उपस्थित सभी देवियों और सज्‍जनों, 

समाज में कैसे-कैसे नर-रत्‍न पैदा हुए हैं, महापुरूष पैदा हुए हैं, जिसके कारण हम सबको उत्‍तम विरासत प्राप्‍त हुई है। अगर आज यह समारोह यहां नहीं हुआ होता तो शायद नार्थ में रहने वाले कई लोग होंगे, जिनको यह पता तक नहीं होता कि अयंकाली जी कौन थे और इस देश का दुर्भाग्‍य रहा है, इसने किसी कारणवश, समाज के लिए जीने-जूझने वाले लोगों को भुला दिया है। शायद हम सबका दायित्‍व बनता है कि हमारे सभी महान पूर्वजों और उनके जीवन से प्रेरणा ले के नई पीढ़ी को संस्‍कारित करने के लिए हमें प्रयास करना चाहिए। 

पूरे केरल में ओणम का पर्व मनाया जा रहा है। मैं आज, सभी मेरे केरल के भाइयों-बहनों को ओणम की शुभकामनाएं देता हूं। आज 8 सितंबर है, इसका महात्‍मय मुझे बड़ा महत्‍वपूर्ण लगता है, क्‍योंकि 8 सितंबर को महात्‍मा अयंकाली का जन्‍म हुआ, लेकिन उसी केरल की धरती पर दूसरे महान समाज सुधारक नारायण गुरू जी का भी जन्‍म हुआ। आज केरल के जीवन में दो संगठनों, केपीएमस और एसएनडीपी, उनकी मर्जी के बिना न कोई समाज नीति चल सकती है, न कोई राजनीति चल सकती है। लेकिन, वो उसका एक अलग पहलू है। आज हम जब आज केरल के महान समाज सुधारक, महान संत अयंकाली जी की 152वीं जयंति पर मिले हैं। मेरा यह सौभाग्‍य रहा कि मैं पिछले बार केरल में केपीएमएस के निमंत्रण पर एक कार्यक्रम में गया था और शायद हम जिस विचारधारा में पले हुए लोग हैं, उसमें शायद मैं पहला था, जिसको आपके यहां आने का सौभाग्‍य मिला था। 

उस समय “कायल सभा” की शताब्‍दी का समारोह प्रारंभ हो रहा था। एक प्रकार से अब वो कायल शताब्‍दी की पूर्णाहुति का ही कालखंड है। उसमें भी मुझे आने का सौभाग्‍य मिला है। आप कल्‍पना कर सकते हैं कि स्‍वामी विवेकानंद जी को केरल पर इतना गुस्‍सा क्‍यों आया था। क्‍या वो केरल को प्‍यार नहीं करते थे? क्‍या केरल की भूमि उनको अपनी नहीं लगती थी? लेकिन केरल की जो समाज व्‍यवस्‍था बन गयी थी और जिस प्रकार से वहां दलितों पर जुल्‍म होता था, दलितों के साथ अन्‍याय होता था, इसने स्‍वामी विवेकानंद जी को बेचैन कर दिया था। उन्‍हें लगा, ये क्‍या समाज है, ये क्‍या कर रहे हैं ये लोग। सर्वाधिक गुस्‍से में स्‍वामी विवेकानंद थे और उसी गुस्‍से में से उनके मन से ये उदगार निकले थे। 

हमारे देश का, आजादी का ये आंदोलन देखें तो उस सारे आजादी के आंदोलन में 19वीं शताब्‍दी की घटनाओं का बहुत महत्‍व है। 19वीं शताब्‍दी में हमारे देश में, हिन्‍दुस्‍तान के हर कोने में कोई न कोई समाज सुधारक पैदा हुआ। कोई न कोई सांस्‍कृतिक आंदोलन चला। एक प्रकार से 20वीं शताब्‍दी का आजादी के आंदोलन की पीठिका, 19वीं शताब्‍दी के समाज सुधारक आंदलोनों से हुई, सांस्‍कृतिक चेतना से हुई। 1200 साल की गुलामी के अंदर अपना सब कुछ भुला चुके समाज को फिर से एक बार प्राणवान बनाने का प्रयास उस समय महापुरूषों ने किया। 

उसी कालखंड में केरल में अयंकाली जी की समाज सुधार और संघर्ष की गतिविधि नारायण गुरू का शिक्षा आंदोलन और उसी समय डा. पलप्‍पु, मन्‍नायु पद्मनाभन, पंडित करप्‍पन, स्‍वामी वागपट्टानंदन, ऐसे एक से एक दिग्‍गज केरल की धरती पर सामाजिक चेतना को जगाने में लगे थे। 

लेकिन, 1913 में महात्‍मा गांधी हिन्‍दुस्‍तान लौटे, उससे पहले संत अयंकाली जी ने एक कायल सभा के द्वारा एक अद्भुत सत्‍याग्रह किया गया था। हम नार्थ के लोगों को मालूम नहीं है, लेकिन केरल के दलित समाज को जागृ‍त करने के लिए उनके अधिकारों के लिए, उस समय शासकों ने वहां के, अन्‍य लोगों ने, वहां के समाज के अगुवा लोगों ने, ये करने से मना कर दिया। ये कहा कि तुम्‍हें जमीन की इंच की जगह नही मिलेगी, सम्‍मेलन करने के लिए। उस जमाने में एक दलित मां का बेटा, सारा समाज सामने हो तो क्‍या करता, चुप हो जाता, बैठ जाता? 

