Our definition of democracy can't be restricted to elections & governments only. Democracy is strengthened by ‘Jan Bhagidari’: PM
It is public participation that strengthens democracy: PM Modi
Mahatma Gandhi brought sea change in the freedom struggle. He made it a 'Jan Andolan': PM
I want to make India's development journey a 'Jan Andolan'; everyone must feel he or she is working for India's progress: PM Modi
#SwachhBharat has turned into a people’s movement: PM Narendra Modi
Democracy faces threat of 'Mantantra' and 'Moneytantra': Prime Minister
Restricting ourselves to private & public sectors will limit our development. The personal sector is a source of great strength: PM
Small scale industries are growing & providing jobs to several people across the country: PM
Our Government has launched 'Mudra Bank Yojana' to boost the small scale industries: PM Modi

श्री संजय गुप्‍ता जी, श्री प्रशांत मिश्रा जी, उपस्थित सभी गणमान्‍य महानुभाव जागरण परिवार के सभी स्‍वज़न... 

हमारे यहां कहा जाता है कि राष्ट्रयाम जाग्रयाम वयम: eternal vigilance is the price of liberty और आप तो स्‍वयं दैनिक जागरण कर रहे हैं। कभी-कभी यह भी लगता है कि, कि क्‍या लोग 24 घंटे में सो जाते हैं, कि फिर 24 घंटे के बाद जगाना पड़ता है। लेकिन लोकतंत्र की सबसे पहली अनिवार्यता है और वो है जागरूकता और उस जागरूकता के लिए हर प्रकार के प्रयास निरन्‍तर आवश्‍यक होते हैं। अब जितनी मात्रा में जागरूकता बढ़ती है, उतनी मात्रा में समस्‍याओं के समाधान के रास्‍ते अधिक स्‍पष्‍ट और निखरते हैं, जन भागीदारी सहज बनती है और जहां जन-भागीदारी का तत्व बढ़ता है, उतनी ही लोकतांत्रिक व्‍यवस्‍थाएं मजबूत होती हैं, विकास की यात्रा को गति आती है और लक्ष्‍य प्राप्ति निश्चित हो जाती है।

उस अर्थ में लोकतंत्र की यह पहली आवश्‍यकता है निरन्तर जागरण| जाने अनजाने में यह क्‍यों न हो लेकिन हमारे देश में लोकतंत्र का एक सीमित अर्थ रहा और वो रहा, चुनाव, मतदान और सरकार की पसंद| ऐसा लगने लगा मतदाताओं को कि चुनाव आया है तो अगले पांच साल के लिए किसी को कॉन्‍ट्रेक्‍ट देना है, जो हमारी समस्‍याओं का समाधान कर देगा और अगर पांच साल में वो कॉन्‍ट्रेक्‍ट में fail हो गया तो दूसरे को ले आएंगे। यह सबसे बड़ी हमारे सामने चुनौती भी है और कमी भी । लोकतंत्र अगर मतदान तक सीमित रह जाता है, सरकार के चयन तक सीमित रह जाता है, तो वो लोकतंत्र पंगु हो जाता है।

लोकतंत्र सामर्थ्‍यवान तब बनता है, जब जन-भागीदारी बढ़ती है और इसलिए जन-भागीदारी को हम जितना बढायें| अलग-अलग तरीके हो सकते हैं। अगर हम हमारे देश के आजादी के आंदोलन की ओर देखें- ऐसा नहीं है कि इस देश में आजादी के लिए मरने वालों की कोई कमी रही। देश जब से गुलाम हुआ तब से कोई दशक ऐसा नहीं गया होगा कि जहां देश के लिए मर मिटने वालों ने इतिहास में अपना नाम अंकित न किया हो। लेकिन होता क्‍या था , वे आते थे, उनका एक जब्‍बा होता था और वो मर मिट जाते थे। फिर कुछ साल बाद स्थिरता आ जाती थी फिर कोई पैदा हो जाता था। फिर निकल पड़ता था। फिर उसकी आदत हो जाती थी। आजादी के आंदोलन के लिए मरने वालों का तांता अविरत था, निरंतर था। लेकिन गांधी जी ने जो बहुत बड़ा बदलाव लाया वो यह था कि उन्‍होंने इस आजादी की ललक को जन आंदोलन में परिवर्तित कर दिया। उन्‍होंने सामान्‍य मानविकी को , आजादी के आंदोलन का सिपाही बना दिया था।

एक आध वीर शहीद तैयार होता था, तो अंग्रेजों के लिए निपटना बड़ा सरल था। लेकिन यह जो एक जन भावना का प्रबल, आक्रोश प्रकट होने लगा, अंग्रेजों के लिए उसको समझना भी मुश्किल था | उसको हैंडल कैसे करना है यह भी मुश्किल था और महात्‍मा गांधी ने इसको इतना सरल बना दिया था कि देश को आजादी चाहिए न , अच्‍छा तुम ऐसा करो तकली ले करके, रूई ले करके, धागा बनाना शुरू कर दो, देश को आजादी आ जाएगी। किसी को कहते थे कि आपको आजादी का सिपाही बनना है तो अगर तुम्‍हारे गांव में निरक्षर है उनको शिक्षा देने का काम करो, आजादी आ जाएगी। किसी को कहते थे तुम झाडू लगाओ, आजादी आ जाएगी।

