उपस्थित सभी महानुभाव,

आप सबको क्रिसमस के पावन पर्व की बुहत-बहुत शुभकामनाएं। ये आज सौभाग्य है कि 25 दिसंबर, पंडित मदन मोहन मालवीय जी की जन्म जयंती पर, मुझे उस पावन धरती पर आने का सौभाग्य मिला है जिसके कण-कण पर पंडित जी के सपने बसे हुए हैं। जिनकी अंगुली पकड़ कर के हमें बड़े होने का सौभाग्य मिला, जिनके मार्गदर्शन में हमें काम करने का सौभाग्य मिला ऐसे अटल बिहारी वाजपेयी जी का भी आज जन्मदिन है और आज जहां पर पंडित जी का सपना साकार हुआ, उस धरती के नरेश उनकी पुण्यतिथि का भी अवसर है। उन सभी महापुरुषों को नमन करते हुए, आज एक प्रकार से ये कार्यक्रम अपने आप में एक पंचामृत है। एक ही समारोह में अनेक कार्यक्रमों का आज कोई-न-कोई रूप में आपके सामने प्रस्तुतिकरण हो रहा है। कहीं शिलान्यास हो रहा है तो कहीं युक्ति का Promotion हो रहा है तो Teachers’ Training की व्यवस्था हो रही है तो काशी जिसकी पहचान में एक बहुत महत्वपूर्ण बात है कि यहां कि सांस्कृतिक विरासत उन सभी का एक साथ आज आपके बीच में उद्घाटन करने का अवसर मुझे मिला है। मेरे लिए सौभाग्य की बात है।

मैं विशेष रूप से इस बात की चर्चा करना चाहता हूं कि जब-जब मानवजाति ने ज्ञान युग में प्रवेश किया है तब-तब भारत ने विश्व गुरू की भूमिका निभाई है और 21वीं सदी ज्ञान की सदी है मतलब की 21वीं सदी भारत की बहुत बड़ी जिम्मेवारियों की भी सदी है और अगर ज्ञान युग ही हमारी विरासत है तो भारत ने उस एक क्षेत्र में विश्व के उपयोगी कुछ न कुछ योगदान देने की समय की मांग है। मनुष्य का पूर्णत्व Technology में समाहित नहीं हो सकता है और पूर्णत्व के बिना मनुष्य मानव कल्याण की धरोहर नहीं बन सकता है और इसलिए पूर्णत्व के लक्ष्य को प्राप्त करना उसी अगर मकसद को लेकर के चलते हैं तो विज्ञान हो, Technology हो नए-नए Innovations हो, Inventions हो लेकिन उस बीच में भी एक मानव मन एक परिपूर्ण मानव मन ये भी विश्व की बहुत बड़ी आवश्यकता है।

हमारी शिक्षा व्यवस्था Robot पैदा करने के लिए नहीं है। Robot तो शायद 5-50 वैज्ञानिक मिलकर शायद लेबोरेटरी में पैदा कर देंगे, लेकिन नरकर्णी करे तो नारायण हो जाए। ये जिस भूमि का संदेश है वहां तो व्यक्तित्व का संपूर्णतम विकास यही परिलक्षित होता है और इसलिए इस धरती से जो आवाज उठी थी, इस धरती से जो संस्कार की गंगा बही थी उसमें संस्कृति की शिक्षा तो थी लेकिन इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण था शिक्षा की संस्कृति और आज कहीं ऐसा तो नहीं है सदियों से संजोयी हुई हमारी शैक्षिक परंपरा है, जो एक संस्कृतिक विरासत के रूप में विकसित हुई है। वो शिक्षा की संस्कृति तो लुप्त नहीं हो रही है? वो भी तो कहीं प्रदूषित नहीं हो रही है? और तब जाकर के आवश्यकता है कि कालवाह्य चीजों को छोड़कर के उज्जवलतम भविष्य की ओर नजर रखते हुए पुरानी धरोहर के अधिष्ठान को संजोते हुए हम किस प्रकार की व्यवस्था को विकसित करें जो आने वाली सदियों तक मानव कल्याण के काम आएं।

हम दुनिया के किसी भी महापुरुष का अगर जीवन चरित्र पढ़ेंगे, तो दो बातें बहुत स्वाभाविक रूप से उभर कर के आती हैं। अगर कोई पूछे कि आपके जीवन की सफलता के कारण तो बहुत एक लोगों से एक बात है कि एक मेरी मां का योगदान, हर कोई कहता है और दूसरा मेरे शिक्षक का योगदान। कोई ऐसा महापुरुष नहीं होगा जिसने ये न कहा हो कि मेरे शिक्षक का बुहत बड़ा contribution है, मेरी जिंदगी को बनाने में, अगर ये हमें सच्चाई को हम स्वीकार करते हैं तो हम ये बहुमूल्य जो हमारी धरोहर है इसको हम और अधिक तेजस्वी कैसे बनाएं और अधिक प्राणवान कैसे बनाएं और उसी में से विचार आया कि, वो देश जिसके पास इतना बड़ा युवा सामर्थ्य है, युवा शक्ति है।

