माननीय अध्‍यक्ष जी, इस सदन में पहली बार, मेरा प्रवेश भी नया है और भाषण का अवसर भी पहली बार मिला।..... (व्‍यवधान)

इस सदन की गरिमा, परंपराएं बहुत ही उच्‍च रही हैं। इस सदन में काफी अनुभवी तीन-चार दशक से राष्‍ट्र के सवालों को उजागर करने वाले, सुलझाने वाले, लगातार प्रयत्‍न करने वाले वरि‍ष्‍ठ महानुभाव भी वि‍राजमान हैं। जब मुझ जैसा एक नया व्‍यक्‍ति‍ कुछ कह रहा है, सदन की गरि‍मा और मर्यादाओं में कोई चूक हो जाए तो नया हाने के नाते आप मुझे क्षमा करेंगे, ऐसा मुझे पूरा वि‍श्‍वास है। महामहिम राष्‍ट्रपति‍ जी के अभि‍भाषण पर लोकसभा में 50 से अधि‍क आदरणीय सदस्‍यों ने अपने वि‍चार रखे हैं। मैंने सदन में रहते हुए और कुछ अपने कमरे में करीब-करीब सभी भाषण सुने हैं।

आदरणीय मल्‍लि‍कार्जुन जी, आदरणीय मुलायम सिंह जी, डॉ0 थम्‍बीदुराई जी, भर्तुहरि जी, टी.एम.सी. के नेता तथा सभी वरि‍ष्‍ठ महानुभावों को मैंने सुना। एक बात सही है कि‍ एक स्‍वर यह आया है कि‍ आपने इतनी सारी बातें बताई हैं, इन्‍हें कैसे करोगे, कब करोगे। मैं मानता हूँ कि‍ सही वि‍षय को स्‍पर्श कि‍या है और यह मन में आना बहुत स्‍वाभावि‍क है। मैं अपना एक अनुभव बताता हूँ, मैं नया-नया गुरजरात में मुख्‍यमंत्री बनकर गया था और एक बार मैंने सदन में कह दि‍या कि मैं गुजरात के गाँवों में, घरों में 24 घंटे बि‍जली पहुँचाना चाहता हूँ। खैर ट्रेजरी बैंच ने बहुत तालि‍याँ बजाईं, लेकि‍न सामने की तरफ सन्‍नाटा था। लेकिन हमारे जो वि‍पक्ष के नेता थे, चौधरी अमर सिंह जी, वह कांग्रेस के ‍वरि‍ष्‍ठ नेता थे, बड़े सुलझे हुए नेता थे। वह बाद में समय लेकर मुझे मि‍लने आए। उन्‍होंने कहा कि‍ मोदी जी, कहीं आप की कोई चूक तो नहीं हो रही है, आप तो नए हो, आपका अनुभव नहीं है, यह 24 घंटे बि‍जली देना इम्‍पासिबल है, आप कैसे दोगे? एक मि‍त्र भाव से उन्‍होंने इस पर चिंता व्‍यक्‍त की थी। मैंने उनसे कहा कि मैंने सोचा है और मुझे लगता है ‍कि हम करेंगे। वह बोले संभव ही नहीं है। दो हजार मेगावाट अगर डेफि‍‍सि‍ट है तो आप कैसे करोगे? उनके मन में वह वि‍चार आना बड़ा स्‍वाभावि‍क था। लेकि‍न मुझे इस बात का आनंद है कि‍ वह काम गुजरात में हो गया था। अब इसलि‍ए यहाँ बैठे हुए सभी वरि‍ष्‍ठ महानुभावों के मन में सवाल आना बहुत स्‍वाभावि‍क है कि‍ अभी तक नहीं हुआ, अब कैसे होगा? अभी तक नहीं हुआ, इसलिए शक होना बहुत स्‍वाभावि‍क है। लेकिन मैं इस सदन को वि‍श्‍वास दि‍लाता हूँ कि‍ राष्‍ट्रपति‍ जी ने जो रास्‍ता प्रस्तुत कि‍या है, उसे पूरा करने में हम कोई कोताही नहीं बरतेंगे। हमारे लि‍ए राष्‍ट्रपति जी का अभि‍भाषण सि‍र्फ परंपरा और रि‍चुअल नहीं है। हमारे लि‍ए उनके माध्‍यम से कही हुई हर बात एक सैंक्‍टिटी है, एक पवि‍त्र बंधन है और उसे पूरा करने का हमारा प्रयास भी है और यही भावना हमारी प्रेरणा भी बन सकती है, जो हमें काम करने की प्रेरणा दे। इसलि‍ए राष्‍ट्रपति‍ जी के अभि‍भाषण को आने वाले समय के लि‍ए हमने हमेशा एक गरि‍मा देनी चाहि‍ए, उसे गंभीरता भी देनी चाहि‍ए और सदन में हम सब ने मि‍लकर उसे पूर्ण करने का प्रयास करना चाहि‍ए।

जब मतदान हुआ, मतदान होने तक हम सब उम्‍मीदवार थे, लेकि‍न सदन में आने के बाद हम जनता की उम्‍मीदों के दूत हैं। तब तो हम उम्‍मीदवार थे, लेकि‍न सदन में पहुँचने के बाद हम जनता की उम्‍मीदों के रखवाले हैं। कि‍सी का दायि‍त्‍व दूत के रूप में उसे परि‍पूर्ण करना होगा, कि‍सी का दा‍यि‍त्‍व अगर कुछ कमी रहती है तो रखवाले बनकर पूरी आवाज उठाना, यह भी एक उत्‍तम दायि‍त्‍व है। हम सब मि‍लकर उस दायि‍त्‍व को नि‍भायेंगे।

मुझे इस बात का संतोष रहा कि‍ अधि‍कतम इस सदन में जो भी वि‍षय आए हैं, छोटी-मोटी नोंक-झोंक तो आवश्‍यक भी होती है लकि‍न पूरी तरह सकारात्‍मक माहौल नजर आया। यहाँ भी जो मुद्दे उठाए गए, उनके भीतर भी एक आशा थी, एक होप थी। यानी‍ देश के सवा सौ करोड़ नागरि‍कों ने जि‍स होप के साथ इस संसद को चुना है, उसकी प्रति‍ध्‍वनि‍ इस तरफ बैठे हों या उस तरफ बैठे हुए हों, सबकी बातों में मुखर हुई है, यह मैं मानता हूँ।

यह भारत के भाग्‍य के लिए एक शुभ संकेत है। राष्‍ट्रपति जी ने अपने अभिभाषण में चुनाव, मतदाता, परिणाम की सराहना की है। मैं भी देशवासियों का अभिनंदन करता हूँ, उनका आभार व्‍यक्‍त करता हूँ कि कई वर्षों के बाद देश ने स्‍थिर शासन के लिए, विकास के लिए, सुशासन के लिए, मत दे कर 5 साल के लिए विकास की यात्रा को सुनिश्‍चित किया है। भारत के मतदाताओं की ये चिंता, उनका यह चिंतन और उन्‍होंने हमें जो जिम्‍मेवारी दी है, उसको हमें परिपूर्ण करना है। लेकिन हमें एक बात सोचनी होगी कि दुनिया के अंदर भारत एक बड़ा लोकतांत्रिक देश है, इस रूप में तो कभी-कभार हमारा उल्‍लेख होता है। लेकिन क्‍या समय की माँग नहीं है कि विश्‍व के सामने हम कितनी बड़ी लोकतांत्रिक शक्‍ति हैं, हमारी लोकतांत्रिक परंपराएं कितनी ऊँची हैं, हमारे सामान्‍य से सामान्‍य, अनपढ़ से अनपढ़ व्‍यक्‍ति की रगों में भी लोकतंत्र के प्रति श्रद्धा कितनी अपार है। अपनी सारी आशा और आकांक्षाओं को लोकतांत्रिक परंपराओं के माध्‍यम से परिपूर्ण करने के लिए वह कितना जागृत है। क्‍या कभी दुनिया में, हमारी इस ताकत को सही रूप में प्रस्‍तुत किया गया है? इस चुनाव के बाद हम सबका एक सामूहिक दायित्‍व बनता है कि विश्‍व को डंके की चोट पर हम यह समझाएं। विश्‍व को हम प्रभावित करें। पूरा यूरोप और अमरीका मिल कर जितने मतदाता हैं, उससे ज्‍यादा लोग हमारे चुनावों में शरीक होते हैं। यह हमारी कितनी बड़ी ताकत है। क्‍या विश्‍व के सामने, भारत के इस सामर्थवान रूप को कभी हमने प्रकट किया है? मैं मानता हूँ कि यह हम सब का दायित्‍व बनता है। यह बात सही है कि कुछ वैक्‍युम है। 1200 साल की गुलामी की मानसि‍कता हमें परेशान कर रही है। बहुत बार हमसे थोड़ा ऊँचा व्‍यक्‍ति‍ मि‍ले तो, सर ऊँचा करके बात करने की हमारी ताकत नहीं होती है। कभी-कभार चमड़ी का रंग भी हमें प्रभावि‍त कर देता है। उन सारी बातों से बाहर नि‍कल कर भारत जैसा सामर्थ्‍यवान लोकतंत्र और इस चुनाव में इस प्रकार का प्रगट रूप, अब वि‍श्‍व के सामने ताकतवर देश के रूप में प्रस्‍तुत होने का समय आ गया है। हमें दुनि‍या के सामने सर ऊँचा कर, आँख में आँख मि‍ला कर, सीना तान कर, भारत के सवा सौ करोड़ नागरि‍कों के सामर्थ को प्रकट करने की ताकत रखनी चाहि‍ए और उसको एक एजेंडा के रूप में आगे बढ़ाना चाहि‍ए। भारत का गौरव और गरि‍मा इसके कारण बढ़ सकते हैं।

माननीय अध्‍यक्ष महोदया, यह बात सही है इस देश पर सबसे पहला अधि‍कार कि‍सका है? सरकार कि‍सके लि‍ए होनी चाहि‍ए? क्‍या सरकार सिर्फ पढ़े-लि‍खे लोगों के लि‍ए हो? क्‍या सरकार सि‍र्फ इने-गि‍ने लोगों के लाभ के लि‍ए हो? मेरा कहना है कि‍ सरकार गरीबों के लि‍ए होनी चाहि‍ए। अमीर को अपने बच्‍चों को पढ़ाना है तो वह दुनि‍या का कोई भी टीचर हायर कर सकता है। अमीर के घर में कोई बीमार हो गया तो सैकड़ों डॉक्‍टर तेहरात में आ कर खड़े हो सकते हैं, लेकि‍न गरीब कहाँ जाएगा?

उसके नसीब में तो वह सरकारी स्‍कूल है, उसके नसीब में तो वह सरकारी अस्‍पताल है और इसीलि‍ए सब सरकारों का यह सबसे पहला दायि‍त्‍व होता है कि‍ वे गरीबों की सुनें और गरीबों के लि‍ए जि‍यें। अगर हम सरकार का कारोबार गरीबों के लि‍ए नहीं चलाते हैं, गरीबों की भलाई के लि‍ए नहीं चलाते हैं तो देश की जनता हमें कतई माफ नहीं करेगी।

माननीय अध्‍यक्ष महोदया जी यह इस सरकार की पहली प्राथमि‍कता है। हम तो पंडि‍त दीन दयाल उपाध्‍याय जी के आदर्शों से पले हुए लोग हैं। जि‍न्‍होंने हमें अंत्‍योदय की शि‍क्षा दी थी। गाँधी, लोहि‍या और दीन दयाल जी, तीनों के वि‍चार सूत्र को हम पकड़े हैं, तो आखि‍री मानवि‍की छोर पर बैठे हुए इंसान के कल्‍याण का काम इस शताब्‍दी के राजनीति‍ के इन तीनों महापुरूषों ने हमें एक ही रास्‍ता दि‍खाया है कि‍ समाज के आखि‍री छोर पर जो बैठा हुआ इन्‍सान है, उसके कल्‍याण को प्राथमि‍कता दी जाए। यह हमारी प्रति‍बद्धता है। अंत्‍योदय का कल्‍याण, यह हमारी प्रति‍बद्धता है। गरीब को गरीबी से बाहर लाने के लि‍ए उसके अंदर वह ताकत लानी है जि‍ससे वह गरीबी के खि‍लाफ जूझ सके। गरीबी के खि‍लाफ लड़ाई लड़ने का सबसे बड़ा औजार होता है- ‘शि‍क्षा’। गरीबी से लड़ने का सबसे बड़ा साधन होता है- ‘अंधश्रद्धा से मुक्‍ति‍’। अगर गरीबों में अंधश्रद्धा के भाव पड़े हैं, अशि‍क्षा की अवस्‍था पड़ी है, अगर हम उसमें से उसे बाहर लाने में सफल होते हैं, तो इस देश का गरीब कि‍सी के टुकड़ों पर पलने की इच्‍छा नहीं रखता है। वह अपने बलबूते पर अपनी दुनि‍या खड़ी करने के लि‍ए तैयार है। सम्‍मान और गौरव से जीना गरीब का स्‍वभाव है। अगर हम उसकी उस मूलभूत ताकत को पकड़कर उसे बल देने का प्रयास करते हैं और इसलि‍ए सरकार की योजनाएं गरीब को गरीबी से बाहर आने की ताकत दें। गरीब को गरीबी के खि‍लाफ लड़ाई लड़ने की ताकत दें। शासन की सारी व्‍यवस्‍थायें गरीब को सशक्‍त बनाने के लि‍ए काम आनी चाहि‍ए और सारी व्‍यवस्‍थाओं का अंति‍म नतीजा उस आखि‍री छोर पर बैठे हुए इंसान के लि‍ए काम में आए उस दि‍शा में प्रयास होगा, तब जाकर उसका कल्‍याण हम कर पाएंगे।

हम सदि‍यों से कहते आए हैं कि‍ हमारा देश कृषि‍ प्रधान देश है, यह गाँवों का देश है। ये नारे तो बहुत अच्‍छे लगे, सुनना भी बहुत अच्‍छा लगा, लेकिन क्‍या हम आज अपने सीने पर हाथ रखकर कह सकते हैं कि‍ हम हमारे गाँव के जीवन को बदल पाए हैं, हमारे कि‍सानों के जीवन को बदल पाए हैं। यहाँ मैं कि‍सी सरकार की आलोचना करने के लि‍ए खड़ा नहीं हुआ हूँ। यह हमारा सामूहि‍क दायि‍त्‍व है कि‍ भारत के गाँवों के जीवन को बदलने के लि‍ए उसको हम अग्रि‍मता दें, कि‍सानों के जीवन को बदलने के लि‍ए उसको अग्रि‍मता दें। राष्‍ट्रपति‍ जी के अभिभा‍षण में उस बात को करने के लि‍ए हमने कोशि‍श की है। यहाँ एक वि‍षय ऐसा भी आया कि‍ कैसे करेंगे? हमने एक शब्‍द प्रयोग कि‍या है ‘Rurban’। गाँवों के वि‍कास के लि‍ए जो राष्‍ट्रपति‍ के अभि‍भाषण में हमने देखा है। जहाँ सुवि‍धा शहर की हो, आत्‍मा गाँव की हो। गाँव की पहचान गाँव की आत्‍मा में बनी हुई है। आज भी वह अपनापन, गाँव में एक बारात आती है तो पूरे गाँव को लगता है कि‍ हमारे गाँव की बारात है। गाँव में एक मेहमान आता है तो पूरे गाँव को लगता है कि‍ यह हमारे गाँव का मेहमान है। यह हमारे देश की एक अनमोल वि‍रासत है। इसको बनाना है, इसको बचाये रखना है, लेकि‍न हमारे गाँव के लोगों को आधुनि‍क सुवि‍धा से हम वंचि‍त रखेंगे क्‍या? मैं अनुभव से कहता हूँ कि‍ अगर गाँव को आधुनि‍क सुवि‍धाओं से सज्‍ज कि‍या जाये तो गाँव देश की प्रगति‍ में ज्‍यादा कांट्रि‍‍ब्‍यूशन कर रहा है।