उन्‍होंने हर सामाजिक काम को स्वयं से जो भी अलग होता था उसको उन्‍होंने राष्‍ट्र की आवश्‍यकता के साथ जोड़ दिया और जन-आंदोलन में परिवर्तित कर दिया। सिर्फ सत्‍याग्रह ही जन-आंदोलन नहीं था। समाज सुधार का कोई भी काम एक प्रकार से आजादी के आंदोलन का एक हिस्‍सा बना दिया गया था और उसका परिणाम यह आया कि देश के हर कोने में हर समय कुछ न कुछ चलता था। कोई कल्‍पना कर सकता है ? अगर आज बहुत बड़ा मैनेजमेंट expert होगा कोई बहुत बड़ा आंदोलन शास्‍त्र का जानकार होगा। उसको कहा जाए कि भाई एक मुटठी भर नमक उठाने से कोई सल्‍तनत चली जा सकती है यह thesis बना कर दो हमको, मैं नहीं मान सकता हूं कि कोई कल्‍पना कर सकता है कि एक मुटठी भर नमक की बात एक सल्‍तनत को नीचे गिराने का एक कारण बन सकती है। यह क्‍यों हुआ , यह इसलिए हुआ कि उन्‍होंने आजादी के आंदोलन को जन-जन का आंदोलन बना दिया था।

आजादी के बाद अगर देश ने अपनी विकास यात्रा का मॉडल गांधी से प्रेरणा ले करके जन भागीदारी वाली विकास यात्रा, जन आंदोलन वाली विकास यात्रा, उसको अगर तवज्जो दी होती तो आज जो बन गया है सब कुछ सरकार करेगी| कभी-कभी तो अनुभव ऐसा आता है कि किसी गांव में गड्ढ़ा हो, रोड पर और वो पांच सौ रूपये के खर्च से वो गड्ढ़ा भरा जा सकता हो लेकिन गांव का पंचायत का प्रधान गांव के दो चार और मुखिया किराये पर जीप खरीदेंगे लेंगे , सात सौ रूपया जीप का किराया देंगे और state headquarter पर जाएंगे और memorendum देंगे कि हमारे गांव में गड्ढ़ा है उस गड्ढे को भरने के लिए कुछ करो। यह स्थिति बन चुकी है| सबकुछ सरकार करेगी।

गांधी जी का model था- सारी सबकुछ जनता करेगी। आजादी के बाद जन-भागीदारी से अगर विकास यात्रा का मॉडल बनाया गया होता तो शायद हम सरकार के भरोसे जिस गति से चले हैं अगर जनता के भरोसे चलते तो उसकी गति हजारों गुना तेज होती | उसका व्‍याप, उसकी गहराई अकल्पित होती और इसलिए आज समय की मांग है कि हम भारत की विकास यात्रा को development को , एक जन-आंदोलन बनाएं।

समाज के हर व्‍यक्ति को लगना चाहिए कि मैं अगर स्‍कूल में टीचर हूं। मैं क्‍लास में पूरा समय जब पढ़ाता हूं, अच्‍छे से पढ़ाता हूं, मतलब कि मैं मेरे देश को नई ऊंचाईयों पर ले जाने के लिए काम कर रहा हूं। मैं अगर रेलवे का कर्मचारी हूं और मेरे पास जिम्‍मा है रेल समय पर चले। मैं इस काम को ठीक से करता हूं| रेल समय पर चलती है। मतलब मैं देश की बहुत बड़ी सेवा कर रहा हूं। मैं देश को आगे ले जाने की जिम्‍मेदारी निभा रहा हूं। हम अपने कर्तव्य को अपने काम को , राष्‍ट्र को आगे ले जाने का दायित्‍व मैं निभा रहा हूं। इस प्रकार से अगर हम जोड़ते हैं तो आप देखिए हर चीज का अपना एक संतोष मिलता है।

इन दिनों स्‍वच्‍छ भारत अभियान किस प्रकार से जन आंदोलन का रूप ले रहा है। वैसे यह काम ऐसा है कि किसी भी सरकार और राजनेता के लिए इसको छूना मतलब सबसे बड़ा संकट मोल लेने वाला विषय है, क्‍योंकि कितना ही करने के बाद दैनिक जागरण के फ्रंट पेज पर तस्‍वीर छप सकती है कि मोदी बातें बड़ी-बड़ी करता है, लेकिन यहां कूड़े-कचरे का ढेर पड़ा हुआ है। यह संभव है, लेकिन क्‍या इस देश में माहौल बनाने की आवश्‍यकता नहीं है। और अनुभव यह आया कि आज देश का सामान्‍य वर्ग, यहां जो बैठे हैं आपके परिवार में अगर पोता होगा तो पोता भी आपको कहता होगा कि दादा यह मत करो मोदी जी ने मना किया है। यह जन-आंदोलन का रूप है जो स्थितियों को बदलने का कारण बनता है। 

