विशाल संख्या में पधारे हुए उपस्थित महानुभावों!
मां दन्तेश्वरी का जहां आर्शीवाद है, जिस क्षेत्र के आदिवासियों ने दुनिया को जीने का रास्ता सिखाया है, ऐसी ये बस्तर की धरती है। आज मेरा ये सौभाग्य है कि आपके बीच आने का मुझे अवसर मिला, आपके दर्शन करने का सौभाग्य मिला। आज एक कार्यक्रम रायपुर में भी होने वाला था, लेकिन कल हवा के तूफान ने वहां सब तहस-नहस कर दिया। कई हमारे साथियों को चोट आई। मैं परमात्मा से प्रार्थना करता हूं कि ड्यूटी पर तैनात ये सभी बंधु-भगिनी बहुत ही जल्द स्वस्थ हों। डॉ. रमन ने कल ही मुझे फोन करके बताया था.. और उनके स्वास्थ्य की पूरी चिंता राज्य सरकार कर रही है और बहुत ही जल्द ये सभी स्वस्थ हो जाएंगे।
आज अनेक विध-कामों के निर्णय हुए हैं। शायद बस्तर के इतिहास में पहली बार हुआ होगा कि एक घंटे के इस समारोह में 24 हजार करोड़ रुपयों के निवेश के साथ विकास की नई ऊंचाईयों को प्राप्त करने का निर्णय.. एक राज्य, पूरे राज्य के लिए भी अगर 5 हजार करोड़ का प्रोजेक्ट है, तो राज्य के लिए बहुत बड़ी गौरवशाली घटना होती है। जबकि आज एक जिले में 24 हजार करोड़ रुपया..। आने वाले दिनों में इस बस्तर की जिंदगी में कैसा बदलाव आएगा इसका मैं भली-भांति अनुमान कर सकता हूं।
आज आप किसी भी आदिवासी को जाकर पूछें, किसी भी गांव के गरीब व्यक्ति को जा करके पूछें, आप कोई भी खेत मज़दूर को पूछें, आप किसी भी किसान को पूछें कि आपका क्या सुझाव है, कि क्या करना चाहिए? आपकी क्या अपेक्षा है क्या इच्छा है? मैं विश्वास से कहता हूं, अनुभव से कहता हूं, सब के सब.. किसी भी राज्य में क्यों न रहते हों, किसी भी भू-भाग पर क्यों न रहते हों.. एक ही जवाब निकलता है कि साहब कुछ भी करो, बच्चों को रोजगार मिले ऐसा कुछ करो। किसान भी चाहता है कि बच्चों को रोजगार मिले क्योंकि उसे पता है कि उनको जीवन में आगे बढ़ने के लिए अगर रोजगार मिल जाएगा तो बाकी तो अपना संसार वो खुद मेहनत करके बना लेगा, बच्चों को पढ़ाना है तो वो भी कर लेगा, एक बार रोजगार मिल जाए। भारत के लिए सबसे पहली प्राथमिकता है हमारे देश के नौजवान को रोजगार मिले, उसे अवसर मिले, वो देश को आगे बढ़ाने के काम में भागीदार बनना चाहता है। ..और कोई मां-बाप नहीं चाहता है कि बेटा-बेटी रोजगार के लिए सैकड़ों हजार किला मीटर दूर जा करके शहरों की झुग्गी-झोपड़ी में जिंदगी बिताए, कोई मां-बाप नहीं चाहता है। हर मां-बाप चाहता है कि बेटा पास रहे और कुछ उसे काम मिल जाए। बेटा भी चाहता है, बेटी भी चाहती है कि बूढ़े-बूढ़े मां-बाप को असहाय छोड़ करके शहर में झुग्गी-झोपड़ी की जिंदगी जीने के लिए नहीं जाना है। इसलिए सरकार का यह दायित्व बनता है, शासन की जिम्मेवारी बनती है कि हम विकास को उस रूप में आगे बढ़ाएं ताकि हिन्दुस्तान के सभी भू-भाग में विकास पहुंचे, दूर-सुदूर जंगलों में भी विकास पहुंचे और गरीब की झोपड़ी तक विकास के फल पहुंचें। गरीब की झोपड़ी तक विकास का फल पहुंचने का मतलब है कि गरीब से गरीब परिवार की संतान को भी रोजगार का अवसर उपलब्ध हो। इसलिए हमने जो विकास का रास्ता चुना है उसके केंद्र में हमारा एक ही संकल्प है कि देश के नौजवान को अवसर मिले, रोजगार मिले, आगे बढ़ने के लिए उसको मौका मिले।
आज बस्तर जिले में.. कोयला पहले भी था, iron ore पहले भी था, सरकारें भी पहले थीं, लोग भी पहले थे, बेरोजगारी भी थी लेकिन फिर भी समस्या का समाधान खोजने के लिए ऐसी धीमी गति से चला जाता था कि लोग निराशा के गर्त में डूब जाते थे। आज हमारी कोशिश है कि हिन्दुस्तान के चारों तरफ रेलवे connectivity मिले, दूर-सुदूर इलाकों में भी रेल की पटरी बिछे, लोगों को आने-जाने की सुविधा बने। पटरी जब लग जाती है, ट्रेन आती है तो सिर्फ यात्रा के लिए काम आती है ऐसा नहीं है, वो एक जीवन को भी गति देता है, अर्थ-जीवन को भी गति देता है। जगदलपुर तक रेल की पटरी हिन्दुस्तान की मुख्यधारा से आपको जोड़ेगी। जब हम प्रधानमंत्री जन-धन योजना लाते हैं तो गरीब से गरीब को आर्थिक मुख्यधारा से जोड़ते हैं और बस्तर में जगदलपुर तक की ट्रेन की बात करते हैं तो यहां के नागरिक को हिन्दुस्तान की मुख्यधारा के साथ छोड़ने का हमारा प्रयास होता है।
अभी मुख्यमंत्री जी विस्तार से बता रहे थे कि हम कच्चा माल विदेशों में बेच-बेच कर कब तक अपनी रोजी-रोटी कमाएंगे। ..और हम कैसे लोग है कि iron ore तो हम बाहर भेजें और steel बाहर से लाएं! अब वो कारोबार हमें बंद करना है। अगर iron ore हमारा होगा तो steel भी हमारा होगा और दुनिया को चाहिए तो हम steel देगें, हम iron ore में हमारे नौजवान के पसीने को जोड़ेंगे और उसी iron ore में से steel बनाएंगे और उसी iron ore में से steel बनाते समय मेरे नौजवानों की जिंदगी भी बन जाएंगी ताकि वो दुनिया के हर संकटों से टक्कर लें। ऐसा जीवन उसका ऊंचा बन जाए, उस दिशा में हम काम कर रहे हैं। हमारी कोशिश है विकास की नई ऊंचाइयों पर देश को ले जाने की।