आज पूरे विश्व को उत्तम से उत्तम शिक्षकों की बहुत बड़ी खोट है, कमी है। आप कितने ही धनी परिवार से मिलिए, कितने ही सुखी परिवार से मिलिए, उनको पूछिए किसी एक चीज की आपको आवश्यकता लगती है तो क्या लगती है। अरबों-खरबों रुपयों का मालिक होगा, घर में हर प्रकार का सुख-वैभव होगा तो वो ये कहेगा कि मुझे अच्छा टीचर चाहिए मेरे बच्चों के लिए। आप अपने ड्राइवर से भी पूछिए कि आपकी क्या इच्छा है तो ड्राइवर भी कहता है कि मेरे बच्चे भी अच्छी शिक्षी ही मेरी कामना है। अच्छी शिक्षा इंफ्रास्ट्रक्चर के दायरे में नहीं आती। Infrastructure तो एक व्यवस्था है। अच्छी शिक्षा अच्छे शिक्षकों से जुड़ी हुई होती है और इसलिए अच्छे शिक्षकों का निर्माण कैसे हो और हम एक नए तरीके से कैसे सोचें?

आज 12 वीं के बीएड, एमएड वगैरह होता है वो आते हैं, ज्यादातर बहुत पहले से ही जिसने तय किया कि मुझे शिक्षक बनना है ऐसे बहुत कम लोग होते हैं। ज्यादातर कुछ न कुछ बनने का try करते-करके करके हुए आखिर कर यहां चल पड़ते हैं। मैं यहां के लोगों की बात नहीं कर रहा हूं। हम एक माहौल बना सकते हैं कि 10वीं,12वीं की विद्यार्थी अवस्था में विद्यार्थियों के मन में एक सपना हो मैं एक उत्तम शिक्षक बनना चाहता हूं। ये कैसे बोया जाए, ये environment कैसे create किया जाए? और 12वीं के बाद पहले Graduation के बाद law faculty में जाते थे और वकालत धीरे-धीरे बदलाव आया और 12वीं के बाद ही पांच Law Faculty में जाते हैं और lawyer बनकर आते हैं। क्या 10वीं और 12वीं के बाद ही Teacher का एक पूर्ण समय का Course शुरू हो सकता है और उसमें Subject specific मिले और जब एक विद्यार्थी जिसे पता है कि मुझे Teacher बनना है तो Classroom में वो सिर्फ Exam देने के लिए पढ़ता नहीं है वो अपने शिक्षक की हर बारीकी को देखता है और हर चीज में सोचता है कि मैं शिक्षक बनूंगा तो कैसे करूंगा, मैं शिक्षक बनूंगा ये उसके मन में रहता है और ये एक पूरा Culture बदलने की आवश्यकता है।

उसके साथ-साथ भले ही वो विज्ञान का शिक्षक हो, गणित का शिक्षक हो उसको हमारी परंपराओं का ज्ञान होना चाहिए। उसे Child Psychology का पता होना चाहिए, उसको विद्यार्थियों को Counselling कैसे करना चाहिए ये सीखना चाहिए, उसे विद्यार्थियों को मित्रवत व्यवहार कैसे करना है ये सीखाना चाहिए और ये चीजें Training से हो सकती हैं, ऐसा नहीं है कि ये नहीं हो सकता है। सब कुछ Training से हो सकता है और हम इस प्रकार के उत्तम शिक्षकों को तैयार करें मुझे विश्वास है कि दुनिया को जितने शिक्षकों की आवश्यकता है, हम पूरे विश्व को, भारत के पास इतना बड़ा युवा धन है लाखों की तादाद में हम शिक्षक Export कर सकते हैं। Already मांग तो है ही है हमें योग्यता के साथ लोगों को तैयार करने की आवश्यकता है और एक व्यापारी जाता है बाहर तो Dollar या Pound ले आता है लेकिन एक शिक्षक जाता है तो पूरी-पूरी पीढ़ी को अपने साथ ले आता है। हम कल्पना कर सकते हैं कितना बड़ा काम हम वैश्विक स्तर पर कर सकते हैं और उसी एक सपने को साकार करने के लिए पंड़ित मदन मोहन मालवीय जी के नाम से इस मिशन को प्रारंभ किया गया है। और आज उसका शुभारंभ करने का मुझे अवसर मिला है।