अयंकाली जी चुप नहीं हुए। उन्‍होंने ठान ली कि मैं इस जुल्‍म के खिलाफ संघर्ष करूंगा। उन्‍होंने रास्‍ता खोजा। उन्‍होंने सब नावें इकट्ठी की, नौकाएं इकट्ठी की और समुद्र के अंदर एक नौकाओं के द्वारा एक विशाल जगह बना दी और नाव में सभा की उन्‍होंने। वह कायल सभा जो कही जाती है, 1913 के हर प्रतिबंध के बीच, समुंदर के अंदर। जमीन नहीं देते हो तो आप जानें, दुनिया जाने। परमात्‍मा ने मुझे जगह दी है समुन्दर को चीर कर के मैं वहां जायूँगा, लेकिन मैं हक़ों की लड़ाई लडूंगा, ये मिजाज अयंकाली जी ने बताया। समुन्दर में नाव इक्कठी कर कर के, नौकायें इक्कठी करके, वहीं उन्ही नौकायों में मंच बनाया, नाव में ही श्रोता आये और उन्होने सत्याग्रह किया था। 

महात्मा गाँधी 1915 में हिंदुस्तान आये थे और बाद में महात्मा गाँधी ने जब अयंकाली जी की इस शक्ति को देखा तो, महात्मा गाँधी जी ने स्वयं संत अयंकाली जी को मिलने गये थे। लेकिन, हम जब इतिहास के पन्नों को देखतें हैं तो ये चीजें हमे मिलती नहीं। पता नहीं, क्या कारण है? इसे क्यों ओझल कर दिया गया है! समाज सुधार के आंदोलन के रूप में, जो बातें हमने बाबा साहेब आम्बेडकर से सुनी हैं, जो हमे पढ़ने को मिलती है, अयंकाली जी की बातो में वो सारी बाते उस समय मिलती थी, 19वीं शताब्दी में। इतना ही नहीं, आज ह्यूमन राइट्स से सम्बंधित दुनिया में जितने भी डॉक्युमेंट्स हैं, यूएन से लेकर, कहीं पे भी, अगर उन डॉक्युमेंट्स को आप अयंकाली जी ने 19वीं शताबदी में जिन बातों को कहा था, उसको अगर हम जोड़ेंगे, तो बहुत सी बाते वो मिलेंगी, जो 19वीं शताबदी में अयंकाली जी ने कही थी जिन बातों को आज विश्व में ह्यूमन राइट्स की बातों के साथ जोड़ा गया। 

इतना ही नहीं, केरल में तो हम जानते हैं, दक्षिण में तो स्थिति ये थी की अगर किसी दलित को जाना है तो पीछे झाडू लगाना पड़ता था, उसके पद-चिन्ह ना रह पायें, ये पागलपन उस जमाने में था। कोई दलित बैलगाड़ी नहीं रख सकता था। बैलगाड़ी मे बैठ नहीं सकता था, वो दिन थे। तब अयंकाली जी ने सत्याग्रह किया था। उन्होने तय किया, जिस रास्ते पर प्रतिबंध है उस रास्ते पर मैं जाउंगा, बैलगाड़ी ले कर के जाउंगा और अयंकाली जी गये, बहुत बड़ा संघर्ष हुआ, मारपीट हुई, कुछ लोगों को चोटे पहुंची, लेकिन वो झुके नहीं। समाज को जगाने के लिये वो निरंतर प्रयास करते रहे। 

आज जितने भी मजदूर आंदोलन चल रहे हैं, उन सभी मजदूर आंदोलनो को भी अगर कोई सच्चाई सीखनी है तो, अयंकाली जी से सीखने को मिलेगी। 

उन्होंने कृषि मजदूरों को आज़ादी दिलाने का आंदोलन चलाया था। जो कृषि मजदूर थे, उनके लिये काम का समय तय हो, उनके लिये वेतन तय हो, उनके बच्चों को सरकारी स्कूल मे एडमिशन का अधिकार मिले, महिलायों के लिये मजदूरी का प्रकार अलग हो, इन सारे विषयों की लड़ाई लड़ कर के विजय प्राप्त की थी, अयंकाली जी ने। वे एक प्रकार से समाज सुधारक भी थे, लेकिन साथ-साथ समाज के हकों के लिये संघर्ष करना और उन्हें हक दिलाना, ये उस समय अयंकाली जी ने किया था और कृषि जीवन के अंदर अनेक अधिकार पाने में सुविधा मिली थी। आज केरल में जो शिक्षा की जो स्थिति है, अगर इसका गर्व हम करतें हैं, तो हमे इस बात का भी गर्व करना होगा की दो महापुरुष विशेष रूप से, जिन्‍होंने केरल में शिक्षा की जोत जलाई थी, एक संत अयंकाली जी और दूसरे नारायण गुरु जी। उस समय दलित, शोषित, पीड़ित, वंचित, पिछड़े, इनके लिये शिक्षा, ये उनका प्राथमिक विषय रहा था और उसके कारण केरल के समाज जीवन में इतना बड़ा बदलाव आया, इतना परिवर्तन आया। 