आज मैं यहां डॉ. रमन सिंह जी के सपने को धरती पर उतरा हुआ देख करके आया। रमन सिंह जी के प्रति मेरे मन में मित्र होने के बावजूद भी हमेशा एक सम्मान का भाव रहा है और सबसे ज्यादा मुझे आदर तब हुआ, जब यहां के लोग महंगी.. चिरौंजी हो, काजू हो ये बेच करके नमक खरीदते थे, बदले में नमक! और समाज का शोषण करने का भाव रखने वाले लोग उन महंगे उत्पादों को ले करके बदले में नमक देते थे और बस्तर जिले के नागरिक नमक पाने के लिए पता नहीं क्या कुछ देने के लिए तैयार हो जाते थे। रमन सिंह जी ने सरकार बनाते ही प्रारंभ में तय कर लिया कि मैं नमक लोगों को पहुंचाऊंगा। उस दिन से एक मित्र होने के बावजूद भी एक विशेष आदर की मेरे मन में अनुभूति हुई कि मेरा एक साथी है जो हर पल गरीबों के लिए सोचता है, आदिवासियों के लिए सोचता है।
आज जब मैं knowledge(Education) city में जा करके आया, उसमें जो कल्पना है.. हिन्दुस्तान में जो लोग कहते हैं कि हिंसा के रास्ते पर गए हुए लोगों को वापस मुख्यधारा में लाने का रास्ता क्या है, मैं समझता हूं कि रमन सिंह जी ने रास्ता बना दिया है। कंधे पर हल! वही समस्याओं का हल ला सकता है। कंधे पर gun, ये समस्याओं का समाधान नहीं है। जिस धरती पर नक्सलवाद का जन्म हुआ था और जिसके कारण देश में नक्सलवाद की चर्चा हुई थी, वहां पर भी जा करके देखिए, अनुभव के बाद वो सीखे.. और उन्होंने भी वो रास्ता छोड़ दिया। आज वो नक्सलबाड़ी, जहां से हिंसा का मार्ग शुरू हुआ था, बम, बंदुक और गोलियां चलती थी, रक्त की धारा बहती थी, आज वहां वो बंद हो गया। जिन लोगों को लगता है कि क्या.. आए दिन ये मौत का खेल बंद होगा कि नहीं होगा। मैं देशवासियों! आपको विश्वास दिलाना चाहता हूं कि निराश होने की जरूरत नहीं है। यह भी बंद होगा। जब पंजाब में खूनी खेल खेला जा रहा था, क्या कभी किसी ने सोचा था कि पंजाब में वो खूनी खेल खत्म होगा और लोग सुख-चैन की जिंदगी जिएंगे? आज जी रहे हैं। नक्सलबाड़ी में सोचा था? आज लोग वहां भी जी रहे हैं। मुझे विश्वास है इस भू-भाग में भी, इस गलत रास्ते पर चल पड़े लोग भी.. उनके भीतर भी कभी न कभी मानवता जगेगी।
आज मैं उस ज्ञान नगरी में जा करके आया। 800 से अधिक उन बच्चों को मिला जिनको.. कोई गुनाह नहीं था, मां-बाप से बिछुड़ना पड़ा। हिंसा के रास्ते पर पागल बने हुए युवकों ने किसी के बाप को मार दिया, किसी की मां को मार दिया, किसी मां-बाप को वहां से दूर जाने के लिए मजबूर कर दिया। उन 800 बच्चों से मैं मिला जिन्होंने अपने परिवार-जनों को खोया है। माओवाद की हिंसा के कारण उनकी जिदगी में मुसीबत आई है। लेकिन आज डॉ. रमन सिंह जी को बधाई देता हूं कि उन्होंने.. जिनका सब कुछ खत्म करने के लिए माओवादी तुले हुए थे, जो बच्चों को तलवार, बम, बंदूक के रास्ते पर ले जाना चाहते थे उनको रमन सिंह जी ने हाथ में कलम पकड़ा दी, कम्प्यूटर पकड़ा दिया है और मैंने उनकी आंखों में जो चेतना देखी.. वो विश्वास देखा है, उन 800 बच्चों को देख करके मैं कहता हूं हिंसा का कोई भविष्य नहीं है। अगर भविष्य है तो वो शांतिमय मार्गों का है, वो मैं आज देख करके आया हूं, अनुभव करके आया हूं। मैं हिंसा के रास्ते पर चले हुए नौजवानों को कहना चाहता हूं कि कम से कम एक प्रयोग कीजिए, कम से कम दो-पांच दिन के लिए कंधे पर से बंदूक नीचे रख दीजिए। सादे-सीधे आदिवासी पहनते हैं, ऐसे कपड़े पहन लीजिए और आपके कारण जिस परिवार को कोई स्वजन खोना पड़ा है, किसी के बाप की मृत्यु हुई, है किसी की मां की मृत्यु हुई है.. उस घर में बचा हुआ जो बच्चा है, पांच दिन सिर्फ उसके साथ ऐसे ही बिता करके आ जाइए, उससे बातें कीजिए और उसको ये मत बताइए कि आप कौन हैं, ऐसे ही बातें कीजिए। मैं विश्वास से कहता हूं, वो बालक अपनी बातों से, अपने अनुभव से आपको पुनर्विचार करने के लिए मजबूर कर देगा, आपका हृदय परिवर्तन करके रख देगा। आप भी हिल जाएगे कि हिंसा के नशे में आपने कितना बड़ा पाप कर दिया है। एक बार मानवता को अंगीकार करके, राक्षसी वृत्ति से मुक्ति पा करके.. ज्यादा नहीं, कुछ पल इन पीडि़त परिवारों से जरा मिल लीजिए। आपको फिर कभी उस रास्ते पर जाने कि नौबत नहीं आएगी। आपको भी लगेगा कि आपने कुछ गलत किया है। कोई सरकार आपको बदले, कोई कानून आपको बदले, कोई लोभ-लालच आपको बदले उससे ज्यादा आप ही की गोलियों से पीड़ा पाने वाला एक बालक आपकी जिंदगी बदल सकता है। शर्त यही है कि मानवता का अंगीकार करके कुछ पल उसके साथ बिता करके देख लीजिए। मैंने देखा उन बच्चों को आज.. हिंसा से कभी समस्याओं का समाधान नहीं हुआ है। मिल-बैठ करके रास्ते निकल सकते हैं। छत्तीसगढ़ अगर इस संकट से मुक्त हो जाए तो मैं विश्वास से कहता हूं हिन्दुस्तान में आर्थिक ऊंचाइयों पर नम्बर एक पर छत्तीसगढ़ आकर खड़ा हो सकता है। यहां के नौजवानों का भविष्य बदल सकता है और छत्तीसगढ़ के पास वो ताकत है, वो हिन्दुस्तान का भविष्य भी बदल सकता है। इसलिए मेरे भाईयो-बहनों! विकास एक ही मार्ग है जो हमारी समस्याओं का समाधान करेगा।