आज पूरे विश्व में भारत के Handicraft तरफ लोगों का ध्यान है, आकर्षण है लेकिन हमारी इस पुरानी पद्धतियों से बनी हुई चीजें Quantum भी कम होता है, Wastage भी बहुत होता है, समय भी बहुत जाता है और इसके कारण एक दिन में वो पांच खिलौने बनाता है तो पेट नहीं भरता है लेकिन अगर Technology के उपयोग से 25 खिलौने बनाता है तो उसका पेट भी भरता है, बाजार में जाता है और इसलिए आधुनिक विज्ञान और Technology को हमारे परंपरागत जो खिलौने हैं उसका कैसे जोड़ा जाए उसका एक छोटा-सा प्रदर्शन मैंने अभी उनके प्रयोग देखे, मैं देख रहा था एक बहुत ही सामान्य प्रकार की टेक्नोलोजी को विकसित किया गया है लेकिन वो उनके लिए बहुत बड़ी उपयोगिता है वरना वो लंबे समय अरसे से वो ही करते रहते थे। उसके कारण उनके Production में Quality, Production में Quantity और उसके कारण वैश्विक बाजार में अपनी जगह बनाने की संभावनाएं और हमारे Handicrafts की विश्व बाजार की संभावनाएं बढ़ी हैं। आज हम उनको Online Marketing की सुविधाएं उपलब्ध कराएं। युक्ति, जो अभियान है उसके माध्यम से हमारे जो कलाकार हैं, काश्तकारों को ,हमारे विश्वकर्मा हैं ये इन सभी विश्वकर्माओं के हाथ में हुनर देने का उनका प्रयास। उनके पास जो skill है उसको Technology के लिए Up-gradation करने का प्रयास। उस Technology में नई Research हो उनको Provide हो, उस दिशा में प्रयास बढ़ रहे हैं।

हमारे देश में सांस्कृतिक कार्यक्रम तो बहुत होते रहते हैं। कई जगहों पर होते हैं। बनारस में एक विशेष रूप से भी आरंभ किया है। हमारे टूरिज्म को बढ़ावा देने में इसकी बहुत बड़ी ताकत है। आप देखते होंगे कि दुनिया ने, हम ये तो गर्व करते थे कि हमारे ऋषियों ने, मुनियों ने हमें योग दिया holistic health के लिए preventive health के लिए योग की हमें विरासत मिली और धीरे-धीरे दुनिया को भी लगने लगा योग है क्या चीज और दुनिया में लोग पहुंच गए। नाक पकड़कर के डॉलर भी कमाने लग गए। लेकिन ये शास्त्र आज के संकटों के युग में जी रहे मानव को एक संतुलित जीवन जीने की ताकत कैसे मिले। योग बहुत बड़ा योगदान कर सकता है। मैं सितंबर में UN में गया था और UN में पहली बार मुझे भाषण करने का दायित्व था। मैंने उस दिन कहा कि हम एक अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाएं और मैंने प्रस्तावित किया था 21 जून। सामान्य रूप से इस प्रकार के जब प्रस्ताव आते हैं तो उसको पारित होने में डेढ़ साल, दो साल, ढ़ाई साल लग जाते हैं। अब तक ऐसे जितने प्रस्ताव आए हैं उसमें ज्यादा से ज्यादा 150-160 देशों नें सहभागिता दिखाई है। जब योग का प्रस्ताव रखा मुझे आज बड़े आनंद और गर्व के साथ कहना है और बनारस के प्रतिनिधि के नाते बनारस के नागरिकों को ये हिसाब देते हुए, मुझे गर्व होता है कि 177 Countries Co- sponsor बनी जो एक World Record है। इस प्रकार के प्रस्ताव में 177 Countries का Co- sponsor बनना एक World Record है और जिस काम में डेढ़-दो साल लगते हैं वो काम करीब-करीब 100 दिन में पूरा हो गया। UN ने इसे 21 जून को घोषित कर दिया ये भी अपने आप में एक World Record है।

हमारी सांस्कृतिक विरासत की एक ताकत है। हम दुनिया के सामने आत्मविश्वास के साथ कैसे ले जाएं। हमारा गीत-संगीत, नृत्य, नाट्य, कला, साहित्य कितनी बड़ी विरासत है। सूरज उगने से पहले कौन-सा संगीत, सूरज उगने के बाद कौन-सा संगीत यहां तक कि बारीक रेखाएं बनाने वाला काम हमारे पूर्वजों ने किया है और दुनिया में संगीत तो बहुत प्रकार के हैं लेकिन ज्यादातर संगीत तन को डोलाते हैं बहुत कम संगीत मन को डोलाते हैं। हम उस संगीत के धनी हैं जो मन को डोलाता है और मन को डोलाने वाले संगीत को विश्व के अंदर कैसे रखें यही प्रयासों से वो आगे बढ़ने वाला है लेकिन मेरे मन में विचार है क्या बनारस के कुछ स्कूल, स्कूल हो, कॉलेज हो आगे आ सकते हैं क्या और बनारस के जीवन पर ही एक विषय पर ही एक स्कूल की Mastery हो बनारस की विरासत पर, कोई एक स्कूल हो जिसकी तुलसी पर Mastery हो, कोई स्कूल हो जिसकी कबीर पर हो, ऐसी जो भी यहां की विरासत है उन सब पर और हर दिन शाम के समय एक घंटा उसी स्कूल में नाट्य मंच पर Daily उसका कार्यक्रम हो और जो Tourist आएं जिसको कबीर के पास जाना है उसके स्कूल में चला जाएगा, बैठेगा घंटे-भर, जिसको तुलसी के पास जाना है वो उस स्कूल में जाए बैठेगा घंटे भर , धीरे-धीरे स्कूल टिकट भी रख सकता है अगर popular हो जाएगी तो स्कूल की income भी बढ़ सकती है लेकिन काशी में आया हुआ Tourist वो आएगा हमारे पूर्वजों के प्रयासों के कारण, बाबा भोलेनाथ के कारण, मां गंगा के कारण, लेकिन रुकेगा हमारे प्रयासों के कारण। आने वाला है उसके लिए कोई मेहनत करने की जरूरत नहीं क्योंकि वो जन्म से ही तय करके बैठा है कि जाने है एक बार बाबा के दरबार में जाना है लेकिन वो एक रात यहां तब रुकेगा उसके लिए हम ऐसी व्यवस्था करें तब ऐसी व्यवस्था विकसित करें और एक बार रात रुक गया तो यहां के 5-50 नौजवानों को रोजगार मिलना ही मिलना है। वो 200-500-1000 रुपए खर्च करके जाएगा जो हमारे बनारस की इकॉनोमी को चलाएगा और हर दिन ऐसे हजारों लोग आते हैं और रुकते हैं तो पूरी Economy यहां कितनी बढ़ सकती है लेकिन इसके लिए ये छोटी-छोटी चीजें काम आ सकती हैं।

