में देखना है, बनाना है। उस दिशा में हम इस बात को लेकर के आए हैं कि हम हमें को-ऑपरेटिव फेडर्लिज्‍म को लेकरके देश को आगे बढ़ाना चाहते हैं।

हमारे देश में हर राज्‍य की अपनी शक्ति भी है हर राज्‍य की अपनी विशेषता भी। हमें उसे समझना होगा। गुजरात जैसा छोटा सा राज्‍य, लेकिन हर जिले में हमारा एक मॉडल काम नहीं करता है। एक ही प्रकार के कुर्तें सारी दुनिया को पहनाए नहीं जा सकते। वहां की विशेषता ये है कि रेगिस्‍तान वाला कच्‍छ का मॉडल हरे-भरे वलसाड में नहीं चल सकता है। उसी प्रकार से एक राज्‍य का मॉडल दूसरे राज्‍य पर थोपा नहीं जा सकता। उसी प्रकार से दिल्‍ली के विचार राज्‍यों पर नहीं थोपे जा सकते। उसकी Priority क्‍या है, उसकी कठिनाईयां क्‍या है। उसके अनुरूप संसाधनों का उपयोग करके, उन शक्तियों को बल देने से वो तेज़ गति से आगे बढ़ेंगी। इसलिए विकास में राज्‍यों और राष्‍ट्र की दोनों की सामूहिक जिम्‍मेदारी है। एक नए राजनीतिक चरित्र की दिशा में हम बढ़ना चाहते हैं। हम भारत माता के चित्र को देखेंगे हमें ध्‍यान में आता है कि भारत माता का पश्चिमी किनारा वहां तो कोई गतिविधि नज़र आती है, केरल हो, कर्नाटक हो, गोवा हो, महाराष्‍ट्र हो, गुजरात हो, राजस्‍थान हो, हरियाणा हो, दिल्‍ली हो, पंजाब हो, लेकिन हमारे देश का पूर्वी इलाका ओडिशा हो, बिहार हो, पश्चिम बंगाल हो, उत्‍तर प्रदेश का पूर्वांचल हो, क्‍या हमारी भारत माता ऐसी हो कि जिसका एक हाथ तो मजबूत हो और दूसरा हाथ दुर्बल हो। ये भारत मां कैसे मजबूत बनेगी। इसलिए हमारे लिए ये प्राथमिकता है कि भारत का पूर्वी छोर जो विकास में पीछे रह गए, उसको कम से कम पश्चिम की बराबरी में लाने के लिए हमें अथाह प्रयास करना है।

विकास, जब हम कहते हैं ‘सबका साथ, सबका विकास’। विकास सर्व- समावेशी होना चाहिए, विकास सर्व-स्‍पर्शी होना चाहिए, विकास सर्व-देशिक होना चाहिए, विकास सर्वप्रिय होना चाहिए, विकास सर्वहितकारी होना चाहिए और इसलिए विकास को किसी एक कोने में देखने की आवश्‍यकता नहीं। जब हम उसको परिभाषित करें तब, एक समग्र कल्याण की परिभाषा को लेकर, आगे बढ़ने की कल्‍पना लेकर के हम चलने वाले हैं। इसलिए भारत का जो पूर्वी इलाका है उसकी हम चिंता करें। नार्थ-ईस्‍ट, हम आर्थिक मदद करें। नार्थ-ईस्‍ट को उसके नसीब पर छोड़ दें, कब तक चलेगा। क्‍या हम एक नए सिरे से नहीं सोच सकते।

आज हमारे देश में 20 हजार से ज्‍यादा कॉलेजिज हैं। हर कॉलेज के स्‍टूडेंट्स दस दिन के लिए टूर पर जाते हैं। यह उनका एक रेगुलर कार्यक्रम रहता है। क्‍या कभी हमने हमारे कॉलेजों को गाइड किया कि कम से कम हर कॉलेज साल में एक बार दस दिन के लिए नार्थ-ईस्‍ट का एक टूर जरूर करें। आप विचार कीजिए अगर देश के 30 हजार कॉलेज के 100 विद्यार्थी नार्थ-ईस्‍ट में एक हफ्ते रहने के लिए जाते हैं, उससे नॉर्थ-ईस्‍ट का टूरिज्‍म कितना बढ़ सकता है, इको टूरिज्‍म कितना बढ़ सकता है। इससे नॉर्थ-ईस्‍ट के लोगों के सुख-दुख को हिन्‍दुस्‍तान के कोने-कोने का व्‍यक्ति जानेगा। नॉर्थ-ईस्‍ट के साथ का अपनापन कितना हो जाएगा। उसे भी लगेगा कि हि‍न्‍दुस्‍तान हर कोने को की भारत मां की जय बोलने वाले लोग हैं। उनको गले लगाने का एक रास्‍ता नहीं हो सकता। तरीके ढूढ़ने होते हैं किस प्रकार के नए तरीकों से हम देश को चला सकते हैं उसकी योजना बनानी हो तो हो। एक बार मुख्‍यमंत्री के कार्यकाल के दरम्यान, नार्थ-ईस्‍ट के सभी मुख्‍यमंत्रियों को मैंने इस संबंध में चिट्ठी लिखी थी ।

जब प्रधानमंत्री जी मनमोहन सिंह‍ जी थे तब एक बार उन्‍होंने एनडीसी बुलार्इ‍ थी उस समय भी मैंने उनसे पब्लिकली यह कहा और आग्रह किया था कि नॉर्थ-ईस्‍ट के सभी स्‍टेटस से 200 वुमेन पुलिस आप गुजरात भेजिए 2 साल के लिए और हर 2 साल के बाद चेंज करते रहिए। इससे 15 सौ 2 हजार लोगों को वहां काम मिलेगा और जब वे वापिस जाएंगें तो यहां कई परिवारों से उनका नाता जुड़ जाएगा। इस प्रकार से इंटीग्रेशन का कितना बढि़या काम संभव हो सकेगा। ‘एक भारत’ जो हम कहते हैं न, यह ‘दो’ या ‘तीन’ भारत के संदर्भ में एक नहीं है।

भारत की एकता की बात है। आज जातिवाद के ज़हर ने देश को डूबो दिया है प्रांतवाद की भाषा ने देश को तबाह करके रखा है। समय की मांग है कि यह तोड़ने वाली भाषा को छोड़कर के एकता की भाषा को एकस्‍वर से बोलना चा‍‍हिए और इस लिए एक भारत श्रेष्‍ठ भारत का सपना लाए हैं। अगर किसी को एक भारत में से ‘दो’ दिखता है, तो यह उनकी मानसिक बीमारी का परिणाम है। हम तो एकता का मंत्र लेकर आए हैं।

हम भाषा से परे हो कर के जाति से परे हो करके, सम्‍प्रदाय से परे हो करके, एक राष्‍ट्र का सपना ले करके हम चलें। ‍यह देश विविधता में एकता वाला देश है। हमारा देश एकरूपता वाला देश नहीं है और देश एकरूपता वाला बनना भी नहीं चाहिए। हम वो लोग नहीं है कि हर 20 किलो मीटर पर एक ही प्रकार का पीजा खाएं, हम वे लोग हैं नीचे से निकले तो इडली खाते निकले और ऊपर जाते-जाते परौठा हो जाता है। यह विविधता से भरा हुआ देश है। उसे एकरूपता से उसे नहीं देखा जा सकता है और इसलि‍ए ‘एक भारत, श्रेष्‍ठ भारत’ का सपना लेकर के हम देश की कल्‍याण की बात कर रहे हैं।

हमारे देश में संसाधनों के संबंध में हम नए तरीके से प्रेरि‍त कैसे कर सकते हैं। राज्‍यों के अपने स्‍वभाव है अपनी वि‍शेषताएं तकनीकी में। उन समस्‍याओं को सम्‍मि‍लि‍त रूप से समस्‍याओं को समाधान करने का सामूहि‍क प्रयास करते हैं। जैसे हि‍मालय स्‍टेट्स हैं, हि‍मालय स्‍टेट को हम तराई के इलाको से प्रगति‍ के मॉडल से फि‍ट नहीं कर सकते हैं। हमारा अफसर जाएगा वह कहेगा कि‍ 60 कि‍मी की स्‍पीड से गाड़ी चलनी चाहि‍ए, अब हि‍मालय में 60 कि‍मी की स्‍पीड से कैसे चलेगी। वो कहेगा कि‍ एक गाडी इतना किमी चलेगा तो इतना डीज़ल मि‍लेगा, वहां इतना डीज़ल से कहां चलने वाला। केवल इसलि‍ए हमें एक ही प्रकार के सोल्यूशन से बाहर आना पड़ेगा, इसलि‍ए राष्‍ट्रपति‍ जी के भाषण में इस बात को हमने उजागर भी कि‍या है कि‍ हि‍मालय रेंज के जि‍तने भी स्‍टेट्स हैं, उनको एक साथ बैठाकर करके उनकी समस्‍याओं को समझा जाए। उनके लि‍ए एक न्‍यूनतम कॉमन व्‍यवस्‍था को वि‍कसि‍त कर सकते हैं, क्‍या इस दि‍शा में कुछ कर सकते हैं, क्‍या?

कोस्‍टों से समुद्री तटीय पर वि‍कास आज वि‍श्‍व व्‍यापार का युग है। कि‍तनी तेजी से आज समुद्रीय तटों का वि‍कास हुआ है। हमारा भारत का समुद्रीय तट भारत समृद्धि‍ का प्रवेश द्वार बन सकता है। हमारा कोस्‍टल एरि‍या भारत के प्रोपर्टी का साधन बन सकता है। लेकि‍न आज सबसे ज्‍यादा उपेक्षि‍त है। हमने ज्‍यादा से ज्‍यादा छोटे से मछुआरों का सोचा, हमारे पूरे कोस्‍टल गेट के development के लि‍ए भी और इसीलि‍ए राष्‍ट्रपति‍ जी के भाषण में कोस्‍टल development के लि‍ए एक अलग से विचार करने की व्यवस्था सोची गई है। हम चाहते हैं, कोस्‍टल राज्य एक साथ बैठे। कोस्‍टल development में क्‍या कॉमन विचार हो, उनकी क्या कठिनाईयां हैं एक दूसरे को co-ordinate कैसे करें। एक दूसरे की ताकत कैसे बनें और विकास की स्पर्धा मे अपने अनुभव को कैसे share करे। भारत का समुद्रीतट बहुत बड़ा है। हम एक ऐसे भौगोलिक location में है कि हम east और west को जोड़ने के लिए, एक बहुत बड़ी समुद्री ताकत बन सकते है लेकिन हमें उसमें जितना आगे बढ़ना चाहिए था, नहीं बढ़े। श्रीलंका का कोलंबो छोटा सा है लेकिन आज वह विश्व व्यापार में सामुद्रिक व्‍यापार का जिस प्रकार का क्षेत्र बना हुआ है। एक तरफ सिंगापुर बना हुआ है।एक तरफ पाकिस्तान के अंदर चीन अपने ports डाल रहा है, तब जा कर के भारत के समुद्र की ओर एक विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। क्या उसके लिए भारत के समुद्री विकास का माँडल उनके साथ बैठकर नहीं बनाया जा सकता।

हमारे यहां landlocked स्‍टेट्स हैं। उनमें भी विविधताएं भरी पड़ी हैं। उनकी विविधताओं को समझना होगा। हमारे यहां माओवाद से इफेक्‍टेड एरियाज़ हैं। कुछ माओवाद prone जोन भी हैं। कुछ माओवाद प्रोन जोन भी हैं। क्‍या उन्‍हीं को identify करके उनके साथ बैठकर उसी स्‍पेसिफिक समस्‍या के समाधान के लिए केन्‍द्र और राज्‍य मिलकर काम नहीं कर सकते? इसलिए हम आगे आने वाले दिनों में इन चीजों को आगे कैसे ले जाएं, उस आगे ले जाने का हमारा रास्‍ता भी यही लेकर हम चलना चाहते है, ताकि हिन्‍दुस्‍तान का हर एक राज्‍य अपनी शक्ति और सामर्थ्‍य के आधार पर विकास की यात्रा में आगे आएं।