मुझे आज रमन सिंह जी के livelihood college को भी देखने का अवसर मिला। उन्होंने पूरे राज्य में उसका जाल बिछाया है। दुनिया के समृद्ध से समृद्ध देश हो तो भी.. एक बात आज उसका प्रमुख काम बन गया है। दुनिया का सुखी देश भी skill development को महत्व दे रहे हैं। हुनर सिखाने के लिए दुनिया में, हर देश में priority हो गई है। छत्तीसगढ़ के अंदर हुनर से शिखर तक पहुंचने का जो अभियान चलाया गया है, वो काबिले दाद है। मैं देख कर आया हूं। मैंने उन बालक-बालिकाओं को देखा, हाथ में हुनर तो है लेकिन आंख में ओझ है, तेज है और बातों में एक अपरम्पार विश्वास है। बड़े-बड़े अफसर भी.. सीएम या पीएम से बात करनी है तो कुछ पल तो set होने में time लगता है। मैंने देखा कि बच्चे फटाफट बातें करते थे। कोई झिझक नहीं थी, उनकी बातों में कोई झिझक नहीं थी। ये जो confidence level है ये जीवन में आगे बढ़ने के लिए बहुत बड़ी अमानत होता है। वो मैं आज देख कर आया हूं।
Skill Development का मिशन ले करके हम पूरे देश में चल रहे हैं क्योंकि हमारे देश के नौजवानों को रोजगार देना है ..और रोजगार देना है तो Skill Development सर्वाधिक सरल मार्ग होता है। जीवन के हर क्षेत्र में, हर नौजवान के हाथ में हुनर हो। जिसके हाथ में हुनर होता है उसको कभी जीवन जीने के लिए हाथ फैलाने की नौबत नहीं आती है, वो अपने बलबूते पर, अपनी शर्तों पर जिंदगी जी सकता है। उसे कभी मजबूर नहीं होना पड़ता है और उस काम को livelihood colleges के माध्यम से रमन सिंह जी ने चरितार्थ किया है। देश के अन्य राज्यों के लिए भी यह अपने आप में एक मिसाल बन सकती है। मैं चाहूंगा, मैं भी प्रयास करूंगा कि देश के और राज्य भी आ करके इसको देखें, इस मॉडल को समझें और इसको कैसे लागू किया जा सकता है उस पर चर्चा करें।
भाईयों-बहनों! आपने हमें भारी बहुमत के साथ आपकी सेवा करने का मौका दिया है। छत्तीसगढ़ पूरी ताकत के साथ हमारे पीछे खड़ा है और मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि जितना आपने दिया है, हम ब्याज समेत विकास करके लौटाएंगे।
आज तेंदू पत्ता वाले हमारे किसान भाइयों-बहनों को बोनस देने का भी मुझे सौभाग्य मिला और उनको भी मैंने पूछा कि क्या करोगे, हरेक से मैंने पूछा। हरेक को पता है कि इन पैसों का उपयोग अपने बच्चों की जिंदगी संवारने के लिए कैसे करना है, इसका खाका उनके दिमाग में तैयार है। यही तो है हरेक का aspiration । उसको पूर्ण करने का हमारा प्रयास है।
एक समय था.. हिन्दुस्तान की तरफ दुनिया कैसे देखती थी? ज्यादातर तो देखने के लिए तैयार ही नहीं थी और जो देखते थे वो भी बड़े उपेक्षा के भाव से देखते थे या तो हंसी-मजाक के रूप में देखते थे। देखते ही देखते माहौल बदला कि नहीं बदला? दुनिया हिन्दुस्तान को पूछने लगी कि नहीं लगी? विश्व के समृद्ध देशों को भी हिन्दुस्तान की अहमियत को मानना पड़ा कि नहीं मानना पड़ा। सवा सौ करोड़ का देश! इसको सर झुका करके जीने की जरूरत नहीं है। वो वक्त चला गया। सवा सौ करोड़ देशवासियों का संकल्प है कि हमारा देश माथा ऊंचा करके आंख से आंख मिला करके, सीना तान करके जीने के लिए पैदा हुआ है, झुकने के लिए पैदा नहीं हुआ है। वो शक्ति हमारे भीतर पड़ी है, सवा सौ करोड़ देशवासियों के भीतर पड़ी है। उस शक्ति को मैं भली-भांति पहचानता हूं। विश्व में जब किसी से बात करता हूं तो अकेला मोदी बात नहीं करता है, सवा सौ करोड़ देशवासी एक साथ आंख मिला करके बात करते हैं और विश्व आज हिन्दुस्तान का लोहा मानने लगा है। पूरे विश्व मानने लगा है कि आज दुनिया में तेज गति से आर्थिक विकास करने वाला कोई देश अगर है.. सारे संसार में, तो उस देश का नाम है- हिन्दुस्तान।
कितनी तेजी से परिवर्तन आ रहा है, लेकिन कुछ लोग होते हैं, जिनको जीवनभर लोगों को गरीब रखने में ही आनंद आया, दु:खी रखने में ही आनंद आया। अगर उसमें कुछ बदलाव आता है, तो वो अब दु:खी हो रहे हैं। उनकी परेशानी मैं समझ सकता हूं। जो लोग विजय पचा नहीं पाए 60 साल तक, वो पराजय भी नहीं पचा पा रहे हैं। भाईयों-बहनों, जिनको जनता ने नकार दिया है, उनके पास झूठ फैलाने के सिवाए, जनता को भ्रमित करने के सिवाए, जनता को गुमराह करने के सिवाए कोई रास्ता नहीं बचा है।
मैं देशवासियों को विश्वास दिलाता हूं, इन्हीं दिनों को याद कर लीजिए, इसी कालखंड में मैं छत्तीसगढ़ भी आया था, पिछले साल। अखबारों में क्या आता था? टीवी में क्या समाचार आते थे एक साल पहले? .. आज इतने का भ्रष्टाचार हुआ, आज ये घोटाला हुआ, वो घोटाला हुआ, इसने इतना मार लिया, उसने उतना लूट लिया, यही खबरें आती थीं कि नहीं आती थीं। कोयले की चोरी की चर्चा होती थी कि नहीं होती थी? एक साल हुआ है मेरे भाईयों-बहनों! एक भी खबर आई है क्या? क्या ईमानदारी से देश नहीं चलाया जा सकता क्या? चलाया जा सकता है। एक साल के अनुभव से मैं कह सकता हूं कि ये देश ईमानदारी से चलाया जा सकता है।