हमारे देश में वो एक समय था जब लाल बहादुर शास्‍त्री जी कुछ कहें तो देश उठ खड़ा होता था, मानता था। लेकिन धीरे-धीरे वो स्थिति करीब-करीब नहीं है| ठीक है आप लोगों को तो मजा आ रहा है। नेता बन गए हो, आपको क्‍या गंवाना है यह स्थिति आ चुकी थी। लेकिन अगर ईमानदारी से समाज की चेतना को स्‍पष्‍ट किया जाए तो बदलाव आता है। अगर हम यह कहें कि भई आप गरीब के लिए अपनी गैस सब्सिडी छोड़ दो, छोड़ना बहुत मुश्किल काम होता है। लेकिन यह देश आज मैं बड़े संतोष के साथ कहता हूं 52 लाख लोग ऐसे आए, जिन्‍होंने सामने से हो करके अपनी गैस सब्सिडी surrender कर दी।

यह जन-मन कैसे बदल रहा है उसका यह उदाहरण है। और सामने से सरकार ने भी कहा कि आप जो गैस सिलेंडर की सब्सिडी छोड़ोगे, वो हम उस गरीब परिवार को देंगे, जिसके घर में लकड़ी का चूल्‍हा जलता है, धुंआ होता है और बच्‍चे बीमार होते हैं, मां बीमार होती है, उसको मुक्ति दिलाने के लिए करेंगे और अब तक 52 लाख लोगों ने छोड़ा| 46 लाख लोगों को, 46 लाख गरीबों को already आवंटित कर दिया गया है। इतना ही नहीं जिसने छोड़ा उसको बता दिया गया कि उन्‍होंने मुंबई में यह छोड़ा लेकिन राजस्‍थान के जोधपुर के उस गांव के अंदर उस व्‍यक्ति को यह दे दिया गया है। इतनी transparency के साथ। जिसने छोड़ा....इसमें पैसे का विषय नहीं है।

समाज के प्रति एक भाव जगाने का प्रयास किस प्रकार से परिणाम लाता है। हम अंग्रेजों के जमाने में जो कानून बने , उसके साथ पले-बढ़े हैं। यह सही है कि हम गुलाम थे, अंग्रेज हम पर भरोसा क्यों करेगा। कोई कारण ही नहीं था और उस समय जो कानून बने वो जनता के प्रति अविश्‍वास को मुख्‍य मानकर बनाए गए। हर चीज में जनता पर अविश्‍वास पहली बेस लाइन थी। क्‍या आजादी के बाद हमारे कानूनों में वो बदलाव नहीं आना चाहिए जिसमें हम जनता पर सबसे ज्‍यादा भरोसा करें।

कोई कारण नहीं है कि सरकार में जो पहुंच गए...मैं elected representatives नहीं कह रहा हूं, सारे system पर, मुलाज़िम होगा clerk होगा। जो इस व्‍यवस्‍था में आ गए – वे ईमानदार है, लेकिन जो व्‍यवस्‍था के बाहर है वे याचक है। यह खाई लोकतंत्र में मंजूर नहीं हो सकती। लोकतंत्र में खाई रहनी नहीं चाहिए। अब यह छोटा सा उदाहरण मैं बताता हूं - हम लोगों को सरकार में कोई आवेदन करना है तो अपने जो सर्टिफिकेट होते थे, वो उसके साथ जोड़ने पड़ते थे, attest करने पड़ते थे। हमारा क्‍या था कानून, कि आपको किसी Gazetted officer के पास जा करके ठप्‍पा मरवाना पड़ेगा। उसे certify करवाना पड़ेगा, तब जाएगा। अब वो कौन Gazetted officer हैं जो verify करता हैं, अच्‍छा देख रहा हूं... आपका चेहरा ठीक है, कौन करता है, कोई नहीं करता। वो भी समय के आभाव में थोपता जाता है। उनके घर के बाहर जो लड़का बैठता है वो देता है । हमने आ करके कहा कि भई भरोसा करो न लोगों पर , हमने कहा यह कोई requirement नहीं है xerox का जमाना है, तुम xerox करके डाल दो जब फाइनल verification की जरूरत होगी, तब original देख लिया जाएगा। और आज वह चला गया विषय | चीजें छोटी है, लेकिन यह उस बात का प्रतिबिम्‍ब करती है कि हमारी सोच किस दिशा में है। हमारी पहली सोच यह है कि जनसामान्‍य पर भरोसा करो। उन पर विश्‍वास करो, उनके सामर्थ्‍य को स्‍वीकार करो। अगर हम जनसामान्‍य के स्‍वार्थ को स्‍वीकार करते हैं तो वो सच्‍चे अर्थ में लोकतंत्र लोकशक्ति में परिवर्तित होता है।

हमारे देश में लोकतंत्र के सामने दो खतरे भी है। एक खतरा है मनतंत्र का, दूसरा खतरा है मनीतंत्र का। आपने देखा होगा इन दिनों जरा ज्‍यादा देखने को मिलता है , मेरी मर्ज़ी , मेरा मन करता है, मैं ऐसा करूंगा। क्‍या देश ऐसे चलता है क्‍या? मनतंत्र से देश नहीं चलता है , जनतंत्र से देश चलता है। आपके मन में आपके विचार कुछ भी हो, लेकिन इससे व्‍यवस्‍थाएं नहीं चलती है। अगर सितार में एक तार ज्‍यादा खींचा होता है तो भी सुर नहीं आता है और एक तार ढीला होता है तो भी सुर नहीं आता है। सितार के सभी तार सामान रूप से उसकी खिंचाई होती है, तब जा करके आता है और इसलिए मनतंत्र से लोकतंत्र नहीं चलता है... मनतंत्र से जनतंत्र नहीं चलता है। जनतंत्र की पहली शर्त होती है मेरे मन में जो भी है जन व्‍यवस्‍था के साथ मुझे उसे जोड़ना पड़ता है। मुझे assimilate करना पड़ता है, मुझे अपने आप को dilute करना पड़े तो dilute करना पड़ता है। और अगर मुझमें रूतबा है तो मेरे विचारों से convince कर करके उसे बढ़ाते-बढ़ाते लोगों को साथ ले करके चलना होता है। हम इस तरीके से नहीं चल सकते |