हमारे हर स्कूल में कैसा हो, हमारे जो सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं, परंपरागत जो हमारे ज्ञान-विज्ञान हैं उसको तो प्रस्तुत करे लेकिन साथ-साथ समय की मांग इस प्रकार की स्पर्धाएं हो सकती हैं, मान लीजिए ऐसे नाट्य लेखक हो जो स्वच्छता पर ही बड़े Touchy नाटक लिखें अगर स्वच्छता के कारण गरीब को कितना फायदा होता है आज गंदगी के कारण Average एक गरीब को सात हजार रुपए दवाई का खर्चा आता है अगर हम स्वच्छता कर लें तो गरीब का सात हजार रुपए बच जाता है। तीन लोगों का परिवार है तो 21 हजार रुपए बच जाता है। ये स्वच्छता का कार्यक्रम एक बहुत बड़ा अर्थ कारण भी उसके साथ जुड़ा हुआ है और स्वच्छता ही है जो टूरिज्म की लिए बहुत बड़ी आवश्यकता होती है। क्या हमारे सांस्कृतिक कार्यक्रम, नाट्य मंचन में ऐसे मंचन, ऐसे काव्य मंचन, ऐसे गीत, कवि सम्मेलन हो तो स्वच्छता पर क्यों न हो, उसी प्रकार से बेटी बचाओ भारत जैसा देश जहां नारी के गौरव की बड़ी गाथाएं हम सुनते हैं। इसी धरती की बेटी रानी लक्ष्मीबाई को हम याद करते हैं लेकिन उसी देश में बटी को मां के गर्भ में मार देते हैं। इससे बड़ा कोई पाप हो नहीं सकता है। क्या हमारे नाट्य मंचन पर हमारे कलाकारों के माध्यम से लगातार बार-बार हमारी कविताओं में, हमारे नाट्य मंचों पर, हमारे संवाद में, हमारे लेखन में बेटी बचाओ जैसे अभियान हम घर-घर पहुंच सकते हैं।

भारत जैसा देश जहां चींटी को भी अन्न खिलाना ये हमारी परंपरा रही है, गाय को भी खिलाना, ये हमारी परंपरा रही है। उस देश में कुपोषण, हमारे बालकों को……उस देश में गर्भवती माता कुपोषित हो इससे बड़ी पीड़ा की बात क्या हो सकती है। क्या हमारे नाट्य मंचन के द्वारा, क्या हमारी सांस्कृतिक धरोहर के द्वारा से हम इन चीजों को प्रलोभन के उद्देश्य में ला सकते हैं क्या? मैं कला, साहित्य जगत के लोगों से आग्रह करूंगा कि नए रूप में देश में झकझोरने के लिए कुछ करें।

जब आजादी का आंदोलन चला था तब ये ही साहित्यकार और कलाकार थे जिनकी कलम ने देश को खड़ा कर दिया था। स्वतंत्र भारत में सुशासन का मंत्र लेकर चल रहे तब ये ही हमारे कला और साहित्य के लोगों की कलम के माध्यम से एक राष्ट्र में नवजागरण का माहौल बना सकते हैं।

मैं उन सबको निमंत्रित करता हूं कि सांस्कृतिक सप्ताह यहां मनाया जा रहा है उसके साथ इसका भी यहां चिंतन हो, मनन हो और देश के लिए इस प्रकार की स्पर्धाएं हो और देश के लिए इस प्रकार का काम हो।

मुझे विश्वास है कि इस प्रयास से सपने पूरे हो सकते हैं साथियों, देश दुनिया में नाम रोशन कर सकता है। मैं अनुभव से कह सकता हूं, 6 महीने के मेरे अनुभव से कह सकता हूं पूरा विश्व भारत की ओर देख रहा है हम तैयार नहीं है, हम तैयार नहीं है हमें अपने आप को तैयार करना है, विश्व तैयार बैठा है।

