Shri Narendra Modi addressing Valedictory Function of Vibrant Gujarat 2013

Published By : Admin | January 13, 2013 | 15:41 IST

मुझे लगता है कि मैं सबसे पहले एक महत्वपूर्ण कार्य पूरा कर दूँ और बाद में सारी बातें बताऊँ। मैं यहाँ खड़ा हुआ हूँ आपको इन्वीटेशन देने के लिए। आप लिख लीजिए, 11 जनवरी 2015, सातवीं वाइब्रेंट समिट के लिए मैं आपको निमंत्रण देता हूँ। ऐसा ही निमंत्रण जब मैंने 2011 में दिया था तो दूसरे दिन हमारे मीडिया के मित्रों ने मेरी पिटाई की थी कि अभी चुनाव बाकी हैं और मोदी 2013 का इन्वीटेशन कैसे दे रहे हैं..! इस बार ऐसा संकट नहीं है, तो मैं आप सबको बड़े उमंग और उत्साह के साथ, नए सपनों के साथ, नई उम्मीदों के साथ फिर एक बार वाइब्रेंट गुजरात समिट में आने का निमंत्रण देता हूँ और मुझे विश्वास है कि आप आवश्य आएंगे।

मित्रों, ये जो वाइब्रेंट समिट का आपने अनुभव किया, देखा, सुना... विश्व भर के जितने भी लोग आते हैं उन सब के लिए एक अजूबा है। मित्रों, इन्टरनेशनल कॉन्फरेंसिस में मैं भी गया हूँ, सेमिनार्स में मैं भी गया हूँ, लेकिन इतने बड़े स्केल पर, इतनी माइन्यूट डिटेल के साथ, इतनी विविधताओं के साथ, इतनी सारी मल्टीपल एक्टीविटीस् को जोड़ कर के शायद ही विश्व में कोइ इवेंट आयोजित होता होगा। इस काम को सफल करने में अनेक लोगों ने प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से मदद की है, जिम्मेवारी उठाई है, परिश्रम किया है। मैं इस मंच से इसे सफल बनाने वाले सभी लोगों का हृदय से धन्यवाद करता हूँ, गुजरात की जनता की तरफ से इस कार्य को सफल बनाने में जुड़े हुए सभी का अभिनंदन करता हूँ..! भाइयों-बहनों, इस इवेंट में अनेक पहलुओं पर लोगों का ध्यान जाता है, लेकिन एक बात की और भी नजर करने की आवश्यकता है। करीब 121 देशों के लोग यहां आए, ये पूरा नजरिया उन्होंने देखा। पल भर के लिए कल्पना कीजिए मित्रों, ये 121 देशों के 2100-2200 लोग जब अपने देश जाएंगे, अपने लोगों से बात करेंगे तो क्या कहेंगे..? यही कहेंगे कि मैं हिन्दुस्तान गया था, मैं इन्डिया गया था, मैं भारत गया था..! इसका मतलब सीधा-सीधा है मित्रों, ये इवेंट से दुनिया के 121 से अधिक देशों में हम एक संदेश पहुंचाने में सफल हुए हैं कि ये भी एक हिन्दुस्तान है, हिन्दुस्तान का यह भी एक सामर्थ्य है..! मित्रों, हिन्दुस्तान के हमारे एक इवेंट ने 121 देशों में नए एम्बेसेडर्स को जन्म दिया है और ये हमारे देश के नए एम्बेसेडर्स, इनकी चमड़ी का रंग कोई भी क्यों ना हो, उनकी भाषा कोई भी क्यों ना हो, लेकिन जब कभी हिन्दुस्तान का जिक्र आएगा, मैं विश्वास से कहता हूँ ये 121 देशों के लोग हमारे लिए कुछ ना कुछ अच्छा बोलेंगे, बोलेंगे और बोलेंगे..! एक देश के नागरिक के लिए इससे बड़े गर्व की बात क्या हो सकती है मित्रों कि इतने देशों में इतने गौरवपूर्ण रूप से हमारे देश की चर्चा हो, हमारे देश की तारीफ हो, हमारे देश की अच्छाइयों की बात हो..! मित्रों, हर हिन्दुस्तानी के लिए ये सीना तान कर के याद करने वाली घटना घटती है और इसलिए, परिश्रम भले ही गुजरात के लोगों ने किया होगा, धरती भले ही गुजरात की होगी, इवेंट के साथ भले ही गुजरात का नाम जुड़ा होगा, लेकिन ये भारत की आन, बान, शान को बढ़ाने वाली घटना है, इस बात को हमें स्वीकृत करना होगा।

भाइयों-बहनों, मैं देख रहा था कि जो जीवन में कुछ करना चाहते हैं, जिनके अपने कुछ सपने हैं, साधन भले ही सीमित होंगे लेकिन ऊंची उडान का जिनका इरादा है, कुछ नया करके दिखाने की जिनकी इच्छा है, ऐसे हजारों नौजवान इस समिट के साथ प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हैं। इन सबको कभी दुनिया के हर देशों में जाने का अवसर नहीं मिलने वाला है और जब तक अवसर मिले तब तक इन्हें एक्सपोजर नहीं मिलने वाला है। मित्रों, इस इवेंट के कारण, इस एक्जीबिशन के कारण, दुनिया के इतने देशों के लोगों से बात करने के कारण, हमारे देश के, हमारे गुजरात के, जो उभरते हुए एन्ट्रप्रेनर्स हैं, जो उभरती हुई पीढ़ी है, उस पीढ़ी का एक विश्वास पैदा होता है कि हाँ यार, दुनिया इतनी बड़ी है, इतना सारा है तो चलिए हम भी किसी छोर को हाथ लगा लें, हम भी उस दिशा में आगे बढ़ जाएं, ये विश्वास पैदा करता है। मित्रों, कभी हम स्वीकार करें या ना करें, हम मानें या ना मानें, लेकिन हर व्यक्ति के अंदर एक फियर हमेशा अस्तित्व रखता है। मैं हूँ, आप हो, यहां बैठे हुए हर एक के मन में होता है। और वो फियर क्या होता है..? अपने आप में एक अननोन फियर होता है। आप अगर पहली बार मुंबई जाते हैं तो आपके मन में एक फियर रहता है। आपके लिए मुंबई अननोन है तो फियर रहता है कि कैसा होगा, कहाँ जाऊँगा, किसको मिलूँगा, कैसे शुरू करुँगा... आप के मन के अंदर एक छुपा हुआ भय रहता है। यह बहुत स्वाभाविक है। मित्रों, इस इवेंट के कारण दुनिया के इतने देशों को देखना, मिलना, समझना, सुनना... इसके कारण मेरे देश की, मेरे राज्य की जो नई पीढ़ी है उनके लिए अननोन फियर के जो सेन्टीमेंट्स हैं वो अपने आप खत्म हो जाता है और उनके अंदर विश्वास का बीज बो देता है। अगर वो यहाँ किसी न्यूजीलैंड के व्यक्ति को मिला है तो न्यूजीलैंड जाने से पहले उसको न्यूजीलैंड के विषय में विश्वास पैदा हो जाता है, अननेान फियर उसके दिल में होता नहीं है। मित्रों, एक मनोवैज्ञानिक परिणाम होता है और उस मनोवैज्ञानिक परिणाम की अपनी एक ताकत होती है। मैं नहीं मानता कि जो रुपयों-पैसों के तराजू को लेकर बैठे हैं उनके लिए इन बातों को समझना संभव होगा..! शायद मेरी दस समिट होने के बाद कई लोग ऐसे होंगे जिनको समझदारी शुरू हो जाएगी।

मित्रों, कोई कंपनी, कोई राज्य अरबों-खरबों रूपया खर्च करके पी.आर. एजेंसी हायर कर लें, दुनिया के अंदर वो कंपनी या कोई स्टेट अपनी ब्रांडिंग के लिए कोशिश करें, मैं दावे से कहता हूँ मित्रों, इतने कम समय में गुजरात ने जो अपना ब्रांडिंग किया है, शायद दुनिया की दसों ऐसी कंपनियां इक्कठी हों, ये स्थिति पैदा नहीं कर सकती है। और कैसे हुआ है..? वो इसलिए हुआ है कि हमने प्रारंभ से एक मंत्र लिया। लोग भिन्न-भिन्न माध्यम से गुजरात के विषय में जानते थे। मैँ पहली बार जब 2003 में लंदन गया था, समिट को सफल करने के लिए मैं लोगों से मिलने गया था। उधर आस्ट्रेलिया की तरफ भी गया था। लोगों को मैं बता रहा था कि आप गुजरात आइए। तब लोगों के मन एक जिज्ञासा थी और पूछते थे कि गुजरात कहाँ है..? मुझे कहना पड़ता था कि मुंबई से नार्थ में एक घंटे का फ्लाईट है। आज लोग कहते हैं कि मुंबई जाना है तो बस गुजरात के पास ही है। मित्रों, ये चीजें सामान्य नहीं है। इसके लिए सोच समझ करके हमने पुरूषार्थ किया है। और तब, मैं जब पहली बार गया था, उस समय हिन्दुस्तान की परंपरा क्या थी..? परंपरा ये थी कि हिन्दुस्तान के राजनेता विदेशों में जाते थे, निकलने से पहले अपने स्टेट में प्रेस कान्फ्रेंस करते थे, मुख्यमंत्री जाते थे और कहते थे कि हम इन्वेस्टमेंट के लिए जा रहे हैं। दुनिया के किसी देश में जाते थे, दो-चार एम.ओ.यू. करते थे, फिर वापिस आते थे और दुनिया को बताते थे कि हम इतने एम.ओ.यू. करके आएं हैं और उस टूर को सफल माना जाता था। और फिर कभी मीडिया उनको पूछता नहीं था कि भाई, आप वो जा कर आए थे उसका क्या हुआ..? उस समय का जमाना वैसा था। मित्रों, 2003 के पहले ईश्वर ने हमें क्या समझ दी होगी, क्या हमें ऐसा विचार दिया होगा, मैं ईश्वर का आभारी हूँ कि मैंने डे वन से काम किया। मैंने कहा कि हम दुनिया के देशों में जा कर के लोगों को समझाएंगे और बात करेंगे, लेकिन हम वो काम नहीं करेंगे जो आम तौर पर हिन्दुस्तान की सरकारें करती हैं। मित्रों, यहाँ मैं किसी की आलोचना नहीं कर रहा हूँ। मैं एक दृष्टिकोण में बदलाव कैसे आता है वो दिखाना चाहता हूँ। और मैं जब विदेशों में गया तो लोग मुझे कहते थे कि आप क्या चाहते हैं..? मैं कहता था कि मैं कुछ नहीं चाहता हूँ, मैं बस इतना ही चाहता हूँ कि सिर्फ एक बार गुजरात आईए। और मैं कहता था, फील गुजरात..! इतनी छोटी सी बात मैं कह कर आया हूँ दुनिया को, “फील गुजरात”..! आज मित्रों, जो लोग मेरे गुजरात की धरती पर आते हैं और मैं मेरी मिट्टी की कसम खा कर के कहता हूँ, इस मिट्टी ताकत इतनी जबर्दस्त है, हमारे पुरखों ने इतना परिश्रम करके संजाई हुई ये ऐसी मिट्टी है कि यहां आने वाला वाला हर व्यक्ति उसकी सुगंध से अभिभूत हो करके दुनिया के देशों में जाकर के अपनी बात बताता है। मित्रों, कल मंच पर से पूछा गया था कि पता नहीं गुजरात की मिट्टी में ऐसा क्या है..! ये सवाल बहुत स्वाभाविक है, हर किसी के मन में उठता है। पहले नहीं उठता था, अब तो उठता ही है। भाइयों-बहनों, इस मिट्टी में एक पवित्रता है और इस मिट्टी में हमारे पुरखों का पसीना है, इस धरती को हमारे पुरखों ने अपने खुद के पसीने से सींचा है और तब जा कर के ये धरती उर्वरा बनी है। और इस धरती के अन्न को खाने वाला भी उसी उर्वरा और शक्ति का भरा हुआ होता है जो दुनिया के साथ आंख से आंख मिला कर बात करने का सामर्थ्य रखता है।