हम हिन्दुस्तान की आज़ादी के आंदोलन की जब चर्चा करतें हैं, तो 1930 की दांडी यात्रा को एक टर्निंग प्‍वाइंट के रूप में देखते हैं। मैं समझाता हूं, आज़ादी के आंदोलन में 1930 की दांडी यात्रा एक महत्वपूर्ण टर्निंग पॉइंट है, तो दलित उद्धार के आंदोलन में 1913 का कायल सम्‍मेलन, ये टर्निंग प्‍वाइंट है। बाबा साहब कहते थे- संगठित बनो, संघर्ष करो, शिक्षित बनो। संत अयंकाली जी ने भी इन्‍हीं तीन मंत्रों को ले कर के समाज को सशक्‍त बनाने का काम किया था। उस अर्थ में ऐसे महापुरूष, जिन्‍होंने समाज के हकों के लिए लड़ाई लड़ी, समाज के अंदर चेतना जगाई, लेकिन कभी समग्रतया समाज जीवन में दरार पैदा होने का प्रयास होने नहीं दिया। सामाजिक एकता को कभी आंच न आए, इसके लिए वह प्रयारत रहे। यह अपने आप में बहुत बड़ी बात है। बाबा साहब अंबेदकर का जीवन देखिए, दलित उद्धार के लिए लड़ाई लड़ी। लेकिन दलितों के अंदर नफरत की आग जलाने का प्रयास कभी बाबा साहब अंबेदकर ने नहीं किया। यही तो दिव्‍य दृष्टि होती है और वही अयंकाली जी का था कि उन्‍होंने अन्‍याय के खिलाफ लड़ना तय माना लेकिन, समाज के प्रति प्रेम, उसमें कभी कटुता को जन्‍म न आए, इसके लिए एक जागरूक प्रयास किया और उसका परिणाम है कि समाज के ताने-बाने बचे रहते हैं। 

समाज जीवन में, यह विविधताओं भरा देश है। विविधता में एकता, यह हमारे भारत की विशेषता है। ये भारत के सौंदर्य को बढ़ाने वाले, हमारी विरासत हैं। उन विविधता में एकता को बनाये रखते हुए, सामाजिक एकता के मूल मंत्र को कोई आंच न आए। लेकिन उसके साथ कोई वंचित न रह जाए। किसी से अन्‍याय न हो, ये व्‍यवस्‍थाओं के ऊपर बल देना, यह हर समय की मांग होती है। 

कभी-कभी मुझे लगता है, लोग चर्चा करते हैं, ये 5000 साल हो गए, इस संस्‍कृति को, परंपरा को। ये कैसे इतना चल रहा है। दुनिया में कई संस्‍कृतियां नष्‍ट हो गईं, क्‍या कारण है? अगर हम देखें तो इस समाज की एक विशेषता है। हर युग में हमारे देश में कोई न कोई समाज सुधारक पैदा हुए हैं। उन समाज सुधारकों ने अपने ही समाज की बुराइयों या कमियों के खिलाफ लड़ाई लड़ी है। 

महात्‍मा गांधी ने आजादी का आंदोलन लड़ा, लेकिन साथ-साथ ही हिंदू समाज में जो अस्‍पृष्‍यता थी, उसके खिलाफ भी उन्‍होंने जंग छेड़ा, लड़ाई लड़ी। राजाराम मोहन राय समाज जीवन के लिए अनेक काम किए, लेकिन समाज में महिलाओं के खिलाफ जो अन्‍याय हो रहा था, उसके खिलाफ लड़ाई लड़ी। हम भाग्‍यशाली हैं एक प्रकार से, सदियों से हम देखें, कोई युग ऐसा नहीं गया है, कि हमारे भीतर कोई बुराइयां आई है तो हमारे भीतर ही कोई महापुरूष पैदा हुआ है। उसने हमें उन बुराइयों से मुक्ति के लिए कभी डांटा है तो कभी झकझोरा है, कभी शिक्षित किया है और हमें सुधार करने के लिए रास्‍ता दिखाया है और हम टिके हैं, उसका कारण यह है कि हमारे यहां एक ऑटो पायलट व्‍यवस्‍था है। हमारे भीतर से ही ऐसे महापुरूष पैदा होते हैं, जो हमारी कमियों को दूर करके, हमें सशक्‍त करने का निरंतर प्रयास करते हैं। हम इसलिए भाग्‍यवान हैं, कि जो काल बाह्य चीजें हैं, जो किसी समय उपयोगी रही होगी लेकिन, समय रहते निकम्‍मी रह गई होगी। अगर हमें ऐसे संत नहीं मिले होते, ऐसे समाज सुधारक नहीं मिले होते, तो वहीं चीजें हमारे लिए बोझ बन जाती। हमारे यहां ऐसे महापुरूष पैदा हुए, जिन्‍होंने हमें उस काल बाह्य चीजों से मुक्ति दिलाई। आधुनिक बनने की दिशा दी। नवचेतना जगाने का प्रयास किया। 

