सभी वरिष्ठ महानुभाव
मैं ह्रदय से ताई जी का अभिनन्दन करता हूँ कि आपने SRI की शुरूआत की हैं, वैसे अब पहले जैसा वक्त नहीं रहा है कि जब सांसद को किसी विषय पर बोलना हो तो ढेर सारी चीजें ढूंढनी पड़े, इकट्ठी करनी पड़े वो स्थिति नहीं रही है technology ने इतना बड़ा role play किया है और अगर आप भी Google गुरू के विद्यार्थी हो जाएं तो मिनटों के अंदर आपको जिन विषयों की जानकारी चाहिए, मिल जाती है। लेकिन जब जानकारियों का भरमार हो, तब कठिनाई पैदा होती है कि सूचना चुनें कौन-सी, किसे उठाएंगे हर चीज उपयोगी लगती है लेकिन कब करें, कैसे करें, priority कैसे करेंगे और इसिलए सिर्फ जानकारियों के द्वारा हम संसद में गरिमामय योगदान दे पाएंगे इसकी गारंटी नहीं है। जब तक कि हमें उसके reference मालूम न हों, कोई विषय अचानक नहीं आते हैं लम्बे अर्सें से ये विषय चलते रहते हैं। राष्ट्र की अपनी एक सोच बन जाती है उन विषयों पर दलों की अपनी सोच बनती है। और वो परम्पराओं का एक बहुत बड़ा इतिहास होता है। इन सब में से तब जा करके हम अमृत पा सकते हैं जबकि इसी विषय के लिए dedicated लोगों के साथ बैठें, विचार-विमर्श करें। और तब जाकर के विचार की धार निकलती है। अब जब तक विचार की धार नहीं निकलती है, तब तक हम प्रभावी योगदान नहीं दे पाते हैं। पहले का भी समय होगा कि जब सांसद के लिए सदन में वो क्या करते थे, शायद उनके क्षेत्र को भी दूसरे चुनाव में जाते थे तब पता चलता था। एक बार चुनाव जीत गया आ गये फिर तो । आज से 25-30 साल पहले तो किसी को लगता ही नहीं था, हां ठीक है कि वो जीत कर के गए हैं और कर रहे हैं कुछ देश के लिए। आज तो ऐसा नहीं है, वो सदन में आता है लेकिन सोचता है Friday को कैसे इलाके में वापस पहुंचु। उसके मन पर एक बहुत बड़ा pressure अपने क्षेत्र का रहता है। जो शायद 25-30 साल, 40 साल पहले नहीं था। और उस pressure को उसको handle करना होता है क्योंकि कभी-कभार वहां की समस्याओं का समाधान करें या न करें लेकिन वहां होना बहुत जरूरी होता है। वहां उनकी उपिस्थिति होना बहुत जरूरी होता है।
दूसरी तरफ सदन में भी अपनी बात रखते समय, समय की सीमा रहती है। राजनीतिक विषयों पर बोलना हो तो यहां बैठे हुए किसी को कोई दिक्कत नहीं होती। उनके DNA में होता है और बहुत बढिया ढंग से हर कोई प्रस्तुत कर सकता है। लेकिन जब विषयों पर प्रस्तुतिकरण करना होता है कुछ लोग आपने देखा होगा कि जिनका development सदन की कानूनी गतिवधि से ज्यादा रहता है। उनका इतनी mastery होती है कुछ भी होता है तुरन्त उनको पता चलता है कि सदन के नियम के विरुद्ध