अगर गाँव में भी 24 घंटे बि‍जली हो, अगर गाँव को भी ब्रॉडबैण्‍ड कनैक्‍टि‍वि‍टी मि‍ले, गाँव के बालक को भी उत्‍तम से उत्‍तम शि‍क्षा मि‍ले; पल भर के लि‍ए मान लें कि‍ शायद हमारे गाँव में अच्‍छे टीचर न हों, लेकि‍न आज का वि‍ज्ञान हमें लाँग डि‍स्‍टैन्‍स एजुकेशन के लि‍ए पूरी ताकत देता है। शहर में बैठकर भी उत्‍तम से उत्‍तम शि‍क्षक के माध्‍यम से गाँव के आखि‍री छोर पर बैठे हुए स्‍कूल के बच्‍चे को हम पढ़ा सकते हैं। हम सैटेलाइट व्‍यवस्‍था का उपयोग, उस आधुनि‍क वि‍ज्ञान का उपयोग उन गरीब बच्‍चों की शि‍क्षा के लि‍ए क्‍यों न करें? अगर गाँव के जीवन में हम यह बदलाव लाएँ तो कि‍सी को भी अपना गाँव छोड़कर जाने का मन नहीं करेगा। गाँव के नौजवान को क्‍या चाहि‍ए? अगर रोज़गार मि‍ल जाए तो वह अपने माँ-बाप के पास रहना चाहता है। क्‍या गाँवों के अंदर हम उद्योगों का जाल खड़ा नहीं कर सकते हैं? एट लीस्‍ट हम एक बात पर बल दें- एग्रो बेस्‍ड इंडस्‍ट्रीज़ पर। अगर हम मूल्‍यवृद्धि‍ करें और मूल्‍यवृद्धि‍ पर अगर हम बल दें। आज उसकी एक ताकत है, उस ताकत को हमने स्‍वीकार कि‍या तो हम गाँव के आर्थि‍क जीवन को भी, गाँव की व्‍यवस्‍थाओं के जीवन को भी बदल सकते हैं और कि‍सान का स्‍वाभावि‍क लाभ भी उसके साथ जुड़ा हुआ है।

सि‍क्‍कि‍म एक छोटा सा राज्‍य है, बहुत कम आबादी है लेकि‍न उस छोटे से राज्‍य ने एक बहुत महत्‍वपूर्ण काम कि‍या है। बहुत ही नि‍कट भवि‍ष्‍य में सि‍क्‍कि‍म प्रदेश हि‍न्‍दुस्‍तान के लि‍ए गौरव देने वाला ‘ऑर्गैनि‍क स्‍टेट’ बनने जा रहा है। वहाँ का हर उत्‍पादन ऑर्गैनि‍क होने वाला है। आज पूरे वि‍श्‍व में ऑर्गैनि‍क खेत उत्‍पादन की बहुत बड़ी माँग है। होलि‍स्‍टि‍क हैल्‍थकेयर की चि‍न्‍ता करने वाला एक पूरा वर्ग है दुनि‍या में, जो जि‍तना माँगो उतना दाम देकर ऑर्गेनि‍क चीजे़ं खरीदने के लि‍ए कतार में खड़ा है। यह ग्‍लोबल मार्केट को कैप्‍चर करने के लि‍ए सि‍क्‍कि‍म के कि‍सानों ने जो मेहनत की है, उसको जोड़कर अगर हम इस योजना को आगे बढ़ाएँ तो दूर-सुदूर हि‍मालय की गोद में बैठा हुआ सि‍क्‍कि‍म प्रदेश कि‍तनी बड़ी ताकत के साथ उभर सकता है। इसलि‍ए क्‍या कभी हम सपना नहीं देख सकते हैं कि‍ हमारे पूरे नॉर्थ ईस्‍ट को ऑर्गैनि‍क स्‍टेट के रूप में हम कैसे उभार सकें। पूरे नॉर्थ ईस्‍ट को अगर ऑर्गैनि‍क स्‍टेट के रूप में हम उभारें और वि‍श्‍व के मार्केट पर कब्‍ज़ा करने के लि‍ए भारत सरकार की तरफ से उनको मदद मि‍ले तो वहाँ दूर पहाड़ों में रहने वाले लोगों की जि‍न्‍दगी में, कृषि‍ के जीवन में कि‍तना बड़ा बदलाव आ सकता है। हमारी इतनी कृषि‍ यूनि‍वर्सि‍टीज़ हैं। बहुत रि‍सर्च हो रही हैं, लेकि‍न यह दुर्भाग्‍य रहा है कि‍ जो लैब में है, वह लैण्‍ड पर नहीं है। लैब से लैण्‍ड तक की यात्रा में जब तक हम उस पर बल नहीं देंगे, आज कृषि‍ को परंपरागत कृषि‍ से बाहर लाकर आधुनि‍क कृषि‍ की ओर ले जाने की आवश्‍यकता है। गुजरात ने एक छोटा सा प्रयोग कि‍या था- सॉयल हैल्‍थ कार्ड। हमारे देश में मनुष्‍य के पास भी अभी हैल्‍थ कार्ड नहीं है। लेकि‍न गुजरात में हमने एक इनीशि‍येटि‍व लि‍या था। उसकी जमीन की तबीयत का उसके पास कार्ड रहे। उसके कारण से पता चला कि‍ उसकी जमीन जि‍स क्रॉप के लि‍ए उपयोगी नहीं है, वह उसी फसल के लि‍ए खर्चा कर रहा था। जि‍स फर्टि‍लाइज़र की जरूरत नहीं है, उतनी मात्रा में वह फर्टि‍लाइजर डालता था। जि‍न दवाइयों की कतई जरूरत नहीं थी, वह दवाइयाँ लगाता था। बेकार ही साल भर में 50 हजार रुपये या लाख रुपये यूँ ही फेंक देता था। लेकि‍न सॉयल हैल्‍थ कार्ड के कारण उसको समझ आई कि‍ उसकी कृषि‍ को कैसे लि‍या जाए। क्‍या हम हि‍न्‍दुस्‍तान के हर कि‍सान को सॉयल हैल्‍थ कार्ड देने का अभि‍यान पूर्ण नहीं कर सकते? हम इसको कर सकते हैं। सॉयल टैस्‍टिंग के लि‍ए भी हम अध्‍ययन के साथ कमाई का एक नया आयाम ले सकते हैं। जो लोग मुझसे पूछ रहे हैं कि‍ कैसे करोगे, मैं इसलि‍ए एक वि‍षय को लंबा खींचकर बता रहा हूँ कि‍ कैसे करेंगे?

हमारे एग्रीकल्‍चरल यूनि‍वर्सि‍टी के स्‍टूडेण्‍ट्स अप्रैल, मई और जून में गाँव जाते हैं और पूरे हि‍न्‍दुस्‍तान में 10+2 के जो स्‍कूल्‍स हैं, जि‍नमें एक लैबोरेटरी होती है। क्‍यों न वैकेशन में उन लैबोरेटरीज को ‘सॉयल टैस्‍टिंग लैबोरेटरीज़’ में कनवर्ट कि‍या जाए। एग्रीकल्‍चरल यूनि‍वर्सि‍टी के स्‍टूडेंट्स जो वैकेशन में अपने गाँव जाते हैं उनको स्‍कूलों के अंदर काम में लगाया जाए और वैकेशन के अंदर वे अपना सॉयल टैस्‍टिंग का काम उस लैबोरेटरी में करें। उस स्‍कूल को कमाई होगी और उसमें से अच्‍छी लैबोरेटरी बनाने का इरादा बनेगा। एक जन आंदेलन के रूप में इसे परि‍वर्ति‍त कि‍या जा सकता है या नहीं कि‍या जा सकता है? कहने का तात्‍पर्य यह है कि‍ हम छोटे-छोटे प्रायोगि‍क उपाय करेंगे तो हम चीजों को बदल सकते हैं।

आज हमारे रेलवे की आदत क्‍या है? वह लकीर के फकीर हैं। उनको लि‍खा गया है कि‍ मंडे को जो माल आए, वह एक वीक के अंदर चला जाना चाहि‍ए। अगर मंडे को मार्बल आया है स्‍टेशन पर, जि‍से मुम्‍बई पहुँचाना है और टयूज़डे को टमाटर आया है, तो वह पहले मार्बल भेजता है, बाद में टमाटर भेजता है। क्‍यों? मार्बल अगर चार दि‍न बाद पहुँचेगा तो क्‍या फर्क पड़ता है, ले‍कि‍न अगर टमाटर पहले पहुँचता है तो कम से कम वह खराब तो नहीं होगा। हमें अपनी पूरी व्‍यवस्‍था को सैंसेटाइज़ करना है।

आज हमारे देश का दुर्भाग्‍य है, इंफोर्मेशन टेक्‍नोलॉजी के नाम पर दुनि‍या में हम छाये हुए रहें, साफ्टवेयर इंजीनि‍यर के रूप में हमारी पहचान बन गई लेकि‍न आज हमारे देश के पास एग्रो प्रोडक्‍ट का रि‍यल टाइम डाटा नहीं है। क्‍या हम इंफोर्मेशन टेक्‍नोलॅजी के नेटवर्क के माध्‍यम से एग्रो प्रोडक्‍ट का रि‍‍यल डाटा इक्‍ट्ठा कर सकते हैं? हमने महँगाई को दूर करने का वायदा कि‍या है और हम इस पर प्रमाणि‍कता से प्रयास करने के लि‍ए प्रति‍बद्ध हैं और यह इसलि‍ए नहीं कि‍ यह केवल चुनावी वायदा था इसलि‍ए करना है, यह हमारी सोच है कि‍ गरीब के घर में शाम को चूल्‍हा जलना चाहि‍ए। गरीब के बेटे आँसू पीकर के सो जाएं, इस स्‍थि‍ति‍ में बदलाव आना चाहि‍ए। यह हम सभी का कर्तव्‍य है चाहे राज्‍य सरकार हो या राष्‍ट्रीय सरकार हो, सत्‍ता में हो या वि‍पक्ष में हो। हम सभी का सामूहि‍क उत्‍तरदायि‍त्‍व है कि‍ हि‍न्‍दुस्‍तान का कोई भी गरीब भूखा न रहे। इस कर्तव्‍य की पूर्ति‍ के लि‍ए हम इस काम को करना चाहते हैं। अगर रि‍यल टाइम डाटा हो तो आज भी देश में अन्‍न के भंडार पड़े हैं। ऐसा नहीं है कि‍ अन्‍न के भंडार नहीं हैं, लेकि‍न व्‍यवस्थाओं की कमी है। अगर सरकार के पास यह जानकारी हो कि‍ कहाँ जरूरत है, रेलवे का जब लल पीरि‍यड हो उस समय उसे तभी शि‍फ्ट कर दि‍या जाए और वहाँ अगर गोदाम बनाए जाएं और वहाँ रख दि‍या जाए, तो इस समस्‍या का समाधान हो सकता है। फूड कार्पोरेशन ऑफ इंडि‍या, सालों से एक ढाँचा चल रहा है। क्‍या उसे आधुनि‍क नहीं बनाया जा सकता है? प्रोक्‍योरमेंट का काम कोई और करे, रि‍जर्वेशन का काम कोई अलग करे, डि‍स्‍ट्रि‍ब्‍यूशन का काम कोई अलग करे, एक ही व्‍यवस्‍था को अगर तीन हि‍स्‍सों में बाँट दि‍या जाए और तीनों की रि‍स्‍पोंसि‍बि‍लटी बना दी जाए तो मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि‍ हम इन स्‍थि‍ति‍यों को बदल सकते हैं।

एग्रीकल्‍चर सेक्‍टर में हमारी एग्रीकल्‍चर यूनि‍वर्सि‍टीज़ को, हमारे कि‍सानों को, अभी एक बात पर बल देना पड़ेगा, यह समय की माँग है। जैसा मैंने आधुनि‍क खेती के बारे में कहा, हम टेक्‍नोलॉजी को एग्रीकल्‍चर में जि‍तनी तेजी से लाएंगे उतना लाभ होगा क्‍योंकि‍ परि‍वारों का विस्‍तार होता जा रहा है और जमीन कम होती जा रही है। हमें जमीन में प्रोडक्‍टीवि‍टी बढ़ानी पड़ेगी। इसके लि‍ए हमें अपनी यूनि‍वर्सि‍टीज़ में रि‍सर्च का काम बढ़ाना पड़ेगा। कि‍तने वर्षों से Pulses में कोई रि‍सर्च नहीं हुआ है। Pulses हमारे सामने बहुत बड़ा चैलेंज बनी हुई हैं। आज गरीब आदमी को प्रोटीन पाने के लि‍ए Pulses के अलावा कोई उपाय नहीं है। Pulses ही हैं, जि‍सके माध्‍यम से उसे प्रोटीन प्राप्‍त होता है और शरीर की रचना में प्रोटीन का बहुत महत्‍व होता है। अगर कुपोषण के खि‍लाफ लड़ाई लड़नी है तो हमें इन सवालों को एड्रेस करना होगा। Pulses के क्षेत्र में कई वर्षों से न हम प्रोडक्‍टि‍वि‍टी में बढ़ावा ले पाए हैं और न ही Pulses के अंदर प्रोटीन कंटेंट के अंदर वृद्धि‍ कर पाए हैं। हम शुगरकेन में शुगर कंटेंट बढ़ाने में सफल हुए हैं, लेकि‍न हम Pulses में प्रोटीन कंटेंट बढ़ाने में सफल नहीं हुए हैं। यह बहुत बड़ा चैलेंज है। क्‍या हमारे वैज्ञानि‍क, हमारी कृषि‍ यूनि‍वर्सि‍टीज को प्रेरि‍त करेंगे? हम इन समस्‍याओं पर क्‍यूमलेटि‍व इफैक्‍ट के साथ अगर चीजों को आगे बढ़ाते हैं तो मैं मानता हूँ कि‍ इन समस्‍याओं का समाधान हो सकता है। इसका यह रास्‍ता है।

हमारी माताएँ -बहनें जो हमारी पचास परसेंट की जनसंख्‍या है भारत की वि‍कास यात्रा में, उन्‍हें नि‍र्णय में, भागीदार बनाने की जरूरत है। उन्‍हें हमें आर्थि‍क प्रगति‍ से जोड़ना होगा। वि‍कास की नई ऊँचाइयों को पार करना है तो हिंदुस्‍तान की पचास प्रति‍शत हमारी मातृ शक्‍ति‍ है, उसकी सक्रि‍य भागीदारी को हमें नि‍श्‍चि‍त करना होगा। उनके सम्‍मान की चिंता करनी होगी, उनकी सुरक्षा की चिंता करनी होगी।