भाइयों-बहनों, हम विकास की नई ऊंचाइयों को पार करना चाहते हैं। अगर हम जगत को जानेंगे नहीं, जगत को समझेंगे नहीं, बदलती हुई दुनिया को पहचानेंगे नहीं, हम उनसे बात नहीं करेंगे तो हम एक कुंए के मेंढक की तरह अपनी दुनिया में मस्त रहेंगे और हो सकता है हमारी जिंदगी पूरी हो जाए तो भी हमें आनंद ही आनंद रहेगा कि बहुत कुछ हुआ। लेकिन जब बदलते हुए विश्व को देखेंगे, जहां समृद्घि पहुंच चुकी है उस विश्व को देखेंगे तो हमारे भीतर भी होगा कि अरे यार, ये तो यहाँ पहुंच गए, हमें तो पहुंचना अभी बहुत बाकी है..! और तब जाकर के दौड़ने की इच्छा जगती है, चलने का मन करता है, नए सपने जगते हैं और परिश्रम करने की पराकाष्ठा होती है और इसलिए परिवर्तन आने की संभावना पैदा होती है। और इसलिए भाइयों-बहनों, समय की माँग है कि हम बदले हुए युग में किसी भी विषय में विश्व से अलग नहीं रह सकते। अपने आप को दुनिया से अलग थलग करके, एक कोने में बैठ कर के हम अपनी दुनिया को आगे बढ़ाने के सपनों को कभी पूरा नहीं कर सकते। और इसलिए, बदलते हुए विश्व को समझने का अवसर इस प्रकार की समिट से मिलता है। मित्रों, मुझे खुशी है, गुजरात के सामान्य परिवार के लोग लाखों की तादात में ये एक्जीबिशन देखने के लिए पिछले पाँच दिन से कतार में खड़े हैं। क्यों..? उनको तो कुछ लेना-बेचना नहीं है, वो यहां जो देखेंगे उससे तो उनकी दुनिया बदल जाने वाली नहीं है। लेकिन हमने एक अर्ज पैदा की है। और ये हमारी सबसे बड़ी सफलता है कि मेरे राज्य के सामान्य से सामान्य नागरिक के भीतर हमने एक अर्ज पैदा की है, उसका भी मन करता है कि चलो यार, क्या अच्छा है, जरा देखें तो सही..! उसको लगता है कि हो सकता है आज देखेंगे तो कल पाएंगे भी सही..! मित्रों, एक ट्रांसफोर्मेशन है, एक बदलाव है, उस बदलाव को हमें समझने की आवश्यकता है। और इस समिट के माध्यम से मैं मेरे गुजरात की एक बहुत बड़ी शख्सियत और शक्ति, चाहे गाँव हो, तहसील हो, जिला हो, वहाँ पर समाज जीवन को संचालन करने वाली एक शक्ति रहती है, उस शक्ति के अंदर समिट के माध्यम से मैं नए सपनों को संजोने का, नई दिशा को पकड़ने का, एक नया आयामों की ओर जाने का एक नया अनफोल्डमेंट कर रहा हूँ। ये समिट उस अनफोल्डमेंट का कारण बन रही है। ये बहुत बड़ा बदलाव आ रहा है। मित्रों, किसी भी गुजराती को गर्व होता है। आगरा में 200 देशों के लोग ताजमहल देख कर जाएंगे तो भी आगरा का आदमी वो गौरव अनुभव नहीं करता है, क्योंकि ताजमहल ने बनाने वाले ने बनाया, ईश्वर की इच्छा थी कि उस महाशय का आगरा में जन्म हुआ और आने वाले को ये पता चला की ये दुनिया की एक अजायबी है तो चलो मैं भी एक फोटो खिचवां कर आ जाऊँ..! अपनापन महसूस नहीं होता है। लेकिन इस धरती पर अपने पसीने से कोशिश कर कर के दुनिया के 121 देशों के लोग आएं तो हमारे सब लोगों को लगता है कि यार, मेरे मेहमान हैं, ये मेरे अपने हैं..!

मित्रों, मैं एक और बात बताना चाहता हूँ। ये बात भी जो मैं कह रहा हूँ ये बहुत लोगों की समझ के बाहर की चीज है, वो समझेंगे उनके लिए मैं समझ छोड़ कर रखता हूँ। मित्रों, ये 121 देशों के लोगों का यहाँ आना, हर वाइब्रेंट समिट में आने वाले लोगों की संख्या भी काफी है। अनेक देश के लोग हैं जो हर वाईब्रेंट समिट में आते हैं। मित्रों, बार-बार यहाँ आने से इस धरती के प्रति उनको भी लगाव हो रहा है, उनको भी अपनापन महसूस हो रहा है। आपने देखा होगा, इतने सारे देशों के लोग, हर किसी की कोशिश है ‘नमस्ते’ बोलने की, हर किसी की कोशिश है ‘केम छो’ बोलने की..! वो अपने आप को इस मिट्टी के साथ जोड़ने की कोशिश कर रहा है। यहाँ की परंपरा और यहाँ की संस्कृति से अपने आप को जोड़ने का उसमें उमंग है। इसका मतलब ये हुआ मित्रों, जिसको हम किसी थर्मामीटर से नाप नहीं सकते, किसी पैरामीटर से नाप नहीं सकते ऐसी एक घटना आकार ले रही है। और वो घटना क्या है? दुनिया के अनेक लोगों का गुजरात के साथ बॉन्डिंग हो रहा है। ये मेरी बात आने वाले दिनों में सत्य हो कर के सिद्घ होगी और मैं साफ मानता हूँ कि ये जो बॉन्डिंग है, वो अमूल्य है। इसका कोई हिसाब-किताब नहीं लगा सकते। और मैं विश्वास से कहता हूँ कि दिस बॉन्डिंग इज़ स्ट्रॉंगर दैन ब्रान्डिंग..! गुजरात के ब्रांड की जितनी ताकत है मित्रों, उससे ज्यादा गुजरात के साथ जो बॉन्डिंग हो रहा है, वो पिढ़ियां तक रहने वाला काम इस धरती पर हो रहा है। गुजरात में कोई भी घटना घटेगी, अच्छी हो या बुरी, आप विश्वास किजीए मित्रों, इन सब के देशों में गुजरात की चर्चा आवश्य होगी। अच्छी-बुरी घटना के साथ उनका भी मन जुड़ा होगा। मित्रों, एक अर्थ में गुजरात का एक विश्वरूप खड़ा हो रहा है। ऍक्स्पैन्शन ऑफ गुजरात, एक नया विश्व रूप गुजरात का खड़ा हो रहा है। मित्रों, इतने कम समय में एक राज्य का विश्वरूप बनना ये अपने आप में बहुत बड़ी सिद्घि है। और इस सिद्घि को नापने के लिए आज की प्रचलिए जो परंपराएं हैं, मान्यताएं हैं वो कभी काम नहीं आएंगी। एक दूसरे नजरिए से देखना पड़ेगा। भाइयों-बहनों, दुनिया के इतने सारे देश के लोग, हमारे उत्तर प्रदेश के व्यक्ति को भी गुजराती खाना खाना हो तो पूछता है कि यार, उसमें गुड़ तो नहीं डाला है ना..! दाल मीठी तो नहीं होगी ना..! उसके मन में सवाल रहता है। मित्रों, जिनको एक घंटा नॉन-वेज के बिना चलता नहीं है ऐसे 121 देश के नागरिक दो दिन अपनी परंपराएं छोड़ कर के हमारी गुजरात की जो भी वेजिटेरियन डिश है उसका मजा ले रहे हैं। मित्रों, ये छोटी चीज है क्या..?

मित्रों, इस समिट में मैंने कहा था कि मेरे दिमाग में हमारे देश की युवा शक्ति है, मेरे राज्य का युवा धन है। हम लंबे अर्से तक इंतजार नहीं कर सकते मित्रों, हमें हमारे राज्य के युवकों को सज्ज करना होगा। बदलते हुए विश्व के अंदर अपनी ताकत से सिर ऊंचा करके निकल पाएं ये स्थिति हमारे नौजवानों के लिए पैदा करनी होगी। और ये हम सबका दायित्व है, सरकार के नाते दायित्व है, समाज के नाते दायित्व है, शिक्षा संस्थाओं के नाते दायित्व है, हमें उन्हें सज्ज करना होगा। लेकिन एक-दो एक-दो प्रयासों से ड्रैस्टिक चेंज नहीं आता है, मित्रों। छुट-पुट प्रयासों से इम्पेक्ट क्रियेट नहीं होता है। इसके लिए तो सामूहिक रूप से, बड़े फलक पर और बड़े एग्रेसिव मूड में उस विराटता के दर्शन करवाने होंगे, तब जाकर के बदलाव आता है। मित्रों, कभी-कभी हमारे शास्त्रों से हम भी कुछ सीख सकते हैं। छोटे से कृष्ण ने मिट्टी खाई। मैं नहीं मानता हूँ कि मक्खन खाने वाले व्यक्ति को मिट्टी खाने का शौक होगा..! लेकिन कोई ना कोई तो रहस्य होगा, तभी तो मिट्टी खाई होगी। और मिट्टी छुप कर के नहीं खाई थी, माँ यशोदा देख ले उस प्रकार से खाई थी, माँ यशोदा को गुस्सा आए उस प्रकार से मिट्टी खाई थी और तब जाकर के माँ यशोदा ने मुंह खोला और पूरे विश्वरूप का दर्शन हुआ और तब जा कर के यशेादा ने कृष्ण की ताकत को स्वीकार किया था। मित्रों, मनुष्य का स्वाभाव है..! यशोदा को भी शक्ति का साक्षात्कार नहीं हुआ तब तक उसे शक्ति की अनुभूति नहीं हुई थी, इसलिए हमारी इस नई पीढ़ी को भी हमें शक्ति का साक्षात्कार करवाना होगा। और उस मूल विचार को लेकर के हमने इस बार नॉलेज को केन्द्र में रखते हुए विश्व के अनेक देशों से गणमान्य यूनिवर्सिटीज को बुलाया। मित्रों, मैं पूरे विश्वास के साथ कहता हूँ, आज तक पूरी दुनिया में कहीं पर भी दुनिया के अलग-अलग देशों की 145 यूनिवर्सिटीज एक रूफ के नीचे इक्कठी हुई हो और उस राज्य के लोग उस 145 लीडिंग यूनिवर्सिटीज के साथ बैठ कर के, दो दिन संवाद करके अपने राज्य के युवा जगत को कहाँ ले जाना उसकी ब्लू प्रिंट तैयार करते हो, ये घटना दुनिया में कहीं नहीं हुई है, दोस्तों। मुझे गर्व है वो घटना मेरे गुजरात में घट गई, इस वाइब्रेंट गुजरात के साथ घटी..! मित्रों, 145 युनिवर्सिटीज का एक साथ आना और गुजरात आज जहाँ है उसको ध्यान में रख के चर्चा कर के आगे बढ़ने के सपने संजोना और रोड मैप तैयार करना, ये अपने आप में एक बहुत बड़ी शुभ शुरूआत है।

मित्रों, हम इस बात को मान कर के चलते हैं कि भारत 21 वीं सदी का नेतृत्व करेगा। ये सदइच्छा हम सब के दिलों में पड़ी है। और विश्वास भी इसलिए पैदा होता है कि 21 वीं सदी ज्ञान की सदी है और जब-जब मानव जात ने ज्ञान युग में प्रवेश किया है, हमेशा-हमेशा हिन्दुस्तान ने विश्व का नेतृत्व किया है। ये सदभाग्य है कि हमारे रहते हुए हमने उस ज्ञान युग में प्रवेश किया है और 21 वीं सदी हिन्दुस्तान की होने की संभावना है। अगर ये पिठीका तैयार है तो हम लोगों का दायित्व बनता है कि विश्व ने ज्ञान की जिस ऊंचाइयों को प्राप्त किया है, उस ज्ञान कि ऊँचाइयों को छूने का सामर्थ्य हमारी युवा पीढ़ी में आना चाहिए, हमारे एज्यूकेशन इंस्टीट्यूशन में आना चाहिए, हमारी संस्थाओं में उस प्रकार का नेचर बनना चाहिए। और उसके लिए एक प्रयास इस वाइब्रेंट समिट के साथ किया। मित्रों, पूरे विश्व को हम बूढ़ा होता हुआ देखते हैं। अपनी आँखों से देख रहे हैं कि विश्व बहुत तेजी से बुढ़ापे की ओर जा रहा है। दुनिया के कई देश हैं जहां अगर चौराहे पर खड़े हो कर घंटे भर लोगों को आते-जाते हुए देखोगे तो बड़ी मुश्किल से 2-5% नौजवान दिखेंगे, ज्यादातर बूढ़े लोग जा रहे होंगे..! आज विश्व में एक अकेला हिन्दुस्तान है जो विश्व का सबसे युवा देश है। 65 प्रतिशत, मेरे देश के 65% नागरिक 35 वर्ष से कम आयु के हैं..! जिस देश के पास इतनी बड़ी युवा शक्ति हो, ज्ञान का युग हो और जब हम स्वामी विवेकानंद की 150 वीं जयंती मना रहे हैं और आज जब स्वामी विवेकानंद का 150 वां जन्म दिन है, उस पल जब हम बात कर रहे हैं तब, क्या हम लोगों का दायित्व नहीं है कि हम सब लोग मिल कर के 150 साल जिस व्यक्ति के जन्म को हुए हैं और जिसने आज से 125 साल पहले सपना देखा था। 125 साल बीत गए, क्या कभी हमने सोचा है कि विवेकानंद जैसे महापुरुष के सपने क्यों अधूरे रहे..? क्या कमी रह गई..? उन्होंने सपना देखा था और विश्वास से कहा था कि मैं मेरी आंखों के सामने देख रहा हूँ कि मेरी भारत माता जगदगुरू के स्थान पर विराजमान है, दैविप्यमान तस्वीर मैं मेरी भारत माँ की देख रहा हूँ, ये स्वामी विवेकानंद ने कहा था। मित्रों, क्या समय की माँग नहीं है कि जब हम स्वामी विवेकानंद जी के 150 साल मना रहे हैं, तो उनके सपनों को साकार करने के लिए हम अपने आप को सज्ज करें, प्रतिबद्घ करें, प्रतिज्ञित करें और पुरूषार्थ की पराकाष्ठा कर-कर के इस भारत माता को जगदगुरू के स्थान पर विराजमान करने का सपना लेकर के आगे बढ़ें। जिस देश के पास इतनी बड़ी युवा शक्ति हो वो देश क्या कुछ नहीं कर सकता है..! उसकी भुजाओं में सामर्थ्य हो तो जगत की सारी आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए हम अपने आप को सज्ज क्यों नहीं कर सकते हैं?