हो रहा है। और वे बहुत quick होते हैं। हमारे दादा बैठे हैं उनको तुरन्त ध्यान में आता है कि ये नियम के बाहर हो रहा है, ये नियम के अंतर्गत ऐसा होना चाहिए। कुछ लोगों कि ऐसी विधा विकसित होती है और वो सदन को बराबर दिशा में चलाए रखने में बहुत बड़ा role play करते हैं। और मैं मानता हूं मैं इसे बुरा नहीं मानता हूं, अच्छा और आवश्यक मानता हूं। उसी प्रकार से ज्यादातर कितना ही बड़ा issue क्यों न हो लेकिन ज्यादातर हम हमारे दल की सोच या हमारे क्षेत्र की स्थिति उसी के संदर्भ में ही उसका आंकलन करके बात को रख पाते हैं। क्योंकि रोजमर्रा का हमारा अनुभव वही है। वो भी आवश्यक है पर भारत जैसे देश का आज जो स्थान बना है, विश्व जिस रूप से भारत की तरफ देखता है तब हमारी गतिविधियां हमारे निर्णय, हमारी दिशा उसको पूरा विश्व भी बड़ी बारीकी से देखता है। हम कैसे निर्णय कर रहे हैं कि जो वैश्विक परिवेश में इसका क्या impact होने वाला है। आज हम कोई भी काम अलग-थलग रह करके अकेले रह करके नहीं कर सकते हैं। वैश्विक परिवेश में ही होना है और तब जा करके हमारे लिए बहुत आवश्यक होगा और दुनिया इतनी dynamic है अचानक एक दिन सोने का भाव गिर जाए, अचानक एक दिन Greece के अंदर तकलीफ पैदा हो जाए तो हम ये तो नहीं कह सकते कि यार वहां हुआ होगा ठीक है ऐसा नहीं रहा है, तो हमारे यहां चिन्तन में, हमारे निर्णयों में भी इसका impact आता है और इसलिए ये बहुत आवश्यक हो गया है कि हम एक बहुत बड़े दायरे में भी अपने क्षेत्र की जो आवश्यकता है दोनों को जोड़ करके संसद को एक महत्वपूर्ण माध्यम बना करके अपनी चीजों को कैसे हम कार्यान्वित करा पायें। हम जो कानून बनाएं, जो नियम बनाएं, जो दिशा-निर्देश तय करवाएं उसमें ये दो margin की आवश्यकता रहती है और तब मैं जानता हूं कि कितना कठिन काम होता जा रहा है संसद के अंदर सांसद की बात का कितना महत्व बढ़ता जा रहा है इसका अंदाजा आ रहा है।
मैं समझता हूं कि SRI का ये जो प्रयास है, ये प्रयास, ये बात हम मानकर चलें कि अगर हमें नींद नहीं आती है तो five star hotel का कमरा book कर करके जाने से नींद आएगी तो उसकी कोई गारंटी नहीं है। हमारे अपने साथ जुड़ा हुआ विषय है उसको हमने ही तैयार करना पड़ेगा। उसी प्रकार से ताई जी कितनी ही व्यवस्था क्यों न करें, कितने विद्वान लोगों को यहां क्यों न ले आए, कितने ही घंटे क्यों न बीतें, लेकिन जब तक हम उस मिजाज में अपने-आपको सज्ज करने के लिए अपने-आपको तैयार नहीं होंगे तो ये तो व्यवस्थाएं तो होंगी हम उससे लाभान्वित नहीं होंगे। और अगर खुले मन से हम चले जाएं अपने