पि‍छले दि‍नों जो कुछ घटनाएँ घटी हैं, हम सत्‍ता में हों या न हों, पीड़ा करने वाली घटना है। चाहे पुणे की हत्‍या हो, चाहे उत्‍तर प्रदेश में हुई हत्‍या हो, चाहे मनाली में डूबे हुए हमारे नौजवान हों, चाहे हमारी बहनों पर हुए बलात्‍कार हो, ये सारी घटनाएँ, हम सब को आत्‍मचिंतन करने के लि‍ए प्रेरि‍त करती हैं। सरकारों को कठोरता से काम करना होगा। देश लंबा इंतजार नहीं करेगा, पीड़ि‍त लोग लंबा इंतजार नहीं करेंगे और हमारी अपनी आत्‍मा हमें माफ नहीं करेगी। इसलि‍ए मैं तो राजनेताओं से अपील करता हूँ। मैं देश भर के राजनेताओं को वि‍शेष रूप से करबद्ध प्रार्थना करना चाहता हूँ कि‍ बलात्‍कार की घटनाओं का ‘मनोवैज्ञानि‍क वि‍श्‍लेषण’ करना कम से कम हम बंद करें। हमें शोभा नहीं देता है। हम माँ-बहनों की डि‍ग्‍नि‍टी पर खि‍लवाड़ करते हैं। हमें राजनीति‍क स्‍तर पर, इस प्रकार की बयानबाजी करना शोभा देता है क्‍या? क्‍या हम मौन नहीं रह सकते? इसलि‍ए नारी का सम्‍मान, नारी की सुरक्षा, यह हम सब की, सवा सौ करोड़ देशवासि‍यों की प्राथमि‍कता होनी चाहि‍ए।

इस देश की 65 प्रतिशत जनसंख्‍या 35 से कम आयु की है। हम कितने सौभाग्‍यशाली हैं। हम उस युग चक्र के अंदर आज जीवित है। हम उस युग चक्र में संसद में बैठे हैं जब हिंदुस्‍तान दुनिया का सबसे नौजवान देश है। डेमोग्राफिक डिवीज़न- इस ताकत को हम पहचानें। पूरे विश्‍व को आने वाले दिनों में लेबर फोर्स की मैन पावर की Skilled मैनपावर की बहुत बड़ी आवश्‍यकता है। जो लोग इस शास्‍त्र के अनुभवी हैं, वे जानते हैं कि‍ पूरे वि‍श्‍व को Skilled मैनपावर की आवश्‍यकता है। हमारे पड़ोस में चीन बूढ़ा होता जा रहा है, हम नौजवान होते जा रहे हैं। यह एक एडवांटेज है। इसलि‍ए दुनि‍या के सभी देश समृद्ध-से-समृद्ध देश का एक ही एजेंडा रहता है- स्‍कि‍ल डेवलपमेंट। हमारे देश की प्राथमि‍कता होनी चाहि‍ए ‘स्‍कि‍ल डेवलपमेंट’। उसके साथ-साथ हमें सफल होना है तो हमें ‘श्रमेव जयते’ – इस मंत्र को चरि‍तार्थ करना होगा। राष्‍ट्र के नि‍र्माण में श्रमि‍क का स्‍थान होता है। वह वि‍श्‍वकर्मा है। उसका हम गौरव कैसे करें।

भाइयो-बहनो, भारत का एक परसेप्‍शन दुनि‍या में बन पड़ा है। हमारी पहचान बन गयी है ‘स्‍कैम इंडि‍या’ की। हमारे देश की पहचान हमें बनानी है ‘Skilled’ इंडि‍या की और उस सपने को हम पूरा कर सकते हैं। इसलि‍ए पहली बार एक अलग मंत्रालय बनाकर के- इंटरप्रेन्‍योरशि‍प एण्‍ड स्‍कि‍ल डेवलपमेंट- उस पर वि‍शेष रूप से बल दि‍या गया है।

हमारे देश का एक दुर्भाग्‍य है। किसी से पूछा जाए कि क्‍या पढ़े-लि‍खे हो तो वह कहता है कि‍ ग्रैजुएट हूँ, एम.ए. हूँ, डबल ग्रैजुएट हूँ। हमें अच्‍छा लगता है। मैंने बहुत बचपन में दादा धर्माधि‍कारी जी की एक कि‍ताब पढ़ी थी। महात्‍मा गाँधी के वि‍चारों के एक अच्‍छे चिंतक रहे, बि‍नोवा जी के साथ रहते थे। दादा धर्माधि‍कारी जी ने एक अनुभव लि‍खा था कि‍ कोई नौजवान उनके पास नौकरी लेने गया। उन्‍होंने पूछा कि‍ भाई, क्‍या करते हो, क्‍या पढ़े हो वगैरह। उसने कहा कि‍ मैं ग्रैजुएट हूँ। फि‍र कहने लगा कि‍ मुझे नौकरी चाहि‍ए। दादा धर्माधि‍कारी जी ने उससे पूछा कि‍ तुम्‍हें क्‍या आता है? उसने बोला- मैं ग्रैजुएट हूँ। फि‍र उन्‍होंने कहा- हाँ, हाँ भाई, तुम ग्रैजुएट हो, पर बताओ तुम्‍हें क्‍या आता है? उसने बोला- नहीं, नहीं! मैं ग्रैजुएट हूँ। चौथी बार पूछा कि‍ तुम्‍हें बताओ क्‍या आता है। वह बोला मैं ग्रैजुएट हूँ। हम इस बात से अनुभव कर सकते हैं कि‍ जि‍न्‍दगी का गुजारा करने के लि‍ए हाथ में हुनर होना चाहि‍ए, सि‍र्फ हाथ में सर्टि‍फि‍केट होने से बात नहीं होती। इसलि‍ए हमें स्‍कि‍ल डेवलपमेंट की ओर बल देना होगा, लेकि‍न स्‍कि‍ल्‍ड वर्कर जो हैं, उसका एक सामाजि‍क स्‍टेटस भी खड़ा करना पड़ेगा। सातवीं कक्षा तक पढ़ा हुआ बच्‍चा, गरीबी के कारण स्‍कूल छोड़ देता है। कहीं जा करके स्‍कि‍ल डेवलपमेंट के कोर्स का सौभाग्‍य मि‍ला, चला जाता है, लेकि‍न लोग उसको महत्‍व नहीं देते, अच्‍छा सातवीं पढ़े हो, चले जाओ। हमें उसकी इक्‍वीवैलंट व्‍यवस्‍था खड़ी करनी पड़ेगी। मैंने गुजरात में प्रयोग कि‍या था। जो दो साल की आईटीआई करते थे, मैंने उनको दसवीं के इक्‍वल बना दि‍या, जो दसवीं के बाद आए थे, उनको 12वीं के इक्‍वल बना दि‍या। उनको डि‍प्‍लोमा या आगे पढ़ना है तो रास्‍ते खोल दि‍ए। डि‍ग्री में जाना है तो रास्‍ते खोल दि‍ए। सातवीं पास था, लेकि‍न डि‍ग्री तक जा सकता है, रास्‍ते खोल दि‍ए। बहुत हि‍म्‍मत के साथ नये नि‍र्णय करने होंगे।

अगर हम स्‍कि‍ल डेवलपमेंट को बल देना चाहते हैं तो उसकी सामाजि‍क प्रति‍ष्‍ठा पैदा करनी होगी। मैंने कहा कि‍ दुनि‍या में वर्क फोर्स की आवश्‍यकता है। आज सारे वि‍श्‍व को टीचर्स की आवश्‍यकता है। क्‍या हि‍न्‍दुस्‍तान टीचर एक्‍सपोर्ट नहीं कर सकता है। मैथ्‍स और साइंस के टीचर अगर हम दुनि‍या में एक्‍सपोर्ट करें, एक व्‍यापारी वि‍देश जाएगा तो ज्‍यादा से ज्‍यादा डालर लेकर आएगा, लेकि‍न एक टीचर वि‍देश जाएगा तो पूरी की पूरी पीढ़ी अपने साथ समेट करके ले आएगा। ये ताकत रखनी है। वि‍श्‍व में हमारे सामर्थ्‍य को खड़ा करना है तो ये रास्‍ते होते हैं। क्‍या हम अपने देश में इस प्रकार के नौजवानों को तैयार नहीं कर सकते? ये सारी संभावनाएँ पड़ी हैं, उन संभावनाओं को ले करके अगर आगे चलने का हम इरादा रखते हैं तो मुझे वि‍श्‍वास है कि‍ हम परि‍णाम ला सकते हैं। दलि‍त, पीड़ि‍त, शोषि‍त एवं वंचि‍त हो।

हमारे दलि‍त एवं वनवासी भाई-बहनों, क्‍या हम वि‍श्‍वास से कह सकते हैं कि‍ आजादी के इतने सालों के बाद उनके जीवन में हम बदलाव ला सके हैं। ऐसा नहीं है कि‍ बजट खर्च नहीं हुए, कोई सरकार के पास गंभीरता नहीं थी। मैं ऐसा कोई कि‍सी पर आरोप नहीं लगा रहा हूँ, लेकि‍न हकीकत यह है कि‍ स्‍थि‍ति‍ में बदलाव नहीं आया। क्‍या हम पुराने ढर्रे से बाहर आने को तैयार हैं? हम सरकार की योजनाओं को कन्वर्जेंस कर-करके, कम से कम समाज के इन तबको को बाहर ला सकते हैं। क्‍यों नहीं उनके जीवन में बदलाव आ सकता है। मुसलमान भाई, मैं देखता हूँ, जब मैं छोटा था, जो साइकि‍ल रि‍पेयरिंग करता था, आज उसकी तीसरी पीढ़ी का बेटा भी साइकि‍ल रि‍पेयरिंग करता है। ऐसी दुर्दशा क्‍यों हुई? उनके जीवन में बदलाव कैसे आए? इस बदलाव के लि‍ए हमें फोकस एक्‍टि‍वि‍टी करनी पड़ेगी। उस प्रकार की योजनओं को ले करके आना पड़ेगा। मैं उन योजनाओं को तुष्‍टीकरण के रूप में देखता नहीं हूँ, मैं उनके जीवन को बदलाव के रूप में देखता हूँ। कोई भी शरीर अगर उसका एक अंग वि‍कलांग हो तो उस शरीर को कोई स्‍वस्‍थ नहीं मान सकता। शरीर के सभी अंग अगर सशक्‍त हों, तभी तो वह सशक्‍त शरीर हो सकता है। इसलि‍ए समाज का कोई एक अंग अगर दुर्बल रहा तो समाज कभी सशक्‍त नहीं हो सकता है। इसलि‍ए समाज के सभी अंग सशक्‍त होने चाहि‍ए। उस मूलभूत भावना से प्रेरि‍त हो करके हमें काम करने की आवश्‍यकता है और हम उससे प्रति‍बद्ध हैं। हम उसको करना चाहते हैं। हमारे देश में वि‍कास की एक नयी परि‍भाषा की ओर जाने की मुझे आवश्‍यकता लगी। क्‍या आजादी का आंदोलन, देश में आजादी की लड़ाई बारह सौ साल के कालखंड में कोई वर्ष ऐसा नहीं गया, जि‍समें आजादी के लि‍ए मरने वाले दीवाने न मि‍ले हों। 1857 के बाद सारा स्‍वतंत्र संग्राम का इति‍हास हमारे सामने है। हि‍न्‍दुस्‍तान का कोई भू-भाग ऐसा नहीं होगा, जहाँ से कोई मरने वाला तैयार न हुआ हो, शहीद होने के लि‍ए तैयार न हुआ हो। सि‍लसि‍ला चलता रहा था, फांसी के तख्‍त पर चढ़ करके देश के लि‍ए बलि‍दान होने वालों की श्रृंखला कभी रुकी नहीं थी।

भाइयों और बहनों, आप में से बहुत लोग ऐसे होंगे, जो आजादी के बाद पैदा हुए होंगे। कुछ महानुभाव ऐसे भी हैं, जो आजादी के पहले पैदा हुए होंगे, आजादी की जंग में लड़े भी होंगे। मैं आजादी के बाद पैदा हुआ हूँ। मेरे मन में वि‍चार आता है। मुझे देश के लि‍ए मरने का मौका नहीं मि‍ला, लेकि‍न देश के लि‍ए जीने का मौका तो मि‍ला है। हम यह बात लोगों तक कैसे पहुँचाये कि‍ हम देश के लि‍ए जि‍यें और देश के लि‍ए जीने का एक मौका लेकर वर्ष 2022 में जब आजादी के 75 साल हों, देश के लि‍ए जीवन न्‍यौछावर करने वाले उन महापुरूषों को याद करते हुए हम एक काम कर सकते हैं। बाकी सारे काम भी करने हैं, लेकि‍न एक काम जो प्रखरता से करें कि‍ हिंदुस्‍तान में कोई परि‍वार ऐसा न हो, जि‍सके पास रहने के लि‍ए अपना घर न हो। ऐसा घर जि‍समें नल भी हो, नल में पानी भी हो, बि‍जली भी हो, शौचालय भी हो। यह एक मि‍नि‍मम बात है। एक आंदोलन के रूप में सभी राज्‍य सरकारें और केंद्र सरकार मि‍लकर, हम सभी सदस्‍य मि‍लकर अगर आठ-नौ साल का कार्यक्रम बना दें, धन खर्च करना पड़े, तो खर्च करें, लेकि‍न आजादी के 75 साल जब मनायें तब भगत सिंह को याद करके, सुखदेव को याद करके, राजगुरु को याद करके, महात्‍मा गाँधी, सरदार पटेल इन सभी महापुरूषों को याद करके उनको हम मकान दे सकते हैं। अगर हम इस संकल्‍प की पूर्ति‍ करके आगे बढ़ते हैं तो देश के सपनों को पूरा करने का काम हम कर सकते हैं।

मैं जानता हूँ कि‍ शासन में आने के बाद जि‍सको नापा जा सके, ऐसा कार्यक्रम हाथ में लेना बड़ा कठि‍न होता है। आदरणीय मुलायम सिंह जी ने कहा कि‍ मैंने सरकार चलायी है। सरकार चलायी है, इसलि‍ए मैं कहता हूँ कि‍ भाई यह कैसे करोगे, यह कैसे होगा? उनकी सदभावना के लि‍ए मैं उनका आभारी हूँ। उन्‍होंने चि‍न्‍ता व्‍यक्‍त की है, लेकि‍न हम मि‍ल-बैठकर के रास्‍ता नि‍कालेंगे। हम सपना तो देखे हैं, उसे पूरा करने का प्रयास करेंगे। कुछ कठि‍नाई आयेगी तो आप जैसे अनुभवी लोग हैं, जि‍नका मार्गदर्शन हमें मि‍लेगा। गरीब के लि‍ए काम करना है, इसके लि‍ए हमें आगे बढ़ना है।