मैं फिर एक बार पंडित मदन मोहन मालवीय जी की धरती को प्रणाम करता हूं, उस महापुरुष को प्रणाम करता हूं। आपको बहुत-बुहत शुभकामनाएं देता हूं।

धन्यवाद

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Our youth, imbued with the spirit of nation-building, are moving ahead towards the goal of Viksit Bharat by 2047: PM Modi in Nagpur
March 30, 2025
QuoteIt is our priority that all citizens of the country get better health facilities: PM
QuoteEven during the most difficult times, new social movements kept taking place in India to keep consciousness awakened: PM
QuoteRashtriya Swayamsevak Sangh is the modern Akshay Vat of the immortal culture of India, this Akshay Vat is continuously energizing Indian culture and the consciousness of our nation: PM
QuoteWhen during efforts the focus is on we and not I, when the spirit of nation first is paramount, when the interest of the people of the country is the most important factor in policies and decisions, only then its effect is visible everywhere: PM
QuoteWherever there is a natural disaster in the world, India stands up to serve wholeheartedly: PM
QuoteOur youth, imbued with the spirit of nation-building, are moving ahead towards the goal of Viksit Bharat by 2047: PM

भारत माता की जय,

भारत माता की जय,

भारत माता की जय,

गुडी पाड़-व्याच्या आणि नवीन वर्षाच्या आपल्या सर्वांन्ना अतिशय मन:पूर्वक शुभेच्छा! कार्यक्रम में उपस्थित परम पूजनीय सरसंघ चालक जी, डॉ मोहन भागवत जी, स्वामी गोविंद गिरी जी महाराज, स्वामी अवधेशानंद गिरी जी महाराज, महाराष्ट्र के लोकप्रिय मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस जी, केंद्रीय मंत्रिमंडल में मेरे साथी नितिन गडकरी जी, डॉ अविनाश चंद्र अग्निहोत्री जी, अन्य महानुभाव और उपस्थित सभी वरिष्ठ साथी, राष्ट्र यज्ञ के इस पावन अनुष्ठान में आज मुझे यहां आने का सौभाग्य मिला है। आज चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का ये दिन बहुत विशेष है। आज से नवरात्रि का पवित्र पर्व शुरू हो रहा है। देश के अलग-अलग कोनों में आज गुड़ी-पड़वा, उगादि और नवरेह का त्योहार भी मनाया जा रहा है। आज भगवान झूलेलाल जी और गुरू अंगद देव जी का अवतरण दिवस भी है। ये हमारे प्रेरणापुंज, परम पूजनीय डाक्टर साहब की जयंती का भी अवसर है। और इसी साल, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की गौरवशाली यात्रा के 100 वर्ष भी पूरे हो रहे हैं। आज इस अवसर पर मुझे स्मृति मंदिर जाकर पूज्य डॉक्टर साहेब और पूज्य गुरुजी को श्रद्धांजलि अर्पित करने का सौभाग्य मिला है।

साथियों,

इसी कालखंड में हमने हमारे संविधान के 75 वर्ष का उत्सव भी मनाया है। अगले ही महीने संविधान निर्माता बाबा साहेब अंबेडकर जी की जयंती भी है। आज मैंने दीक्षाभूमि पर बाबा साहब को नमन किया है, उनका आशीर्वाद लिया है। मैं इन विभूतियों को नमन करते हुए देशवासियों को नवरात्रि और सभी पर्वों की बहुत-बहुत बधाई देता हूँ।

साथियों,

संघ सेवा के इस पवित्र तीर्थ नागपुर में आज हम एक पुण्य संकल्प के विस्तार के साक्षी बन रहे हैं। अभी हमने माधव नेत्रालय के कुलगीत में सुना, अध्यात्म, ज्ञान, गौरव, गुरुता का ये अद्भुत विद्यालय, मानवता रत यह सेवा मंदिर कण-कण में देवालय। माधव नेत्रालय एक ऐसा संस्थान है, जो अनेक दशकों से पूज्य गुरुजी के आदर्शों पर लाखों लोगों की सेवा कर रहा है। लोगों के जीवन में रोशनी लौटी है, आज उसके नए परिसर का शिलान्यास हुआ है। अब इस नए परिसर के बाद इन सेवाकार्यों को और ज्यादा गति मिलेगी। इससे हजारों नए लोगों के जीवन में प्रकाश फैलेगा, उनके जीवन का अंधकार भी दूर होगा। मैं इस सेवा कार्य के लिए माधव नेत्रालय से जुड़े सभी लोगों को उनके कार्य की, उनके सेवाभाव की सराहना करता हूं और मेरी तरफ से अनेक-अनेक शुभकामनाएँ देता हूँ।