चिठ्ठी–पर्ची से कोयले की खदानें दे दी थीं। आज हमने सार्वजनिक रूप से auction किया और वो खज़ाना राज्य की तिजोरी में दे दिया। कोयले के auction का पैसा राज्य के खज़ाने में आ गया। इतना ही नहीं, जहां पर खनिज़ निकलता है, उस इलाके के जो जिले हैं.. और ज्यादातर पूरे देश में आदिवासी क्षेत्र है जहां पर खनिज़ सम्पदा है। वहां हमने special संगठन की रचना की है। वहां से कुछ हिस्सा लोगों के कल्याण के लिए खर्च कर दिया जाएगा। पहली बार गरीबों के लिए रुपए तिजोरी से निकालने का काम हो रहा है।
मुझे विश्वास है कि जिस विकास के रास्ते पर हम चल पड़े हैं, उस रास्ते से देश की समस्याओं का समाधान भी करेंगे, आपकी आशाओ-आकांक्षाओं को परिपूर्ण भी करेंगे और आपके साथ कंधे से कंधा मिला करके देश को नई ऊंचाइयों पर ले जाने में हम सफल होंगे।
इसी एक विश्वास के साथ मैं फिर एक बस्तर को, छत्तीसगढ़ को हृदयपूर्वक बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं।
बहुत-बहुत धन्यवाद।
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ମୋର ପ୍ରିୟ ଦେଶବାସୀଗଣ, ନମସ୍କାର । ୨୦୨୫ ବର୍ଷ ଆମ ଦ୍ୱାରଦେଶରେ ଉପନୀତ । ୨୬ ଜାନୁଆରୀ ୨୦୨୫ ଦିନ ଆମ ସମ୍ବିଧାନ କାର୍ଯ୍ୟକାରୀ ହେବାର ୭୫ ବର୍ଷ ପୂରଣ ହେବାକୁ ଯାଉଛି । ଆମ ସମସ୍ତଙ୍କ ପାଇଁ ଏହା ଏକ ଗୌରବର କଥା । ଆମ ସମ୍ବିଧାନ ନିର୍ମାତାଗଣ ଆମକୁ ଯେଉଁ ସମ୍ବିଧାନ ଅର୍ପଣ କରିଯାଇଛନ୍ତି, ତାହା ସବୁ ପରିସ୍ଥିତିରେ ଠିକ୍ ପ୍ରମାଣିତ ହୋଇଛି । ସମ୍ବିଧାନ ଆମକୁ ପଥ ପ୍ରଦର୍ଶିତ କରୁଥିବା ଆଲୋକ ପୁଞ୍ଜ, ଏହା ଆମ ମାର୍ଗଦର୍ଶକ । ଭାରତର ସମ୍ବିଧାନ ଯୋଗୁଁ ହିଁ ଆଜି ମୁଁ ଏଠାରେ ଉପସ୍ଥିତ ହୋଇ ଆପଣଙ୍କ ସହ ଭାବ ବିନିମୟ କରିପାରୁଛି । ଏ ବର୍ଷ ନଭେମ୍ବର ୨୬ ତାରିଖ ସମ୍ବିଧାନ ଦିବସଠାରୁ ଏକବର୍ଷ ବ୍ୟାପୀ ଅନେକ କାର୍ଯ୍ୟକ୍ରମ ଆରମ୍ଭ ହୋଇଛି । ଦେଶର ନାଗରିକମାନଙ୍କୁ ସମ୍ବିଧାନର ଐତିହ୍ୟ ସହ ସଂଯୋଜିତ କରିବା ପାଇଁ constitution75.com ନାମରେ ଏକ ସ୍ୱତନ୍ତ୍ର ୱେବସାଇଟ୍ ମଧ୍ୟ ସୃଷ୍ଟି କରାଯାଇଛି । ଏଥିରେ ଆପଣ ସମ୍ବିଧାନର ମୁଖବନ୍ଧ ପାଠ କରି ନିଜ ଭିଡିଓ ଅପଲୋଡ୍ କରିପାରିବେ । ଭିନ୍ନ ଭିନ୍ନ ଭାଷାରେ ସମ୍ବିଧାନ ପଢ଼ି ପାରିବେ । ସମ୍ବିଧାନ ବିଷୟରେ ପ୍ରଶ୍ନ ମଧ୍ୟ ପଚାରି ପାରିବେ । ଏହି ୱେବସାଇଟ୍ ପରିଦର୍ଶନ କରି ଏଥିରେ ଅଂଶଗ୍ରହଣ କରିବା ପାଇଁ ମୁଁ ‘ମନ୍ କି ବାତ୍’ର ଶ୍ରୋତା, ବିଦ୍ୟାଳୟରେ ପଢ଼ୁଥିବା ଛାତ୍ରଛାତ୍ରୀ, କଲେଜରେ ପଢ଼ୁଥିବା ଯୁବବର୍ଗ ସମସ୍ତଙ୍କୁ ଅନୁରୋଧ କରୁଛି ।
ବନ୍ଧୁଗଣ, ଆସନ୍ତା ମାସ ୧୩ ତାରିଖ ଠାରୁ ପ୍ରୟାଗରାଜରେ ମହାକୁମ୍ଭ ମଧ୍ୟ ଅନୁଷ୍ଠିତ ହେବାକୁ ଯାଉଛି । ଏବେ ସେଠାରେ ସଙ୍ଗମକୁଳରେ ଜୋରଦାର୍ ପ୍ରସ୍ତୁତି ଚାଲିଛି । ମୋର ମନେ ଅଛି, ଏଇ କିଛି ଦିନ ତଳେ ଯେତେବେଳେ ମୁଁ ପ୍ରୟାଗରାଜ୍ ଯାଇଥିଲି, ସେତେବେଳେ ହେଲିକପ୍ଟରରୁ ସମ୍ପୂର୍ଣ୍ଣ କୁମ୍ଭ କ୍ଷେତ୍ର ଦେଖି ମନ ଆନନ୍ଦିତ ହୋଇଯାଇଥିଲା । ଏତେ ବିଶାଳ ! ଏତେ ସୁନ୍ଦର ! ଏତେ ଭବ୍ୟ !
ବନ୍ଧୁଗଣ, ମହାକୁମ୍ଭର ବିଶେଷତ୍ୱ କେବଳ ଏହାର ବିଶାଳତା ନୁହେଁ । କୁମ୍ଭର ବିଶେଷତ୍ୱ ଏହାର ବିବିଧତାରେ ମଧ୍ୟ ରହିଛି । ଏହି ଆୟୋଜନରେ କୋଟି କୋଟି ଲୋକ ଏକତ୍ରିତ ହୁଅନ୍ତି । ଲକ୍ଷ ଲକ୍ଷ ସାଧୁ ସନ୍ଥ, ହଜାର ହଜାର ପରମ୍ପରା, ଶହ ଶହ ସମ୍ପ୍ରଦାୟ, ଅନେକ ଆଖଡ଼ା, ସମସ୍ତେ ଏହି ଆୟୋଜନରେ ଅଂଶଗ୍ରହଣ କରନ୍ତି । ଏହି କୁମ୍ଭମେଳାରେ କେବେ କୌଣସି ଭେଦଭାବ ନ ଥାଏ । ନା ଏଠି କେହି ବଡ଼, ନା କେହି ସାନ । ବିବିଧତା ମଧ୍ୟରେ ଏକତାର ଏଭଳି ଦୃଶ୍ୟ ବିଶ୍ୱରେ ଆଉ କେଉଁଠି ବି ଦେଖିବାକୁ ମିଳେନାହିଁ । ତେଣୁ ଆମ କୁମ୍ଭ ଏକତାର ମହାକୁମ୍ଭ ମଧ୍ୟ ହୋଇଥାଏ । ଏଥରର ମହାକୁମ୍ଭ ମଧ୍ୟ ଏକତାର ମହାକୁମ୍ଭର ମନ୍ତ୍ରକୁ ସଶକ୍ତ କରିବ । କୁମ୍ଭରେ ଅଂଶଗ୍ରହଣ କରିବା ସହ ଏକତାର ଏହି ସଂକଳ୍ପକୁ ମଧ୍ୟ ନିଜ ସହ ନେଇ ଫେରିବା ପାଇଁ ମୋର ଆପଣ ସମସ୍ତଙ୍କୁ ଅନୁରୋଧ । ଆମେ ସମାଜରେ ବିଭାଜନ ଓ ବିଦ୍ୱେଷର ଭାବନାକୁ ନଷ୍ଟ କରିବାର ସଂକଳ୍ପ ମଧ୍ୟ ଗ୍ରହଣ କରିବା । ସଂକ୍ଷେପରେ କହିବାକୁ ହେଲେ ମୁଁ ଏତିକି କହିବି . . .
ମହାକୁମ୍ଭର ଏଇ ସନ୍ଦେଶ, ଏକ୍ ହେଉ ସାରା ଦେଶ ।
ମହାକୁମ୍ଭର ଏଇ ସନ୍ଦେଶ, ଏକ୍ ହେଉ ସାରା ଦେଶ ।
ଆଉ ଅନ୍ୟ ଭାଷାରେ କହିବାକୁ ଗଲେ, କହିବି . . .
ଗଙ୍ଗାର ଧାରା ବହୁ ନିରନ୍ତର, ବିଭାଜିତ ନ ହେଉ ସମାଜ ଆମର ।
ଗଙ୍ଗାର ଧାରା ବହୁ ନିରନ୍ତର, ବିଭାଜିତ ନ ହେଉ ସମାଜ ଆମର ।
ବନ୍ଧୁଗଣ, ଏଥର ପ୍ରୟାଗରାଜରେ ଦେଶ ବିଦେଶର ଶ୍ରଦ୍ଧାଳୁ ଡିଜିଟାଲ୍ ମହାକୁମ୍ଭର ମଧ୍ୟ ସାକ୍ଷୀ ହେବେ । ଡିଜିଟାଲ୍ ନେଭିଗେସନ୍ ସାହାର୍ଯ୍ୟରେ ଆପଣମାନେ ବିଭିନ୍ନ ଘାଟ, ମନ୍ଦିର, ସାଧୁସନ୍ଥଙ୍କ ଆଖଡ଼ା ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ପହଂଚିବାର ରାସ୍ତା ପାଇପାରିବେ । ଏହି ନେଭିଗେସନ୍ ସିଷ୍ଟମ୍ ଆପଣଙ୍କୁ ପାର୍କିଂ ସ୍ଥଳ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ପହଂଚିବା ପାଇଁ ମଧ୍ୟ ସାହାର୍ଯ୍ୟ କରିବ । କୁମ୍ଭ ଆୟୋଜନରେ ପ୍ରଥମ ଥର ପାଇଁ ଏ.ଆଇ. ଚାଟବୋଟର ବ୍ୟବହାର ହେବ । ଏ.ଆଇ. ଚାଟବୋଟ୍ ମାଧ୍ୟମରେ ୧୧ଟି ଭାରତୀୟ ଭାଷାରେ କୁମ୍ଭ ସମ୍ପର୍କିତ ସୂଚନା ପ୍ରାପ୍ତ କରାଯାଇପାରିବ । ଏହି ଚାଟବୋଟରେ text ଟାଇପ୍ କରି କିମ୍ବା ନିଜେ କହି ଯେକୌଣସି ପ୍ରକାର ସାହାଯ୍ୟ ପାଇଁ ଅନୁରୋଧ କରିପାରିବେ । ସମ୍ପୂର୍ଣ୍ଣ ମେଳା କ୍ଷେତ୍ରଟି ଏ.ଆଇ. ଶକ୍ତିଯୁକ୍ତ କ୍ୟାମେରାର ନଜରରେ ରହିବ । କୁମ୍ଭରେ ଯଦି କେହି ନିଜ ପ୍ରିୟପରିଜନଙ୍କ ଠାରୁ ନିଖୋଜ ହୋଇଥାଆନ୍ତି, ତାହେଲେ ଏହି କ୍ୟାମେରା ଗୁଡ଼ିକ ସାହାର୍ଯ୍ୟରେ ସେମାନଙ୍କୁ ଠାବ କରିବାରେ ମଧ୍ୟ ସାହାଯ୍ୟ ମିଳିବ । ଶ୍ରଦ୍ଧାଳୁମାନେ ଡିଜିଟାଲ୍ ଲଷ୍ଟ ଆଣ୍ଡ ଫାଉଣ୍ଡ ସେଂଟରର ସୁବିଧା ମଧ୍ୟ ପାଇପାରିବେ । ଶ୍ରଦ୍ଧାଳୁମାନଙ୍କୁ ମୋବାଇଲ ମାଧ୍ୟମରେ ହିଁ ସରକାରଙ୍କ ସ୍ୱୀକୃତିପ୍ରାପ୍ତ ଟୁର୍ ପ୍ୟାକେଜ୍, ରହିବା ସୁବିଧା ଏବଂ ହୋମଷ୍ଟେ ବିଷୟରେ ସୂଚନା ପ୍ରଦାନ କରାଯିବ । ମହାକୁମ୍ଭ ଯାତ୍ରା କଲେ ଆପଣମାନେ ମଧ୍ୟ ଏହି ସୁବିଧା ଗୁଡ଼ିକର ଲାଭ ଉଠାଇ ପାରିବେ । ଆଉ ହଁ, #ଏକତା କା ମହାକୁମ୍ଭ ରେ ନିଜର ସେଲ୍ଫି ନିଶ୍ଚୟ ଅପଲୋଡ୍ କରିବେ ।