यहाँ यह बात भी आयी, नयी बोतल में पुरानी शराब है। उनको शराब याद आना बड़ा स्‍वाभावि‍क है। यह भी कहा कि‍ ये तो हमारी बातें हैं, आपने जरा ऊपर-नीचे करके रखी हैं, कोई नयी बात नहीं है। इसका मतलब यह है कि‍ जो हम कह रहे हैं, वह आपको भी पता था। कल से महाभारत की चर्चा हो रही है और मैं कहना चाहता हूँ कि‍ एक बार दुर्योधन से पूछा गया कि‍ भाई यह धर्म और अधर्म, सत्‍य और झूठ तुमको समझ है कि‍ नहीं है, तो दुर्योधन ने जवाब दि‍या था, उसने कहा कि‍ जानामि‍ धर्मम् न च में प्रवृत्‍ति‍:, मैं धर्म को जानता हूँ, लेकि‍न यह मेरी प्रवृत्‍ति‍ नहीं है। सत्‍य क्‍या है, मुझे मालूम है। अच्‍छा क्‍या है, मुझे मालूम है, लेकि‍न वह मेरे डीएनए में नहीं है। इसलि‍ए आपको पहले पता था, आप जानते थे, आप सोचते थे, मुझे इससे ऐतराज नहीं है, लेकि‍न दुर्योधन को भी तो मालूम था। इसलि‍ए जब महाभारत की चर्चा करते हैं, महाभारत लंबे अरसे से हमारे कानों में गूंजती रही है, सुनते आए हैं, लेकि‍न महाभारत काल पूरा हो चुका है। न पांडव बचे है, न कौरव बचे हैं, लेकि‍न जन-मन में आज भी पांडव ही वि‍जयी हों, हमेशा-हमेशा भाव रहा है। कभी पांडव पराजि‍त हों, यह कभी जन-मन का भाव नहीं रहा है।

भाइयों और बहनों, वि‍जय हमें बहुत सि‍खाता है और हमें सीखना भी चाहि‍ए। वि‍जय हमें सि‍खाता है नम्रता, मैं इस सदन को वि‍श्‍वास देता हूँ, मुझे वि‍श्‍वास है कि‍ यहाँ के जो हमारे सीनि‍यर्स हैं, चाहे वह कि‍सी भी दल के क्‍यों नहों, उनके आशीर्वाद से हम उस ताकत को प्राप्‍त करेंगे, जो हमें अहंकार से बचाये।

जो हमें हर पल नम्रता सि‍खाए। यहाँ पर कि‍तनी ही संख्‍या क्‍यों न हो, लेकि‍न मुझे आपके बि‍ना आगे नहीं बढ़ना है। हमें संख्‍या के बल पर नहीं चलना है, हमें सामूहि‍कता के बल पर चलना है इसलि‍ए उस सामूहि‍कता के भाव को ले कर हम आगे बढ़ना चाहते हैं।

इन दि‍नों मॉडल की चर्चा होती है- गुजरात मॉडल, गुजरात मॉडल। जि‍न्‍होंने मेरा भाषण सुना होगा उन्‍हें मैं बताता हूँ कि‍ गुजरात का मॉडल क्‍या है? गुजरात में भी एक जि‍ले का मॉडल दूसरे जि‍ले में नहीं चलता है क्‍योंकि‍ यह देश वि‍वि‍धताओं से भरा हुआ है। अगर मेरा कच्‍छ का रेगि‍स्‍तान है और वहाँ का मॉडल मैं वलसाड के हरे-भरे जि‍ले में लगाऊंगा तो नहीं चलेगा। इतनी समझ के कारण तो गुजरात आगे बढ़ा है।..... (व्‍यवधान) यही उसका मॉडल है कि‍ जि‍समें यह समझ है।..... (व्‍यवधान) गुजरात का दूसरा मॉडल यह है कि‍ हि‍न्‍दुस्‍तान के कि‍सी भी कोने में अच्‍छा हो, उन अच्‍छी बातों से हम सीखते हैं, उन अच्‍छी बातों को हम स्‍वीकार करते हैं। आने वाले दि‍नों में भी हम उस मॉडल को ले कर आगे बढ़ना चाहते हैं, हि‍न्‍दुस्‍तान के कि‍सी भी कोने में अच्‍छा हुआ हो, जो अच्‍छा है, वह हम सबका है, उसको और जगहों पर लागू करने का प्रयास करना है।

कल तमि‍लनाडु की तरफ से बोला गया था कि‍ तमि‍लनाडु का मॉडल गुजरात के मॉडल से अच्‍छा है। मैं इस बात का स्‍वागत करता हूँ कि‍ इस देश में इतना तो हुआ कि‍ वि‍कास के मॉडल की स्‍पर्द्धा शुरू हुई है।..... (व्‍यवधान) एक राज्‍य कहने लगा कि‍ मेरा राज्‍य तुम्‍हारे राज्‍य से आगे बढ़़ने लगा है। मैं मानता हूँ कि‍ गुजरात मॉडल का यह सबसे बड़ा कॉण्‍ट्रि‍ब्‍यूशन है कि‍ पहले हम स्‍पर्द्धा नहीं करते थे, अब कर रहे हैं। हम चाहते हैं कि‍ आने वाले दि‍नों में राज्‍यों के बीच वि‍कास की प्रति‍स्‍पर्द्धा हो। राज्‍य और केंद्र के बीच वि‍कास की स्‍पर्द्धा हो। हर कोई कहे कि‍ गुजरात पीछे रह गया है और हम आगे नि‍कल गए हैं। यह सुनने के लि‍ए मेरे कान तरस रहे हैं। देश में यही होगा, तभी तो बदलाव आएगा। छोटे-छोटे राज्‍य भी बहुत अच्‍छा करते हैं। जैसा मैंने कहा है कि‍ सि‍क्‍कि‍म, ऑर्गैनि‍क स्‍टेट बना है। तमि‍लनाडु ने अर्बन एरि‍या में रेन हार्वेस्‍टिंग का जो काम कि‍या है, वह हम सब को सीखने जैसा है। माओवाद के जुल्‍म के बीच जीने वाले राज्‍य छत्‍तीसगढ़ ने पी.डी.एस. सि‍स्‍टम का एक नया नमूना दि‍या है और गरीब से गरीब व्‍यक्‍ति‍ को पेट भरने के लि‍ए उसने नई योजना दी है।..... (व्‍यवधान)

हमारी बहन ममता जी पश्‍चि‍म बंगाल को 35 साल की बुराइयों से बाहर लाने के लि‍ए आज कि‍तनी मेहनत कर रही हैं, हम उनकी इन बातों का आदर करते हैं। इसलि‍ए हर राज्‍य में ....... (व्‍यवधान) केरल से भी..... (व्‍यवधान) आप को जान कर खुशी होगी कि‍ मैंने केरल के एक अफसर को बुलाया था। वह बहुत ही जुनि‍यर ऑफि‍सर थे और वहाँ लेफ्ट की सरकार चल रही थी। उनकी आयु बहुत छोटी थी। मैंने अपने यहाँ एक चिंतन शि‍वि‍र कि‍या और मैं और मेरा पूरा मंत्री परि‍षद् एक स्‍टुडेंट के रूप में बैठा था। मैंने उनसे ‘कुटुम्‍बश्री’ योजना का अध्‍ययन कि‍या था। उन्‍होंने हमें दो घंटे पढ़ाया।

मैंने नागालैण्‍ड के चीफ सेक्रेट्री को बुलाया था कि‍ आइए मुझे पढ़ाइये। नागालैंड में ट्राइबल के लि‍ए एक बहुत अच्‍छी योजना बनी थी। यही तो हमारे देश का मॉडल होना चाहि‍ए। हि‍न्‍दुस्‍तान के कोने में कि‍सी भी वि‍चारधारा की सरकार क्‍यों न हो, उसकी अच्‍छाइयों का हम आदर करें, अच्‍छाइयों को स्‍वीकार करें।...... (व्‍यवधान) यही मॉडल देश के काम आएगा। हम बड़े भाई का व्‍यवहार कि‍ तुम कौन होते हो? तुम ले जाना दो-चार टुकड़े ऐसा नहीं चाहते हैं, हम मि‍ल करके देश को आगे बढ़ाना चाहते हैं, इसलि‍ए हमने ‘कॉपरेटि‍व फेडरलि‍ज्‍म’ की बात की है। सहकारि‍ता के संगठि‍त स्‍वरूप को लेकर चलने की हमने बात की है और इसलि‍ए एक ऐसे रूप को आगे बढ़ाने का हम लोगों का प्रयास है, उस प्रयास को लेकर आगे चलेंगे, ऐसा मुझे वि‍श्‍वास है।

माननीय अध्‍यक्ष महोदया जी, यह जो प्रस्‍ताव रखा गया है, उसके लि‍ए आज मैं सभी वरि‍ष्‍ठ नेताओं का आभारी हूँ और कुल मि‍ला कर कह सकता हूँ कि‍ आज एक सार्थक चर्चा रही है और समर्थन में चर्चा रही है और अगर आलोचना भी हुई तो अपेक्षा के संदर्भ में हुई है। मैं इसे बहुत हेल्‍दी मानता हूँ, इसका स्‍वागत करता हूँ और आज कि‍सी भी दल की तरफ से जो अच्‍छे सुझाव हमें मि‍ले हैं उन्‍हें मैं अपनी आलोचना नहीं मानता हूँ, उन्‍हें मैं मार्गदर्शक मानता हूँ।

उसका भी हम उपयोग करेंगे, अच्‍छाई के लि‍ए उपयोग करेंगे और लोकतंत्र में आलोचना अच्‍छाई के लि‍ए होती है और होनी भी चाहि‍ए। सिर्फ आरोप बुरे होते हैं आलोचना कभी बुरी नहीं होती है, आलोचना तो ताकत देती है। अगर लोकतंत्र की सबसे बड़ी ताकतवर कोई जड़ी-बूटी है तो वह आलोचना है। हम उस आलोचना के लि‍ए सदा-सर्वदा के लि‍ए तैयार हैं। मैं चाहूँगा हर नीति‍यों का अध्‍ययन करके गहरी आलोचना होनी चाहि‍ए ताकि‍ तप करके प्रखर होकर सोना नि‍कले जो आने वाले दि‍नों में देश के लि‍ए काम आए। उस भाव से हम चलना चाहते हैं।

आज नए सदन में मुझे अपनी बात बताने का अवसर मि‍ला। आदरणीय अध्यक्ष महोदया जी, कहीं कोई शब्‍द इधर-उधर हो गया हो, अगर मैं नि‍यमों के बंधन से बाहर चला गया हूँ तो यह सदन मुझे जरूर क्षमा करेगा। लेकि‍न मुझे वि‍श्‍वास है कि‍ सदन के पूरे सहयोग से, जैसे मैंने पहले कहा था, मतदान से पहले हम उम्‍मीदवार थे, मतदान के बाद हम उम्‍मीदों के रखवाले हैं, हम उम्‍मीदों के दूत हैं, सवा सौ करोड़ देशवासि‍यों की उम्‍मीदों को पूरा करने का हम प्रयास करें। इसी एक अपेक्षा के साथ इसे आप सबका समर्थन मि‍ले। इसी बात को दोहराते हुए आप सबका बहुत-बहुत धन्‍यवाद!

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ମୋର ପ୍ରିୟ ଦେଶବାସୀଗଣ, ନମସ୍କାର । ୨୦୨୫ ବର୍ଷ ଆମ ଦ୍ୱାରଦେଶରେ ଉପନୀତ । ୨୬ ଜାନୁଆରୀ ୨୦୨୫ ଦିନ ଆମ ସମ୍ବିଧାନ କାର୍ଯ୍ୟକାରୀ ହେବାର ୭୫ ବର୍ଷ ପୂରଣ ହେବାକୁ ଯାଉଛି । ଆମ ସମସ୍ତଙ୍କ ପାଇଁ ଏହା ଏକ ଗୌରବର କଥା । ଆମ ସମ୍ବିଧାନ ନିର୍ମାତାଗଣ ଆମକୁ ଯେଉଁ ସମ୍ବିଧାନ ଅର୍ପଣ କରିଯାଇଛନ୍ତି, ତାହା ସବୁ ପରିସ୍ଥିତିରେ ଠିକ୍ ପ୍ରମାଣିତ ହୋଇଛି । ସମ୍ବିଧାନ ଆମକୁ ପଥ ପ୍ରଦର୍ଶିତ କରୁଥିବା ଆଲୋକ ପୁଞ୍ଜ, ଏହା ଆମ ମାର୍ଗଦର୍ଶକ । ଭାରତର ସମ୍ବିଧାନ ଯୋଗୁଁ ହିଁ ଆଜି ମୁଁ ଏଠାରେ ଉପସ୍ଥିତ ହୋଇ ଆପଣଙ୍କ ସହ ଭାବ ବିନିମୟ କରିପାରୁଛି । ଏ ବର୍ଷ ନଭେମ୍ବର ୨୬ ତାରିଖ ସମ୍ବିଧାନ ଦିବସଠାରୁ ଏକବର୍ଷ ବ୍ୟାପୀ ଅନେକ କାର୍ଯ୍ୟକ୍ରମ ଆରମ୍ଭ ହୋଇଛି । ଦେଶର ନାଗରିକମାନଙ୍କୁ ସମ୍ବିଧାନର ଐତିହ୍ୟ ସହ ସଂଯୋଜିତ କରିବା ପାଇଁ constitution75.com ନାମରେ ଏକ ସ୍ୱତନ୍ତ୍ର ୱେବସାଇଟ୍ ମଧ୍ୟ ସୃଷ୍ଟି କରାଯାଇଛି । ଏଥିରେ ଆପଣ ସମ୍ବିଧାନର ମୁଖବନ୍ଧ ପାଠ କରି ନିଜ ଭିଡିଓ ଅପଲୋଡ୍ କରିପାରିବେ । ଭିନ୍ନ ଭିନ୍ନ ଭାଷାରେ ସମ୍ବିଧାନ ପଢ଼ି ପାରିବେ । ସମ୍ବିଧାନ ବିଷୟରେ ପ୍ରଶ୍ନ ମଧ୍ୟ ପଚାରି ପାରିବେ । ଏହି ୱେବସାଇଟ୍ ପରିଦର୍ଶନ କରି ଏଥିରେ ଅଂଶଗ୍ରହଣ କରିବା ପାଇଁ ମୁଁ ‘ମନ୍ କି ବାତ୍’ର ଶ୍ରୋତା, ବିଦ୍ୟାଳୟରେ ପଢ଼ୁଥିବା ଛାତ୍ରଛାତ୍ରୀ, କଲେଜରେ ପଢ଼ୁଥିବା ଯୁବବର୍ଗ ସମସ୍ତଙ୍କୁ ଅନୁରୋଧ କରୁଛି ।

ବନ୍ଧୁଗଣ, ଆସନ୍ତା ମାସ ୧୩ ତାରିଖ ଠାରୁ ପ୍ରୟାଗରାଜରେ ମହାକୁମ୍ଭ ମଧ୍ୟ ଅନୁଷ୍ଠିତ ହେବାକୁ ଯାଉଛି । ଏବେ ସେଠାରେ ସଙ୍ଗମକୁଳରେ ଜୋରଦାର୍ ପ୍ରସ୍ତୁତି ଚାଲିଛି । ମୋର ମନେ ଅଛି, ଏଇ କିଛି ଦିନ ତଳେ ଯେତେବେଳେ ମୁଁ ପ୍ରୟାଗରାଜ୍ ଯାଇଥିଲି, ସେତେବେଳେ ହେଲିକପ୍ଟରରୁ ସମ୍ପୂର୍ଣ୍ଣ କୁମ୍ଭ କ୍ଷେତ୍ର ଦେଖି ମନ ଆନନ୍ଦିତ ହୋଇଯାଇଥିଲା । ଏତେ ବିଶାଳ ! ଏତେ ସୁନ୍ଦର ! ଏତେ ଭବ୍ୟ !