दूसरा का चिंता विषय होता है - मनीतंत्र। भारत जैसे गरीब देश में मनीतंत्र लोकतंत्र पर बहुत बड़ा कुठाराघात कर सकता है। हम उससे लोकतंत्र को कैसे बचाएं। उस पर हमारा कितना बल होगा। मैं समझता हूं कि उसके आधार पर हम प्रयास करते हैं।

हम देखते हैं कि पत्रकारिता, भारत में अगर हम पत्रकारिता की तरफ नजर करें तो एक मिशन मोड में हमारे यहाँ पत्रकारिता चली| Journalism, अखबार सब पत्रिकाएं एक कालखंड था जहां पत्र-पत्रिका की मूल भूमिका रही समाज सुधार की। उन्‍होंने समाज में जो बुराइयां थी उन पर प्रहार किए। अपनी कलम का पूरा भरपूर उपयोग किया। अब राजा राममोहन राय देख लीजिए या गुजरात की ओर वीर नर्मद को देख लीजिए .. कितने सालों पहले, शताब्‍दी पहले वे अपनी ताकत का उपयोग समाज की बुराइयों पर कर रहे थे।

दसूरा एक कालखंड आया जिसमें हमारी पत्रकारिता ने आजादी के आंदोलन को एक बहुत बड़ा बल दिया। लोकमान्‍य तिलक , महात्‍मा गांधी , अरबिंदो घोष , सुभाष चंद्र बोस , लाला लाजपत राय , सब, उन्‍होंने कलम हाथ में उठाई। अखबार निकाले। और उन्‍होंने अखबार के माध्‍यम से आजादी के आंदोलन को चेतना दी और हम कभी-कभी सोचें तो हमारे देश में इलाहबाद में एक स्‍वराज नाम का अखबार था। आजादी के आंदोलन का वह अख़बार था। और हर अखबार के बाद जब editorial निकलता था , editorial छपता था और editorial लिखने वाला संपादक जेल जाता था। कितना जुल्‍म होता था। तो स्‍वराज अखबार ने एक दिन advertisement निकाली। उसने कहा, हमें संपादकों की जरूरत है। तनख्‍वाह में दो सूखी रोटी, एक गिलास ठंडा पानी और editorial छपने के बाद जेल में निवास। यह ताकत देखिए जरा। यह ताकत देखिए। इलाहाबाद से निकलता हुआ स्‍वराज अखबार ने अपनी लड़ाई नहीं छोड़ी थी | उसके सारे संपादकों की जेल निश्चित थी, जेल जाते थे, संपदाकीय लिखते थे और लड़ाई लड़ते थे। हिन्‍दुस्‍तान के गणमान्‍य लोगों का उसके साथ नाता रहा।

कुछ मात्रा में तीसरा काम जो रहा वो मिशन मोड पर चला है और वो है अन्‍याय के खिलाफ आवाज़ उठाना। चाहे समाज सुधार की बात हो, चाहे स्‍वतंत्रता आंदोलन हो, चाहे अन्‍याय के खिलाफ आवाज़ उठाने की बात हो हमारे देश की पत्र-पत्रिकाओं ने हर समय अपने कालखंड में कोई न कोई सकारात्‍मक भूमिका निभाई है। यह मिशन मोड, यह हमारे लोकतंत्र के लिए बहुत बड़ी जड़ी-बूटी है। उसको कोई चोट न पहुंचे, उसको कोई आंच न आ जाए। बाहर से भी नहीं, अंदर से भी नहीं। इतनी सजगता हमारी होनी चाहिए |

मैं समझता हूं - आजादी के आंदोलन में अब देखिए कनाडा से ग़दर अखबार निकलता था, लाला हरदयाल जी द्वारा और तीन भाषा में उस समय निकलता था- उर्दू, गुरूमुखी और गुजराती। कनाडा से वो आजादी की जंग की लड़ाई लड़ते थे। मैडम कामा, श्याम जी कृष्‍ण वर्मा.. ये लोग थे जो लंदन से पत्रकारिता के द्वारा भारत की आजादी की चेतना को जगाए रखते थे। उसके लिए प्रयास करते थे। और उस समय भीम जी खैराज वर्मा करके थे ...उन को सिंगापुर में पत्रकारिता के लिए फांसी की सजा दी गई। वह भारत की आजादी के लिए लड़ रहे थे। मेरा कहने का तात्पर्य यह है कि यह कंधे से कंधे मिला करके चलने वाली व्‍यवस्‍था है। दैनिक जागरण के माध्‍यम से इसमें जो भी योगदान दिया जा रहा है, वो योगदान राष्ट्रयाम जाग्रयाम वयम: उस मंत्र को साकार करने के लिए अविरत रूप से काम आएगा।