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साथियों,

किसी भी राष्ट्र का अस्तित्व, पीढ़ी दर पीढ़ी, उसकी संस्कृति के विस्तार, उस राष्ट्र की चेतना के विस्तार पर निर्भर करता है। हम अपने देश का इतिहास देखें, तो सैकड़ों वर्षों की गुलामी, इतने आक्रमण, भारत की सामाजिक संरचना को मिटाने की इतनी क्रूर कोशिशें, लेकिन भारत की चेतना कभी समाप्त नहीं हुई, उसकी लौ जलती रही। ये कैसे हुआ? क्योंकि कठिन से कठिन दौर में भी भारत में इस चेतना को जागृत रखने वाले नए-नए सामाजिक आंदोलन होते रहे। भक्ति आंदोलन, उसका ये उदाहरण, जिससे हम सभी भलिभांति परिचित हैं। मध्यकाल के उस कठिन कालखंड में हमारे संतों ने भक्ति के विचारों से हमारी राष्ट्रीय चेतना को नई ऊर्जा दी। गुरु नानकदेव, कबीरदास, तुलसीदास, सूरदास, हमारे यहाँ महाराष्ट्र में संत तुकाराम, संत एकनाथ, संत नामदेव, संत ज्ञानेश्वर, ऐसे कितने ही संतों ने हमारी इस राष्ट्रीय चेतना में अपने मौलिक विचारों से प्राण फूंके। इन आंदोलनों ने भेदभाव के फंदों को तोड़कर समाज को एकता के सूत्र में जोड़ा।

इसी तरह, स्वामी विवेकानंद जैसे महान संत भी हुए। उन्होंने निराशा में डूब रहे समाज को झकझोरा, उसे उसके स्वरूप की याद दिलाई, उसमें आत्मविश्वास का संचार किया और हमारी राष्ट्रीय चेतना को बुझने नहीं दिया। गुलामी के आखिरी दशकों में डॉक्टर साहेब और गुरू जी जैसे महान व्यक्तित्वों ने इसे नई ऊर्जा देने का काम किया। आज हम देखते हैं, राष्ट्रीय चेतना के संरक्षण और संवर्धन के लिए जो विचारबीज 100 साल पहले बोया गया, वो महान वटवृक्ष के रूप में आज दुनिया के सामने है। सिद्धान्त और आदर्श इस वटवृक्ष को ऊंचाई देते हैं, लाखों-करोड़ों स्वयंसेवक इसकी टहनी, ये कोई साधारण वटवृक्ष नहीं, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारत की अमर संस्कृति का आधुनिक अक्षय वट है। ये अक्षय वट आज भारतीय संस्कृति को, हमारे राष्ट्र की चेतना को, निरंतर ऊर्जावान बना रहा है।

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साथियों,

आज जब हम माधव नेत्रालय के नए परिसर का काम शुरू कर रहे हैं, तो दृष्टि की बात स्वभाविक है। हमारे जीवन में दृष्टि ही हमें दिशा देती है। इसीलिए, वेदों में भी कामना की गई है- पश्येम शरदः शतम्! अर्थात्, हम सौ वर्षों तक देखें। ये दृष्टि आँखों की, यानी बाह्यदृष्टि भी होनी चाहिए, और अन्तः दृष्टि भी होनी चाहिए। जब अन्तःदृष्टि की बात करते हैं, तो विदर्भ के महान संत श्री गुलाबराव महाराज जी का स्मरण होना भी स्वाभाविक है। उन्हें प्रज्ञाचक्षु कहा जाता था। बहुत कम आयु में ही उनको आंखों से दिखाई देना बंद हो गया था, लेकिन फिर भी उन्होंने अनेकों पुस्तकें लिखीं थीं। और अब कोई भी पूछ सकता है कि जब आंखों से दिखाई नहीं देता है, तो उसके बावजूद भी कोई इतने ग्रंथ कैसे लिख सकता है? इसका उत्तर ये है कि उनके पास भले ही नेत्र नहीं थे, लेकिन दृष्टि थी। ये दृष्टि बोध से आती है, विवेक से प्रकट होती है। ये दृष्टि व्यक्ति के साथ ही समाज को भी बहुत शक्ति देती है। हमारा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भी एक ऐसा संस्कार यज्ञ है, जो अन्तः दृष्टि और बाह्य दृष्टि, दोनों के लिए काम कर रहा है। बाह्य दृष्टि के रूप में हम माधव नेत्रालय को देखते हैं और अंत: दृष्टि ने संघ को सेवा का पर्याय बना दिया है।