ବନ୍ଧୁଗଣ, ମହାକୁମ୍ଭର ବିଶେଷତ୍ୱ କେବଳ ଏହାର ବିଶାଳତା ନୁହେଁ । କୁମ୍ଭର ବିଶେଷତ୍ୱ ଏହାର ବିବିଧତାରେ ମଧ୍ୟ ରହିଛି । ଏହି ଆୟୋଜନରେ କୋଟି କୋଟି ଲୋକ ଏକତ୍ରିତ ହୁଅନ୍ତି । ଲକ୍ଷ ଲକ୍ଷ ସାଧୁ ସନ୍ଥ, ହଜାର ହଜାର ପରମ୍ପରା, ଶହ ଶହ ସମ୍ପ୍ରଦାୟ, ଅନେକ ଆଖଡ଼ା, ସମସ୍ତେ ଏହି ଆୟୋଜନରେ ଅଂଶଗ୍ରହଣ କରନ୍ତି । ଏହି କୁମ୍ଭମେଳାରେ କେବେ କୌଣସି ଭେଦଭାବ ନ ଥାଏ । ନା ଏଠି କେହି ବଡ଼, ନା କେହି ସାନ । ବିବିଧତା ମଧ୍ୟରେ ଏକତାର ଏଭଳି ଦୃଶ୍ୟ ବିଶ୍ୱରେ ଆଉ କେଉଁଠି ବି ଦେଖିବାକୁ ମିଳେନାହିଁ । ତେଣୁ ଆମ କୁମ୍ଭ ଏକତାର ମହାକୁମ୍ଭ ମଧ୍ୟ ହୋଇଥାଏ । ଏଥରର ମହାକୁମ୍ଭ ମଧ୍ୟ ଏକତାର ମହାକୁମ୍ଭର ମନ୍ତ୍ରକୁ ସଶକ୍ତ କରିବ । କୁମ୍ଭରେ ଅଂଶଗ୍ରହଣ କରିବା ସହ ଏକତାର ଏହି ସଂକଳ୍ପକୁ ମଧ୍ୟ ନିଜ ସହ ନେଇ ଫେରିବା ପାଇଁ ମୋର ଆପଣ ସମସ୍ତଙ୍କୁ ଅନୁରୋଧ । ଆମେ ସମାଜରେ ବିଭାଜନ ଓ ବିଦ୍ୱେଷର ଭାବନାକୁ ନଷ୍ଟ କରିବାର ସଂକଳ୍ପ ମଧ୍ୟ ଗ୍ରହଣ କରିବା । ସଂକ୍ଷେପରେ କହିବାକୁ ହେଲେ ମୁଁ ଏତିକି କହିବି . . .

ମହାକୁମ୍ଭର ଏଇ ସନ୍ଦେଶ, ଏକ୍ ହେଉ ସାରା ଦେଶ ।

ମହାକୁମ୍ଭର ଏଇ ସନ୍ଦେଶ, ଏକ୍ ହେଉ ସାରା ଦେଶ ।

ଆଉ ଅନ୍ୟ ଭାଷାରେ କହିବାକୁ ଗଲେ, କହିବି . . .

ଗଙ୍ଗାର ଧାରା ବହୁ ନିରନ୍ତର, ବିଭାଜିତ ନ ହେଉ ସମାଜ ଆମର ।

ଗଙ୍ଗାର ଧାରା ବହୁ ନିରନ୍ତର, ବିଭାଜିତ ନ ହେଉ ସମାଜ ଆମର ।

ବନ୍ଧୁଗଣ, ଏଥର ପ୍ରୟାଗରାଜରେ ଦେଶ ବିଦେଶର ଶ୍ରଦ୍ଧାଳୁ ଡିଜିଟାଲ୍ ମହାକୁମ୍ଭର ମଧ୍ୟ ସାକ୍ଷୀ ହେବେ । ଡିଜିଟାଲ୍ ନେଭିଗେସନ୍ ସାହାର୍ଯ୍ୟରେ ଆପଣମାନେ ବିଭିନ୍ନ ଘାଟ, ମନ୍ଦିର, ସାଧୁସନ୍ଥଙ୍କ ଆଖଡ଼ା ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ପହଂଚିବାର ରାସ୍ତା ପାଇପାରିବେ । ଏହି ନେଭିଗେସନ୍ ସିଷ୍ଟମ୍ ଆପଣଙ୍କୁ ପାର୍କିଂ ସ୍ଥଳ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ପହଂଚିବା ପାଇଁ ମଧ୍ୟ ସାହାର୍ଯ୍ୟ କରିବ । କୁମ୍ଭ ଆୟୋଜନରେ ପ୍ରଥମ ଥର ପାଇଁ ଏ.ଆଇ. ଚାଟବୋଟର ବ୍ୟବହାର ହେବ । ଏ.ଆଇ. ଚାଟବୋଟ୍ ମାଧ୍ୟମରେ ୧୧ଟି ଭାରତୀୟ ଭାଷାରେ କୁମ୍ଭ ସମ୍ପର୍କିତ ସୂଚନା ପ୍ରାପ୍ତ କରାଯାଇପାରିବ । ଏହି ଚାଟବୋଟରେ text ଟାଇପ୍ କରି କିମ୍ବା ନିଜେ କହି ଯେକୌଣସି ପ୍ରକାର ସାହାଯ୍ୟ ପାଇଁ ଅନୁରୋଧ କରିପାରିବେ । ସମ୍ପୂର୍ଣ୍ଣ ମେଳା କ୍ଷେତ୍ରଟି ଏ.ଆଇ. ଶକ୍ତିଯୁକ୍ତ କ୍ୟାମେରାର ନଜରରେ ରହିବ । କୁମ୍ଭରେ ଯଦି କେହି ନିଜ ପ୍ରିୟପରିଜନଙ୍କ ଠାରୁ ନିଖୋଜ ହୋଇଥାଆନ୍ତି, ତାହେଲେ ଏହି କ୍ୟାମେରା ଗୁଡ଼ିକ ସାହାର୍ଯ୍ୟରେ ସେମାନଙ୍କୁ ଠାବ କରିବାରେ ମଧ୍ୟ ସାହାଯ୍ୟ ମିଳିବ । ଶ୍ରଦ୍ଧାଳୁମାନେ ଡିଜିଟାଲ୍ ଲଷ୍ଟ ଆଣ୍ଡ ଫାଉଣ୍ଡ ସେଂଟରର ସୁବିଧା ମଧ୍ୟ ପାଇପାରିବେ । ଶ୍ରଦ୍ଧାଳୁମାନଙ୍କୁ ମୋବାଇଲ ମାଧ୍ୟମରେ ହିଁ ସରକାରଙ୍କ ସ୍ୱୀକୃତିପ୍ରାପ୍ତ ଟୁର୍ ପ୍ୟାକେଜ୍, ରହିବା ସୁବିଧା ଏବଂ ହୋମଷ୍ଟେ ବିଷୟରେ ସୂଚନା ପ୍ରଦାନ କରାଯିବ । ମହାକୁମ୍ଭ ଯାତ୍ରା କଲେ ଆପଣମାନେ ମଧ୍ୟ ଏହି ସୁବିଧା ଗୁଡ଼ିକର ଲାଭ ଉଠାଇ ପାରିବେ । ଆଉ ହଁ, #ଏକତା କା ମହାକୁମ୍ଭ ରେ ନିଜର ସେଲ୍ଫି ନିଶ୍ଚୟ ଅପଲୋଡ୍ କରିବେ ।

ବନ୍ଧୁଗଣ, ମନ୍ କି ବାତ୍ ଅର୍ଥାତ୍ ଏମକେବିରେ ଏଥର କେଟିବି କଥା । ଅଧିକାଂଶ ବୟସ୍କ ଲୋକେ କେଟିବି ବିଷୟରେ ଜାଣିନଥିବେ । କିନ୍ତୁ, ପିଲାମାନଙ୍କୁ ଥରେ ପଚାରନ୍ତୁ, କେଟିବି ସେମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରେ ସୁପରହିଟ୍ । କେଟିବି ମାନେ କ୍ରିଷ, ତ୍ରିଶ୍ ଆଉ ବାଲ୍ଟିବୟ । ହୁଏତ ଆପଣ ଜାଣିଥିବେ, ଏହା ପିଲାମାନଙ୍କ ମନପସନ୍ଦର ଆନିମେଶନ୍ ସିରିଜ୍ ଏବଂ ଏହାର ନାଁ କେଟିବି-ଭାରତ ହେଁ ହମ୍ । ଏବେ ଏହାର ଦ୍ୱିତୀୟ ସିଜିନ୍ ମଧ୍ୟ ଆସିଗଲାଣି । ଏହି ତିନୋଟି ଆନିମେଶନ୍ କ୍ୟାରେକ୍ଟର ଆମକୁ ଭାରତର ସ୍ୱାଧୀନତା ସଂଗ୍ରାମର ସେହି ନାୟକ-ନାୟିକାମାନଙ୍କ ବିଷୟରେ ଜଣାଉଛନ୍ତି, ଯେଉଁମାନଙ୍କ ସମ୍ପର୍କରେ ଅଧିକ ଆଲୋଚନା ହୁଏ ନାହିଁ । ନିକଟ ଅତୀତରେ ଏହାର ସିଜିନ-ଟୁ ଏକ ନିଆରା ଢଙ୍ଗରେ ଗୋଆରେ ଭାରତୀୟ ଆନ୍ତର୍ଜାତିକ ଚଳଚ୍ଚିତ୍ର ମହୋତ୍ସବରେ ଉଦଘାଟିତ ହେଲା । ସବୁଠାରୁ ସୁନ୍ଦର କଥା ହେଉଛି, ଏହି ସିରିଜ୍ କେବଳ ଅନେକ ଭାରତୀୟ ଭାଷାରେ ନୁହେଁ, ବରଂ ବିଦେଶୀ ଭାଷାରେ ମଧ୍ୟ ପ୍ରସାରିତ ହେଉଛି । ଏହାକୁ ଦୂରଦର୍ଶନ ସହ ଅନ୍ୟ ଓଟିଟି ପ୍ଲାଟଫର୍ମରେ ମଧ୍ୟ ଦେଖାଯାଇପାରିବ ।

ବନ୍ଧୁଗଣ, ଆମ ଆନିମେଶନ୍ ଫିଲ୍ମ, ଚଳଚ୍ଚିତ୍ର, ଟେଲିଭିଜନ ସିରିଆଲ ଗୁଡ଼ିକର ଲୋକପ୍ରିୟତା ଏହା ଦର୍ଶାଉଛି ଯେ, ଭାରତର କ୍ରିଏଟିଭ୍ ଇଣ୍ଡଷ୍ଟ୍ରି ବା ସୃଜନାତ୍ମକ ଶିଳ୍ପରେ କେତେ କ୍ଷମତା ଭରିରହିଛି ! ଏହି ଶିଳ୍ପର କେବଳ ଦେଶର ଉନ୍ନତିରେ ଏକ ବଡ଼ ଯୋଗଦାନ ରହିଛି ତାହା ନୁହେଁ ବରଂ ଆମ ଅର୍ଥନୀତିକୁ ମଧ୍ୟ ଏହା ନୂତନ ଶିଖରକୁ ନେଇଯାଉଛି । ଆମ ଚଳଚ୍ଚିତ୍ର ଏବଂ ମନୋରଞ୍ଜନ ଶିଳ୍ପ ବହୁତ ବିଶାଳ । ଦେଶର ଅନେକ ଭାଷାରେ ଚଳଚ୍ଚିତ୍ର ନିର୍ମାଣ ଚାଲିଛି, କ୍ରିଏଟିଭ୍ କଂଟେଟ୍ ମଧ୍ୟ ସୃଷ୍ଟି କରାଯାଉଛି । ମୁଁ ଆମ ଚଳଚ୍ଚିତ୍ର ଏବଂ ମନୋରଞ୍ଜନ ଶିଳ୍ପ ଜଗତକୁ ଏଥିପାଇଁ ଅଭିନନ୍ଦନ ଜଣାଉଛି, କାରଣ, ଏହା ଏକ ଭାରତ- ଶ୍ରେଷ୍ଠ ଭାରତର ଭାବନାକୁ ସଶକ୍ତ କରିଛି ।

ବନ୍ଧୁଗଣ, ୨୦୨୪ରେ ଆମେ ଚଳଚ୍ଚିତ୍ର ଦୁନିଆର ଅନେକ ମହାନ ବ୍ୟକ୍ତିତ୍ୱମାନଙ୍କର ୧୦୦ତମ ଜୟନ୍ତୀ ପାଳନ କରୁଛୁ । ଏହି ମହାନ କଳାକାରମାନେ ଭାରତୀୟ ସିନେମାକୁ ବିଶ୍ୱସ୍ତରରେ ପରିଚିତ କରାଇଲେ । ରାଜକାପୁରଜୀ ନିଜ ଚଳଚ୍ଚିତ୍ର ମାଧ୍ୟମରେ ବିଶ୍ୱକୁ ଭାରତର Soft Power ସହ ପରିଚିତ କରାଇଲେ । ରଫି ସାହେବଙ୍କ ସ୍ୱରରେ ଏଭଳି କୁହୁକ ଭରି ରହିଥିଲା, ଯାହା ପ୍ରତ୍ୟେକ ହୃଦୟକୁ ସ୍ପର୍ଶ କରୁଥିଲା । ତାଙ୍କ ସ୍ୱର ଅତି ଚମତ୍କାର ଥିଲା । ଭକ୍ତି ଗୀତ ହେଉ, ରୋମାଣ୍ଟିକ୍ ଗୀତ କିମ୍ବା ଦୁଃଖଭରା ଗୀତ - ପ୍ରତ୍ୟେକ ଭାବାବେଗକୁ ସେ ନିଜ ସ୍ୱରରେ ଜୀବନ୍ତ କରିଦେଉଥିଲେ । ଜଣେ କଳାକାର ରୂପରେ ତାଙ୍କର ମହନୀୟତାର ଅନୁମାନ ଏହି କଥାରୁ କରିହେବ ଯେ, ଆଜିର ଯୁବପିଢ଼ି ମଧ୍ୟ ତାଙ୍କ ଗୀତଗୁଡ଼ିକୁ ସେତିକି ମନଧ୍ୟାନ ଦେଇ ଶୁଣୁଛନ୍ତି । ଏହାହିଁ ତ ହେଉଛି କାଳାତୀତ କଳାର ପରିଚୟ । ଅକ୍କିନେନୀ ନାଗେଶ୍ୱର ରାଓ ଗାରୁ ତେଲୁଗୁ ସିନେମାକୁ ନୂତନ ଶିଖରରେ ପହଞ୍ଚାଇଛନ୍ତି । ତାଙ୍କ ଚଳଚ୍ଚିତ୍ର ଗୁଡ଼ିକ ଭାରତୀୟ ପରମ୍ପରା ଏବଂ ମୂଲ୍ୟବୋଧକୁ ଖୁବ ଭଲଭାବେ ପ୍ରତିଫଳିତ କରୁଛି । ତପନ ସିହ୍ନାଙ୍କ କଥାଚିତ୍ର ଗୁଡ଼ିକ ସମାଜକୁ ଏକ ନୂତନ ଦୃଷ୍ଟିକୋଣ ପ୍ରଦାନ କରିଛି । ତାଙ୍କ ଚଳଚ୍ଚିତ୍ର ଗୁଡ଼ିକରେ ସାମାଜିକ ଚେତନା ଏବଂ ରାଷ୍ଟ୍ରୀୟ ଏକତାର ବାର୍ତ୍ତା ରହୁଥିଲା । ଏହି ମନିଷୀମାନଙ୍କ ଜୀବନ ଆମର ସମଗ୍ର ଚଳଚ୍ଚିତ୍ର ଜଗତ ପାଇଁ ପ୍ରେରଣାର ଉତ୍ସ ।

