उपस्थित सभी वरिष्ठ महानुभाव और नौजवान साथी,
अम्बेडकर यूनिवर्सिटी में दीक्षांत समारोह के लिए मुझे आने का सौभाग्य मिला है। बाबा साहेब अम्बेडकर ने इस देश को बहुत कुछ दिया। लेकिन एक बात जो इस देश के भविष्य के लिए अनिवार्य है और जिसके लिए बाबा साहेब समर्पित थे, एक प्रकार से उसके लिए वो जिए थे, उसके लिए वो जूझते थे और वो बात थी, शिक्षा। वो हर किसी को यही बात बताते थे कि अगर जीवन में कठिनाइयों से मुक्ति का अगर कोई रास्ता है तो शिक्षा है। अगर जीवन में संघर्ष का अवसर आया है तो संघर्ष में भी विजयी होकर निकलने का रास्ता भी शिक्षा है। और उनका मंत्र था - शिक्षित बनो, संगठित बनो, संघर्ष करो। ये संघर्ष अपने आप के साथ भी करना होता है। अपनो के साथ भी करना होता है और अपने आस-पास भी करना पड़ता है। लेकिन ये तब संभव होता है जब हम शिक्षित हो और उन्होंने अपने मंत्र के पहले शब्द भी शिक्षित बनो कहा था।
बाबा साहेब अम्बेडकर भगवान बुद्ध की परंपरा से प्रेरित थे। भगवान बुद्ध का यही संदेश था अप्प दीपो भव:। अपने आप को शिक्षित करो। पर प्रकाशित जिन्दगी अंधेरे का साया लेकर के आती है और स्वप्रकाशित जिन्दगी अंधेरे को खत्म करने की गारंटी लेकर के आती है और इसलिए जीवन स्व प्रकाशित होना चाहिए, स्वयं प्रकाशित होना चाहिए। और उसका मार्ग भी शिक्षा से ही गुजरता है। लेकिन कभी-कभार बाबा साहेब अम्बेडकर को समझने में हम बहुत कम पड़ते हैं। वह ऐसा विराट व्यक्तित्व था, वो ऐसा वैश्विक व्यक्तित्व था। वो युग-युगांतर से संपर्क प्रभाव पैदा करने वाला व्यक्तित्व था कि जिसको समझना हमारी क्षमता के दायरे से बाहर है। लेकिन जितना हम समझ पाते हैं, वो संदेश यही है – हम कल्पना करे कि हमारे जीवन में कुछ कठिनाई हो, कुछ कमी हो और उससे फिर कुछ निकलने का इरादा हो तो हम कितने छटपटाते हैं। सबसे पहले शिकायत से शुरू करते हैं या कही से मांगने के इंतजार में रहते हैं। बाबा साहेब अम्बेडकर का जीवन देखिए। हर प्रकार की कठिनाईयां, हर प्रकार की उपेक्षा, हर प्रकार का अपमान। न पारिवारिक background था कि जिसमें शिक्षा संभव हो, न सामाजिक रचना की अवस्था थी कि इस कोख से जन्मे हुए व्यक्ति को शिक्षा का अवसर प्राप्त हो। संकट अपरमपार थे, लेकिन इस महापुरुष के भीतर वो ज्योत थी, वो तड़पन थी, वो सामर्थ्य था। उन्होंने शिकायत में समय नहीं गंवाया। रोते-बैठने का पसंद नहीं किया। उन्होंने राह चुनी; संकटों से सामना करने की, सारे अवरोधों को पार करने की, उपेक्षा के बीच भी, अपमान के बीच भी अपने भय भीतर के बीच जो संकल्प शक्ति थी उसको विचलित नहीं होने दिया और आखिर तक उन्होंने करके दिखाया।
बहुत कम लोगों को मालूम होगा, हम ज्यादातर तो जानते हैं कि वो संविधान के निर्माता थे, लेकिन अमेरिका में वो पहले भारतीय थे जिसने अर्थशास्त्र में पीएचडी प्राप्त की थी। और उनके सामने दुनिया में हर जगह पर व्यक्ति के जीवन के सुख वैभव के लिए सारी संभावनाएं मौजूद थी लेकिन उन्होंने खुद के लिए जीना पसंद नहीं किया, वरना वो जी सकते थे। दुनिया के हर देश में उनका स्वागत और सम्मान था। उन्होंने सब कुछ पाने के बाद ये सब समर्पित कर दिया इस भारत माता को। वापिस आए और उसमें भी उन्होंने तय किया कि मैं अपने जीवन काल में दलित, पीड़ित, शोषित, वंचित उनके लिए मेरी जिन्दगी काम आए, मैं खपा दूंगा और वो जीवन भर ये करते रहे।