मित्रों, इतने बड़े सपने को पूरा करना भी बहुत छोटी सी शुरूआत से संभव होता है। और हमने बल दिया है स्किल डेवलपमेंट पर। इस पूरे समिट में हम उस बात पर बल दे रहे हैं कि सारी दुनिया को वर्क-फोर्स की जरूरत है, स्किल्ड मैन पावर की जरूरत है। आज मैं यू.के. के लोगों के साथ बात कर रहा था, ब्रिटिश डेलिगेशन के साथ। वो मुझे पूछ रहे थे कि आपको क्या आवश्यकता है। मैंने उनको अलग पूछा, मैंने कहा कि आप बताइए, आपको दस साल के बाद किन चीजों की जरूरत पड़ेगी इसका हिसाब लगाया है क्या..? मैंने कहा हिसाब लगाइए और हमें बताइए, हम उसकी पूर्ति के लिए अभी से अपने आप को तैयार करेंगे। दुनिया को नर्सिस चाहिए, दुनिया को टीचर्स चाहिए, दुनिया को लेबरर्स चाहिए... और मित्रों, मेरा सपना है। अभी भी मैं कहता हूँ कि कुछ बातें हैं जो कुछ लोगों के पल्ले पड़ना संभव नहीं है, दोस्तों..! लोगों को लगता होगा कि यहां से मारूति एक्सपोर्ट हो, लोगों को लगता होगा कि यहाँ से फोर्ड एक्सपोर्ट हो, लोगों को लगता होगा यहाँ से उनकी प्रोडक्ट एक्सपोर्ट हो... मित्रों, मेरा तो सपना ये है कि मेरे यहाँ से टीचर्स एक्सपोर्ट हों..! मित्रों, एक व्यापारी जब दुनिया में जाता है तो डॉलर और पाऊंड जमा करता है, लेकिन एक टीचर जाता है तो पूरी एक पीढ़ी पर कब्जा करता है..! ये ताकत होती है टीचर की..! और जब विश्व में माँग है और हमारे पास नौजवान हैं, तो क्यों ना इन दोनों का मेल करके हम दुनिया में हमारे टीचर्स को पहुँचाएं..! विश्व की आवश्यकता भी पूरी होगी और हमारे नौजवानों का भाग्य भी बदलेगा। मित्रों, पूरी सोच बदलने की आवश्यकता है और उस सोच को बदलने की दिशा में इस समिट के माध्यम से समाज और राष्ट्र के अंदर किस प्रकार के बदलाव आने चाहिए वो दुनिया के साथ मिल बैठ कर के हम सोच कर के आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं। और मित्रों, इसी अर्थ में मैं इस इवेंट को सबसे सफल इवेंट मैं मानता हूँ।

2003 में हमने जब पहली बार वाइब्रेंट समिट की तो गुजरात के व्यापारी और उद्योगकार, हिन्दुस्तान के व्यापारी और उद्योगकार ये सब मिल के जितनी संख्या आई थी, 2013 में उससे चार गुना ज्यादा विदेश की संख्या आई है। उस समय सब मिला कर के जितने थे... हमने छोटे से टागोर हॉल में किया था और कहीं मीडिया की नजर में हमारी बुराई ना हो इसलिए मैंने कहा था कि पीछे यार, कुछ लोग बैठ जाना ताकि भरा हुआ दिखाई दे..! क्योंकि पहली बार प्रयोग करता था, लोग सवाल उठा रहे थे कि लोग गुजरात क्यों आएंगे..? उस नकारात्मक चीज में से ये रास्ता खोजने की कोशिश की और आज 2013 हम देख रहे हैं मित्रों, क्या हाल है..! मैं तो कहता हूँ मित्रों, कि मेरा ये वाइब्रेंट गुजरात ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट, ये कन्सेप्ट डेवलप न हुआ होता तो शायद ये महात्मा मंदिर भी ना बनता। इतनी बड़ी व्यवस्थाएं खड़ी क्यों हो रही हैं..? ये व्यवस्थाएं इसलिए खड़ी हो रही हैं क्योंकि हमें लग रहा है कि हम विश्व के साथ कदम से कदम मिला कर चलने के लिए अपने आप को सज्ज कर रहें हैं। मित्रों, यहाँ जो व्यवस्था में नौजवान लगे हैं वे कॉलेज स्टूडेंस हैं, स्कूल स्टूडेंटस हैं, एक हफ्ते के लिए यहां उनकी स्पेशल ट्रेनिंग भी हो रही है, देख रहे हैं। मित्रों, उनकी आंखों में कॉन्फिडेंस देखिए आप, इतना बड़ा इवेंट उन्होंने सिर्फ देखा है। किसी को कहा इधर जाइए, किसी को कहा यहां बैठिए... यही काम किया होगा। इतने मात्र से व्यवस्था से जुड़े हुए लोगों की आँखों में इतनी चमक आई है, तो मित्रों, मेरे पूरे गुजरात में जो लोग इस निर्णय प्रक्रिया में शामिल होतें हैं उनके जीवन में कितना बड़ा बदलाव आएगा वो हम सीधा-सीधा देख सकते हैं, बाहर कुछ खोजने की जरूरत नहीं है, मित्रों।

भाइयों-बहनों, हमें गुजरात को नई-नई ऊंचाइयों पर ले जाना है। हमने पिछले वर्ष एक छोटा सा प्रयोग किया। वो प्रयोग था एग्रीकल्चर सैक्टर के लिए। कभी मैंने देखा था कि इजराइल के अंदर जब एग्रीकल्चर फेयर होता है, तो मेरे गुजरात से कम से कम दो हजार किसान हजारों रुपया खर्च करके इजराइल के एग्रीकल्चर फेयर को देखने के लिए जाते हैं। कुछ कॉ-आपरेटिव वाले भी जाते हैं, लेकिन उनको तो खर्च का प्रबंध वहाँ से हो जाता है, लेकिन सामान्य किसान भी जाता है..! और तब मैंने सोचा कि मेरे किसानों के लिए भी मुझे कुछ करना चाहिए। हमने 2012 में पहली बार दुनिया के देश के लोगों को, एग्रो टेक्नोलॉजी क्षेत्र के लोगों को यहाँ बुलाया। इसी महात्मा मंदिर में ऐसा ही बड़ा मैंने किसानों का कार्यक्रम किया था और इतनी ही शान से किया था। प्रारंभ था, हिन्दुस्तान के करीब 14 राज्य उसमें शरीक होने के लिए आए थे। और उसकी सफलता को देख कर मित्रों, हमने निर्णय किया है कि हम जैसे वाइब्रेंट गुजरात ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट करते हैं, वैसे ही 2014 में, फिर ’16 में फिर ’18 में एग्रीकल्चर सेक्टर में टेक्नोलॉजी कैसे आए, फूड प्रोसेसिंग कैसे हो, वैल्यू एडिशन कैसे हो... इन सारे विषयों को मैं मेरे गाँव तक ले जाना चाहता हूँ, किसानों तक ले जाना चाहता हूँ और सारी दुनिया को मैं यहाँ लाना चाहता हूँ, मित्रों। मेरा किसान देखे, उसको समझे..! हम उस दिशा में प्रयास करना चाहते हैं। मित्रों, हमने विकास की नई ऊचाइयों को पार किया है उसमें आज मैं एस.एम.ईज के साथ बैठा था। और एक बात हमारे एस.एम.ई. सैक्टर में आज ध्यान में आई है कि हम अपनी कंपनी में जो भी उत्पादन करते हैं, घरेलू बाजार तक सोच कर के ना करें, हम दुनिया के बाजार में कदम रखना चाहते हैं, उस दिशा में हमारी छोटी-छोटी कंपनियाँ भी जाएँ। और मित्रों, सब संभव है। ये कोई चीन का ही ठेका नहीं है कि वो माल पैदा करे और हमारे बाजार में डाल दे। हम में भी दम है, हम दुनिया के बाजार में जा करके, सीना तान के माल बेच सकते हैं। मित्रों, ये मिजाज होना चाहिए। वरना कभी कभी मैंने देखा है कि जब व्यापारी मिलते हैं तो साब, क्या करें, व्यापार ही खत्म हो गया है। मैंने कहा, क्यों..? अरे छोड़ों साहब, पहले तो अम्ब्रेला बेचता था, लेकिन अब तो चाइना से इतनी बड़ी मात्रा में अम्ब्रेला आता है कि मेरा अम्ब्रेला बिकता नहीं है। अरे, रोते क्यों रहते हो, भाई..? हम चाइना के बाजार में जाकर अम्ब्रेला बेचने का मूड बनाएं, हम पूरी दुनिया को बेच सकते हैं, मित्रों..! मैं ये वातावरण बदलना चाहता हूँ और इसलिए मैं कोशिश कर रहा हूँ। हम एग्रीकल्चर सेक्टर में भी उसी प्रकार से जाना चाहते हैं।

मित्रों, आज अभी देखा, कनाडा से एक्सीलेंसी मिनीस्टर यहाँ आए हुए हैं, उन्होंने कहा कि वो यहाँ कनेडा का जो ऑफिस है उसको और अपग्रेड कर रहे हैं, उनको लगता है कि उनके रेग्यूलर काम के लिए जरूरी हो गया है। मुझे आज यू.के. के हाई कमीश्नर बता रहे थे कि यहाँ का जो ब्रिटिश एम्बेसी का यहाँ का जो चैप्टर है उसको वो इक्विवेलन्ट टू मुंबई बनाने जा रहे हैं। अब कितनी सुविधाएं बढ़ेंगी, मित्रों..! मित्रों, गुजरातीज आर बेस्ट टूरिस्ट्स..! इन्होंने हफ्ते में एक दिन थाईलैंड से विमान की सेवा शुरू करने के लिए कहा है। देखना, तीन महीने में हफ्ते में तीन दिन ना करें तो मुझे कहना..! मित्रों, ये जो छोटी-छोटी चीजें हैं जिसकी अपनी एक ताकत है, मित्रों। आप देखिए मित्रों, गुजरात को एशिया में अपनी एक पहचान बनानी चाहिए, एशिया के देशों में अपनी जगह बनानी चाहिए और जगह बनाने के लिए एक रास्ता है, भगवान बुद्घ..! बहुत कम लोगों का समझ आता होगा ये..! और मित्रों, थाइलैंड और गुजरात का ये नाता सिर्फ एक विमान की सेवा का नहीं है, थाइलैंड और गुजरात के बीच सीधी विमान की सेवा गुजरात की धरती पर जो बुद्घ की अनुभूति है और थाइलैंड जो बुद्घ का भक्त है। इस बुद्घ के माध्यम से थाइलैंड और गुजरात का जुड़ना, जापान और गुजरात का जुड़ना, श्रीलंका और गुजरात का जुड़ना, एश्यिन कंट्रीज के बुद्घिज़म का गुजरात के बुद्घिज़म का जुड़ना... और हम भाग्यवान हैं कि हमारे पास भगवान बुद्घ के रेलिक्स हैं। सारी दुनिया हमारे भगवान बुद्घ के रेलिक्स को हाथ लगा कर देख सकती है। हम इसके माध्यम से पूरे एशिया को गुजरात के साथ जोड़ना चाहते हैं। सिर्फ टीचर्स भेज कर के काम अटकने वाला नहीं है मेरा..!

मित्रों, बहुत सारे सपने मन में पड़े हुए हैं। और ये समय नहीं है कि सब बातें पूरी कर दूँ आज ही। लेकिन भाइयों-बहनों, ये राज्य सफलता की नई ऊंचाइयों को छूने के लिए संकल्पबद्घ है। हम गुजरात के सामान्य से सामान्य जीवन की भलाई के लिए कोशिश करने वाले लोग हैं। मैंने देखा है कि इस बार एक सेमीनार पूरा अफोर्डएबल हाऊसिंग के लिए था और दुनिया की टॉपमोस्ट कंपनियाँ जल्दी से जल्दी मकान कैसे बने, सस्ते से सस्ता मकान कैसे बने, अच्छे से अच्छी टेक्नोलॉजी से मकान कैसे बने, कम से कम जगह में बड़े टॉवर कैसे खड़े किये जाएं... उन सारे विषयों पर आज चर्चा कर रहे थे। ये चर्चा क्या गरीब की भलाई के काम आने वाली नहीं है..? लेकिन ये कौन समझाए..! मित्रों, यहाँ कृषि के क्षेत्र में जो बदलाव आए हैं उसकी चर्चा करने के लिए डेलिगेशन्स यहाँ हैं और कृषि के क्षेत्र में क्या नई टेक्नोलॉजी ले कर के आएँ हैं उसकी चर्चा कर रहे हैं। मित्रों, हमने कनाडा के साथ एक एम.ओ.यू. किया और पहली बार हमारे गुजरात की एक कंपनी मल्टीनेशनल के रूप में कनाडा में जा कर के उद्योग शुरू कर रही है। उद्योग शब्द आते ही कई लोगों के कान भड़क जाते हैं..! उद्योग यानि पता नहीं कोई बड़ा पाप हो, ऐसा एक माहौल देश में बना दिया गया है..! मेरी ये कंपनी कनाडा में जा कर के क्या करेगी..? कनाडा में जा करके वहाँ की सरकार से मिल कर के वहाँ हम पोटाश का कारखाना लगाएंगे और वो पोटाश मेरे गुजरात के किसानों के खेत में काम आए इसके लिए मेहनत कर रहे हैं। उद्योग शब्द सुनते ही कुछ लोग को भड़क जाते हैं जैसे कि कोई पाप हो रहा हो..! मित्रों, जीवन के हर क्षेत्र में बदलाव कैसे आए, क्वालिटी ऑफ लाइफ में कैसे परिवर्तन आए, विश्व की बराबरी करने का सामर्थ्य हमारे में कैसे पैदा हो... इस समिट के माध्यम से जीवन के सभी क्षेत्रों को स्पर्श करने का हमने प्रयास किया है। ये हमारी टैक्सटाइल इन्डस्ट्री के संबंध में हमारे बहुत बड़े सेमिनार हुए। ये जो इन्वेस्टमेंट के लिए काफी लोग आए हैं, वो टैक्सटाइल क्षेत्र में ज्यादा आए हैं। जो लोग उद्योग को गाली देने के लिए दिन-रात लगे रहते हैं मैं उनको पूछना चाहता हूँ, मेरा किसान जो कॉटन पैदा करता है, उस किसान का पेट कैसे भरेगा अगर मेरी भारत सरकार कॉटन एक्सपोर्ट नहीं करने देती। मेरे किसान का कॉटन पैदा हुआ है और हजारों, लाखों, करोड़ों का नुकसान मेरे किसान को पड़ता है। तो क्यों ना मैं मेरे किसान के इस कॉटन पे वैल्यू एडिशन करूँ, क्यों ना मैं टैक्सटाइल इन्डस्ट्री लगा कर के मेरे किसान का कॉटन उठा करके रेडिमेड गारमेंट बना करके दुनिया के बाजार में बेचूँ..? क्या ये किसान की भलाई के लिए नहीं है? लेकिन पता नहीं क्यों एक एसा माहौल बना दिया गया है। ये विकृतियाँ और नकारात्मकता से गुजरात काफी बाहर निकल चूका है।