ବନ୍ଧୁଗଣ, ମୁଁ ଆପଣମାନଙ୍କୁ ଆଉ ଗୋଟିଏ ଖୁସି ଖବର ଦେବାକୁ ଚାହୁଁଛି । ଭାରତର ସୃଜନାତ୍ମକ ପ୍ରତିଭା ବା କ୍ରିଏଟିଭ୍ ଟାଲେଣ୍ଟ ବିଶ୍ୱ ଆଗରେ ଉପସ୍ଥାପିତ କରିବାର ଗୋଟିଏ ବଡ଼ ସୁଯୋଗ ଆସୁଛି । ଆସନ୍ତା ବର୍ଷ ଆମ ଦେଶରେ ପ୍ରଥମ ଥର ପାଇଁ ୱାର୍ଲଡ୍ ଅଡିଓ ଭିଜୁଆଲ୍ ଏଂଟରଟେନମେଣ୍ଟ ସମିଟ୍ ଅର୍ଥାତ୍ ୱେଭସ ସମିଟର ଆୟୋଜନ ହେବାକୁ ଯାଉଛି । ଆପଣମାନେ ଦାଭୋସ୍ ବିଷୟରେ ଶୁଣିଥିବେ, ଯେଉଁଠାରେ ବିଶ୍ୱର ଆର୍ଥିକ ଜଗତର ମହାରଥିମାନେ ଏକତ୍ରିତ ହୋଇଥାଆନ୍ତି । ସେହିଭଳି ୱେଭସ ସମିଟରେ ସାରା ବିଶ୍ୱର ଗଣମାଧ୍ୟମ ଏବଂ ମନୋରଞ୍ଜନ ଶିଳ୍ପର ମହାରଥି, ସୃଜନ ଜଗତର ବ୍ୟକ୍ତିବିଶେଷ ଭାରତକୁ ଆସିବେ । ଏହି ସମ୍ମିଳନୀ ଭାରତକୁ ଗ୍ଲୋବାଲ୍ କଣ୍ଟେଟ୍ କ୍ରିଏଶନର ହବ୍ କରିବା ଦିଗରେ ଗୋଟିଏ ଗୁରୁତ୍ୱପୂର୍ଣ୍ଣ ପଦକ୍ଷେପ । ଏହି ସୂଚନା ଦେବାରେ ମୁଁ ଗର୍ବ ଅନୁଭବ କରୁଛି ଯେ, ଏହି ସମ୍ମିଳନୀ ପାଇଁ ପ୍ରସ୍ତୁତିରେ ଆମ ଦେଶର ୟଙ୍ଗ୍ କ୍ରିଏଟର୍ସ ବା ନୂତନ ସୃଜନଶୀଳ ପ୍ରତିଭାମାନେ ଖୁବ ଉତ୍ସାହର ସହିତ ଲାଗି ପଡ଼ିଛନ୍ତି । ଆମେ ୫ ଟ୍ରିଲିଅନ୍ ଡଲାର୍ ଇକୋନମୀ ଦିଗକୁ ଅଗ୍ରସର ହେଉଥିବା ସମୟରେ ଆମ କ୍ରିଏଟର୍ ଇକୋନମୀ ଏକ ନୂତନ ଶକ୍ତି ପ୍ରଦାନ କରୁଛି । ମୁଁ ଭାରତର ସମଗ୍ର ମନୋରଞ୍ଜନ ଏବଂ ସୃଜନାତ୍ମକ ଶିଳ୍ପକୁ ଅନୁରୋଧ କରୁଛି - ଆପଣ ଯୁବ-ପ୍ରତିଭା ହୁଅନ୍ତୁ କିମ୍ବା ପ୍ରତିଷ୍ଠିତ କଳାକାର, ବଲିଉଡ୍ ସହ ଜଡ଼ିତ ହୋଇଥାଆନ୍ତୁ କିମ୍ବା ଆଞ୍ଚଳିକ ସିନେମା ଜଗତ ସହ, ଟେଲିଭିଜନ ଶିଳ୍ପର ପେଶାଗତ ବ୍ୟକ୍ତି ହୋଇଥାଆନ୍ତୁ କିମ୍ବା ଆନିମେଶନ୍ ବିଶେଷଜ୍ଞ, ଗେମିଂ ସହ ଜଡ଼ିତ ଥାଆନ୍ତୁ ବା ଏଂଟରଟେନମେଣ୍ଟ ଟେକ୍ନୋଲଜିର ଇନ୍ନୋଭେଟର୍ ହେଇଥାଆନ୍ତୁ - ଆପଣ ସମସ୍ତେ ୱେଭସ ସମ୍ମିଳନୀରେ ଭାଗ ନିଅନ୍ତୁ ।

ମୋର ପ୍ରିୟ ଦେଶବାସୀଗଣ, ଆପଣ ସମସ୍ତେ ଜାଣନ୍ତି ଯେ ଭାରତୀୟ ସଂସ୍କୃତିର ଆଲୋକ ଆଜି କିଭଳି ପୃଥିବୀର କୋଣ ଅନୁକୋଣରେ ବିଛାଡ଼ି ହୋଇ ପଡ଼ୁଛି । ଆଜି ମୁଁ ଆପଣଙ୍କୁ ତିନି ମହାଦ୍ୱୀପରୁ ଏଭଳି ପ୍ରୟାସଗୁଡ଼ିକ ବିଷୟରେ କହିବି, ଯାହା ଆମ ସାଂସ୍କୃତିକ ଐତିହ୍ୟର ବୈଶ୍ୱିକ ବିସ୍ତୃତିର ସାକ୍ଷୀ । ସେମାନେ ପରସ୍ପରଠାରୁ ବହୁତ ଦୂରରେ, କିନ୍ତୁ ଭାରତକୁ ଜାଣିବାରେ ଓ ଆମ ସଂସ୍କୃତିରୁ ଶିଖିବା କ୍ଷେତ୍ରରେ ସେମାନଙ୍କ ଆଗ୍ରହ ଉଦ୍ଦୀପନା ସମାନ ।

ବନ୍ଧୁଗଣ, ପେଣ୍ଟିଙ୍ଗ୍‌ସ ଯେତେ ବେଶୀ ରଙ୍ଗୀନ ହୋଇଥାଏ ସେତିକି ସୁନ୍ଦର ଦେଖାଯାଇଥାଏ । ଆପଣଙ୍କ ମଧ୍ୟରୁ ଯେଉଁମାନେ ଟିଭି ମାଧ୍ୟମରେ ‘ମନ୍‌ କୀ ବାତ୍‌’ ସହ ଯୋଡ଼ି ହୋଇଛନ୍ତି, ସେମାନେ ଏବେ କିଛି ପେଣ୍ଟିଙ୍ଗ୍‌ସକୁ ଟିଭିରେ ଦେଖି ମଧ୍ୟ ପାରିବେ । ଏସବୁ ପେଣ୍ଟିଙ୍ଗ୍ସରେ ଆମର ଦେବାଦେବୀ, ନୃତ୍ୟକଳା ଓ ମହାପୁରୁଷମାନଙ୍କୁ ଦେଖି ଆପଣଙ୍କୁ ବହୁତ ଭଲ ଲାଗିବ । ଏଥିରେ ଆପଣଙ୍କୁ ଭାରତରେ ଦେଖାଯାଉଥିବା ଜୀବଜନ୍ତୁଙ୍କଠାରୁ ଆରମ୍ଭ କରି ଆଉ ବହୁତ କିଛି ଦେଖିବାକୁ ମିଳିବ । ଏଥିରେ ତାଜମହଲର ଏକ ସୁନ୍ଦର ଚିତ୍ର ମଧ୍ୟ ସାମିଲ୍‌ ହୋଇଛି, ଯାହାକୁ ୧୩ ବର୍ଷର ଝିଅଟିଏ ଆଙ୍କିଛି । ଆପଣଙ୍କୁ ଏହା ଜାଣି ଆଶ୍ଚର୍ଯ୍ୟ ଲାଗିବ ଯେ ଏହି ଦିବ୍ୟାଙ୍ଗ ଝିଅଟି ନିଜ ପାଟିରେ ଏହି ଚିତ୍ରଟିକୁ ତିଆରି କରିଛି । ସବୁଠୁ ବଡ଼କଥା ହେଲା ଯେ ଏହାର ଚିତ୍ରଶିଳ୍ପୀ ଜଣକ ଭାରତର ନୁହନ୍ତି, ସେ ଇଜିପ୍ଟର ଜଣେ ବିଦ୍ୟାର୍ଥୀ । କିଛି ସପ୍ତାହ ତଳେ ଇଜିପ୍ଟର ପ୍ରାୟ ୨୩ ହଜାର ଛାତ୍ରଛାତ୍ରୀ ଏକ ପେଣ୍ଟିଂ ପ୍ରତିଯୋଗିତାରେ ଭାଗ ନେଇଥିଲେ । ସେଠାରେ ସେମାନଙ୍କୁ ଭାରତର ସଂସ୍କୃତି ଓ ଦୁଇ ଦେଶର ଐତିହାସିକ ସମ୍ପର୍କକୁ ବର୍ଣ୍ଣନା କରୁଥିବା ପେଣ୍ଟିଂ କରିବାର ଥିଲା । ମୁଁ ଏହି ପ୍ରତିଯୋଗିତାରେ ଭାଗ ନେଇଥିବା ସମସ୍ତ ଯୁବକଯୁବତୀଙ୍କୁ ପ୍ରଶଂସା କରୁଛି । ସେମାନଙ୍କ ସୃଜନଶୀଳତାର ଯେତେ ପ୍ରଶଂସା କଲେ ମଧ୍ୟ ତାହା କମ୍‌ ହେବ ।

ବନ୍ଧୁଗଣ, ଦକ୍ଷିଣ ଆମେରିକାର ଏକ ଦେଶ ହେଉଛି ପାରାଗୁଏ । ସେଠାରେ ରହୁଥିବା ଭାରତୀୟଙ୍କ ସଂଖ୍ୟା ହଜାରେରୁ ବେଶି ହେବନାହିଁ । ପାରାଗୁଏରେ ଏକ ଚମତ୍କାର ପ୍ରୟାସ ହେଉଛି । ସେଠାକାର ଭାରତୀୟ ଦୂତାବାସରେ ଏରିକା ହ୍ୟୁବର ମାଗଣା ଆୟୁର୍ବେଦ ପରାମର୍ଶ ଦିଅନ୍ତି । ଆୟୁର୍ବେଦ ପରାମର୍ଶ ନେବାପାଇଁ ଏବେ ତାଙ୍କ ନିକଟକୁ ବହୁ ସ୍ଥାନୀୟ ଲୋକ ଆସୁଛନ୍ତି । ଏରିକା ହ୍ୟୁବର୍ ଇଂଜିନିୟରିଂ ପଢ଼ିଛନ୍ତି ସତ, କିନ୍ତୁ ତାଙ୍କର ମନ ଆୟୁର୍ବେଦରେ ରହିଛି । ସେ ଆୟୁର୍ବେଦ ସହ ସଂପୃକ୍ତ ପାଠ୍ୟକ୍ରମ ପଢ଼ିଥିଲେ ଓ ସମୟକ୍ରମେ ସେ ସେଥିରେ ପାରଙ୍ଗମ ହୋଇପାରିଲେ ।

ବନ୍ଧୁଗଣ, ଏହା ଆମ ପାଇଁ ବହୁତ ଗର୍ବର କଥା ଯେ ପୃଥିବୀର ସବୁଠୁ ପ୍ରାଚୀନ ଭାଷା ତାମିଲ ଏବଂ ପ୍ରତ୍ୟେକ ଭାରତୀୟ ଏଥିପାଇଁ ଗର୍ବିତ । ବିଶ୍ୱର ବହୁ ଦେଶରେ ଏହାକୁ ଶିଖୁଥିବା ଲୋକଙ୍କ ସଂଖ୍ୟା କ୍ରମାଗତ ବଢ଼ିଚାଲିଛି । ଗତ ମାସର ଶେଷରୁ ଫିଜିରେ ଭାରତ ସରକାରଙ୍କ ସହଯୋଗରେ ତାମିଲ୍‌ ଶିକ୍ଷା କାର୍ଯ୍ୟକ୍ରମ ଆରମ୍ଭ ହୋଇଛି । ଗତ ୮୦ ବର୍ଷ ମଧ୍ୟରେ ପ୍ରଥମ ଥର ପାଇଁ ଫିଜିରେ ତାଲିମପ୍ରାପ୍ତ ଶିକ୍ଷକ ତାମିଲ୍‌ ଶିଖାଉଛନ୍ତି । ଆଜି ଫିଜିର ଛାତ୍ରଛାତ୍ରୀମାନେ ତାମିଲ ଭାଷା ଓ ସଂସ୍କୃତିକୁ ଶିଖିବା ପାଇଁ ଆଗ୍ରହୀ ଥିବା ଜାଣି ମୋତେ ବହୁତ ଖୁସି ଲାଗିଛି ।

ବନ୍ଧୁଗଣ, ଏ କଥା, ଏ ଘଟଣା କେବଳ ସଫଳତାର କାହାଣୀ ନୁହେଁ । ଏହା ଆମ ସାଂସ୍କୃତିକ ଐତିହ୍ୟର ଗାଥା ମଧ୍ୟ । ଏହି ଉଦାହରଣ ଆମକୁ ବହୁତ ଗର୍ବିତ କରିଥାଏ । କଳାରୁ ଆୟୁର୍ବେଦ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ଓ ଭାଷାରୁ ସଂଗୀତ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ଭାରତରେ ଏତେ ବିଷୟ ଅଛି, ଯାହା ପୃଥିବୀ ସାରା ବ୍ୟାପି ଚାଲିଛି ।

ବନ୍ଧୁଗଣ, ଏ ଶୀତ ଋତୁରେ ସମଗ୍ର ଦେଶରେ ବିଭିନ୍ନ କ୍ରୀଡ଼ା ଓ ଫିଟ୍‌ନେସ୍‌କୁ ନେଇ ବିଭିନ୍ନ କାର୍ଯ୍ୟକ୍ରମ ଆୟୋଜିତ ହେଉଛି । ମୁଁ ଖୁସି ଯେ ଲୋକେ ଫିଟ୍‌ନେସ୍‌କୁ ନିଜ ଦିନଚର୍ଯ୍ୟାରେ ସାମିଲ୍‌ କରୁଛନ୍ତି । କାଶ୍ମୀରରେ ସ୍କିଙ୍ଗ୍ ଠାରୁ ଗୁଜରାଟର ଗୁଡ଼ିଉଡ଼ା ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ, ସବୁ ସ୍ଥାନରେ ଖେଳର ଉତ୍ସାହ ଦେଖିବାକୁ ମିଳୁଛି । #SundayOnCycle I #CyclingTuesday ଭଳି ଅଭିଯାନ ଦ୍ୱାରା ସାଇକଲ ଚାଳନାକୁ ପ୍ରୋତ୍ସାହନ ମିଳୁଛି ।