आजकल क्‍या हुआ है? हम दिल्‍ली में राजनीतिक माइलेज प्राप्‍त करने में कोई भी निर्णय कर लेते है, कोई भी कानून बना देते है, लेकिन उसको इम्‍पलीमेंट करने की जिम्‍मेदारी स्‍टे्टस की होती है। उनके पास रिर्सोसेज नहीं होते और इसलिए वह योजना धरी की धरी रह जाती है। अख़बार में चार-छह दिन आ जाता है और फिर गाली पड़ती है कि आपने दिल्‍ली में यह किया लेकिन उसे आपने लागू नहीं किया। ये तनावपूर्ण वातावरण हम क्यों पैदा करते हैं? मैं राज्‍य में रहा हूं, इसलिए मु्झे मालूम है कि यह तनाव हमें विपरीत दिशा में ले जाता है और इसलिए हमें इन स्थितियों पर गंभीरता से सोचने की आवश्यकता है और उसमें बदलाव करने की आवश्‍यकता है।

हमारे एग्रीकल्‍चर के भी Agro-climate zones हैं। हर राज्‍य में एक फसल का एक निश्चित एरिया हैं। उसकी mapping तो है, लेकिन गेंहू पकाने वाले राज्‍यों की अलग समस्‍या है, उनको अलग से बिठाकर बात करेंगे, चावल पकाने वाले राज्‍यों की अलग समस्‍या है, उनसे हम अलग से बात करेंगे और गन्‍ना पकाने वाले राज्‍यों की अलग समस्‍या है, उनसे अलग से बात करेंगे। जब तक हम Issue-centric, focused activity नहीं करते, हम इतने बड़े विशाल देश को सिर्फ दिल्‍ली से चलाने की कोशिश करते रहेंगे और नीतियां बनाने के मामले में हम दुनिया को कहेंगे कि इतने एक्‍ट बनाये, इतने किए, लेकिन इससे स्थितियां नहीं बदलेंगी।

आज आवश्‍यकता है कि अपने विचारों को, अपनी बातों को आखिरी व्यक्ति तक कैसे पहुचाएँ। Last man delivery ये सबसे बड़ी समस्‍या है और इसके लिए मूल कारण Governance.

स्वराज मिला, हमें इस बात को स्‍वीकार करना चाहिए कि हम सुराज नहीं दे पाये। मैं नेता चुना गया, जिन्‍होंने उस दिन का भाषण सुना होगा, मैंने साफ कहा है कि मैं इस विचार का नहीं हूं कि पहले की सरकारों ने कुछ नहीं किया है और कोई सरकार कुछ न कुछ करने के लिए तो आती नहीं है। हर सरकार कुछ करने के लिए आती है। अपने-अपने समय में हर सरकार ने कुछ न कुछ किया है। उन सबका cumulative परिणाम है कि आज हम यहां आये है, लेकिन जितना होना चाहिए था नहीं हुआ है, जिस दिशा में होना चाहिए था उस दिशा में नहीं हुआ है और जिस प्रकार से देश के अंदर उस प्रकार से ऊर्जा नहीं भरी, इन कमियों को हमें पूर्ण करना होगा।

महोदय, यही देश नेता बाहर जाकर आज भी कहते है कि हमारा देश तो गरीब है और वही हमें मिसाइल दिखा रहे है। यह देश कभी सोने की चिडि़या कहा जाता था। यह देश विश्‍व के समृद्ध देशों में सबसे आगे माना जाता था। यह देश ज्ञान-विज्ञान की दुनिया में प्रगति पर माना जाता था। गुलामी के कालखंडमें सब ध्‍वस्‍त हो चुका, उसमें से हम बाहर आ सकतें हैं। हम स्‍वराज्‍य की ओर हम कैसे बल दें? हमारे लोकतंत्र के ढांचे से हम इस रूप से दब गये, अपने आप पता नहीं क्‍या कठिनाईयां महसूस कि हमने Good Governance पर बल नही दिया। Good Governance सामान्‍य नागरिक के प्रति जवाबदेह होता है। क्या आज हम यह कह सकते हैं कि हमारा पूरा प्रशासन तंत्र सामान्य नागरिक के प्रति जवाब देह है? लोकतंत्र कि पहली शर्त होती है कि वह नागरिकों के प्रति जवाबदेह होना चाहिए, लेकिन यह स्थिति नहीं है। क्‍या हम यह कह सकते है कि व्यवस्था तंत्र में गरीब से गरीब व्‍यक्ति कि सुनवाई हो रही है? तो लोकतंत्र की वह कौन सी असलीयत है जो इस प्रकार की कमियां पैदा कर रही है? इसलिए समय की मांग है कि देश के अंदर सुराज पर हमें बल देना पड़ेगा, इसलिए हमें सुराज पर बल देना है।

महोदय, व्‍यक्ति कितना ही स्‍वस्‍थ क्‍यों न दिखता हो, ऊंचाई हो, वजन ठीक हो, सब हो, कोई बीमारी न हो, लेकिन अगर एक डायबिटिज उसके शरीर में प्रवेश कर जाए, तो उसका सारा शरीर बीमारियों का घर बन जाता है। जिस प्रकार से शरीर में डायबिटिज का प्रवेश पूरे शरीर को नष्‍ट कर देता है, उसी प्रकार से शासन व्‍यवस्‍था में bad governance की एंट्री पूरे शासन तंत्र को, पूरे देश को तबाह कर देती है। Bad Governance डायबिटिज से भी भयंकर होता है। हमारा आग्रह है, हमारा प्रयास है कि हम Good Governance से चले।

महोदय, देश में करप्‍शन की चिंता है और मैं मानता हूं पूरे विश्‍व में हमारी एक पहचान बनी है, अच्‍छी है, बुरी है, सही है, गलत है, हरेक के अपने-अपने विचार होंगे, लेकिन दुनिया के सामने हिंदुस्‍तान एवं ‘Scam India’ यह पहचान बन गई है, और उसी ने भारत की विकास की यात्रा को बहुत बड़ा सदमा पहुंचा है। हमारे टूरिज्‍म पर बहुत बड़ी ब्रेक लगी, यह क्‍यों लगी? बलात्‍कार की घटनाओं ने टूरिस्‍टों के आने में रोक पैदा कर दी है। पूरे देश की विकास यात्रा में भारत की छोटी-छोटी घटनाएं भी बहुत बड़ी चिंता बनी हुई है और इस पर राजनीति नहीं हो सकती हैं। क्‍या हम terrorism पर भी राजनीति करेंगे? क्‍या माओवाद के हमलों पर भी राजनीति करेंगे? क्‍या मां-बहनों पर बलात्‍कार पर भी राजनीति करेंगे? निर्दोषों की हत्‍या पर भी राजनीति करेंगे? समय की मांग है कि हम इससे ऊपर उठकर के एक के सामूहिक दायित्‍व के साथ इन समस्‍याओं के संबंध में कोई Compromise नहीं करेंगे, मिल बैठकर कोई रास्‍ता निकालेंगे और देश की छवि जो बर्बाद हो रही है, उससे बाहर निकलने का प्रयास करेंगे।

महोदय, विश्‍व का भारत के प्रति आकर्षण बन रहा था। टूरिज्‍म के लिए लोग भारत की तरफ मुड़े थे, लेकिन अचानक पिछले कुछ समय में इसमें गिरावट आई है। यह गिरावट इन्‍हीं घटनाओं के कारण आई है। क्‍या हमारी सामूहिक जिम्‍मेवारी नहीं है? क्‍या राजनीति से ऊपर उठ करके इन समस्याओं के समाधान के लिए रास्‍ता नहीं निकाले जा सकते है?

महोदय, यह ऐसा सदन है, जहां देश का talent बैठता है, यह देश की विद्धवत सभा है। इन्‍हें मार्गदर्शन करना पड़ेगा। इसी गृह में मार्गदर्शन करना पड़ेगा। हमें मिल करके रास्‍ते खोजने पड़ेंगे और हमारी कोशिश है कि हम मिल बैठ कर रास्ता खोजें और देश को आगे ले जाएं।

हमारे देश में corruption के खिलाफ आम आदमी का रोष है। हमारी कानूनी व्‍यवस्‍था में कौन करप्‍ट आदमी कब जेल जाएगा, इसके लिए देश इंतजार करने को तैयार नहीं है। उसके हाथ में जो शस्‍त्र है, उससे राजनेताओं को सजा देने के लिए आज वह काबिल हुआ है। लेकिन, उससे बात बननी है। जितनी चिंता करप्‍शन के बाद की होती है, उससे ज्‍यादा चिंता करप्‍शन न हो, इसके लिए चिंता करने की आवश्‍यकता है। इसलिए राष्‍ट्रपति जी के अभिभाषण में इस बात पर भी बल दिया है कि करप्‍शन के बाद के लिए किए जाने वाले Measures पर ज्‍यादा चर्चा हो चुकी है, उसके कई मुद्दे हैं, लेकिन करप्‍शन न हो इसके लिए भी तो कुछ-कुछ चीजें की जा सकती है और उसमें एक है The State must be policy driven, अगर The State must be policy driven है तो करप्‍शन की संभावनाएं बहुत ही कम रहती है, ग्रे एरिया बहुत ही कम रहता है। दूसरा है टेक्‍नोलॉजी। आज टेक्‍नोलॉजी करप्‍शन को रोकने में बहुत बड़ा रोल प्‍ले कर सकती है। अगर Environment Ministry की फाइलें ऐसे ही जमा रहती हैं और भांति-भांति के आरोप लगते हैं, लेकिन वही ऑनलाइन हो, कोई भी एप्लिकेंट फॉर्म अपने पासवर्ड से ऑनलाइन देख सकता है। कि आज मेरी फाइल की क्‍या पोजिशन है? टेक्‍नोलॉजी के द्वारा इतनी transparency आ सकती है कि हमारे यहाँ एक सामान्य मानव भी करप्शन करने से पहले 50 बार सोचेगा। सीसीटीवी कैमरा जैसी चीजें भी आज आदमी को ङरा रही हैं, खूंखार-खूंखार व्‍यक्तियों को भी डरा रही है, तो हम टेक्नोलॉजी का भरपूर उपयोग कर सकते है। करप्शन को कर्ब करने के लिए अभी ई-टेंडरिंग वगैरह छोटी-मोटी चीजें प्रारम्भ हुई हैं, लेकिन उसको और व्यापक रुप से आगे लाया जाए। इतना ही नहीं, अगर हम स्कूल्स में बच्चों के प्रेजेंस को बोयोमिट्रिक सिस्टम से जोड़ दें, तो फिर अगर कहीं 40 बच्चें है और कोई 80 लिखवाकर सारी सहायता ले रहा है, तो वह करप्शन अपने आप चला जाएगा। ग्रासरुट लेवल से टॉप लेवल तक करप्शन की सारी बातें होती हैं। अगर रेलवे के अंदर सीसीटीवी कैमरे की व्यवस्था होगी तो रेलवे के भीतर चलने वाली गतिविधियों को हम रोक सकते हैं। ऐसी कई बातें हैं, जैसे एक पालिसी-ड्रिवन स्टेट हो, टेक्नोलॉजी का भरपूर उपयोग हो और करप्ट लोगों के लिए कठोर से कठोर कार्रवाई करने की व्यवस्था हो, तो मुझे विश्वास है कि हम स्थितियों को बदल सकते हैं।