मित्रों, इस समिट का सबसे बड़ा संदेश ये है कि दुनिया के समृद्घ देश भी रिसेशन की चर्चा में डूबे हुए हैं, बाजार की मंदी का प्रभाव विश्व के समृद्घ देश अनुभव कर रहे हैं, पूरा विश्व इकॉनामी लड़खड़ा रही है इस चिंता में लगा हूआ है... मित्रों, ऐसे माहोल में, धुंधली सी अवस्था में, कन्फूजन की अवस्था में, उजाला कब होगा इसके इंतजार की अवस्था में, मैं दावे से कहता हूँ मित्रों, ये समिट पूरे विश्व को आर्थिक जगत के अंदर एक पॉजिटिव मैसेज देने का सामर्थ्य रखती है, दुनिया के हर समृद्घ देश को गुजरात की ये घटना एक पॉजिटिव मैसेज देने की ताकत रखती है। अनेक विषयों में हमने सिद्घि पाई है। ये सिद्घि परिवर्तन की एक नई आशा लेकर के आई है। मित्रों, इस गुजरात को महान बनाना है, भव्य बनाना है, समृद्घ बनाना है और स्वामी विवेकानंद जी के सपने पूरे हों, उन सपनों को पूरा करने के लिए गुजरात की जितनी जिम्मेवारी है उनको बखूबी निभाने का हमारा प्रयास है।

मैं फिर एक बार इस समिट के लिए विश्व के जितने देशों ने सहयोग किया उनका मैं आभारी हूँ। मैं विशेष रूप से कनाडा के प्राइम मिनिस्टर का आभारी हूँ, जिन्होंने विशेष रूप से कल अपने एक एम.पी. को भेज कर एक चिट्ठी मेरे लिए भेजी और हमें शुभकामनाएं दी और इसलिए मैं कनाडा के प्रधानमंत्रीजी का बहुत आभारी हूँ कि उन्होंने गुजरात पर इतना विश्वास रखा है। दुनिया का समृद्घ देश भारत जैसे देश के एक छोटे से राज्य के प्रति इतने आदर के साथ जुड़ने का प्रयास करे वो अपने आप में बेमिसाल है। मैं विश्व के सभी जो राजनेता यहाँ आए, राजदूत आए, विश्व के सभी देशों ने हिस्सेदारी की मैं उन सभी का हृदय से अभिनंदन करता हूँ, धन्यवाद करता हूँ और फिर एक बार आप सब आए, आपका बहुत-बहुत आभार..! और फिर एक बार 11 जनवरी, 2015 के लिए आपको मैं फिर से निमंत्रण देता हूँ, यू आर मोस्ट वेलकम, 11 जनवरी, 2015..! थैंक यू वेरी मच दोस्तों, थैंक्स अ लोट..!

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ମୋର ପ୍ରିୟ ଦେଶବାସୀଗଣ, ନମସ୍କାର । ୨୦୨୫ ବର୍ଷ ଆମ ଦ୍ୱାରଦେଶରେ ଉପନୀତ । ୨୬ ଜାନୁଆରୀ ୨୦୨୫ ଦିନ ଆମ ସମ୍ବିଧାନ କାର୍ଯ୍ୟକାରୀ ହେବାର ୭୫ ବର୍ଷ ପୂରଣ ହେବାକୁ ଯାଉଛି । ଆମ ସମସ୍ତଙ୍କ ପାଇଁ ଏହା ଏକ ଗୌରବର କଥା । ଆମ ସମ୍ବିଧାନ ନିର୍ମାତାଗଣ ଆମକୁ ଯେଉଁ ସମ୍ବିଧାନ ଅର୍ପଣ କରିଯାଇଛନ୍ତି, ତାହା ସବୁ ପରିସ୍ଥିତିରେ ଠିକ୍ ପ୍ରମାଣିତ ହୋଇଛି । ସମ୍ବିଧାନ ଆମକୁ ପଥ ପ୍ରଦର୍ଶିତ କରୁଥିବା ଆଲୋକ ପୁଞ୍ଜ, ଏହା ଆମ ମାର୍ଗଦର୍ଶକ । ଭାରତର ସମ୍ବିଧାନ ଯୋଗୁଁ ହିଁ ଆଜି ମୁଁ ଏଠାରେ ଉପସ୍ଥିତ ହୋଇ ଆପଣଙ୍କ ସହ ଭାବ ବିନିମୟ କରିପାରୁଛି । ଏ ବର୍ଷ ନଭେମ୍ବର ୨୬ ତାରିଖ ସମ୍ବିଧାନ ଦିବସଠାରୁ ଏକବର୍ଷ ବ୍ୟାପୀ ଅନେକ କାର୍ଯ୍ୟକ୍ରମ ଆରମ୍ଭ ହୋଇଛି । ଦେଶର ନାଗରିକମାନଙ୍କୁ ସମ୍ବିଧାନର ଐତିହ୍ୟ ସହ ସଂଯୋଜିତ କରିବା ପାଇଁ constitution75.com ନାମରେ ଏକ ସ୍ୱତନ୍ତ୍ର ୱେବସାଇଟ୍ ମଧ୍ୟ ସୃଷ୍ଟି କରାଯାଇଛି । ଏଥିରେ ଆପଣ ସମ୍ବିଧାନର ମୁଖବନ୍ଧ ପାଠ କରି ନିଜ ଭିଡିଓ ଅପଲୋଡ୍ କରିପାରିବେ । ଭିନ୍ନ ଭିନ୍ନ ଭାଷାରେ ସମ୍ବିଧାନ ପଢ଼ି ପାରିବେ । ସମ୍ବିଧାନ ବିଷୟରେ ପ୍ରଶ୍ନ ମଧ୍ୟ ପଚାରି ପାରିବେ । ଏହି ୱେବସାଇଟ୍ ପରିଦର୍ଶନ କରି ଏଥିରେ ଅଂଶଗ୍ରହଣ କରିବା ପାଇଁ ମୁଁ ‘ମନ୍ କି ବାତ୍’ର ଶ୍ରୋତା, ବିଦ୍ୟାଳୟରେ ପଢ଼ୁଥିବା ଛାତ୍ରଛାତ୍ରୀ, କଲେଜରେ ପଢ଼ୁଥିବା ଯୁବବର୍ଗ ସମସ୍ତଙ୍କୁ ଅନୁରୋଧ କରୁଛି ।

ବନ୍ଧୁଗଣ, ଆସନ୍ତା ମାସ ୧୩ ତାରିଖ ଠାରୁ ପ୍ରୟାଗରାଜରେ ମହାକୁମ୍ଭ ମଧ୍ୟ ଅନୁଷ୍ଠିତ ହେବାକୁ ଯାଉଛି । ଏବେ ସେଠାରେ ସଙ୍ଗମକୁଳରେ ଜୋରଦାର୍ ପ୍ରସ୍ତୁତି ଚାଲିଛି । ମୋର ମନେ ଅଛି, ଏଇ କିଛି ଦିନ ତଳେ ଯେତେବେଳେ ମୁଁ ପ୍ରୟାଗରାଜ୍ ଯାଇଥିଲି, ସେତେବେଳେ ହେଲିକପ୍ଟରରୁ ସମ୍ପୂର୍ଣ୍ଣ କୁମ୍ଭ କ୍ଷେତ୍ର ଦେଖି ମନ ଆନନ୍ଦିତ ହୋଇଯାଇଥିଲା । ଏତେ ବିଶାଳ ! ଏତେ ସୁନ୍ଦର ! ଏତେ ଭବ୍ୟ !

ବନ୍ଧୁଗଣ, ମହାକୁମ୍ଭର ବିଶେଷତ୍ୱ କେବଳ ଏହାର ବିଶାଳତା ନୁହେଁ । କୁମ୍ଭର ବିଶେଷତ୍ୱ ଏହାର ବିବିଧତାରେ ମଧ୍ୟ ରହିଛି । ଏହି ଆୟୋଜନରେ କୋଟି କୋଟି ଲୋକ ଏକତ୍ରିତ ହୁଅନ୍ତି । ଲକ୍ଷ ଲକ୍ଷ ସାଧୁ ସନ୍ଥ, ହଜାର ହଜାର ପରମ୍ପରା, ଶହ ଶହ ସମ୍ପ୍ରଦାୟ, ଅନେକ ଆଖଡ଼ା, ସମସ୍ତେ ଏହି ଆୟୋଜନରେ ଅଂଶଗ୍ରହଣ କରନ୍ତି । ଏହି କୁମ୍ଭମେଳାରେ କେବେ କୌଣସି ଭେଦଭାବ ନ ଥାଏ । ନା ଏଠି କେହି ବଡ଼, ନା କେହି ସାନ । ବିବିଧତା ମଧ୍ୟରେ ଏକତାର ଏଭଳି ଦୃଶ୍ୟ ବିଶ୍ୱରେ ଆଉ କେଉଁଠି ବି ଦେଖିବାକୁ ମିଳେନାହିଁ । ତେଣୁ ଆମ କୁମ୍ଭ ଏକତାର ମହାକୁମ୍ଭ ମଧ୍ୟ ହୋଇଥାଏ । ଏଥରର ମହାକୁମ୍ଭ ମଧ୍ୟ ଏକତାର ମହାକୁମ୍ଭର ମନ୍ତ୍ରକୁ ସଶକ୍ତ କରିବ । କୁମ୍ଭରେ ଅଂଶଗ୍ରହଣ କରିବା ସହ ଏକତାର ଏହି ସଂକଳ୍ପକୁ ମଧ୍ୟ ନିଜ ସହ ନେଇ ଫେରିବା ପାଇଁ ମୋର ଆପଣ ସମସ୍ତଙ୍କୁ ଅନୁରୋଧ । ଆମେ ସମାଜରେ ବିଭାଜନ ଓ ବିଦ୍ୱେଷର ଭାବନାକୁ ନଷ୍ଟ କରିବାର ସଂକଳ୍ପ ମଧ୍ୟ ଗ୍ରହଣ କରିବା । ସଂକ୍ଷେପରେ କହିବାକୁ ହେଲେ ମୁଁ ଏତିକି କହିବି . . .

ମହାକୁମ୍ଭର ଏଇ ସନ୍ଦେଶ, ଏକ୍ ହେଉ ସାରା ଦେଶ ।

ମହାକୁମ୍ଭର ଏଇ ସନ୍ଦେଶ, ଏକ୍ ହେଉ ସାରା ଦେଶ ।

ଆଉ ଅନ୍ୟ ଭାଷାରେ କହିବାକୁ ଗଲେ, କହିବି . . .

ଗଙ୍ଗାର ଧାରା ବହୁ ନିରନ୍ତର, ବିଭାଜିତ ନ ହେଉ ସମାଜ ଆମର ।

ଗଙ୍ଗାର ଧାରା ବହୁ ନିରନ୍ତର, ବିଭାଜିତ ନ ହେଉ ସମାଜ ଆମର ।

ବନ୍ଧୁଗଣ, ଏଥର ପ୍ରୟାଗରାଜରେ ଦେଶ ବିଦେଶର ଶ୍ରଦ୍ଧାଳୁ ଡିଜିଟାଲ୍ ମହାକୁମ୍ଭର ମଧ୍ୟ ସାକ୍ଷୀ ହେବେ । ଡିଜିଟାଲ୍ ନେଭିଗେସନ୍ ସାହାର୍ଯ୍ୟରେ ଆପଣମାନେ ବିଭିନ୍ନ ଘାଟ, ମନ୍ଦିର, ସାଧୁସନ୍ଥଙ୍କ ଆଖଡ଼ା ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ପହଂଚିବାର ରାସ୍ତା ପାଇପାରିବେ । ଏହି ନେଭିଗେସନ୍ ସିଷ୍ଟମ୍ ଆପଣଙ୍କୁ ପାର୍କିଂ ସ୍ଥଳ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ପହଂଚିବା ପାଇଁ ମଧ୍ୟ ସାହାର୍ଯ୍ୟ କରିବ । କୁମ୍ଭ ଆୟୋଜନରେ ପ୍ରଥମ ଥର ପାଇଁ ଏ.ଆଇ. ଚାଟବୋଟର ବ୍ୟବହାର ହେବ । ଏ.ଆଇ. ଚାଟବୋଟ୍ ମାଧ୍ୟମରେ ୧୧ଟି ଭାରତୀୟ ଭାଷାରେ କୁମ୍ଭ ସମ୍ପର୍କିତ ସୂଚନା ପ୍ରାପ୍ତ କରାଯାଇପାରିବ । ଏହି ଚାଟବୋଟରେ text ଟାଇପ୍ କରି କିମ୍ବା ନିଜେ କହି ଯେକୌଣସି ପ୍ରକାର ସାହାଯ୍ୟ ପାଇଁ ଅନୁରୋଧ କରିପାରିବେ । ସମ୍ପୂର୍ଣ୍ଣ ମେଳା କ୍ଷେତ୍ରଟି ଏ.ଆଇ. ଶକ୍ତିଯୁକ୍ତ କ୍ୟାମେରାର ନଜରରେ ରହିବ । କୁମ୍ଭରେ ଯଦି କେହି ନିଜ ପ୍ରିୟପରିଜନଙ୍କ ଠାରୁ ନିଖୋଜ ହୋଇଥାଆନ୍ତି, ତାହେଲେ ଏହି କ୍ୟାମେରା ଗୁଡ଼ିକ ସାହାର୍ଯ୍ୟରେ ସେମାନଙ୍କୁ ଠାବ କରିବାରେ ମଧ୍ୟ ସାହାଯ୍ୟ ମିଳିବ । ଶ୍ରଦ୍ଧାଳୁମାନେ ଡିଜିଟାଲ୍ ଲଷ୍ଟ ଆଣ୍ଡ ଫାଉଣ୍ଡ ସେଂଟରର ସୁବିଧା ମଧ୍ୟ ପାଇପାରିବେ । ଶ୍ରଦ୍ଧାଳୁମାନଙ୍କୁ ମୋବାଇଲ ମାଧ୍ୟମରେ ହିଁ ସରକାରଙ୍କ ସ୍ୱୀକୃତିପ୍ରାପ୍ତ ଟୁର୍ ପ୍ୟାକେଜ୍, ରହିବା ସୁବିଧା ଏବଂ ହୋମଷ୍ଟେ ବିଷୟରେ ସୂଚନା ପ୍ରଦାନ କରାଯିବ । ମହାକୁମ୍ଭ ଯାତ୍ରା କଲେ ଆପଣମାନେ ମଧ୍ୟ ଏହି ସୁବିଧା ଗୁଡ଼ିକର ଲାଭ ଉଠାଇ ପାରିବେ । ଆଉ ହଁ, #ଏକତା କା ମହାକୁମ୍ଭ ରେ ନିଜର ସେଲ୍ଫି ନିଶ୍ଚୟ ଅପଲୋଡ୍ କରିବେ ।