हम अम्बेडकर यूनिवर्सिटी के विद्यार्थी हैं। मां-बाप जब बच्चे को जन्म देते हैं। उस समय उसे जितना आनन्द होता है, उससे ज्यादा आनन्द अपना संतान, बेटा या बेटी शिक्षित-दीक्षित होकर के समाज जीवन में प्रवेश करता है। आज की पल वो आपके जन्म के समय आपके मां-बाप को जितना आनन्द हुआ होगा, उससे ज्यादा आन्नद का पल उनके लिए होगा जबकि आप जीवन के एक महत्वपूर्ण काल खंड को पूर्ण करके एक जीवन के दूसरे कालखंड में प्रवेश कर रहे हैं।
हमारे यहां दीक्षांत समारोह की परंपरा पहला उल्लेख तैतृक उपनिषद में नज़र आता है। हजारो वर्ष पहले, सबसे पहले दीक्षांत समारोह का उल्लेख तैतृक उपनिषद में हैं। जब गुरुकुल में शिष्यों को दीक्षा दी जाती थी और तब से लेकर के विश्व में हर समाज में दीक्षांत समारोह की एक परंपरा है और यहां से जब जाते हैं तो आपको ढेर सारे उपदेश दिए जाते हैं, बार-बार दिए जाते हैं। आपको classroom में भी कहा गया है, ये करना है, ये नहीं करना है। ऐसा करना है, वैसा करना है। आपको भी लगता होगा, बहुत हो गया भई। हम को हमारे पर छोड़ दो और इसलिए आपको क्या करना, क्या नहीं करना, ये अगर मुझको समझाना पड़े, आपकी शिक्षा अधूरी है।
शिक्षा वो हो जो करणीय और अकरणीय के भेद भलीभांति आपको सिद्धहस्त होना चाहिए और वो किताबों से ही आता है, ऐसा नहीं है। किताबों से ज्ञान प्राप्त होता है और आजकल तो Google गुरु के सारे विद्यार्थी हैं। Class room में जो उनका Teacher है, उससे बड़ा गुरु, Google है। हर सवाल का जवाब वो Google गुरु से पूछते हैं और वो जवाब देता है। एक प्रकार से information का युग है। जिसके पास जितनी ज्यादा information होगी वो ज्यादा शक्तिशाली माना जाएगा लेकिन कठिनाई ये है, information के स्रोत इतने ज्यादा हो गए हैं, उसमें से छांटना। मेरे लिए कौन सी information जरूरी है और मेरे लिए वो कौन सी information उपयोगी है, जिसके माध्यम से मैं समाज के लिए काम आ सकूं या अपने जीवन में कुछ कर दिखाऊं, ये छांटना मुश्किल होता है और वो छांटने के लिए, Information में से अपने उपयुक्त चीजें छांटने के लिए, जो विधा चाहिए, वो विधा university के class room में अपने शिक्षकों से पढ़ते-पढ़ते मिलती है। आप उस विधा को प्राप्त करके अपने जीवन में एक नई दिशा की ओर जा रहे हैं।
कभी हमें लगता होगा कि मैंने बहुत मेहनत की, दिन-रात पढ़ता था इसलिए मुझे मेडल मिल रहा है, इसलिए मुझे डिग्री प्राप्त हो रही है। किसी को ये भी लगता होगा कि मेरे मां-बाप ने मेरे लिए बहुत कुछ किया, मुझे अवसर दिया। मैं आज पढ़-लिखकर के स्थान पर पहुंचा, मां-बाप के प्रति अच्छा भाव जागता होगा। किसी को ये भी लगता होगा कि आज मेरे गुरुजनों ने मुझे पढ़ाया उसके कारण मैं यहां पर पहुंचा हर कोई अपनी-अपनी सोच के दायरे से, उसको लगता होगा कि मैं जहां पहुंचा रहा हूं, वहां किसी न किसी का योगदान है लेकिन हमें जो दिखता है, उससे भी परे एक बहुत बड़ा विश्व है। जिसने भी मुझे ये डिग्री पाने तक कोई न कोई सहायता की है। हो सकता है कभी न मैंने उसको देखा हो, कभी न मैंने उसको सुनो हो लेकिन उसका भी कोई न कोई योगदान है। क्या कभी सोचा है, मैं जो किताब पढ़ता था, मैं जो note book में लिखता था, वो कागज किसी कारखाने में बना होगा। कोई मजदूर होगा जो अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए तो बेचारा पैसा नहीं खर्च पाया था, लेकिन मेरे लिए कागज बनाता था, वो कागज किसी फैक्ट्री में गया होगा। कोई तो गरीब बेटा होगा, जो प्रिंटर के यहां नौकरी करता होगा। हमारे लिए वो computer पर typing करता होगा, हमारे किताब तैयार करता होगा, कोई गलती न रहा जाए, वो graduate हुआ हो, या न हुआ हो लेकिन typography में कोई गलती न रह जाए वरना आने वाली पीढ़ियां अशिक्षित रह जाएंगीं, गलतियों वाला पढ़ेगी। ये चिंता, ये चिंता उस व्यक्ति ने की होगी, जिसको कभी कॉलेज के दरवाजे देखने का अवसर नहीं मिला होगा तब जाकर के वो किताब मेरे हाथ में आई होगी और तब जाकर के मैं पढ़ पाया। समाज के कितना हम पर कर्ज होता है। अरे इसी कैंपस में अगर आप रहते होंगे, Exam होगी, record break करने का इरादा होगी, रात-रात पढ़ते होंगे और कभी रात को 2 बजे मन कर गया होगा यार चाय मिल जाए तो अच्छा होता और फिर कमरे से बाहर निकल करके, किसी पेड़ के नीचे कोई चाय बेचने वाला सोया होगा तो उसको जगाया होगा यार आज सुबह-कल पढ़ना बहुत है एक चाय बना दो। ठंड लगती होगी, बुढ़ापा होगा लेकिन उसने जगकर के आपके लिए चाय बनाई होगी। आप पढ़-लिखकर के कितने ही बड़े बाबू बन जाएं, उसके लिए कुछ करने वाले नहीं हो, उसको पता है लेकिन आपकी इच्छा है कुछ बनने की और उसकी रात खराब होती है और चाय आपके काम आ जाती है तो उसका आनंद उसे और होता है।
मेरे कहने का तात्पर्य ये है कि हम जहां भी हैं, जो कुछ भी हैं, जो भी बनने जा रहे हैं, अपने कारण नहीं बनते हैं, ये पूरा समाज है, जिसके छोटे से छोटे व्यक्ति का हमारे लिए कोई न कोई योगदान है तब जाकर के हमारी जिंदगी बनती है। इस दीक्षांत समारोह से मैं जा रहा हूं तब ये university की दीवारें, ये class room की दीवारें, ये teacher, ये किताबें, ये lesson, ये exam, ये result, ये gold medal, क्या मेरी दुनिया वहीं सिमटकर रह जाएगी, जी नहीं मेरी दुनिया वहां रहकर के नहीं सिमट सकती, मैं तो अंबेडकर यूनिवर्सिटी से निकला हूं, जो इंसान दुनिया की अच्छी से अच्छी university से PHD की डिग्री प्राप्त करने वाला पहला भारतीय था लेकिन मन कर गया, हिंदुस्तान वापस जाऊंगा और अपने आप को देश के गरीबों के लिए खपा दूंगा। अगर उस university का मैं विद्यार्थी हूं, मैं भी किसी के लिए कुछ कर गुजरूं, ये जीवन का संदेश लेकर के मैं जा सकता हूं। लेना, पाना, बनना, ये कोई मुश्किल काम नहीं है दोस्तों, इसके लिए रास्ते भी बहुत मिल जाते हैं लेकिन मुश्किल होता है, कुछ करना। लेना, पाना, बनना मुश्किल नहीं है। कुछ करना, कुछ करने का इरादा, उस इरादे को पार करने के लिए जिंदगी खपाना, ये बहुत कठिन होता है और इसलिए आज जब हम जा रहे हैं तब कुछ करने के इरादे से निकल सकते हैं क्या अगर कुछ करने के इरादे से निकल सकते हैं तो क्या बनते हैं, इसकी चिंता छोड़ दीजिए, वो करने का संतोष इतना है, वो आपको कहीं न कहीं पहुंचा ही देगा, कुछ न कुछ बना ही देगा और इसलिए जीवन को उस रूप में जीने का, पाने का प्रयास, जिंदगी से जूझना, सीखने चाहिए दोस्तों। दुनिया में जितने भी महापुरुष हमने देखे हैं। हर महापुरुष को हर चीज सरलता से नहीं मिली है। बहुत कम लोग होते हैं जिनको मक्खन पर लकीर करने का सौभाग्य होता है ज्यादा वो लोग होते हैं, जिनके नसीब में पत्थर पर ही लकीर करना लिखा होता है और इसलिए जीवन की शुरुआत, अब होती है।