हम चाहें या न चाहें, देश में हमारे इन सदनों की गरिमा पर चोट लगी हुई है। एक व्यापक चर्चा है कि संसद में वे लोग जाते हैं जिनका criminal बैकग्राउंड होता है। पाँच हों, सात हों, दस हों लेकिन एक छवि बनी हुई है। यह हम लोगों की सामूहिक जिम्मेवारी है कि हम इस कलंक से हमारे इन दोनो सदनों को मुक्त करें और कलंक से मुक्त करने का एक अच्छा उपाय है कि हम सब मिलकर तय करें, भारत के सुप्रीम कोर्ट से रिक्वेस्ट करें कि अभी जितने हमारे सदस्य हैं, उनमें से किसी पर भी यदि एफआईआर लॉज हुई है, तो ज्यूडिशियल मेकैनिज्म के द्वारा उसको एक्सपिडाइट किया जाए और एक साल के भीतर-भीतर दूध का दूध और पानी को पानी होना चाहिए। जो गुनहगार हो, वह जेल चला जाए, जो निर्दोष हों, वे बेदाग होकर वे दुनिया के सामने खड़े हो जाएँ। क्यों राजनीतिक कारणों से इतने गुनाह रजिस्टर होते हैं, कई निर्दोष लोग मारे जाते है? हम देश और दुनिया को बताएँ कि कम से कम 2015 के अंदर हम एक ऐसे हिन्दुस्तान को सदन में देखेंगे, चाहे वह लोक सभा हो या राज्य सभा हो, जहाँ पर बैठा हुआ कोई व्यक्ति ऐसा नही होगा जिस पर कोई दाग लगा होगा। दुनिया के अंदर हम एक शुरुआत कर सकते हैं। अगर हम इस प्रकार से एक बार लोक सभा को क्‍लीन कर दें तो फिर राजनीतिक दलों को भी टिकटें देते समय 50 बार सोचना पडेगा। अगर हम एक साल के भीतर यह सफाई कर देते हैं तो सीटें खाली होने लगेंगी, कोई हिम्मत नहीं करेगा। यह क्रम बाद में असेम्बलीज़ में ले जाया जाए और फिर घीरे-धीरे कॉर्पोरेशन में ले जाया जाए। जब एक बार माहौल बन जाएगा और वह सर्वसम्मति से बनेगा तो हम राजनीति को अपराधीकरण से मुक्त कर सकते हैं। इसकी शुरुआत करने का यह सही तरीका हैं। इसलिए राष्टपति जी के अभिभाषण में इस बात का भी उल्लेख किया गया हैं। मैं नहीं मानता हूं कि कोई ऐसा भी होगा, जो इससे मुक्ति न चाहता हो। जिस पर एफआईआर होगी, वह भी कहेगा- साहब, यह तलवार 15 साल से लटक रही है, हर बार मुझे नामांकन करते समय लिखना पड़ता है, हर बार एनजीओ के द्वारा अखबार में छपता है कि इसके ऊपर 30 गुनाह हैं, इसके ऊपर 25 गुनाह है। इससे हर कोई मुक्ति चाहता है। हम न्याय की प्रक्रिया को इस प्रकार से संचालित करें।

मैं मानता हूँ कि सभी सदस्य, चाहे वे लोक सभा के हों, राज्य सभा के हों, ये सब मिलकर इस बात के लिए सहयोग करेंगे और हम उस दि‍शा में सुप्रीम कोर्ट की मदद लेकर जो गुनाहगार हैं उसके लि‍ए जेल हो, जो बेगुनाह हों वह बेदाग दुनि‍यां के सामने प्रस्‍तुत हो, उसकी व्‍यवस्‍था हमें करनी चाहि‍ए। और इन दो सदनों में वह सामर्थ्‍य है कि‍ ये उस काम को कर सकते हैं। ऐसे अनेक वि‍षय हैं।

हम लोग यहां से शुरूआत करें और उसके बाद बाकी हो जाएगा। लेकि‍न मैं आपकी भावना का आदर करता हूं कि‍ कोई बचना नहीं चाहि‍ए। कानून का राज होना चाहि‍ए, बेगुनाहों को सुरक्षा मि‍लनी चाहि‍ए और गुनाहगारों को सजा मि‍लनी चाहि‍ए। इसीलि‍ए तो अभी तो जो ब्‍लैक मनी के लि‍ए दो साल से एस.आई.टी. बनाना लटक रहा था, हमने आते ही उस काम को कर दि‍या। उस काम को कर दिया, क्‍योंकि‍ यह हमारी प्राथमि‍कता है। हम में से कोई नहीं जानता कि वे ब्‍लैक मनी वाले कौन हैं, लेकि‍न देश की जनता के सामने यह सत्‍य आना जरूरी है कि‍ ब्‍लैक मनी है या नहीं है, तो कि‍सकी है, तो कि‍तनी है, कैसे आई और कहां गई, देश को पता तो चले और अगर नहीं है तो देश से इस प्रकार का धुंआ हट जाएगा। देश एक शांति का आनंद लेगा, इसलिए ऐसे कामों में कोताही बरते बिना हिम्‍मत के साथ आगे बढ़ना चाहिए और अगर हम आगे बढ़ते हैं तो देश के सामान्‍य व्‍यक्ति की संसद के प्रति श्रद्धा बढ़ेगी, लोकतंत्र के प्रति उसकी श्रद्धा बढ़ेगी और सरकारी व्‍यवस्‍था में वह भरोसा करने लगेगा।

आज देश के सामने सबसे बड़ा संकट है कि उसका भरोसा टूट गया है और यह भरोसा इस हद तक टूटा है कि यहां बैठे हुए लोग भी कभी मोबाइल फोन से किसी को एस.एम.एस करते होंगे और बाद में फोन करते होंगे कि मेरा एसएमएस मिला? क्‍यों? भरोसा टूट गया है। भरोसा टूट गया, वरना भरोसा होना चाहिए कि मेरे मोबाइल से मैंने एस.एम.एस भेजा है तो गया ही होगा। लेकिन फोन करके पूछता है कि मैंने कोई एस.एम.एस किया था, वह मिला क्‍या? यह जो भरोसा टूट गया है उसको पुन: स्‍थापित करने की आवश्यकता है। सरकारी अस्‍पताल में गया तो उसको विश्‍वास होना चाहिए कि उसकी बीमारी ठीक होगी। बच्‍चा सरकारी स्‍कूल में गया तो मां-बाप को भरोसा होना चाहिए कि उसकी पढ़ाई में कोई तकलीफ नहीं होगी, यह भरोसा होना चाहिए और यह भरोसा पैदा करना एक बहुत बड़ा चैलेंज है, लेकिन हम मिल बैठकर उस काम को करें, तो कर सकते हैं। आप सबने जो सुझाव दिए हैं, सभी सुझाव हमारे लिए सम्‍माननीय हैं और मैं कहता हूं और मैं बड़ी नम्रता के साथ कहता हूं, भले ही हम विजयी होकर आए हों, भले ही देश की जनता ने कई वर्षों के बाद हमारा इतना बड़ा समर्थन किया, लेकिन अगर आपका समर्थन नहीं, तो वह समर्थन अधूरा है, और इसलिए हम आपको साथ लेकर चलना चाहते हैं। जरूरत पड़ी तो आपके मार्गदर्शन में चलना चाहते हैं और यह कोई नई बात नहीं है। जब नरसिंह राव जी की सरकार थी, जेनेवा के अंदर एक कांफ्रेंस में जाना था, पाकिस्‍तान के खिलाफ एक लॉबीइंग करने की आवश्‍यकता थी और नरसिंह राव जी ने अटल बिहारी वाजपेयी जी को पसंद किया और उनको डेलीगेशन के रूप में भेजा था और उसक काम को किया था। तो सारी जो अच्‍छी बातें हैं उन बातों को हमें आगे बढ़ाना है और इसलिए हम देश के लिए काम करने वाले लोग हैं। दल से बड़ा देश होता है, इस मंत्र को लेकर चलना है और इस पवित्र सदन में उस मंत्र को उजागर करने के लिए हम लोग प्रयास करेंगे। आपका सहयोग रहेगा तो समस्‍याओं का समाधान करने की सुविधा और ज्‍यादा तेज होगी। राजनीति करने के लिए आखिरी वर्ष काफी होता है, अभी तो चार साल सिर्फ राष्‍ट्र हित के लिए सोचें, राष्‍ट्रनीति के लिए सोचें। जय और पराजय में कड़वाहट आई है, उसको बाहर रख करके आएं। आती है कड़वाहट। इतनी कड़वाहट के साथ आगे बढ़ने की जरूरत नहीं है और यह तो वरिष्‍ठ गृह है, वरिष्‍ठ गृह का माहौल एक उमंग और उत्‍साह का होना चाहिए, उसको बरकरार करने के लिए हम कोशिश करेंगे।

मुझे विश्‍वास है कि देश के सपनों को पूरा करने के लिए सिर्फ विजयी लोग ही नहीं, चुने हुए सब लोगों का जो दायित्‍व होता है, उस दायित्‍व को पूरा करने में हम पीछे नहीं रहेंगे। फिर एक बार, सदन के सामने अपनी बात रखने का मुझे अवसर मिला, मैं आपका आभारी हूं और मैं पूरे सदन से प्रार्थना करता हूं कि जो प्रस्‍ताव आपके सामने रखा गया है, उस प्रस्‍ताव का सर्वस‍म्‍मति से समर्थन करते हुए देश को हम नई दिशा दें, नई ताकत दें। बहुत-बहुत धन्‍यवाद।

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ମୋର ପ୍ରିୟ ଦେଶବାସୀଗଣ, ନମସ୍କାର । ୨୦୨୫ ବର୍ଷ ଆମ ଦ୍ୱାରଦେଶରେ ଉପନୀତ । ୨୬ ଜାନୁଆରୀ ୨୦୨୫ ଦିନ ଆମ ସମ୍ବିଧାନ କାର୍ଯ୍ୟକାରୀ ହେବାର ୭୫ ବର୍ଷ ପୂରଣ ହେବାକୁ ଯାଉଛି । ଆମ ସମସ୍ତଙ୍କ ପାଇଁ ଏହା ଏକ ଗୌରବର କଥା । ଆମ ସମ୍ବିଧାନ ନିର୍ମାତାଗଣ ଆମକୁ ଯେଉଁ ସମ୍ବିଧାନ ଅର୍ପଣ କରିଯାଇଛନ୍ତି, ତାହା ସବୁ ପରିସ୍ଥିତିରେ ଠିକ୍ ପ୍ରମାଣିତ ହୋଇଛି । ସମ୍ବିଧାନ ଆମକୁ ପଥ ପ୍ରଦର୍ଶିତ କରୁଥିବା ଆଲୋକ ପୁଞ୍ଜ, ଏହା ଆମ ମାର୍ଗଦର୍ଶକ । ଭାରତର ସମ୍ବିଧାନ ଯୋଗୁଁ ହିଁ ଆଜି ମୁଁ ଏଠାରେ ଉପସ୍ଥିତ ହୋଇ ଆପଣଙ୍କ ସହ ଭାବ ବିନିମୟ କରିପାରୁଛି । ଏ ବର୍ଷ ନଭେମ୍ବର ୨୬ ତାରିଖ ସମ୍ବିଧାନ ଦିବସଠାରୁ ଏକବର୍ଷ ବ୍ୟାପୀ ଅନେକ କାର୍ଯ୍ୟକ୍ରମ ଆରମ୍ଭ ହୋଇଛି । ଦେଶର ନାଗରିକମାନଙ୍କୁ ସମ୍ବିଧାନର ଐତିହ୍ୟ ସହ ସଂଯୋଜିତ କରିବା ପାଇଁ constitution75.com ନାମରେ ଏକ ସ୍ୱତନ୍ତ୍ର ୱେବସାଇଟ୍ ମଧ୍ୟ ସୃଷ୍ଟି କରାଯାଇଛି । ଏଥିରେ ଆପଣ ସମ୍ବିଧାନର ମୁଖବନ୍ଧ ପାଠ କରି ନିଜ ଭିଡିଓ ଅପଲୋଡ୍ କରିପାରିବେ । ଭିନ୍ନ ଭିନ୍ନ ଭାଷାରେ ସମ୍ବିଧାନ ପଢ଼ି ପାରିବେ । ସମ୍ବିଧାନ ବିଷୟରେ ପ୍ରଶ୍ନ ମଧ୍ୟ ପଚାରି ପାରିବେ । ଏହି ୱେବସାଇଟ୍ ପରିଦର୍ଶନ କରି ଏଥିରେ ଅଂଶଗ୍ରହଣ କରିବା ପାଇଁ ମୁଁ ‘ମନ୍ କି ବାତ୍’ର ଶ୍ରୋତା, ବିଦ୍ୟାଳୟରେ ପଢ଼ୁଥିବା ଛାତ୍ରଛାତ୍ରୀ, କଲେଜରେ ପଢ଼ୁଥିବା ଯୁବବର୍ଗ ସମସ୍ତଙ୍କୁ ଅନୁରୋଧ କରୁଛି ।

ବନ୍ଧୁଗଣ, ଆସନ୍ତା ମାସ ୧୩ ତାରିଖ ଠାରୁ ପ୍ରୟାଗରାଜରେ ମହାକୁମ୍ଭ ମଧ୍ୟ ଅନୁଷ୍ଠିତ ହେବାକୁ ଯାଉଛି । ଏବେ ସେଠାରେ ସଙ୍ଗମକୁଳରେ ଜୋରଦାର୍ ପ୍ରସ୍ତୁତି ଚାଲିଛି । ମୋର ମନେ ଅଛି, ଏଇ କିଛି ଦିନ ତଳେ ଯେତେବେଳେ ମୁଁ ପ୍ରୟାଗରାଜ୍ ଯାଇଥିଲି, ସେତେବେଳେ ହେଲିକପ୍ଟରରୁ ସମ୍ପୂର୍ଣ୍ଣ କୁମ୍ଭ କ୍ଷେତ୍ର ଦେଖି ମନ ଆନନ୍ଦିତ ହୋଇଯାଇଥିଲା । ଏତେ ବିଶାଳ ! ଏତେ ସୁନ୍ଦର ! ଏତେ ଭବ୍ୟ !