ବନ୍ଧୁଗଣ, ମନ୍ କି ବାତ୍ ଅର୍ଥାତ୍ ଏମକେବିରେ ଏଥର କେଟିବି କଥା । ଅଧିକାଂଶ ବୟସ୍କ ଲୋକେ କେଟିବି ବିଷୟରେ ଜାଣିନଥିବେ । କିନ୍ତୁ, ପିଲାମାନଙ୍କୁ ଥରେ ପଚାରନ୍ତୁ, କେଟିବି ସେମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରେ ସୁପରହିଟ୍ । କେଟିବି ମାନେ କ୍ରିଷ, ତ୍ରିଶ୍ ଆଉ ବାଲ୍ଟିବୟ । ହୁଏତ ଆପଣ ଜାଣିଥିବେ, ଏହା ପିଲାମାନଙ୍କ ମନପସନ୍ଦର ଆନିମେଶନ୍ ସିରିଜ୍ ଏବଂ ଏହାର ନାଁ କେଟିବି-ଭାରତ ହେଁ ହମ୍ । ଏବେ ଏହାର ଦ୍ୱିତୀୟ ସିଜିନ୍ ମଧ୍ୟ ଆସିଗଲାଣି । ଏହି ତିନୋଟି ଆନିମେଶନ୍ କ୍ୟାରେକ୍ଟର ଆମକୁ ଭାରତର ସ୍ୱାଧୀନତା ସଂଗ୍ରାମର ସେହି ନାୟକ-ନାୟିକାମାନଙ୍କ ବିଷୟରେ ଜଣାଉଛନ୍ତି, ଯେଉଁମାନଙ୍କ ସମ୍ପର୍କରେ ଅଧିକ ଆଲୋଚନା ହୁଏ ନାହିଁ । ନିକଟ ଅତୀତରେ ଏହାର ସିଜିନ-ଟୁ ଏକ ନିଆରା ଢଙ୍ଗରେ ଗୋଆରେ ଭାରତୀୟ ଆନ୍ତର୍ଜାତିକ ଚଳଚ୍ଚିତ୍ର ମହୋତ୍ସବରେ ଉଦଘାଟିତ ହେଲା । ସବୁଠାରୁ ସୁନ୍ଦର କଥା ହେଉଛି, ଏହି ସିରିଜ୍ କେବଳ ଅନେକ ଭାରତୀୟ ଭାଷାରେ ନୁହେଁ, ବରଂ ବିଦେଶୀ ଭାଷାରେ ମଧ୍ୟ ପ୍ରସାରିତ ହେଉଛି । ଏହାକୁ ଦୂରଦର୍ଶନ ସହ ଅନ୍ୟ ଓଟିଟି ପ୍ଲାଟଫର୍ମରେ ମଧ୍ୟ ଦେଖାଯାଇପାରିବ ।

ବନ୍ଧୁଗଣ, ଆମ ଆନିମେଶନ୍ ଫିଲ୍ମ, ଚଳଚ୍ଚିତ୍ର, ଟେଲିଭିଜନ ସିରିଆଲ ଗୁଡ଼ିକର ଲୋକପ୍ରିୟତା ଏହା ଦର୍ଶାଉଛି ଯେ, ଭାରତର କ୍ରିଏଟିଭ୍ ଇଣ୍ଡଷ୍ଟ୍ରି ବା ସୃଜନାତ୍ମକ ଶିଳ୍ପରେ କେତେ କ୍ଷମତା ଭରିରହିଛି ! ଏହି ଶିଳ୍ପର କେବଳ ଦେଶର ଉନ୍ନତିରେ ଏକ ବଡ଼ ଯୋଗଦାନ ରହିଛି ତାହା ନୁହେଁ ବରଂ ଆମ ଅର୍ଥନୀତିକୁ ମଧ୍ୟ ଏହା ନୂତନ ଶିଖରକୁ ନେଇଯାଉଛି । ଆମ ଚଳଚ୍ଚିତ୍ର ଏବଂ ମନୋରଞ୍ଜନ ଶିଳ୍ପ ବହୁତ ବିଶାଳ । ଦେଶର ଅନେକ ଭାଷାରେ ଚଳଚ୍ଚିତ୍ର ନିର୍ମାଣ ଚାଲିଛି, କ୍ରିଏଟିଭ୍ କଂଟେଟ୍ ମଧ୍ୟ ସୃଷ୍ଟି କରାଯାଉଛି । ମୁଁ ଆମ ଚଳଚ୍ଚିତ୍ର ଏବଂ ମନୋରଞ୍ଜନ ଶିଳ୍ପ ଜଗତକୁ ଏଥିପାଇଁ ଅଭିନନ୍ଦନ ଜଣାଉଛି, କାରଣ, ଏହା ଏକ ଭାରତ- ଶ୍ରେଷ୍ଠ ଭାରତର ଭାବନାକୁ ସଶକ୍ତ କରିଛି ।

ବନ୍ଧୁଗଣ, ୨୦୨୪ରେ ଆମେ ଚଳଚ୍ଚିତ୍ର ଦୁନିଆର ଅନେକ ମହାନ ବ୍ୟକ୍ତିତ୍ୱମାନଙ୍କର ୧୦୦ତମ ଜୟନ୍ତୀ ପାଳନ କରୁଛୁ । ଏହି ମହାନ କଳାକାରମାନେ ଭାରତୀୟ ସିନେମାକୁ ବିଶ୍ୱସ୍ତରରେ ପରିଚିତ କରାଇଲେ । ରାଜକାପୁରଜୀ ନିଜ ଚଳଚ୍ଚିତ୍ର ମାଧ୍ୟମରେ ବିଶ୍ୱକୁ ଭାରତର Soft Power ସହ ପରିଚିତ କରାଇଲେ । ରଫି ସାହେବଙ୍କ ସ୍ୱରରେ ଏଭଳି କୁହୁକ ଭରି ରହିଥିଲା, ଯାହା ପ୍ରତ୍ୟେକ ହୃଦୟକୁ ସ୍ପର୍ଶ କରୁଥିଲା । ତାଙ୍କ ସ୍ୱର ଅତି ଚମତ୍କାର ଥିଲା । ଭକ୍ତି ଗୀତ ହେଉ, ରୋମାଣ୍ଟିକ୍ ଗୀତ କିମ୍ବା ଦୁଃଖଭରା ଗୀତ - ପ୍ରତ୍ୟେକ ଭାବାବେଗକୁ ସେ ନିଜ ସ୍ୱରରେ ଜୀବନ୍ତ କରିଦେଉଥିଲେ । ଜଣେ କଳାକାର ରୂପରେ ତାଙ୍କର ମହନୀୟତାର ଅନୁମାନ ଏହି କଥାରୁ କରିହେବ ଯେ, ଆଜିର ଯୁବପିଢ଼ି ମଧ୍ୟ ତାଙ୍କ ଗୀତଗୁଡ଼ିକୁ ସେତିକି ମନଧ୍ୟାନ ଦେଇ ଶୁଣୁଛନ୍ତି । ଏହାହିଁ ତ ହେଉଛି କାଳାତୀତ କଳାର ପରିଚୟ । ଅକ୍କିନେନୀ ନାଗେଶ୍ୱର ରାଓ ଗାରୁ ତେଲୁଗୁ ସିନେମାକୁ ନୂତନ ଶିଖରରେ ପହଞ୍ଚାଇଛନ୍ତି । ତାଙ୍କ ଚଳଚ୍ଚିତ୍ର ଗୁଡ଼ିକ ଭାରତୀୟ ପରମ୍ପରା ଏବଂ ମୂଲ୍ୟବୋଧକୁ ଖୁବ ଭଲଭାବେ ପ୍ରତିଫଳିତ କରୁଛି । ତପନ ସିହ୍ନାଙ୍କ କଥାଚିତ୍ର ଗୁଡ଼ିକ ସମାଜକୁ ଏକ ନୂତନ ଦୃଷ୍ଟିକୋଣ ପ୍ରଦାନ କରିଛି । ତାଙ୍କ ଚଳଚ୍ଚିତ୍ର ଗୁଡ଼ିକରେ ସାମାଜିକ ଚେତନା ଏବଂ ରାଷ୍ଟ୍ରୀୟ ଏକତାର ବାର୍ତ୍ତା ରହୁଥିଲା । ଏହି ମନିଷୀମାନଙ୍କ ଜୀବନ ଆମର ସମଗ୍ର ଚଳଚ୍ଚିତ୍ର ଜଗତ ପାଇଁ ପ୍ରେରଣାର ଉତ୍ସ ।

ବନ୍ଧୁଗଣ, ମୁଁ ଆପଣମାନଙ୍କୁ ଆଉ ଗୋଟିଏ ଖୁସି ଖବର ଦେବାକୁ ଚାହୁଁଛି । ଭାରତର ସୃଜନାତ୍ମକ ପ୍ରତିଭା ବା କ୍ରିଏଟିଭ୍ ଟାଲେଣ୍ଟ ବିଶ୍ୱ ଆଗରେ ଉପସ୍ଥାପିତ କରିବାର ଗୋଟିଏ ବଡ଼ ସୁଯୋଗ ଆସୁଛି । ଆସନ୍ତା ବର୍ଷ ଆମ ଦେଶରେ ପ୍ରଥମ ଥର ପାଇଁ ୱାର୍ଲଡ୍ ଅଡିଓ ଭିଜୁଆଲ୍ ଏଂଟରଟେନମେଣ୍ଟ ସମିଟ୍ ଅର୍ଥାତ୍ ୱେଭସ ସମିଟର ଆୟୋଜନ ହେବାକୁ ଯାଉଛି । ଆପଣମାନେ ଦାଭୋସ୍ ବିଷୟରେ ଶୁଣିଥିବେ, ଯେଉଁଠାରେ ବିଶ୍ୱର ଆର୍ଥିକ ଜଗତର ମହାରଥିମାନେ ଏକତ୍ରିତ ହୋଇଥାଆନ୍ତି । ସେହିଭଳି ୱେଭସ ସମିଟରେ ସାରା ବିଶ୍ୱର ଗଣମାଧ୍ୟମ ଏବଂ ମନୋରଞ୍ଜନ ଶିଳ୍ପର ମହାରଥି, ସୃଜନ ଜଗତର ବ୍ୟକ୍ତିବିଶେଷ ଭାରତକୁ ଆସିବେ । ଏହି ସମ୍ମିଳନୀ ଭାରତକୁ ଗ୍ଲୋବାଲ୍ କଣ୍ଟେଟ୍ କ୍ରିଏଶନର ହବ୍ କରିବା ଦିଗରେ ଗୋଟିଏ ଗୁରୁତ୍ୱପୂର୍ଣ୍ଣ ପଦକ୍ଷେପ । ଏହି ସୂଚନା ଦେବାରେ ମୁଁ ଗର୍ବ ଅନୁଭବ କରୁଛି ଯେ, ଏହି ସମ୍ମିଳନୀ ପାଇଁ ପ୍ରସ୍ତୁତିରେ ଆମ ଦେଶର ୟଙ୍ଗ୍ କ୍ରିଏଟର୍ସ ବା ନୂତନ ସୃଜନଶୀଳ ପ୍ରତିଭାମାନେ ଖୁବ ଉତ୍ସାହର ସହିତ ଲାଗି ପଡ଼ିଛନ୍ତି । ଆମେ ୫ ଟ୍ରିଲିଅନ୍ ଡଲାର୍ ଇକୋନମୀ ଦିଗକୁ ଅଗ୍ରସର ହେଉଥିବା ସମୟରେ ଆମ କ୍ରିଏଟର୍ ଇକୋନମୀ ଏକ ନୂତନ ଶକ୍ତି ପ୍ରଦାନ କରୁଛି । ମୁଁ ଭାରତର ସମଗ୍ର ମନୋରଞ୍ଜନ ଏବଂ ସୃଜନାତ୍ମକ ଶିଳ୍ପକୁ ଅନୁରୋଧ କରୁଛି - ଆପଣ ଯୁବ-ପ୍ରତିଭା ହୁଅନ୍ତୁ କିମ୍ବା ପ୍ରତିଷ୍ଠିତ କଳାକାର, ବଲିଉଡ୍ ସହ ଜଡ଼ିତ ହୋଇଥାଆନ୍ତୁ କିମ୍ବା ଆଞ୍ଚଳିକ ସିନେମା ଜଗତ ସହ, ଟେଲିଭିଜନ ଶିଳ୍ପର ପେଶାଗତ ବ୍ୟକ୍ତି ହୋଇଥାଆନ୍ତୁ କିମ୍ବା ଆନିମେଶନ୍ ବିଶେଷଜ୍ଞ, ଗେମିଂ ସହ ଜଡ଼ିତ ଥାଆନ୍ତୁ ବା ଏଂଟରଟେନମେଣ୍ଟ ଟେକ୍ନୋଲଜିର ଇନ୍ନୋଭେଟର୍ ହେଇଥାଆନ୍ତୁ - ଆପଣ ସମସ୍ତେ ୱେଭସ ସମ୍ମିଳନୀରେ ଭାଗ ନିଅନ୍ତୁ ।