साथियों,

हमारे यहां कहा गया है- परोपकाराय फलन्ति वृक्षाः, परोपकाराय वहन्ति नद्यः। परोपकाराय दुहन्ति गावः, परोपकारार्थ-मिदं शरीरम्।। हमारा शरीर परोपकार के लिए ही है, सेवा के लिए ही है। और जब ये सेवा संस्कारों में आ जाती है, तो सेवा ही साधना बन जाती है। यही साधना तो हर एक स्वयंसेवक के जीवन की प्राण वायु होती है। ये सेवा संस्कार, ये साधना, ये प्राण वायु, पीढ़ी दर पीढ़ी हर स्वयंसेवक को तप-तपस्या के लिए प्रेरित कर रही है। ये सेवा साधना हर स्वयंसेवक को निरंतर गतिमान रखती है, उसे कभी थकने नहीं देती, कभी रुकने नहीं देती। पूज्य गुरू जी अक्सर कहा करते थे, जीवन की अवधि का नहीं, उसकी उपयोगिता का महत्व होता है। हम देव से देश और राम से राष्ट्र के जीवन मंत्र लेकर के चले हैं, अपना कर्तव्य निभाते चलते हैं। और इसलिए हम देखते हैं, बड़ा-छोटा कैसा भी काम हो, कोई भी कार्यक्षेत्र हो, सीमावर्ती गाँव हों, पहाड़ी क्षेत्र हों, वनक्षेत्र हो, संघ के स्वयंसेवक निःस्वार्थ भाव से कार्य करते रहते हैं। कहीं कोई वनवासी कल्याण आश्रम के कामों को उसको अपना ध्येय बनाकर के जुटा हुआ है, कहीं कोई एकल विद्यालय के माध्यम से आदिवासी बच्चों को पढ़ा रहा है, कहीं कोई संस्कृति जागरण के मिशन में लगा हुआ है। कहीं कोई सेवा भारती से जुड़कर गरीबों-वंचितों की सेवा कर रहा है।

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अभी हमने प्रयाग में महाकुंभ में देखा, वहां नेत्रकुंभ में कैसे स्वयंसेवकों ने लाखों लोगों की मदद की, यानी जहां सेवा कार्य, जहां सेवा कार्य, वहां स्वयंसेवक। कहीं कोई आपदा आ जाए, बाढ़ की तबाही हो या भूकंप की विभीषिका हो, स्वयंसेवक एक अनुशासित सिपाही की तरह तुरंत मौके पर पहुँचते हैं। कोई अपनी परेशानी नहीं देखता, अपनी पीड़ा नहीं देखता, बस सेवा भावना से हम काम में जुट जाते हैं। हमारे तो हृदय में बसा है, सेवा है यज्ञकुन्ड, समिधा सम हम जलें, ध्येय महासागर में सरित रूप हम मिलें।

साथियों,

एक बार एक इंटरव्यू में परम पूजनीय गुरू जी से पूछा गया, कि वो संघ को सर्व-व्यापी क्यों कहते हैं? गुरूजी का उत्तर बहुत ही प्रेरणादायी था। उन्होंने संघ की तुलना प्रकाश से की थी, उजाले से की थी। उन्होंने कहा कि प्रकाश सर्वव्यापी होता है, वो खुद ही अकेले सारे कार्य भले ना करे, लेकिन अंधेरे को दूर करके वो दूसरे को कार्य करने का रास्ता दिखा देता है। गुरू जी की ये सीख, हमारे लिए जीवन मंत्र है। हमें प्रकाश बनकर अंधेरा दूर करना है, बाधाएं मिटानी हैं, रास्ता बनाना है। उस भाव को हम जीवन भर सुनते रहें, हर कोई कम अधिक मात्रा में जीने का प्रयास करता रहा। मैं नहीं तुम, अहं नहीं वयं, “इदं राष्ट्राय इदं न मम्”।

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साथियों,

जब प्रयासों के दौरान में, जब मैं नहीं, हम का ध्यान होता है, जब राष्ट्र प्रथम की भावना सर्वोपरि होती है, जब नीतियों में, निर्णयों में देश के लोगों का हित ही सबसे बड़ा होता है, तो सर्वत्र उसका प्रभाव भी और प्रकाश भी नजर आता है। विकसित भारत के लिए सबसे जरूरी है कि हम उन बेड़ियों को तोड़ें, जिनमें देश उलझा हुआ था। आज हम देख रहे हैं, भारत कैसे गुलामी की मानसिकता को छोड़कर आगे बढ़ रहा है। गुलामी की निशानियों को जिस हीनभावना में 70 वर्षों से ढोया जा रहा था, उनकी जगह अब राष्ट्रीय गौरव के नए अध्याय लिखे जा रहे हैं। वो अंग्रेजी कानून, जिन्हें भारत के लोगों को नीचा दिखाने के लिए बनाया गया था, देश ने उन्हें बदल दिया है। गुलामी की सोच से बनी दंड संहिता की जगह अब भारतीय न्याय संहिता लागू हुई है। हमारे लोकतन्त्र के प्रांगण में अब राजपथ नहीं, कर्तव्यपथ है। हमारी नौसेना के ध्वज में भी गुलामी का चिन्ह छपा हुआ था, उसकी जगह अब नौसेना के ध्वज पर छत्रपति शिवाजी महाराज का प्रतीक लहरा रहा है। अंडमान के द्वीप, जहां वीर सावरकर ने राष्ट्र के लिए यातनाएँ सहीं, जहां नेताजी सुभाष बाबू ने आज़ादी का बिगुल फूंका, उन द्वीपों के नाम भी अब आज़ादी के नायकों की याद में रखे गए हैं।