सारे विचार जो हैं जब उस कार्यक्रम के अंदर हिस्सा लें पल भर के लिए भूल जाएं कि मैं इस विषय को zero से शुरू करता हूं। तो आप देखना कि हम चीजों को नए तरीके से देखना शुरू करेंगे। लेकिन हमारे पहले से बने-बनाए विचारों का सम्पुट होगा। फिर कितनी ही बारिश आए साहब हम भीगेंगे नहीं कभी। raincoat पहन करके कैसे भीग पाओगे भाई। और इसलिए खुले मन से विचारों को सुनना, विचारों को जानना और उसे समझने का प्रयास करना यही विचार की धार को पनपाता है। सिर्फ information का doze मिलता रहे इससे विचारों की धार नहीं निकलती। ये भी एक अत्यंत महत्वपूर्ण है।
दूसरी बात है जिस प्रकार से विषय की बारीकी की आवश्यकता है मैं समझता हूं कि SRI के माध्यम से उन विषयों का...जिन बातों कि चर्चा होती है उसका पिछले 50-60 साल का इतिहास क्या रहा है, हमारी संसद का या देश का? आखिरकार किस background में ये चीज आई है, दूसरा, आज ये निर्णय का वैश्विक परिवेश में क्या संदर्भ है? और तीसरा ये आवश्यक है तो क्यों है? आवश्यक नहीं है तो क्यों है? दोनों पहलू उतने ही सटीक तरीके से अगर आते हैं, तब जो सदस्य हैं, उन सदस्यों का confidence level बहुत बढ़ जायेगा। उसको लगेगा हाँ जी.. मुझे ये ये ये लाभ होने वाला है। इसके कारण मेरा ये फायदा होने वाला है। और मैं मेरे देश को ये contribute करूँगा। बोलने के लिए अच्छा material, ये संसद के काम के लिए enough नहीं है। एक अच्छे वक्ता बन सकते हैं, धारदार बोल सकते हैं, बढ़िया भाषण की तालियाँ भी बज सकतीं हैं, लेकिन contribution नहीं होता है।
मुझे, मेरी उत्सुकता से ही इन चीजों में थोड़ी रुचि थी। मेरे जीवन में मुझे कभी इस क्षेत्र में आना पड़ेगा ऐसा कभी सोचा न था और न ही ऐसी मेरी कोई योजना थी। संगठन के नाते राजनीति में काम करता था। लेकिन जब आजादी के 50 साल मनाये जा रहे थे, तो यहाँ तीन दिवसीय एक विशेष सत्र बुलाया गया था, तो मैं उस समय specially दिल्ली आया था। और हमारे पार्टी के सांसदों से pass निकलवा करके, मैं संसद में जा कर बैठता था। सुनने के लिए जाता था। तो करीब-करीब मैं पूरा समय बैठा था। और मन बड़ी एक जिज्ञासा थी कि देश जो लोग चलाते हैं, इनके एक–एक शब्द की कितनी ताकत होती है, कितनी पीड़ा भी होती है, कितनी अपेक्षाएं होती हैं, कितना आक्रोश होता है, ये सारी चीजें मैं उस समय अनुभव करता था। एक जिज्ञासु के रूप में आता था, एक विद्यार्थी के रूप में आता था।
आज मैं भी कल्पना कर सकता हूँ कि देश हमसे भी उसी प्रकार कि अपेक्षा करता है। उन अपेक्षाओं को पूर्ण करने के लिए SRI के माध्यम से, वैसे श्री(SRI) अपने आप में ज्ञान का स्त्रोत है, तो वो उपलब्ध होता रहेगा।