ବନ୍ଧୁଗଣ, ମହାକୁମ୍ଭର ବିଶେଷତ୍ୱ କେବଳ ଏହାର ବିଶାଳତା ନୁହେଁ । କୁମ୍ଭର ବିଶେଷତ୍ୱ ଏହାର ବିବିଧତାରେ ମଧ୍ୟ ରହିଛି । ଏହି ଆୟୋଜନରେ କୋଟି କୋଟି ଲୋକ ଏକତ୍ରିତ ହୁଅନ୍ତି । ଲକ୍ଷ ଲକ୍ଷ ସାଧୁ ସନ୍ଥ, ହଜାର ହଜାର ପରମ୍ପରା, ଶହ ଶହ ସମ୍ପ୍ରଦାୟ, ଅନେକ ଆଖଡ଼ା, ସମସ୍ତେ ଏହି ଆୟୋଜନରେ ଅଂଶଗ୍ରହଣ କରନ୍ତି । ଏହି କୁମ୍ଭମେଳାରେ କେବେ କୌଣସି ଭେଦଭାବ ନ ଥାଏ । ନା ଏଠି କେହି ବଡ଼, ନା କେହି ସାନ । ବିବିଧତା ମଧ୍ୟରେ ଏକତାର ଏଭଳି ଦୃଶ୍ୟ ବିଶ୍ୱରେ ଆଉ କେଉଁଠି ବି ଦେଖିବାକୁ ମିଳେନାହିଁ । ତେଣୁ ଆମ କୁମ୍ଭ ଏକତାର ମହାକୁମ୍ଭ ମଧ୍ୟ ହୋଇଥାଏ । ଏଥରର ମହାକୁମ୍ଭ ମଧ୍ୟ ଏକତାର ମହାକୁମ୍ଭର ମନ୍ତ୍ରକୁ ସଶକ୍ତ କରିବ । କୁମ୍ଭରେ ଅଂଶଗ୍ରହଣ କରିବା ସହ ଏକତାର ଏହି ସଂକଳ୍ପକୁ ମଧ୍ୟ ନିଜ ସହ ନେଇ ଫେରିବା ପାଇଁ ମୋର ଆପଣ ସମସ୍ତଙ୍କୁ ଅନୁରୋଧ । ଆମେ ସମାଜରେ ବିଭାଜନ ଓ ବିଦ୍ୱେଷର ଭାବନାକୁ ନଷ୍ଟ କରିବାର ସଂକଳ୍ପ ମଧ୍ୟ ଗ୍ରହଣ କରିବା । ସଂକ୍ଷେପରେ କହିବାକୁ ହେଲେ ମୁଁ ଏତିକି କହିବି . . .

ମହାକୁମ୍ଭର ଏଇ ସନ୍ଦେଶ, ଏକ୍ ହେଉ ସାରା ଦେଶ ।

ମହାକୁମ୍ଭର ଏଇ ସନ୍ଦେଶ, ଏକ୍ ହେଉ ସାରା ଦେଶ ।

ଆଉ ଅନ୍ୟ ଭାଷାରେ କହିବାକୁ ଗଲେ, କହିବି . . .

ଗଙ୍ଗାର ଧାରା ବହୁ ନିରନ୍ତର, ବିଭାଜିତ ନ ହେଉ ସମାଜ ଆମର ।

ଗଙ୍ଗାର ଧାରା ବହୁ ନିରନ୍ତର, ବିଭାଜିତ ନ ହେଉ ସମାଜ ଆମର ।

ବନ୍ଧୁଗଣ, ଏଥର ପ୍ରୟାଗରାଜରେ ଦେଶ ବିଦେଶର ଶ୍ରଦ୍ଧାଳୁ ଡିଜିଟାଲ୍ ମହାକୁମ୍ଭର ମଧ୍ୟ ସାକ୍ଷୀ ହେବେ । ଡିଜିଟାଲ୍ ନେଭିଗେସନ୍ ସାହାର୍ଯ୍ୟରେ ଆପଣମାନେ ବିଭିନ୍ନ ଘାଟ, ମନ୍ଦିର, ସାଧୁସନ୍ଥଙ୍କ ଆଖଡ଼ା ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ପହଂଚିବାର ରାସ୍ତା ପାଇପାରିବେ । ଏହି ନେଭିଗେସନ୍ ସିଷ୍ଟମ୍ ଆପଣଙ୍କୁ ପାର୍କିଂ ସ୍ଥଳ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ପହଂଚିବା ପାଇଁ ମଧ୍ୟ ସାହାର୍ଯ୍ୟ କରିବ । କୁମ୍ଭ ଆୟୋଜନରେ ପ୍ରଥମ ଥର ପାଇଁ ଏ.ଆଇ. ଚାଟବୋଟର ବ୍ୟବହାର ହେବ । ଏ.ଆଇ. ଚାଟବୋଟ୍ ମାଧ୍ୟମରେ ୧୧ଟି ଭାରତୀୟ ଭାଷାରେ କୁମ୍ଭ ସମ୍ପର୍କିତ ସୂଚନା ପ୍ରାପ୍ତ କରାଯାଇପାରିବ । ଏହି ଚାଟବୋଟରେ text ଟାଇପ୍ କରି କିମ୍ବା ନିଜେ କହି ଯେକୌଣସି ପ୍ରକାର ସାହାଯ୍ୟ ପାଇଁ ଅନୁରୋଧ କରିପାରିବେ । ସମ୍ପୂର୍ଣ୍ଣ ମେଳା କ୍ଷେତ୍ରଟି ଏ.ଆଇ. ଶକ୍ତିଯୁକ୍ତ କ୍ୟାମେରାର ନଜରରେ ରହିବ । କୁମ୍ଭରେ ଯଦି କେହି ନିଜ ପ୍ରିୟପରିଜନଙ୍କ ଠାରୁ ନିଖୋଜ ହୋଇଥାଆନ୍ତି, ତାହେଲେ ଏହି କ୍ୟାମେରା ଗୁଡ଼ିକ ସାହାର୍ଯ୍ୟରେ ସେମାନଙ୍କୁ ଠାବ କରିବାରେ ମଧ୍ୟ ସାହାଯ୍ୟ ମିଳିବ । ଶ୍ରଦ୍ଧାଳୁମାନେ ଡିଜିଟାଲ୍ ଲଷ୍ଟ ଆଣ୍ଡ ଫାଉଣ୍ଡ ସେଂଟରର ସୁବିଧା ମଧ୍ୟ ପାଇପାରିବେ । ଶ୍ରଦ୍ଧାଳୁମାନଙ୍କୁ ମୋବାଇଲ ମାଧ୍ୟମରେ ହିଁ ସରକାରଙ୍କ ସ୍ୱୀକୃତିପ୍ରାପ୍ତ ଟୁର୍ ପ୍ୟାକେଜ୍, ରହିବା ସୁବିଧା ଏବଂ ହୋମଷ୍ଟେ ବିଷୟରେ ସୂଚନା ପ୍ରଦାନ କରାଯିବ । ମହାକୁମ୍ଭ ଯାତ୍ରା କଲେ ଆପଣମାନେ ମଧ୍ୟ ଏହି ସୁବିଧା ଗୁଡ଼ିକର ଲାଭ ଉଠାଇ ପାରିବେ । ଆଉ ହଁ, #ଏକତା କା ମହାକୁମ୍ଭ ରେ ନିଜର ସେଲ୍ଫି ନିଶ୍ଚୟ ଅପଲୋଡ୍ କରିବେ ।

ବନ୍ଧୁଗଣ, ମନ୍ କି ବାତ୍ ଅର୍ଥାତ୍ ଏମକେବିରେ ଏଥର କେଟିବି କଥା । ଅଧିକାଂଶ ବୟସ୍କ ଲୋକେ କେଟିବି ବିଷୟରେ ଜାଣିନଥିବେ । କିନ୍ତୁ, ପିଲାମାନଙ୍କୁ ଥରେ ପଚାରନ୍ତୁ, କେଟିବି ସେମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରେ ସୁପରହିଟ୍ । କେଟିବି ମାନେ କ୍ରିଷ, ତ୍ରିଶ୍ ଆଉ ବାଲ୍ଟିବୟ । ହୁଏତ ଆପଣ ଜାଣିଥିବେ, ଏହା ପିଲାମାନଙ୍କ ମନପସନ୍ଦର ଆନିମେଶନ୍ ସିରିଜ୍ ଏବଂ ଏହାର ନାଁ କେଟିବି-ଭାରତ ହେଁ ହମ୍ । ଏବେ ଏହାର ଦ୍ୱିତୀୟ ସିଜିନ୍ ମଧ୍ୟ ଆସିଗଲାଣି । ଏହି ତିନୋଟି ଆନିମେଶନ୍ କ୍ୟାରେକ୍ଟର ଆମକୁ ଭାରତର ସ୍ୱାଧୀନତା ସଂଗ୍ରାମର ସେହି ନାୟକ-ନାୟିକାମାନଙ୍କ ବିଷୟରେ ଜଣାଉଛନ୍ତି, ଯେଉଁମାନଙ୍କ ସମ୍ପର୍କରେ ଅଧିକ ଆଲୋଚନା ହୁଏ ନାହିଁ । ନିକଟ ଅତୀତରେ ଏହାର ସିଜିନ-ଟୁ ଏକ ନିଆରା ଢଙ୍ଗରେ ଗୋଆରେ ଭାରତୀୟ ଆନ୍ତର୍ଜାତିକ ଚଳଚ୍ଚିତ୍ର ମହୋତ୍ସବରେ ଉଦଘାଟିତ ହେଲା । ସବୁଠାରୁ ସୁନ୍ଦର କଥା ହେଉଛି, ଏହି ସିରିଜ୍ କେବଳ ଅନେକ ଭାରତୀୟ ଭାଷାରେ ନୁହେଁ, ବରଂ ବିଦେଶୀ ଭାଷାରେ ମଧ୍ୟ ପ୍ରସାରିତ ହେଉଛି । ଏହାକୁ ଦୂରଦର୍ଶନ ସହ ଅନ୍ୟ ଓଟିଟି ପ୍ଲାଟଫର୍ମରେ ମଧ୍ୟ ଦେଖାଯାଇପାରିବ ।

ବନ୍ଧୁଗଣ, ଆମ ଆନିମେଶନ୍ ଫିଲ୍ମ, ଚଳଚ୍ଚିତ୍ର, ଟେଲିଭିଜନ ସିରିଆଲ ଗୁଡ଼ିକର ଲୋକପ୍ରିୟତା ଏହା ଦର୍ଶାଉଛି ଯେ, ଭାରତର କ୍ରିଏଟିଭ୍ ଇଣ୍ଡଷ୍ଟ୍ରି ବା ସୃଜନାତ୍ମକ ଶିଳ୍ପରେ କେତେ କ୍ଷମତା ଭରିରହିଛି ! ଏହି ଶିଳ୍ପର କେବଳ ଦେଶର ଉନ୍ନତିରେ ଏକ ବଡ଼ ଯୋଗଦାନ ରହିଛି ତାହା ନୁହେଁ ବରଂ ଆମ ଅର୍ଥନୀତିକୁ ମଧ୍ୟ ଏହା ନୂତନ ଶିଖରକୁ ନେଇଯାଉଛି । ଆମ ଚଳଚ୍ଚିତ୍ର ଏବଂ ମନୋରଞ୍ଜନ ଶିଳ୍ପ ବହୁତ ବିଶାଳ । ଦେଶର ଅନେକ ଭାଷାରେ ଚଳଚ୍ଚିତ୍ର ନିର୍ମାଣ ଚାଲିଛି, କ୍ରିଏଟିଭ୍ କଂଟେଟ୍ ମଧ୍ୟ ସୃଷ୍ଟି କରାଯାଉଛି । ମୁଁ ଆମ ଚଳଚ୍ଚିତ୍ର ଏବଂ ମନୋରଞ୍ଜନ ଶିଳ୍ପ ଜଗତକୁ ଏଥିପାଇଁ ଅଭିନନ୍ଦନ ଜଣାଉଛି, କାରଣ, ଏହା ଏକ ଭାରତ- ଶ୍ରେଷ୍ଠ ଭାରତର ଭାବନାକୁ ସଶକ୍ତ କରିଛି ।