साथियों,

वसुधैव कुटुंबकम का हमारा मंत्र, आज विश्व के कोने-कोने में पहुँच रहा है। और दुनिया इसे हमारे कार्यों में भी देख रही है, महसूस कर रही है। जब कोविड जैसी महामारी आती है, तो भारत विश्व को परिवार मानकर वैक्सीन उपलब्ध करवाता है। दुनिया में कहीं भी प्राकृतिक आपदा हो, भारत पूरे मनोयोग से सेवा के लिए खड़ा होता है। अभी आपने कल ही देखा है, म्यांमार में इतना बड़ा भूकंप आया है, भारत ऑपरेशन ब्रह्मा के तहत, वहां के लोगों की मदद के लिए सबसे पहले पहुंच गया है। जब तुर्किए में भूकंप आया, जब नेपाल में भूकंप आया, जब मॉलदीव्स में पानी का संकट आया, भारत ने मदद करने में घड़ी भर की भी देर नहीं की। युद्ध जैसे हालातों में हम दूसरे देशों से नागरिकों को भी सुरक्षित निकालकर के लाते हैं। दुनिया देख रही है, भारत आज जब प्रगति कर रहा है, तो पूरे ग्लोबल साउथ की आवाज़ भी बन रहा है। विश्व-बंधु की ये भावना, हमारे ही संस्कारों का विस्तार है।

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साथियों,

आज भारत की सबसे बड़ी पूंजी हमारा युवा है। और हम देखते हैं, आज भारत का युवा कितने कॉन्फिडेंस से भरा हुआ है। उसकी Risk Taking Capacity पहले के मुकाबले कई गुना बढ़ गई है। वो नए-नए इनोवेशन कर रहा है, स्टार्ट अप्स की दुनिया में अपना परचम लहरा रहा है और सबसे बड़ी बात, आज के भारत का युवा अपनी विरासत पर गर्व करते हुए, अपनी संस्कृति पर गर्व करते हुए चल रहा है। अभी हमने प्रयागराज महाकुंभ में देखा, आज की युवा पीढ़ी लाखों-करोड़ों की संख्या में महाकुंभ में पहुंची और इस सनातन परंपरा से जुड़कर गौरव से भर उठी। आज भारत का युवा, देश की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए काम कर रहा है। भारत के युवाओं ने मेक इन इंडिया को सफल बनाया है, भारत का युवा लोकल के लिए वोकल हुआ है। एक जज्बा बना है, हमें देश के लिए जीना है, देश के लिए कुछ करना है, खेल के मैदान से लेकर अंतरिक्ष की ऊंचाई तक राष्ट्र निर्माण की भावना से ओतप्रोत हमारे युवा आगे बढ़ रहे हैं, आगे चलते ही जा रहे हैं। यही युवा 2047 के, जब आजादी के 100 साल होंगे, विकसित भारत के लक्ष्य की ध्वजा थामे हुए हैं और मुझे विश्वास है, संगठन, समर्पण और सेवा की ये त्रिवेणी विकसित भारत की यात्रा को निरंतर ऊर्जा देती रहेगी, दिशा देती रहेगी। संघ का इतने वर्षों का परिश्रम फलीभूत हो रहा है, संघ की इतने वर्षों की तपस्या विकसित भारत का एक नया अध्याय लिख रही है।

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साथियों,

जब संघ की स्थापना हुई, तब भारत की हालत भी अलग थी, और हालात भी अलग थे। 1925 से लेकर 1947 तक, वो समय संघर्ष का समय था। आज़ादी का बड़ा लक्ष्य देश के सामने था। आज संघ की 100 वर्षों की यात्रा के बाद देश फिर एक अहम पड़ाव पर है। 2025 से 2047 तक के महत्वपूर्ण कालखंड, इस कालखंड में एक बार फिर बड़े लक्ष्य हमारे सामने हैं। कभी पूज्य गुरू जी ने एक पत्र में लिखा था, मैं अपने भव्य राष्ट्र प्रसाद की नींव में एक छोटा सा पत्थर बनकर रहना चाहता हूं, हमें सेवा के अपने संकल्प को हमेशा प्रज्ज्वलित रखना है। हमें अपने परिश्रम को बनाए रखना है। हमें विकसित भारत के स्वप्न को साकार करना है और जैसा मैंने अयोध्या में प्रभु श्रीराम के मंदिर के नव निर्माण पर कहा था, हमें अगले एक हजार वर्षों के सशक्त भारत की नींव भी रखनी है। मुझे विश्वास है, पूज्य डॉक्टर साहेब, पूज्य गुरु जी जैसी विभूतियों का मार्गदर्शन हमें निरंतर सामर्थ्य देगा। हम विकसित भारत के संकल्प को पूरा करेंगे। हम अपनी पीढ़ियों के बलिदान को सार्थक करके रहेंगे। इसी संकल्प के साथ, आप सभी को एक बार फिर इस मंगलमय नववर्ष की अनेक-अनेक शुभकामनाएँ। बहुत-बहुत धन्यवाद!