मैं ताई जी को बहुत बधाई देता हूँ। और जैसा कहा... आप में से बहुत कम लोगों ने Oxford Debate के विषय में जाना होगा, Oxford Debate...उस चर्चा का वैसे बड़ा महत्व है वहां Oxford Debate की चर्चा का एक महत्व है, इस बार हमारे शशि जी वहां थे और Oxford Debate में जो बोला है, इन दिनों YouTube पर बड़ा viral हुआ है। उसमे भारत के नागरिक का जो भाव है, उसकी अभिव्यक्ति बहुत है। उसके कारण लोगों का भाव उसमे जुड़ा हुआ है। यही दिखता है कि सही जगह पर हम क्या छोड़ कर आते हैं, वो एक दम उसकी ताकत बन जाती है। मौके का भी महत्व होता है। वरना वही बात कही और जा कर कहें तो, बैठता नहीं है... उस समय हम किस प्रकार चीज को कैसे लाते हैं और वहां जो लोग हैं उस समय उसको receive करने के लिए उनका दिमाग कैसा होगा, तब जा कर वो चीज turning point बन जाती है। जिस समय लोकमान्य तिलक जी ने कहा होगा “स्वतंत्रता मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है” मैं नहीं मानता हूँ कि copywriter ने ऐसा sentence बना कर दिया होगा और न ही उन्होंने सोचा होगा कि मैं क्या कह रहा हूँ...भीतर से आवाज निकली होगी, जो आज भी गूंजती रहती है।
और इसलिए ये ज्ञान का सागर भी, जब हम अकेले में हों तब, अगर हमें मंथन करने के लिए मजबूर नहीं करता है, भीतर एक विचारों का तूफ़ान नहीं चलता रहता, और निरंतर नहीं चलता रहता..अमृत बिंदू के निकलने की संभावनाएं बहुत कम होती हैं। और इसलिए ये जो ज्ञान का सागर उपलब्ध होने वाला है, उसमे से उन मोतियों को पकड़ना और मोतियों को पकड़ कर के उसको माला के रूप में पिरो कर के ले आना और फिर भारत माँ के चरणों में उन शब्दों कि माला को जोड़ना, आप देखिये कैसे भारत माता एक दम से दैदीप्यमान हो जाती हैं, इस भाव को लेकर हम चलते हैं, तो ये व्यवस्था अपने आप में उपकारक होगी।
फिर एक बार मैं ताई जी को हृदय से अभिनन्दन करता हूं और मुझे विश्वास है कि न सिर्फ नए लोग एक और मेरा सुझाव है पुराने जो सांसद रहे है उनका भी कभी लाभ लेना चाहिये, दल कोई भी हो। उनका भी लाभ लेना चाहिये कि उस समय क्या था कैसे था, अब आयु बड़ी हो गयी होगी लेकिन उनके पास बहुत सारी ऐसी चीज़ें होंगी, हो सकता है कि इसमें वो क्योंकि background information बहुत बड़ा काम करती है तो उनको जोड़ना चाहिये और कभी कभार सदन के बाहर इस SRI के माध्यम से, आपके जो regular student बने हैं उनकी बात है ये उनका भी कभी वक्तव्य स्पर्धा का कार्यक्रम हो सकता है विषय पर बोलने कि स्पर्धा का काम हो