एक समाज के रूप में हम स्‍थगितता को लेकर हम जीने वाले, पनपे हुए लोग नहीं हैं। हम नित्‍य नूतन प्रयास करने वाले लोग हैं और हर सदी में हुआ है। उस प्रयास करने वाले महापुरूषों में अनेक महापुरूषों का जैसे स्‍मरण होता है, संत अयंकाली जी का भी होता है। आजादी के आंदोलन में सारे हिन्‍दुस्‍तान की तरफ नजर करना, समाज सुधारक, भक्ति आंदोलन चेतना आंदोलन, हर कोने में महापुरूषों की भरमार थी। आजादी के लिए पहले समाज को साशक्‍त करने के लिए उन्‍होंने मेहनत की थी। उसी पीठिका का परिणाम था कि 20वीं शताब्‍दी में हम पूरी ताकत के साथ आजादी के लिए सफलता की ओर आगे बढे और उसकी पीठिका तैयार करने में अयंकाली जैसे अनेक महापुरूषों ने, नारायण गुरू स्‍वामी जैसे अनेक महापुरूषों ने प्रयास किया था जिस पर परिणाम लाभदायक रहा। 

समाज में आजादी के बाद दलित, पीडि़त, शोषितों से मु‍क्ति के लिए हम बाबा साहब अंबेडकर के जितने आभारी हों, उतने कम हैं। भारत के संविधान में एक ऐसी व्‍यवस्‍था दी है, जिसके कारण हमें अपना हक पाने का अवसर मिला है। ये भारत के संविधान निर्माता सब मिल कर के दलितों का, पीडि़तों का, शोषितों का कल्‍याण हो, उसकी चिंता की है। लेकिन हमें कभी एक समाज के नाते, इतने में ही संतुष्‍ट हो कर के चलेगा क्‍या? एक समाज के अग्र वर्ग का बेटा, उसको बैंक में नौकरी मिल जाए, एक दलित मां का बेटा, उसको नौकरी मिल जाए। दोनों को समानता मिलेगी। लेकिन इससे समाज की एकता हो जाती है क्‍या। नहीं होती है। इसलिए सिर्फ समानता के स्‍टेशन पर हमारी गाड़ी अटक गई तो हमें जहां जाना है, वहां हम कभी पहुंच नहीं पाएंगे। इसलिए सिर्फ समता से काम नहीं चलता है।सब समाजों के लिये समता हो, इन से काम नहीं चलता है, समता के आगे भी एक यात्रा है, और उस यात्रा के अंतिम मंजिल है समरसता। 

समता पर सब कुछ बन गए, दलित का बेटा भी डॉक्टर बन गया, ब्राह्मण का भी बेटा भी डॉक्टर बन गया, दोनों डॉक्टरी कर रहे हैं, लेकिन फिर भी अगर समरसता नहीं है तो कुछ न कुछ कमी महसूस होती है । ये समरसता कब आती है, संविधान की व्यवस्था से, कानून की व्यवस्था से, हकों की लड़ाई लड़ते-लड़ते समता तो मिल सकती, लेकिन समरसता पाने के लिये समाज मे एक सतत निरन्तर, जागरूक समाज का प्रयासकरना पड़ता है । और इसलिये दो मूल बातों को ले करके चलना पड़ता है, सम-भाव+मम-भाव=समरसता। समता प्‍लस ममता इज इक्‍वल टू समरसता। समता है, लेकिन अगर ममता नहीं है तो समाज एक रस नहीं बन सकता। सम-भाव है, लेकिन मम-भाव नहीं है, ये भी मेरा है, मेरा ही भाई है, उसकी और मेरी रगों में एक ही खून है, ये भाव जब तक पैदा नहीं होता, तब तक समरसता नहीं आती है । 

इसलिये, हमे सम-भाव की यात्रा को मम-भाव से जोडना है, हमें समता की यात्रा को ममता की यात्रा के साथ जोड़ना है। समता और ममता के भाव को जोड़ कर के ही हम समरसता की यात्रा को आगे बड़ा सकते हैं । तभी जा करके समाज में किसी के प्रति कटुता पैदा नहीं होगी, किसी के साथ अन्याय नहीं होगा, किसी को अपने हकों के लिये लड़ाई नहीं लड़नी पड़ेगी, सहज रूप से उसे प्राप्त होगा । मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि आने वाला युग समरसता की यात्रा का युग है । 

इसे परिपूर्ण करना, समाज का शासकों का, सुधारकों का, शिक्षकों का, संस्कृतिक नेतृत्‍व करने वालों का, सबका सामूहिक दायित्व है । 

भारत "बहुरत्न वसुंधरा" है । हर युग में ऐसे लोग मिले हैं जिन्होने साहित्यों को पैदा किया है, इन साहित्यों का लाभ हमें अवश्‍य मिलेगा। 

मैं फिर एक बार परम पूज्‍य अयंकाली जी, उनके उन महान कामों के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करता हूँ, उनके चरणों में नमन करता हूँ, और केपीएमएस के द्वारा ये जो निरन्तर प्रयास चले हैं, मैं उन सब को बहुत हृदय से अभिनन्दन देता हूँ । राजनीतिक दृष्टि से कभी हमारा और उनका मेल नहीं रहा, लेकिन जो प्यार् मुझे केपीएमएस से मिला है, हमेशा मिला है और बाबू तो हमारे लिये, मैंने देखा है, हमेशा, प्यार लिये रहते हैं। ये प्‍यार बना रहेगा। 