ବନ୍ଧୁଗଣ, ମୁଁ ଆପଣଙ୍କୁ ଏଭଳି ଏକ ନିଆରା କଥା କହିବାକୁ ଚାହୁଁଛି ଯାହା ଆମ ଦେଶରେ ଆସିଥିବା ପରିବର୍ତ୍ତନ ଓ ଯୁବବନ୍ଧୁମାନଙ୍କର ଉତ୍ସାହ ଉଦ୍ଦୀପନାର ପ୍ରତୀକ । ଆପଣ ଜାଣନ୍ତି କି ଆମର ବସ୍ତରରେ ଏକ ଅନନ୍ୟ ଅଲିମ୍ପିକ୍‌ ଆରମ୍ଭ ହୋଇଛି ! ଆଜ୍ଞା ହଁ, ପ୍ରଥମ ଥର ଆୟୋଜିତ ବସ୍ତର ଅଲିମ୍ପିକ୍‌ ଦ୍ୱାରା ବସ୍ତରରେ ଏକ ନୂଆ ବିପ୍ଳବ ଜନ୍ମ ନେଉଛି । ମୋ ପାଇଁ ବହୁତ ଖୁସିର କଥା ଯେ ବସ୍ତର ଅଲିମ୍ପିକର ସ୍ୱପ୍ନ ସାକାର ହୋଇଛି । ଆପଣଙ୍କୁ ମଧ୍ୟ ଜାଣିବା ପରେ ବହୁତ ଖୁସି ଲାଗିବ ଯେ ଏହା ଏଭଳି ଏକ ଅଞ୍ଚଳରେ ହେଉଛି, ଯାହା ଏକଦା ମାଓବାଦୀ ହିଂସାଗ୍ରସ୍ତ ଅଞ୍ଚଳ ଥିଲା । ବସ୍ତର ଅଲିମ୍ପିକର ମାସ୍କଟ୍‌ ହେଉଛି ‘ବଣ ମଇଁଷି’ ଓ ‘ପାହାଡ଼ୀ ମଇନା’ । ଏଥିରେ ବସ୍ତରର ସମୃଦ୍ଧ ସଂସ୍କୃତିର ଝଲକ ଦେଖିବାକୁ ମିଳିଥାଏ । ଏହି ବସ୍ତର କ୍ରୀଡ଼ା ମହାକୁମ୍ଭର ମୂଳ ମନ୍ତ୍ର ହେଉଛି-

‘କର୍‌ସାୟ ତା ବସ୍ତର୍ ବରସାଏ ତା ବସ୍ତର୍’ ଅର୍ଥାତ ‘ଖେଳିବ ବସ୍ତର୍-ଜିତିବ ବସ୍ତର୍’ ।

ପ୍ରଥମ ଥର ହିଁ ବସ୍ତର ଅଲିମ୍ପିକ୍‌ରେ ୭ଟି ଜିଲାର ଏକ ଲକ୍ଷ ୬୫ ହଜାର ଖେଳାଳି ଭାଗ ନେଇଛନ୍ତି । ଏହା କେବଳ ଏକ ପରିସଂଖ୍ୟାନ ନୁହେଁ- ଏହା ଆମ ଯୁବକଯୁବତୀଙ୍କର ସଂକଳ୍ପର ଗୌରବ ଗାଥା ବହନ କରେ । ଆଥ୍‌ଲେଟିକ୍ସ, ତୀରଚାଳନା, ବ୍ୟାଡ଼ମିଣ୍ଟନ, ଫୁଟବଲ, ହକି, ଭାରୋତ୍ତୋଳନ, କରାଟେ, କବାଡ଼ି, ଖୋ ଖୋ ଓ ଭଲିବଲ୍‌- ପ୍ରତ୍ୟେକ ଖେଳରେ ଆମର ଯୁବପିଢ଼ି ନିଜ ପ୍ରତିଭାର ପତାକା ଉଡ଼ାଇଛନ୍ତି । କାରୀ କଶ୍ୟପ୍ ଜୀଙ୍କ କାହାଣୀ ମୋତେ ଖୁବ୍‌ ପ୍ରେରଣା ଦେଇଥାଏ । ଏକ ଛୋଟିଆ ଗାଁରୁ ଆସିଥିବା କାରୀ ଜୀ ତୀରଚାଳନାରେ ରୌପ୍ୟପଦକ ଜିତିଛନ୍ତି । ସେ କହନ୍ତି, “ବସ୍ତର ଅଲିମ୍ପିକ୍‌ ମୋତେ କେବଳ ଖେଳ ପଡ଼ିଆ ଦେଇନାହିଁ, ଜୀବନରେ ଆଗକୁ ବଢ଼ିବାର ସୁଯୋଗ ଦେଇଛି ।” ସୁକ୍‌ମା-ର ପାୟଲ୍‌ କୱାସି ଜୀଙ୍କ କଥା ବେଶ୍ ପ୍ରେରଣାଦାୟକ । ଜାଭଲିନ୍‌ ଥ୍ରୋରେ ସ୍ୱର୍ଣ୍ଣପଦକ ହାସଲ କରିଥିବା ପାୟଲ୍‌ ଜୀ କହନ୍ତି “ଅନୁଶାସନ ଓ କଠିନ ପରିଶ୍ରମ ଦ୍ୱାରା ଯେ କୌଣସି ଲକ୍ଷ୍ୟ ହାସଲ କରିବା ସମ୍ଭବ” । ସୁକମା-ର ଦୋରନାପାଲ୍‌-ର ପୁନେମ୍ ସନ୍ନା ଜୀଙ୍କ କଥା ତ ନୂଆ ଭାରତର ପ୍ରେରଣାଦାୟକ କାହାଣୀ । ଏକଦା ନକ୍ସଲଙ୍କ ଦ୍ୱାରା ପ୍ରଭାବିତ ପୁନେମ୍ ଜୀ ଆଜି ହ୍ୱିଲ୍‌ଚେୟାରରେ ଦୌଡ଼ି ପଦକ ଜିତୁଛନ୍ତି । ତାଙ୍କର ସାହସ ଓ ଧୈର୍ଯ୍ୟ ସଭିଙ୍କ ପାଇଁ ବଡ଼ ପ୍ରେରଣା । କୋଡ଼ାଗାଓଁର ତୀରନ୍ଦାଜ ରଂଜୁ ସୋରୀ ଜୀଙ୍କୁ ‘ବସ୍ତର ୟୁଥ୍‌ ଆଇକନ’ ଭାବେ ବଛାଯାଇଛି । ତାଙ୍କର କହିବା କଥା ହେଲା- ବସ୍ତର ଅଲିମ୍ପିକ୍‌ ଉପାନ୍ତ ଅଞ୍ଚଳର ଯୁବକଯୁବତୀଙ୍କୁ ଜାତୀୟ ମଞ୍ଚ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ପହଞ୍ଚିବାର ସୁଯୋଗ ଦେଉଛି ।

ବନ୍ଧୁଗଣ, ବସ୍ତର ଅଲିମ୍ପିକ୍‌ କେବଳ ଏକ କ୍ରୀଡ଼ା ଆୟୋଜନ ନୁହେଁ । ଏହା ଏଭଳି ଏକ ମଞ୍ଚ, ଯେଉଁଠି ବିକାଶ ଓ କ୍ରୀଡ଼ାର ସଂଗମ ହେଉଛି; ଯେଉଁଠି ଆମର ଯୁବପିଢ଼ି ନିଜ ପ୍ରତିଭାକୁ ଆହୁରି ଚମକାଉଛନ୍ତି ଓ ଏକ ନୂଆ ଭାରତର ନିର୍ମାଣ କରୁଛନ୍ତି । ମୁଁ ଆପଣମାନଙ୍କୁ ସମସ୍ତଙ୍କୁ ନିବେଦନ କରୁଛି ଯେ

-ନିଜ ଅଞ୍ଚଳରେ ଏଭଳି କ୍ରୀଡ଼ା ଆୟୋଜନ ପାଇଁ ପ୍ରୋତ୍ସାହନ ଦିଅନ୍ତୁ

- #ଖେଲେଗା ଭାରତ୍-ଜିତେଗା ଭାରତ୍ ଜରିଆରେ ନିଜ ଅଞ୍ଚଳର କ୍ରୀଡ଼ା ପ୍ରତିଭାଙ୍କ କାହାଣୀକୁ ଅନ୍ୟମାନଙ୍କ ସହ ବାଣ୍ଟନ୍ତୁ

-ସ୍ଥାନୀୟ କ୍ରୀଡ଼ା ପ୍ରତିଭାମାନଙ୍କୁ ଆଗକୁ ବଢ଼ିବାର ସୁଯୋଗ ଦିଅନ୍ତୁ

ମନେ ରଖନ୍ତୁ, କ୍ରୀଡ଼ା ଦ୍ୱାରା କେବଳ ଶାରୀରିକ ବିକାଶ ହୁଏ ନାହିଁ, ବରଂ ଏହି ସ୍ପୋର୍ଟସ୍‌ମେନ୍‌ ସ୍ପିରିଟ୍‌ ସମାଜକୁ ଯୋଡ଼ିବାର ମଧ୍ୟ ଏକ ସଶକ୍ତ ମାଧ୍ୟମ । ତେଣୁ ବହୁତ ଖେଳନ୍ତୁ-ଖୁସି ରୁହନ୍ତୁ ।

ମୋର ପ୍ରିୟ ଦେଶବାସୀଗଣ, ଭାରତର ଦୁଇଟି ବଡ଼ ଉପଲବ୍ଧି ଆଜି ବିଶ୍ୱର ଧ୍ୟାନ ଆକର୍ଷଣ କରୁଛି । ଏହାକୁ ଶୁଣି ଆପଣ ମଧ୍ୟ ନିଜକୁ ଗର୍ବିତ ଅନୁଭବ କରିବେ । ଏହି ଦୁଇଟି ସଫଳତା ସ୍ୱାସ୍ଥ୍ୟ କ୍ଷେତ୍ରରେ ମିଳିଛି । ପ୍ରଥମ ଉପଲବ୍ଧି ମିଳିଛି ମେଲେରିଆ ବିରୋଧରେ ଲଢ଼େଇରେ । ମେଲେରିଆ ରୋଗ ଚାରି ହଜାର ବର୍ଷ ଧରି ମଣିଷ ପାଇଁ ଏକ ବଡ଼ ସମସ୍ୟା ହୋଇ ରହିଆସିଛି । ସ୍ୱାଧୀନତା ସମୟରେ ବି ଏହା ସବୁଠୁ ବଡ଼ ସମସ୍ୟା ମଧ୍ୟରୁ ଥିଲା ଅନ୍ୟତମ । ମାସକରୁ ପାଞ୍ଚ ବର୍ଷ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ଶିଶୁଙ୍କର ଜୀବନ ନେଉଥିବା ସମସ୍ତ ସଂକ୍ରାମକ ରୋଗ ମଧ୍ୟରେ ମେଲେରିଆର ସ୍ଥାନ ତୃତୀୟ । ଆଜି ମୁଁ ସନ୍ତୋଷର ସହ କହିପାରିବି ଯେ ଦେଶବାସୀ ମିଳିମିଶି ଏହି ସମସ୍ୟାର ଦୃଢ଼ ମୁକାବିଲା କରିଛନ୍ତି । ବିଶ୍ୱ ସ୍ୱାସ୍ଥ୍ୟ ସଙ୍ଗଠନ - WHOର ରିପୋର୍ଟ କହେ ଯେ ଭାରତରେ ୨୦୧୫ରୁ ୨୦୨୩ ମଧ୍ୟରେ ମେଲେରିଆ ଏବଂ ଏହାଦ୍ୱାରା ହୋଇଥିବା ମୃତ୍ୟୁ ଶତକଡ଼ା ୮୦ ଭାଗ କମିଯାଇଛି । ଏହା କୌଣସି ଛୋଟ ଉପଲବଧି ନୁହେଁ । ସବୁଠାରୁ ବଡ଼କଥା ହେଲା ଏହି ସଫଳତା ଜନସାଧାରଣଙ୍କ ସହଯୋଗ ଯୋଗୁଁ ମିଳିଛି । ଭାରତର କୋଣ ଅନୁକୋଣରୁ, ପ୍ରତ୍ୟେକ ଜିଲ୍ଲାରୁ କେହି ନା କେହି ଏହି ଅଭିଯାନରେ ଅଂଶଗ୍ରହଣ କରିଛନ୍ତି । ଏହି ଚାରିବର୍ଷ ପୂର୍ବେ ଆସାମର ଜୋରହଟ୍ ଜିଲ୍ଲାର ଚା’ବଗିଚାମାନଙ୍କରେ ମେଲେରିଆ ଲୋକମାନଙ୍କର ଦୁଃଶ୍ଚିନ୍ତାର ଏକ ବଡ଼ କାରଣ ହୋଇଥିଲା । କିନ୍ତୁ ଏବେ ଏହାର ମୂଳୋତ୍ପାଟନ ପାଇଁ ଚା’ବଗିଚାରେ ରହୁଥିବା ଲୋକମାନେ ଏକଜୁଟ୍ ହେଲେ, ଫଳରେ ଏଥିରେ ବହୁ ପରିମାଣରେ ସଫଳତା ମିଳିବାକୁ ଲାଗିଲା । ତାଙ୍କର ଏହି ପ୍ରୟାସରେ ସେମାନେ ଟେକ୍ନୋଲୋଜି ସହିତ ସାମାଜିକ ଗଣମାଧ୍ୟମର ମଧ୍ୟ ବହୁଳ ବ୍ୟବହାର କଲେ । ସେହିପରି ହରିଆନାର କୁରୁକ୍ଷେତ୍ର ଜିଲ୍ଲା ମେଲେରିଆ ନିୟନ୍ତ୍ରଣ ଦିଗରେ ଏକ ଆଦର୍ଶ ପ୍ରଦର୍ଶନ କଲା । ଏଠାରେ ମେଲେରିଆର ମନିଟରିଂ ପାଇଁ ଜନଭାଗିଦାରୀ ଅତ୍ୟନ୍ତ ସଫଳ ହେଲା । ପଥପ୍ରାନ୍ତ ନାଟକ ତଥା ରେଡ଼ିଓ ମାଧ୍ୟମରେ ଏହିଭଳି ସନ୍ଦେଶ ଉପରେ ଜୋର୍ ଦିଆଗଲା । ଯାହା ଫଳରେ ମଶାମାନଙ୍କର ପ୍ରଜନନ କମ୍ କରିବାରେ ଖୁବ୍ ସହାୟତା ମିଳିଲା । ସାରା ଦେଶରେ ଏହିଭଳି ପ୍ରୟାସ କରିବା ଦ୍ୱାରା ଆମେ ମେଲେରିଆ ବିରୁଦ୍ଧରେ ଲଢ଼େଇକୁ ତୀବ୍ର କରିପାରିଛୁ ।