सकता है और सीमित समय में, 60 मिनट में बोलना कठिन नहीं होता है लेकिन 6 मिनट बोलना काफी कठिन होता है विनोबा जी हमेशा कहते थे कि उपवास रखना मुश्किल नहीं है लेकिन संयमित भोजन करना बड़ा मुश्किल होता है वैसे ही 60 मिनट बोलना कठिन काम नहीं है लेकिन 6 मिनट बोलना मुश्किल होता है ये अगर उसका हिस्सा बने तो हो सकता है उसका बहुत बड़ा उपकार होगा। दूसरा उन को सचमुच में trained करना trained करना मतलब बहुत सी चीज़ें आती है, information देना, चर्चा करना, विषय को समझाना ये एक पहलू है लेकिन हमे उसको इस प्रकार से तैयार करना है तो हो सकता है कि एक प्रकार से उनकी बातों को एक बार दुबारा उनको देखने कि आदत डाली जाये कभी कभार हमे लगता है, हम भाषण दे कर के बैठते हैं तो लगता है कि वाह क्या बढ़िया बोला है लेकिन जब हम ही हमारा भाषण पढ़ते हैं एक हफ्ते के बाद तो ध्यान में आता है कि यार एक ही चीज़ को मैं कितनी बार गुनगुनाता रहता हूँ, ये फालतू मैं क्यों बोल रहा था, ये बेकार में टाइम खराब कर रहा था हम ही देखेंगे तो हम ही अपना भाषण 20 – 30% खुद ही काट देंगे कि यार मैं क्या बेकार में बोल रहा था बहुत कम लोगों को आदत होती है कि वो अपने आपको परीक्षित करते हैं। मैं समझता हूँ कि अगर ये आदतें लगती है तो बहुत सी चीज़ें हमारी एक दम तप करके बाहर निकलती है।
बहुत बहुत धन्यवाद।


ପ୍ରିୟ ଦେଶବାସୀ,
ନମସ୍କାର
ଆମେ ସମସ୍ତେ ଗତ କିଛିଦିନ ହେବ ଦେଶର ଶକ୍ତି ଏବଂ ସଂଯମ ଉଭୟକୁ ଦେଖିଛୁ। ସର୍ବପ୍ରଥମେ, ମୁଁ ପ୍ରତ୍ୟେକ ଭାରତୀୟଙ୍କ ତରଫରୁ ଭାରତର ପରାକ୍ରମୀ ସେନାବାହିନୀ, ସଶସ୍ତ୍ର ବଳ, ଆମର ଗୁଇନ୍ଦା ସଂସ୍ଥା, ଆମର ବୈଜ୍ଞାନିକମାନଙ୍କୁ ପ୍ରଣାମ କରୁଛି। ‘ଅପରେସନ୍ ସିନ୍ଦୁର’ର ଲକ୍ଷ୍ୟ ହାସଲ କରିବା ପାଇଁ ଆମର ସାହସୀ ସୈନିକମାନେ ଅପାର ବୀରତ୍ୱ ପ୍ରଦର୍ଶନ କରିଥିଲେ। ମୁଁ ସେମାନଙ୍କର ବୀରତ୍ୱ, ସାହସ ଏବଂ ପରାକ୍ରମକୁ ଆଜି ଆମ ଦେଶର ପ୍ରତ୍ୟେକ ମା’, ଦେଶର ପ୍ରତ୍ୟେକ ଭଉଣୀ ଏବଂ ଦେଶର ପ୍ରତ୍ୟେକ ଝିଅଙ୍କୁ ସମର୍ପିତ କରୁଛି । ମୁଁ ଏହି ପରାକ୍ରମକୁ ସମର୍ପଣ କରୁଛି ।
ସାଥୀଗଣ,
ଏପ୍ରିଲ ୨୨ ତାରିଖରେ ପହଲଗାମରେ ଆତଙ୍କବାଦୀମାନେ ଯେଉଁ ବର୍ବରତା ପ୍ରଦର୍ଶନ କରିଥିଲେ, ତାହା ଦେଶ ତଥା ବିଶ୍ୱକୁ ବ୍ୟଥିତ କରିଦେଇଥିଲା। ଛୁଟି ପାଳନ କରୁଥିବା ନିର୍ଦ୍ଦୋଷ ନାଗରିକମାନଙ୍କୁ, ସେମାନଙ୍କ ପରିବାର ସମ୍ମୁଖରେ, ସେମାନଙ୍କ ପିଲାମାନଙ୍କ ସମ୍ମୁଖରେ, ସେମାନଙ୍କ ଧର୍ମ ପଚାରି ନିର୍ମମ ହତ୍ୟା, ଆତଙ୍କବାଦର ଏକ ଅତ୍ୟନ୍ତ ବିଭତ୍ସ ଚେହେରା ଥିଲା, କ୍ରୁରତା ଥଲା। ଏହା ମଧ୍ୟ ଦେଶର ସୌହାର୍ଦ୍ଦ୍ୟକୁ ଭାଙ୍ଗିବାର ଏକ ନିନ୍ଦନୀୟ ପ୍ରୟାସ ଥିଲା। ବ୍ୟକ୍ତିଗତ ଭାବେ ମୋ ପାଇଁ ଏହି ଯନ୍ତ୍ରଣା ଅତ୍ୟନ୍ତ ଅସହ୍ୟ ଥିଲା। ଏହି ଆତଙ୍କବାଦୀ ଆକ୍ରମଣ ପରେ ସମଗ୍ର ଦେଶ, ପ୍ରତ୍ୟେକ ନାଗରିକ, ପ୍ରତ୍ୟେକ ସମାଜ, ପ୍ରତ୍ୟେକ ବର୍ଗ, ପ୍ରତ୍ୟେକ ରାଜନୈତିକ ଦଳ, ଏକ ସ୍ୱରରେ ଆତଙ୍କବାଦ ବିରୋଧରେ ଦୃଢ଼ କାର୍ଯ୍ୟାନୁଷ୍ଠାନ ପାଇଁ ଛିଡ଼ା ହୋଇଥିଲେ। ଆତଙ୍କବାଦୀମାନଙ୍କୁ ଦମନ କରିବା ପାଇଁ ଆମେ ଭାରତୀୟ ସେନାକୁ ସ୍ୱାଧୀନତା ଦେଇଥିଲୁ। ଆଉ ଆଜି ପ୍ରତ୍ୟେକ ଆତଙ୍କବାଦୀ, ପ୍ରତ୍ୟେକ ଆତଙ୍କୀ ସଙ୍ଗଠନ ଭଲ ଭାବେ ଜାଣିପାରିଛନ୍ତି ଯେ ଆମ ଭଉଣୀ ଓ ଝିଅମାନଙ୍କ ମଥାରୁ ସିନ୍ଦୁର ପୋଛିବାର ପରିଣାମ କ’ଣ ହୋଇପାରେ।