ମୋର ପ୍ରିୟ ଦେଶବାସୀଗଣ, ଆପଣ ସମସ୍ତେ ଜାଣନ୍ତି ଯେ ଭାରତୀୟ ସଂସ୍କୃତିର ଆଲୋକ ଆଜି କିଭଳି ପୃଥିବୀର କୋଣ ଅନୁକୋଣରେ ବିଛାଡ଼ି ହୋଇ ପଡ଼ୁଛି । ଆଜି ମୁଁ ଆପଣଙ୍କୁ ତିନି ମହାଦ୍ୱୀପରୁ ଏଭଳି ପ୍ରୟାସଗୁଡ଼ିକ ବିଷୟରେ କହିବି, ଯାହା ଆମ ସାଂସ୍କୃତିକ ଐତିହ୍ୟର ବୈଶ୍ୱିକ ବିସ୍ତୃତିର ସାକ୍ଷୀ । ସେମାନେ ପରସ୍ପରଠାରୁ ବହୁତ ଦୂରରେ, କିନ୍ତୁ ଭାରତକୁ ଜାଣିବାରେ ଓ ଆମ ସଂସ୍କୃତିରୁ ଶିଖିବା କ୍ଷେତ୍ରରେ ସେମାନଙ୍କ ଆଗ୍ରହ ଉଦ୍ଦୀପନା ସମାନ ।

ବନ୍ଧୁଗଣ, ପେଣ୍ଟିଙ୍ଗ୍‌ସ ଯେତେ ବେଶୀ ରଙ୍ଗୀନ ହୋଇଥାଏ ସେତିକି ସୁନ୍ଦର ଦେଖାଯାଇଥାଏ । ଆପଣଙ୍କ ମଧ୍ୟରୁ ଯେଉଁମାନେ ଟିଭି ମାଧ୍ୟମରେ ‘ମନ୍‌ କୀ ବାତ୍‌’ ସହ ଯୋଡ଼ି ହୋଇଛନ୍ତି, ସେମାନେ ଏବେ କିଛି ପେଣ୍ଟିଙ୍ଗ୍‌ସକୁ ଟିଭିରେ ଦେଖି ମଧ୍ୟ ପାରିବେ । ଏସବୁ ପେଣ୍ଟିଙ୍ଗ୍ସରେ ଆମର ଦେବାଦେବୀ, ନୃତ୍ୟକଳା ଓ ମହାପୁରୁଷମାନଙ୍କୁ ଦେଖି ଆପଣଙ୍କୁ ବହୁତ ଭଲ ଲାଗିବ । ଏଥିରେ ଆପଣଙ୍କୁ ଭାରତରେ ଦେଖାଯାଉଥିବା ଜୀବଜନ୍ତୁଙ୍କଠାରୁ ଆରମ୍ଭ କରି ଆଉ ବହୁତ କିଛି ଦେଖିବାକୁ ମିଳିବ । ଏଥିରେ ତାଜମହଲର ଏକ ସୁନ୍ଦର ଚିତ୍ର ମଧ୍ୟ ସାମିଲ୍‌ ହୋଇଛି, ଯାହାକୁ ୧୩ ବର୍ଷର ଝିଅଟିଏ ଆଙ୍କିଛି । ଆପଣଙ୍କୁ ଏହା ଜାଣି ଆଶ୍ଚର୍ଯ୍ୟ ଲାଗିବ ଯେ ଏହି ଦିବ୍ୟାଙ୍ଗ ଝିଅଟି ନିଜ ପାଟିରେ ଏହି ଚିତ୍ରଟିକୁ ତିଆରି କରିଛି । ସବୁଠୁ ବଡ଼କଥା ହେଲା ଯେ ଏହାର ଚିତ୍ରଶିଳ୍ପୀ ଜଣକ ଭାରତର ନୁହନ୍ତି, ସେ ଇଜିପ୍ଟର ଜଣେ ବିଦ୍ୟାର୍ଥୀ । କିଛି ସପ୍ତାହ ତଳେ ଇଜିପ୍ଟର ପ୍ରାୟ ୨୩ ହଜାର ଛାତ୍ରଛାତ୍ରୀ ଏକ ପେଣ୍ଟିଂ ପ୍ରତିଯୋଗିତାରେ ଭାଗ ନେଇଥିଲେ । ସେଠାରେ ସେମାନଙ୍କୁ ଭାରତର ସଂସ୍କୃତି ଓ ଦୁଇ ଦେଶର ଐତିହାସିକ ସମ୍ପର୍କକୁ ବର୍ଣ୍ଣନା କରୁଥିବା ପେଣ୍ଟିଂ କରିବାର ଥିଲା । ମୁଁ ଏହି ପ୍ରତିଯୋଗିତାରେ ଭାଗ ନେଇଥିବା ସମସ୍ତ ଯୁବକଯୁବତୀଙ୍କୁ ପ୍ରଶଂସା କରୁଛି । ସେମାନଙ୍କ ସୃଜନଶୀଳତାର ଯେତେ ପ୍ରଶଂସା କଲେ ମଧ୍ୟ ତାହା କମ୍‌ ହେବ ।

ବନ୍ଧୁଗଣ, ଦକ୍ଷିଣ ଆମେରିକାର ଏକ ଦେଶ ହେଉଛି ପାରାଗୁଏ । ସେଠାରେ ରହୁଥିବା ଭାରତୀୟଙ୍କ ସଂଖ୍ୟା ହଜାରେରୁ ବେଶି ହେବନାହିଁ । ପାରାଗୁଏରେ ଏକ ଚମତ୍କାର ପ୍ରୟାସ ହେଉଛି । ସେଠାକାର ଭାରତୀୟ ଦୂତାବାସରେ ଏରିକା ହ୍ୟୁବର ମାଗଣା ଆୟୁର୍ବେଦ ପରାମର୍ଶ ଦିଅନ୍ତି । ଆୟୁର୍ବେଦ ପରାମର୍ଶ ନେବାପାଇଁ ଏବେ ତାଙ୍କ ନିକଟକୁ ବହୁ ସ୍ଥାନୀୟ ଲୋକ ଆସୁଛନ୍ତି । ଏରିକା ହ୍ୟୁବର୍ ଇଂଜିନିୟରିଂ ପଢ଼ିଛନ୍ତି ସତ, କିନ୍ତୁ ତାଙ୍କର ମନ ଆୟୁର୍ବେଦରେ ରହିଛି । ସେ ଆୟୁର୍ବେଦ ସହ ସଂପୃକ୍ତ ପାଠ୍ୟକ୍ରମ ପଢ଼ିଥିଲେ ଓ ସମୟକ୍ରମେ ସେ ସେଥିରେ ପାରଙ୍ଗମ ହୋଇପାରିଲେ ।

ବନ୍ଧୁଗଣ, ଏହା ଆମ ପାଇଁ ବହୁତ ଗର୍ବର କଥା ଯେ ପୃଥିବୀର ସବୁଠୁ ପ୍ରାଚୀନ ଭାଷା ତାମିଲ ଏବଂ ପ୍ରତ୍ୟେକ ଭାରତୀୟ ଏଥିପାଇଁ ଗର୍ବିତ । ବିଶ୍ୱର ବହୁ ଦେଶରେ ଏହାକୁ ଶିଖୁଥିବା ଲୋକଙ୍କ ସଂଖ୍ୟା କ୍ରମାଗତ ବଢ଼ିଚାଲିଛି । ଗତ ମାସର ଶେଷରୁ ଫିଜିରେ ଭାରତ ସରକାରଙ୍କ ସହଯୋଗରେ ତାମିଲ୍‌ ଶିକ୍ଷା କାର୍ଯ୍ୟକ୍ରମ ଆରମ୍ଭ ହୋଇଛି । ଗତ ୮୦ ବର୍ଷ ମଧ୍ୟରେ ପ୍ରଥମ ଥର ପାଇଁ ଫିଜିରେ ତାଲିମପ୍ରାପ୍ତ ଶିକ୍ଷକ ତାମିଲ୍‌ ଶିଖାଉଛନ୍ତି । ଆଜି ଫିଜିର ଛାତ୍ରଛାତ୍ରୀମାନେ ତାମିଲ ଭାଷା ଓ ସଂସ୍କୃତିକୁ ଶିଖିବା ପାଇଁ ଆଗ୍ରହୀ ଥିବା ଜାଣି ମୋତେ ବହୁତ ଖୁସି ଲାଗିଛି ।

ବନ୍ଧୁଗଣ, ଏ କଥା, ଏ ଘଟଣା କେବଳ ସଫଳତାର କାହାଣୀ ନୁହେଁ । ଏହା ଆମ ସାଂସ୍କୃତିକ ଐତିହ୍ୟର ଗାଥା ମଧ୍ୟ । ଏହି ଉଦାହରଣ ଆମକୁ ବହୁତ ଗର୍ବିତ କରିଥାଏ । କଳାରୁ ଆୟୁର୍ବେଦ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ଓ ଭାଷାରୁ ସଂଗୀତ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ଭାରତରେ ଏତେ ବିଷୟ ଅଛି, ଯାହା ପୃଥିବୀ ସାରା ବ୍ୟାପି ଚାଲିଛି ।

ବନ୍ଧୁଗଣ, ଏ ଶୀତ ଋତୁରେ ସମଗ୍ର ଦେଶରେ ବିଭିନ୍ନ କ୍ରୀଡ଼ା ଓ ଫିଟ୍‌ନେସ୍‌କୁ ନେଇ ବିଭିନ୍ନ କାର୍ଯ୍ୟକ୍ରମ ଆୟୋଜିତ ହେଉଛି । ମୁଁ ଖୁସି ଯେ ଲୋକେ ଫିଟ୍‌ନେସ୍‌କୁ ନିଜ ଦିନଚର୍ଯ୍ୟାରେ ସାମିଲ୍‌ କରୁଛନ୍ତି । କାଶ୍ମୀରରେ ସ୍କିଙ୍ଗ୍ ଠାରୁ ଗୁଜରାଟର ଗୁଡ଼ିଉଡ଼ା ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ, ସବୁ ସ୍ଥାନରେ ଖେଳର ଉତ୍ସାହ ଦେଖିବାକୁ ମିଳୁଛି । #SundayOnCycle I #CyclingTuesday ଭଳି ଅଭିଯାନ ଦ୍ୱାରା ସାଇକଲ ଚାଳନାକୁ ପ୍ରୋତ୍ସାହନ ମିଳୁଛି ।

ବନ୍ଧୁଗଣ, ମୁଁ ଆପଣଙ୍କୁ ଏଭଳି ଏକ ନିଆରା କଥା କହିବାକୁ ଚାହୁଁଛି ଯାହା ଆମ ଦେଶରେ ଆସିଥିବା ପରିବର୍ତ୍ତନ ଓ ଯୁବବନ୍ଧୁମାନଙ୍କର ଉତ୍ସାହ ଉଦ୍ଦୀପନାର ପ୍ରତୀକ । ଆପଣ ଜାଣନ୍ତି କି ଆମର ବସ୍ତରରେ ଏକ ଅନନ୍ୟ ଅଲିମ୍ପିକ୍‌ ଆରମ୍ଭ ହୋଇଛି ! ଆଜ୍ଞା ହଁ, ପ୍ରଥମ ଥର ଆୟୋଜିତ ବସ୍ତର ଅଲିମ୍ପିକ୍‌ ଦ୍ୱାରା ବସ୍ତରରେ ଏକ ନୂଆ ବିପ୍ଳବ ଜନ୍ମ ନେଉଛି । ମୋ ପାଇଁ ବହୁତ ଖୁସିର କଥା ଯେ ବସ୍ତର ଅଲିମ୍ପିକର ସ୍ୱପ୍ନ ସାକାର ହୋଇଛି । ଆପଣଙ୍କୁ ମଧ୍ୟ ଜାଣିବା ପରେ ବହୁତ ଖୁସି ଲାଗିବ ଯେ ଏହା ଏଭଳି ଏକ ଅଞ୍ଚଳରେ ହେଉଛି, ଯାହା ଏକଦା ମାଓବାଦୀ ହିଂସାଗ୍ରସ୍ତ ଅଞ୍ଚଳ ଥିଲା । ବସ୍ତର ଅଲିମ୍ପିକର ମାସ୍କଟ୍‌ ହେଉଛି ‘ବଣ ମଇଁଷି’ ଓ ‘ପାହାଡ଼ୀ ମଇନା’ । ଏଥିରେ ବସ୍ତରର ସମୃଦ୍ଧ ସଂସ୍କୃତିର ଝଲକ ଦେଖିବାକୁ ମିଳିଥାଏ । ଏହି ବସ୍ତର କ୍ରୀଡ଼ା ମହାକୁମ୍ଭର ମୂଳ ମନ୍ତ୍ର ହେଉଛି-