ବନ୍ଧୁଗଣ, ମନ୍ କି ବାତ୍ ଅର୍ଥାତ୍ ଏମକେବିରେ ଏଥର କେଟିବି କଥା । ଅଧିକାଂଶ ବୟସ୍କ ଲୋକେ କେଟିବି ବିଷୟରେ ଜାଣିନଥିବେ । କିନ୍ତୁ, ପିଲାମାନଙ୍କୁ ଥରେ ପଚାରନ୍ତୁ, କେଟିବି ସେମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରେ ସୁପରହିଟ୍ । କେଟିବି ମାନେ କ୍ରିଷ, ତ୍ରିଶ୍ ଆଉ ବାଲ୍ଟିବୟ । ହୁଏତ ଆପଣ ଜାଣିଥିବେ, ଏହା ପିଲାମାନଙ୍କ ମନପସନ୍ଦର ଆନିମେଶନ୍ ସିରିଜ୍ ଏବଂ ଏହାର ନାଁ କେଟିବି-ଭାରତ ହେଁ ହମ୍ । ଏବେ ଏହାର ଦ୍ୱିତୀୟ ସିଜିନ୍ ମଧ୍ୟ ଆସିଗଲାଣି । ଏହି ତିନୋଟି ଆନିମେଶନ୍ କ୍ୟାରେକ୍ଟର ଆମକୁ ଭାରତର ସ୍ୱାଧୀନତା ସଂଗ୍ରାମର ସେହି ନାୟକ-ନାୟିକାମାନଙ୍କ ବିଷୟରେ ଜଣାଉଛନ୍ତି, ଯେଉଁମାନଙ୍କ ସମ୍ପର୍କରେ ଅଧିକ ଆଲୋଚନା ହୁଏ ନାହିଁ । ନିକଟ ଅତୀତରେ ଏହାର ସିଜିନ-ଟୁ ଏକ ନିଆରା ଢଙ୍ଗରେ ଗୋଆରେ ଭାରତୀୟ ଆନ୍ତର୍ଜାତିକ ଚଳଚ୍ଚିତ୍ର ମହୋତ୍ସବରେ ଉଦଘାଟିତ ହେଲା । ସବୁଠାରୁ ସୁନ୍ଦର କଥା ହେଉଛି, ଏହି ସିରିଜ୍ କେବଳ ଅନେକ ଭାରତୀୟ ଭାଷାରେ ନୁହେଁ, ବରଂ ବିଦେଶୀ ଭାଷାରେ ମଧ୍ୟ ପ୍ରସାରିତ ହେଉଛି । ଏହାକୁ ଦୂରଦର୍ଶନ ସହ ଅନ୍ୟ ଓଟିଟି ପ୍ଲାଟଫର୍ମରେ ମଧ୍ୟ ଦେଖାଯାଇପାରିବ ।
ବନ୍ଧୁଗଣ, ଆମ ଆନିମେଶନ୍ ଫିଲ୍ମ, ଚଳଚ୍ଚିତ୍ର, ଟେଲିଭିଜନ ସିରିଆଲ ଗୁଡ଼ିକର ଲୋକପ୍ରିୟତା ଏହା ଦର୍ଶାଉଛି ଯେ, ଭାରତର କ୍ରିଏଟିଭ୍ ଇଣ୍ଡଷ୍ଟ୍ରି ବା ସୃଜନାତ୍ମକ ଶିଳ୍ପରେ କେତେ କ୍ଷମତା ଭରିରହିଛି ! ଏହି ଶିଳ୍ପର କେବଳ ଦେଶର ଉନ୍ନତିରେ ଏକ ବଡ଼ ଯୋଗଦାନ ରହିଛି ତାହା ନୁହେଁ ବରଂ ଆମ ଅର୍ଥନୀତିକୁ ମଧ୍ୟ ଏହା ନୂତନ ଶିଖରକୁ ନେଇଯାଉଛି । ଆମ ଚଳଚ୍ଚିତ୍ର ଏବଂ ମନୋରଞ୍ଜନ ଶିଳ୍ପ ବହୁତ ବିଶାଳ । ଦେଶର ଅନେକ ଭାଷାରେ ଚଳଚ୍ଚିତ୍ର ନିର୍ମାଣ ଚାଲିଛି, କ୍ରିଏଟିଭ୍ କଂଟେଟ୍ ମଧ୍ୟ ସୃଷ୍ଟି କରାଯାଉଛି । ମୁଁ ଆମ ଚଳଚ୍ଚିତ୍ର ଏବଂ ମନୋରଞ୍ଜନ ଶିଳ୍ପ ଜଗତକୁ ଏଥିପାଇଁ ଅଭିନନ୍ଦନ ଜଣାଉଛି, କାରଣ, ଏହା ଏକ ଭାରତ- ଶ୍ରେଷ୍ଠ ଭାରତର ଭାବନାକୁ ସଶକ୍ତ କରିଛି ।
ବନ୍ଧୁଗଣ, ୨୦୨୪ରେ ଆମେ ଚଳଚ୍ଚିତ୍ର ଦୁନିଆର ଅନେକ ମହାନ ବ୍ୟକ୍ତିତ୍ୱମାନଙ୍କର ୧୦୦ତମ ଜୟନ୍ତୀ ପାଳନ କରୁଛୁ । ଏହି ମହାନ କଳାକାରମାନେ ଭାରତୀୟ ସିନେମାକୁ ବିଶ୍ୱସ୍ତରରେ ପରିଚିତ କରାଇଲେ । ରାଜକାପୁରଜୀ ନିଜ ଚଳଚ୍ଚିତ୍ର ମାଧ୍ୟମରେ ବିଶ୍ୱକୁ ଭାରତର Soft Power ସହ ପରିଚିତ କରାଇଲେ । ରଫି ସାହେବଙ୍କ ସ୍ୱରରେ ଏଭଳି କୁହୁକ ଭରି ରହିଥିଲା, ଯାହା ପ୍ରତ୍ୟେକ ହୃଦୟକୁ ସ୍ପର୍ଶ କରୁଥିଲା । ତାଙ୍କ ସ୍ୱର ଅତି ଚମତ୍କାର ଥିଲା । ଭକ୍ତି ଗୀତ ହେଉ, ରୋମାଣ୍ଟିକ୍ ଗୀତ କିମ୍ବା ଦୁଃଖଭରା ଗୀତ - ପ୍ରତ୍ୟେକ ଭାବାବେଗକୁ ସେ ନିଜ ସ୍ୱରରେ ଜୀବନ୍ତ କରିଦେଉଥିଲେ । ଜଣେ କଳାକାର ରୂପରେ ତାଙ୍କର ମହନୀୟତାର ଅନୁମାନ ଏହି କଥାରୁ କରିହେବ ଯେ, ଆଜିର ଯୁବପିଢ଼ି ମଧ୍ୟ ତାଙ୍କ ଗୀତଗୁଡ଼ିକୁ ସେତିକି ମନଧ୍ୟାନ ଦେଇ ଶୁଣୁଛନ୍ତି । ଏହାହିଁ ତ ହେଉଛି କାଳାତୀତ କଳାର ପରିଚୟ । ଅକ୍କିନେନୀ ନାଗେଶ୍ୱର ରାଓ ଗାରୁ ତେଲୁଗୁ ସିନେମାକୁ ନୂତନ ଶିଖରରେ ପହଞ୍ଚାଇଛନ୍ତି । ତାଙ୍କ ଚଳଚ୍ଚିତ୍ର ଗୁଡ଼ିକ ଭାରତୀୟ ପରମ୍ପରା ଏବଂ ମୂଲ୍ୟବୋଧକୁ ଖୁବ ଭଲଭାବେ ପ୍ରତିଫଳିତ କରୁଛି । ତପନ ସିହ୍ନାଙ୍କ କଥାଚିତ୍ର ଗୁଡ଼ିକ ସମାଜକୁ ଏକ ନୂତନ ଦୃଷ୍ଟିକୋଣ ପ୍ରଦାନ କରିଛି । ତାଙ୍କ ଚଳଚ୍ଚିତ୍ର ଗୁଡ଼ିକରେ ସାମାଜିକ ଚେତନା ଏବଂ ରାଷ୍ଟ୍ରୀୟ ଏକତାର ବାର୍ତ୍ତା ରହୁଥିଲା । ଏହି ମନିଷୀମାନଙ୍କ ଜୀବନ ଆମର ସମଗ୍ର ଚଳଚ୍ଚିତ୍ର ଜଗତ ପାଇଁ ପ୍ରେରଣାର ଉତ୍ସ ।
ବନ୍ଧୁଗଣ, ମୁଁ ଆପଣମାନଙ୍କୁ ଆଉ ଗୋଟିଏ ଖୁସି ଖବର ଦେବାକୁ ଚାହୁଁଛି । ଭାରତର ସୃଜନାତ୍ମକ ପ୍ରତିଭା ବା କ୍ରିଏଟିଭ୍ ଟାଲେଣ୍ଟ ବିଶ୍ୱ ଆଗରେ ଉପସ୍ଥାପିତ କରିବାର ଗୋଟିଏ ବଡ଼ ସୁଯୋଗ ଆସୁଛି । ଆସନ୍ତା ବର୍ଷ ଆମ ଦେଶରେ ପ୍ରଥମ ଥର ପାଇଁ ୱାର୍ଲଡ୍ ଅଡିଓ ଭିଜୁଆଲ୍ ଏଂଟରଟେନମେଣ୍ଟ ସମିଟ୍ ଅର୍ଥାତ୍ ୱେଭସ ସମିଟର ଆୟୋଜନ ହେବାକୁ ଯାଉଛି । ଆପଣମାନେ ଦାଭୋସ୍ ବିଷୟରେ ଶୁଣିଥିବେ, ଯେଉଁଠାରେ ବିଶ୍ୱର ଆର୍ଥିକ ଜଗତର ମହାରଥିମାନେ ଏକତ୍ରିତ ହୋଇଥାଆନ୍ତି । ସେହିଭଳି ୱେଭସ ସମିଟରେ ସାରା ବିଶ୍ୱର ଗଣମାଧ୍ୟମ ଏବଂ ମନୋରଞ୍ଜନ ଶିଳ୍ପର ମହାରଥି, ସୃଜନ ଜଗତର ବ୍ୟକ୍ତିବିଶେଷ ଭାରତକୁ ଆସିବେ । ଏହି ସମ୍ମିଳନୀ ଭାରତକୁ ଗ୍ଲୋବାଲ୍ କଣ୍ଟେଟ୍ କ୍ରିଏଶନର ହବ୍ କରିବା ଦିଗରେ ଗୋଟିଏ ଗୁରୁତ୍ୱପୂର୍ଣ୍ଣ ପଦକ୍ଷେପ । ଏହି ସୂଚନା ଦେବାରେ ମୁଁ ଗର୍ବ ଅନୁଭବ କରୁଛି ଯେ, ଏହି ସମ୍ମିଳନୀ ପାଇଁ ପ୍ରସ୍ତୁତିରେ ଆମ ଦେଶର ୟଙ୍ଗ୍ କ୍ରିଏଟର୍ସ ବା ନୂତନ ସୃଜନଶୀଳ ପ୍ରତିଭାମାନେ ଖୁବ ଉତ୍ସାହର ସହିତ ଲାଗି ପଡ଼ିଛନ୍ତି । ଆମେ ୫ ଟ୍ରିଲିଅନ୍ ଡଲାର୍ ଇକୋନମୀ ଦିଗକୁ ଅଗ୍ରସର ହେଉଥିବା ସମୟରେ ଆମ କ୍ରିଏଟର୍ ଇକୋନମୀ ଏକ ନୂତନ ଶକ୍ତି ପ୍ରଦାନ କରୁଛି । ମୁଁ ଭାରତର ସମଗ୍ର ମନୋରଞ୍ଜନ ଏବଂ ସୃଜନାତ୍ମକ ଶିଳ୍ପକୁ ଅନୁରୋଧ କରୁଛି - ଆପଣ ଯୁବ-ପ୍ରତିଭା ହୁଅନ୍ତୁ କିମ୍ବା ପ୍ରତିଷ୍ଠିତ କଳାକାର, ବଲିଉଡ୍ ସହ ଜଡ଼ିତ ହୋଇଥାଆନ୍ତୁ କିମ୍ବା ଆଞ୍ଚଳିକ ସିନେମା ଜଗତ ସହ, ଟେଲିଭିଜନ ଶିଳ୍ପର ପେଶାଗତ ବ୍ୟକ୍ତି ହୋଇଥାଆନ୍ତୁ କିମ୍ବା ଆନିମେଶନ୍ ବିଶେଷଜ୍ଞ, ଗେମିଂ ସହ ଜଡ଼ିତ ଥାଆନ୍ତୁ ବା ଏଂଟରଟେନମେଣ୍ଟ ଟେକ୍ନୋଲଜିର ଇନ୍ନୋଭେଟର୍ ହେଇଥାଆନ୍ତୁ - ଆପଣ ସମସ୍ତେ ୱେଭସ ସମ୍ମିଳନୀରେ ଭାଗ ନିଅନ୍ତୁ ।
ମୋର ପ୍ରିୟ ଦେଶବାସୀଗଣ, ଆପଣ ସମସ୍ତେ ଜାଣନ୍ତି ଯେ ଭାରତୀୟ ସଂସ୍କୃତିର ଆଲୋକ ଆଜି କିଭଳି ପୃଥିବୀର କୋଣ ଅନୁକୋଣରେ ବିଛାଡ଼ି ହୋଇ ପଡ଼ୁଛି । ଆଜି ମୁଁ ଆପଣଙ୍କୁ ତିନି ମହାଦ୍ୱୀପରୁ ଏଭଳି ପ୍ରୟାସଗୁଡ଼ିକ ବିଷୟରେ କହିବି, ଯାହା ଆମ ସାଂସ୍କୃତିକ ଐତିହ୍ୟର ବୈଶ୍ୱିକ ବିସ୍ତୃତିର ସାକ୍ଷୀ । ସେମାନେ ପରସ୍ପରଠାରୁ ବହୁତ ଦୂରରେ, କିନ୍ତୁ ଭାରତକୁ ଜାଣିବାରେ ଓ ଆମ ସଂସ୍କୃତିରୁ ଶିଖିବା କ୍ଷେତ୍ରରେ ସେମାନଙ୍କ ଆଗ୍ରହ ଉଦ୍ଦୀପନା ସମାନ ।