अब तक तो आप protected थे, मां-बाप की अपेक्षा थी तो भी मन बना लेते थे कि यार बेटा अभी पढ़ता है, ज्यादा बोझ नहीं डालते थे। आप भी university में थे, कुछ कठिनाई होती थी, यार-दोस्तों से पूछ लेते थे, teacher से बात कर लेते थे, faculty member से पूछ लेते थे। एक protected environment था, किसी बात की जरुरत पड़े, कोई न कोई हाथ फेराने के लिए था लेकिन यहां से निकलने के बाद वो सब समाप्त हो जाएगा। अब कोई आपकी चिंता नहीं करेगा। अचानक कल तक आप विद्यार्थी थे, सारी दुनिया आपका ख्याल करती थी। आज विद्यार्थी पूरे हो गए, नई जिंदगी की शुरुआत हो गई, सारी दुनिया का आपकी तरफ देखने का नजरिया बदल जाता है। मां-बाप भी पूछेंगे, बेटा आगे क्या है, कुछ किया क्या, कुछ सोचा क्या। 3 महीने के बाद कहेंगे, क्यों भई कुछ हो नहीं रहा क्या, भटकते हो क्या, कुछ काम पर लगो। ये होना है, यानि जीवन की कसौटी अब शुरू होती है और जीवन की कसौटी अब शुरू होती है तब हर पल हमें वो बातें याद आती हैं जब class room में teacher ने कहा था तब वो बात मजाक लगती थी अब जब जिंदगी के दायरे में कदम रखते हैं तब लगता है कि यार teacher उस दिन तो कहते थे, उस दिन तो मजाक किया लेकिन आज जरुरत पढ़ गई, हर बात याद आएगी और वो ही जिंदगी जीने का सबसे बड़ा सहारा होता है। एक विश्वास के साथ चलें, मैंने जो कुछ भी जीवन में पाया है, इस कसौटी में उसकी धार और तेज होगी, मैं कुठिंत नहीं होने दूंगा, मैं अपने आप को निराशा की गर्त में डूबने नहीं दूंगा। मैं संकटों के सामने जूझते हुए जीवना का एक रास्ता ढूंढगा, ये मनोविश्वास बहुत आवश्यक होता है, विफलताएं आती हैं जीवन में लेकिन कभी-कभी अगर सफलता का खाद कोई करता है तो असफलता ही तो सफलता का खाद बनती है, वही fertilizer का काम करती है। असफलताओं से डरना नही चाहिए और यार-दोस्तों के बीच में शर्मिंदगी भी महसूस नहीं करना चाहिए लेकिन चिंता तब होती है जब कोई असफलता से सीखने को तैयार नहीं होता है फिर उसकी जिंदगी में सफलता दरवाजे पर दस्तक नहीं देती है। और इसलिए जिंदगी का सबसे बड़ा सबक जो होता है, वो होता है असफलताओं से सीखना कैसे है, असफलताओं में से भी ऊर्जा कैसे प्राप्त करनी है और जब ज्यादातर वो लोग सफल होते हैं जो असफलताओं को भी अपनी सफलता की सीढ़ी में परिवर्तित करती हैं।
मुझे विश्वास है आपने यहां जो 3 साल, 4 साल, 5 साल जो भी समय बिताया होगा, जो कुछ भी प्राप्त किया होगा, वो आपको जीवन में आने वाले हर मोड़ पर अच्छी अवस्था में स्थिरता दें, पूरे समय संतुलन दें, मैं नहीं मानता हूं जीवन में कभी निराश होने का अवसर आएगा, संतुलित जीवन भी बहुत आवश्यक होता है। अच्छाई में जो बहक न जाए और कठिनाई में जो मुरझा न जाए वो ही तो जिंदगी होनी चाहिए और इसलिए उस भाव को लेकर के चलते हैं तो जीवन में कुछ बनाकर के दिखाना चाहिए।
मैं आज जब नौजवानों के बीच में खड़ा हूं तब एक तरफ मेरे जीवन में इतना बड़ा आनंद है क्योंकि मैं अनुभव करता हूं कि 21वीं सदी हिंदुस्तान का सदी है और 21वीं सदी हिन्दुस्तान की सदी इसलिए है कि भारत दुनिया का सबसे जवान देश है। 65 प्रतिशत नौजवान 35 साल से कम उम्र के है। यह देश जवान है, इस देश के सपने भी जवान है। इस देश के संकल्प भी जवान है और इस देश के लिए मर-मिटने वाले भी जवान है। ये युवा शक्ति हमारी कितनी बड़ी धरोहर है, ये हमारे लिए अनमोल है। लेकिन उसी समय जब ये खबर मिलती है कि मेरे इस देश के नौजवान बेटे रोहित को आत्महत्या करने के लिए मजबूर होना पड़ा है। उसके परिवार पे क्या बीती होगी। माँ भारती ने अपना एक लाल खोया। कारण अपनी जगह पर होंगे, राजनीती अपनी जगह पर होगी, लेकिन सच्चाई यही है कि माँ ने एक लाल खोया। इसकी पीड़ा मैं भली-भांति महसूस करता हूँ।