ବନ୍ଧୁଗଣ, ୨୦୨୪ରେ ଆମେ ଚଳଚ୍ଚିତ୍ର ଦୁନିଆର ଅନେକ ମହାନ ବ୍ୟକ୍ତିତ୍ୱମାନଙ୍କର ୧୦୦ତମ ଜୟନ୍ତୀ ପାଳନ କରୁଛୁ । ଏହି ମହାନ କଳାକାରମାନେ ଭାରତୀୟ ସିନେମାକୁ ବିଶ୍ୱସ୍ତରରେ ପରିଚିତ କରାଇଲେ । ରାଜକାପୁରଜୀ ନିଜ ଚଳଚ୍ଚିତ୍ର ମାଧ୍ୟମରେ ବିଶ୍ୱକୁ ଭାରତର Soft Power ସହ ପରିଚିତ କରାଇଲେ । ରଫି ସାହେବଙ୍କ ସ୍ୱରରେ ଏଭଳି କୁହୁକ ଭରି ରହିଥିଲା, ଯାହା ପ୍ରତ୍ୟେକ ହୃଦୟକୁ ସ୍ପର୍ଶ କରୁଥିଲା । ତାଙ୍କ ସ୍ୱର ଅତି ଚମତ୍କାର ଥିଲା । ଭକ୍ତି ଗୀତ ହେଉ, ରୋମାଣ୍ଟିକ୍ ଗୀତ କିମ୍ବା ଦୁଃଖଭରା ଗୀତ - ପ୍ରତ୍ୟେକ ଭାବାବେଗକୁ ସେ ନିଜ ସ୍ୱରରେ ଜୀବନ୍ତ କରିଦେଉଥିଲେ । ଜଣେ କଳାକାର ରୂପରେ ତାଙ୍କର ମହନୀୟତାର ଅନୁମାନ ଏହି କଥାରୁ କରିହେବ ଯେ, ଆଜିର ଯୁବପିଢ଼ି ମଧ୍ୟ ତାଙ୍କ ଗୀତଗୁଡ଼ିକୁ ସେତିକି ମନଧ୍ୟାନ ଦେଇ ଶୁଣୁଛନ୍ତି । ଏହାହିଁ ତ ହେଉଛି କାଳାତୀତ କଳାର ପରିଚୟ । ଅକ୍କିନେନୀ ନାଗେଶ୍ୱର ରାଓ ଗାରୁ ତେଲୁଗୁ ସିନେମାକୁ ନୂତନ ଶିଖରରେ ପହଞ୍ଚାଇଛନ୍ତି । ତାଙ୍କ ଚଳଚ୍ଚିତ୍ର ଗୁଡ଼ିକ ଭାରତୀୟ ପରମ୍ପରା ଏବଂ ମୂଲ୍ୟବୋଧକୁ ଖୁବ ଭଲଭାବେ ପ୍ରତିଫଳିତ କରୁଛି । ତପନ ସିହ୍ନାଙ୍କ କଥାଚିତ୍ର ଗୁଡ଼ିକ ସମାଜକୁ ଏକ ନୂତନ ଦୃଷ୍ଟିକୋଣ ପ୍ରଦାନ କରିଛି । ତାଙ୍କ ଚଳଚ୍ଚିତ୍ର ଗୁଡ଼ିକରେ ସାମାଜିକ ଚେତନା ଏବଂ ରାଷ୍ଟ୍ରୀୟ ଏକତାର ବାର୍ତ୍ତା ରହୁଥିଲା । ଏହି ମନିଷୀମାନଙ୍କ ଜୀବନ ଆମର ସମଗ୍ର ଚଳଚ୍ଚିତ୍ର ଜଗତ ପାଇଁ ପ୍ରେରଣାର ଉତ୍ସ ।

ବନ୍ଧୁଗଣ, ମୁଁ ଆପଣମାନଙ୍କୁ ଆଉ ଗୋଟିଏ ଖୁସି ଖବର ଦେବାକୁ ଚାହୁଁଛି । ଭାରତର ସୃଜନାତ୍ମକ ପ୍ରତିଭା ବା କ୍ରିଏଟିଭ୍ ଟାଲେଣ୍ଟ ବିଶ୍ୱ ଆଗରେ ଉପସ୍ଥାପିତ କରିବାର ଗୋଟିଏ ବଡ଼ ସୁଯୋଗ ଆସୁଛି । ଆସନ୍ତା ବର୍ଷ ଆମ ଦେଶରେ ପ୍ରଥମ ଥର ପାଇଁ ୱାର୍ଲଡ୍ ଅଡିଓ ଭିଜୁଆଲ୍ ଏଂଟରଟେନମେଣ୍ଟ ସମିଟ୍ ଅର୍ଥାତ୍ ୱେଭସ ସମିଟର ଆୟୋଜନ ହେବାକୁ ଯାଉଛି । ଆପଣମାନେ ଦାଭୋସ୍ ବିଷୟରେ ଶୁଣିଥିବେ, ଯେଉଁଠାରେ ବିଶ୍ୱର ଆର୍ଥିକ ଜଗତର ମହାରଥିମାନେ ଏକତ୍ରିତ ହୋଇଥାଆନ୍ତି । ସେହିଭଳି ୱେଭସ ସମିଟରେ ସାରା ବିଶ୍ୱର ଗଣମାଧ୍ୟମ ଏବଂ ମନୋରଞ୍ଜନ ଶିଳ୍ପର ମହାରଥି, ସୃଜନ ଜଗତର ବ୍ୟକ୍ତିବିଶେଷ ଭାରତକୁ ଆସିବେ । ଏହି ସମ୍ମିଳନୀ ଭାରତକୁ ଗ୍ଲୋବାଲ୍ କଣ୍ଟେଟ୍ କ୍ରିଏଶନର ହବ୍ କରିବା ଦିଗରେ ଗୋଟିଏ ଗୁରୁତ୍ୱପୂର୍ଣ୍ଣ ପଦକ୍ଷେପ । ଏହି ସୂଚନା ଦେବାରେ ମୁଁ ଗର୍ବ ଅନୁଭବ କରୁଛି ଯେ, ଏହି ସମ୍ମିଳନୀ ପାଇଁ ପ୍ରସ୍ତୁତିରେ ଆମ ଦେଶର ୟଙ୍ଗ୍ କ୍ରିଏଟର୍ସ ବା ନୂତନ ସୃଜନଶୀଳ ପ୍ରତିଭାମାନେ ଖୁବ ଉତ୍ସାହର ସହିତ ଲାଗି ପଡ଼ିଛନ୍ତି । ଆମେ ୫ ଟ୍ରିଲିଅନ୍ ଡଲାର୍ ଇକୋନମୀ ଦିଗକୁ ଅଗ୍ରସର ହେଉଥିବା ସମୟରେ ଆମ କ୍ରିଏଟର୍ ଇକୋନମୀ ଏକ ନୂତନ ଶକ୍ତି ପ୍ରଦାନ କରୁଛି । ମୁଁ ଭାରତର ସମଗ୍ର ମନୋରଞ୍ଜନ ଏବଂ ସୃଜନାତ୍ମକ ଶିଳ୍ପକୁ ଅନୁରୋଧ କରୁଛି - ଆପଣ ଯୁବ-ପ୍ରତିଭା ହୁଅନ୍ତୁ କିମ୍ବା ପ୍ରତିଷ୍ଠିତ କଳାକାର, ବଲିଉଡ୍ ସହ ଜଡ଼ିତ ହୋଇଥାଆନ୍ତୁ କିମ୍ବା ଆଞ୍ଚଳିକ ସିନେମା ଜଗତ ସହ, ଟେଲିଭିଜନ ଶିଳ୍ପର ପେଶାଗତ ବ୍ୟକ୍ତି ହୋଇଥାଆନ୍ତୁ କିମ୍ବା ଆନିମେଶନ୍ ବିଶେଷଜ୍ଞ, ଗେମିଂ ସହ ଜଡ଼ିତ ଥାଆନ୍ତୁ ବା ଏଂଟରଟେନମେଣ୍ଟ ଟେକ୍ନୋଲଜିର ଇନ୍ନୋଭେଟର୍ ହେଇଥାଆନ୍ତୁ - ଆପଣ ସମସ୍ତେ ୱେଭସ ସମ୍ମିଳନୀରେ ଭାଗ ନିଅନ୍ତୁ ।

ମୋର ପ୍ରିୟ ଦେଶବାସୀଗଣ, ଆପଣ ସମସ୍ତେ ଜାଣନ୍ତି ଯେ ଭାରତୀୟ ସଂସ୍କୃତିର ଆଲୋକ ଆଜି କିଭଳି ପୃଥିବୀର କୋଣ ଅନୁକୋଣରେ ବିଛାଡ଼ି ହୋଇ ପଡ଼ୁଛି । ଆଜି ମୁଁ ଆପଣଙ୍କୁ ତିନି ମହାଦ୍ୱୀପରୁ ଏଭଳି ପ୍ରୟାସଗୁଡ଼ିକ ବିଷୟରେ କହିବି, ଯାହା ଆମ ସାଂସ୍କୃତିକ ଐତିହ୍ୟର ବୈଶ୍ୱିକ ବିସ୍ତୃତିର ସାକ୍ଷୀ । ସେମାନେ ପରସ୍ପରଠାରୁ ବହୁତ ଦୂରରେ, କିନ୍ତୁ ଭାରତକୁ ଜାଣିବାରେ ଓ ଆମ ସଂସ୍କୃତିରୁ ଶିଖିବା କ୍ଷେତ୍ରରେ ସେମାନଙ୍କ ଆଗ୍ରହ ଉଦ୍ଦୀପନା ସମାନ ।

ବନ୍ଧୁଗଣ, ପେଣ୍ଟିଙ୍ଗ୍‌ସ ଯେତେ ବେଶୀ ରଙ୍ଗୀନ ହୋଇଥାଏ ସେତିକି ସୁନ୍ଦର ଦେଖାଯାଇଥାଏ । ଆପଣଙ୍କ ମଧ୍ୟରୁ ଯେଉଁମାନେ ଟିଭି ମାଧ୍ୟମରେ ‘ମନ୍‌ କୀ ବାତ୍‌’ ସହ ଯୋଡ଼ି ହୋଇଛନ୍ତି, ସେମାନେ ଏବେ କିଛି ପେଣ୍ଟିଙ୍ଗ୍‌ସକୁ ଟିଭିରେ ଦେଖି ମଧ୍ୟ ପାରିବେ । ଏସବୁ ପେଣ୍ଟିଙ୍ଗ୍ସରେ ଆମର ଦେବାଦେବୀ, ନୃତ୍ୟକଳା ଓ ମହାପୁରୁଷମାନଙ୍କୁ ଦେଖି ଆପଣଙ୍କୁ ବହୁତ ଭଲ ଲାଗିବ । ଏଥିରେ ଆପଣଙ୍କୁ ଭାରତରେ ଦେଖାଯାଉଥିବା ଜୀବଜନ୍ତୁଙ୍କଠାରୁ ଆରମ୍ଭ କରି ଆଉ ବହୁତ କିଛି ଦେଖିବାକୁ ମିଳିବ । ଏଥିରେ ତାଜମହଲର ଏକ ସୁନ୍ଦର ଚିତ୍ର ମଧ୍ୟ ସାମିଲ୍‌ ହୋଇଛି, ଯାହାକୁ ୧୩ ବର୍ଷର ଝିଅଟିଏ ଆଙ୍କିଛି । ଆପଣଙ୍କୁ ଏହା ଜାଣି ଆଶ୍ଚର୍ଯ୍ୟ ଲାଗିବ ଯେ ଏହି ଦିବ୍ୟାଙ୍ଗ ଝିଅଟି ନିଜ ପାଟିରେ ଏହି ଚିତ୍ରଟିକୁ ତିଆରି କରିଛି । ସବୁଠୁ ବଡ଼କଥା ହେଲା ଯେ ଏହାର ଚିତ୍ରଶିଳ୍ପୀ ଜଣକ ଭାରତର ନୁହନ୍ତି, ସେ ଇଜିପ୍ଟର ଜଣେ ବିଦ୍ୟାର୍ଥୀ । କିଛି ସପ୍ତାହ ତଳେ ଇଜିପ୍ଟର ପ୍ରାୟ ୨୩ ହଜାର ଛାତ୍ରଛାତ୍ରୀ ଏକ ପେଣ୍ଟିଂ ପ୍ରତିଯୋଗିତାରେ ଭାଗ ନେଇଥିଲେ । ସେଠାରେ ସେମାନଙ୍କୁ ଭାରତର ସଂସ୍କୃତି ଓ ଦୁଇ ଦେଶର ଐତିହାସିକ ସମ୍ପର୍କକୁ ବର୍ଣ୍ଣନା କରୁଥିବା ପେଣ୍ଟିଂ କରିବାର ଥିଲା । ମୁଁ ଏହି ପ୍ରତିଯୋଗିତାରେ ଭାଗ ନେଇଥିବା ସମସ୍ତ ଯୁବକଯୁବତୀଙ୍କୁ ପ୍ରଶଂସା କରୁଛି । ସେମାନଙ୍କ ସୃଜନଶୀଳତାର ଯେତେ ପ୍ରଶଂସା କଲେ ମଧ୍ୟ ତାହା କମ୍‌ ହେବ ।