ସାଥୀଗଣ,
‘ଅପରେସନ୍ ସିନ୍ଦୁର’ କେବଳ ଗୋଟିଏ ନାମ ନୁହେଁ, ଏହା ଦେଶର କୋଟି କୋଟି ଲୋକଙ୍କ ଭାବନାର ପ୍ରତିଫଳନ। ‘ଅପରେସନ୍ ସିନ୍ଦୁର’ ନ୍ୟାୟର ଅଖଣ୍ଡ ପ୍ରତିଜ୍ଞା ଅଟେ। ୬ ମଇ ବିଳମ୍ବିତ ରାତ୍ରୀରେ, ୭ ମଇ ସକାଳେ ସାରା ଦୁନିଆ ଏହି ପ୍ରତିଜ୍ଞାକୁ ପରିଣାମରେ ବଦଳୁଥିବା ଦେଖିଛି । ଭାରତର ସେନାବାହିନୀ ପାକିସ୍ତାନରେ ଥିବା ଆତଙ୍କୀ ଆଡ୍ଡା ଉପରେ, ସେମାନଙ୍କ ଟ୍ରେନିଂ ସେଣ୍ଟର୍ ଉପରେ ସଠିକ୍ ପ୍ରହାର କରିଥିଲା। ଆତଙ୍କବାଦୀମାନେ ସ୍ୱପ୍ନରେ ସୁଦ୍ଧା ଭାବିପାରିନଥିଲେ ଯେ ଭାରତ ଏତେ ବଡ଼ ନିଷ୍ପତ୍ତି ନେଇପାରିବ। କିନ୍ତୁ ଯେତେବେଳେ ଦେଶ ଏକଜୁଟ ହୋଇଥାଏ, ରାଷ୍ଟ୍ର ପ୍ରଥମ ଭାବନାରେ ପରିପୂର୍ଣ୍ଣ ହୋଇଥାଏ, ରାଷ୍ଟ୍ର ସର୍ବୋପରି ହୋଇଥାଏ, ସେତେବେଳେ ଦୁଃସାହିକ ନିଷ୍ପତ୍ତି ଗ୍ରହଣ କରାଯାଏ, ପରିଣାମ ସମସ୍ତଙ୍କୁ ପ୍ରଦର୍ଶିତ କରାଯାଏ।
ଯେତେବେଳେ ପାକିସ୍ତାନରେ ଥିବା ଆତଙ୍କବାଦୀଙ୍କ ଆଡ୍ଡା ଉପରେ ଭାରତ କ୍ଷେପଣାସ୍ତ୍ର ମାଡ଼ କଲା, ଭାରତର ଡ୍ରୋନ ମାଡ଼ ହେଲା, ସେତେବେଳେ କେବଳ ଆତଙ୍କବାଦୀ ସଙ୍ଗଠନଗୁଡ଼ିକର ଅଟ୍ଟାଳିକା ନୁହେଁ, ବରଂ ସେମାନଙ୍କର ମନୋବଳ ମଧ୍ୟ ଭାଙ୍ଗି ଚୁରମାର୍ ହୋଇଥିଲା। ବାହାବଲପୁର ଏବଂ ମୁରୀଦକେ ଭଳି ଆତଙ୍କବାଦୀ କେନ୍ଦ୍ରଗୁଡ଼ିକ ଏକ ପ୍ରକାରରେ ବିଶ୍ୱ ଆତଙ୍କବାଦର ବିଶ୍ୱବିଦ୍ୟାଳୟ ହୋଇ ରହିଆସିଥିଲା। ବିଶ୍ୱର ଯେକୌଣସି ସ୍ଥାନରେ ବଡ଼ ଆତଙ୍କବାଦୀ ଆକ୍ରମଣ ହେଉ, ତାହା ୯/୧୧ ହେଉ, ଲଣ୍ଡନ ଟ୍ୟୁବ୍ ବୋମା ବିସ୍ଫୋରଣ ହେଉ, କିମ୍ବା ଦଶନ୍ଧି ଦଶନ୍ଧି ଧରି ଭାରତରେ ହୋଇଥିବା ବଡ଼ ଆତଙ୍କବାଦୀ ଆକ୍ରମଣ ହେଉ, କେଉଁଠି ନା କେଉଁଠି ଏହି ଆତଙ୍କବାଦର ଆଡ୍ଡା ସହିତ ଜଡିତ ହୋଇଛି। ଆତଙ୍କବାଦୀମାନେ ଆମ ଭଉଣୀମାନଙ୍କ ସିନ୍ଦୁରକୁ ଉଜାଡ଼ି ଦେଇଥିଲେ, ତେଣୁ ଭାରତ ଆତଙ୍କବାଦର ଏହି ମୁଖ୍ୟାଳୟଗୁଡ଼ିକୁ ଧ୍ୱଂସ କରିଦେଇଥିଲା। ଭାରତ ଦ୍ୱାରା ହୋଇଥିବା ଏହି ଆକ୍ରମଣରେ ୧୦୦ରୁ ଅଧିକ କୁଖ୍ୟାତ ଆତଙ୍କବାଦୀ ନିହତ ହୋଇଛନ୍ତି। ଗତ ଅଢେଇରୁ ତିନି ଦଶନ୍ଧି ଧରି ପାକିସ୍ତାନରେ ଖୋଲାଖୋଲି ଭାବେ ବୁଲୁଥିବା, ଭାରତ ବିରୋଧରେ ଷଡ଼ଯନ୍ତ୍ର କରୁଥିବା, ଅନେକ ପ୍ରମୁଖ ଆତଙ୍କବାଦୀଙ୍କୁ ଭାରତ ଗୋଟିଏ ଆଘାତରେ ନିପାତ କରିଦେଇଛି ।
ବନ୍ଧୁଗଣ,
ଭାରତର ଏହି କାର୍ଯ୍ୟ ଦ୍ୱାରା ପାକିସ୍ତାନ ଗଭୀର ଭାବେ ନିରାଶ, ହତାଶ ଏବଂ କ୍ରୋଧିତ ହୋଇଥିଲା, ଏବଂ ଏହି ହତାଶାରେ ସେ ଆଉ ଏକ ଦୁଃସାହସ କରିଥିଲା। ଆତଙ୍କବାଦ ଉପରେ ଭାରତର କାର୍ଯ୍ୟାନୁଷ୍ଠାନକୁ ସମର୍ଥନ କରିବା ପରିବର୍ତ୍ତେ ପାକିସ୍ତାନ ଭାରତ ଉପରେ ହିଁ ଆକ୍ରମଣ କରିବା ଆରମ୍ଭ କରିଥିଲା। ପାକିସ୍ତାନ ଆମର ବିଦ୍ୟାଳୟ, କଲେଜ, ଗୁରୁଦ୍ୱାର, ମନ୍ଦିର, ସାଧାରଣ ନାଗରିକଙ୍କ ଘରକୁ ଟାର୍ଗେଟ କରିଛି, ପାକିସ୍ତାନ ଆମର ସାମରିକ ପ୍ରତିଷ୍ଠାନକୁ ଟାର୍ଗେଟ କରିଛି, କିନ୍ତୁ ଏଥିରେ ମଧ୍ୟ ପାକିସ୍ତାନର ମୁଖା ଖୋଲି ଯାଇଛି।