मुझे आज आप के बीच आने का अवसर मिला, दिल्ली के इस महत्‍वपूर्ण ओडिटोरियम में , कभी किसी ने सोचा होगा, 152 साल पहले पैदा हुये एक संत को, इस महत्‍वपूर्ण भवन में हम लोगों को श्रद्धांजलि देने का सौभाग्‍य प्राप्त होगा। यही तो बताता है कि ये समरसता की यात्रा का युग है, और इस समरसता की यात्रा को हम सब मिल कर आगे बढायेंगे। 

फिर एक बार आप सब को मेरी शुभकामनाएं। फिर एक बार ओणम की बहुत-बहुत शुभकामनाएं, धन्यवाद । 

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भारत माता की जय,

भारत माता की जय,

भारत माता की जय,

नमस्कार,

अभी दो ढाई घंटे पहले ही मैं कुवैत पहुंचा हूं और जबसे यहां कदम रखा है तबसे ही चारों तरफ एक अलग ही अपनापन, एक अलग ही गर्मजोशी महसूस कर रहा हूं। आप सब भारत क अलग अलग राज्यों से आए हैं। लेकिन आप सभी को देखकर ऐसा लग रहा है जैसे मेरे सामने मिनी हिन्दुस्तान उमड़ आया है। यहां पर नार्थ साउथ ईस्ट वेस्ट हर क्षेत्र के अलग अलग भाषा बोली बोलने वाले लोग मेरे सामने नजर आ रहे हैं। लेकिन सबके दिल में एक ही गूंज है। सबके दिल में एक ही गूंज है - भारत माता की जय, भारत माता की जय I

यहां हल कल्चर की festivity है। अभी आप क्रिसमस और न्यू ईयर की तैयारी कर रहे हैं। फिर पोंगल आने वाला है। मकर सक्रांति हो, लोहड़ी हो, बिहू हो, ऐसे अनेक त्यौहार बहुत दूर नहीं है। मैं आप सभी को क्रिसमस की, न्यू ईयर की और देश के कोने कोने में मनाये जाने वाले सभी त्योहारों की बहुत बहुत शुभकानाएं देता हूं।

साथियों,

आज निजी रूप से मेरे लिए ये पल बहुत खास है। 43 years, चार दशक से भी ज्यादा समय, 43 years के बाद भारत का कोई प्रधानमंत्री कुवैत आया है। आपको हिन्दुस्तान से यहां आना है तो चार घंटे लगते हैं, प्रधानमंत्री को चार दशक लग गए। आपमे से कितने ही साथी तो पीढ़ियों से कुवैत में ही रह रहे हैं। बहुतों का तो जन्म ही यहीं हुआ है। और हर साल सैकड़ों भारतीय आपके समूह में जुड़ते जाते हैं। आपने कुवैत के समाज में भारतीयता का तड़का लगाया है, आपने कुवैत के केनवास पर भारतीय हुनर का रंग भरा है। आपने कुवैत में भारत के टेलेंट, टेक्नॉलोजी और ट्रेडिशन का मसाला मिक्स किया है। और इसलिए मैं आज यहां सिर्फ आपसे मिलने ही नहीं आया हूं, आप सभी की उपलब्धियों को सेलिब्रेट करने के लिए आया हूं।

साथियों,

थोड़ी देर पहले ही मेरे यहां काम करने वाले भारतीय श्रमिकों प्रोफेशनल्श् से मुलाकात हुई है। ये साथी यहां कंस्ट्रक्शन के काम से जुड़े हैं। अन्य अनेक सेक्टर्स में भी अपना पसीना बहा रहे हैं। भारतीय समुदाय के डॉक्टर्स, नर्सज पेरामेडिस के रूप में कुवैत के medical infrastructure की बहुत बड़ी शक्ति है। आपमें से जो टीचर्स हैं वो कुवैत की अगली पीढ़ी को मजबूत बनाने में सहयोग कर रही है। आपमें से जो engineers हैं, architects हैं, वे कुवैत के next generation infrastructure का निर्माण कर रहे हैं।

और साथियों,

जब भी मैं कुवैत की लीडरशिप से बात करता हूं। तो वो आप सभी की बहुत प्रशंसा करते हैं। कुवैत के नागरिक भी आप सभी भारतीयों की मेहनत, आपकी ईमानदारी, आपकी स्किल की वजह से आपका बहुत मान करते हैं। आज भारत रेमिटंस के मामले में दुनिया में सबसे आगे है, तो इसका बहुत बड़ा श्रेय भी आप सभी मेहनतकश साथियों को जाता है। देशवासी भी आपके इस योगदान का सम्मान करते हैं।

साथियों,

भारत और कुवैत का रिश्ता सभ्यताओं का है, सागर का है, स्नेह का है, व्यापार कारोबार का है। भारत और कुवैत अरब सागर के दो किनारों पर बसे हैं। हमें सिर्फ डिप्लोमेसी ही नहीं बल्कि दिलों ने आपस में जोड़ा है। हमारा वर्तमान ही नहीं बल्कि हमारा अतीत भी हमें जोड़ता है। एक समय था जब कुवैत से मोती, खजूर और शानदार नस्ल के घोड़े भारत जाते थे। और भारत से भी बहुत सारा सामान यहां आता रहा है। भारत के चावल, भारत की चाय, भारत के मसाले,कपड़े, लकड़ी यहां आती थी। भारत की टीक वुड से बनी नौकाओं में सवार होकर कुवैत के नाविक लंबी यात्राएं करते थे। कुवैत के मोती भारत के लिए किसी हीरे से कम नहीं रहे हैं। आज भारत की ज्वेलरी की पूरी दुनिया में धूम है, तो उसमें कुवैत के मोतियों का भी योगदान है। गुजरात में तो हम बड़े-बुजुर्गों से सुनते आए हैं, कि पिछली शताब्दियों में कुवैत से कैसे लोगों का, व्यापारी-कारोबारियों का आना-जाना रहता था। खासतौर पर नाइनटीन्थ सेंचुरी में ही, कुवैत से व्यापारी सूरत आने लगे थे। तब सूरत, कुवैत के मोतियों के लिए इंटरनेशनल मार्केट हुआ करता था। सूरत हो, पोरबंदर हो, वेरावल हो, गुजरात के बंदरगाह इन पुराने संबंधों के साक्षी हैं।