ବନ୍ଧୁଗଣ, ଦକ୍ଷିଣ ଆମେରିକାର ଏକ ଦେଶ ହେଉଛି ପାରାଗୁଏ । ସେଠାରେ ରହୁଥିବା ଭାରତୀୟଙ୍କ ସଂଖ୍ୟା ହଜାରେରୁ ବେଶି ହେବନାହିଁ । ପାରାଗୁଏରେ ଏକ ଚମତ୍କାର ପ୍ରୟାସ ହେଉଛି । ସେଠାକାର ଭାରତୀୟ ଦୂତାବାସରେ ଏରିକା ହ୍ୟୁବର ମାଗଣା ଆୟୁର୍ବେଦ ପରାମର୍ଶ ଦିଅନ୍ତି । ଆୟୁର୍ବେଦ ପରାମର୍ଶ ନେବାପାଇଁ ଏବେ ତାଙ୍କ ନିକଟକୁ ବହୁ ସ୍ଥାନୀୟ ଲୋକ ଆସୁଛନ୍ତି । ଏରିକା ହ୍ୟୁବର୍ ଇଂଜିନିୟରିଂ ପଢ଼ିଛନ୍ତି ସତ, କିନ୍ତୁ ତାଙ୍କର ମନ ଆୟୁର୍ବେଦରେ ରହିଛି । ସେ ଆୟୁର୍ବେଦ ସହ ସଂପୃକ୍ତ ପାଠ୍ୟକ୍ରମ ପଢ଼ିଥିଲେ ଓ ସମୟକ୍ରମେ ସେ ସେଥିରେ ପାରଙ୍ଗମ ହୋଇପାରିଲେ ।

ବନ୍ଧୁଗଣ, ଏହା ଆମ ପାଇଁ ବହୁତ ଗର୍ବର କଥା ଯେ ପୃଥିବୀର ସବୁଠୁ ପ୍ରାଚୀନ ଭାଷା ତାମିଲ ଏବଂ ପ୍ରତ୍ୟେକ ଭାରତୀୟ ଏଥିପାଇଁ ଗର୍ବିତ । ବିଶ୍ୱର ବହୁ ଦେଶରେ ଏହାକୁ ଶିଖୁଥିବା ଲୋକଙ୍କ ସଂଖ୍ୟା କ୍ରମାଗତ ବଢ଼ିଚାଲିଛି । ଗତ ମାସର ଶେଷରୁ ଫିଜିରେ ଭାରତ ସରକାରଙ୍କ ସହଯୋଗରେ ତାମିଲ୍‌ ଶିକ୍ଷା କାର୍ଯ୍ୟକ୍ରମ ଆରମ୍ଭ ହୋଇଛି । ଗତ ୮୦ ବର୍ଷ ମଧ୍ୟରେ ପ୍ରଥମ ଥର ପାଇଁ ଫିଜିରେ ତାଲିମପ୍ରାପ୍ତ ଶିକ୍ଷକ ତାମିଲ୍‌ ଶିଖାଉଛନ୍ତି । ଆଜି ଫିଜିର ଛାତ୍ରଛାତ୍ରୀମାନେ ତାମିଲ ଭାଷା ଓ ସଂସ୍କୃତିକୁ ଶିଖିବା ପାଇଁ ଆଗ୍ରହୀ ଥିବା ଜାଣି ମୋତେ ବହୁତ ଖୁସି ଲାଗିଛି ।

ବନ୍ଧୁଗଣ, ଏ କଥା, ଏ ଘଟଣା କେବଳ ସଫଳତାର କାହାଣୀ ନୁହେଁ । ଏହା ଆମ ସାଂସ୍କୃତିକ ଐତିହ୍ୟର ଗାଥା ମଧ୍ୟ । ଏହି ଉଦାହରଣ ଆମକୁ ବହୁତ ଗର୍ବିତ କରିଥାଏ । କଳାରୁ ଆୟୁର୍ବେଦ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ଓ ଭାଷାରୁ ସଂଗୀତ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ଭାରତରେ ଏତେ ବିଷୟ ଅଛି, ଯାହା ପୃଥିବୀ ସାରା ବ୍ୟାପି ଚାଲିଛି ।

ବନ୍ଧୁଗଣ, ଏ ଶୀତ ଋତୁରେ ସମଗ୍ର ଦେଶରେ ବିଭିନ୍ନ କ୍ରୀଡ଼ା ଓ ଫିଟ୍‌ନେସ୍‌କୁ ନେଇ ବିଭିନ୍ନ କାର୍ଯ୍ୟକ୍ରମ ଆୟୋଜିତ ହେଉଛି । ମୁଁ ଖୁସି ଯେ ଲୋକେ ଫିଟ୍‌ନେସ୍‌କୁ ନିଜ ଦିନଚର୍ଯ୍ୟାରେ ସାମିଲ୍‌ କରୁଛନ୍ତି । କାଶ୍ମୀରରେ ସ୍କିଙ୍ଗ୍ ଠାରୁ ଗୁଜରାଟର ଗୁଡ଼ିଉଡ଼ା ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ, ସବୁ ସ୍ଥାନରେ ଖେଳର ଉତ୍ସାହ ଦେଖିବାକୁ ମିଳୁଛି । #SundayOnCycle I #CyclingTuesday ଭଳି ଅଭିଯାନ ଦ୍ୱାରା ସାଇକଲ ଚାଳନାକୁ ପ୍ରୋତ୍ସାହନ ମିଳୁଛି ।

ବନ୍ଧୁଗଣ, ମୁଁ ଆପଣଙ୍କୁ ଏଭଳି ଏକ ନିଆରା କଥା କହିବାକୁ ଚାହୁଁଛି ଯାହା ଆମ ଦେଶରେ ଆସିଥିବା ପରିବର୍ତ୍ତନ ଓ ଯୁବବନ୍ଧୁମାନଙ୍କର ଉତ୍ସାହ ଉଦ୍ଦୀପନାର ପ୍ରତୀକ । ଆପଣ ଜାଣନ୍ତି କି ଆମର ବସ୍ତରରେ ଏକ ଅନନ୍ୟ ଅଲିମ୍ପିକ୍‌ ଆରମ୍ଭ ହୋଇଛି ! ଆଜ୍ଞା ହଁ, ପ୍ରଥମ ଥର ଆୟୋଜିତ ବସ୍ତର ଅଲିମ୍ପିକ୍‌ ଦ୍ୱାରା ବସ୍ତରରେ ଏକ ନୂଆ ବିପ୍ଳବ ଜନ୍ମ ନେଉଛି । ମୋ ପାଇଁ ବହୁତ ଖୁସିର କଥା ଯେ ବସ୍ତର ଅଲିମ୍ପିକର ସ୍ୱପ୍ନ ସାକାର ହୋଇଛି । ଆପଣଙ୍କୁ ମଧ୍ୟ ଜାଣିବା ପରେ ବହୁତ ଖୁସି ଲାଗିବ ଯେ ଏହା ଏଭଳି ଏକ ଅଞ୍ଚଳରେ ହେଉଛି, ଯାହା ଏକଦା ମାଓବାଦୀ ହିଂସାଗ୍ରସ୍ତ ଅଞ୍ଚଳ ଥିଲା । ବସ୍ତର ଅଲିମ୍ପିକର ମାସ୍କଟ୍‌ ହେଉଛି ‘ବଣ ମଇଁଷି’ ଓ ‘ପାହାଡ଼ୀ ମଇନା’ । ଏଥିରେ ବସ୍ତରର ସମୃଦ୍ଧ ସଂସ୍କୃତିର ଝଲକ ଦେଖିବାକୁ ମିଳିଥାଏ । ଏହି ବସ୍ତର କ୍ରୀଡ଼ା ମହାକୁମ୍ଭର ମୂଳ ମନ୍ତ୍ର ହେଉଛି-

‘କର୍‌ସାୟ ତା ବସ୍ତର୍ ବରସାଏ ତା ବସ୍ତର୍’ ଅର୍ଥାତ ‘ଖେଳିବ ବସ୍ତର୍-ଜିତିବ ବସ୍ତର୍’ ।

ପ୍ରଥମ ଥର ହିଁ ବସ୍ତର ଅଲିମ୍ପିକ୍‌ରେ ୭ଟି ଜିଲାର ଏକ ଲକ୍ଷ ୬୫ ହଜାର ଖେଳାଳି ଭାଗ ନେଇଛନ୍ତି । ଏହା କେବଳ ଏକ ପରିସଂଖ୍ୟାନ ନୁହେଁ- ଏହା ଆମ ଯୁବକଯୁବତୀଙ୍କର ସଂକଳ୍ପର ଗୌରବ ଗାଥା ବହନ କରେ । ଆଥ୍‌ଲେଟିକ୍ସ, ତୀରଚାଳନା, ବ୍ୟାଡ଼ମିଣ୍ଟନ, ଫୁଟବଲ, ହକି, ଭାରୋତ୍ତୋଳନ, କରାଟେ, କବାଡ଼ି, ଖୋ ଖୋ ଓ ଭଲିବଲ୍‌- ପ୍ରତ୍ୟେକ ଖେଳରେ ଆମର ଯୁବପିଢ଼ି ନିଜ ପ୍ରତିଭାର ପତାକା ଉଡ଼ାଇଛନ୍ତି । କାରୀ କଶ୍ୟପ୍ ଜୀଙ୍କ କାହାଣୀ ମୋତେ ଖୁବ୍‌ ପ୍ରେରଣା ଦେଇଥାଏ । ଏକ ଛୋଟିଆ ଗାଁରୁ ଆସିଥିବା କାରୀ ଜୀ ତୀରଚାଳନାରେ ରୌପ୍ୟପଦକ ଜିତିଛନ୍ତି । ସେ କହନ୍ତି, “ବସ୍ତର ଅଲିମ୍ପିକ୍‌ ମୋତେ କେବଳ ଖେଳ ପଡ଼ିଆ ଦେଇନାହିଁ, ଜୀବନରେ ଆଗକୁ ବଢ଼ିବାର ସୁଯୋଗ ଦେଇଛି ।” ସୁକ୍‌ମା-ର ପାୟଲ୍‌ କୱାସି ଜୀଙ୍କ କଥା ବେଶ୍ ପ୍ରେରଣାଦାୟକ । ଜାଭଲିନ୍‌ ଥ୍ରୋରେ ସ୍ୱର୍ଣ୍ଣପଦକ ହାସଲ କରିଥିବା ପାୟଲ୍‌ ଜୀ କହନ୍ତି “ଅନୁଶାସନ ଓ କଠିନ ପରିଶ୍ରମ ଦ୍ୱାରା ଯେ କୌଣସି ଲକ୍ଷ୍ୟ ହାସଲ କରିବା ସମ୍ଭବ” । ସୁକମା-ର ଦୋରନାପାଲ୍‌-ର ପୁନେମ୍ ସନ୍ନା ଜୀଙ୍କ କଥା ତ ନୂଆ ଭାରତର ପ୍ରେରଣାଦାୟକ କାହାଣୀ । ଏକଦା ନକ୍ସଲଙ୍କ ଦ୍ୱାରା ପ୍ରଭାବିତ ପୁନେମ୍ ଜୀ ଆଜି ହ୍ୱିଲ୍‌ଚେୟାରରେ ଦୌଡ଼ି ପଦକ ଜିତୁଛନ୍ତି । ତାଙ୍କର ସାହସ ଓ ଧୈର୍ଯ୍ୟ ସଭିଙ୍କ ପାଇଁ ବଡ଼ ପ୍ରେରଣା । କୋଡ଼ାଗାଓଁର ତୀରନ୍ଦାଜ ରଂଜୁ ସୋରୀ ଜୀଙ୍କୁ ‘ବସ୍ତର ୟୁଥ୍‌ ଆଇକନ’ ଭାବେ ବଛାଯାଇଛି । ତାଙ୍କର କହିବା କଥା ହେଲା- ବସ୍ତର ଅଲିମ୍ପିକ୍‌ ଉପାନ୍ତ ଅଞ୍ଚଳର ଯୁବକଯୁବତୀଙ୍କୁ ଜାତୀୟ ମଞ୍ଚ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ପହଞ୍ଚିବାର ସୁଯୋଗ ଦେଉଛି ।