मैं कभी कभी कहता हूं minimum government maximum governance ...हमारे देश में एक कालखंड ऐसा था कि सरकारों को इस बात पर गर्व होता था कि हमने कितने कानून बनाए हैं। मैंने दूसरी दिशा में सोचा है | मेरा इरादा यह है कि जब मैं पांच साल मेरा कार्यकाल पूरा होगा यह, तब तक मैं रोज एक कानून खत्‍म कर सकता हूं क्या , यह इरादा है मेरा। अभी मैने काफी identify किए हैं। सैकड़ों की तादाद में already कर दिए हैं। राज्‍यों को भी मैंने आग्रह किया है। लोकतंत्र की ताकत इसमें है कि उसको कानूनों के चंगुल में जनसामान्‍य को सरकार पर dependent नहीं बनाना चाहिए।

Minimum government का मेरा मतलब यही है कि सामान्‍य मानव को डगर-डगर सरकार के भरोसे जो रहना पड़ता है, वो कम होते जाना चाहिए। और हमारे यहां तो महाभारत के अंदर से चर्चा है| अब उस ऊंचाईयों को हम पार कर पाएंगे मैं नहीं सकता इस वक्‍त, लेकिन महाभारत में शांति पर्व में इसकी चर्चा है | इसमें कहा गया है - न राजा न च राज्यवासी न च दण्डो न दंडिका सर्वे प्रजा धर्मानेव् रक्षन्ति स्मः परस्पर:... न राज्‍य होगा न राजा होगा, न दंड होगा, न दंडिका होगी अगर जनसामान्‍य अपने कर्तव्‍यों का पालन करेगा तो अपने आप कानून की व्‍यवस्‍था बनी रहेगी, यह सोच महाभारत में उस जमाने में थी ।

और हमारे यहां मूलत: लोकतंत्र के सिद्धांतों में माना गया है ‘वादे-वादे जायते तत्‍व गोधा’ यह हमारे यहां माना गया है कि जितने भिन्‍न-भिन्‍न विचारों का मंथन होता रहता है उतनी लोकतांत्रिक ताकत मजबूत होती है। यह हमारे यहां मूलभूत चिंतन रहा है। इसलिए जब हम लोकतंत्र की बात करते हैं तो हम उन मूलभूत बातों को ले करके कैसे चलें उस पर हमारा बल रहना चाहिए।

आर्थिक विकास की दृष्‍टि से हमारे देश में दो क्षेत्रों की चर्चा हमेशा चली है और सारी आर्थिक नींव उन्‍हीं दो चीजों के आस-पास चलाई गई है। एक private sector, दूसरा public sector अगर हमें विकास को जन आंदोलन बनाना है तो private sector public sector की सीमा में रहना हमारी गति को कम करता है और इसलिए मैंने एक विषय जोड़ा है उसमें - public sector, private sector and personal sector .

यह जो personal sector है यह अपने आप में एक बहुत बड़ी ताकत है। हम में से बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि हमारे देश की economy को कौन drive करता है। कभी-कभी लगता है कि यह जो 12-15 बहुत बड़े-बड़े कोरपोरेट हाऊस हैं, अरबों-खरबों रुपये की बातें आती हैं। जी नहीं, देश की economy को या देश में सबसे ज्‍यादा रोजगार देने का काम यदि कहीं हुआ है तो हमारे छोटे-छोटे लोगों का है। कोई कपड़े का व्‍यापार करता होगा छोटा-मोटा, कोई पान की दुकान पर ठेका ले करके बैठा होगा। कोई भेलपुरी-पानीपुरी का ठेका चलाता होगा, कोई धोबी होगा, कोई नाई होगा, कोई साइकिल किराये पर देने वाला होगा, कोई ऑटो रिक्‍शा वाला, यह छोटे-छोटे लोगों का कारोबार का नेटवर्क हिंदुस्तान में बहुत बड़ा है। यह जो bulk है वो एक प्रकार के middle class लेवल पर नहीं आया है। लेकिन गरीबी में नहीं है | अभी उसका मीडिल क्‍लास में जाना बाकी है, लेकिन है अपने पैरों पर खड़ा । personal sector को बहुत ताकत देता है। क्‍या ऐसी हमारी व्‍यवस्‍था न हो जो हमारे इस personal sector को हम empower करे। कानूनी दिक्‍कतों से उसको मुक्ति दिलाए। आर्थिक प्रबंधन में उसकी मदद करें। ज्‍यादातर यह लोग वह हैं बेचारों को साहूकारों के पास पैसे ले करके काम करना पड़ता है, तो अपनी income का काफी पैसा फिर सरकार के पास चला जाता है, उसी चंगुल में वो फंस जाता है।