ବନ୍ଧୁଗଣ, ପେଣ୍ଟିଙ୍ଗ୍ସ ଯେତେ ବେଶୀ ରଙ୍ଗୀନ ହୋଇଥାଏ ସେତିକି ସୁନ୍ଦର ଦେଖାଯାଇଥାଏ । ଆପଣଙ୍କ ମଧ୍ୟରୁ ଯେଉଁମାନେ ଟିଭି ମାଧ୍ୟମରେ ‘ମନ୍ କୀ ବାତ୍’ ସହ ଯୋଡ଼ି ହୋଇଛନ୍ତି, ସେମାନେ ଏବେ କିଛି ପେଣ୍ଟିଙ୍ଗ୍ସକୁ ଟିଭିରେ ଦେଖି ମଧ୍ୟ ପାରିବେ । ଏସବୁ ପେଣ୍ଟିଙ୍ଗ୍ସରେ ଆମର ଦେବାଦେବୀ, ନୃତ୍ୟକଳା ଓ ମହାପୁରୁଷମାନଙ୍କୁ ଦେଖି ଆପଣଙ୍କୁ ବହୁତ ଭଲ ଲାଗିବ । ଏଥିରେ ଆପଣଙ୍କୁ ଭାରତରେ ଦେଖାଯାଉଥିବା ଜୀବଜନ୍ତୁଙ୍କଠାରୁ ଆରମ୍ଭ କରି ଆଉ ବହୁତ କିଛି ଦେଖିବାକୁ ମିଳିବ । ଏଥିରେ ତାଜମହଲର ଏକ ସୁନ୍ଦର ଚିତ୍ର ମଧ୍ୟ ସାମିଲ୍ ହୋଇଛି, ଯାହାକୁ ୧୩ ବର୍ଷର ଝିଅଟିଏ ଆଙ୍କିଛି । ଆପଣଙ୍କୁ ଏହା ଜାଣି ଆଶ୍ଚର୍ଯ୍ୟ ଲାଗିବ ଯେ ଏହି ଦିବ୍ୟାଙ୍ଗ ଝିଅଟି ନିଜ ପାଟିରେ ଏହି ଚିତ୍ରଟିକୁ ତିଆରି କରିଛି । ସବୁଠୁ ବଡ଼କଥା ହେଲା ଯେ ଏହାର ଚିତ୍ରଶିଳ୍ପୀ ଜଣକ ଭାରତର ନୁହନ୍ତି, ସେ ଇଜିପ୍ଟର ଜଣେ ବିଦ୍ୟାର୍ଥୀ । କିଛି ସପ୍ତାହ ତଳେ ଇଜିପ୍ଟର ପ୍ରାୟ ୨୩ ହଜାର ଛାତ୍ରଛାତ୍ରୀ ଏକ ପେଣ୍ଟିଂ ପ୍ରତିଯୋଗିତାରେ ଭାଗ ନେଇଥିଲେ । ସେଠାରେ ସେମାନଙ୍କୁ ଭାରତର ସଂସ୍କୃତି ଓ ଦୁଇ ଦେଶର ଐତିହାସିକ ସମ୍ପର୍କକୁ ବର୍ଣ୍ଣନା କରୁଥିବା ପେଣ୍ଟିଂ କରିବାର ଥିଲା । ମୁଁ ଏହି ପ୍ରତିଯୋଗିତାରେ ଭାଗ ନେଇଥିବା ସମସ୍ତ ଯୁବକଯୁବତୀଙ୍କୁ ପ୍ରଶଂସା କରୁଛି । ସେମାନଙ୍କ ସୃଜନଶୀଳତାର ଯେତେ ପ୍ରଶଂସା କଲେ ମଧ୍ୟ ତାହା କମ୍ ହେବ ।
ବନ୍ଧୁଗଣ, ଦକ୍ଷିଣ ଆମେରିକାର ଏକ ଦେଶ ହେଉଛି ପାରାଗୁଏ । ସେଠାରେ ରହୁଥିବା ଭାରତୀୟଙ୍କ ସଂଖ୍ୟା ହଜାରେରୁ ବେଶି ହେବନାହିଁ । ପାରାଗୁଏରେ ଏକ ଚମତ୍କାର ପ୍ରୟାସ ହେଉଛି । ସେଠାକାର ଭାରତୀୟ ଦୂତାବାସରେ ଏରିକା ହ୍ୟୁବର ମାଗଣା ଆୟୁର୍ବେଦ ପରାମର୍ଶ ଦିଅନ୍ତି । ଆୟୁର୍ବେଦ ପରାମର୍ଶ ନେବାପାଇଁ ଏବେ ତାଙ୍କ ନିକଟକୁ ବହୁ ସ୍ଥାନୀୟ ଲୋକ ଆସୁଛନ୍ତି । ଏରିକା ହ୍ୟୁବର୍ ଇଂଜିନିୟରିଂ ପଢ଼ିଛନ୍ତି ସତ, କିନ୍ତୁ ତାଙ୍କର ମନ ଆୟୁର୍ବେଦରେ ରହିଛି । ସେ ଆୟୁର୍ବେଦ ସହ ସଂପୃକ୍ତ ପାଠ୍ୟକ୍ରମ ପଢ଼ିଥିଲେ ଓ ସମୟକ୍ରମେ ସେ ସେଥିରେ ପାରଙ୍ଗମ ହୋଇପାରିଲେ ।
ବନ୍ଧୁଗଣ, ଏହା ଆମ ପାଇଁ ବହୁତ ଗର୍ବର କଥା ଯେ ପୃଥିବୀର ସବୁଠୁ ପ୍ରାଚୀନ ଭାଷା ତାମିଲ ଏବଂ ପ୍ରତ୍ୟେକ ଭାରତୀୟ ଏଥିପାଇଁ ଗର୍ବିତ । ବିଶ୍ୱର ବହୁ ଦେଶରେ ଏହାକୁ ଶିଖୁଥିବା ଲୋକଙ୍କ ସଂଖ୍ୟା କ୍ରମାଗତ ବଢ଼ିଚାଲିଛି । ଗତ ମାସର ଶେଷରୁ ଫିଜିରେ ଭାରତ ସରକାରଙ୍କ ସହଯୋଗରେ ତାମିଲ୍ ଶିକ୍ଷା କାର୍ଯ୍ୟକ୍ରମ ଆରମ୍ଭ ହୋଇଛି । ଗତ ୮୦ ବର୍ଷ ମଧ୍ୟରେ ପ୍ରଥମ ଥର ପାଇଁ ଫିଜିରେ ତାଲିମପ୍ରାପ୍ତ ଶିକ୍ଷକ ତାମିଲ୍ ଶିଖାଉଛନ୍ତି । ଆଜି ଫିଜିର ଛାତ୍ରଛାତ୍ରୀମାନେ ତାମିଲ ଭାଷା ଓ ସଂସ୍କୃତିକୁ ଶିଖିବା ପାଇଁ ଆଗ୍ରହୀ ଥିବା ଜାଣି ମୋତେ ବହୁତ ଖୁସି ଲାଗିଛି ।
ବନ୍ଧୁଗଣ, ଏ କଥା, ଏ ଘଟଣା କେବଳ ସଫଳତାର କାହାଣୀ ନୁହେଁ । ଏହା ଆମ ସାଂସ୍କୃତିକ ଐତିହ୍ୟର ଗାଥା ମଧ୍ୟ । ଏହି ଉଦାହରଣ ଆମକୁ ବହୁତ ଗର୍ବିତ କରିଥାଏ । କଳାରୁ ଆୟୁର୍ବେଦ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ଓ ଭାଷାରୁ ସଂଗୀତ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ଭାରତରେ ଏତେ ବିଷୟ ଅଛି, ଯାହା ପୃଥିବୀ ସାରା ବ୍ୟାପି ଚାଲିଛି ।
ବନ୍ଧୁଗଣ, ଏ ଶୀତ ଋତୁରେ ସମଗ୍ର ଦେଶରେ ବିଭିନ୍ନ କ୍ରୀଡ଼ା ଓ ଫିଟ୍ନେସ୍କୁ ନେଇ ବିଭିନ୍ନ କାର୍ଯ୍ୟକ୍ରମ ଆୟୋଜିତ ହେଉଛି । ମୁଁ ଖୁସି ଯେ ଲୋକେ ଫିଟ୍ନେସ୍କୁ ନିଜ ଦିନଚର୍ଯ୍ୟାରେ ସାମିଲ୍ କରୁଛନ୍ତି । କାଶ୍ମୀରରେ ସ୍କିଙ୍ଗ୍ ଠାରୁ ଗୁଜରାଟର ଗୁଡ଼ିଉଡ଼ା ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ, ସବୁ ସ୍ଥାନରେ ଖେଳର ଉତ୍ସାହ ଦେଖିବାକୁ ମିଳୁଛି । #SundayOnCycle I #CyclingTuesday ଭଳି ଅଭିଯାନ ଦ୍ୱାରା ସାଇକଲ ଚାଳନାକୁ ପ୍ରୋତ୍ସାହନ ମିଳୁଛି ।
ବନ୍ଧୁଗଣ, ମୁଁ ଆପଣଙ୍କୁ ଏଭଳି ଏକ ନିଆରା କଥା କହିବାକୁ ଚାହୁଁଛି ଯାହା ଆମ ଦେଶରେ ଆସିଥିବା ପରିବର୍ତ୍ତନ ଓ ଯୁବବନ୍ଧୁମାନଙ୍କର ଉତ୍ସାହ ଉଦ୍ଦୀପନାର ପ୍ରତୀକ । ଆପଣ ଜାଣନ୍ତି କି ଆମର ବସ୍ତରରେ ଏକ ଅନନ୍ୟ ଅଲିମ୍ପିକ୍ ଆରମ୍ଭ ହୋଇଛି ! ଆଜ୍ଞା ହଁ, ପ୍ରଥମ ଥର ଆୟୋଜିତ ବସ୍ତର ଅଲିମ୍ପିକ୍ ଦ୍ୱାରା ବସ୍ତରରେ ଏକ ନୂଆ ବିପ୍ଳବ ଜନ୍ମ ନେଉଛି । ମୋ ପାଇଁ ବହୁତ ଖୁସିର କଥା ଯେ ବସ୍ତର ଅଲିମ୍ପିକର ସ୍ୱପ୍ନ ସାକାର ହୋଇଛି । ଆପଣଙ୍କୁ ମଧ୍ୟ ଜାଣିବା ପରେ ବହୁତ ଖୁସି ଲାଗିବ ଯେ ଏହା ଏଭଳି ଏକ ଅଞ୍ଚଳରେ ହେଉଛି, ଯାହା ଏକଦା ମାଓବାଦୀ ହିଂସାଗ୍ରସ୍ତ ଅଞ୍ଚଳ ଥିଲା । ବସ୍ତର ଅଲିମ୍ପିକର ମାସ୍କଟ୍ ହେଉଛି ‘ବଣ ମଇଁଷି’ ଓ ‘ପାହାଡ଼ୀ ମଇନା’ । ଏଥିରେ ବସ୍ତରର ସମୃଦ୍ଧ ସଂସ୍କୃତିର ଝଲକ ଦେଖିବାକୁ ମିଳିଥାଏ । ଏହି ବସ୍ତର କ୍ରୀଡ଼ା ମହାକୁମ୍ଭର ମୂଳ ମନ୍ତ୍ର ହେଉଛି-
‘କର୍ସାୟ ତା ବସ୍ତର୍ ବରସାଏ ତା ବସ୍ତର୍’ ଅର୍ଥାତ ‘ଖେଳିବ ବସ୍ତର୍-ଜିତିବ ବସ୍ତର୍’ ।
ପ୍ରଥମ ଥର ହିଁ ବସ୍ତର ଅଲିମ୍ପିକ୍ରେ ୭ଟି ଜିଲାର ଏକ ଲକ୍ଷ ୬୫ ହଜାର ଖେଳାଳି ଭାଗ ନେଇଛନ୍ତି । ଏହା କେବଳ ଏକ ପରିସଂଖ୍ୟାନ ନୁହେଁ- ଏହା ଆମ ଯୁବକଯୁବତୀଙ୍କର ସଂକଳ୍ପର ଗୌରବ ଗାଥା ବହନ କରେ । ଆଥ୍ଲେଟିକ୍ସ, ତୀରଚାଳନା, ବ୍ୟାଡ଼ମିଣ୍ଟନ, ଫୁଟବଲ, ହକି, ଭାରୋତ୍ତୋଳନ, କରାଟେ, କବାଡ଼ି, ଖୋ ଖୋ ଓ ଭଲିବଲ୍- ପ୍ରତ୍ୟେକ ଖେଳରେ ଆମର ଯୁବପିଢ଼ି ନିଜ ପ୍ରତିଭାର ପତାକା ଉଡ଼ାଇଛନ୍ତି । କାରୀ କଶ୍ୟପ୍ ଜୀଙ୍କ କାହାଣୀ ମୋତେ ଖୁବ୍ ପ୍ରେରଣା ଦେଇଥାଏ । ଏକ ଛୋଟିଆ ଗାଁରୁ ଆସିଥିବା କାରୀ ଜୀ ତୀରଚାଳନାରେ ରୌପ୍ୟପଦକ ଜିତିଛନ୍ତି । ସେ କହନ୍ତି, “ବସ୍ତର ଅଲିମ୍ପିକ୍ ମୋତେ କେବଳ ଖେଳ ପଡ଼ିଆ ଦେଇନାହିଁ, ଜୀବନରେ ଆଗକୁ ବଢ଼ିବାର ସୁଯୋଗ ଦେଇଛି ।” ସୁକ୍ମା-ର ପାୟଲ୍ କୱାସି ଜୀଙ୍କ କଥା ବେଶ୍ ପ୍ରେରଣାଦାୟକ । ଜାଭଲିନ୍ ଥ୍ରୋରେ ସ୍ୱର୍ଣ୍ଣପଦକ ହାସଲ କରିଥିବା ପାୟଲ୍ ଜୀ କହନ୍ତି “ଅନୁଶାସନ ଓ କଠିନ ପରିଶ୍ରମ ଦ୍ୱାରା ଯେ କୌଣସି ଲକ୍ଷ୍ୟ ହାସଲ କରିବା ସମ୍ଭବ” । ସୁକମା-ର ଦୋରନାପାଲ୍-ର ପୁନେମ୍ ସନ୍ନା ଜୀଙ୍କ କଥା ତ ନୂଆ ଭାରତର ପ୍ରେରଣାଦାୟକ କାହାଣୀ । ଏକଦା ନକ୍ସଲଙ୍କ ଦ୍ୱାରା ପ୍ରଭାବିତ ପୁନେମ୍ ଜୀ ଆଜି ହ୍ୱିଲ୍ଚେୟାରରେ ଦୌଡ଼ି ପଦକ ଜିତୁଛନ୍ତି । ତାଙ୍କର ସାହସ ଓ ଧୈର୍ଯ୍ୟ ସଭିଙ୍କ ପାଇଁ ବଡ଼ ପ୍ରେରଣା । କୋଡ଼ାଗାଓଁର ତୀରନ୍ଦାଜ ରଂଜୁ ସୋରୀ ଜୀଙ୍କୁ ‘ବସ୍ତର ୟୁଥ୍ ଆଇକନ’ ଭାବେ ବଛାଯାଇଛି । ତାଙ୍କର କହିବା କଥା ହେଲା- ବସ୍ତର ଅଲିମ୍ପିକ୍ ଉପାନ୍ତ ଅଞ୍ଚଳର ଯୁବକଯୁବତୀଙ୍କୁ ଜାତୀୟ ମଞ୍ଚ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ପହଞ୍ଚିବାର ସୁଯୋଗ ଦେଉଛି ।