ବନ୍ଧୁଗଣ, ନିଜର ସଚେତନତା ଏବଂ ସଂକଳ୍ପଶକ୍ତି ଦ୍ୱାରା ଆମେ କ’ଣ କ’ଣ ହାସଲ କରିପାରିବା ତା’ର ଦ୍ୱିତୀୟ ଉଦାହରଣ ହେଲା କ୍ୟାନସର ସହିତ ଲଢ଼େଇ । ଦୁନିଆର ପ୍ରସିଦ୍ଧ ମେଡ଼ିକାଲ ପତ୍ରିକା ‘LANCET’ର ଅଧ୍ୟୟନ ବାସ୍ତବରେ ଆମ ଭିତରେ ବହୁତ ଆଶା ଜାଗ୍ରତ କରେ । ଏହି ପତ୍ରିକା ଅନୁସାରେ ଏବେ ଭାରତରେ ଠିକ୍ ସମୟରେ କ୍ୟାନସରର ଚିକିତ୍ସାର ସମ୍ଭାବନା ଖୁବ୍ ବଢ଼ିଯାଇଛି । ଠିକ୍ ସମୟରେ ଚିକିତ୍ସାର ଅର୍ଥ କ୍ୟାନସର ରୋଗୀର ଚିକିତ୍ସା ୩୦ ଦିନ ଭିତରେ ଆରମ୍ଭ ହୋଇଯିବା ଦରକାର । ଏ ଦିଗରେ ‘ଆୟୁଷ୍ମାନ୍ ଭାରତ ଯୋଜନା’ ଅତି ମହତ୍ତ୍ୱପୂର୍ଣ୍ଣ ଭୂମିକା ଗ୍ରହଣ କରିଛି । ଏହି ଯୋଜନା ଯୋଗୁଁ ଶତକଡ଼ା ୯୦ ଭାଗ କ୍ୟାନସର ରୋଗୀ ଠିକ୍ ସମୟରେ ନିଜର ଚିକିତ୍ସା ଆରମ୍ଭ କରିପାରିଛନ୍ତି । ଏହା ସମ୍ଭବ ହେବାର କାରଣ ପ୍ରଥମେ ପଇସା ଅଭାବରେ ଗରିବ ରୋଗୀ କ୍ୟାନସରର ପରୀକ୍ଷା ଏବଂ ତା’ର ଚିକିତ୍ସା ପାଇଁ ପଛଘୁଞ୍ଚା ଦେଉଥିଲେ । ଏବେ ଆୟୁଷ୍ମାନ ଭାରତ ଯୋଜନା ସେମାନଙ୍କ ପାଇଁ ବଡ଼ ସମ୍ବଳ ହୋଇଛି । ଏବେ ସେମାନେ ନିଜର ଚିକିତ୍ସା ପାଇଁ ଆଗେଇ ଆସୁଛନ୍ତି । ‘ଆୟୁଷ୍ମାନ ଭାରତ ଯୋଜନା’ କ୍ୟାନସର ଚିକିତ୍ସା କ୍ଷେତ୍ରରେ ଥିବା ଆର୍ଥିକ ଅସୁବିଧାକୁ ବହୁ ପରିମାଣରେ କମ୍ କରିପାରିଛି । ଆହୁରି ଭଲ କଥା ହେଲା ଆଜିକାଲି ଲୋକମାନେ ଠିକ ସମୟରେ କ୍ୟାନସର ଚିକିତ୍ସା ପାଇଁ ବେଶ୍ ସଚେତନ । ଏହି ସଫଳତା ପାଇଁ ଆମର ସ୍ୱାସ୍ଥ୍ୟସେବା ପ୍ରଣାଳୀ, ଡାକ୍ତର, ନର୍ସ ତଥା ଟେକ୍ନିକାଲ କର୍ମଚାରୀମାନଙ୍କର ଯେତିକି ଭୂମିକା ରହିଛି ମୋ ନାଗରିକ ଭାଇଭଉଣୀମାନଙ୍କର ମଧ୍ୟ ସେତିକି ମହତ୍ତ୍ୱପୂର୍ଣ୍ଣ ଭୂମିକା ରହିଛି । ସମସ୍ତଙ୍କ ପ୍ରୟାସ ଦ୍ୱାରା କ୍ୟାନସରକୁ ହରାଇବାର ସଂକଳ୍ପ ଅଧିକ ଦୃଢ଼ ହୋଇଛି । ଯେଉଁମାନେ ସଚେତନତା ସୃଷ୍ଟି କରିବାରେ ବିଶେଷ ଯୋଗଦାନ ଦେଇଛନ୍ତି, ଏହି ସଫଳତାର ଶ୍ରେୟ ସେମାନଙ୍କର । କ୍ୟାନସରକୁ ମୁକାବିଲା କରିବାର ଗୋଟିଏ ମନ୍ତ୍ର ହେଲା Awareness, Action ଏବଂ Assurance । Awareness ଅର୍ଥାତ୍ କ୍ୟାନସର୍ ଲକ୍ଷଣ ପ୍ରତି ସଚେତନତା, Action ଅର୍ଥାତ୍ ଠିକ୍ ସମୟରେ ପରୀକ୍ଷା ଏବଂ ଚିକିତ୍ସା, Assurance ଅର୍ଥାତ୍ ରୋଗୀମାନଙ୍କ ପାଇଁ ସମସ୍ତ ସହାୟତା ଉପଲବ୍ଧ କରାଇବାର ବିଶ୍ୱାସ । ଆସନ୍ତୁ ଆମେ ସମସ୍ତେ ମିଶି କ୍ୟାନସର ବିରୁଦ୍ଧରେ ଏହି ଲଢ଼େଇକୁ ଦ୍ରୁତଗତିରେ ଆଗେଇନେବା ଏବଂ ଅଧିକରୁ ଅଧିକ ରୋଗୀଙ୍କୁ ସାହାଯ୍ୟ କରିବା ।

ମୋର ପ୍ରିୟ ଦେଶବାସୀଗଣଆଜି ମୁଁ ଆପଣଙ୍କୁ ଓଡ଼ିଶାର କଳାହାଣ୍ଡି ଜିଲ୍ଲାର ଏକ ଏଭଳି ପ୍ରୟାସ ବିଷୟରେ କହିବାକୁ ଚାହୁଁଛିଯାହା କମ୍ ପାଣି ଏବଂ କମ୍ ସଂସାଧନ ସତ୍ତ୍ୱେ ସଫଳତାର ନୂତନ କାହାଣୀ ଲେଖୁଛି  ଏହା ହେଉଛି କଳାହାଣ୍ଡିର ‘ସବଜି କ୍ରାନ୍ତି’ ବା ପରିବା ବିପ୍ଳବ  ସମୟ ଥିଲା ଯେଉଁଠି କୃଷକ ପଳାୟନ କରିବାକୁ ବାଧ୍ୟ ହେଉଥିଲା ଆଜି ସେଇଠି କଳାହାଣ୍ଡିର ଗୋଲମୁଣ୍ଡା ବ୍ଲକ୍ ଏକ ପରିବା ଭଣ୍ଡାରରେ ପରିଣତ ହୋଇଛି   ପରିବର୍ତ୍ତନ କିପରି ଆସିଲା ଏହାର ଆରମ୍ଭ ମାତ୍ର ୧୦ ଜଣ କୃଷକଙ୍କ ଗୋଟିଏ ଛୋଟିଆ ସମୂହ ଦ୍ୱାରା ହୋଇଥିଲା  ସେମାନେ ମିଳିମିଶି ଗୋଟିଏ FPO ବା କିଷାନ୍ ଉତ୍ପାଦକ ସଂଗଠନ ସ୍ଥାପନ କଲେଚାଷରେ ଆଧୁନିକ କୌଶଳ ପ୍ରୟୋଗ କରିବା ଆରମ୍ଭ କଲେ ଏବଂ ଆଜି ସେମାନଙ୍କର ଏହି FPO କୋଟି କୋଟି ଟଙ୍କାର କାରବାର କରୁଛି  ଆଜି ୨୦୦ରୁ ଅଧିକ କୃଷକ ଏହି FPO ସହ ଯୋଡ଼ି ହୋଇଛନ୍ତିଯେଉଁମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରେ ୪୫ ଜଣ ମହିଳା ଚାଷୀ ମଧ୍ୟ ଅଛନ୍ତି  ଏହି ଲୋକମାନେ ମିଶି ୨୦୦ ଏକର ଜମିରେ ବିଲାତି ବାଇଗଣ ଚାଷ କରୁଛନ୍ତି ଏବଂ ୧୫୦ ଏକର ଜମିରେ କଲରା ଉତ୍ପାଦନ କରୁଛନ୍ତି  ଏବେ ଏହି FPOର ବାର୍ଷିକ କାରବାର ରାଶି ଦେଢ଼ କୋଟିରୁ ଅଧିକ ହୋଇଗଲାଣି  ଆଜି କଳାହାଣ୍ଡିର ପରିବା ଖାଲି ଓଡ଼ିଶାରେ ନୁହେଁବରଂ ଅନ୍ୟ ରାଜ୍ୟମାନଙ୍କରେ ମଧ୍ୟ ପହଞ୍ଚୁଛି ଏବଂ ସେଠିକାର କୃଷକମାନେ ଏବେ ଆଳୁ ଏବଂ ପିଆଜ ଚାଷର ନୂତନ ପ୍ରଣାଳୀ ଶିଖୁଛନ୍ତି 

ବନ୍ଧୁଗଣକଳାହାଣ୍ଡିର ଏହି ସଫଳତା ଆମକୁ ଶିଖଉଛି ଯେ ସଂକଳ୍ପଶକ୍ତି ଏବଂ ସାମୂହିକ ପ୍ରଚେଷ୍ଟା ଦ୍ୱାରା  କରାଯାଇ  ପାରେ । ମୁଁ ଆପଣ ସମସ୍ତଙ୍କୁ ଅନୁରୋଧ କରୁଛି :-

- ନିଜ ଅଞ୍ଚଳରେ FPO ଗଠନକୁ ଉତ୍ସାହିତ କରନ୍ତୁ ।

- କୃଷକ ଉତ୍ପାଦକ ସଂଗଠନଗୁଡ଼ିକ ସହିତ ଯୋଡ଼ିହୁଅନ୍ତୁ ଏବଂ ସେଗୁଡ଼ିକୁ ମଜଭୁତ୍ କରନ୍ତୁ ।

ମନେରଖନ୍ତୁ – ଛୋଟିଆ ପ୍ରୟାସରୁ ମଧ୍ୟ ବଡ଼ ପରିବର୍ତ୍ତନ ସମ୍ଭବ ହୁଏ । ଖାଲି ଆମର ଦୃଢ଼ ସଂକଳ୍ପ ଏବଂ ସାମୂହିକ ଭାବନାର ଆବଶ୍ୟକତା ରହିଛି ।

ବନ୍ଧୁଗଣ, ଆଜିର ‘ମନ୍ କି ବାତ୍’ରେ ଆମେ ଶୁଣିଲେ, କେମିତି ଆମ ଭାରତ ବିବିଧତାରେ ଏକତା ସହ ଆଗକୁ ବଢ଼ୁଛି । ସେ ଖେଳପଡ଼ିଆ ହେଉ ବା ବିଜ୍ଞାନ, ସ୍ୱାସ୍ଥ୍ୟ ହେଉ ଅବା ଶିକ୍ଷା - ପ୍ରତ୍ୟେକ କ୍ଷେତ୍ରରେ ଭାରତ ନୂତନ ଶିଖରକୁ ଛୁଇଁ ଚାଲିଛି । ଆମେମାନେ ଗୋଟିଏ ପରିବାର ଭଳି ମିଳିମିଶି ପ୍ରତ୍ୟେକ ଆହ୍ୱାନର ସାମ୍ନା କଲେ ଏବଂ ସଫଳ ହେଲେ । ୨୦୧୪ରୁ ଆରମ୍ଭ ହୋଇଥିବା ‘ମନ୍ କି ବାତ୍’ର ୧୧୬ତମ ଅଧ୍ୟାୟରେ ମୁଁ ଦେଖିଛି ଯେ ‘ମନ୍ କି ବାତ୍’ ଦେଶର ସାମୂହିକ ଶକ୍ତିର ଗୋଟିଏ ଜୀବନ୍ତ ଦସ୍ତାବିଜ ହୋଇଯାଇଛି । ଆପଣମାନେ ସମସ୍ତେ ଏହି କାର୍ଯ୍ୟକ୍ରମକୁ ଆପଣାର କରିଛନ୍ତି । ପ୍ରତିମାସରେ ଆପଣମାନେ ନିଜର ବିଚାର ଏବଂ ପ୍ରୟାସ ସମ୍ବନ୍ଧରେ ମୋତେ ଜଣାଇଛନ୍ତି । କେତେବେଳେ କେଉଁ Young Innovatorର ଚିନ୍ତାଧାରା ପ୍ରଭାବିତ କରିଛି ତ କେତେବେଳେ କୌଣସି ଝିଅର ସଫଳତା ଆମକୁ ଗୌରବାନ୍ୱିତ କରିଛି । ଏହା ଆପଣ ସମସ୍ତଙ୍କର ସହଭାଗିତା ଯାହା ଦେଶର କୋଣ ଅନୁକୋଣରୁ ସକରାତ୍ମକ ଶକ୍ତିକୁ ଏକାଠି କରିଛି । ‘ମନ୍ କି ବାତ୍’ ଏହି ସକରାତ୍ମକ ଶକ୍ତିର ବିସ୍ତାରର ମଞ୍ଚ ହୋଇପାରିଛି । ଏବେ ୨୦୨୫ ପାଖେଇ ଆସିଲାଣି । ଆସନ୍ତା ବର୍ଷ ‘ମନ୍ କି ବାତ୍’ ମାଧ୍ୟମରେ ଆମେ ଆହୁରି ପ୍ରେରଣାଦାୟୀ ପ୍ରୟାସଗୁଡ଼ିକୁ ସାମିଲ୍ କରିବା । ମୋର ବିଶ୍ୱାସ ଯେ ଦେଶବାସୀଙ୍କ ସକାରାତ୍ମକ ଭାବନା ଏବଂ ନୂତନ ଚିନ୍ତାଧାରା ଦ୍ୱାରା ଭାରତ ଏକ ନୂତନ ଶିଖରକୁ ଛୁଇଁପାରିବ । ଆପଣ ନିଜ ଆଖପାଖର ନିଆରା ପ୍ରୟାସ ଗୁଡ଼ିକୁ #Mannkibaatରେ ପଠାନ୍ତୁ । ମୁଁ ଜାଣିଛି ଯେ ଆସନ୍ତା ବର୍ଷର ପ୍ରତ୍ୟେକ ‘ମନ୍ କି ବାତ୍’ରେ ଆମ ପାଖରେ ପରସ୍ପରକୁ ଜଣେଇବା ପାଇଁ ବହୁତ କିଛି ଥିବ । ଆପଣମାନଙ୍କୁ ୨୦୨୫ର ବହୁତ ବହୁତ ଶୁଭକାମନା । ସୁସ୍ଥ ରୁହନ୍ତୁ ଖୁସି ରୁହନ୍ତୁ, Fit India Movementରେ ଆପଣ ମଧ୍ୟ ଯୋଗଦିଅନ୍ତୁ ଏବଂ ନିଜକୁ ସୁସ୍ଥ ରଖନ୍ତୁ । ଜୀବନରେ ପ୍ରଗତି କରନ୍ତୁ । ବହୁତ ବହୁତ ଧନ୍ୟବାଦ ।