ପାକିସ୍ତାନର ଡ୍ରୋନ୍ ଏବଂ ପାକିସ୍ତାନର କ୍ଷେପଣାସ୍ତ୍ର ଭାରତ ସାମ୍ନାରେ ଧୂଳିସାତ ହୋଇଥିଲା ତାହା ସାରା ଦୁନିଆ ଦେଖିଛି । ଭାରତର ଶକ୍ତିଶାଳୀ ବାୟୁ ପ୍ରତିରକ୍ଷା ବ୍ୟବସ୍ଥା ସେଗୁଡ଼ିକୁ ଆକାଶରେ ଧ୍ୱଂସ କରିଦେଇଥିଲା। ପାକିସ୍ତାନର ପ୍ରସ୍ତୁତି ଥିଲା ସୀମାରେ ଆକ୍ରମଣ କରିବା, କିନ୍ତୁ ଭାରତ ପାକିସ୍ତାନକୁ ଛାତିରେ ଆଘାତ କରିଥିଲା। ଭାରତର ଡ୍ରୋନ୍, ଭାରତର କ୍ଷେପଣାସ୍ତ୍ରଗୁଡ଼ିକ ପୂର୍ଣ୍ଣ ସଠିକତାର ସହ ଆଘାତ କରିଥିଲା। ପାକିସ୍ତାନ ବାୟୁସେନାର ସେହି ବିମାନ ଘାଟି କ୍ଷତିଗ୍ରସ୍ତ ହୋଇଥିଲା, ଯାହାକୁ ନେଇ ପାକିସ୍ତାନ ଗର୍ବ କରୁଥିଲା। ଭାରତ ପ୍ରଥମ ତିନି ଦିନ ମଧ୍ୟରେ ପାକିସ୍ତାନରେ ଏପରି ଧ୍ୱଂସଲୀଳ କରିଥିଲା, ଯାହା ପାକିସ୍ତାନ କେବେ କଳ୍ପନା ମଧ୍ୟ କରିପାରିନଥିଲା।
ସେଥିପାଇଁ ଭାରତର ଆକ୍ରମଣାତ୍ମକ କାର୍ଯ୍ୟାନୁଷ୍ଠାନ ପରେ, ପାକିସ୍ତାନ ପଳାୟନ ମାର୍ଗ ଖୋଜିବା ଆରମ୍ଭ କରିଥିଲା। ପାକିସ୍ତାନ ସାରା ବିଶ୍ୱରେ ଉତ୍ତେଜନା ହ୍ରାସ ପାଇଁ ନିବେଦନ କରିଥିଲା। ଆଉ ଏତେ ମାତ୍ରାରେ ଆଘାତ ସହିବା ପରେ ପାକିସ୍ତାନ ସେନା ବାଧ୍ୟ ହୋଇ ମଇ ୧୦ ତାରିଖ ଅପରାହ୍ଣରେ, ଆମର ଡିଜିଏମଓଙ୍କୁ ଯୋଗାଯୋଗ କରିଥିଲା। ସେତେବେଳକୁ, ଆମେ ଆତଙ୍କବାଦର ଭିତ୍ତିଭୂମିକୁ ବ୍ୟାପକ ଭାବେ ଧ୍ୱଂସ କରିଦେଇଥିଲୁ, ଆତଙ୍କବାଦୀମାନଙ୍କୁ ନିପାତ କରାଯାଇଥିଲା, ପାକିସ୍ତାନର ଛାତିରେ ଥିବା ଆତଙ୍କବାଦୀ ଘାଟିଗୁଡ଼ିକ ଧ୍ୱଂସ ହୋଇଯାଇଥିଲା, ତେଣୁ ଯେତେବେଳେ ପାକିସ୍ତାନ ନିବେଦନ କଲା, ସେତେବେଳେ ପାକିସ୍ତାନ କହିଲା ଯେ ତା’ ତରଫରୁ ଆଉ କୌଣସି ଆତଙ୍କବାଦୀ କାର୍ଯ୍ୟକଳାପ ଏବଂ ସାମରିକ ଦୁଃସାହସ ହେବ ନାହିଁ। ତେଣୁ ଭାରତ ମଧ୍ୟ ଏହା ଉପରେ ବିଚାର କରିଥିଲା। ଆହୁରି, ମୁଁ ଦୋହରାଇବାକୁ ଚାହେଁ, ଆମେ ପାକିସ୍ତାନର ଆତଙ୍କବାଦୀ ଏବଂ ସାମରିକ ଘାଟିଗୁଡ଼ିକ ବିରୋଧରେ ଆମର ପ୍ରତିଶୋଧମୂଳକ କାର୍ଯ୍ୟାନୁଷ୍ଠାନକୁ ସ୍ଥଗିତ ରଖିଛୁ। ଆଗାମୀ ଦିନରେ, ଆମେ ପାକିସ୍ତାନର ପ୍ରତ୍ୟେକ ପଦକ୍ଷେପକୁ ତା’ର ଆଭିମୁଖ୍ୟ ଦ୍ୱାରା ବିଚାର କରିବୁ।
ବନ୍ଧୁଗଣ,
ଭାରତର ତିନି ସେନା, ଆମର ବାୟୁସେନା, ଆମର ସେନା, ଆମର ନୌସେନା, ଆମର ସୀମା ସୁରକ୍ଷା ବଳ-ବିଏସଏଫ, ଭାରତର ଅର୍ଦ୍ଧସାମରିକ ବାହିନୀ, ସବୁବେଳେ ସତର୍କ ରହିଛନ୍ତି। ସର୍ଜିକାଲ୍ ଷ୍ଟ୍ରାଇକ୍ ଏବଂ ଏୟାର ଷ୍ଟ୍ରାଇକ୍ ପରେ ଏବେ ‘ଅପରେସନ ସିନ୍ଦୁର’ ହେଉଛି ଆତଙ୍କବାଦ ବିରୋଧରେ ଭାରତର ନୀତି। ଆତଙ୍କବାଦ ବିରୋଧରେ ଲଢ଼େଇରେ ଅପରେସନ୍ ସିନ୍ଦୁର ଏକ ନୂତନ ଲକ୍ଷ୍ମଣରେଖା ଟାଣିଛି, ଏକ ନୂତନ ମାନଦଣ୍ଡ, ଏକ ନୂତନ ବାସ୍ତବିକତା ପ୍ରତିଷ୍ଠା କରିଛି।
ପ୍ରଥମତଃ, ଯଦି ଭାରତ ଉପରେ କୌଣସି ଆତଙ୍କବାଦୀ ଆକ୍ରମଣ ହୁଏ, ତା’ହେଲେ ଉପଯୁକ୍ତ ଜବାବ ଦିଆଯିବ। ଆମେ ନିଜ ଶୈଳୀରେ, ନିଜ ସର୍ତ୍ତରେ ଜବାବ ଦେବା ଜାରି ରଖିବୁ। ଯେଉଁଠାରୁ ଆତଙ୍କବାଦର ଉତ୍ପତ୍ତି ହୋଇଛି, ସେହି ପ୍ରତ୍ୟେକ ସ୍ଥାନକୁ ଯାଇ କଠୋର କାର୍ଯ୍ୟାନୁଷ୍ଠାନ ଗ୍ରହଣ କରାଯିବ। ଦ୍ୱିତୀୟତଃ, ଭାରତ କୌଣସି ପରମାଣୁ ଯୁଦ୍ଧ ବ୍ଲାକମେଲକୁ ବରଦାସ୍ତ କରିବ ନାହିଁ। ପରମାଣୁ ବ୍ଲାକମେଲର ଛଦ୍ମବେଶରେ ବିକଶିତ ହେଉଥିବା ଆତଙ୍କବାଦୀ ଘାଟିଗୁଡ଼ିକ ଉପରେ ଭାରତ ସଠିକ୍ ଏବଂ ନିର୍ଣ୍ଣାୟକ ଭାବରେ ଆକ୍ରମଣ କରିବ।