आज वे लोग ऐसे हैं जो ज्‍यादातर करीब 70% लोग इसमें से scheduled caste, scheduled tribe और OBC हैं। गरीब हैं, पिछड़े तबके से हैं। अब वे लोग देश में करीब-करीब 12-14 करोड़ लोगों को रोजगार देते हैं। इतनी ताकत हैं इन लोगों में । हर कोई एक को रोजगार देता है, कोई दो को देता है, कोई part-time देता हैं। लेकिन 12 से 14 करोड़ लोगों को रोजगार देते हैं। अगर उनको थोड़ा बल दिया जाए, थोड़ी मदद दी जाए उनको थोड़ा आधुनिक करने का प्रयास किया जाए तो इनकी ताकत हैं कि 15-20 करोड़ लोगों को रोजगार देने का सामर्थ्‍य है। और इसके लिए हमने एक प्रधानमंत्री मुद्रा योजना को बल दिया है।

प्रधानमंत्री मुद्रा योजना को ऐसे आगे बढ़ाया है कि कोई गारंटी की जरूरत नहीं लोगों से। वह बैंक में जायें और बैंक की जिम्‍मेदारी रहेगी उनकी मदद करना। 10 हजार, 15 हजार, 25 हजार, 50 हजार, ज्‍यादा रकम उनको चाहिए नहीं...बहुत कम रकम से वह काम कर लेते हैं अपना| अभी तो इस योजना का हो -हल्‍ला इतना शुरू नहीं हुआ है, ऐसे ही silently काम हो रहा है। लेकिन अब तक करीब 62 लाख परिवारों को करीब-करीब 42000 करोड़ रूपये उन तक पहुंचा दिए गए। और यह वो लोग हैं जो साहस भी करने को तैयार हैं और अनुभव आया है कि 99% लोग समय से पहले अपने पैसे वापस दे रहे हैं। कोई नोटिस नहीं देना पड़ रहा|

यानी हम personal sector को कितना बल दे। personal sector का एक और आज हमने पहलू उठाया है जिस प्रकार से समाज का यह तबका है जो अभी मध्‍यम वर्ग में पहुंचा नहीं है, गरीबी में रहता नहीं है ऐसी अवस्‍था है उसकी कि वो सबसे ज्‍यादा कठिन होती है | लेकिन एक और वर्ग है जो highly intellectual है -जो भारत का youth power है । उसके पास कल्‍पकता है, नया करने की ताकत है और वो देश को आधुनिक बनाने में बहुत बड़ा contribute कर सकता है। वो globally कम्‍पीट कर सकता है।

जैसे एक तबके को हमें मजबूत करना है वैसा दूसरा तबका है यह हमारी युवा शक्ति जिसमें यह विशेषताएं हैं। और इसके लिए हमने मिशन मोड पर काम लिया है। start-up India stand-up India. जब मैं start-up India की बात करता हूं तो उसमें भी मैंने दो पहलू पकड़े हैं।

हमने बैंकों को कहा कि समाज के अति सामाजिक दृष्टि से जो पीछे वर्ग के लोग हैं क्‍या एक बैंक एक की उंगली पकड़ सकती है क्‍या। एक बैंक की ब्रांच एक व्‍यक्ति को और एक महिला को बल दे सकती है | एक देश में सवा लाख ब्रांच। एक महिला को और एक गरीब को उनका अगर हाथ पकड़ ले उसको नये सिरे से ताकत दे तो ढाई लाख नये Entrepreneurs खड़े करने की हमारी ताकत है । वो छोटा काम दिया है लेकिन cumulative effect बहुत बड़ा होगा और दूसरी तरफ जो innovation करते हैं जो ग्‍लोबल competition में अपने आप को खड़ा कर सकते हैं और आज जब ग्‍लोबल मार्केट है तो प्रगति का सबसे बड़ा आधार है innovation. जो देश innovation में पीछे रह जाएगा वो आने वाले दिनों में इस दौड़ से बाहर निकल जाएगा और इसलिए innovation को अगर बल देना है तो start-up India stand-up India का मोड चलाया है। ऐसे लोगों को आर्थिक मदद मिले। उनको एक नई पॉलिसी ले करके हम आ रहे हैं। और मुझे विश्‍वास है कि भारत के नौजवानों की जो ताकत है, तो वो ताकत एक बहुत बड़ा बदलाव है।

इन सारी चीजों में आपने देखा होगा कि हम empowerment पर बल दे रहे हैं। कानूनी सरलीकरण भी हो, इससे भी empowerment होता है, आर्थिक व्‍यवस्‍थाएं सुविधाएं हो, उससे भी empowerment होता है।

Global economy के सम्बन्ध में कहां टिक सकता है? उसके लिए क्‍या सपोर्ट सिस्‍टम होना चाहिए, उस पर बल देना। यह चीजें हैं जिसके कारण आज हमारे देश में हमने काम को सुविधाजनक बनाया। जैसा मैंने शुरू में कहा था, आपको हैरानी होगी।