‘କର୍‌ସାୟ ତା ବସ୍ତର୍ ବରସାଏ ତା ବସ୍ତର୍’ ଅର୍ଥାତ ‘ଖେଳିବ ବସ୍ତର୍-ଜିତିବ ବସ୍ତର୍’ ।

ପ୍ରଥମ ଥର ହିଁ ବସ୍ତର ଅଲିମ୍ପିକ୍‌ରେ ୭ଟି ଜିଲାର ଏକ ଲକ୍ଷ ୬୫ ହଜାର ଖେଳାଳି ଭାଗ ନେଇଛନ୍ତି । ଏହା କେବଳ ଏକ ପରିସଂଖ୍ୟାନ ନୁହେଁ- ଏହା ଆମ ଯୁବକଯୁବତୀଙ୍କର ସଂକଳ୍ପର ଗୌରବ ଗାଥା ବହନ କରେ । ଆଥ୍‌ଲେଟିକ୍ସ, ତୀରଚାଳନା, ବ୍ୟାଡ଼ମିଣ୍ଟନ, ଫୁଟବଲ, ହକି, ଭାରୋତ୍ତୋଳନ, କରାଟେ, କବାଡ଼ି, ଖୋ ଖୋ ଓ ଭଲିବଲ୍‌- ପ୍ରତ୍ୟେକ ଖେଳରେ ଆମର ଯୁବପିଢ଼ି ନିଜ ପ୍ରତିଭାର ପତାକା ଉଡ଼ାଇଛନ୍ତି । କାରୀ କଶ୍ୟପ୍ ଜୀଙ୍କ କାହାଣୀ ମୋତେ ଖୁବ୍‌ ପ୍ରେରଣା ଦେଇଥାଏ । ଏକ ଛୋଟିଆ ଗାଁରୁ ଆସିଥିବା କାରୀ ଜୀ ତୀରଚାଳନାରେ ରୌପ୍ୟପଦକ ଜିତିଛନ୍ତି । ସେ କହନ୍ତି, “ବସ୍ତର ଅଲିମ୍ପିକ୍‌ ମୋତେ କେବଳ ଖେଳ ପଡ଼ିଆ ଦେଇନାହିଁ, ଜୀବନରେ ଆଗକୁ ବଢ଼ିବାର ସୁଯୋଗ ଦେଇଛି ।” ସୁକ୍‌ମା-ର ପାୟଲ୍‌ କୱାସି ଜୀଙ୍କ କଥା ବେଶ୍ ପ୍ରେରଣାଦାୟକ । ଜାଭଲିନ୍‌ ଥ୍ରୋରେ ସ୍ୱର୍ଣ୍ଣପଦକ ହାସଲ କରିଥିବା ପାୟଲ୍‌ ଜୀ କହନ୍ତି “ଅନୁଶାସନ ଓ କଠିନ ପରିଶ୍ରମ ଦ୍ୱାରା ଯେ କୌଣସି ଲକ୍ଷ୍ୟ ହାସଲ କରିବା ସମ୍ଭବ” । ସୁକମା-ର ଦୋରନାପାଲ୍‌-ର ପୁନେମ୍ ସନ୍ନା ଜୀଙ୍କ କଥା ତ ନୂଆ ଭାରତର ପ୍ରେରଣାଦାୟକ କାହାଣୀ । ଏକଦା ନକ୍ସଲଙ୍କ ଦ୍ୱାରା ପ୍ରଭାବିତ ପୁନେମ୍ ଜୀ ଆଜି ହ୍ୱିଲ୍‌ଚେୟାରରେ ଦୌଡ଼ି ପଦକ ଜିତୁଛନ୍ତି । ତାଙ୍କର ସାହସ ଓ ଧୈର୍ଯ୍ୟ ସଭିଙ୍କ ପାଇଁ ବଡ଼ ପ୍ରେରଣା । କୋଡ଼ାଗାଓଁର ତୀରନ୍ଦାଜ ରଂଜୁ ସୋରୀ ଜୀଙ୍କୁ ‘ବସ୍ତର ୟୁଥ୍‌ ଆଇକନ’ ଭାବେ ବଛାଯାଇଛି । ତାଙ୍କର କହିବା କଥା ହେଲା- ବସ୍ତର ଅଲିମ୍ପିକ୍‌ ଉପାନ୍ତ ଅଞ୍ଚଳର ଯୁବକଯୁବତୀଙ୍କୁ ଜାତୀୟ ମଞ୍ଚ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ପହଞ୍ଚିବାର ସୁଯୋଗ ଦେଉଛି ।

ବନ୍ଧୁଗଣ, ବସ୍ତର ଅଲିମ୍ପିକ୍‌ କେବଳ ଏକ କ୍ରୀଡ଼ା ଆୟୋଜନ ନୁହେଁ । ଏହା ଏଭଳି ଏକ ମଞ୍ଚ, ଯେଉଁଠି ବିକାଶ ଓ କ୍ରୀଡ଼ାର ସଂଗମ ହେଉଛି; ଯେଉଁଠି ଆମର ଯୁବପିଢ଼ି ନିଜ ପ୍ରତିଭାକୁ ଆହୁରି ଚମକାଉଛନ୍ତି ଓ ଏକ ନୂଆ ଭାରତର ନିର୍ମାଣ କରୁଛନ୍ତି । ମୁଁ ଆପଣମାନଙ୍କୁ ସମସ୍ତଙ୍କୁ ନିବେଦନ କରୁଛି ଯେ

-ନିଜ ଅଞ୍ଚଳରେ ଏଭଳି କ୍ରୀଡ଼ା ଆୟୋଜନ ପାଇଁ ପ୍ରୋତ୍ସାହନ ଦିଅନ୍ତୁ

- #ଖେଲେଗା ଭାରତ୍-ଜିତେଗା ଭାରତ୍ ଜରିଆରେ ନିଜ ଅଞ୍ଚଳର କ୍ରୀଡ଼ା ପ୍ରତିଭାଙ୍କ କାହାଣୀକୁ ଅନ୍ୟମାନଙ୍କ ସହ ବାଣ୍ଟନ୍ତୁ

-ସ୍ଥାନୀୟ କ୍ରୀଡ଼ା ପ୍ରତିଭାମାନଙ୍କୁ ଆଗକୁ ବଢ଼ିବାର ସୁଯୋଗ ଦିଅନ୍ତୁ

ମନେ ରଖନ୍ତୁ, କ୍ରୀଡ଼ା ଦ୍ୱାରା କେବଳ ଶାରୀରିକ ବିକାଶ ହୁଏ ନାହିଁ, ବରଂ ଏହି ସ୍ପୋର୍ଟସ୍‌ମେନ୍‌ ସ୍ପିରିଟ୍‌ ସମାଜକୁ ଯୋଡ଼ିବାର ମଧ୍ୟ ଏକ ସଶକ୍ତ ମାଧ୍ୟମ । ତେଣୁ ବହୁତ ଖେଳନ୍ତୁ-ଖୁସି ରୁହନ୍ତୁ ।

ମୋର ପ୍ରିୟ ଦେଶବାସୀଗଣ, ଭାରତର ଦୁଇଟି ବଡ଼ ଉପଲବ୍ଧି ଆଜି ବିଶ୍ୱର ଧ୍ୟାନ ଆକର୍ଷଣ କରୁଛି । ଏହାକୁ ଶୁଣି ଆପଣ ମଧ୍ୟ ନିଜକୁ ଗର୍ବିତ ଅନୁଭବ କରିବେ । ଏହି ଦୁଇଟି ସଫଳତା ସ୍ୱାସ୍ଥ୍ୟ କ୍ଷେତ୍ରରେ ମିଳିଛି । ପ୍ରଥମ ଉପଲବ୍ଧି ମିଳିଛି ମେଲେରିଆ ବିରୋଧରେ ଲଢ଼େଇରେ । ମେଲେରିଆ ରୋଗ ଚାରି ହଜାର ବର୍ଷ ଧରି ମଣିଷ ପାଇଁ ଏକ ବଡ଼ ସମସ୍ୟା ହୋଇ ରହିଆସିଛି । ସ୍ୱାଧୀନତା ସମୟରେ ବି ଏହା ସବୁଠୁ ବଡ଼ ସମସ୍ୟା ମଧ୍ୟରୁ ଥିଲା ଅନ୍ୟତମ । ମାସକରୁ ପାଞ୍ଚ ବର୍ଷ ପର୍ଯ୍ୟନ୍ତ ଶିଶୁଙ୍କର ଜୀବନ ନେଉଥିବା ସମସ୍ତ ସଂକ୍ରାମକ ରୋଗ ମଧ୍ୟରେ ମେଲେରିଆର ସ୍ଥାନ ତୃତୀୟ । ଆଜି ମୁଁ ସନ୍ତୋଷର ସହ କହିପାରିବି ଯେ ଦେଶବାସୀ ମିଳିମିଶି ଏହି ସମସ୍ୟାର ଦୃଢ଼ ମୁକାବିଲା କରିଛନ୍ତି । ବିଶ୍ୱ ସ୍ୱାସ୍ଥ୍ୟ ସଙ୍ଗଠନ - WHOର ରିପୋର୍ଟ କହେ ଯେ ଭାରତରେ ୨୦୧୫ରୁ ୨୦୨୩ ମଧ୍ୟରେ ମେଲେରିଆ ଏବଂ ଏହାଦ୍ୱାରା ହୋଇଥିବା ମୃତ୍ୟୁ ଶତକଡ଼ା ୮୦ ଭାଗ କମିଯାଇଛି । ଏହା କୌଣସି ଛୋଟ ଉପଲବଧି ନୁହେଁ । ସବୁଠାରୁ ବଡ଼କଥା ହେଲା ଏହି ସଫଳତା ଜନସାଧାରଣଙ୍କ ସହଯୋଗ ଯୋଗୁଁ ମିଳିଛି । ଭାରତର କୋଣ ଅନୁକୋଣରୁ, ପ୍ରତ୍ୟେକ ଜିଲ୍ଲାରୁ କେହି ନା କେହି ଏହି ଅଭିଯାନରେ ଅଂଶଗ୍ରହଣ କରିଛନ୍ତି । ଏହି ଚାରିବର୍ଷ ପୂର୍ବେ ଆସାମର ଜୋରହଟ୍ ଜିଲ୍ଲାର ଚା’ବଗିଚାମାନଙ୍କରେ ମେଲେରିଆ ଲୋକମାନଙ୍କର ଦୁଃଶ୍ଚିନ୍ତାର ଏକ ବଡ଼ କାରଣ ହୋଇଥିଲା । କିନ୍ତୁ ଏବେ ଏହାର ମୂଳୋତ୍ପାଟନ ପାଇଁ ଚା’ବଗିଚାରେ ରହୁଥିବା ଲୋକମାନେ ଏକଜୁଟ୍ ହେଲେ, ଫଳରେ ଏଥିରେ ବହୁ ପରିମାଣରେ ସଫଳତା ମିଳିବାକୁ ଲାଗିଲା । ତାଙ୍କର ଏହି ପ୍ରୟାସରେ ସେମାନେ ଟେକ୍ନୋଲୋଜି ସହିତ ସାମାଜିକ ଗଣମାଧ୍ୟମର ମଧ୍ୟ ବହୁଳ ବ୍ୟବହାର କଲେ । ସେହିପରି ହରିଆନାର କୁରୁକ୍ଷେତ୍ର ଜିଲ୍ଲା ମେଲେରିଆ ନିୟନ୍ତ୍ରଣ ଦିଗରେ ଏକ ଆଦର୍ଶ ପ୍ରଦର୍ଶନ କଲା । ଏଠାରେ ମେଲେରିଆର ମନିଟରିଂ ପାଇଁ ଜନଭାଗିଦାରୀ ଅତ୍ୟନ୍ତ ସଫଳ ହେଲା । ପଥପ୍ରାନ୍ତ ନାଟକ ତଥା ରେଡ଼ିଓ ମାଧ୍ୟମରେ ଏହିଭଳି ସନ୍ଦେଶ ଉପରେ ଜୋର୍ ଦିଆଗଲା । ଯାହା ଫଳରେ ମଶାମାନଙ୍କର ପ୍ରଜନନ କମ୍ କରିବାରେ ଖୁବ୍ ସହାୟତା ମିଳିଲା । ସାରା ଦେଶରେ ଏହିଭଳି ପ୍ରୟାସ କରିବା ଦ୍ୱାରା ଆମେ ମେଲେରିଆ ବିରୁଦ୍ଧରେ ଲଢ଼େଇକୁ ତୀବ୍ର କରିପାରିଛୁ ।