कुवैती व्यापारियों ने गुजराती भाषा में अनेक किताबें भी पब्लिश की हैं। गुजरात के बाद कुवैत के व्यापारियों ने मुंबई और दूसरे बाज़ारों में भी उन्होंने अलग पहचान बनाई थी। यहां के प्रसिद्ध व्यापारी अब्दुल लतीफ अल् अब्दुल रज्जाक की किताब, How To Calculate Pearl Weight मुंबई में छपी थी। कुवैत के बहुत सारे व्यापारियों ने, एक्सपोर्ट और इंपोर्ट के लिए मुंबई, कोलकाता, पोरबंदर, वेरावल और गोवा में अपने ऑफिस खोले हैं। कुवैत के बहुत सारे परिवार आज भी मुंबई की मोहम्मद अली स्ट्रीट में रहते हैं। बहुत सारे लोगों को ये जानकर हैरानी होगी। 60-65 साल पहले कुवैत में भारतीय रुपए वैसे ही चलते थे, जैसे भारत में चलते हैं। यानि यहां किसी दुकान से कुछ खरीदने पर, भारतीय रुपए ही स्वीकार किए जाते थे। तब भारतीय करेंसी की जो शब्दाबली थी, जैसे रुपया, पैसा, आना, ये भी कुवैत के लोगों के लिए बहुत ही सामान्य था।

साथियों,

भारत दुनिया के उन पहले देशों में से एक है, जिसने कुवैत की स्वतंत्रता के बाद उसे मान्यता दी थी। और इसलिए जिस देश से, जिस समाज से इतनी सारी यादें जुड़ी हैं, जिससे हमारा वर्तमान जुड़ा है। वहां आना मेरे लिए बहुत यादगार है। मैं कुवैत के लोगों का, यहां की सरकार का बहुत आभारी हूं। मैं His Highness The Amir का उनके Invitation के लिए विशेष रूप से धन्यवाद देता हूं।

साथियों,

अतीत में कल्चर और कॉमर्स ने जो रिश्ता बनाया था, वो आज नई सदी में, नई बुलंदी की तरफ आगे बढ़ रहा है। आज कुवैत भारत का बहुत अहम Energy और Trade Partner है। कुवैत की कंपनियों के लिए भी भारत एक बड़ा Investment Destination है। मुझे याद है, His Highness, The Crown Prince Of Kuwait ने न्यूयॉर्क में हमारी मुलाकात के दौरान एक कहावत का जिक्र किया था। उन्होंने कहा था- “When You Are In Need, India Is Your Destination”. भारत और कुवैत के नागरिकों ने दुख के समय में, संकटकाल में भी एक दूसरे की हमेशा मदद की है। कोरोना महामारी के दौरान दोनों देशों ने हर स्तर पर एक-दूसरे की मदद की। जब भारत को सबसे ज्यादा जरूरत पड़ी, तो कुवैत ने हिंदुस्तान को Liquid Oxygen की सप्लाई दी। His Highness The Crown Prince ने खुद आगे आकर सबको तेजी से काम करने के लिए प्रेरित किया। मुझे संतोष है कि भारत ने भी कुवैत को वैक्सीन और मेडिकल टीम भेजकर इस संकट से लड़ने का साहस दिया। भारत ने अपने पोर्ट्स खुले रखे, ताकि कुवैत और इसके आसपास के क्षेत्रों में खाने पीने की चीजों का कोई अभाव ना हो। अभी इसी साल जून में यहां कुवैत में कितना हृदय विदारक हादसा हुआ। मंगफ में जो अग्निकांड हुआ, उसमें अनेक भारतीय लोगों ने अपना जीवन खोया। मुझे जब ये खबर मिली, तो बहुत चिंता हुई थी। लेकिन उस समय कुवैत सरकार ने जिस तरह का सहयोग किया, वो एक भाई ही कर सकता है। मैं कुवैत के इस जज्बे को सलाम करूंगा।