ବନ୍ଧୁଗଣ, ବସ୍ତର ଅଲିମ୍ପିକ୍ କେବଳ ଏକ କ୍ରୀଡ଼ା ଆୟୋଜନ ନୁହେଁ । ଏହା ଏଭଳି ଏକ ମଞ୍ଚ, ଯେଉଁଠି ବିକାଶ ଓ କ୍ରୀଡ଼ାର ସଂଗମ ହେଉଛି; ଯେଉଁଠି ଆମର ଯୁବପିଢ଼ି ନିଜ ପ୍ରତିଭାକୁ ଆହୁରି ଚମକାଉଛନ୍ତି ଓ ଏକ ନୂଆ ଭାରତର ନିର୍ମାଣ କରୁଛନ୍ତି । ମୁଁ ଆପଣମାନଙ୍କୁ ସମସ୍ତଙ୍କୁ ନିବେଦନ କରୁଛି ଯେ
-ନିଜ ଅଞ୍ଚଳରେ ଏଭଳି କ୍ରୀଡ଼ା ଆୟୋଜନ ପାଇଁ ପ୍ରୋତ୍ସାହନ ଦିଅନ୍ତୁ
- #ଖେଲେଗା ଭାରତ୍-ଜିତେଗା ଭାରତ୍ ଜରିଆରେ ନିଜ ଅଞ୍ଚଳର କ୍ରୀଡ଼ା ପ୍ରତିଭାଙ୍କ କାହାଣୀକୁ ଅନ୍ୟମାନଙ୍କ ସହ ବାଣ୍ଟନ୍ତୁ
-ସ୍ଥାନୀୟ କ୍ରୀଡ଼ା ପ୍ରତିଭାମାନଙ୍କୁ ଆଗକୁ ବଢ଼ିବାର ସୁଯୋଗ ଦିଅନ୍ତୁ
ମନେ ରଖନ୍ତୁ, କ୍ରୀଡ଼ା ଦ୍ୱାରା କେବଳ ଶାରୀରିକ ବିକାଶ ହୁଏ ନାହିଁ, ବରଂ ଏହି ସ୍ପୋର୍ଟସ୍ମେନ୍ ସ୍ପିରିଟ୍ ସମାଜକୁ ଯୋଡ଼ିବାର ମଧ୍ୟ ଏକ ସଶକ୍ତ ମାଧ୍ୟମ । ତେଣୁ ବହୁତ ଖେଳନ୍ତୁ-ଖୁସି ରୁହନ୍ତୁ ।
ମୋର ପ୍ରିୟ ଦେଶବାସୀଗଣ, ଭାରତର ଦୁଇଟି ବଡ଼ ଉପଲବ୍ଧି ଆଜି ବିଶ୍ୱର ଧ୍ୟାନ ଆକର୍ଷଣ କରୁଛି । ଏହାକୁ ଶୁଣି ଆପଣ ମଧ୍ୟ ନିଜକୁ ଗର୍ବିତ ଅନୁଭବ କରିବେ । ଏହି ଦୁଇଟି ସଫଳତା ସ୍ୱାସ୍ଥ୍ୟ କ୍ଷେତ୍ରରେ ମିଳିଛି । ପ୍ରଥମ ଉପଲବ୍ଧି ମିଳିଛି ମେଲେରିଆ ବିରୋଧରେ ଲଢ଼େଇରେ । ମେଲେରିଆ ରୋଗ ଚାରି ହଜାର ବର୍ଷ ଧରି ମଣିଷ ପାଇଁ ଏକ ବଡ଼ ସମସ୍ୟା ହୋଇ ରହିଆସିଛି । ସ୍ୱାଧୀନତା ସମୟରେ ବି ଏହା ସବୁଠୁ ବଡ଼ ସମସ୍ୟା ମଧ୍ୟରୁ ଥିଲା ଅନ୍ୟତମ । ମାସକରୁ ପାଞ୍ଚ ବର୍ଷ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ଶିଶୁଙ୍କର ଜୀବନ ନେଉଥିବା ସମସ୍ତ ସଂକ୍ରାମକ ରୋଗ ମଧ୍ୟରେ ମେଲେରିଆର ସ୍ଥାନ ତୃତୀୟ । ଆଜି ମୁଁ ସନ୍ତୋଷର ସହ କହିପାରିବି ଯେ ଦେଶବାସୀ ମିଳିମିଶି ଏହି ସମସ୍ୟାର ଦୃଢ଼ ମୁକାବିଲା କରିଛନ୍ତି । ବିଶ୍ୱ ସ୍ୱାସ୍ଥ୍ୟ ସଙ୍ଗଠନ - WHOର ରିପୋର୍ଟ କହେ ଯେ ଭାରତରେ ୨୦୧୫ରୁ ୨୦୨୩ ମଧ୍ୟରେ ମେଲେରିଆ ଏବଂ ଏହାଦ୍ୱାରା ହୋଇଥିବା ମୃତ୍ୟୁ ଶତକଡ଼ା ୮୦ ଭାଗ କମିଯାଇଛି । ଏହା କୌଣସି ଛୋଟ ଉପଲବଧି ନୁହେଁ । ସବୁଠାରୁ ବଡ଼କଥା ହେଲା ଏହି ସଫଳତା ଜନସାଧାରଣଙ୍କ ସହଯୋଗ ଯୋଗୁଁ ମିଳିଛି । ଭାରତର କୋଣ ଅନୁକୋଣରୁ, ପ୍ରତ୍ୟେକ ଜିଲ୍ଲାରୁ କେହି ନା କେହି ଏହି ଅଭିଯାନରେ ଅଂଶଗ୍ରହଣ କରିଛନ୍ତି । ଏହି ଚାରିବର୍ଷ ପୂର୍ବେ ଆସାମର ଜୋରହଟ୍ ଜିଲ୍ଲାର ଚା’ବଗିଚାମାନଙ୍କରେ ମେଲେରିଆ ଲୋକମାନଙ୍କର ଦୁଃଶ୍ଚିନ୍ତାର ଏକ ବଡ଼ କାରଣ ହୋଇଥିଲା । କିନ୍ତୁ ଏବେ ଏହାର ମୂଳୋତ୍ପାଟନ ପାଇଁ ଚା’ବଗିଚାରେ ରହୁଥିବା ଲୋକମାନେ ଏକଜୁଟ୍ ହେଲେ, ଫଳରେ ଏଥିରେ ବହୁ ପରିମାଣରେ ସଫଳତା ମିଳିବାକୁ ଲାଗିଲା । ତାଙ୍କର ଏହି ପ୍ରୟାସରେ ସେମାନେ ଟେକ୍ନୋଲୋଜି ସହିତ ସାମାଜିକ ଗଣମାଧ୍ୟମର ମଧ୍ୟ ବହୁଳ ବ୍ୟବହାର କଲେ । ସେହିପରି ହରିଆନାର କୁରୁକ୍ଷେତ୍ର ଜିଲ୍ଲା ମେଲେରିଆ ନିୟନ୍ତ୍ରଣ ଦିଗରେ ଏକ ଆଦର୍ଶ ପ୍ରଦର୍ଶନ କଲା । ଏଠାରେ ମେଲେରିଆର ମନିଟରିଂ ପାଇଁ ଜନଭାଗିଦାରୀ ଅତ୍ୟନ୍ତ ସଫଳ ହେଲା । ପଥପ୍ରାନ୍ତ ନାଟକ ତଥା ରେଡ଼ିଓ ମାଧ୍ୟମରେ ଏହିଭଳି ସନ୍ଦେଶ ଉପରେ ଜୋର୍ ଦିଆଗଲା । ଯାହା ଫଳରେ ମଶାମାନଙ୍କର ପ୍ରଜନନ କମ୍ କରିବାରେ ଖୁବ୍ ସହାୟତା ମିଳିଲା । ସାରା ଦେଶରେ ଏହିଭଳି ପ୍ରୟାସ କରିବା ଦ୍ୱାରା ଆମେ ମେଲେରିଆ ବିରୁଦ୍ଧରେ ଲଢ଼େଇକୁ ତୀବ୍ର କରିପାରିଛୁ ।
ବନ୍ଧୁଗଣ, ନିଜର ସଚେତନତା ଏବଂ ସଂକଳ୍ପଶକ୍ତି ଦ୍ୱାରା ଆମେ କ’ଣ କ’ଣ ହାସଲ କରିପାରିବା ତା’ର ଦ୍ୱିତୀୟ ଉଦାହରଣ ହେଲା କ୍ୟାନସର ସହିତ ଲଢ଼େଇ । ଦୁନିଆର ପ୍ରସିଦ୍ଧ ମେଡ଼ିକାଲ ପତ୍ରିକା ‘LANCET’ର ଅଧ୍ୟୟନ ବାସ୍ତବରେ ଆମ ଭିତରେ ବହୁତ ଆଶା ଜାଗ୍ରତ କରେ । ଏହି ପତ୍ରିକା ଅନୁସାରେ ଏବେ ଭାରତରେ ଠିକ୍ ସମୟରେ କ୍ୟାନସରର ଚିକିତ୍ସାର ସମ୍ଭାବନା ଖୁବ୍ ବଢ଼ିଯାଇଛି । ଠିକ୍ ସମୟରେ ଚିକିତ୍ସାର ଅର୍ଥ କ୍ୟାନସର ରୋଗୀର ଚିକିତ୍ସା ୩୦ ଦିନ ଭିତରେ ଆରମ୍ଭ ହୋଇଯିବା ଦରକାର । ଏ ଦିଗରେ ‘ଆୟୁଷ୍ମାନ୍ ଭାରତ ଯୋଜନା’ ଅତି ମହତ୍ତ୍ୱପୂର୍ଣ୍ଣ ଭୂମିକା ଗ୍ରହଣ କରିଛି । ଏହି ଯୋଜନା ଯୋଗୁଁ ଶତକଡ଼ା ୯୦ ଭାଗ କ୍ୟାନସର ରୋଗୀ ଠିକ୍ ସମୟରେ ନିଜର ଚିକିତ୍ସା ଆରମ୍ଭ କରିପାରିଛନ୍ତି । ଏହା ସମ୍ଭବ ହେବାର କାରଣ ପ୍ରଥମେ ପଇସା ଅଭାବରେ ଗରିବ ରୋଗୀ କ୍ୟାନସରର ପରୀକ୍ଷା ଏବଂ ତା’ର ଚିକିତ୍ସା ପାଇଁ ପଛଘୁଞ୍ଚା ଦେଉଥିଲେ । ଏବେ ଆୟୁଷ୍ମାନ ଭାରତ ଯୋଜନା ସେମାନଙ୍କ ପାଇଁ ବଡ଼ ସମ୍ବଳ ହୋଇଛି । ଏବେ ସେମାନେ ନିଜର ଚିକିତ୍ସା ପାଇଁ ଆଗେଇ ଆସୁଛନ୍ତି । ‘ଆୟୁଷ୍ମାନ ଭାରତ ଯୋଜନା’ କ୍ୟାନସର ଚିକିତ୍ସା କ୍ଷେତ୍ରରେ ଥିବା ଆର୍ଥିକ ଅସୁବିଧାକୁ ବହୁ ପରିମାଣରେ କମ୍ କରିପାରିଛି । ଆହୁରି ଭଲ କଥା ହେଲା ଆଜିକାଲି ଲୋକମାନେ ଠିକ ସମୟରେ କ୍ୟାନସର ଚିକିତ୍ସା ପାଇଁ ବେଶ୍ ସଚେତନ । ଏହି ସଫଳତା ପାଇଁ ଆମର ସ୍ୱାସ୍ଥ୍ୟସେବା ପ୍ରଣାଳୀ, ଡାକ୍ତର, ନର୍ସ ତଥା ଟେକ୍ନିକାଲ କର୍ମଚାରୀମାନଙ୍କର ଯେତିକି ଭୂମିକା ରହିଛି ମୋ ନାଗରିକ ଭାଇଭଉଣୀମାନଙ୍କର ମଧ୍ୟ ସେତିକି ମହତ୍ତ୍ୱପୂର୍ଣ୍ଣ ଭୂମିକା ରହିଛି । ସମସ୍ତଙ୍କ ପ୍ରୟାସ ଦ୍ୱାରା କ୍ୟାନସରକୁ ହରାଇବାର ସଂକଳ୍ପ ଅଧିକ ଦୃଢ଼ ହୋଇଛି । ଯେଉଁମାନେ ସଚେତନତା ସୃଷ୍ଟି କରିବାରେ ବିଶେଷ ଯୋଗଦାନ ଦେଇଛନ୍ତି, ଏହି ସଫଳତାର ଶ୍ରେୟ ସେମାନଙ୍କର । କ୍ୟାନସରକୁ ମୁକାବିଲା କରିବାର ଗୋଟିଏ ମନ୍ତ୍ର ହେଲା Awareness, Action ଏବଂ Assurance । Awareness ଅର୍ଥାତ୍ କ୍ୟାନସର୍ ଲକ୍ଷଣ ପ୍ରତି ସଚେତନତା, Action ଅର୍ଥାତ୍ ଠିକ୍ ସମୟରେ ପରୀକ୍ଷା ଏବଂ ଚିକିତ୍ସା, Assurance ଅର୍ଥାତ୍ ରୋଗୀମାନଙ୍କ ପାଇଁ ସମସ୍ତ ସହାୟତା ଉପଲବ୍ଧ କରାଇବାର ବିଶ୍ୱାସ । ଆସନ୍ତୁ ଆମେ ସମସ୍ତେ ମିଶି କ୍ୟାନସର ବିରୁଦ୍ଧରେ ଏହି ଲଢ଼େଇକୁ ଦ୍ରୁତଗତିରେ ଆଗେଇନେବା ଏବଂ ଅଧିକରୁ ଅଧିକ ରୋଗୀଙ୍କୁ ସାହାଯ୍ୟ କରିବା ।