ତୃତୀୟତଃ, ଆମେ ଆତଙ୍କବାଦକୁ ପ୍ରୋତ୍ସାହନ ଦେଉଥିବା ସରକାର ଏବଂ ଆତଙ୍କବାଦୀ ସଂଗଠନର ମୁଖିଆମାନଙ୍କୁ ଅଲଗା କରି ଦେଖିବୁ ନାହିଁ। ଅପରେସନ ସିନ୍ଦୁର ସମୟରେ, ବିଶ୍ୱ ପୁଣିଥରେ ପାକିସ୍ତାନର କୁତ୍ସିତ ବାସ୍ତବତା ଦେଖିଲା ଯେତେବେଳେ ପାକିସ୍ତାନ ସେନାର ବରିଷ୍ଠ ଅଧିକାରୀମାନେ ନିହତ ଆତଙ୍କବାଦୀମାନଙ୍କୁ ଅନ୍ତିମ ବିଦାୟ ଦେବାକୁ ବାହାରିଥିଲେ। ଏହା ରାଷ୍ଟ୍ର-ପ୍ରାୟୋଜିତ ଆତଙ୍କବାଦର ଏକ ବଡ଼ ପ୍ରମାଣ। ଭାରତ ଏବଂ ଆମର ନାଗରିକମାନଙ୍କୁ ଯେକୌଣସି ବିପଦରୁ ରକ୍ଷା କରିବା ପାଇଁ ଆମେ ନିର୍ଣ୍ଣାୟକ ପଦକ୍ଷେପ ନେବା ଜାରି ରଖିବୁ।
ବନ୍ଧୁଗଣ,
ଆମେ ପ୍ରତ୍ୟେକ ଥର ଯୁଦ୍ଧକ୍ଷେତ୍ରରେ ପାକିସ୍ତାନକୁ ଧୂଳି ଚଟେଇଛୁ। ଆଉ ଏଥର ଅପରେସନ୍ ସିନ୍ଦୁର ଏକ ନୂଆ ଦିଗ ଯୋଡ଼ିଛି। ଆମେ ମରୁଭୂମି ଏବଂ ପର୍ବତଗୁଡ଼ିକରେ ନିଜର ସାମର୍ଥ୍ୟର ଚମତ୍କାର ପ୍ରଦର୍ଶନ କରିଛୁ, ଏବଂ ଠିକ୍ ଏହି ସମୟରେ, ନୂତନ ଯୁଗର ଯୁଦ୍ଧରେ ନିଜର ଶ୍ରେଷ୍ଠତାକୁ ପ୍ରମାଣିତ କରିଛୁ। ଏହି ଅପରେସନ୍ ସମୟରେ, ଆମର ମେଡ ଇନ୍ ଇଣ୍ଡିଆ ଅସ୍ତ୍ରଶସ୍ତ୍ରର କ୍ଷମତା ପ୍ରମାଣିତ ହୋଇଥିଲା। ଆଜି ବିଶ୍ୱ ଦେଖୁଛି, ଏକବିଂଶ ଶତାବ୍ଦୀର ଯୁଦ୍ଧରେ ଭାରତରେ ନିର୍ମିତ ପ୍ରତିରକ୍ଷା ଉପକରଣର ସମୟ ଆସିଛି।
ବନ୍ଧୁଗଣ, ପ୍ରତ୍ୟେକ ପ୍ରକାରର ଆତଙ୍କବାଦ ବିରୋଧରେ ଏକଜୁଟ ରହିବା ହେଉଛି ଆମର ସବୁଠାରୁ ବଡ଼ ଶକ୍ତି। ନିଶ୍ଚିତ ଭାବେ ଏହା ଯୁଦ୍ଧର ଯୁଗ ନୁହେଁ, କିନ୍ତୁ ଏହା ମଧ୍ୟ ଆତଙ୍କବାଦର ଯୁଗ ନୁହେଁ। ଆତଙ୍କବାଦ ବିରୋଧରେ ଶୂନ୍ୟ ସହନଶୀଳତା ହେଉଛି ଏକ ଉନ୍ନତ ବିଶ୍ୱର ଗ୍ୟାରେଣ୍ଟି।
ବନ୍ଧୁଗଣ,
ଯେଭଳି ଭାବେ ପାକିସ୍ତାନ ସେନା ଏବଂ ପାକିସ୍ତାନ ସରକାର ଆତଙ୍କବାଦକୁ ପୋଷଣ ଦେଉଛନ୍ତି, ଦିନେ ନା ଦିନେ ଏହା ପାକିସ୍ତାନକୁ ଶେଷ କରିଦେବ। ଯଦି ପାକିସ୍ତାନ ବଞ୍ଚିବାକୁ ଚାହେଁ, ତା’ହେଲେ ତାର ଆତଙ୍କବାଦୀ ଭିତ୍ତିଭୂମିକୁ ଧ୍ୱଂସ କରିବାକୁ ପଡ଼ିବ। ଶାନ୍ତି ପାଇଁ ଅନ୍ୟ କୌଣସି ରାସ୍ତା ନାହିଁ। ଭାରତର ସ୍ଥିତି ଅତ୍ୟନ୍ତ ସ୍ପଷ୍ଟ: ଆତଙ୍କବାଦ ଏବଂ ଆଲୋଚନା, ଏକାଠି କରାଯାଇପାରିବ ନାହିଁ, ଆତଙ୍କବାଦ ଏବଂ ବ୍ୟବସାୟ ଏକାଠି ଯାଇପାରିବ ନାହିଁ। ଏହା ବ୍ୟତୀତ, ପାଣି ଏବଂ ରକ୍ତ ଏକାଠି ପ୍ରବାହିତ ହୋଇପାରିବ ନାହିଁ। ମୁଁ ଆଜି ବିଶ୍ୱ ସମୁଦାୟକୁ ମଧ୍ୟ କହିବି, ଆମର ଘୋଷିତ ନୀତି ହେଉଛି, ଯଦି ପାକିସ୍ତାନ ସହିତ ଆଲୋଚନା ହୁଏ, ତେବେ ତାହା ଆତଙ୍କବାଦ ଉପରେ ହେବ, ଯଦି ପାକିସ୍ତାନ ସହିତ ଆଲୋଚନା ହୁଏ, ତେବେ ପାକିସ୍ତାନ ଅଧିକୃତ କାଶ୍ମୀର, ପିଓକେ ଉପରେ ଆଧାରିତ ହେବ।
ପ୍ରିୟ ଦେଶବାସୀ,
ଆଜି ବୁଦ୍ଦ ପୂର୍ଣ୍ଣିମା। ଭଗବାନ ବୁଦ୍ଧ ଆମକୁ ଶାନ୍ତିର ମାର୍ଗ ଦେଖାଇଛନ୍ତି। ଶାନ୍ତିର ମାର୍ଗ ମଧ୍ୟ ଶକ୍ତିର ମାର୍ଗ ହୋଇଯାଇଥାଏ। ମାନବତା, ଶାନ୍ତି ଏବଂ ସମୃଦ୍ଧି ଦିଗରେ ଆଗକୁ ବଢ଼ୁ, ପ୍ରତ୍ୟେକ ଭାରତୀୟ ଶାନ୍ତିରେ ରୁହନ୍ତୁ, ବିକଶିତ ଭାରତର ସ୍ୱପ୍ନକୁ ପୂରଣ କରନ୍ତୁ, ସେଥିପାଇଁ ଭାରତ ଶକ୍ତିଶାଳୀ ହେବ ଅତ୍ୟନ୍ତ ଜରୁରୀ। ଆବଶ୍ୟକତା ପଡ଼ିଲେ ଏହି ଶକ୍ତିର ଉପଯୋଗ କରିବା ମଧ୍ୟ ଜରୁରୀ। ଆଉ ବିଗତ କିଛି ଦିନ ମଧ୍ୟରେ ଭାରତ ଏହା କରି ଦେଖାଇଛି ।
ମୁଁ ପୁଣିଥରେ ଭାରତୀୟ ସେନା ଏବଂ ସଶସ୍ତ୍ର ବଳକୁ ଅଭିବାଦନ ଜଣାଉଛି। ଆମେ ଭାରତବାସୀଙ୍କ ସାହସକୁ ପ୍ରଣାମ କରୁଛି। ଭାରତବାସୀଙ୍କ ଏକତାର ଶପଥ, ସଂକଳ୍ପକୁ ମୁଁ ପ୍ରଣାମ କରୁଛି।
ବହୁତ - ବହୁତ ଧନ୍ୟବାଦ।
ଭାରତ ମାତା କୀ ଜୟ!!!
ଭାରତ ମାତା କୀ ଜୟ!!!
ଭାରତ ମାତା କୀ ଜୟ!!!