साथियों,

हर सुख-दुख में साथ रहने की ये परंपरा, हमारे आपसी रिश्ते, आपसी भरोसे की बुनियाद है। आने वाले दशकों में हम अपनी समृद्धि के भी बड़े पार्टनर बनेंगे। हमारे लक्ष्य भी बहुत अलग नहीं है। कुवैत के लोग, न्यू कुवैत के निर्माण में जुटे हैं। भारत के लोग भी, साल 2047 तक, देश को एक डवलप्ड नेशन बनाने में जुटे हैं। कुवैत Trade और Innovation के जरिए एक Dynamic Economy बनना चाहता है। भारत भी आज Innovation पर बल दे रहा है, अपनी Economy को लगातार मजबूत कर रहा है। ये दोनों लक्ष्य एक दूसरे को सपोर्ट करने वाले हैं। न्यू कुवैत के निर्माण के लिए, जो इनोवेशन, जो स्किल, जो टेक्नॉलॉजी, जो मैनपावर चाहिए, वो भारत के पास है। भारत के स्टार्ट अप्स, फिनटेक से हेल्थकेयर तक, स्मार्ट सिटी से ग्रीन टेक्नॉलजी तक कुवैत की हर जरूरत के लिए Cutting Edge Solutions बना सकते हैं। भारत का स्किल्ड यूथ कुवैत की फ्यूचर जर्नी को भी नई स्ट्रेंथ दे सकता है।

साथियों,

भारत में दुनिया की स्किल कैपिटल बनने का भी सामर्थ्य है। आने वाले कई दशकों तक भारत दुनिया का सबसे युवा देश रहने वाला है। ऐसे में भारत दुनिया की स्किल डिमांड को पूरा करने का सामर्थ्य रखता है। और इसके लिए भारत दुनिया की जरूरतों को देखते हुए, अपने युवाओं का स्किल डवलपमेंट कर रहा है, स्किल अपग्रेडेशन कर रहा है। भारत ने हाल के वर्षों में करीब दो दर्जन देशों के साथ Migration और रोजगार से जुड़े समझौते किए हैं। इनमें गल्फ कंट्रीज के अलावा जापान, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, जर्मनी, मॉरिशस, यूके और इटली जैसे देश शामिल हैं। दुनिया के देश भी भारत की स्किल्ड मैनपावर के लिए दरवाज़े खोल रहे हैं।

साथियों,

विदेशों में जो भारतीय काम कर रहे हैं, उनके वेलफेयर और सुविधाओं के लिए भी अनेक देशों से समझौते किए जा रहे हैं। आप ई-माइग्रेट पोर्टल से परिचित होंगे। इसके ज़रिए, विदेशी कंपनियों और रजिस्टर्ड एजेंटों को एक ही प्लेटफॉर्म पर लाया गया है। इससे मैनपावर की कहां जरूरत है, किस तरह की मैनपावर चाहिए, किस कंपनी को चाहिए, ये सब आसानी से पता चल जाता है। इस पोर्टल की मदद से बीते 4-5 साल में ही लाखों साथी, यहां खाड़ी देशों में भी आए हैं। ऐसे हर प्रयास के पीछे एक ही लक्ष्य है। भारत के टैलेंट से दुनिया की तरक्की हो और जो बाहर कामकाज के लिए गए हैं, उनको हमेशा सहूलियत रहे। कुवैत में भी आप सभी को भारत के इन प्रयासों से बहुत फायदा होने वाला है।

साथियों,

हम दुनिया में कहीं भी रहें, उस देश का सम्मान करते हैं और भारत को नई ऊंचाई छूता देख उतने ही प्रसन्न भी होते हैं। आप सभी भारत से यहां आए, यहां रहे, लेकिन भारतीयता को आपने अपने दिल में संजो कर रखा है। अब आप मुझे बताइए, कौन भारतीय होगा जिसे मंगलयान की सफलता पर गर्व नहीं होगा? कौन भारतीय होगा जिसे चंद्रयान की चंद्रमा पर लैंडिंग की खुशी नहीं हुई होगी? मैं सही कह रहा हूं कि नहीं कह रहा हूं। आज का भारत एक नए मिजाज के साथ आगे बढ़ रहा है। आज भारत दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी इकॉनॉमी है। आज दुनिया का नंबर वन फिनटेक इकोसिस्टम भारत में है। आज दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्ट-अप इकोसिस्टम भारत में है। आज भारत, दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल निर्माता देश है।

मैं आपको एक आंकड़ा देता हूं और सुनकर आपको भी अच्छा लगेगा। बीते 10 साल में भारत ने जितना ऑप्टिकल फाइबर बिछाया है, भारत में जितना ऑप्टिकल फाइबर बिछाया है, उसकी लंबाई, वो धरती और चंद्रमा की दूरी से भी आठ गुना अधिक है। आज भारत, दुनिया के सबसे डिजिटल कनेक्टेड देशों में से एक है। छोटे-छोटे शहरों से लेकर गांवों तक हर भारतीय डिजिटल टूल्स का उपयोग कर रहा है। भारत में स्मार्ट डिजिटल सिस्टम अब लग्जरी नहीं, बल्कि कॉमन मैन की रोजमर्रा की जिंदगी में शामिल हो गया है। भारत में चाय पीते हैं, रेहड़ी-पटरी पर फल खरीदते हैं, तो डिजिटली पेमेंट करते हैं। राशन मंगाना है, खाना मंगाना है, फल-सब्जियां मंगानी है, घर का फुटकर सामान मंगाना है, बहुत कम समय में ही डिलिवरी हो जाती है और पेमेंट भी फोन से ही हो जाता है। डॉक्यूमेंट्स रखने के लिए लोगों के पास डिजि लॉकर है, एयरपोर्ट पर सीमलैस ट्रेवेल के लिए लोगों के पास डिजियात्रा है, टोल बूथ पर समय बचाने के लिए लोगों के पास फास्टटैग है, भारत लगातार डिजिटली स्मार्ट हो रहा है और ये तो अभी शुरुआत है। भविष्य का भारत ऐसे इनोवेशन्स की तरफ बढ़ने वाला है, जो पूरी दुनिया को दिशा दिखाएगा। भविष्य का भारत, दुनिया के विकास का हब होगा, दुनिया का ग्रोथ इंजन होगा। वो समय दूर नहीं जब भारत दुनिया का Green Energy Hub होगा, Pharma Hub होगा, Electronics Hub होगा, Automobile Hub होगा, Semiconductor Hub होगा, Legal, Insurance Hub होगा, Contracting, Commercial Hub होगा। आप देखेंगे, जब दुनिया के बड़े-बड़े Economy Centres भारत में होंगे। Global Capability Centres हो, Global Technology Centres हो, Global Engineering Centres हो, इनका बहुत बड़ा Hub भारत बनेगा।