लेकिन हम इस देश को इस दिशा में ले जाना चाहते हैं, जहाँ नया उमंग हो, नया संकल्प हो, नया आत्म-विश्वास हो, संकटों से जूझने वाला नौजवान हो और बाबा साहेब अम्बेडकर के जो सपने थे, उन सपनों को पूरा करने का हमारा अविरत प्रयास है। उस प्रयास को आगे लेकर के आगे चलना है। यह बात सही है कि जिन्दगी में दो क्षेत्र माने गये विकास के हमारे देश में, ज्यादा ज्यादातर। एक Public sector, एक private sector...corporate world. एक तरफ सरकार की PSU’s है दूसरी तरफ corporate world है। बाबा साहेब अम्बेडकर के सपनों की जो अर्थव्यवस्था है, उस अर्थव्यवस्था के बिना यह देश आर्थिक प्रगति नहीं कर सकता है। बाबा साहेब अम्बेडकर ने जो आर्थिक विकास के सपने देखे थे, उन सपनों की पूर्ति करनी है तो निजी क्षेत्र का अत्यंत महत्व है और मैं निजी क्षेत्र कहता हूं मतलब। मेरी परिभाषा अलग है, हर individual अपने पैरों पर कैसे खड़ा रहे। मेरे देश का नौजवान job-seeker न बने, मेरे देश का नौजवान job-creator बने।
अभी कुछ दिन पहले मुझे दलित उद्योगकारों के सम्मेलन में जाने का अवसर मिला और एक अलग chamber of commerce चलता है जिसमें सारे दलित उद्योगकार है और मुझे वो दृश्य देखकर के इतना आनन्द हुआ। मैंने देखा यहां ये बाबा साहेब अम्बेडकर का सपना मुझे यहां नज़र आता है। इस देश में स्वरोजगारी का सामर्थ्य कैसे बढ़े और इसके लिए skill development, Start-Up इसको बल दे रहे हैं। हमने बैंकों को सूचना देकर के रखी है। देश में सवा लाख branch है बैंकों की, सवा लाख। हमने उनको कहा है कि आप एक branch, एक दलित या उस इलाके में tribal है तो एक tribal और एक महिला। उनको Start-Up के लिए पैसे दे। 20 लाख, 50 लाख दे और without guarantee दे। innovation करने के लिए, नई चीज करने के लिए उसको प्रेरित करे और वो अपने पैरों पर खड़ा हो, बाद में दो-पांच-दस लागों को रोजगार देने वाली ताकत वाला बने। समस्याओं के समाधान के लिए innovation लेकर के, नई चीज लेकर के आए। अगर सभी बैंक की branch इस काम को करे तो ढाई लाख-तीन लाख लोग एक साथ नए, नई पीढ़ी के नौजवान, व्यावसायिक जगत में, उद्योग जगत में, innovation की दुनिया में enter हो सकते हैं और इसलिए मैंने ‘Start-up India, Stand-Up India’ का एक बड़ा अभियान चलाया है। मैं चाहता हूं नौजवानों को करने के लिए बहुत कुछ है, सिर्फ इरादा चाहिए। बाकी व्यवस्थाएं अपने आप जुड़ जाती है। आज आप यहां से निकल रहे हैं, उसी इरादे के साथ निकले। कुछ पाकर के निकले और कुछ देने के लिए निकले और मैंने जैसे कहा, एक बहुत बड़ा जगत है जिसके कारण मैं कुछ बन रहा हूं, उस जगत के लिए जीएं, उनके लिए कुछ करे। यही मेरी आप सबको शुभकामनाएं हैं।
आपके मां-बाप के सपनों को पूरा करने के लिए आपको शक्ति मिले। आप अपने जीवन में संकल्पों को पूर्ण करने के लिए ताकत प्राप्त करे, इसी एक अपेक्षा के साथ बहुत-बहुत शुभकमानाएं, बहुत-बहुत धन्यवाद।