ମୋର ପ୍ରିୟ ଦେଶବାସୀଗଣ, ଆଜି ମୁଁ ଆପଣଙ୍କୁ ଓଡ଼ିଶାର କଳାହାଣ୍ଡି ଜିଲ୍ଲାର ଏକ ଏଭଳି ପ୍ରୟାସ ବିଷୟରେ କହିବାକୁ ଚାହୁଁଛି, ଯାହା କମ୍ ପାଣି ଏବଂ କମ୍ ସଂସାଧନ ସତ୍ତ୍ୱେ ସଫଳତାର ନୂତନ କାହାଣୀ ଲେଖୁଛି । ଏହା ହେଉଛି କଳାହାଣ୍ଡିର ‘ସବଜି କ୍ରାନ୍ତି’ ବା ପରିବା ବିପ୍ଳବ । ସମୟ ଥିଲା ଯେଉଁଠି କୃଷକ ପଳାୟନ କରିବାକୁ ବାଧ୍ୟ ହେଉଥିଲା ଆଜି ସେଇଠି କଳାହାଣ୍ଡିର ଗୋଲମୁଣ୍ଡା ବ୍ଲକ୍ ଏକ ପରିବା ଭଣ୍ଡାରରେ ପରିଣତ ହୋଇଛି । ଏ ପରିବର୍ତ୍ତନ କିପରି ଆସିଲା ? ଏହାର ଆରମ୍ଭ ମାତ୍ର ୧୦ ଜଣ କୃଷକଙ୍କ ଗୋଟିଏ ଛୋଟିଆ ସମୂହ ଦ୍ୱାରା ହୋଇଥିଲା । ସେମାନେ ମିଳିମିଶି ଗୋଟିଏ FPO ବା କିଷାନ୍ ଉତ୍ପାଦକ ସଂଗଠନ ସ୍ଥାପନ କଲେ, ଚାଷରେ ଆଧୁନିକ କୌଶଳ ପ୍ରୟୋଗ କରିବା ଆରମ୍ଭ କଲେ ଏବଂ ଆଜି ସେମାନଙ୍କର ଏହି FPO କୋଟି କୋଟି ଟଙ୍କାର କାରବାର କରୁଛି । ଆଜି ୨୦୦ରୁ ଅଧିକ କୃଷକ ଏହି FPO ସହ ଯୋଡ଼ି ହୋଇଛନ୍ତି, ଯେଉଁମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରେ ୪୫ ଜଣ ମହିଳା ଚାଷୀ ମଧ୍ୟ ଅଛନ୍ତି । ଏହି ଲୋକମାନେ ମିଶି ୨୦୦ ଏକର ଜମିରେ ବିଲାତି ବାଇଗଣ ଚାଷ କରୁଛନ୍ତି ଏବଂ ୧୫୦ ଏକର ଜମିରେ କଲରା ଉତ୍ପାଦନ କରୁଛନ୍ତି । ଏବେ ଏହି FPOର ବାର୍ଷିକ କାରବାର ରାଶି ଦେଢ଼ କୋଟିରୁ ଅଧିକ ହୋଇଗଲାଣି । ଆଜି କଳାହାଣ୍ଡିର ପରିବା ଖାଲି ଓଡ଼ିଶାରେ ନୁହେଁ, ବରଂ ଅନ୍ୟ ରାଜ୍ୟମାନଙ୍କରେ ମଧ୍ୟ ପହଞ୍ଚୁଛି ଏବଂ ସେଠିକାର କୃଷକମାନେ ଏବେ ଆଳୁ ଏବଂ ପିଆଜ ଚାଷର ନୂତନ ପ୍ରଣାଳୀ ଶିଖୁଛନ୍ତି ।
ବନ୍ଧୁଗଣ, କଳାହାଣ୍ଡିର ଏହି ସଫଳତା ଆମକୁ ଶିଖଉଛି ଯେ ସଂକଳ୍ପ, ଶକ୍ତି ଏବଂ ସାମୂହିକ ପ୍ରଚେଷ୍ଟା ଦ୍ୱାରା କ’ଣ କରାଯାଇ ନ ପାରେ । ମୁଁ ଆପଣ ସମସ୍ତଙ୍କୁ ଅନୁରୋଧ କରୁଛି :-
- ନିଜ ଅଞ୍ଚଳରେ FPO ଗଠନକୁ ଉତ୍ସାହିତ କରନ୍ତୁ ।
- କୃଷକ ଉତ୍ପାଦକ ସଂଗଠନଗୁଡ଼ିକ ସହିତ ଯୋଡ଼ିହୁଅନ୍ତୁ ଏବଂ ସେଗୁଡ଼ିକୁ ମଜଭୁତ୍ କରନ୍ତୁ ।
ମନେରଖନ୍ତୁ – ଛୋଟିଆ ପ୍ରୟାସରୁ ମଧ୍ୟ ବଡ଼ ପରିବର୍ତ୍ତନ ସମ୍ଭବ ହୁଏ । ଖାଲି ଆମର ଦୃଢ଼ ସଂକଳ୍ପ ଏବଂ ସାମୂହିକ ଭାବନାର ଆବଶ୍ୟକତା ରହିଛି ।
ବନ୍ଧୁଗଣ, ଆଜିର ‘ମନ୍ କି ବାତ୍’ରେ ଆମେ ଶୁଣିଲେ, କେମିତି ଆମ ଭାରତ ବିବିଧତାରେ ଏକତା ସହ ଆଗକୁ ବଢ଼ୁଛି । ସେ ଖେଳପଡ଼ିଆ ହେଉ ବା ବିଜ୍ଞାନ, ସ୍ୱାସ୍ଥ୍ୟ ହେଉ ଅବା ଶିକ୍ଷା - ପ୍ରତ୍ୟେକ କ୍ଷେତ୍ରରେ ଭାରତ ନୂତନ ଶିଖରକୁ ଛୁଇଁ ଚାଲିଛି । ଆମେମାନେ ଗୋଟିଏ ପରିବାର ଭଳି ମିଳିମିଶି ପ୍ରତ୍ୟେକ ଆହ୍ୱାନର ସାମ୍ନା କଲେ ଏବଂ ସଫଳ ହେଲେ । ୨୦୧୪ରୁ ଆରମ୍ଭ ହୋଇଥିବା ‘ମନ୍ କି ବାତ୍’ର ୧୧୬ତମ ଅଧ୍ୟାୟରେ ମୁଁ ଦେଖିଛି ଯେ ‘ମନ୍ କି ବାତ୍’ ଦେଶର ସାମୂହିକ ଶକ୍ତିର ଗୋଟିଏ ଜୀବନ୍ତ ଦସ୍ତାବିଜ ହୋଇଯାଇଛି । ଆପଣମାନେ ସମସ୍ତେ ଏହି କାର୍ଯ୍ୟକ୍ରମକୁ ଆପଣାର କରିଛନ୍ତି । ପ୍ରତିମାସରେ ଆପଣମାନେ ନିଜର ବିଚାର ଏବଂ ପ୍ରୟାସ ସମ୍ବନ୍ଧରେ ମୋତେ ଜଣାଇଛନ୍ତି । କେତେବେଳେ କେଉଁ Young Innovatorର ଚିନ୍ତାଧାରା ପ୍ରଭାବିତ କରିଛି ତ କେତେବେଳେ କୌଣସି ଝିଅର ସଫଳତା ଆମକୁ ଗୌରବାନ୍ୱିତ କରିଛି । ଏହା ଆପଣ ସମସ୍ତଙ୍କର ସହଭାଗିତା ଯାହା ଦେଶର କୋଣ ଅନୁକୋଣରୁ ସକରାତ୍ମକ ଶକ୍ତିକୁ ଏକାଠି କରିଛି । ‘ମନ୍ କି ବାତ୍’ ଏହି ସକରାତ୍ମକ ଶକ୍ତିର ବିସ୍ତାରର ମଞ୍ଚ ହୋଇପାରିଛି । ଏବେ ୨୦୨୫ ପାଖେଇ ଆସିଲାଣି । ଆସନ୍ତା ବର୍ଷ ‘ମନ୍ କି ବାତ୍’ ମାଧ୍ୟମରେ ଆମେ ଆହୁରି ପ୍ରେରଣାଦାୟୀ ପ୍ରୟାସଗୁଡ଼ିକୁ ସାମିଲ୍ କରିବା । ମୋର ବିଶ୍ୱାସ ଯେ ଦେଶବାସୀଙ୍କ ସକାରାତ୍ମକ ଭାବନା ଏବଂ ନୂତନ ଚିନ୍ତାଧାରା ଦ୍ୱାରା ଭାରତ ଏକ ନୂତନ ଶିଖରକୁ ଛୁଇଁପାରିବ । ଆପଣ ନିଜ ଆଖପାଖର ନିଆରା ପ୍ରୟାସ ଗୁଡ଼ିକୁ #Mannkibaatରେ ପଠାନ୍ତୁ । ମୁଁ ଜାଣିଛି ଯେ ଆସନ୍ତା ବର୍ଷର ପ୍ରତ୍ୟେକ ‘ମନ୍ କି ବାତ୍’ରେ ଆମ ପାଖରେ ପରସ୍ପରକୁ ଜଣେଇବା ପାଇଁ ବହୁତ କିଛି ଥିବ । ଆପଣମାନଙ୍କୁ ୨୦୨୫ର ବହୁତ ବହୁତ ଶୁଭକାମନା । ସୁସ୍ଥ ରୁହନ୍ତୁ ଖୁସି ରୁହନ୍ତୁ, Fit India Movementରେ ଆପଣ ମଧ୍ୟ ଯୋଗଦିଅନ୍ତୁ ଏବଂ ନିଜକୁ ସୁସ୍ଥ ରଖନ୍ତୁ । ଜୀବନରେ ପ୍ରଗତି କରନ୍ତୁ । ବହୁତ ବହୁତ ଧନ୍ୟବାଦ ।
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Kids' favourite KTB - Krish, Trish and Baltiboy is back with Season 2. It celebrates the unsung heroes of India's freedom struggle.#MannKiBaat pic.twitter.com/LaJNd0Zmqf
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In 2024, we celebrate the 100th birth anniversary of many great film personalities.#MannKiBaat pic.twitter.com/Gj5Zre11FB
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WAVES Summit is a key step in making India a hub for global content creation.#MannKiBaat pic.twitter.com/VNWSaS125c
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The radiance of Indian culture is spreading across the world.#MannKiBaat pic.twitter.com/Oznb4pMJ48
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Bastar Olympics showcases the spirit of youth and their talent.#MannKiBaat pic.twitter.com/uIAHq226MU
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Powered by the collective effort of people, India has made remarkable progress in the fight against malaria.#MannKiBaat pic.twitter.com/SJHymYvsgV
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Ayushman Bharat Yojana has greatly reduced financial burdens in cancer treatment.#MannKiBaat pic.twitter.com/VvUOiMBZzv
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Odisha's Kalahandi has become a vegetable hub. Farmers formed an FPO and embraced modern farming methods.#MannKiBaat pic.twitter.com/cRnq7FdBzS
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