साथियों,

हम पूरे विश्व को एक परिवार मानते हैं। भारत एक विश्वबंधु के रूप में दुनिया के भले की सोच के साथ आगे चल रहा है। और दुनिया भी भारत की इस भावना को मान दे रही है। आज 21 दिसंबर, 2024 को दुनिया, अपना पहला World Meditation Day सेलीब्रेट कर रही है। ये भारत की हज़ारों वर्षों की Meditation परंपरा को ही समर्पित है। 2015 से दुनिया 21 जून को इंटरनेशन योगा डे मनाती आ रही है। ये भी भारत की योग परंपरा को समर्पित है। साल 2023 को दुनिया ने इंटरनेशनल मिलेट्स ईयर के रूप में मनाया, ये भी भारत के प्रयासों और प्रस्ताव से ही संभव हो सका। आज भारत का योग, दुनिया के हर रीजन को जोड़ रहा है। आज भारत की ट्रेडिशनल मेडिसिन, हमारा आयुर्वेद, हमारे आयुष प्रोडक्ट, ग्लोबल वेलनेस को समृद्ध कर रहे हैं। आज हमारे सुपरफूड मिलेट्स, हमारे श्री अन्न, न्यूट्रिशन और हेल्दी लाइफस्टाइल का बड़ा आधार बन रहे हैं। आज नालंदा से लेकर IITs तक का, हमारा नॉलेज सिस्टम, ग्लोबल नॉलेज इकोसिस्टम को स्ट्रेंथ दे रहा है। आज भारत ग्लोबल कनेक्टिविटी की भी एक अहम कड़ी बन रहा है। पिछले साल भारत में हुए जी-20 सम्मेलन के दौरान, भारत-मिडिल ईस्ट-यूरोप कॉरिडोर की घोषणा हुई थी। ये कॉरिडोर, भविष्य की दुनिया को नई दिशा देने वाला है।

साथियों,

विकसित भारत की यात्रा, आप सभी के सहयोग, भारतीय डायस्पोरा की भागीदारी के बिना अधूरी है। मैं आप सभी को विकसित भारत के संकल्प से जुड़ने के लिए आमंत्रित करता हूं। नए साल का पहला महीना, 2025 का जनवरी, इस बार अनेक राष्ट्रीय उत्सवों का महीना होने वाला है। इसी साल 8 से 10 जनवरी तक, भुवनेश्वर में प्रवासी भारतीय दिवस का आयोजन होगा, दुनियाभर के लोग आएंगे। मैं आप सब को, इस कार्यक्रम के लिए आमंत्रित करता हूं। इस यात्रा में, आप पुरी में महाप्रभु जगन्नाथ जी का आशीर्वाद ले सकते हैं। इसके बाद प्रयागराज में आप महाकुंभ में शामिल होने के लिए प्रयागराज पधारिये। ये 13 जनवरी से 26 फरवरी तक चलने वाला है, करीब डेढ़ महीना। 26 जनवरी को आप गणतंत्र दिवस देखकर ही वापस लौटिए। और हां, आप अपने कुवैती दोस्तों को भी भारत लाइए, उनको भारत घुमाइए, यहां पर कभी, एक समय था यहां पर कभी दिलीप कुमार साहेब ने पहले भारतीय रेस्तरां का उद्घाटन किया था। भारत का असली ज़ायका तो वहां जाकर ही पता चलेगा। इसलिए अपने कुवैती दोस्तों को इसके लिए ज़रूर तैयार करना है।

साथियों,

मैं जानता हूं कि आप सभी आज से शुरु हो रहे, अरेबियन गल्फ कप के लिए भी बहुत उत्सुक हैं। आप कुवैत की टीम को चीयर करने के लिए तत्पर हैं। मैं His Highness, The Amir का आभारी हूं, उन्होंने मुझे उद्घाटन समारोह में Guest Of Honour के रूप में Invite किया है। ये दिखाता है कि रॉयल फैमिली, कुवैत की सरकार, आप सभी का, भारत का कितना सम्मान करती है। भारत-कुवैत रिश्तों को आप सभी ऐसे ही सशक्त करते रहें, इसी कामना के साथ, फिर से आप सभी का बहुत-बहुत धन्यवाद!

भारत माता की जय,

भारत माता की जय,

भारत माता की जय!

बहुत-बहुत धन्यवाद।