ବନ୍ଧୁଗଣ, ବସ୍ତର ଅଲିମ୍ପିକ୍‌ କେବଳ ଏକ କ୍ରୀଡ଼ା ଆୟୋଜନ ନୁହେଁ । ଏହା ଏଭଳି ଏକ ମଞ୍ଚ, ଯେଉଁଠି ବିକାଶ ଓ କ୍ରୀଡ଼ାର ସଂଗମ ହେଉଛି; ଯେଉଁଠି ଆମର ଯୁବପିଢ଼ି ନିଜ ପ୍ରତିଭାକୁ ଆହୁରି ଚମକାଉଛନ୍ତି ଓ ଏକ ନୂଆ ଭାରତର ନିର୍ମାଣ କରୁଛନ୍ତି । ମୁଁ ଆପଣମାନଙ୍କୁ ସମସ୍ତଙ୍କୁ ନିବେଦନ କରୁଛି ଯେ

-ନିଜ ଅଞ୍ଚଳରେ ଏଭଳି କ୍ରୀଡ଼ା ଆୟୋଜନ ପାଇଁ ପ୍ରୋତ୍ସାହନ ଦିଅନ୍ତୁ

- #ଖେଲେଗା ଭାରତ୍-ଜିତେଗା ଭାରତ୍ ଜରିଆରେ ନିଜ ଅଞ୍ଚଳର କ୍ରୀଡ଼ା ପ୍ରତିଭାଙ୍କ କାହାଣୀକୁ ଅନ୍ୟମାନଙ୍କ ସହ ବାଣ୍ଟନ୍ତୁ

-ସ୍ଥାନୀୟ କ୍ରୀଡ଼ା ପ୍ରତିଭାମାନଙ୍କୁ ଆଗକୁ ବଢ଼ିବାର ସୁଯୋଗ ଦିଅନ୍ତୁ

ମନେ ରଖନ୍ତୁ, କ୍ରୀଡ଼ା ଦ୍ୱାରା କେବଳ ଶାରୀରିକ ବିକାଶ ହୁଏ ନାହିଁ, ବରଂ ଏହି ସ୍ପୋର୍ଟସ୍‌ମେନ୍‌ ସ୍ପିରିଟ୍‌ ସମାଜକୁ ଯୋଡ଼ିବାର ମଧ୍ୟ ଏକ ସଶକ୍ତ ମାଧ୍ୟମ । ତେଣୁ ବହୁତ ଖେଳନ୍ତୁ-ଖୁସି ରୁହନ୍ତୁ ।

ମୋର ପ୍ରିୟ ଦେଶବାସୀଗଣ, ଭାରତର ଦୁଇଟି ବଡ଼ ଉପଲବ୍ଧି ଆଜି ବିଶ୍ୱର ଧ୍ୟାନ ଆକର୍ଷଣ କରୁଛି । ଏହାକୁ ଶୁଣି ଆପଣ ମଧ୍ୟ ନିଜକୁ ଗର୍ବିତ ଅନୁଭବ କରିବେ । ଏହି ଦୁଇଟି ସଫଳତା ସ୍ୱାସ୍ଥ୍ୟ କ୍ଷେତ୍ରରେ ମିଳିଛି । ପ୍ରଥମ ଉପଲବ୍ଧି ମିଳିଛି ମେଲେରିଆ ବିରୋଧରେ ଲଢ଼େଇରେ । ମେଲେରିଆ ରୋଗ ଚାରି ହଜାର ବର୍ଷ ଧରି ମଣିଷ ପାଇଁ ଏକ ବଡ଼ ସମସ୍ୟା ହୋଇ ରହିଆସିଛି । ସ୍ୱାଧୀନତା ସମୟରେ ବି ଏହା ସବୁଠୁ ବଡ଼ ସମସ୍ୟା ମଧ୍ୟରୁ ଥିଲା ଅନ୍ୟତମ । ମାସକରୁ ପାଞ୍ଚ ବର୍ଷ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ଶିଶୁଙ୍କର ଜୀବନ ନେଉଥିବା ସମସ୍ତ ସଂକ୍ରାମକ ରୋଗ ମଧ୍ୟରେ ମେଲେରିଆର ସ୍ଥାନ ତୃତୀୟ । ଆଜି ମୁଁ ସନ୍ତୋଷର ସହ କହିପାରିବି ଯେ ଦେଶବାସୀ ମିଳିମିଶି ଏହି ସମସ୍ୟାର ଦୃଢ଼ ମୁକାବିଲା କରିଛନ୍ତି । ବିଶ୍ୱ ସ୍ୱାସ୍ଥ୍ୟ ସଙ୍ଗଠନ - WHOର ରିପୋର୍ଟ କହେ ଯେ ଭାରତରେ ୨୦୧୫ରୁ ୨୦୨୩ ମଧ୍ୟରେ ମେଲେରିଆ ଏବଂ ଏହାଦ୍ୱାରା ହୋଇଥିବା ମୃତ୍ୟୁ ଶତକଡ଼ା ୮୦ ଭାଗ କମିଯାଇଛି । ଏହା କୌଣସି ଛୋଟ ଉପଲବଧି ନୁହେଁ । ସବୁଠାରୁ ବଡ଼କଥା ହେଲା ଏହି ସଫଳତା ଜନସାଧାରଣଙ୍କ ସହଯୋଗ ଯୋଗୁଁ ମିଳିଛି । ଭାରତର କୋଣ ଅନୁକୋଣରୁ, ପ୍ରତ୍ୟେକ ଜିଲ୍ଲାରୁ କେହି ନା କେହି ଏହି ଅଭିଯାନରେ ଅଂଶଗ୍ରହଣ କରିଛନ୍ତି । ଏହି ଚାରିବର୍ଷ ପୂର୍ବେ ଆସାମର ଜୋରହଟ୍ ଜିଲ୍ଲାର ଚା’ବଗିଚାମାନଙ୍କରେ ମେଲେରିଆ ଲୋକମାନଙ୍କର ଦୁଃଶ୍ଚିନ୍ତାର ଏକ ବଡ଼ କାରଣ ହୋଇଥିଲା । କିନ୍ତୁ ଏବେ ଏହାର ମୂଳୋତ୍ପାଟନ ପାଇଁ ଚା’ବଗିଚାରେ ରହୁଥିବା ଲୋକମାନେ ଏକଜୁଟ୍ ହେଲେ, ଫଳରେ ଏଥିରେ ବହୁ ପରିମାଣରେ ସଫଳତା ମିଳିବାକୁ ଲାଗିଲା । ତାଙ୍କର ଏହି ପ୍ରୟାସରେ ସେମାନେ ଟେକ୍ନୋଲୋଜି ସହିତ ସାମାଜିକ ଗଣମାଧ୍ୟମର ମଧ୍ୟ ବହୁଳ ବ୍ୟବହାର କଲେ । ସେହିପରି ହରିଆନାର କୁରୁକ୍ଷେତ୍ର ଜିଲ୍ଲା ମେଲେରିଆ ନିୟନ୍ତ୍ରଣ ଦିଗରେ ଏକ ଆଦର୍ଶ ପ୍ରଦର୍ଶନ କଲା । ଏଠାରେ ମେଲେରିଆର ମନିଟରିଂ ପାଇଁ ଜନଭାଗିଦାରୀ ଅତ୍ୟନ୍ତ ସଫଳ ହେଲା । ପଥପ୍ରାନ୍ତ ନାଟକ ତଥା ରେଡ଼ିଓ ମାଧ୍ୟମରେ ଏହିଭଳି ସନ୍ଦେଶ ଉପରେ ଜୋର୍ ଦିଆଗଲା । ଯାହା ଫଳରେ ମଶାମାନଙ୍କର ପ୍ରଜନନ କମ୍ କରିବାରେ ଖୁବ୍ ସହାୟତା ମିଳିଲା । ସାରା ଦେଶରେ ଏହିଭଳି ପ୍ରୟାସ କରିବା ଦ୍ୱାରା ଆମେ ମେଲେରିଆ ବିରୁଦ୍ଧରେ ଲଢ଼େଇକୁ ତୀବ୍ର କରିପାରିଛୁ ।

ବନ୍ଧୁଗଣ, ନିଜର ସଚେତନତା ଏବଂ ସଂକଳ୍ପଶକ୍ତି ଦ୍ୱାରା ଆମେ କ’ଣ କ’ଣ ହାସଲ କରିପାରିବା ତା’ର ଦ୍ୱିତୀୟ ଉଦାହରଣ ହେଲା କ୍ୟାନସର ସହିତ ଲଢ଼େଇ । ଦୁନିଆର ପ୍ରସିଦ୍ଧ ମେଡ଼ିକାଲ ପତ୍ରିକା ‘LANCET’ର ଅଧ୍ୟୟନ ବାସ୍ତବରେ ଆମ ଭିତରେ ବହୁତ ଆଶା ଜାଗ୍ରତ କରେ । ଏହି ପତ୍ରିକା ଅନୁସାରେ ଏବେ ଭାରତରେ ଠିକ୍ ସମୟରେ କ୍ୟାନସରର ଚିକିତ୍ସାର ସମ୍ଭାବନା ଖୁବ୍ ବଢ଼ିଯାଇଛି । ଠିକ୍ ସମୟରେ ଚିକିତ୍ସାର ଅର୍ଥ କ୍ୟାନସର ରୋଗୀର ଚିକିତ୍ସା ୩୦ ଦିନ ଭିତରେ ଆରମ୍ଭ ହୋଇଯିବା ଦରକାର । ଏ ଦିଗରେ ‘ଆୟୁଷ୍ମାନ୍ ଭାରତ ଯୋଜନା’ ଅତି ମହତ୍ତ୍ୱପୂର୍ଣ୍ଣ ଭୂମିକା ଗ୍ରହଣ କରିଛି । ଏହି ଯୋଜନା ଯୋଗୁଁ ଶତକଡ଼ା ୯୦ ଭାଗ କ୍ୟାନସର ରୋଗୀ ଠିକ୍ ସମୟରେ ନିଜର ଚିକିତ୍ସା ଆରମ୍ଭ କରିପାରିଛନ୍ତି । ଏହା ସମ୍ଭବ ହେବାର କାରଣ ପ୍ରଥମେ ପଇସା ଅଭାବରେ ଗରିବ ରୋଗୀ କ୍ୟାନସରର ପରୀକ୍ଷା ଏବଂ ତା’ର ଚିକିତ୍ସା ପାଇଁ ପଛଘୁଞ୍ଚା ଦେଉଥିଲେ । ଏବେ ଆୟୁଷ୍ମାନ ଭାରତ ଯୋଜନା ସେମାନଙ୍କ ପାଇଁ ବଡ଼ ସମ୍ବଳ ହୋଇଛି । ଏବେ ସେମାନେ ନିଜର ଚିକିତ୍ସା ପାଇଁ ଆଗେଇ ଆସୁଛନ୍ତି । ‘ଆୟୁଷ୍ମାନ ଭାରତ ଯୋଜନା’ କ୍ୟାନସର ଚିକିତ୍ସା କ୍ଷେତ୍ରରେ ଥିବା ଆର୍ଥିକ ଅସୁବିଧାକୁ ବହୁ ପରିମାଣରେ କମ୍ କରିପାରିଛି । ଆହୁରି ଭଲ କଥା ହେଲା ଆଜିକାଲି ଲୋକମାନେ ଠିକ ସମୟରେ କ୍ୟାନସର ଚିକିତ୍ସା ପାଇଁ ବେଶ୍ ସଚେତନ । ଏହି ସଫଳତା ପାଇଁ ଆମର ସ୍ୱାସ୍ଥ୍ୟସେବା ପ୍ରଣାଳୀ, ଡାକ୍ତର, ନର୍ସ ତଥା ଟେକ୍ନିକାଲ କର୍ମଚାରୀମାନଙ୍କର ଯେତିକି ଭୂମିକା ରହିଛି ମୋ ନାଗରିକ ଭାଇଭଉଣୀମାନଙ୍କର ମଧ୍ୟ ସେତିକି ମହତ୍ତ୍ୱପୂର୍ଣ୍ଣ ଭୂମିକା ରହିଛି । ସମସ୍ତଙ୍କ ପ୍ରୟାସ ଦ୍ୱାରା କ୍ୟାନସରକୁ ହରାଇବାର ସଂକଳ୍ପ ଅଧିକ ଦୃଢ଼ ହୋଇଛି । ଯେଉଁମାନେ ସଚେତନତା ସୃଷ୍ଟି କରିବାରେ ବିଶେଷ ଯୋଗଦାନ ଦେଇଛନ୍ତି, ଏହି ସଫଳତାର ଶ୍ରେୟ ସେମାନଙ୍କର । କ୍ୟାନସରକୁ ମୁକାବିଲା କରିବାର ଗୋଟିଏ ମନ୍ତ୍ର ହେଲା Awareness, Action ଏବଂ Assurance । Awareness ଅର୍ଥାତ୍ କ୍ୟାନସର୍ ଲକ୍ଷଣ ପ୍ରତି ସଚେତନତା, Action ଅର୍ଥାତ୍ ଠିକ୍ ସମୟରେ ପରୀକ୍ଷା ଏବଂ ଚିକିତ୍ସା, Assurance ଅର୍ଥାତ୍ ରୋଗୀମାନଙ୍କ ପାଇଁ ସମସ୍ତ ସହାୟତା ଉପଲବ୍ଧ କରାଇବାର ବିଶ୍ୱାସ । ଆସନ୍ତୁ ଆମେ ସମସ୍ତେ ମିଶି କ୍ୟାନସର ବିରୁଦ୍ଧରେ ଏହି ଲଢ଼େଇକୁ ଦ୍ରୁତଗତିରେ ଆଗେଇନେବା ଏବଂ ଅଧିକରୁ ଅଧିକ ରୋଗୀଙ୍କୁ ସାହାଯ୍ୟ କରିବା ।