ବନ୍ଧୁଗଣ, ନିଜର ସଚେତନତା ଏବଂ ସଂକଳ୍ପଶକ୍ତି ଦ୍ୱାରା ଆମେ କ’ଣ କ’ଣ ହାସଲ କରିପାରିବା ତା’ର ଦ୍ୱିତୀୟ ଉଦାହରଣ ହେଲା କ୍ୟାନସର ସହିତ ଲଢ଼େଇ । ଦୁନିଆର ପ୍ରସିଦ୍ଧ ମେଡ଼ିକାଲ ପତ୍ରିକା ‘LANCET’ର ଅଧ୍ୟୟନ ବାସ୍ତବରେ ଆମ ଭିତରେ ବହୁତ ଆଶା ଜାଗ୍ରତ କରେ । ଏହି ପତ୍ରିକା ଅନୁସାରେ ଏବେ ଭାରତରେ ଠିକ୍ ସମୟରେ କ୍ୟାନସରର ଚିକିତ୍ସାର ସମ୍ଭାବନା ଖୁବ୍ ବଢ଼ିଯାଇଛି । ଠିକ୍ ସମୟରେ ଚିକିତ୍ସାର ଅର୍ଥ କ୍ୟାନସର ରୋଗୀର ଚିକିତ୍ସା ୩୦ ଦିନ ଭିତରେ ଆରମ୍ଭ ହୋଇଯିବା ଦରକାର । ଏ ଦିଗରେ ‘ଆୟୁଷ୍ମାନ୍ ଭାରତ ଯୋଜନା’ ଅତି ମହତ୍ତ୍ୱପୂର୍ଣ୍ଣ ଭୂମିକା ଗ୍ରହଣ କରିଛି । ଏହି ଯୋଜନା ଯୋଗୁଁ ଶତକଡ଼ା ୯୦ ଭାଗ କ୍ୟାନସର ରୋଗୀ ଠିକ୍ ସମୟରେ ନିଜର ଚିକିତ୍ସା ଆରମ୍ଭ କରିପାରିଛନ୍ତି । ଏହା ସମ୍ଭବ ହେବାର କାରଣ ପ୍ରଥମେ ପଇସା ଅଭାବରେ ଗରିବ ରୋଗୀ କ୍ୟାନସରର ପରୀକ୍ଷା ଏବଂ ତା’ର ଚିକିତ୍ସା ପାଇଁ ପଛଘୁଞ୍ଚା ଦେଉଥିଲେ । ଏବେ ଆୟୁଷ୍ମାନ ଭାରତ ଯୋଜନା ସେମାନଙ୍କ ପାଇଁ ବଡ଼ ସମ୍ବଳ ହୋଇଛି । ଏବେ ସେମାନେ ନିଜର ଚିକିତ୍ସା ପାଇଁ ଆଗେଇ ଆସୁଛନ୍ତି । ‘ଆୟୁଷ୍ମାନ ଭାରତ ଯୋଜନା’ କ୍ୟାନସର ଚିକିତ୍ସା କ୍ଷେତ୍ରରେ ଥିବା ଆର୍ଥିକ ଅସୁବିଧାକୁ ବହୁ ପରିମାଣରେ କମ୍ କରିପାରିଛି । ଆହୁରି ଭଲ କଥା ହେଲା ଆଜିକାଲି ଲୋକମାନେ ଠିକ ସମୟରେ କ୍ୟାନସର ଚିକିତ୍ସା ପାଇଁ ବେଶ୍ ସଚେତନ । ଏହି ସଫଳତା ପାଇଁ ଆମର ସ୍ୱାସ୍ଥ୍ୟସେବା ପ୍ରଣାଳୀ, ଡାକ୍ତର, ନର୍ସ ତଥା ଟେକ୍ନିକାଲ କର୍ମଚାରୀମାନଙ୍କର ଯେତିକି ଭୂମିକା ରହିଛି ମୋ ନାଗରିକ ଭାଇଭଉଣୀମାନଙ୍କର ମଧ୍ୟ ସେତିକି ମହତ୍ତ୍ୱପୂର୍ଣ୍ଣ ଭୂମିକା ରହିଛି । ସମସ୍ତଙ୍କ ପ୍ରୟାସ ଦ୍ୱାରା କ୍ୟାନସରକୁ ହରାଇବାର ସଂକଳ୍ପ ଅଧିକ ଦୃଢ଼ ହୋଇଛି । ଯେଉଁମାନେ ସଚେତନତା ସୃଷ୍ଟି କରିବାରେ ବିଶେଷ ଯୋଗଦାନ ଦେଇଛନ୍ତି, ଏହି ସଫଳତାର ଶ୍ରେୟ ସେମାନଙ୍କର । କ୍ୟାନସରକୁ ମୁକାବିଲା କରିବାର ଗୋଟିଏ ମନ୍ତ୍ର ହେଲା Awareness, Action ଏବଂ Assurance । Awareness ଅର୍ଥାତ୍ କ୍ୟାନସର୍ ଲକ୍ଷଣ ପ୍ରତି ସଚେତନତା, Action ଅର୍ଥାତ୍ ଠିକ୍ ସମୟରେ ପରୀକ୍ଷା ଏବଂ ଚିକିତ୍ସା, Assurance ଅର୍ଥାତ୍ ରୋଗୀମାନଙ୍କ ପାଇଁ ସମସ୍ତ ସହାୟତା ଉପଲବ୍ଧ କରାଇବାର ବିଶ୍ୱାସ । ଆସନ୍ତୁ ଆମେ ସମସ୍ତେ ମିଶି କ୍ୟାନସର ବିରୁଦ୍ଧରେ ଏହି ଲଢ଼େଇକୁ ଦ୍ରୁତଗତିରେ ଆଗେଇନେବା ଏବଂ ଅଧିକରୁ ଅଧିକ ରୋଗୀଙ୍କୁ ସାହାଯ୍ୟ କରିବା ।

ମୋର ପ୍ରିୟ ଦେଶବାସୀଗଣଆଜି ମୁଁ ଆପଣଙ୍କୁ ଓଡ଼ିଶାର କଳାହାଣ୍ଡି ଜିଲ୍ଲାର ଏକ ଏଭଳି ପ୍ରୟାସ ବିଷୟରେ କହିବାକୁ ଚାହୁଁଛିଯାହା କମ୍ ପାଣି ଏବଂ କମ୍ ସଂସାଧନ ସତ୍ତ୍ୱେ ସଫଳତାର ନୂତନ କାହାଣୀ ଲେଖୁଛି  ଏହା ହେଉଛି କଳାହାଣ୍ଡିର ‘ସବଜି କ୍ରାନ୍ତି’ ବା ପରିବା ବିପ୍ଳବ  ସମୟ ଥିଲା ଯେଉଁଠି କୃଷକ ପଳାୟନ କରିବାକୁ ବାଧ୍ୟ ହେଉଥିଲା ଆଜି ସେଇଠି କଳାହାଣ୍ଡିର ଗୋଲମୁଣ୍ଡା ବ୍ଲକ୍ ଏକ ପରିବା ଭଣ୍ଡାରରେ ପରିଣତ ହୋଇଛି   ପରିବର୍ତ୍ତନ କିପରି ଆସିଲା ଏହାର ଆରମ୍ଭ ମାତ୍ର ୧୦ ଜଣ କୃଷକଙ୍କ ଗୋଟିଏ ଛୋଟିଆ ସମୂହ ଦ୍ୱାରା ହୋଇଥିଲା  ସେମାନେ ମିଳିମିଶି ଗୋଟିଏ FPO ବା କିଷାନ୍ ଉତ୍ପାଦକ ସଂଗଠନ ସ୍ଥାପନ କଲେଚାଷରେ ଆଧୁନିକ କୌଶଳ ପ୍ରୟୋଗ କରିବା ଆରମ୍ଭ କଲେ ଏବଂ ଆଜି ସେମାନଙ୍କର ଏହି FPO କୋଟି କୋଟି ଟଙ୍କାର କାରବାର କରୁଛି  ଆଜି ୨୦୦ରୁ ଅଧିକ କୃଷକ ଏହି FPO ସହ ଯୋଡ଼ି ହୋଇଛନ୍ତିଯେଉଁମାନଙ୍କ ମଧ୍ୟରେ ୪୫ ଜଣ ମହିଳା ଚାଷୀ ମଧ୍ୟ ଅଛନ୍ତି  ଏହି ଲୋକମାନେ ମିଶି ୨୦୦ ଏକର ଜମିରେ ବିଲାତି ବାଇଗଣ ଚାଷ କରୁଛନ୍ତି ଏବଂ ୧୫୦ ଏକର ଜମିରେ କଲରା ଉତ୍ପାଦନ କରୁଛନ୍ତି  ଏବେ ଏହି FPOର ବାର୍ଷିକ କାରବାର ରାଶି ଦେଢ଼ କୋଟିରୁ ଅଧିକ ହୋଇଗଲାଣି  ଆଜି କଳାହାଣ୍ଡିର ପରିବା ଖାଲି ଓଡ଼ିଶାରେ ନୁହେଁବରଂ ଅନ୍ୟ ରାଜ୍ୟମାନଙ୍କରେ ମଧ୍ୟ ପହଞ୍ଚୁଛି ଏବଂ ସେଠିକାର କୃଷକମାନେ ଏବେ ଆଳୁ ଏବଂ ପିଆଜ ଚାଷର ନୂତନ ପ୍ରଣାଳୀ ଶିଖୁଛନ୍ତି 

ବନ୍ଧୁଗଣକଳାହାଣ୍ଡିର ଏହି ସଫଳତା ଆମକୁ ଶିଖଉଛି ଯେ ସଂକଳ୍ପଶକ୍ତି ଏବଂ ସାମୂହିକ ପ୍ରଚେଷ୍ଟା ଦ୍ୱାରା  କରାଯାଇ  ପାରେ । ମୁଁ ଆପଣ ସମସ୍ତଙ୍କୁ ଅନୁରୋଧ କରୁଛି :-

- ନିଜ ଅଞ୍ଚଳରେ FPO ଗଠନକୁ ଉତ୍ସାହିତ କରନ୍ତୁ ।

- କୃଷକ ଉତ୍ପାଦକ ସଂଗଠନଗୁଡ଼ିକ ସହିତ ଯୋଡ଼ିହୁଅନ୍ତୁ ଏବଂ ସେଗୁଡ଼ିକୁ ମଜଭୁତ୍ କରନ୍ତୁ ।

ମନେରଖନ୍ତୁ – ଛୋଟିଆ ପ୍ରୟାସରୁ ମଧ୍ୟ ବଡ଼ ପରିବର୍ତ୍ତନ ସମ୍ଭବ ହୁଏ । ଖାଲି ଆମର ଦୃଢ଼ ସଂକଳ୍ପ ଏବଂ ସାମୂହିକ ଭାବନାର ଆବଶ୍ୟକତା ରହିଛି ।

ବନ୍ଧୁଗଣ, ଆଜିର ‘ମନ୍ କି ବାତ୍’ରେ ଆମେ ଶୁଣିଲେ, କେମିତି ଆମ ଭାରତ ବିବିଧତାରେ ଏକତା ସହ ଆଗକୁ ବଢ଼ୁଛି । ସେ ଖେଳପଡ଼ିଆ ହେଉ ବା ବିଜ୍ଞାନ, ସ୍ୱାସ୍ଥ୍ୟ ହେଉ ଅବା ଶିକ୍ଷା - ପ୍ରତ୍ୟେକ କ୍ଷେତ୍ରରେ ଭାରତ ନୂତନ ଶିଖରକୁ ଛୁଇଁ ଚାଲିଛି । ଆମେମାନେ ଗୋଟିଏ ପରିବାର ଭଳି ମିଳିମିଶି ପ୍ରତ୍ୟେକ ଆହ୍ୱାନର ସାମ୍ନା କଲେ ଏବଂ ସଫଳ ହେଲେ । ୨୦୧୪ରୁ ଆରମ୍ଭ ହୋଇଥିବା ‘ମନ୍ କି ବାତ୍’ର ୧୧୬ତମ ଅଧ୍ୟାୟରେ ମୁଁ ଦେଖିଛି ଯେ ‘ମନ୍ କି ବାତ୍’ ଦେଶର ସାମୂହିକ ଶକ୍ତିର ଗୋଟିଏ ଜୀବନ୍ତ ଦସ୍ତାବିଜ ହୋଇଯାଇଛି । ଆପଣମାନେ ସମସ୍ତେ ଏହି କାର୍ଯ୍ୟକ୍ରମକୁ ଆପଣାର କରିଛନ୍ତି । ପ୍ରତିମାସରେ ଆପଣମାନେ ନିଜର ବିଚାର ଏବଂ ପ୍ରୟାସ ସମ୍ବନ୍ଧରେ ମୋତେ ଜଣାଇଛନ୍ତି । କେତେବେଳେ କେଉଁ Young Innovatorର ଚିନ୍ତାଧାରା ପ୍ରଭାବିତ କରିଛି ତ କେତେବେଳେ କୌଣସି ଝିଅର ସଫଳତା ଆମକୁ ଗୌରବାନ୍ୱିତ କରିଛି । ଏହା ଆପଣ ସମସ୍ତଙ୍କର ସହଭାଗିତା ଯାହା ଦେଶର କୋଣ ଅନୁକୋଣରୁ ସକରାତ୍ମକ ଶକ୍ତିକୁ ଏକାଠି କରିଛି । ‘ମନ୍ କି ବାତ୍’ ଏହି ସକରାତ୍ମକ ଶକ୍ତିର ବିସ୍ତାରର ମଞ୍ଚ ହୋଇପାରିଛି । ଏବେ ୨୦୨୫ ପାଖେଇ ଆସିଲାଣି । ଆସନ୍ତା ବର୍ଷ ‘ମନ୍ କି ବାତ୍’ ମାଧ୍ୟମରେ ଆମେ ଆହୁରି ପ୍ରେରଣାଦାୟୀ ପ୍ରୟାସଗୁଡ଼ିକୁ ସାମିଲ୍ କରିବା । ମୋର ବିଶ୍ୱାସ ଯେ ଦେଶବାସୀଙ୍କ ସକାରାତ୍ମକ ଭାବନା ଏବଂ ନୂତନ ଚିନ୍ତାଧାରା ଦ୍ୱାରା ଭାରତ ଏକ ନୂତନ ଶିଖରକୁ ଛୁଇଁପାରିବ । ଆପଣ ନିଜ ଆଖପାଖର ନିଆରା ପ୍ରୟାସ ଗୁଡ଼ିକୁ #Mannkibaatରେ ପଠାନ୍ତୁ । ମୁଁ ଜାଣିଛି ଯେ ଆସନ୍ତା ବର୍ଷର ପ୍ରତ୍ୟେକ ‘ମନ୍ କି ବାତ୍’ରେ ଆମ ପାଖରେ ପରସ୍ପରକୁ ଜଣେଇବା ପାଇଁ ବହୁତ କିଛି ଥିବ । ଆପଣମାନଙ୍କୁ ୨୦୨୫ର ବହୁତ ବହୁତ ଶୁଭକାମନା । ସୁସ୍ଥ ରୁହନ୍ତୁ ଖୁସି ରୁହନ୍ତୁ, Fit India Movementରେ ଆପଣ ମଧ୍ୟ ଯୋଗଦିଅନ୍ତୁ ଏବଂ ନିଜକୁ ସୁସ୍ଥ ରଖନ୍ତୁ । ଜୀବନରେ ପ୍ରଗତି କରନ୍ତୁ । ବହୁତ ବହୁତ ଧନ୍ୟବାଦ ।