पार्लियामेंट चलती है कि नहीं चलती। अब डिबेट आप लोगों की कठिनाई है, आपके विषय, आपका व्यापार तो है ही है लेकिन इस बार पार्लियामेंट नहीं चलने से एक बात की तरफ ध्‍यान नहीं जा रहा| एक ऐसा कानून लटका पड़ा है और आज सुनने में आपको भी लगेगा कि भाई यह काम नहीं होना चाहिए क्‍या। हम एक कानून लाए हैं, जिसमें गरीब व्‍यक्ति जो नौकरी करता है उसके बोनस के सम्बन्ध में | अभी अगर उसकी monthly सात हजार रुपया से कम income है तो बोनस का हकदार होता है और 3500 रुपये तक उसको बोनस मिलता है। हम कानून में बदलाव लाए minimum 7000 की बजाए 21000 कर दिया जाए। monthly अगर उसकी income 21000 minimum है तो वो बोनस का हकदार बनना चाहिए जो अभी 7000 है और तीसरा 3500 बोनस की बात है उसे 7000 कर दिया जाए। यह सीधा सीधा गरीब के हित का काम है कि नहीं है ? लेकिन आज मुझे दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि पार्लियामेंट चल नहीं रही है, गरीब का हक रूका पड़ा है।

लेकिन चर्चा क्‍या होती है GST और parliament. अरे भई GST का जो होगा, सब मिलकरके जो भारत का भाग्‍य तय होगा वो होगा। लेकिन गरीबों का क्‍या? सामान्‍य मानविकी का क्‍या? और इसलिए हम संसद चलाने के लिए, इनके लिए , कह रहे हैं। लोकतंत्र में संसद से बड़ी कौन सी जगह होती है जहां पर वाद-विवाद, संवाद, विरोध सब हो सकता है। लेकिन हम उस institution को ही नकार देंगे तो फिर तो लोकतंत्र पर सवालिया निशान होगा और इसलिए मैं आज जब दैनिक जागरण में जिन विषयों का मूल ले करके आप चले हैं उस पर बात कर रहा हूं तो लोकतंत्र का मंदिर हमारी संसद है, उसकी गरिमा और सामान्‍य मानव के हितों के काम को फटाफट निर्णय करते हुए आगे बढ़ाना। यह देश के लिए बहुत आवश्यक है। उसको हम कैसे गति दें, केसे बल दें और उसको हम कैसे परिणामकारी बनायें ? बाकी तो मैं सरकार की विकास यात्रा के कई मुद्दे कह सकता हूं लेकिन मैं आज उसको छोड़ रहा हूं यही काफी हो गया ।

बहुत-बहुत धन्‍यवाद।

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November 22, 2024

गुटेन आबेन्ड

स्टटगार्ड की न्यूज 9 ग्लोबल समिट में आए सभी साथियों को मेरा नमस्कार!

मिनिस्टर विन्फ़्रीड, कैबिनेट में मेरे सहयोगी ज्योतिरादित्य सिंधिया और इस समिट में शामिल हो रहे देवियों और सज्जनों!

Indo-German Partnership में आज एक नया अध्याय जुड़ रहा है। भारत के टीवी-9 ने फ़ाउ एफ बे Stuttgart, और BADEN-WÜRTTEMBERG के साथ जर्मनी में ये समिट आयोजित की है। मुझे खुशी है कि भारत का एक मीडिया समूह आज के इनफार्मेशन युग में जर्मनी और जर्मन लोगों के साथ कनेक्ट करने का प्रयास कर रहा है। इससे भारत के लोगों को भी जर्मनी और जर्मनी के लोगों को समझने का एक प्लेटफार्म मिलेगा। मुझे इस बात की भी खुशी है की न्यूज़-9 इंग्लिश न्यूज़ चैनल भी लॉन्च किया जा रहा है।

साथियों,

इस समिट की थीम India-Germany: A Roadmap for Sustainable Growth है। और ये थीम भी दोनों ही देशों की Responsible Partnership की प्रतीक है। बीते दो दिनों में आप सभी ने Economic Issues के साथ-साथ Sports और Entertainment से जुड़े मुद्दों पर भी बहुत सकारात्मक बातचीत की है।

साथियों,

यूरोप…Geo Political Relations और Trade and Investment…दोनों के लिहाज से भारत के लिए एक Important Strategic Region है। और Germany हमारे Most Important Partners में से एक है। 2024 में Indo-German Strategic Partnership के 25 साल पूरे हुए हैं। और ये वर्ष, इस पार्टनरशिप के लिए ऐतिहासिक है, विशेष रहा है। पिछले महीने ही चांसलर शोल्ज़ अपनी तीसरी भारत यात्रा पर थे। 12 वर्षों बाद दिल्ली में Asia-Pacific Conference of the German Businesses का आयोजन हुआ। इसमें जर्मनी ने फोकस ऑन इंडिया डॉक्यूमेंट रिलीज़ किया। यही नहीं, स्किल्ड लेबर स्ट्रेटेजी फॉर इंडिया उसे भी रिलीज़ किया गया। जर्मनी द्वारा निकाली गई ये पहली कंट्री स्पेसिफिक स्ट्रेटेजी है।