ମୋର ପ୍ରିୟ ଦେଶବାସୀଗଣଆଜି ମୁଁ ଆପଣଙ୍କୁ ଓଡ଼ିଶାର କଳାହାଣ୍ଡି ଜିଲ୍ଲାର ଏକ ଏଭଳି ପ୍ରୟାସ ବିଷୟରେ କହିବାକୁ ଚାହୁଁଛିଯାହା କମ୍ ପାଣି ଏବଂ କମ୍ ସଂସାଧନ ସତ୍ତ୍ୱେ ସଫଳତାର ନୂତନ କାହାଣୀ ଲେଖୁଛି  ଏହା ହେଉଛି କଳାହାଣ୍ଡିର ‘ସବଜି କ୍ରାନ୍ତି’ ବା ପରିବା ବିପ୍ଳବ  ସମୟ ଥିଲା ଯେଉଁଠି କୃଷକ ପଳାୟନ କରିବାକୁ ବାଧ୍ୟ ହେଉଥିଲା ଆଜି ସେଇଠି କଳାହାଣ୍ଡିର ଗୋଲମୁଣ୍ଡା ବ୍ଲକ୍ ଏକ ପରିବା ଭଣ୍ଡାରରେ ପରିଣତ ହୋଇଛି   ପରିବର୍ତ୍ତନ କିପରି ଆସିଲା ଏହାର ଆରମ୍ଭ ମାତ୍ର ୧୦ ଜଣ କୃଷକଙ୍କ ଗୋଟିଏ ଛୋଟିଆ ସମୂହ ଦ୍ୱାରା ହୋଇଥିଲା  ସେମାନେ ମିଳିମିଶି ଗୋଟିଏ FPO ବା କିଷାନ୍ ଉତ୍ପାଦକ ସଂଗଠନ ସ୍ଥାପନ କଲେଚାଷରେ ଆଧୁନିକ କୌଶଳ ପ୍ରୟୋଗ କରିବା ଆରମ୍ଭ କଲେ ଏବଂ ଆଜି ସେମାନଙ୍କର ଏହି FPO କୋଟି କୋଟି ଟଙ୍କାର କାରବାର କରୁଛି  ଆଜି ୨୦୦ରୁ ଅଧିକ କୃଷକ ଏହି FPO ସହ ଯୋଡ଼ି ହୋଇଛନ୍ତିଯେଉଁମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରେ ୪୫ ଜଣ ମହିଳା ଚାଷୀ ମଧ୍ୟ ଅଛନ୍ତି  ଏହି ଲୋକମାନେ ମିଶି ୨୦୦ ଏକର ଜମିରେ ବିଲାତି ବାଇଗଣ ଚାଷ କରୁଛନ୍ତି ଏବଂ ୧୫୦ ଏକର ଜମିରେ କଲରା ଉତ୍ପାଦନ କରୁଛନ୍ତି  ଏବେ ଏହି FPOର ବାର୍ଷିକ କାରବାର ରାଶି ଦେଢ଼ କୋଟିରୁ ଅଧିକ ହୋଇଗଲାଣି  ଆଜି କଳାହାଣ୍ଡିର ପରିବା ଖାଲି ଓଡ଼ିଶାରେ ନୁହେଁବରଂ ଅନ୍ୟ ରାଜ୍ୟମାନଙ୍କରେ ମଧ୍ୟ ପହଞ୍ଚୁଛି ଏବଂ ସେଠିକାର କୃଷକମାନେ ଏବେ ଆଳୁ ଏବଂ ପିଆଜ ଚାଷର ନୂତନ ପ୍ରଣାଳୀ ଶିଖୁଛନ୍ତି 

ବନ୍ଧୁଗଣକଳାହାଣ୍ଡିର ଏହି ସଫଳତା ଆମକୁ ଶିଖଉଛି ଯେ ସଂକଳ୍ପଶକ୍ତି ଏବଂ ସାମୂହିକ ପ୍ରଚେଷ୍ଟା ଦ୍ୱାରା  କରାଯାଇ  ପାରେ । ମୁଁ ଆପଣ ସମସ୍ତଙ୍କୁ ଅନୁରୋଧ କରୁଛି :-

- ନିଜ ଅଞ୍ଚଳରେ FPO ଗଠନକୁ ଉତ୍ସାହିତ କରନ୍ତୁ ।

- କୃଷକ ଉତ୍ପାଦକ ସଂଗଠନଗୁଡ଼ିକ ସହିତ ଯୋଡ଼ିହୁଅନ୍ତୁ ଏବଂ ସେଗୁଡ଼ିକୁ ମଜଭୁତ୍ କରନ୍ତୁ ।

ମନେରଖନ୍ତୁ – ଛୋଟିଆ ପ୍ରୟାସରୁ ମଧ୍ୟ ବଡ଼ ପରିବର୍ତ୍ତନ ସମ୍ଭବ ହୁଏ । ଖାଲି ଆମର ଦୃଢ଼ ସଂକଳ୍ପ ଏବଂ ସାମୂହିକ ଭାବନାର ଆବଶ୍ୟକତା ରହିଛି ।

ବନ୍ଧୁଗଣ, ଆଜିର ‘ମନ୍ କି ବାତ୍’ରେ ଆମେ ଶୁଣିଲେ, କେମିତି ଆମ ଭାରତ ବିବିଧତାରେ ଏକତା ସହ ଆଗକୁ ବଢ଼ୁଛି । ସେ ଖେଳପଡ଼ିଆ ହେଉ ବା ବିଜ୍ଞାନ, ସ୍ୱାସ୍ଥ୍ୟ ହେଉ ଅବା ଶିକ୍ଷା - ପ୍ରତ୍ୟେକ କ୍ଷେତ୍ରରେ ଭାରତ ନୂତନ ଶିଖରକୁ ଛୁଇଁ ଚାଲିଛି । ଆମେମାନେ ଗୋଟିଏ ପରିବାର ଭଳି ମିଳିମିଶି ପ୍ରତ୍ୟେକ ଆହ୍ୱାନର ସାମ୍ନା କଲେ ଏବଂ ସଫଳ ହେଲେ । ୨୦୧୪ରୁ ଆରମ୍ଭ ହୋଇଥିବା ‘ମନ୍ କି ବାତ୍’ର ୧୧୬ତମ ଅଧ୍ୟାୟରେ ମୁଁ ଦେଖିଛି ଯେ ‘ମନ୍ କି ବାତ୍’ ଦେଶର ସାମୂହିକ ଶକ୍ତିର ଗୋଟିଏ ଜୀବନ୍ତ ଦସ୍ତାବିଜ ହୋଇଯାଇଛି । ଆପଣମାନେ ସମସ୍ତେ ଏହି କାର୍ଯ୍ୟକ୍ରମକୁ ଆପଣାର କରିଛନ୍ତି । ପ୍ରତିମାସରେ ଆପଣମାନେ ନିଜର ବିଚାର ଏବଂ ପ୍ରୟାସ ସମ୍ବନ୍ଧରେ ମୋତେ ଜଣାଇଛନ୍ତି । କେତେବେଳେ କେଉଁ Young Innovatorର ଚିନ୍ତାଧାରା ପ୍ରଭାବିତ କରିଛି ତ କେତେବେଳେ କୌଣସି ଝିଅର ସଫଳତା ଆମକୁ ଗୌରବାନ୍ୱିତ କରିଛି । ଏହା ଆପଣ ସମସ୍ତଙ୍କର ସହଭାଗିତା ଯାହା ଦେଶର କୋଣ ଅନୁକୋଣରୁ ସକରାତ୍ମକ ଶକ୍ତିକୁ ଏକାଠି କରିଛି । ‘ମନ୍ କି ବାତ୍’ ଏହି ସକରାତ୍ମକ ଶକ୍ତିର ବିସ୍ତାରର ମଞ୍ଚ ହୋଇପାରିଛି । ଏବେ ୨୦୨୫ ପାଖେଇ ଆସିଲାଣି । ଆସନ୍ତା ବର୍ଷ ‘ମନ୍ କି ବାତ୍’ ମାଧ୍ୟମରେ ଆମେ ଆହୁରି ପ୍ରେରଣାଦାୟୀ ପ୍ରୟାସଗୁଡ଼ିକୁ ସାମିଲ୍ କରିବା । ମୋର ବିଶ୍ୱାସ ଯେ ଦେଶବାସୀଙ୍କ ସକାରାତ୍ମକ ଭାବନା ଏବଂ ନୂତନ ଚିନ୍ତାଧାରା ଦ୍ୱାରା ଭାରତ ଏକ ନୂତନ ଶିଖରକୁ ଛୁଇଁପାରିବ । ଆପଣ ନିଜ ଆଖପାଖର ନିଆରା ପ୍ରୟାସ ଗୁଡ଼ିକୁ #Mannkibaatରେ ପଠାନ୍ତୁ । ମୁଁ ଜାଣିଛି ଯେ ଆସନ୍ତା ବର୍ଷର ପ୍ରତ୍ୟେକ ‘ମନ୍ କି ବାତ୍’ରେ ଆମ ପାଖରେ ପରସ୍ପରକୁ ଜଣେଇବା ପାଇଁ ବହୁତ କିଛି ଥିବ । ଆପଣମାନଙ୍କୁ ୨୦୨୫ର ବହୁତ ବହୁତ ଶୁଭକାମନା । ସୁସ୍ଥ ରୁହନ୍ତୁ ଖୁସି ରୁହନ୍ତୁ, Fit India Movementରେ ଆପଣ ମଧ୍ୟ ଯୋଗଦିଅନ୍ତୁ ଏବଂ ନିଜକୁ ସୁସ୍ଥ ରଖନ୍ତୁ । ଜୀବନରେ ପ୍ରଗତି କରନ୍ତୁ । ବହୁତ ବହୁତ ଧନ୍ୟବାଦ ।