साथियों,

भारत-जर्मनी Strategic Partnership को भले ही 25 वर्ष हुए हों, लेकिन हमारा आत्मीय रिश्ता शताब्दियों पुराना है। यूरोप की पहली Sanskrit Grammer ये Books को बनाने वाले शख्स एक जर्मन थे। दो German Merchants के कारण जर्मनी यूरोप का पहला ऐसा देश बना, जहां तमिल और तेलुगू में किताबें छपीं। आज जर्मनी में करीब 3 लाख भारतीय लोग रहते हैं। भारत के 50 हजार छात्र German Universities में पढ़ते हैं, और ये यहां पढ़ने वाले Foreign Students का सबसे बड़ा समूह भी है। भारत-जर्मनी रिश्तों का एक और पहलू भारत में नजर आता है। आज भारत में 1800 से ज्यादा जर्मन कंपनियां काम कर रही हैं। इन कंपनियों ने पिछले 3-4 साल में 15 बिलियन डॉलर का निवेश भी किया है। दोनों देशों के बीच आज करीब 34 बिलियन डॉलर्स का Bilateral Trade होता है। मुझे विश्वास है, आने वाले सालों में ये ट्रेड औऱ भी ज्यादा बढ़ेगा। मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं, क्योंकि बीते कुछ सालों में भारत और जर्मनी की आपसी Partnership लगातार सशक्त हुई है।

साथियों,

आज भारत दुनिया की fastest-growing large economy है। दुनिया का हर देश, विकास के लिए भारत के साथ साझेदारी करना चाहता है। जर्मनी का Focus on India डॉक्यूमेंट भी इसका बहुत बड़ा उदाहरण है। इस डॉक्यूमेंट से पता चलता है कि कैसे आज पूरी दुनिया भारत की Strategic Importance को Acknowledge कर रही है। दुनिया की सोच में आए इस परिवर्तन के पीछे भारत में पिछले 10 साल से चल रहे Reform, Perform, Transform के मंत्र की बड़ी भूमिका रही है। भारत ने हर क्षेत्र, हर सेक्टर में नई पॉलिसीज बनाईं। 21वीं सदी में तेज ग्रोथ के लिए खुद को तैयार किया। हमने रेड टेप खत्म करके Ease of Doing Business में सुधार किया। भारत ने तीस हजार से ज्यादा कॉम्प्लायेंस खत्म किए, भारत ने बैंकों को मजबूत किया, ताकि विकास के लिए Timely और Affordable Capital मिल जाए। हमने जीएसटी की Efficient व्यवस्था लाकर Complicated Tax System को बदला, सरल किया। हमने देश में Progressive और Stable Policy Making Environment बनाया, ताकि हमारे बिजनेस आगे बढ़ सकें। आज भारत में एक ऐसी मजबूत नींव तैयार हुई है, जिस पर विकसित भारत की भव्य इमारत का निर्माण होगा। और जर्मनी इसमें भारत का एक भरोसेमंद पार्टनर रहेगा।

साथियों,

जर्मनी की विकास यात्रा में मैन्यूफैक्चरिंग औऱ इंजीनियरिंग का बहुत महत्व रहा है। भारत भी आज दुनिया का बड़ा मैन्यूफैक्चरिंग हब बनने की तरफ आगे बढ़ रहा है। Make in India से जुड़ने वाले Manufacturers को भारत आज production-linked incentives देता है। और मुझे आपको ये बताते हुए खुशी है कि हमारे Manufacturing Landscape में एक बहुत बड़ा परिवर्तन हुआ है। आज मोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक्स मैन्यूफैक्चरिंग में भारत दुनिया के अग्रणी देशों में से एक है। आज भारत दुनिया का सबसे बड़ा टू-व्हीलर मैन्युफैक्चरर है। दूसरा सबसे बड़ा स्टील एंड सीमेंट मैन्युफैक्चरर है, और चौथा सबसे बड़ा फोर व्हीलर मैन्युफैक्चरर है। भारत की सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री भी बहुत जल्द दुनिया में अपना परचम लहराने वाली है। ये इसलिए हुआ, क्योंकि बीते कुछ सालों में हमारी सरकार ने Infrastructure Improvement, Logistics Cost Reduction, Ease of Doing Business और Stable Governance के लिए लगातार पॉलिसीज बनाई हैं, नए निर्णय लिए हैं। किसी भी देश के तेज विकास के लिए जरूरी है कि हम Physical, Social और Digital Infrastructure पर Investment बढ़ाएं। भारत में इन तीनों Fronts पर Infrastructure Creation का काम बहुत तेजी से हो रहा है। Digital Technology पर हमारे Investment और Innovation का प्रभाव आज दुनिया देख रही है। भारत दुनिया के सबसे अनोखे Digital Public Infrastructure वाला देश है।

साथियों,

आज भारत में बहुत सारी German Companies हैं। मैं इन कंपनियों को निवेश और बढ़ाने के लिए आमंत्रित करता हूं। बहुत सारी जर्मन कंपनियां ऐसी हैं, जिन्होंने अब तक भारत में अपना बेस नहीं बनाया है। मैं उन्हें भी भारत आने का आमंत्रण देता हूं। और जैसा कि मैंने दिल्ली की Asia Pacific Conference of German companies में भी कहा था, भारत की प्रगति के साथ जुड़ने का- यही समय है, सही समय है। India का Dynamism..Germany के Precision से मिले...Germany की Engineering, India की Innovation से जुड़े, ये हम सभी का प्रयास होना चाहिए। दुनिया की एक Ancient Civilization के रूप में हमने हमेशा से विश्व भर से आए लोगों का स्वागत किया है, उन्हें अपने देश का हिस्सा बनाया है। मैं आपको दुनिया के समृद्ध भविष्य के निर्माण में सहयोगी बनने के लिए आमंत्रित करता हूँ।

Thank you.

दान्के !